साली के साथ हारने में ही मजा हैरीत तो चाचा चौधरी निकली अपना दिमाग लगा कर उसकी प्रोब्लम का सॉल्यूशन चुटकी बजाते ही कर दिया गुड्डी ने सही कहा था कि आनंद बुद्धू है अगर आनंद अपना दिमाग लगाता तो अपनी साली से ठगा नही जाता लेकिन क्या करे साली के साथ मस्तियों का मजा कुछ और ही है गुंजा रीत और चंदा भाभी जैसी कड़क माल हो तो बंदा कुछ भी कर सकता है
ये तो कामरस खेलते खेलते q - question खेलने लग गए
बहुत बहुत धन्यवाद आपके कमेंट्स के लिए और साथ देने के लिएबहुत ही शानदार और मजेदार अपडेट है लगता है अब धमाल होने वाला है

आनंद को चंदा भाभी ने सब दांव पेंच सिखा दिए हैं लेकिन कई बार मौका आ के हाथ से निकल जाता हैभांग का असर आनन्द और वोडका का रीत पर असर हो रहा है दोनो म्यूजिक पर झूम रहे हैं लेकिन छोटा वाला आनन्द भी फुल मूंड में आ गया है वह तो रीत के अंदर अपना खूंटा गाड़ने के लिए तैयार हैं रीत अपने मैदान में छोटे नवाब को जंग के लिए तैयार कर दिया है अब देखते हैं आनन्द मैदान को देखकर ढेर होता है या मैदान में एंट्री करता है
आनंद की असली परेशानी है झिझक की, कहीं लड़की बुरा न मान जाए, और फिर कोई आ न जाए और आज होली में सब मिल के उसकी झिझक ही दूर करेंगी, जिससे आगे मौका पाके चौका मारने में कोई दिक्कत न होआनन्द बड़ा वाला चुतिया है रीत ने अपना मैदान पूरा तैयार कर लिया था मैदान गीला भी हो गया था आनन्द ने में दरवाजा भी खोल दिया था लेकिन अपने छोटे नवाब की एंट्री नही करा पाए भाभी के द्वारा सिखाए गए lession का 10%ही use कर पाया
रीत अपने स्कूल की डांसिंग क्वीन थी और अभी तो वही पहल कर रही हैरीत तो रीत है देवर भाभी के बीच अश्लीलता भरा डांस बहुत ही मजेदार था वोडका और भांग दोनो ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है अभी तक तो कोई तहलका मचा नही है देखते हैं आगे केवल पजामी ही खुलती है या कुछ और भी
एकदम। आप ऐसे पाठक पा कर यह कहानी और मैं धन्य हैं। आप ने एकदम सही कहा। गुड्डी ने ही चंदा भाभी के लिए उकसाया और अब रीत के लिए भी, उसकी तो दूकान पांच दिन वाली छुट्टी के चक्कर में बंद है तो वो सोच रही है की जिसके साथ हो सके उसी के साथ,गुड्डी ने तो अपने साजन के साथ मजे लेकर होली खेल ली है आनंद बाबू तो गुड्डी के कबूतरो को देखकर उसमे ही खो जाते हैं गुड्डी को भी अपने कबूतरो को रगड़वाने में मजा आ रहा है होली का मजा तो तब ज्यादा आता है जब रीत जैसी साली हो । यहां तो सजनी खुद चौकीदारी करके साली के साथ होली खेलने का मौका दे रही है
दुबे भाभी से तो सब डर गए लेकिन आनंद ने अपनी साली और सजनी का बचाव कर लिया दुबे भाभी की बातो से लगता है वो भी बहती गंगा में डुबकी लगाने वाली है गुड्डी तो तेज निकली अपने सैया के चहरे पर पहले ही तेल लगा दिया ताकि रंग पक्का ना हो लेकिन दुबे भाभी के सामने उनकी चालाकी पकड़ी गई दुबे भाभी चिकने की अब तो मस्त रगड़ाई करने वाली हैदूबे भाभी
![]()
तभी खट खट की सीढ़ी पे आवाज हुई और गुड्डी बोली- “अरे दूबे भाभी जल्दी…”
मैं और रीत तुरंत कपड़े ठीक करने में एक्सपर्ट हो गए थे। मैंने उसकी थांग ठीक की और उसने तुरंत अपनी पाजामी का नाड़ा बाँध लिया। मैंने उसका कुरता खींचकर नीचे कर दिया। गुड्डी भी। उसने मेरा बर्मुडा ऊपर सरकाया और हम तीनों अच्छे बच्चों की तरह टेबल पे किसी काम में बिजी हो गए।
चंदा भाभी भी बाहर आ गई थी और हम लोगों को देखकर मुश्कुरा रही थी। उन्हें अच्छी तरह अंदाजा था।
तब तक सीढ़ी पर से दूबे भाभी आई।
मैं उन्हें देखता ही रह गया।
जबरदस्त फिगर, दीर्घ नितंबा, गोरा रंग, तगड़ा बदन, भारी देह लेकिन मोटी नहीं। मैं देखता ही रह गया। लाल साड़ी, एकदम कसी, नाभि के नीचे बँधी, सारे कर्व साफ-साफ दिखते, स्लीवलेश लो-कट आलमोस्ट बैक-लेश लाल ब्लाउज़, गले से गोलाइयां साफ-साफ झांकती, कम से कम 38डीडी की फिगर रही होगी। नितम्ब तो 40+ विज्ञापन वाली जो फोटुयें छपती हैं। एकदम वैसे ही। पूरी देह से रस टपकता। लेकिन सबसे बड़ी बात थी, एकदम अथारटी फिगर। डामिनेटिंग एकदम सेक्सी।
उन्होंने सबसे पहले रीत और गुड्डी को देखा और फिर मुझे। नीचे से ऊपर तक।
उनकी निगाह एक पल को मेरे बरमुडे में तने लिंग पे पड़ी और उन्होंने एक पल के लिए चंदा भाभी को मुश्कुराकर देखा।
लेकिन जब मेरे चेहरे पे उनकी नजर गई तो एकदम से जैसे रंग बदल गया हो। मेरे रंग लगे पुते चेहरे को वो ध्यान से देख रही थी। फिर उन्होंने गुड्डी और रीत को देखा, तो दोनों बिचारियों की सिट्टी पिट्टी गम।
“ये रंग। किसने लगाया?” ठंडी आवाज में वो बोली।
किसी ने जवाब नहीं दिया। फिर चंदा भाभी बोली- “नहीं होली तो आपके आने के बाद ही शुरू होने वाली थी लेकिन। बच्चे हैं खेल खेल में। जरा सा…”
“वो मैंने पूछा क्या? सिर्फ पूछ रही हूँ। रंग किसने लगाया?”
“वो जी। इसने…” गुड्डी ने सीधे रीत की ओर इशारा कर दिया।
बिचारी रीत घबड़ा गई। वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया-
“नहीं भाभी। बात ऐसी है की। इन दोनों की गलती नहीं है। वो तो मैंने ही। पहले तो मैंने ही उन दोनों को रंग लगाया। ये दोनों तो बहुत भाग रही थी। फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिलकर मेरा ही हाथ पकड़कर मेरे हाथ का रंग मेरे मुँह पे…”
दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा। चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उंगलियों की रंग में डूबी छाप। एक जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरे पे सफेद वार्निश। और वही रंग मेरे गाल पे।
वो मुश्कुरायीं और थोड़ा माहौल ठंडा हुआ।
“अरे गलती तुम्हारी नहीं। ऐसी सालियां हों, ऐसे मस्त जोबन हो तो किसका मन नहीं मचलेगा?”
वो बोली और पास आकर एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था।
“बहुत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में…” वो बोली और फिर कहा- “चलो रंग छुड़ाओ। साफ करो एकदम…”
मैं जब छत पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोली- “तुम नहीं। ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं? जब तक ससुराल में हो हाथ का इश्तेमाल क्यों करोगे, इनके रहते?”
हम तीनों वाश बेसिन पे पहुँचे। मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली- “ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के…”
“वो भी बिचारे कर नहीं पाते। कोई ना कोई आ टपकता है…” रीत मुँह बनाकर बोली।
“मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी। तेरी इनकी किश्मत…” मुँह बनाकर गुड्डी बोली और चली गई।
“करूँगा रीत और तीन बार करूंगा कम से कम। आखीरकर, तुम्हीं ने तो कहा था की हमारा रिश्ता ही तिहरा है। मुझे मेरी और तेरी किश्मत के बारे में पूरी तरह से मालूम है…” हँसकर मैंने हल्के से कहा।
रीत का चेहरा खिल गया। बोली- “एकदम और मेरी गिनती थोड़ी कमजोर है। तुम तीन बार करोगे और मैं सिर्फ एक बार गिनूंगी। फिर दुबारा से…”
तब तक गुड्डी आ गई उसके हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था। दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी।
“यार हमारी चालाकी पकड़ी गई…” रीत बोली।
“हाँ दूबे भाभी के आगे…” गुड्डी बोली।
तब मुझे समझ में आया की प्लानिंग गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का। मेरे चेहरे पे जो फाउंडेशन और तेल गुड्डी ने लगाया था, चिकनी चमेली के बाद उसका फायदा ये होता की उसके ऊपर रंग पेण्ट वार्निश कुछ भी लगता, वो पक्का नहीं होता, और नहाते समय साबुन से रगड़ने से छूट जाता और उसके ऊपर से रीत और गुड्डी रंग और पेण्ट लगा देती तो किसी को अंदाज भी नहीं लगता की नीचे तेल या ऐसा कुछ लगा है। लेकिन दूबे भाभी की तेज निगाह, वो लेडी शर्लाक होम्स की, रीत की भी भाभी थीं, बस उन्होंने फरमान जारी कर दिया
दूबे भाभी गरजीं- “हे चंदा चकोरी। जरा यार से गप बंद करो और इसके बाद साबुन से, एक बूँद रंग की नहीं दिखनी चाहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की…”
उन दोनों के हाथ जोर-जोर से चलने लगे।
मैंने चिढ़ाया- “हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से…”“चुप…” जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की। तीन-चार बार चेहरा साफ किया। मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर ‘बहुत तैयारी’ से तेल वेल लगाकर जिससे रंग का असर ना पड़े। आया था। किशोर था 11-12 में पढ़ने वाला। दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपड़े उतरवाए। पूरा नंगा किया और फिर वहीं छत पे सबके सामने खुद होज से। फिर कपड़े धोने वाला साबुन लगाकर फिर निहुराया।“चल। जैसे पी॰टी॰ करता है, टांग फैला और और। पैरों की उंगलियां छू। हाँ चूतड़ ऊंचा कर और। और साले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाऊँगी…” वो बोली।उसने कर दिये फिर सीधे गाण्ड में होज डालकर- “क्यों बहन के भंड़ुवे। गाण्ड में भी तेल लगाकर आया था क्या गाण्ड मरवाने का मन था क्या?” और वो रगड़ाई हुई उसकी की 10 दिन तक रंग नहीं छूटा।चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की ओर मुड़ा तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। वो मुश्कुराकर बोली- “उन्हह अब दुल्हन का रंग निखरा है…” और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा- “क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले…”
होगा होगा, कहते हैं न वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा नहीं मिलता तो कल चंदा भाभी मिल गयी आज देखिये आनंद बाबू को कौन मिठाई मिलती है।गुड्डी ने तो कबाब में हड्डी का काम कर दिया नही तो आज मैदान ए जंग हो जाती वो भी नए मैदान पर नए हथियार से।गुड्डी को भी बुरा लगा गुड्डी ने हथियार को हाथ लगा कर चेक कर लिया कि हथियार अभी तक यूज नही हुआ है उसने फिर आनंद को हड़का दिया है
चंदा भाभी ने अपने देवर की मर्दांगी बनाए रखने के लिए जड़ी बूटियों से लड्डू बना दिया है अब इन लड्डूओ की जरूरत पड़ने वाली है रात में जो मेहनत की थी उसकी भरपाई के लिए एक डोज तो दे दिया है
शमशेर बहादुर सिंह की एक मशहूर कविता की पंक्तिया याद आ गयीं,वाह कोमल जी! पढ़ना शुरू किया, लेकिन सोचा कि बिना अपनी प्रतिक्रिया लिखे, पढ़ा नहीं जा सकता।
तो यह प्रतिक्रिया पेज #1 पर जो पढ़ा, उस पर है।
बनारस… काशी एक अलग सी ही दुनिया है। दो तीन बार जाना पड़ा वहाँ - उफ़! कुछ लिख दूँगा, तो कई लोगों की भावनाएँ आहत हो जाएँगी। इसलिए न ही सही। लेकिन फिर भी… मेरी आदतें कुत्ते की पूँछ जैसी टेढ़ी ही हैं।तो, लीजिए…
काशी धार्मिक नगरी तो है, लेकिन विधर्मी काम करने में पीछे नहीं रही है। “पौंड्रक वासुदेव” की कहानी सुने होंगे? नहीं सुने हैं, तो बताएँ - अलग से सुना दूँगा। भगवान कृष्ण उससे इतना परेशान हो गए कि उन्होंने उसके साथ साथ पूरी काशी को दण्ड स्वरुप, अपने सुदर्शन चक्र से भस्म कर दिया था। बाद में भगवान शिव ने बचाया, और इनका उद्धार किया। आज भी वही मुरहापन वहाँ के लोगों में देखने को मिलता है।
हाँ, लेकिन यह भी है कि कला, नृत्य, संगीत, भोजन, दर्शन, लेखन, कवित्त, इत्यादि में इस नगरी का सानी नहीं। फिर भी गज़ब का विरोधाभास लिए हुए है यह नगरी! शायद ‘चिराग तले अँधेरा’ वाली कहावत इसी नगरी को देख कर कही गई हो?
ख़ैर… बात अपने मुद्दे से अलग हट गई है।
“मैं” कौन है? और गुड्डी कौन? बातों से विवाहित जोड़ा लग रहे हैं, जो शायद शादी के बाद की पहली होली मनाने गुड्डी के मायके आए हैं? फाल्गुन मास आनंद और उल्लास का माह है - सर्दी कम होती है, और गर्मी धीरे धीरे शुरू होती है! एक महीना! वसंत ऋतु का पहला महीना! और शादी के बाद की पहली होली! ससुराल में! सालियों के साथ! वाह! वाह!! बहुत बढ़िया ख़ाका खींचा है आपने कहानी का। शायद इसी पर है आधारित यह उपन्यास?
“यार हाथी घूमे गाँव-गाँव जिसका हाथी उसका नाम। तो रहोगे तो तुम मेरे ही। किसी से कुछ। थोड़ा बहुत। बस दिल मत दे देना…”; “वो तो मेरे पास है ही नहीं कब से तुमको दे दिया…”; “ठीक किया। तुमसे कोई चीज संभलती तो है नहीं। तो मेरी चीज है मैं संभाल के रखूंगी।” ---- बहुत बढ़िया कोमल जी, बहुत बढ़िया!
“सामने जोगीरा चल रहा था” -- बाप रे! कितने वर्ष बीत गए ये शब्द सुने! वाह! “नदिया के पार” फिल्म का “जोगी जी” गाना याद आ गया! वाह!
गुंजा! पुनः, नदिया के पार वाली हिरोइन का नाम!
ओफ़्फ़! इतना द्विअर्थी संवाद! लेकिन मैंने सुना है यह - और पूरबिया लोगों के ही मुँह से! शायद उन्ही पर अच्छी भी लगती है यह / ऐसी भाषा! और ऐसी ही होली देखी भी है। मेरी चचेरी बड़ी बहन की ससुराल उसी तरफ़ है। उस दिन दीदी की ननदों ने इतनी नंगई मचाई थी, कि अगर सभ्य बना रहता, तो नंगा कर देतीं वो! एक ननद को ज़मीन पर पटक कर उस पर चढ़ बैठा, तब जा कर पीछा छोड़ा स्सालियों ने मेरा, कि ये तो मार मार कर मलीदा बना देगा!
“लेकिन वो पागल हो गई थी, दहक उठी थी। दिन सोने के तार से खींचते गए।” -- अद्भुत! क्या लिखा है आपने!
अब यह उपन्यास पढ़े बिना नहीं रह सकता। पूरा करना ही पड़ेगा! धीरे धीरे ही सही। और मुझको विश्वास है कि आपकी लेखनी से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा!