Akki ❸❸❸
ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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इंतजार रहेगा आपकी कहानी का बेसब्री से..........ये कहानी खत्म होगी तभी तो मेरी कहानी शुरू होगी....................मेरे बारे में अभी बहुत कुछ है जो आप सभी नहीं जानते.....................लेकिन वो सब मैं इस कहानी के खत्म होने पर ही बताउंगी.....................लेखक जी कहानी को जिस छोर पर खत्म करेंगे.................वहीँ से मेरी कहानी शुरू होगी
बहुत ही सुंदर लाजवाब और रमणिय अपडेट हैइकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 {5(i)}
अब तक अपने पढ़ा:
फिल्म देखने का सुख मुझे छोड़ कर सभी ने लिया था, पर देखा जाए तो मेरे लिए असली सुख अपनी छोटी बिटिया रानी के साथ खेलना था| फिल्म खत्म हुई रात साढ़े 10 बजे और अब लगी थी भूख इसलिए हम मॉल में बने हुए रेस्टोरेंट में खाना खाने बैठ गए| जिस रेस्टोरेंट में हम आये थे ये बहुत महँगा था जिस कारण यहाँ की साज-सज्जा बहुत बढ़िया थी| हम सभी एक फॅमिली टेबल पर बैठे और खाना आर्डर करने का काम दादी-पोता-पोती ने किया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठा था की तभी एक वेटर स्तुति के बैठने के लिए छोटे बच्चों की कुर्सी ले आया| कुर्सी अपने सामने लगवा कर मैंने स्तुति को उस आरामदायक कुर्सी पर बिठाया, तो मेरी बिटिया रानी ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| "बड़े ठाठ हैं इस शैतान के!" संगीता आँखें तार्रेर कर बोली जिसके जवाब में स्तुति अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाने लगी| माँ-बेटी की ये जुगलबंदी देख मैं, माँ और दोनों बच्चे हँसने लगे| खैर, हम सभी ने खाना खाया और स्तुति को भी आज पहलीबार 2 (छोटी) चम्मच गुलाब जामुन खाने को मिला| अपने पापा जी की ही तरह स्तुति को भी ये मीठा-मीठा स्वाद बहुत पसंद आया था|
अब आगे:
बच्चे अक्सर अपने माँ-बाप, अपने बड़ों को देख कर कुछ नया सीखते हैं| आयुष मेरी देखा-देखि बॉडी स्प्रे (body spray) लगाना, अच्छे से बाल बनाना, शेड्स (shades) यानी धुप वाले चश्मे पहनना आदि सीख गया था| वहीं नेहा ने अपनी मम्मी को थोड़ा बहुत मेक-अप करते हुए देख फेस पाउडर, आँखों में काजल लगाना, बिंदी लगाना, लिपस्टिक लगाना सीख लिया था| अब जब दोनों बच्चे अपने मम्मी-पापा जी से कुछ न कुछ सीख रहे थे तो स्तुति कैसे पीछे रहती?!
एक दिन की बात है, पड़ोस में पूजा रखी गई थी तथा हम सभी को आमंत्रण मिला था| माँ और आयुष तो तैयार हो कर पहले निकल गए, रह गए बस हम मियाँ बीवी, नेहा और स्तुति| चूँकि मुझे साइट से घर लौटने में समय लगना था इसलिए संगीता मेरी दोनों बेटियों के साथ घर पर मेरा इंतज़ार कर रही थी| "तुम नहा-धो कर तैयार हो जाओ मैं तबतक घर पहुँच जाऊँगा|" मैंने फ़ोन कर संगीता को तैयार होने को बोला| कुछ समय बाद संगीता नहा कर तैयार हो चुकी थी तथा आईने के सामने बैठ कर अपने चेहरे पर थोड़ा सा फेस-पाउडर लगा रही थी| नेहा और स्तुति दोनों पलंग पर बैठे अपनी मम्मी को साज-श्रृंगार करते हुए देख रहे थे| नेहा ने अपनी मम्मी को पहले भी श्रृंगार करते हुए देखा था इसलिए वो इतनी उत्सुक नहीं थी, लेकिन स्तुति इस समय बहुत हैरान थी| वो बड़े गौर से अपनी मम्मी को फेस-पाउडर लगाते हुए देख रही थी| फिर संगीता ने अपने गुलाबी होठों पर हलके गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगाई, स्तुति ने जब ये दृश्य देखा तो उसका छोटा सा मुँह खुला का खुला रह गया| अंत में संगीता ने अपने माथे पर बिंदी लगाई और इस पाल मेरी बिटिया स्तुति के अस्चर्य की सीमा नहीं थी! अपनी मम्मी के माथे पर लगी बिंदी को देख मेरी बिटिया अचानक ही उतावली हो कर अपनी मम्मी के माथे की तरफ ऊँगली कर अपनी बोली-भाषा में कुछ कहने लगी|
अब स्तुति की ये भाषा केवल वही जानती थी इसलिए माँ-बेटी (नेहा और संगीता) के कुछ पल्ले नहीं पड़ा| ठीक तभी मैं घर पहुँचा और मुझे देख कर स्तुति ने मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ पंख के समान खोल दिए| मेरी गोदी में आ, स्तुति बार-बार अपनी मम्मी की तरफ इशारा करने लगी मगर मैंने स्तुति की कही बात का गलत अंदाजा लगाया; "मम्मी ने डाँटा आपको?! मैं आपकी मम्मी जी को डाटूँगा!" मैंने बात बनाते हुए स्तुति को बहलाना चाहा मगर स्तुति अब भी संगीता के मस्तक की ओर इशारा कर रही थी|
वहीं, संगीता मेरी बात सुन प्यारभरे गुस्से में बोली; "मैंने नहीं डाँटा आपकी लाड़ली को! ये शैतान हमेशा कुछ न कुछ नया हंगामा करती रहती है!" इतना कह संगीता अपना मुँह टेढ़ा कर बाहर चली गई| मैं जानता था की स्तुति जब भी कुछ नया देखती है तो वो इसी तरह मेरा ध्यान उस ओर खींचती है, परन्तु इस बार उसे क्या नया दिखा इसका मुझे इल्म नहीं था| मैं स्तुति को गोदी में लिए लाड करने लगा ताकि स्तुति का ध्यान उस चीज़ पर से हट जाए| कुछ मिनट स्तुति को यूँ टहलाने के बाद मैं स्तुति से बोला; "बेटा, आप और आपकी दीदी तो पूजा में जाने के लिए तैयार हो गए, मैं भी नहा-धो कर तैयार हो जाऊँ?" मैंने स्तुति को बहलाते हुए सवाल पुछा था मगर पीछे से नेहा ने जवाब दिया; "पापा जी, आप जाइये तैयार होने| मैं हूँ न स्तुति का ध्यान रखने के लिए|" नेहा की बता सुन मैंने उसके सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया तथा स्तुति को उसकी गोदी में छोड़ने लगा पर मेरी लाड़ली बिटिया अपनी दीदी की गोदी में जाने से मना करने लगी| "बेटु, पापा जी को तैयार होना है, बस 5 मिनट में मैं नहा कर आ जाऊँगा|" मैंने स्तुति को प्यारभरा आश्वसन दिया तब कहीं जा कर स्तुति मानी और अपनी दीदी की गोदी में गई| स्तुति परेशान न हो इसके लिए मैं बाथरूम में गाना गाते हुए नहाने लगा, मेरी आवाज़ सुन स्तुति को ये इत्मीनान था की मैं उसे अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जा रहा|
मेरे बाथरूम में नहाने जाते ही नेहा ने स्तुति को पलंग पर बिठाया और खुद जा कर आईने के सामने अपनी मम्मी का फेस पाउडर अपने चेहरे पर लगाने लगी| स्तुति ने जब अपनी दीदी को मेक-अप करते देखा तो वो उत्साह से भर गई और अपनी दीदी को "आ...आ.." कह कर बुलाने लगी| नेहा ने मुड़ कर स्तुति की ओर देखा तो वो समझ गई की स्तुति की उत्सुकता क्या है| नेहा फेस पाउडर ले कर स्तुति के पास आई और थोड़ा सा फेस पाउडर स्तुति के चेहरे पर लगाने लगी| ठीक तभी मैं नहाकर बाहर निकला और नेहा को स्तुति को फेस पाउडर लगाते हुए देख चुपचाप खड़ा हो गया| स्तुति बिना हिले-डुले अपनी दीदी को अपने चेहरे पर फेस पाउडर लगाने दे रही थी और मैं स्तुति को इस कदर स्थिर बैठा हुआ देख हैरान था|
जब नेहा ने स्तुति को फेस पाउडर लगा दिया, तब उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और नेहा हँसने लगी| मैंने स्तुति को गोदी में उठाया और उसके मस्तक को चूम बोला; "मेरी छोटी बिटिया तो बड़ी प्यारी लग रही है!" अपनी तारीफ सुन स्तुति शर्माने लगी और मेरे सीने से लिपट गई| इधर मेरी नज़र पड़ी नेहा पर जो की अपनी तारीफ सुनने का इंतज़ार कर रही थी| “मेरी बिटिया रानी बहुत सुन्दर लग रही है!" मैंने नेहा की तारीफ की तो नेहा एकदम से बोली; "एक मिनट पापा जी!" इतना कह नेहा आईने के पास गई और अपनी मम्मी के बिंदियों के पैकेट में से बिंदी चुनने लगी| स्तुति अपनी दीदी की बात सुन बड़े गौर से नेहा को देखने लगी मानो वो भी देखना चाहती हो की उसकी दीदी आखिर करने क्या वाली हैं?!
नेहा ने अपने लिए एक बिंदी खोज निकाली और आईने में देखते हुए अपने माथे के बीचों बीच बिंदी लगा कर मेरे पास फुदकती हुई आ गई| "अरे वाह! मेरा बच्चा तो और भी सुन्दर दिखने लगा|" मैंने नेहा के गाल पर हाथ फेरते हुए कहा|
उधर स्तुति ने अपनी दीदी के माथे पर बिंदी देखि तो उसने अपनी ऊँगली से बिंदी की ओर इशारा करना शुरू किया| इस बार मैं स्तुति की बात समझ गया और बोला; "मेरी बिटिया को भी बिंदी लगानी है?!" ये कहते हुए मैं आईने के पास पहुँचा और संगीता की बिंदियों के ढेर में से स्तुति के लिए एक छोटी सी-प्यारी सी बिंदी ढूँढने लगा| मुझे इतनी सारी बिंदियों में से बिंदी खोजते हुए देख स्तुति का मन मचल उठा और वो मेरी गोदी से निचे उतरने को मचलने लगी| अगर मैं स्तुति को नीचे उतार देता तो वो सारी बिंदियाँ अपनी मुठ्ठी में भरकर खा लेती!
अंततः मैंने स्तुति के लिए एक बहुत छोटी सी बिंदी ढूँढ निकाली थी; "मिल गई..मिल गई!" मैंने ये बोलकर स्तुति का ध्यान अपनी ऊँगली के छोर पर एक छोटी सी बिंदी की तरफ स्तुति का ध्यान खींचते हुए शोर मचाया| नेहा ने उस बिंदी के पीछे से पॉलिथीन निकाली और मुझे दी तथा मैंने वो बिंदी बड़ी सावधानी से स्तुति के मस्तक के बीचों-बीच लगा दी| आईने में स्तुति ने अपने मस्तक पर बिंदी लगी हुई देखि तो वो बहुत खुश हुई और अपने मसूड़े दिखा कर खिलखिलाकर हँसने लगी|
आईने में हम तीनों (मेरा, नेहा और स्तुति) का प्रतिबिम्ब बहुत ही प्यारा दिख रहा था| मैंने नेहा के दाएँ कंधे पर अपना दायाँ हाथ रख उसे अपने से चिपका कर खड़ा कर लिया और अपनी दोनों बेटियों की ख़ूबसूरती की प्रशंसा करते हुए बोला; "मेरी दोनों लाड़ली बेटियाँ बहुत-बहुत सुन्दर लग रहीं हैं| आपको मेरी भी उम्र लग जाए! आप दोनों इसी प्रकार ख़ुशी से खिलखिलाते रहो!" पता नहीं क्यों पर उस पल मैं एकदम से भावुक हो गया था| शायद अपनी दोनों बेटियों को यूँ अपने साथ देख दिल दोनों बच्चियों को खो देने से डर गया था!
इतने में पीछे से संगीता आ गई और मुझे यूँ स्तुति को गोदी में लिए हुए तथा नेहा को खुद से चिपकाए आईने में देखता हुआ देख उल्हाना देते हुए बोली; "सारा प्यार अपनी इन दोनों लड़कियों पर लुटा देना, मेरे लिए कुछ मत छोड़ना!" संगीता की बात सुन मैं मुस्कुराया और उसे भी अपने गले लगने को बुलाया| हम मियाँ-बीवी और दोनों बेटियाँ, एक साथ गले लगे हुए बहुत ही प्यारे लग रहे थे| आज भी जब वो दृश्य याद करता हूँ तो आँखें ख़ुशी के मारे नम हो जाती हैं|
स्तुति को किसी की नज़र न लगे इसके लिए मैंने खुद स्तुति के कान के पीछे काला टीका लगा दिया तथा हम चारों पूजा में सम्मलित होने मंदिर पहुँचे| बिंदी लगाए हुए स्तुति बहुत प्यारी लग रही थी, इतनी प्यारी की पूजा में मौजूद हर एक व्यक्ति की नज़र स्तुति पर टिकी हुई थी|
वहीं मंदिर में आ कर स्तुति का चंचल मन एकदम शांत हो गया था| हमेशा किलकारियाँ मारती हुई मेरी लाड़ली इस समय चेहरे पर मुस्कान लिए हुए अपने आस-पास मौजूद लोगों को देख रही थी| पूजा सम्पन्न हुई और मंत्रोचारण सुन स्तुति पंडित जी को बड़ी गौर से देखने लगी| पूजा खत्म हुई तो स्त्रियाँ मिल कर हारमोनियम, ढोलक और घंटी आदि बजाते हुए भजन गाने लगीं| स्तुति ने जब ये वादक यंत्र देखे तो वो मेरा ध्यान उस तरफ खींचने लगी| मैं स्तुति को गोदी लिए हुए सभी स्त्रियों के पास पहुँचा तो स्तुति ने एक आंटी जी के हाथ में घंटी देखि और वो उस घंटी की आवाज़ की तरफ आकर्षित होने लगी|
माँ बताती थीं की जब मैं स्तुति की उम्र का था तो मैं घंटी की आवाज़ सुन घबरा जाता था, परन्तु मुझे सताने के उद्देश्य से पिताजी जानबूझकर घंटी बजाते और जैसे ही मेरा रोना शुरू होता वो घंटी बजाना बंद कर देते! जब मैं बोलने लायक बड़ा हुआ तो मैंने घंटी को 'घाटू-पाटू' कहना शुरु कर दिया और धीरे-धीरे मेरा घंटी के प्रति डर खत्म हो गया|
माँ द्वारा बताई उसी बात को याद कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| एक तरफ जहाँ मैं अपने छुटपन में घंटी से डरता था, वहीं मेरी बिटिया रानी इतनी निडर थी की वो घंटी की तरफ आकर्षित हो रही थी| बहरहाल, स्तुति की नजरें घंटी पर टिकी थी और जब घंटी बजाने वाली आंटी जी ने स्तुति को घंटी पर नजरें गड़ाए देखा तो उन्होंने वो घंटी स्तुति की ओर बढ़ा दी| स्तुति ने फट से घंटी पकड़ ली, स्तुति को घंटी भा गई थी और स्तुति घंटी बजाने को उत्सुक थी मगर उसे घंटी बजाने आये तब न?! मैंने स्तुति की व्यथा समझते हुए उसका हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे गोल-गोल घुमा कर घंटी बजाई तो स्तुति ख़ुशी से फूली नहीं समाई|
उधर अपनी छोटी पोती को यूँ भजन में हिस्सा लेते देख माँ का दिल बहुत प्रसन्न था| वहीं दूसरी तरफ बाकी महिलाएं भी एक छोटी सी बच्ची को पूजा-पाठ में यूँ हिस्सा लेते देख माँ से स्तुति की तारीफ करने में लगी थीं|
स्तुति का पहला जन्मदिन नज़दीक आ रहा था और मैं इस दिन की सारी प्लानिंग पहले से किये बैठा था| मेरे बुलावे पर भाईसाहब सहपरिवार स्तुति के जन्मदिन के 3 दिन पहले ही आ गए| अनिल की नौकरी के चलते उसे छुट्टी नहीं मिल पाई थी| अनिल की कमी सभी को खली खासतौर पर संगीता को लेकिन संगीता ने अनिल से कोई शिकायत नहीं की|
खैर, भाभी जी ने घर पहुँचते ही स्तुति को गोदी लेना चाहा मगर मेरी नटखट बिटिया अपनी मामी जी के पास नहीं गई, ऐसे में भाभी जी का नाराज़ होना जायज था; "ओ लड़की! पिछलीबार कहा था न की मेरे बुलाने पर चुपचाप आ जाना वरना मैं तुझसे बात नहीं करुँगी!" भाभी जी ने स्तुति को प्यारभरी डाँट लगाई मगर स्तुति ने अपनी मामी जी की डाँट को हँसी में उड़ाते हुए भाभी जी को जीभ चिढ़ाई! “चलो जी! ये लड़की मेरी गोदी में नहीं आती, तो हम यहाँ रह कर क्या करें!" ये कहते हुए भाभी जी अपना झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाते हुए उठ खड़ी हुईं| अपनी मामी जी को नाराज़ देख आयुष और नेहा हाथ जोड़े हुए आगे आये; "मामी जी, मत जाओ!" आयुष बड़े प्यार से बोला|
"मामी जी, छोडो इस शैतान लड़की को! आपके पास आपके भांजा-भांजी भी तो हैं, हम दोनों आपकी सेवा करेंगे|" नेहा अपनी मामी जी की कमर से लिपटते हुए बोली| अपनी भांजी की बातें सुन और भांजे का प्रेम देख भाभी जी पिघल गईं और वापस सोफे पर बैठ दोनों बच्चों को अपने गले लगा कर स्तुति को चिढ़ाते हुए बोलीं; "ये हैं मेरे प्यारे-प्यारे भांजा-भांजी! मैं इनके लिए रुकूँगी, इनको लाड-प्यार करुँगी, इनको अच्छी-अच्छी चीजें खरीद कर दूँगी! लेकिन इस नकचढ़ी लड़की (स्तुति) को कुछ नहीं मिलेगा!" भाभी जी स्तुति को चिढ़ाते हुए बोलीं ताकि स्तुति उनकी गोदी में आ जाए मगर मेरी नटखट बिटिया ने अपनी बड़ी मामी जी को अपनी जीभ दिखा कर चिढ़ाया और मेरे सीने से लिपट कर खिलखिलाने लगी|
"हाय राम! ये चुहिया तो मुझे ही जीभ चिढ़ा रही है!" भाभी जी प्यारभरे गुस्से से बोलीं जिसपर हम सभी ने जोरदार ठहाका लगाया| "आयुष और नेहा ही अच्छे हैं, कम से कम ये मेरा मज़ाक तो नहीं उड़ाते!" भाभी जी ने आयुष और नेहा की तारीफ की ही थी की पीछे से संगीता बोल पड़ी; "इनकी बातों में मत आओ भाभी, ये बातें बनाना इन दोनों शैतानों ने इनसे (मुझसे) सीखा है|" संगीता आँखों से मेरी ओर इशारा करते हुए बोली| "स्तुति शरारतों मं उन्नीस है तो ये दोनों (आयुष और नेहा) बीस हैं!" इतना कहते हुए संगीता ने तीनों बच्चों की शिकायतों का पिटारा खोल दिया; “परसों की बात है, मैं नहाने जा रही थी इसलिए मैंने आयुष को स्तुति के साथ खेलने को कहा| माँ तब टी.वी. देख रहीं थीं, नेहा पढ़ाई कर रही थी और ये दोनों भाई बहन (आयुष और स्तुति) खेलने में लगे थे| तभी माँ ने आयुष से पीने के लिए पानी माँगा, आयुष पानी लेने रसोई में गया तो ये शैतान की नानी (स्तुति) उसके पीछे-पीछे रसोई में आ गई| इधर रसोई में, आयुष ने पानी का गिलास उठाते-उठाते आटें की कटोरी गिरा दी! आटा फर्श पर फ़ैल गया और इस शैतान की नानी को खेलने के लिए नई चीज़ मिल गई| इसने आव देखा न ताव फट से फर्श पर फैले आटे में अपने हाथ लबेड लिए और आटा अपने साथ-साथ पूरे फर्श पर पोत दिया!
आयुष जब अपनी दादी जी को पानी दे कर लौटा तो उसने स्तुति को आटे में सना हुआ देखा| बजाए स्तुति को गोदी ले कर दूर बिठा कर आटा झाड़ने के, ये उस्ताद जी तो स्तुति के साथ आटे में अपने हाथ सान कर स्तुति के गाल पोतने में लग गए! और ये शैतान की नानी भी पीछे नहीं रही, ये भी अपने आटे से सने हुए हाथ आयुष के गाल पर लगाने लगी! ये दोनों शैतान भाई-बहन आधे घंटे तक फर्श पर बैठे हुए एक दूसरे को आटे से रगड़-रगड़ कर होली खेल रहे थे!" संगीता के सबसे पहले आयुष और स्तुति की शैतानोयों का जिक्र करने पर सब हँस पड़े थे, लेकिन सबसे ज्यादा नेहा हँस रही थी| अब जैसा की होता है, नेहा की हँसी संगीता को नहीं भाइ और उसने नेहा की शिकायतें शुरू कर दी; "तू ज्यादा मत हँस! ये लड़की भी कम नहीं है, इसने तो अपनी ही बहन के चेहरे पर मेक-अप टुटोरिअल्स (make-up tutorials) ट्राई (try) करने शुरू कर दिए! मेरा आधा फेस पाउडर, इस लड़की (नेहा) ने स्तुति को पोत-पोत कर खत्म कर दिया! पूरी लिपस्टिक स्तुति के गालों और पॉंव की एड़ी पर घिस-घिस कर लाल कर-कर के खत्म कर दी! मैं नहाने गई नहीं की दोनों बहनों का ब्यूटी पारलर खुला गया और मेक-अप पोत-पोत कर स्तुति को ब्यूटी क्वीन (beauty queen) बनाने लग गई!" जैसे ही संगीता ने मेरी लाड़ली बिटिया को ब्यूटी क्वीन कहा मेरी हँसी छूट गई और मुझे हँसता हुआ देख संगीता को सबसे मेरी शिकायत करने का मौका मिल गया; "और ई जो इतना खींसें निपोरत हैं, ई रंगाई-पुताई इनका सामने होवत रही और ई दुनो बहिनो (नेहा और स्तुति) को रोके का छोड़ कर खूब हँसत रहे!
ई स्तुति, घर का कउनो कोना नाहीं छोड़िस सब का सब कोना ई सैतान आपन चित्रकारी से रंग दिहिस! और बजाए ऊ (स्तुति को) का रोके-टोके का, ई (मैं) स्तुति संगे बच्चा बनी के ऊ का उत्साह बढ़ावत हैं!" संगीता ने देहाती में जी भर कर मेरी और बच्चों की शिकायत की मगर उसकी शिकयतें सुन कर किसी को गुस्सा नहीं आया, बल्कि सभी ठहाका लगा कर हँसने लगे|
जब सब हँस रहे थे तो स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी| अब जब स्तुति हँस रही थी तो मैंने इसका फायदा उठाते हुए स्तुति को उसकी नानी जी की गोदी में बिठा दिया| फिर बारी-बारी स्तुति ने सभी की गोदी की सैर की तथा सभी को अपनी मीठी-मीठी पप्पी लेने दी, सबसे मिलकर मेरी बिटिया फिर मेरी गोदी में लौट आई और मुझसे लिपट गई|
स्तुति के जन्मदिन की सारी बातें हम स्तुति के सामने ही बड़े आराम से कर रहे थे क्योंकि स्तुति को कुछ कहाँ समझ में आना था, उसके लिए तो उसके जन्मदिन का ये सरप्राइज क़ायम ही रहने वाला था|
अब चूँकि विराट घर पर आ गया था तो आयुष नेहा तथा स्तुति को खेलने के लिए एक और साथी मिल गया था|
जब मैं तीसरी कक्षा में था तब हम सभी लड़कों को क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता था, समस्या ये थी की बाहर ग्राउंड पर बड़े बच्चों का कब्ज़ा था और हमारे पास खेलने के लिए न तो क्रिकेट बैट था और न ही बॉल! ऐसे में इस समस्या का तोड़ हम सभी ने मिल कर निकाला| हमारा ज्योमेट्री बॉक्स (geometry box) बना हमारा क्रिकेट बैट, फिर हमने बनाई बॉल और वो भी कागज को बॉल का आकार दे कर तथा उस पर कस कर रबर-बैंड (rubber band) बाँध कर| कागज की इस बॉल के बड़े फायदे थे, एक तो इस बॉल के खोने का हमें कोई दुःख नहीं होता था, क्योंकि हम बॉल के खोने पर तुरंत दूसरी बॉल बना लेते थे| दूसरा हम इस बॉल को कभी भी बना सकते थे| एक ही समस्या थी और वो ये की ये बॉल फेंकने पर टप्पा नहीं खाती थी मगर इसका भी हल हमने ढूँढ निकाला, हमने इस कागज की बॉल के ऊपर हम बच्चे जो घर से एल्युमीनियम फॉयल (aluminum foil) में खाना रख कर लाते थे वही फॉयल हम इस बॉल पर अच्छे से लपेट कर रबर-बैंड बाँध देते थे| इस जुगाड़ से बॉल 1-2 टप्पे खा लेती थी| ग्राउंड में हम अपने इस जुगाड़ से बने बैट-बॉल से खेल कर अपनी किरकिरी नहीं करवाना चाहते थे इसलिए हमने क्लास के अंदर ही खेलना शुरू कर दिया| फ्री पीरियड मिला नहीं, या फिर लंच हुआ नहीं और हम सब लग गए क्लास में क्रिकेट खेलने!
अब चूँकि मेरे दोनों बच्चे (आयुष और नेहा) घर से बाहर खेलने नहीं जाते थे इसलिए मैंने सौगात में उन्हें अपने बचपन का ये खेल घर के भीतर ही खेलना सीखा दिया था| अब जब विराट आया हुआ था तो चारों बच्चों ने मिलकर बैठक में ये खेल खेलना शुरू कर दिया| आयुष, नेहा और विराट को तो बैटिंग-बॉलिंग मिलती थी मगर स्तुति बेचारी को बस सोफे के नीचे से बॉल निकलने को रखा हुआ था| बॉल सोफे के नीचे गई नहीं की सब लोग स्तुति को बॉल लेने जाने को कह देते| मेरी बेचारी बिटिया को सोफे के नीचे से बॉल निकालना ही खेल लगता इसलिए वो ख़ुशी-ख़ुशी ये खेल खेलती|
इधर सबकी मौजूदगी में मुझ पर रोमांस करने का अजब ही रंग चढ़ा हुआ था| किसी न किसी बहाने से मैं संगीता के इर्द-गिर्द किसी चील की भाँती मंडराता रहता| ऐसे ही एक बार, माँ और मेरी सासु माँ बैठक में बच्चों के साथ बैठीं टीवी देखने में व्यस्त थीं| भाईसाहब घर से बाहर कुछ काम से गए थे और भाभी जी नहाने गईं थीं, मौका अच्छा था तो मैंने संगीता को रसोई में दबोच लिया| मेरी बाहों में आते ही संगीता मचलने लगी और आँखें बंद किये हुए बोली; "घर में सब मौजूद हैं और आप पर रोमांस हावी है?! कोई आ गया तो?" संगीता के सवाल के जवाबा में मैंने उसे अपनी बाहों से आज़ाद किया तथा मैं स्लैब के सामने खड़ा हो गया और संगीता को अपने पीछे खींच लिया| अब संगीता के दोनों हाथ मेरी कमर पर जकड़े हुए थे और मैं स्लैब पर आगे की ओर झुक कर आलू काटने लगा| मैंने ये दाव इसलिए चला था ताकि अगर कोई अचानक रसोई में आये तो उसे ये लगे की मैं सब्जी काट रहा हूँ|
मुझे यूँ काम करते देख संगीता को भी ठीक उसी तरह रोमांस छूटने लगा जैसे मुझे छूट रहा था इसलिए उसके दोनों हाथ मेरे हाथों के ऊपर आ गए और वो मेरी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा बैठी! “सससस" की सिसकी ले कर मैंने संगीता को उत्तेजित कर दिया था मगर हमारा रोमांस आगे बढ़ता उससे पहले ही भाभी जी आ गईं और उन्होंने हम दोनों को इस तरह खड़े हुए देख लिया!
"तुम दोनों न..." इतना कहते हुए भाभी जी ने अपना प्यार भरा गुस्सा हमें दिखाया| भाभी जी की आवाज़ सुन हम दोनों मियाँ-बीवी एकदम से सकपका गए और मैंने संगीता के बचाव में झूठ बोल दिया; "वो भाभी जी...वो...संगीता मुझे आलू काटना सीखा रही थी!" मेरा ये बेसर-पैर का झूठ सुन भाभी जी जोर से हँस पड़ीं और मेरे कान खींचते हुए बोलीं; "देवर जी, कमसकम झूठ तो ठीक से बोला करो! इतना बढ़िया खाना बनाते हो और कह रहे हो की तुम्हें आलू काटना नहीं आता?!" मैं अगर वहाँ और रुकता तो भाभी जी मेरी अच्छे से खिंचाई कर देतीं इसलिए मैं दुम दबाकर वहाँ से भाग आया|
मैं तो अपनी जान ले कर भाग निकला था, रह गई बेचारी संगीता अकेली भाभी जी के साथ इसलिए भाभी जी उसे समझाने लगीं; "संगीता, देख मानु अभी जवान है और जवानी में खून ज्यादा उबलता है! तेरी अब वो उम्र नहीं रही...तेरे अब तीन बच्चे हो गए हैं तो अब ज़रा अपने आप को काबू में रखा कर! तू काबू में नहीं रहेगी तो मानु कैसे खुद को काबू में रखेगा?!" भाभी जी ने संगीता को प्यार से समझाया था मगर उनकी कही बात संगीता के दिल को चुभ गई थी! भाभी जी ने बातों ही बातों में हम मियाँ-बीवी के बीच 10 साल के अंतर् होने की बात संगीता को याद दिला कर उसका जी खट्टा कर दिया था!
मैं उस वक़्त स्तुति के कपड़ों के बारे में पूछने रसोई में जा रहा था जब मैंने भाभी जी की सारी बात सुनी| मैं समझ गया था की भाभी जी की बातों से संगीता का दिल दुःखा होगा मगर मैं इस वक़्त भाभी जी से कुछ कहने की स्थिति में नहीं था क्योंकि शायद मेरी कही बात भाभी जी को चुभ जाती! मैं चुपचाप कमरे में चला गया और संगीता का मूड कैसे ठीक करना है उसके बारे में सोचने लगा|
रात होने तक मुझे संगीता से अकेले में बात करने का कोई मौका नहीं मिला| रात को जैसे ही सबने खाना खाया, मैं स्तुति को टहलाने के लिए छत की ओर चल दिया| छत की ओर जाते हुए मैंने संगीता को मूक इशारा कर छत पर आने को कहा मगर संगीता ने मुझसे नज़रें चुराते हुए गर्दन न में हिला दी| "तुम्हें मेरी कसम!" मैंने दबी आवाज़ में संगीता की बगल से होते हुए कहा तथा संगीता को अपनी कसम से बाँध कर छत पर बुला लिया| "क्या हुआ जान?" मैंने बड़े प्यार से सवाल पुछा जिसके जवाब में संगीता सर झुकाये गर्दन न में हिलाने लगी| "भाभी जी की बातों को दिल से लगा कर दुखी हो न?" मेरी कही ये बात सुन संगीता मेरी आँखों में देखने लगी| मेरी आँखों में देखते ही संगीता की आँखें नम हो गई| "आजा मेरा बच्चा!" ये कहते हुए मैंने संगीता को अपने सीने से लगा लिया| इस समय स्तुति मेरी गोदी में थी और संगीता मेरे सीने से लग कर सुबकने लगी थी| स्तुति ने जब महसूस किया की उसकी मम्मी रो रहीं हैं तो उस छोटी सी बच्ची ने अपनी मम्मी के सर पर हाथ रख दिया तथा अपनी बोली-भाषा में कुछ बोल कर मेरा ध्यान अपनी मम्मी की तरफ खींचने लगी| उस पल मुझे लगा जैसे मेरी स्तुति बिटिया सब कुछ समझती हो!
"बस-बस मेरी जान! और रोना नहीं!" मैंने संगीता के सर को चूमते हुए कहा| संगीता मेरे सीने से अलग हुई और अपने आँसूँ पोछने लगी| "जान, दुनिया कुछ भी कहे उससे हमें कुछ फर्क नहीं पड़ना चाहिए न?! अगर तुम इसी तरह लोगों की बातें दिल से लगाओगी तो न तुम खुश रह पाओगी और न मैं!" मेरी अंत में कही बात सुन कर संगीता घबरा गई| वो खुद तो दुःख-दर्द बर्दाश्त कर सकती थी मगर वो मुझे कभी दुखी नहीं कर सकती थी| "सोली (sorry) जान!" संगीता अपने कान पकड़ते हुए छोटे बच्चों की तरह तुतला कर बोली| अपनी मम्मी को यूँ तुतला कर बोलते देख स्तुति बहुत खुश हुई और उसने किलकारियाँ मारनी शुरू कर दी| मैंने भी संगीता को फिर से अपने गले लगा लिया और हम तीनों मियाँ-बीवी-बेटी इसी तरह गले लगे हुए खड़े रहे|
कुछ समय बाद मैंने संगीता को छेड़ते हुए कहा; "रात 2 बजे तैयार रहना!" मेरी बातों में छुपी शरारत भाँपते हुए संगीता मुझसे दूर हो गई और अपने होठों पर हाथ रखते हुए मुझे अस्चर्य से भरकर देखने लगी| वो जानती थी की इतनी रात को अगर मैं उसे बुला रहा हूँ तो मुझे उससे क्या 'काम' लेना है?!
"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रही हो?" मैंने अनजान बनते हुए सवाल पुछा| मुझे लगा था की मेरी बात से संगीता और शर्माएगी मगर वो तो अपनी शर्म छोड़कर बोली; "ठीक है! लेकिन आप भाभी से उनकी कही बात के बारे में कोई बात नहीं करोगे|" संगीता के मेरी बात मान जाने से मैं खुश तो था मगर ऊसके द्वारा मुझे भाभी जी से बात करने पर रोकने पर मैं असमंजन में था| "प्लीज जानू!" संगीता ने थोड़ा जोर लगा कर कहा तो मैंने उसकी बात मान ली और ख़ुशी-ख़ुशी सर हाँ में हिला दिया| भाभी जी, संगीता और मेरे प्यार के बारे में कुछ नहीं जानती थीं, ऐसे में मेरा उनसे कुछ भी कहना शायद उनको बुरा लग सकता था जिससे स्तुति के जन्मदिन में विघ्न पड़ जाता|
खैर, आज रात दो बजे का जुगाड़ हो गया था और क्या जुगाड था वो! रात के सन्नाटे में हम दोनों प्रेमी सबसे नजरें छुपाते हुए ऊपर वाली छत पर पहुँचे| वहाँ टंकी के नीचे चुहलबाज़ी करने के लिए काफी जगह थी, ऊपर से रात के इस पल में कोई हमें देखने वाला भी नहीं था| अब जब हमें किसी का भय नहीं था तो प्रेम का वो तूफ़ान उठा की हम दोनों ही पसीने से लथ-पथ हो गए| आज के इस प्रेमपसंग में कुछ अलग ही आनंद था, शायद खुले आसमान के तले प्रेम समागम करने की उत्तेजना का असर था!
थक कर जब हम कुछ पल के लिए साँस ले रहे थे तब संगीता मेरे सीने पर सर रखते हुए बोली; "जानू...आज सबसे छुप कर छत पर आते समय ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई 18 साल की युवती हूँ जो अपने प्रेमी से मिलने चोरी-छुपे छत पर आ रही हो!" संगीता की बता ने मुझे आज फिर गाँव में हमारे छिप-छिप कर मिलने की याद दिला दी, जिस कारण मेरे दिल में प्यारी सी गुदगुदी उठी; "मेरे लिए तो तुम हमेशा अठरह की बाली उम्र की रहोगी!" ये कहते हुए मैंने संगीता के सर को चूम लिया| मेरी प्यारभरी बात का असर संगीता पर खुमारी बन कर छाने लगा और इस मौके का लाभ उठा कर हमने फिर एक बार प्रेम समागम किया!
जारी रहेगा भाग - 20 {5(ii)} में...
बहुत ही सुंदर लाजवाब और रमणिय अपडेट हैइकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 {5(i)}
अब तक अपने पढ़ा:
फिल्म देखने का सुख मुझे छोड़ कर सभी ने लिया था, पर देखा जाए तो मेरे लिए असली सुख अपनी छोटी बिटिया रानी के साथ खेलना था| फिल्म खत्म हुई रात साढ़े 10 बजे और अब लगी थी भूख इसलिए हम मॉल में बने हुए रेस्टोरेंट में खाना खाने बैठ गए| जिस रेस्टोरेंट में हम आये थे ये बहुत महँगा था जिस कारण यहाँ की साज-सज्जा बहुत बढ़िया थी| हम सभी एक फॅमिली टेबल पर बैठे और खाना आर्डर करने का काम दादी-पोता-पोती ने किया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठा था की तभी एक वेटर स्तुति के बैठने के लिए छोटे बच्चों की कुर्सी ले आया| कुर्सी अपने सामने लगवा कर मैंने स्तुति को उस आरामदायक कुर्सी पर बिठाया, तो मेरी बिटिया रानी ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| "बड़े ठाठ हैं इस शैतान के!" संगीता आँखें तार्रेर कर बोली जिसके जवाब में स्तुति अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाने लगी| माँ-बेटी की ये जुगलबंदी देख मैं, माँ और दोनों बच्चे हँसने लगे| खैर, हम सभी ने खाना खाया और स्तुति को भी आज पहलीबार 2 (छोटी) चम्मच गुलाब जामुन खाने को मिला| अपने पापा जी की ही तरह स्तुति को भी ये मीठा-मीठा स्वाद बहुत पसंद आया था|
अब आगे:
बच्चे अक्सर अपने माँ-बाप, अपने बड़ों को देख कर कुछ नया सीखते हैं| आयुष मेरी देखा-देखि बॉडी स्प्रे (body spray) लगाना, अच्छे से बाल बनाना, शेड्स (shades) यानी धुप वाले चश्मे पहनना आदि सीख गया था| वहीं नेहा ने अपनी मम्मी को थोड़ा बहुत मेक-अप करते हुए देख फेस पाउडर, आँखों में काजल लगाना, बिंदी लगाना, लिपस्टिक लगाना सीख लिया था| अब जब दोनों बच्चे अपने मम्मी-पापा जी से कुछ न कुछ सीख रहे थे तो स्तुति कैसे पीछे रहती?!
एक दिन की बात है, पड़ोस में पूजा रखी गई थी तथा हम सभी को आमंत्रण मिला था| माँ और आयुष तो तैयार हो कर पहले निकल गए, रह गए बस हम मियाँ बीवी, नेहा और स्तुति| चूँकि मुझे साइट से घर लौटने में समय लगना था इसलिए संगीता मेरी दोनों बेटियों के साथ घर पर मेरा इंतज़ार कर रही थी| "तुम नहा-धो कर तैयार हो जाओ मैं तबतक घर पहुँच जाऊँगा|" मैंने फ़ोन कर संगीता को तैयार होने को बोला| कुछ समय बाद संगीता नहा कर तैयार हो चुकी थी तथा आईने के सामने बैठ कर अपने चेहरे पर थोड़ा सा फेस-पाउडर लगा रही थी| नेहा और स्तुति दोनों पलंग पर बैठे अपनी मम्मी को साज-श्रृंगार करते हुए देख रहे थे| नेहा ने अपनी मम्मी को पहले भी श्रृंगार करते हुए देखा था इसलिए वो इतनी उत्सुक नहीं थी, लेकिन स्तुति इस समय बहुत हैरान थी| वो बड़े गौर से अपनी मम्मी को फेस-पाउडर लगाते हुए देख रही थी| फिर संगीता ने अपने गुलाबी होठों पर हलके गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगाई, स्तुति ने जब ये दृश्य देखा तो उसका छोटा सा मुँह खुला का खुला रह गया| अंत में संगीता ने अपने माथे पर बिंदी लगाई और इस पाल मेरी बिटिया स्तुति के अस्चर्य की सीमा नहीं थी! अपनी मम्मी के माथे पर लगी बिंदी को देख मेरी बिटिया अचानक ही उतावली हो कर अपनी मम्मी के माथे की तरफ ऊँगली कर अपनी बोली-भाषा में कुछ कहने लगी|
अब स्तुति की ये भाषा केवल वही जानती थी इसलिए माँ-बेटी (नेहा और संगीता) के कुछ पल्ले नहीं पड़ा| ठीक तभी मैं घर पहुँचा और मुझे देख कर स्तुति ने मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ पंख के समान खोल दिए| मेरी गोदी में आ, स्तुति बार-बार अपनी मम्मी की तरफ इशारा करने लगी मगर मैंने स्तुति की कही बात का गलत अंदाजा लगाया; "मम्मी ने डाँटा आपको?! मैं आपकी मम्मी जी को डाटूँगा!" मैंने बात बनाते हुए स्तुति को बहलाना चाहा मगर स्तुति अब भी संगीता के मस्तक की ओर इशारा कर रही थी|
वहीं, संगीता मेरी बात सुन प्यारभरे गुस्से में बोली; "मैंने नहीं डाँटा आपकी लाड़ली को! ये शैतान हमेशा कुछ न कुछ नया हंगामा करती रहती है!" इतना कह संगीता अपना मुँह टेढ़ा कर बाहर चली गई| मैं जानता था की स्तुति जब भी कुछ नया देखती है तो वो इसी तरह मेरा ध्यान उस ओर खींचती है, परन्तु इस बार उसे क्या नया दिखा इसका मुझे इल्म नहीं था| मैं स्तुति को गोदी में लिए लाड करने लगा ताकि स्तुति का ध्यान उस चीज़ पर से हट जाए| कुछ मिनट स्तुति को यूँ टहलाने के बाद मैं स्तुति से बोला; "बेटा, आप और आपकी दीदी तो पूजा में जाने के लिए तैयार हो गए, मैं भी नहा-धो कर तैयार हो जाऊँ?" मैंने स्तुति को बहलाते हुए सवाल पुछा था मगर पीछे से नेहा ने जवाब दिया; "पापा जी, आप जाइये तैयार होने| मैं हूँ न स्तुति का ध्यान रखने के लिए|" नेहा की बता सुन मैंने उसके सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया तथा स्तुति को उसकी गोदी में छोड़ने लगा पर मेरी लाड़ली बिटिया अपनी दीदी की गोदी में जाने से मना करने लगी| "बेटु, पापा जी को तैयार होना है, बस 5 मिनट में मैं नहा कर आ जाऊँगा|" मैंने स्तुति को प्यारभरा आश्वसन दिया तब कहीं जा कर स्तुति मानी और अपनी दीदी की गोदी में गई| स्तुति परेशान न हो इसके लिए मैं बाथरूम में गाना गाते हुए नहाने लगा, मेरी आवाज़ सुन स्तुति को ये इत्मीनान था की मैं उसे अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जा रहा|
मेरे बाथरूम में नहाने जाते ही नेहा ने स्तुति को पलंग पर बिठाया और खुद जा कर आईने के सामने अपनी मम्मी का फेस पाउडर अपने चेहरे पर लगाने लगी| स्तुति ने जब अपनी दीदी को मेक-अप करते देखा तो वो उत्साह से भर गई और अपनी दीदी को "आ...आ.." कह कर बुलाने लगी| नेहा ने मुड़ कर स्तुति की ओर देखा तो वो समझ गई की स्तुति की उत्सुकता क्या है| नेहा फेस पाउडर ले कर स्तुति के पास आई और थोड़ा सा फेस पाउडर स्तुति के चेहरे पर लगाने लगी| ठीक तभी मैं नहाकर बाहर निकला और नेहा को स्तुति को फेस पाउडर लगाते हुए देख चुपचाप खड़ा हो गया| स्तुति बिना हिले-डुले अपनी दीदी को अपने चेहरे पर फेस पाउडर लगाने दे रही थी और मैं स्तुति को इस कदर स्थिर बैठा हुआ देख हैरान था|
जब नेहा ने स्तुति को फेस पाउडर लगा दिया, तब उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और नेहा हँसने लगी| मैंने स्तुति को गोदी में उठाया और उसके मस्तक को चूम बोला; "मेरी छोटी बिटिया तो बड़ी प्यारी लग रही है!" अपनी तारीफ सुन स्तुति शर्माने लगी और मेरे सीने से लिपट गई| इधर मेरी नज़र पड़ी नेहा पर जो की अपनी तारीफ सुनने का इंतज़ार कर रही थी| “मेरी बिटिया रानी बहुत सुन्दर लग रही है!" मैंने नेहा की तारीफ की तो नेहा एकदम से बोली; "एक मिनट पापा जी!" इतना कह नेहा आईने के पास गई और अपनी मम्मी के बिंदियों के पैकेट में से बिंदी चुनने लगी| स्तुति अपनी दीदी की बात सुन बड़े गौर से नेहा को देखने लगी मानो वो भी देखना चाहती हो की उसकी दीदी आखिर करने क्या वाली हैं?!
नेहा ने अपने लिए एक बिंदी खोज निकाली और आईने में देखते हुए अपने माथे के बीचों बीच बिंदी लगा कर मेरे पास फुदकती हुई आ गई| "अरे वाह! मेरा बच्चा तो और भी सुन्दर दिखने लगा|" मैंने नेहा के गाल पर हाथ फेरते हुए कहा|
उधर स्तुति ने अपनी दीदी के माथे पर बिंदी देखि तो उसने अपनी ऊँगली से बिंदी की ओर इशारा करना शुरू किया| इस बार मैं स्तुति की बात समझ गया और बोला; "मेरी बिटिया को भी बिंदी लगानी है?!" ये कहते हुए मैं आईने के पास पहुँचा और संगीता की बिंदियों के ढेर में से स्तुति के लिए एक छोटी सी-प्यारी सी बिंदी ढूँढने लगा| मुझे इतनी सारी बिंदियों में से बिंदी खोजते हुए देख स्तुति का मन मचल उठा और वो मेरी गोदी से निचे उतरने को मचलने लगी| अगर मैं स्तुति को नीचे उतार देता तो वो सारी बिंदियाँ अपनी मुठ्ठी में भरकर खा लेती!
अंततः मैंने स्तुति के लिए एक बहुत छोटी सी बिंदी ढूँढ निकाली थी; "मिल गई..मिल गई!" मैंने ये बोलकर स्तुति का ध्यान अपनी ऊँगली के छोर पर एक छोटी सी बिंदी की तरफ स्तुति का ध्यान खींचते हुए शोर मचाया| नेहा ने उस बिंदी के पीछे से पॉलिथीन निकाली और मुझे दी तथा मैंने वो बिंदी बड़ी सावधानी से स्तुति के मस्तक के बीचों-बीच लगा दी| आईने में स्तुति ने अपने मस्तक पर बिंदी लगी हुई देखि तो वो बहुत खुश हुई और अपने मसूड़े दिखा कर खिलखिलाकर हँसने लगी|
आईने में हम तीनों (मेरा, नेहा और स्तुति) का प्रतिबिम्ब बहुत ही प्यारा दिख रहा था| मैंने नेहा के दाएँ कंधे पर अपना दायाँ हाथ रख उसे अपने से चिपका कर खड़ा कर लिया और अपनी दोनों बेटियों की ख़ूबसूरती की प्रशंसा करते हुए बोला; "मेरी दोनों लाड़ली बेटियाँ बहुत-बहुत सुन्दर लग रहीं हैं| आपको मेरी भी उम्र लग जाए! आप दोनों इसी प्रकार ख़ुशी से खिलखिलाते रहो!" पता नहीं क्यों पर उस पल मैं एकदम से भावुक हो गया था| शायद अपनी दोनों बेटियों को यूँ अपने साथ देख दिल दोनों बच्चियों को खो देने से डर गया था!
इतने में पीछे से संगीता आ गई और मुझे यूँ स्तुति को गोदी में लिए हुए तथा नेहा को खुद से चिपकाए आईने में देखता हुआ देख उल्हाना देते हुए बोली; "सारा प्यार अपनी इन दोनों लड़कियों पर लुटा देना, मेरे लिए कुछ मत छोड़ना!" संगीता की बात सुन मैं मुस्कुराया और उसे भी अपने गले लगने को बुलाया| हम मियाँ-बीवी और दोनों बेटियाँ, एक साथ गले लगे हुए बहुत ही प्यारे लग रहे थे| आज भी जब वो दृश्य याद करता हूँ तो आँखें ख़ुशी के मारे नम हो जाती हैं|
स्तुति को किसी की नज़र न लगे इसके लिए मैंने खुद स्तुति के कान के पीछे काला टीका लगा दिया तथा हम चारों पूजा में सम्मलित होने मंदिर पहुँचे| बिंदी लगाए हुए स्तुति बहुत प्यारी लग रही थी, इतनी प्यारी की पूजा में मौजूद हर एक व्यक्ति की नज़र स्तुति पर टिकी हुई थी|
वहीं मंदिर में आ कर स्तुति का चंचल मन एकदम शांत हो गया था| हमेशा किलकारियाँ मारती हुई मेरी लाड़ली इस समय चेहरे पर मुस्कान लिए हुए अपने आस-पास मौजूद लोगों को देख रही थी| पूजा सम्पन्न हुई और मंत्रोचारण सुन स्तुति पंडित जी को बड़ी गौर से देखने लगी| पूजा खत्म हुई तो स्त्रियाँ मिल कर हारमोनियम, ढोलक और घंटी आदि बजाते हुए भजन गाने लगीं| स्तुति ने जब ये वादक यंत्र देखे तो वो मेरा ध्यान उस तरफ खींचने लगी| मैं स्तुति को गोदी लिए हुए सभी स्त्रियों के पास पहुँचा तो स्तुति ने एक आंटी जी के हाथ में घंटी देखि और वो उस घंटी की आवाज़ की तरफ आकर्षित होने लगी|
माँ बताती थीं की जब मैं स्तुति की उम्र का था तो मैं घंटी की आवाज़ सुन घबरा जाता था, परन्तु मुझे सताने के उद्देश्य से पिताजी जानबूझकर घंटी बजाते और जैसे ही मेरा रोना शुरू होता वो घंटी बजाना बंद कर देते! जब मैं बोलने लायक बड़ा हुआ तो मैंने घंटी को 'घाटू-पाटू' कहना शुरु कर दिया और धीरे-धीरे मेरा घंटी के प्रति डर खत्म हो गया|
माँ द्वारा बताई उसी बात को याद कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| एक तरफ जहाँ मैं अपने छुटपन में घंटी से डरता था, वहीं मेरी बिटिया रानी इतनी निडर थी की वो घंटी की तरफ आकर्षित हो रही थी| बहरहाल, स्तुति की नजरें घंटी पर टिकी थी और जब घंटी बजाने वाली आंटी जी ने स्तुति को घंटी पर नजरें गड़ाए देखा तो उन्होंने वो घंटी स्तुति की ओर बढ़ा दी| स्तुति ने फट से घंटी पकड़ ली, स्तुति को घंटी भा गई थी और स्तुति घंटी बजाने को उत्सुक थी मगर उसे घंटी बजाने आये तब न?! मैंने स्तुति की व्यथा समझते हुए उसका हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे गोल-गोल घुमा कर घंटी बजाई तो स्तुति ख़ुशी से फूली नहीं समाई|
उधर अपनी छोटी पोती को यूँ भजन में हिस्सा लेते देख माँ का दिल बहुत प्रसन्न था| वहीं दूसरी तरफ बाकी महिलाएं भी एक छोटी सी बच्ची को पूजा-पाठ में यूँ हिस्सा लेते देख माँ से स्तुति की तारीफ करने में लगी थीं|
स्तुति का पहला जन्मदिन नज़दीक आ रहा था और मैं इस दिन की सारी प्लानिंग पहले से किये बैठा था| मेरे बुलावे पर भाईसाहब सहपरिवार स्तुति के जन्मदिन के 3 दिन पहले ही आ गए| अनिल की नौकरी के चलते उसे छुट्टी नहीं मिल पाई थी| अनिल की कमी सभी को खली खासतौर पर संगीता को लेकिन संगीता ने अनिल से कोई शिकायत नहीं की|
खैर, भाभी जी ने घर पहुँचते ही स्तुति को गोदी लेना चाहा मगर मेरी नटखट बिटिया अपनी मामी जी के पास नहीं गई, ऐसे में भाभी जी का नाराज़ होना जायज था; "ओ लड़की! पिछलीबार कहा था न की मेरे बुलाने पर चुपचाप आ जाना वरना मैं तुझसे बात नहीं करुँगी!" भाभी जी ने स्तुति को प्यारभरी डाँट लगाई मगर स्तुति ने अपनी मामी जी की डाँट को हँसी में उड़ाते हुए भाभी जी को जीभ चिढ़ाई! “चलो जी! ये लड़की मेरी गोदी में नहीं आती, तो हम यहाँ रह कर क्या करें!" ये कहते हुए भाभी जी अपना झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाते हुए उठ खड़ी हुईं| अपनी मामी जी को नाराज़ देख आयुष और नेहा हाथ जोड़े हुए आगे आये; "मामी जी, मत जाओ!" आयुष बड़े प्यार से बोला|
"मामी जी, छोडो इस शैतान लड़की को! आपके पास आपके भांजा-भांजी भी तो हैं, हम दोनों आपकी सेवा करेंगे|" नेहा अपनी मामी जी की कमर से लिपटते हुए बोली| अपनी भांजी की बातें सुन और भांजे का प्रेम देख भाभी जी पिघल गईं और वापस सोफे पर बैठ दोनों बच्चों को अपने गले लगा कर स्तुति को चिढ़ाते हुए बोलीं; "ये हैं मेरे प्यारे-प्यारे भांजा-भांजी! मैं इनके लिए रुकूँगी, इनको लाड-प्यार करुँगी, इनको अच्छी-अच्छी चीजें खरीद कर दूँगी! लेकिन इस नकचढ़ी लड़की (स्तुति) को कुछ नहीं मिलेगा!" भाभी जी स्तुति को चिढ़ाते हुए बोलीं ताकि स्तुति उनकी गोदी में आ जाए मगर मेरी नटखट बिटिया ने अपनी बड़ी मामी जी को अपनी जीभ दिखा कर चिढ़ाया और मेरे सीने से लिपट कर खिलखिलाने लगी|
"हाय राम! ये चुहिया तो मुझे ही जीभ चिढ़ा रही है!" भाभी जी प्यारभरे गुस्से से बोलीं जिसपर हम सभी ने जोरदार ठहाका लगाया| "आयुष और नेहा ही अच्छे हैं, कम से कम ये मेरा मज़ाक तो नहीं उड़ाते!" भाभी जी ने आयुष और नेहा की तारीफ की ही थी की पीछे से संगीता बोल पड़ी; "इनकी बातों में मत आओ भाभी, ये बातें बनाना इन दोनों शैतानों ने इनसे (मुझसे) सीखा है|" संगीता आँखों से मेरी ओर इशारा करते हुए बोली| "स्तुति शरारतों मं उन्नीस है तो ये दोनों (आयुष और नेहा) बीस हैं!" इतना कहते हुए संगीता ने तीनों बच्चों की शिकायतों का पिटारा खोल दिया; “परसों की बात है, मैं नहाने जा रही थी इसलिए मैंने आयुष को स्तुति के साथ खेलने को कहा| माँ तब टी.वी. देख रहीं थीं, नेहा पढ़ाई कर रही थी और ये दोनों भाई बहन (आयुष और स्तुति) खेलने में लगे थे| तभी माँ ने आयुष से पीने के लिए पानी माँगा, आयुष पानी लेने रसोई में गया तो ये शैतान की नानी (स्तुति) उसके पीछे-पीछे रसोई में आ गई| इधर रसोई में, आयुष ने पानी का गिलास उठाते-उठाते आटें की कटोरी गिरा दी! आटा फर्श पर फ़ैल गया और इस शैतान की नानी को खेलने के लिए नई चीज़ मिल गई| इसने आव देखा न ताव फट से फर्श पर फैले आटे में अपने हाथ लबेड लिए और आटा अपने साथ-साथ पूरे फर्श पर पोत दिया!
आयुष जब अपनी दादी जी को पानी दे कर लौटा तो उसने स्तुति को आटे में सना हुआ देखा| बजाए स्तुति को गोदी ले कर दूर बिठा कर आटा झाड़ने के, ये उस्ताद जी तो स्तुति के साथ आटे में अपने हाथ सान कर स्तुति के गाल पोतने में लग गए! और ये शैतान की नानी भी पीछे नहीं रही, ये भी अपने आटे से सने हुए हाथ आयुष के गाल पर लगाने लगी! ये दोनों शैतान भाई-बहन आधे घंटे तक फर्श पर बैठे हुए एक दूसरे को आटे से रगड़-रगड़ कर होली खेल रहे थे!" संगीता के सबसे पहले आयुष और स्तुति की शैतानोयों का जिक्र करने पर सब हँस पड़े थे, लेकिन सबसे ज्यादा नेहा हँस रही थी| अब जैसा की होता है, नेहा की हँसी संगीता को नहीं भाइ और उसने नेहा की शिकायतें शुरू कर दी; "तू ज्यादा मत हँस! ये लड़की भी कम नहीं है, इसने तो अपनी ही बहन के चेहरे पर मेक-अप टुटोरिअल्स (make-up tutorials) ट्राई (try) करने शुरू कर दिए! मेरा आधा फेस पाउडर, इस लड़की (नेहा) ने स्तुति को पोत-पोत कर खत्म कर दिया! पूरी लिपस्टिक स्तुति के गालों और पॉंव की एड़ी पर घिस-घिस कर लाल कर-कर के खत्म कर दी! मैं नहाने गई नहीं की दोनों बहनों का ब्यूटी पारलर खुला गया और मेक-अप पोत-पोत कर स्तुति को ब्यूटी क्वीन (beauty queen) बनाने लग गई!" जैसे ही संगीता ने मेरी लाड़ली बिटिया को ब्यूटी क्वीन कहा मेरी हँसी छूट गई और मुझे हँसता हुआ देख संगीता को सबसे मेरी शिकायत करने का मौका मिल गया; "और ई जो इतना खींसें निपोरत हैं, ई रंगाई-पुताई इनका सामने होवत रही और ई दुनो बहिनो (नेहा और स्तुति) को रोके का छोड़ कर खूब हँसत रहे!
ई स्तुति, घर का कउनो कोना नाहीं छोड़िस सब का सब कोना ई सैतान आपन चित्रकारी से रंग दिहिस! और बजाए ऊ (स्तुति को) का रोके-टोके का, ई (मैं) स्तुति संगे बच्चा बनी के ऊ का उत्साह बढ़ावत हैं!" संगीता ने देहाती में जी भर कर मेरी और बच्चों की शिकायत की मगर उसकी शिकयतें सुन कर किसी को गुस्सा नहीं आया, बल्कि सभी ठहाका लगा कर हँसने लगे|
जब सब हँस रहे थे तो स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी| अब जब स्तुति हँस रही थी तो मैंने इसका फायदा उठाते हुए स्तुति को उसकी नानी जी की गोदी में बिठा दिया| फिर बारी-बारी स्तुति ने सभी की गोदी की सैर की तथा सभी को अपनी मीठी-मीठी पप्पी लेने दी, सबसे मिलकर मेरी बिटिया फिर मेरी गोदी में लौट आई और मुझसे लिपट गई|
स्तुति के जन्मदिन की सारी बातें हम स्तुति के सामने ही बड़े आराम से कर रहे थे क्योंकि स्तुति को कुछ कहाँ समझ में आना था, उसके लिए तो उसके जन्मदिन का ये सरप्राइज क़ायम ही रहने वाला था|
अब चूँकि विराट घर पर आ गया था तो आयुष नेहा तथा स्तुति को खेलने के लिए एक और साथी मिल गया था|
जब मैं तीसरी कक्षा में था तब हम सभी लड़कों को क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता था, समस्या ये थी की बाहर ग्राउंड पर बड़े बच्चों का कब्ज़ा था और हमारे पास खेलने के लिए न तो क्रिकेट बैट था और न ही बॉल! ऐसे में इस समस्या का तोड़ हम सभी ने मिल कर निकाला| हमारा ज्योमेट्री बॉक्स (geometry box) बना हमारा क्रिकेट बैट, फिर हमने बनाई बॉल और वो भी कागज को बॉल का आकार दे कर तथा उस पर कस कर रबर-बैंड (rubber band) बाँध कर| कागज की इस बॉल के बड़े फायदे थे, एक तो इस बॉल के खोने का हमें कोई दुःख नहीं होता था, क्योंकि हम बॉल के खोने पर तुरंत दूसरी बॉल बना लेते थे| दूसरा हम इस बॉल को कभी भी बना सकते थे| एक ही समस्या थी और वो ये की ये बॉल फेंकने पर टप्पा नहीं खाती थी मगर इसका भी हल हमने ढूँढ निकाला, हमने इस कागज की बॉल के ऊपर हम बच्चे जो घर से एल्युमीनियम फॉयल (aluminum foil) में खाना रख कर लाते थे वही फॉयल हम इस बॉल पर अच्छे से लपेट कर रबर-बैंड बाँध देते थे| इस जुगाड़ से बॉल 1-2 टप्पे खा लेती थी| ग्राउंड में हम अपने इस जुगाड़ से बने बैट-बॉल से खेल कर अपनी किरकिरी नहीं करवाना चाहते थे इसलिए हमने क्लास के अंदर ही खेलना शुरू कर दिया| फ्री पीरियड मिला नहीं, या फिर लंच हुआ नहीं और हम सब लग गए क्लास में क्रिकेट खेलने!
अब चूँकि मेरे दोनों बच्चे (आयुष और नेहा) घर से बाहर खेलने नहीं जाते थे इसलिए मैंने सौगात में उन्हें अपने बचपन का ये खेल घर के भीतर ही खेलना सीखा दिया था| अब जब विराट आया हुआ था तो चारों बच्चों ने मिलकर बैठक में ये खेल खेलना शुरू कर दिया| आयुष, नेहा और विराट को तो बैटिंग-बॉलिंग मिलती थी मगर स्तुति बेचारी को बस सोफे के नीचे से बॉल निकलने को रखा हुआ था| बॉल सोफे के नीचे गई नहीं की सब लोग स्तुति को बॉल लेने जाने को कह देते| मेरी बेचारी बिटिया को सोफे के नीचे से बॉल निकालना ही खेल लगता इसलिए वो ख़ुशी-ख़ुशी ये खेल खेलती|
इधर सबकी मौजूदगी में मुझ पर रोमांस करने का अजब ही रंग चढ़ा हुआ था| किसी न किसी बहाने से मैं संगीता के इर्द-गिर्द किसी चील की भाँती मंडराता रहता| ऐसे ही एक बार, माँ और मेरी सासु माँ बैठक में बच्चों के साथ बैठीं टीवी देखने में व्यस्त थीं| भाईसाहब घर से बाहर कुछ काम से गए थे और भाभी जी नहाने गईं थीं, मौका अच्छा था तो मैंने संगीता को रसोई में दबोच लिया| मेरी बाहों में आते ही संगीता मचलने लगी और आँखें बंद किये हुए बोली; "घर में सब मौजूद हैं और आप पर रोमांस हावी है?! कोई आ गया तो?" संगीता के सवाल के जवाबा में मैंने उसे अपनी बाहों से आज़ाद किया तथा मैं स्लैब के सामने खड़ा हो गया और संगीता को अपने पीछे खींच लिया| अब संगीता के दोनों हाथ मेरी कमर पर जकड़े हुए थे और मैं स्लैब पर आगे की ओर झुक कर आलू काटने लगा| मैंने ये दाव इसलिए चला था ताकि अगर कोई अचानक रसोई में आये तो उसे ये लगे की मैं सब्जी काट रहा हूँ|
मुझे यूँ काम करते देख संगीता को भी ठीक उसी तरह रोमांस छूटने लगा जैसे मुझे छूट रहा था इसलिए उसके दोनों हाथ मेरे हाथों के ऊपर आ गए और वो मेरी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा बैठी! “सससस" की सिसकी ले कर मैंने संगीता को उत्तेजित कर दिया था मगर हमारा रोमांस आगे बढ़ता उससे पहले ही भाभी जी आ गईं और उन्होंने हम दोनों को इस तरह खड़े हुए देख लिया!
"तुम दोनों न..." इतना कहते हुए भाभी जी ने अपना प्यार भरा गुस्सा हमें दिखाया| भाभी जी की आवाज़ सुन हम दोनों मियाँ-बीवी एकदम से सकपका गए और मैंने संगीता के बचाव में झूठ बोल दिया; "वो भाभी जी...वो...संगीता मुझे आलू काटना सीखा रही थी!" मेरा ये बेसर-पैर का झूठ सुन भाभी जी जोर से हँस पड़ीं और मेरे कान खींचते हुए बोलीं; "देवर जी, कमसकम झूठ तो ठीक से बोला करो! इतना बढ़िया खाना बनाते हो और कह रहे हो की तुम्हें आलू काटना नहीं आता?!" मैं अगर वहाँ और रुकता तो भाभी जी मेरी अच्छे से खिंचाई कर देतीं इसलिए मैं दुम दबाकर वहाँ से भाग आया|
मैं तो अपनी जान ले कर भाग निकला था, रह गई बेचारी संगीता अकेली भाभी जी के साथ इसलिए भाभी जी उसे समझाने लगीं; "संगीता, देख मानु अभी जवान है और जवानी में खून ज्यादा उबलता है! तेरी अब वो उम्र नहीं रही...तेरे अब तीन बच्चे हो गए हैं तो अब ज़रा अपने आप को काबू में रखा कर! तू काबू में नहीं रहेगी तो मानु कैसे खुद को काबू में रखेगा?!" भाभी जी ने संगीता को प्यार से समझाया था मगर उनकी कही बात संगीता के दिल को चुभ गई थी! भाभी जी ने बातों ही बातों में हम मियाँ-बीवी के बीच 10 साल के अंतर् होने की बात संगीता को याद दिला कर उसका जी खट्टा कर दिया था!
मैं उस वक़्त स्तुति के कपड़ों के बारे में पूछने रसोई में जा रहा था जब मैंने भाभी जी की सारी बात सुनी| मैं समझ गया था की भाभी जी की बातों से संगीता का दिल दुःखा होगा मगर मैं इस वक़्त भाभी जी से कुछ कहने की स्थिति में नहीं था क्योंकि शायद मेरी कही बात भाभी जी को चुभ जाती! मैं चुपचाप कमरे में चला गया और संगीता का मूड कैसे ठीक करना है उसके बारे में सोचने लगा|
रात होने तक मुझे संगीता से अकेले में बात करने का कोई मौका नहीं मिला| रात को जैसे ही सबने खाना खाया, मैं स्तुति को टहलाने के लिए छत की ओर चल दिया| छत की ओर जाते हुए मैंने संगीता को मूक इशारा कर छत पर आने को कहा मगर संगीता ने मुझसे नज़रें चुराते हुए गर्दन न में हिला दी| "तुम्हें मेरी कसम!" मैंने दबी आवाज़ में संगीता की बगल से होते हुए कहा तथा संगीता को अपनी कसम से बाँध कर छत पर बुला लिया| "क्या हुआ जान?" मैंने बड़े प्यार से सवाल पुछा जिसके जवाब में संगीता सर झुकाये गर्दन न में हिलाने लगी| "भाभी जी की बातों को दिल से लगा कर दुखी हो न?" मेरी कही ये बात सुन संगीता मेरी आँखों में देखने लगी| मेरी आँखों में देखते ही संगीता की आँखें नम हो गई| "आजा मेरा बच्चा!" ये कहते हुए मैंने संगीता को अपने सीने से लगा लिया| इस समय स्तुति मेरी गोदी में थी और संगीता मेरे सीने से लग कर सुबकने लगी थी| स्तुति ने जब महसूस किया की उसकी मम्मी रो रहीं हैं तो उस छोटी सी बच्ची ने अपनी मम्मी के सर पर हाथ रख दिया तथा अपनी बोली-भाषा में कुछ बोल कर मेरा ध्यान अपनी मम्मी की तरफ खींचने लगी| उस पल मुझे लगा जैसे मेरी स्तुति बिटिया सब कुछ समझती हो!
"बस-बस मेरी जान! और रोना नहीं!" मैंने संगीता के सर को चूमते हुए कहा| संगीता मेरे सीने से अलग हुई और अपने आँसूँ पोछने लगी| "जान, दुनिया कुछ भी कहे उससे हमें कुछ फर्क नहीं पड़ना चाहिए न?! अगर तुम इसी तरह लोगों की बातें दिल से लगाओगी तो न तुम खुश रह पाओगी और न मैं!" मेरी अंत में कही बात सुन कर संगीता घबरा गई| वो खुद तो दुःख-दर्द बर्दाश्त कर सकती थी मगर वो मुझे कभी दुखी नहीं कर सकती थी| "सोली (sorry) जान!" संगीता अपने कान पकड़ते हुए छोटे बच्चों की तरह तुतला कर बोली| अपनी मम्मी को यूँ तुतला कर बोलते देख स्तुति बहुत खुश हुई और उसने किलकारियाँ मारनी शुरू कर दी| मैंने भी संगीता को फिर से अपने गले लगा लिया और हम तीनों मियाँ-बीवी-बेटी इसी तरह गले लगे हुए खड़े रहे|
कुछ समय बाद मैंने संगीता को छेड़ते हुए कहा; "रात 2 बजे तैयार रहना!" मेरी बातों में छुपी शरारत भाँपते हुए संगीता मुझसे दूर हो गई और अपने होठों पर हाथ रखते हुए मुझे अस्चर्य से भरकर देखने लगी| वो जानती थी की इतनी रात को अगर मैं उसे बुला रहा हूँ तो मुझे उससे क्या 'काम' लेना है?!
"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रही हो?" मैंने अनजान बनते हुए सवाल पुछा| मुझे लगा था की मेरी बात से संगीता और शर्माएगी मगर वो तो अपनी शर्म छोड़कर बोली; "ठीक है! लेकिन आप भाभी से उनकी कही बात के बारे में कोई बात नहीं करोगे|" संगीता के मेरी बात मान जाने से मैं खुश तो था मगर ऊसके द्वारा मुझे भाभी जी से बात करने पर रोकने पर मैं असमंजन में था| "प्लीज जानू!" संगीता ने थोड़ा जोर लगा कर कहा तो मैंने उसकी बात मान ली और ख़ुशी-ख़ुशी सर हाँ में हिला दिया| भाभी जी, संगीता और मेरे प्यार के बारे में कुछ नहीं जानती थीं, ऐसे में मेरा उनसे कुछ भी कहना शायद उनको बुरा लग सकता था जिससे स्तुति के जन्मदिन में विघ्न पड़ जाता|
खैर, आज रात दो बजे का जुगाड़ हो गया था और क्या जुगाड था वो! रात के सन्नाटे में हम दोनों प्रेमी सबसे नजरें छुपाते हुए ऊपर वाली छत पर पहुँचे| वहाँ टंकी के नीचे चुहलबाज़ी करने के लिए काफी जगह थी, ऊपर से रात के इस पल में कोई हमें देखने वाला भी नहीं था| अब जब हमें किसी का भय नहीं था तो प्रेम का वो तूफ़ान उठा की हम दोनों ही पसीने से लथ-पथ हो गए| आज के इस प्रेमपसंग में कुछ अलग ही आनंद था, शायद खुले आसमान के तले प्रेम समागम करने की उत्तेजना का असर था!
थक कर जब हम कुछ पल के लिए साँस ले रहे थे तब संगीता मेरे सीने पर सर रखते हुए बोली; "जानू...आज सबसे छुप कर छत पर आते समय ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई 18 साल की युवती हूँ जो अपने प्रेमी से मिलने चोरी-छुपे छत पर आ रही हो!" संगीता की बता ने मुझे आज फिर गाँव में हमारे छिप-छिप कर मिलने की याद दिला दी, जिस कारण मेरे दिल में प्यारी सी गुदगुदी उठी; "मेरे लिए तो तुम हमेशा अठरह की बाली उम्र की रहोगी!" ये कहते हुए मैंने संगीता के सर को चूम लिया| मेरी प्यारभरी बात का असर संगीता पर खुमारी बन कर छाने लगा और इस मौके का लाभ उठा कर हमने फिर एक बार प्रेम समागम किया!
जारी रहेगा भाग - 20 {5(ii)} में...
Behad khoobsuratइकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 (3)
अब तक अपने पढ़ा:
शाम के समय जब बच्चे सो रहे थे तब संगीता ने आयुष की शादी करने की जिद्द को माँ से साझा किया तो माँ को खूब हँसी आई| जब आयुष सो कर उठा तो माँ उसे लाड करते हुए बोलीं; "बेटा, अभी तू छोटा है, अभी तेरा ध्यान पढ़ाई में और थोड़ा बहुत मौज-मस्ती करने में होना चाहिए| ये शादी-वादी की बात हम तब सोचेंगे जब तू बड़ा हो जायेगा!" आयुष को अपनी दादी जी की बात अच्छी लगी इसलिए वो खुश होते हुए अपनी दादी जी से लिपट गया|
अब आगे:
आयुष तो जब बड़ा होता तब होता, अभी तो स्तुति की मस्तियाँ जारी थीं| स्तुति को अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलते देख आयुष को कुछ ज्यादा ही मज़ा आता था, वो अक्सर अपनी छोटी बहन की देखा-देखि अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलता तथा स्तुति का रास्ता रोक उसके सर से सर भिड़ा कर धीरे-धीरे स्तुति को पीछे धकेलने की कोशिश करता| दोनों बच्चों को यूँ एक दूसरे को पीछे धकेलते हुए देख माँ, मुझे और संगीता को बड़ा मज़ा आता, ऐसा लगता मानो हमारी आँखों के सामने एनिमल प्लेनेट (animal planet) चल रहा हो, जिसमें दो छोटी बकरियाँ एक दूसरे को पीछे धकेलने का खेल खेल रही हों!
ऐसे ही एक दिन की बात है, मैं शाम क लौटा तो दोनों भाई बहन सर से सर भिड़ाये एक दूसरे को पीछे धकेलने में लगे थे की तभी आयुष ने अपनी छोटी बहन से हारने का ड्रामा किया और मुझे भी अपने साथ ये खेल-खेलने को कहा| दोनों बच्चों को देख मेरे भीतर का बच्चा जाग गया और मैं भी अपने दोनों-हाथों-पाँव पर आ गया| "बेटा, हम है न रेलगाड़ी वाला खेल खेलते हैं|" मैंने उस दिन एक नए खेल का आविष्कार किया था और आयुष इस खेल के नियम जानने को उत्सुक था| मैंने आवाज़ दे कर नेहा को भी इस खेल से जुड़ने को बुलाया और सभी को सारे नियम समझाये|
चूँकि मेरा डील-डोल बच्चों के मुक़ाबले बड़ा था इसलिए मैं बच्चों की रेलगाडी का इंजन बना, मेरे पीछे लगी छोटी सी डाक वाली बोगी यानी के स्तुति, फिर लगा फर्स्ट क्लास स्लीपर का डिब्बा यानी आयुष और अंत में रेलगाड़ी को झंडी दिखाने वाले गार्ड साहब का डिब्बा यानी नेहा| इस पूरे खेल में नेहा की अहम भूमिका थी क्योंकि उसे ही मेरे पीछे लगी डाक वाली बोगी यानी के स्तुति को सँभालना था क्योंकि ये वाली बोगी बड़ी नटखट थी और इंजन को छोड़ अलग पटरी पर दौड़ सकती थी!
खेल शुरू हुआ और मैंने इंजन बनते हुए आगे-आगे अपने दोनों पाँवों और हाथों के बल चलना शुरू किया| जब मैं आगे चला तो स्तुति भी मेरे पीछे-पीछे खिलखिलाकर हँसते हुए चलने लगी, स्तुति के पीछे आयुष चलने लगा और अंत में गार्ड साहब की बोगी यानी नेहा भी चल पड़ी| अभी हमारी ये रेल गाडी माँ के कमरे से निकल बैठक की तरफ मुड़ी ही थी की नटखट स्तुति ने अलग पटरी पकड़ी और वो रसोई की तरफ घूमने लगी! स्तुति को रसोई की तरफ जाते हुए देख आयुष और नेहा ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया; "पापा जी देखो, स्तुति दूसरी पटरी पर जा रही है!" बच्चों का शोर सुन मैंने स्तुति को अपने पीछे आने को कहा तो स्तुति जहाँ खड़ी थी वहीं बैठ गई और खिलखिलाकर हँसने लगी| स्तुति को अपने मन की करनी थी इसलिए मैंने स्तुति को ही इंजन बनाया और मैं उसके पीछे दूसरे इंजन के रूप में जुड़ गया|
मेरे, एक पुराने इंजन के मुक़ाबले स्तुति रुपी इंजन बहुत तेज़ था! उसे अपने पीछे लगे डब्बे खींचने का शौक नहीं था, उसे तो बस तेज़ी से दौड़ना पसंद था इसलिए स्तुति हम सभी को पीछे छोड़ छत की ओर दौड़ गई! पीछे रह गए हम बाप-बेटा-बेटी एक दूसरे को देख कर पेट पकड़ कर हँसने लगे! "ये कैसा इंजन है पापा जी, जो अपने डब्बों को छोड़ कर खुद अकेला आगे भाग गया!" नेहा हँसते हुए बोली| हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ज़मीन पर बैठे हँस रहे थे की इतने में हमारा इंजन यानी की स्तुति वापस आ गई और हमें हँसते हुए देख अस्चर्य से हमें देखने लगी! ऐसा लगा मानो कह रही हो की मैं पूरा चक्कर लगा कर आ गई और आप सब यहीं बैठे हँस रहे हो?! "चलो भई, सब स्तुति के पीछे रेलगाडी बनाओ|" मैंने दोनों बच्चों का ध्यान वापस स्तुति के पीछे रेलगाड़ी बनाने में लगाया| हम तीनों (मैं, आयुष और नेहा) स्तुति के पीछे रेलगाड़ी के डिब्बे बन कर लग तो गए मगर स्तुति निकली बुलेट ट्रैन का इंजन, वो स्टेशन से ऐसे छूटी की सीधा छत पर जा कर रुकी| जबकि हम तीनों धीरे-धीरे उसके पीछे रेंगते-रेंगते बाहर छत पर आये|
अब छत पर माँ और संगीता पहले ही बैठे हुए थे इसलिए जब उन्होंने मुझे बच्चों के साथ बच्चा बन कर रेलगाड़ी का खेल खेलते हुए देखा तो दोनों सास-पतुआ बड़ी जोर से हँस पड़ीं! "पहुँच गई रेल गाडी प्लेटफार्म पर?!" माँ हँसते हुए बोलीं| फिर माँ ने मुझे अपने पास बैठने को कहा तो मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठ गया| मुझे घर आते ही बच्चों के साथ खेलते हुए देख संगीता मुझसे नाराज़ होते हुए माँ से मेरी शिकायत करते हुए बोली; "देखो न माँ, घर आते ही बिना मुँह-हाथ धोये भूखे पेट बच्चों के साथ खेलने लग गए!"
इधर माँ को मेरे इस बचपने को देख मुझ पर प्यार आ रहा था इसलिए वो मेरा बचाव करते हुए बोलीं; " बेटा, बच्चों का मन बहलाने के लिए कई बार माँ-बाप को उनके साथ खेलना पड़ता है| जब ये शैतान (मैं) छोटा था तो मुझे अपने साथ बैट-बॉल, चिड़ी-छक्का (badminton), कर्रम (carrom), साँप-सीढ़ी, लूडो और पता नहीं क्या-क्या खेलने को कहता था| अब इसके साथ कोई दूसरा खेलने वाला बच्चा नहीं था इसलिए मैं ही इसके साथ थोड़ा-बहुत खेलती थी|" माँ की बात सुन बच्चों की मेरे बचपने के किस्से सुनने की उत्सुकता जाग गई और माँ भी पीछे नहीं रहीं, उन्होंने बड़े मज़े ले-ले कर मेरे बचपन के किस्से सुनाने शुरू किये| मेरे बचपने का सबसे अच्छा किस्सा वो था जब मैं लगभग 2 साल का था और छत पर पड़े गमले में पानी डालकर, उसमें लकड़ी घुसेड़ कर मिटटी को मथने का खेल खेलता| जब माँ पूछतीं की मैं क्या कर रहा हूँ तो मैं कहता की; "मैं खिचड़ी बना रहा हूँ!" मेरे जवाब सुन माँ को बहुत हँसी आती| वो बात अलग है की मैं अपनी बनाई ये मिटटी की खिचड़ी न कभी खुद खाता था न माँ-पिताजी को खाने को कहता था!
खैर, स्तुति को बच्चों के साथ खेलने को छोड़ कर मैं जैसे ही उठा की स्तुति मेरे पीछे-पीछे अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगी; "बेटा, मैं बाथरूम हो कर कपड़े बदलकर आ रहा हूँ|" मैंने स्तुति को समझाते हुए कहा| मुझे लगा था की स्तुति मेरी बात समझ गई होगी मगर मेरी लाड़ली को मेरे बिना चैन कहाँ पड़ता था?! इधर मैं बाथरूम में घुस कमोड पर बैठ कर शौच कर रहा था, उधर स्तुति रेंगते-रेंगते मेरे पीछे आ गई| वैसे तो बाथरूम का दरवाजा बंद था परन्तु दरवाजे पर से कुण्डी मैंने स्तुति के गलती से बाथरूम में बंद हो जाने के डर से हटवा दी थी इस कारण दरवाजा केवल उढ़का हुआ था| स्तुति खदबद-खदबद कर दरवाजे तक आई और दरवाजे के नीचे से आ रही रौशनी को देख स्तुति ने अपना हाथ दरवाजे के नीचे से अंदर की ओर खिसका दिया| जैसे ही मुझे स्तुति का छोटा सा हाथ नज़र आया मैं समझ गया की मेरी शैतान बिटिया मेरे पीछे-पीछे बाथरूम तक आ गई है!
"बेटा मैं छी-छी कर रहा हूँ, आप थोड़ी देर रुको मैं आता हूँ!" मैं बाथरूम के भीतर से मुस्कुराते हुए बोला| परन्तु मेरी बिटिया को कहाँ कुछ समझ आता उसने सोचा की मैं उसे अंदर बुला रहा हूँ इसलिए स्तुति बहुत खुश हुई| स्तुति ने अब तक ये सीख लिया था की दरवाजे को धक्का दो तो दरवाजा खुल जाता है इसलिए मेरी बिटिया बाथरूम का दरवाज़ा भीतर की ओर धकेलते हुए अंदर आ गई| मुझे कमोड पर बैठा देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो मेरे सामने ही बैठ कर हँसने लगी! "बेटा, आप बहार जाओ, पापा जी को छी-छी करनी है!" मैंने स्तुति को प्यार से समझाया मगर स्तुति कुछ समझे तब न?! वो तो खी-खी कर हँसने लगी! स्तुति को हँसते हुए देख मेरी भी हँसी छूट गई! मुझे हँसते हुए देख स्तुति को बहुत मज़ा आया और वो हँसते हुए मेरे नज़दीक आने लगी! अब मैं जिस हालत में था उस हालत में मैं स्तुति को अपने नज़दीक नहीं आने देना चाहता था इसलिए मैंने अपने दोनों हाथ स्तुति को दिखा कर रोकते हुए बोला; "नहीं-नहीं बेटा! वहीं रुको!" इस बार स्तुति ने मेरी बात मान ली और अपनी जगह बैठ कर ही खी-खी कर हँसने लगी!
उधर, संगीता चाय बनाने के लिए अंदर आई थी और बाथरूम से आ रही हम बाप-बेटी के हँसी-ठहाके की आवाज़ सुन वो बाथरूम में आ गई| मुझे कमोड पर हँसता हुआ सिकुड़ कर बैठा देख और स्तुति को बाथरूम के फर्श पर ठहाका लगा कर हँसते हुए देख संगीता भी खी-खी कर हँसने लगी! "जान, प्लीज स्तुति को बहार ले जाओ वरना अभी दोनों बच्चे यहाँ आ जायेंगे!" मैंने अपनी हँसी रोकते हुए कहा| "आजा मेरी लाडो!" ये कहते हुए संगीता ने स्तुति को उठाया और बाहर छत पर ले जा कर सबको ये किस्सा बताने लगी| जब मैं कपड़े बदलकर छत पर आया तो सभी हँस रहे थे| "ये शैतान की नानी किसी को चैन से साँस नहीं लेने देती!" माँ हँसते हुए बोलीं| स्तुति को कुछ समझ नहीं आया था मगर वो कहकहे लगाने में व्यस्त थी|
बच्चों को मैं हर प्रकार से खुश रख रहा था, उन्हें इतना लाड-प्यार दे रहा था जिसकी मैं कभी कल्पना भी नहीं की थी| परन्तु अभी भी एक सुख था जिससे मेरे बच्चे और मैं वंचित थे, लेकिन नियति ने मुझे और मेरे बच्चों को इस सुख को भोगने का भी मौका दे दिय| एक दिन की बात है, मैं और स्तुति अकेले रेलगाड़ी वाला खेल खेलने में व्यस्त थे जबकि दोनों बच्चे अपना-अपना होमवर्क करने में व्यस्त थे| मेरी और स्तुति की हँसने की आवाज़ सुन आयुष अपना आधा होमवर्क छोड़ कर आ गया, उसने मुझे स्तुति के साथ रेल गाडी वाला खेल खेलते हुए देखा तो पता नहीं अचानक आयुष को क्या सूझा की वो दबे पॉंव मेरे पास आया और मेरी पीठ पर बैठ गया! आयुष के मेरे पीठ पर बैठते ही एक पिता के मन में अपने बच्चों को घोडा बनकर सैर कराने की इच्छा ने जन्म ले लिया| "बेटा मुझे कस कर पकड़ना|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और धीरे-धीरे चलने लगा| मेरे धीरे-धीरे चलने से आयुष को मज़ा आने लगा और वो ख़ुशी से खिलखिलाने लगा| स्तुति ज़मीन पर बैठी हुई अपने बड़े भैया को मेरी पीठ पर सवारी करते देख बहुत प्रसन्न हुई और उसने मेरे पीछे-पीछे चलना शुरू कर दिया| हम तीनों बाप-बेटा-बेटी का हँसी-ठहाका सुन नेहा अपनी पढ़ाई छोड़ कर आई और ये अद्भुत दृश्य देख कर बहुत खुश हुई| जब मैंने नेहा को देखा तो मैंने उसे अपने पास बुलाया; "आयुष बेटा, अब आपकी दीदी की बारी|" मैंने कहा तो आयुष नीचे उतर गया और उसकी जगह नेहा मेरी पीठ पर बैठ गई|
जब नेहा छोटी थी और मैं गाँव में था, तब मैंने नेहा को अपनी पद्दी अर्थात अपनी पीठ पर लाद कर खेलता था, परन्तु आज मेरी पीठ पर घोड़े की सवारी करना नेहा को कुछ अधिक ही पसंद आया था| नेहा को एक चक्कर घुमा कर मैंने दोनों बच्चों से स्तुति को पकड़ कर मेरी पीठ पर बिठाने को कहा, ताकि मेरी बिटिया रानी भी अपने पापा जी की पीठ की सवारी कर ले| आयुष और नेहा दोनों ने स्तुति को दाहिने-बहिने तरफ से सँभाला और मेरी पीठ पर बिठा दिया| मेरी पीठ पर बैठते ही स्तुति ने मेरी टी-शर्ट अपनी दोनों मुट्ठी में जकड़ ली| जैसे ही मैं धीरे-धीरे चलने लगा स्तुति को मज़ा आने लगा और उसकी किलकारियाँ गूँजने लगी! स्तुति के लिए ये एक नया खेल था और उसे इस खेल में बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था|
स्तुति को मस्ती से किलकारियाँ मारते हुए देख दोनों भाई-बहन भी ख़ुशी से हँस रहे थे| पूरे घर में जब बच्चों की खिलखिलाहट गूँजी तो माँ और संगीता इस आवाज़ को सुन खींचे चले आये| दोनों सास-पतुआ मुझे घोडा बना हुआ देख और मेरी पीठ पर स्तुति को सवारी करते देख ठहाका लगाने लगे| पूरे घर भर में मेरी बिटिया रानी के कारण हँसी का ठहाका गूँजने लगा था|
उस दिन से बच्चों को मेरी पीठ पर सवारी करने का नियम बन गया| तीनों बच्चे बारी-बारी से मेरी पीठ पर सवारी करते और 'चल मेरे घोड़े टिक-टिक' कहते हुए ख़ुशी से खिलखिलाते| बच्चों को अपनी पीठ की सवारी करा कर मुझे मेहताने के रूप में तीनों बच्चों से पेट भर पप्पी मिलती थी जो की मेरे लिए सब कुछ था| घोड़ सवारी करने के बाद तीनों बच्चे मुझे ज़मीन पर लिटा देते और मुझसे लिपटते हुए मेरे दोनों गाल अपनी मीठी-मीठी पप्पियों से गीली कर देते| कई बार मुझे यूँ ज़मीन पर लिटा कर पप्पियाँ देने में तीनों बच्चों के बीच पर्तिस्पर्धा हो जाती थी|
ऐसे ही एक दिन की बात है, दोपहर का समय था और स्तुति सोइ हुई थी| मैं जल्दी घर पहुँचा था इसलिए थकान मिटाने के लिए कपड़े बदल कर स्तुति की बगल में लेटा था| स्तुति को देखकर मेरा मन उसकी पप्पी लेने को किया इसलिए मैंने स्तुति को गोल-मटोल गालों को चूम लिया| मेरे इस लालच ने मेरी बिटिया की नींद तोड़ दी और स्तुति जाग गई| मुझे अपने पास देख स्तुति करवट ले कर उठी और अपने दोनों हाथों-पाँवों पर चलते हुए मेरे पास आई तथा मेरी छाती पर चढ़ कर मेरे दाएँ गाल पर अपने छोटे-छोटे होंठ टिका कर मेरी पप्पी लेने लगी| अपनी मम्मी की तरह स्तुति को भी मेरे गाल गीले करने में मज़ा आता था इसलिए स्तुति बड़े मजे ले कर अपनी किलकारियों से शोर मचा कर मेरी पप्पी लेने लगी| स्तुति की किलकारियाँ सुन आयुष कमरे में दौड़ा आया और स्तुति को मेरी पप्पी लेता देख शोर मचाते हुए बाहर भाग गया; "दीदी...मम्मी...देखो स्तुति को...वो अकेले पापा जी की सारी पप्पी ले रही है!" आयुष के हल्ला मचाने से नेहा उसके साथ दौड़ती हुई कमरे में आई और स्तुति को प्यार से धमकाते हुए बोली; "शैतान लड़की! अकेले-अकेले पापा जी की सारी पप्पियाँ ले रही है!" इतना कह नेहा ने स्तुति को पीछे से गोदी में उठाया और उसे मुझसे दूर कर मेरे दाएँ गाल की पप्पी लेने लगी| वहीं, आयुष भी पीछे नहीं रहा उसने भी मेरे बाएँ गाल की पप्पी लेनी शुरू कर दी| अब रह गई बेचारी स्तुति जिसे उसी की बड़ी बहन ने उसी के पापा जी की पप्पी लेने से रोकने के लिए दूर कर दिया था|
जिस प्रकार संगीता मुझ पर हक़ जताती थी, नेहा मुझ पर हक़ जताती थी उसी प्रकार स्तुति भी मुझ पर अभी से हक़ जताने लगी थी| जब वो मेरी गोदी में होती तो वो किसी को भी मेरे आस-पास नहीं रहने देती थी| ऐसे में जब नेहा ने उसे पीछे से उठा कर मेरी पप्पी लेने से रोका तो स्तुति को गुस्सा आ गया! मेरी बिटिया रानी हार न मानते हुए अपने दोनों हाथों-पाँवों पर रेंगते हुए मेरे नज़दीक आई और सबसे पहले अपने बड़े भैया को दूर धकेलते हुए मेरे पेट पर चढ़ गई तथा धीरे-धीरे रेंगते हुए मेरे गाल तक पहुँची और फिर अपनी बड़ी दीदी को मुझसे दूर धकेलने की कोशिश करने लगी|
आयुष छोटा था और स्तुति को चोट न लग जाये इसलिए वो अपने आप पीछे हट गया था मगर नेहा बड़ी थी और थोड़ी जिद्दी भी इसलिए स्तुति के उसे मुझसे परे धकेलने पर भी वो चट्टान की तरह कठोर बन कर रही और मेरे दाएँ गाल से अपने होंठ भिड़ाये हँसने लगी| इधर जब स्तुति ने देखा की उसकी दीदी अपनी जगह से हट नहीं रही तो उसने अपना झूठ-मूठ का रोना शुरू कर दिया! ये झूठ-मूठ का रोना स्तुति तब रोती थी जब वो किसी का ध्यान अपने ऊपर केंद्रित करवाना चाहती हो|
खैर, स्तुति के रोने से हम सभी डरते थे क्योंकि एक बार स्तुति का साईरन बज जाता तो फिर जल्दी ये साईरन बंद नहीं होता था इसीलिए स्तुति का झूठ-मूठ का रोना सुन नेहा डर के मारे खुद दूर हो गई| अब स्तुति को उसके पापा जी के दोनों गाल पप्पी देने के लिए मिल गए थे इसलिए स्तुति ने मेरे दाएँ गाल पर अपने नाज़ुक होंठ टिकाये और मेरी पप्पी लेते हुए किलकारी मारने लगी| मेरी शैतान बिटिया रानी को आज अपनी इस छोटी सी जीत पर बहुत गर्व हो रहा था|
इधर, बेचारे आयुष और नेहा मुँह बाए स्तुति को देखते रहे की कैसे उनकी छोटी सी बहना इतनी चंट निकली की उसने अपने बड़े भैया और दीदी को अपने पापा जी से दूर कर कब्ज़ा जमा लिया!
उसी दिन से स्तुति ने मुझ पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया था| कहने की जर्रूरत तो नहीं की स्तुति ने ये गुण अपनी मम्मी से ही सीखा था| जिस प्रकार संगीता मेरे ऊपर हक़ जमाती थी, अपनी प्रेगनेंसी के दिनों में हमेशा मेरा ध्यान अपने ऊपर खींचने की कोशिश करती थी, उसी प्रकार स्तुति भी बस यही चाहती की मैं बस उसी को लाड-प्यार करूँ| मेरी बिटिया रानी ने ये हक़ जमाने वाला गुण अपनी मम्मी से पाया था! उसके (स्तुति के) अलावा अगर मेरा ध्यान नेहा या आयुष की तरफ जाता तो स्तुति कुछ न कुछ कर के फौरन मेरा ध्यान अपने ऊपर खींचती|
ऐसे ही एक दिन की बात है, रविवार का दिन था और हम बाप-बेटी टी.वी. पर कार्टून देख रहे थे| मैं आलथी-पालथी मारकर सोफे पर बैठा था और स्तुति मेरी गोदी में बैठी थी| मेरा बायाँ हाथ स्तुति के सामने गाडी की सीटबेल्ट की तरह था ताकि कहीं स्तुति आगे की ओर न फुदके तथा नीचे गिर कर चोटिल हो जाये| वहीं मेरी चुलबुली बिटिया रानी कार्टून देखते हुए बार-बार मेरा ध्यान टी.वी. की ओर खींचती और अपने हाथ के इशारे से कुछ समझाने की कोशिश करती| अब मेरे कुछ पल्ले तो पड़ता नहीं था की मेरी बिटिया रानी क्या कहना चाह रही है परन्तु अपनी बिटिया की ख़ुशी के लिए मैं "हैं? अच्छा? भई वाह!" कह स्तुति की बातों में अपनी दिलचस्पी दिखाता|
ठीक तभी नेहा भी अपनी पढ़ाई खत्म कर के मेरे पास बैठ गई और कार्टून देखने लगी| नेहा को देख मैंने अपना दाहिना हाथ उठा कर नेहा के कँधे पर रख दिया| कुछ पल बाद जब स्तुति ने देखा की मेरा एक हाथ नेहा के कँधे पर है तो मेरी छोटी सी बिटिया रानी को जलन हुई और वो अपनी दीदी को दूर धकेलने लगी| अपनी छोटी बहन द्वारा धकेले जाने पर नेहा सब समझ गई और चिढ़ते हुए बोली; "छटाँक भर की है तू और मेरे पापा जी पर हक़ जमा रही है?! सुधर जा वरना मारब एक ठो तो सोझाये जैहो!" नेहा के मुँह से देहाती सुनना मुझे बड़ा अच्छा लगता था इसलिए मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, वहीं अपनी बड़ी दीदी द्वारा धमकाए जाने पर स्तुति डर के मारे रोने लगी| अतः मुझे ही बीच में बोल कर सुलाह करानी पड़ी; "नहीं-नहीं बेटा! रोते नहीं है!" मैंने स्तुति को अपने गले लगा कर थोड़े लाड कर रोने से रोका और नेहा को मूक इशारे से शांत रहने को कहा|
स्तुति का रोना सुन माँ, आयुष और संगीता बैठक में आये तो नेहा ने सबको सारी बात बताई| नेहा की सारी बात सुन आयुष और संगीता ने भी स्तुति की शिकायतें शुरू कर दी;
आयुष: दादी जी, ये छोटी सी बच्ची है न बहुत तंग करती है मुझे! मैं अगर पापा के पास जाऊँ न तो ये मेरे बाल खींचने लगती है! मैं और पापा अगर छत पर बैट-बॉल खेल रहे हों तो ये वहाँ रेंगते हुए आ जाती है, फिर ये पापा जी की टांगों से लिपट कर हमारा खेल रोक देती है!
आयुष ने पहल करते हुए अपनी छोटी बहन की शिकायत की|
संगीता: मेरे साथ भी ये यही करती है माँ! रात को सोते समय ये मुझे दूर धकलने लगती है, मानो पूरा पलंग इसी का हो! इनकी (मेरी) गैरहाजरी में अगर मैं इस शैतान को खाना खिलाऊँ तो ये खाने में इतने ड्रामे करती है की क्या बताऊँ?! एक दिन तो इसने सारा खाना गिरा दिया था!
संगीता ने भी अपनी बात में थोड़ा नमक-मिर्च लगा कर स्तुति की शिकायत की|
नेहा: दादी जी, जब भी मैं पापा जी के पास कहानी सुनने जाती हूँ तो ये शैतान मुझे कहानी सुनने नहीं देती| बीच में "आवव ववव...ददद...आ" बोलकर कहानी सुनने ही नहीं देती, अगर इसे (स्तुति को) रोको तो ये मुझे जीभ दिखा कर खी-खी करने लगती है!
जब सब स्तुति की शिकायत कर रहे थे तो नेहा ने भी स्तुति की एक और शैतानी माँ को गिना दी!
मम्मी, बहन, भाई सब के सब एक नन्ही सी जान की शिकायत करने में लगे थे| ऐसे में बेचारी बच्ची का उदास हो जाना तो बनता था न?! स्तुति एकदम से खामोश हो कर मेरे सीने से लिपट गई| माँ ने जब स्तुति को यूँ चुप-चाप देखा तो वो माँ-बेटा-बेटी को चुप कराते हुए बोलीं;
माँ: अच्छा बस! अब कोई मेरी शूगी (स्तुति) की शिकायत नहीं करेगा|
संगीता, नेहा और आयुष को चुप करवा माँ ने स्तुति को पुकारा;
माँ: शूगी ...ओ शूगी!
अपनी दादी जी द्वारा नाम पुकारे जाने पर स्तुति अपनी दादी जी को देखने लगी| माँ ने अपनी दोनों बाहें खोल कर स्तुति को अपने पास बुलाया मगर स्तुति माँ की गोदी में नहीं गई, बल्कि उसके चेहरे पर अपनी दादी जी के चेहरे पर मुस्कान देख प्यारी सी मुस्कान दौड़ गई! मैं स्तुति को ले कर माँ की बगल में बैठ गया, माँ ने स्तुति का हाथ पकड़ कर चूमा और स्तुति का बचाव करने लग पड़ीं;
माँ: मेरी शूगी इतनी छोटी सी बच्ची है, उसे क्या समझ की क्या सही है और क्या गलत?! हाँ वो बेचारी मानु से ज्यादा प्यार करती है तो क्या ये उसकी गलती हो गई?! नेहा बेटा, तू तो सबसे बड़ी है और तुझे स्तुति को गुस्सा करने की बजाए उसे प्यार से समझना चाहिए| ये दिन ही हैं स्तुति के बोलना सीखने के इसलिए वो बेचारी कुछ न कुछ बोलने की कोशिश करती रहती है, अरे तुझे तो स्तुति को बोलना सीखना चाहिए|
और तू आयुष, अगर स्तुति तुझे और मानु को बैट-बॉल नहीं खेलने देती तो उसे भी अपने साथ खिलाओ| स्तुति बैटिंग नहीं कर सकती मगर बॉल पकड़ कर तो ला सकती है न?! फिर तुम दोनों बाप-बेटे उसके साथ कोई दूसरा खेल खेलो!
और तू संगीता बहु, छोटे बच्चे नींद में लात मारते ही हैं| ये मानु क्या कम था, अरे जब ये छोटा था तो तो नींद में मुझसे लिपट कर मुझे ही लात मार देता था| लेकिन जब बड़ा होने लगा तो समझदार हो गया और सुधर गया, उसी तरह स्तुति भी बड़ी हो कर समझदार हो जाएगी और लात मारना बंद कर देगी|
माँ ने एक-एक कर तीनों माँ-बेटा-बेटी को प्यार से समझा दिया था, जिसका तीनों ने बुरा नहीं माना| हाँ इतना जर्रूर था की तीनों प्यारभरे गुस्से से स्तुति को देख रहे थे| जब माँ ने तीनों को स्तुति को इस तरह देखते हुए पाया तो उन्होंने किसी आर्मी के जर्नल की तरह तीनों को काम पर लगा दिया;
माँ: बस! अब कोई मेरी शूगी को नहीं घूरेगा! चलो तीनों अपने-अपने काम करो, वरना तीनों को बाथरूम में बंद कर दूँगी!
माँ की इस प्यारभरी धमकी को सुन तीनों बहुत हँसे और कमाल की बात ये की अपनी मम्मी, बड़े भैया तथा दीदी को हँसता हुआ देख स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी!
जारी रहेगा भाग - 20 (4) में...
Behad khoobsuratइकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 (3)
अब तक अपने पढ़ा:
शाम के समय जब बच्चे सो रहे थे तब संगीता ने आयुष की शादी करने की जिद्द को माँ से साझा किया तो माँ को खूब हँसी आई| जब आयुष सो कर उठा तो माँ उसे लाड करते हुए बोलीं; "बेटा, अभी तू छोटा है, अभी तेरा ध्यान पढ़ाई में और थोड़ा बहुत मौज-मस्ती करने में होना चाहिए| ये शादी-वादी की बात हम तब सोचेंगे जब तू बड़ा हो जायेगा!" आयुष को अपनी दादी जी की बात अच्छी लगी इसलिए वो खुश होते हुए अपनी दादी जी से लिपट गया|
अब आगे:
आयुष तो जब बड़ा होता तब होता, अभी तो स्तुति की मस्तियाँ जारी थीं| स्तुति को अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलते देख आयुष को कुछ ज्यादा ही मज़ा आता था, वो अक्सर अपनी छोटी बहन की देखा-देखि अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलता तथा स्तुति का रास्ता रोक उसके सर से सर भिड़ा कर धीरे-धीरे स्तुति को पीछे धकेलने की कोशिश करता| दोनों बच्चों को यूँ एक दूसरे को पीछे धकेलते हुए देख माँ, मुझे और संगीता को बड़ा मज़ा आता, ऐसा लगता मानो हमारी आँखों के सामने एनिमल प्लेनेट (animal planet) चल रहा हो, जिसमें दो छोटी बकरियाँ एक दूसरे को पीछे धकेलने का खेल खेल रही हों!
ऐसे ही एक दिन की बात है, मैं शाम क लौटा तो दोनों भाई बहन सर से सर भिड़ाये एक दूसरे को पीछे धकेलने में लगे थे की तभी आयुष ने अपनी छोटी बहन से हारने का ड्रामा किया और मुझे भी अपने साथ ये खेल-खेलने को कहा| दोनों बच्चों को देख मेरे भीतर का बच्चा जाग गया और मैं भी अपने दोनों-हाथों-पाँव पर आ गया| "बेटा, हम है न रेलगाड़ी वाला खेल खेलते हैं|" मैंने उस दिन एक नए खेल का आविष्कार किया था और आयुष इस खेल के नियम जानने को उत्सुक था| मैंने आवाज़ दे कर नेहा को भी इस खेल से जुड़ने को बुलाया और सभी को सारे नियम समझाये|
चूँकि मेरा डील-डोल बच्चों के मुक़ाबले बड़ा था इसलिए मैं बच्चों की रेलगाडी का इंजन बना, मेरे पीछे लगी छोटी सी डाक वाली बोगी यानी के स्तुति, फिर लगा फर्स्ट क्लास स्लीपर का डिब्बा यानी आयुष और अंत में रेलगाड़ी को झंडी दिखाने वाले गार्ड साहब का डिब्बा यानी नेहा| इस पूरे खेल में नेहा की अहम भूमिका थी क्योंकि उसे ही मेरे पीछे लगी डाक वाली बोगी यानी के स्तुति को सँभालना था क्योंकि ये वाली बोगी बड़ी नटखट थी और इंजन को छोड़ अलग पटरी पर दौड़ सकती थी!
खेल शुरू हुआ और मैंने इंजन बनते हुए आगे-आगे अपने दोनों पाँवों और हाथों के बल चलना शुरू किया| जब मैं आगे चला तो स्तुति भी मेरे पीछे-पीछे खिलखिलाकर हँसते हुए चलने लगी, स्तुति के पीछे आयुष चलने लगा और अंत में गार्ड साहब की बोगी यानी नेहा भी चल पड़ी| अभी हमारी ये रेल गाडी माँ के कमरे से निकल बैठक की तरफ मुड़ी ही थी की नटखट स्तुति ने अलग पटरी पकड़ी और वो रसोई की तरफ घूमने लगी! स्तुति को रसोई की तरफ जाते हुए देख आयुष और नेहा ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया; "पापा जी देखो, स्तुति दूसरी पटरी पर जा रही है!" बच्चों का शोर सुन मैंने स्तुति को अपने पीछे आने को कहा तो स्तुति जहाँ खड़ी थी वहीं बैठ गई और खिलखिलाकर हँसने लगी| स्तुति को अपने मन की करनी थी इसलिए मैंने स्तुति को ही इंजन बनाया और मैं उसके पीछे दूसरे इंजन के रूप में जुड़ गया|
मेरे, एक पुराने इंजन के मुक़ाबले स्तुति रुपी इंजन बहुत तेज़ था! उसे अपने पीछे लगे डब्बे खींचने का शौक नहीं था, उसे तो बस तेज़ी से दौड़ना पसंद था इसलिए स्तुति हम सभी को पीछे छोड़ छत की ओर दौड़ गई! पीछे रह गए हम बाप-बेटा-बेटी एक दूसरे को देख कर पेट पकड़ कर हँसने लगे! "ये कैसा इंजन है पापा जी, जो अपने डब्बों को छोड़ कर खुद अकेला आगे भाग गया!" नेहा हँसते हुए बोली| हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ज़मीन पर बैठे हँस रहे थे की इतने में हमारा इंजन यानी की स्तुति वापस आ गई और हमें हँसते हुए देख अस्चर्य से हमें देखने लगी! ऐसा लगा मानो कह रही हो की मैं पूरा चक्कर लगा कर आ गई और आप सब यहीं बैठे हँस रहे हो?! "चलो भई, सब स्तुति के पीछे रेलगाडी बनाओ|" मैंने दोनों बच्चों का ध्यान वापस स्तुति के पीछे रेलगाड़ी बनाने में लगाया| हम तीनों (मैं, आयुष और नेहा) स्तुति के पीछे रेलगाड़ी के डिब्बे बन कर लग तो गए मगर स्तुति निकली बुलेट ट्रैन का इंजन, वो स्टेशन से ऐसे छूटी की सीधा छत पर जा कर रुकी| जबकि हम तीनों धीरे-धीरे उसके पीछे रेंगते-रेंगते बाहर छत पर आये|
अब छत पर माँ और संगीता पहले ही बैठे हुए थे इसलिए जब उन्होंने मुझे बच्चों के साथ बच्चा बन कर रेलगाड़ी का खेल खेलते हुए देखा तो दोनों सास-पतुआ बड़ी जोर से हँस पड़ीं! "पहुँच गई रेल गाडी प्लेटफार्म पर?!" माँ हँसते हुए बोलीं| फिर माँ ने मुझे अपने पास बैठने को कहा तो मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठ गया| मुझे घर आते ही बच्चों के साथ खेलते हुए देख संगीता मुझसे नाराज़ होते हुए माँ से मेरी शिकायत करते हुए बोली; "देखो न माँ, घर आते ही बिना मुँह-हाथ धोये भूखे पेट बच्चों के साथ खेलने लग गए!"
इधर माँ को मेरे इस बचपने को देख मुझ पर प्यार आ रहा था इसलिए वो मेरा बचाव करते हुए बोलीं; " बेटा, बच्चों का मन बहलाने के लिए कई बार माँ-बाप को उनके साथ खेलना पड़ता है| जब ये शैतान (मैं) छोटा था तो मुझे अपने साथ बैट-बॉल, चिड़ी-छक्का (badminton), कर्रम (carrom), साँप-सीढ़ी, लूडो और पता नहीं क्या-क्या खेलने को कहता था| अब इसके साथ कोई दूसरा खेलने वाला बच्चा नहीं था इसलिए मैं ही इसके साथ थोड़ा-बहुत खेलती थी|" माँ की बात सुन बच्चों की मेरे बचपने के किस्से सुनने की उत्सुकता जाग गई और माँ भी पीछे नहीं रहीं, उन्होंने बड़े मज़े ले-ले कर मेरे बचपन के किस्से सुनाने शुरू किये| मेरे बचपने का सबसे अच्छा किस्सा वो था जब मैं लगभग 2 साल का था और छत पर पड़े गमले में पानी डालकर, उसमें लकड़ी घुसेड़ कर मिटटी को मथने का खेल खेलता| जब माँ पूछतीं की मैं क्या कर रहा हूँ तो मैं कहता की; "मैं खिचड़ी बना रहा हूँ!" मेरे जवाब सुन माँ को बहुत हँसी आती| वो बात अलग है की मैं अपनी बनाई ये मिटटी की खिचड़ी न कभी खुद खाता था न माँ-पिताजी को खाने को कहता था!
खैर, स्तुति को बच्चों के साथ खेलने को छोड़ कर मैं जैसे ही उठा की स्तुति मेरे पीछे-पीछे अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगी; "बेटा, मैं बाथरूम हो कर कपड़े बदलकर आ रहा हूँ|" मैंने स्तुति को समझाते हुए कहा| मुझे लगा था की स्तुति मेरी बात समझ गई होगी मगर मेरी लाड़ली को मेरे बिना चैन कहाँ पड़ता था?! इधर मैं बाथरूम में घुस कमोड पर बैठ कर शौच कर रहा था, उधर स्तुति रेंगते-रेंगते मेरे पीछे आ गई| वैसे तो बाथरूम का दरवाजा बंद था परन्तु दरवाजे पर से कुण्डी मैंने स्तुति के गलती से बाथरूम में बंद हो जाने के डर से हटवा दी थी इस कारण दरवाजा केवल उढ़का हुआ था| स्तुति खदबद-खदबद कर दरवाजे तक आई और दरवाजे के नीचे से आ रही रौशनी को देख स्तुति ने अपना हाथ दरवाजे के नीचे से अंदर की ओर खिसका दिया| जैसे ही मुझे स्तुति का छोटा सा हाथ नज़र आया मैं समझ गया की मेरी शैतान बिटिया मेरे पीछे-पीछे बाथरूम तक आ गई है!
"बेटा मैं छी-छी कर रहा हूँ, आप थोड़ी देर रुको मैं आता हूँ!" मैं बाथरूम के भीतर से मुस्कुराते हुए बोला| परन्तु मेरी बिटिया को कहाँ कुछ समझ आता उसने सोचा की मैं उसे अंदर बुला रहा हूँ इसलिए स्तुति बहुत खुश हुई| स्तुति ने अब तक ये सीख लिया था की दरवाजे को धक्का दो तो दरवाजा खुल जाता है इसलिए मेरी बिटिया बाथरूम का दरवाज़ा भीतर की ओर धकेलते हुए अंदर आ गई| मुझे कमोड पर बैठा देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो मेरे सामने ही बैठ कर हँसने लगी! "बेटा, आप बहार जाओ, पापा जी को छी-छी करनी है!" मैंने स्तुति को प्यार से समझाया मगर स्तुति कुछ समझे तब न?! वो तो खी-खी कर हँसने लगी! स्तुति को हँसते हुए देख मेरी भी हँसी छूट गई! मुझे हँसते हुए देख स्तुति को बहुत मज़ा आया और वो हँसते हुए मेरे नज़दीक आने लगी! अब मैं जिस हालत में था उस हालत में मैं स्तुति को अपने नज़दीक नहीं आने देना चाहता था इसलिए मैंने अपने दोनों हाथ स्तुति को दिखा कर रोकते हुए बोला; "नहीं-नहीं बेटा! वहीं रुको!" इस बार स्तुति ने मेरी बात मान ली और अपनी जगह बैठ कर ही खी-खी कर हँसने लगी!
उधर, संगीता चाय बनाने के लिए अंदर आई थी और बाथरूम से आ रही हम बाप-बेटी के हँसी-ठहाके की आवाज़ सुन वो बाथरूम में आ गई| मुझे कमोड पर हँसता हुआ सिकुड़ कर बैठा देख और स्तुति को बाथरूम के फर्श पर ठहाका लगा कर हँसते हुए देख संगीता भी खी-खी कर हँसने लगी! "जान, प्लीज स्तुति को बहार ले जाओ वरना अभी दोनों बच्चे यहाँ आ जायेंगे!" मैंने अपनी हँसी रोकते हुए कहा| "आजा मेरी लाडो!" ये कहते हुए संगीता ने स्तुति को उठाया और बाहर छत पर ले जा कर सबको ये किस्सा बताने लगी| जब मैं कपड़े बदलकर छत पर आया तो सभी हँस रहे थे| "ये शैतान की नानी किसी को चैन से साँस नहीं लेने देती!" माँ हँसते हुए बोलीं| स्तुति को कुछ समझ नहीं आया था मगर वो कहकहे लगाने में व्यस्त थी|
बच्चों को मैं हर प्रकार से खुश रख रहा था, उन्हें इतना लाड-प्यार दे रहा था जिसकी मैं कभी कल्पना भी नहीं की थी| परन्तु अभी भी एक सुख था जिससे मेरे बच्चे और मैं वंचित थे, लेकिन नियति ने मुझे और मेरे बच्चों को इस सुख को भोगने का भी मौका दे दिय| एक दिन की बात है, मैं और स्तुति अकेले रेलगाड़ी वाला खेल खेलने में व्यस्त थे जबकि दोनों बच्चे अपना-अपना होमवर्क करने में व्यस्त थे| मेरी और स्तुति की हँसने की आवाज़ सुन आयुष अपना आधा होमवर्क छोड़ कर आ गया, उसने मुझे स्तुति के साथ रेल गाडी वाला खेल खेलते हुए देखा तो पता नहीं अचानक आयुष को क्या सूझा की वो दबे पॉंव मेरे पास आया और मेरी पीठ पर बैठ गया! आयुष के मेरे पीठ पर बैठते ही एक पिता के मन में अपने बच्चों को घोडा बनकर सैर कराने की इच्छा ने जन्म ले लिया| "बेटा मुझे कस कर पकड़ना|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और धीरे-धीरे चलने लगा| मेरे धीरे-धीरे चलने से आयुष को मज़ा आने लगा और वो ख़ुशी से खिलखिलाने लगा| स्तुति ज़मीन पर बैठी हुई अपने बड़े भैया को मेरी पीठ पर सवारी करते देख बहुत प्रसन्न हुई और उसने मेरे पीछे-पीछे चलना शुरू कर दिया| हम तीनों बाप-बेटा-बेटी का हँसी-ठहाका सुन नेहा अपनी पढ़ाई छोड़ कर आई और ये अद्भुत दृश्य देख कर बहुत खुश हुई| जब मैंने नेहा को देखा तो मैंने उसे अपने पास बुलाया; "आयुष बेटा, अब आपकी दीदी की बारी|" मैंने कहा तो आयुष नीचे उतर गया और उसकी जगह नेहा मेरी पीठ पर बैठ गई|
जब नेहा छोटी थी और मैं गाँव में था, तब मैंने नेहा को अपनी पद्दी अर्थात अपनी पीठ पर लाद कर खेलता था, परन्तु आज मेरी पीठ पर घोड़े की सवारी करना नेहा को कुछ अधिक ही पसंद आया था| नेहा को एक चक्कर घुमा कर मैंने दोनों बच्चों से स्तुति को पकड़ कर मेरी पीठ पर बिठाने को कहा, ताकि मेरी बिटिया रानी भी अपने पापा जी की पीठ की सवारी कर ले| आयुष और नेहा दोनों ने स्तुति को दाहिने-बहिने तरफ से सँभाला और मेरी पीठ पर बिठा दिया| मेरी पीठ पर बैठते ही स्तुति ने मेरी टी-शर्ट अपनी दोनों मुट्ठी में जकड़ ली| जैसे ही मैं धीरे-धीरे चलने लगा स्तुति को मज़ा आने लगा और उसकी किलकारियाँ गूँजने लगी! स्तुति के लिए ये एक नया खेल था और उसे इस खेल में बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था|
स्तुति को मस्ती से किलकारियाँ मारते हुए देख दोनों भाई-बहन भी ख़ुशी से हँस रहे थे| पूरे घर में जब बच्चों की खिलखिलाहट गूँजी तो माँ और संगीता इस आवाज़ को सुन खींचे चले आये| दोनों सास-पतुआ मुझे घोडा बना हुआ देख और मेरी पीठ पर स्तुति को सवारी करते देख ठहाका लगाने लगे| पूरे घर भर में मेरी बिटिया रानी के कारण हँसी का ठहाका गूँजने लगा था|
उस दिन से बच्चों को मेरी पीठ पर सवारी करने का नियम बन गया| तीनों बच्चे बारी-बारी से मेरी पीठ पर सवारी करते और 'चल मेरे घोड़े टिक-टिक' कहते हुए ख़ुशी से खिलखिलाते| बच्चों को अपनी पीठ की सवारी करा कर मुझे मेहताने के रूप में तीनों बच्चों से पेट भर पप्पी मिलती थी जो की मेरे लिए सब कुछ था| घोड़ सवारी करने के बाद तीनों बच्चे मुझे ज़मीन पर लिटा देते और मुझसे लिपटते हुए मेरे दोनों गाल अपनी मीठी-मीठी पप्पियों से गीली कर देते| कई बार मुझे यूँ ज़मीन पर लिटा कर पप्पियाँ देने में तीनों बच्चों के बीच पर्तिस्पर्धा हो जाती थी|
ऐसे ही एक दिन की बात है, दोपहर का समय था और स्तुति सोइ हुई थी| मैं जल्दी घर पहुँचा था इसलिए थकान मिटाने के लिए कपड़े बदल कर स्तुति की बगल में लेटा था| स्तुति को देखकर मेरा मन उसकी पप्पी लेने को किया इसलिए मैंने स्तुति को गोल-मटोल गालों को चूम लिया| मेरे इस लालच ने मेरी बिटिया की नींद तोड़ दी और स्तुति जाग गई| मुझे अपने पास देख स्तुति करवट ले कर उठी और अपने दोनों हाथों-पाँवों पर चलते हुए मेरे पास आई तथा मेरी छाती पर चढ़ कर मेरे दाएँ गाल पर अपने छोटे-छोटे होंठ टिका कर मेरी पप्पी लेने लगी| अपनी मम्मी की तरह स्तुति को भी मेरे गाल गीले करने में मज़ा आता था इसलिए स्तुति बड़े मजे ले कर अपनी किलकारियों से शोर मचा कर मेरी पप्पी लेने लगी| स्तुति की किलकारियाँ सुन आयुष कमरे में दौड़ा आया और स्तुति को मेरी पप्पी लेता देख शोर मचाते हुए बाहर भाग गया; "दीदी...मम्मी...देखो स्तुति को...वो अकेले पापा जी की सारी पप्पी ले रही है!" आयुष के हल्ला मचाने से नेहा उसके साथ दौड़ती हुई कमरे में आई और स्तुति को प्यार से धमकाते हुए बोली; "शैतान लड़की! अकेले-अकेले पापा जी की सारी पप्पियाँ ले रही है!" इतना कह नेहा ने स्तुति को पीछे से गोदी में उठाया और उसे मुझसे दूर कर मेरे दाएँ गाल की पप्पी लेने लगी| वहीं, आयुष भी पीछे नहीं रहा उसने भी मेरे बाएँ गाल की पप्पी लेनी शुरू कर दी| अब रह गई बेचारी स्तुति जिसे उसी की बड़ी बहन ने उसी के पापा जी की पप्पी लेने से रोकने के लिए दूर कर दिया था|
जिस प्रकार संगीता मुझ पर हक़ जताती थी, नेहा मुझ पर हक़ जताती थी उसी प्रकार स्तुति भी मुझ पर अभी से हक़ जताने लगी थी| जब वो मेरी गोदी में होती तो वो किसी को भी मेरे आस-पास नहीं रहने देती थी| ऐसे में जब नेहा ने उसे पीछे से उठा कर मेरी पप्पी लेने से रोका तो स्तुति को गुस्सा आ गया! मेरी बिटिया रानी हार न मानते हुए अपने दोनों हाथों-पाँवों पर रेंगते हुए मेरे नज़दीक आई और सबसे पहले अपने बड़े भैया को दूर धकेलते हुए मेरे पेट पर चढ़ गई तथा धीरे-धीरे रेंगते हुए मेरे गाल तक पहुँची और फिर अपनी बड़ी दीदी को मुझसे दूर धकेलने की कोशिश करने लगी|
आयुष छोटा था और स्तुति को चोट न लग जाये इसलिए वो अपने आप पीछे हट गया था मगर नेहा बड़ी थी और थोड़ी जिद्दी भी इसलिए स्तुति के उसे मुझसे परे धकेलने पर भी वो चट्टान की तरह कठोर बन कर रही और मेरे दाएँ गाल से अपने होंठ भिड़ाये हँसने लगी| इधर जब स्तुति ने देखा की उसकी दीदी अपनी जगह से हट नहीं रही तो उसने अपना झूठ-मूठ का रोना शुरू कर दिया! ये झूठ-मूठ का रोना स्तुति तब रोती थी जब वो किसी का ध्यान अपने ऊपर केंद्रित करवाना चाहती हो|
खैर, स्तुति के रोने से हम सभी डरते थे क्योंकि एक बार स्तुति का साईरन बज जाता तो फिर जल्दी ये साईरन बंद नहीं होता था इसीलिए स्तुति का झूठ-मूठ का रोना सुन नेहा डर के मारे खुद दूर हो गई| अब स्तुति को उसके पापा जी के दोनों गाल पप्पी देने के लिए मिल गए थे इसलिए स्तुति ने मेरे दाएँ गाल पर अपने नाज़ुक होंठ टिकाये और मेरी पप्पी लेते हुए किलकारी मारने लगी| मेरी शैतान बिटिया रानी को आज अपनी इस छोटी सी जीत पर बहुत गर्व हो रहा था|
इधर, बेचारे आयुष और नेहा मुँह बाए स्तुति को देखते रहे की कैसे उनकी छोटी सी बहना इतनी चंट निकली की उसने अपने बड़े भैया और दीदी को अपने पापा जी से दूर कर कब्ज़ा जमा लिया!
उसी दिन से स्तुति ने मुझ पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया था| कहने की जर्रूरत तो नहीं की स्तुति ने ये गुण अपनी मम्मी से ही सीखा था| जिस प्रकार संगीता मेरे ऊपर हक़ जमाती थी, अपनी प्रेगनेंसी के दिनों में हमेशा मेरा ध्यान अपने ऊपर खींचने की कोशिश करती थी, उसी प्रकार स्तुति भी बस यही चाहती की मैं बस उसी को लाड-प्यार करूँ| मेरी बिटिया रानी ने ये हक़ जमाने वाला गुण अपनी मम्मी से पाया था! उसके (स्तुति के) अलावा अगर मेरा ध्यान नेहा या आयुष की तरफ जाता तो स्तुति कुछ न कुछ कर के फौरन मेरा ध्यान अपने ऊपर खींचती|
ऐसे ही एक दिन की बात है, रविवार का दिन था और हम बाप-बेटी टी.वी. पर कार्टून देख रहे थे| मैं आलथी-पालथी मारकर सोफे पर बैठा था और स्तुति मेरी गोदी में बैठी थी| मेरा बायाँ हाथ स्तुति के सामने गाडी की सीटबेल्ट की तरह था ताकि कहीं स्तुति आगे की ओर न फुदके तथा नीचे गिर कर चोटिल हो जाये| वहीं मेरी चुलबुली बिटिया रानी कार्टून देखते हुए बार-बार मेरा ध्यान टी.वी. की ओर खींचती और अपने हाथ के इशारे से कुछ समझाने की कोशिश करती| अब मेरे कुछ पल्ले तो पड़ता नहीं था की मेरी बिटिया रानी क्या कहना चाह रही है परन्तु अपनी बिटिया की ख़ुशी के लिए मैं "हैं? अच्छा? भई वाह!" कह स्तुति की बातों में अपनी दिलचस्पी दिखाता|
ठीक तभी नेहा भी अपनी पढ़ाई खत्म कर के मेरे पास बैठ गई और कार्टून देखने लगी| नेहा को देख मैंने अपना दाहिना हाथ उठा कर नेहा के कँधे पर रख दिया| कुछ पल बाद जब स्तुति ने देखा की मेरा एक हाथ नेहा के कँधे पर है तो मेरी छोटी सी बिटिया रानी को जलन हुई और वो अपनी दीदी को दूर धकेलने लगी| अपनी छोटी बहन द्वारा धकेले जाने पर नेहा सब समझ गई और चिढ़ते हुए बोली; "छटाँक भर की है तू और मेरे पापा जी पर हक़ जमा रही है?! सुधर जा वरना मारब एक ठो तो सोझाये जैहो!" नेहा के मुँह से देहाती सुनना मुझे बड़ा अच्छा लगता था इसलिए मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, वहीं अपनी बड़ी दीदी द्वारा धमकाए जाने पर स्तुति डर के मारे रोने लगी| अतः मुझे ही बीच में बोल कर सुलाह करानी पड़ी; "नहीं-नहीं बेटा! रोते नहीं है!" मैंने स्तुति को अपने गले लगा कर थोड़े लाड कर रोने से रोका और नेहा को मूक इशारे से शांत रहने को कहा|
स्तुति का रोना सुन माँ, आयुष और संगीता बैठक में आये तो नेहा ने सबको सारी बात बताई| नेहा की सारी बात सुन आयुष और संगीता ने भी स्तुति की शिकायतें शुरू कर दी;
आयुष: दादी जी, ये छोटी सी बच्ची है न बहुत तंग करती है मुझे! मैं अगर पापा के पास जाऊँ न तो ये मेरे बाल खींचने लगती है! मैं और पापा अगर छत पर बैट-बॉल खेल रहे हों तो ये वहाँ रेंगते हुए आ जाती है, फिर ये पापा जी की टांगों से लिपट कर हमारा खेल रोक देती है!
आयुष ने पहल करते हुए अपनी छोटी बहन की शिकायत की|
संगीता: मेरे साथ भी ये यही करती है माँ! रात को सोते समय ये मुझे दूर धकलने लगती है, मानो पूरा पलंग इसी का हो! इनकी (मेरी) गैरहाजरी में अगर मैं इस शैतान को खाना खिलाऊँ तो ये खाने में इतने ड्रामे करती है की क्या बताऊँ?! एक दिन तो इसने सारा खाना गिरा दिया था!
संगीता ने भी अपनी बात में थोड़ा नमक-मिर्च लगा कर स्तुति की शिकायत की|
नेहा: दादी जी, जब भी मैं पापा जी के पास कहानी सुनने जाती हूँ तो ये शैतान मुझे कहानी सुनने नहीं देती| बीच में "आवव ववव...ददद...आ" बोलकर कहानी सुनने ही नहीं देती, अगर इसे (स्तुति को) रोको तो ये मुझे जीभ दिखा कर खी-खी करने लगती है!
जब सब स्तुति की शिकायत कर रहे थे तो नेहा ने भी स्तुति की एक और शैतानी माँ को गिना दी!
मम्मी, बहन, भाई सब के सब एक नन्ही सी जान की शिकायत करने में लगे थे| ऐसे में बेचारी बच्ची का उदास हो जाना तो बनता था न?! स्तुति एकदम से खामोश हो कर मेरे सीने से लिपट गई| माँ ने जब स्तुति को यूँ चुप-चाप देखा तो वो माँ-बेटा-बेटी को चुप कराते हुए बोलीं;
माँ: अच्छा बस! अब कोई मेरी शूगी (स्तुति) की शिकायत नहीं करेगा|
संगीता, नेहा और आयुष को चुप करवा माँ ने स्तुति को पुकारा;
माँ: शूगी ...ओ शूगी!
अपनी दादी जी द्वारा नाम पुकारे जाने पर स्तुति अपनी दादी जी को देखने लगी| माँ ने अपनी दोनों बाहें खोल कर स्तुति को अपने पास बुलाया मगर स्तुति माँ की गोदी में नहीं गई, बल्कि उसके चेहरे पर अपनी दादी जी के चेहरे पर मुस्कान देख प्यारी सी मुस्कान दौड़ गई! मैं स्तुति को ले कर माँ की बगल में बैठ गया, माँ ने स्तुति का हाथ पकड़ कर चूमा और स्तुति का बचाव करने लग पड़ीं;
माँ: मेरी शूगी इतनी छोटी सी बच्ची है, उसे क्या समझ की क्या सही है और क्या गलत?! हाँ वो बेचारी मानु से ज्यादा प्यार करती है तो क्या ये उसकी गलती हो गई?! नेहा बेटा, तू तो सबसे बड़ी है और तुझे स्तुति को गुस्सा करने की बजाए उसे प्यार से समझना चाहिए| ये दिन ही हैं स्तुति के बोलना सीखने के इसलिए वो बेचारी कुछ न कुछ बोलने की कोशिश करती रहती है, अरे तुझे तो स्तुति को बोलना सीखना चाहिए|
और तू आयुष, अगर स्तुति तुझे और मानु को बैट-बॉल नहीं खेलने देती तो उसे भी अपने साथ खिलाओ| स्तुति बैटिंग नहीं कर सकती मगर बॉल पकड़ कर तो ला सकती है न?! फिर तुम दोनों बाप-बेटे उसके साथ कोई दूसरा खेल खेलो!
और तू संगीता बहु, छोटे बच्चे नींद में लात मारते ही हैं| ये मानु क्या कम था, अरे जब ये छोटा था तो तो नींद में मुझसे लिपट कर मुझे ही लात मार देता था| लेकिन जब बड़ा होने लगा तो समझदार हो गया और सुधर गया, उसी तरह स्तुति भी बड़ी हो कर समझदार हो जाएगी और लात मारना बंद कर देगी|
माँ ने एक-एक कर तीनों माँ-बेटा-बेटी को प्यार से समझा दिया था, जिसका तीनों ने बुरा नहीं माना| हाँ इतना जर्रूर था की तीनों प्यारभरे गुस्से से स्तुति को देख रहे थे| जब माँ ने तीनों को स्तुति को इस तरह देखते हुए पाया तो उन्होंने किसी आर्मी के जर्नल की तरह तीनों को काम पर लगा दिया;
माँ: बस! अब कोई मेरी शूगी को नहीं घूरेगा! चलो तीनों अपने-अपने काम करो, वरना तीनों को बाथरूम में बंद कर दूँगी!
माँ की इस प्यारभरी धमकी को सुन तीनों बहुत हँसे और कमाल की बात ये की अपनी मम्मी, बड़े भैया तथा दीदी को हँसता हुआ देख स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी!
जारी रहेगा भाग - 20 (4) में...
Behtareen update bhaiइकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 (4)
अब तक अपने पढ़ा:
माँ ने एक-एक कर तीनों माँ-बेटा-बेटी को प्यार से समझा दिया था, जिसका तीनों ने बुरा नहीं माना| हाँ इतना जर्रूर था की तीनों प्यारभरे गुस्से से स्तुति को देख रहे थे| जब माँ ने तीनों को स्तुति को इस तरह देखते हुए पाया तो उन्होंने किसी आर्मी के जर्नल की तरह तीनों को काम पर लगा दिया;
माँ: बस! अब कोई मेरी शूगी को नहीं घूरेगा! चलो तीनों अपने-अपने काम करो, वरना तीनों को बाथरूम में बंद कर दूँगी!
माँ की इस प्यारभरी धमकी को सुन तीनों बहुत हँसे और कमाल की बात ये की अपनी मम्मी, बड़े भैया तथा दीदी को हँसता हुआ देख स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी!
अब आगे:
स्तुति के साथ दिन प्यार से बीत रहे थे और आखिर वो दिन आ ही गया जब मेरे द्वारा संगीता के लिए आर्डर किये हुए कपड़े साइट पर डिलीवर हुए| अपने उत्साह के कारण मैंने वो पार्सल एक कोने में जा कर खोल लिया और अंदर जो कड़पे आये थे उनका मुआयना किया, कपड़े बिलकुल वही थे जो मैंने आर्डर किये थे| चिंता थी तो बस एक बात की, क्या संगीता ये कपड़े पहनेगी? या फिर अपनी लाज-शर्म के कारण वो इन्हें पहनने से मना कर देगी?! "मेरा काम था कपड़े खरीदना, पहनना न पहनना संगीता के ऊपर है| कम से कम अब वो मुझसे ये शिकायत तो नहीं करेगी की मैं हमारे रिश्ते में कुछ नयापन नहीं ला रहा?!" मैं अपना पल्ला झाड़ते हुए बुदबुदाया| मेरी ये बात काफी हद्द तक सही थी, मैंने अपना कर्म कर दिया था अब इस कर्म को सफल करना या विफल करना संगीता के हाथ में था|
खैर, मैं कपड़ों का पैकेट ले कर घर पहुँचा तो मुझे दोनों बच्चों ने घेर लिया| आयुष और नेहा को लगा की इस पैकेट में मैं जर्रूर उनके लिए कुछ लाया हूँ इसलिए वो मुझसे पैकेट में क्या है उन्हें दिखाने की जिद्द करने लगे| अब बच्चों के सामने ये कपड़े दिखाना बड़ा शर्मनाक होता इसलिए मैं बच्चों को मना करते हुए बोला; "बेटा, ये आपके लिए नहीं है| ये किसी और के लिए है!" मैं बच्चों को समझा रहा था की इतने में संगीता आ गई और मेरे हाथ में ये पैकेट देख वो समझ गई की जर्रूर उसके लिए मँगाया हुआ गिफ्ट आ गया है इसलिए वो बीच में बोल पड़ी; "आयुष...नेहा...बेटा अपने पापा जी को तंग मत करो! ये लो 20/- रुपये और जा कर अपने लिए चिप्स-चॉकलेट ले आओ!" संगीता ने बड़ी चालाकी से बच्चों को चॉकलेट और चिप्स का लालच दे कर घर से बाहर भेज दिया|
बच्चों के जाने के बाद संगीता अपनी आँखें नचाते हुए मुझसे बोली; "आ गया न मेरा सरप्राइज?" संगीता की आँखों में एकदम से लाल डोरे तैरने लगे थे! वहीं संगीता को इन कपड़ों में कल्पना कर मेरी भी आँखों में एक शैतानी मुस्कान झलक रही थी!
अब चूँकि रात में हम मियाँ-बीवी ने रंगरलियाँ मनानी थी तो सबसे पहले हमें तीनों बच्चों को सुलाना था और ये काम आसान नहीं था! संगीता ने फौरन आयुष और नेहा को आवाज़ मारी और मेरी ड्यूटी लगते हुए बोली; "तीनों शैतानों को पार्क में खिला लाओ और आते हुए सब्जी ले कर आना|" संगीता की बात में छुपी हुई साजिश बस मैं जानता था और अपनी पत्नी की इस चतुराई पर मुझे आज गर्व हो रहा था!
बहार घूमने जाने की बात से दोनों बच्चे बहुत खुश थे और स्तुति वो तो बस मेरी गोदी में आ कर ही किलकारियाँ मारने में व्यस्त थी| हम चारों घर से सीधा पार्क जाने के लिए निकले, रास्ते भर स्तुति अपनी गर्दन घुमा-घुमा कर अपने आस-पास मौजूद लोगों, दुकानो, गाड़ियों को देखने लगी| हम पार्क पहुँचे तो नेहा खेलने के लिए चिड़ी-छक्का (badminton) ले कर आई थी तो दोनों भाई-बहन ने मिल कर वो खेलना शुरू कर दिया| वहीं हम बाप बेटी (मैं और स्तुति) पार्क की हरी-हरी घास पर बैठ कर आयुष और नेहा को खेलते हुए देखने लगे|
अपने आस-पास अन्य बच्चों को खेलते हुए देख और आँखों के सामने हरी-हरी घास को देख स्तुति का मन डोलने लग, उसने मेरी गोदी में से उतरने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया| मैंने स्तुति को गोदी से उतार कर घास पर बिठाया तो स्तुति का बाल मन हरी- हरी घास को चखने का हुआ, अतः उसने अपनी मुठ्ठी में घास भर कर खींच निकाली और वो ये घास खाने ही वाली थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया; "नहीं-नहीं बेटा! इंसान घास नहीं खाते!" मुझे अपना हाथ पकड़े देख स्तुति खिलखिला कर हँसने लगी, मानो कह रही हो की पापा जी मैं बुद्धू थोड़े ही हूँ जो घास खाऊँगी?!
मैं अपनी बिटिया रानी की हँसी में खोया था, उधर स्तुति ने अपना एक मन-पसंद जीव 'गिलहरी' देख लिया था| हमारे घर के पीछे एक पीपल का पेड़ है और उसकी डालें घर की छत तक आती हैं| उस पेड़ पर रहने वाली गिलहरी डाल से होती हुई हमारी छत पर आ जाती थी| जब स्तुति छत पर खेलने आने लगी तो गिलहरी को देख कर वो बहुत खुश हुई| गिलहरी जब अपने दोनों हाथों से पकड़ कर कोई चीज़ खाती तो ये दिर्श्य देख स्तुति खिलखिलाने लगती| गिलहरी देख स्तुति हमेशा उसे पकड़ने के इरादे से दौड़ पड़ती, लेकिन गिलहरी इतनी फुर्तीली होती है की वो स्तुति के नज़दीक आने से पहले ही भाग निकलती|
आज भी जब स्तुति ने पार्क में गिलहरी देखि तो वो मेरा ध्यान उस ओर खींचने लगी, स्तुति ने अपने ऊँगली से गिलहरी की तरफ इशारा किया और अपनी प्यारी सी, मुझे समझ न आने वाली जुबान में बोलने लगी| "हाँ बेटा जी, वो गिलहरी है!" मैंने स्तुति को समझाया मगर स्तुति को पकड़ने थी गिलहरी इसलिए वो अपने दोनों हाथों-पैरों पर रेंगती हुई गिलहरी के पास चल दी| मैं भी उठा और धीरे-धीरे स्तुति के पीछे चल पड़ा| परन्तु जैसे ही स्तुति गिलहरी के थोड़ा नज़दीक पहुँची, गिलहरी फट से पेड़ पर चढ़ गई!
मुझे लगा की स्तुति गिलहरी के भाग जाने से उदास होगी मगर स्तुति ने अपना दूसरा सबसे पसंदीदा जीव यानी 'कबूतर' देख लिया था! कबूतर स्तुति को इसलिए पसंद था क्योंकि कबूतर जब अपनी गर्दन आगे-पीछे करते हुए चलता था तो स्तुति को बड़ा मज़ा आता था| छत पर माँ पक्षियों के लिए पानी और दाना रखती थीं इसलिए शाम के समय स्तुति को उसका पसंदीदा जीव दिख ही जाता था|
खैर, पार्क में कबूतर देख स्तुति उसकी ओर इशारा करते हुए अपनी बोली में कुछ बोलने लगी, वो बात अलग है की मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा! "हाँ जी बेटा जी, वो कबूतर है!" मैंने स्तुति की कही बात का अंदाज़ा लगाते हुए कहा मगर इतना सुनते ही स्तुति रेंगते हुए कबूतर पकड़ने चल पड़ी! कबूतर अपने दूसरे साथी कबूतरों के साथ दाना खा रहा था, परन्तु जब सभी कबूतरों ने एक छोटी सी बच्ची को अपने नज़दीक आते देखा तो डर के मारे सारे कबूतर एक साथ उड़ गए! सारे कबूतरों को उड़ता हुआ देख स्तुति जहाँ थी वहीँ बैठ गई ओर ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| मैं अपनी प्यारी सी बिटिया के इस चंचल मन को देख बहुत खुश हो रहा था, मेरी बिटिया तो थोड़ी सी ख़ुशी पा कर ही ख़ुशी से फूली नहीं समाती थी|
बच्चों का खेलना हुआ तो मन कुछ खाने को करने लगा| पार्क के बाहर टिक्की वाला था तो हम चारों वहाँ पहुँच गए| मैं, आयुष और नेहा तो मसालेदार टिक्की खा सकते थे मगर स्तुति को क्या खिलायें? स्तुति को खिलाने के लिए मैंने एक पापड़ी ली और उसे फोड़ कर चूरा कर स्तुति को थोड़ा सा खिलाने लगा| टिक्की खा कर लगी थी मिर्च इसलिए हम सब कुछ मीठा खाने के लिए मंदिर जा पहुँचे| मंदिर में दर्शन कर हमें प्रसाद में मिठाई और स्तुति को खिलाने के लिए केला मिला| मैंने केले के छोटे-छोटे निवाले स्तुति को खिलाने शुरू किये और स्तुति ने बड़े चाव से वो फल रूपी केला खाया|
मंदिर से निकल कर हम सब्जी लेने लगे और ये ऐसा काम था जो की मुझे और आयुष को बिलकुल नहीं आता था| शुक्र है की नेहा को सब्जी लेना आता था इसलिए हम बाप-बेटे ने नेहा की बात माननी शुरू कर दी| नेहा हमें बता रही थी की उसकी मम्मी ने हमें कौन-कौन सी सब्जी लाने को कहा है| आलू-प्याज लेते समय नीचे झुकना था और चूँकि स्तुति मेरी गोदी में थी इसलिए मैंने इस काम में आयुष को नेहा की मदद करने में लगा दिया| आयुष जब टेढ़े-मेढ़े आलू-प्याज उठता तो नेहा उसे डाँटते हुए समझाती और सही आलू-प्याज कैसे लेना है ये सिखाती| फिर बारी आई टमाटर लेने की, टमाटर एक रेडी पर रखे थे जो की मैं बिना झुकाये उठा सकता था| वहीं आयुष की ऊँचाई रेडी से थोड़ी कम थी इसलिए आयुष बस किनारे रखे टमाटरों को ही उठा सकता था; "बेटा, आपका हाथ टमाटर तक नहीं पहुँचेगा इसलिए टमाटर मैं चुनता हूँ| तबतक आप वो बगल वाली दूकान से 10/- रुपये का धनिया ले आओ|" मैंने आयुष को समझाते हुए काम सौंपा|
स्तुति को गोदी में लिए हुए मैंने थोड़े सख्त वाले टमाटर चुनने शुरू किये ही थे की नजाने क्यों लाल रंग के टमाटरों को देख स्तुति एकदम से उतावली हो गई और मेरी गोदी से नीचे उतरने को छटपटाने लगी| स्तुति बार-बार टमाटर की तरफ इशारा कर के मुझे कुछ समझना चाहा मगर मुझे कुछ समझ आये तब न?! अपनी नासमझी में मैंने एक छोटा सा टमाटर उठा कर स्तुति के हाथ में दे दिया ताकि स्तुति खुश हो जाए| वो छोटा सा टमाटर अपनी मुठ्ठी में ले कर स्तुति बहुत खुश हुई और टमाटर का स्वाद चखने के लिए अपने मुँह में भरने लगी| "नहीं बेटा!" ये कहते हुए मैंने स्तुति के मुँह में टमाटर जाने से रोक लिया और स्तुति को समझाते हुए बोला; "बेटा, ऐसे बिना धोये फल-सब्जी नहीं खाते, वरना आप बीमार हो जाओगे?!" अब इसे मेरा पागलपन ही कहिये की मैं एक छोटी सी बच्ची को बिना धोये फल-सब्जी खाने का ज्ञान देने में लगा था!
खैर, स्तुति के हाथ से लाल-लाल टमाटर 'छीने' जाने से स्तुति नाराज़ हो गई और आयुष की तरह अपना निचला होंठ फुला कर मेरे कंधे पर सर रख एकदम से खामोश हो गई| "औ ले ले, मेला छोटा सा बच्चा अपने पापा जी से नालाज़ (नाराज़) हो गया?" मैंने तुतलाते हुए स्तुति को लाड करना शुरू किया, परन्तु स्तुति कुछ नहीं बोली| तभी मेरी नज़र बाजार में एक गुब्बारे वाले पर पड़ी जो की हीलियम वाले गुब्बारे बेच रहा था| मैंने नेहा को चुप-चाप पैसे दिए और एक गुब्बारा लाने का इशारा किया| नेहा फौरन वो गुब्बारा ले आई और मैंने उस गुब्बारे की डोरी स्तुति के हाथ में बाँध दी| "देखो स्तुति बेटा, ये क्या है?" मैंने स्तुति का ध्यान उसके हाथ में बंधे गुब्बारे की तरफ खींचा तो स्तुति वो गुब्बारा देख कर बहुत खुश हुई| हरबार की तरह, स्तुति को गुब्बारा पकड़ना था मगर गुब्बारे में हीलियम गैस भरी होने के कारन गुब्बारा ऊपर हवा में में तैर रहा था| स्तुति गुब्बारे को पकड़ने के लिए अपने दोनों हाथ उठाती मगर गुब्बारा स्तुति के हाथ में बँधा होने के कारण और ऊपर चला जाता| स्तुति को ये खेल लगा और उसका सारा ध्यान अब इस गुब्बारे पर केंद्रित हो गया| इस मौके का फायदा उठाते हुए हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने जल्दी-जल्दी सब्जी लेनी शुरू कर दिया वरना क्या पता स्तुति फिर से किसी सब्जी को कच्चा खाने की जिद्द करने लगती!
जब तक हम घर नहीं पहुँचे, स्तुति अपने गुब्बारे को पकड़ने के लिए मेरी गोदी में फुदकती रही! घर पहुँच माँ ने जब मुझे तीनों बच्चों के साथ देखा तो वो संगीता से बोलीं; "ये तो आ गया?!" माँ की बात सुन संगीता मुझे दोषी बनाते हुए मुस्कुरा कर बोली; "इनके पॉंव घर पर टिकते कहाँ हैं! साइट से आये नहीं की दोनों बच्चों को घुमाने निकल पड़े, वो तो मैंने इनको सब्जी लाने की याद दिलाई वरना आज तो खिचड़ी खा कर सोना पड़ता!" संगीता की नजरों में शैतानी थी और मुझे ये शैतानी देख कर मीठी सी गुदगुदी हो रही थी इसलिए मैं खामोश रहा|
रात को खाना खाने के बाद आयुष और नेहा को शाम को की गई मस्ती के कारण जल्दी नींद आ गई| रह गई मेरी लाड़ली बिटिया रानी, तो वो अब भी अपने गुब्बारे को पकड़ने के लिए जूझ रही थी! स्तुति को जल्दी सुलाने के लिए संगीता ने गुब्बारा पकड़ कर स्तुति के हाथ में दिया मगर स्तुति के हाथ में गुब्बारा आते ही स्तुति ने अपनी नन्ही-नन्ही उँगलियाँ गुब्बारे में धँसा दी और गुब्बारा एकदम से फट गया!
गुब्बारा अचानक फटने से मेरी बिटिया दहल गई और डर के मारे रोने लगी! मैंने फौरन स्तुति को गोदी में लिया और उसे टहलाते हुए छत पर आ गया| छत पर आ कर मैंने धीरे-धीरे 'राम-राम' का जाप किया और ये जाप सुन स्तुति के छोटे से दिल को चैन मिला तथा वो धीरे-धीरे निंदिया रानी की गोदी में चली गई|
स्तुति को गोदी में लिए हुए जब मैं कमरे में लौटा तो मैंने देखा की संगीता बड़ी बेसब्री से दरवाजे पर नज़रें बिछाये मेरा इंतज़ार कर रही है| मैंने गौर किया तो पाया की संगीता ने हल्का सा मेक-अप कर रखा था, बाकी का मेक-अप का समान उसने बाथरूम में मुझे सरप्राइज देने के लिए रखा था| इधर मुझे देखते ही संगीता के चेहरे पर शर्म से भरपूर मुस्कान आ गई और उसकी नजरें खुद-ब-खुद झुक गईं|
मैं: तोहफा खोल कर देखा लिया?
मेरे पूछे सवाल के जवाब में संगीता शर्म से नजरें झुकाये हुए न में गर्दन हिलाने लगी|
मैं: क्यों?
मैंने भोयें सिकोड़ कर सवाल पुछा तो संगीता शर्माते हुए दबी आवाज़ में बोली;
संगीता: तोहफा आप लाये हो तो देखना क्या, सीधा पहन कर आपको दिखाऊँगी!
संगीता की आवाज़ में आत्मविश्वास नज़र आ रहा था और मैं ये आत्मविश्वास देख कर बहुत खुश था|
स्तुति के सोने के लिए संगीता ने कमरे में मौजूद दीवान पर बिस्तर लगा दिया था इसलिए मैंने स्तुति को दीवान पर लिटा दिया और संगीता को कपड़े पहनकर आने को कहा| जबतक संगीता बाथरूम में कपड़े पहन रही थी तब तक मैंने भी अपने बाल ठीक से बनाये और परफ्यूम लगा लिया| कमरे की लाइट मैंने मध्धम सी कर दी थी ताकि बिलकुल रोमांटिक माहौल बनाया जा सके|
उधर बाथरूम के अंदर संगीता ने सबसे पहले मेरे द्वारा मँगाई हुई लाल रंग की बिकिनी पहनी| ये बिकिनी स्ट्रिंग वाली थी, यानी के संगीता के जिस्म के प्रमुख अंगों को छोड़ कर उसका पूरा जिस्म दिख रहा था| मैं बस कल्पना कर सकता हूँ की संगीता को इसे पहनने के बाद कितनी शर्म आई होगी मगर उसके भीतर मुझे खुश करने की इच्छा ने उसकी शर्म को किनारे कर दिया|
बिकिनी पहनने के बाद संगीता ने मेरे द्वारा मँगाई हुई अंग्रेजी फिल्मों में दिखाई जाने वाली मेड (maid) वाली फ्रॉक पहनी! ये फ्रॉक संगीता के ऊपर के बदन को तो ढक रही थी, परन्तु संगीता का कमर से नीचे का बदन लगभग नग्न ही था| ये फ्रॉक बड़ी मुस्किल से संगीता के आधे नितम्बों को ढक रही थी, यदि थोड़ी सी हवा चलती तो फ्रॉक ऊपर की ओर उड़ने लगती जिससे संगीता का निचला बदन साफ़ दिखने लगता| पता नहीं कैसे पर संगीता अपनी शर्म ओर लाज को किनारे कर ये कपड़े पहन रही थी?!
बहरहाल, मेरे द्वारा लाये ये कामुक कपड़े पहन कर संगीता ने होठों पर मेरी पसंदीदा रंग यानी के चमकदार लाल रंगी की लिपस्टिक लगाई| बालों का गोल जुड़ा बना कर संगीता शर्म से लालम लाल हुई बाथरूम से निकली|
इधर मैं पलंग पर आलथी-पालथी मारे बाथरूम के दरवाजे पर नजरें जमाये बैठा था| जैसे ही संगीता ने दरवाजा खोला मेरी नजरें संगीता को देखने के लिए प्यासी हो गईं| प्यास जब जोर से लगी हो और आपको पीने के लिए शर्बत मिल जाए तो जो तृष्णा मिलती है उसकी ख़ुशी ब्यान कर पाना मुमकिन नहीं! मेरा मन इसी सुख को महसूस करने का था इसलिए मैंने संगीता के बाथरूम के बाहर निकलने से पहले ही अपनी आँखें मूँद ली|
संगीता ने जब मुझे यूँ आँखें मूँदे देखा तो वो मंद-मंद मुस्कुराने लगी| मेरे मन की इस इच्छा को समझते हुए संगीता धीरे-धीरे चल कर मेरे पास आई और लजाते हुए बोली; "जानू" इतना कह संगीता खामोश हो गई| संगीता की आवाज़ सुन मैंने ये अंदाजा लगा लिया की संगीता मेरे पास खड़ी है|
मैंने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं और मेरी आँखों के आगे मेरे द्वारा तोहफे में लाये हुए कपड़े पहने मेरी परिणीता का कामुक जिस्म दिखा! सबसे पहले मैंने एक नज़र भर कर संगीता को सर से पॉंव तक देखा, इस वक़्त संगीता मुझे अत्यंत ही कामुक अप्सरा लग रही थी! संगीता को इस कामुक लिबास में लिपटे हुए देख मेरा दिल तेज़ रफ़्तार से दौड़ने लगा था| चेहरे से तो संगीता खूबसूरत थी ही इसलिए मेरा ध्यान इस वक़्त संगीता के चेहरे पर कम और उसके बदन पर ज्यादा था|
इन छोटे-छोटे कपड़ों में संगीता को देख मेरे अंदर वासना का शैतान जाग चूका था| मैंने आव देखा न ताव और सीधा ही संगीता का दाहिना हाथ पकड़ कर पलंग पर खींच लिया| संगीता इस अचानक हुए आक्रमण के लिए तैयार नहीं थी इसलिए वो सीधा मेरे ऊपर आ गिरी| उसके बाद जो मैंने अपनी उत्तेजना में बहते हुए उस बेचारी पर क्रूरता दिखाई की अगले दो घंटे तक मैंने संगीता को जिस्मानी रूप से झकझोड़ कर रख दिया!
कमाल की बात तो ये थी की संगीता को मेरी ये उत्तेजना बहुत पसंद थी! हमारे समागम के समाप्त होने पर उसके चेहरे पर आई संतुष्टि की मुस्कान देख मुझे अपनी दिखाई गई उत्तेजना पर ग्लानि हो रही थी| "जानू..." संगीता ने मुझे पुकारते हुए मेरी ठुड्डी पकड़ कर अपनी तरफ घुमाई| "क्या हुआ?" संगीता चिंतित स्वर में पूछने लगी, परन्तु मेरे भीतर इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं उससे अपने द्वारा की गई बर्बरता के लिए माफ़ी माँग सकूँ|
अब जैसा की होता आया है, संगीता मेरी आँखों में देख मेरे दिल की बात पढ़ लेती है| मेरी ख़ामोशी देख संगीता सब समझ गई और मेरे होठों को चूमते हुए बड़े ही प्यारभरी आवाज़ में बोली; "जानू, आप क्यों इतना सोचते हो?! आप जानते नहीं क्या की मुझे आपकी ये उत्तेजना देखना कितना पसंद है?! जब भी आप उत्तेजित होते हो कर मेरे जिस्म की कमान अपने हाथों में लेते हो तो मुझे बहुत मज़ा आता है| मैं तो हर बार यही उम्मीद करती हूँ की आप इसी तरह मुझे रोंद कर रख दिया करो लेकिन आप हो की मेरे जिस्म को फूलों की तरह प्यार करते हो! आज मुझे पता चल गया की आपको उत्तेजित करने के लिए मुझे इस तरह के कपड़े पहनने हैं इसलिए अब से मैं इसी तरह के कपड़े पहनूँगी और खबरदार जो आगे से आपने खुद को यूँ रोका तो!" संगीता ने प्यार से मुझे चेता दिया था|
संगीता कह तो ठीक रही थी मगर मैं कई बार छोटी-छोटी बातों पर जर्रूरत से ज्यादा सोचता था, यही कारण था की मैं अपनी उत्तेजना को हमेशा दबाये रखने की कोशिश करता था| उस दिन से संगीता ने मुझे खुली छूट दे दी थी, परन्तु मेरी उत्तेजना खुल कर बहुत कम ही बाहर आती थी|
दिन बीते और नेहा का जन्मदिन आ गया था| नेहा के जन्मदिन से एक दिन पहले हम सभी मिश्रा अंकल जी के यहाँ पूजा में गए थे, पूजा खत्म होने के बाद खाने-पीने का कार्यक्रम शरू हुआ जो की रात 10 बजे तक चला जिस कारण सभी थक कर चूर घर लौटे और कपड़े बदल कर सीधे अपने-अपने बिस्तर में घुस गए| आयुष अपनी दादी जी के साथ सोया था और नेहा जानबूझ कर अकेली अपने कमरे में सोई थी| रात ठीक बारह बजे जब मैं नेहा को जन्मदिन की मुबारकबाद सबसे पहले देने पहुँचा तो मैंने पाया की मेरी लाड़ली बेटी पहले से जागते हुए मेरा इंतज़ार कर रही है| मुझे देखते ही नेहा मुस्कुराते हुए बिस्तर पर खड़ी हो गई और अपनी दोनों बाहें खोल कर मुझे गले लगने को बुलाने लगी| मैंने तुरंत नेहा को अपने सीने से लगा लिया और उसके दोनों गालों को चूमते हुए उसे जन्मदिन की बधाई दी; "मेरे प्यारे-प्यारे बच्चे को, जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें! आप खूब पढ़ो और बड़े हो कर हमारा नाम ऊँचा करो! जुग-जुग जियो मेरी बिटिया रानी!" मुझसे बधाइयाँ पा कर और मेरे नेहा को 'बिटिया' कहने से नेहा का नाज़ुक सा दिल बहुत खुश था, इतना खुश की उसने अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए ख़ुशी के आँसूँ बहा दिए| "आई लव यू पापा जी!" नेहा भरे गले से मेरे सीने से लिपटते हुए बोली|
"आई लव यू टू मेरा बच्चा!" मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा तथा नेहा को अपनी बाहों में कस लिया| मेरे इस तरह नेहा को अपनी बाहों में कस लेने से नेहा का मन एकदम से शांत हो गया और उसका रोना रुक गया|
रात बहुत हो गई थी इसलिए मैं नेहा को अपने सीने से लिपटाये हुए लेट गया पर नेहा का मन सोने का नहीं बल्कि मुझसे कुछ पूछने का था;
नेहा: पापा जी...वो...मेरे दोस्त कह रहे थे की उन्हें मेरे जन्मदिन की ट्रीट (ट्रीट) स्कूल में चाहिए!
नेहा ने संकुचाते हुए अपनी बात कही| मैं नेहा की झिझक को जानता था, दरअसल नेहा को अपनी पढ़ाई के अलावा मेरे द्वारा कोई भी खर्चा करवाना अच्छा नहीं लगता था इसीलिए वो इस वक़्त इतना सँकुचा रही थी|
मैं: तो इसमें घबराने की क्या बात है बेटा?
मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और नेहा को प्यार से समझाते हुए बोला;
मैं: बेटा, जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें अपने दोस्तों को यूँ मम्मी-पापा के साथ घर की पार्टी में शामिल करवाना अजीब लगता है| हमारे सामने आप बच्चे खुल कर बात नहीं कर पाते, हमसे शर्माते हुए आप सभी न तो जी भर कर नाच पाते हो और न ही खा पाते हो|
जब मैं बड़ा हो रहा था तो मैं भी अपने जन्मदिन पर आपके दिषु भैया के साथ मैक डोनाल्ड (Mc Donald) में जा कर बर्गर खा कर पार्टी करता था| कभी-कभी मैं आपके दादा जी से पैसे ले कर स्कूल की कैंटीन में अपने कुछ ख़ास दोस्तों को कुछ खिला-पिला कर पार्टी दिया करता था| आप भी अब बड़े हो गए हो तो आपके दोस्तों का यूँ आपसे पार्टी या ट्रीट माँगना बिलकुल जायज है| कल सुबह स्कूल जाते समय मुझसे पैसे ले कर जाना और जब आपका लंच टाइम हो तब आप आयुष तथा अपने दोस्तों को उनकी पसंद का खाना खिला देना|
मेरे इस तरह प्यार से समझाने का असर नेहा पर हुआ तथा नेहा के चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान लौट आई|
नेहा: तो पापा जी, स्कूल से वापस आ कर मेरे लिए क्या सरप्राइज है?
नेहा ने अपनी उत्सुकता व्यक्त करते हुए पुछा|
मैं: शाम को घर पर एक छोटी सी पार्टी होगी, फिर रात को हम सब बाहर जा कर खाना खाएंगे|
मेरा प्लान अपने परिवार को बाहर घूमने ले जाने का था, फिर शाम को केक काटना और रात को बाहर खाना खाने का था, परन्तु नेहा ने जब अपनी छोटी सी माँग मेरे सामने रखी तो मैंने अपना आधा प्लान कैंसिल कर दिया|
मेरी बिटिया नेहा अब धीरे-धीरे बड़ी होने लगी थी और मैं उसे जिम्मेदारी के साथ-साथ उसे धीरे-धीरे थोड़ी बहुत छूट देने लगा था|
अगली सुबह माँ स्तुति को गोदी में ले कर मुझे और नेहा को जगाने आईं| सुबह-सुबह नींद से उठते ही स्तुति मुझे अपने पास न पा कर व्यकुल थी इसलिए वो रो नहीं रही थी बस मुझे न पा कर परेशान थी| जैसे ही स्तुति ने मुझे अपनी दीदी को अपने सीने से लिपटाये सोता हुआ देखा, वैसे ही स्तुति ने माँ की गोदी से उतर मेरे पास आने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया| स्तुति को मेरे सिरहाने बिठा कर माँ चल गईं, मेरे सिरहाने बैठते ही स्तुति ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ा और अपने होंठ मेरे मस्तक से चिपका दिए तथा मेरी पप्पी लेते हुए मेरा मस्तक गीला करने लगी|
अपनी बिटिया रानी की इस गीली-गीली पप्पी से मैं जाग गया और बड़ी ही सावधानी से स्तुति को पकड़ कर अपने सीने तक लाया| मेरे सीने के पास पहुँच स्तुति ने अपनी दीदी को देखा और स्तुति ने मुझ पर अपना हक़ जताते हुए नेहा के बाल खींचने शुरू कर दिए| "नो (No) बेटा!" मैंने स्तुति को बस एक बार मना किया तो स्तुति ने अपनी दीदी के बाल छोड़ दिए| नेहा की नींद टूट चुकी थी और वो स्तुति द्वारा इस तरह बाल खींच कर जगाये जाने से गुस्सा थी!
“स्तुति बेटा, ऐसे अपनी दीदी और बड़े भैया के बाल खींचना अच्छी बात नहीं| आपको पता है, आज आपकी दीदी का जन्मदिन है?!" मैंने स्तुति को समझाया तथा उसे नेहा के जन्मदिन के बारे में पुछा तो स्तुति हैरान हो कर मुझे देखने लगी| एक पल के लिए तो लगा जैसे स्तुति मेरी सारी बात समझ गई हो, लेकिन ये बस मेरा वहम था, स्तुति के हैरान होने का कारण कोई नहीं जानता था|
" चलो अपनी नेहा दीदी को जन्मदिन की शुभकामनायें दो!" मैंने प्यार से स्तुति को आदेश दिया तथा स्तुति को नेहा की पप्पी लेने का इशारा किया| मेरा इशारा समझ स्तुति ने अपने दोनों हाथ अपनी दीदी नेहा की तरफ देखते हुए फैलाये| नेहा वैसे तो गुस्सा थी मगर उसे मेरी बता का मान रखना था इसलिए उसने स्तुति को गोदी ले लिया| अपनी दीदी की गोदी में जाते ही स्तुति ने नेहा के दाएँ गाल पर अपने होंठ टिका दिए और अपनी दीदी की पप्पी ले कर मेरे पास लौटने को छटपटाने लगी| नेहा ने स्तुति को मेरी गोदी में दिए तथा बाथरूम जाने को उठ खड़ी हुई| जैसे ही नेहा उठी की पीछे से माँ आ गईं और नेहा के सर पर हाथ रखते हुए उसे आशीर्वाद देते हुए बोलीं; "हैप्पी बर्डी (बर्थडे) बेटा! खुश रहो और खूब पढ़ो-लिखो!" माँ से बर्थडे शब्द ठीक से नहीं बोला गया था इसलिए मुझे इस बात पर हँसी आ गई, वहीं नेहा ने अपनी दादी जी के पॉंव छू कर आशीर्वाद लिया और ख़ुशी से माँ की कमर के इर्द-गिर्द अपने हाथ लपेटते हुए बोली; "थैंक यू दादी जी!"
दोनों दादी-पोती इसी प्रकार आलिंगन बद्ध खड़े थे की तभी दोनों माँ-बेटे यानी आयुष और संगीता आ धमके| सबसे पहले अतिउत्साही आयुष ने अपनी दीदी के पॉंव छुए और जन्मदिन की मुबारकबाद दी और उसके बाद संगीता ने नेहा के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देते हुए जन्मदिन की शुभकामनायें दी|
"तो पापा जी, आज स्कूल की छुट्टी करनी है न?!" आयुष ख़ुशी से कूदता हुआ बोला क्योंकि उसके अनुसार जन्मदिन मतलब स्कूल से छुट्टी लेना होता था मगर तभी नेहा ने आयुष की पीठ पर एक थपकी मारी और बोली; "कोई छुट्टी-वुत्ती नहीं करनी! आज हम दोनों स्कूल जायेंगे और लंच टाइम में तू अपने दोस्तों को ले कर मेरे पास आ जाइओ!" नेहा ने आयुष को गोल-मोल बात कही| स्कूल जाने के नाम से आयुष का चेहरा फीका पड़ने लगा इसलिए मैंने आयुष को बाकी के दिन के बारे में बताते हुए कहा; "बेटा, आज शाम को घर पर छोटी सी पार्टी होगी और फिर हम सब खाना खाने बाहर जायेंगे|" मेरी कही बात ने आयुष के फीके चेहरे पर रौनक ला दी और वो ख़ुशी के मारे कूदने लगा|
दोनों बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हुए, मैंने नेहा को 1,000/- रुपये सँभाल कर रखने को दिए, नेहा इतने सरे पैसे देख अपना सर न में हिलाने लगी| "बेटा, मैं आपको ज्यादा पैसे इसलिए दे रहा हूँ ताकि कहीं पैसे कम न पड़ जाएँ| ये पैसे सँभाल कर रखना और सोच-समझ कर खर्चना, जितने पैसे बचेंगे वो मुझे घर आ कर वापस कर देना|" मैंने नेहा को प्यार से समझाते हुए पैसे सँभालने और खर्चने की जिम्मेदारी दी तब जा कर नेहा मानी|
स्कूल पहुँच नेहा ने अपने दोस्तों के साथ लंच में क्या खाना है इसकी प्लानिंग कर ली थी इसलिए जैसे ही लंच टाइम हुआ नेहा अपनी क्लास के सभी बच्चों को ले कर कैंटीन पहुँची| तभी वहाँ आयुष अपनी गर्लफ्रेंड और अपने दो दोस्तों को ले कर कैंटीन पहुँच गया| नेहा और उसके 4-5 दोस्त बाकी सभी बच्चों के लिए कैंटीन से समोसे, छोले-कुलचे और कोल्डड्रिंक लेने लाइन में लगे| पैसे दे कर सभी एक-एक प्लेट व कोल्ड्रिंक उठाते और पीछे खड़े अपने दोस्तों को ला कर देते जाते| चौथी क्लास के बच्चों के इतने बड़े झुण्ड को देख स्कूल के बाकी बच्चे बड़े हैरान थे| जिस तरह से नेहा और उसके दोस्त चल-पहल कर रहे थे उसे देख दूसरी क्लास के बच्चों ने आपस में खुसर-फुसर शुरू कर दी थी| किसी बड़ी क्लास के बच्चे ने जब एक ही क्लास के सारे बच्चों को यूँ झुण्ड बना कर खड़ा देखा तो उसने जिज्ञासा वश एक बच्चे से कारण पुछा, जिसके जवाब में उस बच्चे ने बड़े गर्व से कहा की उसकी दोस्त नेहा सबको अपने जन्मदिन की ट्रीट दे रही है| जब ये बात बाकी सब बच्चों को पता चली तो नेहा को एक रहीस बाप की बेटी की तरह इज्जत मिलने लगी|
परन्तु मेरी बेटी ने इस बात का कोई घमंड नहीं किया, बल्कि नेहा ने बहुत सोच-समझ कर और हिसाब से पैसे खर्चे थे| मेरी बिटिया ने अपनी चतुराई से अपने दोस्तों को इतनी भव्य पार्टी दे कर खुश कर दिया था और साथ-साथ पैसे भी बचाये थे|
दोपहर को घर आते ही नेहा ने एक कागज में लिखा हुआ सारा हिसाब मुझे दिया| पूरा हिसाब देख कर मुझे हैरानी हुई की मेरी बिटिया ने 750/- रुपये खर्च कर लगभग 35 बच्चों को पेटभर नाश्ता करा दिया था| सभी बच्चे नेहा की दरियादिली से इतना खुश थे की सभी नेहा की तारीफ करते नहीं थक रहे थे| मेरी बिटिया रानी ने अपने दोस्तों पर बहुत अच्छी धाक जमा ली थी जिस कारण नेहा अब क्लास की सबसे चहेती लड़की बन गई थी जिसका हर कोई दोस्त बनना चाहता था|
मेरी डरी-सहमी रहने वाली बिटिया अब निडर और जुझारू हो गई थी| स्कूल शुरू करते समय जहाँ नेहा का कोई दोस्त नहीं था, वहीं आज मेरी बिटिया के इतने दोस्त थे की दूसरे सेक्शन के बच्चे भी नेहा से दोस्ती करने को मरे जा रहे थे! ये मेरे लिए वाक़ई में बहुत बड़ी उपलब्धि थी!
शाम को घर में मैंने एक छोटी सी पार्टी रखी थी, जिसमें केवल दिषु का परिवार और मिश्रा अंकल जी का परिवार आमंत्रित था| केक काट कर सभी ने थोड़ा-बहुत जलपान किया और सभी अपने-अपने घर चले गए| रात 8 बजे मैंने सभी को तैयार होने को कहा और हम सभी पहुँचे फिल्म देखने| स्तुति आज पहलीबार फिल्म देखने आई थी और पर्दे पर फिल्म देख कर स्तुति सबसे ज्यादा खुश थी| समस्या थी तो बस ये की स्तुति अपने उत्साह को काबू नहीं कर पा रही थी और किलकारियाँ मार कर बाकी के लोगों को तंग कर रही थी! "श..श..श!!" नेहा ने स्तुति को चुप रहने को कहा मगर स्तुति कहाँ अपनी दीदी की सुनती वो तो पर्दे को छूने के लिए उसकी तरफ हाथ बढ़ा कर किलकारियाँ मारने लगी|
"बेटू...शोल (शोर) नहीं करते!" मैंने स्तुति के कान में खुसफुसा कर कहा| मेरे इस तरह खुसफुसाने से स्तुति के कान में गुदगुदी हुई और वो मेरे सीने से लिपट कर कुछ पल के लिए शांत हो गई| फिर तो जब भी स्तुति शोर करती, मैं उसके कान में खुसफुसाता और मेरी बिटिया मेरे सीने से लिपट कर कुछ पल के लिए खामोश हो जाती|
फिल्म देखने का सुख मुझे छोड़ कर सभी ने लिया था, पर देखा जाए तो मेरे लिए असली सुख अपनी छोटी बिटिया रानी के साथ खेलना था| फिल्म खत्म हुई रात साढ़े 10 बजे और अब लगी थी भूख इसलिए हम मॉल में बने हुए रेस्टोरेंट में खाना खाने बैठ गए| जिस रेस्टोरेंट में हम आये थे ये बहुत महँगा था जिस कारण यहाँ की साज-सज्जा बहुत बढ़िया थी| हम सभी एक फॅमिली टेबल पर बैठे और खाना आर्डर करने का काम दादी-पोता-पोती ने किया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठा था की तभी एक वेटर स्तुति के बैठने के लिए छोटे बच्चों की कुर्सी ले आया| कुर्सी अपने सामने लगवा कर मैंने स्तुति को उस आरामदायक कुर्सी पर बिठाया, तो मेरी बिटिया रानी ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| "बड़े ठाठ हैं इस शैतान के!" संगीता आँखें तार्रेर कर बोली जिसके जवाब में स्तुति अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाने लगी| माँ-बेटी की ये जुगलबंदी देख मैं, माँ और दोनों बच्चे हँसने लगे| खैर, हम सभी ने खाना खाया और स्तुति को भी आज पहलीबार 2 (छोटी) चम्मच गुलाब जामुन खाने को मिला| अपने पापा जी की ही तरह स्तुति को भी ये मीठा-मीठा स्वाद बहुत पसंद आया था|
जारी रहेगा भाग - 20 {5(i)} में...
Bahot behtareenइकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 {5(i)}
अब तक अपने पढ़ा:
फिल्म देखने का सुख मुझे छोड़ कर सभी ने लिया था, पर देखा जाए तो मेरे लिए असली सुख अपनी छोटी बिटिया रानी के साथ खेलना था| फिल्म खत्म हुई रात साढ़े 10 बजे और अब लगी थी भूख इसलिए हम मॉल में बने हुए रेस्टोरेंट में खाना खाने बैठ गए| जिस रेस्टोरेंट में हम आये थे ये बहुत महँगा था जिस कारण यहाँ की साज-सज्जा बहुत बढ़िया थी| हम सभी एक फॅमिली टेबल पर बैठे और खाना आर्डर करने का काम दादी-पोता-पोती ने किया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठा था की तभी एक वेटर स्तुति के बैठने के लिए छोटे बच्चों की कुर्सी ले आया| कुर्सी अपने सामने लगवा कर मैंने स्तुति को उस आरामदायक कुर्सी पर बिठाया, तो मेरी बिटिया रानी ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| "बड़े ठाठ हैं इस शैतान के!" संगीता आँखें तार्रेर कर बोली जिसके जवाब में स्तुति अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाने लगी| माँ-बेटी की ये जुगलबंदी देख मैं, माँ और दोनों बच्चे हँसने लगे| खैर, हम सभी ने खाना खाया और स्तुति को भी आज पहलीबार 2 (छोटी) चम्मच गुलाब जामुन खाने को मिला| अपने पापा जी की ही तरह स्तुति को भी ये मीठा-मीठा स्वाद बहुत पसंद आया था|
अब आगे:
बच्चे अक्सर अपने माँ-बाप, अपने बड़ों को देख कर कुछ नया सीखते हैं| आयुष मेरी देखा-देखि बॉडी स्प्रे (body spray) लगाना, अच्छे से बाल बनाना, शेड्स (shades) यानी धुप वाले चश्मे पहनना आदि सीख गया था| वहीं नेहा ने अपनी मम्मी को थोड़ा बहुत मेक-अप करते हुए देख फेस पाउडर, आँखों में काजल लगाना, बिंदी लगाना, लिपस्टिक लगाना सीख लिया था| अब जब दोनों बच्चे अपने मम्मी-पापा जी से कुछ न कुछ सीख रहे थे तो स्तुति कैसे पीछे रहती?!
एक दिन की बात है, पड़ोस में पूजा रखी गई थी तथा हम सभी को आमंत्रण मिला था| माँ और आयुष तो तैयार हो कर पहले निकल गए, रह गए बस हम मियाँ बीवी, नेहा और स्तुति| चूँकि मुझे साइट से घर लौटने में समय लगना था इसलिए संगीता मेरी दोनों बेटियों के साथ घर पर मेरा इंतज़ार कर रही थी| "तुम नहा-धो कर तैयार हो जाओ मैं तबतक घर पहुँच जाऊँगा|" मैंने फ़ोन कर संगीता को तैयार होने को बोला| कुछ समय बाद संगीता नहा कर तैयार हो चुकी थी तथा आईने के सामने बैठ कर अपने चेहरे पर थोड़ा सा फेस-पाउडर लगा रही थी| नेहा और स्तुति दोनों पलंग पर बैठे अपनी मम्मी को साज-श्रृंगार करते हुए देख रहे थे| नेहा ने अपनी मम्मी को पहले भी श्रृंगार करते हुए देखा था इसलिए वो इतनी उत्सुक नहीं थी, लेकिन स्तुति इस समय बहुत हैरान थी| वो बड़े गौर से अपनी मम्मी को फेस-पाउडर लगाते हुए देख रही थी| फिर संगीता ने अपने गुलाबी होठों पर हलके गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगाई, स्तुति ने जब ये दृश्य देखा तो उसका छोटा सा मुँह खुला का खुला रह गया| अंत में संगीता ने अपने माथे पर बिंदी लगाई और इस पाल मेरी बिटिया स्तुति के अस्चर्य की सीमा नहीं थी! अपनी मम्मी के माथे पर लगी बिंदी को देख मेरी बिटिया अचानक ही उतावली हो कर अपनी मम्मी के माथे की तरफ ऊँगली कर अपनी बोली-भाषा में कुछ कहने लगी|
अब स्तुति की ये भाषा केवल वही जानती थी इसलिए माँ-बेटी (नेहा और संगीता) के कुछ पल्ले नहीं पड़ा| ठीक तभी मैं घर पहुँचा और मुझे देख कर स्तुति ने मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ पंख के समान खोल दिए| मेरी गोदी में आ, स्तुति बार-बार अपनी मम्मी की तरफ इशारा करने लगी मगर मैंने स्तुति की कही बात का गलत अंदाजा लगाया; "मम्मी ने डाँटा आपको?! मैं आपकी मम्मी जी को डाटूँगा!" मैंने बात बनाते हुए स्तुति को बहलाना चाहा मगर स्तुति अब भी संगीता के मस्तक की ओर इशारा कर रही थी|
वहीं, संगीता मेरी बात सुन प्यारभरे गुस्से में बोली; "मैंने नहीं डाँटा आपकी लाड़ली को! ये शैतान हमेशा कुछ न कुछ नया हंगामा करती रहती है!" इतना कह संगीता अपना मुँह टेढ़ा कर बाहर चली गई| मैं जानता था की स्तुति जब भी कुछ नया देखती है तो वो इसी तरह मेरा ध्यान उस ओर खींचती है, परन्तु इस बार उसे क्या नया दिखा इसका मुझे इल्म नहीं था| मैं स्तुति को गोदी में लिए लाड करने लगा ताकि स्तुति का ध्यान उस चीज़ पर से हट जाए| कुछ मिनट स्तुति को यूँ टहलाने के बाद मैं स्तुति से बोला; "बेटा, आप और आपकी दीदी तो पूजा में जाने के लिए तैयार हो गए, मैं भी नहा-धो कर तैयार हो जाऊँ?" मैंने स्तुति को बहलाते हुए सवाल पुछा था मगर पीछे से नेहा ने जवाब दिया; "पापा जी, आप जाइये तैयार होने| मैं हूँ न स्तुति का ध्यान रखने के लिए|" नेहा की बता सुन मैंने उसके सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया तथा स्तुति को उसकी गोदी में छोड़ने लगा पर मेरी लाड़ली बिटिया अपनी दीदी की गोदी में जाने से मना करने लगी| "बेटु, पापा जी को तैयार होना है, बस 5 मिनट में मैं नहा कर आ जाऊँगा|" मैंने स्तुति को प्यारभरा आश्वसन दिया तब कहीं जा कर स्तुति मानी और अपनी दीदी की गोदी में गई| स्तुति परेशान न हो इसके लिए मैं बाथरूम में गाना गाते हुए नहाने लगा, मेरी आवाज़ सुन स्तुति को ये इत्मीनान था की मैं उसे अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जा रहा|
मेरे बाथरूम में नहाने जाते ही नेहा ने स्तुति को पलंग पर बिठाया और खुद जा कर आईने के सामने अपनी मम्मी का फेस पाउडर अपने चेहरे पर लगाने लगी| स्तुति ने जब अपनी दीदी को मेक-अप करते देखा तो वो उत्साह से भर गई और अपनी दीदी को "आ...आ.." कह कर बुलाने लगी| नेहा ने मुड़ कर स्तुति की ओर देखा तो वो समझ गई की स्तुति की उत्सुकता क्या है| नेहा फेस पाउडर ले कर स्तुति के पास आई और थोड़ा सा फेस पाउडर स्तुति के चेहरे पर लगाने लगी| ठीक तभी मैं नहाकर बाहर निकला और नेहा को स्तुति को फेस पाउडर लगाते हुए देख चुपचाप खड़ा हो गया| स्तुति बिना हिले-डुले अपनी दीदी को अपने चेहरे पर फेस पाउडर लगाने दे रही थी और मैं स्तुति को इस कदर स्थिर बैठा हुआ देख हैरान था|
जब नेहा ने स्तुति को फेस पाउडर लगा दिया, तब उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और नेहा हँसने लगी| मैंने स्तुति को गोदी में उठाया और उसके मस्तक को चूम बोला; "मेरी छोटी बिटिया तो बड़ी प्यारी लग रही है!" अपनी तारीफ सुन स्तुति शर्माने लगी और मेरे सीने से लिपट गई| इधर मेरी नज़र पड़ी नेहा पर जो की अपनी तारीफ सुनने का इंतज़ार कर रही थी| “मेरी बिटिया रानी बहुत सुन्दर लग रही है!" मैंने नेहा की तारीफ की तो नेहा एकदम से बोली; "एक मिनट पापा जी!" इतना कह नेहा आईने के पास गई और अपनी मम्मी के बिंदियों के पैकेट में से बिंदी चुनने लगी| स्तुति अपनी दीदी की बात सुन बड़े गौर से नेहा को देखने लगी मानो वो भी देखना चाहती हो की उसकी दीदी आखिर करने क्या वाली हैं?!
नेहा ने अपने लिए एक बिंदी खोज निकाली और आईने में देखते हुए अपने माथे के बीचों बीच बिंदी लगा कर मेरे पास फुदकती हुई आ गई| "अरे वाह! मेरा बच्चा तो और भी सुन्दर दिखने लगा|" मैंने नेहा के गाल पर हाथ फेरते हुए कहा|
उधर स्तुति ने अपनी दीदी के माथे पर बिंदी देखि तो उसने अपनी ऊँगली से बिंदी की ओर इशारा करना शुरू किया| इस बार मैं स्तुति की बात समझ गया और बोला; "मेरी बिटिया को भी बिंदी लगानी है?!" ये कहते हुए मैं आईने के पास पहुँचा और संगीता की बिंदियों के ढेर में से स्तुति के लिए एक छोटी सी-प्यारी सी बिंदी ढूँढने लगा| मुझे इतनी सारी बिंदियों में से बिंदी खोजते हुए देख स्तुति का मन मचल उठा और वो मेरी गोदी से निचे उतरने को मचलने लगी| अगर मैं स्तुति को नीचे उतार देता तो वो सारी बिंदियाँ अपनी मुठ्ठी में भरकर खा लेती!
अंततः मैंने स्तुति के लिए एक बहुत छोटी सी बिंदी ढूँढ निकाली थी; "मिल गई..मिल गई!" मैंने ये बोलकर स्तुति का ध्यान अपनी ऊँगली के छोर पर एक छोटी सी बिंदी की तरफ स्तुति का ध्यान खींचते हुए शोर मचाया| नेहा ने उस बिंदी के पीछे से पॉलिथीन निकाली और मुझे दी तथा मैंने वो बिंदी बड़ी सावधानी से स्तुति के मस्तक के बीचों-बीच लगा दी| आईने में स्तुति ने अपने मस्तक पर बिंदी लगी हुई देखि तो वो बहुत खुश हुई और अपने मसूड़े दिखा कर खिलखिलाकर हँसने लगी|
आईने में हम तीनों (मेरा, नेहा और स्तुति) का प्रतिबिम्ब बहुत ही प्यारा दिख रहा था| मैंने नेहा के दाएँ कंधे पर अपना दायाँ हाथ रख उसे अपने से चिपका कर खड़ा कर लिया और अपनी दोनों बेटियों की ख़ूबसूरती की प्रशंसा करते हुए बोला; "मेरी दोनों लाड़ली बेटियाँ बहुत-बहुत सुन्दर लग रहीं हैं| आपको मेरी भी उम्र लग जाए! आप दोनों इसी प्रकार ख़ुशी से खिलखिलाते रहो!" पता नहीं क्यों पर उस पल मैं एकदम से भावुक हो गया था| शायद अपनी दोनों बेटियों को यूँ अपने साथ देख दिल दोनों बच्चियों को खो देने से डर गया था!
इतने में पीछे से संगीता आ गई और मुझे यूँ स्तुति को गोदी में लिए हुए तथा नेहा को खुद से चिपकाए आईने में देखता हुआ देख उल्हाना देते हुए बोली; "सारा प्यार अपनी इन दोनों लड़कियों पर लुटा देना, मेरे लिए कुछ मत छोड़ना!" संगीता की बात सुन मैं मुस्कुराया और उसे भी अपने गले लगने को बुलाया| हम मियाँ-बीवी और दोनों बेटियाँ, एक साथ गले लगे हुए बहुत ही प्यारे लग रहे थे| आज भी जब वो दृश्य याद करता हूँ तो आँखें ख़ुशी के मारे नम हो जाती हैं|
स्तुति को किसी की नज़र न लगे इसके लिए मैंने खुद स्तुति के कान के पीछे काला टीका लगा दिया तथा हम चारों पूजा में सम्मलित होने मंदिर पहुँचे| बिंदी लगाए हुए स्तुति बहुत प्यारी लग रही थी, इतनी प्यारी की पूजा में मौजूद हर एक व्यक्ति की नज़र स्तुति पर टिकी हुई थी|
वहीं मंदिर में आ कर स्तुति का चंचल मन एकदम शांत हो गया था| हमेशा किलकारियाँ मारती हुई मेरी लाड़ली इस समय चेहरे पर मुस्कान लिए हुए अपने आस-पास मौजूद लोगों को देख रही थी| पूजा सम्पन्न हुई और मंत्रोचारण सुन स्तुति पंडित जी को बड़ी गौर से देखने लगी| पूजा खत्म हुई तो स्त्रियाँ मिल कर हारमोनियम, ढोलक और घंटी आदि बजाते हुए भजन गाने लगीं| स्तुति ने जब ये वादक यंत्र देखे तो वो मेरा ध्यान उस तरफ खींचने लगी| मैं स्तुति को गोदी लिए हुए सभी स्त्रियों के पास पहुँचा तो स्तुति ने एक आंटी जी के हाथ में घंटी देखि और वो उस घंटी की आवाज़ की तरफ आकर्षित होने लगी|
माँ बताती थीं की जब मैं स्तुति की उम्र का था तो मैं घंटी की आवाज़ सुन घबरा जाता था, परन्तु मुझे सताने के उद्देश्य से पिताजी जानबूझकर घंटी बजाते और जैसे ही मेरा रोना शुरू होता वो घंटी बजाना बंद कर देते! जब मैं बोलने लायक बड़ा हुआ तो मैंने घंटी को 'घाटू-पाटू' कहना शुरु कर दिया और धीरे-धीरे मेरा घंटी के प्रति डर खत्म हो गया|
माँ द्वारा बताई उसी बात को याद कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| एक तरफ जहाँ मैं अपने छुटपन में घंटी से डरता था, वहीं मेरी बिटिया रानी इतनी निडर थी की वो घंटी की तरफ आकर्षित हो रही थी| बहरहाल, स्तुति की नजरें घंटी पर टिकी थी और जब घंटी बजाने वाली आंटी जी ने स्तुति को घंटी पर नजरें गड़ाए देखा तो उन्होंने वो घंटी स्तुति की ओर बढ़ा दी| स्तुति ने फट से घंटी पकड़ ली, स्तुति को घंटी भा गई थी और स्तुति घंटी बजाने को उत्सुक थी मगर उसे घंटी बजाने आये तब न?! मैंने स्तुति की व्यथा समझते हुए उसका हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे गोल-गोल घुमा कर घंटी बजाई तो स्तुति ख़ुशी से फूली नहीं समाई|
उधर अपनी छोटी पोती को यूँ भजन में हिस्सा लेते देख माँ का दिल बहुत प्रसन्न था| वहीं दूसरी तरफ बाकी महिलाएं भी एक छोटी सी बच्ची को पूजा-पाठ में यूँ हिस्सा लेते देख माँ से स्तुति की तारीफ करने में लगी थीं|
स्तुति का पहला जन्मदिन नज़दीक आ रहा था और मैं इस दिन की सारी प्लानिंग पहले से किये बैठा था| मेरे बुलावे पर भाईसाहब सहपरिवार स्तुति के जन्मदिन के 3 दिन पहले ही आ गए| अनिल की नौकरी के चलते उसे छुट्टी नहीं मिल पाई थी| अनिल की कमी सभी को खली खासतौर पर संगीता को लेकिन संगीता ने अनिल से कोई शिकायत नहीं की|
खैर, भाभी जी ने घर पहुँचते ही स्तुति को गोदी लेना चाहा मगर मेरी नटखट बिटिया अपनी मामी जी के पास नहीं गई, ऐसे में भाभी जी का नाराज़ होना जायज था; "ओ लड़की! पिछलीबार कहा था न की मेरे बुलाने पर चुपचाप आ जाना वरना मैं तुझसे बात नहीं करुँगी!" भाभी जी ने स्तुति को प्यारभरी डाँट लगाई मगर स्तुति ने अपनी मामी जी की डाँट को हँसी में उड़ाते हुए भाभी जी को जीभ चिढ़ाई! “चलो जी! ये लड़की मेरी गोदी में नहीं आती, तो हम यहाँ रह कर क्या करें!" ये कहते हुए भाभी जी अपना झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाते हुए उठ खड़ी हुईं| अपनी मामी जी को नाराज़ देख आयुष और नेहा हाथ जोड़े हुए आगे आये; "मामी जी, मत जाओ!" आयुष बड़े प्यार से बोला|
"मामी जी, छोडो इस शैतान लड़की को! आपके पास आपके भांजा-भांजी भी तो हैं, हम दोनों आपकी सेवा करेंगे|" नेहा अपनी मामी जी की कमर से लिपटते हुए बोली| अपनी भांजी की बातें सुन और भांजे का प्रेम देख भाभी जी पिघल गईं और वापस सोफे पर बैठ दोनों बच्चों को अपने गले लगा कर स्तुति को चिढ़ाते हुए बोलीं; "ये हैं मेरे प्यारे-प्यारे भांजा-भांजी! मैं इनके लिए रुकूँगी, इनको लाड-प्यार करुँगी, इनको अच्छी-अच्छी चीजें खरीद कर दूँगी! लेकिन इस नकचढ़ी लड़की (स्तुति) को कुछ नहीं मिलेगा!" भाभी जी स्तुति को चिढ़ाते हुए बोलीं ताकि स्तुति उनकी गोदी में आ जाए मगर मेरी नटखट बिटिया ने अपनी बड़ी मामी जी को अपनी जीभ दिखा कर चिढ़ाया और मेरे सीने से लिपट कर खिलखिलाने लगी|
"हाय राम! ये चुहिया तो मुझे ही जीभ चिढ़ा रही है!" भाभी जी प्यारभरे गुस्से से बोलीं जिसपर हम सभी ने जोरदार ठहाका लगाया| "आयुष और नेहा ही अच्छे हैं, कम से कम ये मेरा मज़ाक तो नहीं उड़ाते!" भाभी जी ने आयुष और नेहा की तारीफ की ही थी की पीछे से संगीता बोल पड़ी; "इनकी बातों में मत आओ भाभी, ये बातें बनाना इन दोनों शैतानों ने इनसे (मुझसे) सीखा है|" संगीता आँखों से मेरी ओर इशारा करते हुए बोली| "स्तुति शरारतों मं उन्नीस है तो ये दोनों (आयुष और नेहा) बीस हैं!" इतना कहते हुए संगीता ने तीनों बच्चों की शिकायतों का पिटारा खोल दिया; “परसों की बात है, मैं नहाने जा रही थी इसलिए मैंने आयुष को स्तुति के साथ खेलने को कहा| माँ तब टी.वी. देख रहीं थीं, नेहा पढ़ाई कर रही थी और ये दोनों भाई बहन (आयुष और स्तुति) खेलने में लगे थे| तभी माँ ने आयुष से पीने के लिए पानी माँगा, आयुष पानी लेने रसोई में गया तो ये शैतान की नानी (स्तुति) उसके पीछे-पीछे रसोई में आ गई| इधर रसोई में, आयुष ने पानी का गिलास उठाते-उठाते आटें की कटोरी गिरा दी! आटा फर्श पर फ़ैल गया और इस शैतान की नानी को खेलने के लिए नई चीज़ मिल गई| इसने आव देखा न ताव फट से फर्श पर फैले आटे में अपने हाथ लबेड लिए और आटा अपने साथ-साथ पूरे फर्श पर पोत दिया!
आयुष जब अपनी दादी जी को पानी दे कर लौटा तो उसने स्तुति को आटे में सना हुआ देखा| बजाए स्तुति को गोदी ले कर दूर बिठा कर आटा झाड़ने के, ये उस्ताद जी तो स्तुति के साथ आटे में अपने हाथ सान कर स्तुति के गाल पोतने में लग गए! और ये शैतान की नानी भी पीछे नहीं रही, ये भी अपने आटे से सने हुए हाथ आयुष के गाल पर लगाने लगी! ये दोनों शैतान भाई-बहन आधे घंटे तक फर्श पर बैठे हुए एक दूसरे को आटे से रगड़-रगड़ कर होली खेल रहे थे!" संगीता के सबसे पहले आयुष और स्तुति की शैतानोयों का जिक्र करने पर सब हँस पड़े थे, लेकिन सबसे ज्यादा नेहा हँस रही थी| अब जैसा की होता है, नेहा की हँसी संगीता को नहीं भाइ और उसने नेहा की शिकायतें शुरू कर दी; "तू ज्यादा मत हँस! ये लड़की भी कम नहीं है, इसने तो अपनी ही बहन के चेहरे पर मेक-अप टुटोरिअल्स (make-up tutorials) ट्राई (try) करने शुरू कर दिए! मेरा आधा फेस पाउडर, इस लड़की (नेहा) ने स्तुति को पोत-पोत कर खत्म कर दिया! पूरी लिपस्टिक स्तुति के गालों और पॉंव की एड़ी पर घिस-घिस कर लाल कर-कर के खत्म कर दी! मैं नहाने गई नहीं की दोनों बहनों का ब्यूटी पारलर खुला गया और मेक-अप पोत-पोत कर स्तुति को ब्यूटी क्वीन (beauty queen) बनाने लग गई!" जैसे ही संगीता ने मेरी लाड़ली बिटिया को ब्यूटी क्वीन कहा मेरी हँसी छूट गई और मुझे हँसता हुआ देख संगीता को सबसे मेरी शिकायत करने का मौका मिल गया; "और ई जो इतना खींसें निपोरत हैं, ई रंगाई-पुताई इनका सामने होवत रही और ई दुनो बहिनो (नेहा और स्तुति) को रोके का छोड़ कर खूब हँसत रहे!
ई स्तुति, घर का कउनो कोना नाहीं छोड़िस सब का सब कोना ई सैतान आपन चित्रकारी से रंग दिहिस! और बजाए ऊ (स्तुति को) का रोके-टोके का, ई (मैं) स्तुति संगे बच्चा बनी के ऊ का उत्साह बढ़ावत हैं!" संगीता ने देहाती में जी भर कर मेरी और बच्चों की शिकायत की मगर उसकी शिकयतें सुन कर किसी को गुस्सा नहीं आया, बल्कि सभी ठहाका लगा कर हँसने लगे|
जब सब हँस रहे थे तो स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी| अब जब स्तुति हँस रही थी तो मैंने इसका फायदा उठाते हुए स्तुति को उसकी नानी जी की गोदी में बिठा दिया| फिर बारी-बारी स्तुति ने सभी की गोदी की सैर की तथा सभी को अपनी मीठी-मीठी पप्पी लेने दी, सबसे मिलकर मेरी बिटिया फिर मेरी गोदी में लौट आई और मुझसे लिपट गई|
स्तुति के जन्मदिन की सारी बातें हम स्तुति के सामने ही बड़े आराम से कर रहे थे क्योंकि स्तुति को कुछ कहाँ समझ में आना था, उसके लिए तो उसके जन्मदिन का ये सरप्राइज क़ायम ही रहने वाला था|
अब चूँकि विराट घर पर आ गया था तो आयुष नेहा तथा स्तुति को खेलने के लिए एक और साथी मिल गया था|
जब मैं तीसरी कक्षा में था तब हम सभी लड़कों को क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता था, समस्या ये थी की बाहर ग्राउंड पर बड़े बच्चों का कब्ज़ा था और हमारे पास खेलने के लिए न तो क्रिकेट बैट था और न ही बॉल! ऐसे में इस समस्या का तोड़ हम सभी ने मिल कर निकाला| हमारा ज्योमेट्री बॉक्स (geometry box) बना हमारा क्रिकेट बैट, फिर हमने बनाई बॉल और वो भी कागज को बॉल का आकार दे कर तथा उस पर कस कर रबर-बैंड (rubber band) बाँध कर| कागज की इस बॉल के बड़े फायदे थे, एक तो इस बॉल के खोने का हमें कोई दुःख नहीं होता था, क्योंकि हम बॉल के खोने पर तुरंत दूसरी बॉल बना लेते थे| दूसरा हम इस बॉल को कभी भी बना सकते थे| एक ही समस्या थी और वो ये की ये बॉल फेंकने पर टप्पा नहीं खाती थी मगर इसका भी हल हमने ढूँढ निकाला, हमने इस कागज की बॉल के ऊपर हम बच्चे जो घर से एल्युमीनियम फॉयल (aluminum foil) में खाना रख कर लाते थे वही फॉयल हम इस बॉल पर अच्छे से लपेट कर रबर-बैंड बाँध देते थे| इस जुगाड़ से बॉल 1-2 टप्पे खा लेती थी| ग्राउंड में हम अपने इस जुगाड़ से बने बैट-बॉल से खेल कर अपनी किरकिरी नहीं करवाना चाहते थे इसलिए हमने क्लास के अंदर ही खेलना शुरू कर दिया| फ्री पीरियड मिला नहीं, या फिर लंच हुआ नहीं और हम सब लग गए क्लास में क्रिकेट खेलने!
अब चूँकि मेरे दोनों बच्चे (आयुष और नेहा) घर से बाहर खेलने नहीं जाते थे इसलिए मैंने सौगात में उन्हें अपने बचपन का ये खेल घर के भीतर ही खेलना सीखा दिया था| अब जब विराट आया हुआ था तो चारों बच्चों ने मिलकर बैठक में ये खेल खेलना शुरू कर दिया| आयुष, नेहा और विराट को तो बैटिंग-बॉलिंग मिलती थी मगर स्तुति बेचारी को बस सोफे के नीचे से बॉल निकलने को रखा हुआ था| बॉल सोफे के नीचे गई नहीं की सब लोग स्तुति को बॉल लेने जाने को कह देते| मेरी बेचारी बिटिया को सोफे के नीचे से बॉल निकालना ही खेल लगता इसलिए वो ख़ुशी-ख़ुशी ये खेल खेलती|
इधर सबकी मौजूदगी में मुझ पर रोमांस करने का अजब ही रंग चढ़ा हुआ था| किसी न किसी बहाने से मैं संगीता के इर्द-गिर्द किसी चील की भाँती मंडराता रहता| ऐसे ही एक बार, माँ और मेरी सासु माँ बैठक में बच्चों के साथ बैठीं टीवी देखने में व्यस्त थीं| भाईसाहब घर से बाहर कुछ काम से गए थे और भाभी जी नहाने गईं थीं, मौका अच्छा था तो मैंने संगीता को रसोई में दबोच लिया| मेरी बाहों में आते ही संगीता मचलने लगी और आँखें बंद किये हुए बोली; "घर में सब मौजूद हैं और आप पर रोमांस हावी है?! कोई आ गया तो?" संगीता के सवाल के जवाबा में मैंने उसे अपनी बाहों से आज़ाद किया तथा मैं स्लैब के सामने खड़ा हो गया और संगीता को अपने पीछे खींच लिया| अब संगीता के दोनों हाथ मेरी कमर पर जकड़े हुए थे और मैं स्लैब पर आगे की ओर झुक कर आलू काटने लगा| मैंने ये दाव इसलिए चला था ताकि अगर कोई अचानक रसोई में आये तो उसे ये लगे की मैं सब्जी काट रहा हूँ|
मुझे यूँ काम करते देख संगीता को भी ठीक उसी तरह रोमांस छूटने लगा जैसे मुझे छूट रहा था इसलिए उसके दोनों हाथ मेरे हाथों के ऊपर आ गए और वो मेरी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा बैठी! “सससस" की सिसकी ले कर मैंने संगीता को उत्तेजित कर दिया था मगर हमारा रोमांस आगे बढ़ता उससे पहले ही भाभी जी आ गईं और उन्होंने हम दोनों को इस तरह खड़े हुए देख लिया!
"तुम दोनों न..." इतना कहते हुए भाभी जी ने अपना प्यार भरा गुस्सा हमें दिखाया| भाभी जी की आवाज़ सुन हम दोनों मियाँ-बीवी एकदम से सकपका गए और मैंने संगीता के बचाव में झूठ बोल दिया; "वो भाभी जी...वो...संगीता मुझे आलू काटना सीखा रही थी!" मेरा ये बेसर-पैर का झूठ सुन भाभी जी जोर से हँस पड़ीं और मेरे कान खींचते हुए बोलीं; "देवर जी, कमसकम झूठ तो ठीक से बोला करो! इतना बढ़िया खाना बनाते हो और कह रहे हो की तुम्हें आलू काटना नहीं आता?!" मैं अगर वहाँ और रुकता तो भाभी जी मेरी अच्छे से खिंचाई कर देतीं इसलिए मैं दुम दबाकर वहाँ से भाग आया|
मैं तो अपनी जान ले कर भाग निकला था, रह गई बेचारी संगीता अकेली भाभी जी के साथ इसलिए भाभी जी उसे समझाने लगीं; "संगीता, देख मानु अभी जवान है और जवानी में खून ज्यादा उबलता है! तेरी अब वो उम्र नहीं रही...तेरे अब तीन बच्चे हो गए हैं तो अब ज़रा अपने आप को काबू में रखा कर! तू काबू में नहीं रहेगी तो मानु कैसे खुद को काबू में रखेगा?!" भाभी जी ने संगीता को प्यार से समझाया था मगर उनकी कही बात संगीता के दिल को चुभ गई थी! भाभी जी ने बातों ही बातों में हम मियाँ-बीवी के बीच 10 साल के अंतर् होने की बात संगीता को याद दिला कर उसका जी खट्टा कर दिया था!
मैं उस वक़्त स्तुति के कपड़ों के बारे में पूछने रसोई में जा रहा था जब मैंने भाभी जी की सारी बात सुनी| मैं समझ गया था की भाभी जी की बातों से संगीता का दिल दुःखा होगा मगर मैं इस वक़्त भाभी जी से कुछ कहने की स्थिति में नहीं था क्योंकि शायद मेरी कही बात भाभी जी को चुभ जाती! मैं चुपचाप कमरे में चला गया और संगीता का मूड कैसे ठीक करना है उसके बारे में सोचने लगा|
रात होने तक मुझे संगीता से अकेले में बात करने का कोई मौका नहीं मिला| रात को जैसे ही सबने खाना खाया, मैं स्तुति को टहलाने के लिए छत की ओर चल दिया| छत की ओर जाते हुए मैंने संगीता को मूक इशारा कर छत पर आने को कहा मगर संगीता ने मुझसे नज़रें चुराते हुए गर्दन न में हिला दी| "तुम्हें मेरी कसम!" मैंने दबी आवाज़ में संगीता की बगल से होते हुए कहा तथा संगीता को अपनी कसम से बाँध कर छत पर बुला लिया| "क्या हुआ जान?" मैंने बड़े प्यार से सवाल पुछा जिसके जवाब में संगीता सर झुकाये गर्दन न में हिलाने लगी| "भाभी जी की बातों को दिल से लगा कर दुखी हो न?" मेरी कही ये बात सुन संगीता मेरी आँखों में देखने लगी| मेरी आँखों में देखते ही संगीता की आँखें नम हो गई| "आजा मेरा बच्चा!" ये कहते हुए मैंने संगीता को अपने सीने से लगा लिया| इस समय स्तुति मेरी गोदी में थी और संगीता मेरे सीने से लग कर सुबकने लगी थी| स्तुति ने जब महसूस किया की उसकी मम्मी रो रहीं हैं तो उस छोटी सी बच्ची ने अपनी मम्मी के सर पर हाथ रख दिया तथा अपनी बोली-भाषा में कुछ बोल कर मेरा ध्यान अपनी मम्मी की तरफ खींचने लगी| उस पल मुझे लगा जैसे मेरी स्तुति बिटिया सब कुछ समझती हो!
"बस-बस मेरी जान! और रोना नहीं!" मैंने संगीता के सर को चूमते हुए कहा| संगीता मेरे सीने से अलग हुई और अपने आँसूँ पोछने लगी| "जान, दुनिया कुछ भी कहे उससे हमें कुछ फर्क नहीं पड़ना चाहिए न?! अगर तुम इसी तरह लोगों की बातें दिल से लगाओगी तो न तुम खुश रह पाओगी और न मैं!" मेरी अंत में कही बात सुन कर संगीता घबरा गई| वो खुद तो दुःख-दर्द बर्दाश्त कर सकती थी मगर वो मुझे कभी दुखी नहीं कर सकती थी| "सोली (sorry) जान!" संगीता अपने कान पकड़ते हुए छोटे बच्चों की तरह तुतला कर बोली| अपनी मम्मी को यूँ तुतला कर बोलते देख स्तुति बहुत खुश हुई और उसने किलकारियाँ मारनी शुरू कर दी| मैंने भी संगीता को फिर से अपने गले लगा लिया और हम तीनों मियाँ-बीवी-बेटी इसी तरह गले लगे हुए खड़े रहे|
कुछ समय बाद मैंने संगीता को छेड़ते हुए कहा; "रात 2 बजे तैयार रहना!" मेरी बातों में छुपी शरारत भाँपते हुए संगीता मुझसे दूर हो गई और अपने होठों पर हाथ रखते हुए मुझे अस्चर्य से भरकर देखने लगी| वो जानती थी की इतनी रात को अगर मैं उसे बुला रहा हूँ तो मुझे उससे क्या 'काम' लेना है?!
"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रही हो?" मैंने अनजान बनते हुए सवाल पुछा| मुझे लगा था की मेरी बात से संगीता और शर्माएगी मगर वो तो अपनी शर्म छोड़कर बोली; "ठीक है! लेकिन आप भाभी से उनकी कही बात के बारे में कोई बात नहीं करोगे|" संगीता के मेरी बात मान जाने से मैं खुश तो था मगर ऊसके द्वारा मुझे भाभी जी से बात करने पर रोकने पर मैं असमंजन में था| "प्लीज जानू!" संगीता ने थोड़ा जोर लगा कर कहा तो मैंने उसकी बात मान ली और ख़ुशी-ख़ुशी सर हाँ में हिला दिया| भाभी जी, संगीता और मेरे प्यार के बारे में कुछ नहीं जानती थीं, ऐसे में मेरा उनसे कुछ भी कहना शायद उनको बुरा लग सकता था जिससे स्तुति के जन्मदिन में विघ्न पड़ जाता|
खैर, आज रात दो बजे का जुगाड़ हो गया था और क्या जुगाड था वो! रात के सन्नाटे में हम दोनों प्रेमी सबसे नजरें छुपाते हुए ऊपर वाली छत पर पहुँचे| वहाँ टंकी के नीचे चुहलबाज़ी करने के लिए काफी जगह थी, ऊपर से रात के इस पल में कोई हमें देखने वाला भी नहीं था| अब जब हमें किसी का भय नहीं था तो प्रेम का वो तूफ़ान उठा की हम दोनों ही पसीने से लथ-पथ हो गए| आज के इस प्रेमपसंग में कुछ अलग ही आनंद था, शायद खुले आसमान के तले प्रेम समागम करने की उत्तेजना का असर था!
थक कर जब हम कुछ पल के लिए साँस ले रहे थे तब संगीता मेरे सीने पर सर रखते हुए बोली; "जानू...आज सबसे छुप कर छत पर आते समय ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई 18 साल की युवती हूँ जो अपने प्रेमी से मिलने चोरी-छुपे छत पर आ रही हो!" संगीता की बता ने मुझे आज फिर गाँव में हमारे छिप-छिप कर मिलने की याद दिला दी, जिस कारण मेरे दिल में प्यारी सी गुदगुदी उठी; "मेरे लिए तो तुम हमेशा अठरह की बाली उम्र की रहोगी!" ये कहते हुए मैंने संगीता के सर को चूम लिया| मेरी प्यारभरी बात का असर संगीता पर खुमारी बन कर छाने लगा और इस मौके का लाभ उठा कर हमने फिर एक बार प्रेम समागम किया!
जारी रहेगा भाग - 20 {5(ii)} में...