आपकी पोस्ट पर आभार व्यक्त करना भी कठिन है, आपकी दशांश रचनात्मकता और ऊर्जा भी अगर हो तो कोई कोशिश करे,
इन्सेस्ट के आंगन में इस कहानी में ही सही अर्थों में कदम धरना शुरू किया और बहुत कुछ श्रेय आपको, आपकी कविताओं को और डाक्टर साहिबा को जाता है, मेरी कहानी में हुंकारी भरने वाले और एक अदद दृष्टिपात करने वाले भी बहुत कम है, वैसी कहानी पर आप की कवितायें न सिर्फ साथ देती हैं बल्कि मेरी हिम्मत बढ़ाती हैं और मेरा खुद के प्रति विश्वास दिलाती हैं, " बहुत अच्छा नहीं लिखती लेकिन इतना बुरा भी नहीं आखिर आयुषी जी ने साथ दिया।
मैं सिर्फ कुछ लाइने आपकी कविता की ही फिर से कहना चाहूंगी जिन्होंने पूरे प्रसंग को निचोड़ के रख दिया है
रिश्ते सारे ख़तम हुए लंड और चूत के खेल में
भैया सैंया बन गया अपनी ही बहना को पेल के
बहना तेरी कोख में आज बीज मैं अपना धर दूंगा
अपने वीर्य से आज तुझे गभिन पक्का कर दूंगा
अपने स्तन का पहला दूध मैं भैया तुम्हें पिलाऊंगी
फिर अपनी बेटी को अपने बाप से मैं चुदवाऊँगी
यह इन्सेस्ट कथा ६-७ पोस्टों तक कम से कम चलेगी, पहली रात की ही कहानी कम से कम तीन पोस्टों में, अनुरोध है की हर पोस्ट पर आपकी हुंकारी सुनने को मिले