गजब का कामुकता से भरा हुआ दृश्य था शुभम अपनी जवानी का पूरा जोर लगा दिया था शीतल को अपनी गोद में उठाने के लिए भारी भरकम वजन वाली खूबसूरत शीतल अब उसकी गोद में थी,,, बार-बार शुभम शीतल के सामने कुछ ऐसी हरकत कर दे रहा था जिससे शीतल पूरी तरह से शर्मिंदा हो जा रही थी उसे पेशाब करते हुए देखकर शीतल को पहले ही वह शर्मसार कर चुका था और अब उसे गोद में उठा लिया था साड़ी अभी भी उसकी कमर तक उठी हुई थी जिसकी वजह से उसकी नंगी गांड संपूर्ण रूप से साड़ी विहीन हो चुकी थी,,, शुभम बस्ती के सागर में गोते लगाते हुए शीतल को अपनी गोद में उठाए हुए थे और वह शर्म के मारे अपनी आंखों को मुंद चुकी थी बस उसके होठों पर हल्की हल्की मुस्कुराहट झलक रही थी और उसके चेहरे पर शर्म की लालिमा छाई हुई थी,,,, शीतल इतनी ज्यादा कामुकता के एहसास में उत्तेजित हो चुकी थी कि उसकी रसीली बुर से उसका नमकीन रस बूंद के रूप में नीचे फर्श पर रह रह कर चु जा रहा था,,,, उसकी सांसे गहरी चल रही थी,,,। शुभम भी काफी उत्तेजित नजर आ रहा था पेंट की चैन खुली हुई थी और उसमें से उसका मोटा तगड़ा लंड एकदम छत की तरफ मोड़ में खड़ा था जो कि शीतल को गोद में उठाने की वजह से बार-बार उसके लंड का मोटा सुपाड़ा उसकी नरम नरम गांड पर स्पर्श कर जा रहा था और जब जब शुभम के मोटे तगड़े लंड कै सुपाड़े का स्पर्श शीतल को अपनी गांड पर महसूस हो रहा था वह पूरी तरह से उत्तेजना मैं गनगना जा रही थी,,, शुभम उसे अच्छे से अपनी गोद में उठाकर उसी अवस्था में बाथरूम से बाहर निकलने लगा अभी भी शुभम का लंड पेंट के बाहर मुंह उठाए खड़ा था,,, चलते समय शीतल की लाल रंग की साड़ी नीचे जमीन पर घिसडते हुए चल रही थी,,, दोनों पूरी तरह से उत्तेजना के मदहोशी में अपने होशो हवास खो बैठे थे,,,, बड़े आराम से सुगंध शीतल को अपनी गोद में उठाए चला जा रहा था शीतल हैरान थी शुभम की ताकत को देख कर उसे इस बात का अहसास हो गया कि जितना वह शुभम को आंकती थी उससे कहीं ज्यादा बलिष्ठ है शुभम।
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शुभम धीरे-धीरे अपनी कदम आगे बढ़ा रहा था उसे सीढ़ियां चढ़नी थी,,, शीतल अभी भी अपनी आंखों को बंद करके हर एक पल का आनंद लूट रही थी उसे इस बात का अहसास था कि शुभम को सीढ़ियां चढ़ी नहीं पड़ेगी और वह जरूर उसे नीचे उतार देगा क्योंकि उसे ऐसा लग रहा था कि शुभम उसे गोद में उठाए हुए सीढ़ियां नहीं चढ़ आएगा लेकिन वह नहीं जानती थी कि जब एक मर्द जोश में आता है तो वह पहाड़ चढ जाता है तो यह सीढ़ियां क्या चीज थी मर्द के लिए सबसे कठिन काम होता है एक कामुक और प्यासी औरत पर चढ़ना और उस पर चढ़कर उसकी काम भावना और उसकी प्यास को बुझाना अगर इस काम में मर्द कामयाब हो जाता है तो वह दुनिया का हर एक काम कर सकता है और शुभम तो इस काम में एकदम माहिर था,,, उसके लिए शीतल के ऊपर चढ़ना और सीढ़ियां चढ़ना ज्यादा महत्व नहीं रखता था मौत रखता था सिर्फ शीतल को संपूर्ण रूप से इतना ज्यादा संतुष्टि का अहसास कराना कि वह तृप्त हो जाए पूरी तरह से मस्त हो जाए और हमेशा के लिए उसकी गुलाम बन जाए,,,, और इसीलिए शुभम उसे गोद में उठाए उसके शयनकक्ष में ले जा रहा था धीरे-धीरे करके शुभम सीढ़ियां चढ़ने लगा शीतल को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था वह अपनी आंख खोल कर देखने लगी तो वास्तव में वह बिना थके बिना किसी दिक्कत के उसे अपनी गोद में उठाए सीढ़ियां चढ़ रहा था मानो उसके लिए शीतल का वजन किसी खिलौने जैसा हो। अब तो शीतल की हालत और ज्यादा खराब होने लगी और पूरी तरह से शुभम के आकर्षण में डूबती चली जा रही थी क्योंकि अब तक उसने ऐसा पुरुष नहीं देखा जो इस तरह की ताकत और दमखम रखता हो,,,, शीतल शुभम के आगे सर हमसे एकदम घड़ी जा रहे थे क्योंकि शुभम अभी लड़का ही था जो धीरे-धीरे जवान हो रहा था और उसके बेटे की उम्र का ही था
अगर उसके बेटा होता तो,,,, और किस उम्र का लड़का उसे अपनी गोद में उठाए हुए था ऐसा लग रहा था कि जैसे वह उम्र दराज या 30 35 30 के करीब का हो,,, अगर सुभम उम्र के उस पड़ाव पर होता तो शायद शीतल इतनी शर्मिंदा नहीं होती,, लेकिन उसे ऐसा एहसास हो रहा था कि कल का छोकरा उसे इस तरह से अपनी गोद में उठाया है इस बात को लेकर वह काफी शर्मिंदगी महसूस कर रही थी लेकिन उत्तेजना के परम शिखर पर अपने आप को विराजमान होता भी पा रही थी,,,, धीरे-धीरे करके शुभम अपनी मजबूत भुजाओं का बल दिखाते हुए सारी सीढ़ियां चढ़ गया,,,, देखते ही देखते वह शीतल को अपनी गोद में उठाए हुए ही,,, शीतल के शयनकक्ष के बाहर खड़ा हो गया दोनों अभी भी उसी तरह की अवस्था में थे शीतल की लाल रंग की पेंटी अभी भी उसके घुटनों में फंसी हुई थी और शुभम का मोटा तगड़ा लंबा लंड उसकी गांड की मोटी मोटी गहरी दरारों के बीच दस्तक दे रहा था जिससे शीतल की हालत खराब होती जा रही थी शुभम शयन कक्ष के बाहर कुछ देर तक खड़ा होकर शीतल को ही देखे जा रहा था और शीतल शुभम कोई इस तरह से अपने चेहरे की तरफ देखता हुआ पाकर एकदम शर्म से सिकुड़ी जा रही थी उसके चेहरे पर शर्म की लालिमा छाई हुई थी वह पूरी तरह से शर्मसार हुए जा रही थी उससे और ज्यादा देर तक अपनी आंखें खोली नहीं गई और वह अपनी आंखें एक बार फिर से बंद कर ली ऐसा लग रहा था कि मानो सच में वह एक नई नवेली दुल्हन हो उस एवं उसका पति हो और शुभम को क्या चाहिए था उसे तुमको ज्यादातर ऐसी औरतों को चोदने में ज्यादा मजा आता है जो शर्म और हया का चादर अपने बदन पर लपेटे हुए होती है तब जाकर धीरे-धीरे शर्म मर्यादा की चादर को धीरे-धीरे हटाने में शुभम को अत्यधिक आनंद की अनुभूति होती है यही अब शीतल के साथ होने वाला था शीतल पूरी तरह से शर्म की चादर ओढ़ ली थी जिसका शुभम को विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि शीतल जिस तरह की औरत थी शुभम कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसे हालात में शीतल कभी इतना शर्माएगी,,,,
सुभम अभी भी शीतल के शयन कक्ष के बाहर खड़ा था दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था लेकिन वह अंदर नहीं जा रहा था क्योंकि वह शीतल के खूबसूरत चेहरे के दीदार करने में पूरी तरह से व्यस्त हो चुका था साथ ही वह अपनी कमर को हल्के हल्के ऊपर की तरफ उठा रहा था जिससे उसका मोटा तगड़ा लंड शीतल की गांड की गहरी दरार में हल्का हल्का घुसता हुआ महसूस हो रहा था,,,, मजा दोनों को बराबर आ रहा था। शुभम की नजर शीतल की दोनों मदमस्त खरबूजे जैसी गोलाइयों के बीच की पतली गहरी दरार पर थी जो कि बहुत ही लंबी थी,,, और उस पतली गहरी और लंबी दरार को देखकर शुभम समझ गया था कि शीतल के दोनों खरबूजे बेहद जानदार और शानदार है।
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शुभम भी जल्द से जल्द शीतल को उसके बिस्तर पर ले जाना चाहता था इसलिए वह पैर से हल्का सा दबाव देकर दरवाजे को खोल दिया,,,, कमरे में ट्यूब लाइट जल रही थी जिसकी दूधिया रोशनी में कमरे का हर एक कोना जगमगा रहा था,,, बहुत ही जल्दी शीतल ने भाड़े के अपने इस बंगले को अच्छी तरह से सजा दिया था खास करके अपने कमरे को,,,, शुभम की आंखों के सामने शीतल का बिस्तर जोकि किंग साइज का था वह बिछा हुआ था,,, अभी भी शीतल अपनी आंखों को बंद किए हुए थी,,,, क्योंकि उसका बदन बेहद कसमसा रहा था वो पागल हुए जा रही थी क्योंकि इस समय शुभम का लंड पूरी तरह से उसकी गांड की गहरी दरार में फंसा हुआ था,,,। वह बार-बार शर्म के मारे अपनी बड़ी बड़ी गांड को हल्के से ऊपर उठाने की कोशिश कर रही थी लेकिन उससे ऐसा हो नहीं पा रहा था जितना वह कोशिश कर रही थी उतना और ज्यादा धीरे-धीरे नीचे की तरफ जा रही थी जिससे शुभम का लंड पूरी तरह से उसकी गांड की दरार में फंसा हुआ था,,,
धीरे-धीरे शुभम बिस्तर की तरफ आगे बढ़ने लगा हूं जैसे ही बेड के करीब पहुंचा हुआ है शीतल को नरम नरम करते पर लगभग फेंक दिया लेकिन गद्दा इतना ज्यादा नरम था कि शीतल को इससे जरा भी फर्क नहीं पड़ा,,,, लेकिन एकदम शर्मिंदा हुए जा रही थी,,,, बिस्तर पर गिरने के बाद शीतल धीरे-धीरे अपनी आंखों को खोली तो सामने उसके शुभम खड़ा था जो कि धीरे-धीरे करके अपने कपड़े उतार रहा था और देखते ही देखते वह शीतल की आंखों के सामने एकदम नंगा हो गया,,, पेंट पहने होने के नाते शुभम का लंड जितना जबरदस्त लगता था उससे कहीं ज्यादा भयानक संपूर्ण रुप से नंगा हो जाने के बाद उसका लड लग रहा था शुभम के लंड में जरा भी शिथिलता नहीं थी वह पूरी तरह से खड़ा था छत की तरफ मुंह किए,,,,, शीतल को देखते हुए शुभम दिखा से अपने लंड को पकड़ कर उससे ऊपर नीचे करके हिलाने लगा जो कि बेहद कामोत्तेजना से भरा हुआ नजारा था शीतल के लिए,,, शुभम का इस तरह से अपना लंड हिलाना एकदम साफ था कि आज वह शीतल की जबरदस्त चुदाई करने वाला है इस बात का एहसास ऐसे ही शीतल एकदम से मस्त होने लगी,,,,,
कमल की खिड़कियां बंद थी अंदर छत पर पंखा चल रहा था लेकिन शीतल की मादकता भरी गर्म जवानी के चलते कमरे का वातावरण पूरी तरह से गर्म हो चला था,,, इसलिए शुभम नंगा ही खिड़की की तरफ जा कर खिड़की खोल दिया और जैसे ही खिड़की खोला बाहर से ठंडी हवा का झोंका पूरे कमरे में ठंडक फैलाने लगी,,, शुभम के पीठ शीतल की तरह थी जो कि शुभम एकदम नंगा खड़ा था शीतल की नजर शुभम की कमर के नीचे उसकी गांड पर थी जो कि एकदम पाव रोटी की तरह गोल थी शुभम की गांड को देखकर शीतल की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,,, उसका पतन कसमसा रहा था वह कभी शुभम की तरफ देख रही थी तो कभी बिस्तर की तरफ,,,, अभी भी उसकी लाल रंग की पेंटी उसके घुटनों में ही फंसी हुई थी तभी शुभम खिड़की के पदों को पूरी तरह से खोल दिया वैसे भी खिड़की से बाहर वालों को कुछ भी देखने वाला नहीं था घर की खिड़की में से सब कुछ देखा जा सकता था,,,, कुछ सेकंड के लिए सुभम खिड़की के पास खड़ा होकर खिड़की से बाहर देख रहा था जहां से मुख्य सड़क गुजर रही थी और उस पर से इक्का-दुक्का गाड़ियां आ जा रही थी स्ट्रीट लाइट पूरी तरह से जगमग आ रही थी जिसकी रोशनी में पूरी सड़क नहाई हुई थी। शीतल बड़े ध्यान से शुभम को ही देख रही थी,,,, बाहर का बेहद ठंडक वातावरण और कमरे के अंदर का बेहद गर्म और जोश से भरा हुआ माहौल शुभम को पूरी तरह से अपनी आगोश में लिए जा रहा था शुभम वापस शीतल की तरफ घुमा और अपने लंड को हिलाते हुए आगे बढ़ने लगा,,,, शुभम को इस तरह से अपनी तरफ आता हुआ देखकर शीतल की हालत खराब होने लगी उत्तेजना के चरम शिखर पर वह पूरी तरह से विराजमान होती जा रही थी उसका बदन कसमसा रहा था टांगों के बीच की पतली दरार में से लगातार नमकीन रस बह रहा था।
देखते ही देखते शुभम बिस्तर के करीब पहुंच गया और बोला,,,,,
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शीतल मेरी जान,,,,,( सहहहहह,,,आहहहहह,,, जान शब्द सुनते ही शीतल की हालत खराब होने लगी उसकी अंतरात्मा से सिसकारी की आवाज फूटने लगी शुभम इस तरह से उसे कभी नहीं बुलाया था लेकिन आज उसके मुंह से जान शब्द सुनकर वह पागल हुए जा रही थी उसके बदन का रोम-रोम पुलकित हुए जा रहा था लेकिन एक बार फिर से वह अपनी नजरों को शर्म के मारे नीचे कर ली उसे भी ना जाने कैसा एहसास हो रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि वास्तव में आज वह नई नवेली दुल्हन है और शुभम उसका दूल्हा है जिसके सामने वह शर्मो हया के गहने में लदी हुई है शीतल अपने होशो हवास में बिल्कुल भी नहीं थी,,,) शीतल मेरी जान इस दिन के लिए मैं ना जाने कितने दिनों से इंतजार कर रहा था जितना तुम्हें इस पल का इंतजार था उससे कहीं ज्यादा मैं इस दिन के लिए तड़पा हूं,,,( शुभम उसी तरह से अपने लंड को हिलाते हुए बोला मानव के जैसे कोई जवान युद्ध से पहले अपनी बंदूक को पीला डुला के चेक कर लेता है उसी तरह से शुभम भी अपने लंड को हीला डुला कर चेक कर रहा था कि यह बराबर काम करेगा कि नहीं,,, यह तो शीतल के मन की धारणा थी लेकिन वास्तविकता यही थी कि युद्ध में लड़ते हुए एक सैनिक की बंदूक ऐन मौके पर धोखा दे सकती हैं लेकिन शुभम का लंड कभी धोखा नहीं दे सकता,,, इतना तो शुभम को अपने लंड पर विश्वास था और गर्व भी,,,, शुभम की बात सुनकर शीतल मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह इस पल के लिए ना जाने कितने महीनों से इंतजार कर रही थी,,, शुभम अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।) आज देखना शीतल मेरा यह लंड( अपने हाथ से अपने लंड को खींचकर शीतल की तरफ इशारा करते हुए) तुम्हारी बुर में जाकर ऐसा मजा देगी कि तुम जिंदगी भर याद रखोगी,,,,( शीतल शुभम की यह बात सुनकर उत्तेजना से भर गई और तिरछी नजर से शुभम की तरफ देखने लगी जो कि अभी भी वह अपने हाथ में अपने लंड को लेकर हिला रहा था शुभम के तगड़े लंड को देखकर वह अंदर तक सिहर उठ रही थी,,, वह बस शुभम की बातों को सुन रही थी और उसकी हरकतों को देख रही थी उससे बोला कुछ भी नहीं जा रहा था सर मैं लिख एक एहसास चले वह इतना अंदर गड़ती चली जा रही थी कि उसके होठों से एक भी शब्द फूट नहीं रहे थे बस वह हर एक पल का अंदर ही अंदर प्रसन्नता के साथ आनंद ले रही थी,,, शुभम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था शीतल कीमत मस्त जवानी उसकी आंखों के सामने बिस्तर पर बिछी पड़ी थी जो कि शुभम से बर्दाश्त नहीं हो रही थी,,, उसकी आंखों के सामने शीतल बिस्तर पर पीठ के बल लेटी हुई थी उसकी साड़ी कब तक उठी हुई थी जिससे उसकी रसीली चिकनी बुर साफ नजर आ रही थी और उसकी लाल रंग की पैंटी अभी भी उसके घुटनों में फंसी हुई थी जिसे वह अब तक नहीं निकाली थी,,,, बड़ा ही मनमोहक दृश्य था शुभम उस कामोत्तेजना से लथपथ दृश्य में अपने आप को भिगो लेना चाहता था,,,, शीतल की सांसे गहरी चल रही थी और सांसो की गति के साथ उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां भी ब्लाउज के अंदर के ऊपर नीचे हो रही थी,,, मानो शीतल ने अपने ब्लाउज में दो बड़े-बड़े कबूतर छुपा कर रखी हो और वह बाहर आने के लिए अपने पंख फड़फड़ा रहे हैं,,,, शुभम शीतल के दोनों कबूतरों का दम घुटता हुआ नहीं देख सकता था इसलिए जल्द से जल्द उन कबूतरों को ब्लाउज की कैद से आजाद करना चाहता था लेकिन अभी भी उनकी आजादी में थोड़ा समय था,,,,
शीतल के घुटनों में फंसी हुई लाल रंग की पैंटी को देखते हुए शुभम अपना एक पैर बिस्तर के नरम गरम करके पर रखते हुए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाया और बोला,,,
मेरी जान इसे तो निकाल दी होती ,,,,(इतना कहने के साथ ही शुभम अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर शीतल की लाल रंग की पैंटी को पकड़कर उसे निकालने को हुआ ही था कि शीतल कसमसाने लगी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें बार-बार शुभम कि इस तरह की हरकत जो कि शीतल के सोच के परे थी वो पूरी तरह से शर्मसार हो जाती थी,,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कमरे में उसके साथ वही नादान सुबह में या उसकी शक्ल में कोई और है,,,, शीतल अपने मन में यही सब सोच रही थी कि शुभम एक झटके से उसकी लाल रंग की पेंटिं को उसकी चिकनी टांगों में से जुदा करते हुए उसे नीचे फर्श पर फेंक दिया कमर के नीचे शीतल पूरी तरह से नंगी हो गई मोटी मोटी मांसल चिकनी जांघें ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में और ज्यादा चमक रही थी और उसकी चमक से शुभम की आंखें चौंधिया जा रही थी,,,, जो कि शीतल शर्म के मारे अपनी दोनों टांगों को आपस में सटा कर अपनी बेशकीमती खजाने को छुपाने की भरपूर कोशिश कर रही थी,,, लेकिन शीतल की यह सब कोशिशें शुभम के सामने नाकाम थी,,, क्योंकि शुभम अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाकर दोनों हाथों से शीतल के दोनों घुटनों को पकड़कर अपनी तरफ खींच लिया और वह आह की आवाज के साथ सीधा बिस्तर के किनारे पर पहुंच गई ,,, शीतल एकदम से बिस्तर के किनारे पहुंच गई थी उसके दोनों घुटने बिस्तर से नीचे लटक रहे थे और शुभम शीतल की दोनों टांगों के बीच में खड़ा था जो कि वह पहले से ही घुटनों को पकड़कर फैलाया हुआ था जिससे शीतल की चिकनी फूली हुई बुर उसकी आंखों के ठीक सामने थी,,,,, और वह शीतल की रसीली बुर को घूरते हुए बोला,,,,।
इसे क्यों छुपा रही हो मेरी रानी इसका दीदार करने के लिए तो मैं यहां आया हूं,,,,,( ऐसा कहते हुए शुभम गहरी गहरी सांसे लेता हुआ शीतल की फूली हुई बुर को ही घुरे जा रहा था,,,, शीतल को समझ में नहीं आ रहा था कि उसे क्या होता जा रहा है शुभम से इस तरह की मुलाकात के पहले वह अपने मन में क्या-क्या सोच कर रखी थी उसे यह लग रहा था कि शुभम के ऊपर वह पूरी तरह से छा जाएगी जैसा वह कहेगी वैसा ही सुभम करेगा,,, लेकिन यहां तो सब कुछ उल्टा होता चला जा रहा था बिस्तर पर वह खुद एक नई नवेली दुल्हन की तरह शर्माते हुए पीठ के बल लेटी हुई थी और शुभम उसके साथ मनमानी कर रहा था,,, शुभम को आंकने मे वह धोखा खा गई,,,, मुझे समझ लेना चाहिए था कि उसका पहला सीधे-साधे शुभम से नहीं बल्कि उससे मन से पड़ा है जो वह खुद अपनी मां की जबरदस्त चुदाई करता है और जो अपनी मां को ही चोद सकता है वह सोचो क्या नहीं कर सकता,,, इसलिए तो वह शुभम के सामने पूरी तरह से ध्वस्त होती जा रही थी उसे लग रहा था कि शुभम को किस तरह से आगे बढ़ना है उसे सिखाना पड़ेगा लेकिन यहां पर वह शुभम के सामने खुद एक नौसिखिया लड़की की तरह पड़ी हुई थी लेकिन जो भी हो रहा था उसमें शीतल को बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी इतना मजा उसे कभी नहीं आया था वह पूरी तरह से मदहोशी के आलम में होती चली जा रही थी उसकी सांसों की गति तेज होती जा रही थी क्योंकि उसकी टांगों के बीच शुभम अपने घुटनों के बल बैठ चुका था जिसका मतलब साफ था कि अब वह उसकी बुर को अपने होठों से छूने वाला है इस बात का एहसास ही शीतल के अंदर उत्तेजना की चिंगारियां भर रहा था,,,
शुभम पागलों की तरह आंखें फाड़े शीतल की कचोरी जैसी फूली हुई बुर को देख रहा था जिसमें से उसका नमकीन रस धीरे-धीरे करके रिस रहा था,,,, वक्त आ गया था शुभम के लिए जिसका सपना वह स्कूल के दिनों से ही देखता चला रहा था उसकी सपनों की रानी शीतल बिस्तर पर टांगे फैलाए लेटी हुई थी और उसकी टांगों के बीच शुभम अपनी मंशा पूरी करने के लिए धीरे-धीरे अपनी होंठ आगे बढ़ा रहा था जैसे-जैसे शीतल शुभम के होठों को अपनी बुर की तरफ आगे बढ़ता हुआ देख रही थी वैसे वैसे उसका पूरा बदन उत्तेजना की आग में कसमसा रहा था वह पागल हुए जा रही थी उसके बदन में उत्तेजना चिकोटि काट रही थी,,,,
क्रमशः
Sheetal is tarah se apni Saree ko kamar Taj uthaye huye thi