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Erotica फागुन के दिन चार

Sanju@

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----दूबे भाभी और भांग के गुलाबजामुन
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दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- “चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो…”

मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- “भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए…”

“एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो…”वो मुस्कराते हुए बोलीं, उनकी निगाहे मेरे चिकने चेहरे पर चिपकी थी, जहाँ से गुड्डी और रीत ने रगड़ रगड़ कर एक एक दाग रंग का साफ़ कर दिया था, और चेहरा और साफ़ चिकना लग रहा था।

मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- “ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से…” वो बोली।

“सच। अरे तब तो एक और…”
डबल डोज वाले नत्था के दो गुलाब जामुनों का असर तो होना ही था थोड़े देर में। उनकी निगाह बियर के ग्लासों पे पड़ी- “ये क्या है?”

रीत अब मेरी परफेक्ट असिस्टेंट बनती जा रही थी- “अरे भाभी ये इम्पोर्टेड ड्रिंक है, स्पेशल। ये लाये हैं…”

मेरे कहने पे वो शायद ना मानती लेकिन रीत तो उनकी अपनी ननद थी।

“हाँ एकदम। लीजिये ना मेरे हाथ से…” मैं बोला।

उन्होंने लेते समय मेरी उंगलियों को रगड़ दिया। बियर पीते-पीते उनकी निगाह गुड्डी की ओर पड़ी-

“तू पिछले साल बचकर आ गई थी ना होली में आज सूद समेत। सारे कपड़े उतारकर…” दूबे भाभी पे गुलाब जामुन का असर चढ़ रहा था।

चंदा भाभी ने कुछ उनके कान में फुसफुसाया। दूबे भाभी की भौंहें चढ़ गईं। लेकिन फिर बियर की एक घूँट लगाकर बोली-

“गलत मौके पे आती है तेरी ये सहेली…”

फिर कुछ सोचकर कहा- “चल कोई बात नहीं। आज छुट्टी है तो होली के दिन तक तो। होली के तो अभी 5 दिन है। उस दिन कोई नाटक मत करना…”

“लेकिन मैं तो आज, इनके साथ। मम्मी ने बोला था। अभी थोड़े देर में ही। होली वहीं…” गुड्डी घबड़ाते हुए बोल रही थी।

अब तो दूबे भाभी का पारा जैसे किसी के हाथ से शिकार निकल जाय। मुझसे बोली- “तुम तो आओगे ना इसको छोड़ने। तो फिर रंग पंचमी में। रुकोगे ना…”

“असल में मेरी ट्रेनिग. फिर हफ्ते में दो ही दिन यहाँ से सीधी गाडी है सिकंदराबाद के लिए और ट्रेन से टाइम लगता है, इसलिए इसको छोड़ने के बाद, मैंने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी की, कितने दिन रुकूंगा, कब आऊंगा लेकिन,...

दूबे भाभी का जैसे चेहरा उतर गया हो सारा भांग और बियर का नशा गायब हो गया। फिर उनकी भौंहे चढ़ गईं। उन्होंने कुछ चंदा भाभी से कहा। मैं और रीत थोड़ी दूर खड़े थे।

चन्दा भाभी ने अलग हटकर कुछ गुड्डी को बुलाकर कहा।

उस बिचारी का चेहरा भी बुझ गया। वो बार-बार ना ना के इशारे से सिर हिलाती रही। जैसे कोई अर्जेंट कांफ्रेंस चल रही हो।
दूबे भाभी ने जैसे गुड्डी के साथ जम के मस्ती करने की सोची हो और साथ में बोनस में मैं, लेकिन गुड्डी का वो पांच दिन का चक्कर

तो आज होली बिफोर होली में वो साफ़, मतलब उसकी चुनमुनिया साफ़ बच गयी,

और होली के दिन भी वो यहाँ नहीं होती, और सबसे बड़ी बात

होली आफटर होली में मैं बच निकलता, ट्रेनिंग पर जाने के नाम पर तो उनकी सारी प्लानिंग, न होली बिफोर होली में, न होली में न होली आफ्टर होली में मतलब रंग पञचमी में
शराब का असर शुरू हो गया है दुबे भाभी भी आनन्द से रगड़वाने के लिए तैयार है चिकने पर सबका मन आ गया है वह चाहती हैं कि आनंद गांव से गुड्डी को छोड़ने आए तो एक दो दिन रुके
 
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शर्त - होली आफटर होली की
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चन्दा भाभी ने अलग हटकर कुछ गुड्डी को बुलाकर कहा। उस बिचारी का चेहरा भी बुझ गया। वो बार-बार ना ना के इशारे से सिर हिलाती रही। जैसे कोई अर्जेंट कांफ्रेंस चल रही हो।

फिर वो मेरे पास आई और मेरे कान में बोली-

“हे दूबे भाभी बहुत नाराज हैं। क्या तुम किसी तरह और नहीं रुक सकते। वो रंग पंचमी के दिन। कोई रास्ता निकालो प्लीज…”



"तुम्हें तो मेरी मजबूरी मालूम है ना। उसी दिन मेरी ट्रेनिंग शुरू होने वाली है। और फिर ट्रेन से कम से कम दो दिन लगता है। कैसे बताओ…” मैंने उसे समझाने की कोशिश की।

“लेकिन मैं भी क्या करूँ। तुम्हीं बताओ?” वो हाथ मसल रही थी।



मैं क्या बोलता।

मैंने फिर उसे समझाया- “अरे यार टिकट एयर का। मालूम है। चलो मान लो। लेकिन तुम्हारे मम्मी पापा भी तो आ जायेंगे।

भूल गए तुम गुड्डी ने हड़काया, गुड्डी के दिमाग में कुछ चमका और वो मुस्करायी

सच में भूल गया था,


एक तो रीत के हाथ के बनाये दहीबड़े में पड़े डबल डोज भांग का नशा, दूसरे रीत के जोबन का भी नशा, तीन दिन का रुकना तो कल ही तय हो गया था गुड्डी की मम्मी और बहनों के सामने फोन पे बात करते हुए और यही तो



और गुड्डी न होती न याद दिलाने के लिए तो मेरी कस के ली जाती वो भी बिना तेल लगाए और गुड्डी और उसी सब बहनों के सामने, लेती उसकी मेरा मतलब मम्मी, उन्होंने मुझसे वायदा किया था की मैं होली पे लौट के कम से कम तीन दिन यहाँ रहूं, गुड्डी की बहनो और श्वेता ने मुझे बाँट भी लिया था होली खेलने के नाम पे और फ्लाइट का टाइम भी मैंने देख लिया था, एकदम टाइम से पहुँच जाता, और गुड्डी के पापा तो कानपुर से ही दस बारह दिन के लिए बाहर

अब मुझे एक एक बात याद आ गयी थी, ये गुड्डी न हो तो मेरा एक पल काम न चले, और वो सरंगनायनी जिस तरह देख रही थी, मानो कह रही हो, क्यों नहुँ होउंगी मैं, ऊपर से लिखवा के लायी हूँ, पानी चाहे जहाँ इधर उधर गिराओ, लेकिन तुम और तेरा दिन मेरी मुट्ठी में है और रहेगा ,

आवाज से ज्यादा मन में, गुड्डी की मम्मी और उनका चेहरा, छेड़ती आँखे और बातें और सबसे बढ़ कर ब्लाउज फाड़ते,... और उनकी आवाज एक बार फिर चालू हो गयी



" और मैं सोच रही थी की तुम गुड्डी को छोड़ने तो आओगे ही, तो एकाध दिन और रुक जाते, कम से कम तीन दिन, एक दो दिन में क्या,... अबकी की तो तुमसे भी मुलाकात भी बस,... और हमारा तुम्हारा फगुआ भी उधार है, हमारी होली तो अबकी की एकदम सूखी, तो दो तीन रहोगे तो ज़रा,...



" हम दोनों की भी,... " छुटकी ने जोड़ा और श्वेता ने करेक्शन जारी किया, " नहीं, हम तीनो की "



और मैं जल्दी जल्दी कैलकुलेट कर रहा था, बनारस से भी हफ्ते में दो ही दिन सिकंदराबाद के लिए ट्रेन थी, जिससे मैंने लौटने का रिजर्वेशन करा रखा था, उसके हिसाब से मुझे एक डेढ़ दिन मिलता गुड्डी के यहाँ, लेकिन एक दिन का गुड्डी का एक्स्ट्रा साथ,... इसके लिए तो मैं,... और मैंने हल भी ढूंढ लिए, बाबतपुर ( बनारस का एयरपोर्ट ) से दिल्ली की तो तीन चार फ्लाइट रोज हैं और दिल्ली से सिकंदराबाद की भी, ... तो अगर मैं फ्लाइट से प्लान बनाऊं ,... तो कम से कम डेढ़ दिन और मिल जाएगा, और ट्रेनिंग शुरू होने के चार पांच घंटे पहले पहुँच जाऊँगा तो थोड़ा लेट वेट भी हुआ तो टाइम से,... हाँ रगड़ाई होगी तो हो , गुड्डी तो रहेगी न पास में,... और मम्मी खुश हो गयी तो क्या पता जो सपने मैं इत्ते दिन से देख रहा हूँ इस लड़की को हरदम के लिए उठा ले जाने का, ... वो पूरा ही हो जाए , ...



फिर श्वेता और छुटकी की बात भी याद आ गयी,



" गुड्डी मेरा भी रिजर्वेशन " श्वेता की आवाज थी,

" दी आपका तो ये दौड़ के के कराएंगे,... सबसे पहले,... होली आफ्टर होली में आखिर आप नहीं होंगी तो इनके कपडे कौन फाड़ेगा अंदर तक रंग कौन लगाएगा "
गुड्डी चहक के बोली।

" देख यार गुड्डी, कपडे पे रंग लगाना, एक तो कपडे की बर्बादी, दूसरे रंग की बर्बादी। फिर कपड़े उतारने में बहुत टाइम बर्बाद होता है, इसलिए सीधे फाड़ ही देने चाहिए, ... मैं तो यही मानती हूँ " श्वेता, गुड्डी से एक साल सीनियर, बारहवीं वाली,बोली।


दो आवाजें और आयी, पहले छुटकी की फिर मंझली जो अब तक चुप थी, ' मैं भी यही मानती हूँ , दी "

" देख यार, मेरी जिम्मेदारी इन्हे इनके मायके से पकड़ के ले आने की है, फिर तीन दिन तक,... तुम सब जानो, तेरे हवाले वतन साथियों। " गुड्डी अंगड़ाई लेकर बोली,



और दूबे भाभी भी तो यही चाह रही हैं, तीन दिन कम से कम, अगर घर से थोड़ा पहले निकल लूँ, वहां भी तो गुड्डी से ही होली खेलने का लालच है तो गुड्डी की मम्मी के आने के पहले ही यहाँ और सबके मन की बात हो जायेगी, सबसे बढ़ के गुड्डी की।


और यही बात दूबे भाभी भी चाह रही थीं, की मैं होली के बाद की होली के लिए, तो दूबे भाभी भी खुश, मम्मी भी खुश और गुड्डी की बहने भी खुश

बस मैं मान गया



“तुम भी तो समझो। मैं कुछ कहती हूँ। कुछ करो ना और यार तुम तीन दिन रह लोगे यहाँ। रीत भी तो है। उसके साथ भी…”

समझ तो गुड्डी भी गयी थी, मैं सपने में भी उसकी, मेरा मतलब मम्मी की बात टालने की नहीं सोच सकता था लेकिन बोनस के ऊपर बोनस, सामने रीत खड़ी थी, उसे सुनाते हुए वो बोली

मैंने सामने देखा। रीत। एकदम सेक्सी, टाईट कुरते में उसके मस्त उभार छलक रहे थे। जवानी के कलशे रस से भरे, पतली बलखाती कमर और नीचे मस्त गदराये चूतड़, चिकनी केले के तने की तरह जांघें। मुझे देखकर मुश्कुराते हुये उसने अपने रसीले होंठों को हल्के से काट लिया और एक भौंह ऊँची कर दी। बस। बिजली गिर गई।

“चलो तुम इतना कहती हो तो आ जायेंगे रंगपंचमी तो नहीं लेकिन उसके पहले तीन दिन, …” मैं मुश्कुराकर बोला।

रीत पास आ गई थी।

“लौटकर आयेंगे भी ये और तीन दिन रुकेंगे भी, हाँ रंगपंचमी के एक दिन पहले निकल जाएंगे "…” गुड्डी बोली।



“अरे वाह फिर तो…र हम लोग रंगपंचमी पहले मना लेंगे, तीन दिन मना लेंगे, जैसे आज होली बिफोर होली ” रीत ने अपनी गोरी कलाई ऊँची की और दोनों ने दे ताली। गुड्डी चंदा भाभी की ओर गई। रीत ने मेरी ओर हाथ किया और हम दोनों ने भी दे ताली।

“हे तुम्हें मालूम है ना की मैं क्यों लौट रहा हूँ?” मैंने रीत से पूछा।

“एकदम…” और उसकी निगाहों ने मेरी आँखों की चोरी, उसके किशोर जोबन को घूरते पकड़ ली थी- “नदीदे। लालची। बदमाश…” वो बोली और मेरी ओर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ा दिया।

तब तक गुड्डी लौट आई थी। उसकी खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी। वो बोली-

“चंदा भाभी कह रही थी की तुम खुद दुबे भाभी से बोलो ना तो उन्हें अच्छा लगेगा…”

“चलो…” और मैं गुड्डी का हाथ पकड़कर दूबे भाभी की ओर चल पड़ा।



“मैं, हम दोनों रंग पंचमी के पहले ही आ जायेंगे। और मैं तीन दिन रुक के जाऊँगा। गुड्डी बोल रही थी की यहाँ पे रंग पंचमी जबरदस्त होती है तो मैंने सोचा की पहले तो मैंने कभी देखी नहीं हैं फिर आप लोगों के साथ…फिर आप की बात टालने की तो, आपने कहा तो, हाँ रंगपंचमी के एक दिन पहले निकल जाऊँगा लेकिन तीन दिन पूरा यहीं,

लेकिन दूबे भाभी समझदार नहीं, महा समझदार, रीत की भी भाभी, उन्होंने एक बार मेरी ओर देखा फिर गुड्डी की ओर और जोर से मुस्करायी, फिर चंदा भाभी की ओर, मानों उनसे कह रही हो लोग तो शादी के बाद जोरू का गुलाम होते हैं ये तो पहले से ही, एक बार गुड्डी ने बोला और,

लेकिन मैं रुकने को मान गया था मुझे चिढ़ाए गरियाये बिना क्यों छोड़ती
" अगर न रुकते न तो तेरी भी गांड मारती और तेरी महतारी की भी, वो भी सूखे, कडुवा तेल बहुत महंगा हो गया है। "

मेरी निगाहें रीत के कटाव पे, गदराये मस्त उभारों पे टिकी हुई थी। आज भले बच जाय उस दिन तो, चाहे जो हो जाय और वो सारंग नयनी भी मुश्कुरा रही थी। मेरी आँखों में आँखें डालकर बोली-

“होना है तो हो जाय। अब इत्ते दिनों से बचाकर तो ये जोबन रखा है। लुट जाय तो लुट जाय…”



हमारी आँख का खेल रुका दूबे भाभी की आवाज से- “अरे ये तो बहुत अच्छी बात है चलो कुछ मीठा हो जाय…” और प्लेट से उठाकर उन्होंने एक गुलाब जामुन मेरे मुँह में।

मैंने बहुत नखड़ा किया। मुझे तो मालूम था कि ये दिल्ली के नहीं नत्था के भंग के डबल डोज वाले हैं और मेरे अलावा चंदा भाभी को और गुड्डी को भी।



लेकिन चंदा भाभी भी दूबे भाभी के साथ- “अरे ये ऐसे कोई चीज नहीं घोटते, जबरदस्ती करनी पड़ती है। ये बिन्नो के ससुराल वालों की आदत है…” और ये कहकर उन्होंने दबाकर मेरा मुँह खुलवा लिया। जैसे रात में पान खिलाने के लिए उन्होंने और गुड्डी ने मिलकर किया था। और गप्प से बड़ा सा गुलाब जामुन मेरे अन्दर, मैं आ आ करता रह गया।
अब तो आनंद रंगपंचमी के 3 दिन सुसराल में रुकेगा आनंद के तो मजे होने वाले हैं 5 सालिया एक सास 2 भाभी आनंद की तो पूरा का पूरा हाथ घी में है देखते हैं किस डिब्बे का ढक्कन खुलता है
 

Sanju@

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आनंद की बहना
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तभी रीत बोली- “असल में रंग पंचमी में आने की इनकी एक शर्त थी, बोलो ना। भाभी से क्या शर्माना?”

वो शैतान की चरखी। मेरे समझ में नहीं आ रहा था की ये क्या खतरनाक तीर छोड़ने जा रही है।

“बोलो ना…” बचा खुचा शीरा मेरे गाल पे लथेड़ती दूबे भाभी प्यार से बोली। मुझे मालूम होता तो बोलता न?

“तू बोल ना। तुझसे तो तिहरा रिश्ता है…” चन्दा भाभी ने रीत को चढ़ाया।

“बोल दूं…” अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें नचाकर वो बोली।



“बोलो न…” दूबे भाभी और चंदा भाभी एक साथ बोली।



“असल में इनकी एक बहन है…” रीत ने मुझे देखकर मुश्कुराते हुए कहा- “मेरे ही क्लास में पढ़ती है, इंटर में गई है…” गुड्डी बोली।

मैंने बोला- “मेरी ममेरी…लेकिन सगी से बढ़कर, सगी तो कोई हैं नहीं तो वही।"

“बिन्नो की इकलौती ननद…” चंदा भाभी बोली।



“वो असल में जब से राकी को उन्होंने देखा है। ‘उसका’ इन्हें पसंद आ गया है तो उसके लिए। इसलिए ये तोल मोल के बोल-कर रहे थे। उसे ये अपना…” रीत ने आग लगायी, मेरी बहन को जोड़ कर। पक्की स्साली।

लेकिन उसकी बात काटकर दूबे भाभी बोली- “नहीं ऐसे नहीं…”

गुड्डी और चन्दा भाभी मुश्किल से अपनी हँसी दबा रही थी। सिर्फ मेरी समझ में नहीं आ रहा था की कैसे रियेक्ट करूं समझ में नहीं आ रहा था।



दूबे भाभी बोली- “मेरी भी एक, बल्की दो शर्त है। पहली राकी का रिश्ता सिर्फ उससे थोड़े ही इनके घर की सारी। मायके वालियों से…”

“एकदम सही बोली आप…” चंदा भाभी ने जोड़ा- “और एक बार जब राकी उसपे चढ़ जाएगा। तो इनके घर वालियां सारी उसकी साली, सलहज, तो लगेंगी ही। और दूसरी बात…”

“ठीक बोली तुम। तो पहली शर्त तो मंजूर ही हो गई और दूसरी सुन…” वो गुड्डी से मुखातिब थी-


“इनकी जो कजिन है। ना उसकी सील अभी खुली है की नहीं?”

गुड्डी तो तुरंत उस गेम में जवाइन हो गई- “नहीं मेरे खयाल से नहीं…” बड़ी सीरियस बनकर वो बोली।



“तो फिर वो राकी का कैसे?” दूबे भाभी ने कुछ सोचकर फिर गुड्डी को पकड़ा-

“अच्छा सुन तू जा रही है ना इनके साथ। तो ये तेरी जिम्मेदारी है की यहाँ लाने के पहले उसकी नथ उतरवा देना। किससे उतरवाएगी?” दूबे भाभी ने फिर गुड्डी से बोला।

गुड्डी कुछ बोल पाती उसके पहले रीत मैदान में आ गई और मेरी रूह काँप उठी।

उसने सीधे दूबे भाभी से बोला-

“अरे इसमें कौन सी प्रोब्लम है? ये है ना पांच हाथ का आदमी और वैसे भी गुड्डी ये तेरी कोई बात तो टालते नहीं। तो तू बोलेगी तो ये वो काम भी कर देंगे। अरे सीधे से नहीं तो टेढ़े से। है ना? और मजा तो इनको भी आएगा है ना?”

उसकी शरारत से भरी आँखें मेरी ओर ही थी।



मैं या गुड्डी कुछ बोलते उसके पहले दूबे भाभी बोल पड़ी-

“ये तो तूने सही बात बोली, और इस गुड्डी की हिम्मत नहीं मेरी कोई बात टालने की और सीधे गुड्डी को धमकाते बोली-

“समझ गई ना तू। अगर तूने नथ नहीं उतरवाई ना उसकी यहाँ आने से पहले। तो सोच ले मैं चेक करूँगी। अगर वो कच्ची कली निकली। तो मैं तेरी गाण्ड की नथ उतार दूंगी। पूरी कुहनी तक डालकर, तू तो जानती है मुझको…”



दुष्ट रीत वह मौका क्यों छोड़ती- “और वो भी समझ ले की उतरवानी किससे है। कोई कनफूजन नहीं होना चाहिए…”

“एकदम…” चन्दा भाभी और दूबे भाभी दोनों ने मेरी ओर देखते हुए, मुश्कुराकर एक साथ बोला।
पहले तो खाली आनंद की बहन का नाम लेकर ही चिढ़ाया जा रहा था लेकिन दुबे भाभी ने तो उसकी नथ उतरवाने की जिम्मेदारी वो भी आनंद से गुड्डी को दे दी है लागत है अब तो उसकी नथ जरूर उतरनेवाली हैं
 

Sutradhar

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एकदम सही बात कही आपने, गाने में तो असली चीज धुन होती है, पुत्र जन्म पर गाये जाना वाला सोहर हो, या होली के गाने या सावन की कजरी। कजरी की धुन से ही सावन की बूंदो और झूले का असर महसूस होने लगता है और फागुन के गानों में होली की लगता है पिचकारी छूट रही है। और संगीत में भी सबके लिए राग, ताल अलग अलग। धमार को हम फाग से जोड़ कर ही देखते हैं।

लेकिन इन सब को अप्रिशिएट करने के लिए आप जैसा पाठक चाहिए।

जोरू का गुलाम और छुटकी दोनों में पिछले दिनों अपडेट पोस्ट कर दिया है बस अगला नंबर यही दो तीन दिन में

धन्यवाद कोमल मैम

वैसे कमेंट पर आपके कमेंट का इंतजार भी अपडेट के इंतजार जैसा ही रहता हैं।

और आप कभी निराश भी नहीं करती हैं।

सादर
 

komaalrani

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रीत ने तो आनंद के साथ अपने कई रिश्ते बना लिए पहले देवर फिर जीजा और फिर नंदोई अब तो तीनो रिश्तों में तीन बार तो रगड़ाई तो बनती है साथ ही आनन्द के पास भी तीन रिश्ते और तीन राउंड
तीनो रिश्तों में ही दोनो का रगड़ाई का पक्का वाला हक बनता है
बहुत बहुत धन्यवाद, आपके कमेंट पढ़ के लगता है की आप दिल से कहानी को फॉलो कर रहे हैं। बहुत आभार।
 

komaalrani

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बहुत ही शानदार और मजेदार है
आनन्द बाबू के साथ भाभी,साली,सलहज और बीवी ने मस्त दुल्हनिया की तरह मस्त श्रृंगार कर के रस की होली खेल ली है रीत ने तो आनंद को ऐसे ताले में लॉक किया है कि वह वहां से अपना हाथ नही निकाल सकता है अब तो उसे रस की होली खेलनी पड़ेगी
होली तो त्यौहार ही है, चोली में हाथ डालने का, रस छलकने, छलकाने का।
 

komaalrani

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क्या मस्त होली है दो रसीली कन्याओं के बीच हमारे आनन्द एक आगे से रगड़ रही है और दूसरी बीच से रगड़ रही है आनंद ने साली और बीवी के साथ मुंह काला और सफेद करवा ही लिया चंदा भाभी का आनंद की बहन के बारे में बाते न करे ये हो ही नहीं सकता ।आनंद ने तो आगे से पीछे से भरपूर रगड़वा लिया लेकिन उसके हाथ रीत के खजाने पर थे लेकिन बुद्धू ने कुछ नहीं किया आजकल के लौंडे ऐसा मौका मिले और ऐसे खाली छोड़ दे मुमकिन ही नही है
बेचारा, ऐन मौके पे कोई न कोई आ जाता है
 

komaalrani

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क्या मस्त होली है दो रसीली कन्याओं के बीच हमारे आनन्द एक आगे से रगड़ रही है और दूसरी बीच से रगड़ रही है आनंद ने साली और बीवी के साथ मुंह काला और सफेद करवा ही लिया चंदा भाभी का आनंद की बहन के बारे में बाते न करे ये हो ही नहीं सकता ।आनंद ने तो आगे से पीछे से भरपूर रगड़वा लिया लेकिन उसके हाथ रीत के खजाने पर थे लेकिन बुद्धू ने कुछ नहीं किया आजकल के लौंडे ऐसा मौका मिले और ऐसे खाली छोड़ दे मुमकिन ही नही है

रसीली साली को देखकर आनंद का दिमाग चाचा चौधरी की तरह काम कर रहा है साली के फड़फड़ा रहे कबूतरो को पकड़ कर अच्छी तरह रगड़ दिया है
सजनी दूर खड़ी इंतजार कर रही है कि उसका नंबर कब आएगा?
हर पोस्ट पर आपके कमेंट्स अद्भुत होते है। ऐसे पढ़ने सुनने वाले हों तो आता है कहानी कहने, लिखने का असल मजा।

बहुत बहुत धन्यवाद
 

komaalrani

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Komal Madam, 12 pages since your last update...super going!! Your story is getting more popular by the day (if we ignore the views). Super!!

komaalrani
yes, the keyword is

"If we ignore the views"
 
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komaalrani

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सजनी का भी नंबर आ गया साली ने कह दिया है कि उसके निशान से ज्यादा निशान होने चाहिए अब तो आनंद को साली की बात माननी पड़ेगी साली पर तो पूरा कब्जा हो गया है सजनी के खजाने में कलर का खजाना मिल गया है आनंद के तो मजे हो गए
जहाँ जहाँ हाथ का थापा लग गया वो आनंद का हो गया, अब वहां, उसका जब चाहे तब जितना चाहे उतना आंनद ले।
 
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