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फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७
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आपके कमेंट्स से इस कहानी में एक नयी जान पड़ जाती है, बहुत बहुत आभार साथ देने के लिएबहुत ही मजेदार अपडेट है एक नई भाभी की एंट्री और आते ही आनंद ने चोक्का मार दिया
आपकी टिप्पणी का जवाब देने में कुछ वक्त लग गया,किसी राइटर को रोमांटिक स्टोरी लिखने मे महारथ हासिल होता है , किसी को थ्रिलर - सस्पेंस लिखने मे महारथ हासिल है , कोई हाॅरर लिखने मे स्पेशलिस्ट है , कोई साइंस फिक्शन मे तो किसी को अन्य - अन्य विधा मे दक्षता हासिल प्राप्त है ।
आपके बारे मे मै पुरी गारंटी के साथ कहता हूं - होली से सम्बंधित इरोटिका लिखने मे आप जैसा कोई नही । आप की यह विधा पढ़कर रीडर्स " वाह वाह " न करें , ऐसा हो नही सकता ।
इन अपडेट मे भी आपने इरोटिका को एक ऊंची उड़ान पर पहुँचा दिया । आनंद साहब के साथ पांच पांच महिलाएं - दो परिपक्व मैच्योर औरतें दूबे भाभी और चंदा भाभी , एक नई नई सुहागन बनी औरत संध्या भाभी और दो कच्ची कली कचनार की रीत और गुड्डी - और सभी की सभी हुस्न की दौलत से मालामाल , यह सब कल्पना कर किसका दिल व्याकुल न हो जाए ! किसका दिल न मचल जाए ! किसके दिल के तार झंकृत न हो जाए !
बहुत ही खूबसूरत सीन्स और उतना ही शानदार लेखनी ।
बिहार और पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश मे होली और चैत्र मास के दौरान पुरे माह भोजपुरी लोकगीत गाने की परम्परा थी । यह गीत ही इन दो माह को अन्य महीने से अलग बनाता था । एक मे जहां रस रंग का उत्सव होता था वहीं दूसरे मे पुरे माह हम अपने पुज्य का जन्मोत्सव मनाते थे ।
जाने कहां गए वो दिन !
बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
जगमग जगमग अपडेट ।
किसी राइटर को रोमांटिक स्टोरी लिखने मे महारथ हासिल होता है , किसी को थ्रिलर - सस्पेंस लिखने मे महारथ हासिल है , कोई हाॅरर लिखने मे स्पेशलिस्ट है , कोई साइंस फिक्शन मे तो किसी को अन्य - अन्य विधा मे दक्षता हासिल प्राप्त है ।
आपके बारे मे मै पुरी गारंटी के साथ कहता हूं - होली से सम्बंधित इरोटिका लिखने मे आप जैसा कोई नही । आप की यह विधा पढ़कर रीडर्स " वाह वाह " न करें ऐसा हो नही सकता ।
इन अपडेट मे भी आपने इरोटिका को एक ऊंची उड़ान पर पहुँचा दिया । आनंद साहब के साथ पांच पांच महिलाएं - दो परिपक्व मैच्योर औरतें दूबे भाभी और चंदा भाभी , एक नई नई सुहागन बनी औरत संध्या भाभी और दो कच्ची कली कचनार की रीत और गुड्डी - और सभी की सभी हुस्न की दौलत से मालामाल , यह सब कल्पना कर किसका दिल व्याकुल न हो जाए ! किसका दिल न मचल जाए ! किसके दिल के तार झंकृत न हो जाए !
बहुत ही खूबसूरत सीन्स और उतना ही शानदार लेखनी ।
बिहार और पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश मे होली और चैत्र मास के दौरान पुरे माह भोजपुरी लोकगीत गाने की परम्परा थी । यह गीत ही इन दो माह को अन्य महीने से अलग बनाता था । एक मे जहां रस रंग का उत्सव होता था वहीं दूसरे मे पुरे माह हम अपने पुज्य का जन्मोत्सव मनाते थे ।
जाने कहां गए वो दिन !
बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
जगमग जगमग अपडेट
स्वागत है आपका इस थ्रेड पर, यह कहानी और मैं आपकी टिप्पणियों और सुझावों की प्रतीक्षा करेंगे,Bahut achi writing hai Mam aapki maza aa gaya
Full Holi ki Masti yaad dila di
Thanks so much for joining the story and your suggestions. I will be eagerly looking forward to your comments.Hot
Hot update komal ji. Or yahan bhi chanda bhabhi ko kuchh apne husband ka bhi jikar krna chahiye ki unke sath sex life kesi hai or wo tour me rehte hai toh chanda bhabhi kese raaten katti hai, yeh sab baten bhi anand ko chanda ke beech ho skti h
sure, aap padhte rahiye aur apne sujhaav jaroor dijiye thanks so muchVese to mene yeh story already padhi hui hai lekin jahan mujhe lgega ki kuchh or achha ho skta hai, likhta rahunga
वैसे तो रीत ग्रेजुएशन कर रही है लेकिन कॉमर्स में हाँ काम रस में तो वो सीधे पी एच डी करेगीबहुत ही मजेदार और रोमांचकारी अपडेट है रीत और आनंद के बीच संवाद बहुत ही मजेदार था आनंद को खुली छूट दे दी है रीत ने
आनंद को रीत को कामरस में ग्रेजुएशन करा देना चाहिए
सजनी का भी नंबर आ गया साली ने कह दिया है कि उसके निशान से ज्यादा निशान होने चाहिए अब तो आनंद को साली की बात माननी पड़ेगी साली पर तो पूरा कब्जा हो गया है सजनी के खजाने में कलर का खजाना मिल गया है आनंद के तो मजे हो गएउंगली के निशान
बस मैंने रीत को छोड़कर गुड्डी को पकड़ लिया, और दोनों हाथ पीछे करके कसकर मोड़ दिया।
“दीदीईई…” वो रीत को देखकर चिल्लाई। पर वो कहाँ आती।
“अच्छा। आप आई थी ना मुझे बचाने जो। छुट्टी तेरी नीचे है ऊपर थोड़ी है। रगड़वा कस-कसकर। सच में बहुत मजा आता है…” वो आँख नचाकर बोली।
मेरी और सब की निगाह अब रीत के ऊपर पड़ी। उसके टाईट कुरते को फाड़ते उभार और उस पर मेरी पाँचों उंगलियों के निशान।
मैंने रगड़ा मसला नहीं था सिर्फ कसकर, कचकचा के दबाया था। इसलिए। साफ-साफ सारी उंगलियां अलग-अलग, जैसे शादी वादी में हाथ का थापा लगाते हैं ना दरवाजे पे। बिलकुल उसी तरह। एक गदराये मस्त रसीले जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरी ओर सफेद वार्निश। दोनों निपल जो मैंने पिंच किये थे। वो खड़े बाहर झाँक रहे थे और दोनों पे रंग के निशान सबसे ज्यादा।
चंदा भाभी, मैं और गुड्डी तीनों वहां देखकर मुश्कुरा दिए।
रीत ने नीचे झाँक के देखा और अपने उरोजों पे मेरी उंगली के निशान देखकर शर्मा गई।
उसने इधर-उधर देखा, लेकिन उसका दुपट्टा पहले ही गायब हो चुका था। जो चन्दा भाभी की करतूत थी।
“उंगली के निशान एकदम साफ-साफ हैं। चोर जरूर पकड़ा जाएगा…” गुड्डी ने चिढ़ाया।
“चोर की डाकू। दिन दहाड़े…” मुझे देखकर रीत कुछ गुस्से में, कुछ प्यार में बोली।
“जो भी सजा हो मुझे मंजूर है…” मैंने हँसकर इकबाल-ए-जुर्म किया।
“अरे नहीं। इसने अपना निशान लगा दिया है। रीत अब ये जगह इनकी हो गई, समझी? फागुन में जोबन लुट गया तेरा…” चंदा भाभी ने चिढ़ाया।
“चलिए भाभी दिया। अरे मेरा देवर है, मेरा ननदोई है…” रितू ने बोल्ड होकर कहा और मुझसे मुड़कर बोली-
“पर चोर जी। तुम्हारी सजा ये है की मुझसे भी ज्यादा कसकर निशान इसके उभारों पे नजर आने चाहिए…”
“एकदम मंजूर…” मैं बोला। लेकिन जब तक मेरा हाथ गुड्डी के जोबन के ऊपर पहुँचता, उस चपल बाला ने अपने दोनों हाथों से छुपा लिया था और मुड़कर मुझे विजयी निगाह से देखा।
गुड्डी चपल थी तो मैं चालाक। मैंने अपने हाथ उसकी जांघों की ओर बढ़ा दिए और फ्राक उठाने लगा। वो चिल्लाई- “नहीं नहीं। प्लीज वहां नहीं। आज नहीं, अभी नहीं प्लीज…” और उसके दोनों हाथ फ्राक पे।
यही तो मैं चाहता था। पलक झपकते फ्राक नीचे से छोड़कर मैंने ऊपर पकड़ लिया और जब तक वो समझती, सम्हलती। दोनों उभार मेरी मुट्ठी में थे। वो कुछ शिकायत, कुछ खीझ, कुछ गुस्से में मेरा हाथ छुड़ाने की कोशिश करती हुई बोली-
“तुम ना। ये फाउल है…”
“प्यार और जंग में कुछ भी फाउल नहीं होता मेरी सोन चिरैया…” मैं कसकर उसके उभार दबाते बोला।
गुड्डी समझ गई थी की अब मेरी मुट्ठी नहीं खुलने वाली। उसने उरोजों से मेरा हाथ छुड़वाने की कोशिश छोड़ दी और मुँह फुलाकर बोली-
“तुम भी ना। सबके सामने इस तरह कैसे बोलते हो? सब लोग…”
“क्यों चंदा भाभी। आपको कुछ बुरा लगा?” मैंने पूछा।
“एकदम नहीं। तुमने कुछ कहा क्या मैंने तो सुना ही नहीं…” मुश्कुराते हुए वो बोली।
“और रीत तुम्हें। कुछ गलत लगा?”
“एकदम लगा…” चमक के वो बोली। अपनी मुश्कान छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए उसने कहा-
“ये कोई तरीका है किसी जवान लड़की से पेश आने का। मेरी तो इत्ती कस-कसकर दबा रहे थे की अब तक दुःख रहा है और उसकी। फूल से छू रहे हो। क्या मजा आएगा बिचारी को और फागुन में सब लोग बनारस में एकदम खुल्लम खुल्ला बोलते हैं और तुम…”
गुड्डी ने को रीत को देखकर जीभ निकालकर मुँह चिढ़ा दिया, और मैंने कसकर अब उसके उभार दबा दिए।
मैंने कहा- “क्या करूँ तुम्हारी दीदी। बोल रही है…”
“दीदी का तो बहाना है मजा तुम ले रहे हो। बदमाश। रात को देखना। बहुत तंग कर रहे हो ना…” फुसफुसा के वो बोली।
मेरी उंगलियां उसके किशोर उभारों पे भी मेरे गालों का रंग छोड़ रही थी। लेकिन ज्यादा रंग तो रीत के उभारों पे ही लग गया था। तभी मेरी खोजी निगाह। गुड्डी के पीठ की ओर पड़ी, चड्ढी के पास फ्राक फूली हुई थी।
“ये बात है…” मैंने झट से हाथ डालकर निकाल लिया। रंग की सारी ट्यूबें। लाल, गुलाबी, काही, नीला, पीला। जैसे किसी हारती हुई सेना को रसद का भंडार मिल जाय वो हालत मेरी थी। मैंने उसे पकड़े-पकड़े एक हथेली पे गुलाबी दूसरे पे लाल रंग मला।
PhD की कुछ क्लास तो शुरू हो गई है साथ ही प्रैटिकल भी हो गया हैवैसे तो रीत ग्रेजुएशन कर रही है लेकिन कॉमर्स में हाँ काम रस में तो वो सीधे पी एच डी करेगी