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Incest अनोखे संबंध ।।। (Completed)

Which role you like to see

  • Maa beta

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  • Baap beti

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  • Aunty bhatija

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  • Uncle bhatiji

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  • Total voters
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Nasn

Well-Known Member
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158
IS STORY KA UPDATE BAHUT JALD AANEWALA HAI.
UPDATE ALMOST READY HAI. LAGBHAG END TAK COMPLETE KAR LIYA HAI.
EH STORY END TAK LIKHNE KE BAAD POST KAR DUNGA.
THANK YOU GUYS. STAY SAFE, BE HAPPY.
भाई में तो हमेशा चेक करता हु

बाप बेटी चुदाई का तड़का

धन्यबाद आपका
 
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Reactions: imaamitrai

loveboy01

.....
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18
Dekhte hain kab tak pura karte ho,,,
Bhai tere story likhne ke skill bahut acche hain,, XForum ke unique writer ho,, lekin updates dene me 80 - 90 din se jyada ka vakt laga dete ho jo jyadatar short updates hi hote hain aur story pura hone me to kam se kam 3 saal lag jate hain.. So maharaj ji aapse request h, ab aap koi story na likhna..
 
Last edited:

Babulaskar

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जो कुछ अब तक हुआ है,,,,


राधा के दो बच्चे हैं, रघू और रेखा। हाल ही में राधा को पता चला उसका पति राकेश ने शहर में किसी लड्की को बीबी बनाकर रखा है। राधा ने राकेश से तलाक ले लिया।

वहीं राधा की सहेली कोमल ने अपने बेटे रामू ने बियाह कर लिया है।

गावँ के वातावरण में सबके दिल व दिमाग में प्यार का भूत सवार हो गया है। राधा और रेखा अभी भी कशमकश व दुविधा में फंसी हुई है। रघू अब राधा और रेखा को अपनी बीबी बनाने के लिए पागल बना फिर रहा है। वह कैसे इन्हें हासिल करेगा? जिस अंदाज से करेगा? किन परिस्थितयों में? यह जानने के लिए,,,इस पर कहानी का विस्तार किया गया है।

इस कहानी में गावँ के कुछ और पात्रों के बारे में बताया गया है। जिसे पढकर आप रोमांचित हो जायेंगे। लेकिन हमेशा की तरह सिर्फ एक पात्र और किरदार को मैन फोकस में रखा है। और वह है रघू। रघू के सामने राधा और रेखा। कहानी का आनन्द लें। और अपनी मूल्यवान कमेंट से उतसाह बढ़ाए। धन्यवाद।



Update 46

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राधा के पास शान्ती और कोमल बैठी थी। दोनों उसे समझा रही थी।


"देख राधा, इसमें अब शर्माने वाली क्या बात है! आखिर शादी के बाद रघु तेरा पति बन जाएगा। फिर तो तुझे उसी का कहना मानना पड़ेगा। और मेरी बात मान, इस फैसले से तू खुश हो जायेगी। तेरी बेटी का घर बस जाएगा। अपना ना सही रेखा के बारे में सोच।"


"शान्ती दीदी, मुझे एक साथ शादी करने में कोई आपत्ति नहीं है। जब मैं ने फैसला कर लिया है की मैं और रेखा रघु की बीबी बनेगें तो आज नहीं तो कल बनना तो पड़ेगा ही। लेकिन जरा सोचो, वह पागल बदमाश हम दोनों से एक साथ बियाह करना चाहता है। एक साथ अपनी बेटी के साथ कैसे फेरे ले सकती हूँ मैं! कैसे उसके हाथों मंगलसूत्र पहन सकती हूँ? बहुत बदमाश है रघु। जानबूझकर एसा कर रहा है। ताकी हमें मजबूर किया जा सके। और यह तो सोचो, वह हमारे साथ सुहागरात कैसे मनायेगा! क्या वह एक एक रात हम दोनों को देगा? पहले मेरे साथ रहेगा फिर रेखा के साथ?" राधा शर्माती हूई बोली। राधा की दुविधा बता रही थी उसे यह सब मंजूर है। लेकिन किसी अंजान भय से वह भाग रही थी।


"तो क्या तू शादी के लिए तैयार नहीं है? क्या तुझे रघु पसंद नहीं है?"


"अरे दीदी, मैं ने एसा कब कहा!"


"अरे दीदी, छोड़ो इस र्ंडी को, बड़ी शर्मीली बनने का नाटक कर रही है! तुम नहीं जानती यह मेरे से ज्यादा छिनाल है। बस अपने खानदानी नाम और इज्जत के मारे चुप बैठी है। इसका बस चले तो गावँ के सारे लौंडे से चुदवा ले। मैं तो चलती हूँ। अब यह जाने इसका काम जाने।" कोमल अपनी नाराजगी दिखाती है।


"अरे बैठ ना! तेरा घर तो बस गया है। अब तुझे फिक्र नहीं है। अब जरा इसके बारे में सोच। तू बता राधा, तू क्या चाहती है? तुझे रघु पसंद तो है ना! उसे पति मान पायेगी?" शान्ती पूछती है।


"दीदी तुम सब क्यों मुझ से बारबार पूछ रही हो? हाँ मुझे पसंद है। और बेहद पसंद है। तुम्हें सच बताती हूँ दीदी, और कोमल तू भी सुन ले, रघु मुझे बहुत पहले से पसंद है। मैं ने बहुत पहले से ठान रखा है, मैं अपनी दूसरी शादी उससे ही करूँगी।

जब रघु छोटा था, मेरी माँ मुझ से कहती थी, राधा तूने हमारी बात नहीं मानी। तूने अपनी पसंद के लडके से शादी कर ली। अगर तेरे पेट में बच्चा ना आया होता तो तेरे बाबूजी तेरी शादी राकेश से कभी ना करवाते। लेकिन अब हम क्या करे! तूने अनजाने में पेट में बच्चा ठहरा लिया है। लेकिन मेरी एक बात तुझे माननी पड़ेगी। जब तेरा बेटा रघु बडा होगा यही तेरा पति बनेगा। इसी से तुझे दोबारा शादी करनी पड़ेगी। हमारा रघु तेरा अपना खून है, इससे तुझे बहुत प्यार होगा।

सच कहती हूँ दीदी, मैं उसी दिन से रघु को अपने दिल में चाहने लगी थी। क्यौंकि मुझे यकीन था, एक दिन रघु को मुझे अपना पति स्वीकार करना पड़ेगा। मेरी माँ ने मेरा बहुत ध्यान रखा। माँ कहती थी, राधा, मैं ने और तेरे बाबूजी ने बहुत कोशिश की, तेरा एक भाई हो, हमने दूसरा बच्चा पाने के लिए बहुत मिन्ंतें की है। अगर हमारा कोई बेटा होता, जो तेरा भाई होता तो उसी के साथ तेरा बियाह करवाती। मेरा वह सपना तो पूरा नहीं हुआ, लेकिन रघु से शादी करने के बाद तेरे जो बच्चे होंगे उनकी शादी करवाना। हम नहीं चाहते हमारे खानदान में कोई दूसरा खून आ जाये। बस दीदी, मुझे रघु से ही शादी करनी है। मेरे दिल में बहुत अरमान है। मैं जीते जी यह बरदास्त नहीं कर सकती की रघु मुझे छोड़कर किसी और से शादी करे।" राधा चुप हुई। राधा अपने दिल की बात बता रही थी। उसका सच्चा प्यार रघू है, अब किसी को शक न रहा।


"रघु से तुझे इतना प्यार है! लेकिन कभी मुझे बताया नहीं तूने?"


"कैसे बताती पगली! यह बात भी बताने वाली है क्या!"


"नहीं राधा मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था, कुछ बातें मुझे याद है, मैं जब तेरे पास आती थी, कभी कभी देखती थी, काकी (राधा की माँ) रघु को अपनी गोद में लेकर उसके लौड़े पे तेल की मालिश करती है। एकबार मैं ने पूछा था, काकी क्या बात है, रघु को अभी से तगडा बनाना है क्या? काकी ने कहा था, तगडा तो यह बनेगा ही, आखिर हमारा खून है। लेकिन यह मालिश इस लिए कर रही हूँ ताकी मेरी बेटी आगे चलकर सूखी हो सके। देखना रघु का लौड़ा सबसे भीमकाय बनेगा। जितना मोटा उतना लम्बा भी। तुझे भी याद होगा यह सब?" कोमल कहती है।


"हाँ मुझे याद है। आखिर कैसे भूल सकती हूँ? माँ के मरने के बाद मैं ने उसे पाला पोसा है।"


"ओए-होए! तो यह बातें छिपाई जा रही थी! अपने हाथों से अपने हथियार को तैयार करना? फिर मेरी र्ंडी रानी इतनी लाज शर्म किस बात के लिए है? बनना तो तुझे उसकी बीबी है ही! फिर अपनी बेटी संग बने या उसके बिना क्या फर्क पडता है?" शान्ती उसे चिडाते हुई बोली।


"दीदी, मैं ने कब मना किया है! मैं तो कब से उस पल का इन्तज़ार कर रही हूँ जब रघु मेरी माँग भरेगा। मेरे गले में मंगलसूत्र पहनायेगा। मैं उसे पति स्वीकार करूँगी। लेकिन दीदी, शुरु शुरु में लाज शरम हर औरत को आती है। इस कोमल से ही पूछ लो। शादी से पहले रामू किस तरह इससे चिपका रहता था। फिर भी सुहागरात में छेद में अपने बेटे का लण्ड लेने में कितनी शर्मा रही थी। कोमल बता ना! क्या मैं झूट बोल रही हूँ?" राधा पूछने लगती है।


"नहीं दीदी, राधा सच कह रही है। जो भी हो, शादी के पहले पहले शरम तो भरपूर आती है। तुम खुद याद करके देखो। रामू की बीबी होने के लिए मैं दिन रात तरसती थी। सपने देखती थी। किस तरह से वह मुझे बीबी मान पायेगा? मैं किस तरह से उसे पति का मान दे पाऊंगी। और जब सुहागरात में मैं उसकी बीबी बनकर खाट पर बैठी उसका इन्तज़ार करने लगी, दीदी क्या बताऊँ, अपनी पहली चुदाई वाले दिन में भी मुझे इत्नी शर्म नहीं आई, जितनी तब आने लगी थी। हाथ पैर मेरे सुन पड गए थे। चूत से लगातार रस टपका जा रहा था। और फिर जब रामू मेरे ऊपर चडकर मुझे चोदने लगा, दीदी लाज शरम के मारे उसकी तरफ देख भी नहीं पा रही थी। पूरे शरीर में बिजली चमकने लगी थी। उसी हाल में वह मुझे चोद्ता गया। और मैं एक के बाद एक पानी छोड्ती गई। मुझे इतना मजा अपनी पहली शादी में भी नहीं आया था।" कोमल मानो उसी रात को जीने लगी थी।


"हाँ हाँ सब पता है मुझे। जितनी ज्यादा शरम उतना ज्यादा मजा। मैं भला कैसे भूल सकती हूँ। जिस सुराख से हम उन्हें जनम दे, उसी सुराख में अगर वह लौड़ा भरने लग जाये, चेहरे के सामने आकर चोदने लगे, बड़ी शर्म आती है। लेकिन कोमल, यह बात तो है, इस चुदाई में इतना सुख छुपा हुआ है, अपने पति संग भी वह सुख कभी मिला नहीं होगा। मैं इसी लिए राधा को कह रही हूँ तू राजी हो जा। तुझे शर्म आयेगी। बिलकुल आयेगी। लेकिन जरा सोच उसी शरम में रघु तुझे चोद्ता जाएगा। तू मजे में पागल हो जायेगी। तेरी सुहागरात सफल होगी पगली।"


"दीदी गुस्सा मत करो। मैं करना चाहती हूँ ना! दीदी, मैं सोच रही थी, हम दोनों रघु से एक साथ बियाह कर लेंगे। इससे रघु की इच्छा भी पूरी हो जायेगी। लेकिन रघु हम दोनों माँ बेटी के साथ अलग अलग कमरे में सुहागरात मनाये। फिर अच्छा होगा। मैं बड़ी बीबी होने के नाते रघू मेरे पास पहले आयेगा। उसके बाद रेखा के पास चला जाएगा। तुम क्या कहती हो?" राधा एक सुझाव देती है।


"मतलब तू चाहती है शादी एक साथ लेकिन सुहागरात अलग अलग कमरे में हो?" कोमल पूछती है।


"हाँ, इससे रघु की जिद भी पूरी हो जायेगी। और मैं भी अपने पति के सामने खुलकर सामने आ पाऊंगी।"


"देख राधा एसा सपना देखना तू भूल ही जा। रघु से मेरी बात हुई है। उसने मुझे सीधा सीधा कहा है, वह तेरे साथ और रेखा के साथ एक ही कमरे में सुहागरात मनायेगा। और साथ में उसने यह भी कहा है, तू छोटी बीबी कहलायेगी। और रेखा बड़ी बीबी कहलायेगी! समझी मेरी बात? अब यह तेरे ऊपर है। शादी तुझे रघु से ही करनी है। इस लिए कह रही हूँ रघु जैसा कहता है मान ले। आगे चलकर तुझे उसी का घर सम्भालना है। उसका बच्चा पालना है। अभी से उसकी बात मान कर चलेगी तो रघु तुझ से ज्यादा प्यार करेगा। नहीं तो तेरे और रेखा के बीच में अनबन होने लगेगी।"

कोमल की बात से राधा का मुहं इतना सा हो जाता है। उसके सामने अब कोई चारा नहीं है। रघु के जिद के आगे दोनों माँ बेटी को हार माननी पड़ेगी।

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Babulaskar

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Update 47

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ताकत का स्रोत, चार मायेँ

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रघु मस्त मन से गावँ के मंदिर में जा रहा था। मंदिर का छोटा पुजारी देवा उसका जिगरी यार था। रघु की समस्या एकमात्र उसका दोस्त देवा ही समाधान कर सकता है। पार्वती मौसी का बडा बेटा देवा अब अपने बाबूजी पंडित जी के सारे काम देखता है। उनकी अनुपस्थिति में देवा सारी जिम्मेदारी भी निभाता है।

मंदिर के सामने जाते ही देवा उसे मिल गया। रघु ने देवा को सारी बात बताई। रघु का प्रस्ताव सुनकर देवा उत्तेजना में उछल पड़ा।


"यार तू तो बडा सियाना निकला रे। आखिर मना ही लिया तूने। अब तो तुझे अपनी मशीन की ताकत बढानी होगी। सम्भाल पायेगा मेरा दोस्त, दो दो बिबियों को?" देवा उसके गले मिलके कहता है।


"एकबार बन तो जाये, फिर देखना देवा, मेरी बिबियों चीख पुकार तुझे यहां से सुनने को मिलेगी। और रही बात मेरे मशीन की ताकत की। मेरा दोस्त है ना!"

"अच्छा, यह बात है। चल घर पे चलते हैं। अम्मा सुनेगी तो बहुत खुश होगी।"


"हाँ, मौसी को निवता भी देना है।"


रघु मंदिर के कुछ पास बने देवा और पार्वती मौसी के घर पे आ गया। पार्वती उसे देखकर बहुत खुश हुई।


"अम्मा मेरे दोस्त ने क्या किया है जरा सुनो। एक ही मंडप पे राधा मौसी और रेखा से बियाह करने जा रहा है।" देवा अपनी माँ पार्वती को सुनाने लगता है। रघु घर के आँगन में बैठ गया। पार्वती वहीं बाहर बैठकर अपने छोटे बच्चे को गोद में लेकर दुध पिला रही थी। उन्हें देखकर पार्वती ने अपनी साड़ी से दूध छिपा लिया।


"सच में रघु? तेरी माँ राधा मान गई?" पार्वती उछलती हुई बोली।


"क्यों नहीं मानेगी अम्मा? मौसी को मानना ही पड़ा। रघु मुझे शादी करवाने को कह रहा है।"


"हाँ तेरे सिवा अब कौन इसकी मदद कर सकता है? अच्छा हुआ तूने पंडित जी से कहा नहीं। पण्डित जी सुनकर नाराज होते। वह एक ही मंडप पे दो औरतों की शादी नहीं करवाते। बड़ी शर्म व लाज की बात है। हाँ री देवा, तू कर तो लेगा ना!"


"अम्मा क्या बोलती हो, कर लूँगा मैं। पिछ्ले महीने ही तो सरपंज के घर में शादी करवाई। एक मंडप में दो दो बिबियों के साथ शादी। तुम्हारे लिये जो खुबसूरत साड़ी लाया था, उन्होने ही दिया था। लेकिन माँ, असल बात वह नहीं है। रघु बता ना! अम्मा इससे सुनो।" देवा आंख्ँ नचाते हुए रघु से पूछने लगा।


"तू चुप कर। मैं सब जानती हूँ। तू बता रघु, राधा एक साथ सुहागरात मनाने के लिए राजी हो गई क्या?" पार्वती के चेहरे पे मुस्कुराहट थी।


"हाँ मौसी, मान गई।"


"तुम्हें पता था? लेकिन कैसे?"


"अरे बुद्धू! मैं तेरी माँ हूँ। समझा? तुझे मैं ने जनम दिया है। सब समझती हूँ मैं। वैसे रघु यह अच्छा हुआ, अगर तेरी अम्मा राजी नहीं होती तो तेरे लिए बुरा होता। जिसके साथ शादी होती है उसके साथ उसी रात को सुहागरात मनाना अच्छा होता है। अगर दोनों से अलग अलग कमरे में सुहागरात मनाता तो यह अपशगुन होता। राधा ने मजबूरी में सही, लेकिन राजी होकर अच्छा किया है।"


"चल दोस्त कोई बात नहीं। मैं तेरे लिए बहुत खुश हूँ। आखिर तुझे तेरी जीवनस्ंगिनी मिल गई। हर किसी का भाग्य एसा नहीं होता। तुझे एक नहीं दो दो मिल रही है। मुझे तो एक भी नहीं मिल रही।" देवा थोड़ा मायुसी का नाटक करता है। देवा की बात का तात्पर्य रघु और पार्वती दोनों समझ जाते हैं। रघु पार्वती की तरफ और पार्वती देवा और रघु की तरफ देखने लगी।


"मौसी देवा सही कह रहा है। मुझे मेरी माँ पत्नी के रूप में मिल गई। रामू ने भी अपनी माँ को बीबी के तौर पर हासिल कर लिया। आप तो जानती है हम तीन दोस्त हमेशा साथ साथ रहते आये हैं। आप भी अगर राजी हो जाओ, यह बेचारा भी शादी करके अपना परिवार शुरु कर सकता है।" रघु पार्वती से कहता है।


"तेरे दोस्त का दिमाग खराब हो गया है। जो मेरे पीछे पड़ा है। अगर इसे शादी करने की इतनी पड़ी है तो करे ना! हम ने कब मना किया है? वह सरपंच की छोटी बेटी, वह लोग चाहते हैं उसका विवाह इससे हो जाये। लेकिन यह करे तब ना!"


"लेकिन मौसी देवा तो तुम्हें चाहता है।"


"मैं सब समझती हूँ रघु। लेकिन तू खुद सोच जरा, मैं अभी पंडित जी की धर्मपत्नी हूँ। मैं किस तरह से इससे बियाह कर सकती हूँ? और तू खुद बता, मैं खुद जाकर पंडित जी से कहुँ? तुम मुझे छोड़ दो। एक पत्नी होकर मैं यह कह सकती हूँ क्या?"


"तो इसका क्या होगा फिर मौसी! क्या आप कभी भी इससे शादी नहीं करोगी क्या?"


"मैं ने एसा तो नहीं कहा ना? देख हर काम का एक समय होता है। अगर इसका बाप मुझे छोड़ेगा नहीं फिर मैं कैसे इससे विवाह कर सकती हूँ? क्या मैं दो दो पति लेकर पत्नी धर्म निभाऊँ!" पार्वती की बात पर देवा के मुहं से हंसी निकल गई।


"मुझे इससे भी कोई आपत्ति नहीं है। तुम राजी तो हो जाओ।"


"दुर! मैं नहीं एसा करती। इसमें बड़ी परेशानिया होती है। दो दो पति को सम्भालना कोई बच्चों का खेल नहीं। और तो और मेरे बच्चे का बाप कौन कहलाएगा? तू या तेरा बाप? रघु तू ही बता, क्या यह सम्भव है?" रघु को लगा शायद मौसी इस प्रस्ताव से भी राजी है। बस शर्मा रही है।


"हाँ मौसी, सम्भव तो नहीं है। लेकिन आप क्या चाहती हो? देवा की शादी की उम्र हो गई है। अब नहीं तो कब होगी। आप की उम्र भी बढ़ती जा रही है। आगे के बारे में भी सोचना होगा।"


"अब तू ही बता रघु, क्या मैं खुद जाके पंडित जी को कह सकती हूँ क्या? और यह बदमाश रात दिन मुझे परेशान कर रहा है। अब तो इसकी बहन भी मुझे सताने लगी है। हमेशा बोलती रहती है, अम्मा तुम भईया की बीबी बन जाओ ना! मैं तुम्हें भाभी बुलाया करूँगी। और यह घर में आते ही मुझे पकड़ लेता है। किसी दिन अगर पण्डित जी ने देख लिया ना, बडा गुस्सा होगा।"


"कुछ करो फिर मौसी! आप को ही कुछ करना पड़ेगा।"


"तुम दोनों को अब कैसे समझाऊँ! देख देवा, शादी मैं करूँगी। और तेरे से ही करूँगी। लेकिन जरा अपने बाबूजी के बारे में सोचकर देख। उनके बारे में भी तुझे सोचना चाहिए। वैसे मुझे लगता है, पंडित जी कुछ ना कुछ जरुर करेंगे। उनके गुरुदेव बहुत बीमार हैं। उन्होने ने पंडित जी को अपने पास बुलाया है। गुरुदेव की एक बिधवा कमसिन लड्की है। यही कोई अट्ठारह बीस की उम्र होगी। अपने एक शिष्य के साथ उसका विवाह कराया था। बेचारी शादी के चार महीने में बिधवा हो गई। गुरुदेव उसके साथ पंडित जी का विवाह देना चाहते हैं। पंडित जी एक दो महीने में वहीं जाने वाले हैं। गुरुदेव जी अपनी जिम्मेदारी उन्हे सौंपना चाहते हैं। इस लिए मैं ने सोच रखा है। जब वह जायेंगे तब मैं उनसे तलाक ले लुंगी। अब जो भी हो है तो मेरे पति। इस लिए फिलहाल तुझे दो तीन महीना और इन्तज़ार करना पडेगा। और इसी बीच मैं भी थोडी स्वस्त हो जाऊंगी।" पार्वती आखिरकार अपने मन की परिस्तिथि समझाती है।


"यह बात तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं बताई? लेकिन,,,क्या तुम बीमार हो?" देवा थोड़ा बिचलित होता है।


"अरे नहीं रे बाबा। बीमार नहीं हुँ। यह औरतों वालीं कमजोरी होती हैं। तुझे नहीं मालुम। रघु तू भी अब दो बीबी का पति बनने वाला है। इस लिए तुझे भी समझा रही हूँ। अपनी बिबियों को थोड़ा समय देना। यह जवान लडके बड़े उतावले होते हैं। पंडित जी ने मुझे सात बच्चों की माँ बनाया है। यह देवा भी क्या मुझे छोड़ देगा? यह भी अपने बाप जैसा है। अभी तीन ही महीना हुआ है मैं ने एक बच्चे को जनम दिया है। इस लिए फिर से माँ बनने के लिए मैं थोडी तंदुरुस्त होना चाहती हूँ।"

अपनी माँ पार्वती की बात सुनकर देवा के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई। जिसे पार्वती ने देखकर अपनी सहमति जताई।


"फिर तो ठीक है मेरी माताश्री! आप जैसा कहेंगे आप का यह बालक वही करेगा।" देवा के मजाक पे पार्वती और रघु दोनों मुस्कुरा देते हैं।


"ओ मैं तो भूल ही गयी थी। तेरी बहन लक्ष्मी शान्ती के पास गई थी। काफी देर हो गई है। जरा उसे लेकर आ जा।" अपनी माँ के कहने पर देवा रघु को घर पे अपनी माँ के पास छोडकर लक्ष्मी को लाने चला गया।


पार्वती अभी अपने बच्चे को दूध पिला रही थी। और यह सब उसकी साड़ी के नीचे हो रहा था। बच्चे ने दूध पी लिया था। इस लिए पार्वती अपनी ब्लाऊज ठीक करने लगती है। लेकिन उसके ठीक करने के चक्कर में उसके दूध से भरी मम्मियाँ रघु जैसे जवान लौंडे के सामने खुल गई। रघु आंखें फाड़के उसी को देखने लगा।


"बहुत बदमाश है तू! अभी भी तेरी आदत छूती नहीं। मेरे दूध पर हमेशा तेरी नजर रहती है।" पार्वती उठने लगती है।


"क्या करुँ मौसी! यह दोनों है ही इतने सुन्दर! जरा सा देखकर ही दिल खुश हो गया। तुम्हारे दूध कितने बड़े बड़े हैं, मेरी माँ के तुम से छोटे हैं।" रघु अपने दिल की बात कहता है।


"तेरी माँ के छोटे छोटे होंगे ही। सिर्फ तुम दो भाई बहन ने राधा की छाती से दूध पिया है। अगर मेरी तरह तेरी माँ भी किसी और दूसरे के बच्चों को दूध पिलाती फिर तेरी माँ के दूध भी बड़े बड़े हो जाते मेरी तरह। औरत का दूध खुद का बच्चा दूध पीने से बडा नहीं होता। जब कोई दूसरा बच्चा उससे दूध पीता है, तब बडा हो जाता है। दूसरे का बच्चा मतलब पराया मर्द। जब किसी पराये मर्द का मुहं दूध पे पडता है, दूध का आकार बड़ जाता है। समझा!" पार्वती अपने बच्चे को सुला चुकी थी। उसने बच्चे को झूले में लिटा दिया। और खुद रघु के पास आकर बैठ गई।


"तो आपने अपने बच्चों के अलावा और किसी को दूध पिलाया था। कौन है वह!" रघु के मन में एक नशा सवार होने लगा था। क्या पता वह नशा पार्वती के मन में भी जाग चुका होगा। पार्वती एक घर ग्रहस्थी करने वाली औरत थी। वह हमेशा अच्छे भले कपड़े और सिंगार करके रहती आई है। माँग में बड़ी सिन्दूर। नाक में नथनी। पैर पर मोटे मोटे पायल। काजल भरी आंखें, मोटे मोटे रसिले लाल रंग से भरे होंट। उसका यह सिंगार किसी भी जवान लडके के दिल में आग और कामवासना जगाने के लिए काफी था। रघु और पार्वती एक दूसरे को ही ताड़ रहे थे।


"वही जो मेरे सामने बैठा है। बदमाश तू ने! तूने पिया है मेरा दूध। इसी वज़ह से यह इतने बड़े बड़े हो गए हैं।" पार्वती अपनी मस्ती में बोलने लगी। उसकी आवाज में नाराजगी नहीं, बहकाव था। जो सामने वाले को निवता दे रहा था।


"मैं ने! मैं ने तुम्हारा दूध पिया है। लेकिन मुझे तो याद ही नहीं है। ना ही माँ ने कभी कहा है। क्या यह सच है!" रघु थोड़ा उत्सुक था। धोती में छुपा उसका महालण्ड पार्वती की बात सुनकर झटका मारने लगा।


"यह बात भी कोई बताता है क्या! मेरे बेटे के साथ साथ तूने भी मेरा दूध भर भर के पिया है। तब तू छोटा सा था। मेरी लक्ष्मी दो साल की हो गई थी। उधर तेरी बहन भी छोटी सी थी। मैं राधा के पास और राधा मेरे पास आती जाती रहती थी। तेरी बहन ने दो साल में ही तेरी माँ का दूध छोड़ दिया था। लेकिन तू! तूने उसके बाद भी कई साल तक अपनी माँ का दूध पिया है। एक दिन मैं बैठी थी राधा के पास। तेरी माँ को मैं ने कई बार कहा, राधा अब इसकी आदत छुडवा दे। आखिर कित्ने दिन तक तू इसे अपना दूध पिलाती रहेगी?

तेरी माँ ने कहा, अरे दीदी, बडा जिद करता है। कितनी बार कोशिश की, लेकिन इसकी जिद के आगे मुझे इसके मुहं में दूध ठुसना ही पडता है।

कुछ देर तूने अपनी माँ का दूध पिया। फिर अचानक मेरे पास आ गया। मेरे से कहने लगा, मौसी मुझे दूध पिलाओ ना! मुझे दूध पीना बहुत अच्छा लगता है। मैं तेरी माँ को देखने लगी। मेरी गोद में उस वक्त मेरी दूसरी बेटी थी। उसे मैं दूध पिला रही थी। हर साल बच्चा होने के कारन मेरी छाती में भर भर के दूध आता था। मेरा बच्चा पेट भरकर पीने के बाद भी मेरा दूध बच जाता। राधा ने कहा, पिला दे थोड़ा सा।

मैं ने सोचा चलो बच्चा है, जिद कर रहा है, पिला दूँ थोड़ा सा। बस वही मेरी भूल थी।" पार्वती के बोलने के बीच रघु उसे रोक देता है।


"एसा क्यों बोल रही हो मौसी! क्या मैं ने कोई बदमाशी की!" रघु की नजर पार्वती के चेहरे के साथ साथ उसके दूध के ऊपर मंडला रही थी। क्योंकी उसी की बात चल रही है।


"नहीं! तू तो बिलकुल नादान बच्चा है? तुझे कुछ याद हो तब ना! तू सिर्फ दूध कहाँ पीता था! दूध पीने के समय तेरे आगे पूरी ब्लाऊज खोलकर बैठना पडता था। एक हाथ से एक दूध दबाता रहता और दूसरा दूध पीता रहता। और उस दिन के बाद से जब भी मुझे देखता मेरी गोदी में भागकर आके समा जाता। 'मौसी मुझे दूध दे दो। दूध दे दो। बडा सीधा सादा बच्चा है ना तू! और एक बात सुन ले, इस गावँ में सिर्फ तू ही एक एसा बच्चा है, जिसने सबसे ज्यादा औरतों का दूध पी रखा है।"


"क्या बात करती हो मौसी! मैं ने और वह भी औरतों का दूध पिया है। कौन हैं वह! बताओ मौसी!"


"सब भूल गया तू। मैं बता देती हूँ, तूने कोमल का दूध पिया है। कल्लो ने तुझे दूध पिलाया है। और हाँ शान्ती को भी तूने छोड़ा नहीं। उसका दूध भी तूने पी रखा है। अब समझा! तेरी एक माँ नहीं है। तेरी चार चार मायेँ हैं। और देख, आज भी तेरी आदत छूती नहीं है। बराबर वहीं तेरी नजर जा रही है।"


"अब क्या करुँ मौसी! बचपन की आदत छूटने से भी छूटती नहीं। मेरी माँ को देख लो, उनका दूध सूखा पड़ा है, और तुम आज भी दूध देती जा रही हो। औरत की मम्मियाँ बिना दूध के अच्छा नहीं लगता। काश तुम्हारी सहेली के थनों में दूध होता। सच बताऊँ मौसी! मुझे सच में दूध चूसने का बडा मन करता है। लेकिन किसी को एसे थोडी ना कह सकता हूँ, मुझे दूध पीना है। काश किसी का दूध चूसने को मिल जाता!" रघु की आंखों में वासना सवार हो चुकी थी। रघु असल में क्या चाहता है, यह बात पार्वती बखूबी समझ रही थी।


"तो पहले सोचना चाहिए था ना! अगर तू शादी से पहले ही राधा को गर्भवती कर देता, फिर आज उसके थनों में भी दूध रहता। फिर तुझे अफ़सोस करने की जरूरत नहीं होती। अब तुझे खुद मेहनत करके राधा के थनों में दूध लाना होगा। कर पायेगा? अपनी माँ को पेट से कर भी पायेगा!" पार्वती एक छिनाल की तरह हंसती हुई बोली।


"हाँ मौसी, दूध पीने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। तुम देख लेना मौसी मैं इतनी मेहनत करूँगा ताकी मुझे दूध की कमी मह्सूस ना हो। मेरी दो बीबियाँ हैं। हर समय किसी एक के पेट में बच्चा डालता रहूँगा। पर मौसी मुझे एक साल तक इन्तज़ार करना पडेगा। काश मुझे अभी दूध पीने को मिल जाता।" रघु एक शयतानी हंसी लाकर कहा।


"सब समझती हूँ मैं। तेरे जैसे सात बच्चों को अपने पेट में जनम दिया है। बदमाश कहीँ का! घूम फिरके मेरे ही दूध के ऊपर नजर टिकी है तेरी। अब क्या करुँ! बचपन की जिद अभी तक गई नहीं तेरी। देवा और लक्ष्मी किसी भी समय आ सकते हैं। फंसा दिया तूने मुझे? तुझे पीना ही है क्या? कल तो वैसे भी पीने वाला है।" पार्वती चाहती तो है, पर किसी वज़ह से शर्मा रही थी। रघु की नजर में नजर गडाये वह बेबस होती जाने लगी।


"बहुत मन कर रहा है मौसी। अभी अभी तुम मुन्ने को दूध पिला रही थी। मैं ने तुम्हारी दूध जैसी सफेद मम्मियाँ देख ली है। चखा दो ना मौसी! भगवान करे तुम्हारे ढेर सारे बच्चे हों। मैं भी तो तुम्हारा बच्चा हूँ। तुम्हारा दूध पी रखा है। उस पर तो मेरा भी अधिकार होना चाहिए जो देवा का है।" रघु के माथे पे कामवासना का खून सवार हो गया है। उसे किसी भी हाल में पार्वती का सफेद दूध चखना है।


"अब मैं क्या करुँ! देवा को अगर पता चला, बेचारा बहुत नाराज होगा। आ जा, कमरे में चलते हैं। किसी भी समय कोई आ सकता है। तेरे पास बस थोड़ा सा समय है। देवा के आने से पहले चूस्के चले जाना।" पार्वती के पीछे पीछे रघु भी कमरे में जाता है।

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"ले, बिस्तर पे लेट जा। मैं तेरे ऊपर झुककर दूध निकाल देती हूँ।" एसा ही हुआ। रघु बिना कुछ कहे बिस्तर पे लेट गया। पार्वती उसके पास आकर अपना ब्लाऊज खोलती है। ब्लाऊज खोलते ही पार्वती के बड़े बड़े गोल सुडौल सफेदी से भरे थन रघु के मुहं के सामने उमड पडे। दूध के बीच व बीच में काला बडा घेरा देखकर रघु नशे में मस्त हो गया। उसने लप से पार्वती का दूध मुहं में भर लिया।


"आह्ह, पागल लडके! दूध के मारे कितना बेचैन हो गया रे तू!" जवान लडके का स्पर्श मिलते ही पार्वती का शरीर आग छोड़ने लगा।


"एसा दूध देखकर कोई भी बेचैन हो सकता है मौसी। तुम्हारे थनों में कितना दूध भरा है। जी कर रहा है सारा दूध पी लूँ।" रघु मुहं के अन्दर दूध दबाते हुए कहता गया।


"आज जल्दी कर ले। किसी और दिन जी भरकर पिला दूँगी। आह्ह हाए कितने जोर जोर से दूध खींच रहा है पागल। हाए, एसा मत कर। मैं बेबस हो जाऊंगी।" पार्वती थोडी और नीचे झुक जाती है।


"तो क्या हुआ? मैं हुँ ना! मैं तुम्हारी अच्छी तरह से सेवा कर दूँगा।" रघु बस तेज धार से दूध की नालियाँ अपने मुहं में खींच रहा था।


"नहीं नहीं। मैं तुझ से चुदवा नहीं सकती। कल तेरी शादी है। शादी से पहले पराई औरत को चोद्ना अपशगुन होता है। और वैसे भी मैं पति के बिना किसी और से आज तक नहीं चुदवाई। जिससे मेरा बियाह होगा वही मेरी चूत मारा करेगा। तेरा दोस्त देवा इसी मारे तो मेरे पीछे पड़ा है। उसे पता है मैं एसे उससे नहीं चुदवाऊँगी। अब जल्दी कर। देवा आता ही होगा।"


"रुको ना मौसी थोडी देर और चूसने दो। मेरा लौड़ा देखो। तुम्हारा दूध चूस्के इसका क्या हाल हुआ है।" रघु धोती के ऊपर से ही अपने मोटे लण्ड को मसल लेता है। पार्वती मस्ती में आकर लौड़े को छूते ही उसका रोम रोम कांप उठा। उसे लगा अनजाने में उसने किसी अजगर सांप को पकड़ लिया है।


"हे भगवान यह क्या है! तेरा लौड़ा! इतना मोटा! दिखा जरा इसे। भगवान तेरा भला करे, एसा भी होता है क्या!" पार्वती रघु का लौड़ा देखने के लिए झूम उठी। रघु अपनी धोती सरका देता है। उसका अजगर जैसा मोटा लम्बा और काला लण्ड किसी महा सांप की तरह फनफना रहा था। लौड़े का सिरा बेंगन जैसा कुछ ज्यादा ही मोटा था। पार्वती अपने कांपते हाथो से रघु का लौड़ा पकड्ती है। चूल्हे की जलती लकडी की तरह उसकी गर्माहट महसूस हो रही थी।


"हाए, रघु तेरा लौड़ा इतना मोटा है? और यह कितना लम्बा है। मैं ने सोचा था तेरा लण्ड जरुर बडा होगा, लेकिन तेरा लौड़ा इस कदर बडा होगा यह नहीं सोचा था।" पार्वती लौड़े को देखते हुए उसे सहलाने लगी। मुठ मारने जैसा उपर नीचे करने लगी। रघु पहले से मस्ती में था ही। अब पार्वती के एसा करने पर लौड़ा और अकडने लगा। लोहे का सरिया जैसा लौड़ा तन गया।


"इसके लिए बडा परेशान हूँ मौसी। सोचता हूँ क्या पता रेखा की चूत में घुसेगा या नहीं!" रघु को बडा मजा आने लगा।


"अरे सब चला जाएगा। राधा क्या रेखा की चूत भी फाड्ता हुआ यह लौड़ा अन्दर तक समा जाएगा। तेरा लौड़ा एसा होना ही था। आखिर चार औरतों का दूध पी रखा है तूने। उसका असर तेरे लौड़े पे आया है। हाए तेरा यह भीमकाय लण्ड देखकर मेरी चूत पनपना गई। आह्ह्ह, काश तुझ से चुदवा लेती। लेकिन मैं मजबूर हूँ। चाह कर भी तुझ से चुदवा नहीं पाऊँगी।" पार्वती की आंखों में चुदाई नशा सर चड गया था।


"बडा मजा आता मौसी! तुम्हें चोद्ना इस गावँ में सभी लड़कों का सपना है। काश तुम्हारी चूत में मैं लौड़ा घुसा सकता।" रघु एक हाथ से पार्वती के दूध को पकड़के दबाने लगा।


"तेरा यह लौड़ा देखने के बाद तुझ से मुझे एक बार सही चुदवाना ही पडेगा। मुझे तेरा बच्चा चाहिए। मैं तेरे एक बच्चे की माँ जरुर बनूँगी। चाहे उसके लिए मुझे तेरे से शादी करनी पडे। करेगा मुझ से शादी? बता रघु बनाएगा मुझे अपनी बीबी?" पार्वती के हावभव से रघु को बिलकुल नहीं लगा मौसी उससे मजाक कर सकती है। रघु मन ही मन बडा उछलता है।


"क्या? तुम सच कह रही हो? मौसी? तुम मुझ से शादी करोगी? पर देवा? उसका क्या? क्या वह,,,," रघु पूछने लगता है।


"नहीं रे, वह कुछ नहीं कहेगा। मैं यूँही तेरे से चुदवा नहीं सकती। मैं एक पतिब्रता नारी हूँ। मैं अपने पति के अलावा किसी पराये मर्द से सम्भोग नहीं कर सकती। लेकिन तेरा बच्चा लेने के लिए मुझे तेरे से बियाह करना पडेगा। इसी लिए कह रही हूँ। मैं ने सोच लिया है, पंडित जी से मैं तलाक ले लुंगी। जब वह मुझे छोडकर चले जायेंगे, मैं तेरे से बियाह करूँगी। तेरी बीबी बनकर एक महीना रहूँगी। फिर जब मेरे पेट में तेरा बच्चा ठहर जाएगा। मैं देवा से बियाह कर लुंगी। तेरे बच्चे को जनम देने के बाद देवा बाप बनेगा। लेकिन तेरे बच्चे को मैं तेरा ही नाम दूँगी। तू ही उसका बाप कहलाएगा। क्या कहता है, करेगा मुझ से बियाह? मुझे अपनी बीबी बनाएगा? मेरे पेट में बच्चा देगा ना?" पार्वती मस्ती और खुमार में बोलती गई।


"हाँ हाँ मौसी, मैं जरुर तुम से शादी करूँगा। अगर मेरा बच्चा लेने के लिए तुम इतनी उतावली हो तो जरुर मैं तुम्हें अपनी बीबी बनाऊँगा मौसी। एक महीना तक चोद चोद्के तुम्हारे पेट में बच्चा डाल दूँगा। लेकिन मौसी! तुम एसा क्यों चाहती हो! क्या कोई खास वजह है।?"


"वह बाद में तुझे बताऊंगी। काफी देर हो गई रे। अब तू जा यहां से। लक्ष्मी आने वाली होगी। वह बड़ी समझदार है। तुझे देखकर फौरन समझ जायेगी उसकी माँ ने तेरे साथ जरुर कुछ किया है। तू जा रघु।"


रघु बेचारा किसी तरह से अपना कपडा ठीक करके बाहर आया। पार्वती भी अपने आप को दुरस्त करने लगी।


"मौसी एक बात तो भूल ही गया था। शादी में आप को जरुर आना है।"


"बिलकुल आऊँगी। आखिर मेरी सहेली की शादी है। और तू मेरे बेटे का दोस्त है। वैसे शादी कब है?"


"मौसी कल शाम को?"


"इतनी जल्दी! एक दो हफ्ते में और थोडी तैयारी करके करता!"


"नहीं मौसी। सारी तैयारी पहले से हो चुकी है। गहने जेवरात कपड़े वगेरह सब मैं ने खरीद रखे थे। और फिर मुझे भी तो दुध से भरी मम्मियाँ चाहिए। अब आप हर रोज बुलाकर कहाँ पिलाती रहोगी! देवा को तो मिल भी जायेगी। मुझे साल भर इन्तज़ार करना पडेगा।" रघु हँसता हुआ बोलता है।



"इतना पीने के बाद भी तेरा मन नहीं भरा। किसी और समय आना, और अच्छे से पिला दूँगी। और हाँ अगर मौका मिले तो अपनी माँ को जरा मेरे पास भेजना। आज ही।"

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Babulaskar

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Dekhte hain kab tak pura karte ho,,,
Bhai tere story likhne ke skill bahut acche hain,, XForum ke unique writer ho,, lekin updates dene me 80 - 90 din se jyada ka vakt laga dete ho jo jyadatar short updates hi hote hain aur story pura hone me to kam se kam 3 saal lag jate hain.. So maharaj ji aapse request h, ab aap koi story na likhna..
Aap ka comment bata raha hai, aap meri kahani ke bade fan hain.
Main bhi akhir kya kar sakta hun, hum sab log samajik hain, ham sab kaam hai. Ab har samay story nehi likha jata. Isi liye jis time mujhe kaam se off milta hai main likh leta hoon.
Main ne sirf 3 stories post ki hai,
Aur eh story lagbhag end hai, is liye ise the end karna chahta hoon. Iske baad dusre pe dhyan dunga.
Waise dekha jaye to xforum me 90% story adhuri hai, kya aap unhe bhi aisa kehte hai?
 
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Badhiya bhai...der aaye par durust aaye :)
hope agla update bhi jaldi hi milega..thanks. Intezaar mein...
 

Babulaskar

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Yes absolutely bro,,, Ham aapke fan hain,,, bhai unique writer hone ke nate aapke fans ko bhi khush rakhne ki koshish karo..
Ha bhai I totally agree with u personal works is more important than anything else..
Bro tere do stories itne bha gaye hain ki 4-5 din me ek baar read karta hu ( unique relationship & Finding love in the dark ) iss story ke bahut saare scenes cutting kare h aapne,,, So plz bhai Raghu n radha ki suhagraat ke kam se kam 3 updates dena sexy conversation ke sath...
XForum ke 10-15 stories hi aise hain jo mujhe behad pasand hain,,, Isme jo complete nhi h unhe bhi aisa kahte hain.. Hamara intent aapko hurt karne ka nhi tha maaf karna bhai.. Thanks Bro
Thanks bro for your regards!
Main dusre writer ki tarh ekdum se likh nehi pata. Mujhe kaafi kuch karna padta hai. Aur isi liye update aane me late ho jata hai. I m really sorry about that. But main ne kuch updates already create kar lia hai, so don't worry. I hope it will be end soon.
And one thing, you said, you like 10-15 stories. Do you suggest me those stories! I really want to read. Janna chahta hoon, aisi koinsi story mujh se chut gai hai.
 
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Main dusre writer ki tarh ekdum se likh nehi pata. Mujhe kaafi kuch karna padta hai. Aur isi liye update aane me late ho jata hai. I m really sorry about that. But main ne kuch updates already create kar lia hai, so don't worry. I hope it will be end soon.
And one thing, you said, you like 10-15 stories. Do you suggest me those stories! I really want to read. Janna chahta hoon, aisi koinsi story mujh se chut gai hai.
Babulaskar , if you are ok to read English stories, try to read Sophisticated Bengalee Family by satabdi ..its terrifically written by him...unfortunately not complete but every episode is damn too hot...just like your story.
 
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