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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Tiger 786

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अचानक राजेश ने लाली की नाइटी को ऊपर खींचना शुरू कर दिया जो धीरे-धीरे उसकी जांघों तक आ गयी। उत्तेजना बस लाली ने राजेश को मना नहीं किया परंतु नाइटी के अपनी जांघों के जोड़ पर आते ही उसे अपनी नंगी बुर का एहसास हुआ और उसने राजेश के हाथ वहीं पर रोक दिए।

कुछ देर यथास्थिति कायम रही पर राजेश कहां मानने वाला था वह तो आज टीवी दिखा दिखा कर अपनी प्यारी बीवी लाली को खूब चोदना चाहता था परंतु सोनू की अकस्मात उपस्थिति ने उसके अरमानों पर पानी डाल दिया था। राजेश ने लाली का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया और लाली अपने हाथों से उसे हल्का-हल्का सहलाने लगी।

वर्तमान स्थिति में लाली का यह स्पर्श भी राजेश के लिए काफी था। उधर सोनू अपने बगल में सोई हुई अपनी ख्वाबों की मलिका के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित हुए चले जा रहा था। टीवी पर थिरक रही नायिका उसे अपनी लाली दीदी ही दिखाई पड़ रही थी


अब आगे….

अपने तने हुए लंड को व्यवस्थित करने के लिए सोनू ने अपना दाहिना हाथ लिहाफ के अंदर किया और अपने लंड की तरफ ले गया पर इसी दौरान उसकी हथेलियों का पिछला भाग लाली की नग्न जांघों से छू गया सोनू को जैसे करंट सा लगा।

उसे यकीन ही नहीं हुआ कि उसने नारी शरीर का वह अनोखा भाग अपनी हथेलियों के पिछले भाग से छू लिया है। उसने अपने लंड को व्यवस्थित किया और वापस अपनी हथेलियां ऊपर करते समय एक बार फिर लाली की जांघों को छूने की कोशिश की। वह यह तसल्ली करना चाहता था कि क्या उसने सच लाली की नंगी जांघों को छुआ है या नाइटी के ऊपर से।


इस बार सोनू ने अपनी हथेलियों की दिशा मोड़ दी थी सोनू की हथेलियां एक बार फिर लाली की जांघों पर सट रही थी जब तक कि सोनू अपने हाथ हटा पाता लाली ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपनी जांघों से सटाये रखा।

लाली ने सोनू की चोरी पकड़ ली थी परंतु अब वह खुद उहाफोह में थी कि वह उसका हाथ हटाए या उसी जगह रखें रहे? लाली मन ही मन दुविधा में थी और उसी दुविधा में कुछ सेकेंड तक सोनू की हथेलियां लाली की नंगी जांघों से छू रहीं थी। धीरे-धीरे लाली का हाथ सोनू के हाथ से हट गया पर सोनू की हथेलियों ने लाली की जांघों को ना छोड़ा।

सोनू की सांसें तेज चल रही थीं। उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि लाली दीदी ने उसका हाथ क्यों पकड़ा और अब उन्होंने उसका हाथ क्यों छोड़ दिया था। जबकि वह अपने हाथ अभी भी उनकी जांघों से सटाये हुए था। सोनू ने अपनी हथेलियां थोड़ी ऊपर की परंतु उसने लाली की जांघों को न छोड़ा। 5कुछ ही देर में सोनू ने हिम्मत जुटाई और लाली की नंगी जांघों पर अपने हाथ फिराने लगा।

उधर लाली उत्तेजना में कॉप रही थी। उसने अकस्मात ही सोनू का हाथ अपनी जांघ पर महसूस कर न सिर्फ उसे पकड़ लिया था अपितु उसे उसी अवस्था में कुछ देर रखे रहा था। अब वह यह जान चुकी थी कि सोनू उसकी नंगी जांघों को सहलाना चाह रहा है उसने अपने हाथ हटा लिए परंतु सोनू की हथेलियों का स्पर्श उसे अब भी प्राप्त हो रहा था। लाली अपनी उत्तेजना को कायम रखते हुए सोनू के स्पर्श का आनंद लेने लगी ।

तभी लाली को अपनी दूसरी जांघ पर राजेश की हथेलियों का स्पर्श प्राप्त हुआ। राजेश अपने लंड को सहलाने से उत्तेजित हो चुका था और वह लाली की मखमली जाँघों और उसके बीच छुपी हुई बूर को अपनी उंगलियों से सहलाना चाह रहा था। लाली मन ही मन इस उत्तेजक घड़ी का आनंद लेने लगी परंतु उसे पता था यह ज्यादा देर नहीं चल पाएगा। सोनू भी धीरे-धीरे व्यग्र हो रहा था उसकी हथेलियां उसके वस्ति प्रदेश की तरफ बढ़ रहीं थीं। हर कुछ पलों के बाद सोनू की हथेलियां अपने लक्ष्य के बिल्कुल करीब थीं।

जीजा और साले के बीच लक्ष्य तक पहुंचने की होड़ सी लग गई थी। कमरे में पूरी तरह शांति थी सिर्फ टीवी की आवाज ही कमरे में गूंज रही थी। सभी की आंखें टीवी पर लगी हुई थीं और हाथ अपने-अपने हरकतों में व्यस्त थे। लाली अपने हाथ से राजेश का लंड सहला रही थी परंतु सोनू का लंड छुने की उसकी हिम्मत नहीं थी। वह खुद से अपनी व्यग्रता और इच्छा को सोनू पर हावी नहीं करना चाहती थी। धीरे धीरे राजेश और सोनू की हथेलियों उसकी मखमली बुर की तरफ बढ़ रहीं थीं।

अचानक लाली में राजेश का हाथ पकड़ कर उसे वापस अपनी जांघों पर रख दिया। जो अब ठीक उसकी बुर के ऊपर पहुंचने वाला था। राजेश लाली के इस व्यवहार से हतप्रभ था। आज पहली बार लाली ने उसे अपनी बुर छूने से रोक दिया था। उसने अपनी गर्दन घुमाई और लाली की तरफ देखा। परंतु लाली ने बड़े प्यार से अपनी आंखें बंद कर उसे प्यार से शांत कर दिया। राजेश को यह बात समझ में ना आयी परंतु वह अपने लंड को सहलाये जाने का आनंद लेने लगा जिसमें लाली में अपनी हथेलियों की गति बढ़ाकर नई ऊर्जा डाल दी थी।

सोनू की उंगलियां तेजी से लाली की बुर की तरफ बढ़ रही थीं। उस सुनहरी गुफा तक पहुंचने से पहले वह लाली की बुर के मखमली और मुलायम बालों से खेलने लगा। सोनू बेहद आनंदित हो रहा था। यह पहला अवसर था जब उसने किसी लड़की या युवती की बुर को इतने करीब से छुआ था। वह वासना में डूबा हुआ अपनी लाली दीदी की बुर के बिल्कुल समीप आ चुका था।


लाली से कोई प्रतिरोध न मिलने से उसका उत्साह बढ़ गया और अंततः उसकी उंगलियों में लाली की बुर् के होठों पर आए मदन रस को छू लिया। उस चिपचिपे द्रव्य को अपनी उंगलियों पर महसूस कर सोनू खुशी से पागल हो गया उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह आगे क्या करें। यह उसका पहला अनुभव था वह चाह रहा था कि अपनी उंगलियों को बाहर खींचे और जाकर अपनी इस खुशी का आनंद एकांत में उठाए उसने अपने हाथ बाहर खींचने की कोशिश की।

यही वह अवसर था जब लाली ने एक बार फिर उसकी कलाई पकड़ ली सोनू एक पल के लिए डर गया परंतु लाली ने उसका हाथ उसी अवस्था में कुछ देर तक पकड़े रहा। सोनू की खुशी का ठिकाना ना रहा। उसकी तर्जनी ने लाली के बुर् के दोनों होठों के बीच अपनी जगह बनानी शुरू कर दी। ऐसा लग रहा था जैसे सोनू लाली के मक्खन भरे मुंह में अपनी उंगलियां घुमा रहा हो। जैसे-जैसे सोनू की उंगलियां लाली के बुर के अंदर जाने लगी बुर की मखमली दीवारों में अपना प्रतिरोध दिखाना शुरू किया। मदन रस की फिसलन बुर की दीवारों के प्रतिरोध को कम कर रही थी परंतु सोनू की उंगलियों को उनका सुखद स्पर्श बेहद उत्तेजक लग रहा था। उसने अपनी उंगलियों को वापस निकाला और उंगलियों पर लगे मदन रस को दूसरी उंगलियों पर रगड़ कर उसकी चिकनाहट को महसूस किया।

अचानक उसे स्त्रियों की भग्नासा का ध्यान आया परंतु सोनू जैसे नौसिखिया के लिए लाली का भग्नासा खोज पाना इतना आसान न था वह अपनी उंगलियों को लाली की बुर के होठों पर इधर घुमाने लगा। उंगलियों का स्पर्श अपनी भग्नासा पर पढ़ते ही लाली ने अपनी हथेली से उसके हाथ को दबा दिया। लाली के इशारे से सोनू ने वह खूबसूरत जगह खोज ली। जब जब उसकी उंगलियां भगनासे से छूतीं लाली उसके हाथों को पकड़ लेती । कुछ ही देर में लाली की बुर की दोस्ती सोनू की उंगलियों से हो गयी। दोनों ही एक दूसरे का मर्म समझने लगे।

सोनू की उंगलियां लाली की बुर में जाते समय प्रेम रस चुराती और उसके भगनासा पर अर्पित कर देतीं। लाली अपनी दोनों जाँघे सिकोड़ रही थी और प्रेम रस को बाहर की तरफ धक्का देकर निकालने का प्रयास कर रही थी।

उधर वह राजेश के लंड को सहलाए जा रही थी। अब भी उसे सोनू के लंड को छूने की हिम्मत न थी परंतु वह इस उत्तेजना का आनंद ले रहे थी। जितनी उत्तेजना वह सोनू के स्पर्श से प्राप्त कर रही थी वह अपने पति राजेश के लंड को उसी तत्परता से सह लाए जा रही थी। राजेश भी अब पूरी तरह उत्तेजित हो चुका था।

लाली ने अचानक अपने दोनों पैर ऊपर की तरफ मोड़े और सोनू की उंगलियां छटक कर बाहर आ गयीं। सोनू के लिए शायद यह एक इशारा था और उसकी उंगलियों को लाली की बुर से बिछड़ने का इशारा मिल चुका था। सोनू का लंड खुद भी अब वीर्य स्खलन के लिए तैयार था।


अचानक ही सोनू बिस्तर से उठा और बोला

" मैं जा रहा हूं सोने मुझे नींद आ रही है "

राजेश ने कहा

"ठीक है सोनू आराम कर लो रात को फिर टीवी देखा जाएगा "

लाली की भी इच्छा यही थी वह राजेश से चुदना चाहती थी। उसने भी सोनू को न रोका और सोनू हॉल की तरफ बढ़ गया। परंतु जाते जाते उसने अपनी उंगलियां अपनी नाक की तरफ ले गया जिस पर लाली की बुर का प्रेम रस लिपटा हुआ था। वह अपनी अधीरता न छूपा पाया और इसे लाली ने बखूबी देख लिया वह सोनू की इस हरकत से बेहद उत्तेजित हो गयी। अपने ही भाई को अपनी बुर का रस सूंघते देख लाली सिहर गई।

राजेश बिस्तर से उठा और अपने कमरे का दरवाजा ताकत लगाकर बंद कर दिया उसे दरवाजा बंद करने की प्रैक्टिस थी अन्यथा उसे बंद करना लाली के बस का न था। दरवाजा बंद होने की स्पष्ट आहट से सोनू जान चुका कि आगे कमरे में क्या होने वाला है। वह दरवाजे के पास खड़ा होकर अंदर के दृश्यों की कल्पना करने लगा और अपने कानों को दरवाजे से सटाकर सुनने का प्रयास करने लगा।

राजू और रीमा सो चुके थे। कमरे में ठंड अब कम हो चुकी थी कई लोगों की उपस्थिति से कमरा वैसे भी कुछ गर्म हो चुका था और ऊपर से लाली और राजेश दोनों ही बेहद उत्तेजित थे। एक ही झटके में राजेश ने लिहाफ हटाया और लाली की नंगी जांघों को देखकर उस पर टूट पड़ा। बाहर खड़ा सोनू अंदर के दृश्य तो नहीं देख पा रहा था परंतु उसे उसका एहसास बखूबी था।

लाली की जाँघों और बुर के आसपास इतना ढेर सारा चिपचिपा पन देखकर राजेश से रहा न गया और उसने बोला

"अरे आज तक पूरा गर्म बाड़ू सोनू के देख कर गरमाइल बाडू का?"

राजेश ने लाली को छेड़ते हुए कहा।

"आप आइए अपना काम कीजिए" लाली ने अपनी दोनों जाँघे फैला दीं।

"अच्छा एक बात तो बताओ उस समय तुमने मेरा हाथ क्यों रोका था?"

लाली मुस्कुराई और बोली

"एक ही ट्रैक पर दो रेलगाड़ी गाड़ी कैसे चलती?"

राजेश यह बात सुनकर उतावला हो गया। जो लाली ने कहा था वह उसकी सोच से परे था। वह लाली को बेतहाशा चूमने लगा और बोला

"बताओ ना किसका हाथ था?"

"आपके साले का" जब तक लाली यह बात बोलती राजेश का लंड लाली की गर्म और चिपचिपी बुर में प्रवेश कर चुका था। और लाली अपनी आंखें बंद की संभोग का आनंद लेने लगी।

जैसे-जैसे राजेश का आवेग बढ़ता गया टीवी की आवाज पर बिस्तर की धमाचौकडी की आवाज भारी होती गयी जो सोनू के सतर्क कानों को बखूबी सुनाई पड़ रही थी। उस पर से लाली की कामुक आहे सोनू को और भी स्पष्ट सुनाई पड़ रही थीं।


जाने सोनू और लाली में कोई टेलीपैथी थी या कुछ और परंतु सोनू को लाली बेहद करीब नजर आ रही थी। वह अपने ख्यालों में हैं उसे चूम रहा था और अपनी हथेलियों से अपने लंड को लगातार आगे पीछे किये जा रहा था। अचानक लाइट चली गई और टीवी एकाएक बंद हो गया। कमरे में अचानक पूरी शांति हो गई परंतु राजेश और लाली अपनी चुदाई में पूरी तरह मस्त थे उन्हें सोनू का ध्यान ना आया।

कमरे में चल रही और जांघों के टकराने की थाप स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी। सोनू से अब और न देखा गया उसकी हथेलियों की गति अचानक बढ़ गई और वीर्य की धारा फूट पड़ी।

स्खलित होते समय उसके कानों ने अचानक ही लाली की आवाज सुनी। सोनू ….आ…...ईई आह…. हां बाबू ऐसे हीं…….…...आ आ आ ए ….……….आईईईई "

सोनू ने जो सुना वह खुद पर यकीन न कर पाया। पर उसने अपनी हथेलियों से अपने लंड को मसलना जारी रखा वह वीर्य की अंतिम बूंद को भी अपनी वाली दीदी को समर्पित करता रहा जो उसकी लाली दीदी तक तो न पहुंच पायीं परंतु उसके दरवाजे पर गिरकर एक अनुपम कलाकृति बनाती रहीं।

सोनू थके हुए कदमों से हॉल में पड़ी चौकी पर जाकर लेट गया। अब वह कमरे के अंदर चल रही धमाचौकड़ी को और सुनना नहीं चाहता था। उसकी उत्तेजना चरम को प्राप्त हो चुकी थी वह कम से कम कुछ घंटों के लिए अपनी सांसो को नियंत्रित करते हुए बिस्तर पर लेट कर इस सुखद अहसास को आत्मसात कर रहा था।

उधर लाली की कामुक कराहें थम गई थीं। परंतु राजेश उसे अभी भी चोदे जा रहा था। लाली ने उसे उत्तेजित करते हुए कहा

"आप खुश हो ना?

"क्यों किस बात पर?"

अपनी मुनिया ( राजेश कभी-कभी लाली की बुर को मुनिया कहता था) को अपने साले से साझा कर...

राजेश को लाली की यह बात आग में घी जैसी प्रतीत हुयी। वह स्वयं भी उन्ही खयालों में डूबा हुआ था और लाली कि इस बात से उससे रहा न गया और उसने अपने लंड को लाली की बुर में पूरी गहराई तक डाल कर इस स्खलित होने लगा।

उत्तेजना का ज्वार जब शांत हुआ तब एक बार फिर राजेश ने पूछा।

"सोनू के भी छुवले रहलु हा"

"अब एक ही दिन में सब कुछ लुटा दी?"

राजेश ने लाली को आगोश में ले लिया और उसके होंठों को चूमते हुए बोला

"वह तुम्हारा भाई है तुम ही जानो उसका ख्याल कैसे रखोगे मुझे कुछ नहीं कहना है"

"और यदि उसने भी अपनी मलाई मेरे ऊपर गिरा दी तब तो मेरी मुनिया और चूँची आपके लिए पवित्र ना रहेगी और आपके होठों का स्पर्श उसे कैसे मिलेगा"

जब तुम और तुम्हारी मुनिया उसे अपना लेंगी तो फिर मैं भी अपना लूंगा आखिर तब वह अपने परिवार का ही हिस्सा हो जाएगा।

लाली ने राजेश की बात सुन तो ली परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया ना दी। वह अपनी आंखें बंद कर राजेश को अपने नींद में होने का एहसास दिला रही थी राजेश भी पूरी तरह थक चुका था वह उसे आगोश में ले कर सो गया। परंतु राजेश ने लाली को सोनू के वीर्य को अपनाने के लिए अपनी रजामंदी दे दी थी।

लाली की अंतरात्मा मुस्कुरा रही थी। वह सोनू को अपनाने का मन बना चुकी थी…

आइए बहुत दिन हो गया सुगना के पति रतन का हालचाल ले लेते हैं आखिर इस कहानी में उसकी भूमिका भी अहम होगी।

सुगना के साथ होली मनाने के पश्चात रतन मुंबई पहुंच चुका था। हालांकि सुगना ने रतन को अब भी अपने शरीर पर हाथ लगाने नहीं दिया था परंतु फिर भी वह उससे बातें करने लगी थी। जितना प्यार वह सूरज से करता था सुगना उतनी ही आत्मीयता से उससे बातें करती थी ।

मुंबई पहुंचने के बाद रतन का मन नहीं लग रहा था अपनी पत्नी सुगना और उसके बच्चे सूरज का चेहरा उसके जेहन में बस गया था। कभी-कभी उसके मन में आता कि वह सब कुछ छोड़ कर वापस अपने गांव चला जाए परंतु यह इतना आसान नहीं था मुंबई में उसने अपनी गृहस्थी जमा ली थी।

बबीता से उसके संबंध धीरे-धीरे खराब हो रहे थे उसकी बड़ी बेटी मिंकी उसे बहुत प्यारी थी उसे ऐसा लगता था जैसे वह उसके और बबीता के प्रेम की निशानी थी परंतु छोटी बेटी चिंकी का जन्म अनायास ही हो गया था रतन और बबीता ने यह निर्धारित किया था कि वह परिवार नियोजन के साधनों का समुचित उपयोग करेंगे। वह दोनों ही दूसरी संतान के पक्षधर नहीं थे परंतु रतन के सावधानी बरतने के बावजूद बबीता गर्भवती हो गई अब राजेश को यकीन हो चला था कि निश्चय ही उसकी छोटी बेटी चिंकी बबीता और उसके मैनेजर के संबंधों की देन है। वह स्वाभाविक रूप से चिंकी को अपना पाने में असमर्थ था।

दो-तीन महीनों बाद दीपावली आने वाली थी इसी बीच सुगना का जन्मदिन आ रहा था रतन ने सुगना के लिए सुंदर साड़ियां लहंगा और चुन्नी तथा सूरज के लिए कपड़े और ढेर सारे खिलौने खरीदें और बड़े अरमानों के साथ उन्हें गत्ते के डिब्बे में बंद करने लगा। वह दीपावली से पहले सुगना को प्रभावित करना चाहता था उसने मन ही मन मुंबई छोड़ने का मन बना लिया था उसने सुगना को एक प्रेम पत्र भी लिखा जिसका मजमून इस प्रकार था।

मेरी प्यारी सुगना,

मैंने जो गलतियां की है वह क्षमा करने योग्य नहीं है फिर भी मैं तुमसे किए गए व्यवहार के प्रति दिल से क्षमा मांगता हूं तुम मेरी ब्याहता पत्नी हो यह बात समाज और गांव के सभी लोग जानते हैं मुझे यह भी पता है कि मुझसे नाराज होकर और अपने एकांकी जीवन को खुशहाल बनाने के लिए तुमने किसी अपरिचित से संभोग कर सूरज को जन्म दिया है मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं है मैं सूरज को सहर्ष अपनाने के लिए तैयार हूं वैसे भी उसकी कोमल छवि मेरे दिलो दिमाग में बस गई है पिछले कुछ ही दिनों में वह मेरे बेहद करीब आ गया और मुझे अक्सर उसकी याद आती है।

मुझे पूरा विश्वास है की तुम मुझे माफ कर दोगी मैं तुम्हें पत्नी धर्म निभाने के लिए कभी नहीं कहूंगा पर तुम मुझे अपना दोस्त और साथी तो मान ही सकती हो।

मैंने मुंबई छोड़ने का मन बना लिया है बबीता से मेरे रिश्ते अब खात्मे की कगार पर है मैं उसे हमेशा के लिए छोड़कर गांव वापस आना चाहता हूं यदि तुम मुझे माफ कर दोगी तो निश्चय ही आने वाली दीपावली के बाद का जीवन हम साथ साथ बिताएंगे।

तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में।

रतन ने खत को लिफाफे में भरा और सुगना तथा सूरज के लिए लाई गई सामग्रियों के साथ उसको भी पार्सल कर दिया वह बेहद खुश था उसने आखिरकार अपने दिल की बात सुगना तक पहुंचा दी थी वह खुशी खुशी और उम्मीदें लिए सुगना के जवाब की प्रतीक्षा करने लगा।

उधर लाली के घर में शाम को चुकी थी।

दोपहर में लाली को कसकर चोदने के बाद राजेश उठ चुका था। उधर अपनी दीदी की बुर को सहला कर सोनू भी अद्भुत आनंद को प्राप्त कर चुका था । तृप्ति का अहसास तीनों युवा दिलों में था सब ने अपनी अपनी आकांक्षाएं कुछ हद तक पूरी कर ली थी। शाम को लाली ने अपने पति राजेश और प्यारे भाई सोनू को पकोड़े खिलाए और घुल मिलकर बातें करने लगी। उन तीनों के ऐसे व्यवहार से ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे दोपहर में उनके बीच की दूरियां अचानक ही घट गई थीं। सिर्फ सोनू अब भी अपनी आंखें झुकाये हुए था वह अभी भी शर्मा रहा था जबकि लाली उससे खुलकर बात कर रही थी लाली ने सोनू को छेड़ते हुए कहा..

"का सोनू बाबू मन नईखे लागत का?"

"नहीं दीदी आप लोगों के यहां अच्छा नहीं लगेगा तो फिर कहां लगेगा?" सोनू ने अपना जवाब सटीक तरीके से दे दिया था.

राजेश ने कहा

"भाई मुझे तो अब ड्यूटी पर जाना पड़ेगा तुम दोनों एक दूसरे का ख्याल रखो" राजेश ने एक बार फिर सोनू को दोस्त जैसा संबोधित किया था।

"अरे आज ड्यूटी छोड़ दीजिए ना इतना अच्छा टीवी लाए हैं रात में एक साथ देखा जाएगा. क्यों बाबू सोनू अपने जीजा जी को रोको ना।"

सोनू ने भी लाली की हां में हां मिलाई परंतु राजेश को ड्यूटी पर जाना जरूरी था वैसे भी वह दोपहर में वह अपनी काम पिपासा शांत कर चुका था। उसके मन में रह रहकर यह भी ख्याल आ रहा था की आज रात लाली और सोनू एक साथ रहेंगे हो सकता है लाली अपने हुस्न के जादू से सोनू को अपने और करीब ले आए।

राजेश ने कहा

"सोनू आज तो नहीं पर कल मैं जरूर छुट्टी लूंगा और तुम्हारे साथ रहूंगा"

राजेश ड्यूटी पर जाने की तैयारी करने लगा उसने निकलते वक्त लाली को चुमते हुए कहा

"सोनू को भी अंदर ही सुला लेना"

"लाली में भी अपनी आंखें तरेरते हुए और चेहरे पर मुस्कुराहट लिए हुए कहा

" कहां ?अपने ऊपर" लाली ने राजेश के पास पहुंच कर धीरे से कहा..

राजेश मुस्कुराने लगा उसमें लाली को अपने आलिंगन में कसकर दबोचा और उसके नितंबों को पकड़ते हुए बोला

" नहीं ..नहीं... वह तो मेरे सामने ही.."

कुछ देर बाद राजेश चला गया. लाली और सोनू के लिए यह रात अलग थी. सोनू ने अपने मन में ढेर सारे सपने सजों लिए थे उसकी प्रेमिका और उसके ख्वाबों की मलिका लाली दीदी आज रात उसके साथ गुजारने वाली थी वह भी एक ही बिस्तर। पर क्या वह अपनी लाली दीदी की जांघों के बीच एक बार फिर अपनी हथेलियों को ले जा पाएगा? क्या वह उस अद्भुत द्वार को देख पाएगा ? वह मन ही मन उसे चूमने और चाटने की कल्पनाएं करने लगा जिसका सीधा असर उसके लंड पर हो रहा था।

लाली ने सोनू की पसंद का खाना बनाया और अब अपने बच्चों के साथ मिलकर खाना खाया। सोनू वास्तव में उसे अब अपने परिवार का ही हिस्सा लगने लगा था। दोनों बच्चे भी उससे घुल मिल गए थे वह बार-बार उसे मामा मामा कहते और उसकी गोद में खेलते।

सोनू दोनों बच्चों को लेकर बिस्तर पर आ गया और उनके साथ खेलने लगा। लाली का बेटा राजू कभी सोनू के ऊपर कूदता कभी उसे पटकने का प्रयास करता उस मासूम के छोटे हाँथ सोनु जैसे बलिष्ठ युवा को आसानी से गिरा देते वह बेहद खुश होता और उसकी खुशियां ही सोनू की खुशियां थीं।


लाली सोनू का यह रूप देखकर बेहद खुश थी। कुछ ही देर में लाली दूध का गिलास हुए हुए कमरे में प्रवेश की । सोनू को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे उसकी प्रेमिका नववधू के रूप में दूध का गिलास लेकर संभोग के लिए प्रस्तुत है सोनू का दिल बल्लियों उछलने लगा। उसने गटागट दूध पी लिया परंतु अपनी लाली दीदी की कलाई पकड़ने की उसकी हिम्मत ना हुई।

इधर सोनू अपने मन में ढेर सारे अरमान पाले हुए था उधर लाली को आज की रात से कोई उम्मीद न थी वह राजेश की अनुपस्थिति में अपना अगला कदम बढ़ाने की इच्छुक न थी। उसने अपनी रसोई का कार्य निपटाया और वापस आकर रीमा को अपनी चुचियां पकड़ा दीं। रीमा लाली की एक चूची से दूध पीती रही तथा दूसरी से खेलती रही सोनू यह दृश्य देखता रहा और तरसता रहा काश वह रीमा की जगह होता।

रीमा को दूध पिलाते पिलाते लाली खुद भी निद्रा देवी की आगोश में चली गई सोनू अपने अरमान लिए अकेला बिस्तर पर लेटा टीवी देख कर दादी की कल्पनाओं का आनंद ले रहा था परंतु असली आनंद उसे तभी प्राप्त हुआ जब उसकी रूखी हथेलियों ने तने हुए कोमल लंड को अपने हाथों में लेकर उसका वीर्य स्खलन कराया। एक सपनों भरी रात अचानक खत्म हो गई थी पर सोनू ना उम्मीद नहीं था उसे लाली दीदी पर और अपनी तकदीर पर भरोसा था उसने अगले दिन लाली को खुश करने की ठान ली थी.
Behtreen update
 
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Tiger 786

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इधर लाली और सोनू करीब आ रहे थे उधर सुगना की जांघों के बीच उदासी छाई हुई थी पिछले कई दिनों से सुगना को संभोग का आनंद प्राप्त नहीं हुआ था। सरयू सिंह कभी कभी उसकी चुचियों और बुर को को चूम चाट कर सुगना को स्खलित कर देते परंतु जो आनंद संभोग में था वह मुखमैथुन से प्राप्त होना असंभव था।

सुगना की बुर तरस रही थी। उधर उसकी सास कजरी ने सरयू सिंह के स्वास्थ्य का हवाला देकर सुगना को चुदने के लिए स्पष्ट रूप से मना कर दिया था सुगना स्वयं भी सरयू सिंह को किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहती थी। उसने मन मसोसकर कजरी की बात मान ली थी।

बेचारी सुगना की जो पिछले 3- 4 वर्षों से सरयू सिह की लाडली थी और वो उसे तन मन से खुश रखते थे आज उसकी जाँघों में बीच उदासी छायी हुयी थी। सुगना अपनी चुदाई की मीठी यादों के साथ सो जाती।

बीती रात उसने बेहद कामुक कामुक स्वप्न देखा सरयू सिंह अपना तना हुआ लंड लेकर जैसे ही उसे चोदने जा रहे थे कई सारे लोग अचानक ही उसके कमरे में आ गए उसने आनन-फानन में चादर से अपने बदन को ढका और सर झुकाए अनजान लोगों को देखने लगी।

कभी उन अनजान लोगों में कभी गांव वाले दिखाई पड़ते कभी कजरी कभी राजेश कभी लाली। सुगना अपनी चोरी पकड़े जाने से परेशान थी। स्वप्न में ही उसके पसीने छूटने लगे तभी कजरी की आवाज आई.

"राउर तबीयत ठीक नईखे सुगना के छोड़ दी। जितना खुशी सुगना के देवे के रहे रहुआ दे लेनी अब उ सूरज के साथ खुशि बिया"

सुगना कजरी को रोकना चाहती थी। सुगना को चुदे हुए कई दिन बीत चुके थे वो अपने बाबू जी सरयू सिह से जी भरकर चुदना चाहती थी। उसकी जांघों के बीच अजब सी मरोड़ उत्पन्न ही रही थी इसी उहापोह में उसकी आंख खुल गई । और वह उठ कर बैठ गई।

बगल में सूरज सो रहा था वह अपने स्वप्न को याद कर मुस्कुराने लगी अपनी बुर पर ध्यान जाते ही उसने महसूस किया की उस स्वप्न ने बुर को पनिया दिया था।

सुगना को अपने बाबू जी से किया हुआ वादा भी याद आ रहा था वह उनकी इस अनूठी इच्छा को पूरा अवश्य करना चाहती थी परंतु उनके विशाल लंड को अपनी गुदाद्वार में ले पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।

अचानक सुगना को राजेश की याद आई वही उसके जीवन में आया दूसरा मर्द था जो उसके इतने करीब आया था। सुगना के दिमाग में उस रात का वृतांत घूमने लगा जब राजेश में उसकी नंगी जांघों को जी भर कर देखा था वह स्वयं भी उत्तेजना के आवेश में उसे ऐसा करने दे रही थी सुगना मुस्कुरा रही थी और ऊपर वाले से प्रार्थना कर रही थी की काश राजेश स्वयं आगे बढ़ कर उसे अपनी बाहों में ले ले।

सुगना ने नींद में जो स्वप्न देखा था वह तो जब सुगना चाहती साकार हो जाता परंतु राजेश के साथ अंतरंग होने का जो दिवास्वप्न सुगना खुली आंखों से देख रही थी वह इतना आसान नहीं था. इन दूरियों को सिर्फ और सिर्फ नियति मिटा सकती थी जो अब तक सुगना का साथ दे रही थी सुगना अपने मन में वासना की मिठास और जांघों के बीच कशिश लिए हुए एक बार फिर सो गई.

सुबह घरेलू कार्य निपटाने के पश्चात सुगना और कजरी बाहर दालान में बैठे सरसों पीट रहे थे. दूर से डुगडुगी बजने की आवाज आ रही थी जो धीरे-धीरे तीव्र होती जा रही थी कुछ ही देर में वह आवाज बिल्कुल करीब आ गई. डुगडुगी वाला मुनादी करते घूम रहा था साथ चल रहे कुछ व्यक्ति जगह-जगह पोस्टर चिपका रहे थे.

हरिद्वार से आए कुछ साधु भी उस मंडली के साथ थे सुगना भागकर दालान से बाहर निकली और गली में आ रहे झुंड को देखने लगी.

उन साधुओं ने एक पोस्टर सुगना के घर के सामने भी चिपका दिया सुगना ने ध्यान से देखा यह बनारस में कोई महोत्सव आयोजित किया जा रहा था जिसमें सभी को आमंत्रण दिया जा रहा था। ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह एक दिव्य आयोजन था . साधुओं ने हाथ जोड़कर सुगना और कजरी ( जो अब सुगना के पास आकर खड़ी हो गई थी ) तथा परिवार के बाकी सदस्यों को इस उत्सव में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया.

कजरी ने हाथ जोड़कर साधुओं का अभिवादन किया और अपनी सहमति देकर उन्हें आगे के लिए विदा किया कुछ ही देर के लिए सही इस डुगडुगी और उस भीड़ भाड़ ने सुगना के जीवन में नयापन ला दिया था।

सुगना ने कजरी से पूछा

"मां बाबू जी से बात करीना शहर घुमला ढेर दिन भईल बा यज्ञ भी देख लीहल जाई और शहर भी घूम लिहल जायीं।"

कजरी को भी सुनना की बात रास आ गई उसे भी शहर गए कई दिन हो गए थे। सुगना का जन्मदिन भी करीब आने वाला था। उसने मुस्कुराते हुए कहा..

"कुँवर जी के रानी त हु ही हउ बतिया लीह"

सुगना मुस्कुराने लगी….

उधर लाली के घर पर

सोनू कल की यादें लिए आज सुबह से ही लाली के आगे पीछे घूम रहा था वह कभी रसोई में जाकर उसकी मदद करता कभी राजू और रीमा के साथ खेलता। लाली घरेलू कार्यों में व्यस्त थी। दोपहर बाद लाली घर के कार्यों से निवृत्त होकर हॉल में पड़ी चौकी पर बैठकर अपने बाल बना रही थी. सोनू उसे हसरत भरी निगाहों से देखे जा रहा था अचानक लाली ने पूछा

"सोनू बाबू हॉस्टल कब खुली?"

"क्यों दीदी मेरे रहने से दिक्कत हो रही है. कर्फ्यू खुलते ही मैं हॉस्टल वापस लौट जाऊंगा?"

लाली ने तो सोनू से वह प्रश्न यूं ही पूछ लिया था परंतु सोनू की आवाज में उदासी थी. लाली ने वह तुरंत ही भांप लिया और सोनू के सिर को अपनी तरफ खींच लिया सोनू उसके बगल में ही बैठा था वह झुकता चला गया और उसका सिर लाली की गोद में आ गया।

लाली उसकी बालों पर उंगलियां फिराने लगी और बेहद ही आत्मीयता से बोली

"अरे मेरा सोनू बाबू मैं तुझे जाने के लिए थोड़ी कह रही हूं मैं तो यूं ही पूछ रही थी"

सोनू के गाल अपनी लाली दीदी की मोटी और गदराई जांघों से सटने लगे। लाली ने अब से कुछ देर पहले ही स्नान किया था उसके शरीर से लक्स साबुन की खुशबू आ रही थी और लाली के जिस्म की मादक खुशबू भी उसमें शामिल हो गई थी। सोनू उस भीनी भीनी खुशबू में खो रहा था उसके खुले होंठ लाली की जांघों से सट रहे थे। सोनू का लंड सोनू के मन को पूरी तरह समझता वह लाली की बुर को सलामी देने के लिए उठ खड़ा हुआ।

अपनी मां की गोद में सोनू को देखकर रीमा ईर्ष्या से सोनू को हटाने लगी और वह स्वयं उसकी गोद में आने लगी। सोनू को मजबूरन हटना पड़ा वह मन ही मन लाली की जांघों को चूमना चाहता था परंतु रीमा के बाल हठ ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।


तभी दरवाजे पर टन टन टन की आवाज सुनाई पड़ी यह आवाज उस गली से गुजर रहे कुल्फी वाले की थी। ऐसा लग रहा था जैसे रेलवे कॉलोनी में कर्फ्यू का कोई असर नहीं था। राजू उस आवाज को भलीभांति पहचानता था उसने कहा

"मामा चलिए कुल्फी लाते हैं"

सोनू मासूम बच्चों का आग्रह न टाल पाया और राजू को लेकर बाहर आ गया उसने राजू की पसंद की कई आइसक्रीम लीं और अपने और लाली के लिए सबसे बड़ी साइज की कुल्फी ली। यह कुल्फी बांस से पतले स्टिक पर लिपटी हुई थी और आकार में बेहद बड़ी थी एक पल के लिए सोनू को वह अपने लंड जैसी प्रतीत हुई।

सोनू उन बड़ी-बड़ी कुल्फीयों को लेकर घर में प्रवेश किया। लाली को भी उन कुल्फियों को देखकर वही एहसास हुआ जो सोनू को हुआ था सच में उनका आकार एक खड़े लंड जैसा ही दिखाई पड़ रहा था। लाली को अपनी सोच पर शर्म आयी पर उसने कुल्फी को शहर अपने हाथों में ले लिया और तुरंत ही अपने होठों को गोलकर उसका रसास्वादन करने लगी।


कुल्फी का ऊपरी आवरण तेजी से पिघल रहा था और बह कर वह निचले भाग की तरफ आ रहा था लाली अपनी जीभ निकालकर उस रस को नीचे गिरने से रोक रही थी तथा उस कुल्फी को जड़ से लेकर ऊपर तक अपनी जीभ से चाट रही थी। सोनू को यह दृश्य बेहद उत्तेजक लग रहा था वह एकटक लाली को घूरे जा रहा था। लाली को वह कुल्फी बेहद पसंद आ रही थी।

अचानक लाली को सोनू की निगाहों का अर्थ समझ आया वह शर्म से पानी पानी हो गई। उसने झेंपते हुए सोनू से कहा

"यह कुल्फी जल्दी पिघल जाती है"

"हां दीदी इसे चूस चूस कर थाने में ही मजा आता है" और सोनू ने कुल्फी का आधे से ज्यादा भाग अपनी बड़े से मुंह में ले लिया.


उसने लाली से कहां

"दीदी ऐसे खाइए"


लाली ने भी सोनू की नकल की और उसने कुल्फी का अधिकतर भाग अपने मुंह से में लेने की कोशिश की जो की उसके गले से छू गई परंतु लाली ने हार न मानी और अंततः कुल्फी का उतना ही भाग अपने मुंह में ले लिया जितना सोनू ले रहा था।

सोनू को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे लाली ने उसके ही लंड को अपने मुंह में ले लिया हो लाली भी अब थोड़ा बेशर्म हो चली थी वह जानबूझकर कुल्फी को उसी तरह खा रही थी और सोनू को उत्तेजित कर रही थी.

लाली सोनू को हाल में छोड़ कर अपने कमरे में गई और रीमा को सुलाते सुलाते खुद भी सो गई उसने आज सोनू को खुश करने की ठान ली थी परंतु सोनू को अभी रात का इंतजार करना था.

शाम को राजेश ड्यूटी से घर आ चुका था। आते समय उसने ढाबे से खाना बनवा लिया था।

घर में प्रवेश करते ही राजेश में बड़े उत्साह से कहा

"आज टीवी पर जानी दुश्मन फिल्म आने वाली है हम सब लोग फिल्म देखेंगे मैं खाना पैक करा कर ले आया हूं"

लाली और राजू वह खाना देखकर बेहद प्रसन्न हो गए लाली को तो दोहरा फायदा था एक तो आज शाम उसे काम नहीं करना था दूसरा ढाबे का चटक खाना उसे हमेशा से पसंद था खानपान खत्म करने के बाद एक बार फिर लाली का बिस्तर सज गया. कोने में राजू था उसके पश्चात रीमा और उसके बगल में राजेश लेटा हुआ था राजेश के ठीक बगल में सोनू लेटा हुआ था और अपनी लाली दीदी का इंतजार कर रहा था। बच्चों ने अपनी रजाई ओढ़ रखी थी और सोनू राजेश और लाली की रजाई अपने पैर ढके हुए था।


टीवी पर जानी दुश्मन फिल्म शुरू हो रही थी राजेश ने आवाज दी

लाली जल्दी आओ फिल्म शुरू हो रही है।

"हां आ रही हूं"

कुछ ही देर में मदमस्त लाली नाइटी पहने हुए कमरे में आ चुकी थी सोनू ने उठ कर लाली के लिए जगह बनाई और लाली राजेश के पास जाकर सट गई सोनू लाली से कुछ दूरी बनाकर वापस बिस्तर पर बैठ गया उसने अपनी पीठ पीछे दीवार पर सटा ली थी परंतु उसके पैर उसी रजाई में थे जिसने लाली और राजेश को ढक रखा था।

कुछ ही देर में कहानी की पटकथा रंग पकड़ने लगी राजेश को इस फिल्म का कई दिनों से इंतजार था वह मन लगाकर इस फिल्म को देख रहा था उधर सोनु के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ लाली घूम रही थी कल लाली की बुर सहलाने के पश्चात वह मस्त और निर्भीक हो गया था और आज भी वह उसी सुख की तलाश में था। उसके पैर स्वतः ही लाली के पैरों को छूने लगे। लाली सोनू की मंशा भली-भांति जानती थी परंतु आज उसने कुछ और ही सोच रखा था।

लाली ने अंगड़ाई ली और बोली

"मुझे डर लग रहा है आप दोनों फिल्म देखीये मैं चली सोने"

लाली धीरे-धीरे रजाई के अंदर सरकती गई उसने अपना सर भी रजाई से ढक लिया था।

लाली करवट लेकर लेटी हुई थी उसकी पीठ सोनू की तरफ थी। लाली अपने हाथ राजेश की जांघों पर ले गई और उसके लंड को सहलाने लगी। राजेश अपनी फिल्म देखने में व्यस्त था उसने लाली का हाथ पकड़ लिया और अपने लंड से दूर कर दिया।

लाली मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसने राजेश को अपना गुस्सा दिखाते हुए करवट ली और अपनी पीठ राजेश की तरफ कर दी। राजेश ने उसकी पीठ सहला कर अपनी गलती के लिए अफसोस जाहिर किया परंतु उसकी आंखें टीवी पर टिकी रहीं।

लाली के करवट लेने से सोनू सतर्क हो गया रजाई के अंदर लाली के हाथ हिल रहे थे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह अपने वस्त्र ठीक कर रही हो।

लाली के शरीर की हलचल शांत होते ही उसने अपने पैर एक बार फिर लाली के पैरों से हटाने की कोशिश की जो सीधा लाली की नंगी जांघों से छू गए । सोनू ने अपने पैर वापस खींचने की कोशिश की परंतु लाली ने अपने हाथ से उसका पैर पकड़ लिया और वापस अपनी जांघों से सटा लिया। कुछ देर यथास्थिति कायम रहे धीरे-धीरे लाली के हाथ सोनू की जांघों की तरफ बढ़ चले। लाली ने समय व्यर्थ न करते हुए अपने सोनू का लंड पजामे ऊपर से भी पकड़ लिया जो अब तक पूरी तरह तन चुका था। सोनू शहर उठा उसके शरीर का सारा लहू जैसे उस लंड में आ गया था। उन्होंने स्वयं ही अपना पजामा नीचे खिसकाने की कोशिश की वह लाली की कोमल उंगलियों को अपने लंड पर महसूस करना चाहता था।

थोड़े ही प्रयासों से सोनू का कुंवारा लंड बाहर आ गया से बाहर आ गया और लाली उसे अपने कोमल हाथों से सहलाने लगी। यह कहना मुश्किल था कि लाली के साथ ज्यादा कोमल थे या सोनू का लंड।

सोनू बीच-बीच में राजेश की तरफ देख रहा था जो पूरी तरह टीवी देखने में मगन था। उधर लाली उसके लैंड के सुपारे को खोल चुकी थी। लंड की भीनी खुशबू लाली के नथुनों से टकराई लाली अपने भाई के लंड की भीनी खुशबू में खो गयी।


उसके होंठ फड़कने लगे। उसका कोमल चेहरा स्वता ही आगे बढ़ता गया और उसके होंठ सोनू के लंड से जा टकराए। सोनू को यह उम्मीद कतई न थी वह व्यग्र हो गया उसने अपने शरीर की अवस्था बदली वह लाली की तरफ थोड़ा मुड़ गया। लाली के होठों ने सोनू के लंड के सुपाड़े को अपने आगोश में ले लिया और उसकी जीभ चमड़ी के पीछे छुपे लंड के मुखड़े को सहलाने लगी

लाली एक अलग ही अनुभव ले रही थी रजाई के भीतर वह शर्म और हया त्याग कर अपने भाई सोनू का लंड चूसने लगी। जाने सोनू के बारे लंड में क्या खूबी थी लाली मदमस्त होती जा रही थी। उधर सोनू के पैर लाली की नंगी जांघों को छूते छूते जांघों के जोड़ पर आ उसकी बुर की तरफ आ गए । लाली में अपनी जाघें फैला दीं और सोनू के पंजे को अपने बुर पर आ जाने दिया। पंजों का संपर्क बुर से होते हो लाली ने अपनी जांघें सटा ली और पंजों को उसी अवस्था में लॉक कर दिया। सोनू जब भी अपने पैर हिलाता लाली की बुर सिहर उठती लाली की बुर से रिस रहा प्रेम रस सोनू के पंजों को गीला कर रहा था। कुछ ही देर में सोनू के पंजों और लाली के निचले होंठों के चिपचिपा पन आ चुका था जो सोनू और लाली दोनों को ही सुखद एहसास दे रहा था।

लाली सोनू के लंड को लगातार चूस रही थी। सोनू आनंद के सागर में गोते लगा रहा था। अचानक उसने अपने हाथ रजाई के अंदर किये और अपनी हथेलियों से बेहद प्यार के अपनी लाली दीदी के गालों को सहलाने लगा। वह अपने लंड को लाली के मुंह के अंदर हिलाने की कोशिश कर रहा था। सोनू को एक पल के लिए ख्याल आया कि वह रजाई हटा कर अपनी लाली दीदी की आज ही पटक कर चोद दे पर …..

लाली के दांतों ने सोनी के लंड पर संवेदना बढ़ दी। सोनू ने अपने हाथ थोड़े और नीचे किये और उलाली की चुचियों को सहला दिया। लाली ने अपनी नाइटी को पूरी तरह ऊपर कर लिया था वह उसकी चूचियों और गर्दन के बीच सिमट कर रह गई थी।

कितनी कोमल थी लाली की चूचियां वह उन्हें धीरे-धीरे सहलाने लगा। निप्पलों पर उंगलियां लगते ही हाली सिहर उठती। सोनू ने उत्सुकता वश लाली के निप्पल को अपनी उंगलियों के बीच लेकर थोड़ा दबा दिया सोनू को अंदाजा ना रहा यह दबाव जरूरत से ज्यादा था लाली चिहुँक उठी।

राजेश ने पूछा

"क्या हुआ"

लाली ने सोनू का लंड छोड़ दिया और अपने शरीर को थोड़ा हिला डूला कर अपने नींद में होने का एहसास दिलाया।

सोनू को बेहद अफसोस हो रहा था परंतु लाली ने उसे निराश ना किया कुछ ही देर में वह दोनों फिर उसी अवस्था में आ गए।

उधर सोनू के पंजे लाली की बुर को उत्तेजित किए हुए थे इधर उसकी हथेलियां चुचियों को सहला रही थीं। लाली की बुर भी स्खलन को तैयार थी कुछ ही देर में लाली अपने पैर सीधे करने लगी। वह सोनू से पहले नहीं झड़ना चाहती थी।


उसने अपने हाथों का उपयोग सोनू के अंडकोष ऊपर किया। लाली के मुलायम हाथों को अपने अंडकोष के ऊपर पाकर सोनू स्खलन के लिए तैयार हो गया।

सोनू का सब्र जवाब दे गया उसके लंड से वीर्य धार फूट पड़ी उधर लाली की बुर भी पानी छोड़ना रही थी। एक तो रजाई की गर्मी ऊपर से वासना की गर्मी लाली पसीने से भीग चुकी थी।

सोनू ने अपने वीर्य की पहली बार लाली के मुंह में ही छोड़ दी आनन-फानन में लाली ने सोनू के लंड को बाहर निकाला और उसे नीचे की दिशा दिखाई वीर्य की धारा लाली की चुचियों पर गिर गई थी वह उसे अपनी नाइटी से रोकना चाहती थी परंतु अंधेरे में कुछ समझ नहीं आ रहा था।

सोनू की हथेलियां भी उसके वीर्य से भीग रही थी वह अभी भी लाली की चुचियों को मसल रहा था वीर्य का लेप चुचियों पर स्वता ही लग रहा था ।

उधर लाली की जांघों को उत्तेजित करते-करते सोनू के पैर का अंगूठा लाली की बुर में प्रवेश कर रहा था लाली को वह छोटे और मजबूत खूटे की तरह प्रतीत हो रहा था लाली अपनी बुर को उस अंगूठे पर रगड़ रही थी और पूरी तन्मयता से झड़ रही थी...


सोनू स्खलन की उत्तेजना से कांप रहा था. जैसे ही टीवी पर विज्ञापन आया राजेश को सोनु की सुध आई उसने सोनू की तरफ देखा। सोनू के माथे पर पसीना था राजेश ने कहा

"अरे तुमको तो इतना सारा पसीना आ रहा है तबीयत ठीक है ना"

सोनू को लगा उसकी चोरी पकड़ी गई है उसने अपने हाथों से पसीना पोछा और बोला यह रजाई बहुत गर्म है।

उसने लाली को भी आवाज दी पर लाली चुपचाप बिना सांस लिए पड़ी रही।

सोनू को अब चरम सुख प्राप्त हो चुका थाउसने कहा "मुझे नींद आ रही है मैं जा रहा हूँ सोने"

राजेश आज अपनी फिल्म में कोई व्यवधान नहीं चाहता था उसने सोनू और लाली को करीब लाने की अपनी चाहत आज के लिए टाल दी थी आज वह पूरे ध्यान से अपनी पसंदीदा फिल्म देख रहा था परंतु नियत सोनू और लाली को स्वाभाविक रूप से करीब ला रही थी इस बात का इल्म उसे न था।

फिल्म की हीरोइन नीतू सिंह की बड़ी-बड़ी चूचियां राजेश के लंड में उत्साह भर रही थी पर पर्दे का भूत तुरंत ही लंड को मुरझाने पर मजबूर कर देता इसी कशमकश में एक बार फिर फिल्म शुरू हो गयी परंतु बनारस शहर ने बिजली कि अपनी समस्याएं थी। अचानक बत्ती गुल हो गई राजेश मन मसोस कर रह गया।

सोनू कमरे से बाहर जा चुका उसे बुलाने का कोई औचित्य न था राजेश उदास हो गया और रजाई में घुस कर लाली को पकड़ने लगा लाली अब तक अपनी नाइटी नीचे कर चुकी थी परंतु उसकी जांघें अभी भी नग्न थी राजेश ने अपनी जान है लाली की जांघों पर रखी और उसे अपने करीब खींचता गया लाली के चेहरे पर अभी भी पसीने की बूंदे थी।

उसने लाली के गालों पर हाथ फिराया और बोला


अरे कितना पसीना हुआ है रजाई क्यों नहीं हटा देती

"आप तो अपनी फिल्म देखिए अब लाइट गई तो मेरी याद आ रही है।" राजेश अपनी झेंप मिटाते हुए लाली के माथे को पोछने लगा। उसके हाथ लाली की चुचियों पर गए जो नाइटी के अंदर आ चुकी थीं।

"नीतू सिंह की चूचियां टीवी पर ही मिलेंगी घर पर तो मैं ही हूं"

नीतू सिंह का नाम सुनकर राजेश के लंड में एक बार फिर तनाव आ गया वह लाली को चोदना चाहता था । धीरे-धीरे वह लाली के ऊपर आने लगा। लाली प्रतिरोध कर रही थी उसकी चुचियों और होंठो पर उसके छोटे भाई सोनू का वीर्य लगा हुआ था।

जब तक वह राजेश को रोक पाती राजेश ने लाली की नाइटी को ऊपर किया और गप्प से उसकी चूची को मुंह में भर लिया…..

शेष अगले भाग में।
Sugna apne babu ji se duriya banaye hue hai sex na karke unke swasth ki vajha se.
Dusri taraf ratan bi vapis aa raha hai.
Lali or sonu bi nazdeek aa rahe hai
Dekhte hai niyati ne kya likha hai
In sab ke bagya main
Superb update
 
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Tiger 786

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मुंबई में रतन सुगना के जबाब का इंतजार कर रहा था हालांकि अभी तक उसके द्वारा भेजा गया सामान गांव पहुंचा भी नहीं था पर रतन की व्यग्रता बढ़ रही थी वह रोज शाम को अपने एकांत में सुगना और सूरज को याद किया करता। बबीता से उसका मोह पूरी तरह भंग हो चुका था।

अपनी बड़ी बेटी मिंकी से ज्यादा प्यार करने के कारण उसकी पत्नी बबीता का प्यार मिंकी के प्रति कम हो गया था। मिंकी भी अब अपनी मां के बर्ताव से दुखी रहती थी। रिश्तो में खटास बढ़ रही थी या यूं कहिए बढ़ चुकी थी।

इधर बनारस में आयोजित धार्मिक महोत्सव में जाने के लिए सरयू सिंह को मनाना आवश्यक था कजरी सुगना की तरफ देख रही थी और सुगना कजरी की तरफ परंतु इसकी जिम्मेदारी सुगना को ही उठानी पड़ी। कजरी और सुगना दोनों ही यह बात जानती थी कि सरयू सिंह सुगना की कही बात कभी नहीं टाल सकते थे सुगना के लहंगे में जादू आज भी कायम था मालपुए का आकर्षण और स्वाद आज भी कायम था। वैसे भी इस दौरान मालपुए का स्वाद सरयू सिंह अपने होठों से ही ले रहे थे उनका लंड सुगना के मालपुए में छेद करने को बेचैन रहता परंतु डॉक्टर और कजरी के आदेश से उनकी तमन्ना अधूरी रह जाती।

दोपहर में खाना खाने के पश्चात सरयू सिंह दालान में लेटे आराम कर रहे थे। बाहर बिना मौसम बरसात हो रही थी तभी कजरी सूरज को अपनी गोद में लिए हुए आगन से निकलकर दालान में आई और सरयू सिंह से कहा..

"भीतरे चल जायीं सुगना अकेले बिया हम तनी लाली के माई से मिलकर आवतानी"

सरयू सिंह को तो मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई हो आज कजरी ने कई दिनों बाद उन्हें सुगना के पास जाने का आमंत्रण दिया था वह भी दिन में। अन्यथा उनकी कामेच्छा की पूर्ति सामान्यतः रात को ही होती जब सुगना उन्हें दूध पिलाने आती और उसके उनके लंड से वीर्य दूह कर ले जाती। कभी-कभी वह अपने मालपुए का रस भी उन्हें चटाती परंतु उनका लंड सुगना के मालपुये के अद्भुत स्पर्श और मजबूत जकड़ के लिए तड़प रहा था ।

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कजरी से कहा

"छाता ले ला भीग जइबू"

जब तक सरयू सिंह की आवाज कजरी तक पहुंचती कजरी अपना सर आंचल से ढक कर हरिया के घर की तरफ बढ़ गई।

सरयू सिंह की खुशी उनके लंड ने महसूस कर ली थी। धोती के अंदर वह सतर्क हो गया था सरयू सिंह अपनी चारपाई पर से उठे और आँगन में आकर सुगना के कमरे में दाखिल हो गए। सुगना सूरज को दूध पिला कर उठी थी और अपनी भरी-भरी चूचियां को ब्लाउज के अंदर समेट रही थी परंतु वह सरयू सिह की आंखों उन्हें बचा ना पाई।

सरयू सिंह के अकस्मात आगमन से सुगना थोड़ा घबरा गई। शायद कजरी ने सरयू सिंह को बिना सुगना से बात किए ही भेज दिया था।

सुगना की घबराहट देखकर सरयू सिह सहम गए और बड़ी मायूसी से बोले

"भौजी कहली हा कि तू बुलावत बाडू"

सुगना को कजरी की चाल समझ आ चुकी थी। सुगना कजरी की इच्छा को जानकर मुस्कुराने लगी। शायद इसीलिए कजरी दूध पी रहे सूरज को सुगना की गोद से लेकर हरिया के यहां चली गई थी। भरी दुपहरी में अपने बाबू जी के साथ एकांत पाकर उसकी कामुकता भी जाग उठी।

सरयू सिंह अब भी उसकी चुचियों पर ध्यान टिकाए हुए थे..

सुगना ने नजरें झुकाए हुए कहा..

"आजकल बाबू फिर दूध नइखे पियत"

"जायदा अब तो बड़ हो गईल बा गाय के दूध पियावा"

"तब एकरा के का करी" सुगना ने अपनी भरी-भरी चुचियों की तरफ इशारा किया उसके होठों पर मादक मुस्कान तैर रही थी सरयू सिंह ने देर न कि वह सुगना के पास आए और चौकी पर बैठकर उसे अपनी गोद में खींच लिया उनका मर्दाना चेहरा सुगना की चुचियों से सट गया। सुगना के ब्लाउज को उन्होंने अपने होठों से पकड़ा और उसे खींचते हुए नीचे ले आए सुगना की भरी भरी फूली हुई दाहिनी चूँची उछल कर बाहर आ गई।

सरयू सिंह इस दूध से भरी हुई गगरी को पकड़ने को तैयार थे उन्होंने अपना बड़ा सा मुंह खोला और सुगना की चूँचियों का अगला भाग अपने मुंह में भर लिया सुगना के तने हुए निप्पल जब उनके गर्दन से छू गए तब जाकर उन्होंने दम लिया।

जितनी तेजी से उन्होंने सुगना की चूची अपने मुंह में भरी थी उतनी ही तेजी से उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया जिसे सुगना की जांघों ने महसूस कर लिया।

सुगना को अब आगे के दृश्य समझ आ चुके थे वह स्वयं भी मन ही मन खुद को तैयार कर चुकी थी

सरयू सिंह ने सुगना की चूची से दूध चूसना शुरू कर दिया सरयू सिंह और सूरज के चूसने में एक समानता थी दोनों ही एक ऊंची को चूसते समय दूसरी को बड़े प्यार से सहलाते थे परंतु सरयू सिंह जितना रस सूचियों से चूसते थे सुगना की बुर उतने ही मदन रस का उत्पादन भी करती थी।

कुछ ही देर में सुगना और सरयू सिंह नियति की बनाई अद्भुत काया में प्रकट हो चुके थे सुगना के रंग बिरंगे कपड़े और सरयू सिंह की श्वेत धवल धोती और कुर्ता गोबर से लीपी हुई जमीन पर उपेक्षित से पड़े थे।

सरयू सिंह ने अपनी हथेलियां सुगना की बुर से सटा दी और बड़े मासूमियत से बोले

"सुगना बाबू आज हम करब ये ही में"

सुगना उन्हें निराश नहीं करना चाहती थी परंतु वह डॉक्टर के निर्देशों और कजरी के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी उसमें सरयू सिंह के माथे को चुमते हुए कहा

"अच्छा आज आपे करब पर ये में ना बल्कि ये में" सुगना ने अपने मादक अंदाज में उनका ध्यान बुर से हटाकर अपने होठों पर कर दिया जिसे वह पूरी तरह गोल कर चुकी थी।

सरयू सिंह भली बात समझ चुके थे कि सुगना उन्हें अपनी बुर की बजाए मुंह में चोदने का निमंत्रण दे रहे थी परंतु यह कैसे होगा?

अब तक सुगना ने कभी जमीन पर बैठकर कभी घुटनों के बल आकर और कभी उनके ऊपर आकर उनके लंड को चूसा था परंतु आज वह उन्हें नया सुख देने को प्रतिबद्ध थी।

सुगना ने अपने सर और कमर के नीचे तकिया लगा कर लेट गई और सरयू सिंह को उसी अवस्था में आने का आमंत्रण दे दिया जिस अवस्था को आज सिक्सटी नाइन के नाम से जाना जाता है। सरयू सिंह का तना हुआ लंड सुगना के चेहरे के ठीक ऊपर था।और सरयू सिंह की आंखों के सामने सुगना की गोरी और मदमस्त चिपचिपी चूत थी जो खिड़की से आ रही रोशनी और उसके होंठों से रिस आए मदन रस से चमक रही थी।

तभी सुगना ने आज एक अनोखी चीज देख ली सरयू सिह के अंडकोशों के नीचे एक अलग किस्म का दाग दिखाई पड़ रहा था जो सुगना ने पहली बार देखा था यह इस विशेष अवस्था के कारण संभव हुआ था।

सुगना को अचानक सरयू सिंगर के माथे का दाग याद आ गया। यह दाग भी उसी की तरह अनोखा था परंतु दोनों दाग एक दूसरे से अलग थे।

सुगना से रहा नहीं गया उसने अपनी उंगलियों से उस दाग को छुआ और बोली

"बाबूजी ई दाग कइसन ह"


(((((शायद पाठकों को इस दाग के बारे में पता होगा जो सरयू सिंह को एक विशेष अवसर पर प्राप्त हुआ था जिसका विवरण इसी कहानी में है। मैं उम्मीद करता हूं कि जिन पाठकों ने यह कहानी पड़ी है उन्हें अवश्य इस दाग के बारे में पता होगा)))))

सरयू सिंह सुगना को इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते थे। वो बेवजह इस कामुक अवसर को खोना नहीं चाहते थे उन्होंने उत्तर देने की बजाय सुगना के रस भरे मालपुए को लगभग लील लिया। उनके मुंह में उत्पन्न हुए निर्वात ने सर... सर... की ध्वनि के साथ सुगना के मालपुए का रस खींच लिया। सुगना चिहुँकउठी और बोली

"बाबू जी तनी धीरे…से….".

इस शब्द ने सरयू सिंह की उत्तेजना को और जागृत कर दिया उनकी लंबी जीभ सुगना के मालपुए में छेद करने का प्रयास करने लगी सुगना का दिमाग अब भी उस दाग के रहस्य को जानना चाह्ता था परंतु उसका शरीर इन प्रश्नों के मोह जाल से मुक्त होकर सरयू सिंह की अद्भुत काम कला का आनंद लेने लगा।


खिड़की से आ रही रोशनी सुगना की बुर और गुदांज गांड पर बराबरी से पढ़ रही थी. सुगना की बुर चूसते चूसते उनका ध्यान सुगना के उस अद्भुत छेद पर चला गया वह छेद उनके लिए एकमात्र दुर्लभ चीज थी जिसका आनंद वह लेना चाहते थे परंतु किसी न किसी कारण से उस अवसर के आने में विलंब हो रहा था।

आज उस छेद को वह ठीक उसी प्रकार देख रहे थे जैसे कोई महत्वाकांक्षी पर्वतारोही हिमालय की तराइयों में खड़े होकर माउंट एवरेस्ट को लालसा भरी निगाहों से देख रहा हो।

अपने लक्ष्य को इतने करीब देखकर उनसे रहा न गया और उन्होंने सुगना को बिना बताए अपने दोनों होंठों को उस छेद पर सटा दिया सुगना ने अपनी गांड सिकोड़ ली। सरयू सिंह के होंठ उस छेद के बाहरी भाग तक ही रह गए परंतु उन्होंने हार ना मानी उनकी लंबी जीभ बाहर आई और जो कार्य उनके होंठ न कर पाए थे उनकी लंबी जीभ ने कर दिया। उन्हींने सुगना के उस सुनहरे छेद को अपने लार से भर दिया। सुगना को यह कृत्य पसंद ना आया। परंतु उसकी उत्तेजना निश्चय ही बढ़ गई थी

"बाबूजी उ में अभी ना…" उसने कामोत्तजना से कराहते हुए कहा..

संजू सिंह अपनी उत्तेजना के आवेश में बह जरूर गए थे पर वह तुरंत ही वापस अपने लक्ष्य पर आ गए और फिर मालपुए का आनंद लेने लगे। उधर उनका लंड सुगना के मुंह में प्रवेश कर चुका था और वह अपनी कमर हिला हिला कर जोर-जोर से उसे चोद रहे थे जब भी उन्हें सुगना का मासूम चेहरा ध्यान आता उनकी रफ्तार थोड़ी कम हो जाती परंतु जब वह उसकी मदमस्त बुर को देखते वह अपनी रफ्तार बढ़ा देते।


कुछ ही देर में ओखली और मूसल ने अपने अंदर उत्सर्जित रस को एक साथ बाहर कर दिया सुगना का रस तो सरयू सिंह पूरी तरह पी गए पर सुगना के बस में सरयू सिंह के वीर्य को पूरी तरह आत्मसात कर पाना संभव न था अंततः उसकी चुचियां अपने बाबूजी के वीर्य से एक बार फिर नहां गयीं। सरयू सिह उसकी चुचियों से खेलते हुए बोले..

"सुगना बेटा अब उ दिन कभी ना आई का? लागा ता हमार जन्मदिन भी एकरा बिना ही बीत जायी"

उनका कथन पूरा होते-होते उनकी हथेलियों ने सुगना की बुर को घेर लिया।

सुगना बेहद खुश थी आज उसे भी बेहद आनंद प्राप्त हुआ था उसने खुश होकर बोला

"राउर जन्मदिन में सब मनोकामना पूरा हो जायीं"

सुगना की बात सुनकर सरयू सिंह का उत्साह बढ़ गया अपनी मध्यमा उंगली में सुगना की गांड को छूते हुए और सुगना की आंखों में देखते हुए पूछा..

"साच में सुगना"

सुगना ने अपनी गांड एक बार फिर सिकोड़ी और उनकी उंगली को लगभग अपने चूतड़ों में दबोच लिया और उन्हें चुमते हुए बोली...

"हां...बाबू जी"

सरयू सिंह ने सुगना को अपने आगोश में भर लिया वह उसे बेतहाशा चूमने लगें।

वासना का उफान थमते ही नीचे पड़े उपेक्षित वस्त्रों की याद उन दोनों ससुर बहू को आई और वह अपने अपने वस्त्र पहनने लगे. अपने पेटीकोट से अपनी जांघों को ढकते हुए सुगना ने पूछा

"बाबूजी दरवाजा पर पोस्टर देखनी हां"

"हां देखनी हां, ई सब साधु वाधू फालतू काम कर ले"

"बाबूजी हमरा वहां जाए के मन बा वहां मेला भी लागेला"

सरयू सिंह सुगना की निप्पल से लटकती हुयी अपने वीर्य की बूंद को अपने हाथों से पोछते हुए बोले


"अरे तू तो इतना जवान बाड़ू अपन सुख भोगा तारू तहरा साधु वाधु से का मिली?"

"ना बाबूजी तब भी, हमरा जाए के मन बा और सासु मा के भी" सुगना ने कजरी का बहु सहारा लिया।

सरयू सिंह ने सुगना को एक बार फिर अपने सीने से सटा लिया और बोले

" सुगना बाबू जवन तू कहबु उहे होइ"

सुगना खुश हो गई और उनसे अमरबेल की तरह लिपटते हुए बोली

"हम जा तानी मां के बतावे उ भी बहुत खुश होइहें"

"अरे कपड़ा त पहन ला"

सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुराने लगी उसकी चूचियां अभी भी नंगी थी।

सुगना बेहद खुश थी वह अपनी विजय का उत्सव कजरी के साथ मनाना चाहती थी कपड़े पहन कर वह हरिया के घर कजरी को खुशखबरी देने चली गई सरयू सिंह सुगना के बिस्तर को ठीक कर वापस अपनी दालान में आ गए।

सुगना ने आज उनके अंडकोषों के नीचे लगा दाग देख लिया था। उन्होंने उसे उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया था परंतु उन्हें पता था कि सुगना वह प्रश्न दोबारा करेगी और कभी ना कभी उन्हें उसका उत्तर देना पड़ेगा। वह किस मुंह से उसे बताएंगे? उनके चेहरे पर उलझन थी परंतु उनका शरीर वीर्य स्खलन के उपरांत थक चुका था वह प्रश्न जाल में उलझे हुए ही सो गए.


उधर हरिद्वार में राजरानी मठ के आलीशान कमरे में श्री विद्यानंद जी अपनी सफेद धोती पहने और पीला गमछा ओढ़ कर प्रवचन के लिए तैयार हो रहे थे चेहरे पर तेज और माथे पर तिलक उनकी आभा में चार चांद लगा रहा थे। लंबे-लंबे बालों पर उम्र ने अपनी सफेद धारियां छोड़ दी थी जो उनके प्रभुत्व और प्रभाव को प्रदर्शित कर रही थीं।

तभी एक शिष्य कमरे में आया और बोला महात्मा हमारे बनारस जाने की सारी तैयारियां पूर्ण हो गई अगली पूर्णमासी को हमें बनारस के लिए प्रस्थान करना है.

बनारस का नाम सुनकर श्री विद्यानंद जी अपनी यादों में खो गए कितने वर्ष हो गए थे उन्हें अपना गांव सलेमपुर छोड़े हुए. यद्यपि यह मोह माया है वह सब कुछ जानते थे परंतु फिर भी गांव की यादें उनके जेहन में आज भी जीवित थीं। सरयू भी अब 50 का हो गया होगा उसके भी तो बाल सफेद हो गए होंगे। और वो पगली ...क्या नाम था उसका…….. हां ...हां .कजरी. ... मैंने उसके साथ शायद गलत किया.

मुझे कजरी के साथ विवाह ही नहीं करना चाहिए था परंतु दबाव और मेरी नासमझी की वजह से विवाह संपन्न हो गया परंतु मैं उसको उसका हक़ न दे पाया। पता नहीं सरयू और कजरी किस हाल में होंगे? क्या उनमें भी थोड़ी बहुत धार्मिक भावनाएं जगी होंगी? क्या सरयू और कजरी इस विशाल महोत्सव में वहां आएंगे? मेरा तो नाम और पहचान दोनों बदल चुके हैं वह मुझे पहचान भी तो नहीं पाएंगे?


विद्यानंद के होठों पर एक मुस्कान आ गयी। सांसारिक रिश्तों से दूर रहने के बावजूद अपने गांव के नजदीक जाने पर उनकी पुरानी यादें ताजा हो गई थीं। उन्होंने एक लंबी गहरी सांस भरी और सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया जो उनके दरवाजे पर मक्खी के रूप में बैठी उनकी मनोदशा पड़ रही थी।

सांसारिक रिश्तो की अहमियत अभी भी विद्यानंद जी के मन में पूरी तरह दूर नहीं हुई थी उनका वैराग्य अभी पूर्णता को प्राप्त नहीं हुआ था। तभी उनका शिष्य कमरे में आया और बोला

" महात्मा सभी आपका इंतजार कर रहे हैं"


विद्यानंद जी ने अपने बालों को ठीक किया और पंडाल के सुसज्जित स्टेज पर विराजमान हो गए।

उधर बनारस शहर में भी गजब का उत्साह था हर तरफ इस धार्मिक महोत्सव के ही चर्चे थे देश विदेश से कई महात्मा और धर्म प्रचारक यहां अपने अनुयायियों के साथ आ रहे थे. इस उत्सव में गांव देहात से आए लोगों को रहने के लिए भी व्यवस्था की गई थी। ध्यान से देखा जाए तो यह एक उत्सव सामाजिक मिलन का उत्सव था जिसमें एक ही विचारधारा के कई लोग एक जगह पर उपस्थित रहते और एक दूसरे के साथ का आनद लेते लंगर में खाना खाते धार्मिक प्रवचन सुनते और तरह तरह के मेलों का आनंद लेते.

सुगना और कजरी ने इन उत्सव के बारे में कई बार सुना था परंतु वहां जा पाने का अवसर प्राप्त न हुआ था। सरयु सिंह की विचारधारा इस मामले में कजरी से मेल न खाती थी। इसी कारण उनके साथ 20 - 22 वर्ष बिताने के बाद भी कजरी अपनी मन की इच्छा पूरी न कर पाई थी। पर आज सुगना ने अपना मालपुरा चूसा कर सरयू सिंह को सहर्ष तैयार कर लिया था।


सुगना और सरयू सिंह एक दूसरे से पूरी तरह जुड़ चुके थे। एक दूसरे की इच्छाओं का मान रखना जैसे उनके व्यवहार में स्वतःही शामिल हो गया था।

परंतु सरयू सिंह की सुगना के गुदाद्वार में संभोग करने की वह अनूठी इच्छा एक अप्राकृतिक मांग थी। सुगना भी अपने बाबूजी की यह मांग कई वर्षों से सुनते आ रही थी। उसका तन और मन इस इस बात के लिए राजी न था परंतु उसका दिल सरयू सिंह की उस इच्छा को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध था। आयोजन के 2 दिन पूर्व ही सरयू सिंह का जन्मदिन था। सुगना उस उत्सव में जाने और अपने बाबुजी का जन्मदिन मनाने की तैयारियां करने लगी।

उधर लाली बेहद खुश थी। चाय बनाते समय वह कल रात की बात याद कर रही थी जब उसकी चूँची को गप्प से मुंह में लेने के बाद राजेश की स्वाद इंद्रियों को एक अलग ही रस से परिचय हुआ। लाली की चूचियां पसीने और सोनू के वीर्य रस से लिपटी हुई थीं। राजेश को यह मिश्रित स्वाद कुछ अटपटा सा लगा परंतु वह कामकला का माहिर खिलाड़ी था उसे वीर्य रस और उसके स्वाद की पहचान थी। तुरंत लाली की चुचियों पर वीर्य यह उसकी सोच के परे था…

अपनी उत्सुकता पर काबू रखते हुए और लाली को छेड़ते हुए कहा..

"आज तो चूची पूरी भीग गई है स्वाद भी अलग है।

लाली सब कुछ समझ रही थी उसने अपनी हथेलियों से अपने चेहरे को ढक लिया और मुस्कुरा कर बोली

"सब आपका ही किया धरा है"

"अरे मैंने क्या किया?"

"जाकर अपने साले से पूछीये"

राजेश ने लाली की आंखों में देखा और फिर उसकी चुचियों की तरफ. और चेहरे पर उत्साह लिए बोला

"तो क्या तुमने उसे अपना लिया"

लाली ने अपनी आंखें बंद कर ली और चेहरे पर मुस्कान लिए हुए बोली

"हां, आपके कहने से मैंने उसे अपना लिया है"

"पर कब?"

" जब आप जानी दुश्मन देख रहे थे तब आपका साला दोस्ती कर रहा था"

राजेश लाली की दोनों चुचियों को हाथ में लिए हुए लाली को आश्चर्य भरी निगाहों से देख रहा था।

लाली को राजेश के आश्चर्य से शर्म महसूस हो रही थी उसने बात बंद करते हुए कहा

"मैंने अपना लिया है अब आप भी अपना लीजिए" इतना कहते हुए लाली की जाँघे फैल गयीं। राजेश खुशी से पागल हो गया उसका मुंह एक बार फिर खुला और उसने लाली की दूसरी चूची को भी अपने मुंह में भर लिया।

लाली की स्खलित हो चुकी बुर ने भी राजेश के लंड को आसानी से रास्ता दे दिया कमरे में एक बार फिर…..

गैस से उबल कर चाय गिरने की आवाज हुई और लाली अपनी यादों से वापस आयी। चेहरे पर मुस्कुराहट लिए चाय छानकर वो हॉल में बैठकर सोनू से अगली मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो आज सुबह ही अपने बनारस में लगे कर्फ़्यू में अपनी लाली दीदी द्वारा दी सुनहरी भेंट लेकर हॉस्टल लौट चुका था।

नियति अपनी चाल चल रही थी। बनारस का महोत्सव यादगार होने वाला था….


शेष अगले भाग में।
Bohot hi uttam update bro
Apki lekhni or komal ji ki lekhni
Ka koi zwaab nahi.dehat ki jo
Sondhi se mehak aap dono ki
Storie main aati hai
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Tiger 786

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लाली के घर से जाने के बाद सोनू का दिल बल्लियों उछल रहा था यह पहला अवसर था जब किसी लड़की या युवती ने उसके कुंवारे लंड को मुखमैथुन द्वारा उत्तेजित और शांत किया था। और तो और वह युवती उसकी मुंह बोली बहन लाली थी।
लाली और सोनू का रिश्ता बचपन से ही था उसकी लाली दीदी कब उसके सपनों की मलिका हो गई थी वह खुद भी नहीं जानता था। जैसे-जैसे उसकी जांघों के बीच बाल आते गए लाली दीदी के प्रति उसका नजरिया बदलता गया परंतु प्रेम में कोई कमी न थी। पहले भी वह लाली से उसी तरह प्रेम करता था जितना वह अपने विचारों में परिवर्तन के पाने के बाद करने लगा था अंतर सिर्फ यह था की उस बचपन के प्यार में दिल और दिमाग सक्रिय थे परंतु अब सोनू का रोम रोम लाली के नाम से हर्षित हो जाता खासकर उसका लण्ड….
सोनू के मन में जितनी इज्जत और प्यार अपनी दीदी सुगना के प्रति था जो पूरी तरह वासना मुक्त था वह उतना ही प्यार अपनी लाली दीदी से भी करने लगा था। नियति कभी-कभी सोनू के मन में सुगना के प्रति भी उत्तेजना जागृत करने का प्रयास करती परंतु विफल रहती।
लाली भी अपने पति राजेश का सहयोग और प्रोत्साहन पाकर लाली सोनू के करीब आती गई और पिछली दो अंतरंग मुलाकातों में लाली ने स्वयं आगे बढ़ कर सोनू की हिचक को खत्म किया परंतु सोनू अब भी उसका भाई था और दिन के उजाले में उससे एक प्रेमी की तरह बर्ताव करना न तो लाली के बस में था और न हीं सोनू के।
सोनू की खुशी उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। लाली की जगह यदि किसी दूसरी युवती ने सोनू का लंड चूसा होता तो सोनू अब तक अपने कई करीबी दोस्तों को उस का किस्सा सुना चुका होता। अपने जीवन में मिली यह खुशी सोनू के लिए बेहद अहम थी परंतु उसका दुर्भाग्य था कि वह यह बात किसी से साझा नहीं कर सकता था। सभी की निगाहों में अभी भी यह पाप की श्रेणी में ही था।
सोनू को इस तरह हॉस्टल की गैलरी में खुशी-खुशी चहकते देखकर उसके दोस्त विकास ने पूछा...
"क्या बात है बनारस का कर्फ्यू सबसे ज्यादा तुझे ही रास आया है बड़ा चहक रहा है"
"लगता है साले को कोई माल मिली है.. बता ना भाई क्या बात है" विकास के साथी ने सोनू के पेट में गुदगुदी करते हुए पूछा
सोनू के पेट में दबी हुई बात उछल कर गले तक आ गयी जब तक कि वह कुछ बोल पाता विकास ने दोबारा कहा..
"तू तो अपनी लाली दीदी के घर गया था ना?"
सोनू एक बार फिर सतर्क हो गया पिछले कुछ पलों में उसने अपनी विजय गाथा साझा करने की सोच लिया था परंतु विकास के "लाली दीदी" संबोधन पर उसने वह विचार त्याग दिया।
"कुछ नहीं यार अपने भाग्य में लड़की कहां? जब तक हाथ की लकीरें लंड पर नहीं उतर आए तब तक यूं ही किताबों में सर खपाना है"
तीनों दोस्त आपस में बात करते हुए हॉस्टल से नीचे उतरे। विकास की मोटरसाइकिल राजदूत नीचे ही खड़ी थी। विकास ने कहा चल ना बाजार से मेरी किताब लेकर आते हैं। विकास के दोस्त ने पढ़ाई का हवाला देकर क्षमा मांग ली विकास में सोनू की तरफ देखा…
सोनू ने कहा
"भाई मैं चलाऊंगा….."
सोनू ने विकास की राजदूत चलाना सीख तो ली थी परंतु वह अभी पूरी तरह दक्ष नहीं था पर हां यदि सड़क पर भीड़ भाड़ ज्यादा ना हो तो उसे बाइक चलाने में कोई दिक्कत नहीं थी।
विकास ने उसकी बात मान ली और सोनू सहर्ष बाजार जाने को तैयार हो गया।
सोनू ने राजदूत स्टार्ट की और एक हीरो की भांति राजदूत पर बनारस शहर की सड़कों को रोते हुए बाजार की तरफ बढ़ चला। बहती हवा के प्रभाव से सोनू के खूबसूरत बाल लहरा रहे थे और मन में उसकी भावनाएं भी उफान पर थीं। काश उस राजूदूत पर पीछे लाली दीदी बैठी होती….
रात में हॉस्टल के खुरदुरे बिस्तर पर लेटे हुए सोनू को लाली के कोमल बदन की गर्मी याद आ रही थी। सोनू के लंड में अब भी रह-रहकर कसक उठ रही थी। लाली के होठों और मुंह की गर्मी ने सोनू के दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ दी थी वह उन यादों के सहारे कई दिनों तक अपना हस्तमैथुन कर सकता था…
लाली की यादों ने सोनू की हथेलियों को लण्ड का रास्ता दिखा दिया और सोनू की मजबूत हथेलियां उस कोमल पर तने हुए लंड का मान.मर्दन करनें लगीं….
उधर सीतापुर में सुगना की दोनों बहने सोनी और मोनी अपनी युवावस्था की दहलीज पर खड़ी अपने शरीर में हो रहे बदलाव को महसूस कर रही थीं।समय के साथ साथ उन्हें अपने शरीर में तरह तरह के बदलाव महसूस हो रहे थे। जितना बदलाव उनके शरीर में हो रहा था उतना ही उनकी भावनाओं और लोगों को देखने के नजरिये में।
अपनी बहन सुगना के पुत्र सूरज के जादुई अंगूठे से खेलते और उसके परिणाम को देखने और उसे शांत करने की तरकीब उन दोनों की समझ के परे थी परंतु दोनों बहनों ने उसे न सिर्फ अपनी आंखों से देखा था बल्कि महसूस किया था वह भी एक नहीं दो दो बार।
दोनों ही बहनें घर के कामकाज में पूरी तरह दक्ष थी पढ़ाई लिखाई उनके बस की बात न थी और नहीं वो इसके लिए बनी थीं। ऊपर वाले ने उन्हें अद्भुत कद काठी और सुंदरता दी थी जिससे आने वाले समय में वह न जाने कितने पढ़े लिखे और काबिल लड़के उनकी जाँघों के बीच अपनी सारी विद्वता अर्पित करने को तत्पर रहते।
दोनों अपनी मां पदमा का हाथ बतातीं और अपने शरीर का ख्याल रखतीं। दोनों खूबसूरत कलियां फूल बनने को लगभग तैयार थीं। ऊपर और नीचे के होंठ चुंबनों के लिए तरस रहे थे। जब भी वह दोनों एक दूसरे के आलिंगन में आती दोनों के मन में ही कसक उठती पर वह कसक मिटाने वाला भी बनारस महोत्सव की राह देख रहा था।
इधर सोनी मोनी जवानी की दहलीज लांघने वाली थी उधर सुगना की जवानी हिलोरे मार रही थी। पिछले तीन-चार वर्षो से वह शरीर सिंह की मजबूत बांहों और लण्ड का आनंद ले रही थी परंतु पिछले कुछ महीनों से उसकी जांघों के बीच गहराइयों में सूनापन था। बुर के होठों पर तो सरयू सिंह के होंठ और जिह्वा अपना कमाल दिखा जाते परंतु बुर की गहराइयों में लण्ड से किया गया मसाज सुगना को हमेशा याद आता। उसके वस्ति प्रदेश में उठ रही मरोड़ को सिर्फ वही समझ सकती थी या फिर इस कहानी की महिला पाठिकाएँ.
सुगना अपने प्रार्थनाओं में सरयू सिंह के स्वस्थ होने की कामना करती। नियति सुगना की भावनाओं में सरयू सिंह के प्रेम और उसके स्वार्थ दोनों को बराबरी से आंकती। सरयू सिंह के चेकअप का वक्त भी नजदीक आ रहा था सुगना को पूरी उम्मीद थी कि इस बार डॉक्टर उन्हें इस सुख से वंचित रहने की सलाह नहीं देगा।
सरयू सिंह अब पूरी तरह स्वस्थ थे वह खेतों में काम करते वह हर कार्य करने में सक्षम थे यदि उन्हें मौका दिया जाता तो वह सुगना की क्यारी को भी उसी प्रकार जोत सकते थे जैसा वह पिछले कई वर्षों से जोतते आ रहे थे परंतु कजरी और सुगना उन्हें डॉक्टर की सलाह का हवाला देकर रोक लेते थे।
जैसे-जैसे उनका जन्म दिन नजदीक आ रहा था उनकी उम्मीदें बढ़ती जा रही थी। वो सुगना की तरफ कामुक निगाहों से देखते और प्रत्युत्तर में सुगना अपनी आंखें नचा कर उन्हें अपने जन्मदिन की याद दिलाती। वह सरयू सिंह का जन्मदिन यादगार बनाने के लिए पूरी तरह मन बना चुकी थी।
परंतु सुगना जब जब सरयू सिंह की उस अंगूठी इच्छा के बारे में सोचती सिहर उठती वह कैसे उस मजबूत मुसल को उसका अपवित्र द्वार के अंदर ले पाएगी वह अपने एकांत के पलों में उस गुदा द्वार के कसाव और उसकी क्षमता का आकलन अपने हिसाब से करती जिस प्रकार कुंवारी लड़कियां पहली चुदाई को लेकर आशंकित भी रहती हैं और उत्तेजित भी रहती हैं वही हाल सुगना का भी था.
अपनी छोटी सी बुर से बच्चे को जन्म देने की बात याद कर सुगना के मन में विश्वास जाग उठा। एक वक्त वह था जब उसकी बुर में उसके बाबु जी की उंगली ने पहली बार प्रवेश किया था तब भी वह दर्द से चीख उठी थी परंतु आज उसे वह सहज प्रतीत हो रहा था। उसने मन ही मन सोच लिया जो होगा वह देखा जाएगा।
वैसे भी सुगना सरयू सिंह को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी उसे पता था की वह उनके दिल की रानी है वह उसे बेहद प्यार करते हैं वह उसे किसी भी हाल में कष्ट नहीं पहुंचाएंगे।
ज्यों ज्यों बनारस महोत्सव का दिन करीब आ रहा था सुगना और कजरी के उत्साह में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही थी। जाने सुगना को उस महोत्सव से क्या उम्मीदें थीं। परंतु अपनी पुरी (उड़ीसा) यात्रा के पश्चात यह पहला अवसर होता जब वह घर से बाहर अपने पूरे परिवार के साथ रहती और उस उत्सव का आनंद लेती।
वैसे भी घर के काम धाम और खेतीबाड़ी से दूर शहर की हलचल भरी जिंदगी में कुछ वक्त बिताने का अपना ही आनंद था इस महोत्सव में लगे हुए मेले सुगना को विशेष रूप से आकर्षित कर रहे थे। ग्रामीण समाज में मेलों का अपना आकर्षण है। इन मेलों में कई तरह की ऐसी वस्तुएं मिल जाती हैं जो आप पूरी उम्र खोजते रहे आप को नहीं मिली मिलेंगी। बनारस शहर में होने वाले इस भव्य महोत्सव में अलग-अलग विचारधारा और संस्कृति के लोगों का यह समागम निश्चय ही दर्शनीय होगा।
सरयू सिंह ने भी तैयारी में कोई कमी नहीं रखी सुगना और कजरी ने जो जो कहा वह बाजार से लाते गए उन्हें अब बेसब्री से अपने जन्मदिन का इंतजार था उस दिन एक बार फिर वह सुगना के साथ जी भर कर चुदाई करते और अपने जीवन में पहली बार गुदामैथुन का आनंद लेते।
सरयू सिंह की निगाहें जब भी सुगना से मिलती उनकी निगाहों में एक ही मूक प्रश्न होता
"ए सुगना मिली नु?"
और सुगना के चेहरे और हाव-भाव एक ही उत्तर दे रहे होते..
" हां बाबूजी…"
सुगना के लिए यह संबोधन अब शब्दार्थ को छोड़कर बेहद अहम हो चला था वह जब भी उनकी गोद में रहती चाहे कपड़ों के साथ या बिना कपड़ों के दोनों ही समय यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगता। नग्न अवस्था में दोनों के बीच उम्र का यह अंतर उनके बीच पनपे प्यार ने पूरी तरह मिटा दिया था विशेषकर सुगना के मन ने। परंतु सरयू सिंह कभी उसे अपनी प्यारी बहू के रूप में देखते और कभी वासना और गदराए यौवन से भरी हुई कामुक युवती के रूप में तो कभी अपनी ……..।
नियति ने सुगना और सरयू सिह में बीच एक अजब सा संबंध बना दिया था। एक उम्र के ढलान पर था और एक वासना और यौवन के उफान पर।
बनारस जाने की तैयारियों के दौरान लाली और कजरी ने अपने-अपने संदूको में पड़े अपने कपड़ों का मुआयना किया और उनमें से अच्छे वस्त्रों को छांट कर अलग किया ताकि उन्हें बनारस ले जा सके इसी दौरान सुगना की शादी की एल्बम बाहर आ गई जिसमें रतन और सुगना कुछ तस्वीरें थी..
कजरी इन तस्वीरों को लेकर देखने लगी। अपने पुत्र को देखकर उसकी आंखों में प्यार छलक आया उसने उसे सुगना को दिखाते हुए कहा
"सुगना बेटा देख ना फोटो कितना अच्छा आईल बा"
सुगना को हालांकि उस शादी से अब कोई औचित्य न था धीरे-धीरे अब वह उसे भूल चुकी थी पर रतन अब भी उसका पति था। कजरी के कहने पर उसने वह फोटो ली तथा अपनी किशोरावस्था के चित्र को देखकर प्रसन्न हो गई पर रतन की फोटो देखकर वह हंसने लगी और बोली…
"ई कतना पातर रहन पहले"
( यह कितने पतले थे पहले)
"अभी भी तो पतला ही बा मुंबई में जाने खाए पिए के मिले ना कि ना"
"नाम अब तो ठीक-ठाक हो गईल बाड़े"
सुगना ने जिस लहजे में यह बात कही थी कजरी खुश हो गई थी अपनी बहू के मुंह से अपनी बेटे की तारीफ सुनकर उसके मन में एक बार फिर आस जग उठी। काश... इन दोनों का रिश्ता वापस पति-पत्नी के जैसे हो जाता।
"जाने एक कर मती कैसे मरा गइल" कजरी में रतन को ध्यान रख कर यह बात कही
(पता नहीं कैसे इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई)
" मां ई में उनकर गलती ना रहे लइका उम्र में शादी ना करेंके"
कजरी सुगना की बातों को सुनकर बेहद प्रसन्न हो रही थी उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की सुगना रतन के पक्ष में बोल रही थी उसने सुगना को छेड़ते हुए कहा
" लागा ता हमार बेटा सुगना के पसंद आवे लागल बा"
सुगना ने अपनी बड़ी बड़ी आंखें नचाई और कजरी की चेहरे को घूरते हुए बोला
"हमरा राउर कुंवर जी ही पसंद बाड़े"
कजरी सरयू सिंह की मजबूत कद काठी के बारे में सोचने लगी जो निश्चय ही अभी भी रतन से बीस ही थी।
सुगना ने सटीक उत्तर देकर उस बातचीत को वहीं पर विराम लगा दिया था परंतु कजरी ने सुगना के मन में रतन की पिछली यादों को कुछ हद तक जीवित कर दिया था।
पिछली बार रतन ने आगे आकर उससे दोस्ती का हाथ बढ़ाया था परंतु सुगना से वह उस तरह होली नहीं खेल पाया था जिस प्रकार राजेश ने खेली थी। परंतु जिस प्रकार वह सूरज का ख्याल रखता था उसने सुगना का ध्यान अवश्य आकर्षित कर लिया था। सुगना बेफिक्र होकर सूरज को रतन के हवाले करती और अपनी रसोई के कार्यों में लग जाती सूरज भी रतन की गोद में ऐसे खेलता जैसे वह अपने पिता की गोद में खेल रहा हो। नियति आने वाले दिनों की कल्पना कर मुस्कुराती रही थी। कभी वह गिलहरी बन जाती और रतन की चारपाई के आगे पीछे घूम कर अपना ध्यान आकर्षित करती सूरज किलकारियां मारते हुए प्रसन्न हो जाता।
सुगना यह बात जानती थी की रतन की एक विवाहिता पत्नी है जो मुंबई में रहती है और रतन उससे बेहद प्यार करता है। सुगना को रतन की जिंदगी में दखल देने की न कोई जरूरत थी नहीं कोई आवश्यकता। उसके जीवन में खुशियां और जांघों के बीच मजबूत लंड भरने वाले सरयू सिंह अभी भी उसे बेहद प्यारे थे।।
साल में दो बार गांव आकर रतन सुगना से अपना रिश्ता बचाए हुए था सुगना के लिए इतना पर्याप्त था इसी वजह से समय के साथ उसने रतन के प्रति अपनी नफरत को बुलाकर उसे एक दोस्त की तरह स्वीकार कर लिया था।
उधर एक सुखद रात्रि को लाली को अपनी बांहों में समेटे हुए और चुचियाँ सहलाते हुए राजेश ने पूछा..
" क्या सच में उस दिन सोनू ने…." राजेश अपनी बात पूरी न कर पाया पर लाली समझ चुकी थी
" आपको चुचियों का स्वाद बदला हुआ नहीं लग रहा था?"
राजेश अपनी चाल में कामयाब हो गया था वह सोनू के बारे में बात करना चाह रहा था और लाली उसके शब्द जाल में आ चुकी थी।
"सोनू तो मालामाल हो गया होगा.."
"क्यों" लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए पूछा
"अपनी दीदी के कोमल हाथों को अपने लंड पर पाकर कौन मस्त नहीं होगा…."
लाली मन ही मन मुस्कुराने लगी उसने सोनू को जो सुख दिया था वह राजेश शायद अब तक न समझ पाया था। राजेश की कामुक बातों से उसकी बुर में भी हलचल प्रारंभ हो गई थी उसने राजेश को और उत्तेजित करते हुए कहा…
" सोनू सच में भाग्यशाली है उस दिन उसे हाथों का ही नहीं इनका भी सुख मिल चुका है" लाली ने अपने होठों को गोल कर इशारा किया।
लाली के इस उत्तर ने राजेश को निरुत्तर कर दिया उसने बातचीत को वही विराम दिया और उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसने लगा।
राजेश ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और लाली की नाइटी को कमर तक खींचते हुए बोला….
"काश मैं सोनू होता"
"तो क्या करते…"
राजेश ने कोई उत्तर न दिया परंतु अपने तने हुए लंड को लाली की पनियायी बुर में जड़ तक ठान्स दिया और उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर लाली को चोदते हुए बोला
"अपनी लाली दीदी को खूब प्यार करता"
लाली भी अपनी जांघें खोल चुकी थी उससे और उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी वो राजेश को चूम रही थी परंतु इन चुम्बनों में एक अलग एहसास था राजेश उस अंतर को बखूबी महसूस कर रहा था परंतु उसके चोदने की रफ्तार में कोई कमी नहीं आ रही थी वह लाली को कस कस कर चोद रहा था।
मासूम और युवा सोनू लाली और राजेश दोनों की उत्तेजना का केंद्र बन चुका था।
चुदाई का चिर परिचित खेल खत्म होने के पश्चात पसीने से लथपथ राजेश लाली के बगल में लेटा हुआ उसकी चूचियां सहला रहा था।
तभी लाली ने मुस्कुराते हुए कहा…
"आपकी फटफटिया कब आ रही है"
"इतनी रात को फटफटिया की याद आ रही है"
"कई दिन से शंकर जी के मंदिर जाने की सोच रही थी। एक दिन टैक्सी वाले से बात करके गाड़ी बुलाइएगा।"
"एक तो साले खूब सारा पैसा भी लेते हैं और नखरे अलग से दिखाते हैं"
" हां जब फटफटिया आ जाएगी तो हम लोग अपनी मर्जी से कहीं भी आ जा पाएंगे।
राजेश ने एक लंबी सांस भरी परंतु कोई उत्तर न दिया।
लाली ने राजेश के चेहरे पर चिंता की लकीरें देख ली थी उसने उसे चूमते हुए कहा
"ठीक है, पर परेशान मत होइएगा जब भगवान चाहेंगे आ जाएगी"
"हां भगवान सब इच्छा पूरा किये हैं तो यह भी जरूर करेंगे।"
राजेश लाली को अपनी बाहों में लिए हुए सुखद नींद सो गया लाली के मन में अभी भी सोनू नाच रहा था उसका मासूम चेहरा और गठीला बदन लाली को पसंद आ चुका था…. सोनू को अपनी मीठी यादों में समेटे हुए लाली सो गई...
बनारस शहर में महोत्सव की तैयारियां प्रारंभ हो गई थी यह एक विशेष उत्सव था जिसकी व्यवस्था में पुलिस और प्रशासन दोनों सक्रिय थे शहर की समतल मैदान को पूरी तरह साफ स्वच्छ किया जा रहा था जगह-जगह रहने के पंडाल लगाए जा रहे थे और शौचालयों का निर्माण किया जा रहा था यह एक अत्यंत भव्य व्यवस्था थी। बड़े-बड़े गगनचुंबी झूलों के अस्थि पंजर जमीन पर पड़े अपने कारीगरों का इंतजार कर रहे थे। अस्थाई सड़कों पर पीली लाइटें लगाने का कार्य जारी था। बनारस शहर का लगभग हर बाशिंदा उस उत्सव से कुछ न कुछ अपेक्षा रखता था।
उधर हॉस्टल में सोनू के कमरे के दरवाजे पर वॉलीबॉल की गेंद धड़ाम से टकराई। सोनु बिस्तर पर पड़ा ऊंघ रहा था। सोनू उठकर हॉस्टल की लॉबी में आ गया सुबह के 6:00 बजे रहे थे विकास के कमरे की लाइट अभी भी जल रही थी..
"अरे तू तो बड़ी जल्दी उठ गया" सोनू ने विकास की खिड़की से झांकते हुए पूछा।
"अबे रात भर जगा हूं एक पैसे की तैयारी नही हुई है एक्जाम की। अब जा रहा हूं सोने"
"भाई तेरी मोटरसाइकिल कुछ देर के लिए ले जाऊं क्या?"
"क्यों सुबह सुबह कहां जाएगा?"
" वह छोड़ ना बाद में बताऊंगा"
"ठीक है ले जा पर तेल फुल करा देना…" विकास ने राजदूत की चाबी सोनू को पकड़ते हुए कहा।
सोनू बेहद प्रसन्न हो गया वह फटाफट मन में ढेर सारी उमंगे लिए तैयार होने लगा उसने अपना खूबसूरत सा पैजामा कुर्ता पहना और कुछ ही देर में राजदूत की सवारी करते हुए लाली के दरवाजे पर खड़ा हार्न बजा रहा था...
लाली उस हॉर्न की आवाज सुनकर दरवाजे पर आई और अपने भाई सोनू को राजदूत फटफटिया पर बैठा देखकर बेहद प्रसन्न हो गई और उसे देखकर मुस्कुराते हुए बोली "अरे सोनू यह किसकी फटफटिया है? अंदर आ…"

शेष अगले भाग में…
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लाली के घर से जाने के बाद सोनू का दिल बल्लियों उछल रहा था यह पहला अवसर था जब किसी लड़की या युवती ने उसके कुंवारे लंड को मुखमैथुन द्वारा उत्तेजित और शांत किया था। और तो और वह युवती उसकी मुंह बोली बहन लाली थी।
लाली और सोनू का रिश्ता बचपन से ही था उसकी लाली दीदी कब उसके सपनों की मलिका हो गई थी वह खुद भी नहीं जानता था। जैसे-जैसे उसकी जांघों के बीच बाल आते गए लाली दीदी के प्रति उसका नजरिया बदलता गया परंतु प्रेम में कोई कमी न थी। पहले भी वह लाली से उसी तरह प्रेम करता था जितना वह अपने विचारों में परिवर्तन के पाने के बाद करने लगा था अंतर सिर्फ यह था की उस बचपन के प्यार में दिल और दिमाग सक्रिय थे परंतु अब सोनू का रोम रोम लाली के नाम से हर्षित हो जाता खासकर उसका लण्ड….
सोनू के मन में जितनी इज्जत और प्यार अपनी दीदी सुगना के प्रति था जो पूरी तरह वासना मुक्त था वह उतना ही प्यार अपनी लाली दीदी से भी करने लगा था। नियति कभी-कभी सोनू के मन में सुगना के प्रति भी उत्तेजना जागृत करने का प्रयास करती परंतु विफल रहती।
लाली भी अपने पति राजेश का सहयोग और प्रोत्साहन पाकर लाली सोनू के करीब आती गई और पिछली दो अंतरंग मुलाकातों में लाली ने स्वयं आगे बढ़ कर सोनू की हिचक को खत्म किया परंतु सोनू अब भी उसका भाई था और दिन के उजाले में उससे एक प्रेमी की तरह बर्ताव करना न तो लाली के बस में था और न हीं सोनू के।
सोनू की खुशी उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। लाली की जगह यदि किसी दूसरी युवती ने सोनू का लंड चूसा होता तो सोनू अब तक अपने कई करीबी दोस्तों को उस का किस्सा सुना चुका होता। अपने जीवन में मिली यह खुशी सोनू के लिए बेहद अहम थी परंतु उसका दुर्भाग्य था कि वह यह बात किसी से साझा नहीं कर सकता था। सभी की निगाहों में अभी भी यह पाप की श्रेणी में ही था।
सोनू को इस तरह हॉस्टल की गैलरी में खुशी-खुशी चहकते देखकर उसके दोस्त विकास ने पूछा...
"क्या बात है बनारस का कर्फ्यू सबसे ज्यादा तुझे ही रास आया है बड़ा चहक रहा है"
"लगता है साले को कोई माल मिली है.. बता ना भाई क्या बात है" विकास के साथी ने सोनू के पेट में गुदगुदी करते हुए पूछा
सोनू के पेट में दबी हुई बात उछल कर गले तक आ गयी जब तक कि वह कुछ बोल पाता विकास ने दोबारा कहा..
"तू तो अपनी लाली दीदी के घर गया था ना?"
सोनू एक बार फिर सतर्क हो गया पिछले कुछ पलों में उसने अपनी विजय गाथा साझा करने की सोच लिया था परंतु विकास के "लाली दीदी" संबोधन पर उसने वह विचार त्याग दिया।
"कुछ नहीं यार अपने भाग्य में लड़की कहां? जब तक हाथ की लकीरें लंड पर नहीं उतर आए तब तक यूं ही किताबों में सर खपाना है"
तीनों दोस्त आपस में बात करते हुए हॉस्टल से नीचे उतरे। विकास की मोटरसाइकिल राजदूत नीचे ही खड़ी थी। विकास ने कहा चल ना बाजार से मेरी किताब लेकर आते हैं। विकास के दोस्त ने पढ़ाई का हवाला देकर क्षमा मांग ली विकास में सोनू की तरफ देखा…
सोनू ने कहा
"भाई मैं चलाऊंगा….."
सोनू ने विकास की राजदूत चलाना सीख तो ली थी परंतु वह अभी पूरी तरह दक्ष नहीं था पर हां यदि सड़क पर भीड़ भाड़ ज्यादा ना हो तो उसे बाइक चलाने में कोई दिक्कत नहीं थी।
विकास ने उसकी बात मान ली और सोनू सहर्ष बाजार जाने को तैयार हो गया।
सोनू ने राजदूत स्टार्ट की और एक हीरो की भांति राजदूत पर बनारस शहर की सड़कों को रोते हुए बाजार की तरफ बढ़ चला। बहती हवा के प्रभाव से सोनू के खूबसूरत बाल लहरा रहे थे और मन में उसकी भावनाएं भी उफान पर थीं। काश उस राजूदूत पर पीछे लाली दीदी बैठी होती….
रात में हॉस्टल के खुरदुरे बिस्तर पर लेटे हुए सोनू को लाली के कोमल बदन की गर्मी याद आ रही थी। सोनू के लंड में अब भी रह-रहकर कसक उठ रही थी। लाली के होठों और मुंह की गर्मी ने सोनू के दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ दी थी वह उन यादों के सहारे कई दिनों तक अपना हस्तमैथुन कर सकता था…
लाली की यादों ने सोनू की हथेलियों को लण्ड का रास्ता दिखा दिया और सोनू की मजबूत हथेलियां उस कोमल पर तने हुए लंड का मान.मर्दन करनें लगीं….
उधर सीतापुर में सुगना की दोनों बहने सोनी और मोनी अपनी युवावस्था की दहलीज पर खड़ी अपने शरीर में हो रहे बदलाव को महसूस कर रही थीं।समय के साथ साथ उन्हें अपने शरीर में तरह तरह के बदलाव महसूस हो रहे थे। जितना बदलाव उनके शरीर में हो रहा था उतना ही उनकी भावनाओं और लोगों को देखने के नजरिये में।
अपनी बहन सुगना के पुत्र सूरज के जादुई अंगूठे से खेलते और उसके परिणाम को देखने और उसे शांत करने की तरकीब उन दोनों की समझ के परे थी परंतु दोनों बहनों ने उसे न सिर्फ अपनी आंखों से देखा था बल्कि महसूस किया था वह भी एक नहीं दो दो बार।
दोनों ही बहनें घर के कामकाज में पूरी तरह दक्ष थी पढ़ाई लिखाई उनके बस की बात न थी और नहीं वो इसके लिए बनी थीं। ऊपर वाले ने उन्हें अद्भुत कद काठी और सुंदरता दी थी जिससे आने वाले समय में वह न जाने कितने पढ़े लिखे और काबिल लड़के उनकी जाँघों के बीच अपनी सारी विद्वता अर्पित करने को तत्पर रहते।
दोनों अपनी मां पदमा का हाथ बतातीं और अपने शरीर का ख्याल रखतीं। दोनों खूबसूरत कलियां फूल बनने को लगभग तैयार थीं। ऊपर और नीचे के होंठ चुंबनों के लिए तरस रहे थे। जब भी वह दोनों एक दूसरे के आलिंगन में आती दोनों के मन में ही कसक उठती पर वह कसक मिटाने वाला भी बनारस महोत्सव की राह देख रहा था।
इधर सोनी मोनी जवानी की दहलीज लांघने वाली थी उधर सुगना की जवानी हिलोरे मार रही थी। पिछले तीन-चार वर्षो से वह शरीर सिंह की मजबूत बांहों और लण्ड का आनंद ले रही थी परंतु पिछले कुछ महीनों से उसकी जांघों के बीच गहराइयों में सूनापन था। बुर के होठों पर तो सरयू सिंह के होंठ और जिह्वा अपना कमाल दिखा जाते परंतु बुर की गहराइयों में लण्ड से किया गया मसाज सुगना को हमेशा याद आता। उसके वस्ति प्रदेश में उठ रही मरोड़ को सिर्फ वही समझ सकती थी या फिर इस कहानी की महिला पाठिकाएँ.
सुगना अपने प्रार्थनाओं में सरयू सिंह के स्वस्थ होने की कामना करती। नियति सुगना की भावनाओं में सरयू सिंह के प्रेम और उसके स्वार्थ दोनों को बराबरी से आंकती। सरयू सिंह के चेकअप का वक्त भी नजदीक आ रहा था सुगना को पूरी उम्मीद थी कि इस बार डॉक्टर उन्हें इस सुख से वंचित रहने की सलाह नहीं देगा।
सरयू सिंह अब पूरी तरह स्वस्थ थे वह खेतों में काम करते वह हर कार्य करने में सक्षम थे यदि उन्हें मौका दिया जाता तो वह सुगना की क्यारी को भी उसी प्रकार जोत सकते थे जैसा वह पिछले कई वर्षों से जोतते आ रहे थे परंतु कजरी और सुगना उन्हें डॉक्टर की सलाह का हवाला देकर रोक लेते थे।
जैसे-जैसे उनका जन्म दिन नजदीक आ रहा था उनकी उम्मीदें बढ़ती जा रही थी। वो सुगना की तरफ कामुक निगाहों से देखते और प्रत्युत्तर में सुगना अपनी आंखें नचा कर उन्हें अपने जन्मदिन की याद दिलाती। वह सरयू सिंह का जन्मदिन यादगार बनाने के लिए पूरी तरह मन बना चुकी थी।
परंतु सुगना जब जब सरयू सिंह की उस अंगूठी इच्छा के बारे में सोचती सिहर उठती वह कैसे उस मजबूत मुसल को उसका अपवित्र द्वार के अंदर ले पाएगी वह अपने एकांत के पलों में उस गुदा द्वार के कसाव और उसकी क्षमता का आकलन अपने हिसाब से करती जिस प्रकार कुंवारी लड़कियां पहली चुदाई को लेकर आशंकित भी रहती हैं और उत्तेजित भी रहती हैं वही हाल सुगना का भी था.
अपनी छोटी सी बुर से बच्चे को जन्म देने की बात याद कर सुगना के मन में विश्वास जाग उठा। एक वक्त वह था जब उसकी बुर में उसके बाबु जी की उंगली ने पहली बार प्रवेश किया था तब भी वह दर्द से चीख उठी थी परंतु आज उसे वह सहज प्रतीत हो रहा था। उसने मन ही मन सोच लिया जो होगा वह देखा जाएगा।
वैसे भी सुगना सरयू सिंह को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी उसे पता था की वह उनके दिल की रानी है वह उसे बेहद प्यार करते हैं वह उसे किसी भी हाल में कष्ट नहीं पहुंचाएंगे।
ज्यों ज्यों बनारस महोत्सव का दिन करीब आ रहा था सुगना और कजरी के उत्साह में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही थी। जाने सुगना को उस महोत्सव से क्या उम्मीदें थीं। परंतु अपनी पुरी (उड़ीसा) यात्रा के पश्चात यह पहला अवसर होता जब वह घर से बाहर अपने पूरे परिवार के साथ रहती और उस उत्सव का आनंद लेती।
वैसे भी घर के काम धाम और खेतीबाड़ी से दूर शहर की हलचल भरी जिंदगी में कुछ वक्त बिताने का अपना ही आनंद था इस महोत्सव में लगे हुए मेले सुगना को विशेष रूप से आकर्षित कर रहे थे। ग्रामीण समाज में मेलों का अपना आकर्षण है। इन मेलों में कई तरह की ऐसी वस्तुएं मिल जाती हैं जो आप पूरी उम्र खोजते रहे आप को नहीं मिली मिलेंगी। बनारस शहर में होने वाले इस भव्य महोत्सव में अलग-अलग विचारधारा और संस्कृति के लोगों का यह समागम निश्चय ही दर्शनीय होगा।
सरयू सिंह ने भी तैयारी में कोई कमी नहीं रखी सुगना और कजरी ने जो जो कहा वह बाजार से लाते गए उन्हें अब बेसब्री से अपने जन्मदिन का इंतजार था उस दिन एक बार फिर वह सुगना के साथ जी भर कर चुदाई करते और अपने जीवन में पहली बार गुदामैथुन का आनंद लेते।
सरयू सिंह की निगाहें जब भी सुगना से मिलती उनकी निगाहों में एक ही मूक प्रश्न होता
"ए सुगना मिली नु?"
और सुगना के चेहरे और हाव-भाव एक ही उत्तर दे रहे होते..
" हां बाबूजी…"
सुगना के लिए यह संबोधन अब शब्दार्थ को छोड़कर बेहद अहम हो चला था वह जब भी उनकी गोद में रहती चाहे कपड़ों के साथ या बिना कपड़ों के दोनों ही समय यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगता। नग्न अवस्था में दोनों के बीच उम्र का यह अंतर उनके बीच पनपे प्यार ने पूरी तरह मिटा दिया था विशेषकर सुगना के मन ने। परंतु सरयू सिंह कभी उसे अपनी प्यारी बहू के रूप में देखते और कभी वासना और गदराए यौवन से भरी हुई कामुक युवती के रूप में तो कभी अपनी ……..।
नियति ने सुगना और सरयू सिह में बीच एक अजब सा संबंध बना दिया था। एक उम्र के ढलान पर था और एक वासना और यौवन के उफान पर।
बनारस जाने की तैयारियों के दौरान लाली और कजरी ने अपने-अपने संदूको में पड़े अपने कपड़ों का मुआयना किया और उनमें से अच्छे वस्त्रों को छांट कर अलग किया ताकि उन्हें बनारस ले जा सके इसी दौरान सुगना की शादी की एल्बम बाहर आ गई जिसमें रतन और सुगना कुछ तस्वीरें थी..
कजरी इन तस्वीरों को लेकर देखने लगी। अपने पुत्र को देखकर उसकी आंखों में प्यार छलक आया उसने उसे सुगना को दिखाते हुए कहा
"सुगना बेटा देख ना फोटो कितना अच्छा आईल बा"
सुगना को हालांकि उस शादी से अब कोई औचित्य न था धीरे-धीरे अब वह उसे भूल चुकी थी पर रतन अब भी उसका पति था। कजरी के कहने पर उसने वह फोटो ली तथा अपनी किशोरावस्था के चित्र को देखकर प्रसन्न हो गई पर रतन की फोटो देखकर वह हंसने लगी और बोली…
"ई कतना पातर रहन पहले"
( यह कितने पतले थे पहले)
"अभी भी तो पतला ही बा मुंबई में जाने खाए पिए के मिले ना कि ना"
"नाम अब तो ठीक-ठाक हो गईल बाड़े"
सुगना ने जिस लहजे में यह बात कही थी कजरी खुश हो गई थी अपनी बहू के मुंह से अपनी बेटे की तारीफ सुनकर उसके मन में एक बार फिर आस जग उठी। काश... इन दोनों का रिश्ता वापस पति-पत्नी के जैसे हो जाता।
"जाने एक कर मती कैसे मरा गइल" कजरी में रतन को ध्यान रख कर यह बात कही
(पता नहीं कैसे इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई)
" मां ई में उनकर गलती ना रहे लइका उम्र में शादी ना करेंके"
कजरी सुगना की बातों को सुनकर बेहद प्रसन्न हो रही थी उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की सुगना रतन के पक्ष में बोल रही थी उसने सुगना को छेड़ते हुए कहा
" लागा ता हमार बेटा सुगना के पसंद आवे लागल बा"
सुगना ने अपनी बड़ी बड़ी आंखें नचाई और कजरी की चेहरे को घूरते हुए बोला
"हमरा राउर कुंवर जी ही पसंद बाड़े"
कजरी सरयू सिंह की मजबूत कद काठी के बारे में सोचने लगी जो निश्चय ही अभी भी रतन से बीस ही थी।
सुगना ने सटीक उत्तर देकर उस बातचीत को वहीं पर विराम लगा दिया था परंतु कजरी ने सुगना के मन में रतन की पिछली यादों को कुछ हद तक जीवित कर दिया था।
पिछली बार रतन ने आगे आकर उससे दोस्ती का हाथ बढ़ाया था परंतु सुगना से वह उस तरह होली नहीं खेल पाया था जिस प्रकार राजेश ने खेली थी। परंतु जिस प्रकार वह सूरज का ख्याल रखता था उसने सुगना का ध्यान अवश्य आकर्षित कर लिया था। सुगना बेफिक्र होकर सूरज को रतन के हवाले करती और अपनी रसोई के कार्यों में लग जाती सूरज भी रतन की गोद में ऐसे खेलता जैसे वह अपने पिता की गोद में खेल रहा हो। नियति आने वाले दिनों की कल्पना कर मुस्कुराती रही थी। कभी वह गिलहरी बन जाती और रतन की चारपाई के आगे पीछे घूम कर अपना ध्यान आकर्षित करती सूरज किलकारियां मारते हुए प्रसन्न हो जाता।
सुगना यह बात जानती थी की रतन की एक विवाहिता पत्नी है जो मुंबई में रहती है और रतन उससे बेहद प्यार करता है। सुगना को रतन की जिंदगी में दखल देने की न कोई जरूरत थी नहीं कोई आवश्यकता। उसके जीवन में खुशियां और जांघों के बीच मजबूत लंड भरने वाले सरयू सिंह अभी भी उसे बेहद प्यारे थे।।
साल में दो बार गांव आकर रतन सुगना से अपना रिश्ता बचाए हुए था सुगना के लिए इतना पर्याप्त था इसी वजह से समय के साथ उसने रतन के प्रति अपनी नफरत को बुलाकर उसे एक दोस्त की तरह स्वीकार कर लिया था।
उधर एक सुखद रात्रि को लाली को अपनी बांहों में समेटे हुए और चुचियाँ सहलाते हुए राजेश ने पूछा..
" क्या सच में उस दिन सोनू ने…." राजेश अपनी बात पूरी न कर पाया पर लाली समझ चुकी थी
" आपको चुचियों का स्वाद बदला हुआ नहीं लग रहा था?"
राजेश अपनी चाल में कामयाब हो गया था वह सोनू के बारे में बात करना चाह रहा था और लाली उसके शब्द जाल में आ चुकी थी।
"सोनू तो मालामाल हो गया होगा.."
"क्यों" लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए पूछा
"अपनी दीदी के कोमल हाथों को अपने लंड पर पाकर कौन मस्त नहीं होगा…."
लाली मन ही मन मुस्कुराने लगी उसने सोनू को जो सुख दिया था वह राजेश शायद अब तक न समझ पाया था। राजेश की कामुक बातों से उसकी बुर में भी हलचल प्रारंभ हो गई थी उसने राजेश को और उत्तेजित करते हुए कहा…
" सोनू सच में भाग्यशाली है उस दिन उसे हाथों का ही नहीं इनका भी सुख मिल चुका है" लाली ने अपने होठों को गोल कर इशारा किया।
लाली के इस उत्तर ने राजेश को निरुत्तर कर दिया उसने बातचीत को वही विराम दिया और उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसने लगा।
राजेश ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और लाली की नाइटी को कमर तक खींचते हुए बोला….
"काश मैं सोनू होता"
"तो क्या करते…"
राजेश ने कोई उत्तर न दिया परंतु अपने तने हुए लंड को लाली की पनियायी बुर में जड़ तक ठान्स दिया और उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर लाली को चोदते हुए बोला
"अपनी लाली दीदी को खूब प्यार करता"
लाली भी अपनी जांघें खोल चुकी थी उससे और उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी वो राजेश को चूम रही थी परंतु इन चुम्बनों में एक अलग एहसास था राजेश उस अंतर को बखूबी महसूस कर रहा था परंतु उसके चोदने की रफ्तार में कोई कमी नहीं आ रही थी वह लाली को कस कस कर चोद रहा था।
मासूम और युवा सोनू लाली और राजेश दोनों की उत्तेजना का केंद्र बन चुका था।
चुदाई का चिर परिचित खेल खत्म होने के पश्चात पसीने से लथपथ राजेश लाली के बगल में लेटा हुआ उसकी चूचियां सहला रहा था।
तभी लाली ने मुस्कुराते हुए कहा…
"आपकी फटफटिया कब आ रही है"
"इतनी रात को फटफटिया की याद आ रही है"
"कई दिन से शंकर जी के मंदिर जाने की सोच रही थी। एक दिन टैक्सी वाले से बात करके गाड़ी बुलाइएगा।"
"एक तो साले खूब सारा पैसा भी लेते हैं और नखरे अलग से दिखाते हैं"
" हां जब फटफटिया आ जाएगी तो हम लोग अपनी मर्जी से कहीं भी आ जा पाएंगे।
राजेश ने एक लंबी सांस भरी परंतु कोई उत्तर न दिया।
लाली ने राजेश के चेहरे पर चिंता की लकीरें देख ली थी उसने उसे चूमते हुए कहा
"ठीक है, पर परेशान मत होइएगा जब भगवान चाहेंगे आ जाएगी"
"हां भगवान सब इच्छा पूरा किये हैं तो यह भी जरूर करेंगे।"
राजेश लाली को अपनी बाहों में लिए हुए सुखद नींद सो गया लाली के मन में अभी भी सोनू नाच रहा था उसका मासूम चेहरा और गठीला बदन लाली को पसंद आ चुका था…. सोनू को अपनी मीठी यादों में समेटे हुए लाली सो गई...
बनारस शहर में महोत्सव की तैयारियां प्रारंभ हो गई थी यह एक विशेष उत्सव था जिसकी व्यवस्था में पुलिस और प्रशासन दोनों सक्रिय थे शहर की समतल मैदान को पूरी तरह साफ स्वच्छ किया जा रहा था जगह-जगह रहने के पंडाल लगाए जा रहे थे और शौचालयों का निर्माण किया जा रहा था यह एक अत्यंत भव्य व्यवस्था थी। बड़े-बड़े गगनचुंबी झूलों के अस्थि पंजर जमीन पर पड़े अपने कारीगरों का इंतजार कर रहे थे। अस्थाई सड़कों पर पीली लाइटें लगाने का कार्य जारी था। बनारस शहर का लगभग हर बाशिंदा उस उत्सव से कुछ न कुछ अपेक्षा रखता था।
उधर हॉस्टल में सोनू के कमरे के दरवाजे पर वॉलीबॉल की गेंद धड़ाम से टकराई। सोनु बिस्तर पर पड़ा ऊंघ रहा था। सोनू उठकर हॉस्टल की लॉबी में आ गया सुबह के 6:00 बजे रहे थे विकास के कमरे की लाइट अभी भी जल रही थी..
"अरे तू तो बड़ी जल्दी उठ गया" सोनू ने विकास की खिड़की से झांकते हुए पूछा।
"अबे रात भर जगा हूं एक पैसे की तैयारी नही हुई है एक्जाम की। अब जा रहा हूं सोने"
"भाई तेरी मोटरसाइकिल कुछ देर के लिए ले जाऊं क्या?"
"क्यों सुबह सुबह कहां जाएगा?"
" वह छोड़ ना बाद में बताऊंगा"
"ठीक है ले जा पर तेल फुल करा देना…" विकास ने राजदूत की चाबी सोनू को पकड़ते हुए कहा।
सोनू बेहद प्रसन्न हो गया वह फटाफट मन में ढेर सारी उमंगे लिए तैयार होने लगा उसने अपना खूबसूरत सा पैजामा कुर्ता पहना और कुछ ही देर में राजदूत की सवारी करते हुए लाली के दरवाजे पर खड़ा हार्न बजा रहा था...
लाली उस हॉर्न की आवाज सुनकर दरवाजे पर आई और अपने भाई सोनू को राजदूत फटफटिया पर बैठा देखकर बेहद प्रसन्न हो गई और उसे देखकर मुस्कुराते हुए बोली "अरे सोनू यह किसकी फटफटिया है? अंदर आ…"

शेष अगले भाग में…
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लाली को प्रसन्न देखकर सोनू की बांछें खिल उठीं। वह फटाफट अपनी फटफटिया से नीचे उतरा और मन में उमंगे लिए लाली के घर की तरफ तेज कदमों से चल पड़ा उसके मन में सिर्फ और सिर्फ एक ही ख्याल आ रहा था कि हे भगवान राजेश जीजू घर पर ना हो.

नियति मुस्कुरा रही थी जिस व्यक्ति ने लाली और सोनू को करीब लाने में सबसे अहम भूमिका अदा की थी सोनू अपनी अज्ञानता वश उसकी उपस्थिति को अवांछित मान रहा था.

परंतु मन का चाहा कहां होता है। फटफटिया की आवाज राजेश ने भी सुनी थी और लाली का संबोधन भी वह भी हॉल में आ चुका था जैसे ही सोनू लाली के करीब आया राजेश ने कहा

"अरे वाह साले साहब आज तो फटफटिया में….. कहां लॉटरी लग गई?"

सोनू केअरमानों पर घड़ों पानी फिर गया.

"नहीं. जीजाजी , यह मेरे दोस्त की है कुछ काम से शहर आया था सोचा आप लोगों से मिलता चलूं"

"सच बताना मुझसे या अपनी लाली दीदी से?"

सोनू पूरी तरह झेंप गया परंतु लाली ने बात संभाली


"आपका क्या है आप तो दिन रात ट्रेन में ही गुजारते हैं मेरा भाई कभी-कभी आकर हम सबको खुश कर देता है"

सोनू मुस्कुराने लगा उसने राजेश के चरण छुए और फिर लाली दीदी के। लाली ने फिर उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया यदि राजेश उस हाल में ना होता तो सोनू के हाथ निश्चय ही लाली की पीठ पर अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे होते और इन दोनों के बीच दूरियां कुछ और कम होती लाली के तने हुए स्तन सोनू के सीने से सट कर चिपटे हो चुके होते।

तभी लाली का पुत्र राजू सोनू के पास आ गया। सोनू ने उसे अपनी गोद में उठाया और कुर्ते की जेब से दो लॉलीपॉप निकालकर उसके हाथों में दे दिया। राजू ने सोनू के गालों पर चुंबन दिया। एक पल के लिए सोनू को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे लाली के कोमल होंठ उसके गालों से हट गए। सोनू की स्थिति सावन के अंधे जैसी हो गई थी उसे हर जगह सिर्फ और सिर्फ लाली के खूबसूरत कोमल अंग और दिखाई पड़ रहे थे.

लाली ने फटाफट चाय बनाई और हॉल में बैठकर अपने दोनों मालियों के साथ चाय पीने लगी। सोनू की नजरें झुकी हुई थीं और राजेश अपनी आंखों के सामने नियति द्वारा मिलाए गए तो अद्भुत प्रेमियों को एक साथ देख रहा था। सोनू जैसे बलिष्ठ और मजबूत युवा को लाली जैसी गदराई हुई युवती के साथ देख कर राजेश भाव विभोर हो गया। मन ही मन हुआ उन दोनों को संभोग अवस्था में देखने लगा। लाली ने उसकी मनोदशा पढ़ ली और बेहद प्यार से बोली

"कहां अपनी फटफटिया में खो गए चाय पी लीजिए चाय ठंडी हो जाएगी"

राजेश अपनी ख्यालों से बाहर आया और बोला

"तुम शंकर जी के मंदिर जाने वाली थी ना जाओ आज तो तुम्हारा भाई फटफटिया लेकर आया है उसी के साथ घूम आओ"

"और घर का काम धाम कौन करेगा आपको ड्यूटी भी तो जाना है"

"अरे तुम तैयार होकर जल्दी चली जाओ आज सब्जी मैं बना दूंगा तुम आकर रोटी सेक लेना और बाकी काम बाद में हो जाएगा और फिर फटफटिया रोज रोज थोड़ी ही आएगी"

अभी कुछ देर पहले राजेश की उपस्थिति को देखकर सोनू जितना निराश हुआ था राजेश के प्रस्ताव को सुनकर वह उतना ही प्रसन्न हो गया। उसने राजेश की हां में हां मिलाते हुए कहा

"चलिए दीदी आप को घुमा लाता हूं"

सोनू के साथ फटफटिया पर बैठने की बात सोच कर लाली के चेहरे पर शर्म की लालिमा दौड़ गई वह अपनी भावनाएं छुपाते हुए बोली

"तू मोटरसाइकिल चलाना कब सीख गया मुझे गिरा तो नहीं देगा"

"नहीं दीदी मैं चला लेता हूं"

तभी राजू भी जाने की जिद करने लगा

"नहीं बेटा अभी मम्मी को जाने दो जब मैं फटफटिया लाऊंगा तब उस पर बैठना"

सोनू एक बार फिर राजेश के प्रति कृतज्ञ हो गया वह अपनी किस्मत पर नाज कर रहा था कि आज सब कुछ उसके मनोमुताबिक हो रहा था। उसने अपनी खुशी पर काबू रखते हुए चाय के कब को उठाकर किचन में ले जाते हुए कहा.

"दीदी फटाफट तैयार हो जाइये"..

जितना उत्साह सोनू के मन में था लाली भी उतनी ही खुश थी. वह फटाफट अपने कमरे में जाकर अपना अधोवस्त्र लिया और उसे अपनी नाइटी के अंदर छुपा कर हाथ में पकड़े हुए बाथरूम में प्रवेश कर गयी। उसने अपनी पेंटी और ब्रा को सोनू की कामुक नजरों से बचा लिया था। अजब दुविधा में थी लाली एक तरफ तो वह अपना सर्वस्व निछावर करने को तैयार थी दूसरी तरफ उन अंतर्वस्त्रों को नाइटी के बीच में लपेट कर उन्हें छुपा रही थी.

बाथरूम से पानी गिरने की आवाजें आने लगी सोनू के मन में लाली के नंगे और भरे हुए शरीर के दृश्य घूमने लगे। लाली को नहाते हुए तो वह पहले भी एक बार देख चुका था पर नारी रूप के दिव्य दर्शन उसे नहीं मिल पाए थे। पिछली बार उसे लाली का शरीर उसे साइड से दिखाई दिया था. वह अब लाली को साक्षात नग्न देखना चाहता था वह भी वस्त्र विहीन।

राजेश को भी बाथरूम से आ रही आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी हाल में शांति की वजह से यह आवाज और भी साफ थी। राजेश ने सोनू से यूं ही बातें शुरू कर दी।

"मुझे भी मोटरसाइकिल चलाना सीखना है"

"हां जीजा जी आप भी खरीद लीजिए मैं आपको सिखा दूंगा"

जीजा साले की बातें चल रही थी. तभी मदमस्त लाली अपने पूर्ण यौवन को नाइटी के आवरण से ढके हुए बाहर आई और लक्स साबुन की खुशबू बिखेरती हुई सोनू से सटते हुए अपने कमरे में चली गई। सोनू भीनी भीनी खुशबू से मस्त हो गया परंतु उसके नथूने उसी मदन रस की सुगंध को खोज रहे थे जो आज से कुछ दिनों पहले सोनू के उंगलियों ने लाली की बुर में प्रवेश कर चुराया था।

कमरे में जाने के बाद लाली तैयार होने लगी तभी उसनें आवाज दी

"ए जी सुनिए"

"क्या हुआ? आता हूं" राजेश उठकर कमरे के अंदर जाने लगा

दरवाजा सटाने के बाद राजेश ने पूछा

"क्या हुआ?"

"बताइए ना कौन सी साड़ी पहनु"

"अरे साड़ी मत पहनो पहली बार फटफटिया में बैठोगी कहीं साड़ी फस फसागई तो लेने के देने पड़ जाएंगे"

"तो फिर क्या पहनूं?" लाली चिंता में पड़ गई

"अरे तुम्हारे पास एक सलवार कमीज भी थी ना जो तुम कभी-कभी पहनती थी"

"नहीं नहीं मैं वह नहीं पहनूंगी अब वह थोड़ा छोटी भी होती है और पूरे बदन पर कस जाती है"

राजेश के मन मे लाली का कसा हुआ शरीर घूम गया।

"अरे तुम भी तो दुबली हो गई हो एक बार पहन के तो देखो" राजेश की तारीफ ने लाली में उत्साह भर दिया।

लाली ने अलमारी से मैरून कलर की कुर्ती और चूड़ीदार पैजामा निकाला और पहनने लगी। राजेश का लंड खड़ा हो चुका था। अपनी बीवी को उस खूबसूरत वस्त्र में देख वह मदहोश हो रहा था। इसके पहले की लाली कुछ सोच पाती राजेश पीछे से आया और उसकी दोनों भरी-भरी चुचियों अपनी हथेलियों से दबाने लगा। उसका लण्ड लाली के भरे हुए नितंबों पर सट रहा था लाली ने शर्माते हुए कहा..

"यह तो पूरे बदन से चिपक सा गया है देखिए ना चुचियां कितनी निकल कर बाहर आ गई हैं।"


अपने निप्पलों को दबाते हुए उसने फिर कहा

"और यह दोनों मुए... लग रहा है कुर्ती फाड़ कर बाहर आ जाएंगे."


राजेश ने लाली की मदद की और कुर्ती को थोड़ा सामने खींचकर उसके निप्पलों को छुपा दिया परंतु लाली की भरी भरी चुचियों को छुपा पाना असंभव था। और राजेश तो वैसे भी उन्हें छुपाना नहीं चाहता था। चाहती तो लाली भी यही थी पर स्त्रीसुलभ लज्जा उसमे अभी भी कायम थी।

कुर्ती लाली के शरीर से उसी तरह चिपक गई थी जैसे चांदी का अर्क मिठाई को ढक लेता है परंतु मिठाई का आकार छुपाने में नाकाम रहता है। लाली का सपाट पेट उसकी चुचियों और जांघों के बीच बेहद आकर्षक लग रहा था । कुर्ती लाली के भरे भरे नितंबों को बड़ी मुश्किल से ढक पा रही थी लाली अपने हाथों को पीछे करती और उसे खींचकर नीचे करने का प्रयास करती परंतु उसे ज्यादा सफलता नहीं मिलती।

लाली उदास हो गई उसने सलवार कुर्ती पहनने का विचार त्याग दिया और बोली मैं साड़ी ही पहन लेती हूं यह कुर्ती वास्तव में छोटी है


इससे पहले की लाली का विचार परिवर्तित होता राजेश ने सोनू को बुलाया…

"तुम ही समझाओ अपनी दीदी को साड़ी पहनकर फटफटिया में कैसे बैठेंगी?"

सोनू कमरे में आया और अपनी लाली दीदी का यह रूप देख कर दंग रह गया. लाली को उसने पिछले कई वर्षों में कभी सलवार कुर्ती में नहीं देखा था।

वह लाली की तुलना अपनी कॉलेज की लड़कियों से करने लगा। राजेश ने सोनू की मनोदशा पढ़ ली उसने एक बार फिर कहा


"देखो ठीक तो लग रहा है पर ये परेशान है"

"सच में दीदी, जीजा जी ठीक कह रहे आप बेहद सुंदर लग रही हैं"

"चल झूठे तू भी इनका साथ दे रहा है" लाली ने शर्माते हुए कहा

"नहीं दीदी सच में"

राजेश ने इस बातचीत को विराम देते हुए कहा

"अब तुम लोग जाओ और जल्दी वापस आना मुझे ड्यूटी भी जाना है।"

लाली ने अपने बाल संवारे और झीना सा जार्जेट का दुपट्टा अपने कंधे पर डाला और अपने भरे भरे नितंब हिलाते हुए दरवाजे से बाहर निकल आयी और आस पड़ोस की महिलाओं से नजर बचाती हुयी खूबसूरत लाली अपने युवा सोनू के साथ मजबूत मोटरसाइकिल पर बैठकर शंकर जी के दर्शन के लिए निकल पड़ी।

मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने के पश्चात राजेश ने सोनू से कहा

"अपनी दीदी को मंदिर के बाहर भी घुमा देना पिछली बार वह सिर्फ गर्भ ग्रह के दर्शन ही कर पाई थी।"

सोनू उस समय तो पूरे उन्माद में था उसने राजेश की बात सुनी तो जरूर पर समझ नहीं पाया

"हां जीजाजी, पूरा घुमा दूंगा कहकर उसने बात बंद की और मोटरसाइकिल आगे बढ़ा दी"

नियति भी पेड़ की डाली से उड़ते हुए मोटरसाइकिल का पीछा करने लगी आस्था और वासना दोनों अपनी अपनी जगह सर उठा रहे थे ……

उधर साधुओं की टोली और डुगडुगी वाला सुगना के मायके पहुंच चुके थे। बच्चों की टोली उनके पीछे पीछे चल रही थी डुगडुगी की आवाज सुनकर जाने बच्चों के पैरों में पंख लग जाते थे। सब अपने घर से वैसे ही निकलते जैसे स्कूल की घंटी के बाद बच्चे भागते हैं।

कुछ ही देर में गांव की गलियां के दोनों तरफ बच्चों और घूंघट ली हुई महिलाएं दिखाई पड़ने लगती। साधु लोग उस महोत्सव के प्रचार प्रसार से संबंधित पोस्टर घरों पर चिपकाते और सभी को हाथ जोड़कर उस उत्सव में शामिल होने का आमंत्रण देते।

सोनी और मोनी पोस्टर में दिख रहे मेले के दृश्यों को टकटकी लगाकर देख रही थी। वो लकड़ी के बड़े बड़े झूले जिसमें कुल 4 खटोले बांधे हुए थे। उसमें बैठे युवक और युवती को देखकर सोनी के मन में प्रेम की हिलोरे उठने लगीं। अभी उनकी जांघों के बीच की कली पूरी तरह खिली भी नहीं थी परंतु पुरुष के समीप आने पर उतपन्न होने वाली संवेदनाएं उनके दिलो-दिमाग पर छा चुकी थीं। स्त्री और पुरुष का भेद और जांघों के बीच का आकर्षण वह भली-भांति समझने लगी थी।

"क्या देख रही है खटोले में…..साथ बैठने वाला ?"

मोनी ने सोनी के पेट पर चोटी काटते हुए बोला..

अपनी चोरी पकडे जाने पर सोनी शर्मा गई और उसने मोनी से कहा

"तेरा मन नहीं करता क्या?"

"जब भगवान ने मुंह दिया है तो खाना भी देगा मैं भगवान से मांगूंगी की तेरी जांघों के बीच की आग जल्दी बुझे"

मोनी की बात सुनकर सोनी ने उसे दौड़ा लिया और दोनों भागती भागती अपनी मां पदमा के पास आ गयीं जहां पदमा की सहेली पुलिया बनारस महोत्सव के बारे में ही बातें कर रहीं थी।

जाने इसस महोत्सव में क्या बात थी कि गांव के अधिकतर लोग वहां जाने की बातें कर रहे थे कोई 2 दिनों के लिए तो कोई 4 दिनों के लिए पर मन में ललक सभी के थी।

उधर लाली सोनू की मोटरसाइकिल पर दोनों पैर एक तरफ करके बैठी सोनू जैसे अकुशल चालक के लिए यह एक और कठिनाई थी जैसे ही वह लाली की रेलवे कॉलोनी से बाहर आया उसने मोटरसाइकिल रोकी और लाली से कहा

"दीदी आप दोनों पैर फैला कर बैठ जाइये गाड़ी का बैलेंस सही रहेगा?"

राजदूत मोटरसाइकिल कुछ ज्यादा ही ऊँची थी। लाली उस पर बैठने का प्रयास करने लगी परंतु ऊंचाई की वजह से वह अपना पैर दूसरी तरफ नहीं ले जा रही एक तो उसकी चूड़ीदार एक तो पहले से तंग थी दूसरी तरफ पैर को ऊंचा उठाना एक नई मुसीबत आ गई थी।

सोनू के साहस देने पर लाली में अपना पैर थोड़ा और ऊंचा किया और उसका पैर सीट के दूसरी तरफ आ तो गया परंतु "चर्र" एक अवांछित ध्वनि लाली के कानों तक पहुंची। मोटरसाइकिल पर सफलतापूर्वक बैठ जाने की खुशी में लाली उस ध्वनि को नजर अंदाज कर गई परंतु जैसे ही उसके नितंबों ने सीट को छुआ लाली घबरा गई। सीट की ठंडक उसकी बुर के होठों पर महसूस हुई।

लाली को अब जाकर समझ आ चुका था उसकी सलवार का जोड़ पैर के ज्यादा फैलाए जाने की वजह से टूट गया था। और उसकी सलवार थोड़ा फट गई थी सुबह जल्दी बाजी में उसने अपनी ब्रा तो पहन ली थी पर पेंटी पहनना जरूरी नहीं समझा था। घर में वैसे भी उसे पेंटी पहनने की आदत कम ही थी।

लाली के बैठ जाने के पश्चात गाड़ी का बैलेंस बिल्कुल सही हो गया था सोनू की मोटरसाइकिल तेजी से बनारस की सड़कों को रौंदकर हुए शंकर मंदिर की तरफ बढ़ रही थी। लाली अपनी सलवार फटे होने के विचारों से अभी भी मुक्त नहीं हो पा रही थी बनारस की सर्द हवाएं जब उसके बालों को उड़ाने लगी तब उसने अपनी बुर पर से ध्यान हटाकर बालों पर लगाया और उसे व्यवस्थित करने लगी। तथा पीछे से चीखते हुए बोली

"सोनू धीरे चला"

"दीदी बहुत मजा आ रहा है चलाने दो ना"

आनंद तो लाली को भी उतना ही आ रहा था उसने जो सपने अपनी किशोरावस्था में देखे थे वह आज पहली बार पूरे हो रहे थे।

सोनू अपनी रफ्तार में यह भूल बैठा की रोड पर स्पीड ब्रेकर भी होते हैं अपनी लाली दीदी को पीछे बैठा कर वह स्वयं को राजेश खन्ना समझ रहा था स्पीड ब्रेकर ने लाली को उछाल कर उसकी पीठ पर लगभग गिरा दिया।

लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां उसकी पीठ पर चपटी हो गई। लाली के इस तरह उछलने से सोनू की मोटरसाइकिल लगभग अनियंत्रित सी हो गई यह तो शंकर जी की लाली पर कृपा थी कि वह दोनों गिरे नहीं और सोनू ने अपनी मोटरसाइकिल सकुशल रोक ली।

लाली ने सोनू को डांटते हुए कहा

"मैं कहती थी ना की धीरे चला…."

अपनी प्रेमिका से डांट खाकर सोनू को अच्छा तो नहीं लगा परंतु सोनू ने अपना चेहरा पीछे घूम आया और लाली को प्यार भरी निगाहों से देखते हुए बोला

"ठीक है बाबा अब धीरे चलाऊगा"

लाली को भी अपनी गलती का एहसास हो चला था शायद उसने कुछ ज्यादा ही देश में वह बात कह दी थी सोनू के मासूम चेहरे और कोमल गाल को अपने बेहद समीप देखकर लाली का प्यार जागृत हो उठा उसने उसके गालों पर चूमते हुए कहा

"कोई बात नहीं सोनू बाबू अब धीरे चलना"

मोटरसाइकिल ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ ली..

बाली की बुर को अब भी मोटरसाइकिल की सीट का एहसास हो रहा था। अपने हाथों से सलवार के कपड़े को घसीट कर वह अपनी बुर के ऊपर ला रही थी परंतु कुछ ही दूर चलने के पश्चात कपड़ा वापस अपनी जगह पर आ जा रहा था और सीट उसकी बुर को फिर चुमने लगती थी।

लाली ने अपना ध्यान शंकर मंदिर की तरफ लगाया और इस विषम परिस्थिति को भूलने का प्रयास करने लगी। कुछ ही देर में सोनू की मोटरसाइकिल शंकर मंदिर के बाहर खड़ी थी। मोटरसाइकिल से उतरते वक्त एक बार फिर चर्र की आवाज हुई हालांकि यह आवाज पिछली बार की तुलना में कम थी परंतु इसने सलवार के जोड़ को थोड़ा और फैला दिया। लाली ने अपनी कुर्ती को व्यवस्थित किया और दोनों भाई बहन मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगे लाली आगे आगे और पीछे पीछे। रेलिंग लगे होने की वजह से एक समय पर एक आदमी ही चल सकता था। सोनू जानबूझकर पीछे हट गया और लाली ने पहली सीढ़ी चढ़ी लाली आगे-आगे चढ़ती गई और सोनू उसके पीछे पीछे। सोनू ने जानबूझकर लाली और अपने बीच तीन चार सीढ़ियों का फासला बना लिया था।

सोनू तो दूसरे ही नशे में था अपने आगे सीढ़ी चढ़ती हुई लाली के नितंबों को देखकर उसका ध्यान आस्था से हटकर वासना पर केंद्रित हो गया था लाली के बड़े-बड़े भरे हुए नितम्ब सोनू की निगाहों के सामने थिरक रहे थे लाली की मोटी और गदराई हुई जाँघों ने नितंबों को सहारा दिया हुआ था …

"लाली ने पीछे मुड़कर कहा साथ साथ चल ना पीछे क्यों चल रहा है"

लाली ने खुद को सोनू की निगाहों से देख लिया था उसे एहसास हो गया था कि सोनू उसके नितंबों की चाल को देख रहा है..

"हां दीदी" सोनू थोड़ा झेंप गया परंतु उसने उनके बीच का फासला तेजी से कम किया और दोनों अपनी अपनी मनोकामनाएं लिए शंकर मंदिर मैं प्रवेश कर चुके थे।

शंकर भगवान की पूजा अर्चना करने के पश्चात दोनों भाई बहन ने अपनी अपनी मनोकामना उसे भगवान को अवगत कराया लाली की मनोकामना में सोनू से मिलन दूसरे स्थान पर था परंतु सोनू के मन में सिर्फ और सिर्फ इस समय एक ही मनोकामना थी और वह थी लाली दीदी के साक्षात दर्शन और उनसे मिलन।

मंदिर से बाहर आने के पश्चात रेलिंग का सहारा लेकर सोनू और लाली खड़े हो गए तथा मंदिर के पीछे पर ही नदी का खूबसूरत दृश्य देखने लगे लाली ने अपने हाथ में लिए सिंदूर से सोनू के माथे पर तिलक लगाया और प्रसाद खिलाया।

यह मंदिर चोल वंश के राजाओं ने बनाया था जिसमें अंदर कर ग्रह में शंकर भगवान की मूर्ति थी परंतु बाहर में विभिन्न कलाकृतियां बनाई गई थी उनमें से कुछ कलाकृतियां काम कला को प्रदर्शित करती हुई भी थी।

इन कलाकृतियों में खजुराहो जैसे आसन तो नहीं दिखाए गए थे परंतु फिर भी उसका कुछ अंश अवश्य मौजूद था मंदिर के बाहरी भाग को पर्यटन के हिसाब से भी सजाया गया था जिनमें आस्था न थी वो लोग भी इस मंदिर के बाहरी भाग में लगी हुई मूर्तियों को देखने आया करते थे और कुछ ठरकी किस्म के व्यक्ति कलाकृतियों में छुपी हुई कामवासना को देखकर अपनी उत्तेजना भी जागृत किया करते थे।

लाली को इस बात की जानकारी न थी परंतु सोनू तो अब बनारस का जानकार हो गया था हॉस्टल के लड़कों ने उसका सामान्य ज्ञान बढ़ा दिया था लाली दीदी के साथ शंकर मंदिर जाने की बात सुनकर उसके लण्ड ने तुरंत सहमति दे दी थी।

सोनू को राजेश की बात याद आई जो उन्होंने घर से निकलते वक्त कही थी कि अपनी दीदी को मंदिर का बाहरी भाग भी दिखा देना। क्या जीजाजी चाहते थे कि मैं दीदी को इन कामकला की मूर्तियों को दिखाऊं..क्या उन्हें इस मंदिर की इन कलाकृतियों की जानकारी थी?

"कहां खो गया सोनू" लाली ने आवाज लगाई

"कुछ नहीं दीदी चलिए आपको मंदिर का बाहरी भाग दिखाता हूं"

मंदिर के पीछे एक काम पिपासु युवक और युवती की तस्वीर थी परंतु उसमें कोई नग्नता न थी कुछ लोग उन्हें किसी अनजान भगवान की मूर्ति मानते थे परंतु जानकार उसकी हकीकत जानते थे।

सोनू के मन में शरारत सूझी उसने जमीन पर अपने दोनों घुटने टिकाए और सर को सजदे की तरह जमीन से छुआ दिया कुछ सेकंड उसी अवस्था में रहकर वह उठ खड़ा हुआ।

लाली ने पूछा


"यह कौन से भगवान है"

" पहले प्रणाम कर लीजिये फिर बताता हूं"

लाली में देर ना की और सोनू ने जिस तरह प्रणाम किया था उसी तरह प्रणाम करने लगी। लाली की कुर्ती जो नितंबों को ढकी हुई थी वह हवा के झोंके से उड़ गई और लाली की फटी हुई सलवार के बीच से उसकी सुंदर और कसी हुई बुर सोनू की निगाहों के ठीक सामने आ गई जो लाली के ठीक पीछे खड़ा उसके नितंबों की खूबसूरती निहार रहा था। सोनू ने तो सिर्फ उसके नितंबों को जी भर कर देखने की कल्पना की थी परंतु उसकी जांघों के बीच छुपा हुआ अनमोल खजाना सोनू की निगाहों के सामने आ गया था। फटी हुई सलवार ने अपना कमाल दिखा दिया था ।

उधर लाली को अब जाकर एहसास हुआ कि वह लगभग डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। बाहर बहती हवा ने जब उसके बुर के होठों को छुआ तब जाकर लाली को एहसास हुआ कि उसकी सलवार फटी हुई है वह तुरंत ही झट से उठ कर खड़ी हो गई और पीछे मुड़कर देखा सोनू की निगाहें उसके नितंबों के साथ-साथ ऊपर उठ रही थी।

लाली शर्म से पानी पानी हो गई उसे पता चल चुका था की सोनू ने उसकी नंगी बुर के दर्शन कर लिए थे…

शेष अगले भाग में
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लाली के घर से जाने के बाद सोनू का दिल बल्लियों उछल रहा था यह पहला अवसर था जब किसी लड़की या युवती ने उसके कुंवारे लंड को मुखमैथुन द्वारा उत्तेजित और शांत किया था। और तो और वह युवती उसकी मुंह बोली बहन लाली थी।
लाली और सोनू का रिश्ता बचपन से ही था उसकी लाली दीदी कब उसके सपनों की मलिका हो गई थी वह खुद भी नहीं जानता था। जैसे-जैसे उसकी जांघों के बीच बाल आते गए लाली दीदी के प्रति उसका नजरिया बदलता गया परंतु प्रेम में कोई कमी न थी। पहले भी वह लाली से उसी तरह प्रेम करता था जितना वह अपने विचारों में परिवर्तन के पाने के बाद करने लगा था अंतर सिर्फ यह था की उस बचपन के प्यार में दिल और दिमाग सक्रिय थे परंतु अब सोनू का रोम रोम लाली के नाम से हर्षित हो जाता खासकर उसका लण्ड….
सोनू के मन में जितनी इज्जत और प्यार अपनी दीदी सुगना के प्रति था जो पूरी तरह वासना मुक्त था वह उतना ही प्यार अपनी लाली दीदी से भी करने लगा था। नियति कभी-कभी सोनू के मन में सुगना के प्रति भी उत्तेजना जागृत करने का प्रयास करती परंतु विफल रहती।
लाली भी अपने पति राजेश का सहयोग और प्रोत्साहन पाकर लाली सोनू के करीब आती गई और पिछली दो अंतरंग मुलाकातों में लाली ने स्वयं आगे बढ़ कर सोनू की हिचक को खत्म किया परंतु सोनू अब भी उसका भाई था और दिन के उजाले में उससे एक प्रेमी की तरह बर्ताव करना न तो लाली के बस में था और न हीं सोनू के।
सोनू की खुशी उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। लाली की जगह यदि किसी दूसरी युवती ने सोनू का लंड चूसा होता तो सोनू अब तक अपने कई करीबी दोस्तों को उस का किस्सा सुना चुका होता। अपने जीवन में मिली यह खुशी सोनू के लिए बेहद अहम थी परंतु उसका दुर्भाग्य था कि वह यह बात किसी से साझा नहीं कर सकता था। सभी की निगाहों में अभी भी यह पाप की श्रेणी में ही था।
सोनू को इस तरह हॉस्टल की गैलरी में खुशी-खुशी चहकते देखकर उसके दोस्त विकास ने पूछा...
"क्या बात है बनारस का कर्फ्यू सबसे ज्यादा तुझे ही रास आया है बड़ा चहक रहा है"
"लगता है साले को कोई माल मिली है.. बता ना भाई क्या बात है" विकास के साथी ने सोनू के पेट में गुदगुदी करते हुए पूछा
सोनू के पेट में दबी हुई बात उछल कर गले तक आ गयी जब तक कि वह कुछ बोल पाता विकास ने दोबारा कहा..
"तू तो अपनी लाली दीदी के घर गया था ना?"
सोनू एक बार फिर सतर्क हो गया पिछले कुछ पलों में उसने अपनी विजय गाथा साझा करने की सोच लिया था परंतु विकास के "लाली दीदी" संबोधन पर उसने वह विचार त्याग दिया।
"कुछ नहीं यार अपने भाग्य में लड़की कहां? जब तक हाथ की लकीरें लंड पर नहीं उतर आए तब तक यूं ही किताबों में सर खपाना है"
तीनों दोस्त आपस में बात करते हुए हॉस्टल से नीचे उतरे। विकास की मोटरसाइकिल राजदूत नीचे ही खड़ी थी। विकास ने कहा चल ना बाजार से मेरी किताब लेकर आते हैं। विकास के दोस्त ने पढ़ाई का हवाला देकर क्षमा मांग ली विकास में सोनू की तरफ देखा…
सोनू ने कहा
"भाई मैं चलाऊंगा….."
सोनू ने विकास की राजदूत चलाना सीख तो ली थी परंतु वह अभी पूरी तरह दक्ष नहीं था पर हां यदि सड़क पर भीड़ भाड़ ज्यादा ना हो तो उसे बाइक चलाने में कोई दिक्कत नहीं थी।
विकास ने उसकी बात मान ली और सोनू सहर्ष बाजार जाने को तैयार हो गया।
सोनू ने राजदूत स्टार्ट की और एक हीरो की भांति राजदूत पर बनारस शहर की सड़कों को रोते हुए बाजार की तरफ बढ़ चला। बहती हवा के प्रभाव से सोनू के खूबसूरत बाल लहरा रहे थे और मन में उसकी भावनाएं भी उफान पर थीं। काश उस राजूदूत पर पीछे लाली दीदी बैठी होती….
रात में हॉस्टल के खुरदुरे बिस्तर पर लेटे हुए सोनू को लाली के कोमल बदन की गर्मी याद आ रही थी। सोनू के लंड में अब भी रह-रहकर कसक उठ रही थी। लाली के होठों और मुंह की गर्मी ने सोनू के दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ दी थी वह उन यादों के सहारे कई दिनों तक अपना हस्तमैथुन कर सकता था…
लाली की यादों ने सोनू की हथेलियों को लण्ड का रास्ता दिखा दिया और सोनू की मजबूत हथेलियां उस कोमल पर तने हुए लंड का मान.मर्दन करनें लगीं….
उधर सीतापुर में सुगना की दोनों बहने सोनी और मोनी अपनी युवावस्था की दहलीज पर खड़ी अपने शरीर में हो रहे बदलाव को महसूस कर रही थीं।समय के साथ साथ उन्हें अपने शरीर में तरह तरह के बदलाव महसूस हो रहे थे। जितना बदलाव उनके शरीर में हो रहा था उतना ही उनकी भावनाओं और लोगों को देखने के नजरिये में।
अपनी बहन सुगना के पुत्र सूरज के जादुई अंगूठे से खेलते और उसके परिणाम को देखने और उसे शांत करने की तरकीब उन दोनों की समझ के परे थी परंतु दोनों बहनों ने उसे न सिर्फ अपनी आंखों से देखा था बल्कि महसूस किया था वह भी एक नहीं दो दो बार।
दोनों ही बहनें घर के कामकाज में पूरी तरह दक्ष थी पढ़ाई लिखाई उनके बस की बात न थी और नहीं वो इसके लिए बनी थीं। ऊपर वाले ने उन्हें अद्भुत कद काठी और सुंदरता दी थी जिससे आने वाले समय में वह न जाने कितने पढ़े लिखे और काबिल लड़के उनकी जाँघों के बीच अपनी सारी विद्वता अर्पित करने को तत्पर रहते।
दोनों अपनी मां पदमा का हाथ बतातीं और अपने शरीर का ख्याल रखतीं। दोनों खूबसूरत कलियां फूल बनने को लगभग तैयार थीं। ऊपर और नीचे के होंठ चुंबनों के लिए तरस रहे थे। जब भी वह दोनों एक दूसरे के आलिंगन में आती दोनों के मन में ही कसक उठती पर वह कसक मिटाने वाला भी बनारस महोत्सव की राह देख रहा था।
इधर सोनी मोनी जवानी की दहलीज लांघने वाली थी उधर सुगना की जवानी हिलोरे मार रही थी। पिछले तीन-चार वर्षो से वह शरीर सिंह की मजबूत बांहों और लण्ड का आनंद ले रही थी परंतु पिछले कुछ महीनों से उसकी जांघों के बीच गहराइयों में सूनापन था। बुर के होठों पर तो सरयू सिंह के होंठ और जिह्वा अपना कमाल दिखा जाते परंतु बुर की गहराइयों में लण्ड से किया गया मसाज सुगना को हमेशा याद आता। उसके वस्ति प्रदेश में उठ रही मरोड़ को सिर्फ वही समझ सकती थी या फिर इस कहानी की महिला पाठिकाएँ.
सुगना अपने प्रार्थनाओं में सरयू सिंह के स्वस्थ होने की कामना करती। नियति सुगना की भावनाओं में सरयू सिंह के प्रेम और उसके स्वार्थ दोनों को बराबरी से आंकती। सरयू सिंह के चेकअप का वक्त भी नजदीक आ रहा था सुगना को पूरी उम्मीद थी कि इस बार डॉक्टर उन्हें इस सुख से वंचित रहने की सलाह नहीं देगा।
सरयू सिंह अब पूरी तरह स्वस्थ थे वह खेतों में काम करते वह हर कार्य करने में सक्षम थे यदि उन्हें मौका दिया जाता तो वह सुगना की क्यारी को भी उसी प्रकार जोत सकते थे जैसा वह पिछले कई वर्षों से जोतते आ रहे थे परंतु कजरी और सुगना उन्हें डॉक्टर की सलाह का हवाला देकर रोक लेते थे।
जैसे-जैसे उनका जन्म दिन नजदीक आ रहा था उनकी उम्मीदें बढ़ती जा रही थी। वो सुगना की तरफ कामुक निगाहों से देखते और प्रत्युत्तर में सुगना अपनी आंखें नचा कर उन्हें अपने जन्मदिन की याद दिलाती। वह सरयू सिंह का जन्मदिन यादगार बनाने के लिए पूरी तरह मन बना चुकी थी।
परंतु सुगना जब जब सरयू सिंह की उस अंगूठी इच्छा के बारे में सोचती सिहर उठती वह कैसे उस मजबूत मुसल को उसका अपवित्र द्वार के अंदर ले पाएगी वह अपने एकांत के पलों में उस गुदा द्वार के कसाव और उसकी क्षमता का आकलन अपने हिसाब से करती जिस प्रकार कुंवारी लड़कियां पहली चुदाई को लेकर आशंकित भी रहती हैं और उत्तेजित भी रहती हैं वही हाल सुगना का भी था.
अपनी छोटी सी बुर से बच्चे को जन्म देने की बात याद कर सुगना के मन में विश्वास जाग उठा। एक वक्त वह था जब उसकी बुर में उसके बाबु जी की उंगली ने पहली बार प्रवेश किया था तब भी वह दर्द से चीख उठी थी परंतु आज उसे वह सहज प्रतीत हो रहा था। उसने मन ही मन सोच लिया जो होगा वह देखा जाएगा।
वैसे भी सुगना सरयू सिंह को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी उसे पता था की वह उनके दिल की रानी है वह उसे बेहद प्यार करते हैं वह उसे किसी भी हाल में कष्ट नहीं पहुंचाएंगे।
ज्यों ज्यों बनारस महोत्सव का दिन करीब आ रहा था सुगना और कजरी के उत्साह में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही थी। जाने सुगना को उस महोत्सव से क्या उम्मीदें थीं। परंतु अपनी पुरी (उड़ीसा) यात्रा के पश्चात यह पहला अवसर होता जब वह घर से बाहर अपने पूरे परिवार के साथ रहती और उस उत्सव का आनंद लेती।
वैसे भी घर के काम धाम और खेतीबाड़ी से दूर शहर की हलचल भरी जिंदगी में कुछ वक्त बिताने का अपना ही आनंद था इस महोत्सव में लगे हुए मेले सुगना को विशेष रूप से आकर्षित कर रहे थे। ग्रामीण समाज में मेलों का अपना आकर्षण है। इन मेलों में कई तरह की ऐसी वस्तुएं मिल जाती हैं जो आप पूरी उम्र खोजते रहे आप को नहीं मिली मिलेंगी। बनारस शहर में होने वाले इस भव्य महोत्सव में अलग-अलग विचारधारा और संस्कृति के लोगों का यह समागम निश्चय ही दर्शनीय होगा।
सरयू सिंह ने भी तैयारी में कोई कमी नहीं रखी सुगना और कजरी ने जो जो कहा वह बाजार से लाते गए उन्हें अब बेसब्री से अपने जन्मदिन का इंतजार था उस दिन एक बार फिर वह सुगना के साथ जी भर कर चुदाई करते और अपने जीवन में पहली बार गुदामैथुन का आनंद लेते।
सरयू सिंह की निगाहें जब भी सुगना से मिलती उनकी निगाहों में एक ही मूक प्रश्न होता
"ए सुगना मिली नु?"
और सुगना के चेहरे और हाव-भाव एक ही उत्तर दे रहे होते..
" हां बाबूजी…"
सुगना के लिए यह संबोधन अब शब्दार्थ को छोड़कर बेहद अहम हो चला था वह जब भी उनकी गोद में रहती चाहे कपड़ों के साथ या बिना कपड़ों के दोनों ही समय यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगता। नग्न अवस्था में दोनों के बीच उम्र का यह अंतर उनके बीच पनपे प्यार ने पूरी तरह मिटा दिया था विशेषकर सुगना के मन ने। परंतु सरयू सिंह कभी उसे अपनी प्यारी बहू के रूप में देखते और कभी वासना और गदराए यौवन से भरी हुई कामुक युवती के रूप में तो कभी अपनी ……..।
नियति ने सुगना और सरयू सिह में बीच एक अजब सा संबंध बना दिया था। एक उम्र के ढलान पर था और एक वासना और यौवन के उफान पर।
बनारस जाने की तैयारियों के दौरान लाली और कजरी ने अपने-अपने संदूको में पड़े अपने कपड़ों का मुआयना किया और उनमें से अच्छे वस्त्रों को छांट कर अलग किया ताकि उन्हें बनारस ले जा सके इसी दौरान सुगना की शादी की एल्बम बाहर आ गई जिसमें रतन और सुगना कुछ तस्वीरें थी..
कजरी इन तस्वीरों को लेकर देखने लगी। अपने पुत्र को देखकर उसकी आंखों में प्यार छलक आया उसने उसे सुगना को दिखाते हुए कहा
"सुगना बेटा देख ना फोटो कितना अच्छा आईल बा"
सुगना को हालांकि उस शादी से अब कोई औचित्य न था धीरे-धीरे अब वह उसे भूल चुकी थी पर रतन अब भी उसका पति था। कजरी के कहने पर उसने वह फोटो ली तथा अपनी किशोरावस्था के चित्र को देखकर प्रसन्न हो गई पर रतन की फोटो देखकर वह हंसने लगी और बोली…
"ई कतना पातर रहन पहले"
( यह कितने पतले थे पहले)
"अभी भी तो पतला ही बा मुंबई में जाने खाए पिए के मिले ना कि ना"
"नाम अब तो ठीक-ठाक हो गईल बाड़े"
सुगना ने जिस लहजे में यह बात कही थी कजरी खुश हो गई थी अपनी बहू के मुंह से अपनी बेटे की तारीफ सुनकर उसके मन में एक बार फिर आस जग उठी। काश... इन दोनों का रिश्ता वापस पति-पत्नी के जैसे हो जाता।
"जाने एक कर मती कैसे मरा गइल" कजरी में रतन को ध्यान रख कर यह बात कही
(पता नहीं कैसे इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई)
" मां ई में उनकर गलती ना रहे लइका उम्र में शादी ना करेंके"
कजरी सुगना की बातों को सुनकर बेहद प्रसन्न हो रही थी उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की सुगना रतन के पक्ष में बोल रही थी उसने सुगना को छेड़ते हुए कहा
" लागा ता हमार बेटा सुगना के पसंद आवे लागल बा"
सुगना ने अपनी बड़ी बड़ी आंखें नचाई और कजरी की चेहरे को घूरते हुए बोला
"हमरा राउर कुंवर जी ही पसंद बाड़े"
कजरी सरयू सिंह की मजबूत कद काठी के बारे में सोचने लगी जो निश्चय ही अभी भी रतन से बीस ही थी।
सुगना ने सटीक उत्तर देकर उस बातचीत को वहीं पर विराम लगा दिया था परंतु कजरी ने सुगना के मन में रतन की पिछली यादों को कुछ हद तक जीवित कर दिया था।
पिछली बार रतन ने आगे आकर उससे दोस्ती का हाथ बढ़ाया था परंतु सुगना से वह उस तरह होली नहीं खेल पाया था जिस प्रकार राजेश ने खेली थी। परंतु जिस प्रकार वह सूरज का ख्याल रखता था उसने सुगना का ध्यान अवश्य आकर्षित कर लिया था। सुगना बेफिक्र होकर सूरज को रतन के हवाले करती और अपनी रसोई के कार्यों में लग जाती सूरज भी रतन की गोद में ऐसे खेलता जैसे वह अपने पिता की गोद में खेल रहा हो। नियति आने वाले दिनों की कल्पना कर मुस्कुराती रही थी। कभी वह गिलहरी बन जाती और रतन की चारपाई के आगे पीछे घूम कर अपना ध्यान आकर्षित करती सूरज किलकारियां मारते हुए प्रसन्न हो जाता।
सुगना यह बात जानती थी की रतन की एक विवाहिता पत्नी है जो मुंबई में रहती है और रतन उससे बेहद प्यार करता है। सुगना को रतन की जिंदगी में दखल देने की न कोई जरूरत थी नहीं कोई आवश्यकता। उसके जीवन में खुशियां और जांघों के बीच मजबूत लंड भरने वाले सरयू सिंह अभी भी उसे बेहद प्यारे थे।।
साल में दो बार गांव आकर रतन सुगना से अपना रिश्ता बचाए हुए था सुगना के लिए इतना पर्याप्त था इसी वजह से समय के साथ उसने रतन के प्रति अपनी नफरत को बुलाकर उसे एक दोस्त की तरह स्वीकार कर लिया था।
उधर एक सुखद रात्रि को लाली को अपनी बांहों में समेटे हुए और चुचियाँ सहलाते हुए राजेश ने पूछा..
" क्या सच में उस दिन सोनू ने…." राजेश अपनी बात पूरी न कर पाया पर लाली समझ चुकी थी
" आपको चुचियों का स्वाद बदला हुआ नहीं लग रहा था?"
राजेश अपनी चाल में कामयाब हो गया था वह सोनू के बारे में बात करना चाह रहा था और लाली उसके शब्द जाल में आ चुकी थी।
"सोनू तो मालामाल हो गया होगा.."
"क्यों" लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए पूछा
"अपनी दीदी के कोमल हाथों को अपने लंड पर पाकर कौन मस्त नहीं होगा…."
लाली मन ही मन मुस्कुराने लगी उसने सोनू को जो सुख दिया था वह राजेश शायद अब तक न समझ पाया था। राजेश की कामुक बातों से उसकी बुर में भी हलचल प्रारंभ हो गई थी उसने राजेश को और उत्तेजित करते हुए कहा…
" सोनू सच में भाग्यशाली है उस दिन उसे हाथों का ही नहीं इनका भी सुख मिल चुका है" लाली ने अपने होठों को गोल कर इशारा किया।
लाली के इस उत्तर ने राजेश को निरुत्तर कर दिया उसने बातचीत को वही विराम दिया और उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसने लगा।
राजेश ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और लाली की नाइटी को कमर तक खींचते हुए बोला….
"काश मैं सोनू होता"
"तो क्या करते…"
राजेश ने कोई उत्तर न दिया परंतु अपने तने हुए लंड को लाली की पनियायी बुर में जड़ तक ठान्स दिया और उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर लाली को चोदते हुए बोला
"अपनी लाली दीदी को खूब प्यार करता"
लाली भी अपनी जांघें खोल चुकी थी उससे और उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी वो राजेश को चूम रही थी परंतु इन चुम्बनों में एक अलग एहसास था राजेश उस अंतर को बखूबी महसूस कर रहा था परंतु उसके चोदने की रफ्तार में कोई कमी नहीं आ रही थी वह लाली को कस कस कर चोद रहा था।
मासूम और युवा सोनू लाली और राजेश दोनों की उत्तेजना का केंद्र बन चुका था।
चुदाई का चिर परिचित खेल खत्म होने के पश्चात पसीने से लथपथ राजेश लाली के बगल में लेटा हुआ उसकी चूचियां सहला रहा था।
तभी लाली ने मुस्कुराते हुए कहा…
"आपकी फटफटिया कब आ रही है"
"इतनी रात को फटफटिया की याद आ रही है"
"कई दिन से शंकर जी के मंदिर जाने की सोच रही थी। एक दिन टैक्सी वाले से बात करके गाड़ी बुलाइएगा।"
"एक तो साले खूब सारा पैसा भी लेते हैं और नखरे अलग से दिखाते हैं"
" हां जब फटफटिया आ जाएगी तो हम लोग अपनी मर्जी से कहीं भी आ जा पाएंगे।
राजेश ने एक लंबी सांस भरी परंतु कोई उत्तर न दिया।
लाली ने राजेश के चेहरे पर चिंता की लकीरें देख ली थी उसने उसे चूमते हुए कहा
"ठीक है, पर परेशान मत होइएगा जब भगवान चाहेंगे आ जाएगी"
"हां भगवान सब इच्छा पूरा किये हैं तो यह भी जरूर करेंगे।"
राजेश लाली को अपनी बाहों में लिए हुए सुखद नींद सो गया लाली के मन में अभी भी सोनू नाच रहा था उसका मासूम चेहरा और गठीला बदन लाली को पसंद आ चुका था…. सोनू को अपनी मीठी यादों में समेटे हुए लाली सो गई...
बनारस शहर में महोत्सव की तैयारियां प्रारंभ हो गई थी यह एक विशेष उत्सव था जिसकी व्यवस्था में पुलिस और प्रशासन दोनों सक्रिय थे शहर की समतल मैदान को पूरी तरह साफ स्वच्छ किया जा रहा था जगह-जगह रहने के पंडाल लगाए जा रहे थे और शौचालयों का निर्माण किया जा रहा था यह एक अत्यंत भव्य व्यवस्था थी। बड़े-बड़े गगनचुंबी झूलों के अस्थि पंजर जमीन पर पड़े अपने कारीगरों का इंतजार कर रहे थे। अस्थाई सड़कों पर पीली लाइटें लगाने का कार्य जारी था। बनारस शहर का लगभग हर बाशिंदा उस उत्सव से कुछ न कुछ अपेक्षा रखता था।
उधर हॉस्टल में सोनू के कमरे के दरवाजे पर वॉलीबॉल की गेंद धड़ाम से टकराई। सोनु बिस्तर पर पड़ा ऊंघ रहा था। सोनू उठकर हॉस्टल की लॉबी में आ गया सुबह के 6:00 बजे रहे थे विकास के कमरे की लाइट अभी भी जल रही थी..
"अरे तू तो बड़ी जल्दी उठ गया" सोनू ने विकास की खिड़की से झांकते हुए पूछा।
"अबे रात भर जगा हूं एक पैसे की तैयारी नही हुई है एक्जाम की। अब जा रहा हूं सोने"
"भाई तेरी मोटरसाइकिल कुछ देर के लिए ले जाऊं क्या?"
"क्यों सुबह सुबह कहां जाएगा?"
" वह छोड़ ना बाद में बताऊंगा"
"ठीक है ले जा पर तेल फुल करा देना…" विकास ने राजदूत की चाबी सोनू को पकड़ते हुए कहा।
सोनू बेहद प्रसन्न हो गया वह फटाफट मन में ढेर सारी उमंगे लिए तैयार होने लगा उसने अपना खूबसूरत सा पैजामा कुर्ता पहना और कुछ ही देर में राजदूत की सवारी करते हुए लाली के दरवाजे पर खड़ा हार्न बजा रहा था...
लाली उस हॉर्न की आवाज सुनकर दरवाजे पर आई और अपने भाई सोनू को राजदूत फटफटिया पर बैठा देखकर बेहद प्रसन्न हो गई और उसे देखकर मुस्कुराते हुए बोली "अरे सोनू यह किसकी फटफटिया है? अंदर आ…"

शेष अगले भाग में…
बहुत ही मनमोहक और अद्वितीय अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
सोनी और मोनी जवानी की दहलिज पर खडी हैं उनकी जवानी क्या गुल खिलाती हैं
सुगना के मन में रतन के लियेसभ्य भाव का होना
बनारस के मेले में क्या धमाचौकडी होती हैं
लाली की फटफटी की चाह
अब तो सुबह सुबह सोनू फटफटी लेकर लाली घर पहूच गया
बहुत ही सुंदर लेखन
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी
 

Sanju@

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लाली को प्रसन्न देखकर सोनू की बांछें खिल उठीं। वह फटाफट अपनी फटफटिया से नीचे उतरा और मन में उमंगे लिए लाली के घर की तरफ तेज कदमों से चल पड़ा उसके मन में सिर्फ और सिर्फ एक ही ख्याल आ रहा था कि हे भगवान राजेश जीजू घर पर ना हो.

नियति मुस्कुरा रही थी जिस व्यक्ति ने लाली और सोनू को करीब लाने में सबसे अहम भूमिका अदा की थी सोनू अपनी अज्ञानता वश उसकी उपस्थिति को अवांछित मान रहा था.

परंतु मन का चाहा कहां होता है। फटफटिया की आवाज राजेश ने भी सुनी थी और लाली का संबोधन भी वह भी हॉल में आ चुका था जैसे ही सोनू लाली के करीब आया राजेश ने कहा

"अरे वाह साले साहब आज तो फटफटिया में….. कहां लॉटरी लग गई?"

सोनू केअरमानों पर घड़ों पानी फिर गया.

"नहीं. जीजाजी , यह मेरे दोस्त की है कुछ काम से शहर आया था सोचा आप लोगों से मिलता चलूं"

"सच बताना मुझसे या अपनी लाली दीदी से?"

सोनू पूरी तरह झेंप गया परंतु लाली ने बात संभाली


"आपका क्या है आप तो दिन रात ट्रेन में ही गुजारते हैं मेरा भाई कभी-कभी आकर हम सबको खुश कर देता है"

सोनू मुस्कुराने लगा उसने राजेश के चरण छुए और फिर लाली दीदी के। लाली ने फिर उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया यदि राजेश उस हाल में ना होता तो सोनू के हाथ निश्चय ही लाली की पीठ पर अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे होते और इन दोनों के बीच दूरियां कुछ और कम होती लाली के तने हुए स्तन सोनू के सीने से सट कर चिपटे हो चुके होते।

तभी लाली का पुत्र राजू सोनू के पास आ गया। सोनू ने उसे अपनी गोद में उठाया और कुर्ते की जेब से दो लॉलीपॉप निकालकर उसके हाथों में दे दिया। राजू ने सोनू के गालों पर चुंबन दिया। एक पल के लिए सोनू को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे लाली के कोमल होंठ उसके गालों से हट गए। सोनू की स्थिति सावन के अंधे जैसी हो गई थी उसे हर जगह सिर्फ और सिर्फ लाली के खूबसूरत कोमल अंग और दिखाई पड़ रहे थे.

लाली ने फटाफट चाय बनाई और हॉल में बैठकर अपने दोनों मालियों के साथ चाय पीने लगी। सोनू की नजरें झुकी हुई थीं और राजेश अपनी आंखों के सामने नियति द्वारा मिलाए गए तो अद्भुत प्रेमियों को एक साथ देख रहा था। सोनू जैसे बलिष्ठ और मजबूत युवा को लाली जैसी गदराई हुई युवती के साथ देख कर राजेश भाव विभोर हो गया। मन ही मन हुआ उन दोनों को संभोग अवस्था में देखने लगा। लाली ने उसकी मनोदशा पढ़ ली और बेहद प्यार से बोली

"कहां अपनी फटफटिया में खो गए चाय पी लीजिए चाय ठंडी हो जाएगी"

राजेश अपनी ख्यालों से बाहर आया और बोला

"तुम शंकर जी के मंदिर जाने वाली थी ना जाओ आज तो तुम्हारा भाई फटफटिया लेकर आया है उसी के साथ घूम आओ"

"और घर का काम धाम कौन करेगा आपको ड्यूटी भी तो जाना है"

"अरे तुम तैयार होकर जल्दी चली जाओ आज सब्जी मैं बना दूंगा तुम आकर रोटी सेक लेना और बाकी काम बाद में हो जाएगा और फिर फटफटिया रोज रोज थोड़ी ही आएगी"

अभी कुछ देर पहले राजेश की उपस्थिति को देखकर सोनू जितना निराश हुआ था राजेश के प्रस्ताव को सुनकर वह उतना ही प्रसन्न हो गया। उसने राजेश की हां में हां मिलाते हुए कहा

"चलिए दीदी आप को घुमा लाता हूं"

सोनू के साथ फटफटिया पर बैठने की बात सोच कर लाली के चेहरे पर शर्म की लालिमा दौड़ गई वह अपनी भावनाएं छुपाते हुए बोली

"तू मोटरसाइकिल चलाना कब सीख गया मुझे गिरा तो नहीं देगा"

"नहीं दीदी मैं चला लेता हूं"

तभी राजू भी जाने की जिद करने लगा

"नहीं बेटा अभी मम्मी को जाने दो जब मैं फटफटिया लाऊंगा तब उस पर बैठना"

सोनू एक बार फिर राजेश के प्रति कृतज्ञ हो गया वह अपनी किस्मत पर नाज कर रहा था कि आज सब कुछ उसके मनोमुताबिक हो रहा था। उसने अपनी खुशी पर काबू रखते हुए चाय के कब को उठाकर किचन में ले जाते हुए कहा.

"दीदी फटाफट तैयार हो जाइये"..

जितना उत्साह सोनू के मन में था लाली भी उतनी ही खुश थी. वह फटाफट अपने कमरे में जाकर अपना अधोवस्त्र लिया और उसे अपनी नाइटी के अंदर छुपा कर हाथ में पकड़े हुए बाथरूम में प्रवेश कर गयी। उसने अपनी पेंटी और ब्रा को सोनू की कामुक नजरों से बचा लिया था। अजब दुविधा में थी लाली एक तरफ तो वह अपना सर्वस्व निछावर करने को तैयार थी दूसरी तरफ उन अंतर्वस्त्रों को नाइटी के बीच में लपेट कर उन्हें छुपा रही थी.

बाथरूम से पानी गिरने की आवाजें आने लगी सोनू के मन में लाली के नंगे और भरे हुए शरीर के दृश्य घूमने लगे। लाली को नहाते हुए तो वह पहले भी एक बार देख चुका था पर नारी रूप के दिव्य दर्शन उसे नहीं मिल पाए थे। पिछली बार उसे लाली का शरीर उसे साइड से दिखाई दिया था. वह अब लाली को साक्षात नग्न देखना चाहता था वह भी वस्त्र विहीन।

राजेश को भी बाथरूम से आ रही आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी हाल में शांति की वजह से यह आवाज और भी साफ थी। राजेश ने सोनू से यूं ही बातें शुरू कर दी।

"मुझे भी मोटरसाइकिल चलाना सीखना है"

"हां जीजा जी आप भी खरीद लीजिए मैं आपको सिखा दूंगा"

जीजा साले की बातें चल रही थी. तभी मदमस्त लाली अपने पूर्ण यौवन को नाइटी के आवरण से ढके हुए बाहर आई और लक्स साबुन की खुशबू बिखेरती हुई सोनू से सटते हुए अपने कमरे में चली गई। सोनू भीनी भीनी खुशबू से मस्त हो गया परंतु उसके नथूने उसी मदन रस की सुगंध को खोज रहे थे जो आज से कुछ दिनों पहले सोनू के उंगलियों ने लाली की बुर में प्रवेश कर चुराया था।

कमरे में जाने के बाद लाली तैयार होने लगी तभी उसनें आवाज दी

"ए जी सुनिए"

"क्या हुआ? आता हूं" राजेश उठकर कमरे के अंदर जाने लगा

दरवाजा सटाने के बाद राजेश ने पूछा

"क्या हुआ?"

"बताइए ना कौन सी साड़ी पहनु"

"अरे साड़ी मत पहनो पहली बार फटफटिया में बैठोगी कहीं साड़ी फस फसागई तो लेने के देने पड़ जाएंगे"

"तो फिर क्या पहनूं?" लाली चिंता में पड़ गई

"अरे तुम्हारे पास एक सलवार कमीज भी थी ना जो तुम कभी-कभी पहनती थी"

"नहीं नहीं मैं वह नहीं पहनूंगी अब वह थोड़ा छोटी भी होती है और पूरे बदन पर कस जाती है"

राजेश के मन मे लाली का कसा हुआ शरीर घूम गया।

"अरे तुम भी तो दुबली हो गई हो एक बार पहन के तो देखो" राजेश की तारीफ ने लाली में उत्साह भर दिया।

लाली ने अलमारी से मैरून कलर की कुर्ती और चूड़ीदार पैजामा निकाला और पहनने लगी। राजेश का लंड खड़ा हो चुका था। अपनी बीवी को उस खूबसूरत वस्त्र में देख वह मदहोश हो रहा था। इसके पहले की लाली कुछ सोच पाती राजेश पीछे से आया और उसकी दोनों भरी-भरी चुचियों अपनी हथेलियों से दबाने लगा। उसका लण्ड लाली के भरे हुए नितंबों पर सट रहा था लाली ने शर्माते हुए कहा..

"यह तो पूरे बदन से चिपक सा गया है देखिए ना चुचियां कितनी निकल कर बाहर आ गई हैं।"


अपने निप्पलों को दबाते हुए उसने फिर कहा

"और यह दोनों मुए... लग रहा है कुर्ती फाड़ कर बाहर आ जाएंगे."


राजेश ने लाली की मदद की और कुर्ती को थोड़ा सामने खींचकर उसके निप्पलों को छुपा दिया परंतु लाली की भरी भरी चुचियों को छुपा पाना असंभव था। और राजेश तो वैसे भी उन्हें छुपाना नहीं चाहता था। चाहती तो लाली भी यही थी पर स्त्रीसुलभ लज्जा उसमे अभी भी कायम थी।

कुर्ती लाली के शरीर से उसी तरह चिपक गई थी जैसे चांदी का अर्क मिठाई को ढक लेता है परंतु मिठाई का आकार छुपाने में नाकाम रहता है। लाली का सपाट पेट उसकी चुचियों और जांघों के बीच बेहद आकर्षक लग रहा था । कुर्ती लाली के भरे भरे नितंबों को बड़ी मुश्किल से ढक पा रही थी लाली अपने हाथों को पीछे करती और उसे खींचकर नीचे करने का प्रयास करती परंतु उसे ज्यादा सफलता नहीं मिलती।

लाली उदास हो गई उसने सलवार कुर्ती पहनने का विचार त्याग दिया और बोली मैं साड़ी ही पहन लेती हूं यह कुर्ती वास्तव में छोटी है


इससे पहले की लाली का विचार परिवर्तित होता राजेश ने सोनू को बुलाया…

"तुम ही समझाओ अपनी दीदी को साड़ी पहनकर फटफटिया में कैसे बैठेंगी?"

सोनू कमरे में आया और अपनी लाली दीदी का यह रूप देख कर दंग रह गया. लाली को उसने पिछले कई वर्षों में कभी सलवार कुर्ती में नहीं देखा था।

वह लाली की तुलना अपनी कॉलेज की लड़कियों से करने लगा। राजेश ने सोनू की मनोदशा पढ़ ली उसने एक बार फिर कहा


"देखो ठीक तो लग रहा है पर ये परेशान है"

"सच में दीदी, जीजा जी ठीक कह रहे आप बेहद सुंदर लग रही हैं"

"चल झूठे तू भी इनका साथ दे रहा है" लाली ने शर्माते हुए कहा

"नहीं दीदी सच में"

राजेश ने इस बातचीत को विराम देते हुए कहा

"अब तुम लोग जाओ और जल्दी वापस आना मुझे ड्यूटी भी जाना है।"

लाली ने अपने बाल संवारे और झीना सा जार्जेट का दुपट्टा अपने कंधे पर डाला और अपने भरे भरे नितंब हिलाते हुए दरवाजे से बाहर निकल आयी और आस पड़ोस की महिलाओं से नजर बचाती हुयी खूबसूरत लाली अपने युवा सोनू के साथ मजबूत मोटरसाइकिल पर बैठकर शंकर जी के दर्शन के लिए निकल पड़ी।

मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने के पश्चात राजेश ने सोनू से कहा

"अपनी दीदी को मंदिर के बाहर भी घुमा देना पिछली बार वह सिर्फ गर्भ ग्रह के दर्शन ही कर पाई थी।"

सोनू उस समय तो पूरे उन्माद में था उसने राजेश की बात सुनी तो जरूर पर समझ नहीं पाया

"हां जीजाजी, पूरा घुमा दूंगा कहकर उसने बात बंद की और मोटरसाइकिल आगे बढ़ा दी"

नियति भी पेड़ की डाली से उड़ते हुए मोटरसाइकिल का पीछा करने लगी आस्था और वासना दोनों अपनी अपनी जगह सर उठा रहे थे ……

उधर साधुओं की टोली और डुगडुगी वाला सुगना के मायके पहुंच चुके थे। बच्चों की टोली उनके पीछे पीछे चल रही थी डुगडुगी की आवाज सुनकर जाने बच्चों के पैरों में पंख लग जाते थे। सब अपने घर से वैसे ही निकलते जैसे स्कूल की घंटी के बाद बच्चे भागते हैं।

कुछ ही देर में गांव की गलियां के दोनों तरफ बच्चों और घूंघट ली हुई महिलाएं दिखाई पड़ने लगती। साधु लोग उस महोत्सव के प्रचार प्रसार से संबंधित पोस्टर घरों पर चिपकाते और सभी को हाथ जोड़कर उस उत्सव में शामिल होने का आमंत्रण देते।

सोनी और मोनी पोस्टर में दिख रहे मेले के दृश्यों को टकटकी लगाकर देख रही थी। वो लकड़ी के बड़े बड़े झूले जिसमें कुल 4 खटोले बांधे हुए थे। उसमें बैठे युवक और युवती को देखकर सोनी के मन में प्रेम की हिलोरे उठने लगीं। अभी उनकी जांघों के बीच की कली पूरी तरह खिली भी नहीं थी परंतु पुरुष के समीप आने पर उतपन्न होने वाली संवेदनाएं उनके दिलो-दिमाग पर छा चुकी थीं। स्त्री और पुरुष का भेद और जांघों के बीच का आकर्षण वह भली-भांति समझने लगी थी।

"क्या देख रही है खटोले में…..साथ बैठने वाला ?"

मोनी ने सोनी के पेट पर चोटी काटते हुए बोला..

अपनी चोरी पकडे जाने पर सोनी शर्मा गई और उसने मोनी से कहा

"तेरा मन नहीं करता क्या?"

"जब भगवान ने मुंह दिया है तो खाना भी देगा मैं भगवान से मांगूंगी की तेरी जांघों के बीच की आग जल्दी बुझे"

मोनी की बात सुनकर सोनी ने उसे दौड़ा लिया और दोनों भागती भागती अपनी मां पदमा के पास आ गयीं जहां पदमा की सहेली पुलिया बनारस महोत्सव के बारे में ही बातें कर रहीं थी।

जाने इसस महोत्सव में क्या बात थी कि गांव के अधिकतर लोग वहां जाने की बातें कर रहे थे कोई 2 दिनों के लिए तो कोई 4 दिनों के लिए पर मन में ललक सभी के थी।

उधर लाली सोनू की मोटरसाइकिल पर दोनों पैर एक तरफ करके बैठी सोनू जैसे अकुशल चालक के लिए यह एक और कठिनाई थी जैसे ही वह लाली की रेलवे कॉलोनी से बाहर आया उसने मोटरसाइकिल रोकी और लाली से कहा

"दीदी आप दोनों पैर फैला कर बैठ जाइये गाड़ी का बैलेंस सही रहेगा?"

राजदूत मोटरसाइकिल कुछ ज्यादा ही ऊँची थी। लाली उस पर बैठने का प्रयास करने लगी परंतु ऊंचाई की वजह से वह अपना पैर दूसरी तरफ नहीं ले जा रही एक तो उसकी चूड़ीदार एक तो पहले से तंग थी दूसरी तरफ पैर को ऊंचा उठाना एक नई मुसीबत आ गई थी।

सोनू के साहस देने पर लाली में अपना पैर थोड़ा और ऊंचा किया और उसका पैर सीट के दूसरी तरफ आ तो गया परंतु "चर्र" एक अवांछित ध्वनि लाली के कानों तक पहुंची। मोटरसाइकिल पर सफलतापूर्वक बैठ जाने की खुशी में लाली उस ध्वनि को नजर अंदाज कर गई परंतु जैसे ही उसके नितंबों ने सीट को छुआ लाली घबरा गई। सीट की ठंडक उसकी बुर के होठों पर महसूस हुई।

लाली को अब जाकर समझ आ चुका था उसकी सलवार का जोड़ पैर के ज्यादा फैलाए जाने की वजह से टूट गया था। और उसकी सलवार थोड़ा फट गई थी सुबह जल्दी बाजी में उसने अपनी ब्रा तो पहन ली थी पर पेंटी पहनना जरूरी नहीं समझा था। घर में वैसे भी उसे पेंटी पहनने की आदत कम ही थी।

लाली के बैठ जाने के पश्चात गाड़ी का बैलेंस बिल्कुल सही हो गया था सोनू की मोटरसाइकिल तेजी से बनारस की सड़कों को रौंदकर हुए शंकर मंदिर की तरफ बढ़ रही थी। लाली अपनी सलवार फटे होने के विचारों से अभी भी मुक्त नहीं हो पा रही थी बनारस की सर्द हवाएं जब उसके बालों को उड़ाने लगी तब उसने अपनी बुर पर से ध्यान हटाकर बालों पर लगाया और उसे व्यवस्थित करने लगी। तथा पीछे से चीखते हुए बोली

"सोनू धीरे चला"

"दीदी बहुत मजा आ रहा है चलाने दो ना"

आनंद तो लाली को भी उतना ही आ रहा था उसने जो सपने अपनी किशोरावस्था में देखे थे वह आज पहली बार पूरे हो रहे थे।

सोनू अपनी रफ्तार में यह भूल बैठा की रोड पर स्पीड ब्रेकर भी होते हैं अपनी लाली दीदी को पीछे बैठा कर वह स्वयं को राजेश खन्ना समझ रहा था स्पीड ब्रेकर ने लाली को उछाल कर उसकी पीठ पर लगभग गिरा दिया।

लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां उसकी पीठ पर चपटी हो गई। लाली के इस तरह उछलने से सोनू की मोटरसाइकिल लगभग अनियंत्रित सी हो गई यह तो शंकर जी की लाली पर कृपा थी कि वह दोनों गिरे नहीं और सोनू ने अपनी मोटरसाइकिल सकुशल रोक ली।

लाली ने सोनू को डांटते हुए कहा

"मैं कहती थी ना की धीरे चला…."

अपनी प्रेमिका से डांट खाकर सोनू को अच्छा तो नहीं लगा परंतु सोनू ने अपना चेहरा पीछे घूम आया और लाली को प्यार भरी निगाहों से देखते हुए बोला

"ठीक है बाबा अब धीरे चलाऊगा"

लाली को भी अपनी गलती का एहसास हो चला था शायद उसने कुछ ज्यादा ही देश में वह बात कह दी थी सोनू के मासूम चेहरे और कोमल गाल को अपने बेहद समीप देखकर लाली का प्यार जागृत हो उठा उसने उसके गालों पर चूमते हुए कहा

"कोई बात नहीं सोनू बाबू अब धीरे चलना"

मोटरसाइकिल ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ ली..

बाली की बुर को अब भी मोटरसाइकिल की सीट का एहसास हो रहा था। अपने हाथों से सलवार के कपड़े को घसीट कर वह अपनी बुर के ऊपर ला रही थी परंतु कुछ ही दूर चलने के पश्चात कपड़ा वापस अपनी जगह पर आ जा रहा था और सीट उसकी बुर को फिर चुमने लगती थी।

लाली ने अपना ध्यान शंकर मंदिर की तरफ लगाया और इस विषम परिस्थिति को भूलने का प्रयास करने लगी। कुछ ही देर में सोनू की मोटरसाइकिल शंकर मंदिर के बाहर खड़ी थी। मोटरसाइकिल से उतरते वक्त एक बार फिर चर्र की आवाज हुई हालांकि यह आवाज पिछली बार की तुलना में कम थी परंतु इसने सलवार के जोड़ को थोड़ा और फैला दिया। लाली ने अपनी कुर्ती को व्यवस्थित किया और दोनों भाई बहन मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगे लाली आगे आगे और पीछे पीछे। रेलिंग लगे होने की वजह से एक समय पर एक आदमी ही चल सकता था। सोनू जानबूझकर पीछे हट गया और लाली ने पहली सीढ़ी चढ़ी लाली आगे-आगे चढ़ती गई और सोनू उसके पीछे पीछे। सोनू ने जानबूझकर लाली और अपने बीच तीन चार सीढ़ियों का फासला बना लिया था।

सोनू तो दूसरे ही नशे में था अपने आगे सीढ़ी चढ़ती हुई लाली के नितंबों को देखकर उसका ध्यान आस्था से हटकर वासना पर केंद्रित हो गया था लाली के बड़े-बड़े भरे हुए नितम्ब सोनू की निगाहों के सामने थिरक रहे थे लाली की मोटी और गदराई हुई जाँघों ने नितंबों को सहारा दिया हुआ था …

"लाली ने पीछे मुड़कर कहा साथ साथ चल ना पीछे क्यों चल रहा है"

लाली ने खुद को सोनू की निगाहों से देख लिया था उसे एहसास हो गया था कि सोनू उसके नितंबों की चाल को देख रहा है..

"हां दीदी" सोनू थोड़ा झेंप गया परंतु उसने उनके बीच का फासला तेजी से कम किया और दोनों अपनी अपनी मनोकामनाएं लिए शंकर मंदिर मैं प्रवेश कर चुके थे।

शंकर भगवान की पूजा अर्चना करने के पश्चात दोनों भाई बहन ने अपनी अपनी मनोकामना उसे भगवान को अवगत कराया लाली की मनोकामना में सोनू से मिलन दूसरे स्थान पर था परंतु सोनू के मन में सिर्फ और सिर्फ इस समय एक ही मनोकामना थी और वह थी लाली दीदी के साक्षात दर्शन और उनसे मिलन।

मंदिर से बाहर आने के पश्चात रेलिंग का सहारा लेकर सोनू और लाली खड़े हो गए तथा मंदिर के पीछे पर ही नदी का खूबसूरत दृश्य देखने लगे लाली ने अपने हाथ में लिए सिंदूर से सोनू के माथे पर तिलक लगाया और प्रसाद खिलाया।

यह मंदिर चोल वंश के राजाओं ने बनाया था जिसमें अंदर कर ग्रह में शंकर भगवान की मूर्ति थी परंतु बाहर में विभिन्न कलाकृतियां बनाई गई थी उनमें से कुछ कलाकृतियां काम कला को प्रदर्शित करती हुई भी थी।

इन कलाकृतियों में खजुराहो जैसे आसन तो नहीं दिखाए गए थे परंतु फिर भी उसका कुछ अंश अवश्य मौजूद था मंदिर के बाहरी भाग को पर्यटन के हिसाब से भी सजाया गया था जिनमें आस्था न थी वो लोग भी इस मंदिर के बाहरी भाग में लगी हुई मूर्तियों को देखने आया करते थे और कुछ ठरकी किस्म के व्यक्ति कलाकृतियों में छुपी हुई कामवासना को देखकर अपनी उत्तेजना भी जागृत किया करते थे।

लाली को इस बात की जानकारी न थी परंतु सोनू तो अब बनारस का जानकार हो गया था हॉस्टल के लड़कों ने उसका सामान्य ज्ञान बढ़ा दिया था लाली दीदी के साथ शंकर मंदिर जाने की बात सुनकर उसके लण्ड ने तुरंत सहमति दे दी थी।

सोनू को राजेश की बात याद आई जो उन्होंने घर से निकलते वक्त कही थी कि अपनी दीदी को मंदिर का बाहरी भाग भी दिखा देना। क्या जीजाजी चाहते थे कि मैं दीदी को इन कामकला की मूर्तियों को दिखाऊं..क्या उन्हें इस मंदिर की इन कलाकृतियों की जानकारी थी?

"कहां खो गया सोनू" लाली ने आवाज लगाई

"कुछ नहीं दीदी चलिए आपको मंदिर का बाहरी भाग दिखाता हूं"

मंदिर के पीछे एक काम पिपासु युवक और युवती की तस्वीर थी परंतु उसमें कोई नग्नता न थी कुछ लोग उन्हें किसी अनजान भगवान की मूर्ति मानते थे परंतु जानकार उसकी हकीकत जानते थे।

सोनू के मन में शरारत सूझी उसने जमीन पर अपने दोनों घुटने टिकाए और सर को सजदे की तरह जमीन से छुआ दिया कुछ सेकंड उसी अवस्था में रहकर वह उठ खड़ा हुआ।

लाली ने पूछा


"यह कौन से भगवान है"

" पहले प्रणाम कर लीजिये फिर बताता हूं"

लाली में देर ना की और सोनू ने जिस तरह प्रणाम किया था उसी तरह प्रणाम करने लगी। लाली की कुर्ती जो नितंबों को ढकी हुई थी वह हवा के झोंके से उड़ गई और लाली की फटी हुई सलवार के बीच से उसकी सुंदर और कसी हुई बुर सोनू की निगाहों के ठीक सामने आ गई जो लाली के ठीक पीछे खड़ा उसके नितंबों की खूबसूरती निहार रहा था। सोनू ने तो सिर्फ उसके नितंबों को जी भर कर देखने की कल्पना की थी परंतु उसकी जांघों के बीच छुपा हुआ अनमोल खजाना सोनू की निगाहों के सामने आ गया था। फटी हुई सलवार ने अपना कमाल दिखा दिया था ।

उधर लाली को अब जाकर एहसास हुआ कि वह लगभग डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। बाहर बहती हवा ने जब उसके बुर के होठों को छुआ तब जाकर लाली को एहसास हुआ कि उसकी सलवार फटी हुई है वह तुरंत ही झट से उठ कर खड़ी हो गई और पीछे मुड़कर देखा सोनू की निगाहें उसके नितंबों के साथ-साथ ऊपर उठ रही थी।

लाली शर्म से पानी पानी हो गई उसे पता चल चुका था की सोनू ने उसकी नंगी बुर के दर्शन कर लिए थे…

शेष अगले भाग में
लाली की फटफटी पर बैठने की चाह तो पुरी हो गई लेकीन अपना पजामा फाडकर सोनी और मोनी के दोनो टांगो के बिच की हलचल दिनों दिन बढती जा रही है सोनू ने तो लाली को कामदेव की मुर्ती के आगे प्रणाम कराने के बहाने लाली की गदराई हुई बूर का दर्शन कर के मोहित हो गया
आगे देखते हैं की नियती क्या क्या करवाती हैं
बहुत ही सुंदर लाजवाब अद्भुत और मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
 

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उधर लाली को महसूस हुआ कि वह लगभग डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। बाहर बहती हवा ने जब उसके बुर के होठों को छुआ तब जाकर लाली को एहसास हुआ कि उसकी सलवार फटी हुई है वह तुरंत ही झट से उठ कर खड़ी हो गई और पीछे मुड़कर देखा सोनू की निगाहें उसके नितंबों के साथ-साथ ऊपर उठ रही थी।

लाली शर्म से पानी पानी हो गई उसे पता चल चुका था की सोनू ने उसकी नंगी बुर के दर्शन कर लिए थे…

अब आगे…

यह एक संयोग ही था कि उस दिन ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। लाली जान चुकी थी कि सोनू की निगाहें उसके खजाने का अवलोकन कर चुकी है। लाली मंदिर के पार्श्व भाग में लगे अलग-अलग कलाकृतियों को देखने लगी। कभी वह अपनी सुंदर काया की उन कलाकृतियों से तुलना करती और मन ही मन खुश हो जाती। लाली को उस रात की बात याद आ रही जब वह राजेश की बाहों में नग्न लेटी हुई थी और वह उसकी चूचियां सहलाते हुए उसे चोदने के लिए तैयार कर रहा था


राजेश में उससे कहा..

"लाली मजा आ जाएगा जब तुम्हारी चूचियां मेरे मुंह में होंगे और सोनू का सर तुम्हारी जाँघों के बीच"

"छी, कितनी गंदी बात करते हैं आप, अपने भाई से अपनी वो चुसवाना अच्छा अच्छा लगेगा क्या"

"चुसवाने की बात तो मेरी जान तुमने ही कहीं"

"तो क्या सोनू मेरी जांघों के बीच सर लाकर सजदा करेगा?"

लाली की बातों से राजेश के लंड का तनाव बढ़ता चला जा रहा था।

"सच लाली मजा आ जाएगा जब…" राजेश अपनी बात पूरी नहीं कर पाया पर उसने लाली की चुचियाँ जोर से दबा दी लाली सिहर उठी और बोली…

"क्या जब?" लाली ने उत्सुकता से पूछा

"यही कि उत्तर भारत पर मैं राज करूं और दक्षिण भारत पर तुम्हारा प्यारा सोनू"

लाली राजेश की बात समझ तो गई थी परंतु वह राजेश को खुलकर बोलने के लिए उकसा रही थी..

"आप और आपके सपने ऐसी गंदी बातें कैसे सोच लेते हैं आप"

"मैंने अपने से थोड़े ही सोचा यह तो प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है अपनी प्रेमिका को जी भर कर सुख देना. मेरे पास तो एक ही मुंह है और तुम्हारे पास चूमने लायक कितनी सारी जगह है?"

लाली राजेश की हाजिर जवाबी से प्रभावित हो गई थी उसने कहा तो आपको यह ज्ञान किसी महात्मा ने दिया है

"नहीं मैंने शंकर मंदिर के पीछे लगी एक प्राचीन मूर्ति में देखा था जिसमें एक नायिका को दो पुरुष मिलकर प्रसन्न कर रहे थे"

"सच में आपका दिमाग खाली जांघों के बीच ही घूमता रहता है मंदिर में भला ऐसी मूर्ति कहां मिलेगी"

राजेश ने लाली को अपनी बाहों में भर लिया और चुमते हुए बोला…

"मैं सच बोल रहा हूं"

"मैं नहीं मानती"

"और अगर यदि यह सच हुआ तो?"

"तो क्या आप जीते मैं हारी"

"फिर मुझे क्या मिलेगा?"

"जो आप चाहेंगे"

"बस उस मूर्ति की नायिका तुम बनोगी और सेवक मैं और….. "

राजेश के वाक्य पूरा करने से पहले लाली ने उसके होंठों को अपने होंठों के बीच भर लिया और स्वयं ही राजेश के लण्ड को पकड़ कर अपनी बुर में घुसेड लिया…

राजेश की उपस्थिति में सोनू से संभोग करने की बात सोच कर ही वक्त उत्तेजना से प्रोत हो गई थी….

"दीदी आगे चलिए और भी तरह-तरह की कलाकृतियां हैं"

सोनू की आवाज लाली अपनी मीठी यादों से बाहर परंतु उन यादों ने उसकी बुर् के होठों की चमक बढ़ा दी थी। अंदरूनी गहराइयों से उत्सर्जित मदन रस बुर के होठों पर आ चुका था।

सोनू को अभी भी तृप्ति का एहसास नहीं हुआ था लाली की बुर देखने कि उसके मन में एक बार फिर इच्छा जागृत हुयी।

सोनू ने आगे बढ़ते हुए एक बार फिर दंड प्रणाम किया और लाली अपनी टाइमिंग सेट करते हुए एक बार फिर डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। इस बार नियति को लाली की कुर्ती को हवा से उड़ाने की कोई आवश्यकता नहीं थी लाली ने स्वयं ही अपनी कुर्ती खींच ली थी लाली के बुर् के चमकते हुए होंठ सोनू को उन्हें चुमने का खुला निमंत्रण दे रहे थे।। आह….. कितने सुंदर थे प्यारे होंठ थे। सोनू के मुंह में पानी आ रहा था उसकी जीभ में मरोड़ पैदा हो रही थी वह तुरंत ही झुक कर उन चमकती बूंदों को आत्मसात कर लेना चाहता था।

लाली इस बार कुछ ज्यादा देर तक नतमस्तक रही और अपने भाई सोनू के अरमान कुछ हद तक पूरे करती रही और कुछ के पूरे होने की कामना करती रही।

उठने के पश्चात लाली की निगाहें अभी भी उस कलाकृति को ढूंढ रही थी जिसके बारे में राजेश ने अंतरंग पलों में लाली से बताया था।

सोनु लाली की धीमी चाल से अधीर हो रहा था। उसे तो पता ही नहीं था की लाली दीदी क्या खोज रही हैं। लाली हर मूर्ति का बारीकी से निरीक्षण करती और अंततः लाली ने वह मूर्ति खोजली जिसका राजेश ने जिक्र किया था।


लाली के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई। मूर्ति पर जाकर उसकी आंखें ठहर गई उसमें एक युवती के साथ दो पुरुषों को संभोग स्थिति में दिखाया गया था यद्यपि उनके लण्ड और बुर को कलाकृति से हटा दिया गया था परंतु फिर भी वह मूर्ति चीख चीख कर अपनी दास्तान कह रही थी।

लाली अपने ख्वाबों में स्वयं को उस नायिका की तरह देखने लगी उसकी जांघों के बीच छुपी बुर कांप उठी।

लाली राजेश से अपनी शर्त हार कर भी जीत हुई अपनी उत्तेजना को चरम पर महसूस कर लाली का रोम-रोम संभोग के लिए तैयार हो चला था यदि सोनू संभोग के लिए तैयार होता तू लाली की जाँघे निश्चित ही फैल जाती। लाली उस अद्भुत संभोग करने के लिए मन ही मन खुद को तैयार करने लगी।

उधर सोनू की कामवासना चरम पर पहुंच रही थी मंदिर जैसी पवित्र जगह से जल्दी से निकल जाना चाहता था उसने लाली से कहां दीदी अब चला जाए देर हो रही है दर्शन भी हो गए..

"हां हां चल भगवान करे तेरी सभी मनोकामनाएं पूरी हो आज तूने अच्छा कार्य किया है…."

"फिर मेरा इनाम"

"चल रास्ते में देती हूं…"

इधर सोनू लाली दीदी के साथ रंगरेलियां मना रहा था उधर हॉस्टल में विकास सोनू का इंतजार कर रहा था सोनू और विकास का दोस्त गोलू विकास की बेचैनी देखते हुए बोला

" क्यों परेशान हैं?"

"वह सोनू बहन चोद राजदूत लेकर गया है अब तक नहीं लौटा

"कहां गया है कुछ बताया था?"

"पता नहीं यार मैं उस समय सोने जा रहा था बोला था जल्दी आ जाऊंगा"

"वह पक्का अपनी लाली दीदी के पास गया होगा. साली गच्च माल है। सोनू की बहन नहीं होती तो साली को पटक पटक के चोदता।"

"माल सुनकर विकास के लंड में ही हरकत हुई उसने उत्सुकता से पूछा सच में चोदने लायक है क्या?"

" बेहतरीन माल है एक बार सोनू के साथ जाकर देख आ मिजाज खुश हो जाएगा तेरा और तुझे और तेरे मुन्ने का। फिर हाथों को मेहनत कम करना पड़ेगा और दिमाग को ज्यादा"

" और हां सोनू से अनजान बनकर पूछना उसे यह नहीं लगना चाहिए कि लाली के बारे में मैंने तुझे बताया है"

अभी विकास और गोलू बातें ही कर रहे थे तभी उनका एक और दोस्त अपने माता पिता की कार से उतरकर हॉस्टल में प्रवेश किया उसने विकास को देखते ही बोला…

" तेरी राजदूत कहां है"

" सुबह-सुबह सोनू ले गया है हम लोग उसी की बातें कर रहे थे"

"तब साला पक्का वही था। साले ने तो बनारस में माल पटा ली है आज सुबह-सुबह ही अपनी माल को लेकर शहर के बाहर जा रहा था मैंने आवाज दी पर साला रुका नहीं। तूने अपनी मोटरसाइकिल उसे क्यों दे दी ? उसे तो अभी ठीक से चलाना भी नहीं आता"

उस दोस्त ने अपनी सारी जलन विकास से साझा कर दी।

भोलू ने कहा "अबे उसकी कोई सेटिंग हो ही नहीं सकती इतना शर्मीला है साला"

"नहीं भाई सच कह रहा हूं। एकदम माल थी पर उसकी उम्र कुछ ज्यादा लग रही थी अपने कालेज की तो नहीं थी।"

भोलू ने एक बार सोचा कि शायद सोनू की लाली दीदी ही पीछे बैठकर कहीं जा रही हो परंतु उस लड़के ने बताया कि लड़की सलवार सूट पहने हुए थे और तो और वह राजदूत पर दोनों पैर दोनों तरफ करके बैठी थी यह बात भोलू के अनुसार लाली दीदी नहीं कर सकती थी भोलू ने उन्हें जब भी देखा था साड़ी पहने हुए ही देखा था। खैर बात आयी गई हो गयी परंतु विकास बेसब्री से सोनू का इंतजार कर रहा था। भोलू द्वारा लाली की गदराई जवानी के विवरण ने सोनू के दोस्तों में भी हलचल मचा दी थी।

उधर मंदिर से सोनू अपनी फटफटिया में लाली को बैठा कर वापस चल पड़ा। लाली की बुर एक बार फिर राजदूत की सीट से सटने लगी। परंतु लाली ने अपनी सलवार को बीच में लाने का प्रयास न किया। सीट की गर्मी उसे पसंद आ रही थी। बाहर खिली हुई धूप मौसम को खुशनुमा बनाए हुई थी। लाली इस बार जानबूझकर सोनू से सट कर बैठी थी और उसकी चूचियां सोनू की पीठ से सटी हुई थीं। पीठ पर मिल रहे चुचियों के स्पर्श और अपनी दीदी की पनियायी बुर की कल्पना ने उसके लण्ड को पूरी तरह खड़ा कर दिया था..

कुछ ही देर में सोनू ने लाली से पूछा

"दीदी मेरा इनाम कहां है"

"वह तो तूने मंदिर के पीछे ही ले लिया था"

सोनू सतर्क हो गया और अनजान बनते हुए पूछा


"मंदिर के पीछे?

"ज्यादा बन मत"

"तूने अपने पसंदीदा चीज के दर्शन तो कर ही लिए"

सोनू को सारी बात समझ आ चुकी थी फिर भी उसने उसे छुपाते हुए कहा

"मैंने तो कुछ भी नहीं देखा हां वह मूर्तियां बहुत अच्छी थीं"

लाली ने अपने हाथ बढ़ाएं और सोनू के तने हुए लण्ड को पकड़ लिया अच्छा तो यह महाराज उन मूर्तियों की सलामी दे रहे हैं।

सोनू निरुत्तर था उस ने मुस्कुराते हुए कहा लाली दीदी आप सच में बहुत सुंदर हो...

"मैं या मेरी वो"

"दोनों दीदी"

"पहले तो तूने कभी इतनी तारीफ न की"

"पहले उसके दर्शन भी तो नहीं हुए थे.."

"और उस दिन नहाते समय दरवाजे पर खड़ा क्या कर रहा था…?"

सोनु एक बार फिर निरुत्तर था। लाली की हथेलियां उसके लण्ड पर आगे पीछे हो रही थीं। उसका सुपाड़ा फुल कर लाल हो गया कपड़ों के ऊपर से सहलाए जाने की वजह से सोनू थोड़ा असहज हो रहा था परंतु वह इस सुख से वंचित नहीं होना चाहता था। दर्द और सुख की अनुभूति के बीच एक अद्भुत तालमेल हो चुका था. लाली कोई ऐसा बिल्कुल आभास नहीं था कि कपड़े के ऊपर से लण्ड को मसलने से सोनुको दिक्कत हो सकती थी।

अचानक वही स्पीड ब्रेकर एक बार फिर आ गया जिस पर पिछली बार एक्सीडेंट होते-होते बचा था अपनी उत्तेजित अवस्था के बावजूद सोनू सतर्क था। परंतु लाली अब भी बेपरवाह थी। अचानक आई इस उछाल से सोनू का लण्ड लाली के हाथ से छूट गया सोनू ने चैन की सांस ली और लाली अपने आपको व्यवस्थित करने लगी। राजदूत की सीट लाली के प्रेम रस से भीग चुकी थी। जितने वीर्य का उत्सर्जन सोनू अंडकोष कर रहे थे उसकी आधी मात्रा तो निश्चय ही लाली की बुर भी उड़ेल रही थी।

खुद को सीट पर व्यवस्थित करते समय लाली ने अपनी कमर हिलाई और उसकी बुर राजदूत की सीट पर रगड़ उठी। एक सुखद एहसास के साथ लाली को सफर काटने का उपाय मिल गया। उधर सोनू ने अपने पजामे का नाड़ा ढीला किया और लण्ड को पजामे से बाहर कर दिया और उसे अपने कुर्ते का आवरण दे दिया।

अपनी बुर की चाल को नियंत्रित करने के पश्चात लाली को एक बार फिर सोनू के मजबूत पर मुलायम लण्ड की याद आई और उसने अपने हाथ सामने की तरफ बढ़ा दिए। सोनू को लाली की कोमल हथेलियों का स्पर्श प्राप्त हो चुका था। उसके लण्ड ने तीन चार झटके लिए और अपनी परिपक्व महबूबा के हाथों में खेलने लगा।


सोनू के कोमल लण्ड को अपने हाथों में लेकर लाली मचल उठी उसके कुशल हाथ तरह तरह से उस लण्ड से खेलने लगे। जब तक शहर की भीड़भाड़ शुरू होती सोनू के लण्ड ने जवाब दे दिया। वीर्य की धार फूट पड़ी और लाली के हाथ श्वेत धवल गाढ़े वीर्य से सन गए परंतु राजदूत की सीट लाली का स्खलन न करा पायी।

लाली ने सोनू को अपने बाएं हाथ से पकड़ लिया और दाहिने हाथ को अपनी जांघों के बीच लाकर बुर को छूने लगी परंतु वह चाह कर भी स्खलित न हो पाई लाली की तड़प बढ़ चुकी थी।

उन्होंने मिठाई की दुकान पर मोटरसाइकिल रोक दी बच्चों के लिए मिठाई और आइसक्रीम लेकर लाली और सोनू रेलवे कॉलोनी की तरफ बढ़ चले। लाली अब अपने दोनों पैर एक तरफ करके मोटरसाइकिल पर बैठी हुई थी रेलवे कॉलोनी पहुंचते-पहुंचते सड़क पर भीड़ भाड़ बढ़ चुकी थी अचानक साइकिल वाले के सामने आ जाने से सोनू की मोटरसाइकिल का बैलेंस गड़बड़ा गया और सोनू की ड्राइविंग स्किल की पोल एक झटके में ही खुल गई लाली सड़क पर गिर चुकी थी उसकी कमर में चोट लगी थी सोनू की मदद से वह बड़ी मुश्किल से उठ पाई। भगवान का लाख-लाख शुक्र था की मोटरसाइकिल को कोई चोट नहीं लगी की वरना विकास उसका जीना हराम कर देता।

लाली ने कहा सोनू घर पास में ही है तुम चलो मैं पैदल आती हूं। सोनू को लाली की यह बात तीर की तरह चुभ गई उसने अपनी नाराजगी को छुपाते हुए कहा

दीदी उस साइकिल वाले की गलती थी वरना हम लोग नहीं गिरते आप विश्वास रखिए

लाली एक बार फिर मोटरसाइकिल पर बैठ चुकी थी सोनू पूरी सावधानी से लाली को लेकर घर पहुंच गया राजेश अपना टिफिन लेकर बेसब्री से लाली और सोनू का इंतजार कर रहा था। समय कम होने की वजह से वह लाली से ज्यादा बात नहीं कर पाया और निकलते हुए बोला रात तक आता हूं।

लाली ने अपने कमर के दर्द को अपने सीने में दफन करते हुए राजेश से कहा…

आप जीत गए…

राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा अपनी तैयारी शुरू कीजिए

लाली मुस्कुरा उठी। लाली का पुत्र सोनू मिठाई और आइसक्रीम के पैकेट देख खुश हो गया था। खुश तो लाली भी बहुत थी परंतु कमर में लगी चोट ने उस खुशी में विघ्न डाल दिया था नियति एक बार फिर मुस्कुरा रही थी। लाली के दर्द में ख़ुशी छुपी हुई थी शायद यह बात लाली नहीं समझ पा रही थी।

उधर सलेमपुर में सरयू सिंह का जन्मदिन करीब आ चुका था। सरयू सिंह बाजार में अपने जन्मदिन के उत्सव की तैयारी कर रहे थे। उन्हें सर्वाधिक इंतजार सुगना द्वारा दिए जाने वाले गिफ्ट का था। सुगना की गुदांज गांड को भेदने की उनकी सर्वकालिक इच्छा कल पूरी होने वाली थी वह सुगना को हर हाल में खुश रखना चाहते थे परंतु उनकी इस इच्छा मैं विरोधाभास था। उन्हें लगता था जैसे इस अप्राकृतिक मैथुन से निश्चय ही सुगना को कष्ट होगा। परंतु उनके विरोधाभास पर विजय उनके लण्ड की ही हुई जो पिछले तीन-चार महीनों सुगना की कोमल बुर् का स्वाद नहीं चख पाया था।

सरयू सिंह ने सुगना के लिए कई सारे कपड़े खरीदे और कजरी के लिए सुंदर साड़ियां। वह कजरी को कभी नहीं भूलते थे। सुगना के लिए लड्डू खरीदते समय उन्हें अपने पुराने दिनों की याद आने लगी जब वह लड्डू में गर्भ निरोधक दवाई मिलाकर अपनी प्यारी सुगना को दो-तीन वर्षों तक बिना गर्भवती किए हुए लगातार चोदते रहे थे हालाकी अब वह उस आत्मग्लानि से निकल चुके थे। सुगना भी यह बात जान चुकी थी और सरयू सिंह की शुक्रगुजार थी जिन्होंने उसे को जवानी का भरपूर सुख दिया था और नियति द्वारा रचे गए संभोग सुख का आनंद भी।

सूरज ढलते ढलते सरयू सिंह गांव वापस आ चुके थे सुगना हाथ में बाल्टी लिए उनका इंतजार कर रही थी उसकी सहेली बछिया जो अब गाय बन चुकी थी। इस मामले में वह सुगना से आगे निकल चुकी थी उसने एक बछड़े और दो बछिया को जन्म दिया था।

कभी-कभी सुगना के मन में दूसरे बच्चे की चाह जन्म लेती। सरयू सिंह से संभोग न कर पाने के कारण सुगना अपने मन की इस इच्छा को दबा ले जाती। हालांकि उसके बाबूजी उसकी कामेच्छा को काफी हद तक पूरा कर देते थे परंतु लण्ड से चुदने का सुख निश्चय ही अलग होता है वह मुखमैथुन और उंगलियों के कमाल से बिल्कुल अलग होता है। सुगना के मन में सरयू सिंह के मजबूत लण्ड की अंदरूनी मालिश की तड़प बढ़ती जा रही थी।

सरयू सिंह को देखकर सुगना चहकने लगी उसने फटाफट सरयू सिंह के कंधे में टंगे झोले को लिया और उसे झट से आंगन में रख आई। बाल्टी में रखी हुई पानी से उसने शरीर सिंह के हाथ और पैर धोए और बोली

"चली दूध दूह दीं आज देर हो गईल बा"

"सुगना के चेहरे पर खुशी और उसकी धधकती जवानी देख कर शरीर सिंह का रोम-रोम खुश हो जाता. उन्होंने सुगना को अपनी तरफ खींचा और उसकी बड़ी बड़ी चूचीयां सरयू सिंह के पुस्ट सीने से सटकर सपाट हो गयीं। उसके भरे भरे नितंब सरयू सिंह की मजबूत और बड़ी-बड़ी हथेलियों में आ चुके थे। सरयू सिंह थोड़ा झुक कर अपने खुर्रदुरे गाल सुगना के कोमल गालों से रगड़ रहे थे। सुगना ने मचलते हुए कहा पहले गाय के दूध दुह लीं। सरयू सिंह ने सुगना को छोड़ दिया और बाल्टी लेकर सुगना की सहेली गाय का दूध दुहने लगे।

सुगना ने कजरी की जगह ले ली थी वह अपनी सहेली के पुट्ठों पर हाथ फेरने लगी और सरयू सिंह गाय की चुचियों से दूध दुहने लगे….


सुगना को अचानक लाली की याद आई एक पल के लिए उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह लाली के नितंब सहला रही थी और कोई उसकी चुचियों से दूध निकाल रहा था। सुगना के दिमाग में राजेश की तस्वीर भी घूम रही थी को हमेशा उसके समीप आने को लालायित रहता था। उसकी सहेली गाय का दूसरा बच्चा भी दूसरे सांड से हुआ था। सुगना के मन मे अपने दूसरे सांड की तस्वीरें घूमने लगीं...

"कहां भुलाइल बाडू"

"काल राउर जन्मदिन ह नु" सुगना ने सरयू सिह को खुश कर दिया।

सरयू सिह उठकर खड़े हुए और अपनी आंखों में उम्मीद लिए सुगना से बोले

"तैयारी बा नु"

"का तैयारी करें के बा?"

उसने अनजान बनते हुए कहा...

सरयू सिंह ने सुगना के नितंबों पर हाथ फेरा और मुस्कुराते हुए बोले

"आपन वादा याद बा नु?"

"याद बा…."

सुगना ने सरयू सिंह जी के हाथ से बाल्टी ली और आंगन में भाग गई कल की बातें सोच कर उसकी जांघों के बीच बुर सतर्क हो गई थी पर उसकी छोटी सी गांड सहम गई थी….

शेष अगले भाग में
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