Intezar rahega lekhika ap rahengi
जी हाँ................लेखिका मैं ही हूँगी बस एडिटिंग वगैरह का काम हमारे लेखक जी करेंगे.................पोस्ट मैं ही करुँगी
इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 {5(i)}
अब तक अपने पढ़ा:
फिल्म देखने का सुख मुझे छोड़ कर सभी ने लिया था, पर देखा जाए तो मेरे लिए असली सुख अपनी छोटी बिटिया रानी के साथ खेलना था| फिल्म खत्म हुई रात साढ़े 10 बजे और अब लगी थी भूख इसलिए हम मॉल में बने हुए रेस्टोरेंट में खाना खाने बैठ गए| जिस रेस्टोरेंट में हम आये थे ये बहुत महँगा था जिस कारण यहाँ की साज-सज्जा बहुत बढ़िया थी| हम सभी एक फॅमिली टेबल पर बैठे और खाना आर्डर करने का काम दादी-पोता-पोती ने किया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठा था की तभी एक वेटर स्तुति के बैठने के लिए छोटे बच्चों की कुर्सी ले आया| कुर्सी अपने सामने लगवा कर मैंने स्तुति को उस आरामदायक कुर्सी पर बिठाया, तो मेरी बिटिया रानी ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| "बड़े ठाठ हैं इस शैतान के!" संगीता आँखें तार्रेर कर बोली जिसके जवाब में स्तुति अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाने लगी| माँ-बेटी की ये जुगलबंदी देख मैं, माँ और दोनों बच्चे हँसने लगे| खैर, हम सभी ने खाना खाया और स्तुति को भी आज पहलीबार 2 (छोटी) चम्मच गुलाब जामुन खाने को मिला| अपने पापा जी की ही तरह स्तुति को भी ये मीठा-मीठा स्वाद बहुत पसंद आया था|
अब आगे:
बच्चे अक्सर अपने माँ-बाप, अपने बड़ों को देख कर कुछ नया सीखते हैं| आयुष मेरी देखा-देखि बॉडी स्प्रे (body spray) लगाना, अच्छे से बाल बनाना, शेड्स (shades) यानी धुप वाले चश्मे पहनना आदि सीख गया था| वहीं नेहा ने अपनी मम्मी को थोड़ा बहुत मेक-अप करते हुए देख फेस पाउडर, आँखों में काजल लगाना, बिंदी लगाना, लिपस्टिक लगाना सीख लिया था| अब जब दोनों बच्चे अपने मम्मी-पापा जी से कुछ न कुछ सीख रहे थे तो स्तुति कैसे पीछे रहती?!
एक दिन की बात है, पड़ोस में पूजा रखी गई थी तथा हम सभी को आमंत्रण मिला था| माँ और आयुष तो तैयार हो कर पहले निकल गए, रह गए बस हम मियाँ बीवी, नेहा और स्तुति| चूँकि मुझे साइट से घर लौटने में समय लगना था इसलिए संगीता मेरी दोनों बेटियों के साथ घर पर मेरा इंतज़ार कर रही थी| "तुम नहा-धो कर तैयार हो जाओ मैं तबतक घर पहुँच जाऊँगा|" मैंने फ़ोन कर संगीता को तैयार होने को बोला| कुछ समय बाद संगीता नहा कर तैयार हो चुकी थी तथा आईने के सामने बैठ कर अपने चेहरे पर थोड़ा सा फेस-पाउडर लगा रही थी| नेहा और स्तुति दोनों पलंग पर बैठे अपनी मम्मी को साज-श्रृंगार करते हुए देख रहे थे| नेहा ने अपनी मम्मी को पहले भी श्रृंगार करते हुए देखा था इसलिए वो इतनी उत्सुक नहीं थी, लेकिन स्तुति इस समय बहुत हैरान थी| वो बड़े गौर से अपनी मम्मी को फेस-पाउडर लगाते हुए देख रही थी| फिर संगीता ने अपने गुलाबी होठों पर हलके गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगाई, स्तुति ने जब ये दृश्य देखा तो उसका छोटा सा मुँह खुला का खुला रह गया| अंत में संगीता ने अपने माथे पर बिंदी लगाई और इस पाल मेरी बिटिया स्तुति के अस्चर्य की सीमा नहीं थी! अपनी मम्मी के माथे पर लगी बिंदी को देख मेरी बिटिया अचानक ही उतावली हो कर अपनी मम्मी के माथे की तरफ ऊँगली कर अपनी बोली-भाषा में कुछ कहने लगी|
अब स्तुति की ये भाषा केवल वही जानती थी इसलिए माँ-बेटी (नेहा और संगीता) के कुछ पल्ले नहीं पड़ा| ठीक तभी मैं घर पहुँचा और मुझे देख कर स्तुति ने मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ पंख के समान खोल दिए| मेरी गोदी में आ, स्तुति बार-बार अपनी मम्मी की तरफ इशारा करने लगी मगर मैंने स्तुति की कही बात का गलत अंदाजा लगाया; "मम्मी ने डाँटा आपको?! मैं आपकी मम्मी जी को डाटूँगा!" मैंने बात बनाते हुए स्तुति को बहलाना चाहा मगर स्तुति अब भी संगीता के मस्तक की ओर इशारा कर रही थी|
वहीं, संगीता मेरी बात सुन प्यारभरे गुस्से में बोली; "मैंने नहीं डाँटा आपकी लाड़ली को! ये शैतान हमेशा कुछ न कुछ नया हंगामा करती रहती है!" इतना कह संगीता अपना मुँह टेढ़ा कर बाहर चली गई| मैं जानता था की स्तुति जब भी कुछ नया देखती है तो वो इसी तरह मेरा ध्यान उस ओर खींचती है, परन्तु इस बार उसे क्या नया दिखा इसका मुझे इल्म नहीं था| मैं स्तुति को गोदी में लिए लाड करने लगा ताकि स्तुति का ध्यान उस चीज़ पर से हट जाए| कुछ मिनट स्तुति को यूँ टहलाने के बाद मैं स्तुति से बोला; "बेटा, आप और आपकी दीदी तो पूजा में जाने के लिए तैयार हो गए, मैं भी नहा-धो कर तैयार हो जाऊँ?" मैंने स्तुति को बहलाते हुए सवाल पुछा था मगर पीछे से नेहा ने जवाब दिया; "पापा जी, आप जाइये तैयार होने| मैं हूँ न स्तुति का ध्यान रखने के लिए|" नेहा की बता सुन मैंने उसके सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया तथा स्तुति को उसकी गोदी में छोड़ने लगा पर मेरी लाड़ली बिटिया अपनी दीदी की गोदी में जाने से मना करने लगी| "बेटु, पापा जी को तैयार होना है, बस 5 मिनट में मैं नहा कर आ जाऊँगा|" मैंने स्तुति को प्यारभरा आश्वसन दिया तब कहीं जा कर स्तुति मानी और अपनी दीदी की गोदी में गई| स्तुति परेशान न हो इसके लिए मैं बाथरूम में गाना गाते हुए नहाने लगा, मेरी आवाज़ सुन स्तुति को ये इत्मीनान था की मैं उसे अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जा रहा|
मेरे बाथरूम में नहाने जाते ही नेहा ने स्तुति को पलंग पर बिठाया और खुद जा कर आईने के सामने अपनी मम्मी का फेस पाउडर अपने चेहरे पर लगाने लगी| स्तुति ने जब अपनी दीदी को मेक-अप करते देखा तो वो उत्साह से भर गई और अपनी दीदी को "आ...आ.." कह कर बुलाने लगी| नेहा ने मुड़ कर स्तुति की ओर देखा तो वो समझ गई की स्तुति की उत्सुकता क्या है| नेहा फेस पाउडर ले कर स्तुति के पास आई और थोड़ा सा फेस पाउडर स्तुति के चेहरे पर लगाने लगी| ठीक तभी मैं नहाकर बाहर निकला और नेहा को स्तुति को फेस पाउडर लगाते हुए देख चुपचाप खड़ा हो गया| स्तुति बिना हिले-डुले अपनी दीदी को अपने चेहरे पर फेस पाउडर लगाने दे रही थी और मैं स्तुति को इस कदर स्थिर बैठा हुआ देख हैरान था|
जब नेहा ने स्तुति को फेस पाउडर लगा दिया, तब उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और नेहा हँसने लगी| मैंने स्तुति को गोदी में उठाया और उसके मस्तक को चूम बोला; "मेरी छोटी बिटिया तो बड़ी प्यारी लग रही है!" अपनी तारीफ सुन स्तुति शर्माने लगी और मेरे सीने से लिपट गई| इधर मेरी नज़र पड़ी नेहा पर जो की अपनी तारीफ सुनने का इंतज़ार कर रही थी| “मेरी बिटिया रानी बहुत सुन्दर लग रही है!" मैंने नेहा की तारीफ की तो नेहा एकदम से बोली; "एक मिनट पापा जी!" इतना कह नेहा आईने के पास गई और अपनी मम्मी के बिंदियों के पैकेट में से बिंदी चुनने लगी| स्तुति अपनी दीदी की बात सुन बड़े गौर से नेहा को देखने लगी मानो वो भी देखना चाहती हो की उसकी दीदी आखिर करने क्या वाली हैं?!
नेहा ने अपने लिए एक बिंदी खोज निकाली और आईने में देखते हुए अपने माथे के बीचों बीच बिंदी लगा कर मेरे पास फुदकती हुई आ गई| "अरे वाह! मेरा बच्चा तो और भी सुन्दर दिखने लगा|" मैंने नेहा के गाल पर हाथ फेरते हुए कहा|
उधर स्तुति ने अपनी दीदी के माथे पर बिंदी देखि तो उसने अपनी ऊँगली से बिंदी की ओर इशारा करना शुरू किया| इस बार मैं स्तुति की बात समझ गया और बोला; "मेरी बिटिया को भी बिंदी लगानी है?!" ये कहते हुए मैं आईने के पास पहुँचा और संगीता की बिंदियों के ढेर में से स्तुति के लिए एक छोटी सी-प्यारी सी बिंदी ढूँढने लगा| मुझे इतनी सारी बिंदियों में से बिंदी खोजते हुए देख स्तुति का मन मचल उठा और वो मेरी गोदी से निचे उतरने को मचलने लगी| अगर मैं स्तुति को नीचे उतार देता तो वो सारी बिंदियाँ अपनी मुठ्ठी में भरकर खा लेती!
अंततः मैंने स्तुति के लिए एक बहुत छोटी सी बिंदी ढूँढ निकाली थी; "मिल गई..मिल गई!" मैंने ये बोलकर स्तुति का ध्यान अपनी ऊँगली के छोर पर एक छोटी सी बिंदी की तरफ स्तुति का ध्यान खींचते हुए शोर मचाया| नेहा ने उस बिंदी के पीछे से पॉलिथीन निकाली और मुझे दी तथा मैंने वो बिंदी बड़ी सावधानी से स्तुति के मस्तक के बीचों-बीच लगा दी| आईने में स्तुति ने अपने मस्तक पर बिंदी लगी हुई देखि तो वो बहुत खुश हुई और अपने मसूड़े दिखा कर खिलखिलाकर हँसने लगी|
आईने में हम तीनों (मेरा, नेहा और स्तुति) का प्रतिबिम्ब बहुत ही प्यारा दिख रहा था| मैंने नेहा के दाएँ कंधे पर अपना दायाँ हाथ रख उसे अपने से चिपका कर खड़ा कर लिया और अपनी दोनों बेटियों की ख़ूबसूरती की प्रशंसा करते हुए बोला; "मेरी दोनों लाड़ली बेटियाँ बहुत-बहुत सुन्दर लग रहीं हैं| आपको मेरी भी उम्र लग जाए! आप दोनों इसी प्रकार ख़ुशी से खिलखिलाते रहो!" पता नहीं क्यों पर उस पल मैं एकदम से भावुक हो गया था| शायद अपनी दोनों बेटियों को यूँ अपने साथ देख दिल दोनों बच्चियों को खो देने से डर गया था!
इतने में पीछे से संगीता आ गई और मुझे यूँ स्तुति को गोदी में लिए हुए तथा नेहा को खुद से चिपकाए आईने में देखता हुआ देख उल्हाना देते हुए बोली; "सारा प्यार अपनी इन दोनों लड़कियों पर लुटा देना, मेरे लिए कुछ मत छोड़ना!" संगीता की बात सुन मैं मुस्कुराया और उसे भी अपने गले लगने को बुलाया| हम मियाँ-बीवी और दोनों बेटियाँ, एक साथ गले लगे हुए बहुत ही प्यारे लग रहे थे| आज भी जब वो दृश्य याद करता हूँ तो आँखें ख़ुशी के मारे नम हो जाती हैं|
स्तुति को किसी की नज़र न लगे इसके लिए मैंने खुद स्तुति के कान के पीछे काला टीका लगा दिया तथा हम चारों पूजा में सम्मलित होने मंदिर पहुँचे| बिंदी लगाए हुए स्तुति बहुत प्यारी लग रही थी, इतनी प्यारी की पूजा में मौजूद हर एक व्यक्ति की नज़र स्तुति पर टिकी हुई थी|
वहीं मंदिर में आ कर स्तुति का चंचल मन एकदम शांत हो गया था| हमेशा किलकारियाँ मारती हुई मेरी लाड़ली इस समय चेहरे पर मुस्कान लिए हुए अपने आस-पास मौजूद लोगों को देख रही थी| पूजा सम्पन्न हुई और मंत्रोचारण सुन स्तुति पंडित जी को बड़ी गौर से देखने लगी| पूजा खत्म हुई तो स्त्रियाँ मिल कर हारमोनियम, ढोलक और घंटी आदि बजाते हुए भजन गाने लगीं| स्तुति ने जब ये वादक यंत्र देखे तो वो मेरा ध्यान उस तरफ खींचने लगी| मैं स्तुति को गोदी लिए हुए सभी स्त्रियों के पास पहुँचा तो स्तुति ने एक आंटी जी के हाथ में घंटी देखि और वो उस घंटी की आवाज़ की तरफ आकर्षित होने लगी|
माँ बताती थीं की जब मैं स्तुति की उम्र का था तो मैं घंटी की आवाज़ सुन घबरा जाता था, परन्तु मुझे सताने के उद्देश्य से पिताजी जानबूझकर घंटी बजाते और जैसे ही मेरा रोना शुरू होता वो घंटी बजाना बंद कर देते! जब मैं बोलने लायक बड़ा हुआ तो मैंने घंटी को 'घाटू-पाटू' कहना शुरु कर दिया और धीरे-धीरे मेरा घंटी के प्रति डर खत्म हो गया|
माँ द्वारा बताई उसी बात को याद कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| एक तरफ जहाँ मैं अपने छुटपन में घंटी से डरता था, वहीं मेरी बिटिया रानी इतनी निडर थी की वो घंटी की तरफ आकर्षित हो रही थी| बहरहाल, स्तुति की नजरें घंटी पर टिकी थी और जब घंटी बजाने वाली आंटी जी ने स्तुति को घंटी पर नजरें गड़ाए देखा तो उन्होंने वो घंटी स्तुति की ओर बढ़ा दी| स्तुति ने फट से घंटी पकड़ ली, स्तुति को घंटी भा गई थी और स्तुति घंटी बजाने को उत्सुक थी मगर उसे घंटी बजाने आये तब न?! मैंने स्तुति की व्यथा समझते हुए उसका हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे गोल-गोल घुमा कर घंटी बजाई तो स्तुति ख़ुशी से फूली नहीं समाई|
उधर अपनी छोटी पोती को यूँ भजन में हिस्सा लेते देख माँ का दिल बहुत प्रसन्न था| वहीं दूसरी तरफ बाकी महिलाएं भी एक छोटी सी बच्ची को पूजा-पाठ में यूँ हिस्सा लेते देख माँ से स्तुति की तारीफ करने में लगी थीं|
स्तुति का पहला जन्मदिन नज़दीक आ रहा था और मैं इस दिन की सारी प्लानिंग पहले से किये बैठा था| मेरे बुलावे पर भाईसाहब सहपरिवार स्तुति के जन्मदिन के 3 दिन पहले ही आ गए| अनिल की नौकरी के चलते उसे छुट्टी नहीं मिल पाई थी| अनिल की कमी सभी को खली खासतौर पर संगीता को लेकिन संगीता ने अनिल से कोई शिकायत नहीं की|
खैर, भाभी जी ने घर पहुँचते ही स्तुति को गोदी लेना चाहा मगर मेरी नटखट बिटिया अपनी मामी जी के पास नहीं गई, ऐसे में भाभी जी का नाराज़ होना जायज था; "ओ लड़की! पिछलीबार कहा था न की मेरे बुलाने पर चुपचाप आ जाना वरना मैं तुझसे बात नहीं करुँगी!" भाभी जी ने स्तुति को प्यारभरी डाँट लगाई मगर स्तुति ने अपनी मामी जी की डाँट को हँसी में उड़ाते हुए भाभी जी को जीभ चिढ़ाई! “चलो जी! ये लड़की मेरी गोदी में नहीं आती, तो हम यहाँ रह कर क्या करें!" ये कहते हुए भाभी जी अपना झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाते हुए उठ खड़ी हुईं| अपनी मामी जी को नाराज़ देख आयुष और नेहा हाथ जोड़े हुए आगे आये; "मामी जी, मत जाओ!" आयुष बड़े प्यार से बोला|
"मामी जी, छोडो इस शैतान लड़की को! आपके पास आपके भांजा-भांजी भी तो हैं, हम दोनों आपकी सेवा करेंगे|" नेहा अपनी मामी जी की कमर से लिपटते हुए बोली| अपनी भांजी की बातें सुन और भांजे का प्रेम देख भाभी जी पिघल गईं और वापस सोफे पर बैठ दोनों बच्चों को अपने गले लगा कर स्तुति को चिढ़ाते हुए बोलीं; "ये हैं मेरे प्यारे-प्यारे भांजा-भांजी! मैं इनके लिए रुकूँगी, इनको लाड-प्यार करुँगी, इनको अच्छी-अच्छी चीजें खरीद कर दूँगी! लेकिन इस नकचढ़ी लड़की (स्तुति) को कुछ नहीं मिलेगा!" भाभी जी स्तुति को चिढ़ाते हुए बोलीं ताकि स्तुति उनकी गोदी में आ जाए मगर मेरी नटखट बिटिया ने अपनी बड़ी मामी जी को अपनी जीभ दिखा कर चिढ़ाया और मेरे सीने से लिपट कर खिलखिलाने लगी|
"हाय राम! ये चुहिया तो मुझे ही जीभ चिढ़ा रही है!" भाभी जी प्यारभरे गुस्से से बोलीं जिसपर हम सभी ने जोरदार ठहाका लगाया| "आयुष और नेहा ही अच्छे हैं, कम से कम ये मेरा मज़ाक तो नहीं उड़ाते!" भाभी जी ने आयुष और नेहा की तारीफ की ही थी की पीछे से संगीता बोल पड़ी; "इनकी बातों में मत आओ भाभी, ये बातें बनाना इन दोनों शैतानों ने इनसे (मुझसे) सीखा है|" संगीता आँखों से मेरी ओर इशारा करते हुए बोली| "स्तुति शरारतों मं उन्नीस है तो ये दोनों (आयुष और नेहा) बीस हैं!" इतना कहते हुए संगीता ने तीनों बच्चों की शिकायतों का पिटारा खोल दिया; “परसों की बात है, मैं नहाने जा रही थी इसलिए मैंने आयुष को स्तुति के साथ खेलने को कहा| माँ तब टी.वी. देख रहीं थीं, नेहा पढ़ाई कर रही थी और ये दोनों भाई बहन (आयुष और स्तुति) खेलने में लगे थे| तभी माँ ने आयुष से पीने के लिए पानी माँगा, आयुष पानी लेने रसोई में गया तो ये शैतान की नानी (स्तुति) उसके पीछे-पीछे रसोई में आ गई| इधर रसोई में, आयुष ने पानी का गिलास उठाते-उठाते आटें की कटोरी गिरा दी! आटा फर्श पर फ़ैल गया और इस शैतान की नानी को खेलने के लिए नई चीज़ मिल गई| इसने आव देखा न ताव फट से फर्श पर फैले आटे में अपने हाथ लबेड लिए और आटा अपने साथ-साथ पूरे फर्श पर पोत दिया!
आयुष जब अपनी दादी जी को पानी दे कर लौटा तो उसने स्तुति को आटे में सना हुआ देखा| बजाए स्तुति को गोदी ले कर दूर बिठा कर आटा झाड़ने के, ये उस्ताद जी तो स्तुति के साथ आटे में अपने हाथ सान कर स्तुति के गाल पोतने में लग गए! और ये शैतान की नानी भी पीछे नहीं रही, ये भी अपने आटे से सने हुए हाथ आयुष के गाल पर लगाने लगी! ये दोनों शैतान भाई-बहन आधे घंटे तक फर्श पर बैठे हुए एक दूसरे को आटे से रगड़-रगड़ कर होली खेल रहे थे!" संगीता के सबसे पहले आयुष और स्तुति की शैतानोयों का जिक्र करने पर सब हँस पड़े थे, लेकिन सबसे ज्यादा नेहा हँस रही थी| अब जैसा की होता है, नेहा की हँसी संगीता को नहीं भाइ और उसने नेहा की शिकायतें शुरू कर दी; "तू ज्यादा मत हँस! ये लड़की भी कम नहीं है, इसने तो अपनी ही बहन के चेहरे पर मेक-अप टुटोरिअल्स (make-up tutorials) ट्राई (try) करने शुरू कर दिए! मेरा आधा फेस पाउडर, इस लड़की (नेहा) ने स्तुति को पोत-पोत कर खत्म कर दिया! पूरी लिपस्टिक स्तुति के गालों और पॉंव की एड़ी पर घिस-घिस कर लाल कर-कर के खत्म कर दी! मैं नहाने गई नहीं की दोनों बहनों का ब्यूटी पारलर खुला गया और मेक-अप पोत-पोत कर स्तुति को ब्यूटी क्वीन (beauty queen) बनाने लग गई!" जैसे ही संगीता ने मेरी लाड़ली बिटिया को ब्यूटी क्वीन कहा मेरी हँसी छूट गई और मुझे हँसता हुआ देख संगीता को सबसे मेरी शिकायत करने का मौका मिल गया; "और ई जो इतना खींसें निपोरत हैं, ई रंगाई-पुताई इनका सामने होवत रही और ई दुनो बहिनो (नेहा और स्तुति) को रोके का छोड़ कर खूब हँसत रहे!
ई स्तुति, घर का कउनो कोना नाहीं छोड़िस सब का सब कोना ई सैतान आपन चित्रकारी से रंग दिहिस! और बजाए ऊ (स्तुति को) का रोके-टोके का, ई (मैं) स्तुति संगे बच्चा बनी के ऊ का उत्साह बढ़ावत हैं!" संगीता ने देहाती में जी भर कर मेरी और बच्चों की शिकायत की मगर उसकी शिकयतें सुन कर किसी को गुस्सा नहीं आया, बल्कि सभी ठहाका लगा कर हँसने लगे|
जब सब हँस रहे थे तो स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी| अब जब स्तुति हँस रही थी तो मैंने इसका फायदा उठाते हुए स्तुति को उसकी नानी जी की गोदी में बिठा दिया| फिर बारी-बारी स्तुति ने सभी की गोदी की सैर की तथा सभी को अपनी मीठी-मीठी पप्पी लेने दी, सबसे मिलकर मेरी बिटिया फिर मेरी गोदी में लौट आई और मुझसे लिपट गई|
स्तुति के जन्मदिन की सारी बातें हम स्तुति के सामने ही बड़े आराम से कर रहे थे क्योंकि स्तुति को कुछ कहाँ समझ में आना था, उसके लिए तो उसके जन्मदिन का ये सरप्राइज क़ायम ही रहने वाला था|
अब चूँकि विराट घर पर आ गया था तो आयुष नेहा तथा स्तुति को खेलने के लिए एक और साथी मिल गया था|
जब मैं तीसरी कक्षा में था तब हम सभी लड़कों को क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता था, समस्या ये थी की बाहर ग्राउंड पर बड़े बच्चों का कब्ज़ा था और हमारे पास खेलने के लिए न तो क्रिकेट बैट था और न ही बॉल! ऐसे में इस समस्या का तोड़ हम सभी ने मिल कर निकाला| हमारा ज्योमेट्री बॉक्स (geometry box) बना हमारा क्रिकेट बैट, फिर हमने बनाई बॉल और वो भी कागज को बॉल का आकार दे कर तथा उस पर कस कर रबर-बैंड (rubber band) बाँध कर| कागज की इस बॉल के बड़े फायदे थे, एक तो इस बॉल के खोने का हमें कोई दुःख नहीं होता था, क्योंकि हम बॉल के खोने पर तुरंत दूसरी बॉल बना लेते थे| दूसरा हम इस बॉल को कभी भी बना सकते थे| एक ही समस्या थी और वो ये की ये बॉल फेंकने पर टप्पा नहीं खाती थी मगर इसका भी हल हमने ढूँढ निकाला, हमने इस कागज की बॉल के ऊपर हम बच्चे जो घर से एल्युमीनियम फॉयल (aluminum foil) में खाना रख कर लाते थे वही फॉयल हम इस बॉल पर अच्छे से लपेट कर रबर-बैंड बाँध देते थे| इस जुगाड़ से बॉल 1-2 टप्पे खा लेती थी| ग्राउंड में हम अपने इस जुगाड़ से बने बैट-बॉल से खेल कर अपनी किरकिरी नहीं करवाना चाहते थे इसलिए हमने क्लास के अंदर ही खेलना शुरू कर दिया| फ्री पीरियड मिला नहीं, या फिर लंच हुआ नहीं और हम सब लग गए क्लास में क्रिकेट खेलने!
अब चूँकि मेरे दोनों बच्चे (आयुष और नेहा) घर से बाहर खेलने नहीं जाते थे इसलिए मैंने सौगात में उन्हें अपने बचपन का ये खेल घर के भीतर ही खेलना सीखा दिया था| अब जब विराट आया हुआ था तो चारों बच्चों ने मिलकर बैठक में ये खेल खेलना शुरू कर दिया| आयुष, नेहा और विराट को तो बैटिंग-बॉलिंग मिलती थी मगर स्तुति बेचारी को बस सोफे के नीचे से बॉल निकलने को रखा हुआ था| बॉल सोफे के नीचे गई नहीं की सब लोग स्तुति को बॉल लेने जाने को कह देते| मेरी बेचारी बिटिया को सोफे के नीचे से बॉल निकालना ही खेल लगता इसलिए वो ख़ुशी-ख़ुशी ये खेल खेलती|
इधर सबकी मौजूदगी में मुझ पर रोमांस करने का अजब ही रंग चढ़ा हुआ था| किसी न किसी बहाने से मैं संगीता के इर्द-गिर्द किसी चील की भाँती मंडराता रहता| ऐसे ही एक बार, माँ और मेरी सासु माँ बैठक में बच्चों के साथ बैठीं टीवी देखने में व्यस्त थीं| भाईसाहब घर से बाहर कुछ काम से गए थे और भाभी जी नहाने गईं थीं, मौका अच्छा था तो मैंने संगीता को रसोई में दबोच लिया| मेरी बाहों में आते ही संगीता मचलने लगी और आँखें बंद किये हुए बोली; "घर में सब मौजूद हैं और आप पर रोमांस हावी है?! कोई आ गया तो?" संगीता के सवाल के जवाबा में मैंने उसे अपनी बाहों से आज़ाद किया तथा मैं स्लैब के सामने खड़ा हो गया और संगीता को अपने पीछे खींच लिया| अब संगीता के दोनों हाथ मेरी कमर पर जकड़े हुए थे और मैं स्लैब पर आगे की ओर झुक कर आलू काटने लगा| मैंने ये दाव इसलिए चला था ताकि अगर कोई अचानक रसोई में आये तो उसे ये लगे की मैं सब्जी काट रहा हूँ|
मुझे यूँ काम करते देख संगीता को भी ठीक उसी तरह रोमांस छूटने लगा जैसे मुझे छूट रहा था इसलिए उसके दोनों हाथ मेरे हाथों के ऊपर आ गए और वो मेरी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा बैठी! “सससस" की सिसकी ले कर मैंने संगीता को उत्तेजित कर दिया था मगर हमारा रोमांस आगे बढ़ता उससे पहले ही भाभी जी आ गईं और उन्होंने हम दोनों को इस तरह खड़े हुए देख लिया!
"तुम दोनों न..." इतना कहते हुए भाभी जी ने अपना प्यार भरा गुस्सा हमें दिखाया| भाभी जी की आवाज़ सुन हम दोनों मियाँ-बीवी एकदम से सकपका गए और मैंने संगीता के बचाव में झूठ बोल दिया; "वो भाभी जी...वो...संगीता मुझे आलू काटना सीखा रही थी!" मेरा ये बेसर-पैर का झूठ सुन भाभी जी जोर से हँस पड़ीं और मेरे कान खींचते हुए बोलीं; "देवर जी, कमसकम झूठ तो ठीक से बोला करो! इतना बढ़िया खाना बनाते हो और कह रहे हो की तुम्हें आलू काटना नहीं आता?!" मैं अगर वहाँ और रुकता तो भाभी जी मेरी अच्छे से खिंचाई कर देतीं इसलिए मैं दुम दबाकर वहाँ से भाग आया|
मैं तो अपनी जान ले कर भाग निकला था, रह गई बेचारी संगीता अकेली भाभी जी के साथ इसलिए भाभी जी उसे समझाने लगीं; "संगीता, देख मानु अभी जवान है और जवानी में खून ज्यादा उबलता है! तेरी अब वो उम्र नहीं रही...तेरे अब तीन बच्चे हो गए हैं तो अब ज़रा अपने आप को काबू में रखा कर! तू काबू में नहीं रहेगी तो मानु कैसे खुद को काबू में रखेगा?!" भाभी जी ने संगीता को प्यार से समझाया था मगर उनकी कही बात संगीता के दिल को चुभ गई थी! भाभी जी ने बातों ही बातों में हम मियाँ-बीवी के बीच 10 साल के अंतर् होने की बात संगीता को याद दिला कर उसका जी खट्टा कर दिया था!
मैं उस वक़्त स्तुति के कपड़ों के बारे में पूछने रसोई में जा रहा था जब मैंने भाभी जी की सारी बात सुनी| मैं समझ गया था की भाभी जी की बातों से संगीता का दिल दुःखा होगा मगर मैं इस वक़्त भाभी जी से कुछ कहने की स्थिति में नहीं था क्योंकि शायद मेरी कही बात भाभी जी को चुभ जाती! मैं चुपचाप कमरे में चला गया और संगीता का मूड कैसे ठीक करना है उसके बारे में सोचने लगा|
रात होने तक मुझे संगीता से अकेले में बात करने का कोई मौका नहीं मिला| रात को जैसे ही सबने खाना खाया, मैं स्तुति को टहलाने के लिए छत की ओर चल दिया| छत की ओर जाते हुए मैंने संगीता को मूक इशारा कर छत पर आने को कहा मगर संगीता ने मुझसे नज़रें चुराते हुए गर्दन न में हिला दी| "तुम्हें मेरी कसम!" मैंने दबी आवाज़ में संगीता की बगल से होते हुए कहा तथा संगीता को अपनी कसम से बाँध कर छत पर बुला लिया| "क्या हुआ जान?" मैंने बड़े प्यार से सवाल पुछा जिसके जवाब में संगीता सर झुकाये गर्दन न में हिलाने लगी| "भाभी जी की बातों को दिल से लगा कर दुखी हो न?" मेरी कही ये बात सुन संगीता मेरी आँखों में देखने लगी| मेरी आँखों में देखते ही संगीता की आँखें नम हो गई| "आजा मेरा बच्चा!" ये कहते हुए मैंने संगीता को अपने सीने से लगा लिया| इस समय स्तुति मेरी गोदी में थी और संगीता मेरे सीने से लग कर सुबकने लगी थी| स्तुति ने जब महसूस किया की उसकी मम्मी रो रहीं हैं तो उस छोटी सी बच्ची ने अपनी मम्मी के सर पर हाथ रख दिया तथा अपनी बोली-भाषा में कुछ बोल कर मेरा ध्यान अपनी मम्मी की तरफ खींचने लगी| उस पल मुझे लगा जैसे मेरी स्तुति बिटिया सब कुछ समझती हो!
"बस-बस मेरी जान! और रोना नहीं!" मैंने संगीता के सर को चूमते हुए कहा| संगीता मेरे सीने से अलग हुई और अपने आँसूँ पोछने लगी| "जान, दुनिया कुछ भी कहे उससे हमें कुछ फर्क नहीं पड़ना चाहिए न?! अगर तुम इसी तरह लोगों की बातें दिल से लगाओगी तो न तुम खुश रह पाओगी और न मैं!" मेरी अंत में कही बात सुन कर संगीता घबरा गई| वो खुद तो दुःख-दर्द बर्दाश्त कर सकती थी मगर वो मुझे कभी दुखी नहीं कर सकती थी| "सोली (sorry) जान!" संगीता अपने कान पकड़ते हुए छोटे बच्चों की तरह तुतला कर बोली| अपनी मम्मी को यूँ तुतला कर बोलते देख स्तुति बहुत खुश हुई और उसने किलकारियाँ मारनी शुरू कर दी| मैंने भी संगीता को फिर से अपने गले लगा लिया और हम तीनों मियाँ-बीवी-बेटी इसी तरह गले लगे हुए खड़े रहे|
कुछ समय बाद मैंने संगीता को छेड़ते हुए कहा; "रात 2 बजे तैयार रहना!" मेरी बातों में छुपी शरारत भाँपते हुए संगीता मुझसे दूर हो गई और अपने होठों पर हाथ रखते हुए मुझे अस्चर्य से भरकर देखने लगी| वो जानती थी की इतनी रात को अगर मैं उसे बुला रहा हूँ तो मुझे उससे क्या 'काम' लेना है?!
"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रही हो?" मैंने अनजान बनते हुए सवाल पुछा| मुझे लगा था की मेरी बात से संगीता और शर्माएगी मगर वो तो अपनी शर्म छोड़कर बोली; "ठीक है! लेकिन आप भाभी से उनकी कही बात के बारे में कोई बात नहीं करोगे|" संगीता के मेरी बात मान जाने से मैं खुश तो था मगर ऊसके द्वारा मुझे भाभी जी से बात करने पर रोकने पर मैं असमंजन में था| "प्लीज जानू!" संगीता ने थोड़ा जोर लगा कर कहा तो मैंने उसकी बात मान ली और ख़ुशी-ख़ुशी सर हाँ में हिला दिया| भाभी जी, संगीता और मेरे प्यार के बारे में कुछ नहीं जानती थीं, ऐसे में मेरा उनसे कुछ भी कहना शायद उनको बुरा लग सकता था जिससे स्तुति के जन्मदिन में विघ्न पड़ जाता|
खैर, आज रात दो बजे का जुगाड़ हो गया था और क्या जुगाड था वो! रात के सन्नाटे में हम दोनों प्रेमी सबसे नजरें छुपाते हुए ऊपर वाली छत पर पहुँचे| वहाँ टंकी के नीचे चुहलबाज़ी करने के लिए काफी जगह थी, ऊपर से रात के इस पल में कोई हमें देखने वाला भी नहीं था| अब जब हमें किसी का भय नहीं था तो प्रेम का वो तूफ़ान उठा की हम दोनों ही पसीने से लथ-पथ हो गए| आज के इस प्रेमपसंग में कुछ अलग ही आनंद था, शायद खुले आसमान के तले प्रेम समागम करने की उत्तेजना का असर था!
थक कर जब हम कुछ पल के लिए साँस ले रहे थे तब संगीता मेरे सीने पर सर रखते हुए बोली; "जानू...आज सबसे छुप कर छत पर आते समय ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई 18 साल की युवती हूँ जो अपने प्रेमी से मिलने चोरी-छुपे छत पर आ रही हो!" संगीता की बता ने मुझे आज फिर गाँव में हमारे छिप-छिप कर मिलने की याद दिला दी, जिस कारण मेरे दिल में प्यारी सी गुदगुदी उठी; "मेरे लिए तो तुम हमेशा अठरह की बाली उम्र की रहोगी!" ये कहते हुए मैंने संगीता के सर को चूम लिया| मेरी प्यारभरी बात का असर संगीता पर खुमारी बन कर छाने लगा और इस मौके का लाभ उठा कर हमने फिर एक बार प्रेम समागम किया!
जारी रहेगा भाग - 20 {5(ii)} में...
आप तो हमका सरमाने पर मजबूर कर दिए
Bdiya pyara update gurujii
....................मीम किधर है
Waiting for next update gurujii
...................मेरा जूते पहने हुए दौड़ता हुआ छोटा हाथी किधर है