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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

LustyArjuna

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भाग 117

उधर कोई और रास्ता न देख सुगना ने फैसला कर लिया कि वह लाज शर्म छोड़कर…सोनू से खुलकर बात करेगी और डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को स्पष्ट रूप से सोनू को बता देगी.


सुगना अपनी बात सोनू तक स्पष्ट रूप से पहुंचाने के लिए अपने शब्दों को सजोने लगी …निश्चित ही अपने छोटे भाई को डॉक्टर द्वारा दी गई उस नसीहत को समझाना कठिन था

अब आगे..

लाली और सोनू के जाने के बाद सुगना खुद को असहाय महसूस कर रही थी। नियति ने उसे न जाने किस परीक्षा में डाल दिया था उसका अचूक अस्त्र लाली रणक्षेत्र से बाहर हो चुकी थी।


सोनू के पुरुषत्व को जीवित रखने के लिए सुगना नए-नए उपाय सोच रही थी। सोनू द्वारा स्वयं हस्तमैथुन कर अपने पुरुषत्व को जगाए रखना ही एकमात्र विकल्प नजर आ रहा था।

मुसीबत में इंसान तार्किक हुए बिना कई संभावनाएं तलाश लेता है परंतु हकीकत की कसौटी पर वह संभावनाएं औंधे मुंह गिर पड़ती हैं। अपने ही भाई को अब से कुछ दिनों पहले हस्तमैथुन के लिए पहले रोकना और अब उसे समझा कर उसी बात के राजी करना सुगना को विचित्र लग रहा था।

यद्यपि हस्तमैथुन वीर्य स्खलन करने में सक्षम तो था परंतु डॉक्टर ने दूसरे विकल्प के रूप में बताया था पहला विकल्प अब भी स्पष्ट था संभोग और संभोग हस्तमैथुन का विकल्प तब के लिए था जब सुगना संभोग के लायक कुदरती रूप से न रहती। शायद उस डॉक्टर ने वह क्रीम इसीलिए दी थी।

कई बार कुछ कार्य बेहद आसान होते हैं और अचानक ही एक कड़ी के टूट जाने से वह दुरूह हो जाते है। लाली और सोनू का मिलन सबसे सटीक उपाय था पर अब वह हाथ से निकल चुका था। अचानक सुगना को रहीम और फातिमा की कहानी याद आई और उसकी आंखों में चमक आ गई सुगना ने फटाफट कपड़े बदले और अपने दोनों बच्चों को पड़ोस में कुछ देर के लिए छोड़ कर बाजार की तरफ निकल गई। वैसे भी अब सूरज समझदार हो चुका था और अपनी बहन मधु का ख्याल रख लेता था।


जब जब सुगना सूरज और मधु को साथ देखती उसे भविष्य के दृश्य दिखाई देने लगते विद्यानंद द्वारा कही गई बातें उसके जेहन में गूंजने लगती सूरज कैसे अपनी छोटी बहन के साथ संभोग करेगा ?

सुगना न जाने क्यों यह बात भूल रही थी कि वह स्वयं उसी दहलीज पर खड़ी थी सोनू भी तो उसका अपना भाई था।

सुगना का रिक्शा एक राजसी वैद्य की कुटिया के पास रुका। अंदर वैद्य की जगह उनकी पत्नी उनका कार्यभार सम्हालती थी। कजरी से पूर्व परिचित होने के कारण वह सुगना के भी करीब हो चुकी थीं। सुगना अंदर प्रवेश कर गई। कुछ देर तक वार्तालाप करने की पश्चात वापसी में सुगना के चेहरे पर संतोष स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था शायद अंदर उसे जो शिक्षा और ज्ञान मिला था उससे सुगना संतुष्ट थी।

शाम के 4:00 बज चुके थे सुगना सोनू का इंतजार कर रही थी पर परंतु सोनू के आने में विलंब हो रहा था। सुगना सोनू से बात करने का मसौदा तैयार कर चुकी थी और न जाने कितनी बार उन शब्दों को अपने मन में दोहरा चुकी थी।


हर इंतजार का अंत होता है और सुगना का इंतजार भी खत्म हुआ सोनू की गाड़ी की आवाज बाहर सुनाई दी और सुगना झट से खिड़की पर आ गई। सोनू गाड़ी से उतर कर अंदर आ रहा था चेहरे पर थकावट स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही। बात सच थी आज का दिन सोनू का भागते दौड़ते बीत गया था। योजनाएं सिर्फ सुगना की चकनाचूर न हुई थी सोनू भी आशंकाओं से घिरा हुआ था। सलेमपुर में हुई घटना ने सब कुछ तितर-बितर कर दिया था।

सोनू अपना चेहरा अपने अंगौछे से पोछता हुआ अंदर आया।

"कईसन बाड़े लोग हरिया चाचा और चाची? ज्यादा चोट तो नाइखे लागल ?" सुगना ने स्वाभाविक प्रश्न किया। हरिया चाचा उसके पड़ोसी थे और सरयू सिंह के परम मित्र भी सुगना के सलेमपुर प्रवास के दिनों में उन दोनों ने सुगना का बखूबी ख्याल रखा था। कमरे के अंदर सरयू सिंह के उस दिव्य रूप और रिश्ते को छोड़ दिया जाए तो सरयू सिंह और हरिया दोनों पिता तुल्य ही थे।

"ठीक बाड़े लोग तीन-चार दिन में घाव सूख जाई ज्यादा चोट नईखे लागल चाची के ही पैर में प्लास्टर लागल बा उहे दिक्कत के बात बा? लाली दीदी त बुझाता ओहीजे रहीहैं " सोनू ने स्पष्ट तौर पर सुगना के मन में चल रही सारी संभावनाओं पर विराम लगा दिया।

सोनू स्वयं सुगना के मन की बात जानना चाहता था क्या सुगना उसके साथ जौनपुर जाएगी?

अपनी अधीरता सोनू रोक ना पाया शायद इसीलिए उसने सारी बातें स्पष्ट रूप से सुगना को बता दीं…वह बिना प्रश्न पूछे ही अपना उत्तर चाह रहा था।

सुगना सोच में डूब गई…

सुगना को मौन देख सोनू ने कहा..

" हमरा के जल्दी से चाय पिला द हमरा वापिस जौनपुर जाए के बा"

सुगना ने सोनू की बात का कोई उत्तर न दिया परंतु रसोईघर में जाते-जाते उसने सोनू और दिशा निर्देश दे दिया जाकर पहले मुंह हाथ धो ला। दिन भर के थाकल बाड़.. अ पहले चाय पी ल फिर बतियावाल जाए"


सुगना पूरी तरह तैयार थी। वैद्य जी की पत्नी से मिलने के बाद सुगना के पास कई विकल्प थे। जिसके तरकस में कई तीर आ चुके हों उसमें आत्मविश्वास आना स्वाभाविक।

सुगना रसोई घर में और सोनू गुसल खाने में अपने अपने कार्यों में लग गए पर दिमाग एक ही दिशा में कार्य कर रहा था।

आखिरकार सुगना चाय लेकर सोनू के समक्ष उपस्थित थी। सुगना आपने चेहरे पर उभर रहे भाव को यथासंभव नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी और अपनी नजरें झुकाए हुए थी। उसने सोनू के हाथ में चाय की प्याली दी और बोला

"आज ही जाएल जरूरी बा का?"

हां दीदी बहुत छुट्टी हो गईल बा अब और छुट्टी ना मिली…वैसे भी साल बीते में 1 सप्ताह ही बा।


सुगना ने फिर कहा

"1 सप्ताह बाद फिर लखनऊ भी जाए के बा चेकअप करावे मालूम बानू"

"हां याद बा… नया साल में चलल जाई"

"सोनू एक बात कही?" सुगना लाख प्रयास करने के बाद भी अपनी प्रश्न में छुपी हुई संजीदगी रोक ना पाए और सोनू सतर्क हो गया..

"हां बोल ना दीदी"

"डॉक्टर कहत रहे….." सुगना की सारी तैयारी एक पल में स्वाहा हो गई और उसकी जुबान लड़खड़ा गई

सोनू ने आतुरता से सुगना के मुंह में जबान डालते हुए बोला

"का कहत रहे दीदी?"


सुगना ने फिर हिम्मत जुटाई और बोली

" ते जवन नसबंदी करोले ल बाड़े ओकरे बारे में कहत रहे…"

"का कहत रहे?" सोनू ने सुगना को उत्साहित किया

"सुगना शर्म से गड़ी जा रही थी.. अपने कोमल पैरों से मजबूत फर्श को कुरेदनी की कोशिश की और अपनी हांथ की उंगलियों को एक दूसरे में उलझा लिया शारीरिक क्रियाएं दिमाग में चल रही उलझन का संकेत देती हैं सुगना परेशान हो गई थी। उसने बेहद धीमे स्वर में कहा ..

"डॉक्टर कहते रहे की… नसबंदी के सात दिन बाद एक हफ्ता तक ज्यादा से ज्यादा वीर्य स्खलन करना चाहिए… जिससे ऊ अंग आगे भी काम करता रहे चाहे इसके लिए हस्तमैथुन ही क्यों ना करना पड़े "

सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को तोड़मरोड़ कर सोनू को सुना दिया था…हिंदी भाषा का अधिकाधिक प्रयोग कर सुगना ने सोनू को डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत सुनाने की कोशिश की थी…. परंतु परंतु संभोग की बात वह छुपा ले गई थी आखिर जो संभव न था उसके जिक्र का कोई औचित्य भी न था।

अपनी बहन के मुख से हिंदी के वाक्य सुनकर सोनू भी आश्चर्यचकित था और मन ही मन मुस्कुरा रहा था उसने सुगना के शर्माते हुए चेहरे को पढ़ने की कोशिश की परंतु सुगना नजरे ना मिला रही थी.

"का दीदी अभी तीन-चार दिन पहले तक तो उल्टा कहत रहलू और अब उल्टा बोला तारु "

"जरूरी बार एही से बोला तानी"

"दीदी हमरा से ई सब ना होई वैसे भी हमार ई सब से मन हट गईल बा अब हमार जीवन के लक्ष्य बदल गईल बा"

सुगना को एक पल के लिए भ्रम हुआ जैसे सोनू सच कह रहा है परंतु सुगना यह बात भली-भांति जानती थी कि सोनू लाली को चोदने के लिए आतुर था बड़ी मुश्किल से उसने उसे लाली से 1 हफ्ते तक दूर रखा था अचानक वासना से विरक्ति निश्चित ही यकीन योग्य बात न थी।

सुगना कुछ और कहना चाहती थी तभी सूरज कमरे में आ गया और सोनू के पास में आते हुए बोला

"मामा लाली मौसी जौनपुर नईखे जात त हमनी के ले चला… हमरो स्कूल के छुट्टी हो गईल बा"

सोनू ने सूरज के गाल पर पप्पी ली और अपने मन में उठ रही खुशी की तरंगों को नियंत्रित करते हुए बोला.. "हमरा से का बोलत बाड़ा अपना मां से बोला हम तो चाहते बानी"

सूरज सोनू के पास से उठकर सुगना के पास में आ गया और उसके गालों और होठों को चूमते हुए बोला "मां चल ना " सोनू सुगना के चेहरे पर बदल रहे भाव को पढ़ रहा था। और उसने एक बार फिर सुगना से बेहद प्यार से कहा ..

" चल ना दीदी अब तो घर में केहू नईखे …दू चार दिन रह के नया घर देख लिहे ओहिजे से लखनऊ भी चल जाएके "

सुगना ने न जाने क्या सोचा पर उसने अपनी हामी भर दी और उठ कर अपने कमरे में आ गई। थोड़ी ही देर में सुगना अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ जौनपुर जाने के लिए तैयार थी। सुगना का पहला तीर खाली गया था पर उसके तरकश में अब भी तीर बाकी थे।

सोनू की सरकारी गाड़ी सड़क पर तेजी से दौड़ रही थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू की अधीरता उसका ड्राइवर भी समझ रहा था सुगना खिड़की का शीशा खोलें बाहर देख रही थी। चेहरा एकदम शांत पर मन में हिलोरे उठ रही थी जो सुगना ने सोचा था उसे अंजाम में लाने की सोच कर उसका तन बदन सिहर रहा था।

आखिरकार सुगना सोनू के नए बंगले पर खड़ी थी सोनू के मातहत फटाफट सुगना और सोनू का सामान गाड़ी से निकालकर अंदर लाने लगे और सोनू पहली बार अपनी बड़ी बहन सुगना तो अपने नए आशियाने में अंदर ला रहा था खूबसूरत सजा हुआ घर वह भी अपना….. सुगना घर की खूबसूरती देखकर प्रसन्न हो गई थी उसने हॉल में कुछ कदम बढ़ाए उसका ध्यान बगल के कमरे पर गया..

"अरे ई पलंगवा काहे खरीदले"


सोनू के घर में स्वयं द्वारा पसंद किए गए पलंग को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी। उस दिन बनारस में एक ही पलंग खरीदने की बात हुई थी और वह था लाली की पसंद का। सुगना ने पीछे मुड़कर सोनू को देखा और प्रश्न किया

"लाली ई पलंग देखित त का सोचित?"


सोनू पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था। वह सुगना के पास आया और उसका हांथ पकड़ कर दूसरे कमरे में ले गया…जहां लाली की पसंद का पलंग लगा था। सुगना सोनू की समझदारी पर खुश हो गई।

दोनों ही कमरे सोनू ने बेहद खूबसूरती के साथ सजाए थे और जितना भी वह अपनी बहनों को समझ पाया था उसने दीवारों पर रंगरोगन और बिस्तर की चादर का रंग भी उनके पसंद के अनुसार ही रखा था… सुगना अभिभूत थी। सोनू के प्रति उसके दिल में प्यार और इज्जत बढ़ गई।

सोनू के अर्दली और मातहतों ने सुगना का सामान सुगना के पलंग पर लाकर रख दिया और थोड़ी ही देर में सुगना अपने कमरे में सहज होने लगी। सूरज और मधु नए पलंग पर खेलने लगे।

रसोई घर की हालत देखकर सुगना ने सोनू से कहा…

"खाली रसोई घर के हालत खराब बा बाकी तो घर तू चमका ले ले बाड़ा"

"दीदी ई त हम तोहरा और लाली दीदी के खातिर छोड़ देले रहनी.. अब काल आराम से सरिया लिहा"

" तब आज खाना कैसे बनी"

"आज खाना बाहर से आई… ड्राइवर चल गईल बा ले आवे"

सुगना ने सोनू से पूछा

"और सूरज मधु खातिर दूध?"

" मंगा देले बानी.. और तोहरा खातिर भी तू भी त पसंद करेलू "

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे इस बात की खुशी थी कि उसका छोटा भाई उसकी हर पसंद नापसंद से अब भी बखूबी वाकिफ था।

धीरे-धीरे सभी घर में सहज हो गए खाना आ चुका था सूरज और मधु तो पहले से ही चॉकलेट और न जाने क्या-क्या अनाप-शनाप खाकर मस्त हो गए थे। सुगना ने सूरज और मधु को गिलास से दूध पिलाया। मधु भी अब काफी समय से सुगना की चूचियां पीना छोड़ चुकी थी शायद अब न तो उसे इसकी आवश्यकता थी और नहीं सुगना की चूचियां और दूध उत्सर्जन कर रही थीं। अब जो उनका उपयोग था उसका इंतजार कोई और कर रहा था।

अब तक सोनू स्नान ध्यान कर तैयार हो चुका था सफेद धोती और नई नई सैंडो बनियान पहने सोनू का गठीला बदन देखने लायक था बदन से चिपकी हुई बनियान उसे और खूबसूरत आकार दे रही थी पुष्ट और चौड़ा मांसल सीना और उस पर उभरी मांसल नसें ट्यूबलाइट के दूधिया प्रकाश में चमक रही थीं…

सूरज के अनुरोध पर सोनू सुगना के बिस्तर पर आकर दोनों के साथ खेलना लगा। सूरज और मधु धीरे-धीरे अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर पर लेटे सोनू से कहानियां सुनने लगे।

जब तक दोनो नींद में जाते सुगना सोनू के लिए खाना लेकर आ चुकी थी।

सोनू ने जिद कर सुगना के लिए भी प्लेट मंगवा ली सुगना कहती रही कि मैं स्नान करने के बाद आराम से खा लूंगी परंतु सोनू न माना। आखिरकार सोनू और सुगना साथ साथ भोजन करने लगे बार-बार सुगना की निगाहें सोनू के गठीले बदन पर जाती और सुगना सोनू के मर्दाना शरीर को देखकर मोहित हो जाती काश यदि सोनू उसका भाई ना होता तो निश्चित ही वह उसके सपनों का राजकुमार होता परंतु मन का सोचा कहां होता है हकीकत और कल्पना का अंतर है सुगना भली भांति जानती थी ।

सुगना ने मन बना लिया था कि वह सोनू के पुरुषत्व को निश्चित ही यूं ही खत्म नहीं होने देगी आखिर देर सबेर यदि सोनू विवाह के लिए राजी होता है तो अपनी अर्धांगिनी को वंश तो नहीं परंतु स्त्री सुख अवश्य दे पाएगा।

सोनू का कलेजा भी सीने में कुछ ज्यादा ही तेज धड़क रहा था जैसे-जैसे रात्रि की बेला नजदीक आ रही थी सोनू अधीर हो रहा था क्या होने वाला था? सुगना दीदी आखिर क्या करने वाली थी उसे इस बात का तो यकीन था कि आज की रात व्यर्थ न जाएगी पर कोई सुगना के व्यवहार में इसकी झलक दिखाई नहीं पड़ रही थी।

सुगना खाने की झूठी प्लेट लेकर वापस रसोई घर की तरफ से आ रही थी और उसके मादक नितंब सोनू की नजरों के साथ थिरक रहे थे।

सोनू अपने मन में सुगना के साथ बिताए कामुक पलों को याद करने लगा सुगना का नंगा बदन उसकी आंखों में घूमने लगा वासना चरम पर थी जैसे-जैसे सुगना का नशा दिमाग पर चढ़ता गया लंड उत्तेजना से भरता चला गया उधर सुगना के हाथ कांप रहे थे गर्म दूध गिलास में निकाल कर उसने अपने ब्लाउज में हाथ डालकर एक लाल पुड़िया निकाली… .और पुड़िया में रखा एक चुटकी सफेद पाउडर दूध की गिलास में मिला दिया….

उसने हाथ जोड़कर अपने इष्ट देव को याद किया और वैद्य जी की पत्नी को धन्यवाद दिया तथा अपनी पलकें बंद कर ली…शायद सुगना किए जाने वाले कृत्य की अग्रिम माफी मांग रही थी..

हाथ में गिलास का दूध लिए सुगना सोनू के बिस्तर पर आ चुकी थी…

"ले सोनू दूध पी ले "

"तू भी दूध पी ल" सोनू अपनी तरफ से सुगना का पूरा ख्याल रखना चाहता था।

सुगना ने बड़ी बहन के अधिकार को प्रयोग करते हुए सोनू से कहा

"अब चुपचाप दूध पी ला तोहरा कहना पर बिना नहाए ले खा लेनी अब दूध ना पियब…हम नहा के पी लेब "


सोनू ने दूध का गिलास पकड़ लिया। सुगना सूरज और मधु के ऊपर रजाई डालने लगी। वह बार-बार कनखियों से सोनू को देख रही थी मन में आशंका उठ रही थी कि कहीं सोनू को दूध का स्वाद अलग ना लगे और हुआ भी वही जैसे ही सोनू ने दूध का पहला घूंट लिया उसकी स्वाद इंद्रियों ने स्वाद में बदलाव महसूस किया परंतु इस बदलाव का कारण सोनू की कल्पना शक्ति से परे था। सोनू यह बात सोच भी नहीं सकता था कि उसकी बहन सुगना ने उस दूध में कुछ तत्व मिलाए थे।

सोनू ने फिर भी सुगना से कहा

"ओहिजा गांव में बढ़िया दूध मिलत रहे आज के दूध तो बिल्कुल अलग लागत बा.."

सुगना हड़बड़ा गई दूध का स्वाद निश्चित ही कुछ बदल गया होगा परंतु सुगना ने सोनू की बात को ज्यादा अहमियत न देते हुए कहा…

"हां अलग-अलग जगह के दूध में अंतर होला वैसे देखे में तो ठीक लागत रहे"

सोनू धीरे-धीरे दूध के घूंट पीता रहा और जब सुगना संतुष्ट हो गई की सोनू पूरा दूध खत्म कर लेगा वह नहाने के लिए गुसलखाने में प्रवेश कर गई।

सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था बाथरूम में नग्न शरीर पर गर्म पानी डालते हुए सुगना सोच रही थी क्या वह जो करने जा रही थी वह उचित था..

आइए सुगना को स्थिर चित्त होने के लिए कुछ समय देते हैं और आपको लिए चलते हैं सलेमपुर के उसी घर में जहां पर इस कहानी की शुरुआत हुई थी। सुगना के आगमन से अब तक घर में कई बदलाव आ चुके थे पर मूल ढांचा अब भी वहीं था परंतु समृद्धि का असर घर पर दिखाई दे रहा था सरयू सिंह की कोठरी भी अब बिजली के प्रकाश से जगमगाने लगी थी।

बनारस से वापस आने के बाद उनकी उम्मीदें टूट चुकी थी पर सोनी को याद करना अब भी बदस्तूर जारी था। हस्तमैथुन के समय सोनी अब भी याद आती थी परंतु ग्लानि भाव के साथ। आखिरकार सरयू सिंह ने अपनी वासना को नया रूप दिया और बाजार से जाकर टीवी खरीद लाए टीवी में कई नायिकाएं नायिकाएं और उनके प्रणय दृश्य सरयू सिंह को लुभाने लगे और धीरे-धीरे स्वयं को उन नायिकाओं के साथ कल्पना कर सरयू सिंह की रातें एक बार फिर रंगीन होने लगी।

हकीकत और टीवी का अंतर स्पष्ट था जब जब उनके मन में सोनी का गदराया बदन घूमता उत्तेजना नया रूप ले लेती परंतु वह भी यह बात जान चुके थे कि सोनी अब हाथ से निकल चुकी है।


मन में दबी हुई आस लिए सरयू सिंह धीरे-धीरे अपना समय व्यतीत कर रहे थे परंतु उन्होंने सोनी के लिए जो मन्नतें मांगी थी नियति ने उनकी इच्छा का मान रखने की सोच ली थी।

तभी कजरी उनकी कोठरी में आई और सरयू सिंह ने अपनी धोती से अपने खड़े लंड को ढक लिया..

टीवी पर चल रहे दृश्यों को कजरी ने सरयू सिंह की मनो स्थिति समझ ली और कहा…

"जाने ई कुल से राऊर ध्यान कब हटी"

सरयू सिंह ने कजरी को छेड़ते हुए कहा

" अब तू ता पूछा हूं ना आवेलू "

"अब हमरा से ई कुल ना होई आपके भी इस सब छोड़ देवें के चाही अतना उम्र में के ई कुल करेला?"

"काहे ना करेला ? काहे जब ले जान बा आदमी सांस लेला की ना.?." सरयू सिंह ने उल्टा प्रश्न पूछ कर अपनी बात रखने की कोशिश की.

"तब अपना पतोहिया सुगना के काहे छोड़ देनी…जैसे तीन चार साल खेत जोतले रहनी… आगे भी…जोतत रहतीं ओकरो जीवन त अभियो उदासे बा"

सरयू सिंह निरुत्तर हो गए। अपनी पुत्री सुगना के साथ जो पाप उन्होंने किया था वह उसे भली-भांति समझते थे। पर अब वह और उस बारे में नहीं सोचना चाहते थे और ना ही बात करना। सुगना उनकी दुखती रग थी जिसके बारे में कामुक बातें करने पर सरयू सिंह शांत पड़ जाते थे।

सरयू सिंह को को चुप देखकर कजरी ने उन्हें और परेशान करना उचित न समझा। यह बात कजरी भी जानती थी कि अब सुगना और सरयू सिंह के बीच कोई भी कामुक रिश्ता नहीं बचा है पर इसकी वजह क्या थी यह ज्ञान उसे न था।

कजरी आई थी कुछ और बात कहने और सरयू सिंह की दशा दिशा देखकर बातें कुछ और होने लगी थी कजरी ने मूल बात पर आते हुए कहा

"गुड़ के लड्डू बनावले बानी …छोटकी डॉक्टरनी सीतापुर आईल बिया जाके दे आईं बहुत पसंद करेले"

"के ?" सरयू सिंह छोटी डॉक्टरनी को समझ ना पाए

"अरे सब के दुलरवी सोनी"

सरयू सिंह के जेहन में सोनी का चेहरा घूम गया उन्होंने सहर्ष सीतापुर जाने की सहमति दे दी मन में उमंगे हिलोरे मार रही थी सोनी के करीब जाने की बात सुनकर मन एक बार फिर ख्वाब बुनने लगा था परंतु हकीकत सरयू सिंह भी जानते थे पर उम्मीदों का क्या?

उधर जौनपुर में सुगना अपना स्नान पूरा कर चुकी थी और सुगना द्वारा दिया गया दूध पीकर सोनू बिस्तर पर लेटे लेटे सो गया था शायद यह निद्रा कुछ अलग थी सुगना द्वारा दूध में मिलाया गया वह विशेष रसायन अपना असर दिखा चुका था सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी और कसा हुआ सोनू का बदन बिस्तर पर निढाल पड़ा हुआ था..

सुगना अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए आगे बढ़ रही थी.. पैर कंपकपा रहे थे यह ठंड की वजह से था या सुगना के मन में चल रहे भंवर से कहना कठिन था..

परीक्षा की घड़ी आ चुकी थी…

शेष अगले भाग में….
कामुकता सरयू सिंह और सोनी के बीच बढ़ने वाली हैं।
सुगना भी सोनु को सुला कर उसका पानी निकालना चाह रही है। देखना ये है कि सुगना अपने हाथों का प्रयोग करेंगी या फिर कुछ और ‌‌😉😉
 

LustyArjuna

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भाग 119


सोनू को मूत्र विसर्जन की इच्छा हुई और वह चाय का प्याला बिस्तर पर रख गुसल खाने की तरफ बढ़ गया। अंदर जैसे ही उसने छोटे सोनू को बाहर निकाला रात की बात सोनू को समझ में आ गई सुपाड़े के अंदर लिपटा हुआ सोनू का वीर्य से सना चिपचिपा सुपाड़ा यह बार-बार एहसास दिला रहा था की कल रात कुछ न कुछ हुआ है। सोनू को यह समझते देर न लगी कि उसका वीर्य स्खलन हुआ है…पर कैसे? सोनू ने अपने अंडरवियर को ध्यान से देखा…वीर्य स्खलन के अंश वहां मौजूद ना थे। सोनू ने एक बार फिर सुपाड़े पर लगे चिपचिपे वीर्य को अपनी उंगलियों पर लिया और अपने नाक के पास लाया…सोनू को यकीन हो गया कि उसका वीर्य स्खलन हुआ नहीं था अपितु कराया गया था….तो क्या सुगना दीदी….?

अब आगे…

सोनू ने अपने दिमाग पर जोर देने की कोशिश की परंतु दूध पीने के बाद का कोई भी दृश्य उसे याद न था उसे यह बात अवश्य ध्यान आ रही थी कि दूध का स्वाद कुछ अलग था।

अचानक उसे रहीम और फातिमा की किताब का वाकया ध्यान आ गया जिसमें फातिमा ने अपने छोटे भाई को दूध में मिलाकर कोई नशीला द्रव्य दिया था..और सोनू के होंठो पर मुस्कुराहट दौड़ गई। उसके जी में आया कि वह अपनी सुगना दीदी को जाकर चूम ले…पर भाई बहन के बीच नियति ने तय किया था वो घटित होना इतना आसान न था।

सोनू वापस बिस्तर पर आया और खुद को सामान्य दिखाते हुए सुगना के साथ चाय पीने लगा। सोनू को सामान्य देख सुगना भी सहज हो गई। कल रात हुई घटना सुगना और सोनू दोनों के लिए सुखद रही सुगना ने अपना कार्य पूरा कर लिया और सोनू अपनी बहन के और करीब आ गया।

आज शनिवार का दिन था सोनू की ऑफिस की छुट्टियां थी। रसोईघर का बिखरा हुआ सामान सोनू और सुगना का ध्यान खींच रहा था। कुछ ही देर बाद सुगना रसोई घर को सजाने में लग गई शायद यही एकमात्र कार्य सोनू ने अपनी बहनों के लिए छोड़ा था।

सुगना ने सोनू को निराश ना किया वह तन मन से रसोई घर को सजाने लगी। धीरे धीरे रसोईघर अपनी रंगत में आता गया…सुगना बीती रात के बारे में सोचते सोचते रसोई घर का सामान व्यवस्थित कर रही थी। उसके जेहन में वैद्य जी की पत्नी की बातें घूम रही थी …. उत्तेजना और स्खलन कुछ पलों का खेल नहीं स्त्री और पुरुष दिन भर में कई बार वासना के आगोश में आते हैं और पुरुषों में उसी दौरान वीर्य का निर्माण होता है। जितना अधिक वीर्य निर्माण उतना शीघ्र स्खलन।

सुगना ने पूरी तरह यह बात आत्मसात कर ली थी। उसने ठान लिया था कि वह सोनू के वीर्य निर्माण में अपनी भी भूमिका अदा करेगी। उसे पता था सोनू की विचारधारा उसके प्रति बदल चुकी थी.. और वर्तमान में सोनू की उत्तेजना का प्रमुख केंद्र व स्वयं थी.

सुगना रसोईघर को व्यवस्थित करने में लगी थी। शरीर पर पड़ी पतली नाइटी सुगना की मादकता को और बढ़ा रही थी अंदर पहने अंग वस्त्र चूचियों को तो कैद में कर चुके थे परंतु सुगना के गदराए नितंब छोटी पेंटी के बस में न थे। वह बार-बार सोनू का ध्यान खींच रहे थे …जो हॉल में बार-बार आकर अपनी बड़ी बहन के युवा और अतृप्त बदन को निहार रहा था…

जब सुगना उसे अपनी तरफ देखते पकड़ लेती सोनू की नजरें झुक जाती और वह बिना कुछ बोले वापस कमरे में जाकर सूरज और मधु के साथ खेलने लगता…सुगना जान चुकी थी कि सोनू की उत्तेजना से दोनों का ही फायदा था सुगना को मेहनत कम करनी पड़ती और वीर्य उत्पादन तथा स्खलन आसान हो जाता जो सोनू के पुरुषत्व को बचाए रखने के लिए आवश्यक था।

कुछ सामान अभी ऊपर के खाने में सजाए जाने थे सुगना का हाथ पहुंचना मुश्किल था दरअसल ऊंचाई ज्यादा होने की वजह से सुगना ही क्या सोनू का भी हाथ पहुंचना कठिन होता।

सुगना ने आवाज लगाई

" ए सोनू…."

सोनू सूरज और मधु के साथ खेलने में व्यस्त था।

अपनी बहन सुगना की आवाज सुनकर सोनू अगले ही पल रसोईघर में आ गया।

सोनू में सारी जुगत लगाई परंतु ऊपर के खाने में सामान रखने में नाकाम रहा.. आखिरकार सुगना ने कहा

"ले हमरा के पकड़ के उठाऊ हम रख देत बानी"

सुगना ने यह बात कह तो दी परंतु उसे आगे होने वाले घटनाक्रम का अंदाजा न था। सोनू ने सुगना को पीछे से आकर कमर से पकड़ लिया और उसे ऊपर उठाने लगा सुगना आगे की तरफ गिरने लगी उसने बड़ी मुश्किल से दीवाल का सहारा लिया और बोली

" उतार उतार ऐसे त हम गिर जाएब"


सोनू को अपनी गलती का एहसास हुआ वह सुगना के सामने की तरफ आया और उसने अपनी मजबूत बाहें पीछे की और सुगना के नितम्बो के ठीक नीचे उसकी जांघों को अपनी भुजाओं में कसते हुए सुगना को ऊपर उठा दिया।

मर्द सोनू की मजबूत भुजाओं में युवा सुगना को देखकर नियति स्वयं मचल उठी… सोनू का चेहरा सुगना की नाभि से छू रहा था और सुगना के मादक बदन की खुशबू सोनू के नथुनो में नशा भर रही थी थी इस खुशबू में निश्चित ही सुगना की अद्भुत योनि और उससे रिस रहे प्रेमरस की खुशबू भी शामिल थी। सोनू को न जाने कितने खजाने एक साथ मिल गए थे उसकी बांहों को सुगना के कोमल नितंबों का स्पर्श मिल रहा था और उंगलियां जांघों की कोमलता महसूस कर रही थी। सुगना के पंजे सोनू के लंड के बिल्कुल करीब थे सोनू घबरा रहा था कहीं उसकी उत्तेजना का अंदाज सुगना दीदी न कर लें और यह सुखद क्षण जल्द ही समाप्त हो जाए।

सुगना सोनू की मनोदशा से अनजान रसोई घर का जरूरी सामान ऊपरी खाने में सजाने लगी। कुछ ही पलों में आवश्यक सामान ऊपर व्यवस्थित कर दिया गया और जब कार्य खत्म हुआ तो सुगना को अपनी अवस्था का ध्यान आया सोनू की गर्म सांसे अपनी नाभि पर महसूस कर सुगना की वासना जाग उठी वह यह बात भूल गई कि उसे बाहों में उठाने वाला व्यक्ति सरयू सिंह नहीं अपितु उसका छोटा भाई सोनू है…सुगना कुछ देर तक उस आनंद में खो गई और सोनू की गर्म सांसो को अपने बदन पर फैलते हुए महसूस करने लगी उसके हाथ ऊपर रखे सामानों को यूं ही आगे पीछे कर व्यवस्थित कर रहे थे परंतु शरीर की सारी चेतना वासना पर केंद्रित हो गई थी..


सुगना ने अंदाज कर लिया कि उसका पैर सोनू की जांघों के ठीक बीच में है उसने जानबूझकर अपने पैर के पंजों से सोनू के लंड को छूने की कोशिश की और सोनू के लंड को पूरी तरह तना हुआ पाकर मन ही मन मुस्कुराने लगी…

अपने तने हुए लंड पर सुगना के पंजों का स्पर्श पाकर सोनू शर्मसार हो गया उसने झल्लाते हुए कहा

"अरे दीदी अब उतर हाथ दुख गईल"

"ठीक बा अब उतार दे काम हो गएल" और सोनू ने धीरे-धीरे अपनी भुजाओं का कसाव कम करना शुरू किया और सुगना ऊपर से नीचे धीरे-धीरे सोनू के बदन से सटती हुई नीचे आने लगी। सोनू की हथेलियों ने सुगना के नितंबों को बेहद करीब से महसूस किया और सोनू की वासना तड़प कर रह गई …लंड उस मखमली स्पर्श के लिए तड़प कर रह गया।

ऊपर सुगना की मदमस्त चूचियां सोनू के चेहरे के बेहद करीब से लगभग सटती हुई नीचे आ रही थी और फिर सुगना का खूबसूरत और कोमल चेहरा। एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना को इसी अवस्था में पकड़ ले और उसके खूबसूरत होठों को कसकर चूम ले पर सुगना ….उसकी बड़ी बहन थी और को सोनू सोच रहा था वो अभी संभव न था।.


सुगना यह बात भली-भांति जान चुकी थी की कुछ मिनटो में जो स्पर्श सुख सोनू ने लिया था उसका असर सुगना ने अपने पैर के पंजों महसूस कर लिया था। उसने कोई प्रतिक्रिया न दी और बेहद प्यार से बोली…

"देख इतना सुंदर तोर रसोईघर बना देनी ठीक लागत बा नू….."

सोनू को अब मौका मिल गया उसने सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और बेहद प्यार से बोला

" जवन भी चीज में हमरा दीदी के हाथ लग जाला ऊ चीज सुंदर हो जाला"

"जाकी रही भावना जैसी " सुगना एक बार फिर कल सोनू के लंड के बारे में सोचने लगी जो उसके हाथों का स्पर्श पाते ही खिलकर खड़ा हो गया था।"

सोनू के आलिंगन में खुद को महसूस कर सुगना सहम गई बात आगे बढ़ती इससे पहले सुगना ने सोनू के सीने पर हल्का धक्का दिया और बोली

"चल हट तोर काम हो गईल अब ढेर मक्खन मत लगाव"

सोनू कमरे से बाहर जा चुका था। अचानक सुगना ने अपनी जांघों के बीच कुछ गीलापन महसूस किया जो स्वाभाविक था सोनू जैसे मर्द की बाहों में आने के बाद कोई भी तरुणी अपने कामांगो का ध्यान अवश्य करती और निश्चित ही उसके कामांग सोनू से मिलने को आतुर हो उठते।

सुगना की बुर धीरे-धीरे बेचैन हो रही थी आखिर डॉक्टर की नसीहत उसके लिए भी थी सुगना को भी अपनी बुर को जीवंत रखने के लिए जमकर संभोग करना था परंतु सुगना का भविष्य गर्त में था सुगना के जीवन में आए दोनों मर्द सरयू सिंह और रतन अब बीते दिनों की बात हो चुके थे और उसके सामने जो खड़ा था वह हर रूप में उसके योग्य होने के बावजूद रिश्तों के आड़े आ रहा था।

कमरे में सुगना के पलंग पर सूरज और मधु दोनों सोनू के साथ खेल रहे थे। आत्मीयता इतनी कि यदि उन्हें कोई इस तरह खेलते देखता तो निश्चित यही समझता कि सोनू उन दोनों खूबसूरत बच्चों का पिता है यह बात भी अर्धसत्य थी मधु सोनू और लाली के मिलन से जन्मी थी। अचानक सूरज ने कहा

"मामा लखनऊ वाली कलेक्टर मैडम के यहां कतना बढ़िया झूला रहे तू काहे ना खरीदला ? "

बालमन सहज पर सजग होता है। वह भी अपनी आवश्यकता की चीजों का निरीक्षण करता रहता है और मन ही मन उनकी इच्छा अपने दिल में करता रहता है। सूरज को भी शायद मनोरमा मैडम के घर में रखा हुआ पिंकी का वह झूला बेहद पसंद आया था जिसमें लेटी हुई पिंकी चैन की नींद ले रही थी। सूरज के मन में भी तब से वह झूला घर पर गया था और उसने अपनी बात अपने मामा सोनू से खुलकर कह थी।


जब एक बार बात निकल गई तो फिर सोनू को रोकना कठिन था। सोनू बाजार गया और कुछ ही देर बाद मनोरमा जैसा तो न सही परंतु शायद उससे भी खूबसूरत बच्चों का झूला घर में हाजिर था।

झूला छोटी मधु के लिए था पर आकार में बड़ा हो पाने के कारण सूरज भी उसमे आराम से आ सकता था उसकी उम्र ही क्या थी।

सोनू ने सूरज और मधु दोनों को ही पालने में डाल दिया और बेहद प्यार से ही आने लगा सूरज छोटी मधु को बड़े प्यार से खिला रहा था और उसके पेट पर गुदगुदी कर रहा था अब तक कमरे में सुगना आ चुकी थी अपने दोनों बच्चों को झूले में हंसता खेलता देख उसका हृदय गदगद हो गया था और बिस्तर पर बैठा सोंनू उसे और भी प्यारा लग रहा था पलंग अपने प्रेमी जोड़ों के लिए पलक पावडे बिछाए तैयार था।

उधर सीतापुर में दोपहर हो चुकी थी पदमा सरयू सिंह को भोजन करा रही थी…और बगल में बैठकर बातें कर रही थी सोनी बीच-बीच में आकर घटा बढ़ा सामान पहुंचा रही थी। जब जब सोनी करीब आती सरयू सिंह की पीठ में तनाव आ जाता और वह संभल कर बैठ जाते और उसके जाते ही फिर सहज हो जाते हैं युवा किशोरियों और तरुणियों को देखकर सरयू सिंह का यह व्यवहार अनूठा था। चुदने योग्य युवतियों को देख सरयू सिंह का गठीला बदन युवा अवस्था में लौट आता सीना चौड़ा हो जाता और बाहर झांकता हुआ पेट तुरंत ही रीड की हड्डी से जा चिपकता। यह कार्य उतने ही स्वाभाविक तरीके से होता जैसे पलकों का झपकना।

सरयू सिंह की हरकतों और उनके हावभाव से पदमा ने यह भाप लिया की सरयू सिंह निश्चित ही सोनी की उपस्थिति में कुछ असहज महसूस कर रहे हैं और इतना तो पदमा को भली-भांति पता था कि कोई पुरुष यदि स्त्री की उपस्थिति में थोड़ा भी असहज महसूस करें तो यह मान लेना चाहिए कि उन दोनों के बीच जो संबंध हैं वह उन्हें स्वीकार्य नहीं और उन संबंधों में कुछ बदलाव होने की आशंका है पदमा सरयू सिंह की नस नस से वाकिफ थी ऐसा न था की सरयू सिंह किसी युवती पर डोरे डालते थे और उससे अपनी वासना में खींचने की कोशिश करते परंतु वह यह बात भली-भांति जानती थी सरयू सिंह का व्यक्तित्व और उनका मर्दाना शरीर तरुणियों को स्वतः उनकी तरफ आकर्षित करता था।

शायद यही वजह थी कि सरयू सिंह की निगाहों से असहज महसूस करने वाली सोनी रह-रहकर उनके करीब आ रही थी।

खाना खत्म होने के बाद पद्मा ने सरयू सिंह से कहा

"बनारस जाके शादी के दिन बार के बारे में बतिया लेब सोनी कहत रहली की विकास के पढ़ाई दो-तीन महीना में खत्म हो जाए और वह बनारस वापस आ जईहैं"

सरयू सिंह को एक पल के लिए लगा जैसे उनका दिवास्वप्न तोड़ दिया गया था। जिस सोनी को अपनी ख्वाबों में सजाए और उसके खूबसूरत अंगों की परिकल्पना करते हुए सरयू सिंह भोजन कर रहे थे वह भोजन के खात्मे के साथ ही खत्म हो चुका था उन्होंने अपने हाथ धोते हुए कहा

"ठीक बा…"

सरयू सिंह ने थोड़ा विश्राम किया और फिर वापस सलेमपुर के लिए निकल पड़े आज सुबह छोटी डॉक्टरनी का जो रूप उन्होंने देखा था उसने सोनी के प्रति उनके विचारों में परिवर्तन लाया था शहरों में आधुनिक वेशभूषा में घूमने और रहने वाली सोनी आज सुबह गांव के पारंपरिक वेशभूषा में जिस तरह अपनी मां का हाथ बटा रही थी वह सराहनीय था। सोनी को लेकर सरयू सिंह के विचार बदल रहे थे परंतु अभी दिल्ली दूर थी सोनी को अपनी गोद में लेकर मनभर चोदने की इच्छा को हकीकत का जामा पहना पाना कठिन था।

बोली उधर जौनपुर में सुगना के अनुरोध पर सोनू दोनों बच्चों को लेकर मंदिर गया और सुगना ने अपने आराध्य से अपने परिवार की खुशियां मांगी परंतु सोनू ने जो मांगा वह पाठक भली-भांति समझ सकते हैं । इस समय सुगना सोनू के चेतन और अवचेतन मन दोनों पर राज कर रही थी उसे सुगना के अलावा न कुछ दिखाई दे रहा ना था और न कुछ सूझ रहा था। सुगना के बदन के बारे में सोचते सोचते सोनू के विचार एक तूफान की तरह अपने केंद्र में एकत्रित होते और उसका अंत सुगना की मखमली बुर पर खत्म होता..

धीरे-धीरे दिन भर का तनाव खत्म होने का वक्त आया सुगना ने अपने बच्चों और सोनू के लिए खाना बनाया.. सोनू की पसंद के पकवान बनाते समय सुगना सोनू के बचपन से लेकर युवा होने तक सारी बातें याद कर रही थी जबसे सोनू युवा हुआ था और लाली के करीब आया था सुगना के विचारों में सोनू का बालपन न जाने कब अपना रूप बदल चुका था लाली को चोदते हुए देखने के बाद सुगना ने पहली बार सोनू से नजरें मिलाने में शर्म महसूस की और फिर जैसे-जैसे वासना सोनू और सुनना को अपने आगोश में लेती गई दोनों के बीच भाई-बहन की मासूमियत तार-तार होती गई और सुगना ने अपनी जांघों के बीच सोनू के लिए उत्तेजना महसूस करना शुरू कर दिया….

सुगना ने बीती रात जो प्रयोग किया था आज भी उसे हूबहू दोहराने के लिए बिसात बिछा ली उस मासूम को क्या पता था कि वह जिस सोनू पर जिस हथियार का प्रयोग करने जा रही थी उसने उसकी रणनीति बना रखी थी।

सोनू और सुगना ने साथ में भोजन किया बच्चों ने भी दिनभर की खेलकूद के पश्चात मनपसंद भोजन कर नए-नए पालने में आकर झूला झूलने लगे सूरज ने भी जिद कर उसी झूले में अपने लिए जगह तलाश ली।


सोनू सूरज और मधु को पालने में एक दूसरे के साथ प्यार करते और खेलते देखकर मन ही मन सोच रहा था क्या बालपन का यह प्यार भविष्य में कोई और रूप ले सकता है सुगना और उसके बीच कुछ ऐसी ही घटनाएं बालपन में हुई होंगी और उसकी सुगना दीदी ने उसका ऐसे ही ख्याल रखा होगा परंतु आज…

वासना के आधीन सोनू उस रिश्ते की पवित्रता को नजरअंदाज कर सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों और बुर पर अपना ध्यान लगाए हुए था। मन के किसी कोने में सुगना की अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति करना वह अपना दायित्व समझ रहा था। बीती रात उसकी बहन ने जो उसके पुरुषत्व को बचाने के लिए किया था आज उसका ऋण चुकाने का वक्त था ….

सोनू बाथरूम में मुत्रत्याग के लिए गया और मूत्र त्याग के दौरान शावर की लंबी रोड पर टंगी सुगना की ब्रा और पेंटी को देखकर मदहोश होने लगा। लंड से मूत्रधार बहती रही और लंड में लहू एकत्रित होता गया। उसने सुगना के अंतर्वस्त्र को चूमा पुचकारा और फिर वापस उसी जगह रख दिया। अंतर्वस्त्रों ने सोनू की कल्पना को आज फिर एक नया रूप दे दिया।

अचानक सोनू के दिमाग में कुछ विचार आए और उसने सुगना की ब्रा और पेंटी को शावर की रॉड के ठीक किनारे लटका दिया जिससे उसका अधिकतर भार एक तरफ झूल गया…. उस पर से उसने सुगना की नाइटी डाल दी जिससे ब्रा और पेंटी नीचे गिरने से तात्कालिक रूप से बच गई। पर यदि सुगना अपनी नाइटी को हटाकर ब्रा और पैंटी को पकड़ने की कोशिश करती तो निश्चित ही असावधानी के कारण ब्रा और पेंटिं नीचे गिरकर बाल्टी में गिरती या फर्श के पानी भीग जाती।

सोनू न जाने अपने मन में क्या-क्या सोच रहा था और उसी अनुसार अपने मन में योजनाएं बना रहा था। उधर सोनू के लंड ने अब तक अपना आकार ले लिया था अपनी बड़ी बहन की ब्रा और पेंटी को चूमने तथा पूचकारने का असर नीचे दिखाई पड़ रहा था सोनू ने अपने लंड को अपने हाथों में ले और उसे मसल मसल कर वीर्य त्याग करने लगा था। सोनू अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा था।

कुछ ही देर में सोनू ने अपना वीर्य स्खलन पूरा किया और वापस आकर बिस्तर पर उसी तरह लेट गया। सफेद धोती में अपना लंड छुपाए और सफेद गंजी में सोनू का बदन एक बार फिर चमक रहा था।

उधर रसोई में सुगना ने दूध तैयार किया वैद्य जी की पत्नी द्वारा दी गई दवाई मिलाई और दूध लेकर सोनू की तरफ आने लगी।पर कल की तरह आज सुगना के हाथ में दो गिलास न थे। शायद दिन भर में दूध की खपत कुछ ज्यादा हो गई थी और रात्रि के लिए दूध एक ही गिलास बचा था।

बिस्तर पर लेटे सोनू की धड़कन तेज थी लंड स्खलित होकर आराम कर रहा था। आज सोनू ने जानबूझकर अपना अंडरवियर नहीं पहना था परंतु सतर्क होने के कारण धोती का आवरण भी उसे ढकने में कामयाब हो रहा था। सुगना को अपने करीब आते देख कर उसने स्वयं को व्यवस्थित किया और पालथी मारकर पलंग पर बैठ गया धोती को अपने जननांगों के पास समेट कर उसने अपने आराम कर रहे लंड को पूरी तरह ढक लिया।

"आज दिन भर ढेर काम हो गईल ने दूध पीकर सूत जो…." सुगना ने स्वयं को यथासंभव सामान्य दिखाते हुए कहा।

"अरे एक ही गिलास दूध ले आईल बाड़ू तू ना पियाबु"

"नाना हम पी ले ले बानी" सुगना ने झूठ बोलने की कोशिश की पर इस झूठ में सिर्फ और सिर्फ त्याग था।

"अइसन हो ना सकेला हमार कसम खा"

सोनू की झूठी कसम खा पाना सुगना के लिए संभव न था वह बात बदलते हुए बोली

"अरे पी ले हम ढेर खाना खा ले ले बानी"

परंतु सोनू ना माना उसने आगे झुक कर सुगना की कलाइयां पकड़ ली और उसे खींचकर अपने बगल में बैठा लिया

"पहले तू थोड़ा दूध पी ला तब हम पियेब " सोनू ने अधिकार जमाते हुए कहा।

सुगना को पता था सोनू अपनी जिद नहीं छोड़ेगा पर यदि उसने दूध पिया तो……. सुगना का हलक सूखने लगा

"का सोचे लगलू? थोड़ा सा पी ला…"

सुगना को कोई उत्तर न सूझ रहा था आखिरकार उसने हार मान ली और बोली

" बस दो घूंट और ना.."

सोनू ने गिलास अपने हाथ में लेकर अपने अंगूठे से गिलास पर निशान बनाया और बोला

"इतना पी जा ना ता हम दूध ना पिएब"

सुगना जानती थी यदि उसने दूध पीने में आनाकानी की और ज्यादा जिद की तो सोनू को शक हो सकता था । और यदि सोनू ने दूध न पिया तो आज उसका वीर्य स्खलन असंभव हो जाता। उसने सोनू की संतुष्टि के लिए मजबूरी बस दूध के कुछ घूंट अपने हलक के नीचे उतार लिए।


उसे पता था कि वह स्वयं अब उस दवा के प्रकोप में आ सकती है परम उसे विश्वास था कि वह दूध की कुछ मात्रा लेने के बावजूद भी वह अपनी चेतना बरकरार रख सकती है। सुगना ने दूध के कुछ घूंट पिए और गिलास सोनू को हाथ में देते हुए बोली

"अब पी जा बदमाशी मत कर हम जा तानी नहाए…"

सोनू दूध पीने के मूड में बिल्कुल भी नहीं था परंतु सुगना वहां से हिलने को तैयार ना थी। जब तक सोनू के गले की मांसपेशियों ने दूध हलक में उतरने का दृश्य सुगना की आंखों के समक्ष न लाया सुगना वहां से न हटी। परंतु जैसे ही सुगना ने बाथरूम की तरफ अपने कदम बढ़ाए सोनू ने दूध पीना रोक लिया और सुगना के बाथरूम में जाते ही वह दूध रसोई घर में जाकर बेसिन में गिरा आया।

भाई-बहन के इस मीठे प्यार ने दोनों के हलक में उस दिव्य दूध की चंद घूटें उतार दी थी…

दोनों भाई बहन कभी अपने सर को झटकते कभी अपनी आंखों को बड़ा कर दवा के असर को कम करने की कोशिश करते….


सुगना निर्वस्त्र होकर स्नान करने लगी उसके दिमाग में एक बार फिर सोनू का लंड घूमने लगा जिसे अब से कुछ देर बाद उसे हाथों में लेकर सहलाते हुए स्खलित करना था। जांघों के बीच हो रही बेचैनी को सुगना ने रोकने की कोशिश न कि आखिर बुर से बह रही लार ने कल रात सुगना की मदद ही की थी..
अपने उत्तेजक ख्यालों में खोई सुगना ने अपना स्नान पूरा किया तौलिए से अपने भीगे बदन को पोछा और अपने अंतर्वस्त्र पहनने के लिए शावर की रॉड पर टंगी अपनी नाइटी को हटाया….

जब तक सुगना अपने अंतर्वस्त्र पकड़ पाती वह नाइटी के हटते ही वह रॉड से नीचे गिर गए। सुगना ने उन्हें पकड़ने की कोशिश अवश्य की परंतु सोनू की चाल कामयाब हो गई थी। सुगना की ब्रा और पेंटी नीचे रखी बाल्टी में जा गिरे थे और भीग गए। वो अब पहनने लायक न थे। सुगना कुछ समय के लिए परेशान हो गई पर कोई उपाय न था। आखिर का उसने हिम्मत जुटाई और बिना अंतर्वस्त्र पहले ही नाइटी पहन कर बाहर आ गई…

वैसे भी उसके अनुसार उसका भाई सोनू अवचेतन अवस्था में होगा नाइटी के अंदर अंतर्वस्त्र है या नहीं इससे किसी को फर्क नहीं पड़ना था। परंतु सुगना शायद यह बात नहीं जानती थी कि उसका छोटा भाई सोनू उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा और जब वह उसकी भरी-भरी चुचियों और जांघों के बीच से झांक रहे अमृत कलश को अपनी निगाहों से देखेगा वह कैसे खुद पर काबू रख पाएगा…

सुगना को अपनी तरफ आते देख सोनू ने सुगना की चूचीयों को बंद पलकों के बीच से झांक कर देखा और चुचियों की थिरकन से उसने अपनी योजना की सफलता का आकलन कर लिया।


सुगना एक बार फिर सोनू के बगल में बैठ चुकी थी। और अपने दाहिने हाथ से सोनू की धोती को अलग कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी…सुगना जागृत सोनू का लंड अपने हाथों से पकड़ने जा रही थी..

दवा की खुमारी ने सोनू और सुगना दोनों को सहज कर दिया था।

पाप घटित होने जा रहा था….

शेष अगले भाग में….
Bhut badhiya update....... Base pura ready ho gya h, ab to premyudh hona hi h
 

LustyArjuna

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AJJU ji धन्यवाद वास्तव में यह अपडेट मुझे भी अच्छा लगा अपना जुड़ाव बनाए रखें.

बाकी सभी पाठकों को भी एक बार फिर कहानी के पटल पर आकर अपना समर्थन दिखाने के लिए धन्यवाद।

Is Kahani Ko anjam Tak pahunchane ke liye pathakon ka samarthan behad aham hai jab tak aap sab is Patel per Aakar apni upsthiti darj karte rahenge Kahani aage badhati rahegi anyatha mere likhane ka koi auchit nahin hai dhanyvad
लवली जी,
आपने सोनू और सुगना के मिलन के सारे अपडेट यहां पटल पर नहीं डाले और अब आप कहानी के पटल पर आते नहीं। इससे मेरे जैसे नये पाठकों के लिए यह कहानी यहां तक पड़ने के बाद भी अधुरी है।

कृप्या करके जब भी active/ online आओ site पर तो १०१, १०२, १०९ और अब १२० अपडेट जरूर भेजना।

अपडेट के इन्तजार में आपकी कहानी के नये पाठक ‍।
 

sunnyforyou

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Lovely ji please send update 101 & update 102. Thanks
 

sunnyforyou

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भाग 108

कान पकड़कर सुगना से मिन्नते करता सोनू नियति को बेहद मासूम लग रहा था। सुगना को ऐसा लगा जैसे शायद सोनू और उसका यह मिलन एक संयोग था और उन दोनो के लिए एक सबक था। परंतु सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था नियति सोनू के दिमाग से खेल रही थी।

सुगना ने सोनू के सर पर हाथ रखते हुए कहा

"अब जा सुत रहा देर हो गइल बा काल सुबह अस्पताल जाए के भी बा"


सुगना और सोनू एक बार बिस्तर पर पड़े छत को निहार रहे थे…नियति सोनू और सुगना के मिलन की पटकथा लिख रही थी…


अब आगे…

अब से कुछ देर पहले माफी के लिए मिन्नतें कर रहे सोनू के सर पर हाथ फेर सुगना ने अपनी नाराजगी कम होने का संकेत दे दिया था। यह बात सुगना बखूबी जान रही थी कि उस पर आई इस आफत का कसूरवार सोनू था.. परंतु इसमें कुछ हद तक वह स्वयं भी शामिल थी।

डबल बेड के बिस्तर पर एक किनारे सुगना और दूसरे किनारे सोनू सो रहा था दोनों सूरज और मधु बीच में सोए थे और गहरी नींद में जा चुके थे। सिरहाने पर अपना सर ऊंचा किए सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी। सुगना का हाथ छोटी मधु के सीने पर था। सुगना का मासूम और प्यारा चेहरा नाइट लैंप की रोशनी में चमक रहा था।


सोनू उसे एकटक देखे जा रहा था। सुगना की आंखें बंद अवश्य थीं परंतु उसके मन में कल होने वाली संभावित घटनाओं को लेकर कई विचार आ रहे थे अचानक सुगना ने अपनी आंखें खोल दी और सोनू को अपनी तरफ देखते हुए पकड़ लिया।

"का देखत बाड़े? हमरा काल के सोच के डर लागत बा…"

सोनू अंदर ही अंदर बेहद दुखी हो गया। निश्चित ही सुगना कल एक अप्रत्याशित और अवांछित पीड़ा से गुजरने वाली थी। अपनी नौकरी लगने के बाद सोनू सुगना के सारे अरमान पूरे करना चाहता था उसे ढेरों खुशियां देना चाहता था…और सुगना की रजामंदी से उसे प्यार कर उसकी शारीरिक जरूरतें पूरी करना चाहता था और उसके कोमल बदन अपनी बाहों में भर अपनी सारी हसरतें पूरी करना चाहता था। परंतु वासना के आवेग में और लाली के उकसावे पर की गई उसकी एक गलती ने आज यह स्थिति पैदा कर दी थी।


सोनू कुछ ना बोला…अपनी बहन सुगना को होने वाले संभावित कष्ट के बारे में सोचकर वह रुवांसा हो गया। उसकी आंखें नम हो गई और उसने करवट लेकर अपनी नम आंखें सुगना से छुपाने का प्रयास किया परंतु सफल न हो पाया…

सुगना सोनू के अंतर्मन को पढ़ पा रही थी।सुगना के जीवन में वैसे भी संवेदनाओं का बेहद महत्व था। सोनू के दर्द को सुगना समझ पा रही थी अंदर ही अंदर पिघलती जा रही थी उसका सोनू के प्रति गुस्सा धीरे-धीरे खत्म हो रहा था।

अगली सुबह सुगना और सोनू सूरज मधू दोनोंं के साथ डॉक्टर के केबिन के बाहर थे…

प्रतीक्षा हाल में बैठे सोनू और सुगना को देखकर हर कोई उन्हें एक नजर अवश्य देख रहा था आस पास बैठी महिलाएं आपस में खुसुर फुसुर कर रही थी.. ऐसी खूबसूरत जोड़ी… जैसे सोनू और सुगना दोनों का सृजन ही एक दूसरे के लिए हुआ हो।

प्रतिभा सिंह…. नर्स ने पुकार लगाई। सोनू अपने ख्यालों में खोया हुआ था उसे यह बात खुद भी ध्यान न रही कि उसने अपॉइंटमेंट प्रतिभा सिंह के नाम से ली थी। सुगना को तो जैसे एहसास भी न था कि सोनू ने इस अबार्शन के लिए उसका नाम ही बदल दिया है।

प्रतिभा सिंह कौन है नर्स ने फिर आवाज़ लगाई। सोनू सतर्क हो गया वह उठा और सुगना को भी उठने का इशारा किया सुगना विस्मय भरी निगाहों से सोनू की तरफ देख रही थी परंतु सोनू ने अपने हाथ से इशारा कर उठाकर सुगना को धीरज रखने का संकेत दिया और अपने पीछे पीछे आने के लिए कहा कुछ ही देर में दोनों नर्स के पास थे।

सुगना का रजिस्ट्रेशन कार्ड बनाया जाने लगा नाम प्रतिभा सिंह…पति का नाम…

नर्स ने सोनू से पूछा अपना नाम बताइए..


संग्राम सिंह…

अपना परिचय पत्र लाए हैं..

सोनू ने एसडीएम जौनपुर का आईडी कार्ड नर्स के समक्ष रख दिया शासकीय आई कार्ड की उस दौरान बेहद अहमियत होती थी नर्स ने एक बार कार्ड को देखा फिर एक बार सोनू के मर्दाना चेहरे को। वह खड़ी तो न हुई पर उसने अपनी जगह पर ही हिलडुल कर सोनू को इज्जत देने की कोशिश अवश्य की और आवाज में अदब लाते हुए कहा

"सर आप मैडम को लेकर वहां बैठिए मैं तुरंत ही बुलाती हूं"

नर्स ने रजिस्ट्रेशन कार्ड सुगना के हाथ में थमा दिया सुगना बार-बार रजिस्ट्रेशन कार्ड पर लिखा हुआ अपना नया नाम पढ़ रही थी और पति की जगह संग्राम सिंह उर्फ सोनू का नाम देखकर न जाने उसके अंतर्मन में क्या क्या विचार आ रहे थे…

कुछ ही देर में सोनू और सुगना डॉक्टर के केबिन में थे डॉक्टर एक अधेड़ उम्र की महिला थी…


सुगना और सोनू को सूरज मधू के साथ देख कर वह यह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि सुगना दो बच्चों की मां है। उससे रहा न गया उसने सुगना से पूछा

"क्या यह दोनों आपके ही संतान हैं ?"

"ज …जी…" सुगना आज खुद को असहज महसूस कर रही थी। हमेशा आत्मविश्वास से लबरेज रहने वाली सुगना का व्यवहार उसके व्यक्तित्व से मेल नहीं खा रहा था।

विषम परिस्थितियां कई बार मनुष्य को तोड़ देती हैं.. सुगना अपने पाप के बोझ तले असामान्य थी और … घबराई हुई सी थी।

" लगता है आप दोनों की शादी काफी पहले हो गई थी"

सुगना को चुप देखकर डाक्टर ने खुद ही अपने प्रश्न का उत्तर देकर सुगना को सहज करने की कोशिश की..

डॉक्टर को सोनू और सुगना के यहां आने का प्रयोजन पता था… उसने देर न की। सुगना का ब्लड प्रेशर लेने और कुछ जरूरी सवालात करने के पश्चात उसने सुगना को केबिन के दूसरी तरफ बैठने के लिए कहा और फिर सोनू को अपने पास बुला कर उस से मुखातिब हुई…

डॉक्टर ने सोनू को अबॉर्शन पर होने वाले खर्च और प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी…डॉक्टर ने उसे इस प्रक्रिया के दर्द रहित होने का आश्वासन दिलाया।

सोनू ने खुश होते हुए कहा..

"डॉक्टर साहब आप पैसे की चिंता मत कीजिएगा बस सुगना दी….जी" को कोई कष्ट नहीं होना चाहिए।

स्वाभाविक रूप से सोनू के मुख से सुगना के नाम के साथ दीदी शब्द ही निकला जिसका आधा भाग तो उसके हलक से बाहर आया परंतु आधा सोनू ने निगल लिया और दी की जगह जी कर अपनी इज्जत बचा ली।

सुगना …? डाक्टर चौंकी

"वो …सुगना इनका निक नेम है…" सोनू ने मुस्कुराते हुए डाक्टर से कहा..पर अपने दांतों से अपनी जीभ को दबाकर जैसे उसे दंड देने की कोशिश की..

शायद सोनू खुशी में कुछ ज्यादा ही जोशीला हो गया था उसकी बातें सुगना ने सुन लीं। अपने प्रति सोनू के प्यार को जानकर सुगना प्रसन्न हो गई…डाक्टर ने आगे कहा

"हां एक बात और आप दोनों का परिवार पूरा हो चुका है मैं आपको यही सलाह दूंगी कि नसबंदी करा लीजिए"।

"किसकी.?" .सोनू ने आश्चर्य से पूछा..

"या तो अपनी या अपनी पत्नी की" डाक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा…यदि फिर कभी आप दोनों से गलती हुई तो अगली बार एबॉर्शन कराना और भी भारी पड़ेगा…

"एक और मुसीबत" सोनू बुदबुदा रहा था..पर डाक्टर ने सोनू के मन की बात बढ़ ली।

अरे यह बिल्कुल छोटा सा ऑपरेशन है खासकर पुरुषों के लिए तो यह और भी आसान है महिलाओं के ऑपरेशन में तो थोड़ी सर्जरी करनी पड़ती है परंतु पुरुषों का ऑपरेशन तो कुछ ही देर में हो जाता है..

"ठीक है डॉक्टर मैं बाद में बताता हूं"

डॉक्टर ने नर्स को बुलाकर सोनू और सुगना को प्राइवेट रूम में ले जाने के लिए कहा और कुछ जरूरी हिदायतें दी। सुगना और सोनूे सूरज मधू साथ हॉस्पिटल के प्राइवेट कक्ष में आ चुके थे।

हॉस्पिटल का वह कमरा होटल के कमरे के जैसे सुसज्जित था। दीवार पर रंगीन टीवी और ऐसो आराम की सारी चीजें उस कमरे में उपलब्ध थी। सोनू के एसडीएम बनने का असर स्पष्ट तौर पर दिखाई पड़ रहा था। हॉस्पिटल में लाइन लगाकर इलाज पाने वाली सुगना आज एक रानी की भांति हॉस्पिटल के आलीशान प्राइवेट कक्ष में बैठी थी। परंतु बाहरी आडंबर और तड़क भड़क उसके मन में चल रही हलचल को रोक पाने में नाकाम थे। सोनू उसके बगल में बैठ गया और फिर उसकी हथेली को अपने हाथ से सहला कर उसे तसल्ली देने की कोशिश कर रहा था..

सोनू ने आखरी बार सुगना से पूछा…

"इकरा के गिरावल जरूरी बा?"

सुगना सुबकने लगी…वह मजबूर थी…

"समाज में का मुंह देखाईब…लोग इकर बाप के नाम पूछी तब?" सुगना के चेहरे पर डर और परेशानी के भाव थे…

सोनू के पास कोई उत्तर न था वह चुप ही रहा तभी सुगना ने दूसरा प्रश्न किया

" ऊ डॉक्टर नसबंदी के बारे में का कहत रहली हा…ई का होला?

सोनू अपनी बहन सुगना से क्या बात करता .. उसे पता था कि सुगना का जीवन वीरान है जिस युवती को उसका पति छोड़ कर चला गया हो और जिसके जीवन में वासना का स्थान रिक्त हो उसे नसबंदी की क्या जरूरत थी…फिर भी उसने कहा…

"ऊ बच्चा ना हो एकरा खातिर छोटा सा आपरेशन होला…"

सुगना ने पूरा दिमाग लगाकर इस समझने की कोशिश की परंतु आधा ही समझ पाई। इससे पहले की वह अगला प्रश्न पूछती 2 - 3 नर्स कमरे में आई उन्होंने सुगना को हॉस्पिटल के वस्त्र पहनाए और उसे लेकर जाने लगी सोनू को एक पल के लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई उसके कलेजे के टुकड़े को उससे दूर कर रहा हो..

सोनू सुगना को होने वाले संभावित कष्ट को सोचकर भाव विह्वल हो रहा था। छोटा सूरज भी अपनी मां को जाते देख दुखी था..

सुगना …सोनू के पीछे कुछ दूर खड़े सूरज के पास अपनी बाहें फैलाए हुए आ रही थी.. परंतु न जाने क्यों सोनू को कौन सा भ्रम हुआ सोनू की भुजाएं सुगना को अपने आलिंगन में लेने के लिए तड़प उठी..

परंतु मन का सोचा हमेशा सच हो या आवश्यक नहीं..

सुगना सोनू को छोड़ अपने पुत्र सूरज के पास पहुंचकर उसे उठा चुकी थी और उसके माथे तथा गाल को चुनने लगी..

परंतु सूरज विलक्षण बालक था उसने एक बार फिर सुगना के होठ चूम लिए…

पास खड़ी नर्सों को यह कुछ अटपटा अवश्य लगा परंतु सूरज की उम्र ऐसी न थी जिससे इस चुंबन का दूसरा अर्थ निकाला जा सकता था परंतु सोनू को यह नागवार गुजर रहा था। सोनू ने सूरज की यह हरकत कई बार देखी थी विशेषकर जब हुआ सोनी और सुगना के चुंबन लिया करता था। सोनू ने भी कई बार अपने तरीके से उसे समझाने की कोशिश की परंतु नतीजा सिफर ही रहा।

बहरहाल सुगना धीमे धीमे चलते हुए ऑपरेशन थिएटर की तरफ चल पड़ी और पीछे पीछे अपनी पुत्री मधु को अपनी पास में लिए हुए सोनू .. छोटा सूरज अपने मामा सोनू की उंगली पकड़ा हुआ अपनी मां को ऑपरेशन थिएटर की तरफ जाते हुए देख रहा था उसे तो यह ईल्म भी न था कि उसने जिस का हाथ थामा हुआ था वही उसकी मां की इस दशा का कारण था..

आइए सुगना को उसके हाल पर छोड़ देते हैं और आपको लिए चलते हैं आप सबके प्रिय सरयू सिंह को जो युवा सोनी और विकास के बीच नजदीकियों को उजागर करने के लिए उतावले हो रहे थे कहते हैं जब आप अपने उद्देश्य के पीछे जी जान से लग जाए तो आप से उसकी दूरी लगातार कम होने लगती है।


सरयू सिंह ने दिनभर मेहनत की और विकास तथा सोनी के दिन भर के क्रियाकलापों के बारे में जानने की भरसक कोशिश की। उनकी मेहनत जाया न गई उन्हें कुछ पुख्ता सुराग मिल चुके थे और अगले दिन वह सोनी के नर्सिंग कॉलेज आ गए.. जिस तरह वह सोनी और विकास को रंगे हाथ पकड़ना चाह रहे थे शायद वह इतनी आसानी से संभव न था परंतु नियति उनके साथ थी…

नर्सिंग कॉलेज के बाहर बनी छोटी गुमटी में चाय की चुस्कियां ले रहे सरयू का ध्यान नर्सिंग कॉलेज के बाहर आने जाने वाली लड़कियों पर था …तभी पास बैठे एक और बुजुर्ग ने सरयू सिंह से पूछा..

"आपके बेटी भी एहिजा पढ़ेले का?"

सरयू सिंह का मिजाज गरम हो गया। उनका दिलो-दिमाग सोनी की गदराई जवानीको भोगने वाले विकास को रंगे हाथों पकड़ने को था परंतु उस व्यक्ति ने उम्र के स्वाभाविक अंतर को देखते हुए जो रिश्ता सोनी और सरयू सिंह में स्थापित कर दिया था वह सरयू सिंह को कतई मान्य न था। उन्होंने उस व्यक्ति की बातों पर कोई प्रतिक्रिया न दी और यथाशीघ्र अपनी चाय का गिलास खाली कर गुमटी वाले को पैसे देने लगे वैसे भी सोनी को रंगे हाथ पकड़ने के लिए वह पिछले कुछ घंटों से कभी एक गुमटी कभी दूसरी गुमटी पर घूम रहे थे.. और उनकी निगाहें उन गदराए नितंबों को ढूंढ रही थी जिन्होंने उनका सुख चैन छीन रखा था।

सरयू सिंह गुमटी से बाहर निकलने ही वाले थे तभी उन्हें विकास कॉलेज के गेट की तरफ आता दिखाई दिया सरयू सिंह ने खुद को एक बार फिर गुमटी के छज्जे की आड़ में कर लिया…ताकि वह विकास की नजरों में ना सके..

सरयू सिंह को वापस गुमटी में आते देख उस बुजुर्ग ने फिर कहा..

"आजकल के लफंगा लड़का लोग के देखा तानी अभी ई रईसजादा आईल बा अभी गेट से एगो लड़की आई और दोनों जाकर बसंती सिनेमा हाल में बैठ के सिनेमा देखिहे सो…"

गुमटी वाला भी चुप ना रहा उसने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा "अरे ओ सिनेमा हॉल में सब चुम्मा चाटी करे जाला सिनेमा के देखेला…"

सरयू सिंह बड़े ध्यान से उन दोनों की बातें सुन रहे थे.. उनकी बात सच ही थी जैसे ही मोटरसाइकिल नर्सिंग कॉलेज के गेट पर पहुंची… कुछ ही पलों बाद सोनी आकर मोटरसाइकिल पर बैठ गई और वह दोनों फटफटीया में बैठ बसंती हाल की तरफ बढ़ चले..

सरयू सिंह की मेहनत रंग लाई…कल की तफ्तीश और आज उनका इंतजार खात्मे पर था…


उधर सोनी और विकास बाहों में बाहें डाले बसंती टॉकीज की बालकनी में प्रवेश कर रहे थे। बाबी पिक्चर को लगे कई दिन बीत चुके थे और उसे देखने वाले इक्का-दुक्का ग्राहक ही बचे थे वह भी नीचे फर्स्ट क्लास और सेकंड क्लास में थे । बालकनी में कुछ लोग ही थे वह भी जोड़े में… अपनी अपनी बाबी के साथ..

सरयू सिंह को यह समझते देर न लगी की सोनी और विकास निश्चित ही बालकनी में होंगे.. आखिरकार सरयू सिंह ने भी बालकनी की टिकट खरीदी अपने चेहरे को गमछे से ढकने की कोशिश करते हुए धीरे-धीरे बालकनी जाने वाली सीढ़ियां चढ़ने लगे…

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सरयू सिंह की मेहनत सफल होने वाली थी…परंतु इस वक्त उन्हें अकेला छोड़ देते हैं और आपको लिए चलते वापस लखनऊ के हॉस्पिटल में जहां सुगना ऑपरेशन थिएटर से बाहर आ रही थी..

कष्ट और दुख खूबसूरत चेहरे की रौनक खींच लेते हैं सुगना का तेजस्वी चेहरा मुरझाया हुआ और बाल बिखरे हुए थे। वह अर्ध निंद्रा में थी…कभी-कभी अपनी आंखें खोलती और फिर बंद कर लेती …. शायद वह सूरज को ढूंढ रही थी। वार्ड ब्वाय उसके स्ट्रेचर को घसीटते हुए हुए उसके कमरे कमरे की तरफ आ रहे थे।

सोनू को वार्ड बॉय की तेजी और लापरवाही कतई पसंद ना आ रही थी। पर उनका क्या? उनका यह रोज का कार्य था…. उसी में हंसना उसी में खेलना उसी में मजाक और न जाने क्या-क्या…


सोनू एक बार फिर मधु को साथ में लिए …सूरज, मां के बाहर आने से वह भी खुश था….

"मामा मां ठीक हो गईल" सूरज ने मासूम सा प्रश्न किया

और सोनू की आंखें एक बार फिर द्रवित हो गई।

सुगना की हालत देख कर सोनू एक बार फिर अपराध बोध से ग्रस्त हो गया निश्चित सुगना को मिले इस कष्ट का कारण वह स्वयं था। जैसे-जैसे वक्त बीता गया सुगना सामान्य होती गई और शाम होते होते सुगना ने अपना खोया हुआ तेज प्राप्त कर लिया बिस्तर के सिरहाने पर उठकर बैठते हुए उसने चाय पी और अपने गमों का उसी तरह परित्याग कर दिया जिस तरह वह अपने अनचाहे गर्भ को त्याग कर आई थी।

अगली सुबह सुगना पूरी तरह सामान्य हो चुकी थी अंदर उसकी योनि और गर्भाशय में गर्भपात का असर अवश्य था परंतु बाकी पूरा शरीर और दिलों दिमाग खुश था। वह खुद को सामान्य महसूस कर रही थी। बच्चों के साथ खेलना और कमरे में चहलकदमी करते हुए देख कर सोनू भी आज बेहद खुश था। आज सुगना को अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी।

वह डॉक्टर से मिलकर उन्हें धन्यवाद देने गया और एक बार डॉक्टर में फिर उसे उस नसबंदी की बात की याद दिला दी जिसे पर नजर अंदाज कर रहा था।

सोनू किस मुंह से सुगना से कहता कि दीदी तुम नसबंदी करा लो और मेरे साथ खुलकर जीवन के आनंद लो। अब तक सोनू का सामान्य ज्ञान बढ़ चुका था उसे पता था कि पुरुष या महिला में से यदि कोई एक भी नसबंदी करा लेता है तो अनचाहे गर्भ की समस्या से हमेशा के लिए निदान मिल जाता है परंतु सुगना को नसबंदी के लिए कहना सर्वथा अनुचित था।


सोनू बेचैन हो गया उसका दिमाग एक ही दिशा में सोचने लगा सुगना उसके दिलो-दिमाग पर छा चुकी थी उसे और कुछ नहीं रहा था " या तो सुगना या कुछ नहीं" यह शब्द बार-बार उसके दिमाग में घूमने लगे और कुछ ही देर में सोनू अकेला ऑपरेशन थिएटर के सामने खड़ा था…

सुगना सोनू का इंतजार कर रही थी दोपहर का भोजन कमरे में आ चुका था सुगना को भूख भी लग रही थी वह कमरे से निकलकर कभी लॉबी में इधर देखती कभी उधर परंतु सोनू न जाने कहां चला गया था तभी उसे कुछ वार्ड बॉय एक स्ट्रेचर को खींचकर लाबी में आते हुए दिखाई पड़े धीरे-धीरे स्टेशन और सोना के बीच की दूरी कम हो रही थी और कुछ ही देर में हुआ स्ट्रेचर सुगना के बिल्कुल करीब आ गया स्ट्रेचर पर सोनू को लेटे हुए देखकर सुगना की सांसें फूलने लगीं

"अरे इसको क्या हुआ??" सुगना ने वार्ड बॉय से पूछा

अचानक आए कष्ट और दुख के समय आप अपने स्वाभाविक रूप में आ जाते हैं और यह भूल जाते हैं कि उस वक्त आप किस स्थिति और किस रोल में हैंl सुगना यहां सोनू की पत्नी के किरदार में थी परंतु सोनू को इस अवस्था में देखकर वह भूल गई और उसने जिस प्रकार सोनू को संबोधित किया था वह एक संभ्रांत पत्नी अपने पति को कतई नहीं कर सकती थी… और वह भी तब जब उसका पति एसडीम जैसे सम्मानित पद पर हो। वार्ड बॉय को थोड़ा अजीब सा लगा परंतु उसने कहा…

"साहब ने नसबंदी कराई है"

सुगना किंकर्तव्य विमुढ अवाक खड़ी हो गई…दिमाग घूमने लगा।

कुछ ही देर में उसी कमरे में एक और बेड लगाकर सोनू को उस पर लिटा दिया गया…

सुगना खाना पीना भूल कर…कभी सोनू कभी बाल सहलाती कभी उसकी चादर ठीक करती वह बेसब्री से शुरू के पलकें खोलने का इंतजार कर थी..

सुगना के दिमाग में ड्रम बज रहें थे.."नसबंदी?… पर क्यों?

वार्ड बॉय ने जो कहा था उसे सोच सोच कर सुगना परेशान हो रही थी उसके लिए यह यकीन करना कठिन हो रहा था कि एक युवा मर्द जिसका विवाह अगले कुछ महीनों में होने वाला था वह नसबंदी का ऑपरेशन करा कर हॉस्पिटल में लेटा हुआ था…

अभी तो उसे सोनू के लिए लड़की पसंद करना था और धूमधाम से उसका विवाह करना था। सुगना ने न जाने सोनू के लिए क्या-क्या सपने संजोए थे…क्या होगा यदि यह बात उसकी मां पदमा को पता चलेगी ? हे भगवान यह क्या हुआ? सोनू ने ऐसा क्यों किया?

सुगना के दिमाग में ढेरों प्रश्न जन्म लेने लगे कुछ के उत्तर उसके दिल ने देने की कोशिश की .. परंतु उन उत्तरों पर वह सोचना कतई नहीं चाहती थी। उसने दिल में उठ रहे विचारों को दफन करने की कोशिश परंतु शायद यह संभव न था। रह रह कर वह विचार अपना आकार बढ़ा रहे थे।


सुगना बदहवास होने लगी.. ऐसा लगा जैसे वह गश खाकर गिर पड़ेगी…

शेष अगले भाग में
Superb and Nice update. Please send update 109
 

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भाग 119


सोनू को मूत्र विसर्जन की इच्छा हुई और वह चाय का प्याला बिस्तर पर रख गुसल खाने की तरफ बढ़ गया। अंदर जैसे ही उसने छोटे सोनू को बाहर निकाला रात की बात सोनू को समझ में आ गई सुपाड़े के अंदर लिपटा हुआ सोनू का वीर्य से सना चिपचिपा सुपाड़ा यह बार-बार एहसास दिला रहा था की कल रात कुछ न कुछ हुआ है। सोनू को यह समझते देर न लगी कि उसका वीर्य स्खलन हुआ है…पर कैसे? सोनू ने अपने अंडरवियर को ध्यान से देखा…वीर्य स्खलन के अंश वहां मौजूद ना थे। सोनू ने एक बार फिर सुपाड़े पर लगे चिपचिपे वीर्य को अपनी उंगलियों पर लिया और अपने नाक के पास लाया…सोनू को यकीन हो गया कि उसका वीर्य स्खलन हुआ नहीं था अपितु कराया गया था….तो क्या सुगना दीदी….?

अब आगे…

सोनू ने अपने दिमाग पर जोर देने की कोशिश की परंतु दूध पीने के बाद का कोई भी दृश्य उसे याद न था उसे यह बात अवश्य ध्यान आ रही थी कि दूध का स्वाद कुछ अलग था।

अचानक उसे रहीम और फातिमा की किताब का वाकया ध्यान आ गया जिसमें फातिमा ने अपने छोटे भाई को दूध में मिलाकर कोई नशीला द्रव्य दिया था..और सोनू के होंठो पर मुस्कुराहट दौड़ गई। उसके जी में आया कि वह अपनी सुगना दीदी को जाकर चूम ले…पर भाई बहन के बीच नियति ने तय किया था वो घटित होना इतना आसान न था।

सोनू वापस बिस्तर पर आया और खुद को सामान्य दिखाते हुए सुगना के साथ चाय पीने लगा। सोनू को सामान्य देख सुगना भी सहज हो गई। कल रात हुई घटना सुगना और सोनू दोनों के लिए सुखद रही सुगना ने अपना कार्य पूरा कर लिया और सोनू अपनी बहन के और करीब आ गया।

आज शनिवार का दिन था सोनू की ऑफिस की छुट्टियां थी। रसोईघर का बिखरा हुआ सामान सोनू और सुगना का ध्यान खींच रहा था। कुछ ही देर बाद सुगना रसोई घर को सजाने में लग गई शायद यही एकमात्र कार्य सोनू ने अपनी बहनों के लिए छोड़ा था।

सुगना ने सोनू को निराश ना किया वह तन मन से रसोई घर को सजाने लगी। धीरे धीरे रसोईघर अपनी रंगत में आता गया…सुगना बीती रात के बारे में सोचते सोचते रसोई घर का सामान व्यवस्थित कर रही थी। उसके जेहन में वैद्य जी की पत्नी की बातें घूम रही थी …. उत्तेजना और स्खलन कुछ पलों का खेल नहीं स्त्री और पुरुष दिन भर में कई बार वासना के आगोश में आते हैं और पुरुषों में उसी दौरान वीर्य का निर्माण होता है। जितना अधिक वीर्य निर्माण उतना शीघ्र स्खलन।

सुगना ने पूरी तरह यह बात आत्मसात कर ली थी। उसने ठान लिया था कि वह सोनू के वीर्य निर्माण में अपनी भी भूमिका अदा करेगी। उसे पता था सोनू की विचारधारा उसके प्रति बदल चुकी थी.. और वर्तमान में सोनू की उत्तेजना का प्रमुख केंद्र व स्वयं थी.

सुगना रसोईघर को व्यवस्थित करने में लगी थी। शरीर पर पड़ी पतली नाइटी सुगना की मादकता को और बढ़ा रही थी अंदर पहने अंग वस्त्र चूचियों को तो कैद में कर चुके थे परंतु सुगना के गदराए नितंब छोटी पेंटी के बस में न थे। वह बार-बार सोनू का ध्यान खींच रहे थे …जो हॉल में बार-बार आकर अपनी बड़ी बहन के युवा और अतृप्त बदन को निहार रहा था…

जब सुगना उसे अपनी तरफ देखते पकड़ लेती सोनू की नजरें झुक जाती और वह बिना कुछ बोले वापस कमरे में जाकर सूरज और मधु के साथ खेलने लगता…सुगना जान चुकी थी कि सोनू की उत्तेजना से दोनों का ही फायदा था सुगना को मेहनत कम करनी पड़ती और वीर्य उत्पादन तथा स्खलन आसान हो जाता जो सोनू के पुरुषत्व को बचाए रखने के लिए आवश्यक था।

कुछ सामान अभी ऊपर के खाने में सजाए जाने थे सुगना का हाथ पहुंचना मुश्किल था दरअसल ऊंचाई ज्यादा होने की वजह से सुगना ही क्या सोनू का भी हाथ पहुंचना कठिन होता।

सुगना ने आवाज लगाई

" ए सोनू…."

सोनू सूरज और मधु के साथ खेलने में व्यस्त था।

अपनी बहन सुगना की आवाज सुनकर सोनू अगले ही पल रसोईघर में आ गया।

सोनू में सारी जुगत लगाई परंतु ऊपर के खाने में सामान रखने में नाकाम रहा.. आखिरकार सुगना ने कहा

"ले हमरा के पकड़ के उठाऊ हम रख देत बानी"

सुगना ने यह बात कह तो दी परंतु उसे आगे होने वाले घटनाक्रम का अंदाजा न था। सोनू ने सुगना को पीछे से आकर कमर से पकड़ लिया और उसे ऊपर उठाने लगा सुगना आगे की तरफ गिरने लगी उसने बड़ी मुश्किल से दीवाल का सहारा लिया और बोली

" उतार उतार ऐसे त हम गिर जाएब"


सोनू को अपनी गलती का एहसास हुआ वह सुगना के सामने की तरफ आया और उसने अपनी मजबूत बाहें पीछे की और सुगना के नितम्बो के ठीक नीचे उसकी जांघों को अपनी भुजाओं में कसते हुए सुगना को ऊपर उठा दिया।

मर्द सोनू की मजबूत भुजाओं में युवा सुगना को देखकर नियति स्वयं मचल उठी… सोनू का चेहरा सुगना की नाभि से छू रहा था और सुगना के मादक बदन की खुशबू सोनू के नथुनो में नशा भर रही थी थी इस खुशबू में निश्चित ही सुगना की अद्भुत योनि और उससे रिस रहे प्रेमरस की खुशबू भी शामिल थी। सोनू को न जाने कितने खजाने एक साथ मिल गए थे उसकी बांहों को सुगना के कोमल नितंबों का स्पर्श मिल रहा था और उंगलियां जांघों की कोमलता महसूस कर रही थी। सुगना के पंजे सोनू के लंड के बिल्कुल करीब थे सोनू घबरा रहा था कहीं उसकी उत्तेजना का अंदाज सुगना दीदी न कर लें और यह सुखद क्षण जल्द ही समाप्त हो जाए।

सुगना सोनू की मनोदशा से अनजान रसोई घर का जरूरी सामान ऊपरी खाने में सजाने लगी। कुछ ही पलों में आवश्यक सामान ऊपर व्यवस्थित कर दिया गया और जब कार्य खत्म हुआ तो सुगना को अपनी अवस्था का ध्यान आया सोनू की गर्म सांसे अपनी नाभि पर महसूस कर सुगना की वासना जाग उठी वह यह बात भूल गई कि उसे बाहों में उठाने वाला व्यक्ति सरयू सिंह नहीं अपितु उसका छोटा भाई सोनू है…सुगना कुछ देर तक उस आनंद में खो गई और सोनू की गर्म सांसो को अपने बदन पर फैलते हुए महसूस करने लगी उसके हाथ ऊपर रखे सामानों को यूं ही आगे पीछे कर व्यवस्थित कर रहे थे परंतु शरीर की सारी चेतना वासना पर केंद्रित हो गई थी..


सुगना ने अंदाज कर लिया कि उसका पैर सोनू की जांघों के ठीक बीच में है उसने जानबूझकर अपने पैर के पंजों से सोनू के लंड को छूने की कोशिश की और सोनू के लंड को पूरी तरह तना हुआ पाकर मन ही मन मुस्कुराने लगी…

अपने तने हुए लंड पर सुगना के पंजों का स्पर्श पाकर सोनू शर्मसार हो गया उसने झल्लाते हुए कहा

"अरे दीदी अब उतर हाथ दुख गईल"

"ठीक बा अब उतार दे काम हो गएल" और सोनू ने धीरे-धीरे अपनी भुजाओं का कसाव कम करना शुरू किया और सुगना ऊपर से नीचे धीरे-धीरे सोनू के बदन से सटती हुई नीचे आने लगी। सोनू की हथेलियों ने सुगना के नितंबों को बेहद करीब से महसूस किया और सोनू की वासना तड़प कर रह गई …लंड उस मखमली स्पर्श के लिए तड़प कर रह गया।

ऊपर सुगना की मदमस्त चूचियां सोनू के चेहरे के बेहद करीब से लगभग सटती हुई नीचे आ रही थी और फिर सुगना का खूबसूरत और कोमल चेहरा। एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना को इसी अवस्था में पकड़ ले और उसके खूबसूरत होठों को कसकर चूम ले पर सुगना ….उसकी बड़ी बहन थी और को सोनू सोच रहा था वो अभी संभव न था।.


सुगना यह बात भली-भांति जान चुकी थी की कुछ मिनटो में जो स्पर्श सुख सोनू ने लिया था उसका असर सुगना ने अपने पैर के पंजों महसूस कर लिया था। उसने कोई प्रतिक्रिया न दी और बेहद प्यार से बोली…

"देख इतना सुंदर तोर रसोईघर बना देनी ठीक लागत बा नू….."

सोनू को अब मौका मिल गया उसने सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और बेहद प्यार से बोला

" जवन भी चीज में हमरा दीदी के हाथ लग जाला ऊ चीज सुंदर हो जाला"

"जाकी रही भावना जैसी " सुगना एक बार फिर कल सोनू के लंड के बारे में सोचने लगी जो उसके हाथों का स्पर्श पाते ही खिलकर खड़ा हो गया था।"

सोनू के आलिंगन में खुद को महसूस कर सुगना सहम गई बात आगे बढ़ती इससे पहले सुगना ने सोनू के सीने पर हल्का धक्का दिया और बोली

"चल हट तोर काम हो गईल अब ढेर मक्खन मत लगाव"

सोनू कमरे से बाहर जा चुका था। अचानक सुगना ने अपनी जांघों के बीच कुछ गीलापन महसूस किया जो स्वाभाविक था सोनू जैसे मर्द की बाहों में आने के बाद कोई भी तरुणी अपने कामांगो का ध्यान अवश्य करती और निश्चित ही उसके कामांग सोनू से मिलने को आतुर हो उठते।

सुगना की बुर धीरे-धीरे बेचैन हो रही थी आखिर डॉक्टर की नसीहत उसके लिए भी थी सुगना को भी अपनी बुर को जीवंत रखने के लिए जमकर संभोग करना था परंतु सुगना का भविष्य गर्त में था सुगना के जीवन में आए दोनों मर्द सरयू सिंह और रतन अब बीते दिनों की बात हो चुके थे और उसके सामने जो खड़ा था वह हर रूप में उसके योग्य होने के बावजूद रिश्तों के आड़े आ रहा था।

कमरे में सुगना के पलंग पर सूरज और मधु दोनों सोनू के साथ खेल रहे थे। आत्मीयता इतनी कि यदि उन्हें कोई इस तरह खेलते देखता तो निश्चित यही समझता कि सोनू उन दोनों खूबसूरत बच्चों का पिता है यह बात भी अर्धसत्य थी मधु सोनू और लाली के मिलन से जन्मी थी। अचानक सूरज ने कहा

"मामा लखनऊ वाली कलेक्टर मैडम के यहां कतना बढ़िया झूला रहे तू काहे ना खरीदला ? "

बालमन सहज पर सजग होता है। वह भी अपनी आवश्यकता की चीजों का निरीक्षण करता रहता है और मन ही मन उनकी इच्छा अपने दिल में करता रहता है। सूरज को भी शायद मनोरमा मैडम के घर में रखा हुआ पिंकी का वह झूला बेहद पसंद आया था जिसमें लेटी हुई पिंकी चैन की नींद ले रही थी। सूरज के मन में भी तब से वह झूला घर पर गया था और उसने अपनी बात अपने मामा सोनू से खुलकर कह थी।


जब एक बार बात निकल गई तो फिर सोनू को रोकना कठिन था। सोनू बाजार गया और कुछ ही देर बाद मनोरमा जैसा तो न सही परंतु शायद उससे भी खूबसूरत बच्चों का झूला घर में हाजिर था।

झूला छोटी मधु के लिए था पर आकार में बड़ा हो पाने के कारण सूरज भी उसमे आराम से आ सकता था उसकी उम्र ही क्या थी।

सोनू ने सूरज और मधु दोनों को ही पालने में डाल दिया और बेहद प्यार से ही आने लगा सूरज छोटी मधु को बड़े प्यार से खिला रहा था और उसके पेट पर गुदगुदी कर रहा था अब तक कमरे में सुगना आ चुकी थी अपने दोनों बच्चों को झूले में हंसता खेलता देख उसका हृदय गदगद हो गया था और बिस्तर पर बैठा सोंनू उसे और भी प्यारा लग रहा था पलंग अपने प्रेमी जोड़ों के लिए पलक पावडे बिछाए तैयार था।

उधर सीतापुर में दोपहर हो चुकी थी पदमा सरयू सिंह को भोजन करा रही थी…और बगल में बैठकर बातें कर रही थी सोनी बीच-बीच में आकर घटा बढ़ा सामान पहुंचा रही थी। जब जब सोनी करीब आती सरयू सिंह की पीठ में तनाव आ जाता और वह संभल कर बैठ जाते और उसके जाते ही फिर सहज हो जाते हैं युवा किशोरियों और तरुणियों को देखकर सरयू सिंह का यह व्यवहार अनूठा था। चुदने योग्य युवतियों को देख सरयू सिंह का गठीला बदन युवा अवस्था में लौट आता सीना चौड़ा हो जाता और बाहर झांकता हुआ पेट तुरंत ही रीड की हड्डी से जा चिपकता। यह कार्य उतने ही स्वाभाविक तरीके से होता जैसे पलकों का झपकना।

सरयू सिंह की हरकतों और उनके हावभाव से पदमा ने यह भाप लिया की सरयू सिंह निश्चित ही सोनी की उपस्थिति में कुछ असहज महसूस कर रहे हैं और इतना तो पदमा को भली-भांति पता था कि कोई पुरुष यदि स्त्री की उपस्थिति में थोड़ा भी असहज महसूस करें तो यह मान लेना चाहिए कि उन दोनों के बीच जो संबंध हैं वह उन्हें स्वीकार्य नहीं और उन संबंधों में कुछ बदलाव होने की आशंका है पदमा सरयू सिंह की नस नस से वाकिफ थी ऐसा न था की सरयू सिंह किसी युवती पर डोरे डालते थे और उससे अपनी वासना में खींचने की कोशिश करते परंतु वह यह बात भली-भांति जानती थी सरयू सिंह का व्यक्तित्व और उनका मर्दाना शरीर तरुणियों को स्वतः उनकी तरफ आकर्षित करता था।

शायद यही वजह थी कि सरयू सिंह की निगाहों से असहज महसूस करने वाली सोनी रह-रहकर उनके करीब आ रही थी।

खाना खत्म होने के बाद पद्मा ने सरयू सिंह से कहा

"बनारस जाके शादी के दिन बार के बारे में बतिया लेब सोनी कहत रहली की विकास के पढ़ाई दो-तीन महीना में खत्म हो जाए और वह बनारस वापस आ जईहैं"

सरयू सिंह को एक पल के लिए लगा जैसे उनका दिवास्वप्न तोड़ दिया गया था। जिस सोनी को अपनी ख्वाबों में सजाए और उसके खूबसूरत अंगों की परिकल्पना करते हुए सरयू सिंह भोजन कर रहे थे वह भोजन के खात्मे के साथ ही खत्म हो चुका था उन्होंने अपने हाथ धोते हुए कहा

"ठीक बा…"

सरयू सिंह ने थोड़ा विश्राम किया और फिर वापस सलेमपुर के लिए निकल पड़े आज सुबह छोटी डॉक्टरनी का जो रूप उन्होंने देखा था उसने सोनी के प्रति उनके विचारों में परिवर्तन लाया था शहरों में आधुनिक वेशभूषा में घूमने और रहने वाली सोनी आज सुबह गांव के पारंपरिक वेशभूषा में जिस तरह अपनी मां का हाथ बटा रही थी वह सराहनीय था। सोनी को लेकर सरयू सिंह के विचार बदल रहे थे परंतु अभी दिल्ली दूर थी सोनी को अपनी गोद में लेकर मनभर चोदने की इच्छा को हकीकत का जामा पहना पाना कठिन था।

बोली उधर जौनपुर में सुगना के अनुरोध पर सोनू दोनों बच्चों को लेकर मंदिर गया और सुगना ने अपने आराध्य से अपने परिवार की खुशियां मांगी परंतु सोनू ने जो मांगा वह पाठक भली-भांति समझ सकते हैं । इस समय सुगना सोनू के चेतन और अवचेतन मन दोनों पर राज कर रही थी उसे सुगना के अलावा न कुछ दिखाई दे रहा ना था और न कुछ सूझ रहा था। सुगना के बदन के बारे में सोचते सोचते सोनू के विचार एक तूफान की तरह अपने केंद्र में एकत्रित होते और उसका अंत सुगना की मखमली बुर पर खत्म होता..

धीरे-धीरे दिन भर का तनाव खत्म होने का वक्त आया सुगना ने अपने बच्चों और सोनू के लिए खाना बनाया.. सोनू की पसंद के पकवान बनाते समय सुगना सोनू के बचपन से लेकर युवा होने तक सारी बातें याद कर रही थी जबसे सोनू युवा हुआ था और लाली के करीब आया था सुगना के विचारों में सोनू का बालपन न जाने कब अपना रूप बदल चुका था लाली को चोदते हुए देखने के बाद सुगना ने पहली बार सोनू से नजरें मिलाने में शर्म महसूस की और फिर जैसे-जैसे वासना सोनू और सुनना को अपने आगोश में लेती गई दोनों के बीच भाई-बहन की मासूमियत तार-तार होती गई और सुगना ने अपनी जांघों के बीच सोनू के लिए उत्तेजना महसूस करना शुरू कर दिया….

सुगना ने बीती रात जो प्रयोग किया था आज भी उसे हूबहू दोहराने के लिए बिसात बिछा ली उस मासूम को क्या पता था कि वह जिस सोनू पर जिस हथियार का प्रयोग करने जा रही थी उसने उसकी रणनीति बना रखी थी।

सोनू और सुगना ने साथ में भोजन किया बच्चों ने भी दिनभर की खेलकूद के पश्चात मनपसंद भोजन कर नए-नए पालने में आकर झूला झूलने लगे सूरज ने भी जिद कर उसी झूले में अपने लिए जगह तलाश ली।


सोनू सूरज और मधु को पालने में एक दूसरे के साथ प्यार करते और खेलते देखकर मन ही मन सोच रहा था क्या बालपन का यह प्यार भविष्य में कोई और रूप ले सकता है सुगना और उसके बीच कुछ ऐसी ही घटनाएं बालपन में हुई होंगी और उसकी सुगना दीदी ने उसका ऐसे ही ख्याल रखा होगा परंतु आज…

वासना के आधीन सोनू उस रिश्ते की पवित्रता को नजरअंदाज कर सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों और बुर पर अपना ध्यान लगाए हुए था। मन के किसी कोने में सुगना की अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति करना वह अपना दायित्व समझ रहा था। बीती रात उसकी बहन ने जो उसके पुरुषत्व को बचाने के लिए किया था आज उसका ऋण चुकाने का वक्त था ….

सोनू बाथरूम में मुत्रत्याग के लिए गया और मूत्र त्याग के दौरान शावर की लंबी रोड पर टंगी सुगना की ब्रा और पेंटी को देखकर मदहोश होने लगा। लंड से मूत्रधार बहती रही और लंड में लहू एकत्रित होता गया। उसने सुगना के अंतर्वस्त्र को चूमा पुचकारा और फिर वापस उसी जगह रख दिया। अंतर्वस्त्रों ने सोनू की कल्पना को आज फिर एक नया रूप दे दिया।

अचानक सोनू के दिमाग में कुछ विचार आए और उसने सुगना की ब्रा और पेंटी को शावर की रॉड के ठीक किनारे लटका दिया जिससे उसका अधिकतर भार एक तरफ झूल गया…. उस पर से उसने सुगना की नाइटी डाल दी जिससे ब्रा और पेंटी नीचे गिरने से तात्कालिक रूप से बच गई। पर यदि सुगना अपनी नाइटी को हटाकर ब्रा और पैंटी को पकड़ने की कोशिश करती तो निश्चित ही असावधानी के कारण ब्रा और पेंटिं नीचे गिरकर बाल्टी में गिरती या फर्श के पानी भीग जाती।

सोनू न जाने अपने मन में क्या-क्या सोच रहा था और उसी अनुसार अपने मन में योजनाएं बना रहा था। उधर सोनू के लंड ने अब तक अपना आकार ले लिया था अपनी बड़ी बहन की ब्रा और पेंटी को चूमने तथा पूचकारने का असर नीचे दिखाई पड़ रहा था सोनू ने अपने लंड को अपने हाथों में ले और उसे मसल मसल कर वीर्य त्याग करने लगा था। सोनू अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा था।

कुछ ही देर में सोनू ने अपना वीर्य स्खलन पूरा किया और वापस आकर बिस्तर पर उसी तरह लेट गया। सफेद धोती में अपना लंड छुपाए और सफेद गंजी में सोनू का बदन एक बार फिर चमक रहा था।

उधर रसोई में सुगना ने दूध तैयार किया वैद्य जी की पत्नी द्वारा दी गई दवाई मिलाई और दूध लेकर सोनू की तरफ आने लगी।पर कल की तरह आज सुगना के हाथ में दो गिलास न थे। शायद दिन भर में दूध की खपत कुछ ज्यादा हो गई थी और रात्रि के लिए दूध एक ही गिलास बचा था।

बिस्तर पर लेटे सोनू की धड़कन तेज थी लंड स्खलित होकर आराम कर रहा था। आज सोनू ने जानबूझकर अपना अंडरवियर नहीं पहना था परंतु सतर्क होने के कारण धोती का आवरण भी उसे ढकने में कामयाब हो रहा था। सुगना को अपने करीब आते देख कर उसने स्वयं को व्यवस्थित किया और पालथी मारकर पलंग पर बैठ गया धोती को अपने जननांगों के पास समेट कर उसने अपने आराम कर रहे लंड को पूरी तरह ढक लिया।

"आज दिन भर ढेर काम हो गईल ने दूध पीकर सूत जो…." सुगना ने स्वयं को यथासंभव सामान्य दिखाते हुए कहा।

"अरे एक ही गिलास दूध ले आईल बाड़ू तू ना पियाबु"

"नाना हम पी ले ले बानी" सुगना ने झूठ बोलने की कोशिश की पर इस झूठ में सिर्फ और सिर्फ त्याग था।

"अइसन हो ना सकेला हमार कसम खा"

सोनू की झूठी कसम खा पाना सुगना के लिए संभव न था वह बात बदलते हुए बोली

"अरे पी ले हम ढेर खाना खा ले ले बानी"

परंतु सोनू ना माना उसने आगे झुक कर सुगना की कलाइयां पकड़ ली और उसे खींचकर अपने बगल में बैठा लिया

"पहले तू थोड़ा दूध पी ला तब हम पियेब " सोनू ने अधिकार जमाते हुए कहा।

सुगना को पता था सोनू अपनी जिद नहीं छोड़ेगा पर यदि उसने दूध पिया तो……. सुगना का हलक सूखने लगा

"का सोचे लगलू? थोड़ा सा पी ला…"

सुगना को कोई उत्तर न सूझ रहा था आखिरकार उसने हार मान ली और बोली

" बस दो घूंट और ना.."

सोनू ने गिलास अपने हाथ में लेकर अपने अंगूठे से गिलास पर निशान बनाया और बोला

"इतना पी जा ना ता हम दूध ना पिएब"

सुगना जानती थी यदि उसने दूध पीने में आनाकानी की और ज्यादा जिद की तो सोनू को शक हो सकता था । और यदि सोनू ने दूध न पिया तो आज उसका वीर्य स्खलन असंभव हो जाता। उसने सोनू की संतुष्टि के लिए मजबूरी बस दूध के कुछ घूंट अपने हलक के नीचे उतार लिए।


उसे पता था कि वह स्वयं अब उस दवा के प्रकोप में आ सकती है परम उसे विश्वास था कि वह दूध की कुछ मात्रा लेने के बावजूद भी वह अपनी चेतना बरकरार रख सकती है। सुगना ने दूध के कुछ घूंट पिए और गिलास सोनू को हाथ में देते हुए बोली

"अब पी जा बदमाशी मत कर हम जा तानी नहाए…"

सोनू दूध पीने के मूड में बिल्कुल भी नहीं था परंतु सुगना वहां से हिलने को तैयार ना थी। जब तक सोनू के गले की मांसपेशियों ने दूध हलक में उतरने का दृश्य सुगना की आंखों के समक्ष न लाया सुगना वहां से न हटी। परंतु जैसे ही सुगना ने बाथरूम की तरफ अपने कदम बढ़ाए सोनू ने दूध पीना रोक लिया और सुगना के बाथरूम में जाते ही वह दूध रसोई घर में जाकर बेसिन में गिरा आया।

भाई-बहन के इस मीठे प्यार ने दोनों के हलक में उस दिव्य दूध की चंद घूटें उतार दी थी…

दोनों भाई बहन कभी अपने सर को झटकते कभी अपनी आंखों को बड़ा कर दवा के असर को कम करने की कोशिश करते….


सुगना निर्वस्त्र होकर स्नान करने लगी उसके दिमाग में एक बार फिर सोनू का लंड घूमने लगा जिसे अब से कुछ देर बाद उसे हाथों में लेकर सहलाते हुए स्खलित करना था। जांघों के बीच हो रही बेचैनी को सुगना ने रोकने की कोशिश न कि आखिर बुर से बह रही लार ने कल रात सुगना की मदद ही की थी..
अपने उत्तेजक ख्यालों में खोई सुगना ने अपना स्नान पूरा किया तौलिए से अपने भीगे बदन को पोछा और अपने अंतर्वस्त्र पहनने के लिए शावर की रॉड पर टंगी अपनी नाइटी को हटाया….

जब तक सुगना अपने अंतर्वस्त्र पकड़ पाती वह नाइटी के हटते ही वह रॉड से नीचे गिर गए। सुगना ने उन्हें पकड़ने की कोशिश अवश्य की परंतु सोनू की चाल कामयाब हो गई थी। सुगना की ब्रा और पेंटी नीचे रखी बाल्टी में जा गिरे थे और भीग गए। वो अब पहनने लायक न थे। सुगना कुछ समय के लिए परेशान हो गई पर कोई उपाय न था। आखिर का उसने हिम्मत जुटाई और बिना अंतर्वस्त्र पहले ही नाइटी पहन कर बाहर आ गई…

वैसे भी उसके अनुसार उसका भाई सोनू अवचेतन अवस्था में होगा नाइटी के अंदर अंतर्वस्त्र है या नहीं इससे किसी को फर्क नहीं पड़ना था। परंतु सुगना शायद यह बात नहीं जानती थी कि उसका छोटा भाई सोनू उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा और जब वह उसकी भरी-भरी चुचियों और जांघों के बीच से झांक रहे अमृत कलश को अपनी निगाहों से देखेगा वह कैसे खुद पर काबू रख पाएगा…

सुगना को अपनी तरफ आते देख सोनू ने सुगना की चूचीयों को बंद पलकों के बीच से झांक कर देखा और चुचियों की थिरकन से उसने अपनी योजना की सफलता का आकलन कर लिया।


सुगना एक बार फिर सोनू के बगल में बैठ चुकी थी। और अपने दाहिने हाथ से सोनू की धोती को अलग कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी…सुगना जागृत सोनू का लंड अपने हाथों से पकड़ने जा रही थी..

दवा की खुमारी ने सोनू और सुगना दोनों को सहज कर दिया था।

पाप घटित होने जा रहा था….

शेष अगले भाग में….
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LustyArjuna

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भाग 121

सोनू की आखों में वासना के लाल डोरे देख सुगना शर्म से पानी पानी हो गई और अपने स्वभाव बस उसकी आंखें बंद हो गईं। सोनू कुछ देर सुगना के खूबसूरत चेहरे को देखता रहा सुगना शर्म से पानी पानी होती रही।

सुगना से और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपनी बाहें सोनू के गर्दन में डाल दी और उसे अपनी तरफ खींच लिया इशारा स्पष्ट था योद्धा सोनू को अपनी बड़ी बहन द्वारा दुर्ग भेदन का आदेश प्राप्त हो चुका था…

अब आगे….

जैसे ही लंड के सुपाड़े ने सुगना की बुर् के होठों को फैलाकर उस में डुबकी लगाई सुगना के शरीर में 440 वोल्ट का करंट दौड़ गया उसका अंग प्रत्यंग एक अलग किस्म की संवेदना से भर गये।

सुगना सोनू से वह बेतहाशा प्यार करती थी पर आज जो हो रहा था प्यार का वह रूप अनूठा था अलग था।

जितनी आसानी से सुगना के बुर के होठों ने सोनू के लंड का स्वागत किया था आगे का रास्ता उतना आसान न था। एबॉर्शन के दौरान सुगना की योनि निश्चित ही घायल हुई थी और पिछले कुछ दिनों में दवाइयों के प्रयोग से वह स्वस्थ अवश्य हुई थी परंतु उसमें संकुचन भी हुआ था।


शायद इसी वजह से डॉक्टर ने उसे भरपूर संभोग करने की सलाह दी थी जिससे योनि के आकार और आचरण को सामान्य किया जा सके।

इन सब बातों से अनजान सोनू अपने सपनों की गहरी और पवित्र गुफा में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। अद्भुत अहसास था….अपनी दीदी को भरपूर शारीरिक सुख देने का पावन विचार लिए सोनू सुगना से एकाकार हो रहा था।

पुरुषों का लंड संवेदना शून्य होता है जहां वह प्रवेश कर रहा होता है उसकी स्वामिनी की दशा दिशा सुख दुख से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे सिर्फ और सिर्फ चिकनी संकरी और तंग कोमल गलियों में उसे घूमने में आनंद आता है।


सोनू के लंड को निश्चित ही सुगना की बुर का कसाव भा रहा था। सुगना की मांसल और कोमल बुर से रिस रही लार सोनू के लंड को रास्ता दिखा रही थी परंतु जैसे ही सुगना की योनि ने थोड़ा अवरोध देने की कोशिश की लंड बेचैन हो गया..

सोनू ने अपने लंड से दबाव बढ़ाना शुरू किया और सुगना की मुट्ठियां भीचतीं चली गई पर उससे भी राहत न मिली। सुगना को सोनू का वह मासूम सा लंड अचानक की लोहे की मोटी गर्म सलाख जैसा महसूस हुआ। वह कभी बिस्तर पर पड़ी सपाट चादर को अपनी उंगलियों से पकड़ने की कोशिश करती कभी अपनी पैर की उंगलियों को फैलाकर उस दर्द को सहने की कोशिश करती जो अब सोनू के लंड के भीतर जाने से वह महसूस कर रही थी।

सोनू अपनी बहन को कभी भी यह कष्ट नहीं देना चाहता था। परंतु वासना से भरा हुआ सोनू का लंड अपनी उत्तेजना रोक ना पाया और सुगना की बुर के प्रतिरोध को दरकिनार करते हुए गहराई तक उतर गया। सुगना कराह उठी…

"सोनू बाबू ….. आह……तनी धीरे से …..दुखाता…"

सुगना की कराह में प्यार भी था दर्द भी था पर उत्तेजना का अंश शायद कुछ कम था। अपनी बड़ी बहन की उस पवित्र ओखली में उतरने का जो आनंद सोनू ने प्राप्त किया था वह बेहद अहम था सोनू का रोम-रोम प्रफुल्लित हो उठा था और लंड उस गहरे दबाव के बावजूद उछल रहा था। परंतु अपनी बहन सुगना की उस कराह ने सोनू को कुछ पलों के लिए रुकने पर मजबूर कर दिया और सोनू ने अपने लंड को ना सिर्फ रोक लिया अपितु उसे धीरे-धीरे बाहर करने लगा।

सुगना ने सोनू की प्रतिक्रिया को बखूबी महसूस किया और अपने भाई की इस संवेदनशीलता को देखकर वह उस पर मोहित हो गई उसने अपना सर उठा कर एक बार फिर सोनू के होठों को चूम लिया..

सोनू यह बात भली-भांति जानता था की कुदरत ने उसे एक अनूठे और ताकतवर लंड से नवाजा है जो युवतियों की उत्तेजना को चरम पर ले जाने तथा संभोग के दौरान मीठा मीठा दर्द देने में काबिल था।

सुगना की कराह से उसे यकीन हो गया की सुगना दीदी को निश्चित ही कुदरत का यह सुख पूरी तरह प्राप्त नहीं हुआ है। वैसे भी उसके जीजा साल में दो मर्तबा ही गांव आया करते थे सोनू की निगाह में सुगना की अतृप्त युवती वाली छवि घूमती चली गई। उसे यह कतई आभास न था कि सुगना सरयू सिंह के दिव्य लंड का स्वाद कई दिनों तक ले चुकी है जो सोनू से कतई कमतर ना था। और तो और वह प्यार की इस विधा की मास्टरनी बन चुकी है। सोनू अपनी भोली बहन को हर सुख देना चाह रहा था पर ..धीरे.. धीरे .


सोनू ने एक बार फिर अपने लंड के सुपाड़े को सुगना की बुर में थोड़ा थोड़ा आगे पीछे करने लगा।

जितनी उत्तेजना सोनू को थी सुगना की उत्तेजना उससे कम न थी। सोनू को बुर के बाहरी हिस्से पर खेलते देख सुगना मैं एक बार फिर हिम्मत जुटाई और सोनू के गाल को प्यार से सहलाने लगी। सोनू ने सुगना के गालों को चूमते हुए अपने होठों को उसके कानों तक ले जाकर बोला

" दीदी एक बार फिर से…. दुखाई त बता दीहा.. अबकी बार धीरे-धीरे…"

सुगना ने सोनू के गालों पर चुंबन लेकर उसे आगे बढ़ने का मूक संदेश दे दिया..

सोनू ने अपने लंड से सुगना की बुर की संकुचित दीवारों को फैलाना शुरू किया और धीरे-धीरे लंड सुगना की बुर में प्रवेश करता चला गया। सुगना सोनू के होठों को चूमते हुए अपने दर्द को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी और उसका भाई कभी उसके कंधों को सहलाता कभी अपने हाथ नीचे ले जाकर उसकी पीठ को सहलाता।

सुगना के वस्ति प्रदेश में भूचाल मचा हुआ था। सोनू के लंड ने बुर में प्रवेश कर एक आक्रांता की तरह हलचल मचा दी थी। सुगना की बुर और उसके होठों से रिस रही लार जयचंद की भांति सोनू के लंड को अंदर आने और दुर्गभेदन का मार्ग दिखा रही थी और अंदर सुगना की बुर की दीवारें सोनू के लंड का मार्ग रोकने की कोशिश कर रही थीं। परंतु विजय सोनू और सुगना के प्यार की होनी थी सो हुई।


सोनू के लंड ने सुगना के गर्भाशय को चूम लिया और सुगना के गर्भ ग्रह पर एक दमदार दस्तक दी सुगना चिहुंक उठी। सोनू का पूरा लंड सुगना दीदी की प्यारी बुर में जड़ तक धंस चुका था अब और अब न आगे जाने का रास्ता ना था न ही सोनू के लंड में और दम।

अपनी बुर् के ठीक ऊपर सोनू के लंड के पस की हड्डी का दबाव महसूस कर सुगना संतुष्ट हो गई की वह सोनू का पूरा लंड आत्मसात कर चुकी है और आगे किसी और दर्द की संभावना नहीं है…

नियति प्रकृति के इस निर्माण को देख अचंभित थी। दो अलग अलग पुरुषों के अंश से जन्मी दो खुबसूरत कलाकृतियां एक दूसरे की पूरक थी। दोनों के कामांग जैसे एक दूसरे के लिए ही बने थे।

निश्चित ही पद्मा ने इन दोनों को जन्म देकर अद्भुत कार्य किया था। अन्यथा उन दोनों इस प्रकार मिलन और प्यार का यह अनूठा रूप शायद ही देखने को मिलता।

दोनों भाई बहन इस दुर्ग भेदन की खुशी मनाने लगे। सुगना की आंखों में छलक आया दर्द अब धीरे-धीरे गायब होने लगा। कुछ पलों के लिए तनाव में आया सुगना का चेहरा अब सामान्य हो रहा था। सोनू उसी अवस्था में कुछ देर अपने लंड से सुगना की बुर की हलचल को महसूस करता रहा।


जब सुगना सामान्य हुई एक बार सोनू ने फिर कहा "दीदी अब ठीक लागत बा नू_

सोनू बार-बार सुगना को दीदी संबोधित कर रहा था। सुगना स्वयं आज असमंजस में थी। इस अवस्था में दीदी शब्द का संबोधन कभी उसे असहज करता कभी उत्तेजित।


सुगना ने सुगना ने अपने मन में उपजे प्रश्न का उत्तर स्वयं अपनी अंतरात्मा से पूछा और उसने महसूस किया की इन आत्मीय संबोधन से उसे निश्चित ही उत्तेजना मिलती थी। पहले भी संभोग के दौरान सरयू सिंह जब भी उसे सुगना बाबू और कभी-कभी सुगना बेटा पुकारते पता नहीं क्यों उसके तन बदन में एक अजीब सी लहर दौड़ जाया करती थी और आज भी जब सोनू उसे दीदी बोल रहा था उसके बदन में एक अजब सी हलचल होती यह अनुभव उसे अपने पति रतन के साथ कभी भी ना महसूस होता था। शायद यही वह वजह थी की सुगना को अपने पति रतन के साथ कई मर्तबा संभोग करने के बाद भी उसे चरम सुख कभी भी प्राप्त ना हुआ था। फिर भी वर्तमान में शारीरिक रूप से नग्न सुगना अपने छोटे भाई सोनू के सामने वैचारिक रूप से नग्न नहीं होना चाहती थी।

सोनू के प्रश्न का सुगना ने कोई जवाब न दिया…पर स्वयं अपनी बुर को थोड़ा आगे पीछे संकुचित कर सोनू के धंसे हुए लंड को और आरामदायक स्थिति में लाने का प्रयास करने लगी…

"दीदी बताउ ना?"

"का बताई…" नटखट सुगना ने अपने मन के भाव को दबाते हुए अपनी आंखें खोली और सोनू की आंखों में देखते हुए बोली…सुगना सोनू की बड़ी बहन थी वह उसकी आंखों की भाषा भी समझता था.

सोनू अपनी बड़ी बहन से जो पूछना चाह रहा था शायद वह वासना का अतिरेक था। संभोग के दौरान कामुक वार्तालाप संभोग को और अधिक उत्तेजक बना देते हैं परंतु सुगना अभी कामुक वार्तालाप के लिए तैयार न थी।

बरहाल सोनू ने अपने लंड में हलचल की और उसे थोड़ा सा बाहर खींच लिया.. सुगना की आंखों में विस्मय भाव आए उसने अपनी आंखें खोल कर सोनू की आंखों में झांकने की कोशिश की जैसे पूछना चाह रही हो क्या हुआ सोनू..

भाई बहन दोनों एक दूसरे को बखूबी समझते थे.. सुगना के प्रश्न का सोनू में उत्तर दिया और वापस अपने लंड को सुगना की बुर में जड़ तक ठांस दिया।

सुगना के होठ खुल गए और नशीली पलकें बंद हो गई.. और जब एक बार पलकों का खुलना और बंद होना शुरू हुआ…यह बढ़ता ही गया ….आनंद अपने चरम की तरफ बढ़ रहा था।

धीरे-धीरे सोनू सुगना की बुर में अपने लंड को आगे पीछे करने लगा पहले कुछ इंच फिर कुछ और इंच फिर कुछ और ….जैसे-जैसे सुगना सहज होती जा रही थी वैसे वैसे सोनू का लंड सुगना की बुर की गहराई नाप रहा था …एक बार नहीं बार-बार.. बारंबार …कभी धीमे कभी तेज…

सुगना का चेहरा आनंद से भर चुका था…. सोनू कभी सुगना के बाल सहलाता कभी उसे माथे पर चूमता कभी गालों पर और धीरे-धीरे उसके होठों को अपने होंठों में भर लेता सुगना भी अब पूरी तरह सोनू का साथ दे रही थी वो अपने पैर सोनू की जांघों से लिपटाकर कभी सोनू की गति को नियंत्रित करती कभी सोनू को अपनी गति बढ़ाने के लिए उकसाती।

जैसे-जैसे सोनू की चोदने की रफ्तार बढ़ती गई सुगना की उत्तेजना चरम की तरफ बढ़ने लगी…सुगना पूरे तन मन से अपने भाई के प्यार का आनंद लेने लगी ..

उत्तेजना धीरे-धीरे मनुष्य को एकाग्रता की तरफ ले जाती जैसे-जैसे स्त्री या पुरुष चरम की तरफ बढ़ते हैं उनका मन एकाग्र होता जाता है। सोनू की बेहद प्यार भरी चुदाई ने सुगना को धीरे-धीरे चरम के करीब पहुंचा दिया। वैध जी की पत्नी द्वारा दी गई दवा सुगना की खुमारी को पहले ही बढ़ाई हुई थी ऊपर से सोनू के नशीले प्यार और दमदार चूदाई ने सुगना को स्खलन के लिए तैयार कर दिया...

अभी तो सोनू ने अपनी बड़ी बहन को जी भर कर प्यार भी न किया था तभी सुगना के पैर सीधे होने लगे। सुगना का चेहरा वासना से पूरी तरह लाल हो गया था.. अपनी हथेलियों से सोनू के मजबूत कंधों को पकड़ सुगना अपनी उत्तेजना को अंतिम रूप देने में लगी हुई थी। सोनू को कतई यकीन न था की उसकी सुगना दीदी इतनी जल्दी स्खलित होने के लिए तैयार हो जाएगी परंतु सोनू यह भूल रहा था की सुगना को एक मर्द का प्यार कई महीनों बाद मिल रहा था …अपनी उत्तेजना को कई महीनों तक दबाए रखने के बाद सुगना के सब्र का बांध अब टूटने की कगार पर था..….

सुगना के हावभाव देखकर सोनू समझ चुका था कि उसकी सुगना दीदी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच रही है…यद्यपि सोनू का मन अभी और चोदने का था परंतु उसने अपनी बड़ी बहन के सुख में व्यवधान डालने की कोशिश न की। …सोनू को अपनी पहली परीक्षा में पास होना था। सोनू में अब तक जो कला कौशल सीखा था उसने सुगना के बदन पर उसका प्रयोग शुरु कर दिया सुगना की दोनों हथेलियों को अपने पंजों से पकड़ उसने सुगना के हाथों को सर के दोनों तरफ फैला दिया और अपनी कोहनी के बल अपने भार को संतुलित करते हुए सुगना को अपने आगोश में ले लिया इधर सोनू ने सुगना के कोमल बदन को अपने शरीर का आवरण दिया उधर सोनू के लंड ने सुगना की बुर में अपना आवागमन बेहद तेज कर दिया.. सुगना को आज ठीक वही एहसास हो रहा था जो उसे सरयू सिंह के साथ चूदाई में होता था …

सोनू के बदन की गर्माहट और प्यार करने का ढंग सुगना को सरयू सिंह की याद दिला रहा था सुगना सातवें आसमान पर थी…. अचानक सोनू ने अपना चेहरा नीचे किया और सुगना की उपेक्षित पड़ी दोनों चूचियों को बारी बारी अपने होंठों के बीच लेकर उन्हें चुभलाने लगा सुगना से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने स्वयं अपनी चूचियां अपने हाथों में पकड़ ली और अपने चेहरे पर एक अजब से भाव लाते हुए झड़ने की कगार पर आ गई..


सोनू के लंड ने सुगना की बुर् के वह अद्भुत कंपन महसूस किए जो सोनू के लिए कतई नए थे…उस कप कपाती बुर के आलिंगन में सोनू का लंड थिरक उठा स्खलित होती बुर को और उत्तेजित करने की कोशिश में लंड जी तोड़ मेहनत…करने लगा..

सोनू बार-बार तेज चल रही सांसों के बीच दीदी…दी.दी…...दी शब्द का संबोधन कर रहा था जो एक मधुर ध्वनि की भांति सुगना के कानों में बजकर उसे और भी उत्तेजित कर रहा था. सोनू सुगना से आंखें मिलाकर उसकी आंखों में देखते हुए उसे चोदना चाह रहा था परंतु सुगना इसके लिए तैयार न थी। सोनू ने हिम्मत न हारी और अपनी पूरी ताकत से और पूरी तेजी से सुगना को चोदने लगा लंड की थाप जब गर्भाशय के मुख को खोलने का प्रयास करने लगी सुगना और बर्दाश्त न कर पाई वह स्वयं आनंद के अतिरेक पर थी और आखिरकार सुगना की भावनाओं ने लबों की बंदिश तोड़ दी और सुगना की वह मादक कराह सोनू के कानों तक आ पहुंची.

"सोनू बाबू ….तनी ..धीरे….. से"

सुगना के संबोधन कुछ और कह रहे थे और शरीर की मांग कुछ और। सुगना के शब्दों के विरोधाभास को दरकिनार कर सोनू ने वही किया जो उसे अपनी बड़ी बहन के लिए उचित लगा। सोनू ने अपनी गति को और बढ़ाया और सुगना बुदबुदाने लगी..सोनू …बाबू…आ…. हां… आ….. अपनी मेहनत को सफल होते हुए देख सोनू का उत्साह दुगना हो गया उत्तेजना के आखिरी पलों में अपनी बहन के मुख से अपना नाम सुन सोनू अभिभूत था….

आखिरकार सुगना स्खलित होने लगी उसकी बुर की दीवारों में अजब सा संकुचन होने लगा सोनू को एक बार फिर वही एहसास हुआ जैसे कई सारी छोटी-छोटी उंगलियां मिलकर उसके लंड को निचोड़ रही हों। वह अद्भुत एहसास सोनू ज्यादा देर तक बर्दाश्त न कर पाया और सोनू का लावा फूट पड़ा..

सुगना के गर्भ द्वार पर वीर्य वर्षा हो रही थी.. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू के दुर्ग भेदन की खुशी आक्रांता और आहत दोनों ही मना रहे थे। सोनू का फूलता पिचकता लंड सुगना की बुर के संकुचन के साथ ताल से ताल मिला रहा था।


एक सुखद एहसास लिए दोनों भाई बहन साथ-साथ स्खलित हो रहे थे। एक दूसरे के आगोश में लिपटे सुगना और सोनू एकाकार हो चुके थे के शरीर शिथिल पड़ रहा थी परंतु तृप्ति का भाव चरम पर था…

उधर सलेमपुर में सरयू सिंह की आंखों से नींद गायब थी आज अचानक ही उनके स्वप्न ने उन्हें न सिर्फ जगा दिया था अपितु उन्हें बेचैन कर दिया था। दरअसल उन्होंने अपने स्वप्न में सुगना को किसी और मर्द के साथ देख खुशी खुशी संभोग करते हुए देख लिया था…वह उस मर्द का चेहरा तो नहीं देख पाए शायद इसी बात का मलाल उन्हें हो रहा था। सुगना को हंसी खुशी उस मर्द से संभोग करते हुए देख सरयू सिंह यही बात सोच रहे थे कि क्या उनकी पुत्री अब जीवन भर यूं ही एकांकी जीवन व्यतीत करेगी। कहीं यह स्वप्न भगवान का कोई इशारा तो नहीं कि उन्हें अपनी पुत्री सुगना के लिए दूसरे विवाह के बारे में सोचना चाहिए…

सरयू सिंह जी अब यह बात भली-भांति जानते थे कि ग्रामीण परिवेश में स्त्रियों का दूसरा विवाह संभव नहीं है परंतु बनारस जैसे बड़े शहर में अब इसका चलन धीरे-धीरे शुरू हो चुका था। अपनी पुत्री के भविष्य को लेकर सरयू सिंह के मन में जब यह विचार आया तो उनके दिमाग में सुगना और उसके भावी परिवार की काल्पनिक तस्वीर घूमने लगी उन्हें लगा…. काश कि ऐसा हो पाता तो सुगना का आने वाला जीवन निश्चित ही खुशहाल हो जाता…

विचारों का क्या वह तो स्वतंत्र होते हैं उनका दायरा असीमित होता है वह सामाजिक बंदिशों लोक लाज और परिस्थितियों को नजरअंदाज कर अपना ताना-बाना बुनते हैं और मनुष्य के मन में उम्मीदें भर उनके बारे में सोचने पर मजबूर करते हैं।

जब एक बार मन में विचार आ गया सरयू सिंह ने इसकी संभावनाओं पर आगे सोचने का मन बना लिया उन्हें क्या पता था कि उनकी पुत्री सुगना का ख्याल रखने वाला सोनू अपनी बहन सुगना को तृप्त करने के बाद उसे अपनी मजबूत बाहों में लेकर चैन की नींद सो रहा था…

नियति संतुष्ट थी। सोनू और सुगना शायद एक दूसरे के लिए ही बने थे विधाता ने उनका मिलन भी एक विशेष प्रयोजन के लिए ही कराया था…

जैसे ही नियति ने विधाता के लिखे को आगे पढ़ने की कोशिश की उसका माथा चकरा गया हे प्रभु सुगना को और क्या क्या दिन देखने थे?

शेष अगले भाग में…


हमेशा की तरह प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में…
वाह, बहुत ही उत्तेजक अपडेट था।
लवली जी ने ऐसे इस कहानी को शब्दों में पिरोया है जेसे सुगना की बुर ने सोनू के लङ को पिरोया है।
 

LustyArjuna

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भाग १२४

अब तक आपने पढ़ा..

और सुगना का घाघरा आखिरकार बाहर आ गया अपनी मल्लिका को अर्द्ध नग्न देखकर सोनू बाग बाग हो गया ….


सोनू सुगना के किले के गर्भ गृह के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था और उसने अपना सर सुगना के पैरों की तरफ झुका कर जांघों के बीच झांकने की कोशिश की..

सुगना की रानी होंठो पर प्रेमरस लिए सोनू का इंतजार कर रही थी…..


यद्यपि अभी भी सुगना की चूचियां चोली में कैद थी परंतु सोनू को पता था सुगना की रानी उसका इंतजार कर रही है और सुगना के सारे प्रहरी एक एक कर उसका साथ छोड़ रहे थे…

अब आगे..

सोनू सरककर सुगना के पैरों के पास आ गया और सुगना की पिंडलियों पर मसाज करने लगा जहां सोनू बैठा था वहां से सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की बुर को कभी-कभी देख पा रहा था। जब जब सुगना अपनी जांघें सिकोड़ती उसकी बुर सोनू की नजरों से विलुप्त हो जाती पर जब-जब सुगना अपने पैरों को शिथिल करती सुगना की बुर् के होंठ दिखाई पड़ने लगते…और सुगना के अंदर छलक रहा प्रेम रस होंठो तक आ जाता..

सोनू की उत्तेजना चरम पर पहुंच चुकी थी उसने सुगना की पिंडलियों और एड़ी पर थोड़ा बहुत तेल लगाया पर शीघ्र ही वह उठकर बिस्तर पर आ गया.। अपने दोनों पैर सुगना के पैरों के दोनों तरफ कर वह लगभग सुगना की पिंडलियों पर बैठ गया पर उसने अपना सारा वजन अपने घुटनों पर किया हुआ था परंतु उसकी नग्न जांघें और नितंब सुगना के पैरों से छू रहे थे..

सुगना सोच रही थी कि आखिर सोनू ने अपनी धोती कब उतारी।

सोनू में अपने हाथ में फिर तेल लिया और सुगना के घुटने के पिछले भाग पर तेल लगाते हुए अपनी हथेलियां ऊपर की ओर लाने लगा जैसे ही सोनू की हथेलियां सुगना के नितंबों पर पहुंची दोनों अंगूठे मिलकर सुगना के नितंबों की गहरी घाटी में गोते लगाने लगे। एक पल के लिए सोनू के मन में सुगना के उस अपवित्र द्वार को छूने की इच्छा हुई परंतु सोनू ने अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया .. उसे डर था कहीं वह अपनी वासना का नग्न प्रदर्शन कर अपनी बड़ी बहन सुगना की नजरों में गिर ना जाए.

पर सुगना आनंद से सराबोर थी सोनू की हथेलियां और आगे बढ़ी तथा सुगना के कटाव दार कमर को सहलाते हुए वह सुगना की ब्लाउज तक पहुंच गई..उंगलियों ने ब्लाउज को ऊपर जाने का इशारा किया…परंतु सुगना की चूचियां उसे ऊपर जाने से रोक रही थी…

"दीदी थोड़ा सा कपड़ा ऊपर कर ना पीठ में भी लगा दीं"

वासना में घिरी सुगना अपने छोटे भाई सोनू का आग्रह न टाल सकी और उसने अपनी चोली की रस्सी की गांठ खोल दी..चूचियां फैल कर सुगना के सीने से बाहर आने लगीं… कसी हुई चोली अब गांठ खुलने के बाद एक आवरण मात्र के रूप में रह गई और सोनू के हाथ धीरे-धीरे सुगना की पीठ से होते हुए कंधे तक पहुंचने लगी और चोली उपेक्षित सी एक तरफ होती चली गई।

सोनू यही न रूका उसने सुगना के दोनों हाथ उसके सर के दोनों तरफ कर दिए और अपनी हथेलियों से सुगना के कंधे और बाजू की मसाज करने लगा जैसे-जैसे सोनू आगे की तरफ बढ़ रहा था उसका लंड सुगना के नितंबों से अपनी दूरी घटा रहा था….

सुगना अपनी सुध बुध खोकर सोनू की अद्भुत मालिश में खो गई थी…


सोनू मालिश करते हुए सुगना के हांथ के पंजों तक पहुंच गया और उधर उसका खड़ा लंड सुगना के नितंबों को छू गया…

सुगना को जैसे करेंट सा लगा….और कुछ ऐसी ही अनुभूति सोनू को भी हुई..

"ई का करत बाड़े…"

सुगना ने अपना सर घुमाया और कानखियों से सोनू को देखा… एक विशालकाय पूर्ण मर्द बन चुके अपने छोटे भाई सोनू को अपने ऊपर नग्न अवस्था में देखकर…सुगना सिहर उठी…

उसने जो प्रश्न पूछा था उसका उत्तर उसे मिल चुका था..सोनू के थिरकते लंड की एक झलक सुगना देख चुकी थी।

अंधेरे में नग्नता का एहसास शायद कम होता है सुगना अब तक अपनी पलकें बंद किए हुए सोनू की उत्तेजक मालिश का आनंद ले रही थी परंतु अब सुख सोनू को इस अवस्था में देखकर वह शर्म से अपना चेहरा तकिए में छुपा रही थी और सोनू किंकर्तव्यविमूढ़ होकर एक बार फिर सुगना की पीठ और उस चोट वाली जगह पर मालिश कर रहा था तभी सुगना ने अपना चेहरा नीचे नीचे किए ही पूछा

"ए सोनू कॉल ते जो कहत रहले ऊ सांच ह नू?

"हां दीदी… तोहरा विश्वास नईंखे …अब कौन कसम खाई …. हम तोहर झूठा कसम कभी ना खाएब…"

"एगो सवाल और पूछीं?

"हां पूछ"

"तब ई बताब जब हम तोहार बहिन ना हई त हमारा के दीदी काहे बोले लअ"

"हमरा ई बात अभिये मालूम चलल हा "

"त हम केकर बेटी हाई ?"

सोनू ने सुगना के कंधे को से लाते हुए कहा

"दीदी तू हमरा बाबूजी के बेटी ना हाऊ"

"त हम केकर बेटी हाई ? "

" तोहार बाबूजी के नाम हम ना बता सके नी"

"काहे ना बता सके ला..?"

"तू एगो सवाल पूछे वाला रहलू और अब.. इंटरव्यू लेवे लगलू" सोनू ने हल्की नाराजगी दिखाते हुए कहा..

सुगना भी मायूस हो गई.. पर अपनी आवाज में मासूमियत लाते हुए बोली.

"लेकिन हमरा जाने के बा कि हम केकर बेटी हई"


सुगना ने जो प्रश्न पूछा था उसने सोनू को दुविधा में डाल दिया इतना तो तय था की सुगना और सोनू एक पिता की संतान न थी परंतु उन दोनों में जितना प्रगाढ़ प्रेम था वह शायद सगे अन्य किसी सगे भाई बहन में भी ना होगा। सुगना सोनू के लिए सब कुछ थी और सुगना ने भी अपने छोटे भाई से जी भर कर प्यार किया था यह तो नियति ने लाली और उत्तेजक परिस्थितियां पैदा कर सोनू और सुगना को भाई बहन के रिश्ते पर दाग लगाने को मजबूर कर दिया था।

सुगना के चेहरे पर उदासी देखकर सोनू ने कहा

"ठीक बा हम बता देब पर अभी ना"

"कब बताइबा.?"

सोनू ने अपने प्यार से सुनना के प्रश्नों का उत्तर देने की कोशिश की और सुगना के गाल चूम लिए पर उसी दौरान एक बार फिर उसका लंड सुगना की नितंब के ठीक नीचे जांघों के बीच हंसकर सुगना की बुर से लार चुरा लाया..

" दीदी….." अपने लंड से अपनी बड़ी बहन सुगना की चिपचिपी बुर् के होठों को चूमने का आनंद अनोखा था। सोनू की आवाज में उत्तेजना स्पष्ट महसूस हो रही थी"

"ई सब जानला के बाद हमार तोहार रिश्ता का रही? सुगना अब भी संशय में थी।


" दीदी हमरा पर यकीन राख हमार तोहार रिश्ता अब अजर अमर बा हम तोहरा बिना ना जी सकेले ? " ऐसा कहते हुए सोनू ने सुगना के गालों और उसके लंड ने अपनी संगिनी के होंठो को एक बार फिर चूम लिया। सुगना भी सोनू के प्यार के इस नए रूप से मचल रही थी..आवाज में कशिश और छेड़छाड़ का पुट लिए सुगना ने अपना सर घुमाया और सोनू को कनखियो से देखते हुए बोली

" हम तोहार बहिन ना हई और फिर दीदी काहे बोलत बाड़े?"

सोनू सुगना की अदा पर मोहित हो गया…उसने सुनना के होंठ अपने- होंठो में भर लिए और कुछ देर उसे चुभलाता रहा उधर नीचे उसका लंड बुर के होंठो को फैलाकर डुबकी लगा रहा था..सुगना की अपेक्षित प्रतिक्रिया ना पाकर सोनू ने फिर कहा…

"तब तुम ही बता द हम तहरा के क्या बोली?"


सुगना को कुछ सूझ न रहा था परंतु इतना तय था की सोनू सुगना को हर रूप में पसंद था और बीती रात सुगना ने जो सोनू के प्यार का जो अद्भुत सुख लिया था सुगना वह अनुभव एक नहीं बार-बार बारंबार करना चाहती थी उसने अपने होठों पर कातिल मुस्कान लाते हुए कहा…

"तब ई याद रखीहे इ बात केहू के मत बताइहे?

"कौन बात?"

"कि हम तोहार अपन बहिन ना हई"

" ठीक बा पर दीदी तू हमेशा हमरा के असही प्यार करत रही ह "। और इतना कह कर सोनू ने एक बार फिर सुगना की गर्दन और कानों को चूम लिया उधर उसके लंड ने ने सुगना की बुर में प्रवेश कर मिलन का नगाड़ा बचा दिया। उसका सुपाड़ा सुगना की बुर को फैलाने की कोशिश करने लगा।


सुगना मचल उठी उसने सोनू की तरफ देखते हुए कहा " ठीक बा लेकिन सबके सामने तू आपन मर्यादा में रहीह और हम भी"

"लेकिन अकेले में" सोनू ने सुगना के गालो को एक बार और चूमते हुए पूछा..

"सुगना मुस्कुराने लगी …. उसने अपना चेहरा तकिए में छुपाने की कोशिश की परंतु सुगना की कशिश सोनू देख चुका था। उसने अपनी कमर पर थोड़ा जोर लगाया और उसका लंड सुनना की बुर में गहरे तक प्रवेश कर गया।

"अरे रुक तनी सीधा होखे दे बेचैन मत होख"

सुगना पलट कर सीधे होने की कोशिश करने लगी. सुगना ने अपने नितंबों को हिला कर करवट होने की कोशिश की और सोनू का लंड छटक कर बाहर आ गया। सोनू ने अपने शरीर का भार अपने हाथों और घुटनों पर ले लिया और सुगना को पलट कर सीधा हो जाने दिया…मोमबत्ती की रोशनी में दोनों चूचियां देख कर सोनू मचल उठा….

सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना को पूरी तरह नग्न बिस्तर पर मिलन के लिए तैयार होते देख रहा था सुगना ने अपने दोनों पर सोनू के घुटनों के दोनों तरफ कर लिए थे और उसकी जांघें सोनू की जांघों से सटने लगी थी…

जैसे ही सोनू ने चुचियों को छोड़ अपना ध्यान सुगना की फूली हुई बुर पर लगाया…. सुगना ने सोनू के मनोभाव ताड़ लिए। सोनू की गर्दन झुकी हुई थी और आंखें खजाने को ललचाई नजरों से देख रही थी। सुगना ने अपने हाथ से सोनू की ठुड्ढी को पकड़कर ऊंचा किया और..पूछा…

"सोनू बाबू का देखत बा ड़अ"

सोनू शर्मा गया जिस तरह ललचाई निगाहों से वह अपनी बड़ी बहन सुगना की बुर को देख रहा था उसे शब्दों में बयां कर पाना उसके लिए भी कठिन था।

सोनू ने झुक कर अपना सर सुगना के बगल में तकिए से सटा दिया और उसके गालों से अपने गाल रगड़ते हुए बोला..

" दीदी तू बतावालू हा ना …. सबके सामने तो तू हमार दीदी रहबू पर अकेले में?" सोनू ने इस बात का विशेष ध्यान रखा उसका लंड सुगना की बुर से छूता अवश्य रहे परंतु भीतर न जाए.

सुगना को शांत देखकर सोनू में हिम्मत आई और उसने अपना चेहरा सुगना के ठीक सामने कर लिया और एक बार फिर बोला

"बतावा ना दीदी"

सुगना ने आंखो में शर्म और होंठो पर मुस्कान लिए अपने पैर सोनू की जांघों पर रख दिए उसे अपनी तरफ खींच लिया…..

सोनू को उसके प्रश्न का उत्तर मिल चुका था…. सुगना ने सोनू को खुलकर शब्दों में चोदने का निमंत्रण तो न दिया… परंतु अपने पैर उसकी जांघों पर रख उसे अपनी ओर खींच कर इस बात का स्पष्ट संकेत दे दिया कि उन दोनों का यह नया रिश्ता सुगना को भी स्वीकार था।


सोनू का मखमली लंड सुगना की मखमली बुर में धंसता चला गया… दो बदन एकाकार हो रहे थे। जब लंड ने सुगना की गहराई में उतर कर बुर के कसाव से प्रेम युद्ध करना शुरू किया सुगना के चेहरे पर तनाव दिखाई पड़ने लगा। यही वह वक्त था जब सुगना को अपने छोटे भाई सोनू से प्यार की उम्मीद थी सोनू ने सुगना को निराश ना किया और को सुगना के होठों को अपने होंठो के बीच भर लिया… लिया और बेहद प्यार से होठों को चुम लाते हुए सुगना के मीठे दर्द पर मरहम लगाने लगा उधर लंड एक बेदर्दी की भांति तभी रुका जब उसने सुगना के गर्भ द्वार पर अपनी दस्तक दे दी।

सुगना चिहुंक उठी…

"सोनू..…बाबू…"

सोनू ने कुछ कहा नहीं पर वह सुगना के गालों आंखों और होठों को चूमता रहा…

सोनू ने धीरे-धीरे अपने लंड को आगे पीछे करना शुरू किया। ना जाने सुगना की बुर से आज इतना प्रेम रस क्यों छलक रहा था।


शायद सुगना के प्यार ने सोनू के लंड को अपने अंदर सहर्ष समाहित करने का मन बना लिया था ।

आज न सुगना के चेहरे पर पीड़ा थी और न सोनू को उसका अफसोस। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू के लंड का सृजन सुगना की बुर के लिए ही हुआ था।


जब-जब लंड सुगना की गहराइयों में उतरता सुगना तृप्ति के एहसास से भर जाती उसकी जांघें फैल कर सोनू के लंड के लिए जगह बनाती और जब सोनू का लंड सुनना के गर्भ द्वार पर दस्तक देता सुगना अपके होंठ भींच लेती…और सोनू रूक जाता। पर जब लंड बाहर आता सुगना को लगता जैसे कोई उसके शरीर का कोई अंग बाहर निकाल रहा है और सुगना अपनी कमर उठा कर उसे उसे अपने अंदर समाहित करने का प्रयास करती।

तब तक सोनू की कमर उस लंड को वापस उसी जगह धकेल देती। सोनू लगातार सुगना होठों पर चुंबन दिए जा रहा था। सुगना के शरीर के सामने का भाग बेहद मखमली था…वह सांची के स्तूप की तरह भरी भरी उन्नत चूचियां सपाट पेट और हल्का उभार लिए वस्ति प्रदेश… सोनू सुगना की बुर में अपने लंड को आते जाते देखने लगा…

सुगना ने सोनू की तरफ देखा और उसे अपनी बुर की तरफ देखते हुए सुगना ने अपना सर ऊंचा किया…

जहां सोनू की निगाहे थी वही सुगना भी ताकने लगी…बेहद खूबसूरत दृश्य था…सोनू अपना लंड अपनी बहन की बुर से बाहर लाता सुगना के प्रेम रस से चमकता लंड देख दोनो भाई बहन मदहोश हो रहे थे…

तभी सोनू का ध्यान सुगना के चेहरे पर गया और नजरे फिर चार हो गई…

सोनू ने अपनी बहन को शर्मिंदा न किया। जिन चूचियों की कल्पना कर न जाने सोनू ने अपने कितने हस्तमैथुन को अंजाम दिया था आज उसने उन दुग्धकलशो से जी दूध पीने का मन बना लिया।


अपने लंड की गति को नियंत्रित करते हुए सोनू दोनों हथेलियों से सुगना की चुचियों को सहलाने लगा। कभी अपनी उंगलियों को निप्पल के ऊपर फिराता कभी उंगलियों में लेकर उसके निप्पल को मसल देता। सोनू खूबसूरत और तने हुए निप्पलों को मसलते समय यह भूल गया की यह निप्पल उसकी बड़ी बहन सुगना के है उसने एक बार फिर अनजाने निप्पलों पर अपना दबाव बढ़ा दिया…

सुगना की मादक कराह फिजा में गूंज गई…

" सोनू बाबू …..तनी धीरे से……." सुगना की यह कराह अब सोनू पहचानने लगा था दर्द और उत्तेजना के बीच का अंतर सोनू समझ रहा था। सुगना की कराह में निश्चित ही उत्तेजना थी। सोनू ने निप्प्लों से अपने हांथ हटा लिए पर परंतु होठों से पकड़ कर उन्हे चूसने लगा। सुगना उत्तेजना और शर्म के बीच झूल रही थी… उससे रहा न गया वह सोनू के बाल सहलाने लगी। उसे समझ ना आ रहा था कि वो सोनू के सर को अपनी चुचियों की तरफ और खींचे या उसे बाहर धकेले।

आखिर सुगना ने अपनी चुचियों को सोनू के हवाले कर दिया और अपनी जांघों के बीच हो रही हलचल महसूस करने लगी। अद्भुत एहसास था वह सोनू का लंड जब सुगना के गर्भ द्वार पर चोट करता सुगना सिहर उठती। और उसकी जांघें तन जाती और सुगना अपनी जांघें सटाने की नाकाम कोशिश करती..पर बुर में हो रहे संकुचन की उस अद्भुत अनुभूति से सोनू और उसका लंड मचल जाता। सोनू और अपनी बड़ी बहन की चुचियों को जोर से चूस लेता। जैसे-जैसे सोनू का लावा गर्म हो रहा था सुगना स्खलन के कगार पर पहुंच रही थी….

जैसे ही सुगना ने अपनी कमर हिला कर सोनू के धक्कों से तालमेल मिलाने की कोशिश की …सोनू समझ गया कि उसकी बड़ी बहन स्खलित होने वाली है। परंतु आज सोनू की मन में कुछ और ही था.


उसने सुगना की पीठ और कमर की मालिश के दौरान जो कल्पना की थी उसे साकार करने के लिए सोनू का मन मचल उठा। सोनू ने सुगना की चूचियों को छोड़ दिया और अपने अचानक अपने लंड को को सुगना की बुर से बाहर निकाल लिया।

अकस्मात अपने स्खलन की राह में आए इस व्यवधान से सुगना ने अपनी आंखें खोली और सोनू के चेहरे को देखते हुए आंखों ही आंखों में पूछा

" क्या हुआ सोनू " सोनू ने अपने बहन के प्रश्न का उत्तर उसकी दोनों जांघों को आपस में सटा कर दिया और उन दोनों जांघों को बिस्तर पर एक तरफ करने लगा। सुगना करवट हो गई वह अब भी न समझ पा रही थी कि सोनू आखिर क्या कर रहा है? और क्या चाह रहा है ?

जब तक सुगना समझ पाती सोनू ने हिम्मत जुटाई और सुगना की कमर के नीचे हाथ कर सुगना को पलटने का इशारा कर दिया…ताकतवर सोनू के इशारे ने सुगना को लगभग पलटा ही दिया था। सुगना आश्चर्यचकित थी सोनू एक तरह से उसे घोड़ी बनने का निर्देश दे रहा था।

सुगना की बुर स्खलन के इंतजार में फूल चूकी थी.. उसे सोनू के लंड का इंतजार था अपनी उत्तेजना और वासना में घिरी हुई सुगना सोनू के निर्देश को टाल न पाई और अपनी लाज शर्म को त्याग अपने घुटनों के बल आते हुए डॉगी स्टाइल में आ गई…परंतु अपनी अवस्था देखकर सुगना शर्म से गड़ी जा रही थी.. अपने छोटे भाई के सामने उसे इस स्थिति में आने में बेहद लज्जा महसूस हो रही थी और आखिरकार सुगना ने अपने दोनों हाथ बढ़ाएं और बिस्तर के किनारे जल रही दोनों मोमबत्तियां को फूंक कर बुझा दिया…

कमरे में अंधेरा हो गया पर इतना भी नहीं कि सोनू को अपनी बहन की कामुक काया न दिखाई पड़े….कमरे के बाहर जल रही गार्डन लाइट की रोशनी कमरे में अब भी आ रही थी… सुगना डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। चूचियां लटककर बिस्तर को छू रही थी और सुगना अपने शरीर का अग्रभाग अपनी कोहनी और पंजों पर नियंत्रित किए हुए थे आंखें शर्म से बंद किए हुए सुगना अपना चेहरा तकिए में छुपाए हुए थी… परंतु उसका खजाना खुली हवा में अपने होंठ फैलाएं उसके भाई सोनू के लंड का इंतजार कर रहा था ।

सोनू ने सुगना के नितंबों पर हाथ फेरा और सुगना की सिहरन बढ़ती चली…उसे गुस्सा भी आ रहा था सोनू जो कर रहा था उसे सोनू से इसकी अपेक्षा न थी। पर उत्तेजना बढ़ रही थी।


सोनू ने कमर के ऊपरी भाग के कटाव को अपने दोनों हाथों से पकड़ सुगना की कोमलता और कमर के कसाव का अंदाजा लिया और धीरे-धीरे उसका लंड अपनी प्रेमिका के होठों को चूमने लगा। सोनू और सुगना दोनों के यौनांग मिलन का इंतजार कर रहे थे। सोनू ने जैसे ही अपनी कमर को आगे कर सुगना की जांघों से अपनी जांघों को सटाने की कोशिश की लंड सुगना के मखमली बुर को चीरता हुआ अंदर धंसता चला गया।

जिस अवस्था में सुगना थी सोनू का उसके गर्भाशय तक पहुंच चुका था पर अब भी लंड का कुछ भाग अब भी बाहर था। शायद इस मादक अवस्था में अपनी बड़ी बहन सुगना को देखकर वह और तन गया था। सोनू ने जैसे ही अपने लंड को आगे पीछे किया सुगना मदहोश होने लगी। मारे शर्म के वह अपना चेहरा अंधेरा होने के बावजूद ना उठा रही थी परंतु सोनू की उंगलियों और हथेली को अपनी कमर पर बखूबी महसूस कर रही थी। सोनू के लंड के धक्कों से वह आगे की तरफ झुक जाती पर अपने हाथों से वह अपना संतुलन बनाए रखती।

सोनू ने अपनी मजबूत हथेलियों से उसकी कमर को अपनी तरफ कस कर खींच लिया ऐसा लग रहा था जैसे सोनू आज अपने पूरे शबाब पर था। सुगना की आंखों के सामने वही दृश्य घूम रहे थे जब उसने सोनू को इसी अवस्था में लाली को चोदते हुए देखा था। और यह संयोग ही था कि सोनू भी उसी दृश्य को याद कर रहा था उस दिन उसने जो सपने देखा था आज वह हकीकत में उसकी नंगी आंखों के सामने उपस्थित था।

सोनू के धक्के जब उसके गर्भाशय पर तेजी से बढ़ने लगे सुगना सिहर उठी और एक बार फिर उसके मुंह से वही कामुक कराह निकल पड़ी…


" बाबू… आह….. तनी धीरे से …दुखाता…"

सोनू ने अपनेलंड की रफ्तार कम ना की अपितु अपनी हथेलियों का दबाव सुगना की कमर पर कम कर दिया लंड के मजबूत धक्कों से सुगना का पूरा बदन हिलने लगा और सुगना स्वयं अपने शरीर को नियंत्रित कर सोनू के आवेग और जोश का आनंद लेने लगी।


सुगना का रोम-रोम प्रफुल्लित था और शरीर की नसें तन रही थीं। सुगना कभी सोनू के लंड से तालमेल बनाने के लिए नितंबों को पीछे ले जाती कभी सोनू के लंड के धक्के उसे आगे की तरफ धकेल देते। सोनू अपनी बहन सुगना की कमर को होले होले सहला रहा था परंतु उसका निर्दई लंड सुगना को बेरहमी से चोद रहा था।

हथेलियों ने सुगना की चूचियों की सुध लेने की न सोची..वह स्वयं बेचारी झूल झूल कर बिस्तर से रगड़ खा रही थी और सोनू की हथेलियों के स्पर्श का इंतजार कर रही थी परंतु सोनू सुगना के नितंबों और कमर के मादक कटाव में खोया हुआ था।


आखिरकार सुगना ने स्वयं अपनी हथेली से अपनी चुचियों को पकड़ा और उसे मसलने लगी जब सोनू को एहसास हुआ.. उसने अपना एक हाथ सुगना की चुचियों पर किया और बेहद प्यार से सुगना को चोदते हुए उसकी चूची मीसने लगा। प्यार में लंड की रफ्तार कम हो गई

सुगना स्खलन के कगार पर पहुंच चुकी थी। उसे चुचियों से ज्यादा अपनी जांघों के बीच मजा आ रहा था उसने सोनू के हाथ को वापस पीछे धकेल दिया और अपनी कमर पर रख दिया और अपनी कमर को पीछे कर स्वयं सोनू के लंड पर धक्के लगाने लगी..


सोनू जान चुका था कि सुगना दीदी अब झड़ने वाली है उसने एक बार फिर सुगना की कमर को तेजी से पकड़ लिया और पूरी रफ्तार से उसे चोदने लगा…

सोनू… तनी…. हा …. अ आ बाबू …. आह….. तनी ….. धी….. हां बस…..आ……..सुगना कराह रही थी उसके निर्देश अस्पष्ट थे पर बदन की मांग सोनू पहचानता था और वह उसमें कोई कमी ना कर रहा था। सोनू एक पूर्ण मर्द की तरह सुकुमारी सुगना को कस कर चोद रहा था…

आखिरकार सोनू के इस अनोखे प्यार ने सुगना को चरम पर पहुंचा दिया बुर् के बहुप्रतीक्षित कंपन सोनू के लंड पर महसूस होने लगे… सुगना स्खलित हो रही थी और सोनू बुर के कंपन का आनंद ले रहा था। जैसे जैसे सुगना के कंपन बढ़ते गए सोनू ने अपने लंड की रफ्तार और तेज कर दी।

उसे अपने वीर्य का बांध टूटता हुआ महसूस हुआ जैसे ही वीर्य की पहली धार में सुगना के गर्भ पर दस्तक दी सोनू ने अपना लंड बाहर खींच लिया …और सुगना को बिस्तर पर लगभग गिरा दिया… सुगना आश्चर्यचकित थी सोनू जो कर रहा था वह अविश्वसनीय था…

सुगना अपनी पीठ के बल आकर अपनी आंखें खोली सोनू के चेहरे को देख रही थी जो आंखें बंद किए अपने लंड को हाथों में लिए तेजी से हिला रहा था …और बार बार दीदी सुगना…दी….दी…दी…..बुदबुदा रहा था… जब तक सुगना कुछ समझ पाती वीर्य की मोटी धार उसके चेहरे पर आ गिरी उसने अपनी दोनों हथेलियां आगे कर वीर्य की धार को रोकने की असफल कोशिश की अगली धार ने उसकी गर्दन चुचियों को भिगो दिया.. जैसे-जैसे सोनू के वीर्य की धार कमजोर पड़ती गई सुगना की चूचियां उसका पेट और वस्ति प्रदेश सोनू के वीर्य से भीगता चला गया।

सुगना जान चुकी थी सोनू के प्यार को हाथों से रोक पाना असंभव था उसने सब कुछ नियति के हाथों छोड़ दिया.. सुगना आंखें बंद किए इस अपने शरीर पर गिर रहे गर्म और चिपचिपे रस को महसूस कर रही थी।

अचानक सोनू ने अपने लंड को सुगना की बुर के भग्नासे पर पटकना शुरू कर दिया ऐसा लग रहा था जैसे वह वीर्य की आखिरी बूंद को भी अपनी बहन की सुनहरी देहरी पर छोड़ देना चाहता था सुगना सिहर रही थी पर उसने सोनू को न रोका…

भग्नासा संवेदनशील हो चुका था और सोनू की इस हरकत से सिहर रहा था। जब सोनू तृप्त हो गया उसने लंड को छोड़ दिया और से सुगना के बगल धड़ाम से बिस्तर पर गिर सा गया।

उसकी सांसे बेहद तेज चल रही थी सोनू को अपने बहन के प्यार की आवश्यकता थी …एक वही थी जो उसके सुख दुख की साथी थी…सुगना ने उसे निराश किया वह करवट हुई और सोनू की जांघों पर अपना दाहिना पैर रख दिया और हथेलियां सोनू के सीने को सहलाने लगी।


सोनू अपनी सांसों को नियंत्रित करते हुए बोला दीदी

"हमरा के माफ कर दीहा" सोनू अपने जिस कृत्य के लिए सुगना से माफी मांग रहा था वह पाठक भली-भांति जानते है..

पर सुगना जो स्वयं सोनू के प्यार से अभिभूत और तृप्त थी उसने सोनू के गालों को चूम लिया और बोली

"काहे खातिर" सुगना ने मुस्कुराते हुए सोनू को देखा.. सोनू और सुगना एक बार फिर दोनों बाहों में बाहें डाले एक दूसरे को सहला रहे थे। सोनू की हथेलियां सुगना की चूचियों और पेट पर गिरे वीर्य से उसकी मालिश कर रहीं थी। सोनू की यह हरकत सुगना को और शर्मशार कर रही थी पर आज सुगना ने सोनू को न रोका .. उसने अपने पैरों से बिस्तर पर पड़े लिहाफ को ऊपर खींचा और अपने और सोनू के बदन को ढक लिया …

भाई बहन दोनों एक दूसरे की आगोश में स्वप्नलोक में विचरण करने लगे..


तृप्ति का एहसास एक सुखद नींद प्रदान करता है आज सुगना और सोनू दोनों बेफिक्र होकर एक दूसरे की बाहों में एक सुखद नींद में खो गए।

नियति यह प्यार देख स्वयं अभिभूत थी…शायद विधाता ने सुगना और सोनू के जीवन में रंग भरने की ठान ली थी…पर भाई बहन क्या यूं ही जीवन बिता पाएंगे? …लाली और समाज अपनी भूमिका निभाने को तैयार हो रहा था…..नियति सुगना के जीवन के किताब के पन्ने पलटने में लग गई…

शेष अगले भाग में…
लवली जी,
आपके वर्णित शब्दों से ऐसा लगता है कि जेसे दृश्य आंखों के सामने चल रहा है किसी चलचित्र की भांति।
बहुत अद्भुत लेखनी है आपकी।
 

LustyArjuna

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अधूरी कहानी अधूरा भाग १२६

सुगना ने जिस संजीदगी से सोनू से प्रश्न पूछा था उसका सच उत्तर दे पाना कठिन था आखिर सोनू किस मुंह से कहता है कि वह अपनी बड़ी बहन की बुर देखना चाह रहा है।

सोनू को कोई उत्तर न सूझ रहा था आखिरकार वह अपने हाथ जोड़कर घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया..उसका चेहरा सुगना की नाभि की सीध में आ गया…और सीना सुगना के नंगे घुटनों से टकराने लगा।

सोनू अपनी आंख बंद किए हुए था… सुगना से सोनू की अवस्था देखी न गई उसने अपने हाथ अपनी जांघों के बीच से हटाए और सोनू सर को नीचे झुकाते हुए अपनी नंगी जांघों पर रख लिया…सोनू का सर सुगना के वस्ति प्रदेश से टकरा रहा था और सोनू की नाक सुगना के दोनो जांघो के मध्य बुर से कुछ दूरी पर उसकी मादक और तीक्ष्ण खुशबू सूंघ रही थी.. सोनू की गर्म सांसे सुगना की जांघों के बीच के बीच हल्की हल्की गर्मी पैदा कर रही थी। सुगना सोनू के सर को सहलाते हुए बोली…


"ए सोनू ते बियाह कर ले…"


अब आगे..

सोनू चुप रहा अपनी बड़ी बहन के मुंह से यह बात वह कई बार सुन चुका था

"सोनू यदि ते ब्याह ना करबे लोग दस सवाल पूछी.."

"काहे सवाल करी.. ? सरयू चाचा भी त ब्याह नईखे कईलन "

"ओह टाइम के बात और रहे ते नौकरी करत बाड़े आतना पढल लिखल बाड़े…आतना सुंदर देह बा बियाह ना करबे तो लोग तोरा के नामर्द बोली ई हमारा अच्छा ना लागी"

सोनू सुगना की बात समझ ना पाया उसने मासूमियत से पूछा

"का बोली हमरा के..?"

"नपुंसक भी कह सकेला.. लोग के जबान दस हांथ के होला केहू कुछ भी कह सकेला"

" नपुंसक? " सोनू मुस्कुराने लगा

"दीदी तू ही बताव का हम नपुंसक हई?" सोनू ने सुगना की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा जैसे कल की गई मेहनत का पारितोषिक मांग रहा हो..

सुगना ने उसके गालों पर मीठी चपत लगाई और एक बार फिर उसका सर अपनी जांघों के बीच रखकर बोली..

"सोनू बाबू ई बात हम जानत बानी और लाली जानत बिया लेकिन ब्याह ना कर ब त लोग शक करी"

"दीदी चाहे तो कुछ भी कह अब तोहरा के छोड़ के हमारा केहू ना चाही…अब हमार सब कुछ तू ही बाड़ू"

"अरे वाह हमरा भीरी अइला त हमार हो गईला और लाली के भीरी जयबा तब…?"

सोनू निरुत्तर हो गया लाली उसकी प्रथम प्रेमिका थी और सुगना की तरह शुरुवात में उसने भी बड़ी बहन की भूमिका बखूबी निभाई थी… और फिर एक प्रेमिका का भी प्यार दिया था..सोनू को लाली की उस सामान्य सी चुदी चुदाई बुर ने भी इतना सुख दिया था जिसे भुलाना कठिन था…

जिस तरह भूख लगने पर गांव की गर्म रोटी भी उतनी ही मजेदार लगती है जितनी शहर का बटर नॉन…

सुगना बटर नॉन थी…और लाली गर्म रोटी..

"लाली भी हमरा अच्छा लागेली पर आपन आपन होला तू हमर सपना हाऊ "

"त का हमारा से बियाह करबा?" सुगना ने जिस तरह से प्रश्न पूछा था उसका उत्तर हा में देना कठिन था।

सोनू का मूड खराब हो गया… वह चुप हो गया परंतु उसके तेजस्वी चेहरे पर उदासी छा गई…

सुगना ने आगे झुक कर उसके माथे को चूमा और बोली…

"ई दुनिया यदि फिर से चालू होखित त हम तहरे से बियाह कर लेती पर अभी संभव नईखे…"

सोनू भी हकीकत जानता था सुगना उससे बेहद प्यार करती है यह बात वह समझ चुका था परंतु जो सम्मान सुगना के परिवार ने समाज में प्राप्त किया हुआ था उसे वह यूही बिखेर देना नहीं चाहती थी।

"त दीदी ब्याह के बाद छोड़ द…हम बियाह ना करब… हमरा कुछ ना चाहि हमरा तू मिल गईलू पूरा दुनिया मिल गईल " सोनू ने बेहद प्यार से सुगना की नंगी जांघो पर अपनी नाक रगड़ी और जांघों के बीच चूमने की कोशिश की परंतु सुगना की जांघें सटी हुई थीं बुर तक होठों का पहुंचना नामुमकिन था।

सुगना ने अपनी जांघों को थोड़ा सा खोला और सोनू के नथुने एक बार फिर सुगना की बुर की मादक खुशबू से भर गए सोनू मदहोश होने लगा तभी सुगना ने कहा

" रुक जो जब तोरा केहू से ब्याह नईखे करे के त लाली से कर ले"

"का कहत बाडू ? लाली दीदी हमरा से चार-पांच साल बड़ हई और बाल बच्चा वाला भी बाड़ी सब लोग का कहीं? " सुगना क्या चाहती थी सोनू समझ ना पाया।

" मंच पर त बड़ा-बड़ा भाषण देत रहला। लाली के साल दू साल से अपन बीवी बनावले बड़ा कि ना? दिन भर तोहार इंतजार करेले बनावेले खिलावेले और गोदी में सुतावेले …. अब एकरा से ज्यादा केहू के मेहरारू का दीही?"

सोनू को सुगना की बात समझ आ रही थी। लाली से विवाह कर वह समाज के प्रश्नों को समाप्त कर सकता था और लाली को पत्नी बनाकर सुगना के करीब और करीब रह सकता था। यदि कभी सुगना और उसके संबंध लाली जान भी जाती तो भी कोई बवाल नहीं होना था। आखिर पहली बार लाली ने ही उसे सुगना के समीप जाने की सलाह दी थी….

"दीदी आज तक तू ही रास्ता देखवले बाड़ू.. तू जो कहबू हम करब बस हम एक ही बात तोहरा से बार-बार कहब हमरा के अपना से दूर मत करीह… हमार सब कुछ तोहरा से जुडल बा…." इतना कहकर सोनू ने अपनी होंठ और नाक सुगना की जांघों के बीच रगड़ने की कोशिश की और उसकी बुर से आ रही भीनी भीनी खुशबू अपने नथुनों में भरने की कोशिश की। सोनू की हरकत से सुगना सिहर उठी और बेहद प्यार से सोनू को सहलाते हुए बोली..

" जितना तू प्यार हमरा से करेल उतना ही हम भी… तू लाली के से ब्याह करले बाकी …..हम त तहार हइये हई

"लाली दीदी मनीहें?"

"काहे ना मन मनिहें उनकर त दिन लौट आई…बेचारी कतना सज धज के रहत रहे…पहिले"

सोनू के जेहन में लाली की तस्वीरें घूमने गई कितनी खूबसूरत लगती थी लाली कि जब वह नई नई शादी करके अपने मायके आई थी सोनू और लाली के संबंध उसी दौरान भाई-बहन की मर्यादा पारकर हंसी ठिठोली एक दूसरे को छेड़ने के अंदाज में आ चुके थे…

रंग-बिरंगे वस्त्र स्त्रियों की खूबसूरती को दोगुना कर देते हैं …अपने मन में सुहागन और सजी धजी लाली को याद कर उसका लंड तन गया जैसे वह स्वयं लाली को अपनाने के लिए तैयार हो। मन ही मन सोनू ने सुगना की बात मानने का निर्णय कर लिया पर संदेह अब भी था। उसने पूछा

"और घर परिवार के लोग?"

"ऊ सब हमरा पर छोड़ दे" सुगना ने पूरी गंभीरता से सोनू के बाल सहलाते हुए कहा..

सुगना को गंभीर देख सोनू ने माहौल सहज करने की सोची और मुस्कुराते हुए पूछा…

"अच्छा दीदी ई बताव दहेज में का मिली…?"

सोनू की बात सुन सुगना भी मुस्कुरा उठी …और उसने अपनी दोनों जांघें खोल दीं…और उसकी करिश्माई बुर अपने होंठ खोले सोनू का इंतजार कर रही थी।

सुगना अपना उत्तर दे चुकी थी और सोनू को जो दहेज में प्राप्त हो रहा था इस वक्त वही उसके जीवन में सर्वस्व था…जिसे देखने चूमने पूचकारने और गचागच चोदने के लिए सोनू न जाने कब से बेचैन था.. वो करिश्माई बुर उसकी आंखो के ठीक सामने थी…


सोनू का चेहरा उसकी बुर् के समीप आ गया था। सोनू से रहा न गया उसके होंठ सुगना की बुर की तरफ बढ़ने लगे। सुनना यह जान रही थी कि यदि उसने सोनू को न रोका तो उसके होंठ उसकी बुर तक पहुंच जाएंगे…. हे भगवान! सुनना पिघल रही थी… वह सोनू के सर को पकड़कर बाहर की तरफ धकेला चाहती थी..उसने अभी स्नान भी न किया था…अपने भाई को गंदी बुर चूसने के लिए देना….सुगना ने अपनी जांघें बंद करने की सोची… परंतु उसके अंदर की वासना ने उसे रोक लिया..

सुगना की बुर के होंठ सोनू की नाक से टकरा गए और सुगना मदहोश होने लगी.... अपने पैर उसने घुटनों से मोड़ दिए और उसे ऊंचा करने लगी.. तभी न जाने कब सोनू के सर ने सुगना के वस्ति प्रदेश पर दबाव बनाया और सुगना बिस्तर पर पीठ के बल आ गई दोनों जांगे हवा में आ चुकी थी। और सोनू का चेहरा उसकी जांघों के बीच।

सोनू के होठों में जैसे ही सुगना की बुर के होठों को चूमा सुगना तड़प उठी….

" ए सोनू मत कर अभी साफ नईखे " सुगना को बखूबी याद था की उसकी बुर से लार टपक रही थी ….

परंतु सोनू कहां मानने वाला था उसे यकीन न था कि वह अपनी बहु प्रतीक्षित और रसभरी बुर को इतनी जल्दी अपने होठों से छू पायेगा।


उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह साफ थी या ….नहीं उसे अपनी बहन का हर अंग प्यारा था उसकी बुर …. आह .. उससे देखने और चूमने को तो सोनू न जाने कब से तड़प रहा था।

सोनू ने अपनी जीभ सुगना की बुर् के होठों पर फिरा दी और सुगना की प्रेम रस से भरी हुई चाशनी सोनू के लबों पर आ गई… सुगना तड़प कर रह गई… उसने सोनू के सर को एक बार फिर धकेलने की कोशिश की परंतु सोनू के मुंह में रस लग चुका था उसकी जीभ और गहराई से उस चासनी को निकालने का प्रयास करने लगी। जब सोनू ने सुगना की बुर देखने के लिए अपना चेहरा हटाने की कोशिश की सोनू और सुगना के होठों के बीच प्रेम रस से 3 तार की चाशनी बन गई सोनू मदहोश हो गया….

बुर को देखने से ज्यादा सोनू ने उसे चूमने को प्राथमिकता दी और एक बार फिर उसने अपने होंठ अपनी बड़ी बहन की बुर से सटा दिए।


सुगना अपने छोटे भाई द्वारा की जा रही इस हरकत से शर्मसार भी थी और बेहद उत्तेजित भी…उसने अपने पैर उठाकर सोनू के कंधे पर रख दिए और अपनी एड़ी से सोनू की पीट हल्के हल्के वार करने लगी। जैसे-जैसे सोनू अपनी जीभ और होठों से उसकी बुर की गहराइयों में उत्तेजना भरता सुगना अपने पैर उसकी पीठ पर पटकती….

"ए सोनू बस अब ही गइल छोड़ दे.."

"अरे वाह दहेज काहे छोड़ दीं "

सोनू ने सर उठा कर सुगना की तरफ देखा जो खुद भी अपना सर ऊपर किए सोनू को अपनी जांघों के बीच देख रही थी।

नजरें मिलते ही सुगना शर्मा गई….

भाई बहन की अठखेलियां ज्यादा देर न चली। सोनू और सुगना के जननांग एक दूसरे से मिलकर धमाचौकड़ी मचाने लगे.. उनका खेल निराला था …

वैसे भी यह खेल इंसानों का सबसे प्रिय खेल है बशर्ते खेल खेलने वाले दोनों खेल खेलना जानते हो और विधाता ने उन्हें खुबसूरत और दमदार अंगों से नवाजा हो।

अगले दो तीन दिनों तक भाई बहन के बीच शर्मो हया घटती रही। सुगना चाह कर भी सोनू को खुलने से रोक ना पा रही थी वह उसके साथ अंतरंग पलों का आनंद लेना चाह रही थी पर वैचारिक नग्नता से दूर रहना चाहती थी परंतु सोनू हर बार पहले से ज्यादा कामुक होता और उसे चोदने से पहले और चोदते समय ढेरों बातें करना चाहता …सुगना को भी इन बातों से बेहद उत्तेजना होती और वह चाह कर भी सोनू को रोक ना पाती।

सुख के पल जल्दी बीत जाते हैं और सोनू और सुगना का मिलन भी अब खत्म होने वाला था लखनऊ जाकर डॉक्टर से चेकअप कराना अनिवार्य हो गया था डॉक्टर की नसीहत जिस प्रकार दोनों भाई बहन ने पालन की थी उसने दोनों को पूरी तरह सामान्य कर दिया था।

सुगना और सोनू की जोड़ी देखने लायक थी जितने खूबसूरत माता-पिता उतनी ही खूबसूरत दोनों बच्चे ..

काश विधाता इस समय को यहीं पर रोक लेते …. पर यह संभव न था।

पर उनकी बनाई नियति ने सुगना की इस कथा पर अल्पविराम लगाने की ठान ली…

सुगना और सोनू को एक दूसरे की बाहों में तृप्त होते देख नियति उन्हें और छेड़ना नहीं चाह रही थी….


मध्यांतर

साथियों मैं समय के आभाव के कारण यह कहानी अस्थायी रूप से बंद कर रहा हूं …. अपने फुर्सत के पलों में मैं इस कहानी को और आगे लिखता रहूंगा परंतु आप सबको और इंतजार नहीं कराऊंगा जब कहानी के अगले कई हिस्से पूरे हो जाएंगे तभी मैं वापस इस कहानी पर अपडेट पोस्ट करूंगा तब तक के लिए अलविदा।

आप सबका साथ आनंददायक रहा.....दिल से धन्यवाद.....
बहुत ही उत्तेजक अपडेट था। साथ में आगे के कही रास्तों कि तरफ इशारा कर दिया।
 

LustyArjuna

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अधूरी कहानी अधूरा भाग १२६

सुगना ने जिस संजीदगी से सोनू से प्रश्न पूछा था उसका सच उत्तर दे पाना कठिन था आखिर सोनू किस मुंह से कहता है कि वह अपनी बड़ी बहन की बुर देखना चाह रहा है।

सोनू को कोई उत्तर न सूझ रहा था आखिरकार वह अपने हाथ जोड़कर घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया..उसका चेहरा सुगना की नाभि की सीध में आ गया…और सीना सुगना के नंगे घुटनों से टकराने लगा।

सोनू अपनी आंख बंद किए हुए था… सुगना से सोनू की अवस्था देखी न गई उसने अपने हाथ अपनी जांघों के बीच से हटाए और सोनू सर को नीचे झुकाते हुए अपनी नंगी जांघों पर रख लिया…सोनू का सर सुगना के वस्ति प्रदेश से टकरा रहा था और सोनू की नाक सुगना के दोनो जांघो के मध्य बुर से कुछ दूरी पर उसकी मादक और तीक्ष्ण खुशबू सूंघ रही थी.. सोनू की गर्म सांसे सुगना की जांघों के बीच के बीच हल्की हल्की गर्मी पैदा कर रही थी। सुगना सोनू के सर को सहलाते हुए बोली…


"ए सोनू ते बियाह कर ले…"


अब आगे..

सोनू चुप रहा अपनी बड़ी बहन के मुंह से यह बात वह कई बार सुन चुका था

"सोनू यदि ते ब्याह ना करबे लोग दस सवाल पूछी.."

"काहे सवाल करी.. ? सरयू चाचा भी त ब्याह नईखे कईलन "

"ओह टाइम के बात और रहे ते नौकरी करत बाड़े आतना पढल लिखल बाड़े…आतना सुंदर देह बा बियाह ना करबे तो लोग तोरा के नामर्द बोली ई हमारा अच्छा ना लागी"

सोनू सुगना की बात समझ ना पाया उसने मासूमियत से पूछा

"का बोली हमरा के..?"

"नपुंसक भी कह सकेला.. लोग के जबान दस हांथ के होला केहू कुछ भी कह सकेला"

" नपुंसक? " सोनू मुस्कुराने लगा

"दीदी तू ही बताव का हम नपुंसक हई?" सोनू ने सुगना की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा जैसे कल की गई मेहनत का पारितोषिक मांग रहा हो..

सुगना ने उसके गालों पर मीठी चपत लगाई और एक बार फिर उसका सर अपनी जांघों के बीच रखकर बोली..

"सोनू बाबू ई बात हम जानत बानी और लाली जानत बिया लेकिन ब्याह ना कर ब त लोग शक करी"

"दीदी चाहे तो कुछ भी कह अब तोहरा के छोड़ के हमारा केहू ना चाही…अब हमार सब कुछ तू ही बाड़ू"

"अरे वाह हमरा भीरी अइला त हमार हो गईला और लाली के भीरी जयबा तब…?"

सोनू निरुत्तर हो गया लाली उसकी प्रथम प्रेमिका थी और सुगना की तरह शुरुवात में उसने भी बड़ी बहन की भूमिका बखूबी निभाई थी… और फिर एक प्रेमिका का भी प्यार दिया था..सोनू को लाली की उस सामान्य सी चुदी चुदाई बुर ने भी इतना सुख दिया था जिसे भुलाना कठिन था…

जिस तरह भूख लगने पर गांव की गर्म रोटी भी उतनी ही मजेदार लगती है जितनी शहर का बटर नॉन…

सुगना बटर नॉन थी…और लाली गर्म रोटी..

"लाली भी हमरा अच्छा लागेली पर आपन आपन होला तू हमर सपना हाऊ "

"त का हमारा से बियाह करबा?" सुगना ने जिस तरह से प्रश्न पूछा था उसका उत्तर हा में देना कठिन था।

सोनू का मूड खराब हो गया… वह चुप हो गया परंतु उसके तेजस्वी चेहरे पर उदासी छा गई…

सुगना ने आगे झुक कर उसके माथे को चूमा और बोली…

"ई दुनिया यदि फिर से चालू होखित त हम तहरे से बियाह कर लेती पर अभी संभव नईखे…"

सोनू भी हकीकत जानता था सुगना उससे बेहद प्यार करती है यह बात वह समझ चुका था परंतु जो सम्मान सुगना के परिवार ने समाज में प्राप्त किया हुआ था उसे वह यूही बिखेर देना नहीं चाहती थी।

"त दीदी ब्याह के बाद छोड़ द…हम बियाह ना करब… हमरा कुछ ना चाहि हमरा तू मिल गईलू पूरा दुनिया मिल गईल " सोनू ने बेहद प्यार से सुगना की नंगी जांघो पर अपनी नाक रगड़ी और जांघों के बीच चूमने की कोशिश की परंतु सुगना की जांघें सटी हुई थीं बुर तक होठों का पहुंचना नामुमकिन था।

सुगना ने अपनी जांघों को थोड़ा सा खोला और सोनू के नथुने एक बार फिर सुगना की बुर की मादक खुशबू से भर गए सोनू मदहोश होने लगा तभी सुगना ने कहा

" रुक जो जब तोरा केहू से ब्याह नईखे करे के त लाली से कर ले"

"का कहत बाडू ? लाली दीदी हमरा से चार-पांच साल बड़ हई और बाल बच्चा वाला भी बाड़ी सब लोग का कहीं? " सुगना क्या चाहती थी सोनू समझ ना पाया।

" मंच पर त बड़ा-बड़ा भाषण देत रहला। लाली के साल दू साल से अपन बीवी बनावले बड़ा कि ना? दिन भर तोहार इंतजार करेले बनावेले खिलावेले और गोदी में सुतावेले …. अब एकरा से ज्यादा केहू के मेहरारू का दीही?"

सोनू को सुगना की बात समझ आ रही थी। लाली से विवाह कर वह समाज के प्रश्नों को समाप्त कर सकता था और लाली को पत्नी बनाकर सुगना के करीब और करीब रह सकता था। यदि कभी सुगना और उसके संबंध लाली जान भी जाती तो भी कोई बवाल नहीं होना था। आखिर पहली बार लाली ने ही उसे सुगना के समीप जाने की सलाह दी थी….

"दीदी आज तक तू ही रास्ता देखवले बाड़ू.. तू जो कहबू हम करब बस हम एक ही बात तोहरा से बार-बार कहब हमरा के अपना से दूर मत करीह… हमार सब कुछ तोहरा से जुडल बा…." इतना कहकर सोनू ने अपनी होंठ और नाक सुगना की जांघों के बीच रगड़ने की कोशिश की और उसकी बुर से आ रही भीनी भीनी खुशबू अपने नथुनों में भरने की कोशिश की। सोनू की हरकत से सुगना सिहर उठी और बेहद प्यार से सोनू को सहलाते हुए बोली..

" जितना तू प्यार हमरा से करेल उतना ही हम भी… तू लाली के से ब्याह करले बाकी …..हम त तहार हइये हई

"लाली दीदी मनीहें?"

"काहे ना मन मनिहें उनकर त दिन लौट आई…बेचारी कतना सज धज के रहत रहे…पहिले"

सोनू के जेहन में लाली की तस्वीरें घूमने गई कितनी खूबसूरत लगती थी लाली कि जब वह नई नई शादी करके अपने मायके आई थी सोनू और लाली के संबंध उसी दौरान भाई-बहन की मर्यादा पारकर हंसी ठिठोली एक दूसरे को छेड़ने के अंदाज में आ चुके थे…

रंग-बिरंगे वस्त्र स्त्रियों की खूबसूरती को दोगुना कर देते हैं …अपने मन में सुहागन और सजी धजी लाली को याद कर उसका लंड तन गया जैसे वह स्वयं लाली को अपनाने के लिए तैयार हो। मन ही मन सोनू ने सुगना की बात मानने का निर्णय कर लिया पर संदेह अब भी था। उसने पूछा

"और घर परिवार के लोग?"

"ऊ सब हमरा पर छोड़ दे" सुगना ने पूरी गंभीरता से सोनू के बाल सहलाते हुए कहा..

सुगना को गंभीर देख सोनू ने माहौल सहज करने की सोची और मुस्कुराते हुए पूछा…

"अच्छा दीदी ई बताव दहेज में का मिली…?"

सोनू की बात सुन सुगना भी मुस्कुरा उठी …और उसने अपनी दोनों जांघें खोल दीं…और उसकी करिश्माई बुर अपने होंठ खोले सोनू का इंतजार कर रही थी।

सुगना अपना उत्तर दे चुकी थी और सोनू को जो दहेज में प्राप्त हो रहा था इस वक्त वही उसके जीवन में सर्वस्व था…जिसे देखने चूमने पूचकारने और गचागच चोदने के लिए सोनू न जाने कब से बेचैन था.. वो करिश्माई बुर उसकी आंखो के ठीक सामने थी…


सोनू का चेहरा उसकी बुर् के समीप आ गया था। सोनू से रहा न गया उसके होंठ सुगना की बुर की तरफ बढ़ने लगे। सुनना यह जान रही थी कि यदि उसने सोनू को न रोका तो उसके होंठ उसकी बुर तक पहुंच जाएंगे…. हे भगवान! सुनना पिघल रही थी… वह सोनू के सर को पकड़कर बाहर की तरफ धकेला चाहती थी..उसने अभी स्नान भी न किया था…अपने भाई को गंदी बुर चूसने के लिए देना….सुगना ने अपनी जांघें बंद करने की सोची… परंतु उसके अंदर की वासना ने उसे रोक लिया..

सुगना की बुर के होंठ सोनू की नाक से टकरा गए और सुगना मदहोश होने लगी.... अपने पैर उसने घुटनों से मोड़ दिए और उसे ऊंचा करने लगी.. तभी न जाने कब सोनू के सर ने सुगना के वस्ति प्रदेश पर दबाव बनाया और सुगना बिस्तर पर पीठ के बल आ गई दोनों जांगे हवा में आ चुकी थी। और सोनू का चेहरा उसकी जांघों के बीच।

सोनू के होठों में जैसे ही सुगना की बुर के होठों को चूमा सुगना तड़प उठी….

" ए सोनू मत कर अभी साफ नईखे " सुगना को बखूबी याद था की उसकी बुर से लार टपक रही थी ….

परंतु सोनू कहां मानने वाला था उसे यकीन न था कि वह अपनी बहु प्रतीक्षित और रसभरी बुर को इतनी जल्दी अपने होठों से छू पायेगा।


उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह साफ थी या ….नहीं उसे अपनी बहन का हर अंग प्यारा था उसकी बुर …. आह .. उससे देखने और चूमने को तो सोनू न जाने कब से तड़प रहा था।

सोनू ने अपनी जीभ सुगना की बुर् के होठों पर फिरा दी और सुगना की प्रेम रस से भरी हुई चाशनी सोनू के लबों पर आ गई… सुगना तड़प कर रह गई… उसने सोनू के सर को एक बार फिर धकेलने की कोशिश की परंतु सोनू के मुंह में रस लग चुका था उसकी जीभ और गहराई से उस चासनी को निकालने का प्रयास करने लगी। जब सोनू ने सुगना की बुर देखने के लिए अपना चेहरा हटाने की कोशिश की सोनू और सुगना के होठों के बीच प्रेम रस से 3 तार की चाशनी बन गई सोनू मदहोश हो गया….

बुर को देखने से ज्यादा सोनू ने उसे चूमने को प्राथमिकता दी और एक बार फिर उसने अपने होंठ अपनी बड़ी बहन की बुर से सटा दिए।


सुगना अपने छोटे भाई द्वारा की जा रही इस हरकत से शर्मसार भी थी और बेहद उत्तेजित भी…उसने अपने पैर उठाकर सोनू के कंधे पर रख दिए और अपनी एड़ी से सोनू की पीट हल्के हल्के वार करने लगी। जैसे-जैसे सोनू अपनी जीभ और होठों से उसकी बुर की गहराइयों में उत्तेजना भरता सुगना अपने पैर उसकी पीठ पर पटकती….

"ए सोनू बस अब ही गइल छोड़ दे.."

"अरे वाह दहेज काहे छोड़ दीं "

सोनू ने सर उठा कर सुगना की तरफ देखा जो खुद भी अपना सर ऊपर किए सोनू को अपनी जांघों के बीच देख रही थी।

नजरें मिलते ही सुगना शर्मा गई….

भाई बहन की अठखेलियां ज्यादा देर न चली। सोनू और सुगना के जननांग एक दूसरे से मिलकर धमाचौकड़ी मचाने लगे.. उनका खेल निराला था …

वैसे भी यह खेल इंसानों का सबसे प्रिय खेल है बशर्ते खेल खेलने वाले दोनों खेल खेलना जानते हो और विधाता ने उन्हें खुबसूरत और दमदार अंगों से नवाजा हो।

अगले दो तीन दिनों तक भाई बहन के बीच शर्मो हया घटती रही। सुगना चाह कर भी सोनू को खुलने से रोक ना पा रही थी वह उसके साथ अंतरंग पलों का आनंद लेना चाह रही थी पर वैचारिक नग्नता से दूर रहना चाहती थी परंतु सोनू हर बार पहले से ज्यादा कामुक होता और उसे चोदने से पहले और चोदते समय ढेरों बातें करना चाहता …सुगना को भी इन बातों से बेहद उत्तेजना होती और वह चाह कर भी सोनू को रोक ना पाती।

सुख के पल जल्दी बीत जाते हैं और सोनू और सुगना का मिलन भी अब खत्म होने वाला था लखनऊ जाकर डॉक्टर से चेकअप कराना अनिवार्य हो गया था डॉक्टर की नसीहत जिस प्रकार दोनों भाई बहन ने पालन की थी उसने दोनों को पूरी तरह सामान्य कर दिया था।

सुगना और सोनू की जोड़ी देखने लायक थी जितने खूबसूरत माता-पिता उतनी ही खूबसूरत दोनों बच्चे ..

काश विधाता इस समय को यहीं पर रोक लेते …. पर यह संभव न था।

पर उनकी बनाई नियति ने सुगना की इस कथा पर अल्पविराम लगाने की ठान ली…

सुगना और सोनू को एक दूसरे की बाहों में तृप्त होते देख नियति उन्हें और छेड़ना नहीं चाह रही थी….


मध्यांतर

साथियों मैं समय के आभाव के कारण यह कहानी अस्थायी रूप से बंद कर रहा हूं …. अपने फुर्सत के पलों में मैं इस कहानी को और आगे लिखता रहूंगा परंतु आप सबको और इंतजार नहीं कराऊंगा जब कहानी के अगले कई हिस्से पूरे हो जाएंगे तभी मैं वापस इस कहानी पर अपडेट पोस्ट करूंगा तब तक के लिए अलविदा।

आप सबका साथ आनंददायक रहा.....दिल से धन्यवाद.....
मध्यांतर

ऐ मध्यांतर निश्चय ही अब कालांतर बन गया है।
मेरे जैसे पाठक जो अधुरी कहानियां पढ़ कर आहत होते हैं, वे इसलिए पूर्ण कहानियों को प्राथमिकता देते हैं।

यह कहानी बेहद उत्कृष्ट लेखन का एक प्रदर्शन है, जिसको अधुरा होने के बाद भी मैं अपने आप को पढ़ने से रोक नहीं पाया।

मैं "छाया" कहानी पढ़ रहा था, वहां से इस कहानी का link मिला। मेरी आदत के अनुसार मेने कहानी का अन्तिम पृष्ठ देखा और साथ में कुछ अपडेट की मांग भी देखने को मिलीं।
इन सब को देखते हुए कहानी ना पढ़ने का मन बनाया परन्तु "छाया" कहानी को पुरा पढ़ते तक मैं लेखक की अद्भुत लेखनी का कायल हो चुका था।

मेने अब तक बहुत कहानियां पढ़ी, अलग-अलग पटल पर, x forum पर अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है। तो इस कहानी को पढ़ने के लिए मेने इस पटल पर ID बनाईं और इस कहानी के अपडेट की मांग की।
अपडेट नहीं मिले, मिलते भी कैसे जब लेखक महोदय पटल पर उपस्थित ही नहीं हो रहें हैं।
फिर भी यह कहानी पढ़ने से में स्वयं को नहीं रोक सका, और आज यहां तक पढ़ने के बाद भी कुछ अति विशिष्ठ, उत्तेजक और कहानी की मुलरेखा के कुछ अपडेट शेष रह गए हैं

अंत में मैं लवली जी को बहुत बहुत धन्यवाद देता हूं ऐसी उत्कृष्ट कृति के लिए। और आगे अनुरोध करता हूं कि इस कहानी को अपने अन्जाम तक पहुंचाएं।
साथ ही १०१,१०२, १०९ और १२० अपडेट भेजने की कृप्या करें।

धन्यवाद।
 
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