Update 49
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माँ बेटी, एक जान दो शरीर
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राधा का घर शादी के लिए तैयार हो गया था। कोमल सपना और शीतल ने मिलकर घर को पूरी तरह से सजा दिया है। रात गुजरते ही राधा और रेखा शादी की तैयारी में लग जायेगी। आज की रात उनकी जिंदगी की आखरी रात है जब वह बिना पति के सोने जा रही है। कल से लेकर शायद उन्हें हर रात चुदाई करवाना पडे।
रेखा अपने कमरे में पड़ी पड़ी यही सब बातें सोचने लगी थी। उसका भाई रघु, जो कल तक उसका पति बन जाएगा, उसके लिए शहर से कितना कुछ लेकर आया है। उसकी माँ और उसके लिए दो लाल घाघरा चोली लाया है। यही पहनकर दोनों शादी के मंडप में बैठेंगे। शायद इसी जोड़े में उन्हें सुहागरात भी करनी पडे।
"रेखा तू सो गई क्या!" दरवाजा खोलकर राधा कमरे के अन्दर आई। अपनी माँ को देखकर रेखा उठ गई।
"नहीं माँ, अभी नहीं। नींद कहाँ आ रही है। तुम्हें भी नींद नहीं आ रही?"
"हाँ मेरा भी वही हाल है। अच्छा होता अगर थोडी देर सो लेती। सोचा तेरे से कुछ बात कर लूँ!"
"कैसी बात? जरुरी है क्या?"
"नहीं एसी कुछ खास नहीं है। बस सोच रही हूँ, आज हम जैसे भी हैं, कल तक हमारा रिश्ता पूरा बदल जाएगा। तेरा भाई तेरा पति बन जाएगा। तू मेरी बेटी थी अब सौतन बन जायेगी।"
"हाँ माँ, सच कहा तुम ने। बडा मजा आयेगा।" रेखा उछलती हुई बोली।
"तुझे क्या पता मजा क्या होता है! अच्छा तू ने बुर के बाल साफ कर लिये क्या!"
"क्यों? तुम ने नहीं किये! मैं ने तो कर लिये। मतलब शीतल ने साफ कर दिया।" रेखा थोडी शर्माती हुई बोली।
"अच्छा हुआ! शादी के मौके पे बुर के बाल खुद साफ नहीं करने चाहिए।"
"शीतल कह रही थी, मौसी तुम्हारी सफाई कर देगी। मौसी ने दी क्या?"
"नहीं रे, मैं ने मना कर दिया।"
"क्यों? करवा लेती ना! तुम ने तो काफी दिनों से साफ नहीं किये होंगे।।
"हाँ काफी दिन हो गए। अब जब उसको कोई देखने वाला नहीं था, सफाई की जरुरत भी नहीं थी। अब उसको देखने वाला चोदने वाला बनने वाला है, अब तो ना चाहते हुए भी सफाई करनी पड़ेगी। लेकिन अब कौन करे मेरी सफाई!"
"मैं कर देती हूँ।"
"तू कर देगी? कर पायेगी?"
"हाँ कर लुंगी। तुम चिंता ना करो। शीतल की शादी में मैं ने साफ किये थे उसके। तुम कपडो खोलो, मैं क्रीम लेकर आती हुँ।"
रेखा बोलकर बाथरूम में चली गई। राधा मन ही मन मुस्कुराने लगी। वह जो कुछ चाह रही थी, वह पूरा हो रहा था। रेखा के साथ अगर उसकी लाज शरम थोडी कम हो जाये, फिर रघु के सामने उसे ज्यादा शरम नहीं आयेगी। आज रात तक रेखा के साथ उसे इसी तरह का खेल खेलना होगा। राधा अपनी साड़ी पेतोकोट खोलकर पूरी नंगी हो गई। और वहीं बैड पर पैर खोलकर लेट गई।
"ओए होए, यह क्या है माँ? यहां तो जंगल बना रखा है तुम ने?" रेखा की नजर उसके बुर के आसपास बने बालों पर थी।
"अब क्या बताऊँ, कहा ना, काफी दिन हो गए हैं! अब चल आ जा।" रेखा पास आकर क्रीम लगाने लगती है।
"कितने मुलायम है तुम्हारे बाल। और यह बुर भी। कितनी मुलायम है। मेरा भाई किस्मतवाला है, जो उसे यह बुर मिल रही है।" रेखा ने क्रीम लगा कर कहा।
"चूत मारने वाला किस्मत वाला ही होता है मेरी माँ! और अगर वह चूत उसकी माँ की हो, फिर तो और ज्यादा। तू फिक्र मत कर। तेरा भाई तुझे भी छोड़ेगा नहीं। मेरे साथ साथ तुझे भी रगड़-रगड़ के चोदेगा। मेरी तो फिर भी खिली हुई चूत है। तुम दोनों भाई बहन को इसी चूत से जनम दिया है। लेकिन तेरी तो सील भी नहीं टूटी। पता भी है कितना दर्द होता है!" राधा बुर पे क्रीम लगवाकर पड़ी पड़ी बताने लगती है।
"सच में बहुत दर्द होता है?"
"हाँ बहुत दर्द होता है। इस लिए मैं चाहती हूं, कल जब रघु हमारे साथ सुहागरात मनाने आयेगा, तू पहले चुदवा लेना। मैं तेरी माँ हुँ। तेरे पास रहकर तेरी मदद कर दूँगी।" राधा अपनी चाल चलती है।
"नहीं माँ, मैं पहले नहीं चुदवा सकती। पहली चुदाई तो तुम्हें ही करनी पड़ेगी। रघु मुझ से पहले तुम्हें चोद्ना चाहेगा। और मुझ से ज्यादा तुम्हारा उसपर अधिकार है।"
"अरे नहीं नहीं, तू पहले करवा लेना। तेरी पहली सुहागरात है, मैं नहीं चाहती रघु पहले मुझे चोदे।" राधा का दिल धडकने लगता है।
"नहीं माँ, मैं एसा नहीं कर सकती। और वैसे भी रघु नहीं मानेगा। तुम देख लेना वह तुम्हें ही पहले चोद्ना चाहेगा। तुम्हें पागलों की तरह चाहता है वह। अब तक तो तुम दोनों की शादी भी हो जाती।" रेखा की जिद भरी बात पे राधा का दिल टूट गया। उसने जैसा सोचा था वह नहीं हो सकेगा। अगर रेखा को ज्यादा जोर देगी फिर वह समझ सकती है, इस लिए राधा बात ज्यादा नहीं खींचती।
"हाँ तू ने सही कहा। जो भी हो कल देखा जाएगा। तूने तो रघु का लौड़ा देख रखा है, थोड़ा बता ना उसके बारे में! कैसा होगा वह! काफी बडा है ना! मोटा भी होगा!"
"हाँ बहुत बडा और मोटा है। मैं ने तुम्हें पहले भी बताया है। हाए, माँ तुम्हें कैसे बताऊँ! उसका लौड़ा कितना भीमकाय है! मैं ने कई बार रघु का मुठ मार दिया है। उसका पानी निकालकर दिया है। उसने भी मेरी चूत चुस्के बडा मजा दिया है मुझे। लेकिन उस वक्त हमने एक दूसरे से वादा किया था। रघु ने ठान ली थी, उसका लौड़ा सबसे पहले तुम्हारी बुर में ही घुसेगा। कभी कभी रघु इतना उतावला हो जाता की मुझे चोद्ना चाहता, लेकिन मैं उसे रोक देती। लेकिन आज जब सोचती हूँ वही लौड़ा मेरी चूत को चीरने वाला है, मेरी चूत कांपने लग जाती है। किस तरह जाएगा कैसे जाएगा अन्दर? मेरी तो सांस अटक जायेगी।" रेखा बताते बताते भाबुक हो गई।
"जाएगा तो जरुर। पहली बार दर्द भी होगा तुझे। लेकिन उसके बाद तू उस लौड़े के बिना रह नहीं पायेगी। तेरा जी करेगा हमेशा उससे चुद्ती रहे। रघु हमेशा हमेशा के लिये तुझे बस चोद्ता ही रहे। यह चुदाई और मिलन का प्यार एसा ही होता है। अब इसे उतार दे।" राधा बुर की सफाई करने को बोलती है। रेखा बातों ही बातों में बुर की क्रीम के साथ साथ बालौं की सफाई करती रहती है।
"देखो माँ, यह बिलकुल चिकनी चूत बन गई है। एकदम मुलायम। तुम ने सही कहा था माँ, मेरी और तुम्हारी बुर बिलकुल एक जैसी है। हर तरह से समान है। चूत के ऊपर यह काला तिल भी मेरी बुर पे है। अच्छा हुआ माँ हम दोनों का पति एक है। नहीं तो मैं बाद में बहुत परेशान रहती।" रेखा अपनी माँ के बुर पे मुलायम हाथ फेरने लगती है।
"तू मेरी बेटी है, तेरी चूत मेरे जैसे ही होनी थी। अच्छी तरह से देख ले, यहीं से तू और तेरा भाई निकला है। इत्नी छोटी छेद से।" राधा अपने पैर को और थोड़ा खोल देती है। जिससे रेखा के सामने उसकी माँ की बुर खुलकर उभर आई। रेखा दोनों हाथ लगाकर बुर के मुहाने को पकड़कर थोड़ा खोल देती है। जिससे राधा की बुर का लाल हिस्सा दिख जाता है। बुर के मुहाने पर चूत का रस लगा हुआ था।
"यहीं से लौड़ा घुसता है? यह तो बहुत ही तंग है माँ। चला तो जाएगा ना!" रेखा की नजर उसकी बुर से हटी नहीं।
"सब चला जाएगा रे। अगर ना भी गया तो तेरा भाई जबर्दस्ती घुसाकर छोड़ेगा। आखिर इसी के मारे बियाह कर रहा है। और जरा सोच इसी तंग सुराख से तुझे और मुझे बच्चा भी निकालना है। अपना कपडा निकालकर मेरे पास आ जा। मैं भी देखूँ तेरी चूत कैसी लग रही है!" राधा अब काफी सहज हो गई थी। उसे अब पहले जैसी शरम महसूस नहीं हो रही है। वह मुस्कुराते हुए बोलती गई।
"हाए माँ, सच में मुझे अभी से घबराहट हो रही है। पता नहीं कल क्या होगा! माँ तुम ने तो हम दो भाई बहन को इसी छेद से जनम दिया है, तुम्हारी चूत थोडी तो खुली हुई फैली हुई होगी!" रेखा बातों ही बातों में अपना कपडा निकाल देती है। उसकी केशहीन कमसिन बुर देखकर जवान राधा भी मस्त हो गई। रेखा को देखकर वह उठकर बैठ गई। और पैर फैलाकर रेखा को अपनी गोद में बिठा लिया। दोनों माँ बेटी नंगी होकर एक दूसरें को महसूस करने लगी।
"नहीं रे, जैसा तू सोच रही है, वैसा कुछ नहीं है। औरतें बच्चा जनम देने के बाद उनकी चूत का छेद फिर से सिकुड जाता है। हम अगर इस फांकोँ से दस बारह बच्चे भी निकाले हमारी चूत मारकर रघु को एक जैसा मजा आयेगा। तू बिलकुल मेरी जैसी हो गई है। तुझे देखकर कभी कभी सोचती हूँ, मैं अपने आप को देख रही हूँ। तेरी उम्र में मैं दो बच्चों की माँ बन गई थी। बिलकुल तेरी तरह गोरी चिट्टी थी। और एकदम सुडौल शरीर और बदन था मेरा।"
"लेकिन तुम्हारी जैसी गांड नहीं है मेरी। तुम्हारे कूल्हे कितने बड़े और भरे हुए हैं। जवान लडके इसी के दीवाने होते हैं। और तुम्हारा यह पेट कितना भरा हुआ है, कितना मांस है इसमें। और यह दाग! कितनी मस्त लगती हो तुम इसमें। काश मेरा भी एसा होता।" रेखा अपनी माँ राधा की गोद में बैठ बड़े प्यार से सहलाने लगती है।
"जब तू माँ बनेगी, तब धीरे धीरे मेरे जैसी हो जायेगी। इसमें समय लगता है। औरत जब तक माँ नहीं बनती उस वक्त तक उसकी एक अलग खुबसूरती रहती है। और जब माँ बनती है, अपने पति से चुदवा चुदवाकर पेट में बच्चा लेती है। उस बच्चे को नौ महीने तक अपने पेट में पालती है, तब औरत की खुबसूरती बदल जाती है। जब तू अपने बच्चों को जनम देगी, आज से बीस बाईस साल बाद जब तेरा बेटा रघु की उम्र का होगा तब तू मेरी जैसी दिखने लगेगी। और देखना, तेरा बेटा भी उस वक्त तुझ पर पागल बना फिरेगा। तुझे चोदने के मारे वह भी तुझे फंसाने की कोशिश करेगा।"
"क्या सच में? फिर क्या होगा!" रेखा को थोडी शरम आती है।
"तेरी मर्जी, अगर तुझे लगे तुझे उससे शादी करनी है, कर लेना। मेरी तरह दोबारा शादी करना। अपने ही बेटे के साथ। तुझे अपनी सौतन बनाकर भी मुझे कितनी खुशी मिल रही है। लोग शायद झूट बोलते सौतन से घर उजड जाता है। मैं और तू सौतन बनकर औरतों को बता देंगे, सौतन बनाकर भी खुश रहा जा सकता है।"
"हाँ माँ, तुम ने सही कहा। मुझे दो दो खुशी एक साथ मिल रही है। तुम्हें सौतन के रूप में पाने की और अपनी शादी की।" माँ बेटी दोनों एक दूसरे का दूध दबाए प्यार का आनन्द लेने लगती है।
"आज हम दोनों एसे ही सोयेंगे। क्या पता अब से हमें इसी तरह से हर रोज सोना पडे।" राधा हंसी बात पे रेखा भी मांद मुस्कुराती है। रेखा और राधा अपने आगे आने वाले नए रिश्ता का भविश्य सोचकर एक दूसरे की बाहों में समा जाती है।
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