आपकी पिछली दोनों पोस्ट मैंने एक साथ पढ़ीं , पर ये पंक्तियाँ मुझे लगता है शायद कहानी की दिशा और दशा दोनों निर्धारित करें, इसलिए में थोड़ी चर्चा आज इन्ही पर करना चाहूंगी,
"... व्यभिचार की देन है और यह व्यभिचार अत्यंत निकृष्ट है ऐसे संबंध समाज और मानव जाति के लिए घातक है।" और "इसका जन्म नाजायज और निकृष्ट संबंधों से हुआ,... इसका जन्म नाजायज और निकृष्ट संबंधों से हुआ"
मैंने पहले भी कहा था की सुगना और सरजू सिंह के संम्ब्ध न तो कानूनी रूप से न ही नैतिक रूप से ' इन्सेस्ट' की श्रेणी में आते हैं. सरजू सिंह सुगना के ससुर नहीं हैं न ही सुगना उनकी बहू. सुगना के ससुर अगर कोई है तो वो वो विद्यानंद जी जो अपनी सांसारिक जिम्मेदारियां छोड़ कर अब स्वामी बन गए हैं, बिना इस बात की चिंता किये की जिस से उन्होंने शादी की, उस पत्नी की, जिस पुत्र को उन्होंने पैदा किया, उसकी क्या हालत है. सुगना का पति उसे छोड़कर बंबई में एक दूसरी स्त्री के साथ रह रहा है, उसके साथ उसके बच्चे भी हैं.
तो अनैतिक आचरण किसका है, सुगना का या उनका जो अपनी पत्नी और पुत्र को छोड़ कर चले गए, और ग्राहस्थ्य धर्म के अपने कर्तव्यों की अवहेलना की?
या सुगना के पति का, जिसने न सुगना को देह का सुख दिया न अपना सरंक्षण?
अब एक बार सुगना और सरयू सिंह के संबंधो को देखते हैं , मैं पाठकों से अनुरोध करुँगी उस प्रसंग को फिर से पढ़ें, एक झिझक, एक मानसिक अंतर्द्वंद एक उहापोह ,.. जो उस संबंध के पहले है, सुगना के मन में देह की भूख तो है लेकिन उस से बढ़कर पुत्र की लालसा है और कजरी के मन में वंश समाप्त होने का डर, और यह संबंध देह के क्षणिक सुख की लालसा से नै उत्पन हुए बल्कि पुत्र प्राप्ति की कामना और वंश समाप्त होने के भय से भी उत्पन्न हुए हैं, ... हाँ देह का आनंद भी है पर जो संस्कृति काम को धर्म और मोक्ष के बराबर पुरुषार्थ मानती है, अनंग को पूजती है, उस के लिए यह आवश्यक है सृष्टि को चलाने के लिए , सृष्टि का सृजन भले ही अपौरुषेय है , पर पुरुष और स्त्री मिल कर ही उसे आगे बढ़ाते हैं ,
और स्त्री के पति और ससुर दोनों ही, जिसे वो सही समझते हैं, उसके लिए उसे छोड़कर चले गए है उसके लिए क्या उचित है ?
चलिए अब एक बार नैतिकता और विधि दोनों के तराजू पर सुगना संबंध को देखते हैं, ...
अगर पत्नी पति की सहायता से वंश को आगे न चला पाए तो,...
महाभारत में इस तरह की स्थितियां बार बार आती हैं,
कुंती, पांडू की अनुमति से तीन देवो का आह्वान करती हैं , और उनसे अर्जुन, भीम और युधिष्ठिर पैदा होते हैं, और युधिष्ठिर धर्मराज भी कहे जाते हैं। माद्री संबध अश्विनी पुत्रों से हुआ और नकुल सहदेव से हुआ,
गांधारी का व्यास के साथ नियोग सर्वजन्य और सर्वमान्य भी है और विदुर भी उसी की उत्तप्ति हैं।
यहाँ पर भी वंश वृद्धि के लिए कजरी परेशान है , और सब कुछ सोच समझ कर वह सरजू सिंह का चयन करती है,...
हाँ कोई कह सकता है की सूरज के जन्म के बाद भी सरजू सिंह और सुगना का संबंध कायम रहा, लेकिन यह भी हमें देखना होगा की स्त्री की चाह सिर्फ देह की नहीं होती, ( जैसा अधिकतर कहानियों दिखाया जाता है ) देह तो एक सीढ़ी भर है, मन के तहखाने तक पहुँचने के लिए जहाँ आंनद का कोष है,... खजाना है ,
बिना मन के तन का संबध व्यभिचार हो सकता है, पर मेरे लेखे सुगना और सरजू सिंह का संबंध व्यभिचार की श्रेणी में नहीं आता,
अब वैधिक दृष्टि से भी इस पर नजर डालते हैं,
सर्वोच्च न्यायालय ने २०१८ में भारतीय दंड सहिंता की धारा ४९७ को अवैध घोषित कर दिया हैं और कहा है की स्त्री पुरुष की संपत्ति नहीं है अतः सुगना सरयू संबंध आपराधिक नहीं हैं,
यहाँ पर कहानी एक दोराहे पर खड़ी है, यह एक नैतिक अंतर्द्वंद की ओर मुड़ सकती है जहाँ सुगना और कजरी स्त्री के देह के अधिकारों की बहस करती दिख सकती हैं या
सूरज की जो एक मैजिकल स्थिति है , अंगूठे की जिसका जिक्र कहानी में पहले ही आ चुका था , उससे वो इन्सेस्ट की ओर मुड़ सकती है
लेकिन कोई भी पाठक /पाठिका यह नहीं अंदाज लगा सकता की कहानी किधर मुड़ेगी,... ख़ास तौर से इस तरह जबरदस्त कहानी
जब भी मैं इस फोरम पर आउंगी अपनी कहानियों की ओर रुख करने के पहले कहानी पर जरूर आउंगी ,