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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

amita

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इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की
भाग -7 (2)


अब तक आपने पढ़ा:


करुणा तो पूरी रात बड़ी चैन से सोई इधर मैं रात भर जागते हुए ढाबों की रोशनियाँ देखता रहा और मन में उठ रहे सवालों का जवाब सोचता रहा| बस ठीक 6 बजे बीकानेर हाउस पहुँची और फिर टैक्सी कर के पहले मैंने करुणा को उसके घर छोड़ा, फिर अंत में मैं अपने घर पहुँचा| दरवाजा माँ ने खोला और उन्हें देखते ही मैं उनके गले लग गया, माँ ने मेरे माथे को चूमा और फिर बैग रख कर मैं नहाने चला गया| नाहा-धो कर जब मैं आया तो माँ ने चाय बना दी थी, पिताजी भी डाइनिंग टेबल पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे| उन्होंने मुझसे जयपुर के बारे में पुछा तो मुझे मजबूरन सुबह-सुबह ऑडिट का झूठ बोलना पड़ा| मैंने ऑडिट की बात को ज्यादा नहीं खींचा और पिताजी से काम के बारे में पूछने लगा, पिताजी ने बताया की उन्होंने एक वकील साहब के जरिये एक नया प्रोजेक्ट उठाया है पर ये प्रोजेक्ट हमें जुलाई-अगस्त में मिलेगा तथा ये प्रोजेक्ट बहुत बड़ा है! मैंने उसी प्रोजेक्ट की जानकारी लेते हुए पिताजी का ध्यान भटकाए रखा ताकि वो फिर से मुझसे ऑडिट के बारे में न मुचने लगे और मुझे फिरसे उनसे झूठ न बोलना पड़े|


अब आगे:


नाश्ता कर के मैं पिताजी के साथ साइट पर पहुँचा और काम का जायजा लिया, माल कम था तो मैं सीधा माल लेने चल दिया| शाम होते ही मैंने दिषु के ऑफिस जाने का बहाना मारा और करुणा से मिलने आ गया| हम दोनों दिल्ली हाट पहुँचे और बाहर बैठ कर बातें करने लगे;

करुणा: मिट्टू हॉस्पिटल में सब कल का बारे में पूछ रा था, मैंने उनको आपके बारे में बताया की मेरा best friend मेरा बहुत help किया|

करुणा की ख़ुशी उसके चेहरे से झलक रही थी|

मैं: आपने अभी resign तो नहीं किया न?

मेरा सवाल सुन कर करुणा कुछ सोच में पड़ गई और सर न में हिला कर जवाब दिया|

मैं: अभी resign मत करना, एक बार joining मिल जाए तब resign कर देना|

करुणा अब भी नहीं समझ पाई थी की मैं उसे resign करने से क्यों मना कर रहा हूँ, मैंने उसे समझाते हुए कहा;

मैं: भगवान न करे पर अगर कोई problem हुई तो कम से कम आपके पास एक जॉब तो हो!

अब जा कर करुणा को मेरी बात समझ में आई और उसे मेरी इस चतुराई पर गर्व होने लगा|



करुणा: मेरा दीदी पुछा ता की हम दोनों रात में कहाँ रुका.....

इतना बोल कर करुणा रुक गई, उसका यूँ बात को अधूरे में छोड़ देना मेरे दिल को बेचैन करने लगा| मैंने आँखें बड़ी करके उसे अपनी बात पूरी करने को कहा;

करुणा: मैंने उनको झूठ बोल दिया की हम दो रूम में रुका ता!

इतना कह करुणा का चेहरा उतर गया और उसने अपना सर शर्म से झुका लिया| अपनी बहन से झूठ बोलने के करुणा को ग्लानि होने लगी थी, इधर मैं हैरान करुणा को देख रहा था| मेरी हैरानी का कारन था की मैं आज पहलीबार एक इंसान को झूठ बोलने पर ग्लानि महसूस करते हुए देख रहा था|

मैं: Dear मैं समझ सकता हूँ की आपको झूठ बोल कर बुरा लग रहा है.....

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही करुणा ने मेरी बात काट दी;

करुणा: मैंने आज life में first time झूठ बोलते! हमारा religion में हम झूठ बोल रे तो वो झूठ father का आगे confess करना होते, अगर नहीं कर रहे तो ये sin होते!

करुणा की बात सुन मैं मन ही मन बोला की दुनिया की किसी भी धर्म में झूठ बोलना नहीं सिखाते, पर ये तो मनुष्य की मानसिक प्रवित्ति होती है जो वो अपने स्वार्थ के लिए झूठ का सहारा लेता है|

मैं: Dear कम से कम हमने कोई पाप तो नहीं किया न? हमने बस एक रूम share किया था और वो भी सिर्फ पैसे ज्यादा खर्च न हो इसलिए!

मेरी बात सुन कर करुणा को थोड़ा इत्मीनान हुआ|

मैं: Atleast हम एक अच्छे होटल में रुके थे, आपको पता है ऑटो वाला हमें पहले जिस होटल में ले गया था वहाँ होटल के मालिक ने पुछा था की क्या हम दोनों शादी-शुदा हैं?!

शादी की बात सुन कर करुणा के मुख पर एक नटखट मुस्कान आ गई, करुणा ने अधीरता दिखाते हुए पुछा;

करुणा: आपने क्या बोला?

उसके चेहरे पर आई नटखट मुस्कान देख मैं हँस पड़ा और अपनी बात पूरी की;

मैं: मैंने गर्दन न में हिला कर मना किया, मैं उसे बोलने वाला हुआ था की हमें दो अलग-अलग कमरे चाहिए पर जिस माहौल में वो होटल था उसे देख कर मुझे डर लग रहा था|

करुणा को मेरे द्वारा हमारे शादी-शुदा नहीं कहने पर हँसी आई पर जब मैंने उसे अपने डर के बारे में बताया तो उसके चेहरे पर स्वालियाँ निशान नजर आये|

मैं: वो पूरा area मुझे red light area जैसा दिख रहा था, मुझे डर लग रहा था की कहीं हम रात को उस होटल में रुके और police की raid पड़ गई तो हम दोनों बहुत बुरे फँसते! एक डर और भी था की अगर कोई आपके कमरे में घुस आये तो मुझे तो कुछ पता भी नहीं चलता!

मैंने अपनी घबराहट जाहिर की, जिसे सुन करुणा के पसीने छूट गए!

करुणा: इसीलिए मैं आपको बोला ता की आप और मैं एक रूम में रुकते! आप साथ है तो मेरे को safe feel होते!

करुणा ने मुस्कुरा कर गर्व से मेरी तारीफ की| उसकी बातों से साफ़ जाहिर था की वो मुझ पर आँख मूँद कर विश्वास करती है, वहीं मैं उस पर अभी इतना विश्वास नहीं करता था|

करुणा: मिट्टू......मुझे आपको सॉरी बोलना ता!

इतना कहते हुए उसकी आँखें फिर ग्लानि से झुक गईं| उसके चेहरे से ख़ुशी से गायब हुई तो मेरी भी उत्सुकता बढ़ गई की आखिर उसे किस बात की माफ़ि माँगनी है?

मैं: क्या हुआ dear?

मैंने प्यार से पुछा तो करुणा ने नजरें झुकाये हुए ही जवाब दिया;

करुणा: मैं आपको उस दिन डाँटा न? मैं आपको गलत समझा, जबकि आपने मेरा dignity save करने के लिए कितना कुछ किया! मेरा help करने को आप कितना परेशान हुआ!

मैं: अरे यार, कोई बात नहीं! Friendship में ये सब चलता रहता है, गुस्सा तो मुझे भी बहुत आया आप पर! आप इतना बड़ा dumb है की सर्टिफिकेट ओरिजिनल ले कर गया पर उसका फोटोकॉपी ले कर नहीं आया?!

मैंने करुणा को सरकारी काम करने के तरीके से अवगत कराया और उसे समझाया की वो हमेशा documents की 2 फोटोकॉपी करवा कर रखे ताकि कभी भी जर्रूरत हो तो परेशानी न हो|

मैं: आपको पता है मैं जब भी किसी काम से बैंक जाता हूँ या फिर किसी सरकारी ऑफिस जाता हूँ तो पूरी तैयारी कर के जाता हूँ| मेरे पास काम से जुड़ा हर सामान होता है, मेरी IDs, उनकी फोटोकॉपी, चेकबुक, all pin, stapler, कागज़ बाँधने के लिए टैग, सल्लो टेप, fevistick, काला और नीला पेन, एप्लीकेशन लिखने के लिए सफ़ेद कागज़, मेरी passport size फोटो और एक पॉलिथीन! आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ की मेरा काम इन चीजों की वजह से रुका हो| इसलिए आगे से ये सब चीजें साथ ले कर जाना, वरना इस बार तो मैंने कुछ नहीं कहा अगलीबार बहुत डाटूँगा!

मैंने करुणा को थोड़ा डराते हुए कहा| करुणा ने मेरी सारी बातें किसी भोलेभाले बच्चे की तरह सुनी पर उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ा!



जब तक लाल सिंह जी करुणा का appointment letter नहीं भेजते तब तक हमें बस इंतजार करना था| इधर साइट पर काम तेजी से शुरू हो गया था, ऑडिट न मिलने के कारन मैं अब अपना ज्यादातर समय साइट पर रहता था| एक प्रोजेक्ट पूरा हो गया था और दूसरे वाले के लिए माल लेना था, पिताजी ने सेठ जी को एक चेक दिया था जिसपर वो साइन करना भूल गए थे| चेक वापस आया तो सेठ जी ने माल रोक दिया, जब माल साइट पर नहीं पहुँचा तो पिताजी मुझ पर भड़क गए और मुझे 'तफ़तीष' करने के लिए सेठ जी के पास भेजा| मुझे देखते ही सेठ जी ने पहले तो मेरी बड़ी आवभगत की, फिर मैंने जब मुद्दे की बात की तो वो काइयाँ वाली हँसी हँसने लगे| उन्होंने अपनी किताब से पिताजी का चेक निकाल कर मुझे दिखाते हुए बोले;

सेठ जी: मुन्ना 'पइसवा' नहीं आया तो मैं माल कैसे देता?

उनकी वो गन्दी हँसी और माल न देने से मुझे बड़ा गुस्सा आया;

मैं: पिताजी साइन करना भूल गए होंगे, पर इस बात पर आपने माल रोक दिया? आपको पता है आधा दिन होने को आया है और लेबर खाली बैठी है! इतने सालों से पिताजी आपसे माल ले रहे हैं और आपने एक साइन के चलते माल रोक दिया?!

मेरा गुस्सा देख सेठ जी के चेहरे से वो गन्दी हँसी गायब हो गई और वो बोले;

सेठ जी: अरे मुन्ना तुम्हारे इस चेक के चक्कर में मेरा 150/- रुपया कटा अलग फिर मैंने आगे पेमंट करनी थी वो रुकी सो अलग!

मैं: आप फ़ोन कर के कह सकते थे न?

ये कहते हुए मैंने वो चेक जेब में रखा और जेब से 150/- रुपये निकाल कर उनके टेबल पर मारे|

मैं: बाकी के पैसे अभी ला रहा हूँ|

इतना कह कर मैं गुस्से में वहाँ से निकला और नजदीक के बैंक से पैसे निकाल कर लौटा| मैंने एक-एक कर 500 की 2 गड्डी उनके टेबल पर पटकी, पैसे देखते ही उनकी आँखें चमकने लगी, उन्होंने सेकंड नहीं लगाया और अपने लड़के को आवाज मारी;

सेठ जी: अरे साहब का माल पहुँचा कर आ जल्दी से!

मैं गुस्से में पहले ही भुनभुनाया हुआ इसलिए मैंने उनके सामने एकदम से हाथ जोड़ दिए;

मैं: कोई जर्रूरत नहीं है! पुरानी पेमंट के लिए आपने माल रोक कर सारे नाते-रिश्ते खत्म कर दिए! आजतक का सारा हिसाब हो चूका है, अब मैं नगद दे कर माल कहीं और से ले लूँगा!

इतना कह कर मैं चल दिया, सेठ जी ने पीछे से मुझे बड़ा रोका पर मैंने उनकी एक न सुनी| दो घंटे बाद नई जगह से मैं सारा माल ले कर साइट पर पहुँचा तो पिताजी वहाँ मेरी राह देख रहे थे, उन्होंने लेबर से कह कर माल उतरवाया और मुझे पर बड़ी जोर से बरसे;

पिताजी: माल लाने से पहले मुझसे पुछा तूने? सेठ जी को नाराज कर के कहाँ से लाया ये सामान? ये मेरा बिज़नेस है, जैसा मैं चाहूँगा वैसे चलेगा! यहाँ उम्र गुजर गई व्यापार में रिश्ते बनाने में और ये लाड़साहब सब पर पानी फेरने में लगे हुए हैं!

मैंने सर झुका कर पिताजी द्वारा किया गया सारा अपमान सुना और बिना उन्हें कुछ कहे घर लौट आया| जब मैं गलत होता हूँ तो भले ही कोई मुझे 4 गालियाँ दे दे पर मेरे गलत न होने पर मैं किसी की नहीं सुनता था| यही कारन था की मेरा गुस्सा चरम पर पहुँच गया था, घर आ कर मैंने डाइनिंग टेबल पर माल का बिल जोर से पटका और अपने कमरे में घुस कर धड़ाम से दरवाजा बंद किया| माँ जान गईं थीं की मेरा गुस्सा आज फिर कोई बखेड़ा खड़ा करेगा, इसलिए वो मुझे समझाने कमरे में आईं|

माँ: क्या हुआ बेटा?

माँ ने पलंग पर बैठते हुए कहा| मेरा गुस्सा उस वक़्त सातवें आसमान पर था और मैं बिना चिल्लाये कुछ नहीं कह सकता था, मैं माँ पर अपना गुस्सा न निकालूँ इसलिए मैंने जेब से पिताजी का बिना साइन किया हुआ चेक निकाला और माँ की ओर बढ़ाते हुए बोला;

मैं: ये बिना साइन किया हुआ चेक और डाइनिंग टेबल पर रखा बिल पिताजी को दे देना|

मैंने बिना माँ से नजरें मिलाये हुए कहा और बाहर जाने लगा, माँ ने पीछे से मुझे आवाज दे कर रोकना चाहा तो मैंने कहा;

मैं: कुछ जर्रूरी काम से जा रहा हूँ|

बस इतना कह मैं सरसराता हुआ घर से निकल गया| मुझे अब अपना गुस्सा निकालना था और उसका सबसे अच्छा तरीका था दारु पीना! मैंने दिषु को फ़ोन मिलाया तो पता चला की वो दिल्ली से बाहर है और आज रात घर पहुँचेगा, मैंने उसे बिना कुछ कहे फ़ोन रख दिया| मैंने करुणा को फ़ोन किया तो उसने हमेशा की तरह हँसते हुए फ़ोन उठाया, मेरे हेल्लो बोलते ही वो जान गई की मेरा मूड खराब है| जब हम शाम को मिले तो मैंने उसे साफ़ कहा की मुझे पीना है, करुणा ने पलट के कोई कारण नहीं पुछा| हम दोनों एक छोटे से पब में पहुँचे जहाँ Happy Hours चल रहे थे, यहाँ पर एक ड्रिंक पर एक ड्रिंक फ्री थी| मैं व्हिस्की पीना चाहता था पर करुणा ने मना कर दिया, हारकर मैंने बियर मँगाई| अब वहाँ बियर थी किंगफ़िशर स्ट्रांग (लाल वाली) जो मुझे पसंद नहीं थी, पर एक पर एक फ्री के लालच में मैंने ले ली| करुणा ने बियर पीने से मना किया तो मैंने उसके लिए सूप मंगा दिया और अपने लिए सींगदाने वाली मूँगफली मँगाई जो की कम्प्लीमेंटरी थी! पहली बोतल आधी करने के बाद मैंने करुणा को सारी बात बताई, पता नहीं उसने मेरी बात कितनी सुनी या उसे क्या समझ में आई, पर वो मेरी तरफदारी करते हुए बोली;

करुणा: छोड़ दो यार! पापा आपको understand नहीं करते, उनको atleast आपका बात सुनना चाहिए ता!

मैं: Exactly! बिना मेरे कोई गलती किये उन्होंने मुझे लेबर के सामने झाड़ दिया!

मैंने गुस्से से कहा|

करुणा: हम्म्म!

मेरा गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था और मैंने 10 मिनट में बोतल खत्म कर दी| मुझे पीता हुआ देख करुणा को जोश आया और अगली बोतल आते ही उसने उठा ली| मैं यहाँ सिर्फ दो बोतल पीने आया था पर जब करुणा ने वो बोतल उठा ली तो मैंने एक और बोतल मँगवाई| बियर पीते हुए करुणा से बात करते हुए अपना गुस्सा निकालना अच्छा लग रहा था और इस तरह बोतल पर बोतल आती गई| मैंने ध्यान ही नहीं दिया की मैंने अकेले ने 5 बोतल टिका ली! जिंदगी में पहलीबार मैंने आज पीते समय अपने कोटे पर ध्यान नहीं दिया था, नतीजन बियर चढ़ गई सर में और मेरी हालत हो गई खराब| आँखों से धुँधला-धुँधला दिखाई दे रहा था, ठीक से खड़ा भी नहीं जा रहा था! 5 बोतल टिकाने के बाद अब बारी थी बाथरूम जाने की, जब मैं उठ कर खड़ा हुआ तो मेरा सर भन्नाने लगा, मुझसे पैर भी ठीक से नहीं रखे जा रहा था| मुझे ऐसे देख कर करुणा की हालत पतली हो गई;

करुणा: मिट्टू....

उसने घबराते हुए कहा|

मैं: हाँ...I…I’m….fiiiiiiiiiinee!

मैंने शब्दों को खींचते हुए बोला| मैं सहारा लेते हुए बाथरूम पहुँचा, बाथरूम करते समय मुझे मेरी नशे में धुत्त होने का एहसास हुआ| इस हालत में घर जा कर मैं माँ का सामना करने से डर रहा था, पी कर मैं ऑफिस से कई बार घर पहुँचा था पर हरबार मैं अपनी लिमिट में पीता था जिससे माँ को कभी मेरे पीने के बारे में पता नहीं चला, लेकिन जो हालत आज हुई थी उससे ये तो तय था की आज माँ को मेरे पीने के बारे में जर्रूर पता चल जायेगा| मैं मन ही मन मैं खुद को कोस रहा था की क्यों मैंने अपने गुस्से के चलते इतनी पी, पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत! मैंने सोचा की मुझे पिताजी से पहले घर पहुँचना होगा, इसलिए मैंने घडी देखि तो घडी धुँधली दिख रही थी! मैंने आँखों पर बहुत जोर मारा, आँखें कई बार मीची ताकि साफ़-साफ़ नजर आये पर कोई फायदा नहीं हुआ!

मेरा बाथरूम हो चूका था तो ज़िप बंद कर के मैं वाशबेसिन के सामने खड़ा हुआ और 4-5 बार आँखों पर पानी मारा, फिर में घडी देखि तो 8 बजे थे! मैंने फटाफट पानी से मुँह धोया इस उम्मीद में की शायद मुँह धोने से नशा उतर जायेगा, पर ऐसा नहीं हुआ| मैंने वाशबेसिन का नल खोला और नल के नीचे अपना सर रख दिया, ठंडा-ठंडा पानी सर पर पड़ा तो आँखें एकदम से खुल गईं! मैंने जब शीशे में खुद को देखा तो पाया की मेरी आँखें सुर्ख लाल हो गई हैं, सर के सारे बाल पानी से गीले हो कर चिपक गए थे तथा उनसे बह रहा पानी मेरी शर्ट और कालर भीगा रहा था| मेरी दाढ़ी बड़ी थी तो वो भी गीली हो कर पानी से तर हो गई थी और उनसे पानी बहता हुआ कमीज पर सामने की ओर गिर रहा था|



मैंने जेब से पानी पोछने के लिए रुमाल निकाला तो वो पूरा गीला हो गया, मैं सहारा लेते हुए बाहर आया और वेटर से बिल माँगा| जब मैं वापस बैठने लगा तो करुणा ने मुझे बैठने से मना कर दिया;

करुणा: इधर मत बैठ...मैं vomitting किया!

Vomitting सुन कर मैंने सड़ा हुआ सा मुँह बनाया और करुणा से बोला;

मैं: झिलती....नहीं तो.... क्यों पीते... हो!

मेरी कही बात करुणा के पल्ले नहीं पड़ी, मैं उसके सामने रखे काउच पर पसर कर बैठ गया| करुणा उठी और मेरे बगल में बैठ गई| वेटर बिल ले कर आया, अब उसमें लिखा था बहुत छोटा और मेरी तो आँखें भी नहीं खुल रहीं थी| मुझे लग रहा था की मेरा होश धीरे-धीरे खो रहा है तो मैंने वेटर से कहा;

मैं: कार्ड....मशीन....

इतना सुन कर वो मशीन लेने गया| इधर करुणा मेरे कंधे पर सर रख कर लेट गई, मुझ में इतनी ताक़त नहीं थी की मैं उसे सोने के बाद उठाऊँ इसलिए मैंने उसे चेताया;

मैं: Dear ..... I’m….drunk….. अगर आप सो गए तो मैं आपको उठाने की हालत में नहीं हूँ, मैं भी यहीं सो जाऊँगा|

ये कहते हुए मैंने आँख बंद की तो मेरा सर तेजी से घूमने लगा, ये एहसास होते ही मेरे अंदर का बच्चा बाहर आया और मैं अचानक से हँसने लगा|

वहीं करुणा जो मेरी बात सुन कर परेशान हो गई थी वो मेरी अचानक हँसी सुन कर चौंक गई और भोयें सिकोड़ कर मुझे देखने लगी|

करुणा: हँस क्यों रे?

मैं: Dearrrrr .... आँख बंद कर के देखो..... सर घूम रे......मजा आ रे.....!!!

मैं हँसते हुए बोला| ये सुन कर करुणा भोयें सिकोड़ कर मुझे देखने लगी और बोली;

करुणा: पागल हो गए क्या?

पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा और मैं किसी मासूम बच्चे की तरह हँसने लगा| इतने में वेटर आया और उसने मुझसे कार्ड माँगा, मैंने उसे कार्ड तो दे दिया पर मैं पिन नंबर भूल गया! मैंने दिमाग पर थोड़ा जोर डाला तो कुछ-कुछ याद आया, अब वो नंबर keypad पर dial करना था जो मुझसे हो नहीं रहा था! मैं 6 और 9 में confuse हो गया और दो बार गलत नंबर डाला, तीसरी और आखरी बार में सही नंबर डला और तब जा कर बिल pay हुआ| भले ही मैं नशे में था पर इतना तो होश था की मुझे अपना कार्ड संभाल कर रखना है| कार्ड रख कर मुझे अब कैब बुलानी थी ताकि करुणा को घर छोड़कर जल्दी से घर पहुँचूँ| मैंने फ़ोन निकाला पर उसमें से इतनी तेज रौशनी आ रही थी की मेरी आँखें चौंधिया गई;

मैं: बहनचोद!

मेरे मुँह से brightness ज्यादा होने पर गाली निकली जो शायद करुणा ने नहीं सुनी थी| मैंने फ़ोन का menu खोला तो उसमें लिखा कोई भी text पढ़ा नहीं जा रहा था, सब कुछ धुँधला-धुँधला दिख रहा था| मुझे फ़ोन से जद्दोजहद करता देख करुणा बोली;

करुणा: आप अपना फ्रेंड को क्यों नहीं बुलाता?!

उसका दिया हुआ आईडिया अच्छा था, इसलिए मैंने फ़ौरन दिषु को फ़ोन मिलाया और बोला;

मैं: भाई मुझे....चढ़ गई है, तू.....आ के.....मुझे ले कर...जा!

मेरी आवाज सुनते ही दिषु समझ गया की मुझे कितनी चढ़ी हुई है|

दिषु: अबे भोसड़ी के, चूतिया हो गया है क्या? बोला न मैं दिल्ली में नहीं हूँ? तूने पी ही क्यों इतनी?!

अब मुझे याद आया की वो तो यहाँ है ही नहीं, मैंने आगे कुछ नहीं बोला और फ़ोन काट दिया| फ़ोन काटा तो करुणा उम्मीद करने लगी की दिषु हमें लेने आ रहा है, मैंने उसकी उम्मीद तोड़ते हुए कहा;

मैं: वो....दिल्ली...में नहीं....!

अब मैंने फिर से फ़ोन को घूरना शुरू किया ताकि मैं उसमें ola app ढूँढ सकूँ, आँखों से धुँधला दिखाई दे रहा था पर फिर भी मैंने किसी तरह app खोला, app खुला तो सही परन्तु खुलते ही वो अपडेट माँगने लगा!

मैं: मादरचोद! तुझे भी अभी अपडेट चाहिए!

मैं गुस्से से फ़ोन पर चिल्लाया, करुणा ने इस बार मेरी गाली सुन ली और मेरे दाईं बाजू पर घूसा मारा| ‘आऊऊऊ!’ मैं दर्द होने का नाटक करते हुए बच्चे की तरह ड्रामा करने लगा|



खैर app अपडेट हुआ और मैंने फ़ोन को घूर-घूर कर बड़ी मुश्किल से उसमें करुणा के घर की लोकेशन डाली, जैसे ही टैक्सी सर्च की तो 10 सेकंड में कैब मिल गई| मैंने कैब वाले को फ़ोन कर के लोकेशन पूछी, मेरी आवाज सुन कर वो जान गया था की मैं नशे में धुत्त हूँ! हम दोनों उठ कर खड़े हुए तो पता चला की मेरी हालत बहुत खराब है, मुझसे सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था| वहीं करुणा का हाल तो और भी बदत्तर था, उससे एक बोतल बियर भी नहीं झिली जिस कारन उसका सर घूमने लगा था| हम दोनों जैसे-तैसे दरवाजे तक आये तो सामने देखा की सीढ़ियाँ हैं, सीढ़ियाँ देख कर मुझे याद आया की हम तो अभी दूसरी मंजिल पर हैं और यहाँ तो लिफ्ट भी नहीं! मुझे पहले ही धुँधला दिख रहा था उसके ऊपर से सीढ़ियाँ उतरने जैसा खतरनाक काम?! मैंने तुरंत भोले भाले बच्चे जैसी सूरत बनाई और करुणा से बोला;

मैं: Dearrrrr .... मैं सीढ़ी ...नहीं उतरूँगा..... आप मुझे गोदी ले लो न?!

मेरी ये बचकानी बात सुन कर करुणा खिखिलकर हँसने लगी और हँसते हुए बोली;

करुणा: मैं आपको उठा रे तो मेरे को कौन उठाते?

अब ये सुन कर मैं भी हँस पड़ा|

मैं: मैं...नीचे कैसे उतरूँ....?

मैंने करुणा से सवाल पुछा तो वो इसे मेरा बचपना समझ कर हँसे जा रही थी| मैंने कुछ सेकंड सोचा और फिर बोला;

मैं: मैं बैठ-बैठ के उतरूँ?!

ये सुन कर करुणा हँसते हुए बोली;

करुणा: नीचे पहुँचते-पहुँचते साल लग जाते!

अब ये सुन कर मैं हँस पड़ा, हम दोनों बिना किसी चिंता के सीढ़ियों पर खड़े बकचोदी कर रहे थे और हँसे जा रहे थे| इतने में कैब वाले का फ़ोन आया और उसने पुछा की हम कहाँ हैं, मैंने उसे कहा की हम 5 मिनट में आ रहे हैं| अब नीचे उतरना मजबूरी था, करुणा 4 सीढ़ी पहले उतरी और पलट कर मुझे देखने लगी| मैं अपनी आँखें जितनी बड़ी कर सकता था उतनी बड़ी कर के सीढ़ियों को घूर रहा था ताकि मैं ये तो देख सकूँ की पैर कहाँ रखना है?! दिवार का सहारा लेते हुए मैं एक सीढ़ी उतरा, उस एक सीढ़ी उतरने से मुझे आत्मविश्वास हो गया की मैं सीढ़ी उतरने जैसा मुश्किल काम कर सकता हूँ! करुणा को कम नशा हुआ था इसलिए वो ठीक-ठाक सीढ़ी उतर रही थी, मेरी हालत ज्यादा खस्ता थी तो मैं थोड़ा सम्भल-सम्भल कर उतर रहा था| अभी हम एक मंजिल ही नीचे आये थे की मैं इस तरह सम्भल-सम्भल कर नीचे उतरने से बोर हो गया और करुणा से बोला;

मैं: ये सीढ़ी खत्म नहीं हो रे?

ये सुन कर वो हँस पड़ी और मुझे सताने के लिए बोली;

करुणा: अभी तो एक फ्लोर और बाकी है!

अब ये सुन कर मैं छोटे बच्चे की तरह झुंझला गया;

मैं: मजाक मत कर मेरे साथ!

करुणा: नीचे देखो...अभी और सीढ़ियाँ है...!

मैंने रेलिंग पकड़ कर नीचे झाँका, अभी कम से कम 30 सीढ़ियाँ और थीं, उन सीढ़ियों को देख मैंने अपना सर पीट लिया और बोला;

मैं: Next time ध्यान रखना की हम ग्राउंड फ्लोर वाले pub में जाएँ!

ये सुनकर करुणा हँसने लगी| तभी कैब वाले का दुबारा फ़ोन आ गया;

मैं: आ रहा हूँ भाई... राइड स्टार्ट कर दो...!

मैंने चिढ़ते हुए कहा|



5 मिनट की 'मेहनत-मशक्कत' के बाद मैं आखिर नीचे उतर ही आया और नीचे उतर आने की इतनी ख़ुशी की मैंने दोनों हाथ हवा में लहरा दिए, एक बार फिर मेरा बचपना देख करुणा की हँसी छूट गई! मैंने कैब वाले को फ़ोन किया और उससे पुछा की वो कहाँ है तो उसने बोला;

कैब वाला: सर मैंने हाथ ऊपर उठाया हुआ है, आपको मेरा हाथ दिख रहा है?

उसकी बात सुन मैं एकदम से बोला;

मैं: यहाँ बहनचोद सीढ़ियाँ ठीक से नहीं दिख रहीं थीं, आपका हाथ क्या ख़ाक दिखेगा?

ये सुन कैब वाला हँसने लगा| इधर करुणा ने कैब वाले को देख लिया था, पहले उसने दो chewing gum खरीदीं और मेरी बाजू पकड़ कर मुझे सहारा देते हुए कैब तक लाई| हम दोनों बैठे और कैब चल पड़ी, मैं बाईं तरफ बैठा था तथा मेरा बचपना अब भी चालु था| मैं खिड़की से बाहर देखते हुए किसी छोटे बच्चे की तरह खुश हो रहा था, जब कैब U turn लेती तो मैं फ़ौरन आँख बंद कर लेता, आँख बंद कर के कैब के U टर्न लेने में बड़ा मजा आ रहा था और मैं हँसे जा रहा था| मैंने करुणा को भी ऐसा करने को कहा तो वो हँसने लगी, उधर कैब वाला भी मेरा ये बचपना अपने शीशे में से देख कर मुस्कुरा रहा था|

करुणा: मिट्टू...आप न ... बिलकुल cute सा बच्चा है!

ये कहते हुए करुणा ने मेरे गाल पकडे| उसके मुझे cute कहने से मैं किसी बच्चे की तरह शर्माने लगा|



इतने में दिषु का फ़ोन आ गया, उसे चिंता हो रही थी की कहीं मैं पी कर लुढ़क तो नहीं गया?!

मैं: हेल्लो....

मैंने शब्द को खींचते हुए बोला|

दिषु: कहाँ है तू?

मैं: मैं....मैं....कैब में....!

दिषु: शुक्र है! कहाँ पहुँचा?

मैं: मैं.... ये...ये... आश्रम ... शायद!

आश्रम मेरे घर से बिलकुल उलटी तरफ था तो दिषु को चिंता हुई की मैं आखिर जा कहाँ रहा हूँ?

दिषु: अबे तू आश्रम क्या कर रहा है? रास्ता भटक तो नहीं गया?

उसने चिल्लाते हुए पुछा| मैं जवाब देता उसके पहले ही करुणा ने फ़ोन खींच लिया और उससे बात करने लगी;

करुणा: हेल्लो?

एक लड़की की आवाज सुन दिषु सकपका गया, फिर उसे लगा की ये जर्रूर करुणा ही होगी| दोनों वापस बातें करने लगे और मैं आँखें मूंदें कैब के गोल-गोल घूमने का मजा लेने लगा| बात कर के करुणा ने फ़ोन मुझे दिया और बोली;

करुणा: मिट्टू....मिट्टू.... आपका दोस्त कह रे की घर जा कर उसे कॉल करना!

मैंने हाँ में सर हिलाया और फ़ोन ले कर अपनी जेब में रख लिया| करुणा का घर नजदीक आया तो उसने कैब वाले को रास्ता बताना शुरू किया, कैब ठीक उसके घर के सामने रुकी और मैंने कैब तब तक रोके रखी जब तक करुणा अंदर नहीं चली गई| करुणा के अंदर जाने के बाद मैंने कैब वाले को मेरे घर की ओर चलने को कहा, इतने में करुणा का फ़ोन आ गया और वो बोली की मैं घर पहुँच कर उसे फ़ोन कर दूँ|



बियर का नशा कम होने लगा था जिस कारन मुझे होश आने लगा था, घर जाने के नाम से डर लग रहा था क्योंकि घर पर होती माँ और वो मुझे ऐसे देख कर नजाने कितने सवाल पूछती! मैंने खुद को होश में रखने के लिए ड्राइवर से बात शुरू कर दी, आधे घंटे तक मैं उससे बात करता रहा और उसे घर का रास्ता बताते हुए कॉलोनी के गेट तक ला आया| पैसे दे कर जैसे ही मैं उतरा तो लगा की मेरा पाँव सुन्न हो गया है, मैंने दो-तीन बार पाँव जमीन पर पटका और घर की ओर चल पड़ा| जब मैं चला तो नशा फिर सरपर सवार होने लगा, मैं बजाए सीधे चलने के टेढ़ा-मेढ़ा चलने लगा| 100 मीटर का रास्ता ऐसा था मानो कोई भूल भुलैया हो और मैं चल भी किसी साँप की तरह रहा था| घर पहुँचा तो मेरी फटी, क्योंकि दरवाजा माँ ही खोलतीं और मेरी ये हालत देख कर हाय-तौबा मचा देतीं! 'क्या करूँ?...क्या करूँ?' मैं बुदबुदाया और सर खुजलाने लगा| तभी दिमाग में एक बचकाना आईडिया आया, मैंने घंटी बजाई और दरवाजे के साथ चिपक कर खड़ा हो गया| माँ ने जैसे ही दरवाजा खोला मैं सरसराता हुआ उनकी बगल से निकल गया और सीधा अपने कमरे में घुस गया| माँ को कुछ तो महक आ गई होगी और बाकी की रही-सही कसर मेरे इस अजीब बर्ताव ने पूरी कर दी थी| माँ दरवाजा बंद कर के मेरे पीछे-पीछे कमरे में घुसीं, तब तक मैं बाथरूम में घुस गया था|

माँ: क्या हुआ?

माँ ने बाथरूम के बाहर से पुछा| मैं उस वक़्त chewing gum थूक कर ब्रश कर रहा था तो मैं उसी हालत में बोला;

मैं: बाथरूम आई थी जोर से!

मेरी किस्मत कहो या माँ का भरोसा की माँ ने मेरी बात मान ली|

माँ: कहाँ गया था?

माँ ने मेरे पलंग पर बैठते हुए पुछा|

मैं: आ रहा हूँ!

इतना कह कर मैंने ब्रश खत्म किया, और मुँह फेसवाश से धोया| तभी मेरा दिमाग कहने लगा की जिस्म से जो दारु की महक आ रही है उसका क्या? अब अगर deo होता तो मैं लगा लेता पर deo तो बाहर रखा था! मैंने नजर घुमाई तो पाया की सामने पाउडर रखा है, मैंने थोड़ा सा पाउडर अपनी बगलों में और नाम मात्र का पाउडर अपनी गर्दन पर लगाया| अब बस मुझे माँ को ये विश्वास दिलाना था की ये महक इस पाउडर के पसीने में मिल जाने की है न की दारु की! मैं बाहर आया और माँ से कुछ दूरी पर खड़ा हो कर अपना मुँह पोछने लगा|

माँ: कहाँ गया था? और ये महक कैसी है?

माँ ने मुँह बिदकते हुए सवाल दागा| उनका सवाल सुन कर मैंने खुद को सामन्य दिखाते हुए उनसे ही सवाल पूछ लिया;

मैं: कैसी महक?

माँ उठ के खड़ी हुई और मेरे नजदीक आ कर मेरी कमीज सूँघने लगीं|

माँ: तूने शराब पी है?

माँ ने गुस्से से मुझे देखते हुए पुछा|

मैं: मैं और शराब?

मैंने छाती ठोक कर झूठ बोलते हुए उन्हीं से सवाल पुछा| माँ मेरे नजदीक थीं तो उनकी नजर मेरी आँखों पर पड़ी जो लाल हो चुकी थीं;

माँ: तेरी आँखें क्यों लाल हैं? पक्का तूने पी है!

माँ ने गुस्से से कहा| शराब की महक छुपाने के चक्कर में मैं अपनी आँखों के लाल होने की सुध ही नहीं रही!

मैं: त...तबियत खराब हो गई थी!

मैंने खुद को बचाने के लिए एक और झूठ बोला, पर इस झूठ ने मुझे एक कहानी बना कर तैयार करने का जबरदस्त आईडिया दे दिया|

मैं: मैं एक पार्टी के पास गया था माल की बात करने, उनके ऑफिस में AC चालु था और उन्होंने बड़ा तेज परफ्यूम लगा रखा था! परफ्यूम की महक और AC के कारन मेरी छींकें शुरू हो गईं, मैं मीटिंग अधूरी छोड़कर कैब कर के लौट आया और ये जो अजीब महक आप को आ रहे है ये कुछ तो वो जबरदस्त परफ्यूम की है और बाकी जो मैंने पाउडर लगाया था वो छींकें आने से मेरे पसीने से मिल गया|

ये कहते हुए मैंने अपन हाथ उठा कर अपनी बगल उनकी नाक के आगे की| शायद माँ को यक़ीन हो गया था तभी उन्होंने उस महक के बारे में और कुछ नहीं पुछा|

माँ: अब कैसी है तेरी तबियत?

माँ मेरी तबियत की चिंता करते हुए बोलीं|

मैं: थोड़ा आराम है|

माँ: मैं गर्म पानी ला देती हूँ, तू भाँप ले ले!

माँ ने परेशान होते हुए कहा|

मैं: नहीं माँ....थकावट लग रही है.... सो जाता हूँ...!

इतना कह कर मैंने अपने कपडे बदले और लेट गया|

माँ: बेटा खाना तो खा ले?

मैं: अभी भूख नहीं है|

इतना कह मैंने दूसरी ओर करवट ले ली| माँ को लगा की मैं गुस्सा हूँ इसीलिए खाना नहीं खा रहा, ‘थोड़ा आराम कर ले, मैं तुझे बाद में उठाती हूँ’ कह कर माँ चली गईं|



माँ के जाते ही मैं सोचने लगा की मैंने कैसे सफाई से झूठ बोला! कुछ समय पहले मुझे बोलने में दिक्कत हो रही थी और अब मैं एक साँस में, पल भर में बनाई झूठी कहानी माँ को सुना और उन्हें अपनी कहानी पर विश्वास दिलाने में कामयाब हो गया?! क्या इतना बड़ा धोकेबाज हूँ मैं?

नशा मुझ पर जोर मार रहा था इसलिए मैं ये सोचते हुए घोड़े बेच कर सो गया!

कुछ देर बाद पिताजी घर लौटे और मेरे बारे में पुछा, माँ ने उन्हें बताया की मेरी तबियत ठीक नहीं है तथा मैं सो रहा हूँ| माँ ने मेरे गुस्से के बारे में पिताजी से पुछा तो पिताजी ने सारी बात बताई| फिर माँ ने माल का बिल और बिना साइन किया हुआ चेक पिताजी को दिया| पिताजी जान तो गए की उन्होंने बेवजह मुझे झाड़ दिया पर अपनी गलती माँ के सामने माने कैसे? पिताजी ने खाना परोसने को कहा और मुझे जगाने को कहा, माँ मुझे जगाने आईं, उनकी बतेहरी कोशिश पर भी मैं नहीं उठा, तो माँ ने जैसे-तैसे बात संभाली और पिताजी से मेरे लिए झूठ बोलीं की मैं बाद में खाऊँगा| अगर वो सच बोलती तो आज पिताजी की मार से मुझे कोई नहीं बचा सकता था, क्योंकि वो मुझे देखते ही समझ जाते की मैं पी कर टुन हूँ!



पिताजी ने खाना खाया और माँ से कहा की मुझे भी खिला दें, इतना कह वो अपने कमरे में चले गए| इधर माँ मुझे पुनः जगाने आईं, उन्होंने इस बार मुझे जोर से झिंझोड़ा जिससे मेरी नींद कुछ खुली पर मैं कुनमुनाते हुए बोला;

मैं: भूख...नहीं....सुबह...खाऊँगा....!

इतना कह मैं फिर से सो गया| माँ उठीं और कुछ देर तक बाहर बैठी टीवी देखती रहीं जिससे पिताजी को लगा की माँ और मैंने खाना खा लिया है|

इधर रात के 3 बजे मेरी नींद एकदम से खुली क्योंकि मेरा जी मचल रहा था, ऐसा लग रहा था की अभी उलटी होगी! मैं तुरंत बाथरूम में घुसा पर शुक्र है की कोई उलटी नहीं हुई, मुँह धो कर मैं बाहर आया और पलंग पर पीठ टिका कर बैठ गया| मेरी नींद उचाट हो गई थी और अब दिमाग में बस ग्लानि के विचार भरने लगे थे!



जारी रहेगा भाग 7(3) में...
Bahut hi badhiya
 

Ssking

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सातवाँ अध्याय: समर्पण
भाग-2

शाम को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा हो गया, बेचारा वरुण अपने मम्मी-पापा की लड़ाई देख रोने लगा| भौजी ने मुझे वरुण को अपने पास ले आने को कहा और मैं फटा-फ़ट वरुण को अपने साथ बहार ले आया| वरुण का रोना बंद ही नहीं हो रहा था, बड़ी मुश्किल से मैंने उसे पुचकार के आधा किलोमीटर घुमाया और जब मुझे लगा की वो सो गया है तब मैंने उसे भौजी को सौंप दिया| जब भौजी मेरी गोद से वरुण को ले रही थी तो मैंने शरारत की और उनके निप्पलों को अपने अंगूठे में भर हल्का सा मसल दिया| भौजी विचलित हो उठी और मुस्कुराती हुई प्रमुख आँगन में पड़ी चारपाई पर वरुण को लिटा दिया| रात हो चुकी थी और अँधेरा हो चूका था, भौजी जानती थी की मैं खाना उनके साथ ही खाऊँगा परन्तु सब के सामने? उनकी चिंता का हल मैंने ही कर दिया;

मैं: भौजी मुझे भी खाना दे दो|

भौजी मेरा खाना परोस के लाई और खुस-फुसते हुए बोलीं;

भौजी: मानु क्या नाराज हो मुझ से?

मैं: नहीं तो!

भौजी: तो आज मेरे साथ खाना नहीं खाओगे?

मैं: भौजी आप भी जानते हो की दोपहर की बात और थी, अभी आप मेरे साथ खाना खाओगी तो चन्दर भैया नाराज होंगे|

भौजी मेरी ओर देखते हुए मुस्कुराई और मेरी ठुड्डी पकड़ी ओर प्यार से हिलाई!

भौजी: बहुत समझदार हो गए हो?

मैं: वो तो है, अब संगत ही ऐसी मिली है! और वैसे भी आप मेरे हिस्से का खाना खा जाती हो|

मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा तो भौजी ने अपनी नाराज़गी ओर प्यार दिखाते हुए मेरी दाहिनी बाजू पर प्यार से मुक्का मारा|


मैंने जल्दी-जल्दी खाना खाया और अपने बिस्तर पर लेट गया, मैंने सबको ऐसे जताया जैसे मुझे नींद आ गई हो, जबकि असल में मुझे बस इन्तेजार था की कब भौजी खाना खाएँ और कब बाकी सब घर वाले अपने-अपने बिस्तर में घुस घोड़े बेच कर सो जाएँ, तब मैं और भौजी अपना अधूरा काम पूरा कर लें| इसीलिए मैं आँखें बंद किये सोने का नाटक करने लगा, पेट भरा होने के कारन नींद आने लगी थी पर मेरा कौमार्य दिमाग मुझे सोने नहीं दे रहा था| कुछ देर बाद मैं बाथरूम जाने के बहाने उठा ताकि देखूँ की भौजी ने खाना खाया है की नहीं, तभी भौजी और अम्मा मुझे खाना खाते हुए दिखाई दिए| मैं बाथरूम जाने के बाद जानबूझ के रसोई की तरफ से आया ताकि भौजी मुझे देख ले और उन्हें ये पक्का हो जाये की मैं सोया नहीं हूँ, वर्ण क्या पता वो मुझे सोता हुआ समझ खुद ही सो जाएँ! मैंने अपने बिस्तर पर लौटते समय मुआइना कर लिया था की कौन-कौन जाग रहा है और कौन सो चूका है| बच्चे तो सब सो चुके थे, बड़के दादा और पिताजी की चारपाई पास-पास थी और दोनों के खर्रांटें चालु थे| गट्टू भी गधे बेचके सो रहा था, माँ अभी जाग रही थी और बड़की अम्मा जी से लेटे-लेटे बात कर रही थी| मैंने अनुमान लगाया की ज्यादा से ज्यादा एक घंटे में दोनों अवश्य सो जाएँगी| रसिका भाभी और मधु भाभी नए घर में अपने-अपने कमरे में सोईं थीं| अजय भैया और अशोक भैया मुझे कहीं नहीं दिखे तो मुझे लगा की वो बड़े घर की छत पर सोये होंगे| चन्दर भैया भी पिताजी के पास ही चारपाई डाले ऊँघ रहे थे| मैं अपने बिस्तर पर आके पुनः लेट गया और भौजी की प्रतीक्षा करने लगा| अब बस इन्तेजार था की कब भौजी आएं और अपनी प्यारी जुबान से मेरे कानों में फुसफुसाएं की मानु चलो! इन्तेजार करते-करते डेढ़ घंटा हो गया, मैं आँखें मूंदें करवटें बदल रहा था की तभी भौजी की फुसफुसाती आवाज मेरे कानों में पड़ी;

भौजी: मानु? सो गए क्या?

मैंने तुरंत आँख खोली और बोला;

मैं: नहीं तो, आजकी रात सोने के लिए थोड़े ही है!

ये सुन भौजी ने एक कटीली मुस्कान दी|

मैं: बाकी सब सो गए?

भौजी: हाँ ... शायद... (भौजी ने एक बार इधर-उधर देखते हुए कहा|)

मैं: डर लग रहा है?

भाभी: हाँ!

मैं: घबराओ मत मैं हूँ ना!

मैंने बड़े आत्मविश्वास से कहा और उनके हाथ को थोड़ा दबा दिया|


तभी अचानक बड़े घर से किसी के झगड़ने की आवाज आने लगी| ये आवाज सुन हम दोनों चौंक गए, भौजी को तो ये डर सताने लगा की कोई हम दोनों को साथ देख लेगा तो क्या सोचेगा और मैं मन ही मन कोस रहा था की मेरी योजना पे किस ने ठंडा पानी डाल दिया? शोर सुन सभी उठ चुके थे, बच्चे तक उठ के बैठ गए थे| मैं और भौजी भी अब बड़े घर की तरफ चल दिए| ये शोर और किसी का नहीं बल्कि अजय भैया और रसिका भाभी का था| पता नहीं दोनों किस बात पर इतने जोर-जोर से झगड़ रह थे| अजय भैया बड़ी जोर-जोर से रसिका भाभी को गालियाँ दे रहे थे और लट्ठ से पीटने वाले थे की तभी मेरे पिताजी और बड़के दादा ने उन्हें रोक लिया| इधर शोर सुन वरुण ने रोना चालु कर दिया था, मैंने वापस आ कर वरुण को गोद में उठाया और साथ ही राकेश और नेहा को अपने साथ रेल बनाते हुए दूर ले गया ताकि वो इतनी गन्दी गालियाँ न सुन पाएँ| मैंने इशारे से भौजी को भी अपने पास बुला लिया, मुझे लगा शायद भौजी को पता होगा की आखिर दोनों क्यों लड़ रहे होंगे पर उनके चेहरे के हाव-भाव कुछ अलग ही थे|

भौजी: मानु तुम यहाँ अकेले में इन बच्चों के साथ क्यों खड़े हो?

मैं: भौजी अपने नहीं देखा दोनों कितनी गन्दी-गन्दी गालियाँ दे रहे हैं! बच्चे क्या सीखेंगे इन से?

भौजी: मानु ये तो रोज की बात है| इनकी गालियाँ तो अब गाओं का बच्चा-बच्चा रट चूका है|

मैं: हे भगवान!!!


अब भौजी का मुँह बना हुआ था और मैं जनता था की वो क्यों खफ़ा है| मैंने उन्हें सांत्वना देने के लिए उनके कान में कहा;

मैं: भौजी आप चिंता क्यों करते हो? कल सारा दिन है अपने पास और रात भी!

भौजी: मानु रात तो तुम भूल जाओ!

उनकी बात में जो गुस्सा था उसे सुन मैं हँस पड़ा और मेरी हँसी से भौजी नाराज होके चली गईं, मैं पीछे से उन्हें आवाज देता रह गया| सच बताऊँ तो मुझे भी उतना ही दुःख था जितना भौजी को था बस मैं उस दुःख को जाहिर कर अपना और भौजी का मूड ख़राब नहीं करना चाहता था|

खेर जैसे-तैसे मामला सुलझा, सुबह हो गई और एक नई मुसीबत मेरे सामने थी| पिताजी और माँ बाजार जाना चाहते थे और मजबूरी में मुझे भी जाना था| मन मसोस कर मैं चल पड़ा, बाजार पहुँच माँ और पिताजी खरीदारी कर रहे थे, पर मेरी शकल पे तो बारह बजे थे| पिताजी को आखिर गुस्सा आना ही था;

पिताजी: मुँह क्यों उतरा हुआ है तेरा?

मैं: वो गर्मी बहुत है, थकावट हो रही है... घर चलते हैं| (मैंने बहाना मारते हुए कहा|)

पिताजी: घर? अभी तो कुछ खरीदा ही नहीं? और अगर तुझे घर पर ही रहना था तो आया क्यों साथ?

माँ: अरे छोडो न इसे, इसका मूड ही ऐसा है, एक पल में इतना खुश होता है की मानो हवा में उड़ रहा हो और थोड़ी देर में ऐसे मायूस हो जाता है जैसे किसी का मातम मन रहा हो|


माँ ने भी अपना गुस्सा दिखाया| अब मैं कुछ बोल नहीं सकता था, इसलिए चुप रहा| माँ और पिताजी दूकान में साड़ियाँ देखने में व्यस्त हो गए, साड़ियाँ देख मन हुआ की क्यों न भौजी के लिए एक साडी ले लूँ, पर जब जेब का ख्याल आया तो मन फिर से उदास हो गया| मेरी जेब में एक ढेला तक नहीं था, ग्यारहवीं में आने के बाद मैंने स्कूल लंच ले जाना बंद कर दिया था| तो मैं वहाँ भूखा न रहूँ इसके लिए पिताजी मुझे 10 रुपये दिया करते थे| उस समय 10 रुपये की कीमत हुआ करती थी, इसलिए शाम को वापस आ कर मुझे उन्हें बताना पड़ता था की मैंने 10 रुपये खर्च किये या नहीं! पर मैं होशियारी सीख गया था, तो मैं अक्सर झूठ बोल दिया करता की मैंने खाने-पीने में खर्च कर दिए| कभी-कभार माँ जब अच्छे मूड में होती या मेरे किये किसी काम से खुश होती तो मुझे 10/-, 20/-, 50/- रुपये दे दिया करती तो मैं वो भी अपने पास छुपा कर रखता| इन पैसों को इक्कट्ठा करने का कारन था की मुझे एक मोबाइल लेना था पर आज बजार आते समय मैं वो पैसे ले कर नहीं आया था और अगर लाया भी होता तो पिताजी के सामने भौजी के लिए साडी लेने की हिम्मत ना होती!


खैर पिताजी और माँ साडी देखने में व्यस्त थे और मैं बैठे-बैठे ऊब रहा था, इस परिस्थिति से निकलने का एक रास्ता दिमाग में आया| मैंने सोचा की क्यों न मैं अपने दिमाग के प्रोजेक्टर में अभी तक की सभी सुखद घटनाओं की रील को फिर से चलाऊँ? मैं जब भी ऊब जाता था तो अपनी एक काल्पनिक दुनिया में खो जाता था और ये करना मुझे बहुत अच्छा लगता था| इसलिए मैं ध्यान लगाते हुए भौजी के साथ बिठाये उन सभी अनुभवों को फिर से जीने लगा, पता नहीं क्यों पर अचानक से दिमाग में कुछ पुरानी बातें आने लगीं| उन्हीं बातों में से एक थी गुजरात वाले भैया की चेतावनी!

"मानु अब तुम बड़े हो गए हो, मैं तुम्हें एक बात बताना चाहता हूँ| जिंदगी में ऐसे बहुत से क्षण आते हैं जब मनुष्य गलत फैसले लेता है| वो ऐसी रह चुनता है जिसके बारे में वो जानता है की उसे बुराई की और ले जायेगी| तुम ऐसी बुराई से दूर रहना क्योंकि बुराई एक ऐसा दलदल है जिस में जो भी गिरता है वो फँस के रह जाता है|" ये बात दुबारा दिमाग में आते ही मैं सन्न रह गया| भैया की बात मेरी अंतर्-आत्मा को झिंझोड़ने लगी थी, बार-बार मुझे रोक रही थी की मैं बुराई की तरफ न जाऊँ! मेरा कौमार्य दिमाग अब तर्क देने लगा था पर अंतर-आत्मा उसके दिए हर तर्क को विफल कर रही थी| 'तो क्या अब तक जो भी कुछ हुआ वो पाप है? परन्तु भौजी तो मुझ से प्यार करती है!' मेरे कौमार्य दिमाग ने तर्क दिया|

'पर क्या मैं भी उन्हें प्यार करता हूँ?' मेरी अंतर् आत्मा ने मुझसे पुछा| ये वो सवाल था जिसे मैंने उस दिन दबा दिया था जब भौजी पिछली बार दिल्ली आईं थी| उस समय क्योंकि मेरी परीक्षा नजदीक थी इसलिए दिमाग पढ़ाई में लग गया था पर आज मेरे सर पर कोई बोझ नहीं था इसलिए दिमाग बार-बार वही प्रश्न दोहरा रहा था| जब मेरा कौमार्य दिमाग इस सवाल का जवाब नहीं दे पाया तो मुझे अपने आप से घृणा होने लगी! मैं कैसे देवर हूँ मैं जो अपनी भौजी के जज्बातों का गलत फायदा उठाना चाहता हूँ! मुझे तो चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए, जिंदगी में आज तक मुझे इतनी घृणा कभी नहीं हुई जितना उस समय हो रही थी! अंदर से मैं टूटना चालु हो गया था, मेरा आत्मविश्वास चकनाचूर हो गया था! पर कुछ तो था जो मुझे भौजी की तरफ खींच रहा था, वासना या प्यार मैं इसमें अंतर नहीं कर पा रहा था! जिस तरह मेरा कौमार्य दिमाग मुझ पर हावी हुआ था उस हिसाब से तो ये वासना थी, पर फिर क्यों भौजी के दूर जाने पर मैं खुद को अधूरा महसूस करता था? उस दिन छत पर जब उन्होंने मुझसे अपने प्यार का इजहार किया तो मैंने क्यों कहा की मैं उनसे प्यार करता हूँ? मैं झूठ भी बोल सकता था, पर उनका दिल नहीं तोडना चाहता था! 'हम केवल उसी का दिल नहीं तोडना चाहते जिसे हम प्यार करते हैं!' मेरे अंतर-आत्मा ने तर्क दिया और ये तर्क मैंने क़बूल कर लिया| मेरे लिए भौजी की ख़ुशी जर्रूरी थी और उनकी ख़ुशी मेरे प्यार में थी| अंतर-आत्मा कह रही था की 'तुझे भौजी का ये प्यार काबुल कर लेना चाहिए, तुझे भौजी से ये कहना होगा की तू उनसे बहुत प्यार करता है!' आज मैं पहलीबार अपनी अंतर-आत्मा की बात सुन पा रहा था और मैंने निर्णय किया की मैं भौजी से अपने प्यार का इजहार करूँगा और अब कोई भी गलत बात या कोई गन्दी हरकत उनके साथ नहीं करूँगा|


अपने अंदर उठ रहे इस विचारों के तूफ़ान के कारन मेरा मुँह उतर गया था, मन में मायूसी के बदल छाय हुए थे और मैं बस जल्दी से जल्दी भौजी से ये बात कहना चाहता था| उधर पिताजी के सब्र का बाँध टूट रहा था, उन्हें मेरा मायूस चेहरा देख के अत्यधिक क्रोध आ रहा था| उन्होंने माँ से कहा; "जल्दी से साडी खरीदो, मैं अब इस लड़के का उदास चेहरा नहीं देखना चाहता!" पिताजी ने मेरी तरफ क्रोध से देखते हुए कहा| माँ ने अपने और बड़की अम्मा के लिए साडी खरीदी और हम घर के लिए निकल पड़े| पूरे रास्ते पिताजी मुझे डाँटते रहे, परन्तु मैंने उनकी डाँट को अनसुना कर दिया और सारे रास्ते मैं भौजी से क्या कहना है उसके लिए सही शब्दों का चयन करने लगा| मेरा आत्मविश्वास चकनाचूर हो चूका था इसलिए मुझे लगा की मैं भौजी से ये प्यार वाली बात कभी नहीं कह पाउँगा! घर पहुँचते-पहुँचते दोपहर के भोजन का समय हो गया था, मैं. पिताजी और माँ बड़े घर पहुँच कर अपने-अपने कपडे बदल रहे थे| गर्मी के कारन पिताजी स्नान कर रसोई की ओर चल दिए और माँ को कह गए की इसे (यानी मुझे) भी कह दो खाना खा ले| तभी भौजी मेरे और माँ के लिए खाना परोस के ले आईं, भौजी को देखते ही मेरा गाला भर आया और नजाने क्यों मैं उनसे नजर नहीं मिला पा रहा था| भौजी ने माँ को खाना परोसा और मुझे भी खाना खाने के लिए कहा| भौजी की बात सुन मेरे मुख से शब्द नहीं निकले, क्योंकि मैं जानता था की अगर मैंने कुछ भी बोलने की कोशिश की तो मैं अपने पर काबू नहीं रख पाउँगा और रो पड़ूँगा| मैंने केवल ना में गर्दन हिलाई, ये देख भौजी के मुख पे चिंता के भाव थे, उन्होंने धीमी आवाज में कहा; "मानु अगर तुम खाना नहीं खाओगे तो मैं भी नहीं खाऊँगी!" मैं नहीं चाहता था की मेरी वजह से भौजी खाना न खाएँ, पर कुछ भी बोलने के लिए मेरे अंदर हिम्मत ही नहीं थी! पर भौजी को मेरे मुँह से जवाब सुनना था; "क्या हुआ?" उन्होंने दबी आवाज में कहा| मैं उसी क्षण उनसे अपने दिल की बात कहना चाहता था परन्तु हिम्मत जवाब दे गई और मैं वहाँ से छत की ओर भाग गया| छत पर चिल-चिलाती हुई धुप थी और मैं उस धुप में सर झुकाये खड़ा था, भौजी नीचे से ही आवाज देने लगी, अब तो माँ ने भी चिंता जताई, पर मैं भौजी की बात को अनसुना करता रहा| मैं छत पर एक कोने में खड़ा होगया और अपने अंदर उठ रहे तूफ़ान पर काबू पाने की कोशिश करने लगा| मेरी आँखों से कुछ आँसूँ की बूँदें छलक आईं, मैं अपनी आँख पोछते हुए पीछे घुमा तो देखा की भौजी चुपचाप खड़ी हुई मुझे देख रही हैं, मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था| न उन्होंने कुछ कहा, ना ही मैंने कुछ कहा, मैं सर झुकाये चुप-चाप नीचे भाग आया और बैठ के भोजन करने लगा| माँ ने इस अजीब बर्ताव का कारन पूछा परनतु मैंने कोई जवाब नहीं दिया| भौजी भी नीचे आ गईं, इधर माँ खाना खा चुकी थी और थाली ले कर रसोई की ओर जा रही थी तो भौजी ने उन्हें रोका और मेरे बर्ताव का कारन मेरे ही सामने पूछने लगीं;

भौजी: चाची क्या हुआ मानु को? चाचा ने डाँटा क्या?

माँ: अरे नहीं बहु, पता नहीं क्या हुआ है इसे सारा रास्ता ऐसे ही मुँह लटका के बौठा था| जब पूछा तो कहने लगा की गर्मी बहुत है, सर दर्द हो रहा है| भगवान जाने इसे क्या हुआ है?

भौजी: आप थाली मुझे दो, मैं अभी मानु को ठंडा तेल लगा देती हूँ उससे सर का दर्द ठीक हो जायेगा|


उधर मेरा भी खाना खत्म हो चूका था और मैं अपनी थाली ले कर जा रहा था| भौजी ने मुझे रोका और बिना कुछ कहे मेरी थाली ले कर चली गई| माँ भी भोजन के बाद टहलने के लिए बहार चली गईं| अब केवल मैं घर में अकेला रह गया था, मैंने सोचा मौका अच्छा है भौजी से अपने दिल की बात करने का, पर मैं ये बात कहूँ कैसे? मैं सोचने लगा की मुझे भौजी से कैसे बात शुरू करनी है, दिमाग में वाक्यों को सेट कर के मैं तैयारी करने लगा| आज पहलीबार मुझे किसी से अपने प्यार का इजहार करना था और ये मेरे लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा था|

पाँच मिनट के भीतर ही भौजी नवरतन तेल ले कर आगईं और मुझे सर झुकाये आंगन में टहलते हुए देखा| उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे चारपाई पर बैठाया और बोलीं; "मानु मैं जानती हूँ की तुम क्यों उदास हो? सच बताऊँ तो मेरा भी यही हाल है पर तुम मायूस मत हो, कल हम कैसे न कैसे कर के सब कुछ निपटा लेंगे|" भौजी मेरे बर्ताव का गलत मतलब निकाल रहीं थीं और मैं उन्हें कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था| गला सुख गया था, आँखों में आँसूँ छलक आये और हिम्मत इक्कट्ठा करनी शुरू की| मैं जानता था की भौजी की आँखों में आँखें डाल के मैं अपने प्यार का इजहार उनसे कभी नहीं कर पाउँगा| इसीलिए मैंने अपनी आँखें बंद की और एक झटके में भौजी से सब कह देना चाहा| परन्तु शब्द ही नहीं मिल रहे थे, मन अंदर से कचोट रहा था, एक अजीब सी तड़पन महसूस हो रही थी| मैं उन्हें कहना चाहता था की अभी तक जो भी हमारे बीच हुआ वो मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ एक आकर्षण मात्र था, परन्तु अब एक चुम्बकीये शक्ति मुझे आपकी तरफ खींच रही है और वो शक्ति इतनी ताकतवर थी की वो हम दोनों को मिला देना चाहती थी, दो जिस्म एक जान में बदल देना चाहती है|


पर भौजी मेरी चुप्पी का गलत मतलब निकाल रहीं थीं, उन्हें लगा जैसे मैं वासना के आगे विवश होता जा रहा हूँ इसलिए वो मुझे हिम्मत बंधाते हुए बोलीं; "मानु मैं जानती हूँ तुम्हें बहुत बुरा लग रहा है, पर अब किया भी गया जा सकता है? कैसे भी करके आज का दिन सब्र कर लो... कल…" भौजी की बात पूरी होने से पहले ही मैंने अपनी आँख खोली और एक आखरीबार गर्दन न में हिला के उन्हें बताने की कोशिश करने लगा की आप मुझे गलत समझ रहे हो, पर पता नहीं क्यों भौजी समझी ही नहीं| वो आगे कुछ बोलने वाली थीं पर मैंने भौजी के होंठों पर अपना हाथ रख उन्हें आगे बोलने से रोक दिया, क्योंकि वो मेरी भावनाओं को नहीं समझ रहीं थी और उनका बस गलत अर्थ निकाल रही थीं जिससे मैं शर्मिंदा महसूस कर रहा था| पर उनके होठों को छूने भर से मेरा खुद पर से काबू छूटने लगा, मैं भौजी की ओर बढ़ा और उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए| मेरा उन्हें Kiss करने का इरादा नहीं था, मैं तो जैसे उन्हें चुप कराना चाहता था| परन्तु खुद पर काबू नहीं रख पाया और अपनी द्वारा तय की हुई सीमा खुद ही तोड़ दी| मैंने अपने दोनों हाथों से उनके मुख को पकड़ लिया और मैं बिना रुके उनके होंठों पर हमला करता रहा| मैं कभी उनके नीचले होंठ को अपने मुख में भर चूसता, तो कभी उनके ऊपर के होंठ को| आज नजाने क्यों मुझे उनके होंठों से एक भीनी-भीनी सी खुशबु आ रही थी जो मुझे उनकी तरफ खींचे जा रही थी और मैं मदहोश होता जा रहा था| जिंदगी में पहली बार मैं कोई काम बिना किसी रणनीति के कर रहा था| Kiss करते-करते मैंने अपनी जीभ उनके मुँह में प्रवेश करा दी! मेरी इस हरकत से भौजी थोड़ा चकित रह गई पर इस बार उन्होंने भी पलट वार करते हुए मेरी जीभ अपने दातों के बीच जकड ली और उसे चूसने लगीं! मेरे मुंह से; "म्म्म्म...हम्म्म" की आवाज निकल पड़ी जिसे सुन भौजी को आनंद आने लगा था| ये हम दोनों का पहला ऐसा Kiss था जिसमें मैंने पहल करते हुए अपनी जीभ उनके मुँह में प्रवेश कराई थी!


भौजी भी मेरा Kiss में खुल कर साथ दे रहीं थी और जिस तरह से वो मेरा साथ दे रही थी उससे लग रहा था की अब उनसे भी खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा है| अचानक मेरे कौमार्य दिमाग ने मुझे सन्देश भेजा की मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, मुझे जल्दी से जल्दी सब करना होगा| इसलिए मैंने भौजी की जीभ से मेरे मुख के भीतर हो रहे प्रहारों को रोक दिया और भाग कर मैंने बाहर का दरवाजा बंद किया| वापस आ के भौजी को अशोक भैया के कमरे के पास कोने पर खड़ा किया और मैं नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गया| मेरे अंदर भौजी की योनि देखने की तीव्र इच्छा होने लगी, पिछली बार तो मैं उनकी योनि बस छू पाया था पर आज मुझे कैसे भी कर के उनकी योनि देखनी थी इसलिए मैंने भौजी की साडी उठा दी| मैं देख के हैरान था की भौजी ने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी!!! इधर मैंने आज पहली बार एक योनि देखि थी इसलिए मैं उत्साह से भर गया और मैंने बिना देर किये उनकी योनि को अपनी जीभ से छुआ! मेरी जीभ के स्पर्श से भौजी एकदम से सिहर उठीं! भाभी का योनि द्वार बंद था और जैसे ही मैंने अपनी जीभ की नोक से उसे कुरेदा तो वो जैसे उभर के मेरे समक्ष आ गया| उनका गुलाबी क्लीट (भगनासा) चमकने लगा था, मैंने भौजी की योनि को अपनी जीभ से थोड़ा और कुरेदा तो मुझे अंदर का गुलाबी हिस्सा दिखाई दिया, उसे देख के तो मैं सम्मोहित हो गया| मेरी लपलपाती जीभ भौजी की योनि से खेल रही थी और उनकी योनि को चाट रही थी! उधर भौजी की साँसे तेजी से चलने लगींथीं, भौजी कसमसाते हुए मेरे द्वारा किये प्रहार के लिए मुझे प्रोत्साहन देने लगीं| भौजी की योनि से अब एक तेज सुगंध उठने लगीथी जो मुझे हरपाल दीवाना बनाने लगी थी|

अब मैं और देर नहीं करना चाहता था इसलिए मैं वापस खड़ा हो गया, पर भौजी को लगा की शायद मेरा मन भर गया इसलिए उन्होंने मुझसे पुछा; "मानु मजा आया?" मैं उस वक़्त उन्हें कुछ ही कहने की हालत में नहीं था, क्योंकि मेरे कान और गाल सुर्ख लाल हो चुके थे, मैंने केवल गर्दन हाँ में हिलाई| मैंने अपनी पेंट की चैन खोली और अपना लिंग भौजी के समक्ष प्रस्तुत किया, मेरा लिंग बिलकुल तन चूका था और अब मुझे थोड़ा-थोड़ा दर्द भी होने लगा था, ऐसा लगा मानो अभी फ़ट जायेगा! चूँकि ये मेरा पहला अवसर था इसलिए मैंने भौजी से कहा; "भौजी इसे सही जगह लगाओ ना,

मुझे लगाना नहीं आता!!!" भौजी मेरी नादानी भरी बात सुन मुस्कुराई, उन्होंने मेरा लिंग हाथ में लिया और मुझे अपने से चिपका लिया| जैसे ही उन्होंने मेरे लंड को अपनी बुर से स्पर्श कराया मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया, भौजी की तो दर्दभरी सिसकारी छूट गई; "आह..हहह..मम...स्स्स्स...सीईइइइइ म्म्म्म!!!" उनकी योनि अंदर से गीली और गर्म थी, लिंग अंदर जाते ही मुझे गर्माहट का एहसास होने लगा| काफी देर से खड़े लंड को जब भौजी की योनि की गरम दीवारों ने जकड़ा तो मेरे लिंग को सकून मिला| भौजी ने मुझे कस कर अपने आलिंगन में कैद कर लिया और जवाब में मैंने भी भौजी को कस कर अपनी बाँहों में भर लिया| मैंने बिना सोचे समझे खड़े-खड़े ही नीचे से झटके मरने शुरू कर दिए, अनादि होने के कारन मेरे झटके बिना किसी लय के भौजी की योनि में हमला कर रहे थे| पर भौजी के मुख से दर्द भरी सिसकारियाँ जारी थी; "आह..माँ....हहममम...आह..ह.म्म.स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!!" कुछ ही देर में वो मेरे द्वारा दिए गए हर झटके को महसूस कर आनंदित हो रही थी, परअब मेरी भी आहें निकलनी शुरू हो गईं थीं; "अह्ह्हह्ह्ह्ह......म्म्म्म... अम्म्म्म!!!" मैंने नीचे से अपना आक्रमण जारी रखा और साथ ही साथ भौजी की गर्दन पर अपने होंठ रख उनकी गर्दन को चूमने लगा, भौजी ने अपना एक हाथ मेरे सर पर रख मुझे अपनी गर्दन पर दबाने लगीं| उनका प्रोत्साहन पा मैंने उनकी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा दिए, इस कारन भौजी की चीख निकल पड़ी; "आअह अह्ह्ह्ह्न्न.. मानु.....स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!!" मैं उनकी गर्दन पर किसी ड्रैकुला की तरह चूस और चाट रहा था, बस फर्क इतना था की मेरी इच्छा उनका खून पीने की नहीं थी|


अभी केवल दस मिनट ही हुए थे और अब मैं इस सम्भोग को और आगे नहीं ले जा सकता था, मेरा ज्वालामुखी भौजी की योनि के अंदर ही फूट पड़ा| भौजी को जैसे ही मेरा गर्म वीर्य उनकी योनि में महसूस हुआ उन्होंने मेरे लिंग को एक झटके में अपने हाथ से पकड़ बहार निकाल दिया| जैसे ही मेरा लिंग बाहर आया भौजी की बुर से एक गाढ़ा पदार्थ नीचे गिरा और उसके गिरते ही आवाज आई; "पाच!!!" ये पदार्थ कुछ और नहीं बल्कि मेरे और भौजी के काम रसों का मिश्रण था| भौजी निढाल हो कर मेरे ऊपर गिर पड़ीं| मैंने उन्हें संभाला और उनके होंठों पर Kiss किया, उन्हें दिवार के सहारे खड़ा किया और अपनी जेब से रुमाल निकाल के उनकी योनि को पोंछा और फिर अपने लिंग को साफ़ किया| मैंने पास ही पड़े पोंछें से जमीन पे पड़ी उस "खीर" को साफ़ करने लगा जिस पर मखियाँ भिन्न-भिनाने लगीं थी| भौजी अब तक होश में आ गई थीं और वो स्वयं चलके चारपाई पर बैठ गईं| मैंने अपने हाथ धोये और तुरंत दरवाजा खोल उनके पास खड़ा हो गया, भौजी मेरी ओर बड़े प्यार से देख रही थी, पर मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था|


जारी रहेगा भाग-3 में .....





Ho gya udghatan manu kdwara bhoji ka
 

Ssking

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सातवाँ अध्याय: समर्पण

भाग-3
अब तक आपने पढ़ा:

भौजी अब तक होश में आ गई थीं और वो स्वयं चलके चारपाई पर बैठ गईं| मैंने अपने हाथ धोये और तुरंत दरवाजा खोल उनके पास खड़ा हो गया, भौजी मेरी ओर बड़े प्यार से देख रही थी, पर मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था|

अब आगे.....


अब जब कौमार्य भंग होने का तूफ़ान थमा तो मुझे खुद पर शर्म आने लगी| ठीक ऐसी ही फीलिंग मुझे तब होती थी जब मैं दिल्ली में हस्तमैथुन करता था| ऐसा लगता था मानो मैंने कोई पपप किया हो और आज तो मैंने शायद उससे भी बड़ा जुर्म किया था! मेरा दिमाग कुछ देर पहले मेरे द्वारा ही तय की गई सीमा को तोड़ने के लिए मुझे ही गालियाँ दे रहा था| मेरी अंतर आत्मा मुझे अंदर से झिंझोड़ रही थी, एक बार फिर मुझे अपने ऊपर घिन्न आ रही थी, अपने द्वारा किये हुए इस पाप से मन भारी हो चूका था| मैं भौजी से माफ़ी माँगना चाहता था, परन्तु इससे पहले मैं कुछ कह पाता, नेहा भौजी को ढूँढती हुई आ गई| जब उसने भौजी से पूछा की वो कहाँ थीं तो उन्होंने मेरी ओर देखते हुए झूठ बोल दिया; "मैं ठकुराइन चाची के पास गई थी वहाँ से अभी- अभी तुम्हारे चाचा के पास आई तो उन्होंने बताया की उनके सर में दर्द हो रहा है, तो मैं तेल लगाने वाली थी|" भौजी ने तेल की शीशी की ओर इशारा करते हुए कहा|

"नहीं भौजी रहने दो, मैं थोड़ी देर सो जाता हूँ| आप जाओ खाना खा लो| मैंने सर झुकाये हुए कहा| भौजी उठीं और चल दी और मैं खड़ा उन्हें जाते हुए देखता रहा| उनके जाने के बाद मैं आँगन में पड़ी चारपाई पर लेट गया और सोचने लगा;

'क्या अभी जो कुछ हुआ वो पाप था?'

'यदि भौजी गर्भवती हो गई तो उनका क्या होगा ? और उस बच्चे का क्या होगा?'

'आखिर क्यों मैंने वो सब किया? क्यों मेरे द्वारा बांधीं सभी हदें टूट गईं?'

कहाँ तो मैं उन्हें अपने दिल की बात कहना चाहता था और कहाँ मैंने उन्हें छूने का पाप कर दिया! ये सब सोचते-सोचते मैं निर्णय नहीं ले पा रहा था की मैं क्या करूँ? मेरी अंतर-आत्मा मुझे दोषी करार दे चुकी थी और अब इस दोष की एक ही सजा थी वो थी भौजी को सब सच बताना| पर उसके लिए मुझे बहुत हिम्मत चाहिए थी, मैं जानता था की ये सब सुन कर भौजी टूट जाएँगी और शायद उनका मुझ पर से विश्वास भी उठ जाए, लेकिन सच तो मुझे उन्हें बताना ही था| पर दिल के भीतर कहीं चोर था जो मुझे मेरे प्रायश्चित की ओर जाने से रोक रहा था और उलटे-सीधे तर्क देने लगा था| उस चोर के अनुसार मुझे जैसा चल रहा है वैसे चलते रहने देना चाहिए और जितना मजे लूटने चाहिए वो सब लूट लेने चाहियें| पर मुझ में इंसानियत अभी बाकी थी इसलिए मैंने फैसला कर लिया था की कैसे भी हो मैं भौजी को सब सच बता दूंगा बस एक सही मौका मिल जाए!


इन सब बातों को सोचते-सोचते सर दर्द करने लगा था और अब चूँकि पेट भी भरा था तो आँखें कब बोझिल हो गईं, कब नींद आ गई पता ही नहीं चला| जब आँख खुली तो शाम के सात बज रहे थे, मैं उठा और स्नान घर में जा के स्नान किया, स्नान करते हुए जब ध्यान अपने तने हुए लंड पर गया तो दोपहर की घटना फिर याद आ गई, खुद से फिर एक बार घिन्न आने लगी की मैं कैसे देवर हूँ मैं जिसने अपनी ही भौजी को.... छी ..छी..छी... मुझे तो चुल्लू भर पानी में डूब मारना चाहिए| इसी कारण से मैं नहाने के बाद रसोई के आस पास भी नहीं जा रहा था, मैं छत पर आ गया और टहलने लगा तथा भौजी से सब सच बोलने के लिए हिम्मत बटोरने लगा| मैं छत के एक किनारे खड़ा हो गया और चन्दर भैया के घर की ओर देखते हुए सोचने लगा की भौजी से बात करने का कब मौका मिलेगा? तभी वो मौका खुद चल कर मेरे पास आ गया, नेहा ने मुझे नीचे से आवाज दी; "चाचू...मम्मी... बुला.... रही... है|" नेहा की बात सुन के मेरे कान लाल हो गए, ह्रदय की गति बढ़ गई और दिमाग ने काम करना बंद कर दिया| दिल में छुपा चोर मुझे रोक रहा था इसलिए उसने फिर तर्क दे कर मुझे द्वारा दिया; 'कहीं भौजी नाराज तो नहीं?' या 'किसी ने भौजी और मुझे वो सब करते देख तो नहीं लिया?' कहीं 'भौजी ने खुद ही ये बात तो सब को नहीं बता दी?' इन सवालों ने मेरे क़दमों को जकड लिया की तभी नेहा ने मुझे फिर से पुकारा; "चाचू...!!!"

"हाँ... मैं आ रहा हूँ|" मैंने कांपती हुई सी आवाज में कहा| लड़खड़ाते हुए मैं सीढ़ियों से नीचे उतरा और रसोई की ओर चल पड़ा, मन में घबराहट थी ओर चेहरा साफ़ बयाँ कर रहा था की मेरी फ़ट चुकी है| रसोई के पास वाले छप्पर के नजदीक पहुँचते ही मुझे किसी के खिल-खिला के हँसने की आवाज आई| ये तो नहीं पता था की वो कौन है पर इस हँसी के कारन मेरे बेकाबू दिल को थोड़ी सांत्वना मिली की बाल-बाल बचे!!! मैं छप्पर में दाखिल हुआ तो एक चारपाई पर रसिका भाभी, मधु भाभी और उस अकड़ू ठाकुर की बेटी (माधुरी) बैठी थीं और दूसरी चारपाई पर भौजी और नेहा बैठे थे| माहोल देख के लगा जैसे वे सब आपस में कुछ खेल रहे थे और हँसी ठिठोली कर रहे थे, भौजी ने मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया और मैं उनके पास बैठ गया| दरअसल वे सब एक दूसरे से टीम बना के पहेली पूछने का खेल खेल रहे थे| अब चूँकि भौजी अकेली पड़ रहीं थी इसलिए उन्होंने मुझे बुलाया था| मैं भौजी को देख काफी हैरान था की उनके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं थी और कहाँ मैं शर्म के मारे गड़ा जा रहा था| पर अब भी मैं भौजी से कोई बात नहीं कर पा रहा था, भाभी ने सब से आँख बचा के मुझे इशारे से पूछा की क्या बात है? पर मैंने इशारे से कहा की कुछ नहीं, भौजी मुझे सवालिया नजरों से देख रही थी और मैं उनसे नजरें चुरा रहा था| भौजी ने माहोल को थोड़ा हल्का करने के लिए मुझसे साधारण बात शुरू की;

भौजी: मानु अब सर दर्द कैसा है?

मैं: जी.. अब ठीक है|


मेरे इस औपचारिक तरीके से दिए जवाब के कारन भौजी कुछ परेशान दिखी, उहें लगने लगा की मैं उनसे नाराज हूँ| इसलिए उन्होंने मेरा मूड हल्का करने के लिए कहा;


भौजी: अच्छा मानु हम यहाँ पहेली बुझने वाला खेल खेल रहे हैं और तुम मेरे पक्ष में हो|

मैं: पर भाभी आप तो जानते ही हो की मुझे भोजपुरी नहीं आती, तो मैं आपकी कोई मदद नहीं कर पाउँगा|

मेरे मुख से "भाभी" सुन भौजी ने नजरों ही नजरों में मुझे अपना झूठा गुस्सा दिखाया| क्योंकि मैं उन्हें हमेशा "भौजी" ही कहता था और सिवाय उनके मैंने "भौजी" शब्द किसी दूसरे के लिए कभी भी इस्तेमाल नहीं किया था जिसका उन्हें बहुत गर्व था| भौजी ने अपनी नाराजगी दिखाते हुए कहा;

भौजी: तो क्या हुआ? तुम मेरे पास तो बैठ ही सकते हो?

मैं: ठीक है|


मैंने सर झुका कर जवाब दिया और चुप-चाप बैठा रहा| मैं थोड़ी बहुत तो भोजपुरी समझता था पर ठेठ भाषा मुझे नहीं आती थी| इधर उनका खेल चल रहा था, परन्तु मैंने एक बात गौर की, माधुरी मुझे देख के कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी और ये बात भौजी ने भी गौर की परन्तु मुझसे उस समय इस बारे में कुछ नहीं कहा| खेल जल्द ही समाप्त हो गया और भौजी हार गईं, उनकी हार का अफ़सोस तो मुझे था ही पर साथ-साथ उनकी मदद न कर पाने का दुःख भी| खाना खाने का समय हुआ और जाते-जाते माधुरी मुझे "गुड नाईट" कह गई, मैंने भी उसकी बात का जवाब "गुड नाईट" से दिया| बात तो वो समझ नहीं पाईं पर ये देख भौजी जल भून गई, इस बार भी उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा और इस कड़वी बात को पी कर रह गईं| तकरीबन एक घंटे बाद बच्चे खाना खा के उठ चुके थे और अब घर के बड़े खाना खाने जा रहे थे, मैं भी खाना खाने जा ही रहा था की भाभी ने मुझे इशारे से रोक दिया; "मानु .. ये भूसा बैलों को डालने में जरा मेरी मदद कर दो|" भौजी बोलीं पर उनकी बात सुन चन्दर भय को अपना गुस्सा निकालने का मौका मिल गया; "तू खुद नहीं डाल सकती? मानु भैया को खाना खाने दे!" अब मैं अपनी भौजी को डाँट कैसे खाने देता तो मैं उनका बचाव करने को कूद पड़ा; "कोई बात नहीं भैया! आज पहली बार तो भाभी ने मुझे कुछ काम बोला है|" मैंने झूठी मुस्कराहट के साथ कहा जिसे सुन सब हँस पड़े|

भौजी और मैं भूसा रखने के कमरे की ओर चल दिए, अंदर पहुँचते ही भौजी मेरे सीने से कस कर लिपट गईं| उनकी इस प्रतिक्रिया से मैं पिघल गया और आखिर कार अपने चुप्पी तोड़ डाली;

"आज दोपहर को जो भी हुआ उसके लिए आप मुझे माफ़ कर दो| सारी गलती मेरी है, मुझे आप के साथ वो सब नहीं करना चाहिए था! दरअसल मैं आपसे कुछ और कहना चाहता था, पर मेरी हिम्मत नहीं हुई आपसे वो कहने की और आप मेरी चुप्पी का गलत मतलब समझ रहे थे! मुझे माफ़ कर दो!!!" मैंने भौजी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा|

"मैं कुछ समझी नहीं? कौन सी बात कहनी थी तुम्हें?" भौजी बोलीं|

“मैं....भौजी मैं आपसे प्यार नहीं करता था! उस दिन मैंने हाँ सिर्फ आप का दिल रखने को कहा था! पर अब मैं आप से सच्चा प्यार करने लगा हूँ! आज जब मैं माँ-पिताजी के साथ बाजार गया था तो ये सब सोच-सोच कर मेरा दिल कचोट रहा था, मैंने निर्णय लिया था की आज मैं आपसे अपने प्यार का इजहार करूँगा पर आपसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई! बीते कुछ समय में मैंने जिस तरह आपको छुआ उससे मुझे खुद पर घिन्न आ रही थी इसलिए दोपहर को मेरे मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे! मेरा आपको छूना और वो सब करना गलत था....पाप था.... वो प्यार नहीं था....मेरी वासना थी.... मैंने सोचा था की मैं आज के बाद आपको कभी नहीं स्पर्श नहीं करूँगा पर दोपहर को मेरी सारी कसमें-वादे टूट गए! मेरे दिमाग में बसी मेरा कौमार्य भंग करने की गंदी इच्छा ने मुझे आपके साथ वो सब करने के लिए मजबूर कर दिया! मैंने आपसे मिन्नत करता हूँ की प्लीज मुझे माफ़ कर दो, मैं वादा करता हूँ की मैं आज के बाद आपको कभी स्पर्श नहीं करूँगा!" ये कहते हुए मेरी आँखों से पश्चाताप के आँसूँ बह निकले|



"अब मैं समझी की तुम मुझसे नजरें क्यों चुरा रहे थे? और तुम माफ़ी किस लिए माँग रहे हो?" भौजी ने मेरे आँसूँ अपनी साडी से पोछते हुए कहा| उन्हें तो जैसे मेरी बात सुन कुछ फर्क ही नहीं पड़ा था, मेरे चेहरे पर उठ रहे सवाल वो पढ़ चुकीं थीं; "अगर मुझसे प्यार नहीं करते थे तो क्यों मेरे चले जाने पर मायूस हो जाया करते थे? क्यों मेरे माईके जाने से तुम नाराज हो गए थे? अगर मुझसे प्यार नहीं करते तो उस दिन मेरा दिल रखने की तुम्हें क्या जर्रूरत पड़ी थी? बोल डेट की मैं तुमसे प्यार नहीं करता, ज्यादा से ज्यादा क्या होता? मुझे बुरा लगता या शायद मैं छत से कूद जाती! तुम मुझे खोना नहीं चाहते थे इसलिए तुमने ‘हाँ’ कहा था| …और ये क्या बोल रहे हो की तुमने दोपहर को किया वो पाप था? जो कुछ भी हुआ उसमें मेरी रजामंदी भी शामिल थी, अगर कोई कसूरवार है तो वो मैं हूँ! जिसे तुम वासना का नाम दे रहे हो वो प्यार है! तुम नहीं जानते की औरत का जब कोई छूता है तो वो उस स्पर्श से समझ जाती है की उसमें प्यार बसा है या वासना| मुझे तुम्हारे छूने से कभी वासना महसूस नहीं हुई बल्कि मैं तो खुद तुम्हारी तरफ खींची चली जाती थी! और ये जो तुम्हारे दिमाग में कौमार्य भंग होने की बात है उसे तो तुम अपने दिमाग से निकाल दो, इस घर में मेरे आलावा भी तुम्हारी दो भाभियाँ हैं क्या वो तुम्हारा कौमार्य भंग नहीं कर सकतीं थीं? मेरे आगे-पीछे डोलने की बजाए तुम रसिका से एक बार कहते तो वो ख़ुशी-ख़ुशी तुम्हारी इच्छा पूरी कर देती! आज दोपहर में जो हुआ... मैं तुम्हें बता नहीं सकती की तुम ने जो आज मुझे शारीरिक सुख दिया है उसके लिए मैं कितने सालों से तड़प रही थी| तुमने मुझे आज तृप्त कर दिया!!!"

भौजी की बात सुन कर मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई, मुझे उनसे इस जवाब की कतई उम्मीद नहीं थी| पर भौजी ने मेरे सारे सवालों का जवाब दे दिया था| उनकी जो अंतिम बात थी उसके कारन मेरी आँखें आस्चर्य से फ़ट गई थीं;

मैं: सच भौजी?

भौजी: तुम्हारी कसम मानु! मैंने तुम्हारे भैया को भी खुद को छूने का अधिकार नहीं दिया और न ही कभी दूँगी| तुम ही मेरे पति हो!!!

मैं: (चौंकते हुए) ये आप क्या कह रहे हो भौजी? चन्दर भैया और नेहा, ये ही आपका परिवार है| गलती मेरी है की मैं आपके पारिवारिक जिंदगी में दखलंदाजी कर रहा हूँ और न केवल दखलंदाजी बल्कि मैं आपकी पारिवारिक जिंदगी तबाह कर रहा हूँ|

भौजी: मानु तुम कोई दखलंदाजी नहीं कर रहे, अभी बहुत सी बातें हैं जो तुम नहीं जानते, अगर जानते तो मेरी बात समझ सकते|

मैं: (उत्सुकता वश) तो बताओ मुझे?

भौजी: अभी नहीं!

ये कहते हुए भौजी की आँखें नाम हो चलीं थी, मैंने उन्हें अपने पास खींचा और उन्हें कस कर गले लगा लिया, जैसे मैं भौजी को अपने अंदर समां लेना चाहता हूँ| मेरी छाती का स्पर्श पाते ही भौजी के अंदर उठा तूफान शांत हुआ| हम दोनों एक दूसरे को बाहों में कैद कर के खड़े हुए थे| तभी भौजी ने मेरी ओर देखा मानो वो मुझसे कुछ उम्मीद कर रहीं हों! मेरे होंठ जैसे उनकी माँग को समझ गए हों और वो स्वतः ही भौजी के होठों की तरफ चल दिए| मैंने भौजी के होंठों को अपने होंठों की गिरफ्त में ले लिया, परन्तु इस बार मन में वासना नहीं थी, मैं बस उनका दुःख कम करना चाहता था| कुछ सेकंड बाद दिमाग ने दिल को संदेसा भेजा की अब यहाँ ज्यादा देर रुकना खतरे से खाली नहीं, "भौजी अब हमें चलना चाहिए, नहीं तो सब शक करेंगे की ये दोनों इतनी देर से भूसे के कमरे में क्या कर रहे हैं?" भौजी ने बस हाँ में गर्दन हिला दी, मुझे कहीं न कहीं ऐसा लग रहा था की भौजी मुझ से नाराज है, इसलिए मैंने अपने मन की तसल्ली के लिए उनसे पूछा;

मैं: भौजी आप मुझसे नाराज तो नहीं ?

भौजी: नहीं तो, तुम्हें ऐसा क्यों लगा?

भौजी ने पास ही पड़ी भूसे से भरी टोकरी उठाने झुकीं, परन्तु मैंने उनके हाथ से टोकरी छीन ली|

मैं: क्योंकि आप एकदम से चुप हो गए|

इतना कहते हुए मैंने भूसे से भरी टोकरी सर पर रख ली, भौजी मेरी ओर बढ़ीं और मेरे गलों को अपने होंठों में भर लिया और उन्हें धीरे-धीरे दाँत से काटने लगीं| मेरे शरीर में तो जैसे करंट दौड़ गया, पर करता क्या सर पर टोकरी थी जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से पकड़ा हुआ था| भौजी ने मेरी इस हालत का भरपूर फायदा उठाया और दो मिनट बाद जब उनका मन भर गया तब वो हटीं, फिर अपने मादक रस को मेरे गालों से पोंछने लगीं|

मैं: भौजी बहुत सही फायदा उठाया आपने मेरी इस हालत का?

भौजी ये सुन कर खूब हँसी!

मैं वो टोकरी उठा के बैलों के पास आया और उन्हें चारा डाल दिया| अब मेरा मन पहले से शांत था और अंतर आत्मा पर कोई बोझ नहीं था| मैं एक बार फिर खुले पंछी की तरह आस्मां में उड़ने लगा था| भूसा उठा के लाने के चाक्कर में थोड़ा भूसा सर में और कपड़ों में लग गया था तो मैंने सोचा की क्यों न नहा लिया जाए?! गर्मियों के दिनों में, चांदनी रात में ठन्डे पानी से खुले आसमान तले नहाने में क्या मजा आता है, ये मुझे उस दिन पता चला| इस स्नान ने मेरे अंदर की वासना की ज्वाला को बुझा दिया था और मैं तरोताजा महसूस कर रहा था| परन्तु मन ही मन भौजी की बातें मुझे तड़पाने लगीं थी, आखिर उन्होंने मुझे अपने पति का दर्ज क्यों दिया? कोई भी स्त्री यूँ ही किसी को अपने पति का दर्जा नहीं देती! आखिर ऐसी क्या बात है जो भौजी ने मुझसे आजतक छुपाई? मुझे अपने सभी सवालों का जवाब चाहिए था पर मैं भौजी से जबरदस्ती नहीं कर सकता था|

मैं स्नान करके कुरता पजामा पहन के रसोई की ओर चल दिया| अब तक घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे केवल स्त्रियाँ ही रह गईं थी| जैसे ही भौजी ने मुझे देखा उन्होंने मुझे छप्पर में ही बैठने को कहा, मैं छप्पर में बिछे तखत पर आलथी-पालथी मार के भोजन के लिए बैठ गया| उस समय छप्पर में कोई नहीं था, बड़की अम्मा, माँ, मधु भाभी और रसिका भाभी सब बाहर हाथ-मुँह धो रहे थे| भौजी एक थाली में भोजन ले के आई;

भौजी: मानु तुम भोजन शुरू करो मैं अभी आती हूँ|

मैं: आप मेरे साथ ही भोजन करोगी? (मैंने हैरान होते हुए कहा|)

भौजी: क्यों? मैं तुम्हारे हिस्से का भी खा जाती हूँ इसलिए पूछ रहे हो? (भौजी ने मज़ाक करते हुए कहा|)

मैं: नहीं दरअसल अभी बड़की अम्मा, मधु भाभी, रसिका भाभी भी तो भोजन खाएंगे और उनके सामने आप मेरे साथ कैसे भोजन कर सकते हो? (मैंने वयस्कों जैसे बात की|)

भाभी: अरे वाह! बड़ी चिंता होने लगी तुम्हें मेरी? चिंता मत करो, फँसाऊँगी तो मैं तुम्हे ही!!! (भौजी हँसते हुए बोलीं|)

मैं: ठीक है भौजी आप आ जाओ फिर दोनों एक साथ शुरू करेंगे|


मैंने मुस्कुराते हुए कहा, तभी माँ, बड़की अम्मा, मधु भाभी और रसिका भाभी आ गए तथा अपनी-अपनी जगह भोजन के लिए बैठ गए| भौजी ने सब को भोजन परोसा और फिर मेरे पास आ कर तखत पर बैठ गईं| हम दोनों ने भोजन आरम्भ किया, नजाने क्यों पर रसिका भाभी से ये सब देखा नहीं गया और उन्होंने हमें टोका;


रसिका भाभी: का बात है देवर-भौजी एक साथ, एक ही थाली में भोजन करत हैं?

मैं: भाभी आपके आने से पहले जब मैं छोटा था तब भी हम एक साथ ही खाना खाते थे, चाहो तो आप बड़की अम्मा से पूछ लो| (मैंने भौजी का बचाव करते हुए कहा|)

रसिका भाभी: तब तो तुम रहेओ, अब बियाह लायक हो! अब तो आपन भौजी का पल्लू छोडो... ही ही ही ही!!!


ये कहते हुए वो खीसें निपोरने लगीं! रसिका भाभी की जलन साफ़ दिख रही थी, मैं कुछ बोलने वाला था की भौजी ने मुझे रोक दिया और खुद बीच-बचाव के लिए कूद पड़ीं|


भौजी: अभी मानु की उम्र ही क्या है, अभी ये पढ़ रहा है और जब तक ये अपने पाँव पर खड़ा नहीं होता ये शादी थोड़े ही करेगा?!, है ना चाची?

माँ: बिलकुल सही कहा बहु| ये यहाँ के बच्चों की तरह थोड़े ही है जो मूँछ के बाल आये नहीं और शादी कर दी! जहाँ तक इन दोनों (मेरे ओर भौजी) के साथ खाना खाने की बात है, तो बहु तुम इन दोनों को नहीं जानती, इसने तो अपनी भाभी का दूध भी पिया है| तुम्हें आये तो अभी कुछ समय हुआ है पर इनकी दोस्ती तो बहुत पुरानी है|



माँ की बात सुन रसिका भाभी का मुँह खुला का खुला रह गया, माँ के मुख से दूध पीने की बात सुन मैंने अपना मुख शर्म के मारे दूसरी तरफ घुमा लिया था, भौजी भी ये सुन कर सुर्ख लाल हो गईं थीं! अब तो बड़की अम्मा ने भी हाँ में हाँ मिला दी थी, उनका भोजन समाप्त हो गया था इसलिए वो अपनी थाली ले कर उठ खड़ी हुईं, उनके साथ रसिका भाभी ओर मधु भाभी भी खड़ी हो के थाली रखने चल दीं| मैं और भौजी चुप-चाप, धीरे-धीरे भोजन कर रहे थे, जब माँ अपनी थाली लेके उठीं तब मैंने भौजी से कहा:

मैं: भौजी मुझे आप से कुछ बात करनी है?

भौजी: हाँ बोलो?

मैं: यहाँ नहीं... अकेले में| (मैं उठ खड़ा हुआ|)

भौजी: ठीक है तुम हाथ-मुँह धो ओ, मैं अभी थाली रख के आती हूँ|

मैं: नहीं भौजी उसमें थोड़ा खतरा है| चन्दर भैया कहाँ सोये हैं?

भौजी: वो आज चाचा (मेरे पिताजी) के साथ छत पे सोये हैं और तुम्हें भी वहीँ सोने को कहा है|

मैं: पर मैं वहाँ नहीं सोनेवाला, आप ऐसा करो की हाथ-मुँह धो के अपने कमरे में जाओ| जब आपको लगे की सब सो गए हैं तब मुझे उठाना|

भौजी: सिर्फ बात ही करोगे ना ?

भौजी ने मुझे आँख मारते हुए कहा, उनके चेहरे पर आई शरारती मुस्कराहट देख मैं उनकी शरारत को भाँप गया था| पर मैं अभी मजाक के मूड में नहीं था, मुझे तो अपने सवालों का जवाब चाहिए था|

मैं: मुझे सिर्फ आपसे बात करनी है और कुछ नहीं!


इतना कह कर मैं चल दिया, हाथ-मुँह धो कर मैंने अपनी चारपाई आंगन में भौजी के घर के पास डाली| माँ ने मुझे छत पर सोने के लिए कहा पर मैंने मना कर दिया की मुझे बहुत जोर से नींद आ रही है| उन्हें संतुष्टि दिलाने के लिए आज मैंने भोजन के उपरांत टहला भी नहीं और सीधे चारपाई पर

गिरते ही सोने का नाटक किया| उधर सभी औरतें छप्पर के तले लेट चुकीं थी और अब मैं बेसब्री से इन्तेजार करने लगा की कब भौजी मुझे उठाने आएँगी| मन में अजीब सी उथल-पुथल मची हुई थी, एक अजब सी बेचैनी थी, इस बेचैनी के कारन मैं करवटें बदल रहा था| मैं ये नहीं जानता था की भौजी अपने घर के दरवाजे पर खड़ी मुझे करवटें बदलते देख रही हैं| वो मेरे सिराहने आईं और नीचे बैठ के मेरे कान में खुसफुसाई;

भौजी: मानु चलो, बात करते हैं|


अचानक उनकी आवाज सुन मैं चौंक गया और फिर उनके पीछे-पीछे चल पड़ा| अंदर पहुँच भौजी दरवाजा बंद करने लगीं तो मैंने उन्हें रोक दिया;

मैं: भौजी दरवाजा बंद मत करो, मैं आपसे सिर्फ और सिर्फ बात करने आया हूँ| (मैंने बेचैन होते हुए कहा|)

भौजी: मानु मैं तुम्हारी बैचनी समझ सकती हूँ, पूछो क्या पूछना है?


आंगन में दो चारपाइयाँ बिछी थीं, एक पर नेहा सो रही थी और दूसरी चारपाई भौजी की थी| मैं भौजी वाली चारपाई पर बैठ गया और भौजी नेहा की चारपाई पर बैठ गईं|

मैं: मुझे जानना है की आखिर क्यों आपने कहा की मैं आपका पति हूँ?! ऐसी कौन सी बात है जो आप मुझसे छुपा रहे हो?

भौजी: मानु आज मैं तुम्हें अपनी सारी कहानी सुनाती हूँ| मेरी शादी होने के बाद से ही तुम्हारे भैया और मेरे बीच में कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था| सुहागरात में उन्होंने इतनी पी हुई थी की उन्हें होश ही नहीं था की उनके सामने कौन है? उस रात मुझे पता चला की तुम्हारे भैया की नियत मेरी छोटी बहन पर पहले से ही बिगड़ी हुई थी.....(सर झुकाते हुए) उन्होंने मेरी बहन के साथ सम्भोग भी किया है!

भौजी की बात सुनते ही मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं!


मैं: ये आप क्या कह रहे हो? (मैंने चौंकते हुए कहा|)

भौजी: सुहागरात को वो नशे में इतने धुत थे की जब वो मेरे साथ... वो सब कर रहे थे तब उनके मुख से मेरी बहन सोनी का नाम निकल रहा था| अपनी बहन का नाम सुनके मेरे तो पाँव तले जमीन ही सरक गई| उन्होंने मेरे साथ जो धोका किया उसके लिए मैं तुम्हारे भैया को कभी माफ़ नहीं कर सकती!

इतना कहते हुए भौजी फूट-फूट के रोने लगीं, मुझसे भौजी का रोना बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं उठ के उनके पास जाके बैठ गया और उन्हें चुप कराने लगा| पर भौजी ने सुबकते हुए अपनी बात जारी रखी;

भौजी: उस पल मेरा मन किया की मैं आत्महत्या कर लूँ पर फिर मुझे आँखों के सामने तुम्हारा चेहरा नजर आया| शादी के बाद जब मैं तुमसे पहलीबार मिली थी तो मेरे दिल में कुछ अजीब सा हुआ! उस एहसास को मैं बयाँ नहीं कर सकती, ऐसा लगा जैसे कोई चुम्बकीय शक्ति मुझे तुम्हारी तरफ खींच रही हो! बड़ी तड़प के साथ मैंने वो रात निकाली और अगली सुबह मैं अम्मा से सब कहना चाहती थीं पर घर में सब मेहमान मौजूद थे तो मेरी हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की| फिर मुझे तुम खेलते हुए नजर आये तो मानो रात का दर्द मैं भूल ही गई| तुमसे बात शुरू की तो दिल को सुकून सा मिलने लगा और उन्हीं बातों-बातों में मैं हँस पड़ी! मेरी उस हँसी का कारन तुम थे! रात होते ही वो फिर मेरे पास आ गए अपनी जरूरत पूरी करने पर इस बार मैंने उन्हें खुद को छूने नहीं दिया और फिर हम दोनों के बीच लड़ाई हुई| मेरे जो जख्म सूखने लगे थे वो एक बार फिर हरे हो गए| मैंने अम्मा (बड़की अम्मा) से सब कुछ कहा तो उन्होंने मुझे चुप करा दिया| वो जानती थीं की उनका बेटा कैसा है पर फिर भी उन्होंने मेरे साथ ऐसा किया! मैंने सोच लिया था की चाहे जो हो जाये मैं तुम्हारे भैया को कभी खुद को छूने नहीं दूँगी, पर ये इतना आसान नहीं था| जब मैं उन्हें खुद को छूने नहीं देती तो उन्होंने मुझे मारना-पीटना शुरू कर दिया| मैं मजबूर थी और उनकी मार खाती रही, पर उन्हें खुद को छूने नहीं दिया| साल निकला और घर वालों ने मुझे बाँझ होने का ताना मारना शुरू कर दिया| क्या-क्या नहीं सहा मैंने, फिर एक दिन दारु के नशे में धुत इन्होने मेरे साथ जबरदस्ती की| मैंने इन्हें रोकने का बड़ा प्रयास किया पर इन्होने मुझे इतना मारा, इतना मारा की मैं लगभग बेहोश हो गई और मेरी उसी हालत का फायदा उठा कर इन्होने मुझसे जबरदस्ती सम्भोग किया जिसके कारन नेहा पैदा हुई! तुम्हारे भैया ना मुझसे और ना ही नेहा से प्यार करते हैं, उन्हें तो बस एक लड़का चाहिए था और जब नेहा पैदा हुई तो उन्होंने अपना सर पीट लिया था, सिर्फ वो ही नहीं घर के हर एक व्यक्ति ने मुझसे और नेहा से किनारा कर लिया था| अब तुम ही बताओ इसमें मेरा क्या कसूर है?"


भौजी की दर्द भरी कहानी सुन कर मैंने भौजी को अपनी बाँहों में भर लिया, अंदर ही अंदर हमारे इस समाज की मानसिकता पर क्रोध आने लगा| पर मैंने भौजी के समक्ष अपना क्रोध जाहिर नहीं किया, बस धीरे-धीरे उनके कंधे को रगड़ने लगा ताकि भौजी शांत हो जाएँ| भौजी ने अब रोना बंद कर दिया था, उन्होंने खुद को मेरी छाती से अलग किया और मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं; "पता है इतना सब सह कर भी मैं खुश क्यों हूँ? क्योंकि किस्मत ने मुझे तुमसे मिला दिया, तुम्हारे लिए मैं सब सह सकती हूँ!" भौजी की बात सुन मेरे पास कुछ कहने को नहीं रहा गया था| मैंने उन्हें कस कर अपने से चिपका लिया और उनके माथे को चूमने लगा| भौजी को सांत्वना देते-देते मैं उनकी तरफ खींचता जा रहा था, भौजी ने अपना मुख मेरे सीने में छुपा लिया और उनकी गरम-गरमा सांसें मेरे तन-बदन में आग लगा रही थीं| पर इस बार अब मेरा शरीर मेरे काबू में था और मैं किसी भी तरह की पहल नहीं करना चाहता था| मेरा कुछ भी करना ऐसा होता जैसे मैं उनकी मजबूरी का फायदा उठा रहा हूँ| मेरा मकसद अभी बस उन्हें सांत्वना देना था| उदर भौजी की पकड़ मेरे शरीर पर सख्त होने लगी थी, ऐसा लगा जैसे वो मुझसे पहल की उम्मीद रख रही थी| उन्होंने एक बार फिर खुद को मेरी गिरफ्त से छुड़ाया और टकटकी बांधें मुझे देखने लगीं| उनकी आँखों में मुझे अपने लिए प्यार साफ़ दिखाई दे रहा था| उनके बिना बोले ही उनकी आँखें सब बयान कर रही थी| मैं उनकी उपेक्षा समझ चूका था पर मेरा मन मुझे पहल नहीं करने दे रहा था, ये मेरे मन में उनके प्रति प्यार था|

जारी रहेगा भाग-4 में .....
Dil ko chhu lene wala uodate tha mst rocky bhai?
 

Ssking

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सातवाँ अध्याय: समर्पण

भाग-4
अब तक आपने पढ़ा:
भौजी को सांत्वना देते-देते मैं उनकी तरफ खींचता जा रहा था, भौजी ने अपना मुख मेरे सीने में छुपा लिया और उनकी गरम-गरमा सांसें मेरे तन-बदन में आग लगा रही थीं| पर इस बार अब मेरा शरीर मेरे काबू में था और मैं किसी भी तरह की पहल नहीं करना चाहता था| मेरा कुछ भी करना ऐसा होता जैसे मैं उनकी मजबूरी का फायदा उठा रहा हूँ| मेरा मकसद अभी बस उन्हें सांत्वना देना था| उदर भौजी की पकड़ मेरे शरीर पर सख्त होने लगी थी, ऐसा लगा जैसे वो मुझसे पहल की उम्मीद रख रही थी| उन्होंने एक बार फिर खुद को मेरी गिरफ्त से छुड़ाया और टकटकी बांधें मुझे देखने लगीं| उनकी आँखों में मुझे अपने लिए प्यार साफ़ दिखाई दे रहा था| उनके बिना बोले ही उनकी आँखें सब बयान कर रही थी| मैं उनकी उपेक्षा समझ चूका था पर मेरा मन मुझे पहल नहीं करने दे रहा था, ये मेरे मन में उनके प्रति प्यार था|

अब आगे:
मुझे पता था की यदि मैं थोड़ी देर और वहाँ रुका तो मुझसे वो पाप दुबारा अवश्य हो जायेगा| इसलिए मैं उठ खड़ा हुआ और दरवाजे की ओर बढ़ा, परन्तु भौजी ने मेरे हाथ थाम के मुझे रोक लिया| मैंने पलट के उनकी ओर देखा तो उनकी आँखें फिर नम हो चलीं थी| मैं भाभी के नजदीक आया और उनके सामने अपने घटनों के बल बैठ गया;

मैं: भौजी...!!!

मैंने भौजी को रोकना चाहा पर तब तक भौजी की आँखों से आँसूँ छलक आये थे|

भौजी: मानु.... तुम भी मुझे अकेला छोड़ के जा रहे हो?

भौजी रोते हुए बोलीं, ये सुनते ही मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मैंने उन्हें अपने सीने से लगा लिया|

मैं: नहीं भौजी... मैं आपके बिना नहीं जी सकता| बस मैं अपने आप को ये पाप करने से रोकना चाहता था|

मेरे मुँह से पाप शब्द सुन कर भौजी को बहुत बुरा लगा और उन्होंने खुद को मेरे सीने की गर्माहट से दूर किया और बोलीं;

भौजी: ये पाप नहीं! प्रेम है, तुम्हें क्यों लगता है की ये पाप है?

मैं: पता नहीं भौजी पर मेरा दिल कहता है की ये पाप है!

भौजी: ऐसा मत बोलो मानु! मेरे प्यार को तुम पाप मत कहो! अगर हम प्यार के बिना ये करते तो ये पाप होता, पर मैं तो तुम्हें अपना पति मान चुकी हूँ!

ये बोलते हुए भौजी फफक कर रो पड़ीं, मैंने उनके आँसू पोछे और उनसे बोला;

मैं: मैं भी आपसे बहुत प्यार करता हूँ और आपकी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और भौजी के मस्तक को चूमा, मैं फिर से खड़ा हुआ और जल्दी से दरवाजा बंद किया| मैं भौजी के पास लौटा और उन्हें उनकी चारपाई पर लिटा दिया| अब भौजी का रोना बंद हो चूका था और उनके चेहरे पर एक मुस्कान थी, मुस्कान मुझे पाने की! भौजी ने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी थीं और मुझे छोड़ ही नहीं रही थी, उन्हें लगा की कहीं मैं फिर से उन्हें छोड़ के चला ना जाऊँ| अब मुझे बस एक बात का डर था की कहीं हमारे इस प्रेम मिलाप के शुरू होते ही किसी ने फिर से रंग में भंग डाल दिया तो हम दोनों का मन ख़राब हो जायेगा इसलिए मैंने भौजी से पूछा;

मैं: भौजी आज तो कोई नहीं पानी डालेगा ना?

भौजी: नहीं मानु, तुम्हारे अजय भैया भी छत पे सोये हैं|

मैं: आपका मतलब छत पर आज पिताजी, अशोक भैया और अजय भैया सो रहे हैं| अरे वाह! आज तो किस्मत बहुत मेहरबान है!

भौजी: मेरी किस्मत को नजर मत लगाओ!!!

भौजी ने हँसते हुए कहा| ये बात तो तय थी की आज अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा नहीं होगा, मतलब आज सब कुछ अचानक मेरे पक्ष में था, ये सोच कर मैं मुस्कुराने लगा|


तभी मेरे मन में एक ख्याल आया, क्यों न मैं भौजी को वो सुख दूँ जिसके लिए वो इतना तड़प रही हैं| मैंने भौजी से अपने मन में आये उस ख्याल के बारे में कुछ नहीं कहा, बस उनके होंठों को धीरे से चुम लिया| मैंने दूर हटना चाहा पर भौजी की बाहें जो मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द थीं उन्होंने मुझे दूर नहीं जाने दिया| मैं भौजी के होंठों को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिया, सबसे पहला आक्रमण भौजी ने किया| उन्होंने मेरे ऊपर वाले होंठ को मुँह में भरकर चूसना शुरू कर दिया| फिर अगली बारी आई मेरे निचले होंठ की, इस तरह उन्होंने मेरे होंठों का रस पान करना शुरू कर दिया और मेरी गर्दन पर अपनी पकड़ और मजबूत कर दी| भौजी का मेरे होंठों का रसपान करीब पाँच मिनट चला| अब मुझे भी अपनी प्रतिक्रिया देनी थी, वरना कहीं भौजी को बुरा न मान जाएँ| मैंने भौजी के गुलाबी होंठों को अपने दांतों तले दबा लिया और उन्हें अपनी जीभ से चाटने लगा| मैंने अपनी जीभ भौजी के मुख में दाखिल करा दी और उनके मुख की गहराई को नापने लगा| रात रानी की खुशबु आंगन को महका रही थी और भौजी और मैं दोनों बहकने लगे थे, पर मेरे मन में आये उस ख्याल ने मुझे रोक लिया|

इतनी देर से भौजी के ऊपर झुके रहने से मेरी पीठ में दर्द होने लगा था| इसलिए मैं भौजी के ऊपर आ गया, उनके माथे को चूमा, फिर उनकी नाक से अपनी नाक लड़ाई| उनके दाएँ गाल को मैंने अपने मुख में भर के चूसा और धीरे से उनके गाल को काट अपने दाँतों के निशान छोड़े| फिर उनके बाएँ गाल को भी चूसा और उसपर भी काट कर अपने दांतों के निशान छोड़े| अब मैं धीरे-धीरे नीचे बढ़ने लगा और उनकी योनि के पास आके रुक गया| मैंने धीरे-धीरे उनकी साडी ऊपर की, मुझे इस बात की तसल्ली थी की आज हमें कोई परेशान नहीं करेगा| साडी ऊपर होते ही मुझे ये जान के बिलकुल भी आस्चर्य नहीं हुआ की अभी भी भौजी ने पैंटी नहीं पहनी थी| मैंने भौजी के योनि द्वार को चूमा, फिर उसे धीरे से अपने होंठों से रगड़ने लगा| भौजी किसी मछली की तरह मचलने लगीं, मैंने उन पतले-पतले द्वारा को अपने मुख में भर लिया और चूसने लगा| अभी तक मैंने अपनी जीभ उनकी योनि में प्रवेश नहीं कराई थी और भौजी की सिसकारियाँ शुरू हो चुकी थीं; "स्स्स...अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ... स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स माआआआआउउउउउउउ उम्म्म्म्म्म्म्म ....!!!!" जैसे ही मैंने अपनी जीभ की नोक से भौजी के भगनासे को छेड़ा, भौजी मस्ती में उछल पड़ीं और अपने सर को तकिये पर इधर-उधर पटकने लगी| भौजी की इस प्रतिक्रिया ने मुझे चौंका दिया और मैं रूक गया| भौजी ने अपनी उखड़ी हुई साँसें थामते हुए कहा; "ससस...मानु रुको मत!!!" भौजी की बात सुन कर मुझे तसल्ली हुई की उन्हें मेरे इस कार्य से आनंद आ रहा है, वरना मुझेतो लगा था की शायद उन्हें पीड़ा हो रही है| अब मैंने अपनी जीभ भौजी की गुलाबी योनि में प्रवेश करा दी| अंदर प्रवेश करते ही मुझे पता चला की भौजी की योनि धधक रही थी| एक बार को तो मन हुआ की जल्दी से अपना पजामा उतारूँ और अपने लिंग को भौजी की योनि में प्रवेश करा दूँ! पर फिर वही ख्याल मन में आया और मैंने अपने आप को जैसे-तैसे कर के रोक लिया| मैंने भौजी की योनि में अपनी जीभ लपलपानी शुरू कर दी, उनकी योनि से आ रही महक मुझे मदहोश कर रही थी और साथ ही साथ प्रोत्साहन भी दे रही थी| मैंने भौजी की योनि की खुदाई अपनी जीभ के द्वारा शुरू कर दी थी, भौजी की सिसकारियाँ तेज होने लगीं थी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स म्म्म्म्म्म्म्म्म्म ह्ह्ह्ह ... अन्न्न्न्न्न्न्ह्ह्ह्ह माआआंउ!!!!!"


अब भौजी के अंदर का लावा बहार आने को उबल चूका था और एक तेज चीख के साथ भौजी स्खलित हो गईं; "आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह .....मानु.......!!!!" भौजी का रस ऐसे बहार आया जैसे किसी ने नदी पर बना बाँध तोड़ दिया हो! आँगन में तो पहले से ही रात रानी के फूल की खुशबु फैली हुई थी उसपर भौजी की योनि की सुगंध ने आँगन को मादक खुशबु से भर दिया और उस मादक खुशभु ने मुझे इतना बहका दिया की मैंने भौजी के रस को चाटना शुरू कर दिया| उसका मीठा स्वाद आज भी मुझे याद है, जैसे किसी ने गुलाब के फूल की पँखुड़ियों को शहद में भिगो दिया हो! मैं सारा रस तो नहीं पी पाया और थोड़ा बहुत रस बहता हुआ भौजी की योनि के बाहर आ गया जिसे मैं चाट के साफ़ कर रहा था| भौजी की सांसें समान्य हो गई और उनके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे, उन्हें संतुष्ट देख के मेरे मन को शान्ति प्राप्त हुई| भौजी ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया, मैं भौजी के ऊपर था और मेरा लिंग ठीक भौजी की योनि के ऊपर| बस फर्क ये था की मेरा लिंग अब भी पजामे की कैद में था| अब भौजी की सांसें आगे होने वाले हमले को सोच कर फिर से तेज हो रहीं थीं| उन्होंने खुद पहल करते हुए अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया, उन्हें लगा की मैं उनके साथ सम्भोग करूँगा| पर वो मेरे मन में उठ रहे विचार के बारे में नहीं जानती थी| जैसे ही भौजी के हाथ ने मेरे लिंग को छुआ मैंने भौजी की आँखों में देखते हुए न में गर्दन हिला दी| भौजी मेरी इस प्रतिक्रिया से हैरान थी| जब कोई सामने से आपको सम्भोग के लिए प्रेरित करे तो ना करना बहुत मुश्किल होता है, पर अगर आपके मन में उस व्यक्ति के प्रति आदर भाव व प्रेम है और उसकी ख़ुशी के लिए आप कुछ भी करने को तैयार हो तो आप अपने आप पर काबू प् सकते हो अन्यथा आप सिर्फ और सिर्फ एक वासना के प्यासे जानवर हो, ऐसा जानवर जो अपनी वासना की तृप्ति के लिए किसी भी हद्द तक जा सकता है|

मैंने मुस्कुराते हुए भौजी को देखा और बोला;

मैं: नहीं भौजी! आज नहीं!

भौजी: (हैरानी से मुझे देखते हुए) क्यों?

मैं: क्योंकि मैंने कुछ सोचा है!

भौजी: (थोड़ा परेशान होते हुए) क्या सोचा है?

मैं: आपके जीवन में दुखों का आरम्भ आपकी सुहागरात से ही शुरू हुआ था ना? तो मैं सोच रहा था की क्यों न आप और मैं वही सुहागरात फिरसे मनाएं?

ये सुन कर भौजी भौक हो गईं और उनके चेहरे पर एक प्यार भरी मुस्कान आ गई;

भौजी: मानु तुम मेरे लिए इतना सोचते हो?

मैं: हाँ क्योंकि मैं आपसे प्यार करता हूँ और हमारी सुहागरात कल ही होगी| तब तक आपको और मुझे, सब्र करना होगा|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और उठ कर खड़ा हो गया|

भौजी: (संकुचाते हुए) पर मानु .... तुम्हें वहाँ दर्द हो रहा होगा!

भौजी ने मेरे लिंग की ओर इशारा करते हुए कहा|

मैं: आप उसकी चिंता मत करो, वो थोड़ी देर में शांत हो जायेगा| आप दिन भर के काम के बाद और अभी आई 'बाढ़' के बाढ़ तो थक गए होगे, तो आप आराम करो|

मेरे मुंह से बाद शब्द सुन कर भौजी शर्मा गई| इतना कह के मैं दरवाजे की ओर चल दिया, पर भौजी ने मुझे रोकते हुए कहा;

भौजी: मानु...तुम सोने जा रहे हो?

मैं: हाँ

भौजी: मेरी एक बात मानोगे?

मैं: हुक्म करो!

भौजी: तुम मेरे पास कुछ और देर नहीं बैठ सकते? मुझे तुम से बातें करना अच्छा लगता है, दिन में तो हम खुल कर बातें कर नहीं सकते|

भौजी ने बड़े सोच-समझ कर चाल चली जिसे में पकड़ नहीं पाया था|

मैं: ठीक है|

इतना कह कर मैं नेहा की चारपाई पर बैठ गया|

भौजी: वहाँ क्यों बैठे हो? मेरे पास यहाँ बैठो|

ये कहते हुए भौजी सरक गईं ओर मेरे बैठने के लिए जगह बनाई|

दरअसल मैं भौजी से दूर इसलिए बैठा था की कहीं मैं अपना आपा फिर से ना खो दूँ| पर भौजी के इस प्यार भरे आग्रह ने मुझे उनके पास जाने के लिए विवश कर दिया| मैं उठा और भौजी की चारपाई पर कुछ इस प्रकार बैठा की मेरी पीठ दिवार से लगी थी और टांगें सीधी थी| भौजी ठीक मेरे बगल में लेटी हुई थीं, उन्होंने मेरी कमर में झप्पी डाल ली और बोलने लगीं:

भौजी: अब तुम्हें पता चला ना की क्यों मैंने तुम्हें अपने पति का दर्जा दिया? तुमने अभी जो मेरे लिए किया, तुम्हारे भैया ने कभी मेरे साथ नहीं किया| तुम मेरी ख़ुशी के लिए कितना सोचते हो और मुझे यकीन है की मेरी ख़ुशी के लिए तुम कुछ भी करोगे| पर 'उसे' तो केवल अपनी वासना मिटानी होती थी| तुम नेहा से भी कितना प्रेम करते हो, जब मैं शहर आई थी तब तुमने नेहा का कितना ख्याल रखा और उस दिन जब नेहा ने तुम्हारी चाय गिरा दी तब भी तुम उसी का पक्ष ले रहे थे| तुम्हारे मन में स्त्रियों के लिए जो स्नेह है वो आजकल कहाँ देखने को मिलता है! तुम्हारी इन्ही अच्छाइयों ने मुझे सम्मोहित कर दिया! जब तुम छोटे थे तब हमेशा मेरे साथ खेलते थे, जब मैं खाना बना रही होती थी तब तुम मेरे साथ हंसी-मजाक करते थे, मेरी गोद में आके बैठ जाते थे और उस दिन जब तुमने मेरा दूध पीया! याद है उसदिन तुमने मुझसे पुछा था की भौजी तुम्हें दूध क्यों नहीं आता? तुम्हारा सवाल सुन आकर मैं उदास हो गई थी, इसलिए नहीं की तुमने सवाल किया बल्कि तुम्हारे उस सवाल ने मुझे मेरे साथ हुआ धोखा याद दिला दिया था! मैं कभी माँ नहीं बनना चाहती थी क्योंकि माँ बनने का मतलब होता उस घिनोने इंसान को खुद को छूने देना! पर उसने मेरी .......

आगे भौजी के कुछ भी बोलने से पहले मैंने उन्हें रोक दिया ओर उनके सर को चूमा| मैं नहीं चाहता था की वो फिर से वो बुरा समय याद करें!

मैं: बस! अब वो बुरा समय याद करने की कोई जर्रूरत नहीं|

इतना कह कर मैं नीचे सरक आया ओर उनके बगल में लेट गया| तभी मुझे मेरे सर के नीचे कुछ चुभा| मैंने तकिया उठा कर देखा तो वो एक खंजर था! उसे देख मैं एकदम से हैरान हो गया;

मैं: ये क्यों सिरहाने रखा है?

भौजी: अपनी सुरक्षा के लिए, ताकि अगर वो फिर से मुझसे जबरदस्ती करता तो या तो मैं उसे मार देती या खुद अपनी जान दे देती!

भौजी की बात सुन कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं! उनकी आँखों में मुझे गुस्सा साफ़ नजर आ रहा था|

मैं: आप पागल तो नहीं हो गए?

भौजी: मानु तुम मेरी जिंदगी हो, मेरा दिल ओर ये जिस्म सिर्फ तुम्हारा है ओर अगर इसे कोई छूने की कोशिश करेगा तो या तो मैं उसे जला कर राख कर दूँगी या खुद जान दे दूँगी!

मैं: पागल मत बनो! आपको कुछ हो गया तो मैं क्या करूँगा?

मैंने भौजी को प्यार से डाँट दिया ताकि ये मरने-मारने की बातें उनके जहाँ से निकल जाएँ!

भौजी: मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती|

मैं: मैं भी आपके बिना नहीं रह सकता!

इतना कह मैंने उन्हें अपने सीने से लगा लिया|

भौजी: तुम ये कभी मत सोचना की तुमने कोई पाप किया है, क्योंकि आज जो भी कुछ हमारे बीच हुआ में वो पाप नहीं था बल्कि तुमने एक अतृप्त आत्मा को सुख के कुछ पल दान किये हैं|

भौजी के दिल पर मेरी कही वो बात अब भी चुभ रही थी, इसीलिए उन्होंने फिर से अपनी बात दोहराई| मेरे सीने से लगे हुए उनका हाथ मेरे लिंग पर आ गया, जो अब भी सख्त था| मैं मन के आगे विवश था और मेरा सब्र टूटने वाला था| खुद को रोकने की एक आखरी कोशिश करते हुए मैंने अपना हाथ भौजी के हाथ पर रख दिया और उन्हें रोकने लगा| मैं अब भी कल रात के बारे में सोच रहा था और नहीं चाहता था की मैं भौजी के लिए जो सरप्राइज प्लान किया है उसे मैं ही ख़राब करूँ! पर भौजी का दिल मान ही नहीं रहा था!

“मानु तुम मेरे लिए इतना कुछ सोच रहे हो, मेरा भी तो फर्ज बनता है की मैं भी तुम्हारा ख्याल रखूँ| मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ, मुझे मत रोको!” भौजी की बात सुन मेरे सब्र ने जवाब दे दिया और मैंने अपना हाथ भौजी के हाथ पर से हटा लिया| अब चूँकि मैं कोई विरोध नहीं कर रहा था, इसलिए भौजी उठ कर बैठीं और मेरे पजामे का नाड़ा खोला| मेरे पाजामे में बना टेंट उन्हें साफ़ दिख रहा था, उन्होंने मेरे कच्छे के भीतर से मेरे लिंग को बाहर निकाला| अब समां कुछ इस प्रकार था की रात रानी की खुशबु में मेरे लिंग की भीनी-भीनी सुगंध घुल-मिल गई|


भौजी ने पहले तो मेरे लिंग को अपने होंठों से छुआ, उनकी इस प्रतिक्रिया से मेरे शरीर में झुर-झूरी छूट गई और मैं काँप गया| भौजी ने आजतक कभी किसी लिंग को पाने मुँह में नहीं लिया था, इसलिए उन्होंने आव देखा न ताव और झट से मेरे लिंग को अपने मुँह में भर लिया| मेरा लिंग उनके मुँह के भीतर था पर अभी तक उन्होंने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी| ऐसा लगा जैसे पहलीबार के लिए भौजी हिम्मत इक्कट्ठा कर रहीं थीं! भौजी ने मेरे लिंग को अंदर ले के उसे अपने थूक से नहला दिया और जैसे ही मेरे लिंग का संपर्क उनकी जीभ से हुआ तभी मुझे बिजली का झटका लगा! पर ये तो केवल शुरुआत थी,भौजी ने अपना मुँह आगे-पीछे करना शुरू किया, जिससे मेरे लिंग के ऊपर की चमड़ी खुल गई और छिद्र सीधा भाभी के गले के अंत में लटके हुए उस मांस के टुकड़े से टकराया| भौजी को एकदम से उबकाई आ गई और ये देख मैं सहम के रह गया| उनकी आँखों में पानी था जैसा की उबकाई आने पर आ जाता है, मैंने गर्दन न में हिलाई ताकि वो मेरे लिंग को अपने मुँह से निकाल दें, पर भौजी ने मेरे लिंग को नहीं छोड़ा और उसे धीरे-धीरे चूसने लगीं| मैंने कुछ नहीं कहा क्योंकि मुझे लगा की अब सब कुछ ठीक ही होगा! इधर बीच-बीच में भौजी अपनी जीभ की नोक को मेरे लिंग के छिद्र पर रगड़ देती, जिससे मैं तड़प उठता और मेरे मुख से मादक सिसकारी फुट पड़ती; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स" आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ....!!!!" मुझे इतना आनंद कभी नहीं आय जितना उस पल आ रहा था, भौजी मेरे लिंग को किसी टॉफी की भाँती चूस रही थी! इस आनंद को अब मैं और बढ़ाना चाहता था; "भौजी...सससस... धीरे-धीरे काटो!" मैंने सीसियाते हुए कहा| भौजी ने अपने दांत मेरे लिंग पर गड़ाना शुरू कर दिया और मैं आनंद के सागर में गोते लगाने लगा| भाभी का मुख भीतर से इतना गीला प्रतीत हो रहा था की उस सुख की अनुभूति से मेरी आँखें बंद हो चुकी थी! भौजी ने अब मेरे लिंग को आगे पीछे कर के चूसना शुरू कर दिया| जब वो लिंग को अपने मुँह में अंदर तक लेतीं तो लिंग का सुपाड़ा खुल जाता और जब भौजी लिंग बाहर निकालतीं तो लिंग की चमड़ी बिल्कुक बंद हो जाती| भौजी बिना किसी चिंता और डर के कर रही थी, उनकी चूसने की गति इतनी धीमे थी की एक पल के लिए लगा जैसे ये कोई सुखदाई सपना हो और मैं इस सपने को पूरा जीना चाहता था| 5 मिनट और अब मैं चरम पे पहुँच चूका था| मुझसे अब बर्दाश्त करना मुश्किल था, मैंने भौजी से दबी हुई आवाज में अनुरोध किया; "भौजी ... प्लीज छोड़ दो ... मेरा निकलने वाला है... स्स्स्सह्ह्हह्ह्म...महह...स्सस......सारे कपडे गंदे हो जायेंगे!!!" पर भौजी ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपने आक्रमण को जारी रखा| मुझसे कंट्रोल नहीं हुआ और अंदर का ज्वार कुछ इस तरह बाहर आया जैसे किसी ने कोका कोला की बोतल का मुँह बंद करके जोर से हिलाया हो और जब दबाव बढ़ गया तो बोतल का मुख खोल दिया! मेरा वीर्य रस भौजी के मुख में भर गया, मुझे तो लगा की भौजी सब का सब मेरे ही पजामे के ऊपर उगल देंगी| पर उन्होंने ऐसा नहीं किया और सारा का सारा रस पी लिया| मेरी सांसें जब कुछ सामान्य हुईं और मैंने अपने लिंग की ओर देखा तो भौजी के मुख में रहने से उनके रस में लिप्त वो बिलकुल चमक रहा था!!! मैंने भौजी की ओर देखा तो उनके चेहरे पर अनमोल सुख के भाव थे, मैंने उनके माथे पे चुम्बन किया और खड़ा होके अपना पजामा बाँधा| मैं: भौजी आपने तो जान ही निकाल दी थी!

भौजी ये सुन कर हँस पड़ीं|

मैं: मुझे लगा था की आज तो मेरे नए कुर्ते-पजामे का बुरा हाल होना है पर आपने तो कमाल ही कर दिया|

भौजी: मुझसे खुद पर काबू नहीं हुआ ओर मैंने सब पी लिया! मुझे खुद यक़ीन नहीं होता की मैंने ऐसा किया! सच्ची तुमने आज....

इतना कहते हुए भौजी शर्म के मारे रुक गईं!

मैं: मैंने आज क्या?

मैंने मुस्कुराते हुए पुछा|

भौजी: तुमने आज मेरी सारी जिझक निकाल दी!

भौजी शर्माते हुए बोलीं|

भौजी: पर ये तो बताओ की तुम शुरू-शुरू में मुझे रोक क्यों रहे थे?

अब मैं अपना पजामे का नाड़ा बाँध चूका था|

मैं: क्योंकि मैं ये सब कल के लिए बचाना चाहता था|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो भौजी ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया, उनके और मेरे मुख से हमारे काम-रस की सुगंध आ रही थी| हम दोनों ही मन्त्र मुग्ध थे और फिर से भौजी और मैंने एक गहरा चुम्बन किया| भाभी ने मुझे इशारे से कहा की लोटे में पानी है, ताकि मैं कुल्ला कर के सोऊँ| मैंने भौजी का हाथ पकड़ के उन्हें उठाया, हम दोनों स्नान घर तक गए और साथ-साथ कुल्ला किया| घडी में ढाई बजे थे, अब समय था सोने का| भौजी का तो पता नहीं पर मैं थका हुआ महसूस कर रहा था और नींद भी आ रही थी| मैं बिस्तर पर पड़ते ही घोड़े बेच के सो गया| अगली सुबह माँ ने मुझे उठाया, समय देखा तो सुबह के छह बजे थे| नया दिन, नया जोश और रात के प्लान के बारे में सोच के उत्साह से रोंगटे खड़े हो गए थे| मन में उल्लास था, भौजी को देखा तो वो नेहा को तैयार कर रही थी, मैंने उनकी ओर देखा और मुस्कुरा के नहाने चला गया| पर मैं आनेवाले खतरे से अनजान था...


Bahut hi erotic upfate tha yarrrrr ek dum super duper hotttttt??❣️
 

amita

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इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की
भाग -7 (3)


अब तक आपने पढ़ा:


इधर रात के 3 बजे मेरी नींद एकदम से खुली क्योंकि मेरा जी मचल रहा था, ऐसा लग रहा था की अभी उलटी होगी! मैं तुरंत बाथरूम में घुसा पर शुक्र है की कोई उलटी नहीं हुई, मुँह धो कर मैं बाहर आया और पलंग पर पीठ टिका कर बैठ गया| मेरी नींद उचाट हो गई थी और अब दिमाग में बस ग्लानि के विचार भरने लगे थे!



अब आगे:


ग्लानि अपनी माँ से झूठ बोलने की, उस माँ से जो मुझे इतना प्यार करती है और ग्लानि उस लड़की (करुणा) को शराब पी कर तंग करने की! करुणा का नाम याद आते ही मुझे नजाने क्यों ऐसा लगने लगा की मैंने शराब पी कर उसके साथ कोई बदसलूकी की है, हालाँकि मेरा दिमाग बार-बार कह रहा था की मैंने करुणा के साथ कोई बदसलूकी नहीं की है पर मन में बसी ग्लानि इस बात को मान ही नहीं रही थी! दिमाग को ग्लानि से बचने का रास्ता चाहिए था तो उसने मेरे झूठ बोलने का ठीकरा भौजी के सर मढ़ दिया; 'मैं पहले कभी इतना धड़ल्ले से झूठ नहीं बोलता था और ये पीने की लत मुझे भौजी के कारन लगी! न वो मुझे धोखा देतीं, न मैं पीना शरू करता और ना ही मुझे माँ से झूठ बोलना पड़ता!’ जबकि अस्लियत में देखा जाए तो मेरा ये झूठ बोलना मैंने भौजी के मोह जाल में पड़ कर खुद शुरू किया था|

मैं यूँ ही आँखें खोले हुए छत को घूर रहा था और मन ही मन भौजी को दोष दिए जा रहा था, तभी मुझे याद आया की मुझे तो दिषु को कॉल करना था! मैंने फ़ट से अपना फ़ोन उठाया और देखा की उसकी notification लाइट जल रही है, फ़ोन on किया तो पता चला की करुणा और दिषु की 4-4 missed call हैं! अब रात के इस वक़्त कॉल तो कर नहीं सकता था इसलिए मैंने दोनों को मैसेज कर के बता दिया की मैं घर पहुँच गया था और बहुत नींद आ रही थी इसलिए जल्दी सो गया था| मैं जानता था की ये मैसेज करना काफी नहीं होगा, कल सुबह होते ही दिषु मुझे बहुत सुनाएगा और करुणा का क्या? करुणा का नाम याद आते ही फिर ऐसा लगने लगा की मैंने कोई पाप किया है, शायद नशे की हालत में मैंने उसके साथ......? 'नहीं-नहीं! ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे अच्छे से याद है, मैंने उसके साथ कोई बदसलूकी नहीं की!' मेरे दिमाग ने बड़े आत्मविश्वास से कहा| पर ससुरा दिल अड़ गया की नहीं मैंने कुछ तो गलत किया है, दरअसल ये दारु पी कर जो मैंने माँ से झूठ बोला था ये उसकी ग्लानि थी और यही ग्लानि नजाने क्या-क्या महसूस करवा रही थी! मैंने सोच लिया था की सुबह होते ही मैं करुणा को फ़ोन कर के माफ़ी माँग लूँगा|



बस सुबह होने तक मैं एक पल भी नहीं सो पाया, एक तो ग्लानि थी और दूसरा बियर ज्यादा पीने से जी मचला रहा था| सुबह 5 बजे मैं बिस्तर से उठा, नहाया-धोया और सीधा डाइनिंग टेबल पर पहुँचा, मुझे इतनी जल्दी उठा देख पिताजी ताना मारते हुए बोले;

पिताजी: गुस्सा शांत हो गया या अभी बाकी है?

मैं पलट कर उन्हें कोई जवाब देता तो झगड़ा शुरू हो जाता, इसलिए मैं खामोश रहा| अब माँ को ही मेरा बीच-बचाव करना था तो वो बोलीं;

माँ: अजी छोड़ दीजिये.....

माँ आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही पिताजी ने उन्हें दुत्कार दिया;

पिताजी: तुम्ही ने सर पर चढ़ाया है इसे!

अब माँ को बिना किसी गलती के कैसे झाड़ सुनने देता;

मैं: सर पर चढ़ाया नहीं, बल्कि सही-गलत में फर्क करना सिखाया है|

ये सुन कर पिताजी को मिर्ची लगी और वो कुछ बोलने ही वाले थे की मैंने एकदम से कल का सारा गुस्सा उन पर निकल दिया;

मैं: क्या गलती थी मेरी जो आपने मुझे लेबर के सामने झाड़ दिया? चेक पर साइन करना भूल गए आप, इस छोटी सी बात के लिए माल रोका आपके सेठ जी ने और गुस्सा आप मुझ पर उतार रहे थे? आपके सेठ जी एक फ़ोन कर के नहीं बता सकते थे की चेक वापस आ गया है? 150/- रुपये का टुच्चा सा नुक्सान मुझे गिना ने में उन्हें शर्म नहीं आई?! पैसे दे कर ही माल लेना था तो ले लिया मैंने दूसरे से और बिल देखा आपने? आपके सेठ जी से कम दाम लिए उसने और 30 दिन का credit period भी दिया है, मतलब अगर हमें पेमेंट मिलने में लेट हो तो 30 दिन तक वो आपके सर चढ़ कर पैसे के लिए नहीं नाचेगा! ये बिज़नेस हम पैसा कमाने के लिए करते हैं उन सेठ जी के साथ नाते-रिश्तेदारी निभाने के लिए नहीं और काहे की रिश्तेदारी जब पैसे ही देने हैं तो काहे की रिश्तेदारी? अब बोलिये क्या गलत किया मैंने?

मेरी सारी बात सुन कर पिताजी को मेरे गुस्से का कारन समझ आ गया पर फिर भी वो खामोश रहे, मैं वहाँ ठहरता तो कुछ गलत होता इसलिए मैं वापस अपने कमरे में लौट आया| घंटे भर बाद पिताजी ने मुझे आवाज दी और बाहर बुलाया;

पिताजी: मानु......बाहर आ!

उनकी आवाज में शान्ति थी, मैं सर झुकाये हुए बाहर आया तो पिताजी ने मुझे बैठने को कहा|

पिताजी: अच्छा किया जो तूने सेठ जी से काम बंद कर दिया, पर आगे से कोई भी फैसला लेने से पहले सोचा कर और कमसकम मुझे बता दिया कर!

पिताजी की आवाज में हलीमी थी इसलिए मैंने उनके आगे हाथ जोड़े और बोला;

मैं: पिताजी मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझे आपसे यूँ गुस्से से बात नहीं करनी चाहिए थी|

पिताजी: बेटा अपने गुस्से पर काबू रखा कर|

इतना कह पिताजी उठे और माँ को नाश्ता बनाने को बोला| पिताजी नहाने गए तो मैंने सोचा माँ से भी माफ़ी माँग लूँ, पर उन्हें बताऊँ कैसे की मैं पी कर आया था?! लेकिन माँ अपने बच्चे की रग-रग से वाक़िफ़ होती है, इसलिए माँ ने ही पलट कर मुझे प्यार से डाँटते हुए कहा;

माँ: सच-सच बता, कल रात पी कर आया था न?

माँ की बात सुन मेरे तोते उड़ गए, अब उन्हें सच बोलता तो उनका दिल टूटता और वो मुझे पीने से रोकने के लिए अपनी कसम से बाँध देतीं इसलिए मैंने सुबह-सुबह फिर झूठ बोला;

मैं: नहीं तो!

इतना कह मैंने उनसे नजरें चुरा ली और टेबल पर बैठ अखबार पढ़ने लगा| माँ का दिल बड़ा पाक़ होता है इसलिए उन्होंने मेरे झूठ पर भरोसा कर लिया|

नाश्ता कर के मैं पिताजी के साथ निकला और काम संभाला, थोड़ी देर बाद दिषु का फ़ोन आया और उसने मुझे प्यार से डाँटा और समझाया की मुझे अपने पीने पर काबू रखना चाहिए, ख़ास कर तब जब मेरे साथ लड़की हो| मैंने उसे 'sorry' कहा और काम में लग गया,आज शनिवार का दिन था सो मैं आधे दिन में ही गोल हो लिया और सीधा करुणा के पास पहुँचा| मुझे उससे आज माफ़ी माँगनी थी और नजाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा था की वो मुझसे नहीं मिलेगी इसलिए मैं धड़धड़ाता हुआ आज उसके हॉस्पिटल में घुस गया| मैंने हॉस्पिटल में करुणा के बारे में एक नर्स से पुछा तो उसने मेरा नाम पुछा, मेरा नाम सुन वो मुस्कुरा कर मुझे ऐसे देखने लगी मानो मैं कोई सुपरस्टार हूँ! वो मुझे अपने साथ nursing station लाई और सभी से मेरा परिचय करवाते हुए बोली; 'ये है मिट्टू!' मिट्टू सुन कर सब के सब ख़ुशी से चहकने लगे और मेरी आव-भगत में लग गए| मुझे नहीं पता था की करुणा ने मेरी तारीफों के पुल यहाँ पहले से ही बाँध रखे हैं! वहाँ सभी कोई मेरे बारे में पूछने लगे और मेरे बारे में जानकार सभी बहुत खुश हुए| सब जानते थे की करुणा को जयपुर में permanent job मिली है और मैं ही उसकी सारी मदद कर रहा हूँ| इतने में करुणा आ गई और मुझे वहाँ बैठे देख उसके चेहरे पर ख़ुशी खिल गई;

करुणा: मिट्टू!!! आप मेरे को surprise देने आये क्या?

उसकी बात सुन साब लोग ठहाका मार के हँसने लगे, मुझे ये देख कर हैरानी हुई की करुणा के मन में कल जो दारु पीने का काण्ड हुआ उसके लिए कोई गिला-शिकवा नहीं है| हँसी-ठहाका सुन एक-दो डॉक्टर आ गए और करुणा ने उनसे मेरा परिचय करवाया, मुझसे मिलकर उनके चेहरे पर भी मुझे सबकी तरह ख़ुशी दिखी|

करुणा: मिट्टू आप यहीं बैठो मैं चेंज कर के आ रे!

करुणा चेंज कर के आई और तब तक सभी मुझसे बात करते रहे|



हम दोनों बाहर निकले तो मैंने करुणा से माफ़ी माँगी;

मैं: Dear I’m sorry for yesterday…..

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही उसने चौंकते हुए मेरी बात काट दी;

करुणा: ऐसा क्यों कह रे? आप ने कुछ नहीं किया, आप drunk था पर आपने कुछ misbehave नहीं किया! आप तो कल और भी cute लग रा ता!

करुणा ने हँसते हुए कहा| उसकी बात सुन मैं हैरान उसे देख रहा था और इधर मेरा दिमाग मेरे दिल को लताड़ रहा था; 'बोला था न कुछ नहीं किया मैंने!' पर आत्मा को बुरा लग रहा था की मैंने कल उसके साथ बैठ कर इतनी दारु पी;

मैं: Dear आज के बाद हम कभी इस तरह दारु नहीं पीयेंगे, कल तो मैं होश में था पर फिर कभी नहीं हुआ तो?!

मैंने सर झुकाते हुए कहा| करुणा ने एकदम से मेरे दोनों कँधे पकडे और मेरी आँखों में देखते हुए बोली;

करुणा: मुझे आप पर पूरा trust है की आप कभी कुछ गलत नहीं करते, इतना months में आप ने मुझे touch तक नहीं किया तो कैसे कुछ गलत करते?!

करुणा की बातों में सच्चाई थी, मैंने आज तक उसे नहीं छुआ था, मैं नहीं जानता था की वो ये सब notice कर रही है|

करुणा: फिर आप मेरे साथ नहीं पी रे तो मैं किसके साथ पीते?

करुणा ने हँसते हुए कहा, पर मैंने उसकी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया| मेरे खामोश रहने से करुणा ने बात को बदलना चाहा;

करुणा: मिट्टू आज हम खान मार्किट चर्च जाते!

धर्म-कर्म की बात पर मैं हमेशा खुश हो जाता था इसलिए मेरे चेहरे पर एकदम से मुस्कान आ गई| हमने ऑटो किया और खान मार्किट चर्च पहुँचे, चर्च के बाहर लोगों ने फूल माला, मोमबत्ती और कुछ खाने-पीने के समान की फेरी लगा रखी थी| करुणा ने बाहर से फूल माला, गुलाब और मोमबत्तियाँ ली| आज मैं पहलीबार देख रहा था की ईसाई लोग भी पूजा में फूलमाला उपयोग करते हैं, इससे पहले मुझे लगता था की वो केवल मोमबत्ती जला कर ही दुआ करते हैं| हम चर्च में दाखिल हुए तो बाईं तरह एक जूते-चप्पल का स्टैंड था जहाँ जूते रखने थे, पिछलीबार जब हम Sacred Heart Cathederal Church गए थे तो वहाँ हमने जूते नहीं उतार थे| मैंने किसी बच्चे की तरह करुणा से ये सवाल पुछा तो उसने ठीक वैसे ही जवाब दिया जैसे माँ-बाप अपने छोटे बच्चे के नादान सवाल का जवाब देते हैं;

करुणा: मिट्टू इदर जूते पहन कर अंदर नहीं जाते!

क्यों नहीं जाते इसका जवाब तो मिला नहीं, मैंने भी सोचा की ज्यादा पूछूँगा तो कहीं ये डाँट न दे इसलिए मैं जूते-चप्पल उतार के करुणा के साथ अंदर चल दिया| दाईं तरफ Mother Mary की एक मूरत थी और ठीक सामने की तरफ हाथ-मुँह धोने की जगह| हम दोनों ने हाथ-मुँह धोये और चर्च के अंदर घुस गए|

ये चर्च Sacred Heart Cathederal Church के मुक़ाबले बहुत छोटा था पर इस चर्च में बहुत रौनक थी, यहाँ बहुत से लोग मौजूद थे, सामने की ओर Mother Mary की मूरत थी| मूर्ती के आगे एक रेलिंग लगी थी और उस रेलिंग के साथ ही एक लम्बा सा गद्दा बिछा हुआ था| लोग उस गद्दे पर घुटने मोड़ कर अपना सर उस रेलिंग पर रखते थे, रेलिंग के दूसरी तरफ दो लोग थे, एक आदमी भक्तों से फूल माला लेता था और Mother Mary या Jesus Christ की मूर्ति के पास रख देता था तथा दूसरा व्यक्ति रेलिंग पर सर रखने वालों के झुके हुए सर के ऊपर एक मुकुट जैसा कुछ 5-10 सेकंड तक रखता था|



जब हम दोनों की बारी आई तो हमने भी वैसा ही किया, मेरे सर पर जब वो मुकुट रखा गया तो मुझे ऐसा लगा मानो मेरे जिस्म में पवित्रता घुल गई हो! वो पवित्र एहसास ऐसा था की मेरा मन एकदम से शांत हो गया, मैं सभी चिंताएँ भूल गया! जीवन में पहली बार मैं अपनी साँसों को खुद सुन पा रहा था, उन कुछ पलों के लिए मेरे कानों ने कुछ भी सुनना बंद कर दिया था, बस एक अजीब सा सुकून था जिसे मैं आज दिल से महसूस कर पा रहा था|

दिल को जब सुकून मिला तो जुबान पर बस करुणा के लिए दुआ निकली; 'Mother Mary आज मैं पहलीबार आपके मंदिर में आया हूँ, अगर मुझसे कोई भूल हो गई हो तो मुझे माफ़ कर देना| मेरी दोस्त करुणा का ख्याल रखना, उसे ये नई नौकरी दिलाना और इसका वहाँ खूब ख़याल रखना| इसे बहुत सारी खुशियाँ देना, ये थोड़ी सी बुद्धू है तो प्लीज इसे सत बुद्धि देना|' दिल ने जल्दी से ये दुआ की क्योंकि मेरे अलावा भी वहाँ बहुत भक्त थे, अब मैं ही जगह घेर कर बैठ जाता तो लोग हँगामा खड़ा कर देते| मैं उठा तो देखा करुणा गायब है, मैं गर्दन घुमा कर उसे ढूँढने लगा, मुझे करुणा चर्च के बाईं तरफ बानी मूर्तियों के आगे सर झुका कर दुआ कर रही थी| मैं भी उसी की तरह सभी मूर्तियों के आगे सर झुका कर करुणा के लिए दुआ करने लगा|



दुआ कर के हम वहाँ बिछी बेंचों पर बैठ गए, करुणा ने अपनी आंखें बंद कर ली और वो मन ही मन अपनी प्रर्थना में लग गई| मैंने भी सोचा की जो प्रार्थना रेलिंग पर सर रख कर कर रहा था उसे पूरा करूँ| मैंने करुणा की नौकरी के लिए दुआ करनी शुरू की, पर उसी समय मुझे काल शाम का दृश्य याद आया| वो दृश्य याद आते ही मन ने मुझे लताड़ा, भगवान के घर में बैठ कर जब मन लताड़ता है तो बड़ा दर्द होता है| 'अपनी माँ से झूठ बोलने वाला आज सबकी माँ Mother Mary से करुणा के लिए दुआ कर रहा है?! तुझ जैसे झूठे के कारन करुणा का बनता हुआ काम बिगड़ जाएगा!' अंतरात्मा की ये लताड़ सुन मेरी आँखों से आँसूँ बह निकले| 'Mother Mary मुझे माफ़ कर दो! कल जो हुआ उसके लिए में बहुत शर्मिंदा हूँ और वादा करता हूँ की ऐसा कभी कुछ करुणा के साथ नहीं करूँगा! मैंने अपनी माँ से झूठ बोला, उसके लिए मैं आपका कसूरवार हूँ और उसके लिए आप जो भी सजा देना चाहो वो मुझे दो, पर करुणा पर इसका कोई प्रभाव मत पड़ने देना| मैं वादा करता हूँ की जबतक करुणा की नौकरी लग कर वो सेटल नहीं हो जाती तब तक मैं शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा, पर प्लीज मेरे कारन उस बेचारी के जीवन में कोई तकलीफ मत देना! उसकी दुःख-तकलीफें मुझे दे देना पर उसे खुश रखना, उसने बहुत दुःख झेला है!' प्रार्थना कर के जब मैंने आँखें खोलीं तो करुणा को मुझे घूरता हुआ पाया परन्तु उसने उस समय मुझसे कोई सवाल नहीं किया| कुछ देर बैठ कर हम बाहर निकले, बाहर निकलते समय मैंने दरवाजे पर खड़े हुए Mother Mary को सर झुका कर प्रणाम किया और मन ही मन उनसे बोला; 'Mother Mary अब मैं चलता हूँ, आप आशीर्वाद देना की अगलीबार जब मैं आपसे मिलने आऊँ तो इस ख़ुशी के साथ आऊँ की करुणा को जॉब मिल गई है|' मैंने मुस्कुरा कर Mother Mary को धन्यवाद दिया और चर्च से बाहर आया| हम दोनों अपने जूते-चप्पल पहन रहे थे तब करुणा ने मुझे चर्च के बारे में बताना शुरू किया;

करुणा: Dear आपको पता, ये हैं न Mother Mary का only church है! ज्यादा कर के चर्च Jesus का होते पर अंदर आपने एक अम्मा और अप्पा का फोटो देखा न, वो दोनों मिल कर ये चर्च शुरू किया| Mother Mary का सबसे बड़ा चर्च Velakanni तमिल नाडु में है, मुझको जब अच्छा सैलरी मिलते तब मैं आपको वहाँ ले जाते|

करुणा की बात सुन कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई|



हम घर आने के लिए चल पड़े और चलते-चलते हम खान मार्किट पहुँचे;

करुणा: Dear आप चर्च में रो क्यों रा था?

करुणा ने बड़े प्यार से अपना सवाल पुछा|

मैं: मुझे ऐसा लग रहा था की मेरे किये हुए पापों की सजा आपको मिल रही है, तभी तो आपका अपॉइंटमेंट लेटर अभी तक नहीं आया, इसलिए मैंने Mother Mary को प्रॉमिस किया की जब तक आपको जॉब नहीं मिलती तब तक मैं drink नहीं करूँगा|

करुणा मेरी बात सुन कर हैरान हुई और मुझे समझाना चाहा;

करुणा: Dearrrr....ऐसा नहीं होते.....

मैं: Dear भक्ति में logic नहीं विश्वास चलता है!

मैंने करुणा की बात काटते हुए कहा, वो आगे कुछ बोलती उसके पहले ही मैंने बात घुमा दी और उसका ध्यान खाने-पीने की ओर मोड़ दिया| उस दिन हमने अफगानी चिकन टिक्का रोल खाया, कसम से उससे लजीज चिकन रोल मैंने आजतक नहीं खाया था!



दो दिन बाद करुणा ने लंच में फ़ोन किया, उसकी आवाज खुशियों से भरी थी! मैं जान गया था की उसका अपॉइंटमेंट लेटर आ गया है, मैंने आँख बंद कर के ईश्वर को धन्यवाद दिया और उससे पुछा की कहाँ joining मिली है तथा उसे कब निकलना है| करुणा ने बताया की उसे ‘घरसाना’ नाम की जगह में पोस्टिंग मिली है पर उसे पहले ‘श्री विजयनगर’ में रिपोर्ट करना है| Joining के लिए उसकी दीदी, उसका जीजा और एंजेल सब जा रहे हैं, अब ये सुन कर मेरा दिल मुरझा गया क्योंकि उन सब के जाने से मेरा जाना नामुमकिन होगया था, जबकि मैं चाहता था की उसकी joining मैं करवाऊँ!

करुणा: आप मेरे को छोड़ने नहीं जाते?

करुणा ने मायूस होते हुए कहा|

मैं: यार....

मैं कुछ कहता उससे पहले ही करुणा ने मेरी बात काट दी;

करुणा: मेरा जोइनिंग के बाद हम फिर कब मिलते, क्या पता? इसलिए आप अगर नहीं जाते तो मैं भी नहीं जाते!

करुणा ने किसी बच्चे की तरह मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: यार....ठीक है....मैं चलूँगा!

मैंने हार मानते हुए कहा, मैं जानता था की मेरे जाने से करुणा की दीदी को चिढ होगी पर करुणा की ख़ुशी के लिए मैं मान गया| करुणा को आज शाम को जल्दी घर जाना था तो आज मिलने का प्लान कैंसिल हो गया, रात को करुणा ने फ़ोन कर के बताया की दो दिन बाद जाना है तो मैं बस की टिकट बुक करवा दूँ| मैंने करुणा से उसके दीदी, जीजा और एंजेल की डिटेल ली तथा टिकट बुक करने के लिए ऑनलाइन चेक किया, तब मुझे पता चला की श्री विजयनगर तक volvo नहीं जाती थी, बल्कि स्लीपर बस जाती थी, मैंने आज तक स्लीपर बस में सफर नहीं किया था तो सोचा की इस बहाने स्लीपर बस में भी सफर करने को मिलेगा| लेकिन दिक्कत ये थी की अगर मैं चारों sleeper टिकट लेता तो मुझे और करुणा को एक साथ स्लीपर मिलती, उसके परिवार की मौजूदगी में ये ठीक नहीं होता इसलिए मैंने केवल तीन स्लीपर बस की टिकट ली तथा अपने लिए मैंने बैठने वाली सीट ली|

अब बारी थी घर में फिर से झूठ बोलने की कि श्री विजयनगर में ऑडिट के लिए जाना है, अपना झूठ फूलप्रूफ करने के लिए मैंने दिषु को सब बता दिया और वो भी मेरे झूठ में शामिल हो गया| माँ-पिताजी ने झूठ सुना और बेटे पर विश्वास कर बैठे, पर मैं जानता था की मैं उनसे कितना झूठ बोल रहा हूँ| खैर ये दो दिन करुणा एकदम से मुरझा गई थी, बुधवार को जब मैं उससे मिला तो करुणा ने मायूस होते हुए कहा;

करुणा: मिट्टू....हम कब मिलते?

करुणा की आवाज में दर्द झलक रहा था और उसका ये दर्द मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, ये दर्द कुछ-कुछ वैसा ही था जो भौजी ने मेरे दिल्ली लौटने के समय किया था| इस दर्द को महसूस कर मन बोला; 'भौजी को तो मैं खो चूका हूँ, पर करुणा को नहीं खोऊँगा;

मैं: पागल! आप joining तो करो, फिर मैं और आप every weekend मिलेंगे!

ये सुन कर करुणा के चेहरे पर ख़ुशी लौट आई, उसके चेहरे पर आई ख़ुशी देखते ही मैंने पल भर में सारा प्लान बना लिया;

मैं: मैं every friday night यहाँ से निकलूँगा, saturday-sunday मैं वहीं रहूँगा और sunday night वापस आ जाऊँगा|

मेरा प्लान था तो बिना सर-पैर का लेकिन जब आपके मन में मोह में बसा हो और आप उस मोह से खुद को संभाल न पाओ तो आप ऊल-जूलूल हरकतें करने लगते हो! न तो मैं भौजी से प्यार करते समय अपने मोह को रोक पाया था और न ही करुणा से दोस्ती में!

करुणा: सच मिट्टू?

करुणा ने आस लिए हुए मुस्कुरा कर पुछा और मैंने तुरंत हाँ में सर हिला कर उसे आश्वासन दिया| मेरी हाँ सुन कर उसके चेहरे पर जो मुस्कान आई वो देख कर दिल को बहुत सुकून मिल रहा था, भले ही मेरा प्लान बेवकूफी भरा था पर मैंने उसके बारे में सोचना शुरू कर दिया था| दिल्ली से बाहर जाना वो भी हर हफ्ते? बस का खर्चा? होटल में रहने का खर्चा? और जो उतने दिन मैं वहाँ रुकता, घूमता-फिरता उसका खर्चा? इसके लिए मुझे पैसे चाहिए थे, बहुत सारे पैसे और उसके लिए मुझे एक अच्छी जॉब चाहिए थी! करुणा से मेरा लगाव इतना बढ़ चूका था की मैं सब कुछ करने को तैयार था!



अगले दिन साइट पर काम ज्यादा था, फिटिंग का कुछ माल नहीं आया था तो पिताजी ने मुझे सुबह ही माल लेने भेज दिया| माल उत्तर प्रदेश से आना था पर कुछ कारन वश नहीं पहुँचा था, पिताजी ने सप्लायर को बहुत फ़ोन मिलाये पर कोई जवाब नहीं, इसलिए पिताजी ने सुबह ही मुझे वहाँ भेज दिया| अब चूँकि पिताजी ने सारी पेमेंट एडवांस की थी इसलिए मेरा जाना जर्रूरी था, मैं पहले सप्लायर की दूकान पहुँचा पर वहाँ कोई नहीं मिला| मैंने आस-पास उनके घर का पता किया और उन्हें ढूँढ़ते हुए उनके घर पहुँचा, घर पहुँच कर पता चला की एक एक्सीडेंट में उन्हें बहुत चोट आई है| हॉस्पिटल का पता लेकर में उनका हाल-चाल लेने पहुँचा, हॉस्पिटल जा कर देखा की अंकल के दाएँ हाथ में फ्रैक्चर हुआ है| मैंने उनसे हाल-चाल लिया, इधर उन्होंने अपने बेटे को बुलाया और उससे फ़ोन माँगा क्योंकि उनका फ़ोन एक्सीडेंट में टूट गया था| उन्होंने सीधा फ़ोन अपनी दूकान वाले छोटू को किया और उसे झाड़ते हुए बोले; "मरी कटौ, हम एकदिन फैक्ट्री नाहीं आयन तो तुम सबका सब मस्ती मारे लागेओ! दिल्ली वाली गाडी कहाँ है? भैया हमरे लगे ठाड़ (खड़े) हैं, दुइ मिनट मा हमका बताओ नहीं तो गंडिया काट डालब तोहार!" फ़ोन काट कर उन्होंने मुझसे माफ़ी माँगी तो मैंने उनके आगे हाथ जोड़ते हुए कहा;

मैं: अंकल जी आप आराम कीजिये, मैं तो......

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही अंकल जी का लड़का बोल पड़ा; "भैया कल रतिया का गाडी हाईवे पर पलट गई रही, पापा बाल-बाल बचे! एहि से गाडी आज सुबह न निकल पाई....."

मैं: अरे यार ऐसा मत करो, मैं तो यहाँ बस अंकल जी का हाल-चाल पूछने आया था|

मैंने उसकी बात काटते हुए कहा|

अंकल जी: नाहीं मुन्ना, तोहार पिताजी हम पर भरोसा कर के ऐखय बार मा पूरा पइसवा दे दिहिन| ऊ हम से तनिको भाव-ताव नाहीं किहिन, ई तो ससुर एक्सीडेंट हो गवा नाहीं तो तोहार माल आज पहुँच जावत! आज शाम का हम खुद उनका फ़ोन करि के माफ़ी माँग लेब!

मैं: अंकल जी ऐसा न कहिये! जिंदगी ज्यादा जर्रूरी होती है, भगवान का लाख-लाख शुक्र है की आप सुरक्षित हैं|

इतने में छोटू का फ़ोन आ गया, उसने बताया की गाडी तैयार है और बस निकलने वाली है| अंकल जी ने उसे बहुत झाड़ा और आज रात किसी भी हालत में माल पहुँचाने को कहा| मैंने सारी बात सुन ली थी तो मैंने उनसे विदा लेनी चाही, अंकल ने बहुत जोर दिया की मैं कुछ खा-पीकर जाऊँ पर मैं उन्हें और उनके परिवार को तकलीफ नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने उनसे हाथ जोड़ कर धन्यवाद कहा तथा वहाँ से चल पड़ा| घडी में बजे थे शाम के 5 और अभी दिल्ली पहुँचने में लगता कमसकम ढाई घंटे, इसलिए मैंने करुणा को बताया की मैं आज नहीं मिल पाऊँगा| ये सुन कर करुणा मायूस हो गई, वो चाहती थी की कल श्री विजयनगर निकलने से पहले हम आज मिल लें| अब मिलना तो मुमकिन नहीं था पर फ़ोन पर बात करना तो आसान था, तो हम दोनों फ़ोन पर बात करने लगे| मैंने करुणा से पुछा की उसने अपने सारे कपडे- लत्ते पैक किये? अपने सभी documents ले लिए? ये सवाल सुन करुणा भावुक हो गई और फ़ोन पर बात करते हुए रो पड़ी| वो घर छोड़ कर एक नए शहर में बसने से घबरा रही थी और मैं उसे सांत्वना देते हुए उसका हौसला बढ़ा रहा था| मैंने उसे विश्वास दिलाया की उसके वहाँ ठहरने से ले कर आने-जाने का सारा इंतजाम मैं करूँगा और कुछ दिन वहीं उसके पास रहूँगा| दिक्कत ये थी की joining मिलने के बाद करुणा की दीदी और जीजा की मौजूदगी में मैं वहाँ किस तरह रुकता? तो मैंने इसका एक आईडिया निकाला, वो ये की करुणा की joining के बाद उसके रहने के लिए किसी हॉस्टल का इंतजाम कर मैं दिल्ली न आ कर कोई बहाना मार के कहीं और निकल जाऊँगा| उसकी दीदी तो रात की बस से निकल जातीं और तब तक मैं किसी पार्क, होटल में रुक जाता| उनके जाते ही मैं करुणा से मिलता और 1-2 दिन रुक कर जब करुणा को इस सब की आदत हो जाती तो मैं लौट आता| करुणा को मेरा प्लान पसंद आया और उसके चेहरे पर थोड़ी सी ख़ुशी आई|

इधर मैं अब भी करुणा से अपने दिल की हालत छुपा रहा था, उससे रोज मिलने की आदत पड़ गई थी, उसके साथ होने से मेरा दिल काबू में रहता था और भौजी को याद कर के दारु के पीछे नहीं जाता था| दिल करुणा को अपने पास रखना चाहता था पर मन मुझे स्वार्थी होने से रोक रहा था, हार मानते हुए मैंने मन की बात मान ली और भगवान से प्रार्थना की कि वो मुझे शक्ति दे ताकि मैं खुद को संभाल सकूँ| सच कहूँ तो ये दर्द भौजी से जुदा होने के मुक़ाबले कम था क्योंकि मैं भौजी से प्यार करता था पर करुणा से केवल मेरा मोह का रिश्ता था|



रात नौ बजे मैं घर पहुँचा और तबतक हमारी बातें nonstop चलती रहीं, खाना खा कर मैंने कल के लिए अपने कपडे पैक किये| थकावट थी इसलिए मैं सो गया, अगला दिन पर आज सुबह उठने का जैसे मन ही नहीं था| हमारी बस रात की थी और दिनभर मैं पिताजी के साथ काम में लगा रहा, शाम 7 बजे मैं अपने घर से करुणा के घर के लिए निकला| मैं तो समय से पहुँचा पर वो तीनों लेट-लतीफ़ थे, मैं जानकार उनके घर नहीं गया और बाहर पार्क में बैठा रहा| जब वो सब रेडी हुए तो मैंने ola बुलवाई, 5 मिनट में एक SUV आ गई और उधर वो तीनो अपना सामान ले कर नीचे आ गए| आज मैं पहलीबार करुणा के जीजा से मिला और माँ कसम क्या आदमी था वो! मरा हुआ सा शरीर, गाल चपटे, मोटी सी मूछ, सादे से कपडे पहने हुए! मैं ड्राइवर के साथ सामान पीछे रखवा रहा था जब उसने आ कर मुझसे मुस्कुरा कर बात की;

करुणा का जीजा: हेल्लो मैं करुणा का जीजा!

उसकी औरतों जैसी मरी हुई आवाज सुन कर मेरी हँसी छूट गई लेकिन अगर हँसता तो उस बेचारे की किरकिरी हो जाती इसलिए मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी दबाई, पर करुणा मेरी हँसी ताड़ गई थी! उसकी हालत भी मेरी जैसी थी, वो भी बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी छुपाये खड़ी थी| खैर हम चले और समय से कश्मीरी गेट बस स्टैंड पहुँच गए, बस लग चुकी थी हम सारा सामान ले कर चढ़ गए| करुणा की दीदी और जीजा को डबल स्लीपर मिला था तथा करुणा को सिंगल स्लीपर मिला था| मैंने अपना बैग करुणा के स्लीपर बर्थ पर रखा तो उसकी दीदी ने मुझसे सवाल किया;

करुणा की दीदी: मानु आपकी बर्थ कहाँ है?

मैं: दीदी मैंने अपने लिए चेयर बुक की थी!

मेरा जवाब सुन करुणा की दीदी ने बड़ी चुभती हुई बात कही;

करुणा की दीदी: स्लीपर बर्थ और चेयर में 100/- रुपये का ही अंतर् था न? तो 100/- रुपये मेरे से ले लेते!

ये सुन कर मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैं किसी तरह सह गया|

करुणा: मिट्टू को रात में जागते हुए travel करना अच्छा लगते!

करुणा मेरा बचाव करते हुए बोली|

करुणा की दीदी: क्यों? सामान की रखवाली करने के लिए?! आप जाग रहे हो तो हमारे सामना का भी ध्यान रखना!

उन्होंने मजाक करते हुए कहा पर ये मजाक हम दोनों (मुझे और करुणा) को जरा भी पसंद नहीं आया, इसलिए करुणा बीच में बोल पड़ी;

करुणा: मिट्टू poet है, वो रात में जाग कर roads और colorful lights देखते!

करुणा की बात सुन कर उसकी दीदी को हैरानी हुई और शायद कहीं न कहीं उन्हें ये बात लग चुकी थी!



बस में ज्यादा यात्री नहीं थे, मैं अपनी कुर्सी पर बैठ गया और इतने में करुणा एंजेल को ले कर मेरे पास आ गई| उसकी दीदी और जीजा अपनी बर्थ पर पर्दा कर के लेट चुके थे, इधर मुझे देखते ही एंजेल ने अपने दोनों हाथ मेरी गोद में आने को खोल दिए| मैंने एंजेल को अपनी गोद में लिया और करुणा को अपनी बगल वाली खाली सीट पर बैठने को कहा| अभी बस में कोई सोया नहीं था इसलिए हम साथ बैठ सकते थे, बस चल पड़ी और हम दोनों बातें करने लगे| मैंने करुणा से पुछा की क्या उसने वहाँ अपने रहने के लिए कोई हॉस्टल ढूँढा तो उसने कहा की उसे कुछ नहीं मिला| फिर करुणा ने अपना फ़ोन निकाला और उसमें headphones लगा कर एक हिस्सा मुझे दिया, इस तरह फ़ोन में गाने सुनते-सुनते समय बीतने लगा| बस के अंदर की लाइटें बंद हो चुकी थीं, इधर करुणा डरी हुई थी और बहुत भावुक हो चुकी थी इसलिए उसने अपना सर मेरे दाएँ कँधे पर टिका दिया| मैंने अपने दोनों हाथों से एंजेल को अपनी छाती से चिपका रखा था और गाना सुनते हुए मैं भी अपने दिल में उठ रहे करुणा की जुदाई के दर्द को दबाने की नाकाम कोशिश कर रहा था| इतने में करुणा की दीदी पीछे से आईं और हम दोनों को ऐसे बैठे देख स्तब्ध रह गईं! उन्होंने कुछ नहीं कहा बस मेरे बाएँ कँधे पर हाथ रख एंजेल को माँगा, उनके मुझे छूने से मुझे थोड़ा सा झटका लगा जिस कारन करुणा का सर मेरे कँधे से हिला और उसने पीछे पलट कर अपनी दीदी को देखा| बस में अँधेरा था तो हम तीनों एक दूसरे के हाव-भाव नहीं देख पाए थे| करुणा की दीदी एंजेल को ले कर चलीं गईं और तब मैंने करुणा से कहा;

मैं: Dear रात बहुत हो रही है, आप सो जाओ!

करुणा जान गई थी की मैं ये सब सिर्फ उसकी बहन की वजह से कह रहा हूँ, क्योंकि इस तरह हम दोनों का अकेला बैठना उनके मन में सवाल पैदा कर देता पर करुणा को इसकी रत्ती भर चिंता नहीं थी, वो तुनकते हुए बोली;

करुणा: आप टेंशन मत लो, कल के बाद पता नहीं हम कब मिलते?! ये रात हम साथ बैठते!

ये कह करुणा मेरे कँधे पर सर रख कर फिर से लेट गई| रात बारह बजे मैंने अपना दायाँ कंधा हिला कर उसे उठाया और उससे रिक्वेस्ट की कि वो अपनी बर्थ पर जा कर सो जाए वरना उसकी दीदी हमारे बारे में गन्दा सोचेंगी! बेमन से करुणा उठी और अपनी बर्थ पर जा कर पर्दा कर सो गई!



जारी रहेगा भाग 7(4) में...
Superb
 

Ssking

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आठवाँ अध्याय: जूनून
भाग - 1

मैं नहा धो के तैयार हो गया और शांत मन से रात के प्लान के लिए मन ही मन योजना बनाने लगा| मन में तो ख्याल था की फूलों की सेज सजी हो पर ये भी डर था की ये फूल किसी से नहीं छुपेंगे और कहीं इन्हीं फूलों का फायदा चन्दर भैया ना उठा लें!!!! अभी मैं मन ही मन सोच रहा था की तभी पिताजी ने मेरे कान के पास एक ऐसा बम फोड़ा की मेरा सारा शरीर सुन हो गया;

पिताजी: क्यों लाड-साहब रात को छत पर क्यों नहीं सोये?

मैं: बहुत थक गया था, इसीलिए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला|

पिताजी: थक गया था? ऐसा कौन सा पहाड़ खोद दिया तूने?

चन्दर भैया: चाचा कल रतिया मानु भैया भूसा उठाये रहे ना!

चन्दर भैया ने मजाक किया ओर उनकी बात सुनके दोनों चाचा-भतीजा हँसने लगे| मैं भी उनका साथ देने के लिए झूठी हँसी हँसा, असल में तो मुझे भौजी की बातें याद आ रही थी और मैं भैया से नफरत करने लगा था| पर यदि मैं अपनी नफरत जाहिर करता तो कोई भी भौजी और मुझपर शक करता| अभी तक भौजी और मेरे रिश्ता दोस्ती के नक़ाब के पीछे छुपा हुआ था और सब के सामने इस नक़ाब का रहना जर्रूरी था| पर अभी तो पिताजी की बात शुरू ही हुई थी;

पिताजी: तो लाड-साहब चलना नहीं है क्या?

मैं: (चौंकते हुए) कहाँ?

पिताजी: जिस काम के लिए आये थे?

मैं: किस काम के लिए?

पिताजी: तुम तो यहाँ आके अपनी भौजी के साथ इतना घुल-मिल गए की यात्रा के बारे में भूल ही गए|

पिताजी की बात सुन मैं झेंप गया और मुझे याद आया की गाओं आने का प्लान बनाने के लिए मैंने पिताजी को काशी विश्वनाथ घूमने का लालच दिया था, यही कारन था की पिताजी गाँव आने के लिए माने थे| यात्रा का प्लान मैंने ही बनाया था पर क्योंकि मुझे भौजी से मिलने की इतनी जल्दी थी इसलिए मैंने सबसे पहले गाँव आने का प्लान रखा और उसके बाद हम यात्रा करके दिल्ली लौटना था, जबकि पिताजी का कहना था की हम पहले यात्रा करते हैं उसके बाद गाँव जायेंगे| अब मुझे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था, की आखिर क्यों मैंने थोड़ा सब्र नहीं किया| ऊपर से कहाँ तो मैं अपनी और भौजी की सुहागरात के सपने सजोने में लगा था और कहाँ पिताजी की यात्रा पर जाने की बात ने मेरे होश उड़ा दिए थे!

पिताजी: क्या सोच रहा है? मैंने तुमसे राय नहीं माँगी है, हम कल ही निकालेंगे और यात्र कर के दिल्ली लौट जायेंगे|

चन्दर भैया ने जैसे ही पिताजी की बात सुनी, वो सब को सुनाने के लिए चल दिए| इधर मेरा दिमाग अब कंप्यूटर की तरह काम करने लगा और मैं कोई न कोई तर्क निकालना चाहता था की हम कुछ और दिनों के लिए रुक जाएँ|

उधर जब ये बात भौजी के कानों तक पहुँची तो भौजी भागी-भागी बड़े घर की ओर आईं| पिताजी मुझसे बात करके कल यात्रा पर जाने के लिए रिक्शे का इन्तेजाम करने के लिए निकल चुके थे| मैं घर के आँगन में अपने सर पे हाथ रखे अकेला बैठा हुआ था| अचानक भौजी मेरे सामने ठिठक के खड़ी हो गईं, मेरी नजर जब उनके चेहरे पर पड़ी तो मैंने देखा की उनके आँखों में आँसूँ थे, चेहरे पर सवाल और जुबान पर मेरा नाम!

भौजी: मानु.... क्या मैंने जो सुना वो सच है? तुम कल ही मुझे छोड़ कर जा रहे हो?

मैं: (सर झुकाते हुए) हाँ!

भौजी: तो तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?

मैं: भूल गया था!

भौजी: अब मेरा क्या होगा? मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती! मैं मर जाऊँगी!!!

इतना कह के भौजी बाहर चली गईं, मुझे चिंता होने लगी की कहीं भौजी कुछ ऐसा-वैसा कदम न उठा लें इसलिए मैं उनके पीछे भागा| पर भौजी भूसे वाले कमरे के बाहर खड़ी होके रसिका भाभी से कुछ पूछ रही थीं| दोनों के हाव-भाव से मैं समझ चूका था की भौजी यही पूछ रहीं थीं की क्या मैं सच में वापस जा रहा हूँ? रसिका भाभी ने बात को ज्यादा तूल ना देते हुए हाँ में सर हिलाया और रसोई की ओर चल दीं| मैंने इशारे से भौजी को अपने पास बुलाया, भौजी सर झुकाये भारी क़दमों के साथ मेरी ओर बढ़ने लगीं| उस समय माँ, नेहा, मधु भाभी और बड़की अम्मा खेत में आलू खोद के निकाल रहे थे| पिताजी तो पहले ही रिक्शे वाले से बात करने के लिए जा चुके थे| चन्दर भैया और अजय भैया खेतों में सिंचाई और जुताई में लगे थे और रसिका भाभी तो यूँ ही इधर-उधर टहल रहीं थी, जब से मैं आया था मैंने उन्हें कोई भी काम नहीं करते देखा था!

मैं भौजी को ले कर बड़े घर में आया और मैंने उन्हें चारपाई पर बिठा दिया| उनके मुख पर हवाइयाँ उड़ रहीं थी, उनके चेहरे पर कोई भी भाव नहीं थे, ऐसा लगा जैसे की कोई लाश हो| इधर मैं मन ही मन अपने आपको कोस रहा था| मैं अपने घुटनों पर उनके समक्ष बैठ गया;

मैं: भौजी... मुझे माफ़ कर दो! सब मेरी गलती है! मैंने आपको कुछ नहीं बताया, सच कहूँ तो इन चार दिनों में आपके प्यार में मैं खुद को भूल गया था| गाओं आने का मेरे पास कोई बहाना नहीं था इसलिए मैंने पिताजी से काशी-विश्वनाथ की यात्रा का बहाना बनाया| पिताजी तो चाहते थे की हम पहले यात्रा करें और फिर गाओं जायेंगे और आखिर में दिल्ली लौट जायेंगे| पर मैं आपसे मिलने को इतना आतुर था की मैंने कहा की हम पहले गाओं जायेंगे और फिर वहाँ से यात्रा करने के लिए निकलेंगे और वहीं से वहीं दिल्ली निकल जायेंगे| मुझे सच में नहीं पता था की आपका प्यार मुझे आपसे दूर नहीं जाने देगा|

भौजी मेरी आँखों में देखते हुए सारी बात सुन रही थी| मेरी बात पूरी होते ही उनकी आँखों में आँसूँ छलक आये| पता नहीं क्यों पर जब-जब मैं भौजी को ऐसे देखता, तो मेरे नस-नस में खून खौल उठता|.

भौजी: मानु मेरा क्या होगा?

भौजी के इस प्रश्न का मेरे पास कोई जवाब नहीं था इसलिए मेरा सर खुद झुक गया| मेरा झुका सर देख भौजी के चेहरे पर मायूसी छा चुकी थी और इधर मुझे अपने ऊपर कोफ़्त होने लगी थी!!! मैं ने भौजी को ढाँढस बँधाने लगा, मैंने उनके चेहरे को ऊपर किये और उनके आँसूँ पोंछें;

मैं: भौजी अभी भी हमारे पास 24 घंटे हैं|

ये सुन भौजी मेरी और बड़ी उत्सुकता से देखने लगीं|

मैं: मैं ये पूरे 24 घंटे आपके साथ ही गुजारूँगा|

तभी पीछे से माँ आ गईं, मुझे और भौजी को इस तरह देख वो हैरान थी| इससे पहले की वो कुछ पूछतीं मैं खुद ही बोल पड़ा;

मैं: माँ देखो ना भौजी को, जब से इन्हें पता चला है की हम कल जा रहे हैं ये मुँह लटका के बैठीं हैं| आप ही कुछ समझाओ न इन्हें|

माँ: पर हम तो....

मैं: (माँ की बात काटते हुए) माँ पिताजी रिक्शे वाले से बात करने निकले हैं और वो कह रहे थे की आप उनका सफारी सूट मत भूल जाना|

मैं: हाँ अच्छा याद दिलाया तूने, मैं अभी रख लेती हूँ और बहु तुम उदास मत हो ...

मैंने फिर से माँ की बात काट दी...

मैं: (फिर से उनकी बात काटते हुए) और हाँ माँ, पिताजी ने कहा था की सर और पेट दर्द की दवा भी रख लेना|

माँ:(गुस्से में) ये सब तू मुझे बताने के बजाये खुद नहीं रख सकता?

अब इससे पहले की माँ कुछ और बोलें, मैं भौजी को खींच के बाहर ले गया| अभी हम दोनों दरवाजे तक पहुँचा ही था की नेहा भी आ गई और भौजी के उदास मुँह का कारन पूछने लगी| मैंने उसकी बात घुमाते हुए कहा की चलो मेरे साथ बताता हूँ| मैंने अपने दाएँ हाथ से भौजी का बायाँ हाथ पकड़ा और अपने बाएँ हाथ की ऊँगली नेहा को पकड़ा रखी थी| मैं दोनों को रसोई के पास छप्पर में ले आया, वहाँ पड़ी चारपाई पर भौजी को बैठाया और नेहा के प्रश्नों का उत्तर देने लगा;

मैं: आप पूछ रहे थे न की आपकी मम्मी उदास क्यों हैं?

नेहा ने हाँ में सर हिलाया|

मैं: आपकी मम्मी की उदासी का कारन मैं हूँ|

मेरी बात सुन के भौजी और नेहा दोनों मेरी ओर देखने लगे|

मैं: मैं कल वापस जा रहा हूँ ना इसलिए आपकी मम्मी उदास हैं|

नेहा: चाचू... आप ...वापस ....नहीं ....आओगे ?

नेहा ने किसी भोले बच्चे की तरह पुछा| मैंने न में सर हिला दिया और ये देख भौजी अपने आप को रोने से नहीं रोक पाईं| मैंने भौजी को गले से लगाया और उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए चुप कराने लगा|

मैं: भौजी प्लीज चुप हो जाओ वरना नेहा भी रोने लगेगी|

भौजी का रोना जारी था और अपनी मम्मी को रोटा हुआ देख नेहा भी सुबकने लगी|

मैं: भौजी आपको मेरी कसम!

मेरी कसम सुन के भौजी ने रोना बंद किया और आगे जो हुआ उसे देख हम दोनों हँस पड़े| नेहा ने रोना शुरू कर दिया था और उसका रोना ऐसा था जैसे फैक्ट्री का साईरन बजा हो, जो हर सेकंड तेज होता जा रहा था| ये दृश्य इतना हास्यजनक था की मैं और भौजी अपना हँसना रोक नहीं पाये| हम दोनों दहाड़े मार-मार के हँसने लगे! अब नेहा को चुप करना था तो मैंने उसे अपने पास बुलाया और उसके आँसूँ पोछे| नेहा को चिप्स बहुत पसंद थे इसलिए मैंने उसे पैसे दिए और चिप्स खरीद के खाने के लिए कहा| भौजी मना करने लगीं पर मैंने फिर भी उसे जबरदस्ती भेज दिया, भौजी की आँखें अब भी नम थीं तो मैंने उनका मन हल्का करना चाहा;

मैं: भौजी आप स्नान कर लो, तरो-ताजा महसूस करोगे| फिर आपको खाना भी तो बनाना है, क्योंकि रसिका भाभी तो कुछ करने वाली नहीं|

भौजी बड़े बेमन से उठीं, ऐसा लगा जैसे उनका मन ही ना हो मुझसे दूर जाने को| तो मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा;

मैं: भौजी वैसे मैंने आपको वादा किया था की मैं पूरे 24 घंटे आपके साथ रहूँगा, अभी तो आप स्नान करने जा रहे हो अगर कहो तो मैं भी चलूँ आपके साथ?

भौजी: ठीक है.... चलो!!!

उनका जवाब सुन के मैं सन्न रह गया, क्योंकि मैंने तो मजाक में ही बोल दिया था| खेर मैं ख़ुशी-ख़ुशी उनके साथ चल दिया, भाभी ने अंदर से कमरा बंद किया और मैं उनके स्नान घर के सामने चारपाई खींच कर बैठ गया, जैसे मैं कोई मुजरा सुनने आया हूँ|


भौजी ने आज हलके हरे रंग की साडी पहनी हुई थी, वो मेरे सामने खड़ी हुईं और अपना पल्लू नीचे गिरा दिया| उनके स्तन के बीचों बीच की लकीर मुझे साफ़ दिखाई दे रही थी, ये देख मेरे हाथ बेकाबू होने लगे और मन किया की भौजी को किसी शेर की भाँती दबोच लूँ| अब भौजी ने अपने ब्लाउज के बटन खोलने चालु कर दिए थे, इसके आगे देखना मेरे लिए मुश्किल था इसलिए मैं उठ खड़ा हुआ| भौजी को लगा की मैं आ कर उनको छूने वाला हूँ इसलिए वो मुस्कुरा दीं पर मैं उनकी तरफ बढ़ा ही नहीं और वहीँ खड़े-खड़े बोला;

मैं: भौजी मैं जा रहा हूँ|

ये सुन कर भौजी अचरज में पड़ गईं|

भौजी: क्यों?

मैं: आपको इस तरह देख के मेरा कंट्रोल छूट रहा है, मैं ये सब आज रात के लिए बचाना चाहता हूँ|

पर फिर भौजी ने ऐसी बात बोली की मैं एक पल के लिए सोच में पड़ गया|

भौजी: और अगर रात को मौका नहीं मिला तो? तुम तो कल चले जाओगे, पता नहीं फिर कभी हम मिलें भी या नहीं!!!

भौजी की ये बात सुन मेरी आत्मा चोटिल मेहसूस कर रही थी, पर उनकी बातों में सच्चाई थी जिसे मैं नकार नहीं सकता था| पर मैं फिर भी हर खतरा उठाने को तैयार था, मैं किसी भी हालत में भौजी की सुहागरात वाला तौफा ख़राब नहीं करना चाहता था| मैं भौजी की ओर बढ़ा और उन्हें अपनी बाँहों में भरा, उनके बदन पर मेरा दबाव तीव्र था और उन्हें ये संकेत दे रहा था की आप चिंता मत करो सब ठीक होगा, आपका सुहागरात वाला सरप्राइज मैं ख़राब नहीं होने दूँगा| अपनी बात को पक्का करने के लिए मैंने उनके होंठों को चूम लिया, परन्तु ये चुम्बन बहुत ही छोटा था! मैं बाहर जाने को मुड़ा;

मैं: भौजी मैं बाहर जा रहा हूँ, आप दरवाजा बंद कर लो|

भौजी: मानु मेरी एक बात मानोगे? (भौजी की आवाज बहुत भारी थी!)

मैं: हाँजी बोलो!

भौजी: कल मत जाओ! कोई भी बहाना बनाके रुक जाओ, मुझे भरोसे है की तुम ये कर सकते हो|

मैं: भौजी कल की वाराणसी की ट्रैन की टिकट बुक है| अगर मैं अपनी बीमारी का बहाना भी बना लूँ तो भी पिताजी मुझे ले जाए बिना नहीं मानेंगे, फिर तो चाहे उन्हें यहाँ तक एम्बुलेंस ही क्यों न बुलानी पड़े!


मेरी बात सुन भौजी एक बार फिर मायूस हो गईं, मैं इस बारे में और बात कर के फिर से भाभी की आँखें नम नहीं करना चाहता था इसलिए मैं सीधा बाहर की ओर निकल लिया और कमरे का दरवाजा सटा दिया| बाहर आके मैंने चैन की साँस ली और वापस छप्पर के नीचे पहुँचा जहाँ नेहा चारपाई पर बैठी चिप्स खा रही थी| मैं नेहा के पास बैठ गया और उसने चिप्स वाला पैकेट मेरी ओर बढ़ा दिया, मैंने भी उसमें से थोड़े चिप्स निकाले और खाने लगा|

जब से मैं आया था तब से मेरा और नेहा का लगाव बहुत बढ़ गया था| राकेश और वरुण तो दूसरे लड़कों के साथ खेलते रहते थे पर नेहा मेरे आस-पास मंडराती रहती| वैसे भी घर में उसे कोई प्यार नहीं करता था तो मैंने उसे थोड़ा ज्यादा ही लाड करना शुरू कर दिया था| नेहा कहानी सुनने के लिए जिद्द करने लगी, वो हमेशा रात को सोने से पहले मुझसे कहानी सुन्ना पसंद करती थी| मैं उसे मना नहीं कर पाया और चूहे, कबूतरों और गिलहरी की कहनी बना के सुनाने लगा| कहानी सुनते-सुनते नेहा मेरी गोद में ही सर रख के सो गई और मैं उसके सर पर हाथ फेरने लगा| तभी उस अकड़ू ठाकुर की बेटी माधुरी वहाँ आ गई| वो मेरे सामने पड़ी चारपाई पर बैठ गई और भौजी के बारे में पूछने लगी, मैंने उसे बताया की भाभी नहाने गई हैं, अभी आती होंगी पर ये तो उसका बहाना था बात शुरू करने का| अब उसने एक-एक कर अपने सवाल मेरे ऊपर दागे;

माधुरी: तो आप दिल्ली में कहाँ रहते हो?

मैं: डिफेन्स कॉलोनी

माधुरी: आपके स्कूल का नाम क्या है?

मैं: मॉडर्न स्कूल

माधुरी: आपके विषय कौन-कौन से हैं?

मैं: एकाउंट्स और मैथ्स

माधुरी: आपकी कोई गर्लफ्रेंड है?

मैं: मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है न ही मैं बनाना चाहता हूँ| आप अपने बारे में भी तो कुछ बताइये?

माधुरी: मैं राजकीय शिक्षा मंदिर में पढ़ती हूँ, दसवीं में हूँ मेरा भी कोई बॉयफ्रेंड नहीं है|


उसने बिना मेरे पूछे ही अपने बॉयफ्रेंड के बारे में बताया जो मुझे बड़ा अजीब लगा! वो मुझसे घुलने-मिलने की कोशिश कर रही थी और कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी| दिमाग कह रहा था की; 'तुम जो इतना मुस्कुरा रही हो, क्या बात है जिसे छुपा रही हो?'

खैर वो आगे भी कुछ न कुछ पूछती रहती और मैं उसके सवालों का जवाब बहुत ही संक्षेप में देता क्योंकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी| मेरा व्यक्तित्व ही बड़े मौन स्वभाव का है, मैं बहुत काम बोलता हूँ और उसका व्यक्तित्व ठीक मेरे उलट था| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मेरी और आकर्शित महसूस कर रही हो, तभी उसने सबसे विवादित प्रश्न छेड़ दिया;

माधुरी: तो मानु जी, आपके शादी के बारे में क्या विचार हैं|

मैं: शादी? अभी?

मेरा इतना बोलना था की भौजी भी अपने बाल पोंछते हुए आ गईं, वो हमें बातें करते हुए देख रही थी और जल भून के राख हो चुकीं थी| वो मेरे पास आई और कुछ इस तरह से खड़ी हुई की उनकी पीठ माधुरी की ओर थी| उन्होंने मुझे बड़े गुस्से से देखा और नेहा को मेरी गोद में से उठा के अपने घर की ओर चल दीं| मैं समझ गया की बेटा आज तेरी शामत है! मैं भौजी के पीछे एक दम से तो जा नहीं सकता था वरना माधुरी को शक हो जाता| तो मैं मौके की तलाश में था की कैसे माधुरी को यहाँ से भगाऊँ? मन बड़ा बेचैन हो रहा था, मैं एकदम से खामोश हो गया था पर माधुरी थी की पटर-पटर बोले जा रही थी| मेरी कोई भी प्रतिक्रिया ना पते हुए उसने खुद ही बात खत्म की;

माधुरी: लगता है आपका बात करने का मन नहीं है|

मैं: नहीं ऐसी कोई बात नहीं, दरअसल मुझे कल वापस निकलना है तो उसकी पैकिंग भी करनी है|

माधुरी: ओह! मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं! (माधुरी ने बुदबुदाते हुए कहा) मैं शाम को आती हूँ तब तक तो आपकी पैकिंग हो जाएगी ना?

मैं: हाँ

माधुरी उठ के चल दी पर एक पल के लिए मैं उसकी कही बात को सोचने लगा| आखिर उसका ये कहना की "मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं! " का मतलब क्या था? पर अभी मैं इस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दे सकता था क्योंकि भौजी नाराज थीं| मैं तुरंत भौजी के पीछे उनके घर की ओर भागा, वहाँ पहुँच के देखा तो भौजी अपनी चारपाई पर बैठी हैं और नेहा दूसरी चारपाई पर सो रही है|


मुझे अपने सामने देख भौजी ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा;

भाभी: कैसी लगी माधुरी?

मैं: क्या? (मैंने हैरान होते हुए कहा|)

भाभी: बड़ा हँस-हँस के बात कर रहे थे उससे?

मैं: भौजी ऐसा नहीं है, आपको ये लग रहा है की वो मुझे अच्छी लगती है और हमारे बीच में वो सब.... (मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी|)

भाभी: और नहीं तो!

मैं: भौजी आप पागल तो नहीं हो गए? मैं सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ| मैं वहाँ नेहा को कहानी सुना रहा था, जिसे सुनते हुए नेहा सो गई और तभी माधुरी वहाँ आ घमकी, मैंने उसे नहीं बुलाया था वो अपने आप आई थी और हँस-हँस के वो बोल रही थी, मैं तो बस संक्षेप में उसकी बातों का जवाब दे रहा था| मेरे दिल में उसके लिए कुछ भी नहीं है|

भाभी: मैं नहीं मानती!!!

पर भौजी को मेरी बात पर विश्वास नहीं था|

मैं: ठीक है, मैं ये साबित करता हूँ की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ|

उनकी बात सुन कर मुझे बड़ा ताव आया, भला वो कैसे मुझसे ऐसा कह सकतीं हैं? उनकी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर शक करने की?! भौजी के शब्द मुझे शूल की तरह चुभ रहे थे, इसलिए मैं भाग के रसोई तक गया और वहाँ से हँसिया उठा लाया| मैं वो हँसिया भौजी को दिखाते हुए बोला;

मैं: मैं अपनी नस काट लूँ तब तो आपको यकीन हो जायेगा की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ?

मैंने गुस्से से कहा तो भौजी भागती हुई मेरे पास आई और मेरे हाथ से हँसिया छुड़ा के दूर फैंक दिया;

भौजी: मानु मैं तो मजाक कर रही थी, मुझे पता है की तुम मेरे आलावा किसी से प्यार नहीं करते!

मैं: भौजी दुबारा ऐसा मज़ाक मत करना वरना आप मुझे खो.....

मैं अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था की भौजी ने अपना हाथ मेरे होंठों पे रख दिया और मुझे गले लगा लिया|


भौजी के गले लगे हुए मुझे एहसास हुआ की अभी जो मैं कदम उठाने जा रहा था वो क्या था? अगर मुझे कुछ हो जाता तो मेरे माँ-पिताजी का क्या होता? मैंने आखिर उनके बारे में कुछ सोचा क्यों नहीं? क्या इसी को प्यार कहते हैं?! फिल्मों में, कहानियों में, किताबों में मैंने जो भी पढ़ा उसके अनुसार तो यही प्रेम है पर वास्तविकता में जिन लोगों को मेरे द्वारा उठाये इस कदम से धक्का लगता, दर्द होता या वो टूट जाते तो? क्या प्रेम में सिर्फ और सिर्फ अपना ही स्वार्थ देखा जाता है? अपने परिवार, दोस्तों के बारे में सोचना गलत है?


खेर हम अलग हुए पर भोजन के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी, इसलिए भौजी ने जल्दी-जल्दी भोजन बनाना शुरू किया| मैं भी चुपचाप उनके सामने बैठा उन्हें निहारने में लगा था| भौजी बीच-बीच में मेरी ओर देख के मुस्कुरा रही थी, पर मेरा दिमाग रात के उपहार के लिए योजना बना रहा था| मन में एक बात की तसल्ली थी तो एक बात का डर भी| तसल्ली इस बात की कि घर में लोग होने कि वजह से कम से कम चन्दर भैया तो भौजी के साथ नहीं सोयेंगे और डर इस बात का कि अगर रात को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा शुरू हो गया तो घर के सब लोग उठ जायेंगे और मेरे सरप्राइज की धज्जियाँ उड़ जाएंगी|

दोपहर के भोजन के बाद घर के सब लोग खेत में काम करने जा चुके थे, केवल मैं, भौजी, नेहा और रसिका भाभी ही रह गए थे| रसिका भाभी तो हमेशा कि तरह एक चारपाई पर फ़ैल के सो गईं और नेहा मेरे साथ चिड़िया उड़ खेलने लगी| कुछ देर में भौजी भी हमारे साथ खेलने लगीं;

मैं: नेहा बेटा एक बात तो बताओ, आप अशोक भैया, अजय भैया, गट्टू भैया को चाचा कहते हो और मुझे चाचू क्यों?

ये सवाल सुन कर नेहा भौजी की तरफ देखने लगी और मैं समझ गया की भौजी ने ही उसे ये सिखाया है पर इसका कारन मैं नहीं जानता था|

मैं: हम्म्म...तो आपने नेहा से मुझे चाचू कहने को कहा था? (मैंने मुस्कुराते हुए भौजी से पुछा|)

भौजी: इस घर में नेहा से सबसे ज्यादा प्यार आप ही करते हो, तो सबसे ज्यादा प्यार वो आपको ही देगी ना?!

भौजी की इस बात के दो अर्थ थे, एक अर्थ तो नेहा से जुड़ा था और दूसरा अर्थ हम दोनों के प्रेम से जुड़ा था| भौजी की ये बात सुन हम दोनों ही मंद-मंद हँस पड़े, इतने में नेहा चारपाई पर खड़ी हो गई और आ कर मेरे गले लग गई|

मैं: I Love You बेटा!

मैंने नेहा को कस कर जकड़ते हुए कहा, पर भौजी और नेहा इसका मतलब नहीं समझे थे और मेरी तरफ हैरानी से देख रहे थे, तो मैंने अपनी बात हिंदी में दोहराई;

मैं: मतलब मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ!

मेरी बात सुन नेहा के चेहरे पर ख़ुशी की लहार दौड़ गई पर भौजी को अपनी ही बेटी से एक मीठी सी जलन हुई;

भौजी: (मेरे कान में खुसफुसाते हुए) अच्छा? मुझसे प्यार नहीं करते?! (भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|)

मैं: आपको तो बहुत बार कहा है|

मेरा जवाब सुन भौजी के चेहरे पर शर्म की लाली आ गई| तभी नेहा बोली;

नेहा: चाचू...मैं ...भी...आपको....बहुत....प्यार...करती...हूँ!

नेहा ने प्यार से मुस्कुराते हुए कहा| मैंने ये बात गौर की थी की वो मुझसे बात करते समय शब्दों को थोड़ा खींच-खींच कर बोलती है|

मैं: भौजी नेहा इस तरह शब्दों को खींच-खींच कर क्यों बोलती है?

मैंने चिंता जताते हुए कहा|

भौजी: (मुस्कुराते हुए) मेरी देखा-देखि ये भी तुम से हिंदी में बात करना चाहती है|

भौजी की बात सुन कर मुझे नेहा पर और प्यार आने लगा, एक छोटी सी बच्ची जो गाओं में रही हो और वहाँ की बोली-भाषा बोलती हो वो अचानक हिंदी बोलने लगे वो भी सिर्फ मेरे लिए, इससे बड़ी बात कोई नहीं हो सकती| उम्र में बड़ा बच्चा तो दोनों भाषा आराम से बोल सकता है पर एक होती बच्ची के लिए ये इतना आसान नहीं होता| नेहा बड़ा सोच-सोच कर, शब्दों को तोड़-तोड़ कर बोलती थी और मैंने सोच लिया की मैं उसकी हिंदी ठीक करके रहूँगा;

मैं: बेटा अब से आप सब के साथ हिंदी में ही बात करो ताकि आपकी हिंदी अच्छी हो जाये| फिर जैसे आप आसानी से यहाँ की भाषा बोलते हो वैसे ही आप हिंदी भी बोल पाओगे|

ये सुन कर भौजी और नेहा मुस्कुराने लगे| नेहा मेरी गोद में सर रख के लेट गई और मैं भौजी की गोद में सर रख कर लेट गया| हम तीनों खामोश थे, नेहा की आँख लग गई थी और मैं भौजी को टकटकी बाँधे देख रहा था| तकरीबन 1 घंटा ही बीता था की माधुरी फिर से आ गई, उसे देख मैं भौजी से अलग हो कर बैठ गया ताकि वो हम दोनों पर शक न करने लगे|

देखने में माधुरी बुरी तो नहीं थी...ठीक ही थी, पर मेरे लिए तो भौजी ही सबकुछ थी| उसे सामने देख के मैं और भाभी दोनों ही नाखुश थे, चूँकि वो उस अकड़ू ठाकुर की बेटी थी इसलिए भौजी उसे कुछ कह भी नहीं सकती थी| इसलिए भौजी उठ के स्वयं चली गई और साथ-साथ नेहा को भी ले गई| मुझे उनका ये व्यवहार ऐसा लगा जैसा की फिल्म में जब लड़के वाले लड़की देखने जाते हैं तो अधिकतर माँ बाप लड़का-लड़की को अकेला छोड़ देते हैं ताकि वो आपस में कुछ बात कर सकें| एक बार फिरसे मेरा मन

विचिलित था क्योंकि मुझे पता था की भौजी का मूड फिर ख़राब हो गया है| मैं अभी यही सोच रहा था की माधुरी मेरे पास आ कर बैठ गई और पूछने लगी;

माधुरी: तो मानु जी पैकिंग हो गई आपकी?

मैं: हाँ

माधुरी: अब कब आओगे?

मैं: पता नहीं.... शायद अगले साल|

माधुरी: अगले साल?


जिस तरह से उसने प्रतिक्रिया दी थी उससे मैं हैरान था, उसे बड़ी चिंता थी मेरे अगले साल आने की? इस से पहले की वो अपना अगला सवाल पूछ पाती, नेहा भागती हुई आई और मुझे अपने साथ खींच के ले जाने लगी| माधुरी ने कई बार पुछा की कहाँ ले जा रही है? परन्तु नेहा बस मुझे खींचने में लगी हुई थी, मैंने माधुरी से इन्तेजार करने को कहा और नेहा के पीछे चल दिया| नेहा मेरी ऊँगली पकड़ के खींच के मुझे भुट्टे के खेत में ले आई| मैं हैरान था की भला उसे यहाँ क्या काम? जब आगे जा कर देखा तो भौजी भुट्टे के खेत में बीचों-बीच बैठी है| उन्हें इस तरह बैठे देख पहले तो मैं थोड़ा परेशान हुआ, पर फिर नेहा ने इशारे से ऊपर लगी भुट्टे कि एक बाली मुझे तोड़ने के लिए कहा, मैंने उसे ये बाली तोड़ के दे दी और भौजी से पुछा;

मैं: आप यहाँ क्या कर रहे हो?

भौजी: (मुस्कुराते हुए) तुम्हारा इन्तेजार!!!

मैं: भौजी धीरे बोलो कोई सुन लेगा?

भौजी: यहाँ कोई नहीं है, सभी तालाब के पास वाले खेत में काम कर रहे हैं| चाचा-चाची भी वहीं हैंअब बोलो? (भौजी जैसे सब सोच कर बैठीं थी|)

मैं: और वो जो वहाँ बैठी है? (मेरा मतलब माधुरी से थे)

भौजी: तुम्हारी वजह से उसे कुछ नहीं कहती वरना....

मैं: (भौजी की बात काटते हुए) मेरी वजह से? मैंने कब रोक आपको?

भौजी: मैं देख रही हूँ वो तुम्हें पसंद करने लगी है!!!

भौजी ने मेरी टाँग फिर से खींचते हुए कहा जो मुझे जरा भी रास ना आया, इसलिए मैं चिढ़ते हुए बोला;

मैं: आपने फिर से शुरू कर दिया?

इतना कहके मैं गुस्से में अपने पाँव पटकता हुआ वापस आ गया, पता नहीं क्यों पर भौजी की इस बात पर हमेशा मिर्ची लग जाती थी| मैं वापस आ कर माधुरी के सामने वाली चारपाई पर सर झुकाये बैठ गया|

माधुरी: कहाँ गए थे आप?

मैं: नेहा को भुट्टे कि बाली तोड़ के देने गया था|

माधुरी: वो उसका क्या करेगी?

मैं: पता नहीं.. शायद खेलेगी|

माधुरी: आपके बाल खुश्क लगते हैं, अगर कहो तो मैं तेल लगा दूँ?

माधुरी ने एकदम से बात बदलते हुए कहा पर मैं उसकी बात सुन के हैरानी से उसे देखने लगा| आखिर ये मेरे बालों में तेल क्यों लगाना चाहती है? क्या ये मुझसे प्यार करती है? या इसके बाप ने इसे सीखा-पढ़ा के मुझे फँसाने भेजा है? मुझपर कब से सुर्खाब के पर लग गए की ये मुझमें दिलचस्पी ले रही है? ये सभी सवाल मेरे जहन में एक साथ उठने लगे और मैंने बड़े रूखे मन से जवाब दिया;

मैं: नहीं शुक्रिया|

एक पल को तो लगा की मैं उससे पूछ लूँ की आप मुझ में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हो? लेकिन फिर मैंने सोचा कि अगर मैं गलत निकला तो खामखा बेइज्जती हो जाएगी| अभी मैं ये सोच ही रहा था की भौजी आ गईं;

भौजी: अरे माधुरी शाम हो रही है, ठकुराइन तुझे ढूँढती होंगी| (भौजी ने झूठ बोला|)

माधुरी: पर मैं तो उन्हें बता के आई हूँ| (माधुरी ने तपाक से जवाब दिया|)

भौजी: तेरे पापा भी आ गए होंगे|

अब ये सुनते ही उसकी हवा टाइट होगी और वो बोली;

माधुरी: अरे बाप रे! भौजी मैं बाद में आती हूँ|

न जाने क्यों अपने बाप का नाम सुनते ही वो भाग खड़ी हुई और उसके जाते ही मैंने चैन कि साँस ली|

भौजी: अब तो खुश हो ना? (भौजी हँसते हुए बोलीं, मानो उन्होंने मेरी इज्जत बचा ली हो!)

मैं: (एक लम्बी साँस लेते हुए) हाँ!!!

इतने में एक-एक कर सभी घरवाले आ गए और उन सबको देख अब मुझे सच में चिंता होने लगी थी की अगर रात का सरप्राइज फ्लॉप हो गया तो भौजी का दिल टूट जायेगा, मैं किसी भी कीमत पे उनका दिल नहीं तोडना चाहता था| मन में बस एक ही ख़याल आ रहा था की किस्मत कभी भी किसी को दूसरा मौका नहीं देती, तो मुझे ही मौका पैदा करना होगा| मगर कैसे?


शाम होने को आई थी, सभी लोग घर लौट आये थे| पिताजी, चन्दर भैया, अशोक भैया, अजय भैया और बड़के दादा एक साथ बैठे कल कितने बजे निकलना है उसके बारे में बात कर रहे थे| इधर भौजी खाना बनाने में व्यस्त थीं, मैं ठीक उनके सामने बैठा था परन्तु अब समय था प्लान बनाने का| इसलिए मैं चुप-चाप उठा और पिताजी के पास जा कर बैठ गया| किसी भी प्लान को बनाने से पहले हालत का जायज़ा लेना जरुरी होता है इसलिए मैं उनकी बात सुनने के लिए वहीं चुप-चाप बैठ गया| पिताजी ने अभी तक मेरे और उनके बीच हुई बात का जिक्र किसी से भी नहीं किया था, वहाँ हो रही बातों से ये तो साफ़ था की आज सब लोग छत पर नहीं बल्कि रसोई के पास वाली जगह पर ही सोने वाले हैं| अब मुझे सब से मुख्य बातों पर ध्यान देना था;

1. रसिका भाभी को अजय भैया से दूर रखना और

2. चन्दर भैया को भौजी से दूर रखना|

अगर इनमें से एक भी काम ठीक से नहीं हुआ तो भौजी का दिल टूट जायेगा| अब समय था मुझे अपनी पहली चाल चलने का, मैं तुरंत भौजी के पास पहुँचा और उनसे रसिका भाभी के बारे में पूछा| ये सवाल सुन के भौजी थोड़ा हैरान हुईं क्योंकि मैंने आज तक कभी भी किसी से भी रसिका भाभी के बारे में नहीं पूछा था| भौजी ने मुझे घूरते हुए बताया की रसिका भाभी बड़े घर में अपने कमरे में सो रही हैं| मुझे ये निश्चित करना था की रसिका भाभी बड़े घर में ही रहे| इसलिए मैं उनके पास पहुँचा और उन्हें जगाया, जब मैंने उनके सोने का कारन पूछा तो उन्होंने बताया की उनका बदन टूट रहा है| खेर मैंने बात को बदला और हम गप्पें हाँकने लगे, भाभी को लगा की शायद मैं कल जा रहा हूँ तो उनसे ऐसे ही आखरी बार बात करने आया हूँ| इधर भोजन का समय हो चूका था और मुझे अपनी दूसरी चाल चलनी थी| सबसे पहले मैंने रसिका भाभी से जिद्द की कि आज हम एक साथ ही भोजन करेंगे, एक साथ भोजन का मतलब था कि आमने सामने बैठ के भोजन करना साथ मैं तो मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी प्यारी भौजी के साथ ही भोजन करता था| ये सुन के रसिका भाभी को थोड़ा अचरज तो हुआ पर मैंने उन्हें ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया और मैं हम दोनों का भोजन लेने रसोई पहुँच गया| इधर मेरी प्यारी भौजी मेरे इस बर्ताव से बड़ी अचंभित थी! मैं खाना लेके रसिका भाभी के पास पहुँच गया और मेरे पीछे-पीछे नेहा भी अपनी थाली ले के आ गई| भोजन करते समय भी रसिका भाभी और मैं गप्पें मारते रहे| भोजन समाप्त होने के बाद मैंने रसिका भाभी से उनकी थाली ले ली उन्होंने काफी मना किया पर मैं अपनी जिद्द पर अड़ा रहा| मैं जल्दी से थाली रख के हाथ मुँह धोके अजय भैया को ढूँढने लगा, अजय भैया मुझे कुऐं के पास टहलते हुए दिखाई दिए| मैं उनके पास पहुँचा और थोड़ा इधर-उधर की बातें करने लगा| बातों ही बातों में मैंने रसिका भाभी की बिमारी की बात छेड़ दी| मेरी बात सुन के भैया को तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा, मुझे मेरा प्लान चौपट होता दिख रहा था क्योंकि मुझे उम्मीद थी कि शायद ये बात जान के अजय भैया रसिका भाभी के आस-पास ना भटकें| अब बारी थी चन्दर भैया को सेट करने की, मैं उनके पास पहुँचा तो देखा की वो तो सोने की तैयारी कर रहे थे| उन्हें देख के लग रहा था की थकान उनके शरीर पर भारी हैं| घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे और रसिका भाभी खाना खाते ही लेट चुकीं थी| मुझे छोड़के सभी पुरषों के बिस्तर आस-पास लगे हुए थे और वे सभी अपने-अपने बिस्तर पर लेट चुके थे| पिताजी, बड़के दादा सो चुके थे, अजय भैया की चारपाई चन्दर भैया के पास ही थी और वो भी लेट चुके थे|


अब केवल घर की स्त्रियाँ ही भोजन कर रहीं थी, मुझे कैसे भी कर के भौजी तक ये बात पहुँचानी थी की वे आज रात के सरप्राइज के लिए तैयार रहें| इसलिए मैं टहलते-टहलते छप्पर के नीचे पहुँच गया, माँ और मधु भाभी भोजन समाप्त कर उठ रहीं थी| बड़की अम्मा भी लगभग उठने ही वालीं थी और भौजी बड़े आराम से भोजन कर रहीं थी| जब सब भोजन कर के चले गए तब मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा;

मैं: भौजी आपका तौफा बिलकुल तैयार है|

भौजी: (खुश होते हुए) अच्छा?

मैं: मैं सोने जा रहा हूँ, जब आपको लगे सब सो गए हैं तब आप मुझे उठा देना|

भौजी: ठीक है!

भौजी के चेहरे से उनकी प्रसन्ता झलक रही थी और उन्हें खुश देख मैं भी खुश था| मैं अपने बिस्तर पर आके लेट गया और ऐसा दिखाया की जैसे मैं घोड़े बेच के सोया हूँ पर असल में तो मैं उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था जब भौजी मुझे उठाने आएं| रात के ग्यारह बजे भौजी मुझे उठाने आईं, मैं चुप-चाप उठा और उनके पीछे-पीछे चल दिया|


जारी रहेगा भाग 2 में...
Jahapana tussi great ho toglhafa kabul karo????❣️
 

Ssking

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आठवाँ अध्याय: जूनून
भाग - 2

मेरे भौजी के घर के भीतर पहुँच ही भौजी ने दरवाजा बंद किया, जैसे ही वो पलटीं मैं उनके सामने खड़ा था| मैंने आगे बढ़कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया, भौजी मेरे इस आलिंगन से कसमसा गईं और मुझसे ऐसे चिपक गईं जैसे कोई जंगली बेल पेड़ से चिपक जाती है| आज मैं किसी भी जल्दी में नहीं था क्योंकि मैं चाहता था की भौजी हर एक सेकंड को महसूस करें और इस पल को हमेशा याद रखें| करीब पाँच मिनट बाद जब हमारा आलिंगन टूटा तो मैंने भौजी से दरख्वास्त की; "भौजी! आप पलंग पर ठीक वैसे बैठो जैसे आप अपनी शादी वाली रात बैठे थे!" मेरी बात सुन भौजी के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कराहट आ गई| भौजी घुटने मोड़े हुए, एक हाथ का घूँघट काढ़े पलंग पर बैठी गईं! दिखने में वो बिलकुल एक नई नवेली दुल्हन जैसी दिख रहीं थी| मैं किसी कुँवर की तरह उनकी ओर बढ़ा और उनकी तरफ मुँह करके बैठ गया| मैंने अपने हाथ से उनका घूँघट बड़ी सहजता के साथ उठाया, इस समय भौजी की नजरें नीचे झुकीं थी| मैंने जब उनकी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई तब हमारी आँखें एक दूसरे से मिलीं और कुछ क्षण के लिए मैं उनकी आँखों में देखता ही रहा| ऐसा लगा जैसे चाँद बादलों से निकल आया हो, मैंने थोड़ा ध्यान दिया तो पाया भौजी ने थोड़ा बहुत साज-श्रृंगार किया है, उनके होंठों पर लाली थी, बाल सवरें परन्तु खुले हुए थे, उनका चेहरा दमक रहा था और उनके शरीर से मीठी-मीठी गुलाब जल की खुशबु आ रही थी| मैंने भौजी को इस तरह देखना की कभी कल्पना भी नहीं की थी| मैं खुद को भौजी की तारीफ करने से रोक नहीं पाया और अनायास ही मेरे मुँह से ये बोल फूटे;

"आप खूबसूरत हैं इतने,

के हर शख्स की ज़ुबान पर आप ही का तराना है,

हम नाचीज़ तो कहाँ किसी के काबिल,

और आपका तो खुदा भी दीवाना है..."


अपनी तारीफ सुन भौजी का चेहरा शर्म से लाल हो गया| उन्हें इस तरह देख मेरा दिल मचलने लगा था, मैंने आगे बढ़ के उनके लाल होंठों को चूम लिया| मेरे दोनों हाथों ने भौजी के चेहरे को कैद कर रखा था और मैं अपने होंठों से उनके होंठों को बारी-बारी चूस रहा था| भौजी भी बराबर जवाब देते हुए मेरे होठों को चूस रहीं थी| ऐसा करीब पाँच मिनट तक चला और जब हम दोनों अलग हुए तो भौजी बोलीं;

भौजी: मानु... तुम्हारे लिए कुछ है?

मैं: (उत्सुकतावश) क्या?

भौजी उठीं और खिड़की में रखा गिलास उठा लाईं|

मैं: दूध.... पर इसकी क्या जर्रूरत थी?

भौजी: ये एक रसम होती है की दुल्हन अपने दूल्हे को अपने हाथ से दूध पिलाये|

इतना कह भौजी मेरे पास बैठ गईं और मुझे अपने हाथ से दूध पिलाया लेकिन मैंने केवल आधा गिलास ही दूध पिया और बाकी मैंने भौजी की ओर बढ़ा दिया;

भौजी: मानु मुझे दूध अच्छा नहीं लगता| (भौजी ने मुँह बनाते हुए कहा|)

मैं: मेरे लिए पी लो!

मैंने इतना प्यार से कहा की भौजी मना नहीं कर पाइन, फिर मैंने भौजी को अपने हाथ से दूध पिलाया| भौजी को दूध पिलाने के बाद मैंने वो गिलास चारपाई के नीचे रख दिया और जैसे ही मैं गिलास रख के उठा, भौजी ने अपने दोनों हाथों को मेरे दोनों गालों पर रख मुझे रोक लिया| हम दोनों की आँखें बस एक दूसरे के होठों पर टिकी थीं, भौजी ने पहल करते हुए एक जबरदस्त चुम्बन मेरे होठों पर जड़ दिया| उन्होंने अपने मुँह में मेरे होंठों को जकड़ लिया, उनके मुँह से मुझे दूध की सुगंध आ रही थी| इधर भौजी ने मेरे होंठों से खेलना शुरू कर दिया था| मेरा भी अपने ऊपर से काबू छूटने लगा था, मैंने भी भौजी के पुष्प जैसे होठों को अपने होठों के भीतर भर लिया और उनका रसपान करने लगा| सबसे पहले मैंने उनके ऊपर के होंठ को चूसना शुरू किया, दूध की सुगंध ने उनके होठों मैं मिठास घोल दी थी जिसे मैं हर हाल में पीना चाहता था| जब मैं भौजी के ऊपर वाले होंठ को चूसने में व्यस्त था, तब भौजी ने अपने नीचे वाले होंठ से मेरे नीचले होंठ का रसपान शुरू कर दिया था| करीब पाँच मिनट तक हम दोनों एकदूसरे के होंठों को बारी-बारी चूसते रहे और पूरे कमरे में "पुच .....पुच" की धवनि गूंजने लगी थी! बीच-बीच में भौजी और मेरे मुख से "म्म्म्म्म्म...हम्म्म्म " की आवाज भी निकलती थी| मैं अब वो चीज करना चाहता था जिसके लिए मैं बहुत तड़प रहा था, मैंने अपनी जीभ का प्रवेश भौजी के मुख में करा दिया जिसका स्वागत भौजी ने अपने मोतियों से सफ़ेद दाँतों को खोल कर किया| उन्होंने मेरी जीभ को अपने दाँतों से दबा दिया और अपनी जीभ से उसे स्पर्श किया| इस अनुभव ने मेरे शरीर का रोम-रोम खड़ा हो गया, वासना मेरे अंदर हिलोरे मारने लगी थी| भौजी ने मेरी जीभ को धीरे-धीरे चूसना शुरू कर दिया था, गर्दन से नीचे मेरा शरीर हरकत में आ चूका था| मेरे लिंग में तनाव आ चूका था और ऐसा लगता था जैसे वो चीख-चीख के किसी को पुकार रहा हो!


इधर भौजी कभी-कभी मेरी जीभ को अपने दाँतों से काटती तो मेरे मुख से "मम्म" की हलकी सिसकारी छूट जाती| ऊपर भौजी का आक्रमण जारी था, तो नीचे से मेरे हाथ उनके स्तनों को बारी-बारी से गूंदने और रोंदने लगे थे| जैसे ही भौजी ने सिसकारी के लिए अपने मुख को खोलो मैंने अपनी जीभ उनके चंगुल से छुड़ाई और कमान अपने हाथों में ले ली, मैंने ऊपर तथा नीचे दोनों तरफ से हमला करना शुरू कर दिया| सबसे पहले मैंने अपनी जीभ से भौजी के दाँतों को स्पर्श किया, इसका उत्तर देने के लिए जैसे ही भौजी की जीभ मेरे मुख में दाखिल हुई मैंने उनकी जीभ को अपने दाँतों से दबा कर एक जोर दार सुड़का मारा और उसे चूसने लगा| भौजी के हाथ मेरे हाथों को अपने वक्ष पर दबाने को उकसाने लगे, लेकिन मुझे उनके मुख से आ रही दूध की सुगंध इतना मोहित कर रही थी की मैं उन्हें चूमना-चूसना छोड़ ही नहीं रहा था| लग रहा था की मैं आज सारा रसपान कर ही लूँ, पर मेरे मस्तिष्क ने मुझे सूचित किया की बेटा अगर इसी में समय बर्बाद किया तो सुहागरात पूरी नहीं होगी!

मैंने अपने लबों को उनके लबों से जुदा किया और उनकी गोरी-गोरी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा दिए| दाँत गड़ते ही भौजी की आँखें बंद हो गई और वो दर्द से सिंहर उठी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स..... मानु ..... म्म्म्म्म!!!" उनके मुख से अपना नाम सुन मुझे जोश आ गया और मैंने उनकी गर्दन पर अधिक जोर से काट लिया, प्यार की भाषा में इसे "लव बाईट" कहेंगे! अब मैंने उनकी गर्दन को काटना और चूसना शुरू कर दिया था, जितना सुखद एहसास वो मेरे लिए था, उतना ही दर्द भर एहसास वो भौजी के लिए था| मैं उनकी गर्दन को चूमते हुए नीचे आया और उनके वक्ष के पास आके रुक गया| मेरे हाथ अब भी भौजी के स्तनों को मसल रहे थे और भौजी के मुख पर पीड़ा और सुख के मिले-जुले भाव थे| जब उन्होंने देखा की मैं रुक गया हूँ तो उन्होंने आँखें खोली और स्वयं अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगीं| उनके ब्लाउज के बटन खुलने में कुछ समय लगा और ये समय मेरे लिए बड़ा ही उबाऊ था, मैं इतना जोश में था की मुझे प्रतीक्षा करना उबाऊ लगा रहा था| उन कुछ पलों में मैं सोचने लगा की कब भौजी के स्तन इस ब्लाउज की जेल से आजाद होंगे? कब मैं उन्हें छू सकूँगा? कब मैं उन्हें मुँह में भर कर चूसूँगा? मैं नहीं जानता था की भौजी मुझे तरसाने के लिए जानबूझ कर बटन धीमे से खोल रही हैं|


पर जब भौजी ने सभी बटन खोले तो मैं देख के हैरान हो गया की भौजी ने आज ब्रा पहनी थी! अब मेरे मन में एक तीव्र इच्छा ने जन्म लिया, वो ये थी की मैं उनकी ब्रा खुद उतारूँ| जैसे ही भौजी अपने हाथ ब्रा की ओर ले गईं, मैंने भौजी के होटों को तुरंत चुम लिया| अपने लबों में उनके लबों को कैद कर, मैं अपने हाथ उनकी पीठ पर ले गया और भौजी को ब्रा के हुक खोलने से रोक दिया| शायद भौजी मेरी इच्छा समझ गईं और उन्होंने अपने हाथ अब मेरी पीठ पर चलने शुरू कर दिए| उधर मैं अपनी उँगलियों से भौजी की ब्रा के हुकों को महसूस करने लगा| वो गिनती में तीन थे, लेकिन मुझे डर था की कहीं मैं उन्हें तोड़ ना दूँ इसलिए मैं एक-एक कर उनके हुक खोलने लगा| इधर भौजी ने अपने होंठ मेरी पकड़ से छुड़ा लिए थे और अब वो मेरे होंठों को चूस तथा अपनी जीभ से चाट रहीं थी| मैंने एक-एक कर तीनों हुक बड़ी सावधानी से खोल दिए और अपने होठों को भौजी के होंठों से जैसे ही दूर किया तो भौजी की ब्रा उचक के सामने आ गई| मैंने भौजी की ब्रा को ऊपर से स्पर्श किया तो उस का मख्मली एहसास ने मेरी कामवासना को और भड़का दिया!

भौजी ने अभी तक अपनी ब्रा को अपने स्तनों पर दबा रखा था, जैसे की वो मुझसे कुछ छुपाना चाहती हों! तब मुझे एहसास हुआ की दरअसल वो मेरे सुहागरात वाले तोहफे को अच्छी तरह से महसूस करना और कराना चाहती थीं, इसीलिए वो बिलकुल एक नई नवेली दुल्हन जैसा बर्ताव कर रहीं थीं जिसे मैं ब्याह के लाया था| मैंने अपने हाथ उनके वक्ष की ओर बढ़ाये और बड़े प्यार से उनकी ब्रा को पकड़ा, धीरे-धीरे मैंने उसे खींच के उनके बदन से दूर किया| जैसे ही ब्रा उनके बदन से दूर हुई उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं और अपने हाथ से अपने स्तनों को छुपाने की कोशिश करने लगीं| भौजी तो ऊपर से निर्वस्त्र हो चुकी थीं पर मैंने अभी तक कपड़े पहने हुए थे, इसलिए सबसे पहले मैंने अपना सफ़ेद कुरता उतार दिया और उसे नीचे फैंक दिया| अब मैं और भौजी दोनों ऊपर से नग्न अवस्था में थे!


मैंने भौजी के मुख को नज़ाकत से ऊपर उठाया और पाया की भौजी की आँखें अब भी बंद थीं| मैंने आगे बढ़ कर उनकी आँखों पर अपने होंठ रखे और उन्हें खोलने की याचना व्यक्त की| भौजी ने अपनी आँखें खोली और मुझे अपने समक्ष पहली बार बिना कपड़ों के देख उन्होंने अपने स्तनों पर से हाथ हटाया और मुझे कस के अपने आलिंगन में जकड लिया| उनके स्तन आज पहली बार मेरी छाती से स्पर्श हुए तो मेरे बदन में आग लग गई| भौजी के निप्पल कड़े हो चुके थे और वो मेरे छाती में तीर की भाँती गड रहे थे| अब भौजी मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेर रहीं थी और मैं उनकी पीठ पर हाथ फेर रहा था| आज पहली बार मैं उनकी हृदय की धड़कन सुन पा रहा था और वो मेरे हृदय की धड़कन को सुन पा रहीं थी, दोनों दिल एक गति में तो नहीं परन्तु बड़े जोर से धड़क रहे थे| अब ज्यादा समय गवाना व्यर्थ था इसलिए मैंने भौजी को आलिंगन किये हुए ही अपना वजन उनपर डालने लगा ताकि वो लेट जाएँ, अगले ही पल वो लेट गईं और तब उन्होंने मुझे अपनी गिरफ्त से आजाद किया| उनके 36 D साइज के स्तन (मेरा अंदाजा गलत भी हो सकता है|) मुझे मूक आमंत्रण दे रहे थे| मैं भौजी के ऊपर आ गया, भौजी का शरीर ठीक मेरी दोनों टांगों के बीच में था| मैंने सर्वप्रथम शिखर से शुरूरत की, मैंने अपना मुख को ठीक उनके बाएँ निप्पल के आकर से थोड़ा बड़ा खोला और उसे मुख में भर लिया| न मैंने उनके निप्पल को अपने जीभ से छेड़ा और न हीं उसे चूसा, केवल उसे मुँह में भरे ऐसे ही स्थिर रहा| कोई प्रतिक्रिया न होने से भौजी मचलने लगीं और अपने हाथ से मेरे सर को अपने स्तन पर दबाने लगीं| मैं उन्हें और नहीं तड़पना चाहता था इसलिए मैंने उनके निप्पल को अपने होठों से थोड़ा भीँचा, उसके बाद उसे मुख में भर के ऐसे चूसने लगा जैसे की अभी उसमें से दूध निकल जायेगा| भौजी अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकडे अपने बाएँ स्तन पर दबाने लगीं और मैं भी बड़े चाव से उनके निप्पल को चूसने लगा, उन्हें थोड़ा तड़पाने के लिए मैं बीच-बीच में उनके निप्पल को काट भी लेता था| जैसे ही मैं भौजी के बाएँ निप्पल को काटता तो भौजी चिहुक उठती; "अह्ह्हह्ह ....स्स्स्सस्स्स्स!!!" करीब 5 मिनट तक उनके बाएँ निप्पल को चूसने के बाद मैंने उनके निप्पल पर अपने लव बाईट की छाप छोड़ दी, उनका बायाँ स्तन बिलकुल लाल हो चूका था| मैं सरकता हुआ नीच बढ़ने लगा तो भौजी अपने दाएँ स्तन की ओर इशारा करते हुए| बोलीं; "मानु.... इसे भूल गए?" उनकी बात सुन मैं मुस्कुरा दिया और बोला; "इसकी बारी अभी नहीं आई!" मेरी बात सुन भौजी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई!


मैं सरकता हुआ नीचे उनकी नाभि पर पहुँचा और उसके भीतर से मुझे गुलाब जल की महक आने लगी! मैं अपने मुख को जितना खोल सकता था, उतना खोला और उनके नाभि के ठीक ऊपर काट लिया! मेरी इस हरकत से भौजी बुरी तरह मचल उठीं, जैसे की जल बिन मछली तड़पती है| मेरे पूरे दातों ने भौजी की नाभि के इर्द-गिर्द लव बाईट बनाने का काम कर दिया था|

मैं सरकता हुआ थोड़ा नीचे आय तो देखा की मैं भौजी की साडी तो उतारना ही भूल गया! अब मैं समय बर्बाद नहीं करना चाहता था, क्योंकि मुझे पता था की अगर अजय भैया रसिका भाभी के पास सम्भोग करने के लिए पहुँच गए या कहीं चन्दर भैया ने दरवाजा खटखटा दिया तो सत्यानाश हो जायेगा| इसलिए मैंने जल्दी-जल्दी भौजी की साडी खींचना शुरू कर दिया| भौजी मेरी मदद करना चाहती थी परन्तु उस समय मैं बहुत बेसब्र था| मुझे एक तरकीब सूझी, मैंने भौजी की साडी बिलकुल उठा दी और उनके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया तथा एक झटके में पेटीकोट नीचे खींच दिया| साडी खुली तो नहीं पर काफी हद तक ढीली हो गई, अपनी बेसब्री में मैंने उसे खींच-खींच के पूरी तरह से खोल दिया| मैं भौजी की साडी ऐसे खोल रहा था जैसे किसी बच्चे को उसके जन्मदिन पर किसी ने गिफ्ट दिया हो और उस गिफ्ट पर 2 मीटर कागज़ चढ़ा रखा हो, तब वो बच्चा बड़ी बेसब्री के साथ उस कागज़ को फाड़ना शुरू कर देता है, कुछ ऐसी ही हरकत मैंने की थी जिसे देख भौजी खुद को हँसने से रोक नहीं पाई| साडी निकली तो मैंने देखा की भौजी ने आज पैंटी भी पहनी है?! मैंने तो जैसे इस की कभी उम्मीद ही नहीं की थी, मेरा मानना था की भौजी हमेशा बिना पैंटी और ब्रा के रहती होंगी!

खेर सबसे पहले मैंने भौजी की योनि को पैंटी के ऊपर से सूँघा और उसी अवस्था में एक चुम्बन लिया| मुझे लगा नहीं था की पैंटी के ऊपर से मुझे भौजी की योनि की सुगंध आएगी परन्तु मैं गलत था, भौजी की योनि से आ रही मादक महक मुझे मोहित करने लगी थी| मैंने धीरे-धीरे अपनी उँगलियाँ उनकी पैंटी की इलास्टिक में डाली और उसे पकड़ के नीचे खींच दिया तथा उसे भौजी के शरीर से दूर कर दिया| अब मेरे समक्ष भौजी का पूरी तरह से नग्न शरीर था जिसे मैं टकटकी लगाये निहारने लगा था| आज मैंने पहली बार भौजी को इस अवस्था में देखा था और मैं इस दृश्य को अपने मन-मस्तिष्क में बसा लेना चाहता था| पर मेरे टकटकी लगाए रखने से भौजी को शर्म आने लगी और उन्होंने अपने चेहरे को हाथों से छुपा लिया| मैंने कुछ नहीं कहा बस उनके इस शर्माने के कारन मुस्कुरा दिया, क्योंकि मुझे मालुम था की भौजी का हाथ कैसे हटाना है|


मैं नीचे झुका और उनकी योनि पर अपने होंट रख दिए, तथा अपनी जीभ की नोक से उनके भगनासा को एक बार कुरेदा| भौजी मेरी इस प्रतिक्रिया से एकदम उचक गईं; "अह्ह्ह्हह्ह .... मानु…...ससस.सससस!!!!" अब समय था भौजी को तड़पाने का, इसलिए मैं एकदम से रुक गया और उनके चेहरे की ओर देखने लगा| भौजी मेरी शरारत समझ गई ओर उन्होंने अपने मुख से हाथ हटा लिया, उनके चेहरे पर यातना के भाव थे! मानो वो मूक भाषा में कह रही हों की मुझ पर दया करो! मुझे उन पर दया आ गई और मैं पुनः उनकी योनि पर झुक गया और रसपान करना शुरू किया| सर्वप्रथम मैंने अपनी जीभ से भौजी की योनि नापी और जितना हो सकता था, अपनी जीभ को भौजी की योनि में प्रवेश कराता गया| एक बार जीभ अंदर पहुँच गई तब मैंने भौजी की योनि के अंदर अपनी जीभ से उत्पात मचाना शुरू कर दिया| मैं अपनी जीभ को उनकी योनि के भीतर गोल-गोल घुमाने लगा, जैसे की मैं उनकी योनि में खुदाई कर रहा हूँ| भौजी के हाव-भाव एकदम से बदल चुके थे, वो अब छटपटाने लगीं थी और रह-रह के अपनी कमर उठा के पटकने लगीं थी| मैं भी ज्यादा देर तक ये खेल नहीं खेल सका क्योंकि मेरी जीभ की मासपेशी दर्द होने लगी थी| कुछ सेकंड के आराम के बाद, मैंने अपनी जीभ से भौजी के भगनासा को पुनः कुरेदना शुर कर दिया और बीच-बीच में मैं अपनी जीभ पूरी की पूरी उनकी योनि में डाल 4-5 बार गोल घुमा देता, मेरा ऐसा करने से भौजी फिर से छटपटाने लगती| भौजी के लिए मेरी जीभ के प्रहार झेलना मुश्किल था ओर आखिरकार उनकी योनि ने अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया था| वो तरल रह-रह के बहार निकलने लगा था, जैसे ही वो बाहर आता तो मैं किसी भालू की भाँती अपना मुख भौजी की योनि से लाग उनके रस को शहद समझ चाटने लगता| शहद खत्म होने के बाद मैं भौजी की योनि के दोनों कपालों को अपने मुख में भर चूसने लगा और इधर भाभी का छटपटाने से बुरा हाल था, वो कभी अपना सर बार-बार तकिये पे पटकती तो कभी अपने हाथ से मेरे सर को अपनी योनि पे दबाती, मनो कह रही हो की "मानु रुको मत !!!" मुझे भी उनकी योनि चूसने और चाटने में अजब आनंद आने लगा था| मैं कभी उनके भगनासे को अपने मुख में भर लेता और उसे चूसता, चाटता और कभी-कभी तो उसे हलके से काट लेता| जब मेरे दाँत भौजी के भगनासा को स्पर्श होते तो वो सिंहर उठती और कमान की तरह अपने शरीर को अकड़ा लेती| धीरे-धीरे भौजी के शरीर में मच रहे तूफ़ान को भौजी के लिए सम्भालना मुश्किल होता जा रहा था, आख़िरकारउन्होंने बड़ी जोरदार सिसकारी ली; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह....माआआआआआआआआआआआआआ!!!!" उनकी सिसकी सुन

मैं समझ चूका था की भौजी चरम पर पहुँच चुकीं हैं! भौजी का बदन कमान की तरह हवा में उठ गया, उनकी कमर हवा में थी और सर तकिये पर| मैंने भौजी की पूरी योनि अपने मुख में भर ली और जैसे ही भौजी के अंदर का तूफ़ान बहार आया, उन्होंने बिना रोके उसे मेरे मुख के भीतर झोंक दिया| उनके रस की एक-एक बूँद मेरे मुख में समाती चली गई, मैं भी बिना सोचे-समझे उनके मनमोहक रस को पीता चला गया|

भौजी निढाल होकर वापस बिस्तर पे गिर चुकी थी, इधर मुझे खुद पर यकीन नहीं हुआ की केवल दस मिनट में मेरी जीभ ने भौजी का ये हाल कर दिया की वो दो बार स्खलित हो गईं! उस पल मुझे खुद पर बड़ा गर्व हुआ की मैंने पहली बार भौजी की योनि को इस कदर प्यार किया की वो एकदम से निढाल हो गईं! उधर भौजी की सांसें तेज चलने लगी थी या ये कहूँ की वो हाँफने लगीं थी, मैं पीछे होकर अपने पंजों पर बैठा था और उनका योनि रस जो थोड़ा बहुत मेरे होंठों पे लगा था उसे मैंने अपनी जीभ से साफ़ कर रहा था की तभी भौजी ने मुझे इशारे से अपने ऊपर बुलाया| मैं उनके ऊपर चढ़ गया और जैसे ही मेरा मुँह उनके मुँह के पास आया तो उन्होंने अपनी बाहें मेरे गले की इर्द-गिर्द डाली तथा अचानक से मुझे चूम लिया! एक मिनट मेरे होठों को चूस अपनी योनि का स्वाद चख भौजी बोलीं; "मानु...अब और देर मत करो! मेरे इस अधूरे शरीर को पूरा कर दो!!!" भौजी को अब डर लगने लगा की कहीं कोई विघ्न पद गया तो ये मिलान अधूरा रह जायेगा!


मैंने अभी भी पजामा पहन रखा था और भौजी पर झुके होने के कारन मैं पाजामे के नाड़े को खोल नहीं सकता था, मेरी मजबूरी भौजी ने पढ़ ली इसलिए उन्होंने अपने हाथ नीचे ले जाके मेरे पजामे के नाड़े को खोल दिया| मैं पीछे हुआ और चारपाई पर खड़ा हो गया, मेरा पजामा एक दम से फिसल के नीचे गिरा और अब केवल मैं अपने फ्रेंची कच्छे में था| मेरे लिंग का उभार भौजी साफ़ देख सकती थी और सोने पे सुहाग ये की मेरा कच्छा मेरे लिंग के रस से भीग चूका था| मैंने अपने आप को कच्छे की गिरफ्त से आजाद किया तो मेरा लिंग बिलकुल सीधा खड़ा था, उसका तनाव इतना था की उसपे नसें उभर आईं थी| मैं वापस भौजी के ऊपर आया, उनके योनि की दोनों पाटलों को अपने दोनों हाथों के अंगूठे से खोला और अपने लिंग को भौजी की योनि में धीरे-धीरे प्रवेश कराने लगा| जब मेरे लिंग के सुपाड़े ने भौजी की योनि को छुआ तो एक करंट सा मेरे शरीर में दौड़ा, उधर भौजी मुझे अपने ऊपर आने को बुला रहीं थी| वो चाहती थीं की मैं एक ही झटके में अपना पूरा लिंग उनकी योनि में प्रवेश करवा दूँ| मुझे डर था की मेरे एक बार में करने से भौजी को अधिक दर्द होगा, इसलिए मैं सब्र किये हुए बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था| ये भौजी के प्रति मेरा प्यार था जिसने मुझे अब तक थामे रखा था!


मैं धीरे-धीरे भौजी के ऊपर आ गया और मेरा लिंग भौजी की योनि में लग-भग पूरा घुस चूका था| भौजी के मुख पर आनंद और तड़प के मिले-जुले भाव दिख रहे थे| अभी तक मैंने धक्के लगाना शुरू नहीं किया था, मैं अपना स्थान ले चूका था और चाहता था की एक बार भौजी एडजस्ट हो जाएँ तब मैं हमला शुरू करूँ| भौजी ने अपने हाथ मेरी गर्दन के इर्द गिर्द लपेटे और नीचे से उन्होंने अपने पाँव को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेटा| उन्होंने खुद को अब मेरे हवाले छोड़ दिया था! इधर जब मैंने भौजी के मुख पर देखा तो उनके मुख पर दर्द उमड़ आया था| मुझे यकीन नहीं हुआ की भौजी को दर्द हो रहा है?! परन्तु ये समय प्रश्नों का नहीं था और वो भी ऐसे प्रश्न जो शायद भौजी को फिर रुला देते| मैंने उनकी इन प्रतिक्रियाओं को उनका आश्वासन समझा और लय-बध तरीके से धक्के लगाना शुरू किया| भौजी की आँखें बाद हो चली थीं और उनका मुख खुला था जिससे मादक सिसकारियाँ आ रही थीं; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ........ अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ........म्म्म्म्म्म्म्म्म्म ..... अह्ह्ह्ह्ह्न्न ......अम्म्म्म्म .... माआअ!!!" मेरी गति अभी बिलकुल धीरे थी और भौजी की सिसकारियाँ कमरे में गूँजने लगीं थी! मुझे डर सताने लगा था की कहीं भौजी की सिसकारियाँ नेहा को न जगा दें, इसलिए मैंने उनके लबों को अपने लबों की गिरफ्त में ले लिया जिससे उनकी सिसकारियाँ मौन हो गईं| मेरी धीमी गति में भौजी की मुख से सिसकारियाँ फुट पड़ीं थी, यदि मैं गति बढ़ाता तो भौजी शायद चीख पड़ती!

फिर मुझे ये भी अंदेशा था की यदि मैंने गति बढ़ा दी तो मैं ज्यादा देर टिक नहीं पाऊँगा और जल्दी चरम पर पहुँच जाऊँगा| जबकि मेरी इच्छा थी की मैं देर तक भौजी का साथ दे सकूँ! इसलिए जब मेरे अंदर का सैलाब उमड़ने को होता तो मैं एक अल्प विराम लेता और भौजी के जिस्म को बेतहाशा चूमता| जब सैलाब का उफान काम होता तब मैं वापस अपनी धीमी गति से झटके देता रहता| दस मिनट हुए थे, अब भौजी की कमर मेरे हर धक्के का जवाब देने लगी थी और उनका दायाँ स्तन जिसे मैंने प्यार नहीं किया था उसे भी तो प्यार करना बाकी था| इसलिए मैंने एक पल के लिए अल्प विराम लिया और भौजी के दाएँ स्तन को अपने मुँह में भर चूसने लगा| मैंने उनके निप्पल को अपने दाँतों में ले के हल्का सा काटा तो भौजी छटपटाने लगीं, मैं उन्हें और पीड़ा नहीं देना चाहता था इसलिए मैं उनके स्तन को चूस्ता रहा और बीच-बेच में उनके निप्पल को अपने होंठों से दबा देता या उनके निप्पल को अपनी जीभ की नौक से छेड़ देता|

मेरा मन भौजी को पीड़ा देकर खुश हो रहा था, पर मेरी अंतर आत्मा नजाने क्यों मेरे इस विचार को गलत ठहरा रही थी! मेरी अंतर आत्मा ने मेरे इस विचार को वासना का नाम दे दिया था और ये मुझे कटाई गंवारा नहीं था! मेरे लिए तो वासना मतलब जबरदस्ती था जो मैं भौजी के साथ कभी नहीं कर सकता था! पर इस समय मेरी अंतर आत्मा भौजी को ख़ुशी देने से रोक पाने में विफल साबित हुई और मैं पूरे मन से भौजी के दाएँ स्तन को निचोड़ने में लग गया था| भौजी ने अचानक ही अपनी कमर से मेरे लिंग पर झटके मारना शुरू कर दिया| मुझे इसमें बहुत आनंद आ रहा था पर मेरे अंदर का सैलाब फिर से उफान पर था और छलकने के लिए तैयार था! मेरे इस उफान के छलकने का मतलब था भौजी का गर्भवती होना! ये सोचके मैं अपने आपको रोकना चाहता था परन्तु भाभी के तीव्र आक्रमण ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया| जिस्म को मिल रहे आनंद के कारन मैं भौजी को रोकने में असमर्थ था परन्तु मैं ये 'गलती' नहीं करना चाहता था| पिछली बार तो मैं बच गया था क्योंकि हमने सम्भोग खड़े-खड़े ही किया था जिसके कारन मेरी खुशकिस्मती से मेरा वीर्य भौजी के गर्भाशय तक नहीं पहुँचा और उनकी योनि से सीधा बाहर आ गया| परन्तु इस स्थिति में वीर्य सीधा गर्भाशय तक जाता और परिणाम स्वरुप भौजी गर्भवती हो जातीं|


भौजी की टांगें मेरी कमर पर लॉक हो चुकी थीं जिस कारन मैं पीछे नहीं हो सका तो मैंने भौजी से निवेदन किया; "भौजी.... प्लीज रुक जाओ!!! मैं स्खलित होने वाला हूँ!!!" भौजी ने आँखें खोल कर मुझे देखा और उन्हें मेरे चेहरे पर आनंद और चिंता के मिले-जुले भाव नजर आये| पर फिर भी भौजी नहीं रुकीं क्योंकि वो चरम पर लग-भग पहुँच ही गईं थी, इस कारन उनकी योनि मेरे लिंग को निचोड़ने में लगी थी| मुझे ऐसा लग रहा था की कोई दानव भौजी की योनि के भीतर मेरे लंड को चूस रहा हो! मैं भरसक कोशिश कर रहा था की अपने उफान को रोक सकूँ पर भौजी की योनि के आगे मेरे सारे प्रयास विफल साबित हुए| भौजी के समझते देर न लगी की मैं किस जद्दो-जहद से गुजर रहा हूँ इसलिए उन्होंने मेरा डर कम करना चाहा; ""मानु....सससस...आह...हहममम...मत रोको खुद को!"

पर मेरा डर अब मुझ पर हावी होने लगा था; "भौजी अगर मैं आपके भीतर छूटा तो अब गर्भवती हो जाओगे!" मैंने खुद को उनकी पकड़ से छुड़ाने की हलकी सी कोशिश की पर भौजी ने अगले पल जो कहा उसे सुनते ही मैं हक्का-बक्का रह गया; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स .....अह्ह्हह्ह्ह्ह.... मैं यही चाहती हूँ की मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनू!!!" भौजी की बात सुनते ही मेरे दिमाग में एक जबरदस्त विस्फोट हुआ, मेरी अंतर-आत्मा ने मुझे डराना शुरू कर दिया| एक बच्चे का बाप होना वो भी इतनी काम उम्र में? क्या होगा जब ये बात सब के सामने खुलेगी तब? भौजी का क्या हाल करेंगे सब घर वाले? और मुझे क्या सजा मिलेगी? क्या कोई पुलिस केस बनेगा? अगर सच में हम दोनों की शादी करा दी गई तो कैसे सम्भालूँगा मैं भौजी और बच्चों की जिम्मेदारी? इन सभी सवालों के दिमाग में उमड़ने के कारन मेरे अंदर का उफान कुछ थमने लगा| पर इससे पहले की उफान शांत होता और मेरा लिंग सिकुड़ जाता, भौजी की योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया जिसने मेरे लिंग को गर्म-गर्म लावे में नहला दिया, इसके बाद भौजी की योनि ने मेरे लिंग की इर्द-गिर्द अपनी पकड़ और कस ली थी| अब तो ऐसा लग रहा था मानो भौजी के साथ-साथ उनकी योनि भी मेरा रस चाहती हो! भौजी के आये सैलाब ने मेरे सभी सवालों को बहा दिया था और मुझ पर फिर से कामवासना हावी होने लगी थी, पर ऐसा भी नहीं था की मैं भौजी की योनि के भीतर ही स्खलित होना चाहता था| मेरा दिमाग अब भी मुझे इस 'गलती' को करने से बचाये हुए था| अब मैंने भी नीचे से लम्बे-लम्बे धक्के लगाने शुरू किये जिससे भौजी को लगा की मैं उनकी बात मान गया हूँ| कुछ पल पहले ही भौजी स्खलित हुईं थी और ऊपर से मेरे इतने तीव्र धक्कों के कारन भौजी की पकड़ मेरी कमर के ऊपर से ढीली होने लगी| अब मैं किसी भी समय स्खलित होने वाला था, मैंने अपने पूरे शरीर की शक्ति लगाईं और अपने लिंग को भौजी की योनि से बाहर खींच लिया! जैसे ही मैंने अपना लिंग बाहर खींचा की एक जोरदार 'धार' के साथ अपना सारा वीर्य भौजी की योनि के ऊपर गिरा| उनकी पूरी योनि मेरे गाढ़े वीर्य में सन गई थी!!! भौजी निढाल हो चुकी थी और मैं भी पसीने से पस्त उनके बगल में गिर गया| सच में मैंने ऐसे सम्भोग की कभी भी कल्पना नहीं की थी| करीब पाँच मिनट बाद भौजी के शरीर ने थोड़ी हरकत की वरना मैं तो डर ही गया था की उन्हें क्या हो गया? वो उठीं और नीचे पड़ी अपनी पैंटी से अपने ऊपर गिरे वीर्य को साफ़ किया और मेरी ओर मुख कर के लेट गईं|



जारी रहेगा भाग 3 में...
Kyaa shandar likhawat hai bhai bhoji ki adao ne qamal kr diya or chhod dena tha andar hi bhoji ko bhi sukun mil jata❣️??
 

Ssking

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:thank_you: :dost:



:thank_you: :dost: इतने अच्छे विवरण के लिए!



:thank_you: :dost:



:writing:



:thank_you: :dost:
आगे है जुदाई..... :(




:thank_you: :dost: कोशिश करूँगा की आगे से इतनी देर न करूँ!



:thank_you: :dost:
अगर प्रेम सच्चा हो तो लोग बहकने से बच जाते हैं!

मित्रों,

आप सभी से एक प्रश्न है; आप में से किसी ने भी भौजी के इस कथन; "मैं यही चाहती हूँ की मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनू!!!" पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी? मैं तो उम्मीद कर रहा था की आप सब इस बात पर सवाल पूछेंगे?
Han bhoji jo chahti hai wo sahi hai wese galat bhi nhi hai kuchh mere hisab se kuki wo undono ke bich ki ouar ki nishani chati hai jo iss dunya ne aakar jab tk wo zinda rhe unke samne rhe aur yad dilati the phar ke uss pal ko air inki nishani ko
 

Ssking

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आठवाँ अध्याय: जूनून

भाग - 3

अब तक आपने पढ़ा:
अब मैं किसी भी समय स्खलित होने वाला था, मैंने अपने पूरे शरीर की शक्ति लगाईं और अपने लिंग को भौजी की योनि से बाहर खींच लिया! जैसे ही मैंने अपना लिंग बाहर खींचा की एक जोरदार 'धार' के साथ अपना सारा वीर्य भौजी की योनि के ऊपर गिरा| उनकी पूरी योनि मेरे गाढ़े वीर्य में सन गई थी!!! भौजी निढाल हो चुकी थी और मैं भी पसीने से पस्त उनके बगल में गिर गया| सच में मैंने ऐसे सम्भोग की कभी भी कल्पना नहीं की थी| करीब पाँच मिनट बाद भौजी के शरीर ने थोड़ी हरकत की वरना मैं तो डर ही गया था की उन्हें क्या हो गया? वो उठीं और नीचे पड़ी अपनी पैंटी से अपने ऊपर गिरे वीर्य को साफ़ किया और मेरी ओर मुख कर के लेट गईं|

अब आगे....

दोनों जिस्म अब ठन्डे पड़ चुके थे, सैलाब अब शांत होगया था और समय था भौजी के गुस्से का सामना करने का;

भौजी: तुमने मेरी बात क्यों नहीं मानी? (भौजी थोड़ा गुस्से में बोलीं|)

मैं: भौजी बात को समझो! आपने ही कहा था की आपने कई सालों से भैया के साथ सम्भोग नहीं किया है, ऐसे में अगर आप गर्भवती हो जाती तो क्या होता? भैया आपको पता नहीं कितने गंदे शब्दों से अपमानित करते और मैं ये सब बर्दाश्त नहीं कर सकता था| यदि मैं कमाने लायक होता तो मैं आपको कल ही भगा के ले जाता और आपसे शादी कर लेता| पर अभी मैं पढ़ रहा हूँ और मुझे नहीं लगता की मैं आपकी जिम्मेदारी उठा सकूँ|

भाभी: और नेहा?

चूँकि मैं अपनी बात में नेहा का नाम लेना भूल गया था तो भौजी को शक हुआ की क्या मैं नेहा की जिम्मेदारी उठाता?

मैं: भले ही वो भैया की बेटी है पर वो भी मुझे आपके जितना ही प्यारी है, इसलिए उसे भी आपके साथ भगा ले जाता|

भौजी: मानु तुम मुझसे इतना प्यार करते हो, फिर तुम मुझे छोड़ के क्यों जा रहे हो?

ये कहते हुए फिर से उनके आँखों में आँसूँ छलक आये थे|

मैं: भौजी काश मैं इस सब को बदल पाता.... पर .....

मैं कुछ कहना चाहता था पर खुद को रोक लिया और बात का रुख बदलते हुए कहा;

मैं: आपके और मेरे पास याद करने के लिए बहुत से सखद पल हैं|

भौजी मेरी बात को नया रुख देने को पकड़ नहीं पाईं|

भौजी: तुम दुबारा कब आओगे?

मैं: अगले साल|

भाभी: अगले साल? नहीं मानु... मैं तुम्हारे बिना एक साल नहीं रह पाऊँगी| मैं मर जाऊँगी... वादा करो तुम जल्दी आओगे.... अगले महीने ही आओगे!!!

भौजी की बेचैनी और प्यार दोनों इस कदर बाहर आएंगे इसकी उम्मीद मुझे नहीं थी| पर जो वो कह रहीं थीं वो उनका मेरे प्रति प्यार था!

मैं: भौजी मैं अगले महीने कैसे आ सकता हूँ?! तब तो मेरे स्कूल खुलने वाला होगा!

ये सुन कर भौजी के दिल में रही-सही उम्मीद टूट गई और वो बिफरते हुए बोलीं;

भौजी: मानु .....

इतना कहके भौजी सुबकने लगीं मुझसे उनका ये सुबकना नहीं देखा गया और मैंने उन्हें गले लगा लिया| मैं उनकी नंगी पीठ को सहलाने लगा, जब मुझे लगा की भौजी थोड़ा शांत हो गईं हैं तब मैंने उन्हें अपने से अलग किया और उठ के अपने कपडे पहनने चाहे|

भौजी: तुम जा रहे हो?! (भौजी फिर रुनवासी हो कर बोलीं|)

मैं: हाँ भौजी रात बहुत हो चुकी है, मुझे वापस अपने बिस्तर पर जाना होगा नहीं तो अगर किसी ने मुझे बिस्तर पर नहीं देखा तो कहीं हंगामा न खड़ा हो जाए|

भौजी: कल सुबह तो तुम चले ही जाओगे कम से कम कुछ समय के लिए रुक जाओ|

भौजी ने उठ कर बैठते हुए कहा, उस समय भौजी इतनी भावुक थीं की मैं उन्हें मना नहीं कर सका और बिना कपडे पहने वापस भौजी के पास आके बैठ गया| मैं दिवार से सर लगा के बैठा था और भौजी मेरी कमर के पास सर कर के लेटी हुई थीं, उन्होंने एक हाथ से मेरी कमर के इर्द-गिर्द झप्पी डाल रखी थी|

रात के करीब ढाई बज चुके थे, भौजी को नींद आने लगी थी और मैं उनके सर पर हाथ फेर रहा था| अब मुझे भी नींद का झौंका आने लगा था, जब मुझे लगा की भौजी गहरी नींद में हैं तब मैंने धीरे से उनका हाथ अपनी कमर के इर्द-गिर्द से हटाया और चारपाई से उठ खड़ा हुआ| सब से पहले मैंने अपना कुरता पजामा पहना, फिर भौजी की ओर देखा तो वो बिलकुल नग्न अवस्था में थी, मैंने पास ही पड़ी हुई चादर उठाई और उन्हें ओढ़ा दी, उनके माथे को चूमा और चुप चाप बहार चला आया| अपने बिस्तर में घुसते ही मुझे नींद आ गई, जब सुबह आँख खुली तो सुबह के आठ बज रहे थे| मैं हड़बड़ा के उठा और बड़े घर की ओर भागा, वहाँ जा कर देखा तो माँ ओर पिताजी दोनों तैयार हो चुके थे| मुझे देखते ही पिताजी का गुस्सा उबल पड़ा;

पिताजी: उठ गए लाड-साहब? थोड़ा और सो लो? (पिताजी ने मुझे ताना मारा|)

मैं: जी वो....(मैने अपनी सफाई देनी चाहे पर माँ ने बीच में ही बात काट दी|)

माँ: अब जल्दी कर थोड़ी देर में रिक्क्षे वाला आता ही होगा|

मैंने जल्दी-जल्दी ब्रश किया और नहा धो के तैयार हो गया, मैं हैरान था की आखिर भौजी कहाँ है? अब तक तो वो मुझे मिलने आ जाती थीं? मैं सर में तेल लगाने का बहाना करते हुए उनके घर की ओर चल दिया| वहाँ पहुँच के देखा की भौजी चारपाई पर मुँह लटकाये बैठी है;

मैं: भौजी? आप ऐसे मुँह लटकाये क्यों बैठे हो?

मैंने बड़ा ही बेवकूफी भरा सवाल पुछा था, जिसे सुन भौजी को थोड़ा गुस्सा आ गया;

भौजी: तो क्या करूँ?

उनके गुस्से को देख मुझे अपनी बेवकूफी याद आई, मैंने उनका हाथ पकड़ के उन्हें उठाया और उनका चेहरा ऊपर किया|

मैं: आप मुझे रोते हुए विदा करोगे?

मेरी बात सुन भौजी टूट गईं और उन्हें सांत्वना देने के लिए मैंने उन्हें गले लगा लिया|

मैं: बस-बस भौजी... चुप हो जाओ| मैं.....

उनका रोना देख मैंने कुछ कहना चाहा पर फिर खुद को रोक लिया और अपने वाक्य को अधूरा छोड़ दिया|

भौजी: मानु....आय...लब....यू!!!

भौजी ने टूटी-फूटी भाषा में I love you कहा जिसे सुन मुझे थोड़ी हँसी आ गई|

मैं: आई लव यू टू भौजी!!! बस अब चुप हो जाओ... आपको मेरी कसम!

मैंने भौजी को अपनी कसम से बाँध दिया, ये सुनके भौजी ने रोना बंद किया, मैंने उनके आँसू पोछे लेकिन भौजी के चेहरे पर थोड़े आस्चर्य के भाव थे| मैं उनके इस आस्चर्य का कारन जानता था, वो ये सोच रहीं थी की आखिर मुझे उनसे अलग होने का दुःख क्यों नहीं है? जहाँ एक तरफ वो रो-रो कर टूटती जा रहीं हैं वहीं दूसरी तरफ मैं चट्टान सा सख्त कैसे खड़ा हूँ| इन कुछ दिनों में वो ये तो जान गई थीं की मैं उनसे बहुत प्यार करता हूँ, फिर आखिर क्यों मैं उनके वियोग के बारे में सोच कर रो नहीं रहा? कल से ले कर अभी तक आखिर क्यों मेरी आँख से आँसू का एक भी कतरा नहीं गिरा? मैं इस समय उन्हें कोई सफाई नहीं दे सकता था, पर मैं जानता था की कैसे मैं उनके सवालों को मुझे कैसे निवारण करना है| मैंने एकदम से उनके होंठों को चुम लिया, ये चुम्बन उतना गहरा नहीं था और ना ही इसमें जूनून था! मेरे इस चुम्बन ने भी भौजी के सवालों का निवारण नहीं किया था, बल्कि उनके मन में अजीब सी बेचैनी पैदा हो गई थी| भौजी उम्मीद कर रहीं थी की इस चुम्बन में प्यार होना चाहिए, कशिश होनी चाहिए, वो करार होना चाहिए या कम से कम एक तसल्ली तो होती की मैं उनसे प्यार करता हूँ! पर मेरा उद्देश्य केवल और केवल भौजी को सांत्वना देने का था, इस चुम्बन के पश्चात मैंने बात घुमाते हुए उनसे तेल की शीशी माँगी| भौजी बिना कुछ कहे अंदर से तेल की शीशी ले आईं; "लाओ मैं लगा दूँ|" भौजी ने उदास मुँह से कहा, तो मैंने उनकी बात का कोई विरोध नहीं किया, मैंने सोचा की चलो जाने से पहले उनसे तेल लगवा ही लेता इसी बहाने उनके दिल को भी थोड़ी तसल्ली होगी| मैं नीचे बैठ गया और भौजी चारपाई पर बैठ के मेरे सर पर तेल लगाने लगी|

कल रात से भौजी के अंदर मैं अपने प्रति अपार प्रेम देख रहा था और मैं जानता था की ये प्रेम उन्हें आगे चल कर परेशान करेगा|

मैं: भौजी एक वादा करो की आप मुझे याद करके कभी राओगे नहीं?

भौजी मेरी बात सुन के फिर हैरान हो गई पर उन्होंने अपनी हैरानी मुझ पर जाहिर नहीं की और बोलीं;

भौजी: तुम मुझसे मेरी जान माँग लो पर ऐसा नहीं हो सकता की मैं तुम्हें याद ना करूँ और याद करुँगी तो मैं अपने आपको रोने से नहीं रोक सकती|

मैं: प्लीज भौजी... ऐसे मत बोलो| आप खुद सोचो की अगर आप मेरी जगह होते तो आपको कितनी ठेस पहुँचती ये जानके की मैं आपको याद करके रो रहा हूँ|

भौजी शायद मेरी बात समझ गईं इसलिए वो बोलीं;

भौजी: मैं वादा तो नहीं करती पर कोशिश अवश्य करुँगी|

भौजी की बात सुन कर मुझे थोड़ी तसल्ली हुई, अब तक भौजी ने मेरे बालों में तेल लगा दिया था और मैं जानता था की अगर यहाँ रुका तो भौजी का दिल फिर भर आएगा| ऊपर से पिताजी के गुस्से का भी डर था इसलिए मैंने बात खत्म करते हुए कहा;

मैं: ठीक है, अब मैं चलता हूँ जाने का समय हो रहा है|

माने फिर बेवकूफी से भरे शब्दों का चयन किया था! खैर इतना कह के मैं बड़े घर की ओर चल दिया, वहाँ पहुँच मैंने अपने बाल बनाये और समान उठा के बाहर रख दिया| तभी रिक्क्षे वाला भी आ गया, हमें विदा करने के लिए घर के सब लोग आ गए थे यहाँ तक की माधुरी भी आई थी परन्तु मैंने उस पर जरा भी ध्यान नहीं दिया| इधर नेहा ने मेरा हाथ पकड़ लिया था और वो बहुत उदास लग रही थी, मैंने उसके गालों को चूमा और बाय कहा| मैंने ध्यान दिया की भौजी घूंघट काढ़े सर झुका कर खड़ीं हैं और बड़ी मुश्किल से खुद को किसी तरह से संभाले हुए हैं| यदि मैं उनकी जगह होता तो अब तक टूट चूका होता|


खैर माँ, पिताजी और मैंने सबसे हाथ जोड़ कर विदाई ली और हम चल पड़े| सारे रास्ता मैं बस भौजी के बारे में सोचता रहा, कल रात जो भौजी ने कहा था वो सवाल बन कर खड़ा हो गया था| ऐसा सवाल जिसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था? ना ही मुझमें इतनी हिम्मत थी की मैं भौजी से उसका जवाब माँग सकूँ! आखिर ऐसा क्या था की भौजी मेरी तरफ इतना खींची आई की वो दुनिया की उस मर्यादा को भी लाँघना चाहती हैं जो शायद सब कुछ तबाह कर दे? हमारा रिश्ता अभी तक दुनिया की नजरों से छुपा हुआ है, पर वो जो चाह रही थीं वो हम दोनों को सबके सामने बेनक़ाब कर देगा! अभी तक तो सब यही जानते थे की हम दोनों केवल अच्छे दोस्त हैं पर जिस कदम की अपेक्षा भौजी मुझसे कल रात कर रहीं थी वो कदम हम दोनों को सब के सामने प्रेमियों के रूप में खड़ा कर देता, जिसे ये दुनिया या समजा कभी नहीं मानते! मैं उनका प्यार समझ सकता था पर मैं अभी अक्षम था की मैं उन्हें भगा कर ले जाऊँ या उनकी और नेहा की जिम्मेदारी उठा सकूँ! इन्हीं सवालों से घिरा हुआ मैं माँ-पिताजी के साथ वाराणसी पहुँचा| वहाँ पहुँचते ही मैंने अपने इन विचारों को दबा दिया, क्योंकि मैं नहीं चाहता था की मेरी उतरी हुई सूरत देख पिताजी और माँ का दिल दुखे|

हमारी यात्रा का प्रोग्राम केवाल 2 दिन का था और इन दो दिनों में मैंने अच्छे बेटे होने का फ़र्ज़ निभाया| मंदिरों में घूमना, माँ-पिताजी का हाथ पकड़ कर उन्हें सीढ़ियाँ चढ़ाना, भीड़ में धकके-मुक्की में अड़ कर खड़ा होना आदि| पिताजी भी ये देख कर हैरान थे की मैं इतना जिम्मेदार कैसे हो गया, शाम को हम खरीदारी करने निकले तो माँ के लिए मैंने खुद साडी पसंद की| ये सब बदलाव मुझमें भौजी से मिलने के बाद आये थे, ये उनका प्यार था जिसने मुझे जिम्मेदारी उठाने लायक बना दिया था पर अभी मैं इतना परिपक्व नहीं हुआ था की शादी या घर से भागने की जिम्मेदारी उठा सकूँ| रात को जब मैं सोता तो भौजी की मुस्कुराती हुई तस्वीर आँखों के सामने आ जाती और उनके साथ ही नेहा हँसती-खेलती हुई मेरे पास आने को दौड़ती हुई नजर आती! रात में सोने के समय ये कोरी-कल्पना करना मुझे अच्छा लगने लगा था| तीसरे दिन सुबह समय आया वापस जाने का...... दिल्ली नहीं बल्कि गाओं!


दरअसल जब पिताजी ने यात्रा करने का बम फोड़ा था तब मेरी उनसे कुछ बात हुई थी और वो बात कुछ इस प्रकार थी;

मैं: पिताजी मेरी आपसे एक दरख्वास्त है!

मैंने पिताजी के आगे आहात जोड़ते हुए कहा|

पिताजी: बोलो लाड-साहब!

मैं: पिताजी जब आपने और मैंने घूमने का प्रोग्राम बनाया था तब आपका कहना था की पहले हम यात्रा करेंगे और उसके बाद गाँवों जायेंगे| परन्तु मेरे जोर देने पे आपने प्रोग्राम बदल के पहले गाँव आने का रखा| ये मेरी सबसे बड़ी बेवकूफी थी!!! मैंने ये सोचा ही नहीं की बड़के दादा और बड़की अम्मा कभी ऐसी यात्रा पर नहीं गए और ना ही जा पाएंगे, अब अगर हमें ये मौका मिला है तो क्यों न हम उनके लिए कुछ नहीं तो कम से कम प्रसाद ही ला के दे सकते हैं, उनके लिए यही यात्रा होगी!!!

ये मेरा तर्क था, था तो बचकाना पर पता नहीं कैसे उस दिन पिताजी फ़ौरन मान गए|

पिताजी: बात तो तुने पते की कि है, चलो देर से ही सही तुझे अकल तो आई| मैं जा के सबको बता देते हूँ कि हम यात्रा करने के बाद सीधा गाओं आएंगे और कुछ दिन रूक कर ही दिल्ली वापस जायेंगे|

पिताजी उठे ही थे की मैंने अपनी दूसरी चाल चली;

मैं: नहीं पिताजी, आप किसी को ये बात मत बताना| ये बात सिर्फ आपके और मेरे बीच ही रहेगी| मैं माँ को समझा दूँगा, जब हम अचानक लौट के आएंगे तो घर भर के सब लोग खुश हो जायेंगे|

मैंने पिताजी को सरप्राइज के बारे में बताया तो वो हँस पड़े| अपने भैया-भाभी को सरप्राइज देने के नाम पर उन्होंने मेरे प्लान को अनुमति दी|

पिताजी: अरे वाह!!! ठीक है मैं कल के लिए रिक्क्षे वाले को बोल आता हूँ|

इतना कह के पिता जी चले गए, अब मुझे माँ को ये बात समझने का समय नहीं मिला था और यही कारन है की जब माँ ने मुझे और भौजी को बड़े घर के आंगन में देखा था, वो तभी भौजी को सब बता देना चाहती थीं, पर मैंने उन्हें बातों में ऐसा उलझाया की वो कुछ बोल न पाईं| उस दिन भौजी का रोना मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था इसलिए मैंने भी उनसे ये बात कहनी चाही पर उन्हें सरप्राइज देने की ख़ुशी ने मुझे रोक लिया था|

अब मैं बस भौजी के मुख पर वो ख़ुशी देखने को बेकरार था जो उन्हें मुझे दुबारा देख के मिलती| तीसरे दिन तड़के सुबह ही हम वाराणसी से निकल चुके थे, वाराणसी से पहले हम अयोध्या आये और वहाँ से हमें कोई सवारी न मिलने के कारन पिताजी ने टेम्पो किया| दोपहर के दो बजे होंगे और हमारा टेम्पो गाओं पहुँच गया| टेम्पो की गढ़-गढ़ आवाज से सभी परिवारवाले आकर्शित हो देखने आये की कौन आया है? जब टेम्पो से पिताजी निकले तो सभी के चेहरे खिल गए| अजय भैया ने सब को बुला लिया, फिर मैं और माँ निकले और हमें देखते ही बड़की अम्मा ने हँसते हुए पिताजी से पुछा; "मुन्ना आधे रस्ते से लौट आये का?" ये सुन कर पिताजी हँस पड़े और उन्होंने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा; "ई सब हमार लाड-साहब का योजना रही!" और फिर पिताजी ने मेरी बड़ाई करते हुए सब सच बता दिया, इस तरह सभी ने ख़ुशी-ख़ुशी हमारा स्वागत किया| इतने में नेहा भागती हुई और मेरी गोद में चढ़ गई, मैंने उसके दोनों गालों को चूमा| अब मेरी नज़रें भौजी को ढूँढ रहीं थी, मन व्याकुल हो रहा था, मैंने नेहा से धीमी आवाज में पुछा; "नेहा...बेटा आपकी मम्मी कहाँ हैं?" नेहा ने भी बड़ी धीमी आवाज में कहा; "चाचू...मम्मी की तबियत ठीक नहीं है| उन्हें बुखार है, उन्होंने दो दिन से कुछ खाया भी नहीं!" नेहा ने उदास होते हुए कहा| नेहा की बात सुनते ही मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई!!! मैं ने नेहा को गोद से उतारा और एकदम से भौजी के घर की ओर भागा, भीतर जा कर मैंने देखा की भौजी चारपाई पर सो रहीं हैं| मैं उनके सिरहाने अपने घुटने तक कर बैठ गया और उनके माथे पर हाथ रखा, उनका माथा बुखार के कारन तप रहा था| ऊनि ये हालत देख मेरी घबराहट के मारे हालत ख़राब हो गई| मैंने भौजी को पुकारा;

मैं: भौजी.... भौजी.... प्लीज आँखें खोलो?

मेरी आंखें भर आईं थी और आवाज में चिंता और दर्द झलक रहा था| मेरी आवाज सुनते ही भौजी ने अपनी आँखें धीरे-धीरे खोलीं, मुझे अपने सामने देखते ही उनके चेहरे पर ख़ुशी दौड़ गई;

भौजी: मानु....तुम....वापस आगये? मेरे लिए....."

भौजी ने बड़ी ताक़त लगा कर कहा और अपनी बाहें उठा कर मुझे गले लग्न चाहा, मैं फ़ौरन उठा और उनके सीने से लग गया| मेरे गले लगने से मानो भौजी के तड़पते दिल को राहत मिली हो!

मैं: भौजी ये अपना क्या हालत बना रखी है? (मैने रोते हुए कहा)

भौजी: (मेरे आँसू पोछते हुए) कुछ नहीं... ये तो बस थोड़ा सा बुखार है.... और अब तुम आगये हो तो मैं ठीक हो जाऊँगी|

भौजी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया हालाँकि भौजी का भी गाला भर आया था पर मुझे देखने की ख़ुशी ने उन्हें रोने नहीं दिया|

मैं: थोड़ा सा बुखार? आपने दो दिन से कुछ नहीं खाया? सिर्फ मुझे याद कर-कर के आपने ये हाल बना लिया ना? सब मेरी गलती है...ये सब मेरी वजह से हो रहा है....

मैं फिर से रो पड़ा और आगे कुछ कहता पर भौजी ने मुझे रोक दिया;

भौजी: तुम्हारी...कोई गलती नहीं...

पर आज मैं उनकी बात सुनने के मूड मैं नहीं था इसलिए मैंने उनकी बात काट दी और अपनी बात पूरी की; “भौजी मैंने उसदिन आपसे एक बात छुपाई थी, दरअसल उस दिन जब पिताजी ने यात्रा पर जाने की बात की थी तो मैंने पिताजी को गाओं दुबारा आने को मना लिया था| मैं आपको सरप्राइज देना चाहता था, मेरा मतलब मुझे अचानक यहाँ देख आप खुश हो जाते, पर मुझे नहीं पता था की मेरी गैरहाज़री में आप अपना ये हाल बना लोगी|”


भौजी ने मेरी बात सुन कर मुस्कुरा दिया और उनकी मुस्कराहट उनकी ख़ुशी को बयान कर रही थी| पर भौजी का शरीर इतना कमजोर हो गया था की उन्हें उठ के बैठने में भी बहुत ताकत लगानी पड़ रही थी| अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए उन्होंने मुझे अपनी ओर बुलाया और कस के गले लगा लिया| भौजी का हाथ मेरी पीठ पर लॉक हो गए थे, ऐसा लगा जैसे वो मुझे कहीं जाने ही नहीं देना चाहतीं| इधर मुझे भौजी के शरीर की गर्माहट हम दोनों के कपड़ों के ऊपर से महसूस हो रही थी और मैं मन ही मन अपने आप को कोस रहा था की मेरे पागलपन की सजा भौजी ने खुद को दी| उस पल मुझे सच में भौजी की चिंता होने लगी थी, मैं दो दिन के लिए क्या गया की भौजी ने खाना-पीना छोड़ दिया, अगर मैं साल भर के लिए गया होता तो भौजी का क्या हाल होता?

इतने में मुझे क़दमों की आहात सुनाई दी तो मैं भौजी से अलग हुआ और पीछे पलट के देखा तो नेहा गुम-सुम खड़ी हमें देख रही थी, मैंने उसे अपनी ओर बुलाया;

नेहा: चाचू...मम्मी को क्या हो गया है?

मैं: कुछ नहीं बेटा, अब मैं आ गया हूँ ना, आपकी मम्मी अब बिलकुल ठीक हो जाएँगी| आप मेरा एक काम करोगे?

नेहा ने हाँ में गर्दन हिलाई|

मैं: पहले आप अपनी मम्मी के लिए एक थाली में खाना ले आओ, मैं उन्हें अपने हाथ से खिलाऊँगा| फिर आप जा कर दूकान से अपने लिए दस रुपये के चिप्स ले आना|

मेरा आदेश सुन के नेहा भागती हुई गई और खाना ले आई, जब मैंने उसे दस रुपये दिए तो वो लेने से जिझक रही थी और सर झुका कर खड़ी हो गई| मैंने जब भौजी की ओर देखा तो वो उसे घूर रही थी;

मैं: नेहा आप मम्मी की ओर मत देखो, ये लो दस रुपये ओर जाओ चिप्स ले के आओ|

मैंने नेहा को हुक्म देते हुए कहा|

भौजी: मानु... देखो ये बिगड़ जाएगी और फिर मुझसे या किसी और से पैसे माँगेगी| जब नहीं मिलेंगे तब रोयेगी!

भौजी ने चिंता जताते हुए कहा, उनका कहना भी सही था पर मैं उनकी चिंता का निवारण जानता था, मैंने नेहा को अपने पास बुलाया और कहा;

मैं: नेहा... वादा करो की आप कभी भी मम्मी को या किसी को तंग नहीं करोगे और कभी भी मेरे आलावा किसी से पैसे नहीं लोगे?

मैंने इतने प्यार से कहा की नेहा ने एकदम से मेरी बात मान ली और हाँ में गर्दन हिला दी, मैंने उसे पैसे थमाते हुए भेज दिया|

मैं: अब तो आप खुश हो ना?! चलो अब मैं आपको अपने हाथ से भोजन खिलाता हूँ|

भाभी: मैं खा लूँगी, तुम जाओ कपडे बदल लो... नहा धो लो... काफी थक गए होगे|

भौजी ने थोड़ा चिंता जताते हुए कहा|

मैं: नहीं! जब तक आप मेरे हाथ से खाना नहीं खाओगे तब तक मैं यहाँ से हिलने वाला नहीं|

मैंने हक़ जताते हुए कहा जिसे देख भौजी की चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने उन्हें धीरे से उठा कर बिठाया और फिर खाने की थाली उठाई| खाने में अरहर की दाल, चावल साथ में भिन्डी की सब्जी और दो रोटियाँ थीं| मैं अपने हाथ से भौजी को दाल चावल खिलाने लगा| जब भाभी ने अपने हाथ से मुझे रोटी सब्जी खिलानी चाहीं तो मैंने मना कर दिया, इसपर भौजी ने अपना मुँह फुला लिया| उनकी ख़ुशी के लिए मैंने एक कौर खा लिया पर उससे ज्यादा नहीं खाया| अभी मैं भौजी को अपने हाथ से भोजन करा ही रहा था की नेहा भी चिप्स का पैकेट लेके आ गई| वो भी वहीं चारपाई पर बैठ खाने लगी, आज कई दिनों बाद उसका चेहरा फिर खिल गया था|

जब मेरी उँगलियाँ भौजी के लबों को छूती तो मुझे एक अजीब सा आनंद आता, उन्हें खाना खिलाने के दौरान कई बार मेरी उँगलियाँ उनकी जीभ से भी स्पर्श होती तो ये आनंद ख़ुशी में बदल जाता| मेरे चेहरे पर ये ख़ुशी झलक रही थी जिसे देख भौजी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी और उस एक पल के लिए मैं चिंता मुक्त हो गया था| खाना करीब आधा खत्म हो चूका था की माँ मुझे खाने के लिए बुलाने आ गईं| उन्होंने मुझे भौजी को अपने हाथ से खाना खिलाते देख लिया और उनके चेहरे पर एकदम से चिंता के भाव उतपन हो गए;

माँ: क्या हुआ बहु? सब ठीक तो है ना?

माँ ने चिंता जताते हुए पुछा|

भाभी: कुछ नहीं चाची, सब ठीक है|

भौजी ने मुस्कुराते हुए झूठ बोलै ताकि माँ चिंता न करें, पर मैं उनके जवाब से संतुष्ट नहीं था और मुझे अब भौजी को खाना खिलाने की सफाई देनी थी, इसलिए मैंने माँ से उनकी शिकायत की;

मैं: माँ भौजी का शरीर छू के देखो भट्टी की तरह तप रहा है और इनका कहना है की कुछ नहीं हुआ! दो दिन से कुछ खाया भी नहीं तभी तो देखो कितनी कमजोरी आ गई है|

मैं जोश-जोश में कुछ ज्यादा बोल गया था| माँ ने जब भौजी के माथे को छुआ तो उन्हें भौजी के बुखार का एहसास हुआ और वो चिंता जताते हुए बोलीं;

माँ: क्यों बहु, तुमने खाना-पीना क्यों छोड़ दिया?

अब इससे पहले की भौजी कुछ जवाब देतीं, नेहा एकदम से बोल पड़ी;

नेहा: चाचू के लिए!

आगे नेहा और भी बोलती पर भौजी ने उसे आँख दिखा कर डरा दिया जिसे नेहा एकदम से खामोश हो गई| इधर नेहा की बात सुन मेरे कान लाल हो गए, शरीर सुन्न हो गया पर इसमें उस बच्ची की कोई गलती नहीं थी, उसने जो महसूस किया और देखा उसने अबोध बन के सब कह दिया| लेकिन माँ ने नेहा की बात पकड़ ली और बड़े प्रेम के साथ भौजी से कहा; "बहु.. मैं जानती हूँ की तुम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हो, बचपन से ये तुम्हारे साथ खेल है बल्कि इसने तो तुम्हारी गोद में ही बैठ के दूध भी पिया है पर तुम्हारा इससे इतना "मोह" बढ़ाना ठीक नहीं| कल को हम चले जायेंगे तो तुम इसे याद कर-कर के अपना जीना दुर्भर कर लोगी! फिर तुम्हारी छोटी सी बच्ची है, इसका ख्याल रखो...और तुम लाड साहब अपनी भौजी को खाना खिला के खाना खा लो, सुबह से अन्न का एक दाना भी नहीं गया इसके मुँह में|" माँ ने मुझे थोड़ा डाँटते हुए कहा और उठ कर बाहर चली गईं| माँ की बात थी तो कड़वी पर एक दम सच थी, पर माँ नहीं जानती थी की भौजी और मेरे बीच में एक अटूट प्रेम है! ऐसा प्रेम जो सिर्फ सच्चे जीवन साथियों के बीच होता है|


इधर माँ की बातों ने भौजी के ऊपर कुछ गहरा प्रभाव डाला था| थोड़ी देर पहले भौजी का चेहरा सूर्य के समान दमक रहा था और माँ की बात सुनने के बाद उनके मुख पर फिर से चिंता और दुःख के बदल छा गए थे| लेकिन भौजी ने जैसे-तैसे अपने भाव छुपाये और बात बदलते हुए बोलीं;

भौजी: तुमने सुबह से कुछ क्यों नहीं खाया?

मैं: भौजी, दरअसल मैं आपके चेहरे पर वो ख़ुशी के भाव देखने के लिए बैचैन था जो आपको मुझे यहाँ अचानक देख के आते| पर ...

भौजी ने एकदम से मेरी बात काट दी;

भौजी: पर वार कुछ नहीं, मैं खाना खा लूँगी, तुम जा के खाना खाओ!

भौजी ने मुझे हुक्म देते हुए कहा पर मैं आज उनकी एक भी सुनने वाला नहीं था, क्योंकि मैं जानता था की माँ की बात से उन्हें आघात लगा है इसलिए मैं जिद्द कर के बोला;

मैं: नहीं! मेरी वजह से आपने दो दिन खाना नहीं खाया और अब ये मेरी जिम्मेदार है की मैं आपको भोजन अपने हाथ से कराऊँ|

ये सुन कर भौजी ने एकदम से मुँह बना लिया तो मैंने उन्हें प्यार से कहा;

मैं: भौजी वैसे भी अब बस थोड़ा ही खाना बचा है, आप खालो फिर मैं आपको दवाई दूँगा और फिर मैं भोजन करूँगा|

मेरे प्यार से कही बात का असर हुआ और भौजी ने जल्दी-जल्दी खाना खत्म किया| फिर मैंने भौजी को क्रोसिन की एक गोली ला के दी, जब मुझे संतुष्टि हो गई की भौजी अब आराम से यहाँ लेटी रहेंगी तब मैं खाना खाने गया और साथ ही नेहा को भी अपने साथ ले गया| आज नजाने क्यों मुझे नेहा पर बहुत प्यार आ रहा था इसलिए मैंने उसे अपने साथ बिठा कर खाना खिलाया| भोजन के पश्चात मैंने अपने कपडे बदले और वापस भौजी के पास आ गया और वहाँ आ कर देखा तो नेहा सुबक रही थी तथा भौजी का चेहरा भी उदास था| मैं नेहा के सामने घुटने टैक कर बैठ गया और बोला;

मैं: क्या हुआ नेहा? आप रो क्यों रहे हो? किसी ने कुछ कहा आपसे?

मेरी बात सुन नेहा कुछ नहीं बोली बस मेरे गले लग गई और भाभी की ओर इशारा करके उन्हें दोषी करार दे दिया| मैं समझ चूका था की आखिर उसे क्यों डाँट पड़ी है, इसलिए मैंने इस बार भौजी को गुस्से से देखा और बोला;

मैं: आपसे मैं बाद में बात करता हूँ पहले मैं अपनी गुड़िया को सुला दूँ|

इतना कह के मैं नेहा को गोद में उठा के बहार चला आया और उसे चुप करा के थोड़ा घुमाया और फिर सुला दिया| जब वो सो गई तो उसे ले कर मैं भौजी के घर लौटा और नेहा को दूसरी चारपाई पर लिटा दिया| मैं भौजी की बगल में बैठ गया और उन्हें प्यार से डाँटते हुए कहा;

मैं: हाँ तो क्यों डाँटा आपने मेरी गुड़िया को? इसीलिए न की उसने बिना सोचे समझे माँ के सामने सब कह दिया, तो इसमें इस अबोध बच्ची का क्या दोष उसने वही कहा जो उसने देखा!

मैंने नेहा का बचाव करते हुए कहा|

भौजी: उसे अकाल होनी चाहिए की किस के सामने क्या कहना है|

मैं: भौजी वो सिर्फ 4 साल की है! उसे अभी इतनी समझ नहीं है और मैं जानता हूँ आप को गुस्से किसी और बात का है| आप माँ की बात सोच-सोच के चिंतित हो रहे हो पर उसका गुस्सा 'मेरी बेटी' पर क्यों निकाल रहे हो? गुस्सा निकलना है तो मुझ पर निकालो न किसने रोक है आपको|

मैंने भौजी को फिर थोड़ा डाँटा|

भौजी: चाची सही कहती हैं, मुझे अपने आप पर काबू रखना सीखना होगा| पर मैं क्या करूँ, मुझे तुम्हारे साथ बैठ कर बातें करना अच्छा लगता है, तुम्हारा मुझे स्पर्श करना, तुम्हारा बातें करने का ढंग और अभी जब तुमने नेहा को 'अपनी बेटी' कहा तो मैं तुम्हें बता नहीं सकती की मुझे कितनी ख़ुशी मिली| तुम्हारे बिना ये दो दिन मैंने कैसे काटे हैं ये मैं ही जानती हूँ! अगर तुम आज आये नहीं होते तो शायद मैं मर ही जाती!

भौजी रुनवासी हो कर बोलीं|

मैं: भौजी आप ये क्या कह रहे हो? आप क्यों अपनी जान देना चाहते हो? आपको नेहा का जरा भी ख्याल नहीं आया? अगर आपको कुछ भी हो जाता तो नेहा का क्या होता? इस घर में किसी को भी उसकी फ़िक्र नहीं!

इतना कह कर मैं चुप हो गया क्योंकि ये सवाल एक चाचा पूछ रहा था| पर अगले ही पल एक ख़ास रिश्ता सामने आया, जिसे मैं उस वक़्त छह कर भी नाम नहीं दे सकता था!

मैं: मैं नेहा की जिम्मेदारी जरूरर उठाता, कैसे न कैसे कर के माँ और पिताजी को समझा भी लेता और नेहा को अपने पास रखता| उसे अच्छी परवरिश देता पर उसकी इस हालत का जिम्मेदार तो मैं ही होता न? कल को वो बड़ी होती और मुझसे आपके बारे में पूछती तो मैं उसे क्या जवाब देता? मैं... मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाता!

मेरी आवाज में उस वक़्त आत्मविश्वास साफ़ झलक रहा था पर भौजी को कुछ हो जाने के डर के कारन मेरा गाला रुँधा सा हो गया था|

मेरी बातों ने भौजी को भावुक कर दिया था और किसी हद्द तक मैं भी अपने अंदर आये इस बदलाव से चकित था| कैसे मुझ में इतना बदलाव आ गया की मैं नेहा की जिम्मेदारी तक उठाने के लिए तैयार हो गया? पर ये समय इन बातों को सोचने का नहीं था, मुझे अभी भौजी को हँसाना-बुलाना था इसलिए मैंने भौजी को दूसरी बातों में लगा दिया जिससे उनका मन कुछ हल्का हो गया| भौजी से बातें करते-करते दोपहर के करीब साढ़े तीन हुए थे की भौजी ने मुझे बताया की उनके सर दर्द हो रहा है| "मैं आपका सर दबा देता हूँ|" मैंने कहा और मैं भौजी के सिराहने बैठ गया, उनका सर अपनी गोद में रख कर धीरे-धीरे दबाने लगा| भौजी को थोड़ा आराम मिला तो उन्हें नींद आने लगी और कुछ ही देर में भौजी मेरी गोद में ही सर रखे सो गई| यात्रा की थकान अब मुझ पर भी जोर दिखाने लगी और मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला| अभी आँख लगे करीबन घंटा भर ही हुआ होगा की एक कड़क आवाज मेरे कानों में पड़ी;

चन्दर भैया: अरे वाह रे वाह!!! मानु भैया को जरा सा भी चैन नहीं लेने देगी तू? अभी-अभी थके हारे आएं हैं और तूने अपनी तीमारदारी करवानी शुरू कर दी? अरे मैं पूछता हूँ ऐसी कौन सी बिमारी हो गई है तुझे?

भैया की कड़कती हुई आवाज सुन के भौजी बुरी तरह डर गईं, उनके शरीर में उतनी ताकत तो नहीं थी फिर भी जैसे-तैसे वो उठ के बैठीं| मुझे चन्दर भैया की बात सुन कर बहुत गुस्सा आया और मैं भौजी का बचाव करते हुए थोड़ा गुस्से से बोला;

मैं: भैया आप भौजी को क्यों डाँट रहे हो? उनकी तबियत ठीक नहीं है, भुखार से सारा बदन तप रहा है और आप हो की आप उन्हें ही डाँट रहे हो?! भौजी का कोई कसूर नहीं है, उनके सर में दर्द हो रहा था तो मैंने जबरदस्त की कि मैं आपका सर दबा देता हूँ| सर दबाते हुए कब दोनों की आँख लग गई पता ही नहीं चला| मेरी बात का भैया के पास कोई जवाब नहीं था इसलिए वो अपना इतना सा मुँह लेके चले गए| इधर चन्दर भैया के शब्दों ने भौजी के दिल को तार-तार कर दिया था, भौजी किसी तरह लडखडाती हुई उठ खड़ी हुई और बाहर जाने लगीं| मैं: भौजी? आप कहाँ जा रहे हो?

भौजी: बाहर... कुछ काम निपटा लूँ| दो दिन से कोई काम नहीं किया मैंने!

भौजी ने सर झुकाते हुए कहा और वो बाहर जाने को दो कदम चलीं की मैंने भाग कर भौजी का हाथ थाम लिया;

मैं: भौजी आपको मेरी कसम! भैया कि बातों पर ध्यान मत दो, मैं जानता हूँ आपको उनकी बातों से आघात लगा है| पर उनको आपकी कोई फ़िक्र नहीं है, आपको ज़रा सी ख़ुशी मिलती है तो उन्हें जलन होती है| देखो आपका शरीर बहुत कमजोर है और अगर आप फिर भी काम करने कि जिद्द करोगे तो मैं आपको छोड़के चला जाऊँगा!

मैंने भौजी को गीदड़ भभकी दी जिसे सुन भौजी एकदम से बिफर पड़ीं;

भौजी: नहीं मानु... ऐसा मत कहो| मैं वही करुँगी जो तुम कहोगे पर मुझे छोड़के कहीं मत जाना!

मैंने भौजी को सहारा देकर चारपाई तक लाया और उन्हें पुनः लेटा दिया| मैं भी उनके सिरहाने बैठ गया और उनके बालों में हाथ फेरने लगा| मेरा ऐसा करने से भौजी को सुकून मिला और उनकी आँख फिर से लग गई| कुछ ही पलों में मेरी भी आँख लग गई और फिर आँख सीधा डेढ़ घंटे बाद खुली| मैंने घडी में समय देखा तो शाम के पाँच बजे थे| मैं रसोई की ओर गया और भौजी, नेहा और अपने लिए चाय-बिस्कुट ले आया| कुछ ही देर में नेहा उठ गई और मेरी गोद में आने को अपने हाथ खोल दिए| पहले मैंने भौजी को उठा कर चाय पिलाई और फिर नेहा को अपनी गोद में उठा लिया| मैं दोनों को अपनी यात्रा के बारे में बताने लगा, मेरी कोशिश थी की भौजी दुखद बातों के बारे में कम से कम सोचें| रात होने लगी थी और भौजी के घर के आँगन में लगे रात रानी के फूलों कि खुशबु उनके कमरे को महका रही थी, माहोल ररोमांटिक हो रहा था और तभी मुझे एक बात याद आई जो मैं भौजी से पूछना चाहता था;

मैं: भौजी एक बात तो बताओ, मेरे जाने से एक दिन पहले जब मैं रसिका भाभी के साथ रात में खाना खा रहा था तब आपने नेहा को मेरे पीछे क्यों भेज दिया था?

भौजी वो दिन याद करके हँस पड़ीं, ऊनि ये हंसी दो दिन बाद नेहा ने देखि थी और उसके चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गई|

भौजी: हा.. हा... हा... वो दरअसल मुझे डर था की कहीं तुम्हारी भाभी तुम्हें बहला-फुसला न ले और....

आगे भौजी कुछ बोल पातीं उससे पहले मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: क्या? आपको सच में ऐसा लगता है की मैं और वो....

इतना कहा कर मैं रुक गया और देखने लगा की भौजी क्या मुझ पर शक करती हैं? पर उनके चेहरे पर मुझे विश्वास दिखा, ऐसा विश्वास जो दो प्यार करने वालों के दिल में होता है| ये विश्वास देख कर मैंने अपनी बात पूरी की;

मैं: दरअसल अगर मैं उनके पास जा कर इधर उधर कि बातें नहीं करता और उनका मन ना लगाता तो वो रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे सोती| फिर रात को अजय भैया और उनका युद्ध शुरू होता और आपका तौहफा ख़राब हो जाता|

भौजी: ओह्ह !!! मानु सच में तुम्हारे पास हर समस्या का हल है! वैसे तुमने कभी गोर नहीं किया पर माधुरी और तुम्हारी रसिका भाभी तुम्हें भूखे भेड़िये कि तरह घूरते हैं! अगर उन्हें मौका मिल गया तो दोनों तुम्हें नोच खायेंगे... हा..हा....हा...

ये कहते हुए भौजी हँसने लगीं|

मैं: मुझ में ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं?

मैंने हैरान होते हुए पुछा|

भौजी: यही तो तुम नहीं जानते, तुम्हारा ये भोलापन ही सबको लुभाता है|

मैं: अच्छा जी!!!! पर भौजी यकीन मानो मेरी उन दोनों में बिलकुल ही दिलचस्पी नहीं है|

मैंने बिना वजह की सफाई पेश की|

भौजी: मैं जानती हूँ, तुम सिर्फ मुझसे प्यार करते हो|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं, मुझे उनकी बात अधूरी लगी तो मैंने उसमें अपने चार शब्द जोड़ दिए;

मैं: और हमेशा करता रहूँगा!!!

ये सुन कर भौजी एकदम से खामोश हो गईं, उनके चहरे की हँसी गायब हो गई और उनके चेहरे पर मुझे ग्लानि के भाव दिखाई दिए, पर मुझे कुछ पूछने की जर्रूरत नहीं पड़ी क्योंकि भौजी खुद ही बोल पड़ीं;

भौजी: मानु....मुझे माफ़ कर दो!

इतना कहते हुए उन्होंने मेरे आगे हाथ जोड़ दिए, मैंने फ़ौरन उनके हाथ अपने हाथों के बीच दबा दिए और चिंतित होते हुए उनसे पुछा;

मैं: क्या हुआ भौजी?

भौजी: मैंने इन दो दिनों में तुम्हें बहुत गलत समझा! जब तुम गए तो मुझे तुम्हारा व्यवहार बहुत ही अजीब सा लगा, ऐसा लगा जैसे तुम्हें मुझसे जुड़ा होने का ज़रा भी गम नहीं है| मैं कितना रोइ तुम्हारे सामने पर तुमने आँसूँ का एक कटरा नहीं गिराया, हर बार तुम मुझे रोने से रोक देते थे या बात पलट देते थे| एक पल के लिए मुझे लगा की शायद तुम मुझसे प्यार नहीं करते! शायद तुम मेरे साथ सिर्फ जिस्मानी तौर पर थे, आत्मिक तौर पर तुमने खुद को कभी मुझे नहीं सौंपा! मुझे लग रहा था की मैंने तुम्हें अपना सबकुछ सौंप कर गलती कर दी! यही सब सोच-सोच कर मैं रोती रही और अपनी ये हालत बना ली!

भौजी की बातें सुन कर मुझे बहुत बड़ा झटका लगा, क्योंकि ऐसा बिलकुल नहीं था| मैं उनसे बेइंतेहा प्यार करता था पर शायद मैं उन्हें अपने प्यार का ठीक से एहसास नहीं करवा पाया था| इधर भौजी की बात अभी पूरी नहीं हुई थी;

भौजी: पर जब मैंने आज दोपहर को अपने सामने देखा तो मुझे लगा की तुम आधे रस्ते से ही वापस लौट आये, सिर्फ मेरे लिए! फिर तुमने मुझसे सब सच कहा तो मुझे यक़ीन हो गया की तुम मुझसे कितना प्यार करते हो| मुझे माफ़ कर दो मानु....मैंने तुम पर शक़ किया!

इतना कह कर भौजी फुट-फुट कर रोने लगीं| मैंने उठ कर भौजी को अपने आगोश में ले लिया और उनकी पीठ सहलाने लगा ताकि वो चुप हो जाएँ| इसी बीच मेरे दिमाग में उथल-पुथल शुरू हो गई लेकिन मेरी अंतर् आत्मा ने मुझे सही रास्ता दिखाया;

मैं: भौजी...मैं मानता हूँ उस दिन मेरा बर्ताव बहुत अजीब था और उसका कारन मैं आपको बता ही चूका हूँ| सच्ची बात न पता होने के कारन आपने मेरे प्रति अपनी एक नकरात्मक राय बना ली पर अब जब आपको सब सच पता चला तब तो आपकी सोच बदल गई न?

भौजी ने हाँ में गर्दन हिलाई|

मैं: तो बस! अब और नहीं रोना!

मैंने भौजी के आँसू पोछे और तब मैंने नेहा की तरफ देखा जो बिना पलकें झपके हमें देख रही थी| ऐसा लगा जैसे अपने छोटे से दिमाग में ये सब बातें संजो रही हो!
Enotional air bahut hi shandar update
Yha bat aati hai maturity aur immaturity ki kuki bhoji yha badi hai aur mature bhi isliye manu ke liye unko uss leval or jake samjhna abhi kafi mushqil hai pyar bahut karta hai wo or abhi oyar ke liye kuchh kar guzarjane wali himmat filhaal to usme nhi hai ki pyar le liye sabse lad jaye........lovely update❣️
 
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