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फागुन के दिन चार भाग १४
संध्या भाभी
१,७४,१७४
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सामने संध्या भाभी, अपने हथेलियों में मुझे दिखाकर लाल रंग मल रही थी।
उनकी ट्रांसपरेंट सी साड़ी में उनका गोरा बदन झलक रहा था। भारी जोबन खूब लो-कट ब्लाउज़ से निकलने को बेताब थे। शायद विवाहित औरतों पे एक नए तरह का हो जोबन आ जाता है। वही हालत उनकी थी। चूतड़ भी खूब भरे-भरे।
देख कर हालत खराब हो रही थी मेरी बस मैंने सोच लिया आज कुछ भी हो जाये, और ऊपर झापर से नहीं, सीधे गपागप, गपागप, एक तो उमर में मेरी समौरिया, २२-२३ के बीच, मुझसे दो चार महीने बड़ी या छोटी, फिर शादी के बाद, जैसे कोई शेरनी आदमखोर हो जाए, उसके मुंह खून लग जाए, उस स्वाद के बाद सब भूल के, वही हालत नयी नयी शादी वाली, और संध्या भाभी को देख के लग रहा था, उनके पोर पोर से रस चू रहा था, जैसे किसी हारमोन की मादक महक आये, और आदमी बस उसी के महक में बहता, बहकता चला जाए,
और हालत संध्या भाभी की भी कम खराब नहीं थी,
साल भर भी नहीं हुए थे शादी के और शादी के बाद तो कोई दिन नागा नहीं जाता था, एक दिन भी गुलाबो को उपवास नहीं करना पड़ा, लेकिन मायके आये हफ्ते भर हो गया और, ऊपर से पांच दिन वाली छुट्टी कल खतम हुयी और उस दिन तो एकदम नहीं रहा जाता। इस चिकने पर निगाह पड़ते ही उन्होंने फैसला कर लिया था, आज छोडूंगी नहीं इस स्साले को, कुछ सोच के ऊपर वाले ने उपवास तोड़ने के लिए आहार भेजा है, थोड़ा नौसिखिया है, कुछ आगे बढ़ना होगा खुद और तब भी बात नहीं बनेगी तो सीधे ऊपर चढ़ के हुमच हुमच के, देखने से ही लम्बी रेस का घोडा लगता है, और फिर नयी उमर की नयी फसल के साथ तो और मजा आता है, स्साला चिचियाता रहेगी, मैं पेलती रहूंगी, लेकिन बिना पेले छोडूंगी नहीं।
“तुम दोनों रगड़ लो फिर मैं आती हूँ। इन्हें बनारस के ससुराल की होली का मजा चखाने…” वो मुश्कुराकर रीत और गुड्डी से बोली।
“ना, आ जाइए आप भी ना,... थ्री-इन-वन मिलेगा इनको…”
रीत और गुड्डी साथ-साथ बोली।
दूबे और चंदा भाभी बैठकर रस ले रही थी लेकिन कब तक? दूबे भाभी अपने अंदाज में बोली-
“अरे इस गंड़वे को तो एक साथ दो लेने की बचपन से आदत है। एक गाण्ड में एक मुँह में…”
“अरे इस बिचारे को क्यों दोष देती हैं, साली छिनार चुदक्कड़ इसकी मायकेवालियां। मरवाना, डलवाना, पेलवानातो इस साले बहनचोद के खून में है हरामी का जना…रंडी का छोरा “
भांग अब चंदा भाभी को भी चढ़ गई थी।
संध्या भाभी आ गई रीत और गुड्डी के साथ।
लेकिन मुझे बचने का रास्ता मिल गया।
गुड्डी ने थोड़ा हटकर उन्हें जगह दी मेरे चेहरे पे रंग मलने के लिए, वैसे भी वो दोनों शैतान अब कमर के नीचे इंटरेस्ट ज्यादा ले रही थी।
दोनों और साइड में हो गई। बस यहीं मुझे मौका मिला गया।
रंग वंग तो मेरे पास था नहीं। लेकिन संध्या भाभी की गोरी-गोरी पतली कमरिया, किसी इम्पोर्टेड कमरिया से भी ज्यादा सेक्सी रसीली थी। उनका गोरा चिकना पेट कुल्हे के भी नीचे बंधी साड़ी से साफ खुला था और मेरे दोनों हाथ बस अपने आप पहुँच गए। संध्या भाभी के हाथ तो मेरे गालों पे बिजी हो गए और इधर मेरे हाथों ने पहले तो उनकी पतली कमरिया पकड़ी और फिर चुपके से साए के अन्दर फँसी साड़ी को हल्के-हल्के निकालना शुरू कर दिया। काफी कुछ काम हो चुका था तब तक मेरी आँखें उनकी चोली फाड़ती चूचियों पे पड़ी और मेरे लालची हाथ पेट से ऊपर, लाल ब्लाउज़ की ओर।
औरत को और कुछ समझ में आये ना आये लेकिन मर्द की चाहे निगाह ही उसके उभारों की ओर पड़ती है तो वो चौकन्नी हो जाती है, और यही हुआ।
इस आपाधापी में गुड्डी और रीत की पकड़ भी कुछ हल्की हो चुकी थी।
संध्या भाभी ने मेरा हाथ रोकने की कोशिश की।
मेरे एक हाथ में उनके आँचल का छोर था। मैंने उसे पकड़ा और कसकर झटका मारकर तीनों की पकड़ से बाहर। जब तक संध्या भाभी समझती समझती, मैंने उनके चारों ओर एक चक्कर मार दिया। साये से तो साड़ी मैं पहले ही निकाल चुका था, और उनकी साड़ी मेरे हाथ में।
संध्या भाभी, सिर्फ एक छोटी सी खूब टाइट लाल चोली और कूल्हे के सहारे खूब नीचे बांधे साये में , नाभी से कम से कम एक बित्ते नीचे, बस चार अंगुल और नीचे, और भाभी की राजरानी से मुलकात हो जाती।
और मैं। बस बेहोश नहीं हुआ। क्या मस्त जोबन लग रहे थे, एकदम तने खड़े, उभार चुनौती देते। मैंने तय कर लिया इन उभारों को सिर्फ पकड़ने मसलने से नहीं चलेगा, जब तक इन्हे पकड़ के, मसलते हुए, हुमच हुमच कर, गंगा स्नान नहीं किया,एकदम अंदर तक डुबकी नहीं लगायी, तो सब बेकार। भांग का नशा तो तगड़ा होता ही है लेकिन उसके ऊपर अगर जोबन का नशा चढ़ जाए तो फिर तो कोई रोक नहीं सकता कुछ होने से।
और ऊपर से मेरी हालत संध्या भाभी भी समझ रही थीं, वो और कभी अपने जोबन उभार कर, कभी झुक के, क्लीवेज दिखा के, ललचा भी रही थीं, उकसा भी रही थीं और बता भी रही थी की वो खुद छुरी के नीचे आने के लिए तैयार हैं।
और पल भर बाद जब मैं होश में आया तो मैंने संध्या भाभी से बोला,
“भाभी इत्ती महंगी साड़ी कहीं रंग से खराब हो जाती। मैं नहीं लगाता लेकिन आपकी इन दोनों बुद्धू बहनों का तो ठिकाना नहीं था ना…” मैंने रीत और गुड्डी की ओर इशारा करके कहा।
वो दोनों दूर खड़ी खिलखिला रही थी।
“फिर होली तो भाभी से खेलनी है उनके कपड़ों से थोड़े ही…” बहुत भोलेपन से मैं बोला।
बिचारी संध्या भाभी शर्माती, लजाती और,... ब्लाउज़ साए में लजाते हुए वो बहुत खूबसूरत लग रही थी। उनके लम्बे काले घने बाल किसी तेल शम्पू के विज्ञापन लग रहे थे और पल भर के लिए वो झुकी अपने साए को थोड़ा ऊपर करने की असफल कोशिश करने तो, उनका ब्लाउज़ इत्ता ज्यादा लो-कट था की क्लीवेज तो दिखा ही, निपलों तक की झलक नजर आ गई।
मैं तो पत्थर हो गया- खासतौर पे 8” इंच तक।
साया भी इतना कसकर बंधा था की नितम्बों का कटाव, जांघ की गोलाइयां सब कुछ नजर आ रही थीं। अब तक तो मैं बिना हथियार बारूद के लड़ाई लड़ रहा, लेकिन मैंने सोचा थोड़ा रंग वंग ढूँढ़ लिया जाय। मैंने इधर-उधर निगाह दौड़ाई, कहीं कुछ नजर नहीं आया।
संध्या भाभी
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सामने संध्या भाभी, अपने हथेलियों में मुझे दिखाकर लाल रंग मल रही थी।
उनकी ट्रांसपरेंट सी साड़ी में उनका गोरा बदन झलक रहा था। भारी जोबन खूब लो-कट ब्लाउज़ से निकलने को बेताब थे। शायद विवाहित औरतों पे एक नए तरह का हो जोबन आ जाता है। वही हालत उनकी थी। चूतड़ भी खूब भरे-भरे।
देख कर हालत खराब हो रही थी मेरी बस मैंने सोच लिया आज कुछ भी हो जाये, और ऊपर झापर से नहीं, सीधे गपागप, गपागप, एक तो उमर में मेरी समौरिया, २२-२३ के बीच, मुझसे दो चार महीने बड़ी या छोटी, फिर शादी के बाद, जैसे कोई शेरनी आदमखोर हो जाए, उसके मुंह खून लग जाए, उस स्वाद के बाद सब भूल के, वही हालत नयी नयी शादी वाली, और संध्या भाभी को देख के लग रहा था, उनके पोर पोर से रस चू रहा था, जैसे किसी हारमोन की मादक महक आये, और आदमी बस उसी के महक में बहता, बहकता चला जाए,
और हालत संध्या भाभी की भी कम खराब नहीं थी,
साल भर भी नहीं हुए थे शादी के और शादी के बाद तो कोई दिन नागा नहीं जाता था, एक दिन भी गुलाबो को उपवास नहीं करना पड़ा, लेकिन मायके आये हफ्ते भर हो गया और, ऊपर से पांच दिन वाली छुट्टी कल खतम हुयी और उस दिन तो एकदम नहीं रहा जाता। इस चिकने पर निगाह पड़ते ही उन्होंने फैसला कर लिया था, आज छोडूंगी नहीं इस स्साले को, कुछ सोच के ऊपर वाले ने उपवास तोड़ने के लिए आहार भेजा है, थोड़ा नौसिखिया है, कुछ आगे बढ़ना होगा खुद और तब भी बात नहीं बनेगी तो सीधे ऊपर चढ़ के हुमच हुमच के, देखने से ही लम्बी रेस का घोडा लगता है, और फिर नयी उमर की नयी फसल के साथ तो और मजा आता है, स्साला चिचियाता रहेगी, मैं पेलती रहूंगी, लेकिन बिना पेले छोडूंगी नहीं।
“तुम दोनों रगड़ लो फिर मैं आती हूँ। इन्हें बनारस के ससुराल की होली का मजा चखाने…” वो मुश्कुराकर रीत और गुड्डी से बोली।
“ना, आ जाइए आप भी ना,... थ्री-इन-वन मिलेगा इनको…”
रीत और गुड्डी साथ-साथ बोली।
दूबे और चंदा भाभी बैठकर रस ले रही थी लेकिन कब तक? दूबे भाभी अपने अंदाज में बोली-
“अरे इस गंड़वे को तो एक साथ दो लेने की बचपन से आदत है। एक गाण्ड में एक मुँह में…”
“अरे इस बिचारे को क्यों दोष देती हैं, साली छिनार चुदक्कड़ इसकी मायकेवालियां। मरवाना, डलवाना, पेलवानातो इस साले बहनचोद के खून में है हरामी का जना…रंडी का छोरा “
भांग अब चंदा भाभी को भी चढ़ गई थी।
संध्या भाभी आ गई रीत और गुड्डी के साथ।
लेकिन मुझे बचने का रास्ता मिल गया।
गुड्डी ने थोड़ा हटकर उन्हें जगह दी मेरे चेहरे पे रंग मलने के लिए, वैसे भी वो दोनों शैतान अब कमर के नीचे इंटरेस्ट ज्यादा ले रही थी।
दोनों और साइड में हो गई। बस यहीं मुझे मौका मिला गया।
रंग वंग तो मेरे पास था नहीं। लेकिन संध्या भाभी की गोरी-गोरी पतली कमरिया, किसी इम्पोर्टेड कमरिया से भी ज्यादा सेक्सी रसीली थी। उनका गोरा चिकना पेट कुल्हे के भी नीचे बंधी साड़ी से साफ खुला था और मेरे दोनों हाथ बस अपने आप पहुँच गए। संध्या भाभी के हाथ तो मेरे गालों पे बिजी हो गए और इधर मेरे हाथों ने पहले तो उनकी पतली कमरिया पकड़ी और फिर चुपके से साए के अन्दर फँसी साड़ी को हल्के-हल्के निकालना शुरू कर दिया। काफी कुछ काम हो चुका था तब तक मेरी आँखें उनकी चोली फाड़ती चूचियों पे पड़ी और मेरे लालची हाथ पेट से ऊपर, लाल ब्लाउज़ की ओर।
औरत को और कुछ समझ में आये ना आये लेकिन मर्द की चाहे निगाह ही उसके उभारों की ओर पड़ती है तो वो चौकन्नी हो जाती है, और यही हुआ।
इस आपाधापी में गुड्डी और रीत की पकड़ भी कुछ हल्की हो चुकी थी।
संध्या भाभी ने मेरा हाथ रोकने की कोशिश की।
मेरे एक हाथ में उनके आँचल का छोर था। मैंने उसे पकड़ा और कसकर झटका मारकर तीनों की पकड़ से बाहर। जब तक संध्या भाभी समझती समझती, मैंने उनके चारों ओर एक चक्कर मार दिया। साये से तो साड़ी मैं पहले ही निकाल चुका था, और उनकी साड़ी मेरे हाथ में।
संध्या भाभी, सिर्फ एक छोटी सी खूब टाइट लाल चोली और कूल्हे के सहारे खूब नीचे बांधे साये में , नाभी से कम से कम एक बित्ते नीचे, बस चार अंगुल और नीचे, और भाभी की राजरानी से मुलकात हो जाती।
और मैं। बस बेहोश नहीं हुआ। क्या मस्त जोबन लग रहे थे, एकदम तने खड़े, उभार चुनौती देते। मैंने तय कर लिया इन उभारों को सिर्फ पकड़ने मसलने से नहीं चलेगा, जब तक इन्हे पकड़ के, मसलते हुए, हुमच हुमच कर, गंगा स्नान नहीं किया,एकदम अंदर तक डुबकी नहीं लगायी, तो सब बेकार। भांग का नशा तो तगड़ा होता ही है लेकिन उसके ऊपर अगर जोबन का नशा चढ़ जाए तो फिर तो कोई रोक नहीं सकता कुछ होने से।
और ऊपर से मेरी हालत संध्या भाभी भी समझ रही थीं, वो और कभी अपने जोबन उभार कर, कभी झुक के, क्लीवेज दिखा के, ललचा भी रही थीं, उकसा भी रही थीं और बता भी रही थी की वो खुद छुरी के नीचे आने के लिए तैयार हैं।
और पल भर बाद जब मैं होश में आया तो मैंने संध्या भाभी से बोला,
“भाभी इत्ती महंगी साड़ी कहीं रंग से खराब हो जाती। मैं नहीं लगाता लेकिन आपकी इन दोनों बुद्धू बहनों का तो ठिकाना नहीं था ना…” मैंने रीत और गुड्डी की ओर इशारा करके कहा।
वो दोनों दूर खड़ी खिलखिला रही थी।
“फिर होली तो भाभी से खेलनी है उनके कपड़ों से थोड़े ही…” बहुत भोलेपन से मैं बोला।
बिचारी संध्या भाभी शर्माती, लजाती और,... ब्लाउज़ साए में लजाते हुए वो बहुत खूबसूरत लग रही थी। उनके लम्बे काले घने बाल किसी तेल शम्पू के विज्ञापन लग रहे थे और पल भर के लिए वो झुकी अपने साए को थोड़ा ऊपर करने की असफल कोशिश करने तो, उनका ब्लाउज़ इत्ता ज्यादा लो-कट था की क्लीवेज तो दिखा ही, निपलों तक की झलक नजर आ गई।
मैं तो पत्थर हो गया- खासतौर पे 8” इंच तक।
साया भी इतना कसकर बंधा था की नितम्बों का कटाव, जांघ की गोलाइयां सब कुछ नजर आ रही थीं। अब तक तो मैं बिना हथियार बारूद के लड़ाई लड़ रहा, लेकिन मैंने सोचा थोड़ा रंग वंग ढूँढ़ लिया जाय। मैंने इधर-उधर निगाह दौड़ाई, कहीं कुछ नजर नहीं आया।
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