Sanju@
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शराब का असर शुरू हो गया है दुबे भाभी भी आनन्द से रगड़वाने के लिए तैयार है चिकने पर सबका मन आ गया है वह चाहती हैं कि आनंद गांव से गुड्डी को छोड़ने आए तो एक दो दिन रुके----दूबे भाभी और भांग के गुलाबजामुन
दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- “चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो…”
मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- “भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए…”
“एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो…”वो मुस्कराते हुए बोलीं, उनकी निगाहे मेरे चिकने चेहरे पर चिपकी थी, जहाँ से गुड्डी और रीत ने रगड़ रगड़ कर एक एक दाग रंग का साफ़ कर दिया था, और चेहरा और साफ़ चिकना लग रहा था।
मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- “ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से…” वो बोली।
“सच। अरे तब तो एक और…”
डबल डोज वाले नत्था के दो गुलाब जामुनों का असर तो होना ही था थोड़े देर में। उनकी निगाह बियर के ग्लासों पे पड़ी- “ये क्या है?”
रीत अब मेरी परफेक्ट असिस्टेंट बनती जा रही थी- “अरे भाभी ये इम्पोर्टेड ड्रिंक है, स्पेशल। ये लाये हैं…”
मेरे कहने पे वो शायद ना मानती लेकिन रीत तो उनकी अपनी ननद थी।
“हाँ एकदम। लीजिये ना मेरे हाथ से…” मैं बोला।
उन्होंने लेते समय मेरी उंगलियों को रगड़ दिया। बियर पीते-पीते उनकी निगाह गुड्डी की ओर पड़ी-
“तू पिछले साल बचकर आ गई थी ना होली में आज सूद समेत। सारे कपड़े उतारकर…” दूबे भाभी पे गुलाब जामुन का असर चढ़ रहा था।
चंदा भाभी ने कुछ उनके कान में फुसफुसाया। दूबे भाभी की भौंहें चढ़ गईं। लेकिन फिर बियर की एक घूँट लगाकर बोली-
“गलत मौके पे आती है तेरी ये सहेली…”
फिर कुछ सोचकर कहा- “चल कोई बात नहीं। आज छुट्टी है तो होली के दिन तक तो। होली के तो अभी 5 दिन है। उस दिन कोई नाटक मत करना…”
“लेकिन मैं तो आज, इनके साथ। मम्मी ने बोला था। अभी थोड़े देर में ही। होली वहीं…” गुड्डी घबड़ाते हुए बोल रही थी।
अब तो दूबे भाभी का पारा जैसे किसी के हाथ से शिकार निकल जाय। मुझसे बोली- “तुम तो आओगे ना इसको छोड़ने। तो फिर रंग पंचमी में। रुकोगे ना…”
“असल में मेरी ट्रेनिग. फिर हफ्ते में दो ही दिन यहाँ से सीधी गाडी है सिकंदराबाद के लिए और ट्रेन से टाइम लगता है, इसलिए इसको छोड़ने के बाद, मैंने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी की, कितने दिन रुकूंगा, कब आऊंगा लेकिन,...
दूबे भाभी का जैसे चेहरा उतर गया हो सारा भांग और बियर का नशा गायब हो गया। फिर उनकी भौंहे चढ़ गईं। उन्होंने कुछ चंदा भाभी से कहा। मैं और रीत थोड़ी दूर खड़े थे।
चन्दा भाभी ने अलग हटकर कुछ गुड्डी को बुलाकर कहा।
उस बिचारी का चेहरा भी बुझ गया। वो बार-बार ना ना के इशारे से सिर हिलाती रही। जैसे कोई अर्जेंट कांफ्रेंस चल रही हो।
दूबे भाभी ने जैसे गुड्डी के साथ जम के मस्ती करने की सोची हो और साथ में बोनस में मैं, लेकिन गुड्डी का वो पांच दिन का चक्कर
तो आज होली बिफोर होली में वो साफ़, मतलब उसकी चुनमुनिया साफ़ बच गयी,
और होली के दिन भी वो यहाँ नहीं होती, और सबसे बड़ी बात
होली आफटर होली में मैं बच निकलता, ट्रेनिंग पर जाने के नाम पर तो उनकी सारी प्लानिंग, न होली बिफोर होली में, न होली में न होली आफ्टर होली में मतलब रंग पञचमी में
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