Bahut hi badhiyaइक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की
भाग -7 (2)
अब तक आपने पढ़ा:
करुणा तो पूरी रात बड़ी चैन से सोई इधर मैं रात भर जागते हुए ढाबों की रोशनियाँ देखता रहा और मन में उठ रहे सवालों का जवाब सोचता रहा| बस ठीक 6 बजे बीकानेर हाउस पहुँची और फिर टैक्सी कर के पहले मैंने करुणा को उसके घर छोड़ा, फिर अंत में मैं अपने घर पहुँचा| दरवाजा माँ ने खोला और उन्हें देखते ही मैं उनके गले लग गया, माँ ने मेरे माथे को चूमा और फिर बैग रख कर मैं नहाने चला गया| नाहा-धो कर जब मैं आया तो माँ ने चाय बना दी थी, पिताजी भी डाइनिंग टेबल पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे| उन्होंने मुझसे जयपुर के बारे में पुछा तो मुझे मजबूरन सुबह-सुबह ऑडिट का झूठ बोलना पड़ा| मैंने ऑडिट की बात को ज्यादा नहीं खींचा और पिताजी से काम के बारे में पूछने लगा, पिताजी ने बताया की उन्होंने एक वकील साहब के जरिये एक नया प्रोजेक्ट उठाया है पर ये प्रोजेक्ट हमें जुलाई-अगस्त में मिलेगा तथा ये प्रोजेक्ट बहुत बड़ा है! मैंने उसी प्रोजेक्ट की जानकारी लेते हुए पिताजी का ध्यान भटकाए रखा ताकि वो फिर से मुझसे ऑडिट के बारे में न मुचने लगे और मुझे फिरसे उनसे झूठ न बोलना पड़े|
अब आगे:
नाश्ता कर के मैं पिताजी के साथ साइट पर पहुँचा और काम का जायजा लिया, माल कम था तो मैं सीधा माल लेने चल दिया| शाम होते ही मैंने दिषु के ऑफिस जाने का बहाना मारा और करुणा से मिलने आ गया| हम दोनों दिल्ली हाट पहुँचे और बाहर बैठ कर बातें करने लगे;
करुणा: मिट्टू हॉस्पिटल में सब कल का बारे में पूछ रा था, मैंने उनको आपके बारे में बताया की मेरा best friend मेरा बहुत help किया|
करुणा की ख़ुशी उसके चेहरे से झलक रही थी|
मैं: आपने अभी resign तो नहीं किया न?
मेरा सवाल सुन कर करुणा कुछ सोच में पड़ गई और सर न में हिला कर जवाब दिया|
मैं: अभी resign मत करना, एक बार joining मिल जाए तब resign कर देना|
करुणा अब भी नहीं समझ पाई थी की मैं उसे resign करने से क्यों मना कर रहा हूँ, मैंने उसे समझाते हुए कहा;
मैं: भगवान न करे पर अगर कोई problem हुई तो कम से कम आपके पास एक जॉब तो हो!
अब जा कर करुणा को मेरी बात समझ में आई और उसे मेरी इस चतुराई पर गर्व होने लगा|
करुणा: मेरा दीदी पुछा ता की हम दोनों रात में कहाँ रुका.....
इतना बोल कर करुणा रुक गई, उसका यूँ बात को अधूरे में छोड़ देना मेरे दिल को बेचैन करने लगा| मैंने आँखें बड़ी करके उसे अपनी बात पूरी करने को कहा;
करुणा: मैंने उनको झूठ बोल दिया की हम दो रूम में रुका ता!
इतना कह करुणा का चेहरा उतर गया और उसने अपना सर शर्म से झुका लिया| अपनी बहन से झूठ बोलने के करुणा को ग्लानि होने लगी थी, इधर मैं हैरान करुणा को देख रहा था| मेरी हैरानी का कारन था की मैं आज पहलीबार एक इंसान को झूठ बोलने पर ग्लानि महसूस करते हुए देख रहा था|
मैं: Dear मैं समझ सकता हूँ की आपको झूठ बोल कर बुरा लग रहा है.....
मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही करुणा ने मेरी बात काट दी;
करुणा: मैंने आज life में first time झूठ बोलते! हमारा religion में हम झूठ बोल रे तो वो झूठ father का आगे confess करना होते, अगर नहीं कर रहे तो ये sin होते!
करुणा की बात सुन मैं मन ही मन बोला की दुनिया की किसी भी धर्म में झूठ बोलना नहीं सिखाते, पर ये तो मनुष्य की मानसिक प्रवित्ति होती है जो वो अपने स्वार्थ के लिए झूठ का सहारा लेता है|
मैं: Dear कम से कम हमने कोई पाप तो नहीं किया न? हमने बस एक रूम share किया था और वो भी सिर्फ पैसे ज्यादा खर्च न हो इसलिए!
मेरी बात सुन कर करुणा को थोड़ा इत्मीनान हुआ|
मैं: Atleast हम एक अच्छे होटल में रुके थे, आपको पता है ऑटो वाला हमें पहले जिस होटल में ले गया था वहाँ होटल के मालिक ने पुछा था की क्या हम दोनों शादी-शुदा हैं?!
शादी की बात सुन कर करुणा के मुख पर एक नटखट मुस्कान आ गई, करुणा ने अधीरता दिखाते हुए पुछा;
करुणा: आपने क्या बोला?
उसके चेहरे पर आई नटखट मुस्कान देख मैं हँस पड़ा और अपनी बात पूरी की;
मैं: मैंने गर्दन न में हिला कर मना किया, मैं उसे बोलने वाला हुआ था की हमें दो अलग-अलग कमरे चाहिए पर जिस माहौल में वो होटल था उसे देख कर मुझे डर लग रहा था|
करुणा को मेरे द्वारा हमारे शादी-शुदा नहीं कहने पर हँसी आई पर जब मैंने उसे अपने डर के बारे में बताया तो उसके चेहरे पर स्वालियाँ निशान नजर आये|
मैं: वो पूरा area मुझे red light area जैसा दिख रहा था, मुझे डर लग रहा था की कहीं हम रात को उस होटल में रुके और police की raid पड़ गई तो हम दोनों बहुत बुरे फँसते! एक डर और भी था की अगर कोई आपके कमरे में घुस आये तो मुझे तो कुछ पता भी नहीं चलता!
मैंने अपनी घबराहट जाहिर की, जिसे सुन करुणा के पसीने छूट गए!
करुणा: इसीलिए मैं आपको बोला ता की आप और मैं एक रूम में रुकते! आप साथ है तो मेरे को safe feel होते!
करुणा ने मुस्कुरा कर गर्व से मेरी तारीफ की| उसकी बातों से साफ़ जाहिर था की वो मुझ पर आँख मूँद कर विश्वास करती है, वहीं मैं उस पर अभी इतना विश्वास नहीं करता था|
करुणा: मिट्टू......मुझे आपको सॉरी बोलना ता!
इतना कहते हुए उसकी आँखें फिर ग्लानि से झुक गईं| उसके चेहरे से ख़ुशी से गायब हुई तो मेरी भी उत्सुकता बढ़ गई की आखिर उसे किस बात की माफ़ि माँगनी है?
मैं: क्या हुआ dear?
मैंने प्यार से पुछा तो करुणा ने नजरें झुकाये हुए ही जवाब दिया;
करुणा: मैं आपको उस दिन डाँटा न? मैं आपको गलत समझा, जबकि आपने मेरा dignity save करने के लिए कितना कुछ किया! मेरा help करने को आप कितना परेशान हुआ!
मैं: अरे यार, कोई बात नहीं! Friendship में ये सब चलता रहता है, गुस्सा तो मुझे भी बहुत आया आप पर! आप इतना बड़ा dumb है की सर्टिफिकेट ओरिजिनल ले कर गया पर उसका फोटोकॉपी ले कर नहीं आया?!
मैंने करुणा को सरकारी काम करने के तरीके से अवगत कराया और उसे समझाया की वो हमेशा documents की 2 फोटोकॉपी करवा कर रखे ताकि कभी भी जर्रूरत हो तो परेशानी न हो|
मैं: आपको पता है मैं जब भी किसी काम से बैंक जाता हूँ या फिर किसी सरकारी ऑफिस जाता हूँ तो पूरी तैयारी कर के जाता हूँ| मेरे पास काम से जुड़ा हर सामान होता है, मेरी IDs, उनकी फोटोकॉपी, चेकबुक, all pin, stapler, कागज़ बाँधने के लिए टैग, सल्लो टेप, fevistick, काला और नीला पेन, एप्लीकेशन लिखने के लिए सफ़ेद कागज़, मेरी passport size फोटो और एक पॉलिथीन! आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ की मेरा काम इन चीजों की वजह से रुका हो| इसलिए आगे से ये सब चीजें साथ ले कर जाना, वरना इस बार तो मैंने कुछ नहीं कहा अगलीबार बहुत डाटूँगा!
मैंने करुणा को थोड़ा डराते हुए कहा| करुणा ने मेरी सारी बातें किसी भोलेभाले बच्चे की तरह सुनी पर उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ा!
जब तक लाल सिंह जी करुणा का appointment letter नहीं भेजते तब तक हमें बस इंतजार करना था| इधर साइट पर काम तेजी से शुरू हो गया था, ऑडिट न मिलने के कारन मैं अब अपना ज्यादातर समय साइट पर रहता था| एक प्रोजेक्ट पूरा हो गया था और दूसरे वाले के लिए माल लेना था, पिताजी ने सेठ जी को एक चेक दिया था जिसपर वो साइन करना भूल गए थे| चेक वापस आया तो सेठ जी ने माल रोक दिया, जब माल साइट पर नहीं पहुँचा तो पिताजी मुझ पर भड़क गए और मुझे 'तफ़तीष' करने के लिए सेठ जी के पास भेजा| मुझे देखते ही सेठ जी ने पहले तो मेरी बड़ी आवभगत की, फिर मैंने जब मुद्दे की बात की तो वो काइयाँ वाली हँसी हँसने लगे| उन्होंने अपनी किताब से पिताजी का चेक निकाल कर मुझे दिखाते हुए बोले;
सेठ जी: मुन्ना 'पइसवा' नहीं आया तो मैं माल कैसे देता?
उनकी वो गन्दी हँसी और माल न देने से मुझे बड़ा गुस्सा आया;
मैं: पिताजी साइन करना भूल गए होंगे, पर इस बात पर आपने माल रोक दिया? आपको पता है आधा दिन होने को आया है और लेबर खाली बैठी है! इतने सालों से पिताजी आपसे माल ले रहे हैं और आपने एक साइन के चलते माल रोक दिया?!
मेरा गुस्सा देख सेठ जी के चेहरे से वो गन्दी हँसी गायब हो गई और वो बोले;
सेठ जी: अरे मुन्ना तुम्हारे इस चेक के चक्कर में मेरा 150/- रुपया कटा अलग फिर मैंने आगे पेमंट करनी थी वो रुकी सो अलग!
मैं: आप फ़ोन कर के कह सकते थे न?
ये कहते हुए मैंने वो चेक जेब में रखा और जेब से 150/- रुपये निकाल कर उनके टेबल पर मारे|
मैं: बाकी के पैसे अभी ला रहा हूँ|
इतना कह कर मैं गुस्से में वहाँ से निकला और नजदीक के बैंक से पैसे निकाल कर लौटा| मैंने एक-एक कर 500 की 2 गड्डी उनके टेबल पर पटकी, पैसे देखते ही उनकी आँखें चमकने लगी, उन्होंने सेकंड नहीं लगाया और अपने लड़के को आवाज मारी;
सेठ जी: अरे साहब का माल पहुँचा कर आ जल्दी से!
मैं गुस्से में पहले ही भुनभुनाया हुआ इसलिए मैंने उनके सामने एकदम से हाथ जोड़ दिए;
मैं: कोई जर्रूरत नहीं है! पुरानी पेमंट के लिए आपने माल रोक कर सारे नाते-रिश्ते खत्म कर दिए! आजतक का सारा हिसाब हो चूका है, अब मैं नगद दे कर माल कहीं और से ले लूँगा!
इतना कह कर मैं चल दिया, सेठ जी ने पीछे से मुझे बड़ा रोका पर मैंने उनकी एक न सुनी| दो घंटे बाद नई जगह से मैं सारा माल ले कर साइट पर पहुँचा तो पिताजी वहाँ मेरी राह देख रहे थे, उन्होंने लेबर से कह कर माल उतरवाया और मुझे पर बड़ी जोर से बरसे;
पिताजी: माल लाने से पहले मुझसे पुछा तूने? सेठ जी को नाराज कर के कहाँ से लाया ये सामान? ये मेरा बिज़नेस है, जैसा मैं चाहूँगा वैसे चलेगा! यहाँ उम्र गुजर गई व्यापार में रिश्ते बनाने में और ये लाड़साहब सब पर पानी फेरने में लगे हुए हैं!
मैंने सर झुका कर पिताजी द्वारा किया गया सारा अपमान सुना और बिना उन्हें कुछ कहे घर लौट आया| जब मैं गलत होता हूँ तो भले ही कोई मुझे 4 गालियाँ दे दे पर मेरे गलत न होने पर मैं किसी की नहीं सुनता था| यही कारन था की मेरा गुस्सा चरम पर पहुँच गया था, घर आ कर मैंने डाइनिंग टेबल पर माल का बिल जोर से पटका और अपने कमरे में घुस कर धड़ाम से दरवाजा बंद किया| माँ जान गईं थीं की मेरा गुस्सा आज फिर कोई बखेड़ा खड़ा करेगा, इसलिए वो मुझे समझाने कमरे में आईं|
माँ: क्या हुआ बेटा?
माँ ने पलंग पर बैठते हुए कहा| मेरा गुस्सा उस वक़्त सातवें आसमान पर था और मैं बिना चिल्लाये कुछ नहीं कह सकता था, मैं माँ पर अपना गुस्सा न निकालूँ इसलिए मैंने जेब से पिताजी का बिना साइन किया हुआ चेक निकाला और माँ की ओर बढ़ाते हुए बोला;
मैं: ये बिना साइन किया हुआ चेक और डाइनिंग टेबल पर रखा बिल पिताजी को दे देना|
मैंने बिना माँ से नजरें मिलाये हुए कहा और बाहर जाने लगा, माँ ने पीछे से मुझे आवाज दे कर रोकना चाहा तो मैंने कहा;
मैं: कुछ जर्रूरी काम से जा रहा हूँ|
बस इतना कह मैं सरसराता हुआ घर से निकल गया| मुझे अब अपना गुस्सा निकालना था और उसका सबसे अच्छा तरीका था दारु पीना! मैंने दिषु को फ़ोन मिलाया तो पता चला की वो दिल्ली से बाहर है और आज रात घर पहुँचेगा, मैंने उसे बिना कुछ कहे फ़ोन रख दिया| मैंने करुणा को फ़ोन किया तो उसने हमेशा की तरह हँसते हुए फ़ोन उठाया, मेरे हेल्लो बोलते ही वो जान गई की मेरा मूड खराब है| जब हम शाम को मिले तो मैंने उसे साफ़ कहा की मुझे पीना है, करुणा ने पलट के कोई कारण नहीं पुछा| हम दोनों एक छोटे से पब में पहुँचे जहाँ Happy Hours चल रहे थे, यहाँ पर एक ड्रिंक पर एक ड्रिंक फ्री थी| मैं व्हिस्की पीना चाहता था पर करुणा ने मना कर दिया, हारकर मैंने बियर मँगाई| अब वहाँ बियर थी किंगफ़िशर स्ट्रांग (लाल वाली) जो मुझे पसंद नहीं थी, पर एक पर एक फ्री के लालच में मैंने ले ली| करुणा ने बियर पीने से मना किया तो मैंने उसके लिए सूप मंगा दिया और अपने लिए सींगदाने वाली मूँगफली मँगाई जो की कम्प्लीमेंटरी थी! पहली बोतल आधी करने के बाद मैंने करुणा को सारी बात बताई, पता नहीं उसने मेरी बात कितनी सुनी या उसे क्या समझ में आई, पर वो मेरी तरफदारी करते हुए बोली;
करुणा: छोड़ दो यार! पापा आपको understand नहीं करते, उनको atleast आपका बात सुनना चाहिए ता!
मैं: Exactly! बिना मेरे कोई गलती किये उन्होंने मुझे लेबर के सामने झाड़ दिया!
मैंने गुस्से से कहा|
करुणा: हम्म्म!
मेरा गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था और मैंने 10 मिनट में बोतल खत्म कर दी| मुझे पीता हुआ देख करुणा को जोश आया और अगली बोतल आते ही उसने उठा ली| मैं यहाँ सिर्फ दो बोतल पीने आया था पर जब करुणा ने वो बोतल उठा ली तो मैंने एक और बोतल मँगवाई| बियर पीते हुए करुणा से बात करते हुए अपना गुस्सा निकालना अच्छा लग रहा था और इस तरह बोतल पर बोतल आती गई| मैंने ध्यान ही नहीं दिया की मैंने अकेले ने 5 बोतल टिका ली! जिंदगी में पहलीबार मैंने आज पीते समय अपने कोटे पर ध्यान नहीं दिया था, नतीजन बियर चढ़ गई सर में और मेरी हालत हो गई खराब| आँखों से धुँधला-धुँधला दिखाई दे रहा था, ठीक से खड़ा भी नहीं जा रहा था! 5 बोतल टिकाने के बाद अब बारी थी बाथरूम जाने की, जब मैं उठ कर खड़ा हुआ तो मेरा सर भन्नाने लगा, मुझसे पैर भी ठीक से नहीं रखे जा रहा था| मुझे ऐसे देख कर करुणा की हालत पतली हो गई;
करुणा: मिट्टू....
उसने घबराते हुए कहा|
मैं: हाँ...I…I’m….fiiiiiiiiiinee!
मैंने शब्दों को खींचते हुए बोला| मैं सहारा लेते हुए बाथरूम पहुँचा, बाथरूम करते समय मुझे मेरी नशे में धुत्त होने का एहसास हुआ| इस हालत में घर जा कर मैं माँ का सामना करने से डर रहा था, पी कर मैं ऑफिस से कई बार घर पहुँचा था पर हरबार मैं अपनी लिमिट में पीता था जिससे माँ को कभी मेरे पीने के बारे में पता नहीं चला, लेकिन जो हालत आज हुई थी उससे ये तो तय था की आज माँ को मेरे पीने के बारे में जर्रूर पता चल जायेगा| मैं मन ही मन मैं खुद को कोस रहा था की क्यों मैंने अपने गुस्से के चलते इतनी पी, पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत! मैंने सोचा की मुझे पिताजी से पहले घर पहुँचना होगा, इसलिए मैंने घडी देखि तो घडी धुँधली दिख रही थी! मैंने आँखों पर बहुत जोर मारा, आँखें कई बार मीची ताकि साफ़-साफ़ नजर आये पर कोई फायदा नहीं हुआ!
मेरा बाथरूम हो चूका था तो ज़िप बंद कर के मैं वाशबेसिन के सामने खड़ा हुआ और 4-5 बार आँखों पर पानी मारा, फिर में घडी देखि तो 8 बजे थे! मैंने फटाफट पानी से मुँह धोया इस उम्मीद में की शायद मुँह धोने से नशा उतर जायेगा, पर ऐसा नहीं हुआ| मैंने वाशबेसिन का नल खोला और नल के नीचे अपना सर रख दिया, ठंडा-ठंडा पानी सर पर पड़ा तो आँखें एकदम से खुल गईं! मैंने जब शीशे में खुद को देखा तो पाया की मेरी आँखें सुर्ख लाल हो गई हैं, सर के सारे बाल पानी से गीले हो कर चिपक गए थे तथा उनसे बह रहा पानी मेरी शर्ट और कालर भीगा रहा था| मेरी दाढ़ी बड़ी थी तो वो भी गीली हो कर पानी से तर हो गई थी और उनसे पानी बहता हुआ कमीज पर सामने की ओर गिर रहा था|
मैंने जेब से पानी पोछने के लिए रुमाल निकाला तो वो पूरा गीला हो गया, मैं सहारा लेते हुए बाहर आया और वेटर से बिल माँगा| जब मैं वापस बैठने लगा तो करुणा ने मुझे बैठने से मना कर दिया;
करुणा: इधर मत बैठ...मैं vomitting किया!
Vomitting सुन कर मैंने सड़ा हुआ सा मुँह बनाया और करुणा से बोला;
मैं: झिलती....नहीं तो.... क्यों पीते... हो!
मेरी कही बात करुणा के पल्ले नहीं पड़ी, मैं उसके सामने रखे काउच पर पसर कर बैठ गया| करुणा उठी और मेरे बगल में बैठ गई| वेटर बिल ले कर आया, अब उसमें लिखा था बहुत छोटा और मेरी तो आँखें भी नहीं खुल रहीं थी| मुझे लग रहा था की मेरा होश धीरे-धीरे खो रहा है तो मैंने वेटर से कहा;
मैं: कार्ड....मशीन....
इतना सुन कर वो मशीन लेने गया| इधर करुणा मेरे कंधे पर सर रख कर लेट गई, मुझ में इतनी ताक़त नहीं थी की मैं उसे सोने के बाद उठाऊँ इसलिए मैंने उसे चेताया;
मैं: Dear ..... I’m….drunk….. अगर आप सो गए तो मैं आपको उठाने की हालत में नहीं हूँ, मैं भी यहीं सो जाऊँगा|
ये कहते हुए मैंने आँख बंद की तो मेरा सर तेजी से घूमने लगा, ये एहसास होते ही मेरे अंदर का बच्चा बाहर आया और मैं अचानक से हँसने लगा|
वहीं करुणा जो मेरी बात सुन कर परेशान हो गई थी वो मेरी अचानक हँसी सुन कर चौंक गई और भोयें सिकोड़ कर मुझे देखने लगी|
करुणा: हँस क्यों रे?
मैं: Dearrrrr .... आँख बंद कर के देखो..... सर घूम रे......मजा आ रे.....!!!
मैं हँसते हुए बोला| ये सुन कर करुणा भोयें सिकोड़ कर मुझे देखने लगी और बोली;
करुणा: पागल हो गए क्या?
पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा और मैं किसी मासूम बच्चे की तरह हँसने लगा| इतने में वेटर आया और उसने मुझसे कार्ड माँगा, मैंने उसे कार्ड तो दे दिया पर मैं पिन नंबर भूल गया! मैंने दिमाग पर थोड़ा जोर डाला तो कुछ-कुछ याद आया, अब वो नंबर keypad पर dial करना था जो मुझसे हो नहीं रहा था! मैं 6 और 9 में confuse हो गया और दो बार गलत नंबर डाला, तीसरी और आखरी बार में सही नंबर डला और तब जा कर बिल pay हुआ| भले ही मैं नशे में था पर इतना तो होश था की मुझे अपना कार्ड संभाल कर रखना है| कार्ड रख कर मुझे अब कैब बुलानी थी ताकि करुणा को घर छोड़कर जल्दी से घर पहुँचूँ| मैंने फ़ोन निकाला पर उसमें से इतनी तेज रौशनी आ रही थी की मेरी आँखें चौंधिया गई;
मैं: बहनचोद!
मेरे मुँह से brightness ज्यादा होने पर गाली निकली जो शायद करुणा ने नहीं सुनी थी| मैंने फ़ोन का menu खोला तो उसमें लिखा कोई भी text पढ़ा नहीं जा रहा था, सब कुछ धुँधला-धुँधला दिख रहा था| मुझे फ़ोन से जद्दोजहद करता देख करुणा बोली;
करुणा: आप अपना फ्रेंड को क्यों नहीं बुलाता?!
उसका दिया हुआ आईडिया अच्छा था, इसलिए मैंने फ़ौरन दिषु को फ़ोन मिलाया और बोला;
मैं: भाई मुझे....चढ़ गई है, तू.....आ के.....मुझे ले कर...जा!
मेरी आवाज सुनते ही दिषु समझ गया की मुझे कितनी चढ़ी हुई है|
दिषु: अबे भोसड़ी के, चूतिया हो गया है क्या? बोला न मैं दिल्ली में नहीं हूँ? तूने पी ही क्यों इतनी?!
अब मुझे याद आया की वो तो यहाँ है ही नहीं, मैंने आगे कुछ नहीं बोला और फ़ोन काट दिया| फ़ोन काटा तो करुणा उम्मीद करने लगी की दिषु हमें लेने आ रहा है, मैंने उसकी उम्मीद तोड़ते हुए कहा;
मैं: वो....दिल्ली...में नहीं....!
अब मैंने फिर से फ़ोन को घूरना शुरू किया ताकि मैं उसमें ola app ढूँढ सकूँ, आँखों से धुँधला दिखाई दे रहा था पर फिर भी मैंने किसी तरह app खोला, app खुला तो सही परन्तु खुलते ही वो अपडेट माँगने लगा!
मैं: मादरचोद! तुझे भी अभी अपडेट चाहिए!
मैं गुस्से से फ़ोन पर चिल्लाया, करुणा ने इस बार मेरी गाली सुन ली और मेरे दाईं बाजू पर घूसा मारा| ‘आऊऊऊ!’ मैं दर्द होने का नाटक करते हुए बच्चे की तरह ड्रामा करने लगा|
खैर app अपडेट हुआ और मैंने फ़ोन को घूर-घूर कर बड़ी मुश्किल से उसमें करुणा के घर की लोकेशन डाली, जैसे ही टैक्सी सर्च की तो 10 सेकंड में कैब मिल गई| मैंने कैब वाले को फ़ोन कर के लोकेशन पूछी, मेरी आवाज सुन कर वो जान गया था की मैं नशे में धुत्त हूँ! हम दोनों उठ कर खड़े हुए तो पता चला की मेरी हालत बहुत खराब है, मुझसे सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था| वहीं करुणा का हाल तो और भी बदत्तर था, उससे एक बोतल बियर भी नहीं झिली जिस कारन उसका सर घूमने लगा था| हम दोनों जैसे-तैसे दरवाजे तक आये तो सामने देखा की सीढ़ियाँ हैं, सीढ़ियाँ देख कर मुझे याद आया की हम तो अभी दूसरी मंजिल पर हैं और यहाँ तो लिफ्ट भी नहीं! मुझे पहले ही धुँधला दिख रहा था उसके ऊपर से सीढ़ियाँ उतरने जैसा खतरनाक काम?! मैंने तुरंत भोले भाले बच्चे जैसी सूरत बनाई और करुणा से बोला;
मैं: Dearrrrr .... मैं सीढ़ी ...नहीं उतरूँगा..... आप मुझे गोदी ले लो न?!
मेरी ये बचकानी बात सुन कर करुणा खिखिलकर हँसने लगी और हँसते हुए बोली;
करुणा: मैं आपको उठा रे तो मेरे को कौन उठाते?
अब ये सुन कर मैं भी हँस पड़ा|
मैं: मैं...नीचे कैसे उतरूँ....?
मैंने करुणा से सवाल पुछा तो वो इसे मेरा बचपना समझ कर हँसे जा रही थी| मैंने कुछ सेकंड सोचा और फिर बोला;
मैं: मैं बैठ-बैठ के उतरूँ?!
ये सुन कर करुणा हँसते हुए बोली;
करुणा: नीचे पहुँचते-पहुँचते साल लग जाते!
अब ये सुन कर मैं हँस पड़ा, हम दोनों बिना किसी चिंता के सीढ़ियों पर खड़े बकचोदी कर रहे थे और हँसे जा रहे थे| इतने में कैब वाले का फ़ोन आया और उसने पुछा की हम कहाँ हैं, मैंने उसे कहा की हम 5 मिनट में आ रहे हैं| अब नीचे उतरना मजबूरी था, करुणा 4 सीढ़ी पहले उतरी और पलट कर मुझे देखने लगी| मैं अपनी आँखें जितनी बड़ी कर सकता था उतनी बड़ी कर के सीढ़ियों को घूर रहा था ताकि मैं ये तो देख सकूँ की पैर कहाँ रखना है?! दिवार का सहारा लेते हुए मैं एक सीढ़ी उतरा, उस एक सीढ़ी उतरने से मुझे आत्मविश्वास हो गया की मैं सीढ़ी उतरने जैसा मुश्किल काम कर सकता हूँ! करुणा को कम नशा हुआ था इसलिए वो ठीक-ठाक सीढ़ी उतर रही थी, मेरी हालत ज्यादा खस्ता थी तो मैं थोड़ा सम्भल-सम्भल कर उतर रहा था| अभी हम एक मंजिल ही नीचे आये थे की मैं इस तरह सम्भल-सम्भल कर नीचे उतरने से बोर हो गया और करुणा से बोला;
मैं: ये सीढ़ी खत्म नहीं हो रे?
ये सुन कर वो हँस पड़ी और मुझे सताने के लिए बोली;
करुणा: अभी तो एक फ्लोर और बाकी है!
अब ये सुन कर मैं छोटे बच्चे की तरह झुंझला गया;
मैं: मजाक मत कर मेरे साथ!
करुणा: नीचे देखो...अभी और सीढ़ियाँ है...!
मैंने रेलिंग पकड़ कर नीचे झाँका, अभी कम से कम 30 सीढ़ियाँ और थीं, उन सीढ़ियों को देख मैंने अपना सर पीट लिया और बोला;
मैं: Next time ध्यान रखना की हम ग्राउंड फ्लोर वाले pub में जाएँ!
ये सुनकर करुणा हँसने लगी| तभी कैब वाले का दुबारा फ़ोन आ गया;
मैं: आ रहा हूँ भाई... राइड स्टार्ट कर दो...!
मैंने चिढ़ते हुए कहा|
5 मिनट की 'मेहनत-मशक्कत' के बाद मैं आखिर नीचे उतर ही आया और नीचे उतर आने की इतनी ख़ुशी की मैंने दोनों हाथ हवा में लहरा दिए, एक बार फिर मेरा बचपना देख करुणा की हँसी छूट गई! मैंने कैब वाले को फ़ोन किया और उससे पुछा की वो कहाँ है तो उसने बोला;
कैब वाला: सर मैंने हाथ ऊपर उठाया हुआ है, आपको मेरा हाथ दिख रहा है?
उसकी बात सुन मैं एकदम से बोला;
मैं: यहाँ बहनचोद सीढ़ियाँ ठीक से नहीं दिख रहीं थीं, आपका हाथ क्या ख़ाक दिखेगा?
ये सुन कैब वाला हँसने लगा| इधर करुणा ने कैब वाले को देख लिया था, पहले उसने दो chewing gum खरीदीं और मेरी बाजू पकड़ कर मुझे सहारा देते हुए कैब तक लाई| हम दोनों बैठे और कैब चल पड़ी, मैं बाईं तरफ बैठा था तथा मेरा बचपना अब भी चालु था| मैं खिड़की से बाहर देखते हुए किसी छोटे बच्चे की तरह खुश हो रहा था, जब कैब U turn लेती तो मैं फ़ौरन आँख बंद कर लेता, आँख बंद कर के कैब के U टर्न लेने में बड़ा मजा आ रहा था और मैं हँसे जा रहा था| मैंने करुणा को भी ऐसा करने को कहा तो वो हँसने लगी, उधर कैब वाला भी मेरा ये बचपना अपने शीशे में से देख कर मुस्कुरा रहा था|
करुणा: मिट्टू...आप न ... बिलकुल cute सा बच्चा है!
ये कहते हुए करुणा ने मेरे गाल पकडे| उसके मुझे cute कहने से मैं किसी बच्चे की तरह शर्माने लगा|
इतने में दिषु का फ़ोन आ गया, उसे चिंता हो रही थी की कहीं मैं पी कर लुढ़क तो नहीं गया?!
मैं: हेल्लो....
मैंने शब्द को खींचते हुए बोला|
दिषु: कहाँ है तू?
मैं: मैं....मैं....कैब में....!
दिषु: शुक्र है! कहाँ पहुँचा?
मैं: मैं.... ये...ये... आश्रम ... शायद!
आश्रम मेरे घर से बिलकुल उलटी तरफ था तो दिषु को चिंता हुई की मैं आखिर जा कहाँ रहा हूँ?
दिषु: अबे तू आश्रम क्या कर रहा है? रास्ता भटक तो नहीं गया?
उसने चिल्लाते हुए पुछा| मैं जवाब देता उसके पहले ही करुणा ने फ़ोन खींच लिया और उससे बात करने लगी;
करुणा: हेल्लो?
एक लड़की की आवाज सुन दिषु सकपका गया, फिर उसे लगा की ये जर्रूर करुणा ही होगी| दोनों वापस बातें करने लगे और मैं आँखें मूंदें कैब के गोल-गोल घूमने का मजा लेने लगा| बात कर के करुणा ने फ़ोन मुझे दिया और बोली;
करुणा: मिट्टू....मिट्टू.... आपका दोस्त कह रे की घर जा कर उसे कॉल करना!
मैंने हाँ में सर हिलाया और फ़ोन ले कर अपनी जेब में रख लिया| करुणा का घर नजदीक आया तो उसने कैब वाले को रास्ता बताना शुरू किया, कैब ठीक उसके घर के सामने रुकी और मैंने कैब तब तक रोके रखी जब तक करुणा अंदर नहीं चली गई| करुणा के अंदर जाने के बाद मैंने कैब वाले को मेरे घर की ओर चलने को कहा, इतने में करुणा का फ़ोन आ गया और वो बोली की मैं घर पहुँच कर उसे फ़ोन कर दूँ|
बियर का नशा कम होने लगा था जिस कारन मुझे होश आने लगा था, घर जाने के नाम से डर लग रहा था क्योंकि घर पर होती माँ और वो मुझे ऐसे देख कर नजाने कितने सवाल पूछती! मैंने खुद को होश में रखने के लिए ड्राइवर से बात शुरू कर दी, आधे घंटे तक मैं उससे बात करता रहा और उसे घर का रास्ता बताते हुए कॉलोनी के गेट तक ला आया| पैसे दे कर जैसे ही मैं उतरा तो लगा की मेरा पाँव सुन्न हो गया है, मैंने दो-तीन बार पाँव जमीन पर पटका और घर की ओर चल पड़ा| जब मैं चला तो नशा फिर सरपर सवार होने लगा, मैं बजाए सीधे चलने के टेढ़ा-मेढ़ा चलने लगा| 100 मीटर का रास्ता ऐसा था मानो कोई भूल भुलैया हो और मैं चल भी किसी साँप की तरह रहा था| घर पहुँचा तो मेरी फटी, क्योंकि दरवाजा माँ ही खोलतीं और मेरी ये हालत देख कर हाय-तौबा मचा देतीं! 'क्या करूँ?...क्या करूँ?' मैं बुदबुदाया और सर खुजलाने लगा| तभी दिमाग में एक बचकाना आईडिया आया, मैंने घंटी बजाई और दरवाजे के साथ चिपक कर खड़ा हो गया| माँ ने जैसे ही दरवाजा खोला मैं सरसराता हुआ उनकी बगल से निकल गया और सीधा अपने कमरे में घुस गया| माँ को कुछ तो महक आ गई होगी और बाकी की रही-सही कसर मेरे इस अजीब बर्ताव ने पूरी कर दी थी| माँ दरवाजा बंद कर के मेरे पीछे-पीछे कमरे में घुसीं, तब तक मैं बाथरूम में घुस गया था|
माँ: क्या हुआ?
माँ ने बाथरूम के बाहर से पुछा| मैं उस वक़्त chewing gum थूक कर ब्रश कर रहा था तो मैं उसी हालत में बोला;
मैं: बाथरूम आई थी जोर से!
मेरी किस्मत कहो या माँ का भरोसा की माँ ने मेरी बात मान ली|
माँ: कहाँ गया था?
माँ ने मेरे पलंग पर बैठते हुए पुछा|
मैं: आ रहा हूँ!
इतना कह कर मैंने ब्रश खत्म किया, और मुँह फेसवाश से धोया| तभी मेरा दिमाग कहने लगा की जिस्म से जो दारु की महक आ रही है उसका क्या? अब अगर deo होता तो मैं लगा लेता पर deo तो बाहर रखा था! मैंने नजर घुमाई तो पाया की सामने पाउडर रखा है, मैंने थोड़ा सा पाउडर अपनी बगलों में और नाम मात्र का पाउडर अपनी गर्दन पर लगाया| अब बस मुझे माँ को ये विश्वास दिलाना था की ये महक इस पाउडर के पसीने में मिल जाने की है न की दारु की! मैं बाहर आया और माँ से कुछ दूरी पर खड़ा हो कर अपना मुँह पोछने लगा|
माँ: कहाँ गया था? और ये महक कैसी है?
माँ ने मुँह बिदकते हुए सवाल दागा| उनका सवाल सुन कर मैंने खुद को सामन्य दिखाते हुए उनसे ही सवाल पूछ लिया;
मैं: कैसी महक?
माँ उठ के खड़ी हुई और मेरे नजदीक आ कर मेरी कमीज सूँघने लगीं|
माँ: तूने शराब पी है?
माँ ने गुस्से से मुझे देखते हुए पुछा|
मैं: मैं और शराब?
मैंने छाती ठोक कर झूठ बोलते हुए उन्हीं से सवाल पुछा| माँ मेरे नजदीक थीं तो उनकी नजर मेरी आँखों पर पड़ी जो लाल हो चुकी थीं;
माँ: तेरी आँखें क्यों लाल हैं? पक्का तूने पी है!
माँ ने गुस्से से कहा| शराब की महक छुपाने के चक्कर में मैं अपनी आँखों के लाल होने की सुध ही नहीं रही!
मैं: त...तबियत खराब हो गई थी!
मैंने खुद को बचाने के लिए एक और झूठ बोला, पर इस झूठ ने मुझे एक कहानी बना कर तैयार करने का जबरदस्त आईडिया दे दिया|
मैं: मैं एक पार्टी के पास गया था माल की बात करने, उनके ऑफिस में AC चालु था और उन्होंने बड़ा तेज परफ्यूम लगा रखा था! परफ्यूम की महक और AC के कारन मेरी छींकें शुरू हो गईं, मैं मीटिंग अधूरी छोड़कर कैब कर के लौट आया और ये जो अजीब महक आप को आ रहे है ये कुछ तो वो जबरदस्त परफ्यूम की है और बाकी जो मैंने पाउडर लगाया था वो छींकें आने से मेरे पसीने से मिल गया|
ये कहते हुए मैंने अपन हाथ उठा कर अपनी बगल उनकी नाक के आगे की| शायद माँ को यक़ीन हो गया था तभी उन्होंने उस महक के बारे में और कुछ नहीं पुछा|
माँ: अब कैसी है तेरी तबियत?
माँ मेरी तबियत की चिंता करते हुए बोलीं|
मैं: थोड़ा आराम है|
माँ: मैं गर्म पानी ला देती हूँ, तू भाँप ले ले!
माँ ने परेशान होते हुए कहा|
मैं: नहीं माँ....थकावट लग रही है.... सो जाता हूँ...!
इतना कह कर मैंने अपने कपडे बदले और लेट गया|
माँ: बेटा खाना तो खा ले?
मैं: अभी भूख नहीं है|
इतना कह मैंने दूसरी ओर करवट ले ली| माँ को लगा की मैं गुस्सा हूँ इसीलिए खाना नहीं खा रहा, ‘थोड़ा आराम कर ले, मैं तुझे बाद में उठाती हूँ’ कह कर माँ चली गईं|
माँ के जाते ही मैं सोचने लगा की मैंने कैसे सफाई से झूठ बोला! कुछ समय पहले मुझे बोलने में दिक्कत हो रही थी और अब मैं एक साँस में, पल भर में बनाई झूठी कहानी माँ को सुना और उन्हें अपनी कहानी पर विश्वास दिलाने में कामयाब हो गया?! क्या इतना बड़ा धोकेबाज हूँ मैं?
नशा मुझ पर जोर मार रहा था इसलिए मैं ये सोचते हुए घोड़े बेच कर सो गया!
कुछ देर बाद पिताजी घर लौटे और मेरे बारे में पुछा, माँ ने उन्हें बताया की मेरी तबियत ठीक नहीं है तथा मैं सो रहा हूँ| माँ ने मेरे गुस्से के बारे में पिताजी से पुछा तो पिताजी ने सारी बात बताई| फिर माँ ने माल का बिल और बिना साइन किया हुआ चेक पिताजी को दिया| पिताजी जान तो गए की उन्होंने बेवजह मुझे झाड़ दिया पर अपनी गलती माँ के सामने माने कैसे? पिताजी ने खाना परोसने को कहा और मुझे जगाने को कहा, माँ मुझे जगाने आईं, उनकी बतेहरी कोशिश पर भी मैं नहीं उठा, तो माँ ने जैसे-तैसे बात संभाली और पिताजी से मेरे लिए झूठ बोलीं की मैं बाद में खाऊँगा| अगर वो सच बोलती तो आज पिताजी की मार से मुझे कोई नहीं बचा सकता था, क्योंकि वो मुझे देखते ही समझ जाते की मैं पी कर टुन हूँ!
पिताजी ने खाना खाया और माँ से कहा की मुझे भी खिला दें, इतना कह वो अपने कमरे में चले गए| इधर माँ मुझे पुनः जगाने आईं, उन्होंने इस बार मुझे जोर से झिंझोड़ा जिससे मेरी नींद कुछ खुली पर मैं कुनमुनाते हुए बोला;
मैं: भूख...नहीं....सुबह...खाऊँगा....!
इतना कह मैं फिर से सो गया| माँ उठीं और कुछ देर तक बाहर बैठी टीवी देखती रहीं जिससे पिताजी को लगा की माँ और मैंने खाना खा लिया है|
इधर रात के 3 बजे मेरी नींद एकदम से खुली क्योंकि मेरा जी मचल रहा था, ऐसा लग रहा था की अभी उलटी होगी! मैं तुरंत बाथरूम में घुसा पर शुक्र है की कोई उलटी नहीं हुई, मुँह धो कर मैं बाहर आया और पलंग पर पीठ टिका कर बैठ गया| मेरी नींद उचाट हो गई थी और अब दिमाग में बस ग्लानि के विचार भरने लगे थे!
जारी रहेगा भाग 7(3) में...