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फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७
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ससुराल में हैं,फागुन है, बनारस है तो रगड़ाई तो जम के होगी ही और रीत के साथ साथ अभी और भी आएँगी और साथ में आग में घी डालने वाली उकसाने वाली गुड्डी तो है ही। बहुत बहुत आभार सटीक रसीले कमेंट्स के लिए।आनंद बाबू तो अपने आप को खिलाड़ी समझ रहे थे लेकिन उनका दाव तो उल्टा पड़ गया रीत तो आनंद पर भारी पड़ गई अब जमकर रगड़ाई होने वाली है आनंद की अब तो रसाला गया काम से
गाने का उल्लेख आया था कहानी में तो मैंने सोचा सुना भी दूँ, और आप ऐसे रसिक पाठक, आपने सुना भी पंसद भी किया। आभार।अरे वाह कोमल मैम
शानदार विडियो
आभार
बहुत बहुत धन्यवाद, बस आप ऐसे साथ देते रहे, हिम्मत बढ़ाते रहें अपडेट्स आते रहेंगे।अत्यंत ही कामुक अपडेट। मजा आ गया।
Thanks so much for such an elaborate and detailed comment. But it is only the beginning of HOLI. The next 5-6 posts will show many dimensions of HOLI before HOLI. My thread waits for your valuable suggestions.Madam, the last update (on Pg 175)..
Well...as usual a good one...no doubt about it.
This update was all about Holi...and when I say Holi..it means you are on familiar turf...you and Holi are synonymous with each other
Need I say more??
While Dubey Bhabhi is slowly but surely "coming to form" (wrt teasing and double meaning dialog baazi) Sandhya Bhabhi getting into the mix was an interesting addition...and her "sighting" of Anand Babu should make things more spicy..
A good and wonderful update. I am sure, these are all prelude to Anand Babu completing his training and joining the work force..we will wait more on that later though...
Thanks and Apologies for the late comment/review.
komaalrani
Thank you for your kind words Madam...even if I am a bit late..rest assured that all updates of your stories (this one and Jkg) will have my commentsThanks so much for such an elaborate and detailed comment. But it is only the beginning of HOLI. The next 5-6 posts will show many dimensions of HOLI before HOLI. My thread waits for your valuable suggestions.
Thanks again.
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Mujhe aapke alpha beta third ki jarurat hai. Please link dijiye Komal ji
Thank you for your kind words Madam...even if I am a bit late..rest assured that all updates of your stories (this one and Jkg) will have my comments
The other stories...honestly not sure if I will have that much time..but if any update seems interesting..I might drop a comment
Hope you understand. Much Thanks.
komaalrani
On a lighter note....the next 5-6 episodes should be a breeze and smooth sailing for you then...since they will have many dimensions of Holi... (& you are an undisputed Queen on that)..Thanks so much for such an elaborate and detailed comment. But it is only the beginning of HOLI. The next 5-6 posts will show many dimensions of HOLI before HOLI. My thread waits for your valuable suggestions.
Thanks again.
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गुड्डी ने तो अपने साजन के साथ मजे लेकर होली खेल ली है आनंद बाबू तो गुड्डी के कबूतरो को देखकर उसमे ही खो जाते हैं गुड्डी को भी अपने कबूतरो को रगड़वाने में मजा आ रहा है होली का मजा तो तब ज्यादा आता है जब रीत जैसी साली हो । यहां तो सजनी खुद चौकीदारी करके साली के साथ होली खेलने का मौका दे रही हैरंग
दीदी का तो बहाना है मजा तुम ले रहे हो। बदमाश। रात को देखना। बहुत तंग कर रहे हो ना…” फुसफुसा के वो बोली।
मेरी उंगलियां उसके किशोर उभारों पे भी मेरे गालों का रंग छोड़ रही थी। लेकिन ज्यादा रंग तो रीत के उभारों पे ही लग गया था। तभी मेरी खोजी निगाह गुड्डी के पीठ की ओर पड़ी, चड्ढी के पास फ्राक फूली हुई थी।
-“ये बात है…”
मैंने झट से हाथ डालकर निकाल लिया। रंग की सारी ट्यूबें। लाल, गुलाबी, काही, नीला, पीला। जैसे किसी हारती हुई सेना को रसद का भंडार मिल जाय वो हालत मेरी थी। मैंने उसे पकड़े-पकड़े एक हथेली पे गुलाबी दूसरे पे लाल रंग मला।
“दीदी…” कहकर वो चीख रही थी, छटपटा रही थी।
“हाँ। आप आई थी ना मुझे बचाने…” कहकर रीत मुश्कुरा रही थी और उसकी बड़ी-बड़ी आँखें मुझे उकसा रही थी।
“तू कह रह थी ना की सबके सामने। सही बात है तो चलो अन्दर हाथ डाल देता हूँ…”
मेरे एक हाथ ने आराम से उसके बटन खोले और रंग लगाने दूसरा हाथ अन्दर।
“और क्या छुट्टी नीचे वाली की है। ऊपर थोड़े ही है…” चंदा भाभी बोली।
गुड्डी- “हे हे। क्या करते हो?” कहकर वो नखड़ा दिखा रही थी। लेकिन मैं भी जानता था की उसे अच्छा लग रहा है और वो भी जानती थी की मैं रुकने वाला नहीं हूँ।
मुझे रात की चंदा भाभी की बात याद आ रही थी की उसे खूब रगड़ो, सबके सामने रगड़ो। सारी शर्म गायब कर दो तब वो मजे ले लेकर करवाएगी। पहले तो मैंने दोनों हाथों से उसके मस्त उभार पकड़े, दबाये। अब मैं सीख गया था की कैसे उंगलियों के निशान वहां छोड़े जाते हैं। मैं बस कस-कसकर दबा रहा था जोबन रस लूट रहा था।
रीत दूर खड़ी चिढ़ा रही थी उसे- “क्यों गुड्डी मजा आ रहा है। अरे यही तो उम्र है इन उभारों का रस लूटने का…”
मैं भी अब मेरी उंगलियां, कभी उसके निपल को फ्लिक करती कभी पिंच कर देती। रंग तो बस एक बहाना था।
गुड्डी भी अब खुलकर दबवा रही थी, मजे ले रही थी। फिर वो मेरे कान में बोली-
“अरे यार मेरे साथ तो रात भर खुलकर और खोलकर लोगे। वो जो खिलखिला रही है ना। कामरस मेरा मतलब आम-रस वाली। उसके आमों का रस लूटो ना फिर कब पकड़ में आएगी…”
रीत तंग पीली कमीज और शलवार में हम दोनों को देखकर मुश्कुरा रही थी- “क्या पक रहा है तोता मैना में?” फिर वो बोली- “क्यों साजिश तो नहीं हो रही?”
“अरे नहीं, मैं ये देख रहा था की किसका बड़ा है? गुड्डी का या…” मैं हँसकर बोला।
“बड़ा तो रीत दीदी का ही है। मुझसे बड़ी भी तो हैं…” गुड्डी बोली।
रीत ने चिढ़ाया- “घबड़ा मत घबड़ा मत। लौटकर आयेगी न एक हफ्ते के बाद तब देखूंगी। कम से कम दो नंबर बढ़ जायेंगे ये…”
मैं जैसे ही रीत की ओर बढ़ा, वो चालाक मेरा इरादा भांप गई और तेजी से मुड़ी,
लेकिन पीछे चंदा भाभी। आखिर रीत उनकी भी तो ननद थी-
“अरे कहाँ जा रही हो ननद रानी, कौन सा यार इन्तजार कर रहा है?” उन्होंने उसका रास्ता रोका और इतना समय काफी था मेरे लिए।
“मुझसे बड़ा यार कौन होगा। मेरी भाभी भी, साली भी…” मैंने बोला और पीछे से पकड़ लिया।
मछली की तरह वो फिसली, लेकिन सामने चंदा भाभी और मेरी पकड़ भी। वो समझ रही थी की मेरे हाथ कहाँ जाने वाले हैं इसलिए उसने दोनों हाथ सीधे अपने उभारों पे।
“एक बार ले लेने दो ना अन्दर से। प्लीज…” मैंने अर्जी लगाई।
“तो ले लो न। मैंने कब मना किया है…” उस शैतान ने बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर बोला।
वो भी जानती थी और मैं भी की बिना ऊपर का हुक खोले। मेरा हाथ ऊपर से अन्दर नहीं जा सकता और जब तक वो हाथ हटाएगी नहीं।
मैं हाथ नीचे नाड़े की ओर ले गया पर वो एक कातिल अदा से मुश्कुराकर बोली- “हे हे। एक ट्रिक दो बार नहीं चलती…” वो देख चुकी थी की मैंने कैसे गुड्डी के साथ।
लेकिन मेरे तरकश में सिर्फ एक ही तीर थोड़े ही था। मेरे दोनों हाथ उसकी जांघों तक पहुँचे फिर एक झटके में उसका कुरता ऊपर उठा दिया। कुरता ऊपर से तो टाईट था लेकिन नीचे से घेर वाला। और जब तक वो सम्हले सम्हले मेरा हाथ अन्दर।
तुरंत वो ब्रा के ऊपर, लेसी ब्रा में उसके उड़ने को बेताब गोरे-गोरे कबूतर और मेरे हाथ में लगा लाल गुलाबी रंग ब्रा के ऊपर से ही उसे रंगने लगा।
“अब ताला लगाने से क्या फायदा जब चोर ने सेंध लगा ली हो…” चंदा भाभी ने रीत को छेड़ा और ये कहते हुए अन्दर किचेन में चली गईं की वो दस पन्दरह मिनट में आती हैं।
बिचारी रीत। उसने मुझे देखा और अपने हाथ हटा लिए। एक बार पहले ही मैं उन कबूतरों को आजाद करा चुका था और मुझे मालूम था की ये फ्रंट ओपन ब्रा है। इसलिए अगले पल चटाक-चटाक।
हुक खुल गया और वो जवानी के रसीले खिलौने बाहर।
“थैंक्स रीत…” मैं बोला और अगले ही पल उसके गदराये रसीले जोबन, मेरी मुट्ठी में।
क्या मस्त उभार थे, एकदम परफेक्ट, खूब कड़े भी मुलायम भी, जस्ट पके। पहले तो बस मैं छूता रहा, सहलाता रहा। तभी मुझे होश आया की यार ये टाइम ऐसे ही। मैंने गुड्डी को आवाज दी-
“हे यार। जरा सीढ़ी के पास। चंदा भाभी तो बोलकर गई हैं की दस पन्दरह मिनट के लिए तो बस सीढ़ी ही। अगर कोई आता दिखाई दे न तो आवाज लगा देना…”
“अच्छा जी। मुझसे चौकीदारी करवाई जा रही है…”गुड्डी चमक के बोली
रीत ने भी उसकी ओर रिक्वेस्ट के तौर पे देखा। और गुड्डी सीढ़ी के पास जाकर खड़ी हो गई।
मुस्कराते हुए उसने मुझे ग्रीन सिग्नल भी दे दिया,
चंदा भाभी खुद ही जान बुझ के बोल के गयी थीं की पंद्रह बीस मिनट में आती हैं, इतना समय काफी होगा उनकी ननदिया की बिल में सेंध लगाने के लिए,
रीत की पीठ हम दोनों की ओर थी, गुड्डी मुझे मीठी निगाहों से देख रही थी चाहती तो वो भी थी की मैं रीत के साथ, एक बार डांट भी चुकी थी और अब उससे नहीं रहा गया तो चुदाई का इंटरनेशनल सिग्नल, अंगूठे और तर्जनी से गोल बना के और
रंग लगाते-लगाते मैं रीत को टेबल के पास लेकर आ गया था। सहारे के लिए झुक के उसने टेबल पकड़ ली थी और झुक गई थी। अब उसके मस्त चूतड़ ठीक मेरे तन्नाये लिंग से ठोकर खा रहे थे। मैंने खुलकर मम्मे मसलने शुरू कर दिए। क्या चीज है ये भी यार, मैं सोच रहा था। कभी दबाता, कभी मसलता, कभी रगड़ता और कभी निपल पकड़कर कसकर खींच देता।
वो सिसकियां भर रही थी, अपने मस्त चूतड़ रगड़ रही थी। सिर्फ तन से ही नहीं मन से भी वो बेस्ट थी।
“रीत इज बेस्ट…” मैंने उसके कान में फुसफुसाया।
जवाब में वो सिर्फ सिसक दी। खुली छत। लेकिन मैं जैसे पागल हो रहा था। थोड़ा सा बरमूडा सरका के मैंने अपना हथियार सीधे,
“ओह्ह… नहीं फिर कभी अभी नहीं…” वो सिसकियां भर रही थी। लेकिन साथ ही उसने अपनी टांगें चौड़ी कर ली।
“रीत। रीत, बस थोड़ा सा। खाली टच। ओह्ह…” और मैं खुला सुपाड़ा उसकी पुत्तियों पे रगड़ रहा था। वो पिघल रही थी। मैंने कसकर उस सुनयना की पतली बलखाती कमर पकड़ ली।
तभी खट खट की सीढ़ी पे आवाज हुई और गुड्डी बोली- “अरे दूबे भाभी जल्दी…”
मैं और रीत तुरंत कपड़े ठीक करने में एक्सपर्ट हो गए थे। मैंने उसकी थांग ठीक की और उसने तुरंत अपनी पाजामी का नाड़ा बाँध लिया। मैंने उसका कुरता खींचकर नीचे कर दिया।
गुड्डी भी, उसने मेरा बर्मुडा ऊपर सरकाया और हम तीनों अच्छे बच्चों की तरह टेबल पे किसी काम में बिजी हो गए।