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Incest अनोखे संबंध ।।। (Completed)

Which role you like to see

  • Maa beta

    Votes: 248 81.0%
  • Baap beti

    Votes: 73 23.9%
  • Aunty bhatija

    Votes: 59 19.3%
  • Uncle bhatiji

    Votes: 21 6.9%

  • Total voters
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Abhi32

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Bhai ab update kab tak ayega
 
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Naik

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Update 37


रघु अपना काम निपटाके जब घर आया देखा घर पे रेखा नहीं है। अपनी माँ राधा को जब आवाज लगाई तो राधा ने बाथरूम से जवाब दिया "मैं नहा रही हूँ रघु!" अपनी माँ को नहाता सुनकर रघु को शैतानी सूजी वह अपनी माँ के कमरे में आ गया। और बाहर से ही आवाज लगाकर बोला "कहो तो मैं भी आ जाऊँ तुम्हारे साथ नहाने के लिए?"

राधा अन्दर से जवाब दिया,"जी नहीं जनाब। तुम बाहर ही रहो। एसा सोचना भी मत। माँ हूँ तुम्हारी। बीबी नहीं।"

"तो क्या हुआ? कल परसो तक तो बन जाओगी ना मेरी बीबी? फिर एक साथ नहाने में क्या दिक्कत है? वैसे क्या एक बेटा अपनी माँ के साथ नहा नहीं सकता?"

राधा जो अन्दर नंगी थी अब अपने शरीर पे साबुन लगा थी। अपने शरीर पे साबुन लगाते हुए बोलती है,"जब तेरी बीबी बनूँगी तब नहा लेना मेरे साथ बदमाश कहीं का! लेकिन अभी तू मेरा बेटा है और एक जवान लड़का कभी भी अपनी माँ के साथ अकेले में नंगा होकर नहीं नहाता।"


"तो क्या माँ तुम अन्दर अभी बिल्कुल नंगी हो?" रघु अंजान बनता हुया पूछा।


"और नहीं तो क्या? कपड़े पहनके कोई नहा सकता है क्या?" राधा शर्माती हुई जवाब देती है।


"ओह वोह! काश मैं भी तुम्हारे साथ नहा सकता। माँ अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी पीठ पे साबुन लगा सकता हूँ? तो क्या मैं आ जाऊँ?"


"चल बदमाश। मुझे नहीं लगाना साबुन।" राधा कहके चुप हो गई। कुछ देर बाद राधा ने कहा,"रघु जरा पलंग पे देखना मेरे कपड़े रखे होंगे, वह मुझे देना जरा।"


"वह यह कपड़े? लेकिन तुम अन्दर क्यों नहीं लेके गईं?"


"मुझे कहीं पता था? की तू अभी आ जायेगा? नहीं तो मैं तौलिया लपेटे ही बाहर आ जाती। तू वह कपड़े मुझे दे दे।"


"अच्छा यह लो। दरवाज़ा खोलो।" रघु कपडे हाथ में लिए दरवाजा के कुछ दूर जाके खडा हो गया। राधा बाथरूम का दरवाजा जरा सा खोल के अन्दर से ही हाथ बाहर निकाल के कहती है,"कहाँ? दे कपड़े?"

"थोड़ा सा और बाहर तो आ जाओ! नहीं तो दूँगा केसे?"

"अरे मैं इस तरह नहीं आ सकती? मैं पुरी नंगी हुँ अभी। दे ना मुझे?"


"अच्छा चलो एक बार दरवाजा पुरी तरह से खोल दो, फिर मैं कपड़े दे दूँगा।"


"आह तू न बड़ा तंग करता है? देख मैं किस तरह अभी आ सकती हूँ? मैं क्या अब तेरे सामने नंगी ही आ जाऊँ? मुझे नहीं आना बाहर। ना ही तुझे देखने दूँगी।"


"अच्छा बाबा ले लो! लेकिन जब मेरा दिन आयेगा तब देखना तुम्हारी हालत किस तरह ढीली करता हुँ। उस दिन न तुम्हें कपडा मिलेगा और न ही तौलिया। देख लेना!"


"बड़ा आया मेरा राजा! मैं भी देख लुंगी।" राधा उसके हाथ से कपड़े लेके दरवाजा बन्द कर देती है।
Update 38

रेखा अपनी सहेली शीतल के पास से शाम को घर आती है। राधा शाम का खाना बना रही थी और रघु रामू के घर गया हुआ था। रेखा को देख कर राधा पूछती है," आ गई महारानी? आज रुक जाती अपनी सहेली के पास?"

"केसे रुक जाती मेरी माँ? तुम्हें पता तो है शीतल अब शादीशुदा है। अगर मैं उसके पास रहूँगी तो क्या वह मेरे साथ सो सकती है? वह तो अपने नए पति के साथ सोयेगी।"

"तो क्या हुआ? फिर तू भी सो जाती अपनी दोस्त के पास। तीनों एक साथ रहते।" राधा मजाक करती है।

"अच्छा? फिर अगर रात को शीतल का पति उसकी जगह मुझ चड जाता तब क्या होता बताओ?"


"होना क्या है, फिर मेरी बेटी की बुर भी शीतल की तरह फट जाती। उसे भी उसके दोस्त की तरह चुदाई मिल जाती।"


"तुम भी ना माँ, बहुत वह हो। मुझे नहीं चुदवाना किसी से। अगर तुम्हारी इच्छा है चुदाई करवाने की तो तुम करवा लेना। वैसे भी एक गधा तो मरा जा रहा है अपना मुसल लण्ड तुम्हारी बुर में घुसाने को, हो सके तो उसका लौड़ा अपनी चूत में घुसा लो। लेकिन देख ना कहीं तुम्हारी चूत उसके लण्ड से छील ना जाये।" कहते हुए रेखा खिलखिलाती हँसती है।


"रुक तू जरा, मेरी चूत के बारे में बात करती है? कहीं तेरी तरह मेरी चूत नाजुक है? की लौड़े से छील जाये? याद रखना इसी चूत के सुराख से तुम दोनों भाई बहन निकले हो। तो भला मेरी चूत क्यों छीलने लगेगी बता? चूत तो तेरी खुलेगी देख लेना। और खून भी निकलेगा। बड़ी आई मुझे बताने?"


"अरे माँ, खून तो निकलता ही है जब पहली बार चूत में कुछ घुसता है। तुम्हारा भी निकला था कोमल मौसी का भी और शीतल ने जब पहले दिन चुदवाया उसका भी खून निकला। हाँ यह बात अलग है की तुम ने और मौसी ने शादी से पहले चुदवा लिया था, इसलिये सुहागरात में तुम्हारी चूत से खून नहीं निकला होगा। और तुम्हें जो अपनी चूत पे इतनी घमंड है ना? मेरी बात याद रखना तुम्हारी इस बुर की घमंड तुम्हारा लाड्ला बेटा तोड देगा। फिर शायद खून भी निकल सकता है। क्या पता?"


"अरे पगली खून नहीं निकलता है। बात को जरा समझ, एक बार अगर चूत की फांके खुल गई तो जिन्दगी भर बुर चुदवाने में मजा आने लगता है। फिर दर्द नहीं होता समझी? इस लिए मेरी छोड़ और अपनी सोच।" राधा नखरे दिखाती है।


"हाँ हाँ माना मैं ने अभी तक चुदवाया नहीं लेकिन इतना मुझे भी पता है। लेकिन माँ मुझे तुम यह बताओ, बापू का साईज केसा है? क्या इस खीरे जेसा होगा?"


"हाँ इतना बड़ा तो होगा। लेकिन इतना मोटा नहीं है। लेकिन तू क्यों पूछ रही है?" राधा थोडी झिझकती हूई बताती है।


"माँ तुम भी कितनी भोली हो। अब जिस बुर में इतने सालों तक इस साईज का लण्ड जाता रहा है उसी बुर में अगर इससे दोगुना लौड़ा लेने लगोगी, बताओ जरा दर्द होगा नहीं क्या? और बार बार यह मत कहा करो इस चूत से तुम ने दो बच्चे निकाल दिये, बच्चा निकाले हुए बीस बरस से ज्यादा हो गया है। तो क्या अब भी तुम्हारी चूत खुली की खुली है? है नहीं ना? वह फिर सिकुड गई है। जेसी शादी से पहले थी। समझी मेरी माँ? इस लिए मेरी बात मिला कर देख लेना मेरी प्यारी भाभी, तुम्हारी चूत की फांके मेरा अपने मुसल लौड़े से पुरी तरह खोल देगा।"


"भाभी की बच्ची रुक जरा बताती हुँ। मुझे छेड़ के बहुत मजा आता है ना तुझे? मेरी चूत के पीछे पडी है, अपनी सील तो अभी तक तुड़वा नहीं पाई, आ गई मुझे ज्ञान देने? जब मेरी चूत फटेगी मैं खुद संभाल लुंगी। तुझे फिक्र करने की जरुरत नहीं है।"


"अच्छा बाबा जाती हूँ। तुम काम करो। लेकिन जाने से पहले एक बात और कहना चाहूंगी। तुम शादी से पहले अपनी उस नाजुक चूत पे हल्दी चंदन जरुर मल लेना। ताकी तुम्हारी चूत गधे का लौड़ा सह सके।" रेखा हँसती हुई भाग जाती है।


'पागल लड्की, क्या कहती है खुद को ही पता नहीं' राधा अपने मन में गुनगुनाती है। 'आखिर इस की शादी भी जल्दी करवानी पड़ेगी। अच्छा होता अगर राकेश घर पे होता। एक दो दिन में इन दोनों की शादी करवाके शहर भेज देती। उधर राकेश भी पता नहीं क्यों तीन चार दिन से फोन भी नहीं कर रहा है। शायद कम्पनी के काम में उलझ गया होगा। मुनिबजी भी अभी तक आये नहीं। जमीन जायदाद के कागजात बनवाने दिया था मुनिबजी को। शायद आज ना आ पाये। कल को ही आ सकेंगें। मुनिबजी को कहके पच्चीस बीघा जमीन रघु के नाम पे और दस बीघा जमीन रेखा के नाम कर दूँगी। और रही बात कम्पनी की तो कम्पनी रघु के नाम होगी। हर महीना वहां से कुछ पेसा रेखा को दिया जा सके इसका बन्दोबस्त करना पडेगा।'

राधा अपने मन में यह सब सोच रही थी।
Update 39

"घर पे कोई हैएए ?" कोमल के घर के दरवाजे पे बाहर से दो महिलाएँ आवाज लगा रही थी।


"कौन है?" कोमल ने जवाब दिया। कोमल ने आज एक नई बियाही बहु की तरह लाल साड़ी पहन रखी थी। उसकी माँग पे सिन्दूर और गले के मंगलसूत्र से वह पुरी तरह से नई बियाही बहु की तरह लग रही थी। दरवाज़ा खोलके देखती है सामने पार्वती दीदी और शान्ती दीदी खडी हैं।


"अरे दीदी! तुम दोनो? कितनी खुशी की बात है। आओ ना अन्दर आ जाओ।" कोमल उनका स्वागत करती है।

"तेरा पति कहाँ है रे कोमल?" पार्वती पूछती है।

"घर पे ही है दीदी। तुम बेठो ना! अजी सुनते हो, देखो कौन आया है?" कोमल आवाज लगाती है।

कोमल की बात से शान्ती और पार्वती मांद मांद मुस्कुराने लगती है।

रामू कमरे में आ कर दोनों को प्रणाम करता है। "जीते रहो बेटे। सदा खुश रहो।"

"अजी थोड़ा नाशता का सामान ला दीजिये।" कोमल रामू से कहती है।

"अरे नहीं नहीं। इसकी कोई जरुरत नहीं है। हम तो तेरे से मिलने आये थे। सोचा पहले तेरे से मिल लूँ फिर राधा से मिल लेंगें।"

"कोई बात नहीं दीदी, तुम दोनों बेठो तो सही। अजी आप जाओ ना जल्दी।" कोमल जोर देकर कहती है।

"हाँ हाँ जाता हुँ।" कहकर रामू भागने लगता है।


"और बताओ दीदी, सब केसे हैं? मैं तो सोच रही कल परसो मन्दिर जाके तुम से मिलके आऊँगी। और शान्ती दीदी, तुम्हें कितने दिन के बाद देखा? श्क्कू चाची ठीक तो है ना?"


"हाँ सब ठीक है , मैं तो अब शहर में रहने लगी हूँ। इसी लिए इधर ज्यादा आना नहीं होता। अब माँ को भी लेने आई हूँ, मैं मन्दिर गई हूई थी। वहां दीदी से पता चला तेरी शादी हूई है। सोचा तेरे से मिलती चलूँ। इस लिए दीदी को भी साथ ले आई।"


"अच्छा किया दीदी, और पार्वती दीदी, पंडित जी और बच्चे सब कुशल मंगल से है?"

"हाँ हम सब कुशल मंगल से हैं। हमारी छोड़ अपनी बता, तेरा पति प्यार तो करता है ना तुझे?"


"हाँ दीदी, बड़ा प्यार करता है मुझे। मैं बहुत खुश हूँ।"


"हाँ वह तो दिख रहा है तेरे चहरे पे। जिस तरह तू उसे बुला रही थी। जवान लड़कों की बात ही कुछ अलग है। उनकी ताबडतोड चुदाई से प्यार हो ही जाता है।"


"दीदी तुम ना, वैसी बात नहीं है।"


"तो तेरा पति तुझे चोदता नहीं है क्या?"


"क्या दीदी, कहीं छोड़ देता है क्या? कल रात सुहागरात थी मेरी। पुरी रात में लगातार तीन बार पेला है मुझे। फिर सुबह एक बार,और तुम्हारे आने पहले चुदाई में ही लगी थी। अच्छा हुआ तुम दोनों अब आई, नहीं तो थोडी देर पहले आती तो मैं शर्म से मर ही जाती। चोद्ता नहीं मानो हल चला रहा हो।" कोमल की बातों पे पार्वती और शान्ती हंसती रहती है।

"होता है, शादी के बाद शुरु शुरु में रात दिन चुदाई खाने में ही निकल जाता है। इस शान्ती से ही पुछ ले, उसका पति उसका क्या हाल करता है? जब इसकी शादी हूई थी यह हर दूसरे तीसरे दिन मेरे पास आया करती थी, इसका बेटा प्रताप तब उन्नीस साल का गबरू जवान था। और यह उस समय तेंतीस साल की थी। तुझे और राधा को तो पता है शान्ती बहुत पहले ही पेट से हो गई थी। प्रताप और शान्ती की जिन दिन शादी हूई उस रात सुहागरात में प्रताप ने शान्ती को सात बार चोदा। और सुबह होने के बाद भी बेचारी को छोड़ा नहीं। यूं चुदाई करते करते दो पहर का वक्त हो गया। तब जाके इसे मुक्ति मिली। शाम को शान्ती मेरे पास लंगडाती हूई आई। बेचारी को पुरे आधे दिन तक एसा चोदा मानो जेसे एक रंडी को दस आदमी मिलके चोद रहे हो। फिर शान्ती ने जब अपनी चूत दिखाई मुझे इस पे बहुत तरस आया। एसी चुदाई करना किसी के बस में नहीं था और शान्ती ने जिस तरह प्रताप का लण्ड झेला था, उसकी जगह अगर कोई और होती तो शायद मर ही जाती। फिर मैं ने इसकी बुर पे आग से सेक लगाई, हल्दी चंदन पीस के बुर पे लेप लगाया, तब जाके बेचारी को कुछ आराम हुआ। इस लिए मैं तो कहती हूँ तू शुक्र मना तुझे प्रताप जेसा पति नहीं मिला। अगर मिला होता तब पता चलता।"

"अरे दीदी वह तो बताओ। जब उसने लगातार तीन घन्टा चुदाई की थी?" शान्ती शर्माती हुई बोली।


"हाँ दीदी बताओ ना? तीन घन्टा लगातार चुदाई? भला कोई किसी को इस तरह पेल सकता है क्या? वैसे दीदी शान्ती दीदी को हम स्कुल के समय से जानते हैं। शुरु से ही शान्ती दीदी की बुर में बहुत आग थी। इसी लिए यह तो चुदाई करती हुई थकती नहीं थी। लेकिन तुम बताओ दीदी, क्या हुया था?"


"अच्छा सुन, मैं ने फिर उस दिन इसकी चूत पे लेप लगाके शान्ती को घर भेज दिया और प्रताप को मेरे पास भेजने को कहा। जब प्रताप मेरे से मिलने आया मैं ने उसे खूब खडी खोटी सुनाई। कहा,:तू पागल है क्या? जो शान्ती को इतनी बुरी तरह से चोद दिया? वह कहीं भागी नहीं जा रही है? तेरी बीबी है वह। अब पुरी जिन्दगी तो तेरे साथ रहेगी। शान्ती को अब से शान्ती से चोद्ना।: मेरी बात पे बेचारा बड़ा शर्मा गया। बोला,:मौसी गलती हो गई है। अब से नहीं होगा। असल में बचपन से माँ को पाने की इच्छा थी। लेकिन वह मेरे सामने ही हर दूसरे दिन पराये मर्दों से चुदवाया करती थी। इस लिए जब वह मेरी पत्नी बनी मेरे से रहा नहीं गया। सोचा क्या पता कल को फिर किसी को घर पे बुला ले। इस लिए जोश में एसा कर बेठा।: फिर मैं ने बोला,:अच्छा ठीक है। लेकिन अब दो दिन तक शान्ती से चुदाई मत करना। उसकी चूत पे सूजन है। पहले उसे ठीक हो जाने दे।: मेरी बातों से तो बेचारा प्रताप सकपका गया। कहा,:लेकिन मौसी मैं रहूँगा केसे दो दिन तक?: मैं ने बोला,: वह मुझे नहीं पता। बस दो दिन बर्दाश्त कर ले। यह दो दिन शान्ती तेरा बीर्य निकाल देगी। लेकिन चुदाई बिल्कुल नहीं। अगर गलती से भी उसकी चूत में तूने लौड़ा घुसाया तो वह बीमार हो जायेगी। इस लिए दो दिन बर्दाश्त कर ले फिर बाद में जी भर के चोद लेना। समझा कुछ?:

फिर क्या था। प्रताप ने दो दिन बर्दाश्त तो कर लिया लेकिन शान्ती के उपर उससे भी बड़ी आफत तैयार थी यह उसे नहीं पता था। और तीसरे दिन प्रताप ने जब शान्ती की चुदाई की बेचारी की चूत बिल्कुल ढीली कर दी। दो दिन तक उसने अपना बीर्य नहीं निकाला था। इस लिए जब तीसरे दिन शान्ती ने उसके आगे अपनी टाँगें पसर दी तो उसने शान्ती की चूत की खटिया खड़ी कर दी। लगातार तीन घन्टे तक ताबडतोड चोदा इसे। तीन घन्टे की चुदाई के बाद जब प्रताप अपना बीर्य इसकी बुर में गेरा तब शान्ती को होश नहीं था। बेचारी को एक घन्टे के बाद होश आया। अब समझी? इस र्ंडी ने अपने पेट से एक चूतखोर को जनम दिया है। अच्छा हुया उसकी प्यास यही बुझा रही है, इसकी जगह अगर कोई दुसरी औरत होती पता नहीं क्या से क्या हो जाता।" पार्वती कहके चुप हो गई।


इसी बीच रामू पास के दुकान से नाश्ते का सामान ला चुका था। कोमल ने उन्हें नाशता करवाया और फिर कोमल को साथ लेकर वह दोनों राधा से मिलने आ गई।

राधा कोमल के साथ जब पार्वती दीदी और शान्ती को देखा तो उछल पडी। "अरे दीदी, इतने दिनों बाद आखिर इस गरीब के घर आना हुया"


"गुस्सा मत कर राधा, तुझे तो पता है घर का काम काज संभालने में सारा समय निकल जाता है। अगर तेरे घर में छोटे छोटे बच्चे होते तब समझती? अब मेरे से गिला छोड़ और इसका भी जरा हालचाल पूछ ले, तुम दोनों से ही मिलने आई है बेचारी शहर से?" पार्वती राधा को कहती है।


"हाँ क्यों नहीं? आखिर हमारा रिश्ता तो बहुत पुराना है। और शान्ती दीदी, श्क्कू चाची ठीक है ना?"


"बड़ी आई पूछने वाली? एकबार देखने तो जाती नहीं? केसी है? कहाँ है?"


"बस दीदी, समय नहीं निकलता। अब बेठो तो सही।"


"देख हम कोमल के घर से नाशता पानी करके आये हैं। बस तेरे से मिलने आई थी।"


"कोई बात नहीं दीदी, तुम बेठो। और शान्ती दीदी, पति बच्चे सब केसे हैं?"


"सब ठीक से है। बड़ावाला बच्चा पांच साल का हो गया है और छोटा वाला तीन साल का।" शान्ती कहती है।


"और तो बता?" पार्वती शान्ती को बोलती है।


"और क्या बताऊँ दीदी?" शान्ती अंजान बनने का नाटक करती है।


"मैं बताऊँ? अरे इस के पेट में अभी दो महीना का बच्चा पल रहा है। बेचारी फिर से गर्भवती हो गई है।" कहके पार्वती हंस देती है जहाँ शान्ती लज्जित हो जाती है।

"दीदी, यह तो खुशी की बात है। मतलब प्रताप भाई ने पुरी मेहनत कर रखी है।" कोमल शान्ती को छेड़ती है।

"अब इस उम्र में कहाँ आजकल की औरतों को बच्चा करना आता है। इस लिए जितनी जल्दी हो सके कोख भर लेना चाहिए। कोमल तू भी ज्यादा लेट मत करना। अगर दवाई वग़ैरह खाती रहेगी फिर बाद में चल के बच्चा ठहरता मुष्किल हो जायेगा।" पार्वती ने कहा।


"दीदी तुम इसकी चिंता न करो। यह तो हम से भी ज्यादा चालू है। इस ने तो सुहागरात से अपनी बुर में बीर्य लेना शुरु कर दिया है। क्या पता अगले महीने में खुश खबरी मिल जाये।" राधा कोमल को चिडाती है।


"चल मैं ने तो शुरु कर दिया। लेकिन तू कब से बुर में बीर्य लेना चालू करेगी?" अब कोमल की बारि थी। राधा इस बात पे शर्मा जाती है। वह कुछ बोल नहीं पाती।


"हाँ राधा, आखिर तुझे भी शादी कर लेनी चाहिए थी। मैं ने सोचा था शायद तेरी और कोमल की एक ही मंडप पे बियाह होगा। लेकिन कोमल ने तेरे से पहले बाजी मार ली। जरा हमें भी बता तेरे मन में क्या चल रहा है? कब का इरादा है तेरा बियाह करने का?" पार्वती ने कहा।


"बस दीदी, समझ लो सब कुछ तैयार है, बस दो चार दिन में तुम्हारे पास निमन्त्रण पहूँच जायेगा।" राधा लज्जाती हुई बोली।


"फिर तो ठीक है। अगर एक हफ्ते की बात है फिर शान्ती भी तेरी शादी देख सकेगी। वैसे अब तो गावँ भी इसका कम आना होता है।"


"हाँ क्यों नहीं। यह भी कोई पूछने की बात है। मैं ने सोचा है मेरी शादी में मैं सिर्फ अपनी सारी सहेलियों को निमन्त्रण दूँगी। शादी में सिर्फ औरतें ही आईन्गीँ। कोई मर्द नहीं रहेगा।"


"वाह यह तो बहुत अच्छी बात है। औरतों की मान मर्यादा कोई तुझ से सीखे। अच्छा अब हम चलते हैं काफी रात हो गई है। पंडितजी शायद मेरी खोज कर रहे होंगें।"


"क्या दीदी अभी आई हो अभी चली जाओगी?"


"अभी नहीं फिर कभी दिन में आ जाऊंगी। तू एक काम करना, कल समय निकाल के मन्दिर आना। शान्ती भी रहेगी। उसे जरा तेरे से काम है।"


"अभी बताओ ना दीदी? क्या बात है?"


"नहीं एसी कोई खास बात नहीं है। मन्दिर आना कल जरुर।" बोलके पार्वती और शान्ती चली जाती हैं।
Bahot behtareen
Zaberdast update bhai
Lajawab
 
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Babulaskar

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Awesome update bhai

Ye raadha ke pati ka koi kamand to nahi chal raha hai shahar mein, kahin property ke chakkar mein koi naya game to nahi khel raha hai wo. Nice update

Nice update

जल्दी होंगे राधा के हाथ पीले, फिर हर दम कहेगी रघु से आजा मेरे दूध पीले।

अगली कड़ी की प्रतीक्षा में . . . . .

Bhai ab update kab tak ayega

Bahot behtareen
Zaberdast update bhai
Lajawab
आप लोगों को स्टोरी पसंद आई यह जान कर काफी खुशी हो रही है। अगर कमेंट और लाईक के माध्यम से आप लोग इसी तरह से स्टोरी को सपोर्ट करते रहेंगे तो यह जल्दी से खत्म हो पायेगी।
अभी सोचा नहीं कब अपडेट दिया जाये। तीन चार अपडेट जूं ही एखत्टे होते हैं तो पोस्ट कर दूँगा। कल नहीं हो पायेगा। परसो शायद कर दूँ। धन्यवाद भाईयों।
 

Babulaskar

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congratulations guys we crossed 500k views...
hope till the end it will cross 1m.
 

Babulaskar

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Update 40


शान्ती और पार्वती दोनों अपने अपने घर को जा रहे थे। शान्ती पार्वती से पूछती है,"दीदी क्या राधा यह बातें बताना ठीक होगा? कहीं उसका घरबार न टूट जाए?"

"अरे तू अगर नहीं बतायेगी तब टूट जायेगा। वैसे भी आज नहीं तो कल उसे इस बारे में पता जरुर चल जायेगा। फिर उसके दिल पे भी चोट लगेगी।"

"हाँ दीदी, तुम ने सही कहा। चलो कल जब राधा आयेगी उसे बता दूँगी। लेकिन दीदी मैं ने बताया है इस बारे में किसी को पता नहीं चलना चाहिए। नहीं वह मुझे दुश्मन समझ बेठेगा। इसी मारे तो मैं ने कोमल सामने राधा से कुछ कहा नहीं।"


"तूने सही किया। चलो कल जब राधा आयेगी उससे बात कर लेंगें। थोड़ा तेज पावँ चला। पंडितजी शायद राह देख रहे हैं। बच्चे को घर पे छोड़ के आई हुँ। पता नहीं दुध के मारे रो रहा होगा।" फिर शान्ती पार्वती को घर छोड़ने के बाद अपने घर चली गई।



अगले दिन शाम को रघु को साथ लिए राधा पार्वती से मिलने जाती है। रघु महादेव से मिलके बातों में लग गया और राधा पार्वती के पास बेठी बातें करने लगी।

"और दीदी बताओ, क्या बात थी?"

"थोडी देर रुक तो सही। वह बात तुझे शान्ती बतायेगी। उसी को तेरे से बात करनी थी।"


"कब तक आयेगी वह?"

"आ जायेगी। सुबह को यहीं थी। बता रही थी चाची की तबीयत खुछ खराब है शायद डाक्टर के पास ले गई हो। जब तक वह आती हो तू जरा अपने बारे में कुछ बता। आखिर तेरी शादी तैयारी कहाँ तक हूई?"


"दीदी तुम सब मिलके जिस तरह पूछ रहे हो, कभी कभी तो लगता है यह मेरी नहीं, तुम लोगों की शादी हो रही है। अरे बाबा समय आने पर कर लुंगी मैं शादी। वैसे भी मुझे अपनी शादी से पहले रघु और रेखा के लिए कुछ करना है। मतलब जमीन जायदाद के बारे में। बस वह एकबार हो जाये फिर आराम से शान्ती से करूंगी मैं शादी।"


"अरे नहीं वैसी कोई बात नहीं है। मैं कह रही थी शुभ काम में देरी क्यों? तेरी तबीयत वगेरह तो ठीक है ना?"


"क्या दीदी, भला मुझे क्या होने जा रहा है? मैं तो बिल्कुल स्वस्त हुँ।"


"तेरी माहवारी ठीक समय पे आती है ना? कहीं कोई गडबड़वाली बात तो नहीं?"


"नहीं एसा कुछ नहीं है। हर महीने ठीक तारीख पर मेरी माहवारी आ जाती है। कोमल की फिर भी कभी कभी एक दो महीना इधर उधर हो जाता है, लेकिन मेरी माहवारी ठीक है। कभी कभी तो रेखा भी मेरी माहवारी के दिन को लेकर मजाक करती है। "


"चलो अच्छा है। वैसे महीने में कितने दिन तक खून आता है तेरा?"


"सात दिन।" राधा थोड़ा शर्मा जाती है।


"अरे वाह, तब तो मुझे देखना ही होगा रे राधा। लेकिन सात दिन तक अपने पति को केसे रोक पायेगी तू? क्या उसे झेल पायेगी हर महीना सात दिन लिए।"


"क्यों नहीं दीदी, जब एक पति को इतने दिन से संभालते आई हुँ तो दूसरे को भी संभाल लुंगी। वैसे दीदी, एक बात पूछूँ? क्या तुम अब भी औरतों की बुर देखती हो? मतलब गावँ की औरतें अपनी बुर का इलाज करवाने अब भी तुम्हारे पास आती है?"


"हाँ क्यों नहीं। लेकिन ज्यादतर शादी से पहले या बच्चा होने के बाद आती है। क्योंकि बुर को जानना तभी जरुरी होता है जब उसका उपयोग हो। अब एक क्ंवारी लड्की या शादीशुदा लड्की क्यों आयेगी अपनी बुर दिखाने? इसलिए जब किसी की शादी होती है तब वह आती है और वह पता कर लेती है उसकी चूत किस श्रेणी में आती है, इस तरह वह अपने बुर का उपयोग करती है। अब अगर एक दुध पीते बच्चे को तू मसालेदार सब्जी चावल खिलाने लग जायेगी तो उसका पेट खराब नहीं होगा क्या? इसी तरह एक जवान आदमी की भूक और बच्चे की भूक अलग होती है और दोनों की खुराक भी विभिन्न होती है।"


"तो दीदी तुम चूत देखने के बाद क्या निर्णय लेती हो? मतलब किस से पता करती हो इसकी बुर या चूत किस श्रेणी में आती है?"


"अरे यह एकदिन में नहीं होता। बरसों का तजुर्बा और ज्ञान हो तभी कोई देखने के बाद बता सकती है क्या है और क्या करना चाहिए? कभी कभी कुछ मर्द भी आता है, उसका और जिसके साथ उसका बियाह होना है दोनों का अंग देख के निर्णय लिया जाता है यह दोनों लिंग और योनि एक दूसरे के लिए उचित है या नहीं?"


"तो क्या सब का अंग एक दूसरे के लिए लायेक होता है?"


"हाँ होता है। वह इस लिए क्योंकि कामशास्त्र के अनुसार स्त्रियों के योनि ग्यारह प्रकार के होते हैं। जिन में पहला दुसरा तीसरा, यह जो तीन श्रेणी है आम औरतों की चूत इसी प्रकार में आ जाती हैं और मर्दों का भी। तो समस्या उतपन्न नहीं होता। उनका मिलन आरामदायक और मधुर होता है। समस्या होती है दसवीं और ग्यारहवीं श्रेणी की औरतों की चूत को लेकर।"


"एसा क्या है इस में की समस्या हो?"


"समस्या इस तरह होती है, मान ले एक औरत की चूत उस दसवीं श्रेणी के आधार पे है और जिस मर्द से इसका बियाह हुया है वह एक आम लिंग है। तो यह औरत कभी भी उस लिंग से खुश नहीं रहेगी। हमेशा उसकी जींदगी में एक खालीपन रहेगा। लेकिन अगर इसी औरत का बियाह एक नागपंचमी लिंगधारी मर्द से होता तो इसकी जिन्दगी खुशिओं से भर जाती।"


"दीदी मैं क्या कह रही थी, तुम भी अगर मेरा अंग एकबार देख लेती? समझ रही हो ना तुम?" राधा झिझकती हूई पूछती है।


"अरे पगली इस में शर्माने वाली कोई बात नहीं है। तुझे शायद पता नहीं तेरी सहेली कोमल भी अपनी शादी से बहुत पहले मुझे अपनी चूत दिखाकर गई थी। और उसका बेटा रामू भी मेरे पास आया था लिंग दिखाने। लेकिन मैं जवान लड़कों का लण्ड नहीं देखती पण्डितजी का मना है। इस लिए उसे देवा के पास भेज दिया। उसने देख के मुझे बता दिया किस श्रेणी का लिंग है, फिर मैं ने कोमल को बताया।"


"किस प्रकार की थी कोमल की बुर?" राधा उत्सुकता से पूछी।


"अरे एसी खास नहीं। तुझे बताया ना? ज्यादतर औरतों की बुर आम होती है और उसमें किसी भी प्रकार का लिंग चला जाता है। वह भी एसी है। तुझे अगर दिखाना है तो कमरे के अन्दर चल। अरे मिन्ती बेटी जरा अपने भाई को पकड़ना। मुझे जरा काम है।"

पार्वती चिल्लाके अपनी बड़ी बेटी मिन्ती को बुलाकर उसके गोद में बच्चा देती है और राधा को लेकर कमरे में आ जाती है। राधा ने साड़ी पेतिकोट ब्लाउज पहन रखी थी। वह लेट कर अपनी साड़ी और पेतिकोट कमर तक उठा लेती है जिस से वह नीचे से पुरी नंगी हो जाती है। पार्वती एक दिया जलाकर उसके चूत के पास आकर उसी पे नजरें टिका कर देखने लग जाती है।

राधा को बहुत शर्म आ रही थी। यूं तो वह कोमल के पास खुली है,दोनों एक साथ नंगे नहाते भी हैं। लेकिन पार्वती के सामने यूं नंगा होना उसके लिए काफी शर्म और लज्जा की बात थी। पर उसके दिल में अपनी चूत को लेकर एक उत्सुकता थी, जिसे वह जानना चाह रही थी।

"दीदी कुछ बताओ भी, क्या देख रहो इस तरह।?"


"बाल कब साफ किये तूने?" पार्वती चूत पे हाथ फेरती हूई पूछती है।


"आह दीदी क्या कर रही हो? पांच दिन हो गए।"


"एक बात पूछूँ सच सच बताना, तूने आज तक जब भी अपने पति से चुदवाया है, क्या तेरे दिल में हरबार की चुदाई के बाद क्या एसा नहीं लगता था, काश एकबार और चोद्ता? और थोडी देर तेज तेज ठपकी मारता?"


"हाँ दीदी, लगता तो हमेशा से था। लेकिन यह तो हर औरत चाहती है उसे बहुत अच्छी चुदाई मिले?"


"अरे पगली, नहीं? यह देख जरा, अपनी चूत को ध्यान से देख तेरी चूत का घेरा कितना बड़ा है। और यह छेद कितना लम्बा है। मानो जेसे तेरी नाभि से चूत शुरु हुई हो। और एक बात तेरे चूत के दाने के उपर एक बड़ा सा काला तिल है। यह साफ इशारे कर रहा है तेरी चूत 'महाघाटी' है। और एक महाघाटी चूत का लायक लण्ड सिर्फ एक नागपंचमी लौड़ा है। उसी लण्ड से तेरी प्यास बूझ सकती है। क्यौंकि तेरे चूत की गहराई यहां तक है,बिल्कुल नाभि तक। एक नागपंचमी लण्ड ही इतनी दूर चूत के अन्दर पहूँच सकता है। बिल्कुल बच्चेदानी के मुहं पर। जब तक बच्चेदानी के मुहाने पर लौड़े का सुपारा धक्का न मारे तब तक औरत को चुदाई सुख नहीं मिल सकता। और इसी लिए तू हमेशा उदास रहती है। क्यौंकि तेरे लायक जो लौड़ा है वह इस चूत में नहीं जा रहा। अब उठ जा। मुझे जो देखना था, मैं ने देख लिया।" राधा उठके बेठ जाती है।


"तो दीदी, अब क्या होगा?"


"देख मैं इतने दिनों से गावँ की औरतों की बुर देखती आ रही हूँ, और इतने दिनों में मुझे एसी चूत सिर्फ दो औरतों के पास मिली। एक तू और दुसरी हमारी शान्ती। शान्ती तो है ही रांड। कितनों से चुदवा चुकी है लेकिन उसकी प्यास कभी नहीं बुझी फिर जब एकदिन मैं ने प्रताप का लण्ड देखा, मैं ने शान्ती को कहा इसके अलावा किसी से भी चुदवा ले तू खुश नहीं रह पायेगी। और आज देख बेचारी खुद चुदाई से भागती फिरती है।"


"मेरा बताओ ना दीदी,क्या रघु को तुम्हारे पास भेजूं?"


"अरे सब्र रख, इतनी उतावली क्यों हो रही है। बताती हुँ। तेरे चूत की एक खास बात बताती हुँ, तेरी चूत से जो भी सन्तान पेदा होगा वह अगर लड़का हुया तो नागपंचमी होगा और अगर लड्की हूई तो महाघाटी होगी। हमारी शान्ती को ही देख ले। यह असल में खानदान और परिवार से आता है। तेरे माँ बाप एसे थे इस लिए तू भी एसी निकली। और तेरे बच्चे भी एसे निकले होंगे। आगे भी तेरे जितने बच्चे पेदा होंगे सब इसी तरह के होंगे। अगर यकीन ना आये तो रेखा की चूत भी देख लेना। मुझे पक्का बिश्वास है उसकी चूत के दाने के उपर तेरा जेसा तिल होंगा। और रघु का लण्ड भी भीमकाय होगा। क्योंकि तू ने उसे अपनी चूत से पेदा किया है। जो औरतें नागपंचमी होती हैं उनकी बहुत सारी खूबियाँ होती हैं। अभी सब कुछ मुझे याद नहीं।"


"दीदी, तुम जिस तरह से बता रही हो, मुझे समझ नहीं आ रहा है मुझे डरना चाहिए या खुश होना चाहिए?"


"अरी पगली यह तो सौभाग्य की बात है। डरने वाली क्यों होगी? पागल कहीं की?"


"अच्छा दीदी, मेरे बारे में तो बता दिया लेकिन तुम्हारी चूत किस प्रकार की है?"


"अच्छा, अब तुझे मेरे बारे में जानना है? चल बता देती हुँ, मेरी चूत आठवीं श्रेणी की है। इसे कहते हैं 'जननी' योनि। यानी की जो बुर बच्चे पेदा करते हुए थकती ना हो। अब समझी मैं इतने बच्चों की माँ केसे बन पाई हुँ। जिस तरह मेरी माहवारी चल रही है मैं आगे और बीस साल तक बच्चे पेदा कर सकती हुँ। और तुझे यह भी बता दूँ, महाघाटी योनि की एक बिशेष्ता यह भी है की वह बच्चे पेदा करते हुए फैलती नहीं। बच्चा निकालने के बाद तेरी चूत पहले जेसी फिर से सिकुड जायेगी। और इस प्रकार की औरतें काफी लम्बे समय तक सम्भोग कर सकती हैं। मेरी माँ बताया करती थी, एक साठ साल की महाघाटी औरत एक जवान लडके को चुदाई में मात दे सकती है। हाए मेरी राधा रानी तेरे दिन तो अब शुरु होने वाले हैं। तेरा नया पति जब तुझे चोदेगा तब तुझे एहसास होगा असली चुदाई किसी कहते हैं। समझी?"
 

Mass

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Babu bhai, thx for the update..Aise hi regular updates dete raho...jaldi hi aapki story kaa 1M views ho jaayega...All the best and look forward to the next update.
Thanks.
 
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