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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

  • yes

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  • no

    Votes: 1 2.4%

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Sanju@

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लाली आज सुबह से ही बेहद प्रसन्न थी आज राजेश उसके लिए एक अनोखा उपहार लाने वाला था उसे उपहार क्या है उसे इसकी जानकारी तो नहीं थी परंतु राजेश के उत्साह को देखकर लगता था निश्चय ही वह उपहार महत्वपूर्ण होगा।

वह राजेश के साथ दो-तीन दिनों पहले बितायी गई रात को याद करने लगी जब उसे अपनी बाहों में लिए राजेश ने सोनू की बात छेड़ दी.

"तुम्हें सोनू की याद नहीं आती है?"

"क्यों नहीं आती, जब भी आता है दीदी दीदी की रहता है"

"तो उसे हर छुट्टी के दिन बुला क्यों नहीं लेती. घर का खाना पीना मिल जाएगा तो उसका भी मन चंगा हो जाएगा।"

"आप ही जाकर बोलिएगा मुझे तो शर्म आती है"

राजेश ने लाली की चूचियां सहलाते हुए कहा

"भाई से कैसी शर्म"

"और जो उसने पिछली बार जो करतूत की थी उसका क्या?"

" यह तो आप ही बता सकती हो कि उसने ऐसा क्यों किया होगा"

लाली की आंखों के सामने उस दिन का सारा घटनाक्रम घूम गया सच सोनू को इस कार्य के लिए उत्तेजित करने का श्रेय लाली को ही था जिसमें सोनू जैसे किशोर की आंखों के सामने अपने कामुक बदन को परोस दिया था। और उसे अपनी पेंटी में वीर्य भरने को प्रेरित कर दिया था।

राजेश और लाली एक दूसरे सटते चले जा रहे थे राजेश का लंड लाली की नाभि में चुभने लगा था।

अपने लंड पर ध्यान जाते ही राजेश ने लाली को एक बार फिर छेड़ा..

"सोनू का देखी थी क्या…"

"क्या?" लाली ने अपने चेहरे को राजेश से दूर करते हुए पूछा।

राजेश ने प्रत्युत्तर में लाली के चेहरे को वापस अपने समीप खींच लिया और अपने लंड का दबाव बढ़ाते हुए धीरे से बोला...

"ये "

लाली शर्म से सिमट गई और बोली

"छी"

अब तक उसकी कोमल चुचियाँ राजेश के हाथों में आ चुकी थीं। धीरे-धीरे राजेश लाली के ऊपर आ रहा और था और लाली की जाँघे फैल रही थीं।

बिस्तर पर हलचल बढ़ रही थी। राजेश अपने मन में सुगना की मदमस्त जवानी को याद करते हुए लाली को चोद रहा था उधर राजेश की बातों से उत्तेजित हो चुकी लाली अपने छोटे भाई सोनू को याद कर रही थी।

वासना उफान पर थी और लाली की जाघें तन रही थी वह अपनी भावनाओं पर काबू न रख पायी और स्खलित होते हुए बुदबुदाने लगी..

"सोनू बाबू...हां एसे ही …..हा और जोर से"

राजेश लाली के मुंह से यह उद्गार सुन राजेश बेचैन हो गया और पूरी गति से उसे चोदने लगा अंत में उसने लाली का साथ देते हुए खुला

" दीदी अब ठीक बानू"

लाली को अब जाकर हकीकत का एहसास हुआ उसने अपने दोनों हाथ से अपने चेहरे को ढक लिया परंतु अपनी जांघें फैला कर स्खलन का आनंद लेने लगी।

राजेश अपनी बीवी का यह रूप देख कर पूरी तरह उत्तेजित हो गया और उसकी बुर की मखमली गहराइयों को अपने वीर्य से सिंचित करने लगा।

वासना का उफान थमते ही राजेश ने लाली को चुमते हुए बोला

"एक बार सोनू को अपना लो वह भी अब तरस रहा होगा।"

लाली ने अपनी कजरारी आंखें तरेरते हुए बोला "ठीक है जब आप रहेंगे तभी" पर अपना वाक्य पूरा करते-करते शर्म को न छुपा पायी।

"अरे मेरी जान तब तो आनंद ही आ जाएगा…"

रीमा के रोने की आवाज सुनकर लाली और राजेश का प्रेम आलाप संपन्न हुआ।

और आज कुकर की सीटी बजने से लाली अपनी मीठी यादों से बाहर आयी और उसके होठों पर मुस्कुराहट दौड़ गई।

समय तेजी से बीत रहा था। राजेश के आने का वक्त हो रहा था लाली ने स्नान किया और अपने कमरे में आकर सजने संवरने लगी।

अपने नंगे जिस्म को शीशे में देखकर एक बार लाली फिर कामुक हो उठी वह कभी अपनी चुचियाँ आगे कर कभी नितंबों को पीछे कर खुद की खूबसूरती को निहारने लगी।

अलमारी से ब्रा और पेंटी निकालते समय उसे वही पेंटी दिखाई पड़ गई जिस पर उसके भाई सोनू ने अपना वीर्य भरा था। लाली के होठों पर मुस्कान आ गई।

क्या सच में वह सोनू को अपनाएगी।

क्या अपने नंगे जिस्म को को सोनू को छूने देगी क्या वह सोनू के साथ एक ही बिस्तर पर नग्न होकर…..आह…..और …… उसके आगे आप वह सोच भी नहीं पा रही थी। उसकी नंगी जांघों के बीच उस अद्भुत गुफा पर मदन रस झांकने लगा।

उसने ब्रा और पेंटी पहनने का निर्णय त्याग दिया वैसे भी राजेश के आने के पश्चात सबसे पहले उन्हें ही लाली का साथ छोड़ना था वह बेसब्री से राजेश का इंतजार करने लगी वह मन ही मन संभोग के लिए आतुर हो उठी थी।

तभी…

दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुयी। लाली बेहद खुश हो गई उसकी उसकी मखमली बुर में गीलापन अब भी कायम था। राजेश के आने की आहट से वह मुस्कुराती हुई अपनी फ्रंट ओपन नाइटी को लपेट कर दरवाजा खोलने लगी…

दरवाजे पर सोनू खड़ा था… …..

वह उसे देखकर अवाक रह गई।

"अरे सोनू बाबू अंदर आ जा"

सोनू ने घर की दहलीज पार की और तुरंत ही अपनी लाली दीदी के चरण छुए. चरण छूने के पश्चात जैसे-जैसे सोनू उठता गया लाली के खूबसूरत पैर गदराई जांघें आकर्षक कमर और भरी-भरी चूचियां उसकी निगाहों में अपने अस्तित्व का एहसास करातीं गई। लाली स्वयं भी उत्तेजित थी।


हमेशा की तरह लाली और सोनू एक दूसरे के गले लग गए। यह पहला अवसर था जब लाली कि लगभग नंगी चुचियों ने सोनू का स्वागत किया और उसके उभरे हुए निप्पलों के सोनू के सीने में चुभ कर अपने अस्तित्व का एहसास दिलाया।

सोनू ने लाली को अपनी बाहों में भर लिया आज का यह आलिंगन निश्चय ही अलग था। आज सोनू के हाथ लाली की पीठ पर घूम रहे थे। जब तक सोनू अपने हाथों को लाली की कमर तक ले जाता बाहर रिक्शा आने की आहट हुई।

लाली ने रिक्शे की आवाज को पहचान कर यह महसूस कर लिया कि वह रिक्शा उसके ही दरवाजे पर आकर रुका था। उसने ना चाहते हुए भी खुद को सोनू से अलग किया सोनू को लाली का यह व्यवहार थोड़ा अटपटा लगा। उसे उसके अरमानों पर थोड़ी चोट लगी। परंतु वह इशारा पाकर अलग हो गया। उसके लंड में भरपूर तनाव आ चुका था आज लाली दीदी का यह आलिंगन उसके जीवन का सबसे कामुक आलिंगन था परंतु लाली के इस तरह हटने से सोनू थोड़ा दुखी हो गया था।

लाली से अलग होने के पश्चात उसने अपने तने हुए लंड को अपने पैंट में सीधा किया परंतु वह अपनी इस क्रिया को लाली की नजरों से न बचा पाया लाली मुस्कुराते हुए दरवाजे के बाहर आ गई।

रिक्शे पर राजेश एक बड़ा सा कार्टून लिए नीचे उतर रहा था।

हॉल में खड़ा सोनू दरवाजे पर खड़ी लाली को देख रहा था बाहर से आ रही रोशनी लाली के पैरों के बीच से छन छन कर बाहर आ रही थी जिसकी वजह से लाली का पूरा बदन और उसके उभार स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे एक एक्सरे फिल्म की तरह। नाइटी और शरीर एक दूसरे से पूरी तरह अलग हो चुके थे। कायनात ने लाली के कामुक बदन को सोनू की आंखों के सामने परोस दिया था। सोनू अपनी उत्तेजना में खोया हुआ था तभी लाली ने पीछे मुड़कर कहा

"सोनू बाबू अपना जीजा जी के मदद करो"

सोनू अपनी कामुक सोच (जो लाली के नितंबों का आकार नाप रही थी) से निकला और दरवाजे पर खड़ी लाली से सटते हुए बाहर आ गया।

सोनू को देख कर राजेश आश्चर्यचकित था। सोनू भाग कर राजेश के पास पहुंचा उसके चरण छूने की कोशिश की परंतु राजेश ने उसके कंधे पकड़ लिए और अपने आलिंगन में ले लिया यह आलिंगन सोनू को राजेश के दोस्त होने का एहसास दिला रहा था।

"इसमें क्या है जीजा जी"

"पहले उठाओ तो, घर चल कर दिखाते हैं"

राजेश और सोनू उस बड़े से डिब्बे को उठाए हुए कमरे की तरफ आ रहे थे लाली के मन में कौतूहल कायम था वह खुशी से उछल रही थी। इस गहमा गहमी को सुनकर लाली का पुत्र राजू और पुत्री रीमा भी हाल में आकर उस अनजानी चीज का इंतजार कर रहे थे।

कार्टून के डिब्बे का आकार लाली के आश्चर्य को कायम किये हुए था।

कार्टून के डिब्बे को चौकी पर रखकर राजेश उसे खोलने लगा उसके व्यग्र हाथों ने पैकिंग टेप को उसी प्रकार चीरते हुए अलग कर दिया जैसे वह कभी कभी संभोग के लिए आतुर होकर लाली के वस्त्र हटाया करता था।

डिब्बे के अंदर टीवी देख कर लाली खुशी से उछलने लगी उसने आनन-फानन में राजेश को गले से लगा लिया एक पल के लिए वह या भूल गयी थी कि सोनू उसी हाल में उसके पीछे ही खड़ा है।

एक साथ आई खुशियां इंसान को बेसुध कर देती हैं उसे आसपास का एहसास कुछ समय के लिए खत्म हो जाता है यही हाल लाली का था वह राजेश से पूरी तरह लिपट गई। यह आलिंगन पति पत्नी के कामुक आलिंगन की भांति था। परंतु राजेश सोनू को देख रहा था उसने लाली को खुद से अलग न किया अपितु उसे आलिंगन में लिए हुए उसकी पीठ सहलाने लगा। जाने राजेश ने अपने मन में इतनी हिम्मत कहां से लाई, उसके हाथ लाली के नितंबों तक पहुंचे और उसने सोनू के सामने ही लाली के नितंबों को अपनी हथेलियों से दबा दिया। लाली को अब जाकर एहसास हुआ और वह राजेश से अलग हो गई। परंतु लाली और राजेश की यह कामुक क्रिया सोनू के मन पर एक अमिट छाप छोड़ गयी।

सिर्फ एक नाइटी का आवरण लिए लाली की गदराई जवानी सोनू की आंखों के सामने घूम रही थी। राजेश द्वारा उसके नितंबों को इस प्रकार दबाना सोनू को उत्तेजक और कामुक लगा उसके लंड में एक बार फिर तनाव आ गया।

"अच्छा हटो पहले टीवी निकाल लेने तो दो" राजेश ने लाली को अलग करते हुए कहा।

टीवी कार्टून से बाहर आ चुका था। लाली को अब अपनी नग्नता का एहसास हो रहा था वह अब राजेश और सोनू की उपस्थिति में बिना ब्रा और पेंटी के नहीं रहना चाह रही थी। वह अपने कमरे में जाकर पहनने के लिए ब्रा और पेंटी निकालने लगी तभी राजेश ने आवाज दी एक गिलास पानी तो पिलाओ।

लाली उल्टे पैर वापस आ गई और राजेश के लिए पानी निकालने लगी। पानी पीकर राजेश टीवी लगाने के लिए अंदर कमरे में आ गया और पीछे पीछे सोनू भी कुछ ही देर में टीवी लगाने की प्रक्रिया चालू हो गई। लाली को ब्रा और पैंटी पहने का कोई मौका ही नहीं प्राप्त हो रहा था।

यह टीवी एक ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था जिसका एंटीना छत पर लगाया जाना था राजेश ने टीवी का एंटीना लिया और लोहे की सीढ़ियां चढ़ता हुआ छत पर जा पहुंचा। उसने छत पर निकली हुई सरियों की मदद से उस एंटीने को बांधा और तार नीचे गिराया जिसे सोनू ने खिड़की के अंदर लेते हुए टीवी के पास ला दिया।

राजेश छत से नीचे आया और उसने टीवी का तार जोड़ कर उसे ऑन किया दोनों ही बच्चे बिस्तर पर बैठे टीवी को जादू का पिटारा समझ कर देख रहे थे। टीवी ऑन होते ही स्क्रीन पर काले और सफेद बिंदुआने लगे राजेश खुश हो गया और सोनू से कहा

"मैं ऊपर जा रहा हूं जब स्क्रीन पर कुछ आएगा तो बताना"

राजेश के ऊपर जाने के बाद लाली सोनू के बगल में खड़े होकर टीवी को बड़े ध्यान से देख रही थी। जब तक राजेश टीवी की ट्यूनिंग करता लाली थाली में सिंदूर और दीया लेकर आ गई और टीवी पर स्वास्तिक का निशान बनाने लगी। इस दौरान लाली झुकी हुई थी और उसके उभरे हुए नितम्ब सोनू की आंखों के ठीक सामने थे। वह उसके नितंबों की गोलाईयों में खो गया। लाली ने आज सोनू को बेहद उत्तेजित कर दिया था। एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह लाली के नितंबों को उसी प्रकार अपनी हथेलियों से मसल दे जिस प्रकार राजेश ने अब से कुछ देर पहले मसला था।

जैसे ही लाली ने टीवी को दिया दिखाना शुरू किया टीवी पर फिल्म आने लगी यह एक संयोग ही था की स्क्रीन पर एकदंत विनायक की फोटो आ रही थी।

सोनू के कहने से पहले ही राजू ने चिल्लाया पापा आ गया सोनू ने भी लाली के नितंबों से अपना ध्यान हटाया और जोर से बोलो

"जीजा जी आ गया"

राजेश ने ऊपर से ही पूछा

"एकदम साफ है कि अभी भी बिंदी बिंदी आ रहा है"

"नहीं जीजा जी एकदम साफ है आप नीचे आ जाइए"


यह एक संयोग ही था कि राजेश ने एक ही बार में टीवी एंटीना की दिशा बिल्कुल सही कर दी थी वह भागता हुआ कमरे में आया और टीवी स्क्रीन पर चल रहे गणेश वंदना को सुनकर अभीभूत होने लगा।

एक पल के लिए उसके मन में यह गुमान आया जैसे उसने ही उस टीवी का आविष्कार किया था। घर में उपस्थित सभी सदस्यों का ध्यान टीवी की तरफ ही था परंतु सोनू का ध्यान रह-रहकर लाली की तरफ ही जा रहा था। सोनू अपने हॉस्टल में कई बार टीवी देख चुका था वह साक्षात अपनी नायिका लाली दीदी और उसकी कामुकता का आनंद ले रहा था।

टीवी पर फिल्म एक फूल दो माली शुरू हो चुकी शुरू हो चुकी थी।

राजेश ने कहा खाना यहीं बिस्तर पर खा लेते हैं।

ठीक है मैं लेकर आती हूं।

लाली का ध्यान अब भी टीवी पर ही लगा था वह अपनी नग्नता भूल कर रसोई से जाकर खाना और बर्तन लाने लगी सोनू भी उसकी मदद करने रसोई में आ गया इधर राजेश बिस्तर पर चादर बिछा कर खाने का इंतजार करने लगा। लाली बिना ब्रा और पेंटी पहने कमरे में इधर से उधर आ जा रही थी और सोनू का ध्यान बार बार उसकी चुचियों और नितंबों पर जा रहा था कभी रोशनी से उसकी जाँघे स्पष्ट दिखाई पड़ती परंतु लाली अपने ही उन्माद में खोई हुई थी।

खानपान खत्म होते ही लाली लाली ने बर्तन वापस पहुंचाया और वापस कमरे में आ गई।

कमरे में रोशनी कम थी। खिड़कियों को भी राजेश ने बंद करा दिया था शायद उसे अंधेरे में टीवी देखना ज्यादा आनंददायक लग रहा था।

राजेश और सोनू दोनों दीवाल पर अपनी पीठ टिकाए बिस्तर पर बैठकर टीवी देख रहे थे दोनों बच्चे भी कौतूहल बस टीवी पर चल रहे फिल्म को देखकर कभी अचंभित होते हैं कभी उन्हें वह सब बेमानी लगता। रीमा तो बिल्कुल छोटी थी वह सब की खुशियों में शामिल हो रही थी पर शायद उसे इस टीवी की अहमियत बहुत ज्यादा समझ में नहीं आ रही थी।

लाली के कमरे का बिस्तर पीछे और साइड से दीवार से सटा हुआ था सबसे कोने में राजू की जगह थी उसके पश्चात रीमा फिर लाली और आखिरी में राजेश सोया करता था परंतु आज टीवी देखते समय राजेश लाली की जगह पर लेटा हुआ था और राजेश की जगह पर सोनू अपनी पीठ दीवार में सटाए टीवी देख रहा था।

लाली की आने के पश्चात सोनू अकस्मात ही उठ खड़ा हुआ और लाली से कहा

"दीदी आ जाइए बहुत अच्छी पिक्चर है।"

"तू कहां जा रहा है उधर खिसक"

"मैं बाथरूम से आता हूं"

"ठीक है" लाली बिस्तर पर आ चुकी थी वह स्वाभाविक रूप से सरकती हुई राजेश के बिल्कुल करीब आ चुकी थी. जब तक सोनू बाथरूम से लौटकर आता उसने राजेश के गालों पर चुंबन देकर अपनी खुशी और धन्यवाद दोनों ही प्रदान कर दिए थे. जब तक कि उसकी हथेलियां राजेश के लंड को सहला पातीं सोनू कमरे में दाखिल हो चुका था। लाली ने उसके लिए जगह बनाते हुए कहा...

"आजा सोनू"

मौसम थोड़ा सर्द था शुरुआती ठंड पड़ रही थी बिस्तर पर पड़ा हुआ पतला लिहाफ राजेश ने बच्चों को ओढादिया था और एक दूसरा लिहाफ खुद के और लाली के शरीर पर डाल लिया था। लाली ने लिहाफ खींचकर अपनी तरफ किया और उसे सोनू के पैरों पर भी डाल दिया।

कुछ ही देर में सोनू लाली के परिवार का अंग हो चुका था। लाली का पूरा परिवार उस बिस्तर पर बड़ी आसानी से समा जाता था और आज उस पर सोनू के लिए भी जगह बन गई थी। राजेश और सोनू अपनी पीठ दीवाल से सटाये टीवी देख रहे थे। लाली ने भी अपनी पीठ दीवाल से सटा ली थी परंतु उसने तकिया का सहारा लिया हुआ था।

टीवी पर चल रही फिल्म एक फूल दो माली धीरे-धीरे अपनी कहानी पकड़ रही थी जैसे जैसे किरदारों के बीच नजदीकियां बढ़ रही थी वैसे वैसे लाली का मन एकाग्र होता गया । वह मन मैन ही मन खुद को उस नायिका से जोड़ रही थी जिसके अगल बगल दो युवक लेटे हुए थे तथा उसके कामुक और भरे हुए शरीर का आनंद लेना चाहते थे।

लाली एक बार फिर उत्तेजना के आगोश में आ रही थी। लाली ही क्या राजेश और सोनू की स्थिति भी कमोवेश वही थी कमरे में अंधेरा होने की वजह से और टीवी पर ध्यान लगाए रहने की वजह से राजेश और सोनू दोनों को कभी-कभी एक दूसरे की उपस्थिति का एहसास नहीं हो रहा था।

अचानक राजेश ने लाली की नाइटी को ऊपर खींचना शुरू कर दिया जो धीरे-धीरे उसकी जांघों तक आ गयी। उत्तेजना बस लाली ने राजेश को मना नहीं किया परंतु नाइटी के अपनी जांघों के जोड़ पर आते ही उसे अपनी नंगी बुर का एहसास हुआ और उसने राजेश के हाथ वहीं पर रोक दिए।

कुछ देर यथास्थिति कायम रही पर राजेश कहां मानने वाला था वह तो आज टीवी दिखा दिखा कर अपनी प्यारी बीवी लाली को खूब चोदना चाहता था परंतु सोनू की अकस्मात उपस्थिति ने उसके अरमानों पर पानी डाल दिया था। राजेश ने लाली का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया और लाली अपने हाथों से उसे हल्का-हल्का सहलाने लगी।

वर्तमान स्थिति में लाली का यह स्पर्श भी राजेश के लिए काफी था। उधर सोनू अपने बगल में सोई हुई अपनी ख्वाबों की मलिका के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित हुए चले जा रहा था। टीवी पर थिरक रही नायिका उसे अपनी वाली दीदी ही दिखाई पड़ रही थी
बहुत ही सुंदर और रमणिय अपडेट है भाई
क्या राजेश सोनू के घर रहते हुए लाली से जोरदार चुदाई कर पायेगा तब सोनू की प्रतिक्रिया क्या होगी
बहुत ही मजेदार अपडेट है
अगले धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी
 

Sanju@

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लाली आज सुबह से ही बेहद प्रसन्न थी आज राजेश उसके लिए एक अनोखा उपहार लाने वाला था उसे उपहार क्या है उसे इसकी जानकारी तो नहीं थी परंतु राजेश के उत्साह को देखकर लगता था निश्चय ही वह उपहार महत्वपूर्ण होगा।

वह राजेश के साथ दो-तीन दिनों पहले बितायी गई रात को याद करने लगी जब उसे अपनी बाहों में लिए राजेश ने सोनू की बात छेड़ दी.

"तुम्हें सोनू की याद नहीं आती है?"

"क्यों नहीं आती, जब भी आता है दीदी दीदी की रहता है"

"तो उसे हर छुट्टी के दिन बुला क्यों नहीं लेती. घर का खाना पीना मिल जाएगा तो उसका भी मन चंगा हो जाएगा।"

"आप ही जाकर बोलिएगा मुझे तो शर्म आती है"

राजेश ने लाली की चूचियां सहलाते हुए कहा

"भाई से कैसी शर्म"

"और जो उसने पिछली बार जो करतूत की थी उसका क्या?"

" यह तो आप ही बता सकती हो कि उसने ऐसा क्यों किया होगा"

लाली की आंखों के सामने उस दिन का सारा घटनाक्रम घूम गया सच सोनू को इस कार्य के लिए उत्तेजित करने का श्रेय लाली को ही था जिसमें सोनू जैसे किशोर की आंखों के सामने अपने कामुक बदन को परोस दिया था। और उसे अपनी पेंटी में वीर्य भरने को प्रेरित कर दिया था।

राजेश और लाली एक दूसरे सटते चले जा रहे थे राजेश का लंड लाली की नाभि में चुभने लगा था।

अपने लंड पर ध्यान जाते ही राजेश ने लाली को एक बार फिर छेड़ा..

"सोनू का देखी थी क्या…"

"क्या?" लाली ने अपने चेहरे को राजेश से दूर करते हुए पूछा।

राजेश ने प्रत्युत्तर में लाली के चेहरे को वापस अपने समीप खींच लिया और अपने लंड का दबाव बढ़ाते हुए धीरे से बोला...

"ये "

लाली शर्म से सिमट गई और बोली

"छी"

अब तक उसकी कोमल चुचियाँ राजेश के हाथों में आ चुकी थीं। धीरे-धीरे राजेश लाली के ऊपर आ रहा और था और लाली की जाँघे फैल रही थीं।

बिस्तर पर हलचल बढ़ रही थी। राजेश अपने मन में सुगना की मदमस्त जवानी को याद करते हुए लाली को चोद रहा था उधर राजेश की बातों से उत्तेजित हो चुकी लाली अपने छोटे भाई सोनू को याद कर रही थी।

वासना उफान पर थी और लाली की जाघें तन रही थी वह अपनी भावनाओं पर काबू न रख पायी और स्खलित होते हुए बुदबुदाने लगी..

"सोनू बाबू...हां एसे ही …..हा और जोर से"

राजेश लाली के मुंह से यह उद्गार सुन राजेश बेचैन हो गया और पूरी गति से उसे चोदने लगा अंत में उसने लाली का साथ देते हुए खुला

" दीदी अब ठीक बानू"

लाली को अब जाकर हकीकत का एहसास हुआ उसने अपने दोनों हाथ से अपने चेहरे को ढक लिया परंतु अपनी जांघें फैला कर स्खलन का आनंद लेने लगी।

राजेश अपनी बीवी का यह रूप देख कर पूरी तरह उत्तेजित हो गया और उसकी बुर की मखमली गहराइयों को अपने वीर्य से सिंचित करने लगा।

वासना का उफान थमते ही राजेश ने लाली को चुमते हुए बोला

"एक बार सोनू को अपना लो वह भी अब तरस रहा होगा।"

लाली ने अपनी कजरारी आंखें तरेरते हुए बोला "ठीक है जब आप रहेंगे तभी" पर अपना वाक्य पूरा करते-करते शर्म को न छुपा पायी।

"अरे मेरी जान तब तो आनंद ही आ जाएगा…"

रीमा के रोने की आवाज सुनकर लाली और राजेश का प्रेम आलाप संपन्न हुआ।

और आज कुकर की सीटी बजने से लाली अपनी मीठी यादों से बाहर आयी और उसके होठों पर मुस्कुराहट दौड़ गई।

समय तेजी से बीत रहा था। राजेश के आने का वक्त हो रहा था लाली ने स्नान किया और अपने कमरे में आकर सजने संवरने लगी।

अपने नंगे जिस्म को शीशे में देखकर एक बार लाली फिर कामुक हो उठी वह कभी अपनी चुचियाँ आगे कर कभी नितंबों को पीछे कर खुद की खूबसूरती को निहारने लगी।

अलमारी से ब्रा और पेंटी निकालते समय उसे वही पेंटी दिखाई पड़ गई जिस पर उसके भाई सोनू ने अपना वीर्य भरा था। लाली के होठों पर मुस्कान आ गई।

क्या सच में वह सोनू को अपनाएगी।

क्या अपने नंगे जिस्म को को सोनू को छूने देगी क्या वह सोनू के साथ एक ही बिस्तर पर नग्न होकर…..आह…..और …… उसके आगे आप वह सोच भी नहीं पा रही थी। उसकी नंगी जांघों के बीच उस अद्भुत गुफा पर मदन रस झांकने लगा।

उसने ब्रा और पेंटी पहनने का निर्णय त्याग दिया वैसे भी राजेश के आने के पश्चात सबसे पहले उन्हें ही लाली का साथ छोड़ना था वह बेसब्री से राजेश का इंतजार करने लगी वह मन ही मन संभोग के लिए आतुर हो उठी थी।

तभी…

दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुयी। लाली बेहद खुश हो गई उसकी उसकी मखमली बुर में गीलापन अब भी कायम था। राजेश के आने की आहट से वह मुस्कुराती हुई अपनी फ्रंट ओपन नाइटी को लपेट कर दरवाजा खोलने लगी…

दरवाजे पर सोनू खड़ा था… …..

वह उसे देखकर अवाक रह गई।

"अरे सोनू बाबू अंदर आ जा"

सोनू ने घर की दहलीज पार की और तुरंत ही अपनी लाली दीदी के चरण छुए. चरण छूने के पश्चात जैसे-जैसे सोनू उठता गया लाली के खूबसूरत पैर गदराई जांघें आकर्षक कमर और भरी-भरी चूचियां उसकी निगाहों में अपने अस्तित्व का एहसास करातीं गई। लाली स्वयं भी उत्तेजित थी।


हमेशा की तरह लाली और सोनू एक दूसरे के गले लग गए। यह पहला अवसर था जब लाली कि लगभग नंगी चुचियों ने सोनू का स्वागत किया और उसके उभरे हुए निप्पलों के सोनू के सीने में चुभ कर अपने अस्तित्व का एहसास दिलाया।

सोनू ने लाली को अपनी बाहों में भर लिया आज का यह आलिंगन निश्चय ही अलग था। आज सोनू के हाथ लाली की पीठ पर घूम रहे थे। जब तक सोनू अपने हाथों को लाली की कमर तक ले जाता बाहर रिक्शा आने की आहट हुई।

लाली ने रिक्शे की आवाज को पहचान कर यह महसूस कर लिया कि वह रिक्शा उसके ही दरवाजे पर आकर रुका था। उसने ना चाहते हुए भी खुद को सोनू से अलग किया सोनू को लाली का यह व्यवहार थोड़ा अटपटा लगा। उसे उसके अरमानों पर थोड़ी चोट लगी। परंतु वह इशारा पाकर अलग हो गया। उसके लंड में भरपूर तनाव आ चुका था आज लाली दीदी का यह आलिंगन उसके जीवन का सबसे कामुक आलिंगन था परंतु लाली के इस तरह हटने से सोनू थोड़ा दुखी हो गया था।

लाली से अलग होने के पश्चात उसने अपने तने हुए लंड को अपने पैंट में सीधा किया परंतु वह अपनी इस क्रिया को लाली की नजरों से न बचा पाया लाली मुस्कुराते हुए दरवाजे के बाहर आ गई।

रिक्शे पर राजेश एक बड़ा सा कार्टून लिए नीचे उतर रहा था।

हॉल में खड़ा सोनू दरवाजे पर खड़ी लाली को देख रहा था बाहर से आ रही रोशनी लाली के पैरों के बीच से छन छन कर बाहर आ रही थी जिसकी वजह से लाली का पूरा बदन और उसके उभार स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे एक एक्सरे फिल्म की तरह। नाइटी और शरीर एक दूसरे से पूरी तरह अलग हो चुके थे। कायनात ने लाली के कामुक बदन को सोनू की आंखों के सामने परोस दिया था। सोनू अपनी उत्तेजना में खोया हुआ था तभी लाली ने पीछे मुड़कर कहा

"सोनू बाबू अपना जीजा जी के मदद करो"

सोनू अपनी कामुक सोच (जो लाली के नितंबों का आकार नाप रही थी) से निकला और दरवाजे पर खड़ी लाली से सटते हुए बाहर आ गया।

सोनू को देख कर राजेश आश्चर्यचकित था। सोनू भाग कर राजेश के पास पहुंचा उसके चरण छूने की कोशिश की परंतु राजेश ने उसके कंधे पकड़ लिए और अपने आलिंगन में ले लिया यह आलिंगन सोनू को राजेश के दोस्त होने का एहसास दिला रहा था।

"इसमें क्या है जीजा जी"

"पहले उठाओ तो, घर चल कर दिखाते हैं"

राजेश और सोनू उस बड़े से डिब्बे को उठाए हुए कमरे की तरफ आ रहे थे लाली के मन में कौतूहल कायम था वह खुशी से उछल रही थी। इस गहमा गहमी को सुनकर लाली का पुत्र राजू और पुत्री रीमा भी हाल में आकर उस अनजानी चीज का इंतजार कर रहे थे।

कार्टून के डिब्बे का आकार लाली के आश्चर्य को कायम किये हुए था।

कार्टून के डिब्बे को चौकी पर रखकर राजेश उसे खोलने लगा उसके व्यग्र हाथों ने पैकिंग टेप को उसी प्रकार चीरते हुए अलग कर दिया जैसे वह कभी कभी संभोग के लिए आतुर होकर लाली के वस्त्र हटाया करता था।

डिब्बे के अंदर टीवी देख कर लाली खुशी से उछलने लगी उसने आनन-फानन में राजेश को गले से लगा लिया एक पल के लिए वह या भूल गयी थी कि सोनू उसी हाल में उसके पीछे ही खड़ा है।

एक साथ आई खुशियां इंसान को बेसुध कर देती हैं उसे आसपास का एहसास कुछ समय के लिए खत्म हो जाता है यही हाल लाली का था वह राजेश से पूरी तरह लिपट गई। यह आलिंगन पति पत्नी के कामुक आलिंगन की भांति था। परंतु राजेश सोनू को देख रहा था उसने लाली को खुद से अलग न किया अपितु उसे आलिंगन में लिए हुए उसकी पीठ सहलाने लगा। जाने राजेश ने अपने मन में इतनी हिम्मत कहां से लाई, उसके हाथ लाली के नितंबों तक पहुंचे और उसने सोनू के सामने ही लाली के नितंबों को अपनी हथेलियों से दबा दिया। लाली को अब जाकर एहसास हुआ और वह राजेश से अलग हो गई। परंतु लाली और राजेश की यह कामुक क्रिया सोनू के मन पर एक अमिट छाप छोड़ गयी।

सिर्फ एक नाइटी का आवरण लिए लाली की गदराई जवानी सोनू की आंखों के सामने घूम रही थी। राजेश द्वारा उसके नितंबों को इस प्रकार दबाना सोनू को उत्तेजक और कामुक लगा उसके लंड में एक बार फिर तनाव आ गया।

"अच्छा हटो पहले टीवी निकाल लेने तो दो" राजेश ने लाली को अलग करते हुए कहा।

टीवी कार्टून से बाहर आ चुका था। लाली को अब अपनी नग्नता का एहसास हो रहा था वह अब राजेश और सोनू की उपस्थिति में बिना ब्रा और पेंटी के नहीं रहना चाह रही थी। वह अपने कमरे में जाकर पहनने के लिए ब्रा और पेंटी निकालने लगी तभी राजेश ने आवाज दी एक गिलास पानी तो पिलाओ।

लाली उल्टे पैर वापस आ गई और राजेश के लिए पानी निकालने लगी। पानी पीकर राजेश टीवी लगाने के लिए अंदर कमरे में आ गया और पीछे पीछे सोनू भी कुछ ही देर में टीवी लगाने की प्रक्रिया चालू हो गई। लाली को ब्रा और पैंटी पहने का कोई मौका ही नहीं प्राप्त हो रहा था।

यह टीवी एक ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था जिसका एंटीना छत पर लगाया जाना था राजेश ने टीवी का एंटीना लिया और लोहे की सीढ़ियां चढ़ता हुआ छत पर जा पहुंचा। उसने छत पर निकली हुई सरियों की मदद से उस एंटीने को बांधा और तार नीचे गिराया जिसे सोनू ने खिड़की के अंदर लेते हुए टीवी के पास ला दिया।

राजेश छत से नीचे आया और उसने टीवी का तार जोड़ कर उसे ऑन किया दोनों ही बच्चे बिस्तर पर बैठे टीवी को जादू का पिटारा समझ कर देख रहे थे। टीवी ऑन होते ही स्क्रीन पर काले और सफेद बिंदुआने लगे राजेश खुश हो गया और सोनू से कहा

"मैं ऊपर जा रहा हूं जब स्क्रीन पर कुछ आएगा तो बताना"

राजेश के ऊपर जाने के बाद लाली सोनू के बगल में खड़े होकर टीवी को बड़े ध्यान से देख रही थी। जब तक राजेश टीवी की ट्यूनिंग करता लाली थाली में सिंदूर और दीया लेकर आ गई और टीवी पर स्वास्तिक का निशान बनाने लगी। इस दौरान लाली झुकी हुई थी और उसके उभरे हुए नितम्ब सोनू की आंखों के ठीक सामने थे। वह उसके नितंबों की गोलाईयों में खो गया। लाली ने आज सोनू को बेहद उत्तेजित कर दिया था। एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह लाली के नितंबों को उसी प्रकार अपनी हथेलियों से मसल दे जिस प्रकार राजेश ने अब से कुछ देर पहले मसला था।

जैसे ही लाली ने टीवी को दिया दिखाना शुरू किया टीवी पर फिल्म आने लगी यह एक संयोग ही था की स्क्रीन पर एकदंत विनायक की फोटो आ रही थी।

सोनू के कहने से पहले ही राजू ने चिल्लाया पापा आ गया सोनू ने भी लाली के नितंबों से अपना ध्यान हटाया और जोर से बोलो

"जीजा जी आ गया"

राजेश ने ऊपर से ही पूछा

"एकदम साफ है कि अभी भी बिंदी बिंदी आ रहा है"

"नहीं जीजा जी एकदम साफ है आप नीचे आ जाइए"


यह एक संयोग ही था कि राजेश ने एक ही बार में टीवी एंटीना की दिशा बिल्कुल सही कर दी थी वह भागता हुआ कमरे में आया और टीवी स्क्रीन पर चल रहे गणेश वंदना को सुनकर अभीभूत होने लगा।

एक पल के लिए उसके मन में यह गुमान आया जैसे उसने ही उस टीवी का आविष्कार किया था। घर में उपस्थित सभी सदस्यों का ध्यान टीवी की तरफ ही था परंतु सोनू का ध्यान रह-रहकर लाली की तरफ ही जा रहा था। सोनू अपने हॉस्टल में कई बार टीवी देख चुका था वह साक्षात अपनी नायिका लाली दीदी और उसकी कामुकता का आनंद ले रहा था।

टीवी पर फिल्म एक फूल दो माली शुरू हो चुकी शुरू हो चुकी थी।

राजेश ने कहा खाना यहीं बिस्तर पर खा लेते हैं।

ठीक है मैं लेकर आती हूं।

लाली का ध्यान अब भी टीवी पर ही लगा था वह अपनी नग्नता भूल कर रसोई से जाकर खाना और बर्तन लाने लगी सोनू भी उसकी मदद करने रसोई में आ गया इधर राजेश बिस्तर पर चादर बिछा कर खाने का इंतजार करने लगा। लाली बिना ब्रा और पेंटी पहने कमरे में इधर से उधर आ जा रही थी और सोनू का ध्यान बार बार उसकी चुचियों और नितंबों पर जा रहा था कभी रोशनी से उसकी जाँघे स्पष्ट दिखाई पड़ती परंतु लाली अपने ही उन्माद में खोई हुई थी।

खानपान खत्म होते ही लाली लाली ने बर्तन वापस पहुंचाया और वापस कमरे में आ गई।

कमरे में रोशनी कम थी। खिड़कियों को भी राजेश ने बंद करा दिया था शायद उसे अंधेरे में टीवी देखना ज्यादा आनंददायक लग रहा था।

राजेश और सोनू दोनों दीवाल पर अपनी पीठ टिकाए बिस्तर पर बैठकर टीवी देख रहे थे दोनों बच्चे भी कौतूहल बस टीवी पर चल रहे फिल्म को देखकर कभी अचंभित होते हैं कभी उन्हें वह सब बेमानी लगता। रीमा तो बिल्कुल छोटी थी वह सब की खुशियों में शामिल हो रही थी पर शायद उसे इस टीवी की अहमियत बहुत ज्यादा समझ में नहीं आ रही थी।

लाली के कमरे का बिस्तर पीछे और साइड से दीवार से सटा हुआ था सबसे कोने में राजू की जगह थी उसके पश्चात रीमा फिर लाली और आखिरी में राजेश सोया करता था परंतु आज टीवी देखते समय राजेश लाली की जगह पर लेटा हुआ था और राजेश की जगह पर सोनू अपनी पीठ दीवार में सटाए टीवी देख रहा था।

लाली की आने के पश्चात सोनू अकस्मात ही उठ खड़ा हुआ और लाली से कहा

"दीदी आ जाइए बहुत अच्छी पिक्चर है।"

"तू कहां जा रहा है उधर खिसक"

"मैं बाथरूम से आता हूं"

"ठीक है" लाली बिस्तर पर आ चुकी थी वह स्वाभाविक रूप से सरकती हुई राजेश के बिल्कुल करीब आ चुकी थी. जब तक सोनू बाथरूम से लौटकर आता उसने राजेश के गालों पर चुंबन देकर अपनी खुशी और धन्यवाद दोनों ही प्रदान कर दिए थे. जब तक कि उसकी हथेलियां राजेश के लंड को सहला पातीं सोनू कमरे में दाखिल हो चुका था। लाली ने उसके लिए जगह बनाते हुए कहा...

"आजा सोनू"

मौसम थोड़ा सर्द था शुरुआती ठंड पड़ रही थी बिस्तर पर पड़ा हुआ पतला लिहाफ राजेश ने बच्चों को ओढादिया था और एक दूसरा लिहाफ खुद के और लाली के शरीर पर डाल लिया था। लाली ने लिहाफ खींचकर अपनी तरफ किया और उसे सोनू के पैरों पर भी डाल दिया।

कुछ ही देर में सोनू लाली के परिवार का अंग हो चुका था। लाली का पूरा परिवार उस बिस्तर पर बड़ी आसानी से समा जाता था और आज उस पर सोनू के लिए भी जगह बन गई थी। राजेश और सोनू अपनी पीठ दीवाल से सटाये टीवी देख रहे थे। लाली ने भी अपनी पीठ दीवाल से सटा ली थी परंतु उसने तकिया का सहारा लिया हुआ था।

टीवी पर चल रही फिल्म एक फूल दो माली धीरे-धीरे अपनी कहानी पकड़ रही थी जैसे जैसे किरदारों के बीच नजदीकियां बढ़ रही थी वैसे वैसे लाली का मन एकाग्र होता गया । वह मन मैन ही मन खुद को उस नायिका से जोड़ रही थी जिसके अगल बगल दो युवक लेटे हुए थे तथा उसके कामुक और भरे हुए शरीर का आनंद लेना चाहते थे।

लाली एक बार फिर उत्तेजना के आगोश में आ रही थी। लाली ही क्या राजेश और सोनू की स्थिति भी कमोवेश वही थी कमरे में अंधेरा होने की वजह से और टीवी पर ध्यान लगाए रहने की वजह से राजेश और सोनू दोनों को कभी-कभी एक दूसरे की उपस्थिति का एहसास नहीं हो रहा था।

अचानक राजेश ने लाली की नाइटी को ऊपर खींचना शुरू कर दिया जो धीरे-धीरे उसकी जांघों तक आ गयी। उत्तेजना बस लाली ने राजेश को मना नहीं किया परंतु नाइटी के अपनी जांघों के जोड़ पर आते ही उसे अपनी नंगी बुर का एहसास हुआ और उसने राजेश के हाथ वहीं पर रोक दिए।

कुछ देर यथास्थिति कायम रही पर राजेश कहां मानने वाला था वह तो आज टीवी दिखा दिखा कर अपनी प्यारी बीवी लाली को खूब चोदना चाहता था परंतु सोनू की अकस्मात उपस्थिति ने उसके अरमानों पर पानी डाल दिया था। राजेश ने लाली का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया और लाली अपने हाथों से उसे हल्का-हल्का सहलाने लगी।

वर्तमान स्थिति में लाली का यह स्पर्श भी राजेश के लिए काफी था। उधर सोनू अपने बगल में सोई हुई अपनी ख्वाबों की मलिका के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित हुए चले जा रहा था। टीवी पर थिरक रही नायिका उसे अपनी वाली दीदी ही दिखाई पड़ रही थी
बहुत ही सुंदर और रमणिय अपडेट है भाई
क्या राजेश सोनू के घर रहते हुए लाली से जोरदार चुदाई कर पायेगा तब सोनू की प्रतिक्रिया क्या होगी
बहुत ही मजेदार अपडेट है
अगले धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी
 

Sanju@

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अचानक राजेश ने लाली की नाइटी को ऊपर खींचना शुरू कर दिया जो धीरे-धीरे उसकी जांघों तक आ गयी। उत्तेजना बस लाली ने राजेश को मना नहीं किया परंतु नाइटी के अपनी जांघों के जोड़ पर आते ही उसे अपनी नंगी बुर का एहसास हुआ और उसने राजेश के हाथ वहीं पर रोक दिए।

कुछ देर यथास्थिति कायम रही पर राजेश कहां मानने वाला था वह तो आज टीवी दिखा दिखा कर अपनी प्यारी बीवी लाली को खूब चोदना चाहता था परंतु सोनू की अकस्मात उपस्थिति ने उसके अरमानों पर पानी डाल दिया था। राजेश ने लाली का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया और लाली अपने हाथों से उसे हल्का-हल्का सहलाने लगी।

वर्तमान स्थिति में लाली का यह स्पर्श भी राजेश के लिए काफी था। उधर सोनू अपने बगल में सोई हुई अपनी ख्वाबों की मलिका के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित हुए चले जा रहा था। टीवी पर थिरक रही नायिका उसे अपनी लाली दीदी ही दिखाई पड़ रही थी


अब आगे….

अपने तने हुए लंड को व्यवस्थित करने के लिए सोनू ने अपना दाहिना हाथ लिहाफ के अंदर किया और अपने लंड की तरफ ले गया पर इसी दौरान उसकी हथेलियों का पिछला भाग लाली की नग्न जांघों से छू गया सोनू को जैसे करंट सा लगा।

उसे यकीन ही नहीं हुआ कि उसने नारी शरीर का वह अनोखा भाग अपनी हथेलियों के पिछले भाग से छू लिया है। उसने अपने लंड को व्यवस्थित किया और वापस अपनी हथेलियां ऊपर करते समय एक बार फिर लाली की जांघों को छूने की कोशिश की। वह यह तसल्ली करना चाहता था कि क्या उसने सच लाली की नंगी जांघों को छुआ है या नाइटी के ऊपर से।


इस बार सोनू ने अपनी हथेलियों की दिशा मोड़ दी थी सोनू की हथेलियां एक बार फिर लाली की जांघों पर सट रही थी जब तक कि सोनू अपने हाथ हटा पाता लाली ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपनी जांघों से सटाये रखा।

लाली ने सोनू की चोरी पकड़ ली थी परंतु अब वह खुद उहाफोह में थी कि वह उसका हाथ हटाए या उसी जगह रखें रहे? लाली मन ही मन दुविधा में थी और उसी दुविधा में कुछ सेकेंड तक सोनू की हथेलियां लाली की नंगी जांघों से छू रहीं थी। धीरे-धीरे लाली का हाथ सोनू के हाथ से हट गया पर सोनू की हथेलियों ने लाली की जांघों को ना छोड़ा।

सोनू की सांसें तेज चल रही थीं। उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि लाली दीदी ने उसका हाथ क्यों पकड़ा और अब उन्होंने उसका हाथ क्यों छोड़ दिया था। जबकि वह अपने हाथ अभी भी उनकी जांघों से सटाये हुए था। सोनू ने अपनी हथेलियां थोड़ी ऊपर की परंतु उसने लाली की जांघों को न छोड़ा। 5कुछ ही देर में सोनू ने हिम्मत जुटाई और लाली की नंगी जांघों पर अपने हाथ फिराने लगा।

उधर लाली उत्तेजना में कॉप रही थी। उसने अकस्मात ही सोनू का हाथ अपनी जांघ पर महसूस कर न सिर्फ उसे पकड़ लिया था अपितु उसे उसी अवस्था में कुछ देर रखे रहा था। अब वह यह जान चुकी थी कि सोनू उसकी नंगी जांघों को सहलाना चाह रहा है उसने अपने हाथ हटा लिए परंतु सोनू की हथेलियों का स्पर्श उसे अब भी प्राप्त हो रहा था। लाली अपनी उत्तेजना को कायम रखते हुए सोनू के स्पर्श का आनंद लेने लगी ।

तभी लाली को अपनी दूसरी जांघ पर राजेश की हथेलियों का स्पर्श प्राप्त हुआ। राजेश अपने लंड को सहलाने से उत्तेजित हो चुका था और वह लाली की मखमली जाँघों और उसके बीच छुपी हुई बूर को अपनी उंगलियों से सहलाना चाह रहा था। लाली मन ही मन इस उत्तेजक घड़ी का आनंद लेने लगी परंतु उसे पता था यह ज्यादा देर नहीं चल पाएगा। सोनू भी धीरे-धीरे व्यग्र हो रहा था उसकी हथेलियां उसके वस्ति प्रदेश की तरफ बढ़ रहीं थीं। हर कुछ पलों के बाद सोनू की हथेलियां अपने लक्ष्य के बिल्कुल करीब थीं।

जीजा और साले के बीच लक्ष्य तक पहुंचने की होड़ सी लग गई थी। कमरे में पूरी तरह शांति थी सिर्फ टीवी की आवाज ही कमरे में गूंज रही थी। सभी की आंखें टीवी पर लगी हुई थीं और हाथ अपने-अपने हरकतों में व्यस्त थे। लाली अपने हाथ से राजेश का लंड सहला रही थी परंतु सोनू का लंड छुने की उसकी हिम्मत नहीं थी। वह खुद से अपनी व्यग्रता और इच्छा को सोनू पर हावी नहीं करना चाहती थी। धीरे धीरे राजेश और सोनू की हथेलियों उसकी मखमली बुर की तरफ बढ़ रहीं थीं।

अचानक लाली में राजेश का हाथ पकड़ कर उसे वापस अपनी जांघों पर रख दिया। जो अब ठीक उसकी बुर के ऊपर पहुंचने वाला था। राजेश लाली के इस व्यवहार से हतप्रभ था। आज पहली बार लाली ने उसे अपनी बुर छूने से रोक दिया था। उसने अपनी गर्दन घुमाई और लाली की तरफ देखा। परंतु लाली ने बड़े प्यार से अपनी आंखें बंद कर उसे प्यार से शांत कर दिया। राजेश को यह बात समझ में ना आयी परंतु वह अपने लंड को सहलाये जाने का आनंद लेने लगा जिसमें लाली में अपनी हथेलियों की गति बढ़ाकर नई ऊर्जा डाल दी थी।

सोनू की उंगलियां तेजी से लाली की बुर की तरफ बढ़ रही थीं। उस सुनहरी गुफा तक पहुंचने से पहले वह लाली की बुर के मखमली और मुलायम बालों से खेलने लगा। सोनू बेहद आनंदित हो रहा था। यह पहला अवसर था जब उसने किसी लड़की या युवती की बुर को इतने करीब से छुआ था। वह वासना में डूबा हुआ अपनी लाली दीदी की बुर के बिल्कुल समीप आ चुका था।


लाली से कोई प्रतिरोध न मिलने से उसका उत्साह बढ़ गया और अंततः उसकी उंगलियों में लाली की बुर् के होठों पर आए मदन रस को छू लिया। उस चिपचिपे द्रव्य को अपनी उंगलियों पर महसूस कर सोनू खुशी से पागल हो गया उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह आगे क्या करें। यह उसका पहला अनुभव था वह चाह रहा था कि अपनी उंगलियों को बाहर खींचे और जाकर अपनी इस खुशी का आनंद एकांत में उठाए उसने अपने हाथ बाहर खींचने की कोशिश की।

यही वह अवसर था जब लाली ने एक बार फिर उसकी कलाई पकड़ ली सोनू एक पल के लिए डर गया परंतु लाली ने उसका हाथ उसी अवस्था में कुछ देर तक पकड़े रहा। सोनू की खुशी का ठिकाना ना रहा। उसकी तर्जनी ने लाली के बुर् के दोनों होठों के बीच अपनी जगह बनानी शुरू कर दी। ऐसा लग रहा था जैसे सोनू लाली के मक्खन भरे मुंह में अपनी उंगलियां घुमा रहा हो। जैसे-जैसे सोनू की उंगलियां लाली के बुर के अंदर जाने लगी बुर की मखमली दीवारों में अपना प्रतिरोध दिखाना शुरू किया। मदन रस की फिसलन बुर की दीवारों के प्रतिरोध को कम कर रही थी परंतु सोनू की उंगलियों को उनका सुखद स्पर्श बेहद उत्तेजक लग रहा था। उसने अपनी उंगलियों को वापस निकाला और उंगलियों पर लगे मदन रस को दूसरी उंगलियों पर रगड़ कर उसकी चिकनाहट को महसूस किया।

अचानक उसे स्त्रियों की भग्नासा का ध्यान आया परंतु सोनू जैसे नौसिखिया के लिए लाली का भग्नासा खोज पाना इतना आसान न था वह अपनी उंगलियों को लाली की बुर के होठों पर इधर घुमाने लगा। उंगलियों का स्पर्श अपनी भग्नासा पर पढ़ते ही लाली ने अपनी हथेली से उसके हाथ को दबा दिया। लाली के इशारे से सोनू ने वह खूबसूरत जगह खोज ली। जब जब उसकी उंगलियां भगनासे से छूतीं लाली उसके हाथों को पकड़ लेती । कुछ ही देर में लाली की बुर की दोस्ती सोनू की उंगलियों से हो गयी। दोनों ही एक दूसरे का मर्म समझने लगे।

सोनू की उंगलियां लाली की बुर में जाते समय प्रेम रस चुराती और उसके भगनासा पर अर्पित कर देतीं। लाली अपनी दोनों जाँघे सिकोड़ रही थी और प्रेम रस को बाहर की तरफ धक्का देकर निकालने का प्रयास कर रही थी।

उधर वह राजेश के लंड को सहलाए जा रही थी। अब भी उसे सोनू के लंड को छूने की हिम्मत न थी परंतु वह इस उत्तेजना का आनंद ले रहे थी। जितनी उत्तेजना वह सोनू के स्पर्श से प्राप्त कर रही थी वह अपने पति राजेश के लंड को उसी तत्परता से सह लाए जा रही थी। राजेश भी अब पूरी तरह उत्तेजित हो चुका था।

लाली ने अचानक अपने दोनों पैर ऊपर की तरफ मोड़े और सोनू की उंगलियां छटक कर बाहर आ गयीं। सोनू के लिए शायद यह एक इशारा था और उसकी उंगलियों को लाली की बुर से बिछड़ने का इशारा मिल चुका था। सोनू का लंड खुद भी अब वीर्य स्खलन के लिए तैयार था।


अचानक ही सोनू बिस्तर से उठा और बोला

" मैं जा रहा हूं सोने मुझे नींद आ रही है "

राजेश ने कहा

"ठीक है सोनू आराम कर लो रात को फिर टीवी देखा जाएगा "

लाली की भी इच्छा यही थी वह राजेश से चुदना चाहती थी। उसने भी सोनू को न रोका और सोनू हॉल की तरफ बढ़ गया। परंतु जाते जाते उसने अपनी उंगलियां अपनी नाक की तरफ ले गया जिस पर लाली की बुर का प्रेम रस लिपटा हुआ था। वह अपनी अधीरता न छूपा पाया और इसे लाली ने बखूबी देख लिया वह सोनू की इस हरकत से बेहद उत्तेजित हो गयी। अपने ही भाई को अपनी बुर का रस सूंघते देख लाली सिहर गई।

राजेश बिस्तर से उठा और अपने कमरे का दरवाजा ताकत लगाकर बंद कर दिया उसे दरवाजा बंद करने की प्रैक्टिस थी अन्यथा उसे बंद करना लाली के बस का न था। दरवाजा बंद होने की स्पष्ट आहट से सोनू जान चुका कि आगे कमरे में क्या होने वाला है। वह दरवाजे के पास खड़ा होकर अंदर के दृश्यों की कल्पना करने लगा और अपने कानों को दरवाजे से सटाकर सुनने का प्रयास करने लगा।

राजू और रीमा सो चुके थे। कमरे में ठंड अब कम हो चुकी थी कई लोगों की उपस्थिति से कमरा वैसे भी कुछ गर्म हो चुका था और ऊपर से लाली और राजेश दोनों ही बेहद उत्तेजित थे। एक ही झटके में राजेश ने लिहाफ हटाया और लाली की नंगी जांघों को देखकर उस पर टूट पड़ा। बाहर खड़ा सोनू अंदर के दृश्य तो नहीं देख पा रहा था परंतु उसे उसका एहसास बखूबी था।

लाली की जाँघों और बुर के आसपास इतना ढेर सारा चिपचिपा पन देखकर राजेश से रहा न गया और उसने बोला

"अरे आज तक पूरा गर्म बाड़ू सोनू के देख कर गरमाइल बाडू का?"

राजेश ने लाली को छेड़ते हुए कहा।

"आप आइए अपना काम कीजिए" लाली ने अपनी दोनों जाँघे फैला दीं।

"अच्छा एक बात तो बताओ उस समय तुमने मेरा हाथ क्यों रोका था?"

लाली मुस्कुराई और बोली

"एक ही ट्रैक पर दो रेलगाड़ी गाड़ी कैसे चलती?"

राजेश यह बात सुनकर उतावला हो गया। जो लाली ने कहा था वह उसकी सोच से परे था। वह लाली को बेतहाशा चूमने लगा और बोला

"बताओ ना किसका हाथ था?"

"आपके साले का" जब तक लाली यह बात बोलती राजेश का लंड लाली की गर्म और चिपचिपी बुर में प्रवेश कर चुका था। और लाली अपनी आंखें बंद की संभोग का आनंद लेने लगी।

जैसे-जैसे राजेश का आवेग बढ़ता गया टीवी की आवाज पर बिस्तर की धमाचौकडी की आवाज भारी होती गयी जो सोनू के सतर्क कानों को बखूबी सुनाई पड़ रही थी। उस पर से लाली की कामुक आहे सोनू को और भी स्पष्ट सुनाई पड़ रही थीं।


जाने सोनू और लाली में कोई टेलीपैथी थी या कुछ और परंतु सोनू को लाली बेहद करीब नजर आ रही थी। वह अपने ख्यालों में हैं उसे चूम रहा था और अपनी हथेलियों से अपने लंड को लगातार आगे पीछे किये जा रहा था। अचानक लाइट चली गई और टीवी एकाएक बंद हो गया। कमरे में अचानक पूरी शांति हो गई परंतु राजेश और लाली अपनी चुदाई में पूरी तरह मस्त थे उन्हें सोनू का ध्यान ना आया।

कमरे में चल रही और जांघों के टकराने की थाप स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी। सोनू से अब और न देखा गया उसकी हथेलियों की गति अचानक बढ़ गई और वीर्य की धारा फूट पड़ी।

स्खलित होते समय उसके कानों ने अचानक ही लाली की आवाज सुनी। सोनू ….आ…...ईई आह…. हां बाबू ऐसे हीं…….…...आ आ आ ए ….……….आईईईई "

सोनू ने जो सुना वह खुद पर यकीन न कर पाया। पर उसने अपनी हथेलियों से अपने लंड को मसलना जारी रखा वह वीर्य की अंतिम बूंद को भी अपनी वाली दीदी को समर्पित करता रहा जो उसकी लाली दीदी तक तो न पहुंच पायीं परंतु उसके दरवाजे पर गिरकर एक अनुपम कलाकृति बनाती रहीं।

सोनू थके हुए कदमों से हॉल में पड़ी चौकी पर जाकर लेट गया। अब वह कमरे के अंदर चल रही धमाचौकड़ी को और सुनना नहीं चाहता था। उसकी उत्तेजना चरम को प्राप्त हो चुकी थी वह कम से कम कुछ घंटों के लिए अपनी सांसो को नियंत्रित करते हुए बिस्तर पर लेट कर इस सुखद अहसास को आत्मसात कर रहा था।

उधर लाली की कामुक कराहें थम गई थीं। परंतु राजेश उसे अभी भी चोदे जा रहा था। लाली ने उसे उत्तेजित करते हुए कहा

"आप खुश हो ना?

"क्यों किस बात पर?"

अपनी मुनिया ( राजेश कभी-कभी लाली की बुर को मुनिया कहता था) को अपने साले से साझा कर...

राजेश को लाली की यह बात आग में घी जैसी प्रतीत हुयी। वह स्वयं भी उन्ही खयालों में डूबा हुआ था और लाली कि इस बात से उससे रहा न गया और उसने अपने लंड को लाली की बुर में पूरी गहराई तक डाल कर इस स्खलित होने लगा।

उत्तेजना का ज्वार जब शांत हुआ तब एक बार फिर राजेश ने पूछा।

"सोनू के भी छुवले रहलु हा"

"अब एक ही दिन में सब कुछ लुटा दी?"

राजेश ने लाली को आगोश में ले लिया और उसके होंठों को चूमते हुए बोला

"वह तुम्हारा भाई है तुम ही जानो उसका ख्याल कैसे रखोगे मुझे कुछ नहीं कहना है"

"और यदि उसने भी अपनी मलाई मेरे ऊपर गिरा दी तब तो मेरी मुनिया और चूँची आपके लिए पवित्र ना रहेगी और आपके होठों का स्पर्श उसे कैसे मिलेगा"

जब तुम और तुम्हारी मुनिया उसे अपना लेंगी तो फिर मैं भी अपना लूंगा आखिर तब वह अपने परिवार का ही हिस्सा हो जाएगा।

लाली ने राजेश की बात सुन तो ली परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया ना दी। वह अपनी आंखें बंद कर राजेश को अपने नींद में होने का एहसास दिला रही थी राजेश भी पूरी तरह थक चुका था वह उसे आगोश में ले कर सो गया। परंतु राजेश ने लाली को सोनू के वीर्य को अपनाने के लिए अपनी रजामंदी दे दी थी।

लाली की अंतरात्मा मुस्कुरा रही थी। वह सोनू को अपनाने का मन बना चुकी थी…

आइए बहुत दिन हो गया सुगना के पति रतन का हालचाल ले लेते हैं आखिर इस कहानी में उसकी भूमिका भी अहम होगी।

सुगना के साथ होली मनाने के पश्चात रतन मुंबई पहुंच चुका था। हालांकि सुगना ने रतन को अब भी अपने शरीर पर हाथ लगाने नहीं दिया था परंतु फिर भी वह उससे बातें करने लगी थी। जितना प्यार वह सूरज से करता था सुगना उतनी ही आत्मीयता से उससे बातें करती थी ।

मुंबई पहुंचने के बाद रतन का मन नहीं लग रहा था अपनी पत्नी सुगना और उसके बच्चे सूरज का चेहरा उसके जेहन में बस गया था। कभी-कभी उसके मन में आता कि वह सब कुछ छोड़ कर वापस अपने गांव चला जाए परंतु यह इतना आसान नहीं था मुंबई में उसने अपनी गृहस्थी जमा ली थी।

बबीता से उसके संबंध धीरे-धीरे खराब हो रहे थे उसकी बड़ी बेटी मिंकी उसे बहुत प्यारी थी उसे ऐसा लगता था जैसे वह उसके और बबीता के प्रेम की निशानी थी परंतु छोटी बेटी चिंकी का जन्म अनायास ही हो गया था रतन और बबीता ने यह निर्धारित किया था कि वह परिवार नियोजन के साधनों का समुचित उपयोग करेंगे। वह दोनों ही दूसरी संतान के पक्षधर नहीं थे परंतु रतन के सावधानी बरतने के बावजूद बबीता गर्भवती हो गई अब राजेश को यकीन हो चला था कि निश्चय ही उसकी छोटी बेटी चिंकी बबीता और उसके मैनेजर के संबंधों की देन है। वह स्वाभाविक रूप से चिंकी को अपना पाने में असमर्थ था।

दो-तीन महीनों बाद दीपावली आने वाली थी इसी बीच सुगना का जन्मदिन आ रहा था रतन ने सुगना के लिए सुंदर साड़ियां लहंगा और चुन्नी तथा सूरज के लिए कपड़े और ढेर सारे खिलौने खरीदें और बड़े अरमानों के साथ उन्हें गत्ते के डिब्बे में बंद करने लगा। वह दीपावली से पहले सुगना को प्रभावित करना चाहता था उसने मन ही मन मुंबई छोड़ने का मन बना लिया था उसने सुगना को एक प्रेम पत्र भी लिखा जिसका मजमून इस प्रकार था।

मेरी प्यारी सुगना,

मैंने जो गलतियां की है वह क्षमा करने योग्य नहीं है फिर भी मैं तुमसे किए गए व्यवहार के प्रति दिल से क्षमा मांगता हूं तुम मेरी ब्याहता पत्नी हो यह बात समाज और गांव के सभी लोग जानते हैं मुझे यह भी पता है कि मुझसे नाराज होकर और अपने एकांकी जीवन को खुशहाल बनाने के लिए तुमने किसी अपरिचित से संभोग कर सूरज को जन्म दिया है मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं है मैं सूरज को सहर्ष अपनाने के लिए तैयार हूं वैसे भी उसकी कोमल छवि मेरे दिलो दिमाग में बस गई है पिछले कुछ ही दिनों में वह मेरे बेहद करीब आ गया और मुझे अक्सर उसकी याद आती है।

मुझे पूरा विश्वास है की तुम मुझे माफ कर दोगी मैं तुम्हें पत्नी धर्म निभाने के लिए कभी नहीं कहूंगा पर तुम मुझे अपना दोस्त और साथी तो मान ही सकती हो।

मैंने मुंबई छोड़ने का मन बना लिया है बबीता से मेरे रिश्ते अब खात्मे की कगार पर है मैं उसे हमेशा के लिए छोड़कर गांव वापस आना चाहता हूं यदि तुम मुझे माफ कर दोगी तो निश्चय ही आने वाली दीपावली के बाद का जीवन हम साथ साथ बिताएंगे।

तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में।

रतन ने खत को लिफाफे में भरा और सुगना तथा सूरज के लिए लाई गई सामग्रियों के साथ उसको भी पार्सल कर दिया वह बेहद खुश था उसने आखिरकार अपने दिल की बात सुगना तक पहुंचा दी थी वह खुशी खुशी और उम्मीदें लिए सुगना के जवाब की प्रतीक्षा करने लगा।

उधर लाली के घर में शाम को चुकी थी।

दोपहर में लाली को कसकर चोदने के बाद राजेश उठ चुका था। उधर अपनी दीदी की बुर को सहला कर सोनू भी अद्भुत आनंद को प्राप्त कर चुका था । तृप्ति का अहसास तीनों युवा दिलों में था सब ने अपनी अपनी आकांक्षाएं कुछ हद तक पूरी कर ली थी। शाम को लाली ने अपने पति राजेश और प्यारे भाई सोनू को पकोड़े खिलाए और घुल मिलकर बातें करने लगी। उन तीनों के ऐसे व्यवहार से ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे दोपहर में उनके बीच की दूरियां अचानक ही घट गई थीं। सिर्फ सोनू अब भी अपनी आंखें झुकाये हुए था वह अभी भी शर्मा रहा था जबकि लाली उससे खुलकर बात कर रही थी लाली ने सोनू को छेड़ते हुए कहा..

"का सोनू बाबू मन नईखे लागत का?"

"नहीं दीदी आप लोगों के यहां अच्छा नहीं लगेगा तो फिर कहां लगेगा?" सोनू ने अपना जवाब सटीक तरीके से दे दिया था.

राजेश ने कहा

"भाई मुझे तो अब ड्यूटी पर जाना पड़ेगा तुम दोनों एक दूसरे का ख्याल रखो" राजेश ने एक बार फिर सोनू को दोस्त जैसा संबोधित किया था।

"अरे आज ड्यूटी छोड़ दीजिए ना इतना अच्छा टीवी लाए हैं रात में एक साथ देखा जाएगा. क्यों बाबू सोनू अपने जीजा जी को रोको ना।"

सोनू ने भी लाली की हां में हां मिलाई परंतु राजेश को ड्यूटी पर जाना जरूरी था वैसे भी वह दोपहर में वह अपनी काम पिपासा शांत कर चुका था। उसके मन में रह रहकर यह भी ख्याल आ रहा था की आज रात लाली और सोनू एक साथ रहेंगे हो सकता है लाली अपने हुस्न के जादू से सोनू को अपने और करीब ले आए।

राजेश ने कहा

"सोनू आज तो नहीं पर कल मैं जरूर छुट्टी लूंगा और तुम्हारे साथ रहूंगा"

राजेश ड्यूटी पर जाने की तैयारी करने लगा उसने निकलते वक्त लाली को चुमते हुए कहा

"सोनू को भी अंदर ही सुला लेना"

"लाली में भी अपनी आंखें तरेरते हुए और चेहरे पर मुस्कुराहट लिए हुए कहा

" कहां ?अपने ऊपर" लाली ने राजेश के पास पहुंच कर धीरे से कहा..

राजेश मुस्कुराने लगा उसमें लाली को अपने आलिंगन में कसकर दबोचा और उसके नितंबों को पकड़ते हुए बोला

" नहीं ..नहीं... वह तो मेरे सामने ही.."

कुछ देर बाद राजेश चला गया. लाली और सोनू के लिए यह रात अलग थी. सोनू ने अपने मन में ढेर सारे सपने सजों लिए थे उसकी प्रेमिका और उसके ख्वाबों की मलिका लाली दीदी आज रात उसके साथ गुजारने वाली थी वह भी एक ही बिस्तर। पर क्या वह अपनी लाली दीदी की जांघों के बीच एक बार फिर अपनी हथेलियों को ले जा पाएगा? क्या वह उस अद्भुत द्वार को देख पाएगा ? वह मन ही मन उसे चूमने और चाटने की कल्पनाएं करने लगा जिसका सीधा असर उसके लंड पर हो रहा था।

लाली ने सोनू की पसंद का खाना बनाया और अब अपने बच्चों के साथ मिलकर खाना खाया। सोनू वास्तव में उसे अब अपने परिवार का ही हिस्सा लगने लगा था। दोनों बच्चे भी उससे घुल मिल गए थे वह बार-बार उसे मामा मामा कहते और उसकी गोद में खेलते।

सोनू दोनों बच्चों को लेकर बिस्तर पर आ गया और उनके साथ खेलने लगा। लाली का बेटा राजू कभी सोनू के ऊपर कूदता कभी उसे पटकने का प्रयास करता उस मासूम के छोटे हाँथ सोनु जैसे बलिष्ठ युवा को आसानी से गिरा देते वह बेहद खुश होता और उसकी खुशियां ही सोनू की खुशियां थीं।


लाली सोनू का यह रूप देखकर बेहद खुश थी। कुछ ही देर में लाली दूध का गिलास हुए हुए कमरे में प्रवेश की । सोनू को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे उसकी प्रेमिका नववधू के रूप में दूध का गिलास लेकर संभोग के लिए प्रस्तुत है सोनू का दिल बल्लियों उछलने लगा। उसने गटागट दूध पी लिया परंतु अपनी लाली दीदी की कलाई पकड़ने की उसकी हिम्मत ना हुई।

इधर सोनू अपने मन में ढेर सारे अरमान पाले हुए था उधर लाली को आज की रात से कोई उम्मीद न थी वह राजेश की अनुपस्थिति में अपना अगला कदम बढ़ाने की इच्छुक न थी। उसने अपनी रसोई का कार्य निपटाया और वापस आकर रीमा को अपनी चुचियां पकड़ा दीं। रीमा लाली की एक चूची से दूध पीती रही तथा दूसरी से खेलती रही सोनू यह दृश्य देखता रहा और तरसता रहा काश वह रीमा की जगह होता।

रीमा को दूध पिलाते पिलाते लाली खुद भी निद्रा देवी की आगोश में चली गई सोनू अपने अरमान लिए अकेला बिस्तर पर लेटा टीवी देख कर दादी की कल्पनाओं का आनंद ले रहा था परंतु असली आनंद उसे तभी प्राप्त हुआ जब उसकी रूखी हथेलियों ने तने हुए कोमल लंड को अपने हाथों में लेकर उसका वीर्य स्खलन कराया। एक सपनों भरी रात अचानक खत्म हो गई थी पर सोनू ना उम्मीद नहीं था उसे लाली दीदी पर और अपनी तकदीर पर भरोसा था उसने अगले दिन लाली को खुश करने की ठान ली थी.
एक बहुत ही सुंदर मनमोहक और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया
क्या लाली सोनू और राजेश थ्रिसम का आनंद उठाने वाले है
अगला अपडेट बहुत ही गरमागरम कामुक और चुदाईदार होने वाला है
जल्दी से दिजिएगा
 

Sanju@

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इधर लाली और सोनू करीब आ रहे थे उधर सुगना की जांघों के बीच उदासी छाई हुई थी पिछले कई दिनों से सुगना को संभोग का आनंद प्राप्त नहीं हुआ था। सरयू सिंह कभी कभी उसकी चुचियों और बुर को को चूम चाट कर सुगना को स्खलित कर देते परंतु जो आनंद संभोग में था वह मुखमैथुन से प्राप्त होना असंभव था।

सुगना की बुर तरस रही थी। उधर उसकी सास कजरी ने सरयू सिंह के स्वास्थ्य का हवाला देकर सुगना को चुदने के लिए स्पष्ट रूप से मना कर दिया था सुगना स्वयं भी सरयू सिंह को किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहती थी। उसने मन मसोसकर कजरी की बात मान ली थी।

बेचारी सुगना की जो पिछले 3- 4 वर्षों से सरयू सिह की लाडली थी और वो उसे तन मन से खुश रखते थे आज उसकी जाँघों में बीच उदासी छायी हुयी थी। सुगना अपनी चुदाई की मीठी यादों के साथ सो जाती।

बीती रात उसने बेहद कामुक कामुक स्वप्न देखा सरयू सिंह अपना तना हुआ लंड लेकर जैसे ही उसे चोदने जा रहे थे कई सारे लोग अचानक ही उसके कमरे में आ गए उसने आनन-फानन में चादर से अपने बदन को ढका और सर झुकाए अनजान लोगों को देखने लगी।

कभी उन अनजान लोगों में कभी गांव वाले दिखाई पड़ते कभी कजरी कभी राजेश कभी लाली। सुगना अपनी चोरी पकड़े जाने से परेशान थी। स्वप्न में ही उसके पसीने छूटने लगे तभी कजरी की आवाज आई.

"राउर तबीयत ठीक नईखे सुगना के छोड़ दी। जितना खुशी सुगना के देवे के रहे रहुआ दे लेनी अब उ सूरज के साथ खुशि बिया"

सुगना कजरी को रोकना चाहती थी। सुगना को चुदे हुए कई दिन बीत चुके थे वो अपने बाबू जी सरयू सिह से जी भरकर चुदना चाहती थी। उसकी जांघों के बीच अजब सी मरोड़ उत्पन्न ही रही थी इसी उहापोह में उसकी आंख खुल गई । और वह उठ कर बैठ गई।

बगल में सूरज सो रहा था वह अपने स्वप्न को याद कर मुस्कुराने लगी अपनी बुर पर ध्यान जाते ही उसने महसूस किया की उस स्वप्न ने बुर को पनिया दिया था।

सुगना को अपने बाबू जी से किया हुआ वादा भी याद आ रहा था वह उनकी इस अनूठी इच्छा को पूरा अवश्य करना चाहती थी परंतु उनके विशाल लंड को अपनी गुदाद्वार में ले पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।

अचानक सुगना को राजेश की याद आई वही उसके जीवन में आया दूसरा मर्द था जो उसके इतने करीब आया था। सुगना के दिमाग में उस रात का वृतांत घूमने लगा जब राजेश में उसकी नंगी जांघों को जी भर कर देखा था वह स्वयं भी उत्तेजना के आवेश में उसे ऐसा करने दे रही थी सुगना मुस्कुरा रही थी और ऊपर वाले से प्रार्थना कर रही थी की काश राजेश स्वयं आगे बढ़ कर उसे अपनी बाहों में ले ले।

सुगना ने नींद में जो स्वप्न देखा था वह तो जब सुगना चाहती साकार हो जाता परंतु राजेश के साथ अंतरंग होने का जो दिवास्वप्न सुगना खुली आंखों से देख रही थी वह इतना आसान नहीं था. इन दूरियों को सिर्फ और सिर्फ नियति मिटा सकती थी जो अब तक सुगना का साथ दे रही थी सुगना अपने मन में वासना की मिठास और जांघों के बीच कशिश लिए हुए एक बार फिर सो गई.

सुबह घरेलू कार्य निपटाने के पश्चात सुगना और कजरी बाहर दालान में बैठे सरसों पीट रहे थे. दूर से डुगडुगी बजने की आवाज आ रही थी जो धीरे-धीरे तीव्र होती जा रही थी कुछ ही देर में वह आवाज बिल्कुल करीब आ गई. डुगडुगी वाला मुनादी करते घूम रहा था साथ चल रहे कुछ व्यक्ति जगह-जगह पोस्टर चिपका रहे थे.

हरिद्वार से आए कुछ साधु भी उस मंडली के साथ थे सुगना भागकर दालान से बाहर निकली और गली में आ रहे झुंड को देखने लगी.

उन साधुओं ने एक पोस्टर सुगना के घर के सामने भी चिपका दिया सुगना ने ध्यान से देखा यह बनारस में कोई महोत्सव आयोजित किया जा रहा था जिसमें सभी को आमंत्रण दिया जा रहा था। ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह एक दिव्य आयोजन था . साधुओं ने हाथ जोड़कर सुगना और कजरी ( जो अब सुगना के पास आकर खड़ी हो गई थी ) तथा परिवार के बाकी सदस्यों को इस उत्सव में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया.

कजरी ने हाथ जोड़कर साधुओं का अभिवादन किया और अपनी सहमति देकर उन्हें आगे के लिए विदा किया कुछ ही देर के लिए सही इस डुगडुगी और उस भीड़ भाड़ ने सुगना के जीवन में नयापन ला दिया था।

सुगना ने कजरी से पूछा

"मां बाबू जी से बात करीना शहर घुमला ढेर दिन भईल बा यज्ञ भी देख लीहल जाई और शहर भी घूम लिहल जायीं।"

कजरी को भी सुनना की बात रास आ गई उसे भी शहर गए कई दिन हो गए थे। सुगना का जन्मदिन भी करीब आने वाला था। उसने मुस्कुराते हुए कहा..

"कुँवर जी के रानी त हु ही हउ बतिया लीह"

सुगना मुस्कुराने लगी….

उधर लाली के घर पर

सोनू कल की यादें लिए आज सुबह से ही लाली के आगे पीछे घूम रहा था वह कभी रसोई में जाकर उसकी मदद करता कभी राजू और रीमा के साथ खेलता। लाली घरेलू कार्यों में व्यस्त थी। दोपहर बाद लाली घर के कार्यों से निवृत्त होकर हॉल में पड़ी चौकी पर बैठकर अपने बाल बना रही थी. सोनू उसे हसरत भरी निगाहों से देखे जा रहा था अचानक लाली ने पूछा

"सोनू बाबू हॉस्टल कब खुली?"

"क्यों दीदी मेरे रहने से दिक्कत हो रही है. कर्फ्यू खुलते ही मैं हॉस्टल वापस लौट जाऊंगा?"

लाली ने तो सोनू से वह प्रश्न यूं ही पूछ लिया था परंतु सोनू की आवाज में उदासी थी. लाली ने वह तुरंत ही भांप लिया और सोनू के सिर को अपनी तरफ खींच लिया सोनू उसके बगल में ही बैठा था वह झुकता चला गया और उसका सिर लाली की गोद में आ गया।

लाली उसकी बालों पर उंगलियां फिराने लगी और बेहद ही आत्मीयता से बोली

"अरे मेरा सोनू बाबू मैं तुझे जाने के लिए थोड़ी कह रही हूं मैं तो यूं ही पूछ रही थी"

सोनू के गाल अपनी लाली दीदी की मोटी और गदराई जांघों से सटने लगे। लाली ने अब से कुछ देर पहले ही स्नान किया था उसके शरीर से लक्स साबुन की खुशबू आ रही थी और लाली के जिस्म की मादक खुशबू भी उसमें शामिल हो गई थी। सोनू उस भीनी भीनी खुशबू में खो रहा था उसके खुले होंठ लाली की जांघों से सट रहे थे। सोनू का लंड सोनू के मन को पूरी तरह समझता वह लाली की बुर को सलामी देने के लिए उठ खड़ा हुआ।

अपनी मां की गोद में सोनू को देखकर रीमा ईर्ष्या से सोनू को हटाने लगी और वह स्वयं उसकी गोद में आने लगी। सोनू को मजबूरन हटना पड़ा वह मन ही मन लाली की जांघों को चूमना चाहता था परंतु रीमा के बाल हठ ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।


तभी दरवाजे पर टन टन टन की आवाज सुनाई पड़ी यह आवाज उस गली से गुजर रहे कुल्फी वाले की थी। ऐसा लग रहा था जैसे रेलवे कॉलोनी में कर्फ्यू का कोई असर नहीं था। राजू उस आवाज को भलीभांति पहचानता था उसने कहा

"मामा चलिए कुल्फी लाते हैं"

सोनू मासूम बच्चों का आग्रह न टाल पाया और राजू को लेकर बाहर आ गया उसने राजू की पसंद की कई आइसक्रीम लीं और अपने और लाली के लिए सबसे बड़ी साइज की कुल्फी ली। यह कुल्फी बांस से पतले स्टिक पर लिपटी हुई थी और आकार में बेहद बड़ी थी एक पल के लिए सोनू को वह अपने लंड जैसी प्रतीत हुई।

सोनू उन बड़ी-बड़ी कुल्फीयों को लेकर घर में प्रवेश किया। लाली को भी उन कुल्फियों को देखकर वही एहसास हुआ जो सोनू को हुआ था सच में उनका आकार एक खड़े लंड जैसा ही दिखाई पड़ रहा था। लाली को अपनी सोच पर शर्म आयी पर उसने कुल्फी को शहर अपने हाथों में ले लिया और तुरंत ही अपने होठों को गोलकर उसका रसास्वादन करने लगी।


कुल्फी का ऊपरी आवरण तेजी से पिघल रहा था और बह कर वह निचले भाग की तरफ आ रहा था लाली अपनी जीभ निकालकर उस रस को नीचे गिरने से रोक रही थी तथा उस कुल्फी को जड़ से लेकर ऊपर तक अपनी जीभ से चाट रही थी। सोनू को यह दृश्य बेहद उत्तेजक लग रहा था वह एकटक लाली को घूरे जा रहा था। लाली को वह कुल्फी बेहद पसंद आ रही थी।

अचानक लाली को सोनू की निगाहों का अर्थ समझ आया वह शर्म से पानी पानी हो गई। उसने झेंपते हुए सोनू से कहा

"यह कुल्फी जल्दी पिघल जाती है"

"हां दीदी इसे चूस चूस कर थाने में ही मजा आता है" और सोनू ने कुल्फी का आधे से ज्यादा भाग अपनी बड़े से मुंह में ले लिया.


उसने लाली से कहां

"दीदी ऐसे खाइए"


लाली ने भी सोनू की नकल की और उसने कुल्फी का अधिकतर भाग अपने मुंह से में लेने की कोशिश की जो की उसके गले से छू गई परंतु लाली ने हार न मानी और अंततः कुल्फी का उतना ही भाग अपने मुंह में ले लिया जितना सोनू ले रहा था।

सोनू को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे लाली ने उसके ही लंड को अपने मुंह में ले लिया हो लाली भी अब थोड़ा बेशर्म हो चली थी वह जानबूझकर कुल्फी को उसी तरह खा रही थी और सोनू को उत्तेजित कर रही थी.

लाली सोनू को हाल में छोड़ कर अपने कमरे में गई और रीमा को सुलाते सुलाते खुद भी सो गई उसने आज सोनू को खुश करने की ठान ली थी परंतु सोनू को अभी रात का इंतजार करना था.

शाम को राजेश ड्यूटी से घर आ चुका था। आते समय उसने ढाबे से खाना बनवा लिया था।

घर में प्रवेश करते ही राजेश में बड़े उत्साह से कहा

"आज टीवी पर जानी दुश्मन फिल्म आने वाली है हम सब लोग फिल्म देखेंगे मैं खाना पैक करा कर ले आया हूं"

लाली और राजू वह खाना देखकर बेहद प्रसन्न हो गए लाली को तो दोहरा फायदा था एक तो आज शाम उसे काम नहीं करना था दूसरा ढाबे का चटक खाना उसे हमेशा से पसंद था खानपान खत्म करने के बाद एक बार फिर लाली का बिस्तर सज गया. कोने में राजू था उसके पश्चात रीमा और उसके बगल में राजेश लेटा हुआ था राजेश के ठीक बगल में सोनू लेटा हुआ था और अपनी लाली दीदी का इंतजार कर रहा था। बच्चों ने अपनी रजाई ओढ़ रखी थी और सोनू राजेश और लाली की रजाई अपने पैर ढके हुए था।


टीवी पर जानी दुश्मन फिल्म शुरू हो रही थी राजेश ने आवाज दी

लाली जल्दी आओ फिल्म शुरू हो रही है।

"हां आ रही हूं"

कुछ ही देर में मदमस्त लाली नाइटी पहने हुए कमरे में आ चुकी थी सोनू ने उठ कर लाली के लिए जगह बनाई और लाली राजेश के पास जाकर सट गई सोनू लाली से कुछ दूरी बनाकर वापस बिस्तर पर बैठ गया उसने अपनी पीठ पीछे दीवार पर सटा ली थी परंतु उसके पैर उसी रजाई में थे जिसने लाली और राजेश को ढक रखा था।

कुछ ही देर में कहानी की पटकथा रंग पकड़ने लगी राजेश को इस फिल्म का कई दिनों से इंतजार था वह मन लगाकर इस फिल्म को देख रहा था उधर सोनु के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ लाली घूम रही थी कल लाली की बुर सहलाने के पश्चात वह मस्त और निर्भीक हो गया था और आज भी वह उसी सुख की तलाश में था। उसके पैर स्वतः ही लाली के पैरों को छूने लगे। लाली सोनू की मंशा भली-भांति जानती थी परंतु आज उसने कुछ और ही सोच रखा था।

लाली ने अंगड़ाई ली और बोली

"मुझे डर लग रहा है आप दोनों फिल्म देखीये मैं चली सोने"

लाली धीरे-धीरे रजाई के अंदर सरकती गई उसने अपना सर भी रजाई से ढक लिया था।

लाली करवट लेकर लेटी हुई थी उसकी पीठ सोनू की तरफ थी। लाली अपने हाथ राजेश की जांघों पर ले गई और उसके लंड को सहलाने लगी। राजेश अपनी फिल्म देखने में व्यस्त था उसने लाली का हाथ पकड़ लिया और अपने लंड से दूर कर दिया।

लाली मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसने राजेश को अपना गुस्सा दिखाते हुए करवट ली और अपनी पीठ राजेश की तरफ कर दी। राजेश ने उसकी पीठ सहला कर अपनी गलती के लिए अफसोस जाहिर किया परंतु उसकी आंखें टीवी पर टिकी रहीं।

लाली के करवट लेने से सोनू सतर्क हो गया रजाई के अंदर लाली के हाथ हिल रहे थे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह अपने वस्त्र ठीक कर रही हो।

लाली के शरीर की हलचल शांत होते ही उसने अपने पैर एक बार फिर लाली के पैरों से हटाने की कोशिश की जो सीधा लाली की नंगी जांघों से छू गए । सोनू ने अपने पैर वापस खींचने की कोशिश की परंतु लाली ने अपने हाथ से उसका पैर पकड़ लिया और वापस अपनी जांघों से सटा लिया। कुछ देर यथास्थिति कायम रहे धीरे-धीरे लाली के हाथ सोनू की जांघों की तरफ बढ़ चले। लाली ने समय व्यर्थ न करते हुए अपने सोनू का लंड पजामे ऊपर से भी पकड़ लिया जो अब तक पूरी तरह तन चुका था। सोनू शहर उठा उसके शरीर का सारा लहू जैसे उस लंड में आ गया था। उन्होंने स्वयं ही अपना पजामा नीचे खिसकाने की कोशिश की वह लाली की कोमल उंगलियों को अपने लंड पर महसूस करना चाहता था।

थोड़े ही प्रयासों से सोनू का कुंवारा लंड बाहर आ गया से बाहर आ गया और लाली उसे अपने कोमल हाथों से सहलाने लगी। यह कहना मुश्किल था कि लाली के साथ ज्यादा कोमल थे या सोनू का लंड।

सोनू बीच-बीच में राजेश की तरफ देख रहा था जो पूरी तरह टीवी देखने में मगन था। उधर लाली उसके लैंड के सुपारे को खोल चुकी थी। लंड की भीनी खुशबू लाली के नथुनों से टकराई लाली अपने भाई के लंड की भीनी खुशबू में खो गयी।


उसके होंठ फड़कने लगे। उसका कोमल चेहरा स्वता ही आगे बढ़ता गया और उसके होंठ सोनू के लंड से जा टकराए। सोनू को यह उम्मीद कतई न थी वह व्यग्र हो गया उसने अपने शरीर की अवस्था बदली वह लाली की तरफ थोड़ा मुड़ गया। लाली के होठों ने सोनू के लंड के सुपाड़े को अपने आगोश में ले लिया और उसकी जीभ चमड़ी के पीछे छुपे लंड के मुखड़े को सहलाने लगी

लाली एक अलग ही अनुभव ले रही थी रजाई के भीतर वह शर्म और हया त्याग कर अपने भाई सोनू का लंड चूसने लगी। जाने सोनू के बारे लंड में क्या खूबी थी लाली मदमस्त होती जा रही थी। उधर सोनू के पैर लाली की नंगी जांघों को छूते छूते जांघों के जोड़ पर आ उसकी बुर की तरफ आ गए । लाली में अपनी जाघें फैला दीं और सोनू के पंजे को अपने बुर पर आ जाने दिया। पंजों का संपर्क बुर से होते हो लाली ने अपनी जांघें सटा ली और पंजों को उसी अवस्था में लॉक कर दिया। सोनू जब भी अपने पैर हिलाता लाली की बुर सिहर उठती लाली की बुर से रिस रहा प्रेम रस सोनू के पंजों को गीला कर रहा था। कुछ ही देर में सोनू के पंजों और लाली के निचले होंठों के चिपचिपा पन आ चुका था जो सोनू और लाली दोनों को ही सुखद एहसास दे रहा था।

लाली सोनू के लंड को लगातार चूस रही थी। सोनू आनंद के सागर में गोते लगा रहा था। अचानक उसने अपने हाथ रजाई के अंदर किये और अपनी हथेलियों से बेहद प्यार के अपनी लाली दीदी के गालों को सहलाने लगा। वह अपने लंड को लाली के मुंह के अंदर हिलाने की कोशिश कर रहा था। सोनू को एक पल के लिए ख्याल आया कि वह रजाई हटा कर अपनी लाली दीदी की आज ही पटक कर चोद दे पर …..

लाली के दांतों ने सोनी के लंड पर संवेदना बढ़ दी। सोनू ने अपने हाथ थोड़े और नीचे किये और उलाली की चुचियों को सहला दिया। लाली ने अपनी नाइटी को पूरी तरह ऊपर कर लिया था वह उसकी चूचियों और गर्दन के बीच सिमट कर रह गई थी।

कितनी कोमल थी लाली की चूचियां वह उन्हें धीरे-धीरे सहलाने लगा। निप्पलों पर उंगलियां लगते ही हाली सिहर उठती। सोनू ने उत्सुकता वश लाली के निप्पल को अपनी उंगलियों के बीच लेकर थोड़ा दबा दिया सोनू को अंदाजा ना रहा यह दबाव जरूरत से ज्यादा था लाली चिहुँक उठी।

राजेश ने पूछा

"क्या हुआ"

लाली ने सोनू का लंड छोड़ दिया और अपने शरीर को थोड़ा हिला डूला कर अपने नींद में होने का एहसास दिलाया।

सोनू को बेहद अफसोस हो रहा था परंतु लाली ने उसे निराश ना किया कुछ ही देर में वह दोनों फिर उसी अवस्था में आ गए।

उधर सोनू के पंजे लाली की बुर को उत्तेजित किए हुए थे इधर उसकी हथेलियां चुचियों को सहला रही थीं। लाली की बुर भी स्खलन को तैयार थी कुछ ही देर में लाली अपने पैर सीधे करने लगी। वह सोनू से पहले नहीं झड़ना चाहती थी।


उसने अपने हाथों का उपयोग सोनू के अंडकोष ऊपर किया। लाली के मुलायम हाथों को अपने अंडकोष के ऊपर पाकर सोनू स्खलन के लिए तैयार हो गया।

सोनू का सब्र जवाब दे गया उसके लंड से वीर्य धार फूट पड़ी उधर लाली की बुर भी पानी छोड़ना रही थी। एक तो रजाई की गर्मी ऊपर से वासना की गर्मी लाली पसीने से भीग चुकी थी।

सोनू ने अपने वीर्य की पहली बार लाली के मुंह में ही छोड़ दी आनन-फानन में लाली ने सोनू के लंड को बाहर निकाला और उसे नीचे की दिशा दिखाई वीर्य की धारा लाली की चुचियों पर गिर गई थी वह उसे अपनी नाइटी से रोकना चाहती थी परंतु अंधेरे में कुछ समझ नहीं आ रहा था।

सोनू की हथेलियां भी उसके वीर्य से भीग रही थी वह अभी भी लाली की चुचियों को मसल रहा था वीर्य का लेप चुचियों पर स्वता ही लग रहा था ।

उधर लाली की जांघों को उत्तेजित करते-करते सोनू के पैर का अंगूठा लाली की बुर में प्रवेश कर रहा था लाली को वह छोटे और मजबूत खूटे की तरह प्रतीत हो रहा था लाली अपनी बुर को उस अंगूठे पर रगड़ रही थी और पूरी तन्मयता से झड़ रही थी...


सोनू स्खलन की उत्तेजना से कांप रहा था. जैसे ही टीवी पर विज्ञापन आया राजेश को सोनु की सुध आई उसने सोनू की तरफ देखा। सोनू के माथे पर पसीना था राजेश ने कहा

"अरे तुमको तो इतना सारा पसीना आ रहा है तबीयत ठीक है ना"

सोनू को लगा उसकी चोरी पकड़ी गई है उसने अपने हाथों से पसीना पोछा और बोला यह रजाई बहुत गर्म है।

उसने लाली को भी आवाज दी पर लाली चुपचाप बिना सांस लिए पड़ी रही।

सोनू को अब चरम सुख प्राप्त हो चुका थाउसने कहा "मुझे नींद आ रही है मैं जा रहा हूँ सोने"

राजेश आज अपनी फिल्म में कोई व्यवधान नहीं चाहता था उसने सोनू और लाली को करीब लाने की अपनी चाहत आज के लिए टाल दी थी आज वह पूरे ध्यान से अपनी पसंदीदा फिल्म देख रहा था परंतु नियत सोनू और लाली को स्वाभाविक रूप से करीब ला रही थी इस बात का इल्म उसे न था।

फिल्म की हीरोइन नीतू सिंह की बड़ी-बड़ी चूचियां राजेश के लंड में उत्साह भर रही थी पर पर्दे का भूत तुरंत ही लंड को मुरझाने पर मजबूर कर देता इसी कशमकश में एक बार फिर फिल्म शुरू हो गयी परंतु बनारस शहर ने बिजली कि अपनी समस्याएं थी। अचानक बत्ती गुल हो गई राजेश मन मसोस कर रह गया।

सोनू कमरे से बाहर जा चुका उसे बुलाने का कोई औचित्य न था राजेश उदास हो गया और रजाई में घुस कर लाली को पकड़ने लगा लाली अब तक अपनी नाइटी नीचे कर चुकी थी परंतु उसकी जांघें अभी भी नग्न थी राजेश ने अपनी जान है लाली की जांघों पर रखी और उसे अपने करीब खींचता गया लाली के चेहरे पर अभी भी पसीने की बूंदे थी।

उसने लाली के गालों पर हाथ फिराया और बोला


अरे कितना पसीना हुआ है रजाई क्यों नहीं हटा देती

"आप तो अपनी फिल्म देखिए अब लाइट गई तो मेरी याद आ रही है।" राजेश अपनी झेंप मिटाते हुए लाली के माथे को पोछने लगा। उसके हाथ लाली की चुचियों पर गए जो नाइटी के अंदर आ चुकी थीं।

"नीतू सिंह की चूचियां टीवी पर ही मिलेंगी घर पर तो मैं ही हूं"

नीतू सिंह का नाम सुनकर राजेश के लंड में एक बार फिर तनाव आ गया वह लाली को चोदना चाहता था । धीरे-धीरे वह लाली के ऊपर आने लगा। लाली प्रतिरोध कर रही थी उसकी चुचियों और होंठो पर उसके छोटे भाई सोनू का वीर्य लगा हुआ था।

जब तक वह राजेश को रोक पाती राजेश ने लाली की नाइटी को ऊपर किया और गप्प से उसकी चूची को मुंह में भर लिया…..

शेष अगले भाग में।
बहुत ही जबरदस्त अपडेट है । आखिरकार सोनू ओर लाली ने एक कदम ओर बढ़ा लिया । दोनो के बीच शर्म की दीवार गिरती जा रही है । जल्द ही दोनो के बीच जबरदस्त चुदाई होगी जिसकी प्रतीक्षा रहेगी
 

Sanju@

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मुंबई में रतन सुगना के जबाब का इंतजार कर रहा था हालांकि अभी तक उसके द्वारा भेजा गया सामान गांव पहुंचा भी नहीं था पर रतन की व्यग्रता बढ़ रही थी वह रोज शाम को अपने एकांत में सुगना और सूरज को याद किया करता। बबीता से उसका मोह पूरी तरह भंग हो चुका था।

अपनी बड़ी बेटी मिंकी से ज्यादा प्यार करने के कारण उसकी पत्नी बबीता का प्यार मिंकी के प्रति कम हो गया था। मिंकी भी अब अपनी मां के बर्ताव से दुखी रहती थी। रिश्तो में खटास बढ़ रही थी या यूं कहिए बढ़ चुकी थी।

इधर बनारस में आयोजित धार्मिक महोत्सव में जाने के लिए सरयू सिंह को मनाना आवश्यक था कजरी सुगना की तरफ देख रही थी और सुगना कजरी की तरफ परंतु इसकी जिम्मेदारी सुगना को ही उठानी पड़ी। कजरी और सुगना दोनों ही यह बात जानती थी कि सरयू सिंह सुगना की कही बात कभी नहीं टाल सकते थे सुगना के लहंगे में जादू आज भी कायम था मालपुए का आकर्षण और स्वाद आज भी कायम था। वैसे भी इस दौरान मालपुए का स्वाद सरयू सिंह अपने होठों से ही ले रहे थे उनका लंड सुगना के मालपुए में छेद करने को बेचैन रहता परंतु डॉक्टर और कजरी के आदेश से उनकी तमन्ना अधूरी रह जाती।

दोपहर में खाना खाने के पश्चात सरयू सिंह दालान में लेटे आराम कर रहे थे। बाहर बिना मौसम बरसात हो रही थी तभी कजरी सूरज को अपनी गोद में लिए हुए आगन से निकलकर दालान में आई और सरयू सिंह से कहा..

"भीतरे चल जायीं सुगना अकेले बिया हम तनी लाली के माई से मिलकर आवतानी"

सरयू सिंह को तो मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई हो आज कजरी ने कई दिनों बाद उन्हें सुगना के पास जाने का आमंत्रण दिया था वह भी दिन में। अन्यथा उनकी कामेच्छा की पूर्ति सामान्यतः रात को ही होती जब सुगना उन्हें दूध पिलाने आती और उसके उनके लंड से वीर्य दूह कर ले जाती। कभी-कभी वह अपने मालपुए का रस भी उन्हें चटाती परंतु उनका लंड सुगना के मालपुये के अद्भुत स्पर्श और मजबूत जकड़ के लिए तड़प रहा था ।

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कजरी से कहा

"छाता ले ला भीग जइबू"

जब तक सरयू सिंह की आवाज कजरी तक पहुंचती कजरी अपना सर आंचल से ढक कर हरिया के घर की तरफ बढ़ गई।

सरयू सिंह की खुशी उनके लंड ने महसूस कर ली थी। धोती के अंदर वह सतर्क हो गया था सरयू सिंह अपनी चारपाई पर से उठे और आँगन में आकर सुगना के कमरे में दाखिल हो गए। सुगना सूरज को दूध पिला कर उठी थी और अपनी भरी-भरी चूचियां को ब्लाउज के अंदर समेट रही थी परंतु वह सरयू सिह की आंखों उन्हें बचा ना पाई।

सरयू सिंह के अकस्मात आगमन से सुगना थोड़ा घबरा गई। शायद कजरी ने सरयू सिंह को बिना सुगना से बात किए ही भेज दिया था।

सुगना की घबराहट देखकर सरयू सिह सहम गए और बड़ी मायूसी से बोले

"भौजी कहली हा कि तू बुलावत बाडू"

सुगना को कजरी की चाल समझ आ चुकी थी। सुगना कजरी की इच्छा को जानकर मुस्कुराने लगी। शायद इसीलिए कजरी दूध पी रहे सूरज को सुगना की गोद से लेकर हरिया के यहां चली गई थी। भरी दुपहरी में अपने बाबू जी के साथ एकांत पाकर उसकी कामुकता भी जाग उठी।

सरयू सिंह अब भी उसकी चुचियों पर ध्यान टिकाए हुए थे..

सुगना ने नजरें झुकाए हुए कहा..

"आजकल बाबू फिर दूध नइखे पियत"

"जायदा अब तो बड़ हो गईल बा गाय के दूध पियावा"

"तब एकरा के का करी" सुगना ने अपनी भरी-भरी चुचियों की तरफ इशारा किया उसके होठों पर मादक मुस्कान तैर रही थी सरयू सिंह ने देर न कि वह सुगना के पास आए और चौकी पर बैठकर उसे अपनी गोद में खींच लिया उनका मर्दाना चेहरा सुगना की चुचियों से सट गया। सुगना के ब्लाउज को उन्होंने अपने होठों से पकड़ा और उसे खींचते हुए नीचे ले आए सुगना की भरी भरी फूली हुई दाहिनी चूँची उछल कर बाहर आ गई।

सरयू सिंह इस दूध से भरी हुई गगरी को पकड़ने को तैयार थे उन्होंने अपना बड़ा सा मुंह खोला और सुगना की चूँचियों का अगला भाग अपने मुंह में भर लिया सुगना के तने हुए निप्पल जब उनके गर्दन से छू गए तब जाकर उन्होंने दम लिया।

जितनी तेजी से उन्होंने सुगना की चूची अपने मुंह में भरी थी उतनी ही तेजी से उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया जिसे सुगना की जांघों ने महसूस कर लिया।

सुगना को अब आगे के दृश्य समझ आ चुके थे वह स्वयं भी मन ही मन खुद को तैयार कर चुकी थी

सरयू सिंह ने सुगना की चूची से दूध चूसना शुरू कर दिया सरयू सिंह और सूरज के चूसने में एक समानता थी दोनों ही एक ऊंची को चूसते समय दूसरी को बड़े प्यार से सहलाते थे परंतु सरयू सिंह जितना रस सूचियों से चूसते थे सुगना की बुर उतने ही मदन रस का उत्पादन भी करती थी।

कुछ ही देर में सुगना और सरयू सिंह नियति की बनाई अद्भुत काया में प्रकट हो चुके थे सुगना के रंग बिरंगे कपड़े और सरयू सिंह की श्वेत धवल धोती और कुर्ता गोबर से लीपी हुई जमीन पर उपेक्षित से पड़े थे।

सरयू सिंह ने अपनी हथेलियां सुगना की बुर से सटा दी और बड़े मासूमियत से बोले

"सुगना बाबू आज हम करब ये ही में"

सुगना उन्हें निराश नहीं करना चाहती थी परंतु वह डॉक्टर के निर्देशों और कजरी के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी उसमें सरयू सिंह के माथे को चुमते हुए कहा

"अच्छा आज आपे करब पर ये में ना बल्कि ये में" सुगना ने अपने मादक अंदाज में उनका ध्यान बुर से हटाकर अपने होठों पर कर दिया जिसे वह पूरी तरह गोल कर चुकी थी।

सरयू सिंह भली बात समझ चुके थे कि सुगना उन्हें अपनी बुर की बजाए मुंह में चोदने का निमंत्रण दे रहे थी परंतु यह कैसे होगा?

अब तक सुगना ने कभी जमीन पर बैठकर कभी घुटनों के बल आकर और कभी उनके ऊपर आकर उनके लंड को चूसा था परंतु आज वह उन्हें नया सुख देने को प्रतिबद्ध थी।

सुगना ने अपने सर और कमर के नीचे तकिया लगा कर लेट गई और सरयू सिंह को उसी अवस्था में आने का आमंत्रण दे दिया जिस अवस्था को आज सिक्सटी नाइन के नाम से जाना जाता है। सरयू सिंह का तना हुआ लंड सुगना के चेहरे के ठीक ऊपर था।और सरयू सिंह की आंखों के सामने सुगना की गोरी और मदमस्त चिपचिपी चूत थी जो खिड़की से आ रही रोशनी और उसके होंठों से रिस आए मदन रस से चमक रही थी।

तभी सुगना ने आज एक अनोखी चीज देख ली सरयू सिह के अंडकोशों के नीचे एक अलग किस्म का दाग दिखाई पड़ रहा था जो सुगना ने पहली बार देखा था यह इस विशेष अवस्था के कारण संभव हुआ था।

सुगना को अचानक सरयू सिंगर के माथे का दाग याद आ गया। यह दाग भी उसी की तरह अनोखा था परंतु दोनों दाग एक दूसरे से अलग थे।

सुगना से रहा नहीं गया उसने अपनी उंगलियों से उस दाग को छुआ और बोली

"बाबूजी ई दाग कइसन ह"


(((((शायद पाठकों को इस दाग के बारे में पता होगा जो सरयू सिंह को एक विशेष अवसर पर प्राप्त हुआ था जिसका विवरण इसी कहानी में है। मैं उम्मीद करता हूं कि जिन पाठकों ने यह कहानी पड़ी है उन्हें अवश्य इस दाग के बारे में पता होगा)))))

सरयू सिंह सुगना को इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते थे। वो बेवजह इस कामुक अवसर को खोना नहीं चाहते थे उन्होंने उत्तर देने की बजाय सुगना के रस भरे मालपुए को लगभग लील लिया। उनके मुंह में उत्पन्न हुए निर्वात ने सर... सर... की ध्वनि के साथ सुगना के मालपुए का रस खींच लिया। सुगना चिहुँकउठी और बोली

"बाबू जी तनी धीरे…से….".

इस शब्द ने सरयू सिंह की उत्तेजना को और जागृत कर दिया उनकी लंबी जीभ सुगना के मालपुए में छेद करने का प्रयास करने लगी सुगना का दिमाग अब भी उस दाग के रहस्य को जानना चाह्ता था परंतु उसका शरीर इन प्रश्नों के मोह जाल से मुक्त होकर सरयू सिंह की अद्भुत काम कला का आनंद लेने लगा।


खिड़की से आ रही रोशनी सुगना की बुर और गुदांज गांड पर बराबरी से पढ़ रही थी. सुगना की बुर चूसते चूसते उनका ध्यान सुगना के उस अद्भुत छेद पर चला गया वह छेद उनके लिए एकमात्र दुर्लभ चीज थी जिसका आनंद वह लेना चाहते थे परंतु किसी न किसी कारण से उस अवसर के आने में विलंब हो रहा था।

आज उस छेद को वह ठीक उसी प्रकार देख रहे थे जैसे कोई महत्वाकांक्षी पर्वतारोही हिमालय की तराइयों में खड़े होकर माउंट एवरेस्ट को लालसा भरी निगाहों से देख रहा हो।

अपने लक्ष्य को इतने करीब देखकर उनसे रहा न गया और उन्होंने सुगना को बिना बताए अपने दोनों होंठों को उस छेद पर सटा दिया सुगना ने अपनी गांड सिकोड़ ली। सरयू सिंह के होंठ उस छेद के बाहरी भाग तक ही रह गए परंतु उन्होंने हार ना मानी उनकी लंबी जीभ बाहर आई और जो कार्य उनके होंठ न कर पाए थे उनकी लंबी जीभ ने कर दिया। उन्हींने सुगना के उस सुनहरे छेद को अपने लार से भर दिया। सुगना को यह कृत्य पसंद ना आया। परंतु उसकी उत्तेजना निश्चय ही बढ़ गई थी

"बाबूजी उ में अभी ना…" उसने कामोत्तजना से कराहते हुए कहा..

संजू सिंह अपनी उत्तेजना के आवेश में बह जरूर गए थे पर वह तुरंत ही वापस अपने लक्ष्य पर आ गए और फिर मालपुए का आनंद लेने लगे। उधर उनका लंड सुगना के मुंह में प्रवेश कर चुका था और वह अपनी कमर हिला हिला कर जोर-जोर से उसे चोद रहे थे जब भी उन्हें सुगना का मासूम चेहरा ध्यान आता उनकी रफ्तार थोड़ी कम हो जाती परंतु जब वह उसकी मदमस्त बुर को देखते वह अपनी रफ्तार बढ़ा देते।


कुछ ही देर में ओखली और मूसल ने अपने अंदर उत्सर्जित रस को एक साथ बाहर कर दिया सुगना का रस तो सरयू सिंह पूरी तरह पी गए पर सुगना के बस में सरयू सिंह के वीर्य को पूरी तरह आत्मसात कर पाना संभव न था अंततः उसकी चुचियां अपने बाबूजी के वीर्य से एक बार फिर नहां गयीं। सरयू सिह उसकी चुचियों से खेलते हुए बोले..

"सुगना बेटा अब उ दिन कभी ना आई का? लागा ता हमार जन्मदिन भी एकरा बिना ही बीत जायी"

उनका कथन पूरा होते-होते उनकी हथेलियों ने सुगना की बुर को घेर लिया।

सुगना बेहद खुश थी आज उसे भी बेहद आनंद प्राप्त हुआ था उसने खुश होकर बोला

"राउर जन्मदिन में सब मनोकामना पूरा हो जायीं"

सुगना की बात सुनकर सरयू सिंह का उत्साह बढ़ गया अपनी मध्यमा उंगली में सुगना की गांड को छूते हुए और सुगना की आंखों में देखते हुए पूछा..

"साच में सुगना"

सुगना ने अपनी गांड एक बार फिर सिकोड़ी और उनकी उंगली को लगभग अपने चूतड़ों में दबोच लिया और उन्हें चुमते हुए बोली...

"हां...बाबू जी"

सरयू सिंह ने सुगना को अपने आगोश में भर लिया वह उसे बेतहाशा चूमने लगें।

वासना का उफान थमते ही नीचे पड़े उपेक्षित वस्त्रों की याद उन दोनों ससुर बहू को आई और वह अपने अपने वस्त्र पहनने लगे. अपने पेटीकोट से अपनी जांघों को ढकते हुए सुगना ने पूछा

"बाबूजी दरवाजा पर पोस्टर देखनी हां"

"हां देखनी हां, ई सब साधु वाधू फालतू काम कर ले"

"बाबूजी हमरा वहां जाए के मन बा वहां मेला भी लागेला"

सरयू सिंह सुगना की निप्पल से लटकती हुयी अपने वीर्य की बूंद को अपने हाथों से पोछते हुए बोले


"अरे तू तो इतना जवान बाड़ू अपन सुख भोगा तारू तहरा साधु वाधु से का मिली?"

"ना बाबूजी तब भी, हमरा जाए के मन बा और सासु मा के भी" सुगना ने कजरी का बहु सहारा लिया।

सरयू सिंह ने सुगना को एक बार फिर अपने सीने से सटा लिया और बोले

" सुगना बाबू जवन तू कहबु उहे होइ"

सुगना खुश हो गई और उनसे अमरबेल की तरह लिपटते हुए बोली

"हम जा तानी मां के बतावे उ भी बहुत खुश होइहें"

"अरे कपड़ा त पहन ला"

सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुराने लगी उसकी चूचियां अभी भी नंगी थी।

सुगना बेहद खुश थी वह अपनी विजय का उत्सव कजरी के साथ मनाना चाहती थी कपड़े पहन कर वह हरिया के घर कजरी को खुशखबरी देने चली गई सरयू सिंह सुगना के बिस्तर को ठीक कर वापस अपनी दालान में आ गए।

सुगना ने आज उनके अंडकोषों के नीचे लगा दाग देख लिया था। उन्होंने उसे उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया था परंतु उन्हें पता था कि सुगना वह प्रश्न दोबारा करेगी और कभी ना कभी उन्हें उसका उत्तर देना पड़ेगा। वह किस मुंह से उसे बताएंगे? उनके चेहरे पर उलझन थी परंतु उनका शरीर वीर्य स्खलन के उपरांत थक चुका था वह प्रश्न जाल में उलझे हुए ही सो गए.


उधर हरिद्वार में राजरानी मठ के आलीशान कमरे में श्री विद्यानंद जी अपनी सफेद धोती पहने और पीला गमछा ओढ़ कर प्रवचन के लिए तैयार हो रहे थे चेहरे पर तेज और माथे पर तिलक उनकी आभा में चार चांद लगा रहा थे। लंबे-लंबे बालों पर उम्र ने अपनी सफेद धारियां छोड़ दी थी जो उनके प्रभुत्व और प्रभाव को प्रदर्शित कर रही थीं।

तभी एक शिष्य कमरे में आया और बोला महात्मा हमारे बनारस जाने की सारी तैयारियां पूर्ण हो गई अगली पूर्णमासी को हमें बनारस के लिए प्रस्थान करना है.

बनारस का नाम सुनकर श्री विद्यानंद जी अपनी यादों में खो गए कितने वर्ष हो गए थे उन्हें अपना गांव सलेमपुर छोड़े हुए. यद्यपि यह मोह माया है वह सब कुछ जानते थे परंतु फिर भी गांव की यादें उनके जेहन में आज भी जीवित थीं। सरयू भी अब 50 का हो गया होगा उसके भी तो बाल सफेद हो गए होंगे। और वो पगली ...क्या नाम था उसका…….. हां ...हां .कजरी. ... मैंने उसके साथ शायद गलत किया.

मुझे कजरी के साथ विवाह ही नहीं करना चाहिए था परंतु दबाव और मेरी नासमझी की वजह से विवाह संपन्न हो गया परंतु मैं उसको उसका हक़ न दे पाया। पता नहीं सरयू और कजरी किस हाल में होंगे? क्या उनमें भी थोड़ी बहुत धार्मिक भावनाएं जगी होंगी? क्या सरयू और कजरी इस विशाल महोत्सव में वहां आएंगे? मेरा तो नाम और पहचान दोनों बदल चुके हैं वह मुझे पहचान भी तो नहीं पाएंगे?


विद्यानंद के होठों पर एक मुस्कान आ गयी। सांसारिक रिश्तों से दूर रहने के बावजूद अपने गांव के नजदीक जाने पर उनकी पुरानी यादें ताजा हो गई थीं। उन्होंने एक लंबी गहरी सांस भरी और सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया जो उनके दरवाजे पर मक्खी के रूप में बैठी उनकी मनोदशा पड़ रही थी।

सांसारिक रिश्तो की अहमियत अभी भी विद्यानंद जी के मन में पूरी तरह दूर नहीं हुई थी उनका वैराग्य अभी पूर्णता को प्राप्त नहीं हुआ था। तभी उनका शिष्य कमरे में आया और बोला

" महात्मा सभी आपका इंतजार कर रहे हैं"


विद्यानंद जी ने अपने बालों को ठीक किया और पंडाल के सुसज्जित स्टेज पर विराजमान हो गए।

उधर बनारस शहर में भी गजब का उत्साह था हर तरफ इस धार्मिक महोत्सव के ही चर्चे थे देश विदेश से कई महात्मा और धर्म प्रचारक यहां अपने अनुयायियों के साथ आ रहे थे. इस उत्सव में गांव देहात से आए लोगों को रहने के लिए भी व्यवस्था की गई थी। ध्यान से देखा जाए तो यह एक उत्सव सामाजिक मिलन का उत्सव था जिसमें एक ही विचारधारा के कई लोग एक जगह पर उपस्थित रहते और एक दूसरे के साथ का आनद लेते लंगर में खाना खाते धार्मिक प्रवचन सुनते और तरह तरह के मेलों का आनंद लेते.

सुगना और कजरी ने इन उत्सव के बारे में कई बार सुना था परंतु वहां जा पाने का अवसर प्राप्त न हुआ था। सरयु सिंह की विचारधारा इस मामले में कजरी से मेल न खाती थी। इसी कारण उनके साथ 20 - 22 वर्ष बिताने के बाद भी कजरी अपनी मन की इच्छा पूरी न कर पाई थी। पर आज सुगना ने अपना मालपुरा चूसा कर सरयू सिंह को सहर्ष तैयार कर लिया था।


सुगना और सरयू सिंह एक दूसरे से पूरी तरह जुड़ चुके थे। एक दूसरे की इच्छाओं का मान रखना जैसे उनके व्यवहार में स्वतःही शामिल हो गया था।

परंतु सरयू सिंह की सुगना के गुदाद्वार में संभोग करने की वह अनूठी इच्छा एक अप्राकृतिक मांग थी। सुगना भी अपने बाबूजी की यह मांग कई वर्षों से सुनते आ रही थी। उसका तन और मन इस इस बात के लिए राजी न था परंतु उसका दिल सरयू सिंह की उस इच्छा को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध था। आयोजन के 2 दिन पूर्व ही सरयू सिंह का जन्मदिन था। सुगना उस उत्सव में जाने और अपने बाबुजी का जन्मदिन मनाने की तैयारियां करने लगी।

उधर लाली बेहद खुश थी। चाय बनाते समय वह कल रात की बात याद कर रही थी जब उसकी चूँची को गप्प से मुंह में लेने के बाद राजेश की स्वाद इंद्रियों को एक अलग ही रस से परिचय हुआ। लाली की चूचियां पसीने और सोनू के वीर्य रस से लिपटी हुई थीं। राजेश को यह मिश्रित स्वाद कुछ अटपटा सा लगा परंतु वह कामकला का माहिर खिलाड़ी था उसे वीर्य रस और उसके स्वाद की पहचान थी। तुरंत लाली की चुचियों पर वीर्य यह उसकी सोच के परे था…

अपनी उत्सुकता पर काबू रखते हुए और लाली को छेड़ते हुए कहा..

"आज तो चूची पूरी भीग गई है स्वाद भी अलग है।

लाली सब कुछ समझ रही थी उसने अपनी हथेलियों से अपने चेहरे को ढक लिया और मुस्कुरा कर बोली

"सब आपका ही किया धरा है"

"अरे मैंने क्या किया?"

"जाकर अपने साले से पूछीये"

राजेश ने लाली की आंखों में देखा और फिर उसकी चुचियों की तरफ. और चेहरे पर उत्साह लिए बोला

"तो क्या तुमने उसे अपना लिया"

लाली ने अपनी आंखें बंद कर ली और चेहरे पर मुस्कान लिए हुए बोली

"हां, आपके कहने से मैंने उसे अपना लिया है"

"पर कब?"

" जब आप जानी दुश्मन देख रहे थे तब आपका साला दोस्ती कर रहा था"

राजेश लाली की दोनों चुचियों को हाथ में लिए हुए लाली को आश्चर्य भरी निगाहों से देख रहा था।

लाली को राजेश के आश्चर्य से शर्म महसूस हो रही थी उसने बात बंद करते हुए कहा

"मैंने अपना लिया है अब आप भी अपना लीजिए" इतना कहते हुए लाली की जाँघे फैल गयीं। राजेश खुशी से पागल हो गया उसका मुंह एक बार फिर खुला और उसने लाली की दूसरी चूची को भी अपने मुंह में भर लिया।

लाली की स्खलित हो चुकी बुर ने भी राजेश के लंड को आसानी से रास्ता दे दिया कमरे में एक बार फिर…..

गैस से उबल कर चाय गिरने की आवाज हुई और लाली अपनी यादों से वापस आयी। चेहरे पर मुस्कुराहट लिए चाय छानकर वो हॉल में बैठकर सोनू से अगली मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो आज सुबह ही अपने बनारस में लगे कर्फ़्यू में अपनी लाली दीदी द्वारा दी सुनहरी भेंट लेकर हॉस्टल लौट चुका था।

नियति अपनी चाल चल रही थी। बनारस का महोत्सव यादगार होने वाला था….


शेष अगले भाग में।
रतन सिंह सुगना के जवाब की राह देख रहा है पत्नी बबिता से मोहभंग हो गया
सरयूसिंग का अंडकोष के निचे वाला दाग
सुगना का सरयूसिंग को बनारस जाने के लिये मना लेना
कजरी का भगोडा पती ब्रम्हानंद का बनारस आना
लाली और सोनू के बीच में पनपती की कामवासना को राजेश की तरफ से हवा देना
नियती क्या चाहती हैं देखते हैं आगे
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Tiger 786

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लाइट जाने के बाद कमरे में अंधेरा हो गया था। बाहर गलियारे में कई लोगों के आने-जाने की आवाज आ रही थी। किसी ने चिल्लाया

"लाइट कब आएगी क्या फालतू होटल है जनरेटर नहीं है क्या?"

होटल वाले वेटर की आवाज आई

" पूरे शहर की लाइट गई है देखिए कब तक आती है हमारे पास जनरेटर नहीं है कहिए तो मोमबत्ती दे दूं।"

सरयू सिंह के मन में एक बार आया कि वह जाकर मोमबत्ती ले लें। परंतु वह तौलिया पहने हुए थे और इस स्थिति में बाहर जाना उचित न था। उन्होंने लाइट का इंतजार करना ही उचित समझा। कजरी और सुगना दोनों बिस्तर पर आकर बैठ चुकी थीं।

कजरी ने कुंवर जी को छेड़ा

"अच्छा केकर कपड़ा ज्यादा सुंदर लागतल हा?"

" तू कभी खराब काम करेलू का? तू जवन भी करेलू उ सब अच्छा होला"

सरयू सिंह ने कजरी की तारीफ कर दी उनके दोनों हाथ में लड्डू थे जिनकी तुलना वह नहीं करना चाह रहे थे। बिस्तर पर बैठे उत्तेजना में डूबे सरयू सिंह और कजरी लाइट आने का इंतजार कर रहे थे। परंतु लाइट आने में विलंब हो रहा था। धीरे धीरे वह तीनों बिस्तर पर लेटते गए एक किनारे सरयू सिंह थे बीच में कजरी और दूसरी तरफ अपनी सास और अपने ससुर की चहेती सुगना।

कजरी जानबूझकर बीच में नहीं आई थी वह अकस्मात थी उन दोनों के बीच आ गई थी।

सरयू सिंह का लंड अब इंतजार करने के मूड में नहीं था। उसे वैसे भी उसे अंधेरी गुफा की यात्रा करनी थी। बाहरी दुनिया और उसके आडंबर उसके किसी काम के नहीं थे। उसे तो उस गहरी और चिपचिपी गुफा में प्रवेश कर उस गर्भाशय को चूमना था जिसका चेहरा आज तक कोई नहीं देख पाया था। कजरी की पीठ सरयू सिंह की तरफ थी और चेहरा सुगना की तरफ।

सरयू सिंह से और बर्दाश्त नहीं हो रहा था उन्होंने कजरी के पेट पर हाथ लगाया और उसके नितंबों को अपनी तरफ खींच लिया।

उनका लंड कजरी के नितंबों के बीच से उसकी गॉड से टकराने लगा। कजरी स्वयं भी उत्तेजित थी। उसकी बुर से रिस रही लार उसकी अनछुई गांड तक पहुंच चुकी थी। एक पल के लिए कजरी को लगा यदि उसने सरयू सिंह के लंड को सही रास्ता न दिखाया तो वह आज उसकी गांड में ही छेद कर देंगे। सरयू सिंह आज दोहरी उत्तेजना के शिकार थे। एक तो उनकी सुगना बहू आज एक नए रूप में उपस्थित थी और वह भी अपनी सास कजरी के सामने।

कजरी ने अपनी कमर थोड़ी और पीछे की तथा सरयू सिंह के लंड को उस चिपचिपी चूत का द्वार मिल गया। सरयू सिंह ने आव देखा न ताव और एक ही झटके में अपना लंड अपनी भौजी की बुर में उतार दिया।

उनका मजबूत लंड कजरी की बुर को चीरता हुआ गर्भाशय तक जा पहुंचा कजरी चिहुँक पड़ी.

सुगना ने पूछा

"सासु मां का भइल?"

जब तक कजरी उत्तर देती तब तक सरयू सिंह तेजी से अपना लंड उसकी बुर में आगे पीछे करने लगे। कजरी की आवाज लहरा गई वह बड़ी मुश्किल से बोली

"कुछो….ना"

सरयू सिंह का लंड आज भी कजरी की बुर में पूरे कसाव के साथ जाता था।उसमें इतनी ताकत थी वह जब बाहर आता कजरी को खींचे लाता और जब वह अंदर की तरफ जाता कजरी दो -चार इंच ऊपर की तरफ उठ जाती। बिस्तर पर हो रही यह हलचल सुगना ने महसूस कर ली।

अंधेरा होने के बावजूद बिस्तर पर होने वाली इस गतिविधि ने सुगना का ध्यान खींच लिया था। उसे कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था परंतु वह कुछ उत्तेजक महसूस कर पा रही थी। वह कजरी की तरफ मुंह करके करवट लेट गयी। सरयू सिंह की हथेलियां कजरी की चुचियों को अपने आगोश में लेने के लिए आगे आयीं परंतु इससे पहले कि वह कजरी की चुचियों को पकड़ पाती, हथेली के पिछले भाग को सुगना की सूचियों का स्पर्श मिल गया।

सुगना की कोमल चुचियां सरयू सिंह कैसे भूल सकते थे। सरयू सिंह पसोपेश में आ गए। वह सुगना की चुचियाँ सहलाना चाहते थे परंतु उनका हाथ कजरी के सीने के ऊपर था। यदि वह कजरी की चुचियाँ ना पकड़ते कजरी तुरंत ही समझ जाती।

उन्होंने बड़ी ही चतुराई से कजरी की चुचियों को अपनी हथेलियों में भर लिया और बीच-बीच में वह अपनी पकड़ ढीली करते और उनकी हथेलियों के पिछले भाग को सुगना की चुचियों का स्पर्श मिलता।

सुगना अब समझ चुकी थी कि उसके बाबूजी कजरी की चुचियों को मीस रहे हैं। सुगना की की बुर सिहर उठी। अपने ठीक बगल में अपनी सास कजरी की चुदाई होने के ख्याल मात्र से उसकी कोमल और संवेदनशील बुर के मुंह में पानी आ गया।

वो आगे आ कर अपनी चुचियों को सरयू सिंह की हथेलियों से सटाने लगी।

सरयू सिह कजरी की चुचियों को मीस रहे थे और उधर सुगना अपनी चुचियों को उनकी हथेली के पिछले भाग पर रगड़ रही थी। अचानक सुगना के निप्पल उनकी दो उंगलियों के बीच आ गए सरयू सिंह से बर्दाश्त ना हुआ और उन्होंने सुगना के निप्पल को दबा दिया। सुगना कराह उठी

"बाबूजी…. "

उसने अपने आगे के वाक्यांश को अपने मुंह में ही रोक लिया और उस मीठे दर्द को सह लिया। कजरी ने पूछा

"सुगना बाबू का भइल"

सरयू सिंह का लंड सकते में आ गया वह कजरी की बुर में पूरा जड़ तक घुस कर शांत हो गया। एक पल के लिए सरयू सिह घबरा गए उन्हें लगा इस प्रेम क्रीडा में विघ्न आ गया।

तभी सुगना ने बात संभाल ली उसने कहा "बाबूजी लाइट कब आई?"

सरयू सिंह अपनी भौजी की बुर चोदते चोदते हाफ रहे थे उन्होंने उत्तर न दिया परंतु कजरी ने कहा

"नींद नईखे आवत का? सुते के कोशिश कर"

कजरी उत्तेजना में पूरी तरह डूब चुकी थी वह किसी हाल में भी बिना स्खलित हुए सरयू सिंह के लंड को नहीं छोड़ना चाहती थी। सुगना भी इस दर्द को समझती थी वह शांत हो गयी। परंतु अपनी चुचियों को अपने बाबुजी की हथेलियों के पीछे रगड़ती रही।

सरयू सिंह का पिस्टन एक बार फिर आगे पीछे होने लगा। कजरी अपनी कमर हिला कर उनका साथ दे रही थी। उसे अब बिस्तर पर हो रही हलचल से कोई लेना-देना नहीं था। उत्तेजना में उसका दिमाग वैसे भी कम काम कर रहा था। वह अपनी बहू के सामने एक ही बिस्तर पर पूरी तन्मयता से अपने नितंबों को आगे पीछे कर चुदवा रही थी।

अचानक सरयू सिंह ने अपना हाथ ऊपर उठाया उसी दौरान सुगना ने उनकी हथेलियों की तलाश में अपनी चूचियां और आगे बढ़ा दी जो सीधे-सीधे कजरी की चुचियों से सट गयीं। कजरी जिन चुचियों को वह हमेशा से छूना और महसूस करना चाहती थी आज उसकी बहू ने वह चूचियां स्वयं ही उसकी चुचियों से टकरा दी थी। इससे पहले की सुगना इस अप्रत्याशित स्थित से बचने के लिए अपनी चुचियाँ पीछे कर पाती कजरी ने तुरंत अपना हाथ ऊपर किया और सुगना को अपनी तरफ खींच लिया सुगना कुछ बोल ना पायी और उसकी मझोली चुचियाँ अपनी सास की भारी चूँचियों में समा गयीं।

सरयू सिंह ने अपने हाथ वापस उसी अवस्था में लाने की कोशिश परंतु सास और बहू की चूचियों के बीच उनके हाथ के लिए जगह नहीं थी परंतु उन्होंने हार न मानी और उन दोनों की चुचियों को अपनी हथेली से सहलाने लगे।

एक ही पल में सास बहू और सरयू सिंह के बीच की शर्म की दीवार लगभग गिर चुकी थी वह उन दोनों की छातियों के बीच ढेर सारी चुचियों को सहलाते हुए मदमस्त हो रहे थे और इसका एक तरफा आनंद कजरी की चूत उठा रही थी।

अचानक कजरी ने अपने शरीर को थोड़ा नीचे किया उसके होंठ सुगना के गर्दन के ठीक नीचे आ गए थे इससे ज्यादा नीचे आना संभव न था सरयू सिंह का लंड कजरी को लगातार ऊपर धकेल रहा था सुगना ने कजरी की मनोदशा का अंदाजा लगा लिया आज वह भी पूरे उन्माद में थी। उसने अपने शरीर को ऊपर की तरफ धकेला और अपनी कोमल चुचियों के निप्पलों को अपनी सास कजरी के मुंह में दे दिया।

सुगना ने उत्तेजना में एक बड़ा कदम उठा लिया था जो कजरी की मनोदशा के अनुरूप था सरयू सिंह अपनी हथेलियों से सुगना की चुचियों को ढूंढते हुए ऊपर की तरफ गए और कजरी के चेहरे पर हाथ लगते ही उन्हें वस्तुस्थिति का अंदाजा हो गया। सरयू सिंह स्वयं आनंद के अतिरेक से अभिभूत अपने लंड को अपनी भौजी की बुर में बेहद तेज गति से आगे पीछे करने लगे कजरी से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ। उसकी कई इच्छाएं एक साथ पूरी हो रही थी कजरी के पैर सीधे होने लगे परंतु सरयू सिंह ने उसे चोदना जारी रखा। कजरी की बुर पानी छोड़ रही थी जितना रस वह अपनी बुर से बाहर छोड़ रही थी वह सुगना की कोमल चुचियों से उतना रस दूह लेना चाहती थी परंतु सुगना की चुचियां भी कच्चे आम जैसी थीं जिसे आप चूस तो सकते थे पर उसमें से रस निकलना असंभव था। उधर कजरी की मेहनत से सुगना की बुर भी पूरी तरह भजन कीर्तन के लिए आतुर थी।

स्खलन के दौरान कजरी ने अनजाने में ही सुगना के निप्पलों को जोर से दबा दिया सुगना से बर्दाश्त ना हुआ वह बोल उठी..

"आआआ…..तनी धीरे से दुखाता"

सुगना की इस कराह ने सरयू सिंह को पूरी तरह उत्तेजित कर दिया उन्होंने कजरी की बुर में लंड जड़ तक घुसा कर गर्भाशय को अंतिम विदाई दी और फक्कक कि आवाज के साथ अपना फनफनाता आता हुआ लंड बाहर निकाल लिए जो अब पूरी तरह कजरी के रस से भीगा हुआ था। आज कजरी की बुर ने इतना पानी स्खलित किया था कि उनके अंडकोष भी भीग गए थे।।

कजरी को अगले कदम का आभास हो गया था। सरयू सिंह का लंड अब भी स्खलित नहीं हुआ था और उन्हें अब अपनी बहू सुगना की कसी हुयी बुर की तलाश थी। कजरी बिना बात किए उनके बीच से उठी और सुगना की तरफ आ गई सुगना भी आतुर थी उसने तुरंत ही कजरी की जगह ले ली।

सरयू सिंह अब यह जान चुके थे की सुगना और कजरी दोनों ही इस खेल में शामिल हो चुके हैं। उन्होंने सुगना की जाँघे पकड़कर उसे खींच लिया और उसकी जांघों के बीच आ गए। उन्होंने अपनी हथेली से सुगना की कोमल बुर का मुआयना किया और बुर के होठों पर भरपूर प्रेम रस देखकर खुश हो गए। उन्होंने झुककर सुगना के निचले होठों को चूम लिया। सुगना के प्रेम रस से अपने होठों को भी भिगोने के पश्चात व सुगना को चूमने के लिए उसके चेहरे की तरह बढ़े।

तभी उन्हें कजरी के हाथ अपने और सुगना के सीने के बीच रेंगते महसूस हुए । कजरी सुगना की चुचियों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी।

सरयू सिंह सुगना के कोमल होठों को घूमते हुए सुगना को उसका ही प्रेमरस चटा रहे थे उधर उनके तने हुए लंड ने सुगना की बुर को चूम लिया। वह रसीली बुर के अंदर प्रवेश करता गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अब वह किसी इशारे की प्रतीक्षा में न था। सुगना भी अपनी जांघें फैला कर उसे खुला आमंत्रण दे रही थी। थोड़ी ही देर में सरयू सिह की कमर तेजी से हिलने लगी। सरयू सिंह ने खुद को सुगना अलग किया और उसकी जांघों को पकड़ कर उसके पेट के दोनों तरफ कर दिया और अपने लंड से उसकी बुर को पूरी गहराई तक हुमच हुमच कर चोदने लगे।

कजरी सरयू सिह का उत्तेजक रूप महसूस कर घबरा गयी। वह अपनी बहू सुगना के चिंतित थी जो अपने बाबूजी की इस अद्भुत उत्तेजना का आनंद ले रही थी।

कजरी ने कहा

"तनी धीरे धीरे… लइका बिया"

सरयू सिंह कजरी की इस बात पर और भी ज्यादा उत्तेजित हो गए उन्होंने सुगना के होंठ काट लिए तथा अपने लंड से उसके गर्भाशय में छेद करने को आतुर हो उठे। उधर कजरी सुगना की चूचियों को सहलाये जा रही थी। कभी-कभी वह अपनी उंगलियां सुगना की भग्नासा पर ले आती परंतु सरयू सिंह के लंड के तेज आवागमन को महसूस कर वह अपनी उंगलियां हटा लेती। उसे कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता जैसे उसकी उंगली भी सरयू सिंह के लंड के साथ सुगना की बुर में चली जाएगी इतना आवेग था सरयू सिंह के लंड में।

सुगना हाफ रही थी। ऐसी उत्तेजना उसने जीवन में पहली बार महसूस की थी। कजरी कभी उसके होठों को चूमती कभी उसके गालों को सहलाती कभी अपने हाथों से उसकी चुचियों को सहलाती। अपनी चुचियों पर अपनी सास और अपने प्रिय बाबुजी की हथेलियां एक साथ पाकर सुगना सिहर उठी।उसकी बुर में कसाव आ गया वह स्खलित होते हुए बोली

बाबूजी... "आआआआआ…..ई….असहिं….आ..आ…सासु....माआआआआआ….आ ईईईई"

वह अपने पैर सीधा करना चाह रही थी परंतु सरयू सिंह का लंड अब भी और गहराइयां खोज रहा था। वह उसकी अंतरात्मा में उतर जाना चाहते थे।सुगना की उत्तेजक कराह ने सरयू सिंह को स्खलन पर मजबूर कर दिया और उनके लंड ने अपनी पहली धार सुगना के गर्भाशय पर छोड़ दी।

सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाल लिया और अपने चिर परिचित अंदाज में अपने वीर्य से अपनी प्यारी बहू को भिगोने लगे। तभी उन्हें कजरी का ध्यान आया उन्होंने अपने लंड की दिशा घुमा ली और अपने पुराने खेत को भी उसी तरह खींचने की कोशिश की जिस तरह वह अपने आंगन की क्यारी सींच रहे थे।

परंतु दुर्भाग्य यह था की सुगना के शरीर में लगा हुआ इंजेक्शन खेत की जुताई और सिंचाई होने के बावजूद बीजारोपण में अक्षम था।

वीर्य स्खलन समाप्त होते ही उनकी हथेलियां कजरी और सुगना की चुचियों पर लगे वीर्य को बराबरी से फैलाने की कोशिश करने लगीं इसी दौरान लाइट आ गई।

अचानक आई रोशनी की वजह से सभी की आंखें मूंद गई परंतु सरयू सिंह इस अद्भुत दृश्य को देखना चाहते थे। उन्होंने अपनी आंखें खोल दी और अपनी दोनों नंगी प्रेमिकाओं को एक दूसरे से सटे और अपने वीर्य से भीगा हुआ देखकर अभिभूत हो गए। कजरी भी अब अपनी आंखें खोल कर सुगना को निहार रही थी।

परन्तु सुगना ने अपनी आंखें ना खोली। वह पूरी तरह शर्मसार थी। उसने पास पड़ा तकिया अपने चेहरे पर डाल लिया परंतु उसके खुले खजाने पर सरयू सिंह और कजरी का पूरा अधिकार और नियंत्रण था। वह दोनों उसकी खूबसूरत और कोमल शरीर को सहला रहे थे। सुगना की चुदी हुई फूली बुर को देखकर कजरी से न रहा गया उसने उसे चूम लिया। सुगना को यह अंदाजा न था उसने अपनी जांघें सिकोड़ी परंतु कजरी की जीभ को प्रेम रस चुराने से ना रोक पाइ उसने कहा..

"बाबूजी बत्ती बंद कर दीं"

सरयू सिह अपना झूलता हुआ लंड लेकर बिस्तर से उठे और उन्होंने ट्यूब लाइट बंद कर दी। कमरे में जल रहा नीला नाइट लैंप थोड़ी-थोड़ी रोशनी कमरे में फैला रहा था। सुगना अब उठ कर सिरहाने टेक लगाकर बैठ चुकी थी। कजरी उसकी नंगी जांघों को सहला रही थी। सरयू सिंह भी सुगना के दूसरी तरफ आकर बैठ गए थे। वह बेहद थके हुए थे। उसने सुगना को अपने सीने से लगा लिया और उसके गालों पर चुंबन लेते हुए बोले…

"तोहन लोग के बीच अतना प्यार बा हमरा आज मालूम चलल।

कजरी ने कहा..

"रहुआ आज भी ओकरा चूची पर गिरा देनी हां सुगना बाबू के इच्छा कैसे पूरा हुई?."

सुगना भी अब हाजिर जवाब हो चली थी उसने मुस्कुराते हुए कहा

"सासु मां अभी त रात बाकीये बा" और अपनी आंखें शरारत से मीच लीं।

सुगना की बात सुनकर सरयू सिंह और कजरी सुगना की तरफ मुड़ गए। उनकी नंगी जांघे सुगना कोमल जांघों पर आ गयीं। उन्होंने सुगना के गाल को चूम लिया। वह उन दोनों को जान से प्यारी हो गई थी। आज रात सुगना ने कजरी के मन में कई दिनों से उठ रही काम इच्छाओं को पूर्ण किया था और एक अलग किस्म की उत्तेजना को जन्म दिया था.

सरयू सिंह और कजरी दोनों सुगना के दोनों गालों को चूमे जा रहे थे तथा अपनी हथेलियों से वीर्य से सने सुगना की चुचियों को सहला रहे थे।


सुगना को आज की रात बहुत कुछ देखना और सीखना था।


तभी सुगना की मधुर आवाज सुनाई पड़ी..

"बाबूजी आपन स्टेशन आवे वाला बा"

ट्रेन में बैठे सरयू सिंह भी आज रात का ही इंतजार कर रहे थे। अपनी पूरी यात्रा को याद करते करते उनके लंड में तनाव भर चुका था। कजरी ने उनके जांघों के बीच उभार को महसूस कर लिया। सरयू सिंह अपनी कामुक दुनिया से लौटकर हकीकत में आ चुके थे। हरिया ने सारा सामान उठाया और सरयू सिंह कजरी के साथ ट्रेन की गेट पर आ गए। सुगना अपने ससुर द्वारा दी गई भेंट सूरज को लेकर खुशी खुशी उनके पीछे आ गई।

घर पहुंचने के बाद गांव वालों के आने-जाने का ताता लग गया। सरयू सिंह जैसा प्रभावशाली और मजबूत आदमी आज हॉस्पिटल में 2 दिन रह कर वापस आया था। सभी लोग उनका कुशलक्षेम पूछने उनके दरवाजे पर आ रहे थे। हरिया के परिवार वाले आगंतुकों का स्वागत कर रहे थे इधर कजरी और सुगना अपने घर को व्यवस्थित करने का प्रयास कर रही थीं।

सुधीर वकील भी उनका हालचाल घर में आया हुआ था यह वही वकील था जिसने सरयू सिंह पर केस किया परंतु अब वह उनका दोस्त बन चुका था।

सुधीर ने पूछा

"सरयू भैया तोहरा जैसा मजबूत आदमी कईसे हॉस्पिटल के चक्कर में पड़ गईल हा"

सरयू सिंह को कोई उत्तर न समझ रहा था उन्हें पता था उन्हें जो तकलीफ हुई थी वह सुगना को जरूरत से ज्यादा चोदने के कारण हुयी थी। सरयू सिंह हकीकत बयां कर पाने में असमर्थ थी उन्होंने मन मसोसकर कहा

"लागता अब हमनी के बुढ़ापा आ जायी…" सरयू सिंह मुस्कुराने लगे। अंदर आगन में सुगना और कजरी ने उनकी यह बात सुन ली और कजरी ने हंसते हुए कहा

"कुंवर जी के मुसल हमेशा ओसही रही. पूरा रास्ता खड़ा रहल हा….दुइये तीन दिन में तोरा खातिर बेचैन हो गइल बाड़े"

सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा

"आज उनका के खुश कर दीयायी"

"सुगना बेटा उनका ले मेहनत मत करवइह"

सरयू सिंह खाना पीना खाने के पश्चात दालान में आराम करने चले गए आज उनकी इच्छा एक बार फिर सुगना से संभोग करने की थी परंतु लज्जावश उन्होंने यह बात न बोली।

कुछ देर बाद कजरी दालान में आई उसने कुँवर जी के पैर दबाए और जाने लगी। सरयू सिंह ने कहा...

"सुगना बाबू से दवाइयां और दूध भेज दीह. तनि शहद भी भेज दीह मीठा खाये के मन करता"

कजरी ने सुगना से कहा..

"कुंवर जी के दूध के साथ दवाई खिला दीह मीठा में तनी आपन शहद चटा दीह" इतना कहकर कजरी ने अपना चेहरा घुमा लिया और मुस्कुराने लगी।


सुगना ने सूरज को दूध पिलाया और उसे कजरी के हवाले कर अपने बाबू जी की सेवा में निकल पड़ी। शहद चटाने की बात ने उसके मन मे कामुकता को जन्म दे दिया था। सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी और अपने बाबूजी के कमरे की तरफ बढ़ रही थी...

शेष अगले भाग में।
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Tiger 786

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जब तक सुगना अपने बाबूजी को दूध पिलाने के लिए उनके पास पहुंचे सोनू का हाल चाल ले लेते है...

सोनू तेज कदमों से लाली के घर की तरफ भागता जा रहा था वह आइसक्रीम को रास्ते में पिघलने से रोकना चाहता था और उसे अपनी लाली दीदी के होठों में पिघलते हुए देखना चाहता था। कुछ ही देर में वह लाली के दरवाजे पर खड़ा दरवाजा खटखटा रहा था….

"2 मिनट रुक जाइए आ रहे हैं"


लाली के बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी.."

"ठीक है दीदी"

"दीदी" शब्द सुनकर लाली ने सोनू की आवाज पहचान ली परंतु वह इस स्थिति में नहीं थी कि जाकर तुरंत दरवाजा खोल दे पर लाली सोनू को इंतजार भी नहीं कराना चाहती थी।

लाली बाथरूम में पूर्ण नग्न होकर स्नान का आनंद ले रही थी सोनू के आने के बाद अचानक ही उसके शरीर में सिहरन बढ़ गई। चुचियों पर लगा साबुन साफ करते करते उसकी चूचियां तनाव में आने लगी निप्पल खड़े हो गए। चूचियों पर लगे साबुन का झाग नाभि को छूते हुए दोनों जांघों के बीच आ गया था लाली की हथेली जैसे उस साबुन के झाग के साथ साथ स्वतः ही जांघों के बीच आ गयी और उसने अपनी रसीली बुर को छू लिया। उसकी जांघों के जोड़ पर जितना पानी था उससे ज्यादा उस मखमली बुर के अंदर था। जो अब रिस रहा था।

सोनू के आगमन ने लाली को उत्तेजित कर दिया था।

लाली लाख प्रयास करने के बावजूद अपने शरीर पर लगा साबुन साफ नहीं कर पा रही थी आज वह इत्मीनान से स्नान करने के मूड में थी परंतु सोनू के आकस्मिक आगमन ने उसे जल्दी बाजी में नहाने पर मजबूर कर दिया था परंतु धन्य हो वह रेलवे का नल जिस पर पानी थोड़ा-थोड़ा ही आ रहा था।

अंततः लाली ने यह फैसला किया कि वह अपनी नाइटी पहन कर जाकर दरवाजा खोल देगी और वापस आकर इत्मीनान से स्नान करेगी।

लाली ने जल्दी-जल्दी अपना अर्ध स्नान पूरा किया और अपनी लाल रंग की बेहद खूबसूरत नाइटी पहन कर बाहर आ गई। एकमात्र वही वस्त्र था जिसे लेकर वह बाथरूम में गई थी जो उसके शरीर पोछने और ढकने दोनों के काम आता था। दरअसल राजेश नाइटी, गाउन और अंतर्वस्त्र का बेहद शौकीन था वह लाली के लिए तरह-तरह की नाइटी और नाइट गाउन लाया करता था आखिर वही उसके सपनों की रानी थी जिसे सजा धजा कर वह कामकला के विविध रंग देखता था।

लाली ने दरवाजा खोला …

सोनू लाली को लगभग भीगी हुई अवस्था में नाइटी पहने देखकर सन्न रह गया. उसका ध्यान लाली की चुचियों पर चला गया जो पूरी तरह भीगी हुई थी . लाल रंग की नाइटी उस पर चिपक कर उन्हें और भी आकर्षक रूप दे रही थी. लाली के कड़े निप्पल उस नाइटी का आवरण छेद कर बाहर आने को तैयार थे. सोनू कुछ बोल नहीं पाया जुबान उसके हलक में अटक गई जब तक वह कुछ सोच पाता तब तक लाली ने कहा…

"सोनू बाबू थोड़ी देर बैठो मैं नहा लेती हूँ "

सोनू कुछ बोला नहीं उसने सिर्फ अपनी गर्दन हिलाई और अपने सूखे मुख से थूक गटकने का प्रयास करने लगा लाली। धीमे कदमों से बाथरूम के अंदर प्रवेश कर गयी परंतु वापस जाते समय उसके गोल नितंब लय में हिलते हुए सोनू के मन में हलचल पैदा कर गए।

कुछ ही देर में बाथरूम से पानी गिरने की आवाज फिर से आने लगी सोनू बेचैन हो गया उसका ध्यान न चाहते हुए भी उस पानी की आवाज की तरफ जा रहा था जो उसकी नंगी लाली दीदी के शरीर पर गिर रहा होगा। क्या लाली दीदी नंगी होकर नहा रही होंगी? या उन्होंने वह नाइटी पहनी हुई होगी? सोनू अपनी उधेड़बुन में खोया हुआ था. पता नहीं भगवान ने उसे कौन सी शक्ति दी उसके कदम धीरे धीरे बाथरूम के दरवाजे की तरफ बढ़ने लगे. रेलवे का दरवाजा कितना अच्छा होगा यह आप अंदाजा लगा सकते हैं।

अंततः सोनू को वह दरार मिल गई जिससे उसे जन्नत के दर्शन होने थे। उसकी पुतलियां फैल गई और उस छोटे से दरार से उसने नारी का वह रूप देख लिया जो सोनू जैसे नवयुवक को मर्द बनने पर मजबूर कर देता।

लाली पूरी तरह नंगी होकर पीढ़े पर बैठकर नहा रही थी। लाली पूरी तरह नंगी थी परंतु दरवाजे की तरफ उसका दाहिना हिस्सा था उसकी दाहिनी चूँची उभरकर दिखाई पड़ रही थी तथा उसकी मुड़ी हुई जाँघे अपने खूबसूरत आकार का प्रदर्शन कर रही थीं।

लाली को यह आभास नहीं था की सोनू उसे नहाते हुए देखने की हिम्मत कर सकता है पर सोनू भी अब बड़ा हो चुका था और उसका लंड भी ।

लाली बेफिक्र होकर अपनी चुचियों पर लगा साबुन धो रही थी तथा अपनी जांघों के बीच उस अद्भुत गुफा को भी साफ कर रही थी जो हर मर्द की लालसा थी।

सोनू उत्तेजना से कांप रहा था वह डर कर वापस चौकी पर बैठ गया। कुछ देर बाद उसने फिर हिम्मत जुटाई और एक बार फिर दरवाजे पर जाकर उसी दरार पर अपनी आंख लगाने लगा तभी लाली ने दरवाजा खोल दिया सोनू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।

सोनू का मुंह खुला का खुला रह गया उसके हाव-भाव को देखकर लाली ने यह अंदाज लगाया की सोनू निश्चय ही उसे देखने के लिए यहां आया था लाली सब कुछ समझ गई पर उसने सोनू को शर्मसार न किया और बोली…..

"सोनू बाबू कुछ चाहिए क्या"

सोनू की जान में जान आई उसने अपना सिर झुका लिया और तेजी से भागते हुए आइसक्रीम के पैकेट की तरफ गया और उसे हाथ में लेकर बोला

"दीदी आइसक्रीम फ्रिज में रखना है पिघल जाएगी।"

लाली ने उसे किचन में रखें फ्रिज को दिखाया और मुस्कुराते हुए कहा " फ्रिज में रख दो मैं 5 मिनट में कपड़े बदल कर आती हूं"

सोनू ने लाली को अपने कमरे में जाते हुए देखा वह लाली के कामुक शरीर से बेहद प्रभावित हुआ था। उसके लंड में अब भी सिहरन कायम थी।

लाली के कमरे का दरवाजा आसानी से बंद नहीं होता था दरअसल कभी इसकी जरूरत भी नहीं पड़ती थी। परंतु आज लाली दरवाजे को बंद करना चाहती थी उसने प्रयास किया परंतु असफल रही।

कमरे के अंदर उसकी पुत्री रीमा सो रही थी। लाली ने दरवाजा सटा दिया और अपने शरीर पर पड़ी नाइटी को उतार कर पूर्ण रूप से नग्न हो गई उसने उसी नाइटी से अपने शरीर को पोछा। उसे सोनू का ध्यान आया क्या वह बाथरूम में उसे नंगा देखने के लिए आया था यह सोच कर उसका तन बदन सिहर उठा।

सोनू चौकी पर बैठे-बैठे लाली के कमरे की तरफ ही देख रहा था वह दोबारा दरवाजे पर जाकर अपनी बेइज्जती करवाने का इच्छुक नहीं था। वह मन मसोसकर अपनी कल्पनाओं में ही लाली को कपड़े बदलते हुए देखने लगा।

उधर लाली अलमारी पर रखे जैतून के तेल के डिब्बे को उठाने गई पर डिब्बा फिसल कर नीचे गिर पड़ा। अंदर हुई आवाज ने सोनू को मौका दे दिया और वह लाली के दरवाजे के करीब आकर अंदर झांकने लगा।

अंदर का दृश्य देखकर सोनू के सारे सपने एक पल में ही पूरे हो गए लाली पूरी तरह नीचे झुकी हुई थी और गिरे हुए जैतून के तेल के डिब्बे को उठा रही थी उसके भरे भरे गोल और गदराये नितंब सोनू की आंखों के ठीक सामने थे। लाली की गांड तो नितंबों ने छुपा ली थी परंतु लाली की बुर बालों के आवरण के पीछे से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी।

बाल उसे पूरी तरह ढकने में असमर्थ थे लाली की बुर् के दोनों होंठ उसकी बुर को सुनहरा आकार दे रहे थे और उन होठों के बीच से लाली का गुलाबी छेद सोनू को आकर्षित कर रहा था।

लाली की नजर अपने दोनों पैरों के बीच से दरवाजे पर पड़ी उसे वहां सोनू के होने का एहसास हुआ लाली तेजी से उठ खड़ी हुई उसने अपनी बुर तो छुपा ली पर अपने मदमस्त यौवन का अद्भुत नजारा सोनू की आंखों के सामने परोस दिया। भरे भरे गोल नितंब पतली कमर और भरा भरा सीना…..आह सोनू सिहर उठा। ऊपर वाले ने लाली को भरपूर जवानी थी जिसका नयन सुख उसका मुंह बोला भाई सोनू उठा रहा था।

लाली और सोनू दोनों उत्तेजना के शिकार हो चले थे अब जब सोनू ने लाली के नग्न शरीर का दर्शन कर लिया था और यह बात लाली जान चुकी थी उसमें सोनू को और उत्तेजित करने की सोची उसने अपना एक पैर बिस्तर पर रखा और अपने हाथों से अपनी जाँघों और पैरों पर जैतून का तेल मलने लगी। लाली यहां भी ना रुकी उसने अपनी चुचियों पर भी तेल मला तथा अपनी जाँघों के अंदरूनी भाग तक अपनी हथेलियों को ले गयी। एक पल के लिए उसके मन में आया की वह अपनी जांघों को फैलाकर अपनी बुर के दर्शन सोनू को करा दे परंतु उसे यह छिछोरापन लगा। बेचारी लाली को क्या पता था उसके खजाने का दर्शन सोनू अब से कुछ देर पहले कर चुका था।

स्वाभाविक रूप से ही आज लाली ने सोनू को भरपूर खुशियां प्रदान कर दी थीं। लाली ने अपने हाथ रोक लिए और अपने कपड़े पहनने शुरू कर दीये। सोनू अपनी लाली दीदी को देखकर भाव विभोर हो चुका था और अपने हाथों से अपने लंड को सहला रहा था।

लाली की नग्न काया पर एक-एक करके वस्त्रों के आवरण चढ़ते गए और उसकी सुंदर लाली दीदी हाल में आने के लिए कदम बढ़ाने लगी सोनू अपनी सांसों को नियंत्रण में किए हुए चौकी पर आकर बैठ गया।

लाली ने बड़ी आत्मीयता से कहा सोनू

"बाबू तुमको बहुत इंतजार करवा दिए"

"सुगना कहां चली गई"

सोनू ने हॉस्पिटल का पूरा वृतांत लाली को सुना दिया लाली और सोनू अब सामान्य हो चले थे उत्तेजना का दौर धीमा पढ़ रहा था। सोनू की सांसें भी अब सामान्य हो रही थीं।

लाली ने झटपट सोनू और अपने लिए लिए खाना निकाला और उसके बगल में बैठ कर खाना खाने लगी।

लाली ने बमुश्किल 1- 2 कौर खाए होंगे तभी उसकी बेटी रीमा रोने लगी हालांकि रीमा अब 2 वर्ष की हो चुकी थी परंतु उसे सुलाते समय लाली को अब भी अपनी चूचियां पकडानी पड़ती थीं। लाली अपना खाना छोड़कर रीमा की तरफ भागी और उसे अपनी चूचियां पिलाकर सुलाने लगी।

लाली को आने में देर हो रही थी उधर खाना ठंडा हो रहा था। सोनू ने आवाज दी

"दीदी खाना ठंडा हो रहा है रीमा को लेकर यहीं आ जाइए"


लाली ने रीमां को गोद में उठाया और अपनी चूचियां पकड़ाये हुए ही लेकर हाल में आ गई उसने अपनी चुचियों को आंचल से ढक रखा था।

लाली सोनू के बगल में बैठ गई और रीमा को सुलाने का प्रयास करने लगी परंतु उसके दोनों ही हाथ रीमा को सुलाने में व्यस्त थे अभी खाना खा पाना उसके बस में न था तभी सोनू ने एक निवाला लाली के मुंह में डालने की कोशिश की…

लाली ने अपना सुंदर मुंह खोला और उस निवाले को स्वीकार कर लिया उसे सोनू पर बेहद प्यार आया कितना अच्छा था सोनू।

सोनू बाबू तुम खाना खा लो मैं रीमा को सुला कर खा लूंगी

दीदी मैं अपने हाथ से खिला देता हूं ना खाना ठंडा हो जाएगा

लाली मुस्कुराने लगी और बोली…

आज अपनी लाली दीदी पर खूब प्यार आ रहा है होली के दिन तो मुझको पकड़ कर अपनी सुगना दीदी से रंग लगवा रहे थे

दीदी पकड़म पकड़ाई में तो आपको भी अच्छा लग रहा था क्या आप गुस्सा थीं ? सोनू ने मासूमियत से पूछा

नहीं पगले अपने सोनू बाबू से कोई गुस्सा होगा क्या तू तो इतना प्यार करता है मुझे। लाली ने उसके गालों को प्यार से चुम लिया।

लाली में इस बार निवाला लेते समय उसकी उंगलियों को चूस लिया था..

सोनू की उंगलियों को लाली के सुंदर होठों का यह स्पर्श बेहद उत्तेजक और आकर्षक लगा वह बार-बार लाली से इसकी उम्मीद करने लगा लाली ने भी उसे निराश ना किया जब भी सोनू उसे खिलाता वह उसकी उंगलियों को चूम लेती कभी अपने होंठों के बीच लेकर चुम ला देती सोनू को लाली का वह स्पर्श सीधा अपने लंड पर प्रतीत हो रहा था जो अब पूरी तरह तन कर खड़ा था और जांघों के बीच उधार बनाए हुए था।

खाना समाप्त होने के पश्चात लाली ने कहा

सोनू बाबू अपने जीजा जी के लुंगी पहनकर आराम कर लो

सोनू ने मन ही मन अपनी तुलना अपने जीजा जी से कर ली और उनकी लुंगी पहनकर हॉल में लगी चौकी पर लेटने की तैयारी करने लगा लाली रीमा को लेकर अंदर अपने कमरे में आ गई।

सोनू बिस्तर पर लेट कर आराम करने लगा तभी उसे बिस्तर के नीचे कुछ गड़ने का एहसास उसने बिस्तर हटाकर देखा वहां पर कुछ पतली पतली किताबें पढ़ी हुई थी सोनू ने उत्सुकता बस किताब अपने हाथ में ले ली परंतु पन्ने पलटते ही उसके होश एक बार फिर उड़ गए।

वह किताब एक सचित्र कामुक कहानियों की पुस्तक की जिसमें देसी विदेशी लड़कियों को अलग-अलग सेक्स मुद्राओं में दिखाया गया था और कई तरीके की उत्तेजक कथाओं के मार्फत कामुक पुरुषों और युवतियों की उत्तेजना जागृत करने का प्रयास किया गया था।

सोनू ने अपने सिरहाने की दिशा बदल दी अब उसके पैर लाली के दरवाजे की तरफ से और वह लेट कर उस किताब को देखने लगा उसका लंड एक बार फिर तन कर खड़ा हो गया।

जैसे-जैसे सोनू के लंड में खून का प्रवाह बढ़ता गया उसका दिमाग शांत होता गया वह पूरी तन्मयता से किताब के अंदर बनी नंगी लड़कियों के अंदर खोता गया परंतु जो नग्नता उन्होंने अब से कुछ देर पहले देखी थी वह उसके दिलो-दिमाग पर चढ़ी हुई थी। फोटो में एक से एक सुंदर लड़कियां थी परंतु सोनू को लाली से ज्यादा कोई भी खूबसूरत नहीं दिखाई पड़ रही थी। परंतु अब अपना कच्छा खिसका कर लंड को सहलाने लगा बल्कि अपनी मुठीयों में भरकर उसे तेजी से आगे पीछे करने लगा। उसे इस बात का आभास न रहा की लाली कभी भी यहां आ सकती है। उत्तेजना के अतिरेक में लूंगी का पतला कपड़ा जाने कब लंड के ऊपर से हट गया।

नियति आज लाली और सोनू के बीच सारी दीवार गिरा देना चाहती थी अचानक लाली को पेशाब करने की इच्छा हुई और वह न चाहते हुए भी उठकर अपने दरवाजे के पास आ गई।

उसके कानों में "लाली दीदी" की कामुक कराह सुनाई पड़ रही थी उसने अपना सर दरवाजे से बाहर कर सोनू को देखा जो बेफिक्र होकर अपने सुकुमार पर सुदृढ़ लंड को मसल रहा था।


लाली की आंखें फटी रह गई अब से कुछ घंटों पहले उत्तेजना का जो खेल खेल उसने सोनू को दिखाया था नियति उसे प्रत्युत्तर में उसी खेल को दिखा रही थी। सोनू अपने लंड को लगातार आगे पीछे कर रहा था और उसके मुख से "लाली दीदी" का नाम धीमे स्वर में आ रहा था। सोनू का लंड नितांत ही कोमल पर बेहद खूबसूरत था लाली के होठों में एक मरोड़ से उत्पन्न हुई वह अपने पति राजेश का लंड तो कई बार चुसती थी परंतु सोनू का लंड चूसने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त था कितना सुंदर था वह बेहद मासूम कोमल और तना हुआ।

एक बार के लिए लाली के मन में इच्छा हुई कि वह अचानक ही कमरे में प्रवेश कर सोनू को रंगे हाथों पकड़ ले परंतु उसने अपने आप को रोक लिया वह भी उत्तेजना में डूब चुकी थी उसकी बुर पनिया गई थी।

सोनू के हाथों की गति बढ़ती गई और अचानक उसने अपनी कमर के नीचे से पीले रंग की पेंटी निकाली जो लाली अब से कुछ घंटों पहले नहाने के पश्चात सुखाने के लिए बाथरूम के सामने रस्सी पर डाली थी।

सोनू के लंड से वीर्य धारा फूट पड़ी और उसने लाली की पेंटी में अपना सारा माल भर लिया। लाली को अब जाकर यह बात समझ में आ रही थी कि सारे पुरुष स्त्रियों की पेंटी में जाने कौन सा रस पाते हैं। राजेश भी पेंटी का दीवाना था और अब यह छोटा सोनू भी उसकी पैंटी पर अपना वीर्य गिरा कर तृप्त हो गया था।

सोनू फटाफट बिस्तर से उठा और वह पेंटिं मोड़ कर खूंटी पर टंगे अपने पैंट की जेब में डाल ली और बिस्तर पर आ कर वापस लेट गया।

लाली ने दरवाजा खोला और हाल में प्रवेश कर गयी सोनू आंखें बंद कर लेटा हुआ था।

लाली बाथरूम गई और वापस आ गई तथा किचन में चाय बनाने लगी इसी दौरान जब सोनू बाथरूम गया तो लाली ने अपनी पेंटी उसकी जेब से निकालकर छुपा ली।

तभी दरवाजे पर घंटी बजी और लाली ने पुकारा

कौन है

दरवाजे पर राजेश खड़ा था….

सोनू ने राजेश की आवाज पहचान ली…

वह थोड़ा घबराया और आनन-फानन में जल्दी से हाल में आया।

उसने राजेश के चरण छुए और तभी उसकी निगाह चौकी पर रखी उस गंदी किताब पर गई उसने राजेश की नजर बचाकर उसे उसकी ही लूंगी से ढक दिया और राजेश के अंदर जाते ही उसे वापस उसी जगह पर रख दिया जहां से उसने वह किताब ली थी।


सोनू यथाशीघ्र वहां से निकल जाना चाहता था।

अब तक लाली चाय बना चुकी थी। चाय पीने के पश्चात सोनू ने लाली और राजेश से विदा ली और बाहर आने के बाद अपने पैंट की जेब चेक की जिसमें उसने अपनी लाली दीदी की चूत का आवरण अपने वीर्य से भिगोकर रखा हुआ था।

अपनी जेब पर हाथ जाते हैं वह सन्न रह गया जेब से पैंटी गायब थी वह घबरा गया वह पेंटी किसने निकाली? क्या लाली दीजिए ने? क्या उन्होंने उसे हस्तमैथुन करते हुए देख लिया?


हे भगवान यह क्या हो गया वह अपने मन में अफसोस और उत्तेजना लिए हॉस्टल की तरफ चलता जा रहा था.

उधर सुगना अपनी जांघों के बीच उत्तेजना लिए और अपने बाबूजी सरयू सिंह को खुश करने के लिए दूध और दवाइयां लेकर उनके कमरे में पहुंच गई राजेश और लाली से मिलने के पश्चात वह रह-रहकर कामूक ख्यालों में हो जाया करती थी।

"बाबूजी ली दूध पी ली"

सुगना ने अपनी मधुर आवाज में पुकारा परंतु सरयू सिह सो गए थे। शायद हॉस्पिटल में भी जा रहे दवाओं की वजह से वह थोड़ा सुस्त हो गये थे। अब से कुछ ही देर पहले अपना तना हुआ लंड लिए सुगना का इंतजार कर रहे थे पर अब उनके चेहरे पर सुकून भरी नींद थी।

सुगना ने अपनी उत्तेजना पर नियंत्रण कर लिया और सरयू सिंह के माथे को सहलाते हुए उन्हें उठाया दवाइयां खिलाई और दूध पिलाया।


वह कजरी का आग्रह पूरा न कर पाई । सरयू सिह की स्थिति उसकी जांघों के बीच रिस रहा शहद चाटने लायक न थी। सुगना ने पूरी आत्मीयता से उनके पैर दबाये और वो पुनः एक सुखद नींद सो गए।

अगले दिन सुगना की मां पदमा, सुगना की दोनों छोटी बहनों सोनी और मोनी के साथ सरयू सिंह के घर पर आ गई उनका यह आना अकस्मात न था। निश्चय ही वह सरयू सिंह को देखने के लिए यहां आई थीं।

सोनी और मोनी युवावस्था की दहलीज पर खड़ी थीं। प्रकृति के गूढ़ रहस्य उन्हें पता चल चुके थे। जांघो के बीच की दिव्य चीज का ज्ञान उन्हें ही चुका था और उसकी उपयोगिता भी यह अलग बात थी कि उन्होंने उसका उपयोग आज तक न किया था। भगवान ने उन्हें सुंदरता उसी प्रकार दी थी जैसे सुगना और पद्मा को। ऐसा प्रतीत होता था जैसे पदमा की फैक्ट्री से निकलने वाली कलाकृतियों का में कामुकता का सृजन नियति ने विशेष प्रयोजन के लिए किया था।

सुगना पुत्र सूरज को देखते ही सोनी ने उसे अपनी गोद में ले लिया सूरज वैसे भी बहुत प्यारा बच्चा था। सोनी जैसी सुंदरी की गोद में जाकर वह और भी खिल गया सोनी भी बड़ी आत्मीयता से उसे अपने सीने से लगाए हुए थी।

सूरज करते हुए अपने छोटे पैर सोनी के पेट पर मार रहा था तथा वह सोनी के हाथों पर बैठकर सोनी के सानिध्य का आनंद ले रहा था तभी सोनी का ध्यान सूरज के दाहिने अंगूठे पर गया उस अंगूठे पर नाखून लगभग नहीं के बराबर था और नाखून की जगह एक गुलगुला सा उभरा हुआ भाग था वह स्वता ही ध्यान आकर्षित कर रहा था।

सोनी उस विलक्षण अंगूठे को देखकर खुद को रोक न पाए और उसे अपने अंगूठे और तर्जनी से कौतूहल वश सहलाने लगी...

अचानक सोनी को अपनी चूँचियों पर कुछ गड़ने का एहसास हुआ। उसने सूरज को तुरंत अपने दोनों हाथों में उठाया और सुगना से बोला…

दीदी लगता है बाबू पेशाब करेगा

तो करा देना..

सोनी ने सूरज का कच्छा उतारा और अपने हाथों का सहारा देख कर उसे सु सु कराने लगी…

सूरज की मुन्नी तन गई थी पर वह सुसु नही कर रहा था..

अंत में सोनी ने परेशान होकर उसका कच्छा ऊपर किया और उसे सुगना की गोद में देकर सरयू सिह के पास चली गयी जहां उसकी माँ पद्मा घूंघट ओढ़े हुए बैठी हुई थी…

नियति आंगन में बैठी हुयी सोनी और सूरज को निहार रही थी सोनी ने सूरज के जिस अंगूठे को सहलाया था वह नियति ने किसी विशेष प्रयोजन के लिए बनाया था जिसे सोनी ने अनजाने में छू दिया था… नियति मुस्कुरा रही थी सोनी ने अनजाने में ही गलत उतार छेड़ दिया था जिस की सरगम उसे सुनाई पड़नी थी...


शेष अगले भाग में….
Adhbut lekhni hai bhai apki👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 
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उधर लाली के घर में

राजेश के आने के कुछ ही देर बाद सोनू घर से चला गया राजेश को यह बात समझ में ना आए कि जाने की इतनी जल्दी क्यों परंतु उसने ज़िद न की. लाली ने सरयू सिंह की स्थिति और सुगना के वापस जाने की खबर राजेश को सुना दी। राजेश दुखी हो गया वह आज फिर सुगना के कोमल और कामुक शरीर को देखने और अपने मन में उसके करीब आने के लिए कई प्रकार से योजना बना रहा था परंतु उसके सारे अरमान धूमिल हो रहे थे वह उदास हो गया और चौकी पर लेट कर अपनी आंखें बंद किए सोचने लगा।

तभी लाली अपने कमरे में गई और रात में सुगना के शरीर से उतारी हुई पेंटी को लेकर आयी और राजेश के चेहरे पर रख दिया.

राजेश ने अपनी आंखें खोली और उस खूबसूरत पेंटी को देख कर लाली से कहा..

"इसे हटाओ अभी मन नहीं है"

राजेश ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई उसके जवाब में बेरुखी थी।

लाली ने कहा अरे आपकी साली साहिबा के शरीर से उतरी है अभी उसकी जांघों के बीच की खुशबू वैसे ही होगी"

राजेश के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी उसने उस पेंटी को लिया और अपने बड़े-बड़े नथुनों से सुगना की बुर की खुशबू लेने की कोशिश करने लगा। सच वह खुशबू अलग ही थी वह उसमें खो गया और पेंटिं के उस भाग को चूमने लगा जो अब से कुछ घंटे पहले सुगना की बुर को चूम रही थी।

राजेश में उत्तेजना भर गई वह खुश हो गया और उठकर लाली को आलिंगन में ले लिया तभी लाली ने दूसरा बम फोड़ दिया उसने वह दूसरी पेंटी भी राजेश के हाथों में थमा दी जिसमें अब से कुछ देर पहले सोनू ने अपना हस्तमैथुन कर अपना वीर्य उस पेंटिं में भर दिया था। पेंटी अब भी गीली थी।

राजेश ने पूछा

"अब यह क्या है?"

लाली ने उसके सीने पर सर रख दिया और बोली

"यह आपके साले साहब की करतूत है"

राजेश को बात समझते देर न लगी उसने लाली को तुरंत ही अपनी गोद में उठा लिया और अपने कमरे में ले आया. राजेश को आज एक साथ दो दो सरप्राइज मिले थे। सोनू में उसके ही घर में आज उसकी ही पत्नी की पेंटिं में अपना वीर्य स्खलन किया था निश्चय ही सोनू की कल्पना में लाली का ही स्थान रहा होगा यह सोचकर राजेश बेहद खुश हो गया।

उसने फटाफट लाली को नग्न करने की कोशिश की तभी लाली ने लाल झंडी दिखा दी वह अब भी रजस्वला थी। राजेश एक बार फिर दुखी हो गया लाली ने तुरंत ही उसके लंड को अपने हाथ में लिया और सुगना की बातें करते हुए सहलाने लगी। कुछ ही देर में राजेश का लंड लाली के हाथों में अठखेलियां करने लगा राजेश ने पूछा…

"क्या सुगना ने अपनी पैंटी जानबूझकर छोड़ी थी?" राजेश ने बेहद उम्मीद और उत्सुकता से लाली से पूछा

"पता नहीं पर आपके जाने के बाद मैं और सुगना एक दूसरे के आलिंगन में आ रहे थे तभी मैंने उसकी पैंटी उतार दी थी"

राजेश बेहद उत्तेजित हो गया काश उस बिस्तर पर लाली और सुगना के साथ वह भी उपस्थित होता उसके मन में तरह तरह की कल्पनाएं जवान होने लगी वह मन ही मन अपने ख्वाबों में लाली और सुगना को एक साथ देखने लगा.

अचानक राजेश को सोनू का ध्यान आया उसने लाली से पूरा विवरण सुनना चाहा जिसे लाली ने चटखारे ले लेकर बताया।

राजेश का वीर्य स्खलन प्रारंभ होते ही लाली ने वही पेंटी राजेश के लंड पर रख दी जिस पर कुछ देर पहले उसके भाई सोनू ने अपना वीर्य भरा था।

राजेश यह देखकर और भी उत्तेजित हो गया और पूरी गति से अपना वीर्य लाली की पेंटी में भरने लगा। लाली मन ही मन मोनू और राजेश का वीर्य अपनी पेंटी पर गिरते हुए देख रही थी और उसे अपनी बुर की गहराइयों में महसूस कर रही थी उसके मन में भी सपने जवान हो रहे थे।

नियति राजेश और लाली को एक अलग किस्म की उत्तेजना और कल्पनाएं दे रही थी जो सुगना और सोनू के बिना संभव नहीं था परंतु यह कार्य नियत ने स्वयं संभाल रखा था सोनू अपने आज के दिन को याद करते हुए हॉस्टल में बिस्तर पर लेटा अपने लंड को सहला रहा था। लाली की गोरी और गदराई जांघों के बीच उसने जिस पवित्र गुफा के दर्शन किए थे वह उसे चूमना और चोदना चाहता था यह भूल कर भी कि उस गुफा पर राजेश का वीर्य न जाने कितनी बार गिरा होगा। उसे लाली आज भी उतनी ही पवित्र लगती थी जितनी उसने अपने बचपन से देखी थी।

लाली के सीने से सटते हुए उसे कई वर्ष हो गए परंतु आज के बाद वह लाली के गले किस प्रकार लगेगा यह सोचकर ही उसका लंड फिर स्खलन के लिए तैयार हो रहा था।

इधर सरयू सिंह के घर पर सोनी की उत्सुकता कायम थी आज सूरज के बिना नाखून के अंगूठे को सहलाने पर उसकी नुंनी पूरी तरह तन गई थी यह सोनी के लिए आश्चर्य की बात थी।

दोपहर में सुगना ने सोनी से कहा "सूरज बाबू को तेल लगा कर नहला दो"

सोनी को सूरज वैसे भी बहुत प्यारा लगता था वह उसे लेकर दालान में आ गई।

दालान पूरी तरह खाली था. सोनी ने अपने दोनों पैर चौकी पर रखें और अपने घागरे को अपनी जांघों तक खींच लिया वह तेल से अपने घागरे को गंदा नहीं करना चाहती उसने पैर के पंजों पर सूरज का तकिया रखा और अपने पैरों पर सूरज को लिटा लिया तथा उसके पैरों और हाथों की मालिश करने लगी अचानक सूरज का वही अंगूठा उसे फिर दिखाई दिया उस अंगूठे में नाखून की जगह एक अजब किस्म का गुलगुला भाग था जिसे छूने का मन हो जाता था। सोनी ने एक बार फिर उस अंगूठे को अपने हाथ में लिया और सहला दिया और एक बार फिर सूरज की मुन्नी तन गई सोनी की उत्सुकता बढ़ती गई और उसने सूरज के अंगूठे को और सहलाया सूरज की नुंनी में आया उधार अप्रत्याशित था वह अपने आकार का 3 गुना हो गया। सोनी को यह बेहद अजीब लग रहा था उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस अंगूठे का उस नूंन्नी से क्या संबंध है उसने उस अंगूठे को थोड़ा और सह लाया और सूरज की नुंनी लगभग सोनी की उंगली से ज्यादा बड़ी हो गयी।

सोनी डर गई वह सूरज नुन्नी के अप्रत्याशित बढ़ोतरी से घबरा गई उसके लाख प्रयास करने के बावजूद सूरज की नुंनी नहीं सिकुड़ रही थी। सोनी डर से थर थर कांपने लगी सूरज को यह क्या हो गया था वह सुगना दीदी को क्या जवाब देगी।

सोनी ने पहले भी कई बार बच्चों की तेल मालिश देखी थी तेल मालिश के पश्चात कई औरतें बच्चों की नुंन्नी में तेल लगाकर मुंह से फूंकती है ताकि नुंनी के सुपारे के अंदर की सफाई हो सके।

सोनी ने भी थोड़ा सा तेल अपनी उंगलियों पर लिया और सूरज की नुंनी के मुंह पर लगाया परंतु नुन्नी के आकार में कोई परिवर्तन न हुआ। सूरज अभी भी मुस्कुराते हुए अपनी सोनी मौसी को देख रहा था उसे जैसे अपनी कमर के नीचे हो रही घटनाओं का कोई आभास ही नहीं था।

लाली अपने कोमल होठों को गोलकर तेजी से सूरज की नुंनी के ऊपर फूकने लगी परंतु नुंनी के आकार में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा था। अपने प्रयास को बढ़ाते बढ़ाते एक बार सोनी के होठ सूरज की नुंनी से छू गए यही वह मौका था जब सूरज की मुन्नी के आकार में परिवर्तन हुआ उसका आकार थोड़ा घट गया था। सोनी ने यह महसूस कर लिया और तुरंत ही एक बार फिर अपने होठों को उसकी नुन्नी से छुआ दिया।

सूरज की नुंनी का आकार घट रहा था सोनी के चेहरे पर सुकून आ गया वह अपने होठों से बार-बार नुंनी को छूती और वह सिकुड़ती जाती। कुछ ही देर में नुंनी वापस अपने आकार में आ गयी थी।

तभी दालान में सुगना आ गयी। सोनी के होंठो पर तेल देखकर उसने पूछा…

"होंठ में तेल काहे लगवले बाड़े?"

सोनी ने सुगना को सारी बात बताने की कोसिश की पर सुगना के कहा..

" अच्छा एक बार फेर करके देखा त"

सोनी ने दुबारा कोशिश की पर सूरज की नुंनी में कोई हरकत नहीं हुई।

सोनी के आश्चर्य को कोई सीमा न रही वह उसके अंगूठे को मसलती रही पर आश्चर्यजनक रूप से सूरत की नुंनी में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा था।

सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा…

"लागाता हमार सोनी अब जवान हो गईल बिया जल्दी ब्याह करावे के परी। दिने में सपनात बिया"

सोनी भगवान को शुक्रिया अदा कर रही थी कि उसने सुगना को आधी ही बताई थी कि सूरज केअंगूठे को सहलाने पर उसकी नुंनी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती है। जब तक वह यह बात बता पाती कि होठों से छूने पर नुंनी का आकार वापस हो जाता है इसके पहले ही सुगना ने उसे करके दिखाने के लिए कह दिया था।

अन्यथा सूरज की नुंनी को अपने होठों से छूने की बात बताकर और शर्मसार हो जाती ।

सुगना दालान से बाहर वापस जा चुकी थी परंतु सोनी का आश्चर्य कायम था उसने एक बार फिर सूरज के अंगूठे को वैसे ही सह लाया और नुन्नी में अपना आकार फिर बढ़ा दिया।

सोनी उधेड़बुन में थी परंतु उसे नुंनी के बढ़ने और घटने दोनों का राज पता था। सोनी ने मन ही मन इस बात को अपनी बहन मोनी से साझा करने की सोची।उसमें अपनी बहन मोनी को आवाज दी परंतु वह बाहर नहीं थी। सोनी सुगना की बात को याद कर थोड़ा उत्तेजित हो चुकी थी विवाह की बात सुनकर उसकी जांघों के बीच एक अजब किस्म की हलचल हो रही थी जिसे सिर्फ और सिर्फ सोनी ही समझ सकतीथी या फिर हमारे प्रबुद्ध पाठक गण।

उधर सरयू सिह ट्यूबवेल में पड़ी चारपाई पर लेते हुए सुगना को याद कर रहे थे वह अपनी पूरी की यादों में खोए हुए थे जब उनके लंड को सुगना के होंठों का स्पर्श प्राप्त हुआ था। एक बार सुगना को जी भर चोदने के बाद पुरी के होटल में वह अपनी भौजी कजरी और सुगना के साथ बिस्तर पर लेटे हुए थे।

सुगना अब भी पूरी तरह नंगी बीच में लेटी हुई थी। उसने अपनी पीठ पलंग के सिरहाने टिका रखी थी वह किसी छोटी महारानी की तरह प्रतीत हो रही थी और हो भी क्यों ना वह अपने बाबूजी और सासू मां की चहेती थी और उन दोनों की अधूरी मनोकामनाएं पूर्ण कर रही थी सुगना के प्रति कजरी के मन में आई वासना बिल्कुल नयी थी कजरी तो सुगना की मासूमियत और उसके अंग प्रत्यंग ओं की कोमलता पर मोहित हो गई थी सच कितनी कोमल थी सुगना की बुर।


कजरी ने जब उसकी बुर पर अपने होंठ फिराए थे उसे अपनी जीभ ज्यादा कठोर महसूस हो रही थी सुगना का मालपुआ अद्भुत था। सरयू सिंह और कजरी दोनों उसके कोमल जिस्म को अपने हाथों और जांघों से सहला रहे थे। सुगना की तेज चल रही सांसे अब सामान्य हो चली थीं।

तभी कजरी की नजर दीवाल पर टंगी घड़ी पर गई रात के 12:00 बज चुके थे। उसने कहा..

"आज त सुगना बाबू के चुमत चाटत 12:00 बज गइल"

सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा…

"हां चली सुत जाईल जाउ राउर कुँवर जी अब थाक गईल बाड़े"

सरयू सिंह को सुगना का यह वाक्य उत्तेजित करने वाला लगा। उनके सोए हुए लंड में हरकत हुई परंतु वह तुरंत खड़ा हो पाने की स्थिति में नहीं था। अब से कुछ देर पहले ही उसने अपनी प्यारी ओखलीओं में जी भर कर अदृश्य चटनी कुटी थी जिसका रस छलक छलक कर दोनों ओखलियों से बह रहा था।

सुगना की बात सुनकर उन्होंने जल्दी बाजी में सुगना की चुचियां अपने मुंह में भर लीं और अपनी उत्तेजना को जागृत करने का प्रयास करने लगे पर अनायास ही उनके ही वीर्य का स्वाद उनके मुंह में आने लगा।

कजरी ने अपने कुंवर जी की मदद करने की सोची और उठ कर उनके जादुई लंड को अपने हाथों से सहलाने लगी। उधर सरयू सिंह सुगना की चूचियों से उर्जा लेकर अपने लंड में उत्तेजना भर रहे थे।

कजरी के सधे हुए हाथ प्रेम रस से लथपथ मुसल को खड़ा करने में लगे हुए थे। कजरी ने अब अपने होठों को भी मैदान में उतार दिया।

कमरे की मद्धम रोशनी में सुगना ने अपनी सास कजरी को कुछ नया करते हुए देख लिया। कजरी लंड के सुपाडे को मुंह में भरकर चूस रही थी।

सुगना यह देखकर आश्चर्यचकित थी। उसकी आंखें कजरी के होठों पर टिक गई। उसे दीपावली की वह रात याद आई जब उसके बाबूजी ने उसकी कोमल और प्यारी कुँवारी बुर को जी भर कर चूमा और चाटा था।

कजरी ने अकस्मात सुगना की तरफ देखा और उनकी आंखें चार हो गई कजरी ने सुगना के मनोभाव पढ़ लिए थे उसने मुस्कुराते हुए कहा

"ए सुगना तनि इकरा में ताकत भर द हम आव तानि"

कजरी बिस्तर से उठी और अपने नंगे चूतड़ मटकाती हुई बाथरूम की तरफ चल पड़ी। सरयू सिंह सुगना की चूँचियों को छोड़ चुके थे और बड़ी बेसब्री से अपनी प्यारी बहू सुगना के होठों का इंतजार अपने लंड पर कर रहे थे। सुगना मन में कई भाव लिए सरयू सिंह के लंड की तरफ बढ़ गई उसने अपने कोमल हाथों से उसे छूआ और लंड एक ही झटके में तन कर खड़ा हो गया।

जैसे जैसे वह अपने कोमल हाथ उस लंड पर फिराती गई वह तनता चला गया। सुगना ने अपने बाबूजी की तरफ देखा जो अपनी पलकों को लगभग मूंदे हुए उसे निहार रहे थे।

सुगना के हाथ चिपचिपे हो चले थे ऐसा लग रहा था जैसे सरयू सिंह ने अपना लंड मक्खन में घुसा कर बाहर निकाला हो। सुगना ने अपने छोटे होठों को गोल किया और लंड के सुपाड़े को चूम लिया। वह कुछ समय पहले अपनी सास कजरी से यह ज्ञान प्राप्त कर चुकी थी और कुछ ही देर में उसने लंड का सुपाड़ा अपने मुंह में लेकर लेमनचूस की तरह चुभालाने लगी। अपना और अपने बाबूजी का प्रेम रस पहले भी चख चुकी थी परंतु आज उसमें कजरी का भी अंश शामिल था।

उसके मुलायम हाथ लंड की जड़ तक जा रहे थे तथा अंडकोशों को सहला रहे थे। नियति ने उसे यह शिक्षा जाने कब प्रदान कर दी थी की लंड की जान अंडकोष में बसती है। उसे गर्भाधान कराने वाला लंड एक निमित्त मात्र है जबकि असली बीज उत्पादन में वह दोनों उपेक्षित अंडकोष ही लगे हुए हैं।

सुगना के होंठ गति पकड़ते गए। सुगना जब-जब लंड को अपने मुंह में गले तक लेती सरयू सिंह के मुंह से आह… निकल जाती सुगना अपनी आंखें तिरछी कर उन्हें देखती और उनके चेहरे का सुकून देख उसे और प्रेरणा मिलती।

सुगना अपने हाथों से लंड की चमड़ी को ऊपर कर सुपाड़े को उसके अंदर करने का प्रयास करती परंतु जब तक वह सफल होती तब तक बाहरी चमड़ी छलक कर वापस अपनी जगह पर पहुंच जाती और लंड का चमकदार सुपाड़ा एक बार फिर उसे आकर्षित करने लगता वह उसे कभी चूमती कभी अपने मुंह में भर लेती सुगना को भगवान ने एक अद्भुत खिलौना दे दिया था जिससे वह आज मन लगाकर खेल रही थी।

सुगना का छोटा सा मुंह सरयू सिंह के लड्डू नुमा सुपाडे से पूरी तरह भर जाता। जब वह उसके गर्दन से टकराता सुगना गूँ...गूँ ... की आवाज निकालने लगती और तुरंत ही अपना मुंह पीछे कर लेती। सरयू सिंह कभी उसके बालों को सहलाते और उसके चेहरे को दबाकर उसे लंड का और भी ज्यादा भाग मुंह में लेने को प्रेरित करते। बीच बीच मे वह उसके चूतड़ों पर हाथ फेर रहे थे जो इस समय उनके सीने के ठीक बगल में थे। सुगना के गोल नितंबों के बीच उसकी चूत का फूला हुआ छेद बेहद आकर्षक लग रहा था परंतु वह सरयू सिंह की जिह्वा से बहुत दूर था।

अपने बाबू जी का हाथ अपने चूतड़ों पर महसूस कर सुगना और गर्म हो गई। सरजू सिंह कभी-कभी अपनी मध्यमा उंगली को सुगना की बुर के बीच घुमा देते। सुगना की कमर थिरक उठती।

कजरी अब बाथरूम से बाहर आ चुकी थी और उसने कमरे की लाइट अचानक ही जला दी। सुगना के मुंह में अपने कुंवर जी का लंड भरा हुआ देखकर कजरी खुश हो गई।

कजरी अपनी चुचियाँ हिलाती हुई बिस्तर पर आ गई और अपनी बहू सुगना का साथ देने लगी सरयू सिंह अपने लंड की किस्मत पर नाज कर रहे थे जिसे उनकी दोनों प्रेमिकाये मुखमैथुन देने को आतुर थीं।

अचानक कजरी को अपनी बहु सुगना की कोमल बुर याद आ गई वह कुंवर जी के लंड को अकेला छोड़ कर सुगना की जांघों के बीच आ गई और अपने प्यारे मालपुए से रस खींचने का प्रयास करने लगी। जितना आनंद सुगना अपने बाबूजी के लंड में भर रही थी उसकी सास कजरी उसकी बुर में उतनी ही उत्तेजना।

कजरी की जीभ के कमाल से सुगना को ऐसा लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी….

उसने कहा…

"सासु माँ……" कजरी ने अपना सिर उसकी जांघों के बीच से बाहर निकाला..

"अब छोड़ दीं ... हमारा हउ चाहीं…" सुगना ने शरमाते हुए अपने बाबूजी के लंड को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर चूम लिया।

सरयू सिंह भी उत्तेजना के अतिरेक पर थे उन्होंने और देर नहीं की उन्होंने सुगना को अपने दोनों हाथों से उठा लिया। जब तक सरयू सिंह सुगना को बिस्तर पर लिटा पाते कजरी सुगना के ठीक नीचे आ गयी।

सरयू सिंह ने अपनी गोद में ही सुगना को पलटा दिया और उसे पेट के बल कजरी के ऊपर ही सुला दिया।

कितना मोहक दृश्य था पीठ के बल लेटी हुई कजरी अपनी प्यारी बहू को अपने ऊपर लिटाये हुए थी। कजरी और सुगना की जांघें एक दूसरे से सटी हुई स्वता ही अपना आकार ले रही थीं। सुगना की उभरती हुई चूचियां अपनी सास कजरी की चूचियों के बीच जगह बनाने का प्रयास कर रही थीं। कजरी और सुगना के ऊपरी होंठ एक दूसरे में समा गए थे। वासना का यह रूप उन दोनों के लिए नया था। उनकी कमर निचले होठों को भी सटाने का भरपूर प्रयास कर रही थी पर यह संभव नहीं हो पा रहा था। सरयू सिंह अपनी भौजी और सुगना बाबू की चूत एक साथ देख कर मदमस्त हो गए थे।

सरयू सिंह का लंड सुगना के गोल नितंबों के बीच विचरण कर रहा था वह कभी कजरी की बुर को चुमता कभी सुगना की। सरयू सिंह को अपनी प्यारी सुगना की गुदांज गांड के दर्शन हो गए। सरयू सिह का लंड फटने को हुआ उन्होंने देर न की और कजरी की बुर में अपना लंड जड़ तक ठान्स दिया। कजरी चिहुंक उठी उसने सुगना के होंठ काट लिये…

सुगना ने कराहते हुए कहा…

"सासु माँ, तनि धीरे से ….दुखाता…"

सुगना के मुंह से निकली यह कराह सरयू सिंह की उत्तेजना को आसमान पर पहुंचा देती थी उन्होंने अपना लंड कजरी की बुर के मुहाने तक लाया और उसे वापस कजरी की बुर में पूरी ताकत से डालने लगे परंतु उनका लंड कुछ ज्यादा ही बाहर आ गया था। वह कजरी की बुर से छटक कर सुगना की कोमल बुर में प्रवेश कर गया। उन्होंने अपनी कमर का दबाव कजरी के हिसाब से लगाया था जिसका सामना कोमल सुगना को करना पड़ गया। लंड एक ही बार मे उसकी नाभि को चूमने लगा। सुगना सिहर उठी….और एक बार फिर कराह उठी…

"बाबूजी….तनि धीरे से….दुखाता"

सुगना की पुकार सुनकर सरयू सिंह उसे और जोर जोर से चोदने लगे बीच-बीच में वह अपने लंड को कजरी की बुर में घुसा देते तथा सुगना की कोमल बुर पर अपनी उंगलियां फिराते रहते।

सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार देखकर कजरी समझ गई की सरयू सिंह इस दोहरे मजे में जल्दी ही स्खलित हो जाएंगे वह किसी भी हाल में अपनी बहू सुगना को गर्भवती करना चाहती थी। उसने कहा…

"रुक जायीं सुगना के नीचे आवे दी हम थक गईनी"

सरयू सिंह रुकते रुकते भी सुगना को चोदे जा रहे थे वह अपना लंड निकालने के मूड में बिल्कुल नहीं थी परंतु सुगना अब कजरी के ऊपर से उठकर नीचे बिस्तर पर पीठ के बल लेट रही थी। सरयू सिंह का लंड उस कोमल बुर से बाहर आकर थिरक रहा था। कजरी आज उसकी चमक देखकर बेहद खुश हो रही थी उधर सुगना की बुर पूरी तरह फूल चुकी थी।

सरयू सिंह सुगना की जांघों के बीच आ गए और उसके दोनों पैरों को अपने कंधे पर रखकर गचागच चोदने लगे आज वह एक नवयुवक की तरह बर्ताव कर रहे थे। कजरी सुगना की चुचियों को चूमने लगी वह धीरे-धीरे उसके सपाट पेट को चूमती हुई बुर की तरफ जा रही थी सुगना सिहर उठी।

क्या सासू मां उसकी चुद रही बुर को चूमेंगी?

कितना कामुक अनुभव होगा? वह अपनी भग्नासा पर कजरी की जीभ का इंतजार करने लगी. कजरी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी पर सुगना से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपनी हथेलियों से कजरी के सिर को अपनी बुर की तरफ धकेला कजरी प्रसन्न हो गई और उसने सुगना का कोमल भग्नासा चूम लिया।

सुगना तड़प उठी…

"आईई। मा…...असही…. आह आआआ ईईईई "

वह सिसकारियां लेने लगी. उसे आज जैसी उत्तेजना कभी अनुभव नहीं हुई थी उसने अपने पैर अपने बाबूजी के कंधे से उतार लिए और अपने हाथों से पैरों को पकड़ कर पूरी तरह फैला लिया।

कजरी लगातार उसकी भग्नासा को चुमें जा रही थी बीच-बीच में उसकी जीभ सरयू सिंह के लंड से भी टकराती। सरयू सिंह सुगना को बेतहाशा चोदे जा रहे थे आज पहली बार वह सुगना को चूम नहीं पा रहे थे परंतु उसे जमकर चोद रहे थे उनके मन में आज सुगना वह जींस वाली लड़की थी जिसकी जींस उन्होंने अब से कुछ घंटे पहले अपने हाथों से खोली थी और उसके गोल चूतड़ों को सहलाया था।

सरयू सिंह की कामुक चुदाई से सुगना अभिभूत हो गई उसकी जांघें तन गई और उसकी बुर से प्रेम रस का रिसाव चालू हो गया ऐसा लग रहा था जैसी उसकी कोमल गुफा की हर दीवार से रस छलक छलक कर बह रहा हो.. जब सरयू सिंह का लंड बाहर आता छलका हुआ प्रेम रस उस गुफा में इकट्ठा हो जाता और जैसे ही सरयू सिंह अपना लंड अंदर घुसाते वह बुर् के किनारों से छलक कर बाहर आ जाता जिसे कजरी तुरंत ही आत्मसात कर लेती।

सरयू सिंह ने एक बार फिर अपने लंड को सुगना की नाभि से छुवाने की कोशिश की और स्खलन के लिए तैयार हो गए।

उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला और पहली धार कजरी के होठों पर ही मार दी जो अब तक सुगना का ही रस पी रही थी। कजरी ने तुरंत ही अपनी हथेली से लंड पकड़ा और उसे वापस सुगना की बुर में डाल दिया जहां से वह बाहर आया था।

सरयू सिंह को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह एक बार फिर सुगना को झड़ते झड़ते चोदने लगे और उन्होंने सुगना की बुर मलाई से भर दी।

कजरी भी रसपान कर तृप्त हो चुकी थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह मक्खन की हांडी में मुंह मार कर आई हो। सरयू सिंह का लंड निकलने के बाद कजरी ने सुगना के पैर ऊंचे कर दिए वह उसकी बुर में भरे हुए वीर्य को बाहर नहीं निकलने देना चाह रही थी। उसकी चूत रूपी दिये में उसके बाबूजी का तेल रूपी वीर्य लबालब भरा हुआ था जिसे कजरी और सुगना मिलकर छलकने से रोक रहे थे।

सरयू सिंह और सुगना दोनों ही इस उत्तेजक संभोग से हाफ रहे थे परंतु सुगना अपने पैर ऊंचे किए गर्भवती होने का प्रयास कर रही थी। उधर सरयू सिंह उसके इस प्रयास पर सुगना को इंजेक्शन दिलाने का अफसोस कर रहे थे।

सरयू सिंह ने कहा

"अरे सुगना बाबू के खुश रहे द गाभिन त उ कभियो हो जायीं।"

सुगना और कजरी अब मुस्कुराने लगे और सरयू सिंह भी।

कजरी ने भी मुस्कुराते हुए कहा

"हां अब ई सब में एकरो मन लागता"

सुगना का चेहरा शर्म से लाल हो गया उसने कुछ बोला नहीं पर शर्म से अपनी आंखें बंद कर ली उसका यह रूप बेहद मोहक था।

सरयू सिंह और कजरी दोनों सुगना के करीब आ गए। किसने किसको किस तरह चुम्मा यह बताना कठिन था पर कजरी के होठों पर लगा मक्खन तीनों प्रेमियों के होंठो से लिपट गया….


शेष अगले भाग में।
Bohot hi badiya threesome
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सरयू सिंह अपनी पुरी यात्रा की यादों में खोए हुए अपनी बहु सुगना की गर्म चूत को याद कर अपने लंड को सहलाए जा रहे थे और वह उनके शरीर से सारा लहू खींचकर अपना आकार बढ़ा रहा था परंतु उस पर लगाम लगाने वाली सुगना अपने घर पर अपनी मां पदमा और प्यारी बहनों सोनी और मोनी के साथ खोई हुई थी।

मायके के लोगों का साथ पाकर सुगना बेहद खुश थी। सुगना और सरयू सिंह के बीच पिछले तीन-चार वर्षों में आई नज़दीकियों के बारे में पदमा को पता चल चुका था परंतु उसे यह बात नहीं मालूम थी कि कजरी और सुगना दोनों एक साथ सरयू सिंह के सानिध्य का आनंद उठा चुकी हैं।

अब पदमा को सरयू सिंह और सुगना के बीच चल रहे संबंधों से कोई आपत्ति नहीं थी। उसे सुगना की खुशी चाहिए थी जो उसे मिल रही थी।

शाम होते-होते सरयू सिंह वापस दालान में आ गए और खानपान के पश्चात अपनी तीनों प्रेमिकाओं के साथ बैठकर वार्तालाप करने लगे सोनी और मोनी की उपस्थिति ने कामुकता पर विराम लगा दिया था तभी कजरी ने सोनी से कहा..

"सोनी बेटा सूरज बाबू के ले जाकर सुता द"

सोनी ने सूरज को अपनी गोद में लिया और सुगना के कमरे की तरफ जाने लगी मोनी उसके पीछे हो ली।

अचानक सोनी को दोपहर की घटना याद आ गई उसने मोनी से कहा

"सूरज का यह अंगूठा कितना प्यारा है सहला के देख ना"

मोनी ने सूरज के बिना नाखून के अंगूठे को देखा तो था परंतु उसे सहलाने की बात उसके दिमाग में नहीं आई थी। सोनी के कहने पर मोनी ने सूरज के अंगूठे को सह लाया और एक बार फिर सूरज की नुन्नी तन गई मोनी का ध्यान स्वतः ही उस पर चला गया।

मोनी ने खेल ही खेल में सूरज का अंगूठा कुछ ज्यादा सहला दिया और सूरज की नुंनी का आकार 4 इंच से ज्यादा बड़ा हो गया मोनी घबरा गई।

उसने अपनी आंखें उठाकर सोनी की तरफ देखा जो मुस्कुरा रही थी।

"अरे बाप रे यह क्या है?"

लगता है इसके अंगूठे का कनेक्शन उससे है सोनी ने अपनी आंखों से सूरज की नुंनी की तरफ इशारा कर दिया।

मोनी ने अपनी उंगलियों से नुंन्नी का आकार घटाने की कोशिश की पर उससे नून्नी पर कोई अंतर न पड़ा सूरज मुस्कुराते हुए अपनी दोनों मौसियों को देख रहा था।

मोनी ने हार कर सोनी से पूछा

"अब यह छोटा कैसे होगा..?

सोनी ने अपने होठों को गोल किया और मोनी को अपने अनुभव के आधार पर इशारा किया मोनी शर्म से लाल हो गई। दोनों बहनों में एक दूसरे से छेड़खानी करने की आदत थी परंतु आज सोनी ने जो करने के लिए कहा था वह बिल्कुल अलग था। मोनी की दुविधा जानकर सोनी ने फिर कहा..

"परेशान मत हो इसके अलावा दूसरा रास्ता नहीं है मैंने दोपहर में ही यह राज जाना है"

अंततः मोनी ने अपने कोमल होठों का स्पर्श सूरज की नुंनी को दिया और नुन्नी का आकार घटने लगा जैसे जैसे वह अपने होठों को उस नुन्नी पर रगड़ती गई उसका आकार छोटा होता गया।

मोनी को इस आश्चर्य पर यकीन नहीं हो रहा था उसने वही कार्य दोबारा किया और एक बार फिर उसे सूरज की नुंनी को अपने होंठों के बीच लेना पड़ा।

मोनी ने बिस्तर से उठते हुए सोनी से कहा

"जब सोनू बड़ा हो जाएगा क्या तब भी उसका अंगूठा ऐसे ही कार्य करेगा?"

दोनों बहने एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा दी उनकी जांघों के बीच एक अलग से सिहरन उत्पन्न हो रही थी जिसका एहसास सुखद था।

आँगन में बैठी सुगना के चेहरे पर खुशी देखकर पदमा को सारी खुशियां मिल चुकी थी। सरयू सिंह ने पद्मा को उसकी जवानी में उसे कामुक और अद्भुत संभोग का आनंद कई बार दिया था और पदमा ने भी बढ़-चढ़कर उस कामुक प्रेमालाप में सरयू सिंह का साथ दिया था।

आज सरयू सिंह उसकी पुत्री उनके जीवन में खुशियां भर रहे थे। कजरी ने पदमा के सामने ही सुगना को छेड़ दिया….

"ई त कुँवर जी पर कब्जा जमा लेले बिया दिनभर एकरे खातिर बेचैन रहे ले"

पद्मा ने सुगना को छेड़ना उचित नहीं समझा आखिर वह उसकी पुत्री थी और मां बेटी के बीच जो मर्यादा कायम थी वह उसे तार-तार नहीं करना चाहती थी फिर भी कजरी की हां में हां मिलाते हुए उसने कहा..

"हमार सुगना बाबू केहू के दिल जीत ली"

तभी सूरज के रोने की आवाज आई और सुगना सूरज को अपना दूध पिलाने चली गई।

सुगना के मन में कल रात की बात याद आ रही थी जब वह अपने मन में कामुकता का अंश लिए अपने बाबूजी को शहद चटाने के लिए निकली परंतु सरयू सिंह दवाइयों की प्रभाव की वजह से शीघ्र सो गए थे

सुगना ने आज मन ही मन सरयू सिंह को खुश करने की ठान ली थी आखिर वह उसका इंतजार पिछले तीन-चार दिनों से कर रहे थे। शायद यह इंतजार पिछले तीन-चार वर्षो में पहली बार उन्हें करना पड़ा था अन्यथा उनके लंड से वीर्य दोहन का कार्य या तो सुगना करती या कजरी।

सुगना उठ कर खड़ी हो गई थी और अपनी भरी हुई चुचियों को ब्लाउज के अंदर बंद कर रही थी तभी पदमा और कजरी दोनों कमरे में आ गयीं।

पदमा को अपनी जवानी के दिन याद आ गए। सुगना की भरी भरी और मदमस्त चूचियाँ देखकर पदमा मन ही मन बेहद प्रसन्न हो गई उसकी पुत्री वास्तव में इतनी खूबसूरत हो गई थी इसका उसे इल्म न था। कजरी की बात सही थी सुगना की भरपूर जवानी किसी भी मर्द को उसके इर्द-गिर्द घूमने पर मजबूर कर सकती थी।

कजरी ने सुगना से कहा

"तोर बाबू जी इंतजार करत बाड़े जो उनका के दूध पिया दे"

पदमा आश्चर्यचकित थी की कजरी ने कितने खुले तरीके से सुगना को सरयू सिंह को अपनी चूचियां पिलाने के लिए कह दिया था।

तभी कजरी में अपना वार्ड के पूरा किया और कहा

"हम गिलास में दूध निकाल देले बानी"

पदमा को अपनी सोच पर शर्म आ गयी वह सुगना की चूँचियों में खोई हुई थी और कजरी की बात सुनकर उसने अपने अनुसार ही मतलब निकाल लिया था।


सुगना ने अपना सिर झुकाया और मुस्कुराते हुए रसोई की तरफ बढ़ चली पदमा सुगना को जाते हुए देख रही थी भगवान ने जितनी सुंदर चूचियां सुगना को दी थी उतने ही सुंदर नितंब भी जो एक ताल में थिरक रहे थे।

सरयू सिंह अविवाहित होकर भी जिस सुख का आनंद ले रहे थे वह विवाहित मर्दो को भी प्राप्त न था।


अपनी कोठरी में लेटे सरयू सिंह अपनी आंखें बंद किये सुगना को ही याद कर रहे थे। उनका लंड खड़ा हो चुका था तभी सुगना आयी और झुक कर बोली …

"बाबूजी दूध पी ली"

अपनी ब्लाउज में कसी भारी चूँचियों को दिखाती हुयी बोली…

सरयू सिंह को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे सुगना उन्हें अपनी चुचियों से दूध पिलाने जा रही थी परंतु तभी सुगना ने अपने हाथ में लिया गिलास आगे कर दिया सरयू सिंह ने वह गिलास पकड़ा और सुगना द्वारा दिया दूध पीने लगे। सुगना की निगाह सरयू सिंह के लंड पर पड़ गई जो तन कर खड़ा था।

सुगना ने मुस्कुराते हुए पूछा…

"सुते के बेरा में ई काहे खड़ा बाड़े"

सुगना ने उत्सुकता वश सरयू सिंह के लंड को हाथ लगा दिया वैसे भी पिछले दो तीन दिनों में उसने काफी उत्तेजना का सामना किया था। राजेश ने उसके तन बदन में आग लगा दी थी परंतु उसे पता था इसकी शांति उसके बाबू जी के द्वारा ही होनी थी। उसे कजरी की बात याद आई सुगना ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह आज बाबू जी को तंग नहीं करेगी परंतु….. वह मुस्कुराते हुए उनके दूध खत्म होने का इंतजार करने लगी।

सरयू सिंह का चेहरा शांत था परंतु उनका दाग अप्रत्याशित रूप से कम था सुगना उनके दाग के घटते आकार को देखकर बेहद प्रसन्न थी।

"बाबूजी राउर दाग कितना कम हो गईल बा" सुगना ने पूरी आत्मीयता से कहा

सरयू सिंह को दाग से कोई लेना-देना नहीं था आज वह पूरी तरह वासना के आधीन थे और सुगना को अपनी बाहों में भर लेना चाहते थे वैसे भी सुगना के मायके वालों की उपस्थिति में उसे चोदने का अवसर उन्हें पहली बार प्राप्त हुआ था जाने उन्हें इसमें कौन सा आनंद मिलता यह तो वही समझ सकते थे परंतु आज उनमें उत्तेजना भरपूर थी।

दूध की मलाई उनकी मूछों में लग गई थी ठीक वैसे ही जैसे छोटे बच्चे दूध पीते समय अपने ऊपरी होठों पर दूध का कुछ भाग लगा लेते हैं सुगना उनकी मासूमियत देखकर द्रवित हो गई और उनके गालों को चुमने के लिए अपने होंठ आगे बढ़ाएं तभी शरीर सिंह ने अपना चेहरा घुमा दिया और अपनी प्यारी बहू के होंठों को अपने होंठों में भर कर चूस लिया।

सरयू सिंह की मजबूत बाहों ने सुगना को अपने आगोश में ले लिया और कुछ ही देर में सुगना सरयू सिंह के ऊपर लेट चुकी थी।

सरयू सिंह का लंड सुगना की जांघों के बीच घुसने का प्रयास कर रहा था परंतु उसमें सुगना की साड़ी और पेटीकोट को चीर पाने की हिम्मत न थी।

सरयू सिंह की ठुड्डी सुगना की चुचियों से छू रही थी सरयू सिंह ने सुगना को ऊपर की तरफ खींचा और अपना चेहरा सुगना की गोरी चूचियां पर मलने लगे।

सुगना उनके माथे के दाग को देखती हुई उनके बाल सहला रही थी और उनके माथे पर चुंबन ले रही थी। आज सरयू सिंह पर उसे बेहद प्यार आ रहा था। कैसे आज से कुछ दिनों पहले वह उसे चोदते हुए गिर पड़े थे। कुछ ही पलों के लिए सही परंतु सुगना को अपने अनाथ होने का एहसास हो गया था। उसकी आत्मा कांप उठी थी सरयू सिंह उसके लिए बेहद अहम थे नियति ने उन दोनों के बीच एक ऐसा रिश्ता बना दिया था जिसे सुगना हमेशा उनकी बाहों में रह कर निभाना चाहती थी परंतु वह सरयू सिंह को किसी भी प्रकार से कष्ट में नहीं देखना चाहती थी।


इधर सुगना सरयू सिंह से भावनात्मक रूप से आसक्त हो रही थी उधर सरयू सिह के हाथ सुगना की साड़ी और पेटीकोट को खींचते हुए कमर तक ले आए उसकी गोरी जाघें नग्न हो चुकी थी। जब उनके तने हुए लंड ने सुगना की पनियायी बुर ने को स्पर्श किया तब जाके सुगना सतर्क हुई एक पल के लिए उसने अपनी कमर पीछे कर उस लंड को आत्मसात करने की सोची तभी उसे कजरी द्वारा दी गई नसीहत याद आ गई कि अपना बाबूजी से ज्यादा मेहनत मत करवइह।

सुगना की पनियायी बुर ने लंड के सुपारे को गीला कर दिया था। लंड स्वभाविक रूप से सुगना की मखमली बुर के अंदर प्रवेश कर रहा था परंतु सुगना ने मन मसोसकर अपनी जाघें ऊपर उठा ली सरयू सिंह उसके कोमल नितंबों को हाथ लगा कर अपने लंड की तरफ खींचते रहे परंतु सुगना ने उनके इशारे को नजरअंदाज कर दिया वह बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई।

उसके पेटीकोट और साड़ी ने उसके सुंदर और सुडौल पैरों को फिर से ढक लिया।

सरयू सिंह कातर निगाहों से सुगना की तरफ देख रहे थे उन्होंने बड़े ही प्यार से कहा सुगना बाबू

"धीरे धीरे करब"

सुगना को उन पर बेहद प्यार आया वह उसे चोदने के लिए पूरी तरह आतुर थे उस ने मुस्कुराते हुए कहा..

"बाबू जी पहले ठीक हो जाई फिर हम कहां जा तनि हमरो ओकरे इंतजार बा"

सरयू सिंह को सुगना की बात सुनकर तसल्ली तो हुई परंतु उनका लंड विद्रोह पर उतारू था वह पहले भी सुगना की बुर की खुशबू पाकर बेचैन हो जाता था उसे संवेदनाएं और भावनाओं से कोई सरोकार नहीं था और आज तो उसने सुगना की बुर चूम ली थी और उसके रस से भीगा हुआ उसी के इंतजार में खड़ा था।

सरयू सिंह ने सुगना की तरफ देखा और फिर अपने लंड की ओर देखते हुए फिर कहा…

" सुगाना बाबू, इहो दु-तीन दिन से तोहरे इंतजार करा ता एकरा के कइसे समझाईं"

सुगना मुस्कुराई और बड़े ही प्यार से बोली

"इकरा के हम समझा दे तानी रहुआ खाली आंख बंद करके सुतल रही"

सरयू सिंह ने छोटे बच्चे की तरह अपनी आंखें बंद कर लीं पर शरारत वस अपनी पलकों के बीच से वह अपने तने हुए लंड को देख रहे तभी सुगना का प्यारा चेहरा उनकी आंखों के सामने आया और उनके लंड का चमकता हुआ सुपाड़ा सुगना के कोमल होंठों के बीच खो गया। जीभ का स्पर्श सुपाड़े के पिछले भाग पर लगते हैं ही लंड ने उछाल मारी और एक पल के लिए वह सुगना के मुख से बाहर आने लगा। सुगना ने अपनी कोमल हथेलियां उस लंड को वश में करने के लिए उतार दी और उसे वापस अपने मुह में अंदर कर दिया वह लॉलीपॉप की तरह अपने बाबूजी का लंड चूसने लगी।


उसकी स्वयं की बुर पूरी तरह पनीयाई हुई थी और लंड का इंतजार कर रही थी। सरयू सिंह के हाथ सुगना के नितंबों को सहलाने लगे और सुगना के नितंब धीरे-धीरे उनके सीने के करीब आने लगे। सरजू संघ ने सुगना के गोल नितंबों को अनावृत कर दिया और उनके मखमली स्पर्श का आनंद लेने लगे।

उधर सुगना अपनी पूरी कार्यकुशलता से सरयू सिह के लंड को चूस कर उन्हें आनंद देने की भरपूर प्रयास कर रही थी। उसने अब इस कला में पर्याप्त दक्षता हासिल करली थी।

सरयू सिंह उत्तेजना में पागल हो रहे थे उन्होंने सुगना के बाएं पैर को उठाया और उसे अपने सीने के दूसरी तरफ ले आए सुगना कि दोनों नितंबों उनके चेहरे के ठीक सामने थे और उसके बीच में उनकी प्यारी बहू सुगना का वह अपवित्र द्वार ( गुदाजं गांड) सरयू सिंह को आज भी पुकार रही थी.

सरयू सिंह ने सुगना के नितंबों को अपनी ओर खींचा और उनकी लंबी जीभ ने सुगना की बुर को छू लिया।

सुगना की बुर प्रेम रस से लबालब भरी हुई थी जीभ का स्पर्श पाते ही प्रेम रस को बहने का रास्ता मिल गया और वह सर्विसिंग के मुख में प्रवेश करने लगा। सरयु सिह अपनी प्यारी बहु सुगना की गुफा से निकलने वाले शहद का रसपान करने लगे उनकी नाक बार-बार सुगना की गोरी और प्यारी गांड से टकरा रही थी।

वासना के आधीन सरयू सिंह उस अपवित्र द्वार को ही स्वर्ग का द्वार समझ रहे थे उन्होंने जाने कितनी बार सुगना से उस द्वारा को भेदने की अनुमति मांगी थी परंतु सुगना ने हर बार बहाना कर दिया था।


आज एक बार फिर उन्हें सुगना से कहा बेहद आत्मीयता से कहा

"सुगना बाबु हम कितना दिन जीयब हमरा मालूम नइखे लेकिन लागता हमार ई इच्छा अधूरा रह जायी।"

सुखना ने शरयू सिंह के लंड को अपने मुंह से बाहर निकाला परंतु अपने हाथों से उसे सहलाते हुए बोली


"आइसन अशुभ बात मत बोलीं रउआ ठीक हो जायीं अबकी हाली हम खुद ही परोस देब"

सरयू सिंह की खुशी दुगनी हो गई। अपनी बहू की चूत को चाट कर वह पहले ही आनंद में आ चुके थे और सुगना का यह आश्वासन उनके तन बदन में आग लगा चुका था उन्होंने सुगना की बुर को अपने होंठों के बीच भर लिया और एक झटके में उसकी रस से भरी गगरी खाली करने का प्रयास करने लगे। तथा अपनी नाक से उसकी सुनहरी गांड पर प्रहार करने लगे सुगमा उत्तेजना में हिलोरें ले रही थी ।

सुगना अपनी बुर को उनके चेहरे पर रगड़ रही थी उसकी उत्तेजना अब चरम पर थी और वह स्खलन के लिए पूरी तरह तैयार थी।

सरयू सिंह धीरे-धीरे अपने होठों को भग्नासा की तरफ ले गए और उसके उभरे हुए दाने को चूसते समय उन्होंने अपने दांतो का भी प्रयोग कर दिया सुगना की चीख निकल गई।

उसने कराहते हुए कहा

"बाबू जी तनी धीरे………""


सरयू सिंह को यह मधुर ध्वनि बेहद पसंद थी उन्होंने अपनी जीभ से उसके भग्नासे से को सहलाना जारी रखा और उनकी नाक से सुगना की बुर में छेद करने को आतुर हो गए।

सुगना सरयू सिह कि इस अधीरता का आनंद लेते हुए स्खलित होने लगी सरयू सिंह सुगना की बुर के कंपन कई दिनों बाद अपने होठों पर महसूस कर रहे थे। जितनी उत्तेजना उन्हें सुगना की बुर को चूसने से मिल रही थी उसका असर उनके लंड पर भी पड़ रहा था।

उनके लंड ने लावा उगलना शुरू कर दिया। पिछले तीन चार दिनों से उनके अंडकोष ने जितना वीर्य उत्पादन किया था वह सब सुगना की मुंह में भर देना चाहते थे परंतु सुगना का छोटा मुंह वीर्य की पूरी मात्रा को आत्मसात करने में अक्षम था। अपना मुंह भरने के बाद सुगना ने अपने होंठ हटा लिए और सरयू सिंह के लंड ने बचे हुये वीर्य की धार सुगना के चेहरे पर छोड़ दी।

सरयू सिंह और सुगना दोनों हाफ रहे थे सुगना ने अपना शरीर सरयू सिंह के ऊपर छोड़ दिया था वह अपनी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी वह अभी भी अपनी बुर को अपने बाबूजी के होठों पर रखी हुई थी और सरयू सिंह अपनी नाक उसके नितंबों से निकालकर सांस ले रहे थे।

वासना का ज्वार थमते ही सुगना सरयू सिंह के ऊपर से उठी और खड़ी हो गई उसने सरयू सिंह के लंड को वापस धोती के अंदर किया और अपने होठों से अपने बाबूजी को चुंबन दिया और उनके माथे को सहला कर बोली

"अब आराम से सूत जायीं। सरयू सिंह बेहद प्रसन्न हो गए और जाते-जाते उसकी चुचियों को सह लाते हुए बोले

"सुगना बाबू एक हाली हमार इच्छा जरूर पूरा कर दीह"


सुगना ने नजरें नीची कर ली और बोली

"राउर इच्छा जरूर पूरा होयी"


सुगना अपने कमरे में जाते हुए सरयू सिंह की उस अनोखी इच्छा के बारे में सोच रही थी. जिस आत्मीयता और अनुरोध से उन्होंने अपनी इस इच्छा को जाहिर किया था उसमें सुगना को द्रवित कर दिया था। उसने मन ही मन अपने बाबू जी की इस अनूठी और अप्राकृतिक इच्छा को पूरा करने की ठान ली थी।

रास्ते में जाते समय उसने अपने आंचल से अपने चेहरे पर लगे वीर्य को भरसक पोछने की कोशिश की और कमरे में आ गई जहां कजरी और पदमा उसका इंतजार कर रही थीं। कजरी को तो पता था परंतु पदमा को यह उम्मीद नहीं थी आज पूरे परिवार की उपस्थिति में सरयू सिंह और सुगना कोई कामुक संबंध बनाएंगे पद्मा ने सुगना से पूछा...

"दवाई खिला देलू हा?"

"हां खिला दे देनी हां।"

कजरी सुगना के चेहरे को ध्यान से देख रही थी उसकी पलकों के पास अभी भी सरयू सिंह का वीर्य लगा हुआ था। उसने अपने हाथ बढ़ाएं और उंगलियों से उसे पोछते हुए बोली लिया..

"अपना बाबूजी के परेशान ना नु कईलू हा?"

सुगना मुस्कुरा रही थी उसने एक बार फिर अपने आंचल से अपना चेहरा पोंछा और अपनी मां से लिपट कर सो गई।

अगली सुबह पदमा अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ वापस जाने की तैयारी करने लगी। मोनी का सूरज को लेकर कौतूहल अब भी कायम था उसने मौका देखकर एक बार फिर सूरज के अंगूठे को सह लाया और एक बार फिर अपने होठों का प्रयोग कर उसे शांत कर दिया। वह मुस्कुरा रही थी। नीम के पेड़ पर बैठी नियति सोनी और मोनी का भविष्य सूरज के उस अंगूठे में देख रही थी।

दिन तेजी से बीत रहे थे और सरयू सिंह धीरे धीरे स्वस्थ हो रहे थे उन्होंने खेती किसानी का काम फिर से संभाल लिया था बस अपनी बहू सुगना की क्यारी जोतने का काम बचा हुआ था। सुगना को चोदने का वह अवसर अवश्य खोजते परंतु सुगना ने अपनी कामुकता पर काबू पाना सीख लिया था । कभी-कभी वह और कजरी सरयू सिंह का हस्तमैथुन और कभी मुखमैथुन कर उनकी उत्तेजना को शांत कर देती थीं । परंतु कजरी ने संभोग करना पहले ही बंद कर दिया था और अब सुगना ने भी सरयू सिंह से उचित दूरी बना ली थी वह अपने बाबू जी को फिर उसी हाल में नहीं पहुंचाना चाहती थी। वह उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित थी।

इसी दौरान बनारस शहर में दंगे हो गए और कर्फ्यू लगने की तैयारियां हो गई। सोनू का हॉस्टल पूरी तरह बंद हो गया जो लड़के आसपास के रहने वाले थे वह सब अपने अपने घरों को चले गए परंतु दूर से आए लड़कों के लिए यह संभव न था। कुछ लड़के हॉस्टल में बचे जरूर थे परंतु यह तय था कि उन्हें अगले दो-तीन दिनों में खाने-पीने की दिक्कतों का सामना करना था ।

सोनू वापस गांव आ पाने की स्थिति में नहीं था अंततः उसे अपनी लाली दीदी की याद आई उसने अपने जरूरी कपड़े लिए और अपनी लाली दीदी के घर की ओर निकल पड़ा उस शहर में उसकी लाली दीदी का घर ही एकमात्र आसरा था। उसे पता था लाली देवी उसे बेहद मानती हैं और एक-दो दिन वहां गुजारने में कोई दिक्कत नहीं होगी। कुछ ही घंटों बाद अपने मन में ढेर सारे अरमान लिए सोनू लाली के दरवाजे पर खड़ा था…


शेष अगले भाग में।
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सरयू सिंह अपनी पुरी यात्रा की यादों में खोए हुए अपनी बहु सुगना की गर्म चूत को याद कर अपने लंड को सहलाए जा रहे थे और वह उनके शरीर से सारा लहू खींचकर अपना आकार बढ़ा रहा था परंतु उस पर लगाम लगाने वाली सुगना अपने घर पर अपनी मां पदमा और प्यारी बहनों सोनी और मोनी के साथ खोई हुई थी।

मायके के लोगों का साथ पाकर सुगना बेहद खुश थी। सुगना और सरयू सिंह के बीच पिछले तीन-चार वर्षों में आई नज़दीकियों के बारे में पदमा को पता चल चुका था परंतु उसे यह बात नहीं मालूम थी कि कजरी और सुगना दोनों एक साथ सरयू सिंह के सानिध्य का आनंद उठा चुकी हैं।

अब पदमा को सरयू सिंह और सुगना के बीच चल रहे संबंधों से कोई आपत्ति नहीं थी। उसे सुगना की खुशी चाहिए थी जो उसे मिल रही थी।

शाम होते-होते सरयू सिंह वापस दालान में आ गए और खानपान के पश्चात अपनी तीनों प्रेमिकाओं के साथ बैठकर वार्तालाप करने लगे सोनी और मोनी की उपस्थिति ने कामुकता पर विराम लगा दिया था तभी कजरी ने सोनी से कहा..

"सोनी बेटा सूरज बाबू के ले जाकर सुता द"

सोनी ने सूरज को अपनी गोद में लिया और सुगना के कमरे की तरफ जाने लगी मोनी उसके पीछे हो ली।

अचानक सोनी को दोपहर की घटना याद आ गई उसने मोनी से कहा

"सूरज का यह अंगूठा कितना प्यारा है सहला के देख ना"

मोनी ने सूरज के बिना नाखून के अंगूठे को देखा तो था परंतु उसे सहलाने की बात उसके दिमाग में नहीं आई थी। सोनी के कहने पर मोनी ने सूरज के अंगूठे को सह लाया और एक बार फिर सूरज की नुन्नी तन गई मोनी का ध्यान स्वतः ही उस पर चला गया।

मोनी ने खेल ही खेल में सूरज का अंगूठा कुछ ज्यादा सहला दिया और सूरज की नुंनी का आकार 4 इंच से ज्यादा बड़ा हो गया मोनी घबरा गई।

उसने अपनी आंखें उठाकर सोनी की तरफ देखा जो मुस्कुरा रही थी।

"अरे बाप रे यह क्या है?"

लगता है इसके अंगूठे का कनेक्शन उससे है सोनी ने अपनी आंखों से सूरज की नुंनी की तरफ इशारा कर दिया।

मोनी ने अपनी उंगलियों से नुंन्नी का आकार घटाने की कोशिश की पर उससे नून्नी पर कोई अंतर न पड़ा सूरज मुस्कुराते हुए अपनी दोनों मौसियों को देख रहा था।

मोनी ने हार कर सोनी से पूछा

"अब यह छोटा कैसे होगा..?

सोनी ने अपने होठों को गोल किया और मोनी को अपने अनुभव के आधार पर इशारा किया मोनी शर्म से लाल हो गई। दोनों बहनों में एक दूसरे से छेड़खानी करने की आदत थी परंतु आज सोनी ने जो करने के लिए कहा था वह बिल्कुल अलग था। मोनी की दुविधा जानकर सोनी ने फिर कहा..

"परेशान मत हो इसके अलावा दूसरा रास्ता नहीं है मैंने दोपहर में ही यह राज जाना है"

अंततः मोनी ने अपने कोमल होठों का स्पर्श सूरज की नुंनी को दिया और नुन्नी का आकार घटने लगा जैसे जैसे वह अपने होठों को उस नुन्नी पर रगड़ती गई उसका आकार छोटा होता गया।

मोनी को इस आश्चर्य पर यकीन नहीं हो रहा था उसने वही कार्य दोबारा किया और एक बार फिर उसे सूरज की नुंनी को अपने होंठों के बीच लेना पड़ा।

मोनी ने बिस्तर से उठते हुए सोनी से कहा

"जब सोनू बड़ा हो जाएगा क्या तब भी उसका अंगूठा ऐसे ही कार्य करेगा?"

दोनों बहने एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा दी उनकी जांघों के बीच एक अलग से सिहरन उत्पन्न हो रही थी जिसका एहसास सुखद था।

आँगन में बैठी सुगना के चेहरे पर खुशी देखकर पदमा को सारी खुशियां मिल चुकी थी। सरयू सिंह ने पद्मा को उसकी जवानी में उसे कामुक और अद्भुत संभोग का आनंद कई बार दिया था और पदमा ने भी बढ़-चढ़कर उस कामुक प्रेमालाप में सरयू सिंह का साथ दिया था।

आज सरयू सिंह उसकी पुत्री उनके जीवन में खुशियां भर रहे थे। कजरी ने पदमा के सामने ही सुगना को छेड़ दिया….

"ई त कुँवर जी पर कब्जा जमा लेले बिया दिनभर एकरे खातिर बेचैन रहे ले"

पद्मा ने सुगना को छेड़ना उचित नहीं समझा आखिर वह उसकी पुत्री थी और मां बेटी के बीच जो मर्यादा कायम थी वह उसे तार-तार नहीं करना चाहती थी फिर भी कजरी की हां में हां मिलाते हुए उसने कहा..

"हमार सुगना बाबू केहू के दिल जीत ली"

तभी सूरज के रोने की आवाज आई और सुगना सूरज को अपना दूध पिलाने चली गई।

सुगना के मन में कल रात की बात याद आ रही थी जब वह अपने मन में कामुकता का अंश लिए अपने बाबूजी को शहद चटाने के लिए निकली परंतु सरयू सिंह दवाइयों की प्रभाव की वजह से शीघ्र सो गए थे

सुगना ने आज मन ही मन सरयू सिंह को खुश करने की ठान ली थी आखिर वह उसका इंतजार पिछले तीन-चार दिनों से कर रहे थे। शायद यह इंतजार पिछले तीन-चार वर्षो में पहली बार उन्हें करना पड़ा था अन्यथा उनके लंड से वीर्य दोहन का कार्य या तो सुगना करती या कजरी।

सुगना उठ कर खड़ी हो गई थी और अपनी भरी हुई चुचियों को ब्लाउज के अंदर बंद कर रही थी तभी पदमा और कजरी दोनों कमरे में आ गयीं।

पदमा को अपनी जवानी के दिन याद आ गए। सुगना की भरी भरी और मदमस्त चूचियाँ देखकर पदमा मन ही मन बेहद प्रसन्न हो गई उसकी पुत्री वास्तव में इतनी खूबसूरत हो गई थी इसका उसे इल्म न था। कजरी की बात सही थी सुगना की भरपूर जवानी किसी भी मर्द को उसके इर्द-गिर्द घूमने पर मजबूर कर सकती थी।

कजरी ने सुगना से कहा

"तोर बाबू जी इंतजार करत बाड़े जो उनका के दूध पिया दे"

पदमा आश्चर्यचकित थी की कजरी ने कितने खुले तरीके से सुगना को सरयू सिंह को अपनी चूचियां पिलाने के लिए कह दिया था।

तभी कजरी में अपना वार्ड के पूरा किया और कहा

"हम गिलास में दूध निकाल देले बानी"

पदमा को अपनी सोच पर शर्म आ गयी वह सुगना की चूँचियों में खोई हुई थी और कजरी की बात सुनकर उसने अपने अनुसार ही मतलब निकाल लिया था।


सुगना ने अपना सिर झुकाया और मुस्कुराते हुए रसोई की तरफ बढ़ चली पदमा सुगना को जाते हुए देख रही थी भगवान ने जितनी सुंदर चूचियां सुगना को दी थी उतने ही सुंदर नितंब भी जो एक ताल में थिरक रहे थे।

सरयू सिंह अविवाहित होकर भी जिस सुख का आनंद ले रहे थे वह विवाहित मर्दो को भी प्राप्त न था।


अपनी कोठरी में लेटे सरयू सिंह अपनी आंखें बंद किये सुगना को ही याद कर रहे थे। उनका लंड खड़ा हो चुका था तभी सुगना आयी और झुक कर बोली …

"बाबूजी दूध पी ली"

अपनी ब्लाउज में कसी भारी चूँचियों को दिखाती हुयी बोली…

सरयू सिंह को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे सुगना उन्हें अपनी चुचियों से दूध पिलाने जा रही थी परंतु तभी सुगना ने अपने हाथ में लिया गिलास आगे कर दिया सरयू सिंह ने वह गिलास पकड़ा और सुगना द्वारा दिया दूध पीने लगे। सुगना की निगाह सरयू सिंह के लंड पर पड़ गई जो तन कर खड़ा था।

सुगना ने मुस्कुराते हुए पूछा…

"सुते के बेरा में ई काहे खड़ा बाड़े"

सुगना ने उत्सुकता वश सरयू सिंह के लंड को हाथ लगा दिया वैसे भी पिछले दो तीन दिनों में उसने काफी उत्तेजना का सामना किया था। राजेश ने उसके तन बदन में आग लगा दी थी परंतु उसे पता था इसकी शांति उसके बाबू जी के द्वारा ही होनी थी। उसे कजरी की बात याद आई सुगना ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह आज बाबू जी को तंग नहीं करेगी परंतु….. वह मुस्कुराते हुए उनके दूध खत्म होने का इंतजार करने लगी।

सरयू सिंह का चेहरा शांत था परंतु उनका दाग अप्रत्याशित रूप से कम था सुगना उनके दाग के घटते आकार को देखकर बेहद प्रसन्न थी।

"बाबूजी राउर दाग कितना कम हो गईल बा" सुगना ने पूरी आत्मीयता से कहा

सरयू सिंह को दाग से कोई लेना-देना नहीं था आज वह पूरी तरह वासना के आधीन थे और सुगना को अपनी बाहों में भर लेना चाहते थे वैसे भी सुगना के मायके वालों की उपस्थिति में उसे चोदने का अवसर उन्हें पहली बार प्राप्त हुआ था जाने उन्हें इसमें कौन सा आनंद मिलता यह तो वही समझ सकते थे परंतु आज उनमें उत्तेजना भरपूर थी।

दूध की मलाई उनकी मूछों में लग गई थी ठीक वैसे ही जैसे छोटे बच्चे दूध पीते समय अपने ऊपरी होठों पर दूध का कुछ भाग लगा लेते हैं सुगना उनकी मासूमियत देखकर द्रवित हो गई और उनके गालों को चुमने के लिए अपने होंठ आगे बढ़ाएं तभी शरीर सिंह ने अपना चेहरा घुमा दिया और अपनी प्यारी बहू के होंठों को अपने होंठों में भर कर चूस लिया।

सरयू सिंह की मजबूत बाहों ने सुगना को अपने आगोश में ले लिया और कुछ ही देर में सुगना सरयू सिंह के ऊपर लेट चुकी थी।

सरयू सिंह का लंड सुगना की जांघों के बीच घुसने का प्रयास कर रहा था परंतु उसमें सुगना की साड़ी और पेटीकोट को चीर पाने की हिम्मत न थी।

सरयू सिंह की ठुड्डी सुगना की चुचियों से छू रही थी सरयू सिंह ने सुगना को ऊपर की तरफ खींचा और अपना चेहरा सुगना की गोरी चूचियां पर मलने लगे।

सुगना उनके माथे के दाग को देखती हुई उनके बाल सहला रही थी और उनके माथे पर चुंबन ले रही थी। आज सरयू सिंह पर उसे बेहद प्यार आ रहा था। कैसे आज से कुछ दिनों पहले वह उसे चोदते हुए गिर पड़े थे। कुछ ही पलों के लिए सही परंतु सुगना को अपने अनाथ होने का एहसास हो गया था। उसकी आत्मा कांप उठी थी सरयू सिंह उसके लिए बेहद अहम थे नियति ने उन दोनों के बीच एक ऐसा रिश्ता बना दिया था जिसे सुगना हमेशा उनकी बाहों में रह कर निभाना चाहती थी परंतु वह सरयू सिंह को किसी भी प्रकार से कष्ट में नहीं देखना चाहती थी।


इधर सुगना सरयू सिंह से भावनात्मक रूप से आसक्त हो रही थी उधर सरयू सिह के हाथ सुगना की साड़ी और पेटीकोट को खींचते हुए कमर तक ले आए उसकी गोरी जाघें नग्न हो चुकी थी। जब उनके तने हुए लंड ने सुगना की पनियायी बुर ने को स्पर्श किया तब जाके सुगना सतर्क हुई एक पल के लिए उसने अपनी कमर पीछे कर उस लंड को आत्मसात करने की सोची तभी उसे कजरी द्वारा दी गई नसीहत याद आ गई कि अपना बाबूजी से ज्यादा मेहनत मत करवइह।

सुगना की पनियायी बुर ने लंड के सुपारे को गीला कर दिया था। लंड स्वभाविक रूप से सुगना की मखमली बुर के अंदर प्रवेश कर रहा था परंतु सुगना ने मन मसोसकर अपनी जाघें ऊपर उठा ली सरयू सिंह उसके कोमल नितंबों को हाथ लगा कर अपने लंड की तरफ खींचते रहे परंतु सुगना ने उनके इशारे को नजरअंदाज कर दिया वह बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई।

उसके पेटीकोट और साड़ी ने उसके सुंदर और सुडौल पैरों को फिर से ढक लिया।

सरयू सिंह कातर निगाहों से सुगना की तरफ देख रहे थे उन्होंने बड़े ही प्यार से कहा सुगना बाबू

"धीरे धीरे करब"

सुगना को उन पर बेहद प्यार आया वह उसे चोदने के लिए पूरी तरह आतुर थे उस ने मुस्कुराते हुए कहा..

"बाबू जी पहले ठीक हो जाई फिर हम कहां जा तनि हमरो ओकरे इंतजार बा"

सरयू सिंह को सुगना की बात सुनकर तसल्ली तो हुई परंतु उनका लंड विद्रोह पर उतारू था वह पहले भी सुगना की बुर की खुशबू पाकर बेचैन हो जाता था उसे संवेदनाएं और भावनाओं से कोई सरोकार नहीं था और आज तो उसने सुगना की बुर चूम ली थी और उसके रस से भीगा हुआ उसी के इंतजार में खड़ा था।

सरयू सिंह ने सुगना की तरफ देखा और फिर अपने लंड की ओर देखते हुए फिर कहा…

" सुगाना बाबू, इहो दु-तीन दिन से तोहरे इंतजार करा ता एकरा के कइसे समझाईं"

सुगना मुस्कुराई और बड़े ही प्यार से बोली

"इकरा के हम समझा दे तानी रहुआ खाली आंख बंद करके सुतल रही"

सरयू सिंह ने छोटे बच्चे की तरह अपनी आंखें बंद कर लीं पर शरारत वस अपनी पलकों के बीच से वह अपने तने हुए लंड को देख रहे तभी सुगना का प्यारा चेहरा उनकी आंखों के सामने आया और उनके लंड का चमकता हुआ सुपाड़ा सुगना के कोमल होंठों के बीच खो गया। जीभ का स्पर्श सुपाड़े के पिछले भाग पर लगते हैं ही लंड ने उछाल मारी और एक पल के लिए वह सुगना के मुख से बाहर आने लगा। सुगना ने अपनी कोमल हथेलियां उस लंड को वश में करने के लिए उतार दी और उसे वापस अपने मुह में अंदर कर दिया वह लॉलीपॉप की तरह अपने बाबूजी का लंड चूसने लगी।


उसकी स्वयं की बुर पूरी तरह पनीयाई हुई थी और लंड का इंतजार कर रही थी। सरयू सिंह के हाथ सुगना के नितंबों को सहलाने लगे और सुगना के नितंब धीरे-धीरे उनके सीने के करीब आने लगे। सरजू संघ ने सुगना के गोल नितंबों को अनावृत कर दिया और उनके मखमली स्पर्श का आनंद लेने लगे।

उधर सुगना अपनी पूरी कार्यकुशलता से सरयू सिह के लंड को चूस कर उन्हें आनंद देने की भरपूर प्रयास कर रही थी। उसने अब इस कला में पर्याप्त दक्षता हासिल करली थी।

सरयू सिंह उत्तेजना में पागल हो रहे थे उन्होंने सुगना के बाएं पैर को उठाया और उसे अपने सीने के दूसरी तरफ ले आए सुगना कि दोनों नितंबों उनके चेहरे के ठीक सामने थे और उसके बीच में उनकी प्यारी बहू सुगना का वह अपवित्र द्वार ( गुदाजं गांड) सरयू सिंह को आज भी पुकार रही थी.

सरयू सिंह ने सुगना के नितंबों को अपनी ओर खींचा और उनकी लंबी जीभ ने सुगना की बुर को छू लिया।

सुगना की बुर प्रेम रस से लबालब भरी हुई थी जीभ का स्पर्श पाते ही प्रेम रस को बहने का रास्ता मिल गया और वह सर्विसिंग के मुख में प्रवेश करने लगा। सरयु सिह अपनी प्यारी बहु सुगना की गुफा से निकलने वाले शहद का रसपान करने लगे उनकी नाक बार-बार सुगना की गोरी और प्यारी गांड से टकरा रही थी।

वासना के आधीन सरयू सिंह उस अपवित्र द्वार को ही स्वर्ग का द्वार समझ रहे थे उन्होंने जाने कितनी बार सुगना से उस द्वारा को भेदने की अनुमति मांगी थी परंतु सुगना ने हर बार बहाना कर दिया था।


आज एक बार फिर उन्हें सुगना से कहा बेहद आत्मीयता से कहा

"सुगना बाबु हम कितना दिन जीयब हमरा मालूम नइखे लेकिन लागता हमार ई इच्छा अधूरा रह जायी।"

सुखना ने शरयू सिंह के लंड को अपने मुंह से बाहर निकाला परंतु अपने हाथों से उसे सहलाते हुए बोली


"आइसन अशुभ बात मत बोलीं रउआ ठीक हो जायीं अबकी हाली हम खुद ही परोस देब"

सरयू सिंह की खुशी दुगनी हो गई। अपनी बहू की चूत को चाट कर वह पहले ही आनंद में आ चुके थे और सुगना का यह आश्वासन उनके तन बदन में आग लगा चुका था उन्होंने सुगना की बुर को अपने होंठों के बीच भर लिया और एक झटके में उसकी रस से भरी गगरी खाली करने का प्रयास करने लगे। तथा अपनी नाक से उसकी सुनहरी गांड पर प्रहार करने लगे सुगमा उत्तेजना में हिलोरें ले रही थी ।

सुगना अपनी बुर को उनके चेहरे पर रगड़ रही थी उसकी उत्तेजना अब चरम पर थी और वह स्खलन के लिए पूरी तरह तैयार थी।

सरयू सिंह धीरे-धीरे अपने होठों को भग्नासा की तरफ ले गए और उसके उभरे हुए दाने को चूसते समय उन्होंने अपने दांतो का भी प्रयोग कर दिया सुगना की चीख निकल गई।

उसने कराहते हुए कहा

"बाबू जी तनी धीरे………""


सरयू सिंह को यह मधुर ध्वनि बेहद पसंद थी उन्होंने अपनी जीभ से उसके भग्नासे से को सहलाना जारी रखा और उनकी नाक से सुगना की बुर में छेद करने को आतुर हो गए।

सुगना सरयू सिह कि इस अधीरता का आनंद लेते हुए स्खलित होने लगी सरयू सिंह सुगना की बुर के कंपन कई दिनों बाद अपने होठों पर महसूस कर रहे थे। जितनी उत्तेजना उन्हें सुगना की बुर को चूसने से मिल रही थी उसका असर उनके लंड पर भी पड़ रहा था।

उनके लंड ने लावा उगलना शुरू कर दिया। पिछले तीन चार दिनों से उनके अंडकोष ने जितना वीर्य उत्पादन किया था वह सब सुगना की मुंह में भर देना चाहते थे परंतु सुगना का छोटा मुंह वीर्य की पूरी मात्रा को आत्मसात करने में अक्षम था। अपना मुंह भरने के बाद सुगना ने अपने होंठ हटा लिए और सरयू सिंह के लंड ने बचे हुये वीर्य की धार सुगना के चेहरे पर छोड़ दी।

सरयू सिंह और सुगना दोनों हाफ रहे थे सुगना ने अपना शरीर सरयू सिंह के ऊपर छोड़ दिया था वह अपनी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी वह अभी भी अपनी बुर को अपने बाबूजी के होठों पर रखी हुई थी और सरयू सिंह अपनी नाक उसके नितंबों से निकालकर सांस ले रहे थे।

वासना का ज्वार थमते ही सुगना सरयू सिंह के ऊपर से उठी और खड़ी हो गई उसने सरयू सिंह के लंड को वापस धोती के अंदर किया और अपने होठों से अपने बाबूजी को चुंबन दिया और उनके माथे को सहला कर बोली

"अब आराम से सूत जायीं। सरयू सिंह बेहद प्रसन्न हो गए और जाते-जाते उसकी चुचियों को सह लाते हुए बोले

"सुगना बाबू एक हाली हमार इच्छा जरूर पूरा कर दीह"


सुगना ने नजरें नीची कर ली और बोली

"राउर इच्छा जरूर पूरा होयी"


सुगना अपने कमरे में जाते हुए सरयू सिंह की उस अनोखी इच्छा के बारे में सोच रही थी. जिस आत्मीयता और अनुरोध से उन्होंने अपनी इस इच्छा को जाहिर किया था उसमें सुगना को द्रवित कर दिया था। उसने मन ही मन अपने बाबू जी की इस अनूठी और अप्राकृतिक इच्छा को पूरा करने की ठान ली थी।

रास्ते में जाते समय उसने अपने आंचल से अपने चेहरे पर लगे वीर्य को भरसक पोछने की कोशिश की और कमरे में आ गई जहां कजरी और पदमा उसका इंतजार कर रही थीं। कजरी को तो पता था परंतु पदमा को यह उम्मीद नहीं थी आज पूरे परिवार की उपस्थिति में सरयू सिंह और सुगना कोई कामुक संबंध बनाएंगे पद्मा ने सुगना से पूछा...

"दवाई खिला देलू हा?"

"हां खिला दे देनी हां।"

कजरी सुगना के चेहरे को ध्यान से देख रही थी उसकी पलकों के पास अभी भी सरयू सिंह का वीर्य लगा हुआ था। उसने अपने हाथ बढ़ाएं और उंगलियों से उसे पोछते हुए बोली लिया..

"अपना बाबूजी के परेशान ना नु कईलू हा?"

सुगना मुस्कुरा रही थी उसने एक बार फिर अपने आंचल से अपना चेहरा पोंछा और अपनी मां से लिपट कर सो गई।

अगली सुबह पदमा अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ वापस जाने की तैयारी करने लगी। मोनी का सूरज को लेकर कौतूहल अब भी कायम था उसने मौका देखकर एक बार फिर सूरज के अंगूठे को सह लाया और एक बार फिर अपने होठों का प्रयोग कर उसे शांत कर दिया। वह मुस्कुरा रही थी। नीम के पेड़ पर बैठी नियति सोनी और मोनी का भविष्य सूरज के उस अंगूठे में देख रही थी।

दिन तेजी से बीत रहे थे और सरयू सिंह धीरे धीरे स्वस्थ हो रहे थे उन्होंने खेती किसानी का काम फिर से संभाल लिया था बस अपनी बहू सुगना की क्यारी जोतने का काम बचा हुआ था। सुगना को चोदने का वह अवसर अवश्य खोजते परंतु सुगना ने अपनी कामुकता पर काबू पाना सीख लिया था । कभी-कभी वह और कजरी सरयू सिंह का हस्तमैथुन और कभी मुखमैथुन कर उनकी उत्तेजना को शांत कर देती थीं । परंतु कजरी ने संभोग करना पहले ही बंद कर दिया था और अब सुगना ने भी सरयू सिंह से उचित दूरी बना ली थी वह अपने बाबू जी को फिर उसी हाल में नहीं पहुंचाना चाहती थी। वह उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित थी।

इसी दौरान बनारस शहर में दंगे हो गए और कर्फ्यू लगने की तैयारियां हो गई। सोनू का हॉस्टल पूरी तरह बंद हो गया जो लड़के आसपास के रहने वाले थे वह सब अपने अपने घरों को चले गए परंतु दूर से आए लड़कों के लिए यह संभव न था। कुछ लड़के हॉस्टल में बचे जरूर थे परंतु यह तय था कि उन्हें अगले दो-तीन दिनों में खाने-पीने की दिक्कतों का सामना करना था ।

सोनू वापस गांव आ पाने की स्थिति में नहीं था अंततः उसे अपनी लाली दीदी की याद आई उसने अपने जरूरी कपड़े लिए और अपनी लाली दीदी के घर की ओर निकल पड़ा उस शहर में उसकी लाली दीदी का घर ही एकमात्र आसरा था। उसे पता था लाली देवी उसे बेहद मानती हैं और एक-दो दिन वहां गुजारने में कोई दिक्कत नहीं होगी। कुछ ही घंटों बाद अपने मन में ढेर सारे अरमान लिए सोनू लाली के दरवाजे पर खड़ा था…


शेष अगले भाग में।

लाली आज सुबह से ही बेहद प्रसन्न थी आज राजेश उसके लिए एक अनोखा उपहार लाने वाला था उसे उपहार क्या है उसे इसकी जानकारी तो नहीं थी परंतु राजेश के उत्साह को देखकर लगता था निश्चय ही वह उपहार महत्वपूर्ण होगा।

वह राजेश के साथ दो-तीन दिनों पहले बितायी गई रात को याद करने लगी जब उसे अपनी बाहों में लिए राजेश ने सोनू की बात छेड़ दी.

"तुम्हें सोनू की याद नहीं आती है?"

"क्यों नहीं आती, जब भी आता है दीदी दीदी की रहता है"

"तो उसे हर छुट्टी के दिन बुला क्यों नहीं लेती. घर का खाना पीना मिल जाएगा तो उसका भी मन चंगा हो जाएगा।"

"आप ही जाकर बोलिएगा मुझे तो शर्म आती है"

राजेश ने लाली की चूचियां सहलाते हुए कहा

"भाई से कैसी शर्म"

"और जो उसने पिछली बार जो करतूत की थी उसका क्या?"

" यह तो आप ही बता सकती हो कि उसने ऐसा क्यों किया होगा"

लाली की आंखों के सामने उस दिन का सारा घटनाक्रम घूम गया सच सोनू को इस कार्य के लिए उत्तेजित करने का श्रेय लाली को ही था जिसमें सोनू जैसे किशोर की आंखों के सामने अपने कामुक बदन को परोस दिया था। और उसे अपनी पेंटी में वीर्य भरने को प्रेरित कर दिया था।

राजेश और लाली एक दूसरे सटते चले जा रहे थे राजेश का लंड लाली की नाभि में चुभने लगा था।

अपने लंड पर ध्यान जाते ही राजेश ने लाली को एक बार फिर छेड़ा..

"सोनू का देखी थी क्या…"

"क्या?" लाली ने अपने चेहरे को राजेश से दूर करते हुए पूछा।

राजेश ने प्रत्युत्तर में लाली के चेहरे को वापस अपने समीप खींच लिया और अपने लंड का दबाव बढ़ाते हुए धीरे से बोला...

"ये "

लाली शर्म से सिमट गई और बोली

"छी"

अब तक उसकी कोमल चुचियाँ राजेश के हाथों में आ चुकी थीं। धीरे-धीरे राजेश लाली के ऊपर आ रहा और था और लाली की जाँघे फैल रही थीं।

बिस्तर पर हलचल बढ़ रही थी। राजेश अपने मन में सुगना की मदमस्त जवानी को याद करते हुए लाली को चोद रहा था उधर राजेश की बातों से उत्तेजित हो चुकी लाली अपने छोटे भाई सोनू को याद कर रही थी।

वासना उफान पर थी और लाली की जाघें तन रही थी वह अपनी भावनाओं पर काबू न रख पायी और स्खलित होते हुए बुदबुदाने लगी..

"सोनू बाबू...हां एसे ही …..हा और जोर से"

राजेश लाली के मुंह से यह उद्गार सुन राजेश बेचैन हो गया और पूरी गति से उसे चोदने लगा अंत में उसने लाली का साथ देते हुए खुला

" दीदी अब ठीक बानू"

लाली को अब जाकर हकीकत का एहसास हुआ उसने अपने दोनों हाथ से अपने चेहरे को ढक लिया परंतु अपनी जांघें फैला कर स्खलन का आनंद लेने लगी।

राजेश अपनी बीवी का यह रूप देख कर पूरी तरह उत्तेजित हो गया और उसकी बुर की मखमली गहराइयों को अपने वीर्य से सिंचित करने लगा।

वासना का उफान थमते ही राजेश ने लाली को चुमते हुए बोला

"एक बार सोनू को अपना लो वह भी अब तरस रहा होगा।"

लाली ने अपनी कजरारी आंखें तरेरते हुए बोला "ठीक है जब आप रहेंगे तभी" पर अपना वाक्य पूरा करते-करते शर्म को न छुपा पायी।

"अरे मेरी जान तब तो आनंद ही आ जाएगा…"

रीमा के रोने की आवाज सुनकर लाली और राजेश का प्रेम आलाप संपन्न हुआ।

और आज कुकर की सीटी बजने से लाली अपनी मीठी यादों से बाहर आयी और उसके होठों पर मुस्कुराहट दौड़ गई।

समय तेजी से बीत रहा था। राजेश के आने का वक्त हो रहा था लाली ने स्नान किया और अपने कमरे में आकर सजने संवरने लगी।

अपने नंगे जिस्म को शीशे में देखकर एक बार लाली फिर कामुक हो उठी वह कभी अपनी चुचियाँ आगे कर कभी नितंबों को पीछे कर खुद की खूबसूरती को निहारने लगी।

अलमारी से ब्रा और पेंटी निकालते समय उसे वही पेंटी दिखाई पड़ गई जिस पर उसके भाई सोनू ने अपना वीर्य भरा था। लाली के होठों पर मुस्कान आ गई।

क्या सच में वह सोनू को अपनाएगी।

क्या अपने नंगे जिस्म को को सोनू को छूने देगी क्या वह सोनू के साथ एक ही बिस्तर पर नग्न होकर…..आह…..और …… उसके आगे आप वह सोच भी नहीं पा रही थी। उसकी नंगी जांघों के बीच उस अद्भुत गुफा पर मदन रस झांकने लगा।

उसने ब्रा और पेंटी पहनने का निर्णय त्याग दिया वैसे भी राजेश के आने के पश्चात सबसे पहले उन्हें ही लाली का साथ छोड़ना था वह बेसब्री से राजेश का इंतजार करने लगी वह मन ही मन संभोग के लिए आतुर हो उठी थी।

तभी…

दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुयी। लाली बेहद खुश हो गई उसकी उसकी मखमली बुर में गीलापन अब भी कायम था। राजेश के आने की आहट से वह मुस्कुराती हुई अपनी फ्रंट ओपन नाइटी को लपेट कर दरवाजा खोलने लगी…

दरवाजे पर सोनू खड़ा था… …..

वह उसे देखकर अवाक रह गई।

"अरे सोनू बाबू अंदर आ जा"

सोनू ने घर की दहलीज पार की और तुरंत ही अपनी लाली दीदी के चरण छुए. चरण छूने के पश्चात जैसे-जैसे सोनू उठता गया लाली के खूबसूरत पैर गदराई जांघें आकर्षक कमर और भरी-भरी चूचियां उसकी निगाहों में अपने अस्तित्व का एहसास करातीं गई। लाली स्वयं भी उत्तेजित थी।


हमेशा की तरह लाली और सोनू एक दूसरे के गले लग गए। यह पहला अवसर था जब लाली कि लगभग नंगी चुचियों ने सोनू का स्वागत किया और उसके उभरे हुए निप्पलों के सोनू के सीने में चुभ कर अपने अस्तित्व का एहसास दिलाया।

सोनू ने लाली को अपनी बाहों में भर लिया आज का यह आलिंगन निश्चय ही अलग था। आज सोनू के हाथ लाली की पीठ पर घूम रहे थे। जब तक सोनू अपने हाथों को लाली की कमर तक ले जाता बाहर रिक्शा आने की आहट हुई।

लाली ने रिक्शे की आवाज को पहचान कर यह महसूस कर लिया कि वह रिक्शा उसके ही दरवाजे पर आकर रुका था। उसने ना चाहते हुए भी खुद को सोनू से अलग किया सोनू को लाली का यह व्यवहार थोड़ा अटपटा लगा। उसे उसके अरमानों पर थोड़ी चोट लगी। परंतु वह इशारा पाकर अलग हो गया। उसके लंड में भरपूर तनाव आ चुका था आज लाली दीदी का यह आलिंगन उसके जीवन का सबसे कामुक आलिंगन था परंतु लाली के इस तरह हटने से सोनू थोड़ा दुखी हो गया था।

लाली से अलग होने के पश्चात उसने अपने तने हुए लंड को अपने पैंट में सीधा किया परंतु वह अपनी इस क्रिया को लाली की नजरों से न बचा पाया लाली मुस्कुराते हुए दरवाजे के बाहर आ गई।

रिक्शे पर राजेश एक बड़ा सा कार्टून लिए नीचे उतर रहा था।

हॉल में खड़ा सोनू दरवाजे पर खड़ी लाली को देख रहा था बाहर से आ रही रोशनी लाली के पैरों के बीच से छन छन कर बाहर आ रही थी जिसकी वजह से लाली का पूरा बदन और उसके उभार स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे एक एक्सरे फिल्म की तरह। नाइटी और शरीर एक दूसरे से पूरी तरह अलग हो चुके थे। कायनात ने लाली के कामुक बदन को सोनू की आंखों के सामने परोस दिया था। सोनू अपनी उत्तेजना में खोया हुआ था तभी लाली ने पीछे मुड़कर कहा

"सोनू बाबू अपना जीजा जी के मदद करो"

सोनू अपनी कामुक सोच (जो लाली के नितंबों का आकार नाप रही थी) से निकला और दरवाजे पर खड़ी लाली से सटते हुए बाहर आ गया।

सोनू को देख कर राजेश आश्चर्यचकित था। सोनू भाग कर राजेश के पास पहुंचा उसके चरण छूने की कोशिश की परंतु राजेश ने उसके कंधे पकड़ लिए और अपने आलिंगन में ले लिया यह आलिंगन सोनू को राजेश के दोस्त होने का एहसास दिला रहा था।

"इसमें क्या है जीजा जी"

"पहले उठाओ तो, घर चल कर दिखाते हैं"

राजेश और सोनू उस बड़े से डिब्बे को उठाए हुए कमरे की तरफ आ रहे थे लाली के मन में कौतूहल कायम था वह खुशी से उछल रही थी। इस गहमा गहमी को सुनकर लाली का पुत्र राजू और पुत्री रीमा भी हाल में आकर उस अनजानी चीज का इंतजार कर रहे थे।

कार्टून के डिब्बे का आकार लाली के आश्चर्य को कायम किये हुए था।

कार्टून के डिब्बे को चौकी पर रखकर राजेश उसे खोलने लगा उसके व्यग्र हाथों ने पैकिंग टेप को उसी प्रकार चीरते हुए अलग कर दिया जैसे वह कभी कभी संभोग के लिए आतुर होकर लाली के वस्त्र हटाया करता था।

डिब्बे के अंदर टीवी देख कर लाली खुशी से उछलने लगी उसने आनन-फानन में राजेश को गले से लगा लिया एक पल के लिए वह या भूल गयी थी कि सोनू उसी हाल में उसके पीछे ही खड़ा है।

एक साथ आई खुशियां इंसान को बेसुध कर देती हैं उसे आसपास का एहसास कुछ समय के लिए खत्म हो जाता है यही हाल लाली का था वह राजेश से पूरी तरह लिपट गई। यह आलिंगन पति पत्नी के कामुक आलिंगन की भांति था। परंतु राजेश सोनू को देख रहा था उसने लाली को खुद से अलग न किया अपितु उसे आलिंगन में लिए हुए उसकी पीठ सहलाने लगा। जाने राजेश ने अपने मन में इतनी हिम्मत कहां से लाई, उसके हाथ लाली के नितंबों तक पहुंचे और उसने सोनू के सामने ही लाली के नितंबों को अपनी हथेलियों से दबा दिया। लाली को अब जाकर एहसास हुआ और वह राजेश से अलग हो गई। परंतु लाली और राजेश की यह कामुक क्रिया सोनू के मन पर एक अमिट छाप छोड़ गयी।

सिर्फ एक नाइटी का आवरण लिए लाली की गदराई जवानी सोनू की आंखों के सामने घूम रही थी। राजेश द्वारा उसके नितंबों को इस प्रकार दबाना सोनू को उत्तेजक और कामुक लगा उसके लंड में एक बार फिर तनाव आ गया।

"अच्छा हटो पहले टीवी निकाल लेने तो दो" राजेश ने लाली को अलग करते हुए कहा।

टीवी कार्टून से बाहर आ चुका था। लाली को अब अपनी नग्नता का एहसास हो रहा था वह अब राजेश और सोनू की उपस्थिति में बिना ब्रा और पेंटी के नहीं रहना चाह रही थी। वह अपने कमरे में जाकर पहनने के लिए ब्रा और पेंटी निकालने लगी तभी राजेश ने आवाज दी एक गिलास पानी तो पिलाओ।

लाली उल्टे पैर वापस आ गई और राजेश के लिए पानी निकालने लगी। पानी पीकर राजेश टीवी लगाने के लिए अंदर कमरे में आ गया और पीछे पीछे सोनू भी कुछ ही देर में टीवी लगाने की प्रक्रिया चालू हो गई। लाली को ब्रा और पैंटी पहने का कोई मौका ही नहीं प्राप्त हो रहा था।

यह टीवी एक ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था जिसका एंटीना छत पर लगाया जाना था राजेश ने टीवी का एंटीना लिया और लोहे की सीढ़ियां चढ़ता हुआ छत पर जा पहुंचा। उसने छत पर निकली हुई सरियों की मदद से उस एंटीने को बांधा और तार नीचे गिराया जिसे सोनू ने खिड़की के अंदर लेते हुए टीवी के पास ला दिया।

राजेश छत से नीचे आया और उसने टीवी का तार जोड़ कर उसे ऑन किया दोनों ही बच्चे बिस्तर पर बैठे टीवी को जादू का पिटारा समझ कर देख रहे थे। टीवी ऑन होते ही स्क्रीन पर काले और सफेद बिंदुआने लगे राजेश खुश हो गया और सोनू से कहा

"मैं ऊपर जा रहा हूं जब स्क्रीन पर कुछ आएगा तो बताना"

राजेश के ऊपर जाने के बाद लाली सोनू के बगल में खड़े होकर टीवी को बड़े ध्यान से देख रही थी। जब तक राजेश टीवी की ट्यूनिंग करता लाली थाली में सिंदूर और दीया लेकर आ गई और टीवी पर स्वास्तिक का निशान बनाने लगी। इस दौरान लाली झुकी हुई थी और उसके उभरे हुए नितम्ब सोनू की आंखों के ठीक सामने थे। वह उसके नितंबों की गोलाईयों में खो गया। लाली ने आज सोनू को बेहद उत्तेजित कर दिया था। एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह लाली के नितंबों को उसी प्रकार अपनी हथेलियों से मसल दे जिस प्रकार राजेश ने अब से कुछ देर पहले मसला था।

जैसे ही लाली ने टीवी को दिया दिखाना शुरू किया टीवी पर फिल्म आने लगी यह एक संयोग ही था की स्क्रीन पर एकदंत विनायक की फोटो आ रही थी।

सोनू के कहने से पहले ही राजू ने चिल्लाया पापा आ गया सोनू ने भी लाली के नितंबों से अपना ध्यान हटाया और जोर से बोलो

"जीजा जी आ गया"

राजेश ने ऊपर से ही पूछा

"एकदम साफ है कि अभी भी बिंदी बिंदी आ रहा है"

"नहीं जीजा जी एकदम साफ है आप नीचे आ जाइए"


यह एक संयोग ही था कि राजेश ने एक ही बार में टीवी एंटीना की दिशा बिल्कुल सही कर दी थी वह भागता हुआ कमरे में आया और टीवी स्क्रीन पर चल रहे गणेश वंदना को सुनकर अभीभूत होने लगा।

एक पल के लिए उसके मन में यह गुमान आया जैसे उसने ही उस टीवी का आविष्कार किया था। घर में उपस्थित सभी सदस्यों का ध्यान टीवी की तरफ ही था परंतु सोनू का ध्यान रह-रहकर लाली की तरफ ही जा रहा था। सोनू अपने हॉस्टल में कई बार टीवी देख चुका था वह साक्षात अपनी नायिका लाली दीदी और उसकी कामुकता का आनंद ले रहा था।

टीवी पर फिल्म एक फूल दो माली शुरू हो चुकी शुरू हो चुकी थी।

राजेश ने कहा खाना यहीं बिस्तर पर खा लेते हैं।

ठीक है मैं लेकर आती हूं।

लाली का ध्यान अब भी टीवी पर ही लगा था वह अपनी नग्नता भूल कर रसोई से जाकर खाना और बर्तन लाने लगी सोनू भी उसकी मदद करने रसोई में आ गया इधर राजेश बिस्तर पर चादर बिछा कर खाने का इंतजार करने लगा। लाली बिना ब्रा और पेंटी पहने कमरे में इधर से उधर आ जा रही थी और सोनू का ध्यान बार बार उसकी चुचियों और नितंबों पर जा रहा था कभी रोशनी से उसकी जाँघे स्पष्ट दिखाई पड़ती परंतु लाली अपने ही उन्माद में खोई हुई थी।

खानपान खत्म होते ही लाली लाली ने बर्तन वापस पहुंचाया और वापस कमरे में आ गई।

कमरे में रोशनी कम थी। खिड़कियों को भी राजेश ने बंद करा दिया था शायद उसे अंधेरे में टीवी देखना ज्यादा आनंददायक लग रहा था।

राजेश और सोनू दोनों दीवाल पर अपनी पीठ टिकाए बिस्तर पर बैठकर टीवी देख रहे थे दोनों बच्चे भी कौतूहल बस टीवी पर चल रहे फिल्म को देखकर कभी अचंभित होते हैं कभी उन्हें वह सब बेमानी लगता। रीमा तो बिल्कुल छोटी थी वह सब की खुशियों में शामिल हो रही थी पर शायद उसे इस टीवी की अहमियत बहुत ज्यादा समझ में नहीं आ रही थी।

लाली के कमरे का बिस्तर पीछे और साइड से दीवार से सटा हुआ था सबसे कोने में राजू की जगह थी उसके पश्चात रीमा फिर लाली और आखिरी में राजेश सोया करता था परंतु आज टीवी देखते समय राजेश लाली की जगह पर लेटा हुआ था और राजेश की जगह पर सोनू अपनी पीठ दीवार में सटाए टीवी देख रहा था।

लाली की आने के पश्चात सोनू अकस्मात ही उठ खड़ा हुआ और लाली से कहा

"दीदी आ जाइए बहुत अच्छी पिक्चर है।"

"तू कहां जा रहा है उधर खिसक"

"मैं बाथरूम से आता हूं"

"ठीक है" लाली बिस्तर पर आ चुकी थी वह स्वाभाविक रूप से सरकती हुई राजेश के बिल्कुल करीब आ चुकी थी. जब तक सोनू बाथरूम से लौटकर आता उसने राजेश के गालों पर चुंबन देकर अपनी खुशी और धन्यवाद दोनों ही प्रदान कर दिए थे. जब तक कि उसकी हथेलियां राजेश के लंड को सहला पातीं सोनू कमरे में दाखिल हो चुका था। लाली ने उसके लिए जगह बनाते हुए कहा...

"आजा सोनू"

मौसम थोड़ा सर्द था शुरुआती ठंड पड़ रही थी बिस्तर पर पड़ा हुआ पतला लिहाफ राजेश ने बच्चों को ओढादिया था और एक दूसरा लिहाफ खुद के और लाली के शरीर पर डाल लिया था। लाली ने लिहाफ खींचकर अपनी तरफ किया और उसे सोनू के पैरों पर भी डाल दिया।

कुछ ही देर में सोनू लाली के परिवार का अंग हो चुका था। लाली का पूरा परिवार उस बिस्तर पर बड़ी आसानी से समा जाता था और आज उस पर सोनू के लिए भी जगह बन गई थी। राजेश और सोनू अपनी पीठ दीवाल से सटाये टीवी देख रहे थे। लाली ने भी अपनी पीठ दीवाल से सटा ली थी परंतु उसने तकिया का सहारा लिया हुआ था।

टीवी पर चल रही फिल्म एक फूल दो माली धीरे-धीरे अपनी कहानी पकड़ रही थी जैसे जैसे किरदारों के बीच नजदीकियां बढ़ रही थी वैसे वैसे लाली का मन एकाग्र होता गया । वह मन मैन ही मन खुद को उस नायिका से जोड़ रही थी जिसके अगल बगल दो युवक लेटे हुए थे तथा उसके कामुक और भरे हुए शरीर का आनंद लेना चाहते थे।

लाली एक बार फिर उत्तेजना के आगोश में आ रही थी। लाली ही क्या राजेश और सोनू की स्थिति भी कमोवेश वही थी कमरे में अंधेरा होने की वजह से और टीवी पर ध्यान लगाए रहने की वजह से राजेश और सोनू दोनों को कभी-कभी एक दूसरे की उपस्थिति का एहसास नहीं हो रहा था।

अचानक राजेश ने लाली की नाइटी को ऊपर खींचना शुरू कर दिया जो धीरे-धीरे उसकी जांघों तक आ गयी। उत्तेजना बस लाली ने राजेश को मना नहीं किया परंतु नाइटी के अपनी जांघों के जोड़ पर आते ही उसे अपनी नंगी बुर का एहसास हुआ और उसने राजेश के हाथ वहीं पर रोक दिए।

कुछ देर यथास्थिति कायम रही पर राजेश कहां मानने वाला था वह तो आज टीवी दिखा दिखा कर अपनी प्यारी बीवी लाली को खूब चोदना चाहता था परंतु सोनू की अकस्मात उपस्थिति ने उसके अरमानों पर पानी डाल दिया था। राजेश ने लाली का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया और लाली अपने हाथों से उसे हल्का-हल्का सहलाने लगी।

वर्तमान स्थिति में लाली का यह स्पर्श भी राजेश के लिए काफी था। उधर सोनू अपने बगल में सोई हुई अपनी ख्वाबों की मलिका के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित हुए चले जा रहा था। टीवी पर थिरक रही नायिका उसे अपनी वाली दीदी ही दिखाई पड़ रही थी
Rajesh kafi open minded hai.aaj lagta hai rajesh lali ko sonu ki tarf push karega.
 
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