आज भाभी को ननद को गाभिन करवाना है, ननद के सगे भाई और अपने साजन से, आज की रात साजन ननद का, लेकिन देह की प्यास तो है तो ननद ही बुझायेकोमल जी. आप चाहे कन्या रस लिखो चाहे नरी रस. आप का जवाब नहीं. नांदिया रानी छोटी नहीं. इस लिए मेने नारी रस शब्द का इस्तेमाल किया.
अमेज़िंग जिस तरह से नांदिया और भाभी का समलैंगिक सेक्स लिखा मुजे तो फिर दीवाना कर दिया. सेक्स इरोटिक भी था. और शारारत और मस्ती से भरा रोमांचक भी था.
माझा तो भाभी को तब ही ज्यादा आता है जब नांदिया की फटे. उसके भईया से फटवाना तो सोने पे सुहागा. चढ जा अपनी बहेनिया पे.
वाह री नांदिया रानी. कोमलिया के सैया तेरे भैया ने तो तुझे झाड दिया. पर तेरी भाभी तो प्यासी रहे गई.
नांदिया ने क्या जीभ का जादू चलाया है. तकिया रख कर पहले तो सीधा अपनी भाभी का गोलकोंडा पिछवादा. फिर दोनों आगे दोनों फाको को खोल कर जीभ से ही. माझा ला दिया. नांदिया ने सिर्फ चाटा ही नहीं जीभ अंदर बहार गोल गोल सभी तरीके से.
अरे ये अपडेट तो नांदिया रानी के नाम है. हार बार सुना था. मेरी मिट्ठी भाभी. पर इस बार मेरी मीठी नांदिया वाह. और नांदिया ने तो भाभी को सिर्फ पेला ही नहीं खेला है. पूरा काबू माझा आ गया.
सारा खेल दिखवाकर अपने मर्दवा को ललचा कर खुटा खड़ा करवा दिया. अब चढ़ेगी फिर प्यारी मीठी नांदिया.
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Kya baat kah di aapne Thankoo so muchUfff komal ji apke mard ke sath sath yahan bhi ek mard hai jo aapki ye kamuk story padh raha hai apne hath me apna pathar hua lund pakad ke.
PLEASE APP EK STORY PURI KARDO
STORY NAME. HAMBISTAR SHALINI (BEHNA KA KHYAL ME RAKHUNGA)
PLEASE. AAPNE SAYAT PADHA HOGA IS STORY KO YARR YE STORY
JO V LIKHNA START KARTA HE 1 YA 2 UPDATE KE BAD PATA NHI KIU CHHOD DETE HAI. SO PLEASE APP. LIKHO NA AGLI STORY. ISSI KO LIKHO
PLEASE YE AAP SE EK REQUEST HE. PLEASE PLEASE PLEASE PLEASE PLEASE 🥺 🙏 🥺 🙏 🙏 🥺 Maine padhi nahi hai, please share the link of story.Hello Komal ji
PLEASE APP EK STORY PURI KARDO STORY NAME. HAMBISTAR SHALINI (BEHNA KA KHYAL ME RAKHUNGA) PLEASE. AAPNE SAYAT PADHA HOGA IS STORY KO YARR YE STORY JO V LIKHNA START KARTA HE 1 YA 2 UPDATE KE BAD PATA NHI KIU CHHOD DETE HAI. SO PLEASE APP. LIKHO NA AGLI STORY. ISSI KO LIKHO
Shurwat to bahut hot ki hai apneपहला पन्ना- मज़ा पहली होली का ससुराल में,
( जिसका यह सीक्वेल है )
मजा पहली होली का, ससुराल में
( इस कहानी के सभी पात्र वयस्क हैं और सभी चित्र इंटरनेट से लिए गए हैं यदि किसी को कोई आपत्ति हो तो टिप्पणी कर सकता है। अंडर एज सेक्स न सिर्फ इस फोरम के नियमों के खिलाफ है बल्कि वैधानिक रूप से भी निषिद्ध है , और मैं वयक्तिगत रूप से भी इसे नहीं पसंद करती।)
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मुझे त्योहारों में बहुत मज़ा आता है, खास तौर से होली में.
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पर कुछ चीजें त्योहारों में गड़बड़ है. जैसे, मेरे मायके में मेरी मम्मी और उनसे भी बढ़ के छोटी बहनें कह रही थीं
कि मैं अपनी पहली होली मायके में मनाऊँ. वैसे मेरी बहनों की असली दिलचस्पी तो अपने जीजा जी के साथ होली खेलने में थी.
परन्तु मेरे ससुराल के लोग कह रहे थे कि बहु की पहली होली ससुराल में हीं होनी चाहिये.
मैं बड़ी दुविधा में थी. पर त्योहारों में गड़बड़ से कई बार परेशानियां सुलझ भी जाती हैं. इस बार होली २ दिन पड़ी.
मेरी ससुराल में 17 मार्च को और मायके में 18 को.
मायके में जबर्दस्त होली होती है और वो भी दो दिन. तय हुआ कि मेरे घर से कोई आ के मुझे होली वाले दिन ले जाए और ‘ये’ होली वाले दिन सुबह पहुँच जायेंगे. मेरे मायके में तो मेरी दो छोटी बहनों नीता और रीतू के सिवाय कोई था नहीं.
![]()
......
मैं फ्लैश बैक में चली गई.
सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.
सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.
मुझे अब तक याद है, उस दिन मैंने सलवार-सूट पहन रखा था, जो थोड़ा टाईट था और मेरे मम्मे और नितम्ब खूब उभर के दिख रहे थे. रानू ने मेरे चूतड़ों पे चिकोटी काट के चिढ़ाया,
![]()
“भाभी लगता है आपके पिछवाड़े में काफी खुजली मच रही है. आज आपकी गांड़ बचने वाली नहीं है, अगर आपको इस ड्रेस में भैया ने देख लिया...”
“अरे तो डरती हूँ क्या तुम्हारे भैया से? जब से आई हूँ लगातार तो चालू रहते है, बाकी और कुछ तो अब बचा नहीं......
ये भी कब तक बचेगी?”
चूतड़ मटका के मैंने जवाब दिया.
![]()
और तब तक ‘वो’ भी आ गए. उन्होंने एक हाथ से खूब कस के मेरे चूतड़ को दबोच लिया
और उनकी एक उंगली मेरे कसी सलवार में, गांड़ के क्रैक में घुस गई.
उनसे बचने के लिये मैं रजाई में घुस गई अपनी सास के बगल में.....
‘उनकी’ बगल में मेरी जेठानी और छोटी ननद बैठी थी. वह भी रजाई में मेरी बगल में घुस के बैठ गए
और अपना एक हाथ मेरे कंधे पे रख दिया.
छेड़-छाड़ सिर्फ कोई ‘उनकी’ जागीर तो थी नहीं. सासू के बगल में मैं थोड़ा सेफ भी महसूस कर रही थी
और रजाई के अंदर हाथ भी थोड़ा बोल्ड हो जाता है.
मैंने पजामे के ऊपर हाथ रखा तो उनका खूंटा पूरी तरह खड़ा था. मैंने शरारत से उसे हल्के से दबा दिया और उनकी ओर मुस्कुरा के देखा.
बेचारे.... चाह के भी..... अब मैंने और बोल्ड हो के हाथ उनके पजामे में डाल के सुपाड़े को खोल दिया. पूरी तरह फूला और गरम था. उसे सहलाते-सहलाते मैंने अपने लंबे नाख़ून से उनके पी-होलको छेड़ दिया.
जोश में आ के उन्होंने मेरे मम्मे कस के दबा दिए.
उनके चेहरे से उत्तेजना साफ़ दिख रही थी. वह उठ के बगल के कमरे में चले गए जो मेरी छोटी ननद का रीडिंग रूम था. बड़ी मुश्किल से मेरी ननद और जेठानी ने अपनी मुस्कान दबायी.
“जाइये-जाइये भाभी, अभी आपका बुलावा आ रहा होगा.”
शैतानी से मेरी छोटी ननद बोली.
हम दोनों का दिन-दहाड़े का ये काम तो सुहागरात के अगले दिन से हीं चालू हो गया था.
पहली बार तो मेरी जेठानी जबरदस्ती मुझे कमरे में दिन में कर आई और उसके बाद से तो मेरी ननदें और यहाँ तक की सासू जी भी.......बड़ा खुला मामला था मेरी ससुराल में......
एक बार तो मुझसे ज़रा सी देर हो गई तो मेरी सासू बोली,
“बहु, जाओ ना... बेचारा इंतज़ार कर रहा होगा...”
“ज़रा पानी ले आना...” तुरन्त हीं ‘उनकी’ आवाज सुनाई दी.
“जाओ, प्यासे की प्यास बुझाओ...”
मेरी जेठानी ने छेड़ा.
कमरे में पँहुचते हीं मैंने दरवाजा बंद कर दिया.
उनको छेड़ते हुए, दरवाजा बंद करते समय, मैंने उनको दिखा के सलवार से छलकते अपने भारी चूतड़ मटका दिए.
फिर क्या था.? पीछे आके उन्होंने मुझे कस के पकड़ लिया और दोनों हाथों से कस-कस के मेरे मम्मे दबाने लगे.
और ‘उनका’ पूरी तरह उत्तेजित हथियार भी मेरी गांड़ के दरार पे कस के रगड़ रहा था. लग रहा था, सलवार फाड़ के घुस जायेगा.
मैंने चारों ओर नज़र दौडाई. कमरे में कुर्सी-मेज़ के अलावा कुछ भी नहीं था. कोई गद्दा भी नहीं कि जमीन पे लेट के.
मैं अपने घुटनों के बल पे बैठ गई और उनके पजामे का नाड़ा खोल दिया. फनफ़ना कर उनका लंड बाहर आ गया.
सुपाड़ा अभी भी खुला था, पहाड़ी आलू की तरह बड़ा और लाल.
मैंने पहले तो उसे चूमा और फिर बिना हाथ लगाये अपने गुलाबी होठों के बीच ले चूसना शुरू कर दिया.
धीरे-धीरे मैं लॉलीपॉप की तरह उसे चूस रही थी और कुछ हीं देर में मेरी जीभ उनके पी-होल को छेड़ रही थी.
उन्होंने कस के मेरे सिर को पकड़ लिया. अब मेरा एक मेहन्दी लगा हाथ उनके लंड के बेस को पकड़ के हल्के से दबा रहा था और दूसरा उनके अंडकोष (Balls) को पकड़ के सहला और दबा रहा था. जोश में आके मेरा सिर पकड़ के वह अपना मोटा लंड अंदर-बाहर कर रहे थे.
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उनका आधे से ज्यादा लंड अब मेरे मुँह में था. सुपाड़ा हलक पे धक्के मार रहा था. जब मेरी जीभ उनके मोटे कड़े लंड को सहलाती और मेरे गुलाबी होठों को रगड़ते, घिसते वो अंदर जाता.... खूब मज़ा आ रहा था मुझे. मैं खूब कस-कस के चूस रही थी, चाट रही थी.
उस कमरे में मुझे चुदाई का कोई रास्ता तो दिख नहीं रहा था. इसलिए मैंने सोचा कि मुख-मैथुन कर के हीं काम चला लूं.
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पर उनका इरादा कुछ और हीं था.
“कुर्सी पकड़ के झुक जाओ...” वो बोले..
मैं झुक गई.
............................
तो कुछ ऐसे हुयी थी,इस कहानी की शुरुआत जिसका सीक्वेल मैं पेश कर रही हूँ, पर उसके पहले पूर्वाभास, उस कहानी के कुछ वो प्रसंग जहाँ छुटकी का जिक्र आया है, सभी नहीं बस कुछ, और अगर डिसजवाईंटेड लगे तो मैं मूल कहानी के पेज नंबर का सन्दर्भ भी साथ साथ देने की कोशिश करुँगी, जिससे सुधी पाठक पाठिकाओं को लिंक बैठाने में कोई मुश्किल ने हो.
Very awesomeपहला पन्ना- मज़ा पहली होली का ससुराल में,
( जिसका यह सीक्वेल है )
मजा पहली होली का, ससुराल में
( इस कहानी के सभी पात्र वयस्क हैं और सभी चित्र इंटरनेट से लिए गए हैं यदि किसी को कोई आपत्ति हो तो टिप्पणी कर सकता है। अंडर एज सेक्स न सिर्फ इस फोरम के नियमों के खिलाफ है बल्कि वैधानिक रूप से भी निषिद्ध है , और मैं वयक्तिगत रूप से भी इसे नहीं पसंद करती।)
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मुझे त्योहारों में बहुत मज़ा आता है, खास तौर से होली में.
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पर कुछ चीजें त्योहारों में गड़बड़ है. जैसे, मेरे मायके में मेरी मम्मी और उनसे भी बढ़ के छोटी बहनें कह रही थीं
कि मैं अपनी पहली होली मायके में मनाऊँ. वैसे मेरी बहनों की असली दिलचस्पी तो अपने जीजा जी के साथ होली खेलने में थी.
परन्तु मेरे ससुराल के लोग कह रहे थे कि बहु की पहली होली ससुराल में हीं होनी चाहिये.
मैं बड़ी दुविधा में थी. पर त्योहारों में गड़बड़ से कई बार परेशानियां सुलझ भी जाती हैं. इस बार होली २ दिन पड़ी.
मेरी ससुराल में 17 मार्च को और मायके में 18 को.
मायके में जबर्दस्त होली होती है और वो भी दो दिन. तय हुआ कि मेरे घर से कोई आ के मुझे होली वाले दिन ले जाए और ‘ये’ होली वाले दिन सुबह पहुँच जायेंगे. मेरे मायके में तो मेरी दो छोटी बहनों नीता और रीतू के सिवाय कोई था नहीं.
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......
मैं फ्लैश बैक में चली गई.
सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.
सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.
मुझे अब तक याद है, उस दिन मैंने सलवार-सूट पहन रखा था, जो थोड़ा टाईट था और मेरे मम्मे और नितम्ब खूब उभर के दिख रहे थे. रानू ने मेरे चूतड़ों पे चिकोटी काट के चिढ़ाया,
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“भाभी लगता है आपके पिछवाड़े में काफी खुजली मच रही है. आज आपकी गांड़ बचने वाली नहीं है, अगर आपको इस ड्रेस में भैया ने देख लिया...”
“अरे तो डरती हूँ क्या तुम्हारे भैया से? जब से आई हूँ लगातार तो चालू रहते है, बाकी और कुछ तो अब बचा नहीं......
ये भी कब तक बचेगी?”
चूतड़ मटका के मैंने जवाब दिया.
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और तब तक ‘वो’ भी आ गए. उन्होंने एक हाथ से खूब कस के मेरे चूतड़ को दबोच लिया
और उनकी एक उंगली मेरे कसी सलवार में, गांड़ के क्रैक में घुस गई.
उनसे बचने के लिये मैं रजाई में घुस गई अपनी सास के बगल में.....
‘उनकी’ बगल में मेरी जेठानी और छोटी ननद बैठी थी. वह भी रजाई में मेरी बगल में घुस के बैठ गए
और अपना एक हाथ मेरे कंधे पे रख दिया.
छेड़-छाड़ सिर्फ कोई ‘उनकी’ जागीर तो थी नहीं. सासू के बगल में मैं थोड़ा सेफ भी महसूस कर रही थी
और रजाई के अंदर हाथ भी थोड़ा बोल्ड हो जाता है.
मैंने पजामे के ऊपर हाथ रखा तो उनका खूंटा पूरी तरह खड़ा था. मैंने शरारत से उसे हल्के से दबा दिया और उनकी ओर मुस्कुरा के देखा.
बेचारे.... चाह के भी..... अब मैंने और बोल्ड हो के हाथ उनके पजामे में डाल के सुपाड़े को खोल दिया. पूरी तरह फूला और गरम था. उसे सहलाते-सहलाते मैंने अपने लंबे नाख़ून से उनके पी-होलको छेड़ दिया.
जोश में आ के उन्होंने मेरे मम्मे कस के दबा दिए.
उनके चेहरे से उत्तेजना साफ़ दिख रही थी. वह उठ के बगल के कमरे में चले गए जो मेरी छोटी ननद का रीडिंग रूम था. बड़ी मुश्किल से मेरी ननद और जेठानी ने अपनी मुस्कान दबायी.
“जाइये-जाइये भाभी, अभी आपका बुलावा आ रहा होगा.”
शैतानी से मेरी छोटी ननद बोली.
हम दोनों का दिन-दहाड़े का ये काम तो सुहागरात के अगले दिन से हीं चालू हो गया था.
पहली बार तो मेरी जेठानी जबरदस्ती मुझे कमरे में दिन में कर आई और उसके बाद से तो मेरी ननदें और यहाँ तक की सासू जी भी.......बड़ा खुला मामला था मेरी ससुराल में......
एक बार तो मुझसे ज़रा सी देर हो गई तो मेरी सासू बोली,
“बहु, जाओ ना... बेचारा इंतज़ार कर रहा होगा...”
“ज़रा पानी ले आना...” तुरन्त हीं ‘उनकी’ आवाज सुनाई दी.
“जाओ, प्यासे की प्यास बुझाओ...”
मेरी जेठानी ने छेड़ा.
कमरे में पँहुचते हीं मैंने दरवाजा बंद कर दिया.
उनको छेड़ते हुए, दरवाजा बंद करते समय, मैंने उनको दिखा के सलवार से छलकते अपने भारी चूतड़ मटका दिए.
फिर क्या था.? पीछे आके उन्होंने मुझे कस के पकड़ लिया और दोनों हाथों से कस-कस के मेरे मम्मे दबाने लगे.
और ‘उनका’ पूरी तरह उत्तेजित हथियार भी मेरी गांड़ के दरार पे कस के रगड़ रहा था. लग रहा था, सलवार फाड़ के घुस जायेगा.
मैंने चारों ओर नज़र दौडाई. कमरे में कुर्सी-मेज़ के अलावा कुछ भी नहीं था. कोई गद्दा भी नहीं कि जमीन पे लेट के.
मैं अपने घुटनों के बल पे बैठ गई और उनके पजामे का नाड़ा खोल दिया. फनफ़ना कर उनका लंड बाहर आ गया.
सुपाड़ा अभी भी खुला था, पहाड़ी आलू की तरह बड़ा और लाल.
मैंने पहले तो उसे चूमा और फिर बिना हाथ लगाये अपने गुलाबी होठों के बीच ले चूसना शुरू कर दिया.
धीरे-धीरे मैं लॉलीपॉप की तरह उसे चूस रही थी और कुछ हीं देर में मेरी जीभ उनके पी-होल को छेड़ रही थी.
उन्होंने कस के मेरे सिर को पकड़ लिया. अब मेरा एक मेहन्दी लगा हाथ उनके लंड के बेस को पकड़ के हल्के से दबा रहा था और दूसरा उनके अंडकोष (Balls) को पकड़ के सहला और दबा रहा था. जोश में आके मेरा सिर पकड़ के वह अपना मोटा लंड अंदर-बाहर कर रहे थे.
![]()
उनका आधे से ज्यादा लंड अब मेरे मुँह में था. सुपाड़ा हलक पे धक्के मार रहा था. जब मेरी जीभ उनके मोटे कड़े लंड को सहलाती और मेरे गुलाबी होठों को रगड़ते, घिसते वो अंदर जाता.... खूब मज़ा आ रहा था मुझे. मैं खूब कस-कस के चूस रही थी, चाट रही थी.
उस कमरे में मुझे चुदाई का कोई रास्ता तो दिख नहीं रहा था. इसलिए मैंने सोचा कि मुख-मैथुन कर के हीं काम चला लूं.
![]()
पर उनका इरादा कुछ और हीं था.
“कुर्सी पकड़ के झुक जाओ...” वो बोले..
मैं झुक गई.
............................
तो कुछ ऐसे हुयी थी,इस कहानी की शुरुआत जिसका सीक्वेल मैं पेश कर रही हूँ, पर उसके पहले पूर्वाभास, उस कहानी के कुछ वो प्रसंग जहाँ छुटकी का जिक्र आया है, सभी नहीं बस कुछ, और अगर डिसजवाईंटेड लगे तो मैं मूल कहानी के पेज नंबर का सन्दर्भ भी साथ साथ देने की कोशिश करुँगी, जिससे सुधी पाठक पाठिकाओं को लिंक बैठाने में कोई मुश्किल ने हो.
भईया बहिनी पे ये कविता तो लाजवाब थी...आपकी पोस्ट पर आभार व्यक्त करना भी कठिन है, आपकी दशांश रचनात्मकता और ऊर्जा भी अगर हो तो कोई कोशिश करे,
इन्सेस्ट के आंगन में इस कहानी में ही सही अर्थों में कदम धरना शुरू किया और बहुत कुछ श्रेय आपको, आपकी कविताओं को और डाक्टर साहिबा को जाता है, मेरी कहानी में हुंकारी भरने वाले और एक अदद दृष्टिपात करने वाले भी बहुत कम है, वैसी कहानी पर आप की कवितायें न सिर्फ साथ देती हैं बल्कि मेरी हिम्मत बढ़ाती हैं और मेरा खुद के प्रति विश्वास दिलाती हैं, " बहुत अच्छा नहीं लिखती लेकिन इतना बुरा भी नहीं आखिर आयुषी जी ने साथ दिया।
मैं सिर्फ कुछ लाइने आपकी कविता की ही फिर से कहना चाहूंगी जिन्होंने पूरे प्रसंग को निचोड़ के रख दिया है
रिश्ते सारे ख़तम हुए लंड और चूत के खेल में
भैया सैंया बन गया अपनी ही बहना को पेल के
बहना तेरी कोख में आज बीज मैं अपना धर दूंगा
अपने वीर्य से आज तुझे गभिन पक्का कर दूंगा
अपने स्तन का पहला दूध मैं भैया तुम्हें पिलाऊंगी
फिर अपनी बेटी को अपने बाप से मैं चुदवाऊँगी
यह इन्सेस्ट कथा ६-७ पोस्टों तक कम से कम चलेगी, पहली रात की ही कहानी कम से कम तीन पोस्टों में, अनुरोध है की हर पोस्ट पर आपकी हुंकारी सुनने को मिले