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ननद की ननद तो थी पर जेठ नहीं थे, सगा देवर भी नहीं
ननद की ससुराल का कुछ हाल तो पिछली पोस्ट भाग ८४ -इन्सेस्ट कथा - ननद के भैया बने उनके सैंया
मेरी ननद, मेरा मरद में है। इसमें एक पूरी पोस्ट है ननद की ननद के बारे में बस उसी से कुछ लाइने उद्धृत कर रही हूँ, याद आ जाएगा
मैंने ही एक दिन कुरेदा उन्हें, " हे ननद कैसी हैं तोहार "
मुझे मालूम था ग्यारहवें में पढ़ती थी, देखने में भी नाक नक्श अच्छा था, लेकिन थोड़ी नकचढ़ी,
ननद थोड़ी देर चुप रहीं फिर बोली एकदम गुस्से में,... "कंटाइन"
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वो मुस्करायीं और फिर दिल का पूरा राज उगल दिया,
" अकेली बहन इनकी तो इन्होने और इनसे ज्यादा इनकी महतारी ने अकेली बेटी और छोटी होने का, दिमाग खराब कर दिया है उसका और कुछ गड़बड़ इन लोगों के सामने भी कर देगी तो बस एक राग, अभी बच्ची है, अभी बहुत छोटी है "
" ग्यारहवें में पढ़ने वाली बच्ची होती है, पावे तो दो दो खूंटा एक साथ घोंट ले "मैंने भी ननद के सुर में सुर मिलाया
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मैंने कस के ननद के चूतड़ दबाते मसलते बोला, " हे हमरे ननदोई के जिन कुछ दोस धरा, लेकिन मैं समझ गयी तोहरी ननद क बीमारी और उसका इलाज "
ननद अब सीरियस हो के मेरा मुंह देख रही थीं,
" तोहरी ननद को चाहिए खूब मोटा तगड़ा लंड जो रुलाये रुलाये के उसकी झिल्ली फाड़े। उसके मन में जलन है, हदस है। रोज रात रात भर भैया भौजी को मस्ती करते हुए सुनती है, शलवार के ऊपर से रगड़ती होगी। और सोच सोच के जलती होगी। फिर अकेली बहन, अकेली बेटी, बियाह के पहले तोहरे मर्द, बहिनी बहिनी, और अब सांझ होते ही भौजी के चक्कर में, इसलिए सुबह से वो काँटा बोतीहै कंटाइन, "मैंने राज खोला
" तो का करें, " ननद ने परेशान हो कर पूछा।
" हमको काहें बियाह के लायी थीं " उलटे हमने पूछ लिया, और उन्हें चूमते बोली,
" जबतक तोहार भौजी है तो कौन परेशानी, अरे अगले होली के पहले, ओकरे ऊपर चढ़वाऊंगी न, तोहरे भैया से जबरदस्त खूंटा कहाँ मिले, पंचायत क सांड लजा जाएँ उनका देख कर, बस उन्ही को चढ़ाउंगी, जो भौजी का मायका बोलती है न तो वही भौजी क भैया फाड़ेंगे उसकी, अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों, और अगली होली में वो यहीं आएगी और हम दोनों मिल के उसके कपडे फाड़ेंगे, और इसी आंगन में नंगे नचाएंगे,"
तो सगा देवर या नन्दोई नहीं है, लेकिन गाँव में न देवर की कमी न नन्दोई की।