शुक्रिया भाईlajawaab....
bahut hi bhadiya likhte ho aap.....
shukriya aapka....
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goodमैडम ने जब आखिर मेरे होंठ छोड़ें तो मैंने उनसे थोड़ा शरमाते हुए कहा. "मैडम, मैं भी आप की चूत चूसना चाहता हूँ." मैडम ने इस बात पर खुश होकर मुझे फ़िर से चूम लिया. "जरूर चुसवाऊँगी अपने प्यारे स्टुडेन्ट को अपनी चूत, पर अभी नहीं बेटे, अभी वक्त नहीं है, मेहमान आने वाले हैं और मुझे तैयार होना है, आज तो तू मुझे बस चोद डाल, मैं कबसे तड़प रही हूँ तुझसे चुदने के लिये" और लेटे लेटे ही उन्हों ने अपना गाऊन ऊपर किया, मेरे फ़िर से तन्नाये लंड को अपनी चूत में घुसेड़ा और मुझे कस के बाँहों में भींच कर अपने ऊपर लिटा लिया.
मुझे मैडम की गोरी गोरी घने बालों में घिरी चूत की बस एक झलक दिखी, मैंने उनसे अनुरोध किया कि मुझे अपना लावण्य ठीक से देखने तो दें पर वे बोली "आज नहीं, टाइम नहीं है बेटे, अगली बार मन लगा कर दिखाऊँगी".
अब मेरा लंड उस गरम तपती गीली म्यान में गड़ा हुआ था. मैडम की चूत बड़ी कोमल थी पर कुछ ढीली भी लग रही थी. सहसा उस मखमली बुर ने सिकुड़ कर मेरे लंड को ऐसे पकड़ लिया जैसे किसी ने मुठ्ठी में कस कर भींच लिया हो. मैं मस्ती से कराह उठा क्यों की मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि इतनी उमर में भी मैडम की चूत ऐसे मुझे जकड सकती है. मेरी हैरानी पर मैडम प्यार से मुस्कुराई और मुझे चूमते हुए बोली "इस बुर के चमत्कार अब रोज दिखाऊँगी बेटे पर अभी तो मुझे बस तू चोद, देर मत कर."
मैं भी अब फ़िर से पूरा गरमा चुका था. मैडम की बात मानकर उन्हें मैंने चोदना शुरू कर दिया. पहले मैं घुटने टेक कर आधा बैठा हुआ उन्हें चोद रहा था कि उनपर मेरा वजन न आये पर उनके कहने पर मैंने उन्हें बाँहों में भर लिया और उनपर पूरा लेट गया. फ़िर अपना मुंह उनके मीठे होंठों पर जमा कर उनका दीर्घ चुंबन लेता हुआ मैं हचक हचक कर पूरी एकाग्रता से उन्हें चोदने लगा.
मैंने काफ़ी देर तक बड़ी मेहनत और प्यार से अपनी मैडम को चोदा. मैडम ने भी कहा कि मैं एक बार झड चुका हूँ इसलिये अब सब्र से उन्हें कम से कम आधे घंटे तक चोदूँ जिससे उन्हें भी खूब झडने का मौका मिले. उनकी बुर अब इस तरह गीली थी कि मानों गरम गरम घी से भरी हो. लंड चलने से ’पक्क पक्क पक्क’ ऐसी आवाज़ें भी आ रहीं थी.
मेरी आधे घंटे की लगातार मेहनत सफ़ल रही और आर्या मैडम चार बार झड़ीं. हर बार झडने पर वे एक सिस्कारी भरती और मुझे बेतहाशा चूमने लगती. आखिर मैं भी सह न सका और स्खलित हो गया. थका हुआ पूरी तरह से संतुष्ट मैं मैडम के चिकने शरीर को बाहों में भरे हुए उन पर पड़ा रहा और वे बड़े दुलार से मुझे चूमती रहीं और मेरी पीठ और नितंब सहलाती रहीं. उनकी बुर तो मेरे लंड को छोड़ ही नहीं रही थी और गाय के थन जैसा दुह रही थी.
आखिर उन्हों ने एक लम्बी सांस ली और मुझे बाजू में कर के उठ बैठी. "चल अब मेहमान आते होंगे, बहुत मजा आया वरुण बेटे, बहुत तृप्त किया तूने अपनी मैडम को, काफ़ी गुरु-दक्षिणा चुका दी. बोल अब कब आयेगा?" अपना गाउन ठीक करते हुए उन्हों ने पूछा. मैंने भी कपड़े पहने और कहा "मैडम, आप जब बुलाएंगी, मैं आ जाऊंगा. कल ही आ जाऊँ?"
वे हंस कर बोली "बड़ा नादान है तू, मुझे फंसाना है क्या? हम बस हफ़्ते में एक बार इस तरह मिल सकते हैं, नहीं तो पास पड़ोस के लोग शक करेंगे और अगली बार मुझे एकाध घंटे तक नहीं, कई दिनों तक चाहिये अपना प्यारा स्टुडेन्ट" मैं भी सोच में पड़ गया, उनसे अलग रहने की कल्पना भी अब मुझे सहन नहीं हो रही थी.
मैडम मेरा मुरझाया चेहरा देख कर प्यार से मुस्कुराई और मुझे चूम कर बोली "तेरी मिडटर्म छुट्टी इसी शनिवार से है ना?" मैंने हाँ कहा तो मेरी पीठ थपथपा कर वे बोली. "तो काम बन गया, तू सब मित्रों को बता कि दस दिन तू घूमने जा रहा है. घर भी चिठ्ठी लिख दे कि छुट्टी में नहीं आ रहा है. फ़िर शुक्रवार रात को चुपचाप मेरे घर आ जाना. बंगले के पिछवाड़े से आना, दरवाजा खुला रहेगा. यहीं दस दिन रहना, तुझे ऐसा छुपा कर रखूंगी कि किसी को पता नहीं चलेगा. खूब पढ़ाऊँगी तुझे!"
मैंने खुश होकर उन्हें ज़ोरों से चूम लिया "शुक्रिया मैडम, मैं बैग लेकर आ जाऊंगा" वे शैतानी से हंस कर बोली. "बैग खाली ही लाना, कपड़ों की जरूरत नहीं पड़ेगी तुझे हफ़्ते भर. और सुन! जरा काबू रख अपने आप पर हफ़्ते भर! एकदम मस्त होकर आना मेरे यहाँ."
मैं वापिस आया तो पाँव खुशी के मारे जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. वह हफ़्ता मैंने कैसे काटा यह सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ. पर मैडम को किये वादे के अनुसार मैंने हफ़्ते भर न तो हस्तमैथुन किया न कामुक विचार आने दिये. खूब पढ़ाई करता और रात को थक कर सो जाता. मैडम की क्लास में भी पीछे बैठता था. मैडम ने भी हफ़्ते भर तक मेरी ओर देखा भी नहीं. सिर्फ़ शुक्रवार की क्लास में क्षण भर मेरी ओर अर्थभरी निगाहों से देखा और निकल गई.
शाम को होस्टल खाली हो गया. मैं भी खाली बैग लेकर निकल पड़ा. सब दोस्तों को बताया कि घूमने जा रहा हूँ और बाहर आकर पास ही बगीचे में टाइम पास करता रहा. रात को अंधेरा होने पर चुपचाप मैडम के घर गया और आसपास कोई न होने की तसल्ली करने के बाद पीछे के दरवाजे से अंदर चला गया. आँगन पार कर के मैं सीधा बाजू के दरवाजे से बैठने के कमरे में चला गया.
अंदर धीमी रोशनी जल रही थी और मैडम सोफ़े पर बैठ कर एक रंगीन चित्रों वाली कामुक मेगेज़ीन देख रही थी. उन्हों ने मुझे देखा तो मुस्कराकर उठी और पहले दरवाजा बंद किया. मैं उनके सजे धजे रूप को देखता ही रह गया. मेरे कुछ कहने के पहले उन्हों ने पहले बाहर का दरवाजा लगाया और मुझे चुप रहने का इशारा करती हुई खींच कर अंदर ले गई. उन्हों ने अपने बेडरूम के पास के रूम का दरवाजा खोला और मुझे अंदर जाने को कहा.
रूम काफ़ी बड़ा था और उसमें एक बड़ा डबलबेड, सोफ़ा, कुर्सियाँ, एक टेबल और एक सकरी लम्बी बेंच थी. मैडम ने दरवाजा लगाते हुए कहा "यहाँ अब तुझे दस दिन रहना है, तू इस कमरे से बाहर नहीं जायेगा, अगर कोई आया या मैं बाहर गयी तो ताला लगाकर जाऊँगी. तू अब ऐसा कर कि नहा ले तब तक मैं ताला लगाकर और सब खिड़की दरवाजे बंद कर आती हूँ."
मैं नहाने चला गया और खूब देर तक मन लगाकर नहाया. बीच में ही मैडम ने दरवाजा खटखटा कर कहा कि मैं कपड़े बाहर उन्हें दे दूँ. मैंने हाथ निकालकर कपड़े उन्हें दे दिये. नहाने के बाद मेरे ध्यान में आया कि पहनने के कपड़े तो हैं ही नहीं. मुझे थोड़ी शर्म लगी पर बदन पोछ कर मैं टोवेल लपेटकर बाहर आ गया.
आर्या मैडम सोफ़े पर बैठ कर मेरा इंतज़ार कर रहीं थी. मुझे शरमाते हुए देखकर बोली. "कपड़े चाहिये? वे तो मैंने छुपा दिये हैं. अब तू मेरा कैदी है. दस दिन कहीं नहीं जा पायेगा."
फ़िर मेरी ओर देखकर देखकर बड़े प्यार से मुस्कराकर बोली. "वरुण बेटे, तू बड़ा प्यारा, चिकना लड़का है. मैं बड़ी किस्मत वाली हूँ कि तुझ जैसा जवान खूबसूरत छोकरा मुझे प्यार करता है."
मैंने अब पहली बार मैडम को मन भर कर देखा. वे ऐसे सजी थी जैसे पार्टी में जाना हो. उनका अभी अभी नहाया हुआ स्वस्थ गोरा शरीर बड़ा आकर्षक लग रहा था. उन्हों ने बाल जुड़े में बांध रखे थे और होंठों पर हलकी गुलाबी लिपस्टिक लगा रखी थी. गुलाबी पारदर्शक शिफॉन की साड़ी पहनी थी जिसमें से उनका साटिन का गुलाबी पेटीकोट दिख रहा था.
गोरे पैरों में लाल रंग की नाजुक पट्टियों वाली ऊंची एडी की सेंडल पहन रखी थी. अंग में गुलाबी पारदर्शक स्लीवलेस ब्लाउज़ था. ब्लाउज़ इतना बारीक कपड़े का था कि उसमें से उनकी गहरे लाल रंग की लेस वाली ब्रेसियर साफ़ दिखती थी. ब्लाउज़ काफ़ी लो कट भी था और उसके ऊपरी भाग में से मैडम के गोरे मुलायम उरोजों का ऊपरी उभार स्पष्ट दिखता था.
मैडम अब मेरी तरफ़ देखते हुए सोफ़े पर कोहनी रखकर आधी लेट गई और उनका पल्लू नीचे गिर पड़ा. इस पोज़ में उनके मस्त उभरे हुए कस कर ब्रा में बंधे उरोज और मतवाले लगने लगे. मेरा लंड अब खड़ा होने लगा और टोवेल में एक तम्बू तनने लगा. उसे देख कर मैडम हंसी और सोफ़ा थपथपाकर प्यार से कहा. "साड़ी पसंद आयी तुझे लगता है. दूर खड़ा क्या घूर रहा है, आ यहाँ मेरे पास बैठ."
vakharia meri jaan teri story ka jawab ji haiमैं तब आर.ई.सी. में पहले वर्ष का स्टूडेन्ट था. अठारह साल उमर थी और जवानी का खूब जोश था. मैं बड़ा शर्मीला था और लड़कियों से ज्यादा मेलजोल नहीं था. पर लंड ऐसा सनसना कर खड़ा होता था कि रोज रात को चादर ओढ कर अपने कमरे में रह रहे मित्र से छुपा कर मुट्ठ मारता था नहीं तो नींद नहीं आती थी.
हमारी गणित की टीचर डॉक्टर आर्या कपूर नाम की एक महिला थी. उम्र करीब पचास की होगी. सब उनसे डरकर रहते थे और खूसट बुढ़िया कहते थे. मैं पहली पंक्ति में बैठा करता था इसलिये मुझे रोज उन्हें पास से देखने का मौका मिलता था.
मैडम गोरी और मझोले शरीर की थी. हाँ, कमर के नीचे का भाग भारी भरकम था जैसा इस उम्र के साथ औरतों का हो जाता है. चेहरा कोई खास सुंदर नहीं था और आँखों और मुंह के चारों ओर उम्र की कुछ लकीरें पड़ गई थी. पर मैडम बड़ी होशियार थी और उनकी बुद्धि साफ़ उनके चेहरे पर झलकती थी. वे हमेशा साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज में रहती थी, जिससे उनकी गोरी गोरी बाँहें खुली रहती थी. उन चिकनी मुलायम बाँहों को देख देख कर मैं उनके बाकी शरीर के बारे में अटकलें लगाने लगा था और मेरा उनकी तरफ़ आकर्षित होना स्वाभाविक था.
धीरे धीरे मैं उनकी हर बात को बड़े ध्यान से देखने लगा. खुला थोड़ा लटका हुआ पर गोरा चिकना पेट, चलते समय दिखने वाले उनके गोरे नाजुक पाँव, जो स्मार्ट ऊंची एडी के काले सैंडलों में और आकर्षक दिखते थे, ऐसी कई बातें मैं नजर गड़ा कर देखा करता था. मैडम का पल्लू अक्सर गिर जाता तो उनके बड़े गले के ब्लाउज में से उनके नरम नरम लटके हुए स्तनों का ऊपरी हिस्सा साफ़ दिखता. ब्लाउज़ की पीठ में से अंदर ब्रेसियर की पट्टी भी साफ़ साफ़ दिखती थी. उनके पैर और सेंडल मैं बार बार देखा करता था क्यों की बचपन से औरतों के सुंदर पैर और चप्पलें मुझे बहुत अच्छा लगती थी.
धीरे धीरे मेरा लंड उन्हें देखकर ही खड़ा हो जाता. मैं उनकी एक भी क्लास मिस नहीं करता था और रात को आकर उनके नाम से जोर जोर से हस्तमैथुन करता. वैसे वे मेरी माँ से भी काफ़ी बड़ी थी, बल्कि करीब करीब नानी की उम्र की ही होंगी पर मेरे लिये वे संसार की सबसे सुंदर औरत बन गई थी.
उन्हों ने भी मेरा उनकी ओर इस तरह से देखना भांप लिया था और शायद मैं भी उन्हें पसंद आ गया था. इसलिये एक दिन क्लास के बाद उन्हों ने खुद ही मुझे बुलाकर कहा कि अगर मेरी कोई डिफ़िकल्टी हो तो मैं स्टाफ़ रूम में या घर आकर उनसे पूछ सकता हूँ. काफ़ी दिन मैं साहस नहीं जुटा पाया, एक दो बार कहने के बाद मैडम ने भी कहना छोड़ दिया, सिर्फ़ अपनी बड़ी बड़ी आँखों से मुझे कभी कभी मूक आमंत्रण दे देती थी. आखिर एक दिन हिम्मत करके मैं रविवार के दिन उनके घर पहुँच गया. बेल दबाई और धड़कते दिल से इंतज़ार करने लगा.
कुछ देर बाद मैडम ने खुद दरवाजा खोला. वे घर में सिर्फ़ एक ढीला ढाला गाउन पहने हुए थी. गाउन में से उनके लटके स्तनों का उभार दिख रहा था. पैरों में नाजुक सी रबर की हवाई चप्पल थी. मुझे देख उनकी आँखें चमक उठी और प्यार से उन्हों ने मुझे घर में बुलाकर दरवाजा बंद कर लिया और सिटकनी लगा दी. उनके साथ घर में अकेले होने के एहसास से ही मेरा लंड खड़ा होने लगा.
"आओ वरुण, आखिर अपनी मैडम की जरूरत तुम्हें पड़ ही गयी. अच्छा हुआ तुम आ गये, मैं भी बोर हो रही थी." मुझे पता था कि वे तलाकशुदा थी और अकेली रहती थी. आर्या मैडम मुझे सीधे अपने बेडरूम में ले गई. "चलो बेडरूम में ही बैठते हैं क्यों की मेरी सारी किताबें और स्टडी टेबल वहीं है." उनके पीछे चलते हुए मेरी नजर फ़िर उनके पैरों पर गई. चलते समय उनकी चप्पल सटाक सटाक से उनके गुलाबी तलवों से टकरा रही थी. सिर्फ़ उस आवाज से और उन चप्पलों को देखकर मैं और उत्तेजित होना शुरू हो गया.
बात यह है कि मुझे चप्पलों की फेटीश है. खास कर रबर की हवाई चप्पलों की. और जब किसी सुंदर पैरों वाली औरत ने पहनी हों, और उन्हें चटका कर वह चलती हो तो बात ही क्या है! खैर मैं उनके पैरों की ओर घूरता हुआ उनके पीछे हो लिया. मुझे वहाँ रखे एक सोफ़े पर बिठा कर खुद सामने कुर्सी पर बैठकर उन्हों ने मुझसे पूछा कि क्या डिफ़िकल्टी है. मैं गणित की किताब खोलकर बैठ गया और उनसे प्रश्न समझने लगा. मुझे सच में कुछ प्रश्न नहीं आते थे जो उन्हों ने प्यार से समझाये.
घंटे भर बाद मैं जब चलने को उठा तो मैडम बोली. "तुम बैठो तो, काम हो गया तो भाग लिये? जरा बैठ कर अपनी मैडम से गप्पें ही मारो. मैं शरबत बना लाती हूँ." मैं बैठा बैठा उनकी किताबें पलटने लगा. सहसा मुझे अखबारो के नीचे दबी कुछ मेगेज़ीन दिखी. खींच कर देखा तो रंगीन नग्न चित्रों में काम क्रीडा दिखाने वाली अमेरिकन मेगेज़ीन थी. उनमें ऐसे ऐसे चित्र थे कि मेरा लंड बुरी तरह से खड़ा हो गया.
मेरा दिल जोर जोर से धडकने लगा कि अगर आर्या मैडम यह किताबें देखती हैं तो और भी काफ़ी कुछ करती होंगी मैं मजे लेकर अपने खड़े लंड को पैन्ट के ऊपर से ही सहलाने लगा. किताबों के चित्र देखने के चक्कर में मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैडम सामने आकर खड़ी हो गई.
"पसंद आये पिक्चर, वरुण?" मैं चौंक कर खड़ा हो गया और फ़िर शर्म से मेरा चेहरा लाल हो गया क्यों की मेरा खड़ा लंड पैन्ट में तम्बू बना रहा था. मैडम ने हंसकर मुझे वापिस सोफ़े पर ढकेल दिया और खुद भी मेरे पास बैठ गई. मेरे लंड को पैन्ट के ऊपर से ही अपनी हथेली से सहलाते हुए बोली. "इन सुंदर लड़कियों को देखकर तुम्हारे जैसे कमसिन लड़के तो मस्त होंगे ही, मेरे जैसी बड़ी अधेड उम्र की महिलाओं को देखकर थोड़े ही लड़कों को कुछ होता है." मैंने उनकी तरफ़ देखा तो उनके मुस्कराते चेहरे पर एक प्रश्न था.
मैंने किताबें बंद कर दी और साहस कर के कहा. "मैडम, मुझे तो आप बहुत प्यारी लगती हैं, ऐसी हालत तो मेरी आपकी क्लास में रोज रहती है." मैडम कुछ देर मेरी ओर देखती रहीं, फ़िर अचानक झुक कर उन्हों ने मुझे चूम लिया. फ़िर तो मानों उनके सब्र का बांध टूट गया. मुझे बाहों में भरकर वे बेतहाशी चूमने लगी.
वे बड़े मीठे चुंबन थे और मैडम की साँसे भी बड़ी खुशबूदार थी. पहले तो मैं चुपचाप उनके चुंबनों का मजा लेता रहा, फ़िर मैंने भी उन्हें बाहों में जकड लिया और उनके मुलायम होंठ चूसने लगा. अब उन्हों ने अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसेड दी और मेरी जीभ और तालू को चाटने लगी. उनकी गीली गरम जीभ मुझे बहुत मीठी लगी और मैंने उसे अपने होंठों में दबाकर खूब चूसा.
पाँच मिनट बाद मैडम ने चूमा चाटी बंद की और कहा. "बड़ा प्यारा छोकरा है तू वरुण, अब जरा देखें कि तेरा लंड कैसा है." और मेरे कुछ कहने के पहले ही उन्हों ने ज़िप खोल कर मेरा तन्नाया हुआ लंड बाहर निकाल लिया. अठारह साल के एक लड़के का होता है वैसे मेरा लंड लोहे जैसा कडा था और खूब तन्ना कर उछल रहा था. सुपाड़ा भी फ़ूल कर लाल लाल टमाटर की तरह हो गया था.
मैडम ने मेरे लंड को ऐसे देखा जैसे कोई भूखा मिठाई की ओर देखता है, फ़िर बिना कुछ कहे झुक कर उसे मुंह में ले लिया और चूसने लगी. कुछ देर सिर्फ़ सुपाड़ा चूसने के बाद अपना मुंह और खोल कर मेरा पूरा लंड उन्हों ने निगल लिया और गन्ने की तरह चूसने लगी.
मैं एक अवर्णनीय सुख में डूब गया और मेरे मुंह से सिसकियाँ निकलने लगी. अपने हाथ मैंने आर्या मैडम के घने बालों में चलाने शुरू कर दिये. उनके बाल बड़े प्यारे और रेशम जैसे मुलायम थे. वे अब मेरे लंड को इस तरह से चूस रही थी जैसे सालों की भूखी हों. उनकी जीभ मेरे सुपाड़े को ऐसे रगड रही थी जैसे कि कोई सेन्ड-पेपर से लकडी रगडता है. मैं इतना आनंद सह न सका और इस कदर झड़ा कि मेरे मुंह से एक हल्की चीख निकल गई. मेरा लंड उछल उछल कर अपना वीर्य उनके चूसते मुंह में उगलने लगा और वे उसे स्वाद ले लेकर निगलती रहीं. आखिरी बूंद समाप्त होने तक मेरे लंड को उन्हों ने नहीं छोड़ा.
वे मुस्कराते हुए उठ कर बैठ गई और मैं लस्त होकर उनकी गोद में सिर रखकर लेट गया. प्यार से मेरे सिर को सहलाते हुए वे बोली. "एकदम गाढ़ा वीर्य है तेरा, कमसिन जवानी की असली निशानी." अपनी जांघें वे अब धीरे धीरे आपस में रगड रही थी. एक बड़ी मतवाली खुशबू उनकी जांघों में से आ रही थी. मैंने अपना चेहरा उनकी गोद में और दबा दिया और उस खुशबू का मजा लेने लगा.
कुछ देर बाद उन्हों ने मुझे उठाया. तीव्र कामवासना उनके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी. "चलो वरुण, पलंग पर आराम से लेटते हैं." कहकर वे मुझे हाथ पकड़कर बिस्तर पर ले गई. लेटकर मुझे भी खींच कर उन्हों ने अपने ऊपर लिटा लिया और चूमने लगी.
उनके मुंह से अभी भी मेरे वीर्य की गंध आ रही थी पर उनके खुद के मुंह की मीठी साँसे भी उनमें मिली हुई थी. आखिर जब उन्हों ने अपना मुंह खोल कर मुझे न्योता सा दिया तो मैंने झट से अपनी जीभ उनके मुंह में डाल दी और उनके तालू और गले को जीभ से टटोलने लगा. मैडम के मुखरस का स्वाद मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मीठी चासनी हो. मैडम ने मुंह बंद कर के मेरी जीभ चूसना शुरू कर दी और सिर्फ़ पाँच मिनट के अंदर मेरा लंड फ़िर से खड़ा होने लगा.