Update 52
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सखी, लाज रखना
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राधा का घर फूलों से सजाया गया है। घर के बीच खुली जगह में देवा ने एक विवाह मंडप तैयार कर लिया है। उसकी माँ पार्वती और उसकी बहन लक्ष्मी आ चुकी है। दोनों राधा और रेखा के पास चली गई। एक कमरे में राधा की सहेलीयाँ कोमल, कल्लो, कल्लो की बेटी सपना, रेखा की दोस्त शीतल उन्हें शादी के जोड़े में सजा रही थीं। सपना और शीतल रेखा को सजाने लगी थी वहीं कल्लो और कोमल राधा का सिंगार करने में लगी थी। बहुत ही खुशियाँ का माहोल था। सब के चेहरे पर खुशियाँ और आनन्द छलक रहे थे।
दूसरे कमरे में रघू अपने दोस्तों के साथ बैठा था। उसने केवल धोती और एक बनियान पहन रखा है। इसी बीच मुनिबजी कमरे में आ गये, कहने लगे,
"मालिक! कारखाने के मजदूरों ने आपको शादी की बधाईयाँ दी हैं। मैं भी आपको शादी की बधाई देता हूँ।" मुनिबजी गावँ के रहने वाले एक पढ़े लिखे आदमी थे। रिश्ते में वह सरपंच के छोटे भाई हैं। और हाल ही में उनकी पत्नी और बड़ी भतीजी से उनके भतीजे किशन ने बियाह कर लिया है।
"आप का बहुत बहुत धन्यवाद काका! मेरे इस खुशी वाले दिन में लोगों का प्यार ही मेरे लिए आशीर्वाद है। आप खाना खाकर जाईयेगा!"
"आपका धन्यवाद मालिक! मुझे बस यही कहने आना था। अब मैं चलता हूँ। किसी चीज की जरुरत हो तो आप मुझे खबर करे!" मुनिबजी चले गए। देवा और रामू रघू के पास बैठा हुआ था। मुनिबजी के जाने के बाद रामू ने कहा,
"वैसे काका बड़े अच्छे भले आदमी हैं। नहीं तो भतीजे ने बिना बताये उनकी पत्नी और बेटी से बियाह कर लिया, गुस्सा नहीं हुए! ऊपर से अपने भतीजे को आशीर्वाद दिया।"
"एसा कुछ नहीं है। किशन और उसकी काकी का काफी पहले से चक्कर चल रहा था। मुनिबजी ज्यादतर शहर रहते थे, अपनी पत्नी के पास कम रहने लगे थे। इसी दौरान किशन और उसकी काकी के बीच प्यार शुरु हुआ। फिर धीरे धीरे पूरे घर को पता चल गया। यहां तक तो सब ठीक था। लेकिन बाद में पता चला, मुनिबजी की पत्नी किशन से गर्भवती हो गई है। अपने बच्चे को बाप का नाम देने के लिए किशन से शादी की।" देवा ने विस्तार से बताया।
"अभी छोड़ो यह सब, उधर कहाँ तक हुआ! सब तैयार हुए की नहीं!" रघू थोड़ा बेसब्र होकर कहने लगा।
"कोई जल्दी नहीं है। अभी और समय बाकी है।" देवा ने उसे तसल्ली दी।
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इधर औरतों के कमरे में रेखा और राधा का सजना संवरना जब पूरा हो गया, कोमल उन्हें कपड़े पहनने को बोलती है। लह्ँगा चोली का पैकेट खोला गया। कोमल कपड़े का जोडा देखकर कुछ हयरान होती है।
"राधा इस जोड़े में तो ब्लाऊज का जोडा नहीं है। सिर्फ लह्ँगा और ओढनी है।" कपड़े का जोडा कोमल उसके सामने रख देती है। राधा देखकर बोलती है,
"रेखा के जोड़े में हो सकती है!" कोमल ने जब रेखा का जोडा देखा तब उसमें भी सिर्फ लह्ँगा और लह्ँगा के रंग की ओढनी थी।
"रघू लाया नहीं क्या! इसी में होना चाहिए था।"
"एकबार उससे जा के पूछ ले, लाया होगा!" कल्लो कहती है। कोमल शीतल को भेज देती है रघू के पास।
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"कोई जल्दी नहीं है, अभी और समय बाकी है," देवा के कहने के बीच शीतल कमरे में आ गई।
"जल्दी है, देवा जी, वह दुल्हनों का जोडा नहीं मिल रहा है। सिर्फ लह्ँगा और ओढनी है चोली का सेट मिल नहीं रहा। रघू भईया कहाँ रखा है तुम ने! और तुम अभी तक तैयार क्यों हुए?" शीतल ने कहा।
"चोली का जोडा नहीं है शीतल!" रघू ने जवाब दिया। वह खुद अभी तक धोती और बनियान पहने बैठा हुआ है।
"क्या मतलब मैं समझी नहीं!" शीतल को यकीन नहीं आया।
"देवा तू ही बता दे!" रघू ने देवा को कुछ कहने को बोला। शीतल कमरे में मौजूद सबकी तरफ देखने लगी।
"शीतल बहना, असल में बात यह है, एक मंडप में दो औरतों के साथ शादी में ऊपर का वस्त्र नहीं पहना जाता। रघू ने अभी जो कपडा पहन रखा है, इसी वस्त्र में वह विवाह का कार्य निभाएगा। और दुल्हनें केवल लह्ँगा पहनकर मंडप में शादी करेंगी। परंतु मान सम्मान और लज्जा निवारण के लिए वह शरीर के ऊपरी हिस्से में ओढनी डाल सकती है।" देवा ने अपने अनुसार शीतल को बात बताई।
"देखो, देवा जी, तुम्हारी यह शुद्ध भाषा मेरी समझ के बाहर है। क्या कहना चाहते हो साफ साफ कहो।" शीतल को कुछ कुछ समझ में आ रहा था। लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ। एसा भी कुछ हो सकता है।
"अरे शीतल, देवा का मतलब है, मौसी और रेखा को बिना चोली ब्लाऊज पहने ही मंडप में शादी करनी होगी। हाँ चोली की जगह वह ओढनी डाल सकती है। कुछ समझी!" पास में बैठा रामू अपनी बहन को बताने लगा।
"हे भगवान! देवा जी, यह क्या कह रहे हैं आप! मौसी और रेखा एसे कैसे बैठ सकती हैं! रघू भईया कुछ तो सोचो!"
"शीतल बहना, यही नियम है। मैं ने कुछ दिन पहले सरपंज के बड़े बेटे किशन का विवाह करवाया है, और इसी तरह से करवाया है। वहां की बात अगर तुम सुनोगी और ज्यादा हयरान होने लगोगी। जिन दो औरतों से किशन ने विवाह किया है वह दोनों उपर से बिलकुल नंग अवस्था में थी। रघू की शादी में भी एसा होना था, लेकिन और लोगों के कारन मैं ने रघू से ओढनी लाने को कहा था।" देवा अपनी जिम्मेदारी के चलते गम्भीर था। लेकिन रामू और रघू इस माहोल से अपनी बदमाशी भरी नजरों से शीतल को ताड़ रहे थे। रघू ने इसी बात फायदा उठाया।
"और शीतल! तेरी तबीयत ठीक तो है ना! रामू बता रहा था, तू माँ बनने वाली है?"
"हाँ बनने वाली हुँ! और अभी मेरे पेट में बच्चा पल रहा है। और कुछ कहना है! खुद की सोचो, अभी तुम्हारी शादी होनी है। हफ्ता ना गुजरे, तुम भी बच्चे के बाप बन जाओगे! मैं चलती हूँ।" शीतल अपनी मदमस्त जवानी की लहर दौडाकर कमरे से चली गई।
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"रघू को सब पता था! मैं ने कितना मना किया! एक नहीं सुना। अब क्या होगा!" राधा अपने चेहरे पर बेबसी का भाव लाती हुई बोली।
"राधा, फिक्र मत कर, शादी में हमारे अलावा भला और कौन होगा? और वैसे भी दो औरतों की शादी में यह अनिवार्य होता है। आम तौर पर एक दूल्हा दो दुल्हन और पंडित के अलावा कोई रहता नहीं। अगर तू चाहेगी तो हम मंडप में उपस्थित नहीं रहेंगे! क्यों कोमल! सही कहा ना मैं ने?" पार्वती ने राधा को समझाते हुए कहा।
"हाँ राधा, हम तेरी खुशी चाहते हैं। अगर तुझे हमारे सामने शर्म आयेगी तो हम मौजूद नहीं रहेंगे।" कोमल ने अपनी बात रखी।
"नहीं मौसी! हम आप लोगों को छोड़कर यह शादी नहीं कर सकते! चाहे हमें कुछ भी करना पडे!"
बीच में रेखा बोलने लगी। इस बात को सुलझने में समय नहीं लगा। राधा और रेखा अब हालात के आगे मजबूर थी। उन्हें भरोसा था लह्ँगा ही सही, चोली के बदले ओढनी से अपने आप को ढक लेंगी। पर कुछ ही देर बाद राधा की यह सहेलीयाँ फिर से हँसने लगी थी। क्यौंकि रघू के लाये हुए कपड़े में दुल्हनों के पहनने के लिए ना तो ब्रा थी और ही कच्छी पैंटी।
सपना बोलने लगी,
"मौसी मुझे लगता, रघू कहिँ तुम दोनों से शादी के फौरन बाद ही सुहागरात ना मना ले। तुम दोनों को किसी लायक ना छोड़ा रघू ने! एकदम खानदानी र्ंडी छिनाल के माफिक तुम से बियाह रचा रहा है रघू।"
सपना की इस बात से सब ठहाका मारके हंसी मजाक करने लगी। राधा और रेखा बड़ी शर्म मह्सूस करने लगी। लेकिन शादी के माहोल में एसा चलता है। इस लिए दोनों ना चाहते हुए भी खामोश रही। दोनों अपने मन ही मन में बडबडाने लगती हैं, सखी लाज रख लेना।
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