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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Sanju@

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अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 17 (2)


अब तक अपने पढ़ा:


बहरहाल, दिन बीत रहे थे पर नेहा और मेरे बीच बनी दूरी वैसी की वैसी थी| नेहा मेरे नज़दीक आने की बहुत कोशिश करती मगर मैं उससे दूर ही रहता| मैं नेहा को अपने जीवन से निकाल चूका था और उसे फिर से अपने जीवन में आने देना नहीं चाहता था| मुझसे...एक पिता से पुनः प्यार पाने की लालसा नेहा के भीतर अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी थी! फिर एक समय आया जब नेहा ने हार मान ली और वो इस कदर टूट गई थी की किसी के लिए भी उसे सँभालना नामुमकिन था|


अब आगे:


कुछ
दिन बीते, सुबह का समय था की तभी दिषु का फ़ोन आया, उसने मुझे बताया की एक ऑडिट निपटाने के लिए उसे मेरी मदद चाहिए थी| दरअसल हम दोनों ने इस कंपनी की ऑडिट पर सालों पहले काम किया था, लेकिन कंपनी के एकाउंट्स में कुछ घपला हुआ जिस कारण पुराने सारे अकाउंट फिर से चेक करने थे| समस्या ये थी की ये कपनी थी देहरादून की और कंपनी के सारे लेखा-जोखा रखे थे एक ऐसे गॉंव में जहाँ जाना बड़ा दुर्गम कार्य था| इस गॉंव में लाइट क्या, टेलीफोन के नेटवर्क तक नहीं आते थे| हाँ, कभी-कभी वो बटन वाले फ़ोन में एयरटेल वाला सिम कभी-कभी नेटवर्क पकड़ लेता था| ऑडिट थी 6 दिन की और इतने दिन बिना फ़ोन के रहना मेरी माँ के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक था|

उन दिनों मैं पिताजी का ठेकेदारी का काम बंद कर चूका था| मेरा जूतों का काम थोड़ा मंदा हो चूका था इसलिए मैं इस ऑडिट के मौके को छोड़ना नहीं चाहता था| जब मैंने माँ से ऑडिट के बारे में सब बताया तो माँ को चिंता हुई; "बेटा, इतने दिन बिना तुझसे फ़ोन पर बात किये मेरा दिल कैसे मानेगा?" माँ की चिंता जायज थी परन्तु मेरा जाना भी बहुत जर्रूरी था| मैंने माँ को प्यार से समझा-बुझा कर मना लिया और फटाफट अपने कपड़े पैक कर निकल गया|



जब मैं घर से निकला तब बच्चे स्कूल में थे और जब बच्चे स्कूल से लौटे तथा उन्हें पता चला की मैं लगभग 1 हफ्ते के लिए बाहर गया हूँ, वो भी ऐसी जगह जहाँ फ़ोन का नेटवर्क नहीं मिलता तो सबसे ज्यादा स्तुति नाराज़ हुई! स्तुति ने फौरन मुझे फ़ोन किया और मुझे फ़ोन पर ही डाँटने लगी; "पपई! आप मुझे बिना बताये क्यों गए? वो भी ऐसी जगह जहाँ आपका फ़ोन नहीं मिलेगा?! अब मुझे कौन सुबह-सुबह प्यारी देगा? मैं किससे बात करुँगी? अगर मुझे आपसे कुछ बात करनी हो तो मैं कैसे फ़ोन करुँगी?" स्तुति अपने प्यारे से गुस्से में मुझसे सवाल पे सवाल पूछे जा रही थी और मुझे मेरी बिटिया के इस रूप पर प्यार आ रहा था|

जब स्तुति ने साँस लेने के लिए अपने सवालों पर ब्रेक लगाई तो मैं स्तुति को प्यार से समझाते हुए बोला; "बेटा, मैं घूमने नहीं आया हूँ, मैं आपके दिषु चाचू की मदद करने के लिए आया हूँ| यहाँ पर नेटवर्क नहीं मिलते इसलिए हमारी फ़ोन पर बात नहीं हो सकती, लेकिन ये तो बस कुछ ही दिनों की बात है| मैं जल्दी से काम निपटा कर घर लौटा आऊँगा|" अब मेरी छोटी बिटिया रानी का गुस्सा बिलकुल अपनी माँ जैसा था इसलिए स्तुति मुझसे रूठ गई और बोली; "पपई, मैं आपसे बात नहीं करुँगी! कट्टी!!!" इतना कह स्तुति ने फ़ोन अपनी मम्मी को दे दिया| मैं संगीता से कुछ कहूँ उसके पहले ही संगीता ने अपने गुस्से में फ़ोन काट दिया|



दिषु मेरे साथ बैठा था और उसने हम बाप-बेटी की सारी बातें सुनी थी इसलिए वो मेरी दशा पर दाँत फाड़ कर हँसे जा रहा था! वहीं मुझे भी मेरी बिटिया के मुझसे यूँ रूठ जाने पर बहुत हँसी आ रही थी| मुझे यूँ हँसते हुए देख दिषु मेरी पीठ थपथपाते हुए बोला; "ऐसे ही हँसता रहा कर!" दिषु की कही बात से मेरे चेहरे से हँसी गायब हो गई थी और मैं एक बार फिर से खामोश हो गया था|

दरअसल नेहा और मेरे बीच जो दूरियाँ आई थीं, दिषु उनसे अवगत था| हमेशा मुझे ज्ञान देने वाला मेरा भाई जैसा दोस्त, नेहा के कहे उन ज़हरीले शब्दों के बारे में जानकार भी खामोश था| मानो जैसे उसके पास मुझे ज्ञान देने के लिए बचा ही नहीं था! वो बस मुझे हँसाने-बुलाने के लिए कोई न कोई तिगड़म लड़ाया करता था| ये ऑडिट का ट्रिप भी उसने इसी के लिए प्लान किया था ताकि घर से दूर रह कर मैं थोड़ा खुश रहूँ|



उधर घर पर, स्तुति के मुझसे नाराज़ होने पर आयुष और नेहा अपनी छोटी बहन को लाड कर समझाने में लगे थे की वो इस तरह मुझसे नाराज़ न हो| "तुझे पापा जी से नाराज़ होना है तो हो जा, लेकिन अगर पापा जी तुझसे नाराज़ हो गए न तो तू उन्हें कभी मना नहीं पायेगी!" नेहा भारीमन से भावुक हो कर बोली| नेहा की बात से उसका दर्द छलक रहा था और अपनी दिद्दा का दर्द देख स्तुति एकदम से भावुक हो गई थी! ऐसा लगता था मानो उस पल स्तुति ने मेरे नाराज़ होने और उससे कभी बता न करने की कल्पना कर ली हो!

अपनी दीदी को यूँ हार मानते देख आयुष ने पहले अपनी दीदी को सँभाला, फिर स्तुति का ध्यान भटकाने के लिए आयुष ने उस दिन की घटना का जिक्र किया जब मैं दोनों (नेहा-आयुष) से नाराज़ हो गया था; "एक बार मैं और दीदी, पापा जी से लड़ पड़े थे क्योंकि उन्होंने हमें बाहर घुमाने का प्लान अचानक कैंसिल कर दिया था| तब गुस्से में आ कर हमने पापा जी से बहुत गंदे तरीके से बात की और उनसे बात करनी बंद कर दी| लेकिन फिर दादी जी ने हमें बताया की साइट पर सारा काम पापा जी को अकेला सँभालना था, ऊपर से मैंने पापा जी के फ़ोन की बैटरी गेम खेलने के चक्कर में खत्म कर दी थी इसलिए पापा जी हमें फ़ोन कर के कुछ बता नहीं पाए| सारा सच जानकार हमें बहुत दुःख हुआ की हमने पापा जी को इतना गलत समझा| मैंने और दीदी ने पापा जी से तीन दिन तक माफ़ी माँगी पर पापा जी ने हमें माफ़ नहीं किया क्योंकि हम अपनी गलती पापा जी के सामने स्वीकारे बिना ही उनसे माफ़ी माँग रहे थे!

फिर मैंने और दीदी ने अपनी सारी हिम्मत बटोरी और कान पकड़ कर पापा जी के सामने अपनी गलती स्वीकारी| तब जा कर पापा जी ने हमें माफ़ किया और हमें गोदी ले कर खूब लाड-प्यार किया| उस दिन से हम कभी पापा जी से नाराज़ नहीं होते थे, जब भी हमें कुछ बुरा लगता तो हम सीधा उनसे बात करते थे और पापा जी हमें समझाते तथा हमें लाड-प्यार कर या बाहर से खिला-पिला कर खुश कर देते|



आपको पता है स्तुति, पापा जी हमारे लिए बहुत मेहनत करते हैं ताकि वो हमारी जर्रूरतें, हमारी सारी खुशियाँ पूरी कर सकें| हाँ, कभी-कभी वो काम में बहुत व्यस्त हो जाते हैं और हमें ज्यादा समय नहीं दे पाते लेकिन वो हमेशा तो व्यस्त नहीं रहते न?! हमें चाहिए की हम पापा जी की मजबूरियाँ समझें, वो हमारे लिए जो कुर्बानियाँ देते हैं उन्हें समझें और पापा जी की कदर करें| यूँ छोटी-छोटी बातों पर हमें पापा जी से नाराज़ नहीं होना चाहिए, इससे उनका दिल बहुत दुखता है|" आज आयुष ने वयस्कों जैसी बात कर अपनी छोटी बहन को एक पिता की जिम्मेदारियों से बारे में समझाया था| वहीं, स्तुति को अपने बड़े भैया की बात अच्छे से समझ आ गई थी और उसे अब अपने किये गुस्से पर पछतावा हो रहा था|



दूसरी तरफ नेहा, अपने छोटे भाई की बातें सुन कर पछता रही थी! आयुष, नेहा से 5 साल छोटा था परन्तु वो फिर भी मुझे अच्छे से समझता था, जबकि नेहा सबसे बड़ी हो कर भी मुझे हमेशा गलत ही समझती रही|

आयुष की बातों से नेहा की आँखों से पछतावे के आँसूँ बह निकले| स्तुति ने जब अपनी दिद्दा को यूँ रोते हुए देखा तो वो एकदम से अपनी दिद्दा से लिपट गई और नेहा को दिलासे देते हुए बोली; "रोओ मत दिद्दा! सब ठीक हो जायेगा!" स्तुति ने नेहा को हिम्मत देनी चाही मगर नेहा हिम्मत हार चुकी थी इसलिए उसके लिए खुद को सँभालना मुश्किल था| स्तुति ने अपने बड़े भैया को भी इशारा कर नेहा के गले लगने को कहा| दोनों भाई बहन ने नेहा को अपनी बाहों में जकड़ लिया और नेहा को हिम्मत देने लगे|



आयुष और स्तुति के आलिंगन से नेहा को कुछ हिम्मत मिली और उसने खुद को थोड़ा सँभाला| अपनी दीदी का मन खुश करने के लिए आयुष ने नेहा को पढ़ाने के लिए कहा, वहीं स्तुति ने मुझे वीडियो कॉल कर दिया| जैसे ही मैंने फ़ोन उठाया वैसे ही स्तुति ने फ़ोन टेबल पर रख दिया और कान पकड़ कर उठक-बैठक करने लगी! “बेटा, ये क्या कर रहे हो आप?” मैंने स्तुति को रोकते हुए पुछा तो स्तुति एकदम से भावुक हो गई और बोली; " पापा जी, छोलि (sorry)!!! मुझे माफ़ कर दो, मैंने आपको गुच्छा किया! मैं...मुझे नहीं पता था की आप काम करने के लिए इतने दूर गए हो| मुझे माफ़ कर दो पापा जी! मुझसे नालाज़ (नाराज़) नहीं होना!” ये कहते हुए स्तुति की आँखें भर आईं थीं और उसका गला भारी हो गया था|

"बेटा, किसने कहा मैं आपसे नाराज़ हूँ?! मैं कभी अपनी प्यारु बेटु से नाराज़ हो सकता हूँ?! मेरी एक ही तो छोटी सी प्यारी सी बेटी है!" मैंने स्तुति को लाड कर हिम्मत दी और रोने नहीं दिया|

"आप मुझसे नालाज़ नहीं?" स्तुति अपने मन की संतुष्टि के लिए तुतलाते हुए पूछने लगी|

"बिलकुल नहीं बेटा! आप मुझे इतनी प्यारी करते हो तो अगर आपने थोड़ा सा गुच्छा कर दिया तो क्या हुआ? जो प्यार करता है, वही तो हक़ जताता है और वही गुच्छा भी करता है|" मैंने स्तुति को बहलाते हुए थोड़ा तुतला कर कहा तो स्तुति को इत्मीनान हुआ की मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ| स्तुति अब फिर से खिलखिलाने लगी थी और मैं भी अपनी बिटिया को खिलखिलाते हुए देख मैं बहुत खुश था|



खैर, हम दोनों दोस्त अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचे और वहाँ से शुरू हुई एक दिलचस्प यात्रा! बस स्टैंड से गॉंव जाने का रास्ता एक ट्रेक (trek) था! मुझे ट्रैकिंग (trekking) करना बहुत पसंद था इसलिए इस ट्रेक के लिए मैं अतिउत्साहित था| कच्चे रास्तों, जंगल और एक झरने को पार कर हम आखिर उस गॉंव पहुँच ही गए| पूरा रास्ता दिषु बस ये ही शिकायत करता रहा की ये रास्ता कितना जोखम भरा और दुर्गम है! वहीं मैं बस ये शिकायत कर रहा था की; "बहनचोद ऑफिस के डाक्यूमेंट्स ऐसी जगह कौन रखता है?!"

"कंपनी का मालिक भोसड़ी का! साले मादरचोद ने सारे रिकार्ड्स और डाक्यूमेंट्स अपने पुश्तैनी घर में रखे हैं|” दिषु गुस्से से बिलबिलाते हुए बोला|



ट्रेक पूरा कर ऊपर पहुँचते-पहुँचते हमें शाम के 6 बज गए थे| यहाँ हमारे रहने के लिए एक ऑफिस में व्यवस्था की गई थी इसलिए नहा-धो कर हमने खाना खाया और 8 बजते-बजते लेट गए| पहाड़ी इलाका था इसलिए हमें ठंड लगने लगी थी| ओढ़ने के लिए हमारे पास दो-दो कंबल थे मगर हम जानते थे की ज्यों-ज्यों रात बढ़ेगी ठंड भी बढ़ेगी! "यार आज रात तो कुक्कड़ बनना तय है हमारा!" मैं चिंतित हो कर बोला| मेरी बात सुन दिषु ने अपने बैग से ऐसी चीज़ निकाली जिसे देखते ही मेरी सारी ठंड उड़न छू हो गई!

‘रम’ (RUM) दो अक्षर के इस जादूई शब्द ने बिना पिए ही हमारे शरीर में गर्मी भरनी शुरू कर दी थी| "शाब्बाश!" मैं ख़ुशी से दिषु की पीठ थपथपाते हुए बोला| बस फिर क्या था हम दोनों ने 2-2 नीट (neat) पेग खींचे और लेट गए| रम की गर्माहट के कारण हमें ठंड नहीं लगी और हम चैन की नींद सो गए| अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर हमने काम शुरू किया| हमारे खाने-पीने का इंतज़ाम पहले से हो रखा था इसलिए हमें कोई चिंता नहीं थी| इसी के साथ आज रात में सोते समय दिषु ने एक और चीज़ का प्रबंध कर दिया था| रात को सोते समय साले ने हमें खाना बना कर देने वाले खानसामे से हशीश का जुगाड़ कर लिया था! "भोसड़ी के, ये कहाँ से लाया तू?" मैंने हैरान होते हुए पुछा तो दिषु ने मुझे सच बताया की वो यहाँ आने से पहले सारी प्लानिंग कर के आया था|



हशीश हमने ले तो ली मगर दिषु ने आज तक सिगरेट नहीं पी थी! वहीं मैंने सिगरेट तो पी थी मगर मैंने कभी इस तरह का ड्रग्स नहीं लिया था| कुछ नया काण्ड करने का जोश हम दोनों दोस्तों में भरपूर था इसलिए कमर कस कर हमने सोच लिया की आज तो हम ये नया नशा ट्राय कर के रहेंगे|



जब मैं छोटा था तब मैंने कुछ लड़कों को गॉंव में चरस आदि पीते हुए देखा था इसलिए हशीश को सिगरेट में भरने के लिए जो गतिविधि करनी होती है मैं उससे रूबरू था| हम दोनों अनाड़ी नशेड़ी अपना-अपना दिमाग लगा कर हशीश के साथ प्रयोग करने लगे| आधा घंटा लगा हमें एक सिगरेट भरने में, जिसमें हमने अनजाने में हमने हशीश की मात्रा ज्यादा कर दी थी|



सिगरेट तैयार हुई तो दिषु ने मुझे पहले पीने को कहा ताकि मैं उसे सिगरेट पीना सीखा सकूँ| मैंने भी चौधरी बनते हुए दिषु को एक शिक्षक की तरह अच्छे से समझाया की उसे सिगरेट का पहला कश कैसे खींचना है|

सिगरेट पीने का सिद्धांत मैं दिषु को सीखा चूका था, अब मुझे उसे सिगरेट का पहला कश खींच कर दिखाना था| सिगरेट जला कर मैंने पहला कश जानबूझ कर छोटा खींचा ताकि कहीं मुझे खाँसी न आ जाए और दिषु के सामने मेरी किरकिरी न हो जाये| पहला कश खींचने के बाद मुझे कुछ महसूस नहीं हुआ, ऐसा लगा मनो मैं कोई साधारण सिगरेट पी रहा हूँ| हाँ सिगरेट की महक अलग थी और मुझे ये बहुत अच्छी भी लग रही थी|



फिर बारी आई दिषु की, जैसे ही उसने पहल कश खींचा उसे जोर की खाँसी आ गई! दिषु को बुरी तरह खाँसते हुए देख मुझे हँसी आ गई और मैं अपना पेट पकड़ कर हँसने लगा| "बहनचोद! क्या है ये?! साला गले में जा कर ऐसी लगी की खांसी बंद नहीं हो रही मेरी! तू ही पी!" दिषु गस्से में बोला और सिगरेट मुझे दे दी| मैंने दिषु को सिखाया की उसे छोटे-छोटे कश लेने है और शुरू-शुरू में धुआँ गले से उतारना नहीं बल्कि नाक से निकालना है| जब वो नाक से निकालना सीख जाए तब ही धुएँ को गले से नीचे उतार कर रोकना है|

इस बार जब दिषु ने कश खींचा तो उसे खाँसी नहीं आई| लेकिन उसे हशीश के नशे का पता ही नहीं चला! "साला चूतिया कट गया अपना, इसमें तो साले कोई नशा ही नहीं है!" दिषु मुझे सिगरेट वापस देते हुए बोला| बात तो दिषु की सही थी, आधी सिगरेट खत्म हो गई थी मगर नशा हम दोनों को महसूस ही नहीं हो रहा था|



दिषु का मन सिगरेट से भर गया था इसलिए उसने रम के दो पेग बना दिए| बची हुई आधी सिगरेट मैंने पी कर खत्म की और रम का पेग एक ही साँस में खींच कर लेट गया| उधर दिषु ने भी मेरी देखा-देखि एक साँस में अपना पेग खत्म किया और लेट गया|



करीब आधे घंटे बाद दिषु बोला; "भाई, सिगरेट असर कर रही है यार! मेरा दिमाग भिन्नाने लगा है!" दिषु की बात सुन मैं ठहाका मार कर हँसने लगा| चूँकि मेरे जिस्म की नशे को झेलने की लिमिट थोड़ी ज्यादा थी इसलिए मुझे अभी केवल खुमारी चढ़नी शुरू हो रही थी|

करीब 10 मिनट तक हम दोनों बकचोदी करते हुए हँसते रहे| अब दिषु को आ रही थी नींद इसलिए वो तो हँसते-हँसते कब सो गया मुझे पता ही नहीं चला| इधर हशीश का नशा धीरे-धीरे मेरे सर चढ़ने लगा था| मेरा दिमाग अब काम करना बंद कर चूका था इसलिए मैं कमरे की छत को टकटकी बाँधे देखे जा रहा था| चूँकि अभी दिमाग शांत था तो मन ने बोलना शुरू कर दिया था|



छत को घूरते हुए मुझे नेहा की तस्वीर नज़र आ रही थी| नेहा के बचपन का वो हिस्सा जो हम दोनों ने बाप-बेटी की तरह ख़ुशी-ख़ुशी काटा था, उस बचपन का हर एक दृश्य मैं छत पर किसी फिल्म की तरह देखता जा रहा था| इन प्यारभरे दिनों को याद कर मेरा मन प्रसन्नता से भर गया था|

कुछ देर बाद इन प्यारभरे दिनों की फिल्म खत्म हुई और नेहा के कहे वो कटु शब्द मुझे याद आये| वो पल मेरे लिए मेरी ज़िन्दगी का सबसे दुखद पल था, ऐसा पल जिसे में इतने महीनों में चाह कर भी नहीं भुला पाया था| उस दृश्य को याद कर दिल रोने लगा पर आँखों से आँसूँ का एक कतरा नहीं निकला, ऐसा लगता था मानो जैसे आँखों का सारा पानी ही मर गया हो! जब-जब मैंने घर में नेहा को देखा, मेरा दिल उन बातों को याद कर दुखता था| लेकिन इतना दर्द महसूस करने पर भी मेरे मन से नेहा के लिए कोई बद्दुआ नहीं निकली| मैं तो बस अपनी पीड़ा को दबाने की कोशिश करता रहता था ताकि कहीं मेरी माँ मेरा ये दर्द न देख लें! माँ और दुनिया के सामने खुद को सहेज के रखने के चक्कर में मेरे दिमाग ने मेरे दिल को एक कब्र में दफना दिया था| इस कब्र में कैद हो कर मेरी सारी भावनाएं मर गई थीं| नकारात्मक सोच ने मेरे मस्तिष्क को अपनी चपेट में इस कदर ले लिया था की मैं ये मानने लगा था की स्तुति और आयुष बड़े हो कर, नेहा की ही तरह मेरा दिल दुखायेंगे| इस दुःख से बचने के लिए मैंने अभी इ खुद को कठोर बनाने की तैयारी करनी शुरू कर दी थी, ताकि भविष्य में जब आयुष और स्तुति मेरा दिल दुखाएँ तो मुझे दुःख और अफ़सोस कम हो!



समय का पहिया घुमा और फिर नेहा के साथ वो हादसा हुआ| उस दिन नेहा के रोने की आवाज़ अब भी मेरे कानों में गूँज रही थी| मैंने अपने गुस्से में आ कर जो किया उसके लिए मुझे रत्ती भर पछतावा नहीं था| मुझे चिंता थी तो बस दो, पहली ये की नेहा कहीं उस हादसे के कारण कोई गलत कदम न उठा ले और दूसरी ये की मेरी बिटिया के दामन पर कोई कीचड़ न उछाले| शायद यही कारण था की मैंने आजतक दिषु से उस हादसे का ज़िक्र नहीं किया|

उस हादसे को याद करते हुए मुझे वो पल याद आया जब नेहा ने मुझसे माफ़ी माँगी थी| उस समय मैंने कैसे खुद को रोने से रोका था, ये बस मैं ही जानता हूँ| नेहा की आँखों में मुझे पछतावा दिख रहा था मगर नेहा अपने किये के लिए जो कारण बता रही थी वो मुझे बस बहाने लग रहे थे इसीलिए मैं नेहा को माफ़ नहीं कर पा रहा था|



लेकिन जब संगीता ने मुझसे स्टोर में वो सवाल पुछा की क्या मैं नेहा से नफरत करता हूँ, तब पता नहीं मेरे भीतर क्या बदलाव पैदा हुआ की मैं थोड़ा-थोड़ा पिघलने लगा| मेरे दिमाग ने मेरे दिल को जिस कब्र में बंद कर दिया था, वो कब्र जैसे किसी ने फिर से खोद दी थी और मेरा दिल फिर से बाहर निकलने को बेकरार हो रहा था|

ज्यों-ज्यों संगीता, नेहा को मेरे नज़दीक धकेलने की जुगत करने में लगी थी त्यों-त्यों मेरा गुस्सा कमजोर पड़ने लगा था| उस रात जब नेहा मुझसे लिपट कर सो रही थी और मैं दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गया था, तब नेहा की सिसकियों को सुन मेरा नाज़ुक सा दिल रोने लगा था मगर मेरे दिमाग में भरे गुस्से ने मुझे उस कमरे से उठ कर जाने पर विवश कर दिया था| अकेले कमरे में सोते हुए मेरा मन इस कदर बेचैन था की मैं बस करवटें बदले जा रहा था| मैं खुद को नेहा के सामने कठोर साबित तो करना चाहता था मगर मैं अपनी बिटिया का प्यारा सा दिल भी नहीं दुखाना चाहता था इसीलिए अगली रात से मैं नेहा के मुझसे लिपटने पर दूसरी तरफ करवट ले कर लेट जाया करता था| इससे मैं नेहा के सामने कठोर भी साबित होता था और नेहा का दिल भी नहीं दुखता था|

उस रात जब नेहा ने सारा खाना बनाया, तो अपनी बेटी के हाथ का बना खाना पहलीबार खा कर मेरा मन बहुत प्रसन्न था| मैं नेहा को गले लगा कर लाड करना चाहता था परन्तु मेरा क्रोध मुझे रोके था| लेकिन फिर भी अपनी बेटी की ख़ुशी के लिए मैंने माँ के हाथों उसे शगुन दिलवा कर उसकी मेहनत को सफल बना दिया|

परन्तु मुझे संगीता की नेहा को मेरे नज़दीक करने की चालाकी समझ आ चुकी थी और मेरे अहम ने मुझे सचेत कर इस प्यार में न पड़ने को सचेत कर दिया था| यही कारण था की मैं जानबूझ कर काम करने के बहाने कंप्यूटर चालु किये बैठा था| मेरी इस बेरुखी के कारण मेरी बिटिया का दिल टूट गया और वो सिसकते हुए खुद कमरे से चली गई| अपनी बेटी का दिल दुखा कर मैं खुश नहीं था, मेरा अहम भले ही जीत गया हो मगर मेरा नेहा के प्रति प्यार हार गया था!

इतने दिनों से नेहा के सामने खुद को कठोर दिखाते-दिखाते मैं थक गया था| असल बात ये थी की नेहा को यूँ पछतावे की अग्नि में जलते हुए देख मैं भी तड़प रहा था मगर दिमाग में बसा मेरा गुस्सा मुझे फिर से पिघलने नहीं दे रहा था| नेहा ने बहुत बड़ी गलती की थी मगर एक पिता उसे इस गलती के लिए भी माफ़ करना चाहता था, लेकिन मेरा अहम मुझे बार-बार ये कह कर रोक लेता था की क्या होगा अगर कल को नेहा ने फिर कभी मेरा दिल इस कदर दुखाया तो?! अपनी बड़ी बेटी के कारण मैं एक बार टूट चूका था, वो तो स्तुति का प्यार था जिसने मुझे बिखरने से थाम लिया था, लेकिन दुबारा टूटने की मुझ में हिम्मत नहीं थी|


कमरे की छत को देखते हुए मेरे मन ने अपना रोना रो लिया था मगर इसका निष्कर्ष निकलने में मैं असफल रहा| वैसे भी नशे के कारण मेरा दिमाग काम करना बंद कर चूका था तो मैं क्या ही कोई निष्कर्ष निकालता| अन्तः सुबह के दो बजे धीरे-धीरे नशे के कारण मेरी आँखें बोझिल होती गईं और मैं गहरी नींद में सो गया|

अगली सुबह मुझे दिषु ने उठाया और मेरी हालत देख कर थोड़ा चिंतित होते हुए बोला; "तू सोया नहीं क्या रात भर?" दिषु के सवाल ने मुझे कल रात मेरे भीतर मचे अंतर्द्व्न्द की याद दिला दी इसलिए मैंने बस न में सर हिलाया और नहा-धोकर काम में लग गया| काम बहुत ज्यादा था, मनोरंजन के लिए न तो इंटरनेट था और न ही टीवी इसलिए हम 24 घंटों में से 18 घंटे काम कर रहे थे ताकि जल्दी से काम निपटा कर इस पहाड़ से नीचे उतरें और इंटरनेट चला सकें| वहीं यहाँ आ कर मुझे माँ की चिंता हो रही थी और मैं माँ से फ़ोन पर बात करने को बेचैन हो रहा था| माँ से अगर बात करनी थी तो मुझे 8 किलोमीटर का ट्रेक कर नीचे जाना पड़ता और ये ट्रेक कतई आसान नहीं था क्योंकि पूरा रास्ता कच्चा और सुनसान था तथा जंगली जानवरों का भी डर था इसलिए नीचे अकेला जाने की मेरी हिम्मत नहीं थी! खाने-पीने का सामान नीचे से आता था इसलिए मैंने एक आदमी को अपने घर का नंबर दे कर कहा था की वो वापस जाते समय मेरे सकुशल होने की खबर मेरे घर पहुँचा दे| माँ को मेरे सकुशल होने की खबर तो मिल गई थी मगर घर में क्या घटित हो रहा था इसकी खबर मुझे मिली ही नहीं!



उधर घर पर, स्तुति मेरी गैरमौजूदगी में उदास हो गई थी| अब फ़ोन पर बात हो नहीं सकती थी इसलिए स्तुति को अपना मन कैसा न कैसे बहलाना था| अतः स्तुति पड़ गई अपनी मम्मी के पीछे और संगीता की मदद करने की कोशिश करने लगी| लेकिन मदद करने के चक्कर में स्तुति अपनी मम्मी के काम बढ़ाती जा रही थी| “शैतान!!! भाग जा यहाँ से वरना मारूँगी एक!” संगीता ने स्तुति को डाँट कर भागना चाहा मगर स्तुति अपनी मम्मी को मेरे नाम का डर दिखाते हुए बोली; "आने दो पापा जी को, मैं पापा जी को सब बताऊँगी!" स्तुति ने अपन मुँह फुलाते हुए अपनी मम्मी को धमकाना चाहा मगर संगीता एक माँ थी इसलिए उसने स्तुति को ही डरा कर चुप करा दिया; "जा-जा! तुझे तो डाटूँगी ही, तेरे पापा जी को भी डाँटूंगी!" मुझे डाँट पड़ने के नाम से स्तुति घबरा गई और अपनी दिद्दा के पास आ गई|

स्तुति को लग रहा था की उसकी शैतानियों की वजह से कहीं मुझे न डाँट पड़े इसलिए स्तुति अपनी दिद्दा से पूछने लगी; "दिद्दा, क्या मैं बहुत शैतान हूँ?" स्तुति के मुख से ये सवाल सुन नेहा थोड़ा हैरान थी| परन्तु, नेहा कुछ कहे उसके पहले ही माँ आ गईं| माँ ने स्तुति क सवाल सुन लिया था इसलिए माँ ने स्तुति को गोदी लिया और उसे लाड करते हुए बोलीं; "किसने कहा मेरी शूगी शैतान है?" जैसे ही माँ ने स्तुति से ये सवाल किया, वैसे ही स्तुति ने फट से अपनी मम्मी की शिकायत कर दी; "मम्मी ने!"



अपनी पोती की शिकयत सुन माँ को हँसी आ गई, माँ ने जैसे-तैसे अपनी हँसी दबाई और संगीता को आवाज़ लगाई; "ओ संगीता की बच्ची!" जैसे ही माँ ने संगीता को यूँ बुलाया, वैसे ही स्तुति एकदम से बोली; "दाई, मम्मी की बच्ची तो मैं हूँ!" स्तुति की हाज़िर जवाबी देख माँ की दबी हुई हँसी छूट गई और माँ ने ठहाका मार कर हँसना शुरू कर दिया|

"बहु इधर आ जल्दी!" माँ ने आखिर अपनी हँसी रोकते हुए संगीता को बुलाया| जैसे ही संगीता आई माँ ने उसे प्यार से डाँट दिया; "तू मेरी शूगी को शैतान बोलती है! आज से जो भी मेरी शूगी को शैतान बोलेगा उसे मैं बाथरूम में बंद कर दूँगी! समझी!!!" माँ की प्यारभरी डाँट सुन संगीता ने डरने का बेजोड़ अभिनय किया! अपनी मम्मी को यूँ डरते देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और उसने अपनी मम्मी को ठेंगा दिखा कर चिढ़ाना शुरू कर दिया|



अपनी दादी जी से अपनी मम्मी को डाँट खिला कर स्तुति का मन नहीं भरा था इसलिए स्तुति ने अपनी नानी जी को फ़ोन कर अपनी मम्मी की शिकायत लगा दी; "नानी जी, मम्मी कह रही थी की वो मेरे पापा जी को डाटेंगी!" अपनी नातिन की ये प्यारी सी शिकयत सुन स्तुति को नानी जी को बहुत हँसी आई| अब उन्हें अपनी नातिन का दिल रखना था इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को प्यारभरी डाँट लगा दी; "तू हमार मुन्ना का डांटइहो, तोहका मार-मार के सोझाये देब!" अपनी माँ की डाँट सुन पहले तो संगीता को हैरानी हुई मगर जब उसने स्तुति को देखा तो वो सब समझ गई| "आप जब मारोगे तब मरोगे, पहले मैं इस चुहिया को कूट-पीट कर सीधा करूँ!" इतना कह संगीता स्तुति को झूठ-मूठ का मारने के लिए दौड़ी| अब स्तुति को बचानी थी अपनी जान इसलिए दोनों माँ-बेटी पूरे घर में दौड़ा-दौड़ी करते रहे, जिससे आखिर स्तुति का मन बहल ही गया!



जहाँ एक तरफ स्तुति के कारण घर में खुशियाँ फैली थीं, तो वहीं दूसरी तरफ घर का एक कोना ऐसा भी था जो वीरान था!


मेरे घर में न होने का जिम्मेदार नेहा ने खुद को बना लिया था| नेहा को लग रहा था की मैं उससे इस कदर नाराज़ हूँ की मैं जानबूझ कर घर छोड़कर ऐसी जगह चला गया हूँ जहाँ मैं अकेला रह सकूँ| नेहा के अनुसार उसके कारण एक माँ को अपने बेटे के बिना रहना पड़ रहा था, एक छोटी सी बेटी (स्तुति) को अपने पापा जी के बिना घर में सबसे प्यार माँगना पड़ रहा था तथा हम पति-पत्नी के बीच जो बोल-चाल बंद हुई थी उसके लिए भी नेहा खुद को जिम्मेदार समझ रही थी|

मेरे नेहा से बात न करने, उसे पुनः अपनी बेटी की तरह प्यार न करने के कारण नेहा पहले ही बहुत उदास थी, उस पर नेहा ने इतने इलज़ाम खुद अपने सर लाद लिए थे की ये सब उसके मन पर बोझ बन बैठे थे| मन पर इतना बोझा ले लेने से नेहा को साँस तक लेने में दिक्कत हो रही थी|



नेहा इस समय बहुत ही नाज़ुक दौर से गुज़र रही थी| उसके मन में जन्में अपराधबोध ने नेहा को इस कदर घेर लिया था की वो खुद को सज़ा देना चाहती थी| नेहा ने खुद को एकदम से अकेला कर लिया था| स्कूल से आ कर नेहा सीधा अपनी पढ़ाई में लग जाती, माँ को कई बार नेहा को खाने के लिए कहना पड़ता तब जा कर नेहा एक-आध रोटी खाती| कई बार तो नेहा टूशन जाने का बहाना कर बाद में खाने को कहती मगर कुछ न खाती|

माँ और संगीता, नेहा की पढ़ाई की तरफ लग्न देख इतने खुश थे की उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया की नेहा ठीक से खाना खा रही है या नहीं| वहीं खाने में आनाकानी के अलावा नेहा ने देर रात जाग कर पढ़ना शुरू कर दिया| एक बार तो माँ ने नेहा को प्यार से डाँट भी दिया था की यूँ देर रात तक जाग कर पढ़ना अच्छी बात नहीं|



नेहा को लग रहा था की उसके इस तरह अपने शरीर को कष्ट दे कर वो पस्चताप कर रही है मगर नेहा का शरीर ये पीड़ा सहते-सहते अपनी आखरी हद्द तक पहुँच चूका था| मुझे खोने की मानसिक पीड़ा और अपने शरीर को इस प्रकार यातना दे कर नेहा ने अपनी तबियत खराब कर ली थी!



मेरी अनुपस्थिति में आयुष और स्तुति अपनी दादी जी के पास कहानी सुनते हुए सोते थे, बची माँ-बेटी (नेहा और संगीता) तो वो दोनों हमारे कमरे में सोती थीं| देर रात करीब 1 बजे नेहा ने नींद में मेरा नाम बड़बड़ाना शुरू किया; "पा...पा...जी! पा...पा...जी!" नेहा की आवाज़ सुन संगीता की नींद टूट गई| अपनी बेटी को यूँ नींद मेरा नाम बड़बड़ाते हुए देख संगीता को दुःख हुआ की एक तरफ नेहा मुझे इतना प्यार करती है की मेरी कमी महसूस कर वो नींद में मेरा नाम ले रही है, तो दूसरी तरफ मैं इतना कठोर हूँ की नेहा से इतनी दूरी बनाये हूँ|

अपनी बेटी को सुलाने के लिए संगीता ने ज्यों ही नेहा के मस्तक पर हाथ फेरा, त्यों ही उसे नेहा के बढे हुए ताप का एहसास हुआ! मुझे खो देने का डर नेहा के दिमाग पर इस कदर सवार हुआ की नेहा को बुखार चढ़ गया था! संगीता ने फौरन नेहा को जगाया मगर नेहा के शरीर में इतनी शक्ति ही नहीं बची थी की वो एकदम से जाग सके| संगीता ने फौरन माँ को जगाया, दोनों माओं ने मिल कर नेहा को बड़ी मुश्किल से जगाया और उसका बुखार कम करने के लिए क्रोसिन की दवाई दी| क्रोसिन के असर से नेहा का बुखार तो काम हुआ मगर नेहा का शरीर एकदम से कमजोर हो चूका था| नेहा से न तो उठा जा रहा था और न ही बैठा जा रहा था| नेहा को डॉक्टरी इलाज की जर्रूरत थी परन्तु रात के इस पहर में माँ और संगीता के लिए नेहा को अस्पताल ले जाना आसान नहीं था इसलिए अब सिवाए सुबह तक इंतज़ार करने के दोनों के पास कोई चारा न था| नेहा की हालत गंभीर थी इसलिए माँ और संगीता सारी रात जाग कर नेहा का बुखार चेक करते रहे|



अगली सुबह जब आयुष और स्तुति जागे तो उन्हें नेहा के स्वास्थ्य के बारे में पता चला| नेहा को बीमार देख आयुष ने जिम्मेदार बनते हुए अस्पताल जाने की तैयारी शुरू की, वहीं स्तुति बेचारी अपनी दिद्दा को इस हालत में देख नहीं पा रही थी इसलिए स्तुति अपनी दिद्दा से लिपट कर रोने लगी| नेहा में अभी इतनी भी शक्ति नहीं थी की वो स्तुति को चुप करवा सके इसलिए नेहा ने आयुष को इशारा कर स्तुति को सँभालने को कहा| "स्तुति, अभी पापा जी नहीं हैं न, तो आपको यूँ रोना नहीं चाहिए बल्कि आपको तो दीदी का ख्याल रखना चाहिए|" आयुष ने स्तुति को उसी तरह जिम्मेदारी देते हुए सँभाला जैसे मैं आयुष के बालपन में उसे सँभालता था|
अपने बड़े भैया की बात सुन स्तुति ने फौरन अपने आँसूँ पोछे और अपनी दिद्दा के दोनों गालों पर पप्पी करते हुए बोली; "दीदी, आप जल्दी ठीक हो जाओगे| फिर है न मैं आपको रोज़ रस-मलाई खिलाऊँगी|" स्तुति जानती थी की उसकी दीदी को रस-मलाई कितनी पसंद है इसलिए स्तुति ने अपनी दिद्दा को ये लालच दिया ताकि नेहा जल्दी ठीक हो जाए|





जब भी मैं ऑडिट पर जाता था तो मैं हमेशा माँ को एक दिन ज्यादा बोल कर जाता था क्योंकि जब मैं एक दिन पहले घर लौटता था तो मुझे देख माँ का चेहरा ख़ुशी से खिल जाया करता था| इसबार भी मैंने एक दिन पहले ही काम निपटा लिया और दिषु के साथ घर के लिए निकल पड़ा|

सुबह के 6 बजे मैं घर पहुँचा और दरवाजा खटखटाया| दरवाजा संगीता ने खोला, मुझे लगा था की मुझे जल्दी घर आया देख संगीता का चेहरा ख़ुशी के मारे चमकने लगेगा मगर संगीता के चेहरे पर चिंता की लकीरें छाई हुईं थीं! "क्या हुआ?" मैंने चिंतित हो कर पुछा तो संगीता के मुख से बस एक शब्द निकला; "नेहा"| इस एक शब्द को सुनकर मैं एकदम से घबरा गया और नेहा को खोजते हुए अपने कमरे में पहुँचा|



कमरे में पहुँच मैंने देखा की नेहा बेहोश पड़ी है! अपनी बिटिया की ये हालत देख मेरा कलेजा मुँह को आ गया! मैंने फौरन नेहा का मस्तक छू कर उसका बुखार देखा तो पाया की नेहा का शरीर भट्टी के समान तप रहा है! नेहा की ये हालत देख मुझे संगीता पर बहुत गुस्सा आया; “मेरी बेटी का शरीर यहाँ बुखार से तप रहा है और तुम....What the fuck were you doing till now?! डॉक्टर को नहीं बुला सकती थी?!” मेरे मुख से गाली निकलने वाली थी मगर मैंने जैसे-तैसे खुद को रोका और अंग्रेजी में संगीता को झाड़ दिया!

इतने में माँ नहा कर निकलीं और मुझे अचानक देख हैरान हुईं| फिर अगले ही पल माँ ने मुझे शांत करते हुए कहा; "बेटा, डॉक्टर सरिता यहाँ नहीं हैं वरना हम उन्हें बुला न लेते|" मैंने फौरन अपना फ़ोन निकाला और घर के नज़दीकी डॉक्टर को फ़ोन कर बुलाया| इन डॉक्टर से मेरी पहचान हमारे गृह प्रवेश के दौरान हुई थी| संगीता भी इन डॉक्टर को जानती थी मगर नेहा की बिमारी के चलते उसे इन्हें बुलाने के बारे में याद ही नहीं रहा| संकट की स्थिति में हमेशा संगीता का दिमाग काम करना बंद कर देता है, इसका एक उदहारण आप सब पहले भी पढ़ चुके हैं| आपको तो मेरे चक्कर खा कर गिरने वाला अध्याय याद ही होगा न?!



डॉक्टर साहब को फ़ोन कर मैंने रखा ही था की इतने में स्तुति नहा कर निकली| मुझे देखते ही स्तुति फूल की तरह खिल गई और सीधा मेरी गोदी में आने के लिए छलाँग लगा दी| मेरे सीने से लगते ही स्तुति को चैन मिला और उसकी आँखों से ख़ुशी के आँसूँ बह निकले| "पापा जी, I missed you!" स्तुति भावुक होते हुए बोली| मैंने स्तुति को लाड-प्यार कर बहलाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "I missed you too मेरा बच्चा!"



स्तुति को लाड कर मैंने बिठाया और अपनी बड़ी बेटी नेहा के बालों में हाथ फेरने लगा| मेरे नेहा के बालों में हाथ फेरते ही एक चमत्कार हुआ क्योंकि बेसुध हुई मेरी बेटी नेहा को होश आ गया| नेहा मेरे हाथ के स्पर्श को पहचानती थी अतः अपने शरीर की सारी ताक़त झोंक कर नेहा ने अपनी आँखें खोलीं और मुझे अपने सामने बैठा देखा, अपने बालों में हाथ फेरते हुए देख नेहा को यक़ीन ही नहीं हुआ की मैं उसके सामने हूँ|

"पा..पा..जी" नेहा के मुख से ये टूटे-फूटे शब्द फूटे थे की मेरे भीतर छुपे पिता का प्यार बाहर आ गया; "हाँ मेरा बच्चा!" नेहा को मेरे मुख से 'मेरा बच्चा' शब्द सुनना अच्छा लगता था| आज जब इतने महीनों बाद नेहा ने ये शब्द सुने तो उसकी आँखें छलक गईं और नेहा फूट-फूट के रोने लगी!



"सॉ…री...पा…पा जी...मु…झे...माफ़...." नेहा रोते हुए बोली| मैंने नेहा को आगे कुछ बोलने नहीं दिया और सीधा नेहा को अपने गले लगा लिया| "बस मेरा बच्चा!" इतने समय बाद नेहा को मेरे गले लग कर तृप्ति मिली थी इसलिए नेहा इस सुख के सागर में डूब खामोश हो गई| वहीं अपनी बड़ी बिटिया को अपने सीने से लगा कर मेरे मन के सूनेपन को अब जा कर चैन मिला था|



नेहा को लाड कर मेरी नज़र पड़ी आयुष पर जो थोड़ा घबराया हुआ दरवाजे पर खड़ा मुझे देख रहा था| दरअसल, जब मैंने संगीता को डाँटा तब आयुष मुझसे मिलने ही आ रहा था मगर मेरा गुस्सा देख आयुष डर के मारे जहाँ खड़ा था वहीं खड़ा रहा| मैंने आयुष को गले लगने को बुलाया तो आयुष भी आ कर मेरे गले लग गया| मैंने एक साथ अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और बारी-बारी से तीनों के सर चूमे| मेरे लिए ये एक बहुत ही मनोरम पल था क्योंकि एक आरसे बाद आज मैं अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में समेटे लाड-प्यार कर रहा था|



कुछ देर बाद डॉक्टर साहब आये और उन्होंने नेहा का चेक-अप किया| अपने मन की संतुष्टि के लिए उन्होंने नेहा के लिए कुछ टेस्ट (test) लिखे और दवाई तथा खाने-पीने का ध्यान देने के लिए बोल चले गए| डॉक्टर साहब के जाने के बाद माँ ने मुझे नहाने को कहा तथा संगीता को चाय-नाश्ता बनाने को कहा|

चूँकि नेहा को बुखार था इसलिए उसका कुछ भी खाने का मन नहीं था, पर नेहा मुझे कैसे मना करती?! मैं खुद नेहा के लिए सैंडविच बना कर लाया और अपने हाथों से खिलाने लगा| मेरी बहुत जबरदस्ती करने के बावजूद नेहा से बस आधा सैंड विच खाया गया और बाकी आधा सैंडविच मैंने खाया|

नेहा को इस समय बहुत कमजोरी थी इसलिए नेहा लेटी हुई थी, वहीं मैं भी बस के सफर से थका हुआ था इसलिए मैं भी नेहा की बगल में लेट गया| मेरे लेटते ही नेहा मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर आराम करने लगी| स्तुति ने जब ये दृश्य देखा तो स्तुति मुझ पर हक़ जमाने आ गई और अपनी दीदी की तरह मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर लेट गई| स्तुति कुछ बोल नहीं रही थी मगर उसके मुझसे इस कदर लिपटने का मतलब साफ़ था; 'दिद्दा, आप बीमार हो इसलिए आप पापा जी के साथ ऐसे लिपट सकते हो वरना पपई के साथ लिपट कर सोने का हक़ बस मेरा है!' स्तुति के दिल की बात मैं और नेहा महसूस कर चुके थे इसलिए स्तुति के मुझ पर इस तरह हक़ जमाने पर हम दोनों के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर रही थी|



स्तुति अपनी दिद्दा के साथ सब कुछ बाँट सकती थी मगर जब बात आती थी मेरे प्यार की तो स्तुति किसी को भी मेरे नज़दीक नहीं आने देती!



खैर, मेरे सीने पर सर रख कर लेटे हुए स्तुति की बातें शुरू हो गई थीं| मेरी गैरमजूदगी में क्या-क्या हुआ सबका ब्यौरा मुझे मेरी संवादाता स्तुति दे रही थी| मैंने गौर किया तो मेरे आने के बाद से ही स्तुति मुझे 'पपई' के बजाए 'पापा जी' कह कर बुला रही थी| जब मैंने इसका कारण पुछा तो मेरी छोटी बिटिया उठ बैठी और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "आप घर में नहीं थे न, तो मुझे बहुत अकेलापन लग रहा था| मुझे एहसास हुआ की पूरे घर में एक आप हो जो मुझे सबसे ज्यादा प्यारी करते हो इसलिए मैंने सोच लिया की मैं अब से आपको पपई नहीं पापा जी कहूँगी|" स्तुति बड़े गर्व से अपना लिया फैसला मुझे सुनाते हुए बोली| मेरी छोटी सी बिटिया अब इतनी बड़ी हो गई थी की वो मेरी कमी को महसूस करने लगी थी| इस छोटी उम्र में ही स्तुति को मेरे पास न होने पर अकेलेपन का एहसास होने लगा था जो की ये दर्शाता था की हम बाप-बेटी का रिश्ता कितना गहरा है| मैंने स्तुति को पुनः अपने गले से लगा लिया; "मेरी दोनों बिटिया इतनी सयानी हो गईं|" मैंने नेहा और स्तुति के सर चूमते हुए कहा| खुद को स्याना कहे जाने पर स्तुति को खुद पर बहुत गर्व हो रहा था और वो खुद पर गर्व कर मुस्कुराने लगी थी|





मैंने महसूस किया तो पाया की नेहा को मुझसे बात करनी है मगर स्तुति की मौजूदगी में वो कुछ भी कहने से झिझक रही है| अतः मैंने कुछ पल स्तुति को लाड कर स्तुति को आयुष के साथ पढ़ने भेज दिया| स्तुति के जाने के बाद नेहा सहारा ले कर बैठी और अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये! मैंने आपका बहुत दिल दुखाया! मेरी वजह से आप इतने दुखी थे की आप इतने दिन ऐसी जगह जा कर काम कर रहे थे जहाँ मोबाइल नेटवर्क तक नहीं मिलता था! मेरी वजह से स्तुति को इतने दिन तक आपका प्यार नहीं मिला, मेरी वजह से मम्मी और आपके बीच कहा-सुनी हुई, मेरे कारण दादी जी को...

इतने कहते हुए नेहा की आँखें फिर छलक आईं थीं| मैंने नेहा को आगे कुछ भी कहने नहीं दिया और उसकी बात काटते हुए बोला;

मैं: बस मेरा बच्चा! मैंने आपको माफ़ कर दिया! आप बहुत पस्चताप और ग्लानि की आग में जल लिए, अब और रोना नहीं है| आप तो मेरी ब्रेव गर्ल (brave girl) हो न?!

मैंने नेहा को हिम्मत देते हुए कहा| नेहा को मुझसे माफ़ी पा कर चैन मिला था इसलिए अब जा कर उसके चेहरे पर ख़ुशी और उमंग नजर आ रही थी|



नेहा को मुझसे माफ़ी मिल गई थी, अपने पापा जी का प्यार मिल गया था इसलिए नेहा पूरी तरह संतुष्ट थी| अब बारी थी संगीता की जिसे उसके प्रियतम का प्यार नहीं मिला था और नेहा ये बात जानती थी|

नेहा: मम्मी!

नेहा ने अपनी मम्मी को आवाज़ दे कर बुलाया|

संगीता: हाँ बोल?

संगीता ने नेहा से पुछा तो नेहा ने फौरन अपने कान दुबारा पकड़े और मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये! मेरे कारण आप दोनों के बीच लड़ाई हुई और आपने एक-दूसरे से बात करना बंद कर दिया|

मैंने नेहा के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद दिया| फिर मैं उठ कर खड़ा हुआ तो देखा की संगीता मुझे देख कर मंद-मंद मुस्कुरा रही है! मुझे संगीता की ये मुस्कराहट समझ न आई और मैं भोयें सिकोड़े, चेहरे पर अस्चर्य के भाव लिए संगीता को देखने लगा| दरअसल, मुझे लगा था की मेरे डाँटने से संगीता नाराज़ होगी या डरी-सहमी होगी परन्तु संगीता तो मुस्कुरा रही थी! मेरे भाव समझ संगीता मुस्कुराते हुए बोली;
संगीता: मैं आपके मुझ पर गुस्सा करने से नाराज़ नहीं हूँ| मुझे तो ये देख कर बहुत ख़ुशी हुई की आपने आज इतने समय बाद नेहा पर इतना हक़ जमाया की मुझे झाड़ दिया!
संगीता को मुझ पर बहुत प्यार आ रहा था और वो अपना ये प्यार मुझे अपनी आँखों के इशारे से जता रही थी| वहीं अपनी मम्मी से ये बात सुन नेहा गर्व से फूली नहीं समा रही थी!
नेहा: मम्मी, चलो पापा जी के गले लगो!

नेहा ने प्यार से अपनी मम्मी को आदेश दिया तो हम दोनों ने मिलकर नेहा के इस आदेश का पालन किया|

अभी हम दोनों का ये आलिंगन शुरू ही हुआ था की इतने में स्तुति फुदकती हुई आ गई! अपनी मम्मी को मेरे गले लगे देख स्तुति को जलन हुई और उसने फौरन अपनी मम्मी को पीछे धकेलते हुए प्यार से चेता दिया;

स्तुति: मेरे पापा जी हैं! सिर्फ मैं अपने पापा जी के गले लगूँगी!

स्तुति की इस प्यारभरी चेतावनी को सुन हम दोनों मियाँ-बीवी मुस्कुराने लगे| वहीं नेहा को स्तुति के इस प्यारभरी चेतावनी पर गुस्सा आ गया;

नेहा: चुप कर पिद्दा! इतने दिनों बाद पापा जी और मम्मी गले लगे थे और तू आ गई कबाब में हड्डी बनने!

नेहा ने स्तुति को डाँट लगाई तो स्तुति मेरी टाँग पकड़ कर अपनी दीदी से छुपने लगी| अब अपनी छोटी बिटिया की ख़ुशी के लिए मैंने इशारे से नेहा को शांत होने को कहा और स्तुति को गोदी ले उसे बहलाते हुए बोला;

मैं: वैसे स्तुति की बात सही है! वो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती है इसलिए मुझ पर पहला हक़ मेरी छोटी बिटिया का है!

मैं स्तुति को लाड कर ही रहा था की माँ कमरे में आ गईं| मुझे स्तुति को लाड करते हुए देख माँ बोलीं;

माँ: सुन ले लड़के, आज से तू फिर कभी ऐसी जगह नहीं जाएगा जहाँ तेरा फ़ोन न मिले और अगर तू फिर भी गया तो शूगी को साथ ले कर जाएगा| जानता है तेरे बिना मेरी लालड़ी शूगी कितनी उदास हो गई थी?!
माँ ने मुझे प्यार से चेता दिया तथा मैंने भी हाँ में सर हिला कर उनकी बात स्वीकार ली| उस दिन से ले कर आज तक मैं कभी ऐसी जगह नहीं गया जहाँ मोबाइल नेटवर्क न हो और मैं माँ तथा स्तुति से बात न कर पाऊँ|



नेहा को मेरा स्नेह मिला तो मानो उसकी सारी इच्छायें पूरी हो गई| मेरे प्रेम को पा कर मेरी बड़ी बिटिया इतना संतुष्ट थी की उसका बचपना फिर लौट आया था| नेहा अब वही 4 साल वाली बच्ची बन गई थी, जिसे हर वक़्त बस मेरा प्यार चाहिए होता था यानी मेरे साथ खाना, मेरे साथ कहानी सुनते हुए सोना, मेरे साथ घूमने जाना आदि|

अपनी दिद्दा को मुझसे लाड पाते देख स्तुति को होती थी मीठी-मीठी जलन नतीजन जिस प्रकार स्तुति के बालपन में दोनों बहनें मेरे प्यार के लिए आपसे में झगड़ती थीं, उसी तरह अब भी दोनों ने झगड़ना शुरू कर दिया था| हम सब को नेहा और स्तुति की ये प्यारभरी लड़ाई देख कर आनंद आता था, क्योंकि हमारे अनुसार नेहा बस स्तुति को चिढ़ाने के लिए उसके साथ झगड़ती है| लेकिन धीरे-धीरे मुझे दोनों बहनों की ये लड़ाई चिंताजनक लगने लगी| मुझे धीरे-धीरे नेहा के इस बदले हुए व्यवहार पर शक होता जा रहा था और मेरा ये शक यक़ीन में तब बदला जब मुझे कुछ काम से कानपूर जाना पड़ा जहाँ मुझे 2 दिन रुकना था|

मेरे कानपुर निकलने से एक दिन पहले जब नेहा को मेरे जाने की बात पता चली तो नेहा एकदम से गुमसुम हो गई| मैंने लाड-प्यार कर नेहा को समझाया और कानपूर के लिए निकला, लेकिन अगले दिन मेरे कानपुर के लिए निकलते ही नेहा का मन बेचैन हो गया और नेहा ने मुझे फ़ोन खड़का दिया| जितने दिन मैं कानपूर में था उतने दिन हर थोड़ी देर में नेहा मुझे फ़ोन करती और मुझसे बात कर उसके बेचैन मन को सुकून मिलता|



असल में, नेहा एक बार मुझे लगभग खो ही चुकी थी और इस बात के मलाल ने नेहा को भीतर से डरा कर रखा हुआ था| नेहा को हर पल यही डर रहता था की कहीं वो मुझे दुबारा न खो दे इसीलिए नेहा मेरा प्यार पाने को इतना बेचैन रहती थी|

नेहा के इस डर ने उसे भीतर से खोखला कर दिया था| ये डर नेहा पर इस कदर हावी होता जा रहा था की नेहा को फिर से मुझे खो देने वाले सपने आने लगे थे, जिस कारण वो अक्सर रात में डर के जाग जाती| जितना आत्मविश्वास नेहा ने इतने वर्षों में पाया था, वो सब टूट कर चकना चूर हो चूका था| स्कूल से घर और घर से स्कूल बस यही ज़िन्दगी रह गई थी नेहा की, दोस्तों के साथ बाहर जाना तो उसके लिए कोसों दूर की बात थी| कुल-मिला कर कहूँ तो नेहा ने खुद को बस पढ़ाई तथा मेरे प्यार के इर्द-गिर्द समेट लिया था| बाहर से भले ही नेहा पहले की तरह हँसती हुई दिखे परन्तु भीतर से मेरी बहादुर बिटिया अब डरी-सहमी रहने लगी थी|



नेहा के बाहर घूमने न जाने से घर में किसी कोई फर्क नहीं पड़ा था क्योंकि सब यही चाहते थे की नेहा पढ़ाई में ध्यान दे| परन्तु मैं अपनी बेटी की मनोदशा समझ चूका था और अब मुझे ही मेरी बिटिया को उसका खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः दिलाना था|



कानपूर से लौटने के बाद शाम के समय मैं, स्तुति और नेहा बैठक में बैठे टीवी देख रहे थे| नेहा को समझाने का समय आ गया था अतः मैंने स्तुति को पढ़ाई करने के बहाने से भेज दिया तथा नेहा को समझाने लगा|

मैं: बेटा, आप जानते हो न बच्चों को कभी अपने माँ-बाप से कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए, फिर आप क्यों मुझसे बातें छुपाते हो?

मैंने बिना बात घुमाये नेहा से सवाल किया ताकि नेहा खुल कर अपने जज्बात मेरे सामने रखे| परन्तु मेरा सवाल सुन नेहा हैरान हो कर मुझे देखने लगी;

नेहा: मैंने आपसे कौन सी बात छुपाई पापा जी?!

नेहा नहीं जानती थी की मैं कौन सी बात के बारे में पूछ रहा हूँ इसलिए वो हैरान थी|

मैं: बेटा, जब से आप तंदुरुस्त हुए हो, आप बिलकुल स्तुति की तरह मेरे प्यार के लिए अपनी ही छोटी बहन से लड़ने लगे हो| पहले तो मुझे लगा की ये आपका बचपना है और आप केवल स्तुति को सताने के मकसद से ये लड़ाई करते हो मगर जब आपने रोज़-रोज़ स्तुति से मेरे साथ सोने, मेरी प्यारी पाने तक के लिए लड़ना शुरू कर दिया तो मुझे आपके बर्ताव पर शक हुआ| फिर जब मैं कानपूर गया तो आपने जो मुझे ताबतोड़ फ़ोन किया उससे साफ़ है की आप जर्रूर कोई बात है जो मुझसे छुपा रहे हो| मैं आपका पिता हूँ और आपके भीतर आये इन बदलावों को अच्छे से महसूस कर रहा हूँ| अगर आप खुल कर मुझे सब बताओगे तो हम अवश्य ही इसका कोई हल निकाल लेंगे|

मैंने नेहा के कँधे पर हाथ रख उसे हिम्मत दी तो नेहा एकदम से रो पड़ी!

नेहा: पापा जी...मु...मुझे डर लगता है! में आपके बिना नहीं रह सकती! आप जब मेरे पास नहीं होते तो मैं बहुत घबरा जाती हूँ! कई बार रात में मैं आपको अपने पास न पा कर घबरा कर उठ जाती हूँ और फिर आपकी कमी महसूस कर तब तक रोती हूँ जब तक मुझे नींद न आ जाए|

उस दिन जो हुआ उसके बाद से मैं किसी पर भरोसा नहीं करती! कहीं भी अकेले जाने से मुझे इतना डर लगता है, मन करता है की मैं बस घर में ही रहूँ| स्कूल या घर से बाहर निकलते ही जब दूसरे बच्चे...ख़ास कर लड़के जब मुझे देखते हैं तो मुझे अजीब सा भय लगता है! ऐसा लगता है मानो मेरे साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है! मुझ में अब खुद को बचाने की ताक़त नहीं है इसलिए मुझे बस आपके साथ सुरक्षित महसूस होता है, मैं बस आपके पास रहना चाहती हूँ| लेकिन जब स्तुति मुझे आपके पास आने नहीं देती तो मुझे गुस्सा आता है और हम दोनों की लड़ाई हो जाती है|

नेहा की वास्तविक मनोस्थिति जान कर मुझे बहुत बड़ा धक्का लगा| नेहा के साथ हुए उस एक हादसे ने नेहा को इस कदर डरा कर रखा हुआ है इसकी मैंने कल्पना नहीं की थी|



इधर अपनी बातें कहते हुए नेहा फूट-फूट कर रो रही थी इसलिए मैंने नेहा को अपने सीने से लगा कर उसके सर पर हाथ फेर कर नेहा को चुप कराया| जब नेहा का रोना थमा तो मैंने नेहा के दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और नेहा को समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, ज़िन्दगी में ऐसे बहुत से पल आते हैं जो हमें बुरी तरह तोड़ देते हैं! हमें ऐसा लगता है की हम हार चुके हैं और अब हमारे पास जीने के लिए कुछ नहीं बचा| लेकिन बेटा, हमारी ज़िन्दगी में हमेशा एक न एक व्यक्ति ऐसा होता है जो हमें फिर से खड़े होने की हिम्मत देता है| वो व्यक्ति अपने प्यार से हमें सँभालता है, सँवारता है और हमारे भीतर नई ऊर्जा फूँकता है|



ज़िन्दगी में अगर कभी ठोकर लगे तो उठ कर अपने कपड़े झाड़ कर फिर से चल पड़ना चाहिए| हर कदम पर ज़िन्दगी आपके लिए एक नई चुनाती लाती है, आपको उन चुनौतियों से घबरा कर अपनी आँखें बंद नहीं करनी चाहिए बल्कि अपनी सूझ-बूझ से उन चुनौतियों का सामना करना चाहिए| अपने बचपन में आपने बहुत दुःख झेले मगर आपने हार नहीं मानी और जैसे-जैसे बड़े होते गए आप के भीतर आत्मविश्वास जागता गया| जब भी आप डगमगाते थे तो आपकी दादी जी, मैं, आपकी मम्मी आपके पास होते थे न आपको सँभालने के लिए, तो इस बार आप क्यों चिंता करते हो?!



अब बात करते हैं आपके किसी पर विश्वास न करने पर| बेटा, हाथ की सारी उँगलियाँ एक बराबर नहीं होती न?! उसी तरह इस दुनिया में हर इंसान बुरा नहीं होता, कुछ लोग बहुत अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे| क्या हुआ अगर आपसे एक बार इंसान को पहचानने में गलती हो गई तो?! आप छोटे बच्चे ही हो न, कोई बूढ़े व्यक्ति तो नहीं...और क्या बूढ़े व्यक्तियों से इंसान को पहचानने में गलती नहीं होती?!

बेटा, एक बात हमेशा याद रखना, इंसान गलती कर के ही सीखता है| आपने गलती की तभी तो आपको ये सीखने को मिला की सब लोग अच्छे नहीं होते, कुछ बुरे भी होते हैं| आपको चाहिए की आप दूसरों को पहले परखो की वो आपके दोस्त बनने लायक हैं भी या नहीं और फिर उन पर विश्वास करो| यदि आपको किसी को परखने में दिक्क्त आ रही है तो उसे हम सब से मिलवाओ, हम उससे बात कर के समझ जाएंगे की वो आपकी दोस्ती के लायक है या नहीं?!



अब आते हैं आपके दिल में बैठे बाहर कहीं आने-जाने के डर पर| उस हादसे के बाद आपको कैसा लग रहा है ये मैं समझ सकता हूँ मगर बेटा इस डर से आपको खुद ही लड़ना होगा| घर से बाहर जाते हुए यदि लोग आपको देखते हैं… घूरते हैं तो आपको घबराना नहीं चाहिए बल्कि आत्मविश्वास से चलना चाहिए|

हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ ऐसे दुष्ट प्रवत्ति वाले लोग भी रहते हैं जो की लड़कियों को घूरते हैं, तो क्या ऐसे लोगों के घूरने या आपको देखने के डर से आप सारी उम्र घर पर बैठे रहोगे? कल को आप बड़े होगे, आपको अपना वोटर कार्ड बनवाना होगा, आधार कार्ड बनवाना होगा, पासपोर्ट बनवाना होगा तो ये सब काम करने तो आपको बाहर जाना ही पड़ेगा न?! मैं तो बूढ़ा हो जाऊँगा इसलिए मैं तो इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊँगा, तब अगर आप इसी प्रकार घबराओगे तो कैसे चलेगा? ज़िन्दगी बस घर पर रहने से तो नहीं चलेगी न?!



बेटा, आपको अपने अंदर फिर से आत्मविश्वास जगाना होगा और धीरे-धीरे घर से बाहर जाना सीखना होगा| कोई अगर आपको देखता है तो देखने दो, कोई आपको घूर कर देखता है तो देखने दो, आप किसी की परवाह मत करो| आप घर से बाहर काम से निकले हो या घूमने निकले हो तो मज़े से अपना काम पूरा कर घर लौटो|



आपको एक बात बताऊँ, जब मैं छोटा था तो मैं बहुत गोल-मटोल था ऊपर से आपके दादा जी-दादी जी मुझे कहीं अकेले आने-जाने नहीं देते थे इसलिए जब लोग मेरे गोलू-मोलू होने पर मुझे घूरते या मुझे मोटा-मोटा कह कर चिढ़ाते तो मैं बहुत रोता था| तब आपकी दादी जी ने मुझे एक बात सिखाई थी; 'हाथी जब अपने रस्ते चलता है तो गली के कुत्ते उस पर भोंकते हैं मगर हाथी उनकी परवाह किये बिना अपने रास्ते पर चलता रहता है|' उसी तरह आप भी जब घर से बाहर निकलो तो ये मत सोचो की कौन आपको देख रहा है, बल्कि सजक रहो की आगे-पीछे से कोई गाडी आदि तो नहीं आ रही| इससे आपका ध्यान बंटेगा और आपको किसी के देखने या घूरने का पता ही नहीं चलेगा|

मेरी बिटिया रानी बहुत बहादुर है, वो ऐसे ही थोड़े ही हार मान कर बैठ जायेगी| वो पहले भी अपना सर ऊँचा कर चुनौतियों से लड़ी है और आगे भी जुझारू बन कर चुनौतियों से लड़ेगी|

मैंने बड़े विस्तार से नेहा को समझाते हुए उसके अंधेरे जीवन में रौशनी की किरण दिखा दी थी| अब इसके आगे का सफर नेहा को खुद करना था, उसे उस रौशनी की किरण की तरफ धीरे-धीरे बढ़ना था|

बहरहाल, नेहा ने मेरी बातें बड़े गौर से सुनी थीं और इस दौरान वो ज़रा भी नहीं रोई| जब मैंने नेहा को 'मेरी बहादुर बिटिया रानी' कहा तो नेहा को खुद पर गर्व हुआ और वो सीधा मेरे सीने से लगा कर मुस्कुराने लगी|



उस दिन से नेहा के जीवन पुनः बदलाव आने लगे| नेहा ने धीरे-धीरे अकेले घर से बाहर जाना शुरू किया, शुरू-शुरू में नेहा को उसका डर डरा रहा था इसलिए मुझे एक बार फिर नेहा का मार्गदर्शन करना पड़ा|

आज इस बात को साल भर होने को आया है और नेहा धीरे-धीरे अपनी चुनौतियों का अकेले सामना करना सीख गई है|


तो ये थी मेरे जीवन की अब तक की कहानी|
समाप्त?

नहीं अभी नहीं!
मानू भाई फिर अपने अहम के कारण बिना बच्चो को बताए आडिट के लिए निकल गए लेकिन जब स्तुति को पता चला तो उसने अपने पापा से बात कर अपना गुस्सा जाहिर किया अपने पापा का प्यार पाने के लिए स्तुति भी संगीता भौजी जैसी ही है दोनो को लगता है मानू भी सिर्फ उनके है जब किसी से आपको हद से ज्यादा प्यार हो जाता है तो आप उनके प्यार को किसी को भी नही बांट सकते है। दिशु ने मानू भाई का हर कदम पर भाई की तरह साथ दिया है और आज फिर जब उसे नेहा और मानू भाई के बीच जो दूरियां आई है है उसके बारे पता होते हुए उसने मानू भाई के दुख को दूर करने के लिए ऑडिट का प्लान बनाया ताकि दूसरी जगह पर थोड़ा उनका दुख कम हो और कुछ हद तक वो कामयाब भी रहा है
स्तुति के गुस्सा होने पर आयुष ने अपने बड़े भाई का फर्ज निभाया उसने स्तुति को समझाया यह चित्रण बहुत ही सुंदर था ये मानू भाई के ही संस्कार थे जो इतने छोटे होने के बाद भी जिस प्रकार मानू भाई अपने तीनो बच्चो को समझाता उसकी प्रकार आयुष ने स्तुति को समझाया स्तुति के समझ में आते ही अपने पापा से माफी मांग ली । अपनी गलती को मानकर उसकी माफी मांगना गलती का सब से बड़ा प्रायश्चित है लेकिन उम्र के एक पड़ाव पर नेहा ने ऐसा नहीं किया जिसकी सजा उसको मिली है जब उसे ऐहसास हुआ तो वह खुद को सब का कसूरवार मानने लगी और इस अपराधबोध में वह खुद को अकेला कर सजा देती रही और बीमार पड़ गई
संगीता भौजी ने अपनी बेटी को उसके पापा का प्यार पाने की हर एक कोशिश की उसने नेहा का हर कदम पर साथ दिया ताकि उसकी बेटी को उसके पापा का प्यार मिल जाए लेकिन मानू भाई को पहले ही पता चल जाता और उनके प्लान का तोड़ ढूंढ लेते थे हम ये जानते हैं कि मानू भाई ने जो किया है उससे इनका दिल कितना दुखी हुआ है ये कोई भी महसूस नही कर सकता है लेकिन अपने अहम के लिए कठोर बने रहे भला हो उस दारू का जिसने सारी रात इनको सब कुछ याद दिला दिया शुरू से लेकर अब तक जो नेहा के साथ हुआ और जब घर आकर नेहा के बारे में पता चला तो आखिर बाप का प्यार उमड़ पड़ा जो देखकर बहुत ही अच्छा लगा आखिर नेहा को अपने पापा का प्यार मिल ही गया है नेहा को अपने पापा को दुबारा खोने का डर उसके मन में बैठ गया और उसके व्यवहार में बदलाव आया जिसे मानू भाई ने समझा कर दूर कर दिया है
इस कहानी को पहले भी मैं दूसरे फोरम पर पढ़ चुका हु ये कहानी मुझे बहुत ही अच्छी लगी इसलिए मैने दुबारा इसके सारे अपडेट पढ़े हैं शुरू से मुझे सबसे बेस्ट नेहा लगी और उसके बाद स्तुति जिसकी चुलबुली और नटखट शरारते हमेशा खुशियां बिखेरती है आयुष ने भी हर कदम पर समझदारी का परिचय दिया है छोटा भाई बनकर नेहा को समझाया और बड़ा भाई बनकर स्तुति को समझाया भौजी और मानू भाई का प्यार भी अटूट है ।देवर भाभी के रिश्ते को एक प्रेम के रिश्ते में बदल दिया ।देवर भाभी के रिश्ते से पनपे अथाह प्रेम को जिस बारीकी से इस कहानी में दिखाया गया है वो अकल्पनीय है,दोनो का एक दूसरे के लिए समर्पण रूठना मानना, अद्भुत है,फिर भाभी के एक गलत निर्णय के कारण दोनो में जुदाई, उस जुदाई में बहुत दुखी होना साथ में नेहा को हर पल याद करके दुखी होना दुख से उभरने के लिए शराब का सेवन करना
दिशु का मित्र के रूप में साथ मिलना जो हर हालत में आपके साथ रहता है,
एक पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ देना, फिर उनके मन मे अपने लिए इतना प्यार भर देना की समाजिक रूप से एक गलत निर्णय पर भी मां पिताजी आपके साथ डटकर कर खड़े रहे और आपके फैसले में आपका साथ देना
नेहा के प्रति जो प्यार और जिम्मेदारी आपने दिखाई वो अपने आप मे एक उदाहरण है
शादी होने के बाद तीनो बच्चो की जिम्मेदारी और अच्छी से परवरिश अपने आप में काबिले तारीफ है अपने परिवार की सुरक्षा के लिए अपनी जान पर खेल जाना और पूरे समाज और अपने पिताजी के खिलाफ खड़े हो जाना और फिर अकेले पूरे परिवार की जिम्मेदारी निभाना एक अतुल्य काम है इस कहानी में परिवार में होने वाले हर एक पहलू को अच्छी तरह से समझाया गया है इस कहानी के बारे में लिखने के लिए हमारे पास कोई शब्द नहीं थे इस कहानी को पढ़ते वक्त कई बार हम बहुत ही भावुक हुए हैं और कई बार हमारी आंखों से आंसु भी टपक पड़े थे इससे आगे हम कुछ भी नही लिख सकते है
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-14



अब तक आपने पढ़ा:


खेर अनिल की गाडी (train) late हो गई थी और उसे रात 10 बजे जाना था, मैंने cab की और अनिल को train में बिठा आया| घर आते-आते मुझे देर हो गई थी और बच्चे मेरा इंतजार करते-करते सो चुके थे| घर आ कर मैं अपने कमरे में कपड़े बदल रहा था जब संगीता कमरे में आई और बड़ी अदा से मुझे हाथ बाँधे हुए देखने लगी!

मैं: जान! ऐसे मत देखो वरना में तुम्हें अपनी बाहों में भरने को मजबूर हो जाऊँगा!

मैं मुस्कुराते हुए बोला|

संगीता: जानू, जबसे आपने मुझे 'तुम' कहना शुरू किया है न तबसे मेरे दिल में कुछ-कुछ होने लगा है! मन करता है की आपकी बाहों में सिमट जाऊँ पर.....

संगीता शर्माते हुए बोली और अपनी बात अधूरी छोड़ दी|

मैं: पर माँ-पिताजी के डर से तुम मेरे पास नहीं आती न?!

मैंने संगीता की बात पूरी करते हुए कहा और संगीता ने शर्मा कर सर हाँ में हिलाया| मैं संगीता की तरफ बढ़ा ही था की बाहर से माँ की आवाज आई और संगीता बाहर भाग गई! मैं बस मुस्कुराता हुआ संगीता को देखता रहा! हाय!!


अब आगे:


शादी में 15 दिन रह गए थे और चूँकि मुझे शादी की तैयारियों से दूर रखा गया था तो मैंने अपना सारा ध्यान काम में लगा दिया| इतना तो तय था की पिताजी मेरी शादी में को कसर नहीं छोड़ेँगे और इसके लिए पैसों की आवश्यकता होगी, तो कहीं पैसे कम न पड़ें इसके लिए मैंने छोटे-छोटे ठेके उठाने शुरू कर दिए तथा उनकी जिम्मेदारी संतोष को दे दी| मेरा काम बस गुडगाँव और नॉएडा की sites देखना था तथा वहाँ भी मैं लेबर को चैन नहीं लेने देता था! Overtime रात 10 बजे तक चलता था और site से लौटते-लौटते मुझे रात के 12 बज जाते थे| घर आ कर मैं खाना खा कर सोने चला जाता, नेहा जो मेरा इंतजार करते-करते सो जाती थी वो मेरे लेटते ही जाग जाती और मेरे से लिपट कर सो जाती| फिर अगली सुबह मैं 5 बजे ही नहा-धोकर, अपने सोते हुए बच्चों की पप्पी ले कर निकल जाता| आयुष तो दो दिन मुझे देख ही नहीं पाया था, जिस कारन वो मुझसे नाराज हो गया था!

तीसरे दिन मुझे कुछ payment उठानी थी, दोपहर का समय था तो मैंने सोचा की घर खाना खा कर ही जाता हूँ| मैं घर लौटा तो माँ-पिताजी पंडित जी से मिलने निकलने वाले थे, मुझे देख उन्होंने मुझे अपने पास बिठा लिया| पहले पिताजी ने मुझसे काम-काज की बातें की और जब संगीता उठ कर रोटी बनाने चली गई तब उन्होंने मुझसे पुछा;

पिताजी: बेटा एक बात पूछनी थी, शादी में बहु की तरफ से सिर्फ अनिल ही होगा?

मैं पिताजी का मतलब समझ गया, वो चाहते थे की अगर उनके होने वाले समधी जी यानी संगीता के पिताजी मान जाते तो अच्छा होता| पिताजी का सवाल सुन मेरे चेहरे पर चिंता की रेखाएँ आ गईं;

मैं: मैं कुछ करता हूँ पिताजी|

मैंने बड़ा संक्षेप में जवाब दिया| मेरे चेहरे पर चिंता की रेखाएं देख माँ मुझे हिम्मत बँधाते हुए बोलीं;

माँ: तू चिंता मत कर बेटा, हम सब यहाँ हैं तो सही बहु के लिए!

माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरा और पिताजी के साथ पंडित जी से मिलने चली गईं तथा जाते-जाते संगीता से कह गईं की वो उनके (माँ-पिताजी के) लिए रोटी न बनाएँ|



संगीता ने गरमा-गर्म रोटी बनाई और मुझे परोसीं, जब मैंने उसे अपने साथ बैठ कर खाने को कहा तो वो शर्मा गई और बोली;

संगीता: माँ-पिताजी ने देख लिया न तो....

संगीता मुस्कुराते हुए बोली और अपनी बात अधूरी कह रोटी बेलने चली गई| उसका यूँ मुझसे शर्माना मुझे अच्छा लगता था, मैं अपनी थाली ले कर उठा और पीछे से जा कर संगीता को अपनी बाहों में भर लिया| मेरे जिस्म का एहसास होते ही संगीता कसमसाने लगी, मन तो दोनों का था की प्यार करें लेकिन हम दोनों ही शादी तक खुद को बचा कर रखना चाहते थे| हालत बेकाबू हों उससे पहले ही मैंने संगीता को अपनी पकड़ से आजाद कर दिया और उससे बोला;

मैं: एक थाली में न सही, कम से कम साथ बैठ कर तो खा ही सकते हैं!

इतना कह मैं सब्जी ले कर बैठक में आ गया| संगीता ने फटाफट अपनी दो रोटी सेकीं और अपनी थाली परोस कर मेरे पास बैठ कर खाने लगी| उसके चेहरे पर अब भी वही शर्म, वही हया थी तथा एक गुप्-चुप मुस्कान फैली हुई थी! हमने चुपचाप खाना खाया और उसके बाद मैं अपने कमरे में आ गया तथा अपनी एक file ढूँढने लगा| घर में हम दोनों अकेले थे और एक दूसरे को ख़ामोशी से देखने में हम दोनों की प्यास बुझ जाती थी! अपनी इस प्यास को मिटाने के लिए संगीता कमरे में आ गई और मुझे file ढूँढ़ते हुए मुस्कुराते हुए देखने लगी| मेरे दिमाग में अभी भी पिताजी द्वारा कही बात गूँज रही थी इसलिए मैंने संगीता से बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: आप जरा बैठो कुछ बात करनी है!

मेरी बात सुन संगीता पलंग पर बैठ गई और उसत्सुक्ता वश मेरी ओर बड़ी गौर से देखने लगी|

मैं: जान, आपके पिताजी तो बहुत गुस्सा हैं और वो फिलहाल हमारी बात नहीं सुनेंगे, लेकिन आपकी माँ...क्या वो हमारी बात सुनेंगी? मैं उनसे एक बार बात कर के देखूँ?

मेरी बात सुन संगीता थोड़ी गंभीर हो गई क्योंकि मेरी बात ने उसके मन में अपने घर की याद ताज़ा कर दी थी|

संगीता: माँ को तो पिताजी पहले से ही बाँध कर रखते हैं, बिना इजाजत उन्हें घर से बाहर निकलने नहीं दिया जाता और उनके पास कोई फ़ोन भी नहीं जो आप उनसे बात कर सको!

संगीता सर झुकाते हुए बोली| संगीता की बात सुन कर मुझे अधिक हैरानी नहीं हुई, क्योंकि हमारे गाँव-देहात में अक्सर औरतों को पुरुषों द्वारा बनाये नियम-कानूनों में बाँध कर ही रखा जाता है|

मैं: पर उस दिन जब मैं गाँव में तुम्हारे घर आया था तब तो मुझे वो बड़ी सहज दिखीं, उनके हाव-भाव देख कर नहीं लगा की पिताजी (मेरे होने वाले ससुर जी) उन्हें किसी तरह के बँधन में बाँध कर रखते हों?!

मेरा सवाल सुन संगीता ने मेरी तरफ देखा और निराश होते हुए बोली;

संगीता: सब के सामने वो खुद को सहज ही दिखाती हैं! लेकिन मैं जानती हूँ की वो अंदर से कितना घुट-घुट के जीती हैं!

संगीता की नजरों में अपनी माँ के लिए दुःख था और नजाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा था की वो मुझसे उपेक्षा रखती थी की मैं उसकी माँ को इस कैद से निजाद दिलाऊँ;

मैं: अगर आपको बुरा न लगे तो मैं एक बार माँ (मेरी होने वाली सासु माँ) से बात करूँ? अभी अनिल गाँव में है तो उसके फोन के जरिये मैं, माँ से बात कर के उन्हें समझाऊँ और हमारी शादी में सम्मिलित होने के लिए बुला लूँ?

मैंने उत्साह से भर कर कहा, परन्तु मेरी बात सुन संगीता का चहेरा फीका पड़ने लगा था! उसे डर था की कहीं उसकी माँ भी गुस्से में आ कर मुझे ज़लील न कर दें! मैं संगीता के मन की बात समझ गया इसलिए मैंने संगीता को ही आगे कर दिया;

मैं: या आप उनसे (मेरी होने वाली सासु माँ से) बात करो, शायद वो आपकी बात मान लें!

मेरी बातों से संगीता के मन में उम्मीद जगी और वो बोली;

संगीता: ठीक है मैं, माँ से बात करती हूँ|

मैंने फटाफट अनिल को फोन मिलाया और उससे कहा की वो माँ से बात कराये| ख़ुशक़िस्मती से पिताजी (मेरे होने वाले ससुर जी) उस समय घर पर नहीं थे, अनिल ने फ़ोन अपनी माँ को दिया और इधर मैंने फ़ोन संगीता को दिया| जैसे ही माँ ने “हेल्लो” कहा संगीता भावुक हो गई और एकदम से रो पड़ी! मैं फ़ौरन संगीता की बगल मैं जा बैठा और उसे सहारा दे कर चुप कराया;

संगीता: माँ...तू हमार खातिर आई जाओ!

संगीता सिसकते हुए बोली, परन्तु मेरी होने वाली सासु माँ संगीता को ये शादी न करने के लिए प्यार से समझाने लगीं;

मेरी होने वाली सासु माँ: मुन्नी ई अनर्थ न करो! देखो ई ठीक बात नाहीं! ना करो मानु से बियाह वरना ई घर टूट जाई! तोहार पिताजी केहू का मुँह दिखाए लायक न रहियें, बिरादरी में हम सभई का हुक्का-पानी बंद हुई जाई! तू हमार नीक मुन्नी हो न, महतारी (माँ) की सुन ले और हमरे लगे लौट आओ!

मेरी होने वाली सासु माँ एक ही साँस में रोते हुए सब बोल गईं| एक माँ होने के दृष्टिकोण से मेरी होने वाली सासु माँ की बात सही थी, वो अपने परिवार को टूटने से बचाना चाहतीं थीं, लेकिन इधर संगीता पहले ही फैसला कर चुकी थी इसलिए उसने अपनी माँ को समझना शुरू कर दिया;

संगीता: माँ ऐसा नाहीं कहो! ई (मैं) हमार बहुत ख्याल रखत हैं, हमसे बहुत प्यार करत हैं! हमहुँ इनसे (मुझसे) बहुत प्यार करित है, हम ही इनसे आपन प्यार का इजहार करेँ रहा! हम ऊ आदमी (चन्दर) संगे नाहीं रह सकित, ऊ हमार घर बर्बाद करिस है, हमका मारत-पीटत रहा, हमरे संगे जबरदस्ती करत रहा! हम मर जाब लेकिन ऊ आदमी का पास कभौं न जाब! हमरी ख़ुशी इनसे (मुझसे) शादी किये मा है, नाहीं तो हम आपन जान दे देब! हम तोहरे आगे हाथ जोडित है, तुहुँ पिताजी की तरह हमका गलत न समझो!

मेरी होने वाली सासु माँ ने अपनी बेटी की बात पूरी सुनी और फिर बोलीं;

मेरी होने वाली सासु माँ: ठीक है मुन्नी! हम तोहार बात समझित है, खुश रहे का हक़ सभाएं का है! तोहार पिताजी का बस आपन इज्जत प्यारी है, फिर भले ही कउनो जिए या मरे! हम तोहका और मानु का हियाँ से खूब-खूब आशीर्वाद देइत है! जीते रहो, जुग-जुग जियो!

मैं संगीता के नजदीक बैठा था इसलिए माँ से होने वाली बात मैं साफ़ सुन पा रहा था, जैसे ही मेरी होने वाली सासु माँ ने आशीर्वाद दिया मैंने संगीता से फ़ोन ले लिया और खुद उनसे बात करने लगा;

मैं: पाँयलागि माँ!

मेरी आवाज सुनते ही मेरी होने वाली सासु माँ भावुक हो उठीं और मुझे आशीर्वाद देते हुए बोलीं;

मेरी होने वाली सासु माँ: जीते रहो मुन्ना, दूधो नहाओ पूतो फलो! खूब आगे बढ़ो, खूब कमाओ और तरक्की करो!

मेरी होने वाली सासु माँ ने दिल से दुआएँ दी|

मैं: माँ, पिताजी न सही कम से कम आप तो हमारी शादी में आ जाओ न! मैं कल आपको खुद लेने आ जाता हूँ, नहीं तो आप अनिल के साथ आ जाओ मैं ticket करवा देता हूँ! आपको किसी को कुछ बताने की जर्रूरत नहीं, चुपचाप कोई बहना कर के आ जाओ और शादी निपने के बाद आप वापस चले जाना|

मैंने बड़े ही बचकाने ढँग से अपनी होने वाली सासु माँ से बात की|

मेरी होने वाली सासु माँ: बेटा हम आ तो जाई, पर हियाँ तोहार ससुर जी का ध्यान के रखी? अगर उनका तनिको भनक लग गई की हम तोहरे हियाँ आयन है तो हमसे कभौं बात न करीहें!

मेरी होने वाली सासु माँ ने अपनी विवशता मेरे सामने प्रकट की, परन्तु मैं उस वक़्त दिमाग से नहीं दिल से सोच रहा था;

मैं: मैं हूँ न माँ, आप मेरे पास रहना! हम सब एक साथ ख़ुशी-ख़ुशी रहेंगे|

मेरी बचकानी बातें सुन मेरी होने वाली माँ हँस पड़ीं और मुझे समझाते हुए बोलीं;

मेरी होने वाली सासु माँ: मुन्ना, औरत खातिर ऊ के पति का घर ही सब कुछ होत है! हम चाह कर भी तोहरे लगे नाहीं आई सकित......

आगे मेरी होने वाली सासु माँ कुछ कहतीं उससे पहले ही पीछे से मेरे होने वाले ससुर जी की आवाज आई;

मेरे होने वाले ससुर जी: के से बतुआत है?

अपने पति की अचानक आवाज सुन कर मेरी होने वाली सासु माँ सकपका गईं और उनके मुँह से बोल नहीं फूटे| आखिर मेरे होने वाले ससुर जी ने मेरी होने वाली सासु माँ के हाथ से mobile खींच लिया और फ़ोन कान पर लगा कर बोले;

मेरे होने वाले ससुर जी: हेल्लो? के हुओ?

मैं: पाँयलगी पिताजी!

मैंने बड़ी हलीमी से कहा| मेरी आवाज सुनते ही मेरे होने वाले ससुर जी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा;

ससुर जी: तू? तोहार हिम्मत कैसे भई फ़ोन करे की?

ससुर जी गुस्से से मुझ पर बरसते हुए बोले|

मैं: जी 8 दिसंबर को हमारी शादी है, उसके लिए मैं आपको बुलाने आना चाहता था इसलिए फ़ोन आकर के पूछ रहा था की कब आऊँ?

मैंने बात बनाते हुए कहा ताकि कहीं उनको ये न लगे की मेरी होने वाली सासु माँ मुझसे छुपकर बात कर रहीं हैं|

मेरे होने वाले ससुर जी: @@@@@@@@@ *#*#@*@#*@#*@#

मेरे होने वाले ससुर जी ने आव देखा न ताव सीधा मुझ पर अपनी गालियों से हमला कर दिया!

मेरे होने वाले ससुर जी: खबरदार जो हियाँ पाँव भी धरेओ तो तोहका काट के रख देब! तू हमार भोली-भाली मुन्नी का बरगलाया हो! तू...तोहका तो नरक (नर्क) मेओ जगह न मिली! @#$*@#$**#$@*@%#

मेरे होने वाले ससुर जी ने मुझे बद्दुआ दी और पेट भर कर गालियाँ देनी शुरू कर दी| मैं चुपचाप उनकी गालियाँ सुन रहा था की तभी संगीता ने मेरे हाथ से फ़ोन खींच लिया और आगे की गालियाँ खुद सुनी| अपने पिताजी के मुँह से ऐसी शुद्ध-शुद्ध गालियाँ सुन संगीता को दुःख हो रहा था, बड़ी मुश्किल से उसके जो आँसूँ थमे थे वो फिरसे बह निकले और रोते हुए संगीता फ़ोन अपने कान से लगाए हुए मेरे सीने से लग गई! अपने पिताजी को चुप कराने के लिए बेचारी ने रोते हुए बस एक शब्द कहा;

संगीता: पिताजी....

अपनी बेटी की आवाज सुन मेरे होने वाले ससुर जी को एहसास हुआ की मेरे हिस्से की गालियाँ उन्होंने अपनी बेटी को दे दीं, इसलिए वो एक पल के लिए खामोश हो गए!

संगीता: पिताजी...आप...इन्हें गलत समझ...रहे हैं!

संगीता रोते हुए बोली| परन्तु अपने गुस्से के आगे मेरे होने वाले ससुर जी किसकी सुनते जो अपनी बेटी की सुनते;

मेरे होने वाले ससुर जी: देख लिहो?! कर दीस न तोहका आगे, हमार गाली खाये तक का कलेजा नाहीं ऊ लड़के मा?

मेरे होने वाले ससुर जी संगीता पर गरजते हुए बोले|

संगीता: नहीं पिताजी....मैंने उनसे (मुझसे) फोन ले लिया...

संगीता रोते हुए अपने पिताजी को सफाई देने लगी, परन्तु मेरे होने वाले ससुर जी के सर पर तो गुस्सा सवार था;

मेरे होने वाले ससुर जी: रहय दे, झूठ न बोल! हम सब जानित है ऊ लड़िकवा का! *#@$%@#@#@$$&*

मेरे होने वाले ससुर जी ने मेरे लिए गाली निकाली और फ़ोन काट दिया|



फ़ोन कटा और संगीता मुझसे लिपटी हुई फूट-फूट कर रोने लगी! मैंने संगीता को अपनी बाँहों में कसा और उसके सर को चूमते हुए उसे चुप कराने लगा;

मैं: Hey! Its okay जान! बस...चुप हो जाओ|

मैंने संगीता की पीठ को सहलाते हुए उसे चुप कराया|

संगीता: मेरी वजह से.....

संगीता सिसकते हुए बोली, परन्तु मैंने उसकी बात काट दी;

मैं: कुछ आपकी वजह से नहीं हुआ! वो (मेरे होने वाले ससुर जी) बड़े हैं, उन्हें हक़ है गुस्सा होने का, नाराज होने का! मैं भी बाप हूँ, कोई मेरे और मेरी बेटी के बीच आता तो मैं भी गुस्सा होता! छोड़ो इन बातों को और मुस्कुराओ| You're gonna be a mom soon, चुप हो जाओ वरना अगर पिताजी ने तुम्हें रोते हुए देख लिया न तो मेरी खटिया खड़ी कर देंगे!

मेरी खटिया खड़ी होने की बात सुन संगीता की हँसी छूट गई और हम दोनों मुस्कुरा दिए|

मेरे होने वाले ससुर जी ने मुझे जो भी गालियाँ दी मैंने उनका बिलकुल बुरा नहीं लगाया था, क्योंकि मैं एक बाप के दिल में हो रही पीड़ा को समझता था! नेहा में मेरी जान बसती थी और कल को जब उसकी शादी होती या अगर कभी उसका कोई boyfriend बनता तो उसे (नेहा को) खुद से दूर जाता देख मेरा कलेजा भी रोता!



खैर मैंने प्यार से संगीता को संभाल लिया था, अब बच्चों के school से आने का समय हो चला था तो मैं उन्हें लेने चल दिया| मुझे stand पर देख दोनों बच्चे खुश हुए, मेरी गोदी में आते ही नेहा ने अपने भाई की शिकायत कर दी;

नेहा: पापा जी, आयुष है न आप से नाराज था!

नेहा ने जब अपने भाई की शिक़ायत की तो आयुष आँखें बड़ी कर के अपनी दीदी को घूरते हुए चुप कराने लगा|

मैं: मैं जानता हूँ बेटा!

मैंने नेहा से कहा और फिर आयुष की तरफ देखते हुए बोला;

मैं: बेटा I'm sorry! काम बढ़ गया है न इसलिए मैं आपको समय नहीं दे पाता, आप पापा को थोड़ा सा समय दो और फिर देखना पापा सब ठीक कर देंगे!

मैंने आयुष को समझाते हुए कहा तो वो झट से मान गया और मेरे बाएँ गाल पर अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दे डाली! आयुष की देखा देखि नेहा ने भी मेरे दाहिने गाल पर पप्पी दी और हँसते हुए हम तीनों घर पहुँचे| माँ-पिताजी घर लौट चुके थे, मुझे बच्चों को गोद में उठाये देख पिताजी बोले;

पिताजी: Site पर नहीं जाना?

मैं: पिताजी मैं सोच रहा था की आज शाम को सब मंदिर चलते हैं|

मंदिर जाने की बात सुन माँ एकदम से बोलीं;

माँ: पहले बता देता तो हम दोनों (माँ-पिताजी) अकेले क्यों जाते?

माँ ने प्यार से डाँटते हुए कहा तो आज जिंदगी में पहलीबार पिताजी मेरे बचाव में बोले;

पिताजी: अरे तो क्या हुआ, शाम को सब चलते हैं! मंदिर जाने के लिए कौन सा नियम बना हुआ की दिन में एक ही बार जा सकते हैं?!

पिताजी को मेरी तरफदारी करते देख माँ हँस पड़ीं और पिताजी को प्यार से टौंट मारते हुए बोलीं;

माँ: अरे वाह! आज बड़ा तरफदारी कर रहे हो अपने बेटे की?

पिताजी: अरे होनहार, लायक बेटा है मेरा तो तरफदारी करूँ नहीं?!

पिताजी ने माँ के टौंट का जवाब मुस्कुराते हुए दिया|

माँ: अच्छा जी? जब गलती करे तो मेरा बेटा और अच्छे काम करे तो आपका बेटा? ये कहाँ की रीत है?

माँ की बात सुन सब हँस पड़े!



उधर गाँव में मेरे होने वाले ससुर जी ने मुझे गर्मागर्म गालियाँ दी थीं, उससे अनिल का खून उबाले मार रहा था! मेरे होने वाले ससुर जी फ़ोन काटने के बाद भी मुझे गालियाँ दिए जा रहे थे जो की अनिल के लिए सहना मुश्किल हो गया था, आज वो जिंदगी में पहलीबार अपने पिताजी को आँख दिखाते हुए बोला;

अनिल: बस पिताजी! अब हम जीजू (मेरे) के खिलाफ कुछओ न सुनब!

अनिल को मेरी हिमायत करते देख मेरे होने वाले ससुर जी का गुस्सा अपने बेटे पर निकला;

मेरे होने वाले ससुर जी: का? तो अब तुहुँ आपन जीजा खातिर हमका आँख दिखैहो?

मेरे होने वाले ससुर जी गुस्से से अनिल से बोले|

अनिल: और नाहीं तो का?! जानत हो जो तोहार बेटा आज पढ़ी पा रहा है, तोहरे लगे खड़ा है ऊ किसका एहसान है?

अनिल की बात सुन मेरे होने वाले ससुर जी आँखें फाड़े उसे देखने लगे|

अनिल: हमका hostel से निकला जात रहा, सड़क पर रहे का दिन आवा रहा.....

अनिल की आधी बात सुन ही मेरे होने वाले ससुर जी बीच में बोल पड़े;

मेरे होने वाले ससुर जी: तो तू ओ से (मुझसे) काहे भीख माँगत रहेओ? हमसे नाहीं कह सकेओ रहा?

अपने पिताजी की बात सुन अनिल उनपर गरजते हुए बोला;

अनिल: हमार education loan तो आभायें तक pass भवा नाहीं तो हमरा रहे का खातिर का home loan लिहे वाले रहेओ?! और हम केहू के आगे हाथ नाहीं फैलाईं रहा! जब दीदी गाँव रहीं तब, हमार exam fees भरे खातिर हम दीदी से मदद माँगें रहे! दीदी हमका आपन चांदी की पायल दिहिन और कहीं की ई का बेच कर आपन exam fee भर लिहो! सहर मा एक दिन जब जीजू दीदी का पाँव में पायल नाहीं देखेन तो उनसे पूछे लागे की तोहार (संगीता की) पायल कहाँ गई, तब दीदी उनका बताईं की ऊ पायल हमका दिहिन ताकि हम आपन exam fee भर सकीय| जीजू ने चुपेय से दीदी का फ़ोन से हमार नंबर लिहिन और हमका झूठ बोल के 5,000/- रुपये दिहिन, ई कही के की ई पैसा दीदी भिजवाईं है! ऊ तो हम जब दीदी का शुक्रिया कहे खातिर फ़ोन किहिन तब पता चला की ऊ पैसा जीजू आपन जेब से भरिन है!

अनिल की बात सुन कर मेरे होने वाले ससुर जी को धक्का लगा की उनका लड़का बेघर होते-होते बचा, परन्तु अनिल को अभी उन्हीं बहुत कुछ सुनाना था;

अनिल: और ई चोट देखत हो? हमार accident हुआ रहा और ई बात हम केहू का नाहीं बतावा चाहत रहें| दिवाली वाली रात हम आपन दोस्त की मोटरसाईकल से कहीं जावत रहेन जब सामने से एक गाडी हमका मार दिहिस! गाडी चलावे वाला डॉक्टर रहा और ऊ हमका अस्पताल लावा और हमका भर्ती करवाए के हमार इलाज करहिस, हमार मोबाइल में आखिर फ़ोन हम जीजू को दिवाली की मुबारकबाद दिए खातिर करें रहा, एहीसे ऊ डॉक्टर जीजू का फ़ोन कर दिहिस और जीजू हवाई जहाज पकड़ के मुंबई आये रहे! हमार अस्पताल का सारा खर्चा जीजू दिहिन, यहाँ तक की college की fees जो education loan pass न होने के कारन अटकी रही ऊ भी जीजू दिहिन! जानत हो कितना पैसे फूके ऊ हम पर? 60,000/- रुपये! ऊ (मैं) तो हमार accident की बात सबका बतावा चाहत रहेन पर हम उनका रोक दिहिन काहे से की तोहार दिल पाहिले ही कमजोर है और हमार ई हालत देख के तोहार तबियत न बिगड़े एहीसे हम उनका (मुझे) मना कर दिहिन!

अनिल के accident की बात और college की fees की बात सुन मेरे होने वाले ससुर जी हक्के-बक्के रह गए थे!

अनिल: का जर्रूरत रही उनका (मुझे) ई पैसा हम पर बर्बाद करे खातिर? का रिस्ता है हमार ऊ से? ई सब ऊ दीदी खातिर नहीं करीं काहे से की दीदी का इन पैसा के बारे में कछु नहीं पता रहा! हियाँ आये से पाहिले हम उनसे मिले खातिर गयन रहन, हम देखेन की ऊ दीदी से कितना प्यार करत हैं! हुआँ दीदी कितने सुख से है, ऊ सुख हम हियाँ कभौं नाहीं देखेन! का गलत कर दिहिन दीदी अगर आपन ख़ुशी चाह लिहिन तो? का ऊ का खुश रहे का कउनो हक़ नाहीं? सारी उम्र की तो आपन पिताजी की मर्जी से चलो नाहीं तो पति की मर्जी से, का एहि धर्म है ऊ का?

अनिल की बातों ने उसके माता-पिता के दिल को चोटिल किया था| एक तरफ मेरी होने वाली सासु माँ को अपनी बेटी की पसंद पर फक्र हो रहा था और मेरे पति प्रति प्यार उमड़ रहा था क्योंकि मैं बिना कुछ जताये उनके लड़के की मदद कर रहा था तथा दूसरी तरफ मेरे होने वाले ससुर जी निरुत्तर हो गए थे, उनके चेहरे पर कोई हाव-भाव नहीं थे! ठीक तभी अनिल ने एक अंतिम प्रहार और किया;

अनिल: और एक बात बताये देइत है, 8 दिसंबर को हम दीदी और जीजू का सादी में जाइत है!

इतना कह अनिल पाँव पटकते हुए घर से बाहर चला गया|




मेरे ससुराल में आये इस भूचाल की भनक यहाँ (मेरे घर में) किसी को नहीं थी| शाम को मंदिर जा कर मैंने भगवान को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया की उन्होंने मुझे मेरी झोली में मेरा प्यार डाल दिया था! मेरा पूरा परिवार मेरी नजरों के सामने था और मैं इसके लिए भगवान का तहे दिल से शुक्रगुजार था| मंदिर से घर आ कर मैंने अशोक, अजय, अनिल और गट्टू भैया को बारी-बारी से फ़ोन किया, परन्तु अजय भैया को छोड़ कर किसी ने मुझसे ठीक से बात नहीं की| जब मैंने उन्हें शादी का निमंत्रण दिया तो अशोक और अनिल भैया मुझ पर भड़क गए और गुस्से में आ कर फ़ोन काट दिया| गट्टू मुझसे बस साल भर बड़ा था और जब उसने फ़ालतू बोलने के लिए मुँह खोला तो मैंने फ़ोन काट दिया| एक बस अजय भैया थे जो मुझसे आराम से बात कर रहे थे| उन्होंने मुझे मेरे लिए फैसले पर कोई ज्ञान नहीं दिया, लेकिन साथ ही उन्होंने मेरा साथ भी नहीं दिया! जब मैंने उनसे शादी में आने की बात कही तो वो खामोश हो गए, आखिर में मैंने ही "कोई बात नहीं भैया" बोल कर फ़ोन रख दिया| मैं उनकी मजबूरी समझता था, वो अपने पिताजी के खिलाफ नहीं जा सकते थे और मुझे इसका कोई मलाल नहीं था|
रोमांचक अध्याय

एक तरफ जहां मां पिताजी किअच्छी सोच से लोग रूबरू हुए, वहीं आज भी गांव देहात की दकियानूसी सोच सामने आई।


वैसे ऐसा रिश्ता किसी को भी जल्दी गले नही उतरता, लेकिन जिस तरह से ये सब कम से कम किसी एक के घर वालों की मंजूरी के साथ हो रहा है वो बहुत ही अच्छा है।

मानू भाई - भौजी, अपने जिस रिश्ते से आपका प्यार पनपा है, समाज की नजर में वो हमेशा गलत ही है, लेकिन जिस तरह से आप दोनो ने घर वालों के सामने सारी बातों को रखते हुए अपने रिश्ते को बंधन में बंधने का निर्णय लिया है, वो कबीले तारीफ है।

ऐसे रिश्तों में गलती तब होती है जब लोग अपने घर, परिवार और बच्चो के परवाह न करते हुए खुदगर्ज हो कर कुछ गलत कर बैठते हैं। और ये "कुछ" कई बार कुछ भी हो जाता है।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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एक अनोखा बंधन


नमस्ते दोस्तों!


ये मेरी सबसे पहली कहानी थी जिसे मैंने Xossip पर शुरू किया था| वहाँ मुझे इस कहानी का बहुत ही जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली थी, सभी रीडर्स ने इसे बहुत सरहाया था यहाँ तक की मुझे इसका दूसरा पार्ट भी लिखने को कहा गया था, पर कुछ कारणों से मैं उसे पूरा नहीं कर पाया....

इसबार ये कहानी मैं दुबारा शुरू कर रहा हूँ, क्योंकि ये मेरी पहली कहानी थी तो उस समय इस कहानी में काफी त्रुटियाँ रह गई थीं! अब आपको इस कहानी के बारे में कुछ ख़ास बातें बता दूँ, ये कहानी मेरे दिमाग की उपज नहीं है बल्कि ये कहानी मेरे जीवन का अटूट हिस्सा है| चूँकि ये मेरी आप बीती है तो कृपया कमेंट करते समय धैर्य रखें तथा शब्दों का सही चुनाव कर के कमेंट करें| मैं इस कहानी के प्रति बहुत संवेदनशील हूँ! इसलिए कृपया अपने सवालों को सोच समझ कर पूछें!

कहानी में आगे चल कर एक ऐसा मोड़ आएगा जहाँ से मेरी असली जिंदगी बहुत ज्यादा प्रभावित हुई थी और ठीक इसी जगह से कहानी में काल्पनिक बदलाव आएंगे| वो मोड़ कौन सा था ये आपको कहानी के अंत में पता लगेगा!

इस कहानी को मैंने INCEST की केटेगरी में इसलिए डाला है क्योंकि इसमें रिश्ते बने ही ऐसे थे| बाकी ये एक पूरी तरह से रोमांटिक कहानी है! ये कहानी पूरे तरीके से समाज के नियमों के खिलाफ जाती है इसलिए अपनी कुर्सी की पेटियाँ बाँध कर बैठिएगा!

इस कहानी के दो मुख्य किरदार हैं, मानु और भौजी| अब आप सब सोचेंगे की मैंने इस कहानी में फिर से 'मानु' नाम का चयन क्यों किया तो मैं आपको बता दूँ चूँकि ये मेरी अपनी आप बीती है इसलिए मैंने इसमें अपना नाम डाला है! ये कहानी मानु के नजरिये से लिखी गई है और कहानी में एक ऐसा मोड़ भी आएगा जब ये कहानी भौजी के द्वारा लिखी जायेगी| जब वो समय आएगा तब कहानी के टेक्स्ट का रंग बदल जायेगा, आप चिंता न करें मैं आपको खुद बता दूँगा जब भौजी लिखना शुरू करेगी|

मित्रों में कोशिश करूँगा की कहानी की अपडेट रोज दूँ पर मैं आपसे कोई वादा नहीं करता! कहानी पूरी अवश्य होगी और मुझे पूरा यक़ीन है की आपको बहुत पसंद भी आएगी!
मानू भाई जी, एक दरख्वास्त है।

इस कहानी को कृपया इंसेस्ट से हटवा कर रोमांस में डलवा दीजिए।

कारण बस इतना है कि कई रीडर्स जो कुछ अच्छा पढ़ना चाहते है इंसेस्ट देख कर ही इग्नोर कर देते हैं।

बाकी जैसी आपकी इक्षा 🙏🏽
 
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अच्छा लगता है.................बहुत अच्छा लगता है................जब आपके मित्र आपकी बात सुनते हैं ................मानते हैं...............और इतने प्यारे प्यारे रिव्यु लिखते हैं......................... Rekha rani जी ............. journalist342 शिवम् बेटा........................ Sanju@ जी........................... आप तीनों के प्यारे प्यारे रिव्यु पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.........................मैं अपनी तथा लेखक जी की तरफ से आपको हाथ जोड़ कर धन्यवाद देती हूँ............................... 🙏 🙏 🙏 ......................................अब बचें हैं तो मेरे भाईसाहब श्री kamdev99008 जी....................आपने दो दिन का समय माँगा था आज चौथा दिन खत्म होने आ रहा है.........................आपको इतनी छूट सिर्फ लेखक जी के कारन दे रही हूँ........................वरना अभी तक मैंने आपसे रूठ जाना था और साथ साथ स्तुति से आपकी चुगली कर उसने भी आपसे रूठ जाना था :girlmad: .................................................. अब आते हैं मेरे सबसे गहरे और घनिष्ट मित्र Lib am उर्फ़ अमित जी तथा मेरे नटखट बेटे Akki ❸❸❸ अक्कीवा.........................ये दोनों महा लेट लतीफ हैं...........................मैंने रिव्यु का माँगा दोनों ऐसे गायब हैं जैसे गधे के सर से सींघ :girlmad: कोई बात नहीं..........................थोड़ा इंतज़ार और कर लेती हूँ......................मगर इसका बदला जर्रूर लूंगी जब मेरी कहानी शुरू होगी :girlmad:
 

kamdev99008

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अच्छा लगता है.................बहुत अच्छा लगता है................जब आपके मित्र आपकी बात सुनते हैं ................मानते हैं...............और इतने प्यारे प्यारे रिव्यु लिखते हैं......................... Rekha rani जी ............. journalist342 शिवम् बेटा........................ Sanju@ जी........................... आप तीनों के प्यारे प्यारे रिव्यु पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.........................मैं अपनी तथा लेखक जी की तरफ से आपको हाथ जोड़ कर धन्यवाद देती हूँ............................... 🙏 🙏 🙏 ......................................अब बचें हैं तो मेरे भाईसाहब श्री kamdev99008 जी....................आपने दो दिन का समय माँगा था आज चौथा दिन खत्म होने आ रहा है.........................आपको इतनी छूट सिर्फ लेखक जी के कारन दे रही हूँ........................वरना अभी तक मैंने आपसे रूठ जाना था और साथ साथ स्तुति से आपकी चुगली कर उसने भी आपसे रूठ जाना था :girlmad: .................................................. अब आते हैं मेरे सबसे गहरे और घनिष्ट मित्र Lib am उर्फ़ अमित जी तथा मेरे नटखट बेटे Akki ❸❸❸ अक्कीवा.........................ये दोनों महा लेट लतीफ हैं...........................मैंने रिव्यु का माँगा दोनों ऐसे गायब हैं जैसे गधे के सर से सींघ :girlmad: कोई बात नहीं..........................थोड़ा इंतज़ार और कर लेती हूँ......................मगर इसका बदला जर्रूर लूंगी जब मेरी कहानी शुरू होगी :girlmad:
ब्लैकमेल........ धमकियाँ......... वो भी अपने बड़े 'भाई' को............. भाई :don: ........... :D
मुझे पहले आगे के अपडेट तो पढ़ लेने दो ......... जितनी कहानी अब तक पढ़ी है उतनी तो थोड़ा नौसिखिये स्टाइल में ही सही 7-8 साल पहले ही पढ़ चुका हूँ xossip पर :iambest:
आगे के अपडेट पढ़कर फिर रिवियू दूंगा ................ और मेरे भांजे-भांजी सब समझदार हैं......... वो किसी के बहकावे मे नहीं आते इसलिए मुझे खाली-पीली डराने का नहीं :D

आज रात से रिवियू देने शुरू करूंगा...............
 

Akki ❸❸❸

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अच्छा लगता है.................बहुत अच्छा लगता है................जब आपके मित्र आपकी बात सुनते हैं ................मानते हैं...............और इतने प्यारे प्यारे रिव्यु लिखते हैं......................... Rekha rani जी ............. journalist342 शिवम् बेटा........................ Sanju@ जी........................... आप तीनों के प्यारे प्यारे रिव्यु पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.........................मैं अपनी तथा लेखक जी की तरफ से आपको हाथ जोड़ कर धन्यवाद देती हूँ............................... 🙏 🙏 🙏 ......................................अब बचें हैं तो मेरे भाईसाहब श्री kamdev99008 जी....................आपने दो दिन का समय माँगा था आज चौथा दिन खत्म होने आ रहा है.........................आपको इतनी छूट सिर्फ लेखक जी के कारन दे रही हूँ........................वरना अभी तक मैंने आपसे रूठ जाना था और साथ साथ स्तुति से आपकी चुगली कर उसने भी आपसे रूठ जाना था :girlmad: .................................................. अब आते हैं मेरे सबसे गहरे और घनिष्ट मित्र Lib am उर्फ़ अमित जी तथा मेरे नटखट बेटे Akki ❸❸❸ अक्कीवा.........................ये दोनों महा लेट लतीफ हैं...........................मैंने रिव्यु का माँगा दोनों ऐसे गायब हैं जैसे गधे के सर से सींघ :girlmad: कोई बात नहीं..........................थोड़ा इंतज़ार और कर लेती हूँ......................मगर इसका बदला जर्रूर लूंगी जब मेरी कहानी शुरू होगी :girlmad:
Diya to review mne 🤔
 
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Diya to review mne 🤔
:slap: बुद्धू लड़के......................तेरा ५०००० शब्दों का रिव्यु कहाँ है.....................उसकी बात कर रही हूँ.......................वो जल्दी से पोस्ट कर :girlmad:
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Naik जी.....................आप कहाँ गायब हैं??????????????? इतने दिनों से आपका कोई रिव्यु नहीं आया................................यहाँ न तो कहानी भी खत्म हो गई मगर आपने कोई रिव्यु नहीं दिया............................. :verysad:
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sunoanuj जी..........................आप तो हमारे लेखक जी के चहेते हैं............................कहानी खत्म हो गई मगर आपका रिव्यु नहीं आया?????????????????
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बाकी रीडर्स भी अपने रेविएवस जल्दी पोस्ट करें :girlmad:
 

Rockstar_Rocky

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nice update sir

आपके प्यारभरे प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:

इस कहानी के अंतिम भाग को पढ़ना न भूलें; https://xforum.live/threads/एक-अनोखा-बंधन-पुन-प्रारंभ.9494/page-1135#post-5732573
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
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Superb awesome fantastic mind blowing update bhai

आपके प्यारभरे प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:

इस कहानी के अंतिम भाग को पढ़ना न भूलें; https://xforum.live/threads/एक-अनोखा-बंधन-पुन-प्रारंभ.9494/page-1135#post-5732573
 
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