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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Ssking

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:reading: :reading::reading:
नौवाँ अध्याय: परीक्षा


रात के खाने का समय हो रहा था, इसलिए मैं रसोई से भौजी और अपने लिए खाना ले आया| मैं जानबूझकर दो थालियां ले कर आया था ताकि माँ ये देख लें और उन्हें संतुष्टि रहे की भौजी और मैं उनकी कही बात को अपने पल्ले बाँध चुके हैं| भौजी ने भी जब दो थाली देखि तो वो कुछ नहीं बोलीं, बल्कि मुस्कुराते हुए उन्होंने एक थाली मुझसे ले ली| इस बार भौजी ने अपने हाथ से खाना खाया और मुझे लगा की अब उनके सेहत में सुधार आ रहा होगा और ये देख कर मैं सबसे ज्यादा खुश था| नेहा मेरे बगल में बैठी थी और मैं ही उसे खाना खिला रहा था पर वो थोड़ा डरी- डरी सी लग रही थी| जब हमारा खाना हो गया तो मैंने सोचा की उसका डर थोड़ा कम किया जाए|

मैं: नेहा...बेटा मेरे पास आओ| आप मम्मी से घबरा क्यों रहे हो?

नेहा ने एक अच्छे बच्चे की तरह मेरी बात सुनी पर अपनी घबराहट का कोई कारन नहीं दिया बल्कि अपनी मम्मी से नजरें चुरा के मेरे गले लग गई| नेहा का मेरे प्रति प्यार देख भौजी का दिल पसीज गया और उन्होंने नेहा को कई बार आवाज दे कर अपने पास बुलाया, पर उनके बार-बार बुलाने पर भी नेहा डर के मारे उनके पास नहीं जा रही थी, बस मेरे से चिपकी हुई थी| मैं भौजी की आँखों में प्रायश्चित देख पा रहा था इसलिए मैंने ही नेहा से बात शुरू की;

मैं: बेटा अच्छा मेरी बात सुनो, मम्मी ने आपको गलती से डाँटा था| देखो अब वो माफ़ी भी माँग रहीं हैं.... देखो तो एक बार|

ये सुनते ही भौजी ने तुरंत अपने कान पकडे...पर नेहा उनकी ओर देखने से भी कतरा रही थी|

भौजी: अच्छा बेटा लो मैं उठक-बैठक करती हूँ|

भौजी चारपाई से उठने लगीं तभी मैंने कहा;

मैं: नेहा.. देखो आपकी मम्मी अभी कितना कमजोर हैं फिर भी अपनी बेटी कि ख़ुशी के लिए उठक-बैठक करने के लिए तैयार हैं| आप यही चाहते हो???

नेहा थी तो छोटी पर इतना तो समझती थी कि उसकी मम्मी कि तबियत अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुई है और ऐसी हालत में वो उठक-बैठक नहीं कर सकती| इसीलिए उसने एकदम से भौजी की ओर देखा| अब समय था नेहा को प्यार से समझाने का;

मैं: बेटा अगर मैं आपको कभी डाँट दूँगा तो आप मुझसे भी बात नहीं करोगे?

मेरा सवाल सुन नेहा एकदम से मेरी तरफ देखने लगी मानो वो ये कहना चाहती हो की मैं उसे कभी डाँट ही नहीं सकता| पर शायद उसमें इतना कहने की हिम्मत नहीं थी इसलिए उसने शर्म से ना में सर हिलाया|

मैं: चलो अब अपनी मम्मी को माफ़ कर दो, आगे से वो आपको कभी नहीं डांटेंगी| अगर इन्होने कभी आपको डाँटा तो मुझे बताना मैं इनको डाँटूंगा... ठीक है?

मेरी भौजी को डाँटने की बात सुन नेहा हँस पड़ी और उसे इत्मीनान हो गया की आगे से अगर भौजी उसे डाँटे तो उसे मुझसे शिकायत करनी है! खैर नेहा भौजी की गोद में गई और भौजी उसे लाड-दुलार करने लगीं| उसके माथे और गालों को चूमने लगीं, तब जा के कहीं नेहा मानी| छोटे बच्चों को मानना आसान काम नहीं!!!


तकरीबन आठ बजे होंगे, मैंने भौजी को क्रोसिन की गोली दी, उनका माथा स्पर्श किया तो वो दोपहर जैसा तप नहीं रहा था लेकिन बुखार अवश्य था| मुझे एक चिंता हो रही थी कि रात में भौजी को अगर बाथरूम जाना होगा तो वो कैसे जाएँगी? बिना सहारे अगर वो गिर पड़ीं तो? मैं उनके पास ही सोना चाहता था ताकि जर्रूरत पड़ने पर उन्हें बाथरूम तक ले जा सकूँ परन्तु मेरा ऐसा करना सब कि आँखों में खटकता| पर इसका इलाज भी मेरे पास था, मैंने भौजी से जिद्द कि की जब तक उन्हें नींद नहीं आ जाती मैं वहीं बैठूंगा| जब की मेरा प्लान था की आज रात जाग के भौजी की पहरेदारी करना, ताकि जब भी भौजी को जरुरत पड़े मैं उनकी देख-भाल कर सकूँ|

भौजी को लिटा के मैं पास पड़ी चारपाई पर बैठ गया, नेहा भी तुरंत मेरी गोद में सर रख कर लेट गई| मैंने नेहा को एक प्यारी सी कहानी सुनाई जिसे सुनते हुए नेहा सो गई, पर भौजी को अभी तक नींद नहीं आई थी;

मैं: क्या हुआ भौजी नींद नहीं आ रही?

भाभी: हाँ

मैं: रुको मुझे पता है की आपको नींद कैसे आएगी|

मैं धीरे से उठा, नेहा का सर उठा के तकिये पर रखा और भौजी के माथे पर झुक के उनके माथे को चूमा| जैसे ही मैंने उनके माथे को चूमा भौजी ने अपनी आँखें बंद कर लीं| एक पल के लिए तो मन किया की भौजी के गुलाबी होंठो को चुम लूँ पर ऐसा करना उस समय मुझे उचित नहीं लगा| मैं वापस अपनी जगह बैठ गया और नेहा का सर अपने गोद में रख लिया| पर बैठे-बैठे मुझे भी नींद सताने लगी थी, भौजी को नींद आ चुकी थी और आज मैं पहली बार उन्हें सोते हुए देख रहा था| उनके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान और शान्ति के भाव थे, उन्हें इस तरह सोता हुआ देख के मन बहुत प्रसन्न हो रहा था|


करीब दस बजे होंगे की अजय भैया मुझे ढूँढ़ते हुए अन्दर आये, मैंने जानबुझ कर दरवाजा खुला छोड़ा था ताकि किसी को कोई संदेह न हो| जैसे ही मैंने भैया को देखा मैंने फ़ौरन अपने मुख पर ऊँगली रख के चुप रहने का इशारा किया| वो मेरा इशारा समझ गए और धीरे से मेरे पास आकर मेरे कान में खुसफुसाये;

अजय भैया: मानु भैया हियाँ काहे बइठे हो? चलो चल के पाहडू (लेटो)|

मैं: भैया भौजी की तबियत ठीक नहीं है, उनको बुखार अभी भी है! शरीर कमजोर है और अगर रात में उन्हें किसी चीज की जरुरत होगी तो वो किसे कहेंगी? इसलिए मैं आजरात पहरेदारी पर हूँ!!!

मैंने थोड़ा मजाक किया ताकि वो कुछ गलत न सोचें|

अजय भैया: हम बड़के भैया से कहे देइत है...

आगे अजय भैया कुछ कहते मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: भैया आज दोपहर को ही भैया भौजी पर भड़क उठे थे, अगर रात में भौजी ने उन्हें उठाया तो वो आग बबूला हो कर उनको और डांटेंगे|

अजय भैया: तोहार भाभी हियाँ सो जाई!

अजय भैया ने एक और रास्ता दिखाया पर मैंने उसका भी काट सोच लिया था|

मैं: नहीं भैया वो भी दिन भर के काम से थकी होंगी, आप चिंता मत करो मुझे वैसे भी नींद नहीं आ रही| (मैंने उनसे झूठ बोला|) आप सो जाओ|

साफ़ था की मैं ही आज जाग कर भौजी का ख्याल रखना चाहता था, मेरे अलावा मुझे किसी पर विश्वास नहीं था| खैर किसी तरह अजय भैया को समझा-बुझा के मैंने उन्हें वापस भेजा और कमरे की रौशनी बुझाई| शुक्र था की भौजी जागी नहीं थी वरना वो मुझे जगा हुआ देख के मुझ पर भड़क जातीं| समय धीरे-धीरे बीत रहा था, मैं चारपाई पर बैठा ऊँघ रहा था और बीच-बीच में झपकी ले लेता पर जब भी भौजी करवट लेतीं तो चारपाई की आवाज से मैं जाग जाता| अपनी तसल्ली के लिए उठ कर उन्हें देखता की वो ठीक तो हैं? फिर वापस आ कर बैठ जाता, कुछ देर में फिर वही नींद का झौंका आता और मैं एक झपकी ले लेता|


रात के डेढ़ बजे, मुझे फिर से नींद का झोंक आ रहा था की तभी मुझे हलचल होती हुई महसूस हुई| आंगन में चाँद को प्रकाश था और मैंने देखा की भौजी काँप रही हैं, ये देख मैं तुरंत उनके पास लपका;

मैं: क्या हुआ भौजी?

मुझे वहाँ देख भौजी एकदम से चौंक गईं|

भौजी: मानु…तुम यहाँ क्या कर रहे हो? सोये नहीं अभी तक?

मैं: मुझे लगा की आप को शायद किसी चीज की जरूररत पड़े इसलिए मैं यहीं बैठा था|

ये सुन कर और भी धक्का लगा की मैं उनकी वजह से अभी तक जाग रहा था;

भौजी: तुम तब से यहीं बैठे हो? हे भगवान!!! जाओ जा के सो जाओ...

भौजी ने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा|

मैं: मेरी बात छोडो, आपको शरीर काँप क्यों रहा है?

इतना कहते हुए मैंने उनका हाथ छुआ तो मैं दंग रह गया! उनका शरीर आग की तरह जल रहा था, उन्हें फिर से बुखार चढ़ गया था| ये देख मेरी हालत ख़राब हो गई;

मैं: भौजी आपको फिर से बुखार चढ़ गया है! रुको मैं आपके लिए चादर लता हूँ|

मैंने परेशान होते हुए कहा, मैंने फ़ौरन पास पड़ी एक साफ़ चादर उठाई और भौजी को ओढ़ा दी, लेकिन उनका शरीर अब भी काँप रहा था! मैं फ़ौरन बाहर गया और अपनी चारपाई पर बिछी हुई चादरें भी उठा लाया और सब भौजी को ओढ़ा दी| तभी मुझे याद आया की भौजी को क्रोसिन दिए करीबन पाँच घंटे हो गए हैं और अब मुझे उन्हें दूसरा डोज दे देना चाहिए| मैं बड़े घर की ओर भागा पर वहाँ ताला लगा हुआ था, मैं दौड़ता हुआ बड़की अम्मा के पास आया और उन्हें जगाया;

"अम्मा...भौजी को बुखार चढ़ गया है...उनका बदन भट्टी की तरह तप रहा है| आप मुझे बड़े घर की चाबी दे दो मैं उन्हें क्रोसिन की गोली खिला देता हूँ तो भुखार काबू में आ जाए|" मेरी बात सुन बड़की अम्मा जल्दी से उठीं और मुझे चाबी दी, मैं बड़े घर की ओर भागा और जल्दी से क्रोसिन ले के भौजी के पास आया| अम्मा भौजी के सिरहाने बैठीं उनके बालों में हाथ फेर रहीं थी| मैंने भौजी को सहारा दे के उठाया और उन्हें गोली खिलाई| भौजी के शरीर में बिलकुल जान नहीं लग रही थी इसलिए वो फिर से लेट गईं, उनका शरीर अब भी थर-थरा रहा था| उन्हें ऐसे देख डर के मारे मेरी हालत खराब थी, मन में बार-बार बुरे ख़याल आ रहे थे| मुझे डरा हुआ देख अम्मा ने मुझे जा के सोने के लिए कहा;

अम्मा: मुन्ना तुम जा की सोइ जाओ......

पर मैंने एकदम से उनकी बात काट दी|

मैं: नहीं अम्मा... मुझे नींद नहीं आ रही, आप सो जाओ मैं यहीं बैठता हूँ|

अम्मा मेरी चिंता समझती थीं इसलिए वो बोलीं;

अम्मा: हम जानित है तुम आपन भौजी को बहुत मोहात हो, पर घबड़ाये क कौनों जर्रूरत नाहीं है! हम हियाँ रुकित है, तुम जा कर तनिक अपनी पीठ सीधी कर लिओ!

पर मैं कहाँ मानने वाला था, मेरी नजरों के सामने तो मेरा प्यार बुखार में जल रहा था और उसे छोड़ कर मैं कैसे सोता?!

मैं: अम्मा आप सो जाओ .. मेरी नींद तो उड़ गई| अगर जरूररत पड़ी तो मैं आपको उठा दूँगा|

मैं अपनी जिद्द पर अड़ा था इसलिए मैंने बहुत मुश्किल से अम्मा को वापस सोने के लिए भेज ही दिया| अम्मा के जाने के बाद मैंने भौजी को देखा तो वो अब भी कंप-कंपा रही थी| मैं अपने प्यार को इस कदर तड़पते हुए नहीं देख सकता था, पर उस एक पल के लिए मैं खुद को बेबस महसूस करने लगा था| तभी मुझे एक बात सूझी की क्यों न मैं भौजी को अपने शरीर से गर्मी दूँ|


जब मैं माँ के पेट में था तो पिताजी की लापरवाही के कारन माँ ने उनकी गैरहाजरी में नमक और चावल का सेवन किया जिस कारन मेरे जन्म के समय मैं बाकी बच्चों के मुक़ाबले बड़ा कमजोर पैदा हुआ था, मेरे जिस्म का तापमान काफी बढ़ा हुआ था और माँ-पिताजी की रक्तचाप की बिमारी मुझे अनुवांशिक तौर पर मिली| अब समय था माँ द्वारा की गई उसी लापरवाही का सही उपयोग करना!

चूँकि भौजी की कंप-कँपी बंद नहीं हुई थी तो मुझे अपने शरीर से भौजी के शरीर को गर्मी देना ठीक लगा| मैंने ज्यादा देर न करते हुए अपना कुरता उतार और भौजी की बगल में लेट गया| मैंने भौजी की ओर करवट ली और अपना बायाँ हाथ सीधा फैला दिया| भौजी ने मेरे बायेँ हाथ को अपना तकिया समझ उस पर अपना सर रख दिया| उनका बायाँ हाथ मेरी बगल में आ गया था और मैंने भौजी को अपने आगोश में ले लिया| मैंने एकदम से भौजी को कस के अपने जिस्म से चिपका लिया| बाहर से उनके शरीर का तापमान बहुत अधिक लग रहा था, पर मेरे जिस्म के मुक़ाबले वो कम था| मेरे और भौजी के जिस्म की मिली-जुली तपिश से मुझे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने मुझे एक दम गर्म सॉना में लिटा दिया हो| मैंने भौजी की पीठ सहलानी शुरू कर दी थी, ताकि भौजी चैन सो जाएँ| पर रह-रह कर मुझे भौजी की चिंता हो रही थी, मैं कामना कर रहा था की ये अँधेरी काली रात जल्दी ढल जाए और सुबह होते ही मैं भौजी को डॉक्टर के ले जाऊँ, पर ये रात थी की खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी!



इधर अंदर ही अंदर भौजी का जिस्म बुखार से लड़ने लगा था, मानो मेरे उनके साथ लेटने से उनका मनोबल बढ़ गया हो! करीबन एक घंटा बीता होगा और मुझे महसूस हुआ की भौजी की कंप-कँपी बंद हो चुकी थी, मैंने उनका माथा छू कर देखा तो पाया की उनके शरीर का तापमान भी कम है| मेरे दिमाग ने कहा की क्रोसिन ने अपना असर दिखा दिया है और अब मेरा उनके साथ यूँ लेटना सही नहीं है, इसलिए मैं धीरे से भौजी से अलग हुआ और अपना कुरता वापस पहन के नेहा की चारपाई पर बैठ गया| घडी देखि तो सुबह के साढ़े तीन बजे थे, मैं उठा और अपना मुँह धोया, नींद अब मुझ पर बहुत जोर से हावी होने लगी थे| आजतक कभी ऐसे नहीं हुआ था की मुझे किसी भी वजह से सारी रात जागना पड़े! जब मैं मुँह धो कर वापस आया तो देखा भौजी उठ के बैठी हुई थीं,

मैं: भौजी अब कैसी तबियत है आपकी?

भौजी: अब कुछ आराम है..मुझे....प्यास लगी है!

मैंने पास रखे पानी के लोटे से उन्हें अपने हाथ से पानी पिलाया| पानी पीने के बाद भौजी चिंता जताते हुए बोलीं;

भौजी: तुम मेरी वजह से सारी रात नहीं सोये!

मैं: भौजी आप ये सब बातें छोडो और लेट जाओ, सुबह मैं आपको डॉक्टर के ले जाऊँगा|

भौजी: मुझे बाथरूम जाना है|

मैं: ठीक है मैं आपको ले चलता हूँ|

मैं उन्हें सहारा दे के स्नानघर तक ले गया, उनका बुखार अवश्य कम था, परन्तु शरीर बहुत कमजोर हो गया था| अब दिक्कत ये थी की मैं भौजी को स्नान घर में ऐसे ही नहीं छोड़ सकता था, ना ही मैं किसी को बुला सकता था| मुझे एक तरकीब सूझी, मैंने भौजी से कहा की आप मेरे दोनों हाथ पकड़ो और उसका सहारा लेते हुए बैठ जाओ| जैसे ही भौजी उकडू हो कर बैठी मैंने अपना मुँह दूसरी ओर घुमा लिया| उस पल मैं सोचने लगा की अचानक मुझे में इतनी संवेदनशीलता कैसे आ गई| कुछ देर पहले जब मैं भौजी को अपने जिस्म से गर्मी दे रहा था तब भी मेरे अंदर वासना नहीं भड़की थी और अभी भी जब भौजी इस प्रकार बैठीं हैं तो मैंने अपना मुँह मोड़ लिया! हो न हो ये मेरे लिए प्रमाण है की मैं भौजी से कितना प्यार करता हूँ!

जब भौजी फ्री हुईं तो मैंने उन्हें सहारे से फिर खड़ा किया, उनके लिए चलना दूभर था इसलिए मैंने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया| (जैसे किसी "रा वन" फिल्म में शाहरुख़ खान ने करीना को उठाया हुआ था|) मैंने भौजी को वापस उनके बिस्तर पर लिटाया और सारी चादरें ओढ़ा दीं| भौजी का जिस्म बहुत कमजोर हो गया था और उन्हें बस आराम चाहिए था| लेटते ही भौजी की आँख लग गई और वो मेरी तरफ करवट ले कर सो गईं| मैं भौजी के सामने बैठ गया और सुबह होने का इन्तेजार करने लगा| हालाँकि भौजी सो चुकी थीं पर मेरा दिल अब भी बहुत चिंतित था, मैं बार-बार घडी देखता की कब सुबह के नौ बजे और कब मैं भाभी को डॉक्टर के पास ले जाऊँ| टिक-टॉक...टिक-टॉक...टिक-टॉक...टिक-टॉक....टिक-टॉक आखिर सुबह के सात बज गए| घर में सभी उठ चुके थे पर अभी तक कोई भीतर नहीं आया था| कुछ देर में नेहा भी आँख मलते-मलते उठी और मुझे गुड मॉर्निंग पप्पी देके बहार चली गई| इधर माँ को जब रात की बात अम्मा से पता चलीं तो वो भौजी का हाल-चाल पूछने आईं| भौजी अब भी सो रहीं थीं और सच कहूँ तो बहुत प्यारी लग रही थी!!! भौजी को सोता हुआ देख माँ ने

इशारे से मुझे बाहर बुलाया, मैं बाहर आया और माँ को सारा हाल सुनाया| माँ का कहना था की बेटा तू मुझे उठा देता मैं यहाँ सो जाती और तेरी भौजी का ध्यान रख लेती| पर मैंने माँ को समझाया की आप और पिताजी सबसे ज्यादा थके थे, मैं तो गर्म खून हूँ इतनी जल्दी नहीं थकता और वैसे भी मैं दिन में सो लूँगा तो मेरी नींद पूरी हो जाएगी| मैंने माँ को अंदर भौजी के पास बैठने को कहा और मैं पिताजी को ढूँढने लगा| पिताजी खेत से आ रहे थे, भौजी की बिमारी और मेरा सारी रात जागने की बात घर-भर में फ़ैल चुकी थी| पिताजी ने हाथ धोया और फिर मुझे आशीर्वाद देते हुए भौजी के बारे में पूछा, तभी वहाँ बड़के दादा भी आ गए;

मैं: पिताजी, भौजी की तबियत अभी तो ठीक लग रही है लेकिन कल रात में उन्हें बुखार फिर चढ़ गया था| मेरा सुझाव है की हमें भौजी को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए|

मैंने चिंता जताते हुए कहा, उस समय मैं ये तक भूल गया की वहाँ पिताजी और बड़के दादा दोनों खड़े हैं!

बड़के दादा: मुन्ना चन्दर तो शहर.....

बड़के दादा आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैं बोल पड़ा;

मैं: पिताजी आप ऐसा करो की बैलगाड़ी वाले को बुला लो मैं, भौजी और आप डॉक्टर के चले-चलते हैं| इस वक़्त उनका डॉक्टर के पास जाना जर्रुरी है|

पिताजी मेरी बात तुरंत मान गए और बोले;

पिताजी: ठीक है बेटा मैं अभी जा के बैलगाड़ी वाले को बुलाता हूँ तब तक तु तैयार हो जा|

मैं इतना सुन उलटे पाँव चल दिया, उस समय मेरा दिमाग बस भौजी को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए केंद्रित था, चन्दर भैया हो चाहें न हों मुझे उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला था|


इधर पिताजी बैलगाड़ी वाले को बुलाने गए और उधर मैंने भाग कर अपने बाल बनाये और रात वाले कपडे ही पहन के भौजी को जगाने आ गया;

"भौजी..उठो... बैलगाड़ी आने वाली है मैं आपको डॉक्टर के पास ले जा रहा हूँ|" मैंने कहा तो भौजी जाग तो गईं पर उनके शरीर में जरा भी ताकत नहीं थी|

भौजी: नहीं....मैं...अब ठीक हूँ!

भौजी ने सीधा लेटते हुए कहा|

मैं: मैंने आपसे राय नहीं मांगी है, चुपचाप चलो!

मैंने गुस्सा करते हुए कहा जिसे सुन कर भौजी थोड़ा सहम गईं, माँ भी वहीं बैठीं थीं और वो उस समय मेरा गुस्सा देख चुप रहीं| भौजी को मैंने सहारा दे कर बिठाया, फिर ठन्डे पानी से मैंने उनका मुँह धुलवाया, इतने में बैलगाड़ी वाला आ चूका था परन्तु भौजी को चला के ले जाना बहुत मुश्किल काम था|मैंने आव देखा न ताव और एक बार फिर भौजी को अपनी गोद में उठाया और बाहर चल दिया| जैसे ही मैं भौजी को गोद में लेकर बाहर आया तो सारे घर वाले हैरान थे, एक-आध पडोसी भी आ गए थे जो ये दृश्य देख अचंभित थे और आपस में खुसुर-पुसर कर रहे थे| मुझे उनकी रत्ती भर भी परवाह नहीं थी! भौजी बैलगाड़ी में अपना एक हाथ का घूँघट पकडे जैसे-तैसे बैठ गईं, पिताजी आगे बैलगाड़ी वाले के साथ बैठ गए और मैं बीच में भौजी का हाथ पकडे हुए बैठ गया| शरीर में कमजोरी के कारन भौजी के लिए बैठना मुश्किल था, ऐसे में मैंने भौजी को मेरी गोद में सर रख के लेटने को कहा| भौजी मेरी गॉड में सर रख कर लेट गईं और मैंने उनके सर पर हाथ फेरना शुरू कर दिया, करीबन एक घंटे तक हिचकोले खाने के बाद हम डॉक्टर के पास पहुँचे|

वहाँ पहुँचते ही मैं तुरंत नीचे उतरा और फिर से भौजी को अपनी गोद में लेके डॉक्टर की दूकान में घुस गया, मैंने किसी से कुछ नहीं कहा और सीधा डॉक्टर के बगल में जो बेड था उस पर भौजी को लिटा दिया| डॉक्टर मुझे देख हैरान था, क्योंकि गाओं में डॉक्टर की अलग धाक होती है, जब वो मरीज को बुलाता था तभी वो मरीज अंदर जा सकता था वर्ण उसे अपनी बारी का इंतजार करना होता था| अब चूँकि मैं ही चौधरी बना हुआ था इसलिए पिताजी बाहर ही रुक गए थे, जब मैं भौजी को अंदर ला रहा था तब मैंने गोर किया की डॉक्टर का बोर्ड जो बहार लगा था वो अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों भाषाओँ में था, मैंने तुक्का लगाया की ये डॉक्टर अंग्रेजी अवश्य जानता होगा इसलिए मैंने उससे अंग्रेजी में बात करने का निर्णय लिया|

इसका एक कारन ये भी था की मुझे भय था की पिछले दिनों जो भौजी और मेरे बीच में हुआ उससे कहीं भौजी गर्भवती तो नहीं हो गईं? मैं ये बात डॉक्टर से सीधे-सीधे तो पूछ नहीं सकता था, और कहीं डॉक्टर पिताजी के सामने भौजी के गर्भवती होने की बात कर देता तो घर में कोहराम छिड़ जाता!

डॉक्टर यही कोई 40 के आस-पास होगा और इससे पहले की वो कुछ बोलता मैं ही बोल पड़ा;


मैं: Actually Doctor for the past two days she hasn’t eaten anything, moreover she had high fever yesterday. I was away with my parents on a trip to Varanasi, when I came back yesterday afternoon I saw her like this, first we had lunch together and then I gave her a Crocin tablet and after that her fever was somewhat in control. Atleast that’s what I thought!!! At night we had dinner together and then again I gave her a Crocin tablet. Around 1:30 AM she had a very high fever, since it was about 5 hours since the last dose, I gave her another dose. After that somehow her fever is a bit mild but as you can see she’s very weak, her apetite is somewhat lost.

(दरअसल डॉक्टर साहब इन्होने पिछले दो दिनों से अन्न का एक दाना तक नहीं खाया है और कल इन्हें बहुत तेज बुखार भी था| मैं अपने माता-पिता के साथ वाराणसी गया हुआ था, कल जब मैं लौटा तो इन्हें इस हालत में पाया| पहले मैंने इन्हें खाना खिलाया और फिर क्रोसिन की गोली दी| उसके बाद इनका बुखार कुछ काबू में आया, या कम से कम मुझे तो ऐसा लगा! रात में मैंने इन्हें खाना खाने के बाद मैंने एक गोली और दी| अचानक आधी रात को इनका शरीर फिर से तपने लगा और मुझे याद आया की क्रोसिन दिए हुए पाँच घंटे बीत चुके हैं और एक डोज़ और बाकी है| उसे देने के बाद इनका बुखार कुछ कम हुआ पर जैसा की आप देख ही सकते हैं इन्हें बहुत कमजोरी है और इन्हें भूख भी नहीं लगती|)

उस समय मैं इतना जोश में था की मैंने डॉक्टर कुछ ज्यादा ही डिटेल में बात बता दी! मुझे नहीं मालुम मुझे उस वक़्त क्या हुआ था, शायद मैं भौजी को बीमार देख घबरा गया था और डॉक्टर को सब कुछ बता देना चाहता था! इधर डॉक्टर ने मेरी बात इत्मीनान से सुनी, अंग्रेजी में बात सुन कर वो खुश हो गया था और उसकी ख़ुशी मुझे उसके चेहरे से दिखने लगी थी|


डॉक्टर के पास जो पेशेंट बैठा था उसे छोड़ कर वो भौजी का चेक-अप करने लगा| डॉक्टर ने अपना आला लगाया और भौजी को करवट ले कर लेटने को कहा| भौजी घूंघट पकडे दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गईं| डॉक्टर ने अपना आला उनकी पीठ में लगाया और उन्हें साँस लेने को कहा| फिर उसने भौजी के शरीर का तापमान चेक करने के लिए थर्मामीटर मुझे दिया जो मैंने बिना डॉक्टर के कहे भौजी की बगल में लगा दिया| मेरी होशियारी देख डॉक्टर मुस्कुरा दिया|


डॉक्टर: Did she eat anything in the morning?

(क्या इन्होने सुबह से कुछ खाया है?)

मैं: I’m afraid no sir!!!

(जी नहीं डॉक्टर साहब|)

डॉक्टर: Okay from what you’ve told me I take it she’s feeling very weak and because of your necessary precaution her fever is in control. It’s a good thing you brought her here otherwise the case could have gone worse. Now I need to inject some fluids into her body so she could feel a bit normal, also since you seem to be her husband, its your duty to take care of her.

(जैसे तुमने बताया उससे ये बात तो पक्की है की इनका शरीर कमजोर हो गया है| तुम्हारी समझदारी के कारन इनका बुखार अब काबू में है| अच्छा हुआ तुम इन्हें यहाँ ले आये वरना हालत और भी गंभीर हो सकती थी| फिलहाल मुझे इन्हें ग्लूकोस चढ़ाना होगा ताकि इनके शरीर को थोड़ी ताकत मिले और चूँकि तुम इनके पति हो तुम्हें इनका ख़याल ज्यादा रखना होगा|)

जिस तरह से मैं भौजी के लिए चिंतित था, उस हिसाब से डॉक्टर का मुझे भौजी का पति समझना गलत नहीं था| हालाँकि मेरी अभी तक ठीक से दाढ़ी-मूछ भी निकली थी, पर गाओं में तो कम उम्र में ही शादी कर दी जाती थी शायद इसी के चलते उसने ये अनुमान लगाया था|

डॉक्टर का मुझे भौजी को पति समझना मुझे अच्छा लगा था पर अगर वो ये बात पिताजी से कह देता तो पिताजी को बुरा लगता, इसलिए मैंने डॉक्टर को सच बताते हुए कहा;

मैं: Actually sir, I’m not her husband, she’s my cousin brother's wife.

(दरअसल डॉक्टर साहब मैं इनका पति नहीं हूँ| ये मेरे चचेरे भाई की पत्नी हैं|)

डॉक्टर: Oh I see, so she’s your bhabhi? But where’s her husband? Isn’t he concerned about her wife’s health?

(ओह्ह .. तो ये आपकी भाभी हैं| पर इनके पति कहाँ हैं? क्या उसे इनकी ज़रा भी फ़िक्र नहीं|)

मैं: Sir he doesn’t know anything about her health. He’s working in Delhi and I’ve already sent a xforum to him.

(डॉक्टर साहब उन्हें तो भाभी की तबियत के बारे में कुछ पता ही नहीं है..दरअसल वो दिल्ली में काम करते हैं और मैंने उन्हें ********* कर दिया है|)

डॉक्टर: Oh I see! You seem to take good care of your bhabhi. Good!

(अच्छा! वैसे तुम अपनी भाभी का बहुत अच्छे से ख़याल रख रहे हो, शाबाश !!!)



डॉक्टर ने मुझसे भौजी का नाम पुछा और फिर दवाइयाँ लिख कर मुझे समझाने लगा| इधर उसकी एक पेशेंट लड़की जो वहाँ मुझसे पहले आई थी वो मुँह बाए मुझे और डॉक्टर को देख रही थी| उधर भौजी हमारी अंग्रेजी में हो रही गुफ्तगू घूंघट के नीचे से बड़े गोर से सुन रही थी, हालाँकि उन्हें समझ कुछ नहीं आया था| पर जब डॉक्टर ने सुई निकाली तो भौजी की सिटी-पिट्टी गुल हो गई| वो गर्दन हिला के न-न करने लगीं| तब डॉक्टर ने मुझे इशारे से उन्हें समझाने को कहा; "भौजी...डॉक्टर साहब आपको ग्लूकोस चढ़ा रहे हैं, इससे आपके शरीर में ताकत आएगी और आप जल्दी अच्छे हो जाओगे|" मैंने कहा पर भौजी को बहुत डर लग रहा था इसलिए वो अब भी न में सर हिला रहीं थीं| मुझे उनकी ये हालत देख कर बहुत हंसी आ रही थी, मैं बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोके हुए था| पर फिर भी भौजी को मेरे चेहरे पर हँसी दिख ही गई थी! इतने में पिताजी जिन्होंने बाहर के कमरे से मेरी बात सुन ली थी वो भी भौजी को हिम्मत बंधाते हुए बोले; "कोई बात नहीं बहु, ज्यादा दर्द नहीं होगा, अपने देवर की बात मान ले|" भौजी को मनाने के लिए मैंने सब की नजरें बचाते हुए अपने होठों को गोल बनाया (pout) और ये देख कर भौजी समझ गईं| उन्होंने अपना दायाँ हाथ जो अभी तक उन्होंने छुपा रखा था वो अब डॉक्टर के सामने कर दिया| जैसे ही डॉक्टर उन्हें सुई लगाने लगा तो भौजी डर के मारे मुँह बनाने लगीं, भले ही उन्होंने घूंघट कर रखा था पर मैं उस सूती साडी के नीचे से उनको देख पा रहा था और ये देख के मुझे बड़ा मजा आ रहा था| आखिर डॉक्टर ने भौजी को IV लगा दिया और फिर उहोने फटाफट उस लड़की को दवाई लिख दी जो हैरान मुझे देख रही थी| फिर डॉक्टर साहब ने मुझे अपने साथ बाहर आने को बोला| ये सुनते ही भौजी मुझे अपने हाथ के इशारे से अपने पास बुला ने लगीं| मैंने उन्हें कहा की मैं बस दो मिनट में आया| डॉक्टर साहब, मैं और पिताजी बाहर के कमरे में बैठ गए और फिर डॉक्टर साहब ने भौजी का हाल चाल सुनाया| घबराने की कोई बात नहीं थी बस भौजी को ज्यादा से ज्यादा आराम करने की सलाह दी| पिताजी और डॉक्टर के बीच में सहज रूप से बात-चीत हो रही थी और ये देख मेरा डर कम हो गया था, शुक्र है की जो मैं सोच रहा था वो नहीं हुआ| इधर डॉक्टर अब मेरी तारीफों के पुल बाँध रहा था की कैसे उसे आज एक अरसे बाद अंग्रेजी बोलने वाला लड़का मिला| मैं चुपचाप भौजी के पास अंदर आ गया और घुटनों के बल बैठ के उनके कान में फुस-फसाया;

मैं: भौजी…अब आप जल्द ही ठीक हो जाओगे|

मेरी ख़ुशी मेरे चेहरे से झलक रही थी पर भौजी के मन में कुछ और ही सवाल था|

भौजी: मानु तुम डॉक्टर से अंग्रेजी में क्या बात कर रहे थे?

मैं: अभी नहीं भौजी, घर चलो सब बताऊँगा|

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा| पर अभी मुझे एक शंका होने लगी थी, कल पूरी रात मैंने जाग कर भौजी की देखभाल की थी और ये हवा घर में फ़ैल चुकी थी| वापस जाने पर कहीं मुझसे ये पुछा गया की आखिर मैंने ऐसा क्यों किया, जबकि मैं माँ या बड़की अम्मा को कह सकता था! अशोक भैया और मधु भाभी तो इंदौर लौट गए थे, बचे घर में बड़की अम्मा, बड़के दादा, माँ, पिताजी, अजय भैया, चन्दर भैया और रसिका भाभी| मैं मन ही मन उनके सवालों को सोच कर उनके जवाब बनाने लगा था, उस वक़्त मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी इम्तिहान की तैयारी कर रहा हूँ!

टिप-टिप करते हुए ग्लूकोस की बोतल खाली होने लगी और सारा ग्लूकोस भौजी के खून में मिलने लगा| इधर पिताजी और डॉक्टर की बातों की आवाज अंदर तक आ रही थी और भौजी मेरी बढ़ाई सुन कर खुश हो रही थी| जब बोतल लगभग खाली हो गई तब मैंने डॉक्टर को अंदर बुलाया, उसने भौजी के हाथ से सुई निकाली और वापस पट्टी का दी| मैंने डॉक्टर को 'Thanks' बोला और भौजी को फिर से गोद में उठा कर बैलगाड़ी में बैठा दिया| मैं दवाई लेने जाने लगा तो भौजी चिंतित दिखीं; "भौजी मैं बस दवाई ले कर आया!" तब उन्हें इत्मीनान हुआ वरना उन्हें लगा की मैं उन्हें अकेले पिताजी के साथ भेज रहा हूँ| मेरे वापस आने तक पिताजी बैलगाड़ी वाले से दूर जा कर बात कर रहे थे| मेरे आते ही पिताजी आगे बैठे और मैं भौजी की बगल में| ग्लूकोस चढ़ने से भौजी की हालत में सुधार आया था| खैर एक बार फिर हम हिचकोले खाते हुए घर पहुँच गए, मैंने भौजी को एक बार फिर गोद में उठाया और उनके घर में ला कर लिटा दिया| उन्हें लिटा कर मैं जब जाने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे रोका;

भौजी: मानु ..तुम कल सारी रात मेरी वजह से परेशान रहे हो, सारी रात जाग के मेरी देखभाल की अब तुम बहुत थके हुए लग रहे हो| जा कर थोड़ा आराम कर लो, मैं अब पहले से बेहतर महसूस कर रही हूँ|

भौजी ने चिंता जताते हुए कहा|

मैं: जी नहीं, ये सब मेरी गलती है| न मैं आपसे अपने वापस आने की बात छुपाता और न ही आपका ये हाल होता, इसलिए अब जब तक आप पूरी तरह ठीक नहीं होते, मैं आपकी देखभाल में लगा रहूँगा|

मैंने भौजी से साफ़-साफ़ कहा और आगे वो कुछ बोलें उससे पहले मैं बाहर आ गया ताकि सब के सवालों का सामना कर सकूँ! बाहर आके देखा तो घर के सभी लोग छप्पर के नीचे बैठे भौजी की सेहत के बारे में बात कर रहे थे| जैसे ही मैं छप्पर के नीचे पहुँचा की बड़की अम्मा ने मुझे गले लगा लिया और मी सर को चूमते हुए बोलीं; "मुन्ना तोहार आपन भौजी से मोह हम सब कल देखे रहे, पूरी रात जाग कर मुन्ना बहु का ख्याल राखिस है और ऊ चन्दर तनिको जिम्मेदारी नहीं लेत है!" सभी को इस बात का अफ़सोस था की चन्दर भैया और भौजी के रिश्ते में दरार आ चुकी है पर मेरे और भौजी के 'दोस्ती' के रिश्ते से सभी बहुत प्रभावित थे और मेरे माँ-पिताजी को छोड़ कर सब मेरी तारीफ कारण रहे थे| लेकिन देखा जाए तो मैं उस तारीफ को पाने का हकदार नहीं था, मेरे ही कारन भौजी की जान पर बन आई थी|

दोपहर के खाने के बाद मैंने भौजी को दवाई दी और मैं नेहा के साथ दूसरी चारपाई पर लेट गया| नेहा लेटे-लेटे मेरे साथ मस्ती कर रही थी, कभी मेरे बाल खींचती तो कभी मेरी नाक पकड़ती पर भौजी गुम-सुम थी और मुझसे ये बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने उनसे उनकी नाराजगी का कारन पूछा;

मैं: क्या हुआ, आप चुप-चाप क्यों हो?

माने भोएं सिकोड़ते हुए पुछा|

भाभी: कुछ नहीं... बस ऐसे ही...

भौजी ने मुँह फूलते हुए कहा और अपनी बात अधूरी ही छोड़ दी! भौजी की बातों से लग रहा था की वो कुछ छुपा रहीं हैं, या इस डर से कुछ नहीं बोल रहीं की कहीं नेहा न सुन ले| मैं यूँ ही नेहा के साथ खेलता रहा, कभी उसे गुद-गुदी करता तो कभी उसके सर पर हाथ फेरता ताकि वो जल्दी से सो जाये| करीब आधा घंटा लगा उसे सुलाने में, नेहा के सोते ही मेरी बेचैनी मुझ पर हावी होगई| मैं उठ कर भौजी के पास बैठा और बोला;

मैं: नेहा सो गई है, अब बताओ की क्या बात है? क्यों उदास हो?

भौजी: (मुँह बनाते हुए) तुम अब मेरी बात नहीं मानते, बड़े जो हो गए हो, अपनी जिम्मेदारियाँ उठाने लगे हो, अब भला क्यों सुनोगे मेरी?

भौजी का तातपर्य था की मैंने उन्हें अभी तक मेरे और डॉक्टर के बीच हुई बात नहीं बताई थी|

मैं: ऐसा नहीं है, आपको यही जानना है न की डॉक्टर से मेरी क्या बात है?

भौजी: हाँ

मैं: जब मैं आपको अपनी गोद में लिए डॉक्टर के पास पहुँचा और आपकी तबियत के बारे में उसे बताया तो उसे लगा की मैं आपका पति हूँ...

अभी मेरी बात पूरी हो पाती उससे पहले ही भौजी बोल पड़ीं;

भाभी: तो उसमें गलत क्या है?

मैं: गलत तो कुछ नहीं है, पर फिर आप ही मुझे अपनी देख-भाल करने से रोक रहे हो!

ये सुन कर भौजी मुस्कुरा दीं और उन्हें एक मीठा सा एहसास हुआ|

मैं: वैसे अगर उसने यही बात हिंदी में पिताजी से कही होती तो? ये तो शुक्र था की मैंने ही उससे अंग्रेजी में बात की वरना वो ये बात सच में कह देता|

ये सुन कर भौजी की वो मीठी सी ख़ुशी दब गई, जो मैं उस वक़्त नहीं पढ़ पाया था पर भौजी को अपने जज्बातों को छुपाना भलीभांति आता था इसलिए उन्होंने एकदम से बात बदल दी;

भौजी: मैं तुम्हें मेरी देखभाल करने से रोक नहीं रही पर में ये बर्दाश्त नहीं कर सकती की मेरी वजह से तुम बीमार पड़ जाओ|

मैं: जब आप ये बर्दाश्त नहीं कर सकते की मैं आपकी वजह से बीमार पड़ जाऊँ, तो सोचो मेरे दिल पर क्या बीती होगी जब मैंने आपको बीमार देखा था| आप को पता है कल दोपहर को आपको बीमार देख मेरे दिल की धड़कन रूक गई थी!

ये सुन कर भौजी की आँखें भर आईं थी, मैं उन्हें और दुःख नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने झुक के उनके होंठों को चूम लिया और उनके गले लग गया| भौजी का मन भर आया था पर मेरे आलिंगन ने उन्हें रोने नहीं दिया|

भौजी: पहले तुम दुःख देते हो और फिर मरहम भी खुद ही लगाते हो|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं, मैं वापस सीधा हो कर उनके पास बैठ गया|

भौजी: डॉक्टर तुम्हें मेरा पति न खड़े क्या इसी कारन से तुम उससे अंग्रेजी में बात कर रहे थे?

भौजी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा|

मैं: वो मुझे डर था...

मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी, कारन था की उस रात सम्भोग के दौरान भौजी ने मुझसे कहा था की वो मेरे बच्चे की माँ बना चाहतीं हैं| मैंने उस समय उन्हें अपनी सफाई दी थी पर उसे सुन भौजी के मन को संतुष्टि नहीं मिली थी और मैं फिर से उसी विषय में उनसे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था|

भौजी: कैसा डर?

भौजी ने मेरी अधूरी बात पकड़ ली थी और अब उन्हें सच सुनना था| मैं उनसे झूठ नहीं बोलना चाहता था, न ही कोई गोलमोल जवाब देना चाहता था इसलिए मैंने उन्हें सब सच कहने का फैसला किया|

मैं: मुझे डर था की कहीं पिछले कुछ दिनों में हमारे बीच जो हुआ उससे आप प्रेग्नेंट तो नहीं हो गए?

भौजी: अगर हो भी जाती तो क्या होता?

भौजी ने बात को बड़ी सरलता से लिया और एक पल के लिए मुझे लग जैसे वो मजाक कर रहें हैं!

मैं: आप मजाक कर रही हो ना?

मैंने भौजी से अपना शक़ मिटाने को पुछा|

भौजी: नहीं तो...ज्यादा से ज्यादा क्या होता? तुम्हारे भैया मुझे मारते-पीटते... घर से निकाल देते बस!

भौजी ने ये बात इतनी सरलता से कही जैसे की कोई मजाक हो! पर मुझे ये सुन कर गुस्सा आने लगा;

मैं: आपको ये इतना आसान लगता है? जरा ये बताओ की आपके साथ ये होता देख मुझ पर क्या गुजरती? नेहा और हमारे बच्चे का क्या होता? ये सोचा आपने?

मैंने गुस्से में भौजी पर अपने सवाल दागे!

भौजी: मुझे तो लगा था की तुम मुझे अपनाओगे?

भौजी उठ कर बैठीं और मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बोलीं|

मैं: माँ और पिताजी से क्या कहता? और अगर मैं सब सच कह भी देता तो क्या वो आपको मेरे साथ रहने देते?

मैंने गुस्से से कहा|

भौजी: तो तुम मुझे भगा के ले चलो?

भौजी ने फिर से एक बेसिर-पैर की बात कही|

मैं: हुँह ... आपको ये सब मजाक लग रहा है न? मैं आपको भगा के कहाँ ले जाता? क्या खिलाता? नेहा की परवरिश कैसे होती? आपको पता है न शहर में नौकरी मिलना इतना आसान नहीं होता, फिर मैं तो अभी खुद पढ़ रहा हूँ!

पर मेरा ये जवाब सुन भौजी का दिल टूट गया और अपने टूटे हुए दिल के कारन उन्होंने आगे जो कहा उससे मेरा दिल छलनी हो गया!

भौजी: तुम्हारी बातों से लगता है की हमने 'पाप' किया है? तुम मुझसे प्यार-व्यार कुछ नहीं करते और जो कुछ भी हमारे बीच हुआ वो सब तुम्हारे लिये खेल था!


भौजी की बातें मुझे तीर की तरह चुभ रहीं थी, इसलिए मैं एकदम से उठा और बिना कुछ कहे बाहर आ गया| भौजी मुझे गलत समझ रही थी, मैं उनसे बहुत प्यार करता था पर मैं अभी शादी और बच्चे की जजिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं था| उनके लिए घर से भाग चलने को कहना आसान था पर मेरे लिए ये सुनना और उनकी बात पर अम्ल करना आसान नहीं था| मैं भौजी को समझाना चाहता था की वो जो कह रहीं हैं वो गलत है, अपने गुस्से के आगे वो मुझे गलत समझ रहीं हैं परन्तु इस समय हम दोनों का दिमाग बहुत गरम था और ऐसे में मेरे द्वारा दी गई कोई सफाई उन्हें पर्याप्त नहीं लगती| इसलिए मैंने कुछ देर के लिए उनसे दूरी बना ली ताकि उनका मन शांत हो जाये और फिर मैं इत्मीनान से उन्हें सब कुछ समझा सकूँ| पर अब हम दोनों के रिश्ते का धागा खींचने लगा था, मैं भले ही उसे कस कर थामे हुआ था पर भौजी अपनी अनेकों उमीदें बांधे उसे खींचने लगीं थीं|
 

Ssking

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नौवाँ अध्याय: परीक्षा
भाग - 2
अब तक आपने पढ़ा:

भौजी: तुम्हारी बातों से लगता है की हमने 'पाप' किया है? तुम मुझसे प्यार-व्यार कुछ नहीं करते और जो कुछ भी हमारे बीच हुआ वो सब तुम्हारे लिये खेल था!

भौजी की बातें मुझे तीर की तरह चुभ रहीं थी, इसलिए मैं एकदम से उठा और बिना कुछ कहे बाहर आ गया| भौजी मुझे गलत समझ रही थी, मैं उनसे बहुत प्यार करता था पर मैं अभी शादी और बच्चे की जजिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं था| उनके लिए घर से भाग चलने को कहना आसान था पर मेरे लिए ये सुनना और उनकी बात पर अम्ल करना आसान नहीं था| मैं भौजी को समझाना चाहता था की वो जो कह रहीं हैं वो गलत है, अपने गुस्से के आगे वो मुझे गलत समझ रहीं हैं परन्तु इस समय हम दोनों का दिमाग बहुत गरम था और ऐसे में मेरे द्वारा दी गई कोई सफाई उन्हें पर्याप्त नहीं लगती| इसलिए मैंने कुछ देर के लिए उनसे दूरी बना ली ताकि उनका मन शांत हो जाये और फिर मैं इत्मीनान से उन्हें सब कुछ समझा सकूँ| पर अब हम दोनों के रिश्ते का धागा खींचने लगा था, मैं भले ही उसे कस कर थामे हुआ था पर भौजी अपनी अनेकों उमीदें बांधे उसे खींचने लगीं थीं|

अब आगे:

शाम होने को आई थी और अब भौजी की दवाई का समय भी हो गया था| इसलिए मैं भौजी को दवाई देने के लिए उनके घर पहुँचा तो देखा की भौजी कमरे के कोने में जमीन पर बैठी हैं और अपने मुँह को अपने घुटनों में छुपाये रो रहीं हैं| उनको ऐसे रोता हुआ देख मेरा दिल टूट गया, मैं उनके पास घुटनों के बल बैठ गया और उनका मुँह उठाया तो देखा रो-रो के उन्होंने अपना बुरा हाल कर लिया है| "आप रो क्यों रहे हो? प्लीज चुप हो जाओ!" मैंने कहा पर भौजी ने कोई जवाब नहीं दिया और रोती रहीं! "अच्छा ये बताओ की हुआ क्या? किसी ने आपसे कुछ कहा?" भौजी ने ये सुन कर एकदम से मुँह मोड़ लिया| "समझा…आप मेरी दोपहर की बात की वजह से परेशान हो!" मैंने कहा पर भौजी ने कोई जवाब नहीं दिया और रोती रहीं| मुझसे उनका ये रोना नहीं देखा जा रहा था इसलिए मैंने उन्हें चुप कराने के लिए एक आखरी तरकीब निकाली; "मेरे लिए नहीं तो नेहा के लिए ही चुप हो जाओ!" ये सुन कर भौजी ने रोना बंद किया और अपने आँसूँ पोछने लगी| चलो कम से कम नेहा की दुहाई दी तो भौजी ने रोना तो बंद कर दिया! मेरा दिल कह रहा था की एक बार और प्यार से बोल कर देख, भौजी जर्रूर तेरी बात मान लेंगी| "भौजी...उठो....और दवाई ले लो!" मैंने बहुत प्यार से कहा पर भौजी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और मुझसे मुँह मोड वहीँ बैठीं रहीं| साफ़ था की वो मुझसे नाराज हैं और शायद अब कभी भी मुझसे बात ना करें| मैं मायूस हो कर बाहर आया, मैंने सोचा की अभी उनका दिमाग गर्म है! पहले उन्हें दवाई दे कर तंदुरुस्त करता हूँ, उसके बाद उनसे इत्मीनान से बात करूँगा| ज्यादा दबाव डालूँगा तो कहीं बात बिगड़ न जाए! ये सोचते हुए मैंने नेहा को आवाज दी, मेरी आवाज सुन कर नेहा दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई| मैं उसे अपने साथ अंदर ले आया और उसके हाथ में दवाई दी और भौजी के सामने उससे कहा; "बेटा आप ये दवाई मम्मी को खिला दो!" नेहा ने मुझसे दवाई ली और भौजी के सामने कड़ी हो गई, भौजी ने पहले उसकी तरफ देखा और फिर उसके हाथ से गोली ले ली| फिर नेहा ने पास ही रखे पानी के लोटे को अपने दोनों हाथों से उठाया और भौजी को दिया| भौजी ने पानी पिया और नेहा का सहारा ले के उठीं| भौजी ने मेरी तरफ देखा तक नहीं और चारपाई पर मुँह मोड़ के लेट गईं| शायद नेहा समझ गई थी की कुछ तो बात है जो भौजी मुझसे बात नहीं कर रहीं, इसलिए वो मेरी तरफ देखने लगी, मैंने उसे अपने पास बुलाया और उससे कहा; "बेटा आप यहीं मम्मी के पास रहना और उनका ख्याल रखना, कहीं मत जाना!" मैंने नेहा से कहा और उठ कर बाहर आ गया| बाहर आ कर मैं अपनी चारपाई पर चुप-चाप लेट गया, घर वालों को लगा की मैं तक गया हूँ इसलिए किसी ने मुझे कुछ नहीं कहा| रात का खाना बना तो अम्मा ने मुझे भौजी को भोजन दे आने को कहा| मैंने उनकी थाली ली और भौजी के घर में दाखिल हुआ| भौजी अब भी करवट ले कर लेती हुई थीं, नेहा अच्छे बच्चे की तरह चारपाई पर बैठी हुई अपनी गुड़िया के साथ खेल रही थी|

मेरे हाथ में थाली देख नेहा मेरे पास आई, मैंने एक बार फिर कोशिश करते हुए भौजी से कहा; "भौजी....उठो....खाना....खा लो!" पर भौजी ने एक बार फिर मेरी बात अनसुनी कर दी| मैंने चुप-चाप नेहा को इशारे से कहा की वो भौजी को उठाये| नेहा चारपाई पर चढ़ गई और भौजी की बाजू पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया, तब जा कर भौजी उठीं पर उन्होंने मेरी तरफ अब तक नहीं देखा था| मैं कुछ नहीं बोला और सर झुका कर थाली चारपाई पर रख बाहर आ गया| मुझे शक हुआ की शायद भौजी खाना नहीं खाएंगी इसलिए में 10 मिनट बाद पानी देने के बहाने से आया तो देखा भौजी गुम-सुम खाना खा रहीं हैं| नेहा भी उन्हीं की थाली से खाना खा रही थी, मैंने चुप-चाप पानी रखा और बाहर वापस आ गया| कुछ देर बाद नेहा खाली थाली ले कर बाहर आई, मैंने उससे थाली ले ली और नेहा के हाथ धुलवाए| मैंने नेहा को ले कर फिर से भौजी के घर में घुसा और उसके हाथ में दवाई दी ताकि वो अपनी मम्मी को दे दे| भौजी ने नेहा के हाथ से दवाई ले ली और फिर से दूसरी तरफ मुँह कर के लेट गई| अगले पाँच मिनट तक मैं बिना कुछ बोले भौजी को देखता रहा| भौजी का ये रूखा व्हवहार मुझसे देखा नहीं जा रहा था! मेर दिल कचोटने लगा था, पर मैंने किसी तरह खुद को समझाया की सुबह तक सब ठीक हो जायेगा| सुबह तक भौजी का दिमाग ठंडा हो जायेगा और तब मैं उन्हीं समझाऊँगा| इधर नेहा आ कर मेरी टांगों से लिपट गई जिससे मेरा ध्यान भंग हुआ| मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसके गाल को चूमते हुए कहा; "बेटा आप रात को मम्मी के पास सोना| अगर रात को मम्मी की तबियत ख़राब हो तो मुझे जगा देना|" मेरी बात सुन नेहा ने तुरंत हाँ में गर्दन हिलाई और मेरे दाएं गाल को चूम कर मुस्कुरा दी| नेहा की मुस्कराहट देख कर मेरे दिल को कुछ सुकून मिला| नेहा को भौजी की बगल में लिटा कर मैं बाहर आ गया, बाहर आते ही बड़की अम्मा ने मुझे खाना खाने के लिए बुला लिया| उस वक़्त मेरी खाने की इच्छा नहीं थी पर अगर मैं खाना नहीं खाता तो मुझसे सवाल पुछा जाता और मेरे मूक रहने पर वो सवाल सीधा भौजी से पुछा जाता| जिस तरह की मनो दशा मैं भौजी की देख रहा था वो ये सब देख और सुन कर और दुखी हो जातीं| इसलिए मैंने बड़े बेमन से खाना खाया और वापस आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया पर नींद एक पल के लिए नहीं आई, पूरी रात मैंने करवट बदलते हुए काटी| मुझे इस बात की भी चिंता थी की अगर रात को भौजी की तबियत खराब हो गई तो? एक बार को तो मन किया की अंदर जा कर देखूं, मैं चुप-चाप उठा और भौजी का दरवाजा खोलना चाहा पर वो अंदर से बंद था| दरवाजा बंद देख मैं हैरान हो गया, क्योंकि मैं भौजी के दरवाजे के पास ही सोता था और जब से मैं आया था तब से भौजी घर का दरवाजा रात को कभी बंद नहीं करती था, दरवाजा हमेशा ही आपस में चिपका होता था ताकि मैं जब चाहूँ अंदर जा सकूँ| मैं उस वक़्त ये भी सह गया, सोचा की सुबह तक सब ठीक हो जायेगा और चुप-चाप लेट गया पर नींद अब भी नहीं आई!


अगली सुबह 5 बजे भौजी उठ कर बाहर आईं और मुझे जागता हुआ पाया| मैं उस वाट अपनी चारपाई पर सर झुका कर बैठा था| भौजी ने अब भी मुझसे कुछ नहीं कहा और नेहा का सहारा ले कर बड़की अम्मा के पास पहुँची| माँ, बड़की अम्मा, रसिका भाभी और भौजी खेत की ओर झाड़े फिरे (Toilet) चले गए| मैं चुप-चाप उठा और बड़े घर आ कर अपने कपडे निकाले, ब्रश किया और इतने में मुझे भी प्रेशर आ गया| मैं भी झाड़े फिर कर आगया| नाहा-धो कर मैं रसोई आया तो देखा भौजी, माँ, बड़की अम्मा और रसिका भाभी आपस में बातें कर रहे हैं| भौजी लेटी हुई थीं और नेहा उनके पास बैठी खेल रही थी| मुझे देखते ही नेहा मेरी गोद में आने को अपने हाथ खोल कर बोली; चाचू!" मैंने भौजी की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए नेहा को अपनी गोद में ले लिया पर भौजी ने मेरी तरफ नहीं देखा| "भौजी अब तबियत कैसी है!" मैंने कहा ताकि बड़की अम्मा और माँ की मौजूदगी में वो मुझसे कुछ तो बात करें| भौजी ने बड़ा ही रुखा सा जवाब देते हुए कहा; "ठीक है" और एकदम से बड़की अम्मा से बोलने लगीं; "अम्मा मिसराइन कहत रही की इस पूरनमासी को हवन बैठाये हैं!" भौजी का मुझे यूँ अनदेखा कर देना देख मुझे बहुत गुस्सा आया, मुझसे अब भौजी की ये बेरुखी नहीं देखि जा रही थी| मैं नेहा को गोद में ले कर भौजी के घर में घुसा और उसे कौन सी दवाई देनी है उसे अच्छे से समझा दिया| फिर मैं उसे ले कर बाहर आया और गाय खोलने लगा, मुझे गाय खोलता देख बड़की अम्मा ने मुझे टोका; "मुन्ना का करत हो?"

"अम्मा गाय चराने ले जा रहा हूँ|" इतना कह कर मैंने गाय खोल ली और उसे हाँकते हुए खेतों की तरफ चल दिया| नेहा भी मेरे पीछे-पीछे आने लगी तो माने उसे समझाते हुए कहा; "बेटा आपको यहाँ रुक कर मम्मी का ख्याल रखना है|" इतना कह कर मैंने नेहा के सर को चूमा और घर से निकल पड़ा| घर से कुछ दूरी पर एक छोटा सा बाग़ था, मैंने गाय को वहीं पास चरते हुए छोड़ा और बाग़ में बैठ गया| बाग़ में बैठे-बैठे मैं सोचने लगा की आखिर मैंने कल उनसे ऐसा क्या कह दिया की वो मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रहीं हैं? मैं कल जो कहा वो सच ही तो था, हम दोनों साथ कैसे रह सकते हैं? घर से भाग कर मैं भला कैसे उन्हें और नेहा को संभालूँगा?! ये बात आखिर वो क्यों नहीं समझना चाहतीं? ठीक है, अगर उन्हें इसी कदर अपना गुस्सा दिखाना है तो दिखाएं, मैं नहीं जाऊँगा उनके पास नेहा तो है ही उनका ध्यान रखने को| एक बार उनकी तबियत ठीक हो जाये मैं पिताजी से दिल्ली जाने की बात करता हूँ| ये सब सोचते-सोचते दोपहर हो गई और मैं गाय हाँकते हुए घर लौट आया| वापस आ कर मैंने गाय को पानी पिलाया और उसे वापस खूंटे से बाँध दिया| मुझे गाय बाँधता हुआ देख पिताजी बड़के दादा से मजाक करते हुए बोले; "भाईसाहब, लागत है आज सूरज पश्चिम सी निकाली आओ है!" दरअसल पिताजी का मतलब था की मैं आज अकेले गाय चराने कैसे चला गया?!

"वो क्या है न पिताजी, गट्टू भैया तो हमारे जाने के अगले दिन ही वापस चले गए तो मैंने सोचा की आज गाय मैं ही चरा लेता हूँ!" मैंने नकली हंसी हँसते हुए कहा| इतने में रसिका भाभी ने खाना परोस दिया, मैं मुड़ कर भौजी के घर जाने लगा ताकि नेहा से पूछ सकूँ की उन्होंने खाना खाया या नहीं पर पिताजी ने मुझे रोक दिया और बोले; "तेरी भौजी को तेरी माँ ने खाना खिला दिया है, वो बही दवाई ले कर सो रही है|" पिताजी की बात सुन कर मुझे इत्मीनान हुआ, इसलिए मैंने खाना खाने बैठ गया इतने में नेहा कूदती हुई मेरे पास आ गई| मैंने उसे अपनी गोद में बिठाया और हम दोनों खाना खाने लगे| तभी चन्दर भैया और अजय भैया भी आ धमके और वो भी साथ खाना खाने बैठ गए| चन्दर भैया को बड़की अम्मा ने सारी बात बताई, ये सुन कर उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा, पर हाँ मैं उनके अंदर एक गुस्सा पनपता हुआ भाँप गया| वो मुझे तो कुछ नहीं बोले पर नेहा पर चिल्लाये; "तोहका तनिको चैन नहीं ना? जब देखो मानु भय की गोद चढ़ी रहत है! भाग हियाँ से!" अपने बाप की दांत सुन नेहा सहम गई और रुनवासी हो कर उठने लगी; "क्यों बेकार में नेहा को डाँट रहे हो? खाना ही तो खा रही है न मेरे साथ!" मैंने चिढ़ते हुए कहा| मेरी बात सुनकर पिताजी बीच-बचाव करते हुए बोले; "मानु नेहा को बहुत लाड करत है, इसलिए नेहा हमेशा मानु के संगे ही खाना खात ही!" पिताजी की बात सुन चन्दर भैया खामोश हो गए| इधर मैंने नेहा के सर को पीछे से चूमा और उसे अपने हाथ से खाना खिलाया| खाना खा कर मैं सबसे पहले उठा और थाली रख कर नेहा को गोद में ले कर टहलने लगा| कुछ ही देर में नेहा सो गई तो मैं उसे ले कर भौजी के घर में दाखिल हुआ| भौजी उस वाट सीढ़ी लेटी हुई थीं और उनकी आँखें खुल हुई थीं, मुझे देखते ही उन्होंने मुँह मोड़ लिया और दूसरी तरफ मुँह कर के लेट गईं| ये देख कर मेरा दिल टूट गया, मेरे आँसूँ दहलीज पर आ गए पर मैं उन्हें भौजी को नहीं दिखाना चाहता था, इसलिए नेहा को मैंने भौजी की बगल में लिटाया और चुप-चाप बाहर आ गया| घर के सारे लोग छप्पर के आस-पास थे तो मैं बड़े घर में सोने चला गया| आंगन में छपाई दाल मैं लेट गया, चूँकि इस वक़्त वहां कोई नहीं था इसलिए मैं धीरे-धीरे सिसकने लगा और कुछ देर पहले जो आँसूँ दहलीज तक आ गए थे वो बाहर छलक ही पड़े|

कल पूरी रात मैं जाग रहा था इसलिए रोते-रोते आँखें भारी हो गईं और मैं सो गया| शाम को नेहा ने आ कर मेरे बाएं गाल पर पप्पी की तब मेरी आँख खुली| मैं एकदम से उठ बैठा और नेहा को गोद में ले लिया, इस पूरे घर में एक वही थी जो मुझे समझ सकती थी| मैंने उसे गोद में लिया और उसके गाल पर पप्पी की| फिर मैं उसे ले कर दूकान पर आ गया और उसे उसके मनपसंद चिप्स दिलवाये| "बेटा आपकी मम्मी कैसीन हैं?" मैंने पुछा तो नेहा बोली; "चाचू...वो है न...रो रही थीं!" ये सुन मैं नेहा को ले कर भौजी के पास लौट आया, मुझे देखते ही वो उठ कर बाहर निकल गईं| पर मैं उनके पीछे-पीछे बाहर निकल आया, भौजी एकदम से छप्पर के नीचे घुसीं और तखत पर लेट गईं| लेटते ही उन्होंने रसिका भाभी से बात शुरू कर दी और मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया| "छोटी! हमार खतिर तोहका तीनों जून चूल्हा फूँके का पडत है!" भौजी बोलीं| मैं उनकी बगल में नेहा को गोद में ले कर खड़ा था पर उनकी नजरें रसिका भाभी पर टिकी थीं| बहुत दुःख हुआ...और मैंने नेहा को गोद से उतार दिया और उसे भौजी के पास रहने का इशारा किया| मैं दौड़ता हुआ वहाँ से घर की पिछवाड़े भाग गया| वहाँ जा कर मैंने दिवार से पीठ टिकाई और खूब जोर से रोया| उस समय मैं नहीं जानता था की ब्रेक-अप क्या होता है पर जो ब्रेक-अप पर दर्द होता है उसे महसूस कर पा रहा था| आधे घंटे तक मैं खड़ा रोता रहा और खुद से ही सवाल पूछता रहा की भला मेरा प्यार कहाँ कम पड़ गया? नहीं हूँ मैं इस काबिल के मैं भौजी और बच्चों की जिम्मेदारी! क्या मुझे प्यार करने का कोई हक़ नहीं है? क्या वो कुछ साल और इंतजार नहीं कर सकतीं ताकि मैं कमाने लायक हो जाऊँ? कम से कम एक बार भौजी मेरी बात तो सुन लेतीं?! इस कदर मुझ बेक़सूर का सजा देना क्या ठीक है? बात नहीं करनी तो एक बार बोल दो ताकि दुबारा उन्हें शक्ल ही न दिखाऊँ! कम्भख्त मर भी नहीं सकता मैं वरना माँ-पिताजी का क्या होगा?


जी भर के रो लेने के बाद मैं घर लौट आया और बिना किसी से कुछ कहे हैंडपंप पर जा कर अपना मुँह धोया! भौजी छप्पर के नीचे से मुझे मुँह धोते हुए देख रहीं थीं, समझ तो वो गई होंगी पर बोली कुछ नहीं| मुँह धो कर मैं अभी रुमाल से मुँह पांच रहा था की अजय भैया आ गए और मुझे अपने पास बिठा लिया| वो मुझसे दिल्ली की बातें करने लगे तो मैं बस उनके सवालों का जवाब देता रहा| अब उनसे बात न करता तो वो और सवाल पूछते, इसलिए बेमन से मुस्कुराते हुए उनके सवालों का जवाब देता रहा| कुछ ही देर में रात के खाने का समय हो गया और अजय भैया मुझे अपने साथ ले गए| रसिका भाभी ने सबसे पहले मेरी थाली परोसी थी पर मैंने वो थाली था कर नेहा को दी और उसे कहा; "बेटा आप ये खाना मम्मी को खिला देना और उसके बाद वो लाल वाली गोली मम्मी को दे देना! फिर आप और मैं एक साथ खाना खाएंगे|" नेहा ने मुस्कुराते हुए हाँ कहा और थाली ले कर चली गई| उसके वापस आने तक मैं छप्पर के नीचे बैठा सबसे बातें करता रहा, मैंने किसी को भी कोई शक नहीं होने दिया की मैं दुखी हूँ! जैसे ही नेहा बाहर आई तो वो सीधा मेरे पास आई और बोली; "चाचू माँ और मैंने खाना खा लिया, आप भी खाना खा लो|" नेहा की बात सुन कर मुझे बहुत दुःख हुआ, भौजी ने जानबूझ कर उसे अपने साथ खाना खिलाया ताकि वो मेरे साथ खाना न खा सके| एक वही तो थी जिसकी वजह से मुझे खाना खाना अच्छा लगता था और अब तो वो भी नहीं है| इतने में रसिका भाभी ने मेरी थाली परोस दी, मजबूरन मुझे खाना पड़ा वरना मैंने सोच लिया था की मैं आज खाना नहीं खाऊँगा| इतना ही बड़ा था की मेरे खाने तक नेहा सामने बैठी खेल रही थी| खाना खाने के बाद मैंने नेहा से कहा की वो भौजी को दवाई दे कर आये| मैं अपनी चारपाई पर बैठा उसका इंतजार करने लगा पर नेहा बाहर ही नहीं आई| मैं उसे देखने के लिए अंदर जाना चाहता था पर जैसे ही दरवाजे को धकेला तो वो अंदर से बंद था| दरवाजा बंद देख मुझे बहुत बुरा लगा, मैं सर झुकाये अपने बिस्तर पर आया और लेट गया, मेरा दिल अब भी सकारात्मक सोच रहा था, दिल कहता था की कल सुबह सब ठीक हो जायेगा| भौजी मुझसे बहुत प्यार करती हैं और उनका मुझे इस कदर तड़पाना उन्हें भी पसंद नहीं है| कल सुबह होते ही वो मुझसे अच्छे से बात करेंगी और मैं उन्हें खूब सारा प्यार दूँगा| बाद में उन्हें इत्मीनान से समझाऊँगा| इसी उम्मीद के साथ मैंने ख़ुशी-ख़ुशी जागते हुए रात काटी|


अगली सुबह फिर दरवाजा खुला, भौजी जानती थीं की मैं जाग रहा हूँ पर फिर भी वो मुझसे मुँह मोड़ कर छप्पर के नीचे चलीं गई| उनका ये बर्ताव दे कर रही-सही उम्मीद भी टूट गई, मैं उठ कर बैठ गया और सर झुका कर खुद को रोने से रोकता रहा| भौजी ने छप्पर के नीचे से मुझे सर झुकाये देखा पर वो फिर भी कुछ नहीं बोलीं और रसिका भाभी के साथ झाड़े फिरने चली गईं| नेहा कूदती हुई मेरे पास आई और मेरी ठुड्डी पकड़ कर चेहरा ऊपर उठाया| मेरे चेहरे की मायूसी उसने पढ़ ली थी और वो आ कर मेरे गले लग गई| मैंने एकदम से नेहा को गोद में उठा लिया और उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए बड़े घर आगया| नेहा को चारपाई पर बिठा कर मैं ब्रश कर रहा था की तभी नेहा ने मुझसे सवाल पूछा; "चाचू...मम्मी आप से बात क्यों नहीं कर रही?" नेहा का सवाल सुन कर मैं स्तब्ध रह गया| इतने में नेहा उठ कर मेरे पास आई और मेरी टांगों से लिपट गई| मैंने पहले मुँह धोया और फिर नेहा को अपनी गोद में लेते हुए कहा; "बेटा...आपकी मम्मी है ना...मुझसे नाराज हैं!"

"क्यों?" नेहा ने अपना दूसरा सवाल दागा जिसका जवाब मैं उसे नहीं बता सकता था इसलिए मैंने बात को घुमाना चाहा; "पता नहीं बेटा!"

"मम्मी तो कह रहीं थीं की आपको पता है!" नेहा की बात सुन मैं समझ गया की भौजी ने नेहा की नजरों में मुझे ही दोषी बना दिया है|

"बेटा....आपकी मम्मी को है न..मैं खुश नहीं रखता इसलिए वो मुझसे नाराज हैं!" ये कहते हुए मैंने सारे इल्जाम अपने सर ले लिए| लेकिन नेहा को इस बात पर जरा भी विश्वास नहीं हुआ; "पर आप तो मम्मी का कितना ख्याल रखते हो!" नेहा बोली|

भले ही नेहा छोटी थी पर वो मेरा भौजी के लिए प्यार देख पा रही थी और वहीँ दूसरी तरफ भौजी, जो उम्र में मुझसे बढ़ीं थीं पर उन्हें मेरा प्यार दिख ही नहीं रहा था| कई बार छोटे बच्चे उन भावनाओं को समझ लेते हैं जिन्हें हम बड़े नहीं समझ पाते| शायद यही कारन था की नेहा मेरी उदासी को देख और समझ पा रही थी पर भौजी उसे देख कर भी अनदेखा कर रहीं थीं|


खैर मैं नेहा के सवाल का जवाब नहीं दे सकता था इसलिए मैंने बात घुमा दी; "वो सब छोडो बेटा और आप ये बताओ की अब मम्मी की तबियत कैसी है? वो ठीक से खाना खातीं है न? दवाई देते हो न आप टाइम से? रात में ठीक से सोती हैं न?"

"मम्मी अब पहले से ठीक हैं, खाना भी खातीं हैं और दवाई भी लेतीं हैं पर......वो न...रात को...रोतीं हैं!" नेहा ने बड़ा झिझकते हुए कहा| उसका जवाब सुन कर मैं समझ गया था की ये जवाब भौजी ने ही उन्हें रटवाया है और उसे ये भी हिदायत दी होगी की वो मुझे भौजी के रोने के बारे में न बताये| पर नेहा मुझसे कुछ नहीं छुपाती थी, इसलिए उसने झिझकते हुए सब सच बोल दिया| "बेटा...सब ठीक हो जायेगा!" ये कहते हुए मैंने नेहा को दिलासा दिया और उसका ध्यान मैंने इधर-उधर की बातों में लगा दिया| दैनिक कार्य निपटा कर मैं फिर से गाय खोल कर चराने चल दिया, उसी बाग़ में पहुँच कर मैं फिर से एक आम के पेड़ के तले बैठ गया और सोचने लगा| पिछले दो दिन से मैं देख पा रहा था की भौजी की तबियत में सुधार है, अब मैं बीएस मन ही मन हिसाब लगा रहा था की और कितने दिन मैं यहाँ रह कर भौजी का ये तिरस्कार सह सकता हूँ!


दोपहर को घर लौटा और देखा तो नेहा गायब थी| मैं उसे ढूँढ़ते हुए भौजी के घर में घुसा तो पाया की नेहा भौजी के साथ सो रही है| पास ही एक जूठी थाली पड़ी थी और एक कटोरी जिसमें दवाई पीने के निशान थे| मैंने एक नजर भौजी को देखा तो पाया की वो जाएगी हुई हैं पर सोने का नाटक कर रही हैं| मैंने हिम्मत कर के उन्हें आवाज दी; "भौजी...!" पर वो कुछ नहीं बोलीं अलबत्ता दूसरी तरफ मुँह कर के सो गईं| मैं आगे कुछ नहीं बोलै और उनकी झूठी थाली और कटोरी ले कर बाहर आ गया और उन्हें बर्तन धोने के स्थान पर रख बड़े घर की तरफ जाने लगा| रसिका भाभी ने मुझे खाने के लिए रोका तो मैंने उनसे झूठ कह दिया की मेरा पेट खराब है! बड़े घर आ कर मैं पेट के बल लेट गया और कुछ ही देर में मुझे नींद आ गई| शाम को जब उठ कर मैं छप्पर के पास आया तो देख चन्दर भैया मुँह फुला कर गुस्से में घूम रहे हैं| उस टाइम भौजी अम्मा और माँ के साथ बैठीं हँसते हुए कुछ बात कर रहीं थीं, मुझे देखते ही चन्दर भैया को गुस्सा आया और वो मेरी बगल से निकल गए| मैं एकदम से हैरान उन्हें देखता रहा और कुछ समझ पाता उससे पहले ही पिताजी और बड़के दादा खेतों की तरफ से निकलें और मुझे देखते ही पूछने लगे; "ठीक हो गया तेरा पेट?" पिताजी के आवाज सुनते ही मैं उनकी तरफ मुड़ा और झूठ बोलते हुए कहा; "जी" भौजी ने छप्पर के नीचे से मेरी बात सुन ली थी और वो समझ गईं थी की दोपहर को उनके किये गए व्यवहार के कारन ही मैंने खाना नहीं खाया है| "का हुआ मुन्ना?" बड़की अम्मा ने छप्पर से निकलते हुए पुछा; "वो अम्मा सुबह से पेट में गुड़-गुड़ हो रही थी!" मैंने बड़की अम्मा से झूठ कहा| मुँह धोने के बहाने से मैं हैंडपंप पर आया और मुँह-धोने लगा|


मुँह धो कर मैं अभी अपना मुँह साफ़ ही कर रहा था की मुझे नेहा के रोने की आवाज आई| मैं फ़ौरन छप्पर के नीचे जा पहुँचा और मुझे देखते ही नेहा ने रोते हुए अपने हाथ खोल दिए ताकि मैं उसे गोद ले लूँ| मैं उसे गोद में लेने पहुँचा तो भौजी ने नेहा को थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया, मैंने एकदम से उनका हाथ पकड़ लिया और गुस्से से उन्हें देखा| मेरे मुँह पर गुस्सा देख भौजी सहम गई और उन्होंने अपना सर झुका लिया, मैंने नेहा को गोद में लिया और उसे पप्पी करते हुए दूर आ गया| नेहा का रोना सुन पिताजी भी मेरे पास आगये और नेहा से पूछने लगे; "का हुआ मुन्नी? के डांटिस है तोहका?" नेहा ने एकदम से छप्पर की तरफ ऊँगली कर दी| पिताजी ने नेहा का मन बहलाने को दूर से ही डाँटा; "के डांटिस ही हमार मुन्नी को!" उनकी आवाज में गुस्सा नहीं बल्कि प्यार था और ये सुन कर माँ छप्पर के नीचे से बोलीं; "बहु!"

"मुन्नी कउनो बात नहीं, तोहार महतारी है, कभी अगर डाँट देहिस तो का हुआ? हमूं कभों-कभों तोहार चाचा को डाँट देइत है तो ई थोड़े ही रोये लागत है!" पिताजी की बात सुन कर नेहा ने रोना बंद कर दिया और मेरे कंधे पर सर रख कर चुप हो गई| मैं नेहा को गोद में लिए घर से कुछ दूर आ गया; "बेटा आप चिप्स खाओगे?" मैंने कहा तो नेहा एकदम से खुश हो गई, फिर उसे चिप्स दिलवा कर मैं घर लौट आया| "बेटा मम्मी मेरी वजह से अभी थोड़ा परेशान है, अगर गलती से आपको कभी डाँट दें तो आप रोना नहीं और अपनी मम्मी का ख्याल रखना|" मैंने नेहा को सीख दी जिसे उसने तुरंत मान लिया| मैंने उसे गोद से उतारा तो वो तुरंत भौजी के पास चली गईं और उन्हें अपने हाथ से चिप्स खिलाया| मैं भौजी को छप्पर के नीचे से देख पा रहा था और मुझे लगा शायद वो कुछ बोलें पर उन्होंने कुछ नहीं कहा और नेहा का हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया| मैं आँखें फाड़े उनका ये रूखा व्यवहार देखता रहा| अब मेरा सब्र जवाब देने लगा था, मैंने सोच लिया था की आज रात मैं भौजी से खुल कर बात करूँगा| फिलहाल के लिए मैं चुप-चाप चल दिया और आ कर कुएँ की मुंडेर पर सर झुका कर बैठ गया| खाना बनने तक मैं अकेला वहाँ बैठ रहा, जैसे ही खाना बना भौजी अपना और नेहा क खाना ले कर मेरे सामने से होते हुए अपने घर में घुस गईं| "मानु चल खाना खा ले!" माँ ने कहा तो मैं हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया| मैं, पिताजी, बड़के दादा, अजय भैया और चन्दर भैया एक कतार में बैठ गए| बातों का दौर शुरू हुआ और मुझे उठने का मौका ही नहीं मिला, सब के खाने तक मैं वहीं बैठा रहा| दस मिनट बाद नेहा थाली ले कर निकली और वो हाथ धो कर जा रही थी की मैंने उसे इशारे से अपने पास बुलाया पर भौजी अपने घर के दरवाजे पर खड़ीं थी, जैसे ही उन्होंने नेहा को मेरे पास जाते हुए देखा वो जोर से चिल्लाईं; "नेहा!!!" उनकी गुस्से भरी आवाज सुन नेहा दर गई और मेरे पास ना आकर भौजी के पास चली गई| एक बार फिर मैं खामोश रहा और किसी तरह सह गया! मैंने फटाफट खाना खत्म किया और बर्तन रख कर भौजी के घर की तरफ चल दिया| भौजी के घर का दरवाजा खुला था, जैसे ही मैं दरवाजे के पास पहुँचा की भौजी एकदम से मेरे सामने आईं, उन्होंने मुझे गुस्से से देखा और मेरे मुँह पर जोर से दरवाजा बंद कर दिया|


अब मेरे गुस्से की इन्तहा हो गई थी, सारे सब्र के बाँध टूट चुके थे| मैंने गुस्से में आ कर भौजी के दरवाजे पर एक जोरदार मुक्का मारा और अपने बिस्तर पर आ कर लेट गया| मुझे लगा शायद भौजी दरवाजा खोलेंगी पर ऐसा नहीं हुआ, शुकर है की किसी ने ये सब नहीं देखा था| वो पूरी रात मैं गुस्से में करवटें बदलता रहा, मैंने सोच लिया था की कल मैं भौजी से साफ़-साफ़ बात करूँगा| अगर उन्हें मेरा यहाँ होना पसंद नहीं तो मैं परसों ही चला जाऊँगा और फिर कभी उन्हें अपनी शक्ल नहीं दिखाऊँगा| बड़ी बेसब्री से जागते हुए मैंने सुबह का इंतजार किया, सुबह उठते ही भौजी घर से बाहर निकलीं और अपनी अकड़ी हुई गर्दन ले कर मेरे सामने से गुजरीं| मैंने एकदम से उठ बैठा और गुस्से से उनसे बात करने को आगे बढ़ा की तभी पिताजी ने मुझे आवाज दे आकर अपने पास बुलाया;

पिताजी: लाड साहब तैयार हो जाओ, हम तुम्हारे मौसा जी के यहाँ जा रहे हैं|

मेरे मौसा जी यानी बड़की अम्मा की बहन के पति|

मैं: पिताजी...मेरा मन नहीं है!

पिताजी: क्यों?

मैं: बोर हो जाऊँगा!

पिताजी: तो यहाँ रह कर क्या करेगा? गाय चऱायेगा?

मैं: नहीं पिताजी आज नींद पूरी नहीं हुई, अभी और सोऊँगा|

पिताजी: (गुस्से में) यहाँ सोने आया है?

माँ: आप छोड़िये इसे, ये अपनी भौजी की वजह से नहीं जा रहा|

माँ ने मेरा बचाव किया, पर घर में कोई नहीं जानता था की मेरी और भौजी की बोल-चाल बंद है|

पिताजी: देख ले एक रात की बात है कल दोपहर तक आ जायेंगे?!

मैं: सॉरी पिताजी...पर मन नहीं है!

इसके आगे पिताजी ने कुछ नहीं कहा|

माँ-पिताजी तैयार होने लगे और उन्हें दिखाने के लिए मैं भी उनके सामने चारपाई पर पड़ा रहा| मैं मन ही मन सोच रहा था की कब वो निकलें और मैं जा कर भौजी से फैसला करूँ| इतने में वरुण और अजय भैया आ गए, वरुण मुझसे मिलने लगा तथा अजय भैया पिताजी से उनकी बेल्ट माँगने लगे; "तू कहाँ जात है?" पिताजी बोले तो अजय भैया ने मुँह बनाते हुए कहा; "ससुरी को मायके छोड़ने!" पिताजी अजय भैया के मुँह बनने का कारन जानते थे इसलिए उन्हें समझाते हुए कहा; "रास्ते मा लड़ाई न किहो और सांझ ढले तक आजायो!" अजय भैया ने बेल्ट पहनी और मुस्कुराते हुए रसिका भाभी को ले कर निकल गए| दरअसल रसिका भाभी के मायके जाने का कारन था घर का काम करना| भौजी के बीमार होने के बाद तकरीबन एक हफ्ते से वो ही चूल्हा-चौका संभाले हुईं थी, और जैसे ही भौजी की तबियत ठीक होने लगीं उन्होंने घर जाने की रट लगा ली थी|



अजय भैया के जाने के कुछ देर बाद मा-पिताजी भी चले गए| बड़के दादा और बड़की अम्मा खेत निकल गए थे और चन्दर भैया को खेत आने को कह गए थे| मैं बड़े घर के आंगन में लेटा परेशान था, अंदर ही अंदर मुझे भौजी की बातें खाए जा रही थी| मेरी अंतर् आत्मा ने कहा की आखरी बार भौजी को समझा वो जर्रूर समझ जाएँगी| ये सोच मैं उठा और उनके घर की ओर चल पड़ा, मैं अभी बड़े घर के दरवाजे पर था की मुझे भौजी के घर से शोर सुनाई दिया, जैसे की कोई डाँट रहा हो| मैं उत्सुकता वश उनके घर की तरफ दौड़ा, अंदर जा के देखा तो चन्दर भैया के हाथ में चमड़े की बेल्ट थी और वो भौजी को गालियाँ दे रहे थे| भौजी बेचारी स्नानघर के पास जमीन पर बैठीं थीं तथा नेहा उनकी गोद में अपना मुँह छुपाये रो रही थी| (भौजी ओर नेहा नीचे दिखाए चित्र की तरह बैठे थे|)




भौजी की आँखों से आँसुओं की धरा बह रही थी ओर ये देख मुझे गुस्सा आ रहा था| चन्दर भैया की पीठ मेरी तरफ थी इस कारन न तो अभी तक उन्होंने मुझे देखा था और न ही भौजी ने मुझे देखा था| इधर जैसे ही चन्दर भैया ने भौजी को मारने के लिए बेल्ट उठाई, मैंने पीछे से उनकी बेल्ट पकड़ ली| चन्दर भैया एक दम से पीछे मुड़े और मेरे हाथ से अपनी बेल्ट छुड़ा ली| मैं फिर भी उनके हाथ से बेल्ट छुड़ाने की कोशिश करने लगा और तब मुझे उनके मुँह से देसी दारु की तेज दुर्गन्ध आई| साफ़ जाहिर था की वे नशे में धुत्त थे, उनके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था, दारु उनके दिमाग पर कब्ज़ा कर चुकी थी और वो अपना गुस्सा आज भौजी पर निकालना चाहते थे| दिखने में चन्दर भय मेरे मुक़ाबले बलिष्ठ थे और उनके आगे मेरी एक न चली, उन्होंने मुझे जोर दार धक्का दिया और बोले; "हट जा सरु...वरना अगला नंबर तोहार है|"


मैं अब भौजी और चन्दर भैया के बीच जमीन पर पड़ा था, मैं फटफट उठ खड़ा हुआ की इतने में पीछे से भौजी की रोते हुए आवाज आई; "हट जाओ मानु!" पर मैंने पलट कर उनकी तरफ देखा ही नहीं और भैया से दुबारा बेल्ट छीननी चाही पर चन्दर भैया ने मेरी छाती पर जोरदार धक्का दिया जिससे मैं पीछे को गिरने लगा पर किसी तरह मैंने खुद को गिरने से बचा लिया| मैं सम्भल कर खड़ा हुआ, मेरी पीठ चन्दर भय की तरफ थी और मुँह भौजी की तरफ| भौजी का रोटा हुआ चेहरा देख मैं गुस्से से चन्दर भैया की तरफ पलटने ही वाला था की चन्दर भैया ने अपनी बेल्ट से एक जोरदार वार मेरी पीठ पर किया| उनके पहले वार से ही मेरे मुँह से जोर दार चीख निकली; "आह!!! अह्ह्हह्ह!!!! उम्म्म!!!" पूरे जिस्म में दर्द का संचार हो गया था, मुझे दर्द में देख भौजी ने नेहा को खुद से दूर किया वो मेरे पास आईं| मैंने उन्हें धक्का दे कर खुद से दूर कर दिया, भौजी कुछ बोल पातीं उससे पहले ही चन्दर भैया दारु के नशे में गरजते हुए बोले; "सरऊ बहुत शौक है न तोहका इसे बचाने का न... ई ले... और ले... बहुत भौजी-भौजी करत....इसके आगे-पीछे घूमत है....और ले...!" ये कहते हुए चन्दर भैया ने बिना रुके अपनी बेल्ट से वार करने शुरू कर दिए थे! किसी तरह खुद को मजबूत किये मैं खड़ा रहा, चिल्लाता रहा, करहाते रहा| भौजी एक बार फिर मुझे हटाने को आगे आईं तो मैं करहाते हुए बोलै; "आपको मेरी कसम.....आअह!!! बीच मत आओ!" भौजी ने घुटनों पर बैठ कर मेरी अनगिनत विनती कर पर मैं केवल ना में सर हिलाता रहा| भौजी नहीं मानी और मुझे हटाने को फिर से आगे आईं, पर मैंने उन्हें धक्का दे के दूर कर दिया| मेरी आँखों से पानी लगातार बह रहा था और कराहना भी चालु था!!! भाभी नीचे पड़ी सब देख रहीं थी और रो रही थी, उन्हें पता था की चाहे कुछ भी हो मैं हटने वाला नहीं| मेरी कराह सुन नेहा भागती हुई भौजी की गोद में अपना मुँह छुपा के बैठ गई और जोर-जोर से रोने लगी| मेरे अंदर सहने की कितनी ताक़त है ये मुझे उस दिन पता चला, मैं चाहता तो वहाँ से हट सकता था पर फिर चन्दर भैया का गुस्सा भौजी पर निकलता और वो ये सब सह नहीं पातीं|

नेहा को रोता हुआ देख मेरा खून खोल रहा था, मन कर रहा था की चाक़ू से गोद-गोद कर चन्दर भैया का खून कर दूँ| उन्होंने मेरी फूल जैसी बच्ची को रुलाया और मेरी भौजी, जिन्हें मैं अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता हूँ उन्हें दुःख पहुँचाया| परन्तु उस वक़्त मुझ में हिम्मत नहीं थी की मैं उनके बलिष्ठ शरीर का सामना करूँ!!! भौजी ने एकदम से चन्दर भैया के आगे हाथ जोड़ दिए और बोलीं; "मानु को छोड़ दो.... इसने आपका क्या बिगाड़ा है... मारना है तो मुझे मारो!!!" भौजी की हिंदी में कही बात सुन उनका गुस्सा और बढ़क गया और उन्होंने एक जोरदार वार मेरी पीठ पर और किया; "तोहार नंबर भी आई...पहले इससे तो निपट लेइ|" चन्दर भय बोले और अब तो जैसे अपनी पूरी ताक़त से वार करने लगे| मैं अपने जिस्म को ऐंठने लगा था ताकि पीठ के दर्द को कुछ और बर्दाश्त कर सकूँ पर उससे कोई फर्क नहीं पड़ा|


भौजी चाहतीं थीं की मैं उनके और चन्दर भैया के गुस्से के बीच से हट जाऊँ, वो एक बार फिर मुझे रोकने को उठीं पर नेहा इस कदर दर-सहम गई थी की उसका रोना अब चीखने में तब्दील हो चूका था| एक 4 साल की छोटी बच्ची के सामने उसका अपना जल्लाद बाप उसके चहेते चाचू को बेदर्दी से पीट रहा था| ये सब देखना उस फूल सी नाजुक बच्ची के लिए आसान नहीं था! भौजी ने नेहा को कस कर अपनी छाती से चिपका लिया ताकि नेहा ये दर्दनाक दृश्य देख न सके| इधर मेरे लिए ये दर्द बर्दाश्त कर पाना मुश्किल होता जा रहा था, पर कुछ तो था जिसके कारन मैं अब भी ये दर्द बर्दश्त किये हुए खड़ा था| भौजी अब भी रो रहीं थीं और चन्दर भैया से मिन्नतें कर रहीं थीं पर चन्दर पर भौजी के आँसुओं का कोई फर्क नहीं पड़ रहा था|

अभी तक बस 15 मिनट हुए थे और इन 15 मिनटों में चन्दर भैया मुझ पर बीस बार बेल्ट से वार कर चुके थे! भौजी स्नान घर के पास रोती-बिलखती बैठीं थी, नेहा जो उनकी गोद में थी उसका भी रो-रो के बुरा हाल था|


क़िस्मत कहूँ, प्यार कहूँ या भगवान की कृपा समझ नहीं आता!


अचानक ही अजय भैया आ गए, पहली नजर उनकी मेरे ऊपर पड़ी और फिर चन्दर भैया पर| अजय भैया ने फ़ौरन चन्दर भैया के हाथ से बेल्ट छीनने की कोशिश की, जब वो भी नाकामयाब हुए तो वो उन्हें धकेलते हुए बहार ले गए| ठीक उसी वक़्त मैं लड़खड़ाया और जमीन पर घुटनों के बल आ गिरा, भौजी मेरे पास भागती हुई आईं और अपने पल्लू से मेरे मुख पर आये पसीने को पोछा| भौजी अब भी रोये जा रहीं थीं, जब उन्होंने ने मेरी पीठ की ओर देखा तो उनकी सांसें रूक गईं! मेरी पीठ पूरी लहू-लुहान हो गई थी, टी शर्ट कई जगह से फ़ट गईं थी और मेरी हालत भी ख़राब होने लगी थी| मुझे ऐसा लग रह था की मेरी पीठ सुन्न हो गई है, बस जहाँ-जहाँ जख्म हुए थे वहाँ तड़पाने वाली जलन हो रही थी| मैंने आज तक इतना दर्द नहीं सहा था!

भौजी ने मुझे सहारा दे के उठाया और चारपाई बिछा कर लिटाना चाहा पर सीधा तो मैं लेट नहीं सकता था इसलिए मैं पेट के बल लेट गया| भौजी ये देख कर बिफर पड़ीं ओर फुट-फुट कर रोने लगीं| नेहा उठ कर मेरे मुख के आगे खड़ी रो रही थी| मैंने लेटे-लेटे उसके आँसूँ पोछे, इतने में भौजी रुई ले के मेरे पास आई| उनके हाथ में रुई देख मैं थोड़ा हैरान था क्योंकि मुझे नहीं पता था की मेरी पीठ इतनी लहू-लोहान है| भौजी ने एक-एक कर रुई के टुकड़ों से मेरी पीठ पर लगे खून को साफ़ करने लगी और नीचे खून लगी रुई का ढेर लगने लगा| अब सच में मुझे ये ढेर देख के डर लगने लगा था, पता नहीं मेरे शरीर में खून बचा भी है की नहीं?


जारी रहेगा भाग 3 में
Ajib dard hai is update me
Wese ek vat nite ki mene isme jab bhi kabhi ladayi hoti hai gf se ya apno se to yhi kehta hu me bhi ki mar bhi nhi sakta nhi to ghar walo ka kya hoga❣️?
 

Ssking

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नौवाँ अध्याय: परीक्षा

भाग - 3
अब तक आपने पढ़ा:

भौजी ने एक-एक कर रुई के टुकड़ों से मेरी पीठ पर लगे खून को साफ़ करने लगी और नीचे खून लगी रुई का ढेर लगने लगा| अब सच में मुझे ये ढेर देख के डर लगने लगा था, पता नहीं मेरे शरीर में खून बचा भी है की नहीं?


अब आगे:

भौजी के आँसूँ बहते जा रहे थे, इधर मेरी पीठ पर से कई जगह पर चमड़ी उधड़ गई थी जिस कारन मेरे पूरे जिस्म में दर्द का संचार हो रहा था| अपने दर्द की परवाह किये बिना मुझे भौजी के आँसूँ चुभ रहे थे;

मैं: भौजी... प्लीज चुप हो जाओ...आह!!!...मैं आपको रोते हुए नहीं देख सकता....अंह!!!

मैंने करहाते हुए कहा|

भौजी: तुम क्यों बीच में आये? देखो तुमने अपनी क्या हालत बना ली?

भौजी रोटी हुई बोलीं|

मैं: तो मैं खड़ा हुआ भैया को आपको पीटते हुए देखता रहता? अंम्म्म!!!

भौजी ने रुई से मेरे कटी हुई पीठ को छुआ तो मैं दर्द से बिलबिला उठा!

मैं: मैंने आपको.......गलत समझा भौजी....आह्ह!!! उसकी कुछ तो सजा मिलनी ही थी| स्स्स्स!!!

ये सुन कर भौजी ने अपने आँसूँ पोछे और बोलीं;

भौजी: तुम सही थे मानु, मैंने ही तुम्हारी बातों को गलत समझा| तुम सही कह रहे थे, अपनी अलग दुनिया बसाना इतना आसान नहीं होता| मुझे माफ़ कर दो मानु... !!!

ये कहते हुए भौजी मेरे मुँह के सामने बैठ गईं और मेरे आँसूँ पोछे| भौजी का चेहरा देखा तो उनके चेहरे पर मुझे तड़प साफ़ दिख रही थी, उधर नेहा का मासूम सा चेहरा दर्द झलका रहा था|

मैं: चलो देर आये-दुरुस्त आये....अह्ह्ह्ह!!!

आज मैंने जो देखा और किया उससे मुझे भौजी का पहलु समझ आ गया था| भले ही उनकी जिद्द गलत थी पर उस जिद्द के पीछे छुपा मकसद सही था| भौजी चाहतीं थी की मैं उन्हें भगा ले जाऊँ क्योंकि उनका जल्लाद पति उनपर अत्याचार करता था| मैं अपना मन बना चूका था की मैं उन्हें इस नर्क से निकाल कर रहूँगा, फिर चाहे इसके लिए मुझे मजदूरी क्यों न करनी पड़े!

"भौजी..." मैं आगे कुछ कह पाता उससे पहले ही अजय भय आ गए|

अजय भैया: भाभी भैया मानु भय को काहे मारत रहे?

भौजी: सराब पी कर तुन थे और हमका मारे वाले थे की तोहार मानु भैया बीच में आईगए|

भौजी ने अजय भैया को सारा किस्सा सुना दिया और ये सुन कर अजय भैया सुन्न थे पर मुझे दर लग रहा था की पिताजी को जब ये पता चला तो क्या होगा? इसलिए मैंने इस बात को दाबाना चाहा;

मैं: भैया आपको और भौजी को मुझसे एक वादा करना होगा|

मैंने जैसे-तैसे दर्द की टीस को सहते हुए कहा|

अजय भैया: क्या भैया बोलो?

मैं: ये बात हम तीनों के आलावा और किसी को पता नहीं होनी चाहिए, ख़ास तोर पर माँ और पिताजी को, वरना आफत आ जयगी!! अह्ह्ह !!! अन्न्ह्ह !!!

इतना कहते हुए मैं दर्द से करहा पड़ा| मेरी बात सुनते ही अजय भैया चौंक गए;

अजय भैया: ई का कहत हो?

मैं: भैया अगर पिताजी को मेरी पीठ पर बने ये निशान दिख गए तो पिताजी घर सर पे उठा लेंगे....(उम्ममम!!!).... घर में लड़ाई झगड़ा हो जायेगा इस बात पर....

मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी बात पूरी की|

भौजी: मानु तुम इन घावों को कब तक छुपाओगे? वैसे भी गलती तुम्हारे भैया की है... तुम तो बस...

मैं जानता था की भौजी क्या कहेंगी और वो सुन कर कहीं अजा भैया को हम दोनों के रिश्ते पर कोई शक न हो इसलिए मेंने उनकी बात एकदम से काट दी;

मैं: नहीं भौजी...(अंहहहहहह्)!!!

अजय भैया: नाहीं मानु भय, हम तोहार बात न मानब, पाहिले हमरे संगे डकटर के चलो और फिर हम अम्मा और बाप्पा (बड़की अम्मा और बड़के दादा) से बात करित है| ऊ ही फैसला करीहें की आगे का करे का है!

मैं समझ गया था की आज बवाल तो होना तय है और मुझे ये बवाल कम से कम 2-3 दिन के लिए टालना था| पर अभी अजय भैया की बात पूरी नहीं हुई थी;

अजय भैया: हम जाइके साइकिल मांग लाईत है, हमार साइकल तो चन्दर चन्दर भैया ले गए!

ये सुन कर मैं हैरान हुआ की जो इंसान नशे में इतना धुत है वो भला साइकिल कैसे चलाएगा?

मैं: कहाँ?

अजय भैया: हियाँ पासे में एक लड़कवा राहत है, ऊ भैया को दोस्त है|

अजय भैया निकलने लगे तो मैंने उन्हें रोक दिया;

मैं: भैया आप बस मुझे एक पैन (PAIN) किलर ला दो, उससे ठीक होजायेगा|

ये सुनते ही भौजी जोर देने लगीं की मैं चला जाऊँ पर मुझ में अब हिम्मत नहीं थी की मैं उठ कर बैठूं!

मैं: भौजी मुझे में हिम्मत नहीं है की मैं उठ कर बैठूं| दर्द ठीक हो जाएगा तो मैं कल चला जाऊँगा| मैंने अजय भैया से दुबारा कहा तो वो बोले;

अजय भैया: अभी लाईत है|

अजय भैया PAIN किलर लेने गए और भौजी अंदर से मलहम ले आईं, जो पीठ थोड़ी देर पहले सुन्न थी अब जैसे उसमें वापस खून दौड़ने लगा था| जिस कारन मेरा दर्द दुगना हो गया था, जैसे ही भौजी ने मेरी पीठ पर मलहम लगाया, मैं तड़प कर चीख उठा;

"आआाआअअअअअह!!!" मेरी चीख सुन भौजी डर गईं र उनके चेहरे पर फिर आँसूँ बहने लगे| मैं भौजी का चेहरा नहीं देख पाया था पर मेरा दिल उनका दुःख महसूस कर पा रहा था| भौजी ने धीरे-धीरे मलहम लगाना चूरू किया पर अब उनके छूने भर से दर्द हो रहा था| तभी अजय भैया PAIN किलर लाये, मैंने झट से गोली ली और वापस पट के बल लेट गया, उसके बाद मुझे होश नहीं था की क्या हुआ| जब मेरी आँख खुली तो भौजी मेरे सिरहाने बैठी थीं| PAIN किलर का असर खत्म हो चूका था और रह-रह के दर्द हो रहा था| इधर भौजी मुझे पँखा कर रही थी, ठंडी हवा जब मेरी पीठ को छूती तो दर्द कुछ कम होता| समय का ठीक से तो पता नहीं, पर रात हो चुकी थी, मैं बड़ा सम्भल कर उठ ने लगा ताकि दर्द ज्यादा न हो| मेरे उठते ही भौजी अपने आँसूँ पोंछती हुई उठी और मुझे सहारा देने लगी;

भौजी: अब कैसा लगा रहा है? दर्द कुछ कम हुआ?

भौजी ने सिसकते हुए कहा|

मैं: नहीं....जब तक गोली का असर था तब तक तो कुछ पता नहीं था.....(ऊह्ह्म्म!!!)....क्या टाइम हुआ है?

भौजी: 9 बजे होंगे|

मैं: ये कौन सी गोली दी थी भैया ने, जो मैं इतनी देर सोता रहा? (ओह्ह्ह्ह!!!)

भौजी: एक हरे पत्ते की गोली है!

मैं: हम्म्म

भौजी: मैं तुम्हे दोपहर खाने के लिए उठाने आई थी, पर तुम उठे ही नहीं! चाचा-चाची का भी फ़ोन आया था, उन्होंने कहा की वे कल सुबह आएंगे|

माँ-पिताजी के फ़ोन आने की बात सुन कर मैं थोड़ा चिंतित हो गया|

मैं: आपने उन्हें इस सब के बारे में तो नहीं बताया? (ओह्ह्ह!!)

भौजी: नहीं....मैंने अजय को मना कर दिया था, नहीं तो वे चिंतित होते और आधी रात को ही यहाँ पहुँच जाते!

मैं: ठीक है....(अंह्ह्ह!!!)

भौजी: अब चलो पहले चलो हाथ मुँह धो लो और भोजन कर लो, फिर मैं आयुर्वेदिक तेल से मालिश कर देती हूँ, शायद उससे आराम मिले|

भौजी का सहारा ले कर मैं खड़ा हुआ और फिर उनकी मदद से मैंने हाथ-मुँह धोये| फिर भौजी नेखुद अपने हाथ से मुझे खाना खिलाया और मैंने उन्हें खाना खिलाया| उसके बाद भौजी ने वो आयुर्वेदिक तेल लगाने लगीं;

मैं: अम्मा और बड़के दादा...(आअह!!!) सो गए क्या?

भौजी: हम्म्म....सब सो गए...सिर्फ हमदोनों जगे हैं|

मैं: तो आप सब (आह्हःणम्म!!!) ने उनसे कुछ कहा?

भौजी: हाँ...अजय ने उन्हें सारी बात बताई और ये सुन कर उन्हें बहुत गुस्सा आया और वो शर्मिंदा भी हुए!

मैं: मैं समझ सकता हूँ| (उम्म्म!!!) पर आपने कभी बताया नहीं की भैया इससे पहले भी आपको तंग कर चुके हैं? आपसे बदसलूकी कर चुके हैं!(अनन्नह!!!)

भौजी: मैं जानती थी की तुम्हें जान के दुःख होगा, इसलिए नहीं बताया| उनके दिमाग में तो बस "एक" ही चीज चलती रहती है, फर चाहे कोई जिए या मरे| मुझसे लड़ाई-झगड़ा कर के वो अपने दोस्त के घर चले जाते हैं और फिर वहीं से मामा जी के घर!

भौजी ने निराश होते हुए कहा| भौजी की बात सुन कर मेरा दिल बहुत दुःखा, फिर अचानक एक जिज्ञासा हुई की क्यों न आज भौजी से सब बात पूछूँ;

मैं: भौजी...अगर आप बुरा ना मनो तो मैं एक बात पूछूँ? (म्म्म्म!!!)

मैंने झिझकते हुए कहा|

भौजी: हाँ पूछो?

भौजी ने तेल की शीशी रख दी थी और वो मरतर्फ मुँह कर के बैठ गईं;

मैं: आपने बताया था की चन्दर भैया ने आपकी छोटी बहन के साथ....

मैंने जान-बुझ के बात पूरी नहीं की, क्योंकि मेरा वो बात पूरा करना ठीक नहीं था!

भौजी: हाँ...ये तबकी बात है जब मेरा रिश्ता तुम्हारे भैया के साथ तय हुआ था| तब वे हमारे घर दो दिन के लिए रुके थे, उसी दौरान वो अनर्थ हुआ|

भौजी की ये बात सुनने के बाद मुझे लगा की उनके जख्म हरे हो गए हैं, इसलिए मैंने बात वहीं खत्म कर दी;

मैं: मुझे माफ़ करना भौजी मुझे आपसे वो सब नहीं पूछना चाहिए था|

भौजी: कोई बात नहीं मानु, तुम्हें ये बातें जानने का हक़ है| खेर छोडो इन बातों को, ये बताओ अब दर्द कुछ कम हुआ?

मैं: हम्म्म...थोड़ा बहुत... पर अब भी पीठ जल रही है| ऐसा लग रहा है की जैसे किसी ने पीठ में अंगारे उड़ेल दिए| काश यहाँ बर्फ मिल जाती! (अम्म्म्म!!!)

मैंने भौजी से वही पैन किलर माँगी पर भौजी के पास वो दवाई नहीं थी, वो अजय भैया को जगाने जाना चाहती थीं| पर मैंने उन्हें रोक दिया; "रहने दो, अजय भैया जाग गए तो मुझे बाहर सोना पड़ेगा! कम से कम आज रात आपके पास सो तो सकता हूँ!" मैंने थोड़ा हँसते हुए कहा जिससे माहौल थोड़ा हल्का हुआ| "क्या फायदा? तुम तो अलग चारपाई पर हो?" भौजी ने भी मेरे मज़ाक को थोड़ा आगे बढ़ाया जिस कारन हम दोनों हँस पडे! पर पीठ में दर्द था, डॉक्टर ने भौजी को एक PCM लिखी थी, तो मैंने भौजी से एक PCM ले ली और उम्मीद करने लगा की इससे मेरा दर्द कम होगा| दवाई लेके मैं जैसे-तैसे करवट लेके लेट गया, पर चैन कँहा था, ऊपर से करवट बदलने के लिए भी मुझे काफी मशक्त करनी पड़ रही थी| रात को गर्मी ज्यादा थी इसलिए मैं, भौजी और नेहा तीनों आँगन में ही सो रहे थे| रात के करीब साढ़े बारह बजे होंगे, नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी और बार-बार करवट बदलने से चारपाई चूर-चूर कर रही थी| भौजी को एहसास हो गया था की पीठ में हो रही जलन मुझे सोने नहीं देगी| जैसे ही मैं दुबारा बायीँ करवट लेके लेट गया, तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने कभी कामना भी नहीं की थी| भौजी मेरे बिस्तर पर आईं और पीछे से मुझसे चिपक कर लेट गईं| मेरी पीठ पर एकदम से ठंडा एहसास हुआ| दरअसल भौजी ने ऊपर कुछ भी नहीं पहना हुआ था और उनके नंगे स्तन मेरी पीठ में धंसे हुए थे इस कारन मेरी पीठ को ठंडी रहत मिली थी! ठन्डे एहसास से मेरा दर्द तो कम हुआ पर मुझे भौजी का ये करना अजीब लगा;

मैं: भौजी ये आप क्या कर रहे हो?

मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा|

भौजी: क्यों? तुम अगर मुझे गर्माहट देने के लिए मुझसे चिपक के सो सकते हो तो क्या मैं तुम्हें अपने नंगे बदन से ठंडक भी नहीं दे सकती?

भौजी की बात सुन मैं कुछ नहीं बोला बस उनका हाथ जो मेरी छाती पर था उसे कस के दबा दिया| कुछ मिनट ऐसे ही लेटे रहने के कारन मेरे अंदर वासना भड़कने लगी थी| मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे और ये आग भौजी भी महसूस कर रही थी| मेरा अंतर मन मेरी इस वासना की आग को गलत ठहरा रहा था, इस समय मेरा भौजी के संग सम्भोग करना ऐसा होता जैसे उनकी रक्षा करने के एवज में मैं उनसे उनके तन का सुख भोगना चाहता हूँ, इसलिए मैं उठ के बैठ गया तथा भौजी की ओर पीठ कर के खड़ा हो गया| मेरे मन में उठ रहे विचारों के कारन मैं भौजी से नजरें नहीं मिला पा रहा था और खुद को कुछ भी बोलने से रोक ने लगा| पर भौजी को एरा ये बर्ताव खटकने लगा और वो एकदम से मेरे पीछे आके खड़ी हो गईं, फिर अगले ही पल उन्होंने मुझे पीछे से जकड लिया| उनके नंगे स्तन मेरी पीठ में आ लगे, इस जकड़न ने मेरी वासना की आग में घी का काम किया;

भौजी: क्या हुआ मानु? तुम इस तरह यहाँ क्यों आ आगये?

भौजी ने थोड़ी चिंता जताते हुए कहा|

मैं: बस अपने आपको रोकने की नाकाम कोशिश कर रहा था|

भौजी: रोकने की? किस लिए? और क्यों? क्या तुम्हें मेरा साथ अच्छा नहीं लगता?

भौजी ने एकदम से अपने सवालों की बौछार कर दी;

मैं: ऐसा नहीं है...मैं वो.....

कहना तो मैं सच चाहता पर थोड़ा क़तरा रहा था, लेकिन भौजी ने मेरी बात काट दी;

भौजी: समझी...तुम मेरी कही बात को लेके अब भी नाराज हो?

भौजी की बात सुन मैं चुप रहा और हिम्मत इक्कट्ठा करने लगा ताकि मैं भौजी को अपनी वासना की आग के बारे में बता सकूँ! कुछ पल चुप रहा, पर फिर मुझे लगा की अगर मैंने कुछ नहीं किया तो भौजी का दिल टूट जायेगा और मैं ऐसा कतई नहीं चाहता था| मैं बिना कुछ कहे एकदम से पलटा और भौजी के चेहरे को थाम उनके होंठों से अपने होठों को मिला दिया|


अचानक ही मुझ पर वासना बेकाबू हो गई, मैं सब दर्द भूल गया और बेतहाशा भौजी के होंटों को चूसता रहा! भौजी ने खुद पर हुए इस अचानक आक्रमण का ज़रा भी विरोध नहीं किया, बल्कि धीरे-धीरे वो भी मेरा साथ देने लगीं| उन्होंने अपना मुख हल्का सा खोला और मैंने बिना मौका गंवाए उनके मुख में अपनी जीभ प्रवेश करा दी! जब उन्होंने अपनी जीभ से जवाबी हमला किया तो मैंने उनकी जीभ को अपने दातों तले दबा दिया और रसपान करने लगा| मैं काबू से बाहर हो गया था, मेरे हाथ अब फिसलते हुए भौजी के कंधो तक आगये थे| मैंने चुंबन तोडा और झुक के भौजी के दायें स्तन को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिए| अपने अंदर भड़की वासना के कारन मैंने बिना सोचे समझे भौजी के स्तन को काट लिया! दर्द इतना तीव्र था की एक पल के लिए तो भौजी कसमसा के रह गयीं, पर उन्होंने मुझे अपने से दूर नहीं किया बल्कि मेरे सर को अपने स्तन पे दबा दिया| मैं उनके स्तन को किसी शिशु की भाँती पीने लगा और अब मेरा हाथ उनके बाएँ स्तन को मींजने लगा था| उनका बायाँ चुचुक मेरी उँगलियों के बीच था और मैं उसे भी रह-रह के निचोड़ने लगा था| जब मैं ऐसा करता तो भौजी की सिसकारी छूट जाती; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ...अम्म्म्म...हन्ंणणन्!!!!"

मैं भौजी की सिस्कारियों से उत्तेजित हो रहा था और उनके दायें चुचुक को दाँतों से दबाने लगा| मैं नहीं जानता था की मैं अनजाने में भौजी को पीड़ा दे रहा हूँ| जब मेरा मन उनके दायें स्तन से भर गया तब मैंने उनके बाएँ स्तन को अपने मुख की गिरफ्त में ले लिया| अब मैं उस स्तन का भी स्तनपान करने लगा और दायें स्तन को अपने हाथों से मींजता रहा| कभी चूसता...कभी काटता...कभी उनके चुचुक को ऊँगली में दबा कर निचोड़ देता| जब मेरा मन भर गया तब मैंने भौजी के स्तनों की हालत देखी| दोनों स्तन लाल हो चुके थे और भौजी के मुख पर आँसूँ की कुछ बूँदें छलक आईं थी, पर भौजी ने एक शब्द भी नहीं कहा था! वो चाहतीं तो मुझे रोक सकती थीं, या बता सकती थीं की मानु मुझे दर्द हो रहा है, पर उन्होंने मुझसे इसकी ज़रा भी शिकायत नहीं की| मैं कुछ क्षण तक आँखें फाड़े उन्हें देखता रहा...निहारता रहा....और सोचने लगा की क्या सच में वो मुझे इतना प्यार करती हैं?

मैं: भौजी आपको दर्द हो रहा था न?

मैंने थोड़ा मायूस होते हुए कहा|

भौजी: नहीं तो!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: मुझे माफ़ कर दो, वासना के आवेग में मैं कुछ ज्यादा.....

भौजी ने एकदम से मेरी बात काट दी;

भौजी: आज के बाद अगर फिर कभी तुमने हमारे प्यार को वासना कहा ना तो फिर देख लेना!

भौजी ने मुझे थोड़ा डाँटते हुए कहा, उनकी डाँट सुन कर शर्म से मेरा सर झुक गया|

भौजी: इतने दिनों से मेरी बेवकूफी की कारन हम दोनों तड़प रहे थे और अभी जो हो रहा है ये उस बर्बाद किये हुए समय का ख़ामियाजा है!

भौजी ने प्यार से कहा और फिर मेरी ठुड्डी ऊपर उठाई| मेरी आँख उनसे मिली और उनकी आँखों में मुझे वही इज्जत और प्यार दिखा जो पहले दिखता था|

भौजी: पर तुमने ऐसा क्यों पूछा?

मैं: क्योंकि आप झूठ बोल रहे हो! आपके स्तन पर बने ये लाल निशान कुछ और ही कहानी बता रहे हैं|

मैंने भौजी के स्तनों की तरफ ऊँगली करते हुए पुछा|

भौजी: ये तो तुम्हारे प्यार की निशानी है, जब तुम नहीं होगे तब ये मुझे तुम्हारे साथ बिताये हर लम्हे की याद दिलाएंगे|

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा, नजाने क्यों पर मैं उनके दर्द को भाँप गया था, मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही भौजी निचे घुटनों के बल बैठीं और मेरी पेंट खोल दी| मेरा लिंग बाहर निकाला और उसे पहले तो चूमा, फिर अपनी जीभ के बीच वाले भाग से एक बार चाटा; "स्स्स्स...अंह्ह्ह!!!!" मेरी सिसकारी छूटी|

अब उन्होंने अपना मुख पूरा खोला, जीभ बाहर निकली और जितना हो सकता था मेरे लिंग को अपने मुख में भर लिया| मेरा लिंग उनकी जीभ और तालु के बीच में रगड़ा जा रहा था, मुझे इतना मज़ा आ रहा था की मैं अपने पंजों के बल खड़ा हो गया| मेरे रोंगटे खड़ा हो चुके थे!! भाभी ने धीरे-धीरे मेरे लिंग को मुख में भरे अपनी गर्दन को आगे पीछे करना शुरू किया| ऐसा लगा जैसे भौजी आज मेरा सारा रस पी जाएँगी!!! मैं अब किसी भी समय छूटने वाला था इसलिए मैंने भौजी को बीच में ही रोक दिया| मैंने भौजी को कंधे से पकड़ कर खड़ा किया तथा बिना उनकी साडी उतारे उनकी बायीँ टाँग मैंने अपने हाथ में उठा ली| इधर भौजी ने अपने हाथ से मेरे लिंग को सही दिशा दिखाई, जैसे ही मुझे दिशा का ज्ञात हुआ मैंने एक जोरदार धक्का मारा! धक्के की तीव्रता इतनी तेज थी की हमारा संतुलन बिगड़ा तथा मैं और भौजी दिवार से जा टिके| अब भौजी की नंगी पीठ दिवार से लगी थी और सामने से उनके स्तन मेरी छाती में धंसे हुए थे| जैसे ही भौजी की पीठ दिवार से लगी, भौजी बड़ी जोर से छटपटाई! मैं भी हैरान था की आखिर ऐसा कौन सा तगड़ा जोर लगा दिया मैंने की भौजी छटपटा गईं?! भौजी के चेहरे पर दर्द की लकीरें साफ़ दिख रहीं थीं, उनकी आँखें बंद थीं और दर्द की लहार उनके शरीर में दौड़ रही थी!

मैं: आप ठीक तो हो ना?

मैंने घबराते हुए पुछा तो भौजी अपने आप को संभालते हुए बोलीं;

भौजी: हाँ!

पर मैं उनके जवाब से संतुष्ट नहीं था;

मैं: तो आप एकदम से छटपटाने क्यों लगे?

भौजी: वो बस ऐसे ही.. तुम मत रुको!!!

भौजी की बात से मुझे लगा की शायद मैं कुछ ज्यादा ही जोश में अपना लिंग उनकी योनि में प्रवेश करा दिया! मैंने मन ही मन खुद को लताड़ा और अपनी गति धीरे-धीरे रखी| मेरे हर झटके से भौजी के स्तन हिल जाते और भौजी की करहाने की आवाज आने लगती;

"स्स्स्स....अंंंंंं ...ममम... मानु......अह्ह्ह्हह्ह!!!"

भौजी के दोनों हाथों की उँगलियाँ मेरे सर के बालों में रास्ता बना रहीं थीं जिससे मुझे और जोश आ रहा था| कामाग्नि अब प्रगाढ़ रूप धारण कर रही थी और भौजी और मैं लग-भग चरम सीमा तक पहुँच गए थे| आनंद और उन्माद के कारन भौजी की आँखें बंद थीं और वो बस सिसकारियाँ लिए जा रही थी; "आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह,स्स्सस्स्स्स....स्स्सस्स्स्स....स्स्स्सस्शह्ह्हम्म्म...स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!!"

मैं एक दम से रुक गया और अपना लिंग बाहर खींच लिया, एक पल को तो भौजी हैरान हुईं पर जब मैंने उन्हें आगे की तरफ झुकने को खा तो वो समझ गईं| मैंने भौजी को पलटा और नीचे झुकाया जिससे वो घोड़ी के सामान झुक गयीं, मैंने अपना लिंग पीछे से उनकी योनि में डाल दिया और फिर से धक्के लगाना शुरू कर दिया| भौजी चर्म सीमा पर पहुँच गई और स्खलित हो गईं, उनका रस बहता हुआ बाहर आया और मेरे लिंग को पूरी तरह भिगो दिया| घर्षण काम हो चूका था और मैं अब भी झटके दिए जा रहा था| आगे झुके होने के कारन भौजी की पीठ चाँद की रौशनी में चमक रही थी और मेरा मन किया की मैं उसे एक बार चुम लूँ| मैंने भौजी की पीठ से बाल हटाया और जो दृश्य मैंने देखा उससे मैं सन्न रह गया| भौजी की पीठ पर बेल्ट की मार के दो निशान बने थे! ये देखते ही मेरी आँखों में खून उतर आया और मैं छिटक के भौजी से दूर हो गया| अब मुझे आभास हुआ की जब मैंने पहली बार झटका मारा था तो भौजी क्यों छटपटाई थीं| उनकी जख्मी नंगी पीठ दिवार से रगड़ गई थी जिससे उन्हें बहुत दर्द हुआ होगा| इधर भौजी को जब अपनी योनि मेरे लिंग महसूस नहीं हुआ तो वो पीछे मूड के मुझे देखने लगीं| मेरी आँखों में गुस्सा देख वो समझ गईं की मैंने उनके जख्म देख लिए हैं पर फिर भी उन्होंने अनजान बने रहने का नाटक किया;

भौजी: क्या हुआ मानु?

भौजी का ये सवाल सुन आकर मुझे बहुत गुस्सा आया;

मैं: आपकी पीठ पर वो निशान, आज सुबह के हैं ना?

मैंने गुस्से से पुछा| मेरा गुस्सा देख वो समझ गईं की अब वो मुझसे अपने जख्म नहीं छुपा सकतीं इसलिए उन्होंने सच बोला;

भौजी: हाँ...तुम्हारे आने से पहले उन्होंने मुझे...

आगे भौजी कुछ बोल पातीं मैं गुस्से में बोल पड़ा;

मैं: और आपने मुझे ये बात बताना जर्रुरी नहीं समझा?

मेरा गुस्सा देख उन्हें डर लगा पर फिर भी उन्होंने बड़ी हिम्मत से कहा;

भौजी: नहीं मानु...ये घाव तो बहुत थोड़े हैं| तुमने तो मुझ पर अपने आप को कुर्बान कर दिया था!

मैंने आगे कुछ नहीं कहा और गुस्से में उनके कमरे में घुसा| सबसे पहले मेरी नजर नेहा पर पड़ी जो करवट ले कर सो रही थी| फिर मैंने मलहम की शीशी उठाई और बाहर आ गया;

भौजी: ये क्या कर रहे हो?

भौजी ने हैरान होते हुए पुछा|

मैं: आपकी पीठ पर दवाई लगा रहा हूँ|

मैंने भौजी को थोड़ा घूर के देखते हुए कहा|

भौजी: पर तुम तो मुझे प्यार कर रहे थे और तुम तो अभी स्खलित......

भौजी का मतलब मैं समझ गया था पर इस वक़्त उनकी सेहत मेरे लिए ज्यादा जर्रूरी थी, इसलिए मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: वो सब बाद में, पहले आपकी पीठ में दवाई लगाना जरुरी है| मेरी बेवकूफी की वजह से आपका जखम और उभर गया है!

मैंने भौजी को खींच के उनकी चारपाई पर पेट के बल लिटाया और उनका घाव साफ़ कर के उस पर मलहम लगाया| भौजी ने बड़ी कोशिश की कि मैं पहले सम्भोग पूरा करूँ पर मेरा मन उनकी ये दशा देख के फ़ट गया था! इतना दुःख तो मुझे तब भी नहीं हुआ था जब मैंने उन्हें बुखार से तपते हुए देखा था| उसका कारन ये था की मैं अनजाने में जख्मी भौजी के साथ सम्भोग कर रहा था|

दिवार से उनकी पीठ रगड़ने के कारन भौजी को बहुत दर्द हो रहा था और मैं बेवकूफ उन्हें और दर्द दिए जा रहा था! मलहम लगाने के बाद मैं उन्हें पँखा करने लगा ताकि ठंडी हवा से उनके घाव को कुछ आराम मिले| अब मन ही मन मेरे अंदर गुस्सा भी उबलने लगा था और जो फैसला मैंने कुछ देर पहले लिया था, अब समय था उसे भौजी को बताने का;

मैं: मैंने एक फैसला किया है|

भौजी: क्या? स्स्स्स्स

भौजी ने दर्द से सीसियाते हुए कहा|

मैं: कल मैं, आप और नेहा घर से भाग जायेंगे|

ये सुनते ही भौजी उठ बैठीं और मेरा हाथ पकड़ते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं मानु....तुम अभी गुस्से में हो, हम कल सुबह बात करते हैं!

भौजी को लग रहा था की मैं गुस्से में बोल रहा हूँ जो की सही था पर गुस्सा मेरे सर पर सवार था!

मैं: नहीं! कल दोपहर होने से पहले जब सभी घरवाले खेत में काम करने निकल जायेंगे तब हम तीनों यहाँ से भागेंगे|

मैंने बहस करते हुए कहा|

भौजी: मानु, तुम्हें मेरी कसम .. ऐसी बात मत करो!

भौजी की ये बात सुन मैं गुस्से से तिलमिला गया और मैंने झल्लाते हुए कहा;

मैं: तो आपको यहाँ मरने के लिए छोड़ दूँ?

बस इतना कहते हुए मैं उठा और अपनी चारपाई पर जाके पेट के बल लेट गया| अब चूँकि भौजी ने मुझे अपनी कसम दी थी इसलिए मैं अभी तो चुप हो गया पर दिमाग में भौजी को भगाने का प्लान बन चूका था|


सुबह हुई और मैं फटा-फ़ट उठा, पीठ के घाव अब भी वैसे ही थे, क्योंकि दर्द कुछ कम था| मैं उठ कर भौजी के घर से बाहर आया तो बड़के दादा और बड़की अम्मा कुएँ के पास चाय पी रहे थे| मुझे देखते ही उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया;

बड़के दादा: आओ मुन्ना... बैठो| अब कैसी तबियत है तोहार? दर्द कम हुआ? नहीं तो चलो डॉक्टर के ले चली|

मैं: नहीं दादा, अब दर्द कम है|

बड़की अम्मा: लो चाय पियो|

मैं: नहीं अम्मा अभी मुँह नहीं धोया, पूजा भी नहीं की|

बड़के दादा: मुन्ना, हमें कल साँझ को अजय बताइस की का हुआ! जो कुछ हुआ उसके लिए हम दोनों प्राणी बहुत शर्मिंदा हैं|

मैं: नहीं दादा, ऐसा मत कहिये| मैं उस समय भौजी को दवाई देने जा रहा था जब मुझे चीखने-चिल्लाने की आवाज आई| मैं दौड़ा-दौड़ा वहाँ पहुँचा, आगे जो हुआ वो आपको पता ही है|

बड़के दादा: तुम ई बात छुपाये खातिर काहे कहत रहे? गलती चन्दर की है, सजा तो उसे मिलेबे करि! चाहे ऊ सजा तोहार बाप दे या हम दै| हम तोहार पिताजी को सब सच बताइदेब!

मैं: जैसा आपको ठीक लगे| मैं तो बस यही चाहता था की इस बात पर ज्यादा बवाल न हो.....वैसे अम्मा आपने भौजी का हाल तो पूछा ही नहीं?

बड़की अम्मा: काहे? ऊ को का हुआ? चोट तो तोहका लाग रही!

मैं: दरअसल अम्मा, मेरे पहुँचने से पहले भैया ने भौजी पर हाथ उठा दिया था| उनकी पीठ पर भी बेल्ट के जख्म बने होंगे!

मैं बड़की अम्मा को सब नहीं बता सकता था इसलिए मैंने बात गोलमोल की!

बड़की अम्मा: हाय राम... बहुरिया तु काहे हमका नहीं बताई?

भौजी: नहीं अम्मा....ज्यादा दर्द नहीं है!

भौजी ने बात छुपानी चाही, पर मैं बोल पड़ा;

मैं: तो आप रात में चीखे क्यों थे? अम्मा भौजी करवट लेके लेटी थी, जैसे ही ये सीढ़ी लेटी एकदम से चीख पड़ीं और उठ के बैठ गईं|

बड़की अम्मा: चल बहुरिया भीतर हम तोहका मलहम लगा देइ|


अम्मा और भौजी पुराने घर में घुसे और मैं बड़े घर की ओर चल दिया| अब समय था की मैं अपने बनाये प्लान को अंजाम दूँ! मैंने जल्दी-जल्दी अपने दो-चार कपडे पैक किये, अगला काम था पैसे का जुगाड़ करना| मेरे पास पर्स में करीब दो सौ रूपए थे, उस समय ATM कार्ड तो था नहीं, परन्तु पिताजी के पास MULTI CITY चेक की किताब थी और मुझे पिताजी के दस्तखत करने की नक़ल बड़े अच्छे से आती थी| मैंने किताब से एक चेक फाड़ा और उसमें एक लाख रुपये की राशि भर दी| जल्दी से नहा धो के तैयार हुआ, पूजा की और भगवान से दुआ माँगी की मुझे मानसिक शक्ति देना की मैं अपनी नई जिम्मेदारी निभा सकूँ|


जारी रहेगा भाग 4 में....
अद्भुत लेखनी है आपकी, आपने इसमें इतना अविश्वसनीय प्यार का चित्रण किया है जैसे भौजी और मनु के बीच संभोग और भौजी के दर्द को मनु के द्वारा महसूस करना, मनु की भावनाओं को भौजी के द्वारा समझना अत्यंत प्यार का मिश्रण है बहुत ही खूब लेखनी है आपकी , आपके मुरीद हो गए हैं भाई
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,813
31,045
304
इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की
भाग -7 (3)


अब तक आपने पढ़ा:


इधर रात के 3 बजे मेरी नींद एकदम से खुली क्योंकि मेरा जी मचल रहा था, ऐसा लग रहा था की अभी उलटी होगी! मैं तुरंत बाथरूम में घुसा पर शुक्र है की कोई उलटी नहीं हुई, मुँह धो कर मैं बाहर आया और पलंग पर पीठ टिका कर बैठ गया| मेरी नींद उचाट हो गई थी और अब दिमाग में बस ग्लानि के विचार भरने लगे थे!



अब आगे:


ग्लानि अपनी माँ से झूठ बोलने की, उस माँ से जो मुझे इतना प्यार करती है और ग्लानि उस लड़की (करुणा) को शराब पी कर तंग करने की! करुणा का नाम याद आते ही मुझे नजाने क्यों ऐसा लगने लगा की मैंने शराब पी कर उसके साथ कोई बदसलूकी की है, हालाँकि मेरा दिमाग बार-बार कह रहा था की मैंने करुणा के साथ कोई बदसलूकी नहीं की है पर मन में बसी ग्लानि इस बात को मान ही नहीं रही थी! दिमाग को ग्लानि से बचने का रास्ता चाहिए था तो उसने मेरे झूठ बोलने का ठीकरा भौजी के सर मढ़ दिया; 'मैं पहले कभी इतना धड़ल्ले से झूठ नहीं बोलता था और ये पीने की लत मुझे भौजी के कारन लगी! न वो मुझे धोखा देतीं, न मैं पीना शरू करता और ना ही मुझे माँ से झूठ बोलना पड़ता!’ जबकि अस्लियत में देखा जाए तो मेरा ये झूठ बोलना मैंने भौजी के मोह जाल में पड़ कर खुद शुरू किया था|

मैं यूँ ही आँखें खोले हुए छत को घूर रहा था और मन ही मन भौजी को दोष दिए जा रहा था, तभी मुझे याद आया की मुझे तो दिषु को कॉल करना था! मैंने फ़ट से अपना फ़ोन उठाया और देखा की उसकी notification लाइट जल रही है, फ़ोन on किया तो पता चला की करुणा और दिषु की 4-4 missed call हैं! अब रात के इस वक़्त कॉल तो कर नहीं सकता था इसलिए मैंने दोनों को मैसेज कर के बता दिया की मैं घर पहुँच गया था और बहुत नींद आ रही थी इसलिए जल्दी सो गया था| मैं जानता था की ये मैसेज करना काफी नहीं होगा, कल सुबह होते ही दिषु मुझे बहुत सुनाएगा और करुणा का क्या? करुणा का नाम याद आते ही फिर ऐसा लगने लगा की मैंने कोई पाप किया है, शायद नशे की हालत में मैंने उसके साथ......? 'नहीं-नहीं! ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे अच्छे से याद है, मैंने उसके साथ कोई बदसलूकी नहीं की!' मेरे दिमाग ने बड़े आत्मविश्वास से कहा| पर ससुरा दिल अड़ गया की नहीं मैंने कुछ तो गलत किया है, दरअसल ये दारु पी कर जो मैंने माँ से झूठ बोला था ये उसकी ग्लानि थी और यही ग्लानि नजाने क्या-क्या महसूस करवा रही थी! मैंने सोच लिया था की सुबह होते ही मैं करुणा को फ़ोन कर के माफ़ी माँग लूँगा|



बस सुबह होने तक मैं एक पल भी नहीं सो पाया, एक तो ग्लानि थी और दूसरा बियर ज्यादा पीने से जी मचला रहा था| सुबह 5 बजे मैं बिस्तर से उठा, नहाया-धोया और सीधा डाइनिंग टेबल पर पहुँचा, मुझे इतनी जल्दी उठा देख पिताजी ताना मारते हुए बोले;

पिताजी: गुस्सा शांत हो गया या अभी बाकी है?

मैं पलट कर उन्हें कोई जवाब देता तो झगड़ा शुरू हो जाता, इसलिए मैं खामोश रहा| अब माँ को ही मेरा बीच-बचाव करना था तो वो बोलीं;

माँ: अजी छोड़ दीजिये.....

माँ आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही पिताजी ने उन्हें दुत्कार दिया;

पिताजी: तुम्ही ने सर पर चढ़ाया है इसे!

अब माँ को बिना किसी गलती के कैसे झाड़ सुनने देता;

मैं: सर पर चढ़ाया नहीं, बल्कि सही-गलत में फर्क करना सिखाया है|

ये सुन कर पिताजी को मिर्ची लगी और वो कुछ बोलने ही वाले थे की मैंने एकदम से कल का सारा गुस्सा उन पर निकल दिया;

मैं: क्या गलती थी मेरी जो आपने मुझे लेबर के सामने झाड़ दिया? चेक पर साइन करना भूल गए आप, इस छोटी सी बात के लिए माल रोका आपके सेठ जी ने और गुस्सा आप मुझ पर उतार रहे थे? आपके सेठ जी एक फ़ोन कर के नहीं बता सकते थे की चेक वापस आ गया है? 150/- रुपये का टुच्चा सा नुक्सान मुझे गिना ने में उन्हें शर्म नहीं आई?! पैसे दे कर ही माल लेना था तो ले लिया मैंने दूसरे से और बिल देखा आपने? आपके सेठ जी से कम दाम लिए उसने और 30 दिन का credit period भी दिया है, मतलब अगर हमें पेमेंट मिलने में लेट हो तो 30 दिन तक वो आपके सर चढ़ कर पैसे के लिए नहीं नाचेगा! ये बिज़नेस हम पैसा कमाने के लिए करते हैं उन सेठ जी के साथ नाते-रिश्तेदारी निभाने के लिए नहीं और काहे की रिश्तेदारी जब पैसे ही देने हैं तो काहे की रिश्तेदारी? अब बोलिये क्या गलत किया मैंने?

मेरी सारी बात सुन कर पिताजी को मेरे गुस्से का कारन समझ आ गया पर फिर भी वो खामोश रहे, मैं वहाँ ठहरता तो कुछ गलत होता इसलिए मैं वापस अपने कमरे में लौट आया| घंटे भर बाद पिताजी ने मुझे आवाज दी और बाहर बुलाया;

पिताजी: मानु......बाहर आ!

उनकी आवाज में शान्ति थी, मैं सर झुकाये हुए बाहर आया तो पिताजी ने मुझे बैठने को कहा|

पिताजी: अच्छा किया जो तूने सेठ जी से काम बंद कर दिया, पर आगे से कोई भी फैसला लेने से पहले सोचा कर और कमसकम मुझे बता दिया कर!

पिताजी की आवाज में हलीमी थी इसलिए मैंने उनके आगे हाथ जोड़े और बोला;

मैं: पिताजी मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझे आपसे यूँ गुस्से से बात नहीं करनी चाहिए थी|

पिताजी: बेटा अपने गुस्से पर काबू रखा कर|

इतना कह पिताजी उठे और माँ को नाश्ता बनाने को बोला| पिताजी नहाने गए तो मैंने सोचा माँ से भी माफ़ी माँग लूँ, पर उन्हें बताऊँ कैसे की मैं पी कर आया था?! लेकिन माँ अपने बच्चे की रग-रग से वाक़िफ़ होती है, इसलिए माँ ने ही पलट कर मुझे प्यार से डाँटते हुए कहा;

माँ: सच-सच बता, कल रात पी कर आया था न?

माँ की बात सुन मेरे तोते उड़ गए, अब उन्हें सच बोलता तो उनका दिल टूटता और वो मुझे पीने से रोकने के लिए अपनी कसम से बाँध देतीं इसलिए मैंने सुबह-सुबह फिर झूठ बोला;

मैं: नहीं तो!

इतना कह मैंने उनसे नजरें चुरा ली और टेबल पर बैठ अखबार पढ़ने लगा| माँ का दिल बड़ा पाक़ होता है इसलिए उन्होंने मेरे झूठ पर भरोसा कर लिया|

नाश्ता कर के मैं पिताजी के साथ निकला और काम संभाला, थोड़ी देर बाद दिषु का फ़ोन आया और उसने मुझे प्यार से डाँटा और समझाया की मुझे अपने पीने पर काबू रखना चाहिए, ख़ास कर तब जब मेरे साथ लड़की हो| मैंने उसे 'sorry' कहा और काम में लग गया,आज शनिवार का दिन था सो मैं आधे दिन में ही गोल हो लिया और सीधा करुणा के पास पहुँचा| मुझे उससे आज माफ़ी माँगनी थी और नजाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा था की वो मुझसे नहीं मिलेगी इसलिए मैं धड़धड़ाता हुआ आज उसके हॉस्पिटल में घुस गया| मैंने हॉस्पिटल में करुणा के बारे में एक नर्स से पुछा तो उसने मेरा नाम पुछा, मेरा नाम सुन वो मुस्कुरा कर मुझे ऐसे देखने लगी मानो मैं कोई सुपरस्टार हूँ! वो मुझे अपने साथ nursing station लाई और सभी से मेरा परिचय करवाते हुए बोली; 'ये है मिट्टू!' मिट्टू सुन कर सब के सब ख़ुशी से चहकने लगे और मेरी आव-भगत में लग गए| मुझे नहीं पता था की करुणा ने मेरी तारीफों के पुल यहाँ पहले से ही बाँध रखे हैं! वहाँ सभी कोई मेरे बारे में पूछने लगे और मेरे बारे में जानकार सभी बहुत खुश हुए| सब जानते थे की करुणा को जयपुर में permanent job मिली है और मैं ही उसकी सारी मदद कर रहा हूँ| इतने में करुणा आ गई और मुझे वहाँ बैठे देख उसके चेहरे पर ख़ुशी खिल गई;

करुणा: मिट्टू!!! आप मेरे को surprise देने आये क्या?

उसकी बात सुन साब लोग ठहाका मार के हँसने लगे, मुझे ये देख कर हैरानी हुई की करुणा के मन में कल जो दारु पीने का काण्ड हुआ उसके लिए कोई गिला-शिकवा नहीं है| हँसी-ठहाका सुन एक-दो डॉक्टर आ गए और करुणा ने उनसे मेरा परिचय करवाया, मुझसे मिलकर उनके चेहरे पर भी मुझे सबकी तरह ख़ुशी दिखी|

करुणा: मिट्टू आप यहीं बैठो मैं चेंज कर के आ रे!

करुणा चेंज कर के आई और तब तक सभी मुझसे बात करते रहे|



हम दोनों बाहर निकले तो मैंने करुणा से माफ़ी माँगी;

मैं: Dear I’m sorry for yesterday…..

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही उसने चौंकते हुए मेरी बात काट दी;

करुणा: ऐसा क्यों कह रे? आप ने कुछ नहीं किया, आप drunk था पर आपने कुछ misbehave नहीं किया! आप तो कल और भी cute लग रा ता!

करुणा ने हँसते हुए कहा| उसकी बात सुन मैं हैरान उसे देख रहा था और इधर मेरा दिमाग मेरे दिल को लताड़ रहा था; 'बोला था न कुछ नहीं किया मैंने!' पर आत्मा को बुरा लग रहा था की मैंने कल उसके साथ बैठ कर इतनी दारु पी;

मैं: Dear आज के बाद हम कभी इस तरह दारु नहीं पीयेंगे, कल तो मैं होश में था पर फिर कभी नहीं हुआ तो?!

मैंने सर झुकाते हुए कहा| करुणा ने एकदम से मेरे दोनों कँधे पकडे और मेरी आँखों में देखते हुए बोली;

करुणा: मुझे आप पर पूरा trust है की आप कभी कुछ गलत नहीं करते, इतना months में आप ने मुझे touch तक नहीं किया तो कैसे कुछ गलत करते?!

करुणा की बातों में सच्चाई थी, मैंने आज तक उसे नहीं छुआ था, मैं नहीं जानता था की वो ये सब notice कर रही है|

करुणा: फिर आप मेरे साथ नहीं पी रे तो मैं किसके साथ पीते?

करुणा ने हँसते हुए कहा, पर मैंने उसकी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया| मेरे खामोश रहने से करुणा ने बात को बदलना चाहा;

करुणा: मिट्टू आज हम खान मार्किट चर्च जाते!

धर्म-कर्म की बात पर मैं हमेशा खुश हो जाता था इसलिए मेरे चेहरे पर एकदम से मुस्कान आ गई| हमने ऑटो किया और खान मार्किट चर्च पहुँचे, चर्च के बाहर लोगों ने फूल माला, मोमबत्ती और कुछ खाने-पीने के समान की फेरी लगा रखी थी| करुणा ने बाहर से फूल माला, गुलाब और मोमबत्तियाँ ली| आज मैं पहलीबार देख रहा था की ईसाई लोग भी पूजा में फूलमाला उपयोग करते हैं, इससे पहले मुझे लगता था की वो केवल मोमबत्ती जला कर ही दुआ करते हैं| हम चर्च में दाखिल हुए तो बाईं तरह एक जूते-चप्पल का स्टैंड था जहाँ जूते रखने थे, पिछलीबार जब हम Sacred Heart Cathederal Church गए थे तो वहाँ हमने जूते नहीं उतार थे| मैंने किसी बच्चे की तरह करुणा से ये सवाल पुछा तो उसने ठीक वैसे ही जवाब दिया जैसे माँ-बाप अपने छोटे बच्चे के नादान सवाल का जवाब देते हैं;

करुणा: मिट्टू इदर जूते पहन कर अंदर नहीं जाते!

क्यों नहीं जाते इसका जवाब तो मिला नहीं, मैंने भी सोचा की ज्यादा पूछूँगा तो कहीं ये डाँट न दे इसलिए मैं जूते-चप्पल उतार के करुणा के साथ अंदर चल दिया| दाईं तरफ Mother Mary की एक मूरत थी और ठीक सामने की तरफ हाथ-मुँह धोने की जगह| हम दोनों ने हाथ-मुँह धोये और चर्च के अंदर घुस गए|

ये चर्च Sacred Heart Cathederal Church के मुक़ाबले बहुत छोटा था पर इस चर्च में बहुत रौनक थी, यहाँ बहुत से लोग मौजूद थे, सामने की ओर Mother Mary की मूरत थी| मूर्ती के आगे एक रेलिंग लगी थी और उस रेलिंग के साथ ही एक लम्बा सा गद्दा बिछा हुआ था| लोग उस गद्दे पर घुटने मोड़ कर अपना सर उस रेलिंग पर रखते थे, रेलिंग के दूसरी तरफ दो लोग थे, एक आदमी भक्तों से फूल माला लेता था और Mother Mary या Jesus Christ की मूर्ति के पास रख देता था तथा दूसरा व्यक्ति रेलिंग पर सर रखने वालों के झुके हुए सर के ऊपर एक मुकुट जैसा कुछ 5-10 सेकंड तक रखता था|



जब हम दोनों की बारी आई तो हमने भी वैसा ही किया, मेरे सर पर जब वो मुकुट रखा गया तो मुझे ऐसा लगा मानो मेरे जिस्म में पवित्रता घुल गई हो! वो पवित्र एहसास ऐसा था की मेरा मन एकदम से शांत हो गया, मैं सभी चिंताएँ भूल गया! जीवन में पहली बार मैं अपनी साँसों को खुद सुन पा रहा था, उन कुछ पलों के लिए मेरे कानों ने कुछ भी सुनना बंद कर दिया था, बस एक अजीब सा सुकून था जिसे मैं आज दिल से महसूस कर पा रहा था|

दिल को जब सुकून मिला तो जुबान पर बस करुणा के लिए दुआ निकली; 'Mother Mary आज मैं पहलीबार आपके मंदिर में आया हूँ, अगर मुझसे कोई भूल हो गई हो तो मुझे माफ़ कर देना| मेरी दोस्त करुणा का ख्याल रखना, उसे ये नई नौकरी दिलाना और इसका वहाँ खूब ख़याल रखना| इसे बहुत सारी खुशियाँ देना, ये थोड़ी सी बुद्धू है तो प्लीज इसे सत बुद्धि देना|' दिल ने जल्दी से ये दुआ की क्योंकि मेरे अलावा भी वहाँ बहुत भक्त थे, अब मैं ही जगह घेर कर बैठ जाता तो लोग हँगामा खड़ा कर देते| मैं उठा तो देखा करुणा गायब है, मैं गर्दन घुमा कर उसे ढूँढने लगा, मुझे करुणा चर्च के बाईं तरफ बानी मूर्तियों के आगे सर झुका कर दुआ कर रही थी| मैं भी उसी की तरह सभी मूर्तियों के आगे सर झुका कर करुणा के लिए दुआ करने लगा|



दुआ कर के हम वहाँ बिछी बेंचों पर बैठ गए, करुणा ने अपनी आंखें बंद कर ली और वो मन ही मन अपनी प्रर्थना में लग गई| मैंने भी सोचा की जो प्रार्थना रेलिंग पर सर रख कर कर रहा था उसे पूरा करूँ| मैंने करुणा की नौकरी के लिए दुआ करनी शुरू की, पर उसी समय मुझे काल शाम का दृश्य याद आया| वो दृश्य याद आते ही मन ने मुझे लताड़ा, भगवान के घर में बैठ कर जब मन लताड़ता है तो बड़ा दर्द होता है| 'अपनी माँ से झूठ बोलने वाला आज सबकी माँ Mother Mary से करुणा के लिए दुआ कर रहा है?! तुझ जैसे झूठे के कारन करुणा का बनता हुआ काम बिगड़ जाएगा!' अंतरात्मा की ये लताड़ सुन मेरी आँखों से आँसूँ बह निकले| 'Mother Mary मुझे माफ़ कर दो! कल जो हुआ उसके लिए में बहुत शर्मिंदा हूँ और वादा करता हूँ की ऐसा कभी कुछ करुणा के साथ नहीं करूँगा! मैंने अपनी माँ से झूठ बोला, उसके लिए मैं आपका कसूरवार हूँ और उसके लिए आप जो भी सजा देना चाहो वो मुझे दो, पर करुणा पर इसका कोई प्रभाव मत पड़ने देना| मैं वादा करता हूँ की जबतक करुणा की नौकरी लग कर वो सेटल नहीं हो जाती तब तक मैं शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा, पर प्लीज मेरे कारन उस बेचारी के जीवन में कोई तकलीफ मत देना! उसकी दुःख-तकलीफें मुझे दे देना पर उसे खुश रखना, उसने बहुत दुःख झेला है!' प्रार्थना कर के जब मैंने आँखें खोलीं तो करुणा को मुझे घूरता हुआ पाया परन्तु उसने उस समय मुझसे कोई सवाल नहीं किया| कुछ देर बैठ कर हम बाहर निकले, बाहर निकलते समय मैंने दरवाजे पर खड़े हुए Mother Mary को सर झुका कर प्रणाम किया और मन ही मन उनसे बोला; 'Mother Mary अब मैं चलता हूँ, आप आशीर्वाद देना की अगलीबार जब मैं आपसे मिलने आऊँ तो इस ख़ुशी के साथ आऊँ की करुणा को जॉब मिल गई है|' मैंने मुस्कुरा कर Mother Mary को धन्यवाद दिया और चर्च से बाहर आया| हम दोनों अपने जूते-चप्पल पहन रहे थे तब करुणा ने मुझे चर्च के बारे में बताना शुरू किया;

करुणा: Dear आपको पता, ये हैं न Mother Mary का only church है! ज्यादा कर के चर्च Jesus का होते पर अंदर आपने एक अम्मा और अप्पा का फोटो देखा न, वो दोनों मिल कर ये चर्च शुरू किया| Mother Mary का सबसे बड़ा चर्च Velakanni तमिल नाडु में है, मुझको जब अच्छा सैलरी मिलते तब मैं आपको वहाँ ले जाते|

करुणा की बात सुन कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई|



हम घर आने के लिए चल पड़े और चलते-चलते हम खान मार्किट पहुँचे;

करुणा: Dear आप चर्च में रो क्यों रा था?

करुणा ने बड़े प्यार से अपना सवाल पुछा|

मैं: मुझे ऐसा लग रहा था की मेरे किये हुए पापों की सजा आपको मिल रही है, तभी तो आपका अपॉइंटमेंट लेटर अभी तक नहीं आया, इसलिए मैंने Mother Mary को प्रॉमिस किया की जब तक आपको जॉब नहीं मिलती तब तक मैं drink नहीं करूँगा|

करुणा मेरी बात सुन कर हैरान हुई और मुझे समझाना चाहा;

करुणा: Dearrrr....ऐसा नहीं होते.....

मैं: Dear भक्ति में logic नहीं विश्वास चलता है!

मैंने करुणा की बात काटते हुए कहा, वो आगे कुछ बोलती उसके पहले ही मैंने बात घुमा दी और उसका ध्यान खाने-पीने की ओर मोड़ दिया| उस दिन हमने अफगानी चिकन टिक्का रोल खाया, कसम से उससे लजीज चिकन रोल मैंने आजतक नहीं खाया था!



दो दिन बाद करुणा ने लंच में फ़ोन किया, उसकी आवाज खुशियों से भरी थी! मैं जान गया था की उसका अपॉइंटमेंट लेटर आ गया है, मैंने आँख बंद कर के ईश्वर को धन्यवाद दिया और उससे पुछा की कहाँ joining मिली है तथा उसे कब निकलना है| करुणा ने बताया की उसे ‘घरसाना’ नाम की जगह में पोस्टिंग मिली है पर उसे पहले ‘श्री विजयनगर’ में रिपोर्ट करना है| Joining के लिए उसकी दीदी, उसका जीजा और एंजेल सब जा रहे हैं, अब ये सुन कर मेरा दिल मुरझा गया क्योंकि उन सब के जाने से मेरा जाना नामुमकिन होगया था, जबकि मैं चाहता था की उसकी joining मैं करवाऊँ!

करुणा: आप मेरे को छोड़ने नहीं जाते?

करुणा ने मायूस होते हुए कहा|

मैं: यार....

मैं कुछ कहता उससे पहले ही करुणा ने मेरी बात काट दी;

करुणा: मेरा जोइनिंग के बाद हम फिर कब मिलते, क्या पता? इसलिए आप अगर नहीं जाते तो मैं भी नहीं जाते!

करुणा ने किसी बच्चे की तरह मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: यार....ठीक है....मैं चलूँगा!

मैंने हार मानते हुए कहा, मैं जानता था की मेरे जाने से करुणा की दीदी को चिढ होगी पर करुणा की ख़ुशी के लिए मैं मान गया| करुणा को आज शाम को जल्दी घर जाना था तो आज मिलने का प्लान कैंसिल हो गया, रात को करुणा ने फ़ोन कर के बताया की दो दिन बाद जाना है तो मैं बस की टिकट बुक करवा दूँ| मैंने करुणा से उसके दीदी, जीजा और एंजेल की डिटेल ली तथा टिकट बुक करने के लिए ऑनलाइन चेक किया, तब मुझे पता चला की श्री विजयनगर तक volvo नहीं जाती थी, बल्कि स्लीपर बस जाती थी, मैंने आज तक स्लीपर बस में सफर नहीं किया था तो सोचा की इस बहाने स्लीपर बस में भी सफर करने को मिलेगा| लेकिन दिक्कत ये थी की अगर मैं चारों sleeper टिकट लेता तो मुझे और करुणा को एक साथ स्लीपर मिलती, उसके परिवार की मौजूदगी में ये ठीक नहीं होता इसलिए मैंने केवल तीन स्लीपर बस की टिकट ली तथा अपने लिए मैंने बैठने वाली सीट ली|

अब बारी थी घर में फिर से झूठ बोलने की कि श्री विजयनगर में ऑडिट के लिए जाना है, अपना झूठ फूलप्रूफ करने के लिए मैंने दिषु को सब बता दिया और वो भी मेरे झूठ में शामिल हो गया| माँ-पिताजी ने झूठ सुना और बेटे पर विश्वास कर बैठे, पर मैं जानता था की मैं उनसे कितना झूठ बोल रहा हूँ| खैर ये दो दिन करुणा एकदम से मुरझा गई थी, बुधवार को जब मैं उससे मिला तो करुणा ने मायूस होते हुए कहा;

करुणा: मिट्टू....हम कब मिलते?

करुणा की आवाज में दर्द झलक रहा था और उसका ये दर्द मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, ये दर्द कुछ-कुछ वैसा ही था जो भौजी ने मेरे दिल्ली लौटने के समय किया था| इस दर्द को महसूस कर मन बोला; 'भौजी को तो मैं खो चूका हूँ, पर करुणा को नहीं खोऊँगा;

मैं: पागल! आप joining तो करो, फिर मैं और आप every weekend मिलेंगे!

ये सुन कर करुणा के चेहरे पर ख़ुशी लौट आई, उसके चेहरे पर आई ख़ुशी देखते ही मैंने पल भर में सारा प्लान बना लिया;

मैं: मैं every friday night यहाँ से निकलूँगा, saturday-sunday मैं वहीं रहूँगा और sunday night वापस आ जाऊँगा|

मेरा प्लान था तो बिना सर-पैर का लेकिन जब आपके मन में मोह में बसा हो और आप उस मोह से खुद को संभाल न पाओ तो आप ऊल-जूलूल हरकतें करने लगते हो! न तो मैं भौजी से प्यार करते समय अपने मोह को रोक पाया था और न ही करुणा से दोस्ती में!

करुणा: सच मिट्टू?

करुणा ने आस लिए हुए मुस्कुरा कर पुछा और मैंने तुरंत हाँ में सर हिला कर उसे आश्वासन दिया| मेरी हाँ सुन कर उसके चेहरे पर जो मुस्कान आई वो देख कर दिल को बहुत सुकून मिल रहा था, भले ही मेरा प्लान बेवकूफी भरा था पर मैंने उसके बारे में सोचना शुरू कर दिया था| दिल्ली से बाहर जाना वो भी हर हफ्ते? बस का खर्चा? होटल में रहने का खर्चा? और जो उतने दिन मैं वहाँ रुकता, घूमता-फिरता उसका खर्चा? इसके लिए मुझे पैसे चाहिए थे, बहुत सारे पैसे और उसके लिए मुझे एक अच्छी जॉब चाहिए थी! करुणा से मेरा लगाव इतना बढ़ चूका था की मैं सब कुछ करने को तैयार था!



अगले दिन साइट पर काम ज्यादा था, फिटिंग का कुछ माल नहीं आया था तो पिताजी ने मुझे सुबह ही माल लेने भेज दिया| माल उत्तर प्रदेश से आना था पर कुछ कारन वश नहीं पहुँचा था, पिताजी ने सप्लायर को बहुत फ़ोन मिलाये पर कोई जवाब नहीं, इसलिए पिताजी ने सुबह ही मुझे वहाँ भेज दिया| अब चूँकि पिताजी ने सारी पेमेंट एडवांस की थी इसलिए मेरा जाना जर्रूरी था, मैं पहले सप्लायर की दूकान पहुँचा पर वहाँ कोई नहीं मिला| मैंने आस-पास उनके घर का पता किया और उन्हें ढूँढ़ते हुए उनके घर पहुँचा, घर पहुँच कर पता चला की एक एक्सीडेंट में उन्हें बहुत चोट आई है| हॉस्पिटल का पता लेकर में उनका हाल-चाल लेने पहुँचा, हॉस्पिटल जा कर देखा की अंकल के दाएँ हाथ में फ्रैक्चर हुआ है| मैंने उनसे हाल-चाल लिया, इधर उन्होंने अपने बेटे को बुलाया और उससे फ़ोन माँगा क्योंकि उनका फ़ोन एक्सीडेंट में टूट गया था| उन्होंने सीधा फ़ोन अपनी दूकान वाले छोटू को किया और उसे झाड़ते हुए बोले; "मरी कटौ, हम एकदिन फैक्ट्री नाहीं आयन तो तुम सबका सब मस्ती मारे लागेओ! दिल्ली वाली गाडी कहाँ है? भैया हमरे लगे ठाड़ (खड़े) हैं, दुइ मिनट मा हमका बताओ नहीं तो गंडिया काट डालब तोहार!" फ़ोन काट कर उन्होंने मुझसे माफ़ी माँगी तो मैंने उनके आगे हाथ जोड़ते हुए कहा;

मैं: अंकल जी आप आराम कीजिये, मैं तो......

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही अंकल जी का लड़का बोल पड़ा; "भैया कल रतिया का गाडी हाईवे पर पलट गई रही, पापा बाल-बाल बचे! एहि से गाडी आज सुबह न निकल पाई....."

मैं: अरे यार ऐसा मत करो, मैं तो यहाँ बस अंकल जी का हाल-चाल पूछने आया था|

मैंने उसकी बात काटते हुए कहा|

अंकल जी: नाहीं मुन्ना, तोहार पिताजी हम पर भरोसा कर के ऐखय बार मा पूरा पइसवा दे दिहिन| ऊ हम से तनिको भाव-ताव नाहीं किहिन, ई तो ससुर एक्सीडेंट हो गवा नाहीं तो तोहार माल आज पहुँच जावत! आज शाम का हम खुद उनका फ़ोन करि के माफ़ी माँग लेब!

मैं: अंकल जी ऐसा न कहिये! जिंदगी ज्यादा जर्रूरी होती है, भगवान का लाख-लाख शुक्र है की आप सुरक्षित हैं|

इतने में छोटू का फ़ोन आ गया, उसने बताया की गाडी तैयार है और बस निकलने वाली है| अंकल जी ने उसे बहुत झाड़ा और आज रात किसी भी हालत में माल पहुँचाने को कहा| मैंने सारी बात सुन ली थी तो मैंने उनसे विदा लेनी चाही, अंकल ने बहुत जोर दिया की मैं कुछ खा-पीकर जाऊँ पर मैं उन्हें और उनके परिवार को तकलीफ नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने उनसे हाथ जोड़ कर धन्यवाद कहा तथा वहाँ से चल पड़ा| घडी में बजे थे शाम के 5 और अभी दिल्ली पहुँचने में लगता कमसकम ढाई घंटे, इसलिए मैंने करुणा को बताया की मैं आज नहीं मिल पाऊँगा| ये सुन कर करुणा मायूस हो गई, वो चाहती थी की कल श्री विजयनगर निकलने से पहले हम आज मिल लें| अब मिलना तो मुमकिन नहीं था पर फ़ोन पर बात करना तो आसान था, तो हम दोनों फ़ोन पर बात करने लगे| मैंने करुणा से पुछा की उसने अपने सारे कपडे- लत्ते पैक किये? अपने सभी documents ले लिए? ये सवाल सुन करुणा भावुक हो गई और फ़ोन पर बात करते हुए रो पड़ी| वो घर छोड़ कर एक नए शहर में बसने से घबरा रही थी और मैं उसे सांत्वना देते हुए उसका हौसला बढ़ा रहा था| मैंने उसे विश्वास दिलाया की उसके वहाँ ठहरने से ले कर आने-जाने का सारा इंतजाम मैं करूँगा और कुछ दिन वहीं उसके पास रहूँगा| दिक्कत ये थी की joining मिलने के बाद करुणा की दीदी और जीजा की मौजूदगी में मैं वहाँ किस तरह रुकता? तो मैंने इसका एक आईडिया निकाला, वो ये की करुणा की joining के बाद उसके रहने के लिए किसी हॉस्टल का इंतजाम कर मैं दिल्ली न आ कर कोई बहाना मार के कहीं और निकल जाऊँगा| उसकी दीदी तो रात की बस से निकल जातीं और तब तक मैं किसी पार्क, होटल में रुक जाता| उनके जाते ही मैं करुणा से मिलता और 1-2 दिन रुक कर जब करुणा को इस सब की आदत हो जाती तो मैं लौट आता| करुणा को मेरा प्लान पसंद आया और उसके चेहरे पर थोड़ी सी ख़ुशी आई|

इधर मैं अब भी करुणा से अपने दिल की हालत छुपा रहा था, उससे रोज मिलने की आदत पड़ गई थी, उसके साथ होने से मेरा दिल काबू में रहता था और भौजी को याद कर के दारु के पीछे नहीं जाता था| दिल करुणा को अपने पास रखना चाहता था पर मन मुझे स्वार्थी होने से रोक रहा था, हार मानते हुए मैंने मन की बात मान ली और भगवान से प्रार्थना की कि वो मुझे शक्ति दे ताकि मैं खुद को संभाल सकूँ| सच कहूँ तो ये दर्द भौजी से जुदा होने के मुक़ाबले कम था क्योंकि मैं भौजी से प्यार करता था पर करुणा से केवल मेरा मोह का रिश्ता था|



रात नौ बजे मैं घर पहुँचा और तबतक हमारी बातें nonstop चलती रहीं, खाना खा कर मैंने कल के लिए अपने कपडे पैक किये| थकावट थी इसलिए मैं सो गया, अगला दिन पर आज सुबह उठने का जैसे मन ही नहीं था| हमारी बस रात की थी और दिनभर मैं पिताजी के साथ काम में लगा रहा, शाम 7 बजे मैं अपने घर से करुणा के घर के लिए निकला| मैं तो समय से पहुँचा पर वो तीनों लेट-लतीफ़ थे, मैं जानकार उनके घर नहीं गया और बाहर पार्क में बैठा रहा| जब वो सब रेडी हुए तो मैंने ola बुलवाई, 5 मिनट में एक SUV आ गई और उधर वो तीनो अपना सामान ले कर नीचे आ गए| आज मैं पहलीबार करुणा के जीजा से मिला और माँ कसम क्या आदमी था वो! मरा हुआ सा शरीर, गाल चपटे, मोटी सी मूछ, सादे से कपडे पहने हुए! मैं ड्राइवर के साथ सामान पीछे रखवा रहा था जब उसने आ कर मुझसे मुस्कुरा कर बात की;

करुणा का जीजा: हेल्लो मैं करुणा का जीजा!

उसकी औरतों जैसी मरी हुई आवाज सुन कर मेरी हँसी छूट गई लेकिन अगर हँसता तो उस बेचारे की किरकिरी हो जाती इसलिए मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी दबाई, पर करुणा मेरी हँसी ताड़ गई थी! उसकी हालत भी मेरी जैसी थी, वो भी बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी छुपाये खड़ी थी| खैर हम चले और समय से कश्मीरी गेट बस स्टैंड पहुँच गए, बस लग चुकी थी हम सारा सामान ले कर चढ़ गए| करुणा की दीदी और जीजा को डबल स्लीपर मिला था तथा करुणा को सिंगल स्लीपर मिला था| मैंने अपना बैग करुणा के स्लीपर बर्थ पर रखा तो उसकी दीदी ने मुझसे सवाल किया;

करुणा की दीदी: मानु आपकी बर्थ कहाँ है?

मैं: दीदी मैंने अपने लिए चेयर बुक की थी!

मेरा जवाब सुन करुणा की दीदी ने बड़ी चुभती हुई बात कही;

करुणा की दीदी: स्लीपर बर्थ और चेयर में 100/- रुपये का ही अंतर् था न? तो 100/- रुपये मेरे से ले लेते!

ये सुन कर मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैं किसी तरह सह गया|

करुणा: मिट्टू को रात में जागते हुए travel करना अच्छा लगते!

करुणा मेरा बचाव करते हुए बोली|

करुणा की दीदी: क्यों? सामान की रखवाली करने के लिए?! आप जाग रहे हो तो हमारे सामना का भी ध्यान रखना!

उन्होंने मजाक करते हुए कहा पर ये मजाक हम दोनों (मुझे और करुणा) को जरा भी पसंद नहीं आया, इसलिए करुणा बीच में बोल पड़ी;

करुणा: मिट्टू poet है, वो रात में जाग कर roads और colorful lights देखते!

करुणा की बात सुन कर उसकी दीदी को हैरानी हुई और शायद कहीं न कहीं उन्हें ये बात लग चुकी थी!



बस में ज्यादा यात्री नहीं थे, मैं अपनी कुर्सी पर बैठ गया और इतने में करुणा एंजेल को ले कर मेरे पास आ गई| उसकी दीदी और जीजा अपनी बर्थ पर पर्दा कर के लेट चुके थे, इधर मुझे देखते ही एंजेल ने अपने दोनों हाथ मेरी गोद में आने को खोल दिए| मैंने एंजेल को अपनी गोद में लिया और करुणा को अपनी बगल वाली खाली सीट पर बैठने को कहा| अभी बस में कोई सोया नहीं था इसलिए हम साथ बैठ सकते थे, बस चल पड़ी और हम दोनों बातें करने लगे| मैंने करुणा से पुछा की क्या उसने वहाँ अपने रहने के लिए कोई हॉस्टल ढूँढा तो उसने कहा की उसे कुछ नहीं मिला| फिर करुणा ने अपना फ़ोन निकाला और उसमें headphones लगा कर एक हिस्सा मुझे दिया, इस तरह फ़ोन में गाने सुनते-सुनते समय बीतने लगा| बस के अंदर की लाइटें बंद हो चुकी थीं, इधर करुणा डरी हुई थी और बहुत भावुक हो चुकी थी इसलिए उसने अपना सर मेरे दाएँ कँधे पर टिका दिया| मैंने अपने दोनों हाथों से एंजेल को अपनी छाती से चिपका रखा था और गाना सुनते हुए मैं भी अपने दिल में उठ रहे करुणा की जुदाई के दर्द को दबाने की नाकाम कोशिश कर रहा था| इतने में करुणा की दीदी पीछे से आईं और हम दोनों को ऐसे बैठे देख स्तब्ध रह गईं! उन्होंने कुछ नहीं कहा बस मेरे बाएँ कँधे पर हाथ रख एंजेल को माँगा, उनके मुझे छूने से मुझे थोड़ा सा झटका लगा जिस कारन करुणा का सर मेरे कँधे से हिला और उसने पीछे पलट कर अपनी दीदी को देखा| बस में अँधेरा था तो हम तीनों एक दूसरे के हाव-भाव नहीं देख पाए थे| करुणा की दीदी एंजेल को ले कर चलीं गईं और तब मैंने करुणा से कहा;

मैं: Dear रात बहुत हो रही है, आप सो जाओ!

करुणा जान गई थी की मैं ये सब सिर्फ उसकी बहन की वजह से कह रहा हूँ, क्योंकि इस तरह हम दोनों का अकेला बैठना उनके मन में सवाल पैदा कर देता पर करुणा को इसकी रत्ती भर चिंता नहीं थी, वो तुनकते हुए बोली;

करुणा: आप टेंशन मत लो, कल के बाद पता नहीं हम कब मिलते?! ये रात हम साथ बैठते!

ये कह करुणा मेरे कँधे पर सर रख कर फिर से लेट गई| रात बारह बजे मैंने अपना दायाँ कंधा हिला कर उसे उठाया और उससे रिक्वेस्ट की कि वो अपनी बर्थ पर जा कर सो जाए वरना उसकी दीदी हमारे बारे में गन्दा सोचेंगी! बेमन से करुणा उठी और अपनी बर्थ पर जा कर पर्दा कर सो गई!



जारी रहेगा भाग 7(4) में...
:reading:
 

Dev rathor

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Awesome update bhai
Gjb ka update hai aapki aur karuna ki dosti bhi kamaal ki hai bilkul nispaksh
Sayad ye dosti ek ladke aur ek ladki me bahut kam dekhne ko milti hai jo har kadam par sath de bina swaarth ke
Kuch log sath chhod dete hai ki vo uske liye achcha hoga unka uss ladke / ladki ka door rahna par kya ye sacrificed sahi rahta hai
Mujhe nahi lagta
Bhabhi ne so called sacrificed diya apne pyaar kaa kya ye sahi raaha aap dono ke liye
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की
भाग -7 (3)


अब तक आपने पढ़ा:


इधर रात के 3 बजे मेरी नींद एकदम से खुली क्योंकि मेरा जी मचल रहा था, ऐसा लग रहा था की अभी उलटी होगी! मैं तुरंत बाथरूम में घुसा पर शुक्र है की कोई उलटी नहीं हुई, मुँह धो कर मैं बाहर आया और पलंग पर पीठ टिका कर बैठ गया| मेरी नींद उचाट हो गई थी और अब दिमाग में बस ग्लानि के विचार भरने लगे थे!



अब आगे:


ग्लानि अपनी माँ से झूठ बोलने की, उस माँ से जो मुझे इतना प्यार करती है और ग्लानि उस लड़की (करुणा) को शराब पी कर तंग करने की! करुणा का नाम याद आते ही मुझे नजाने क्यों ऐसा लगने लगा की मैंने शराब पी कर उसके साथ कोई बदसलूकी की है, हालाँकि मेरा दिमाग बार-बार कह रहा था की मैंने करुणा के साथ कोई बदसलूकी नहीं की है पर मन में बसी ग्लानि इस बात को मान ही नहीं रही थी! दिमाग को ग्लानि से बचने का रास्ता चाहिए था तो उसने मेरे झूठ बोलने का ठीकरा भौजी के सर मढ़ दिया; 'मैं पहले कभी इतना धड़ल्ले से झूठ नहीं बोलता था और ये पीने की लत मुझे भौजी के कारन लगी! न वो मुझे धोखा देतीं, न मैं पीना शरू करता और ना ही मुझे माँ से झूठ बोलना पड़ता!’ जबकि अस्लियत में देखा जाए तो मेरा ये झूठ बोलना मैंने भौजी के मोह जाल में पड़ कर खुद शुरू किया था|

मैं यूँ ही आँखें खोले हुए छत को घूर रहा था और मन ही मन भौजी को दोष दिए जा रहा था, तभी मुझे याद आया की मुझे तो दिषु को कॉल करना था! मैंने फ़ट से अपना फ़ोन उठाया और देखा की उसकी notification लाइट जल रही है, फ़ोन on किया तो पता चला की करुणा और दिषु की 4-4 missed call हैं! अब रात के इस वक़्त कॉल तो कर नहीं सकता था इसलिए मैंने दोनों को मैसेज कर के बता दिया की मैं घर पहुँच गया था और बहुत नींद आ रही थी इसलिए जल्दी सो गया था| मैं जानता था की ये मैसेज करना काफी नहीं होगा, कल सुबह होते ही दिषु मुझे बहुत सुनाएगा और करुणा का क्या? करुणा का नाम याद आते ही फिर ऐसा लगने लगा की मैंने कोई पाप किया है, शायद नशे की हालत में मैंने उसके साथ......? 'नहीं-नहीं! ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे अच्छे से याद है, मैंने उसके साथ कोई बदसलूकी नहीं की!' मेरे दिमाग ने बड़े आत्मविश्वास से कहा| पर ससुरा दिल अड़ गया की नहीं मैंने कुछ तो गलत किया है, दरअसल ये दारु पी कर जो मैंने माँ से झूठ बोला था ये उसकी ग्लानि थी और यही ग्लानि नजाने क्या-क्या महसूस करवा रही थी! मैंने सोच लिया था की सुबह होते ही मैं करुणा को फ़ोन कर के माफ़ी माँग लूँगा|



बस सुबह होने तक मैं एक पल भी नहीं सो पाया, एक तो ग्लानि थी और दूसरा बियर ज्यादा पीने से जी मचला रहा था| सुबह 5 बजे मैं बिस्तर से उठा, नहाया-धोया और सीधा डाइनिंग टेबल पर पहुँचा, मुझे इतनी जल्दी उठा देख पिताजी ताना मारते हुए बोले;

पिताजी: गुस्सा शांत हो गया या अभी बाकी है?

मैं पलट कर उन्हें कोई जवाब देता तो झगड़ा शुरू हो जाता, इसलिए मैं खामोश रहा| अब माँ को ही मेरा बीच-बचाव करना था तो वो बोलीं;

माँ: अजी छोड़ दीजिये.....

माँ आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही पिताजी ने उन्हें दुत्कार दिया;

पिताजी: तुम्ही ने सर पर चढ़ाया है इसे!

अब माँ को बिना किसी गलती के कैसे झाड़ सुनने देता;

मैं: सर पर चढ़ाया नहीं, बल्कि सही-गलत में फर्क करना सिखाया है|

ये सुन कर पिताजी को मिर्ची लगी और वो कुछ बोलने ही वाले थे की मैंने एकदम से कल का सारा गुस्सा उन पर निकल दिया;

मैं: क्या गलती थी मेरी जो आपने मुझे लेबर के सामने झाड़ दिया? चेक पर साइन करना भूल गए आप, इस छोटी सी बात के लिए माल रोका आपके सेठ जी ने और गुस्सा आप मुझ पर उतार रहे थे? आपके सेठ जी एक फ़ोन कर के नहीं बता सकते थे की चेक वापस आ गया है? 150/- रुपये का टुच्चा सा नुक्सान मुझे गिना ने में उन्हें शर्म नहीं आई?! पैसे दे कर ही माल लेना था तो ले लिया मैंने दूसरे से और बिल देखा आपने? आपके सेठ जी से कम दाम लिए उसने और 30 दिन का credit period भी दिया है, मतलब अगर हमें पेमेंट मिलने में लेट हो तो 30 दिन तक वो आपके सर चढ़ कर पैसे के लिए नहीं नाचेगा! ये बिज़नेस हम पैसा कमाने के लिए करते हैं उन सेठ जी के साथ नाते-रिश्तेदारी निभाने के लिए नहीं और काहे की रिश्तेदारी जब पैसे ही देने हैं तो काहे की रिश्तेदारी? अब बोलिये क्या गलत किया मैंने?

मेरी सारी बात सुन कर पिताजी को मेरे गुस्से का कारन समझ आ गया पर फिर भी वो खामोश रहे, मैं वहाँ ठहरता तो कुछ गलत होता इसलिए मैं वापस अपने कमरे में लौट आया| घंटे भर बाद पिताजी ने मुझे आवाज दी और बाहर बुलाया;

पिताजी: मानु......बाहर आ!

उनकी आवाज में शान्ति थी, मैं सर झुकाये हुए बाहर आया तो पिताजी ने मुझे बैठने को कहा|

पिताजी: अच्छा किया जो तूने सेठ जी से काम बंद कर दिया, पर आगे से कोई भी फैसला लेने से पहले सोचा कर और कमसकम मुझे बता दिया कर!

पिताजी की आवाज में हलीमी थी इसलिए मैंने उनके आगे हाथ जोड़े और बोला;

मैं: पिताजी मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझे आपसे यूँ गुस्से से बात नहीं करनी चाहिए थी|

पिताजी: बेटा अपने गुस्से पर काबू रखा कर|

इतना कह पिताजी उठे और माँ को नाश्ता बनाने को बोला| पिताजी नहाने गए तो मैंने सोचा माँ से भी माफ़ी माँग लूँ, पर उन्हें बताऊँ कैसे की मैं पी कर आया था?! लेकिन माँ अपने बच्चे की रग-रग से वाक़िफ़ होती है, इसलिए माँ ने ही पलट कर मुझे प्यार से डाँटते हुए कहा;

माँ: सच-सच बता, कल रात पी कर आया था न?

माँ की बात सुन मेरे तोते उड़ गए, अब उन्हें सच बोलता तो उनका दिल टूटता और वो मुझे पीने से रोकने के लिए अपनी कसम से बाँध देतीं इसलिए मैंने सुबह-सुबह फिर झूठ बोला;

मैं: नहीं तो!

इतना कह मैंने उनसे नजरें चुरा ली और टेबल पर बैठ अखबार पढ़ने लगा| माँ का दिल बड़ा पाक़ होता है इसलिए उन्होंने मेरे झूठ पर भरोसा कर लिया|

नाश्ता कर के मैं पिताजी के साथ निकला और काम संभाला, थोड़ी देर बाद दिषु का फ़ोन आया और उसने मुझे प्यार से डाँटा और समझाया की मुझे अपने पीने पर काबू रखना चाहिए, ख़ास कर तब जब मेरे साथ लड़की हो| मैंने उसे 'sorry' कहा और काम में लग गया,आज शनिवार का दिन था सो मैं आधे दिन में ही गोल हो लिया और सीधा करुणा के पास पहुँचा| मुझे उससे आज माफ़ी माँगनी थी और नजाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा था की वो मुझसे नहीं मिलेगी इसलिए मैं धड़धड़ाता हुआ आज उसके हॉस्पिटल में घुस गया| मैंने हॉस्पिटल में करुणा के बारे में एक नर्स से पुछा तो उसने मेरा नाम पुछा, मेरा नाम सुन वो मुस्कुरा कर मुझे ऐसे देखने लगी मानो मैं कोई सुपरस्टार हूँ! वो मुझे अपने साथ nursing station लाई और सभी से मेरा परिचय करवाते हुए बोली; 'ये है मिट्टू!' मिट्टू सुन कर सब के सब ख़ुशी से चहकने लगे और मेरी आव-भगत में लग गए| मुझे नहीं पता था की करुणा ने मेरी तारीफों के पुल यहाँ पहले से ही बाँध रखे हैं! वहाँ सभी कोई मेरे बारे में पूछने लगे और मेरे बारे में जानकार सभी बहुत खुश हुए| सब जानते थे की करुणा को जयपुर में permanent job मिली है और मैं ही उसकी सारी मदद कर रहा हूँ| इतने में करुणा आ गई और मुझे वहाँ बैठे देख उसके चेहरे पर ख़ुशी खिल गई;

करुणा: मिट्टू!!! आप मेरे को surprise देने आये क्या?

उसकी बात सुन साब लोग ठहाका मार के हँसने लगे, मुझे ये देख कर हैरानी हुई की करुणा के मन में कल जो दारु पीने का काण्ड हुआ उसके लिए कोई गिला-शिकवा नहीं है| हँसी-ठहाका सुन एक-दो डॉक्टर आ गए और करुणा ने उनसे मेरा परिचय करवाया, मुझसे मिलकर उनके चेहरे पर भी मुझे सबकी तरह ख़ुशी दिखी|

करुणा: मिट्टू आप यहीं बैठो मैं चेंज कर के आ रे!

करुणा चेंज कर के आई और तब तक सभी मुझसे बात करते रहे|



हम दोनों बाहर निकले तो मैंने करुणा से माफ़ी माँगी;

मैं: Dear I’m sorry for yesterday…..

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही उसने चौंकते हुए मेरी बात काट दी;

करुणा: ऐसा क्यों कह रे? आप ने कुछ नहीं किया, आप drunk था पर आपने कुछ misbehave नहीं किया! आप तो कल और भी cute लग रा ता!

करुणा ने हँसते हुए कहा| उसकी बात सुन मैं हैरान उसे देख रहा था और इधर मेरा दिमाग मेरे दिल को लताड़ रहा था; 'बोला था न कुछ नहीं किया मैंने!' पर आत्मा को बुरा लग रहा था की मैंने कल उसके साथ बैठ कर इतनी दारु पी;

मैं: Dear आज के बाद हम कभी इस तरह दारु नहीं पीयेंगे, कल तो मैं होश में था पर फिर कभी नहीं हुआ तो?!

मैंने सर झुकाते हुए कहा| करुणा ने एकदम से मेरे दोनों कँधे पकडे और मेरी आँखों में देखते हुए बोली;

करुणा: मुझे आप पर पूरा trust है की आप कभी कुछ गलत नहीं करते, इतना months में आप ने मुझे touch तक नहीं किया तो कैसे कुछ गलत करते?!

करुणा की बातों में सच्चाई थी, मैंने आज तक उसे नहीं छुआ था, मैं नहीं जानता था की वो ये सब notice कर रही है|

करुणा: फिर आप मेरे साथ नहीं पी रे तो मैं किसके साथ पीते?

करुणा ने हँसते हुए कहा, पर मैंने उसकी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया| मेरे खामोश रहने से करुणा ने बात को बदलना चाहा;

करुणा: मिट्टू आज हम खान मार्किट चर्च जाते!

धर्म-कर्म की बात पर मैं हमेशा खुश हो जाता था इसलिए मेरे चेहरे पर एकदम से मुस्कान आ गई| हमने ऑटो किया और खान मार्किट चर्च पहुँचे, चर्च के बाहर लोगों ने फूल माला, मोमबत्ती और कुछ खाने-पीने के समान की फेरी लगा रखी थी| करुणा ने बाहर से फूल माला, गुलाब और मोमबत्तियाँ ली| आज मैं पहलीबार देख रहा था की ईसाई लोग भी पूजा में फूलमाला उपयोग करते हैं, इससे पहले मुझे लगता था की वो केवल मोमबत्ती जला कर ही दुआ करते हैं| हम चर्च में दाखिल हुए तो बाईं तरह एक जूते-चप्पल का स्टैंड था जहाँ जूते रखने थे, पिछलीबार जब हम Sacred Heart Cathederal Church गए थे तो वहाँ हमने जूते नहीं उतार थे| मैंने किसी बच्चे की तरह करुणा से ये सवाल पुछा तो उसने ठीक वैसे ही जवाब दिया जैसे माँ-बाप अपने छोटे बच्चे के नादान सवाल का जवाब देते हैं;

करुणा: मिट्टू इदर जूते पहन कर अंदर नहीं जाते!

क्यों नहीं जाते इसका जवाब तो मिला नहीं, मैंने भी सोचा की ज्यादा पूछूँगा तो कहीं ये डाँट न दे इसलिए मैं जूते-चप्पल उतार के करुणा के साथ अंदर चल दिया| दाईं तरफ Mother Mary की एक मूरत थी और ठीक सामने की तरफ हाथ-मुँह धोने की जगह| हम दोनों ने हाथ-मुँह धोये और चर्च के अंदर घुस गए|

ये चर्च Sacred Heart Cathederal Church के मुक़ाबले बहुत छोटा था पर इस चर्च में बहुत रौनक थी, यहाँ बहुत से लोग मौजूद थे, सामने की ओर Mother Mary की मूरत थी| मूर्ती के आगे एक रेलिंग लगी थी और उस रेलिंग के साथ ही एक लम्बा सा गद्दा बिछा हुआ था| लोग उस गद्दे पर घुटने मोड़ कर अपना सर उस रेलिंग पर रखते थे, रेलिंग के दूसरी तरफ दो लोग थे, एक आदमी भक्तों से फूल माला लेता था और Mother Mary या Jesus Christ की मूर्ति के पास रख देता था तथा दूसरा व्यक्ति रेलिंग पर सर रखने वालों के झुके हुए सर के ऊपर एक मुकुट जैसा कुछ 5-10 सेकंड तक रखता था|



जब हम दोनों की बारी आई तो हमने भी वैसा ही किया, मेरे सर पर जब वो मुकुट रखा गया तो मुझे ऐसा लगा मानो मेरे जिस्म में पवित्रता घुल गई हो! वो पवित्र एहसास ऐसा था की मेरा मन एकदम से शांत हो गया, मैं सभी चिंताएँ भूल गया! जीवन में पहली बार मैं अपनी साँसों को खुद सुन पा रहा था, उन कुछ पलों के लिए मेरे कानों ने कुछ भी सुनना बंद कर दिया था, बस एक अजीब सा सुकून था जिसे मैं आज दिल से महसूस कर पा रहा था|

दिल को जब सुकून मिला तो जुबान पर बस करुणा के लिए दुआ निकली; 'Mother Mary आज मैं पहलीबार आपके मंदिर में आया हूँ, अगर मुझसे कोई भूल हो गई हो तो मुझे माफ़ कर देना| मेरी दोस्त करुणा का ख्याल रखना, उसे ये नई नौकरी दिलाना और इसका वहाँ खूब ख़याल रखना| इसे बहुत सारी खुशियाँ देना, ये थोड़ी सी बुद्धू है तो प्लीज इसे सत बुद्धि देना|' दिल ने जल्दी से ये दुआ की क्योंकि मेरे अलावा भी वहाँ बहुत भक्त थे, अब मैं ही जगह घेर कर बैठ जाता तो लोग हँगामा खड़ा कर देते| मैं उठा तो देखा करुणा गायब है, मैं गर्दन घुमा कर उसे ढूँढने लगा, मुझे करुणा चर्च के बाईं तरफ बानी मूर्तियों के आगे सर झुका कर दुआ कर रही थी| मैं भी उसी की तरह सभी मूर्तियों के आगे सर झुका कर करुणा के लिए दुआ करने लगा|



दुआ कर के हम वहाँ बिछी बेंचों पर बैठ गए, करुणा ने अपनी आंखें बंद कर ली और वो मन ही मन अपनी प्रर्थना में लग गई| मैंने भी सोचा की जो प्रार्थना रेलिंग पर सर रख कर कर रहा था उसे पूरा करूँ| मैंने करुणा की नौकरी के लिए दुआ करनी शुरू की, पर उसी समय मुझे काल शाम का दृश्य याद आया| वो दृश्य याद आते ही मन ने मुझे लताड़ा, भगवान के घर में बैठ कर जब मन लताड़ता है तो बड़ा दर्द होता है| 'अपनी माँ से झूठ बोलने वाला आज सबकी माँ Mother Mary से करुणा के लिए दुआ कर रहा है?! तुझ जैसे झूठे के कारन करुणा का बनता हुआ काम बिगड़ जाएगा!' अंतरात्मा की ये लताड़ सुन मेरी आँखों से आँसूँ बह निकले| 'Mother Mary मुझे माफ़ कर दो! कल जो हुआ उसके लिए में बहुत शर्मिंदा हूँ और वादा करता हूँ की ऐसा कभी कुछ करुणा के साथ नहीं करूँगा! मैंने अपनी माँ से झूठ बोला, उसके लिए मैं आपका कसूरवार हूँ और उसके लिए आप जो भी सजा देना चाहो वो मुझे दो, पर करुणा पर इसका कोई प्रभाव मत पड़ने देना| मैं वादा करता हूँ की जबतक करुणा की नौकरी लग कर वो सेटल नहीं हो जाती तब तक मैं शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा, पर प्लीज मेरे कारन उस बेचारी के जीवन में कोई तकलीफ मत देना! उसकी दुःख-तकलीफें मुझे दे देना पर उसे खुश रखना, उसने बहुत दुःख झेला है!' प्रार्थना कर के जब मैंने आँखें खोलीं तो करुणा को मुझे घूरता हुआ पाया परन्तु उसने उस समय मुझसे कोई सवाल नहीं किया| कुछ देर बैठ कर हम बाहर निकले, बाहर निकलते समय मैंने दरवाजे पर खड़े हुए Mother Mary को सर झुका कर प्रणाम किया और मन ही मन उनसे बोला; 'Mother Mary अब मैं चलता हूँ, आप आशीर्वाद देना की अगलीबार जब मैं आपसे मिलने आऊँ तो इस ख़ुशी के साथ आऊँ की करुणा को जॉब मिल गई है|' मैंने मुस्कुरा कर Mother Mary को धन्यवाद दिया और चर्च से बाहर आया| हम दोनों अपने जूते-चप्पल पहन रहे थे तब करुणा ने मुझे चर्च के बारे में बताना शुरू किया;

करुणा: Dear आपको पता, ये हैं न Mother Mary का only church है! ज्यादा कर के चर्च Jesus का होते पर अंदर आपने एक अम्मा और अप्पा का फोटो देखा न, वो दोनों मिल कर ये चर्च शुरू किया| Mother Mary का सबसे बड़ा चर्च Velakanni तमिल नाडु में है, मुझको जब अच्छा सैलरी मिलते तब मैं आपको वहाँ ले जाते|

करुणा की बात सुन कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई|



हम घर आने के लिए चल पड़े और चलते-चलते हम खान मार्किट पहुँचे;

करुणा: Dear आप चर्च में रो क्यों रा था?

करुणा ने बड़े प्यार से अपना सवाल पुछा|

मैं: मुझे ऐसा लग रहा था की मेरे किये हुए पापों की सजा आपको मिल रही है, तभी तो आपका अपॉइंटमेंट लेटर अभी तक नहीं आया, इसलिए मैंने Mother Mary को प्रॉमिस किया की जब तक आपको जॉब नहीं मिलती तब तक मैं drink नहीं करूँगा|

करुणा मेरी बात सुन कर हैरान हुई और मुझे समझाना चाहा;

करुणा: Dearrrr....ऐसा नहीं होते.....

मैं: Dear भक्ति में logic नहीं विश्वास चलता है!

मैंने करुणा की बात काटते हुए कहा, वो आगे कुछ बोलती उसके पहले ही मैंने बात घुमा दी और उसका ध्यान खाने-पीने की ओर मोड़ दिया| उस दिन हमने अफगानी चिकन टिक्का रोल खाया, कसम से उससे लजीज चिकन रोल मैंने आजतक नहीं खाया था!



दो दिन बाद करुणा ने लंच में फ़ोन किया, उसकी आवाज खुशियों से भरी थी! मैं जान गया था की उसका अपॉइंटमेंट लेटर आ गया है, मैंने आँख बंद कर के ईश्वर को धन्यवाद दिया और उससे पुछा की कहाँ joining मिली है तथा उसे कब निकलना है| करुणा ने बताया की उसे ‘घरसाना’ नाम की जगह में पोस्टिंग मिली है पर उसे पहले ‘श्री विजयनगर’ में रिपोर्ट करना है| Joining के लिए उसकी दीदी, उसका जीजा और एंजेल सब जा रहे हैं, अब ये सुन कर मेरा दिल मुरझा गया क्योंकि उन सब के जाने से मेरा जाना नामुमकिन होगया था, जबकि मैं चाहता था की उसकी joining मैं करवाऊँ!

करुणा: आप मेरे को छोड़ने नहीं जाते?

करुणा ने मायूस होते हुए कहा|

मैं: यार....

मैं कुछ कहता उससे पहले ही करुणा ने मेरी बात काट दी;

करुणा: मेरा जोइनिंग के बाद हम फिर कब मिलते, क्या पता? इसलिए आप अगर नहीं जाते तो मैं भी नहीं जाते!

करुणा ने किसी बच्चे की तरह मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: यार....ठीक है....मैं चलूँगा!

मैंने हार मानते हुए कहा, मैं जानता था की मेरे जाने से करुणा की दीदी को चिढ होगी पर करुणा की ख़ुशी के लिए मैं मान गया| करुणा को आज शाम को जल्दी घर जाना था तो आज मिलने का प्लान कैंसिल हो गया, रात को करुणा ने फ़ोन कर के बताया की दो दिन बाद जाना है तो मैं बस की टिकट बुक करवा दूँ| मैंने करुणा से उसके दीदी, जीजा और एंजेल की डिटेल ली तथा टिकट बुक करने के लिए ऑनलाइन चेक किया, तब मुझे पता चला की श्री विजयनगर तक volvo नहीं जाती थी, बल्कि स्लीपर बस जाती थी, मैंने आज तक स्लीपर बस में सफर नहीं किया था तो सोचा की इस बहाने स्लीपर बस में भी सफर करने को मिलेगा| लेकिन दिक्कत ये थी की अगर मैं चारों sleeper टिकट लेता तो मुझे और करुणा को एक साथ स्लीपर मिलती, उसके परिवार की मौजूदगी में ये ठीक नहीं होता इसलिए मैंने केवल तीन स्लीपर बस की टिकट ली तथा अपने लिए मैंने बैठने वाली सीट ली|

अब बारी थी घर में फिर से झूठ बोलने की कि श्री विजयनगर में ऑडिट के लिए जाना है, अपना झूठ फूलप्रूफ करने के लिए मैंने दिषु को सब बता दिया और वो भी मेरे झूठ में शामिल हो गया| माँ-पिताजी ने झूठ सुना और बेटे पर विश्वास कर बैठे, पर मैं जानता था की मैं उनसे कितना झूठ बोल रहा हूँ| खैर ये दो दिन करुणा एकदम से मुरझा गई थी, बुधवार को जब मैं उससे मिला तो करुणा ने मायूस होते हुए कहा;

करुणा: मिट्टू....हम कब मिलते?

करुणा की आवाज में दर्द झलक रहा था और उसका ये दर्द मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, ये दर्द कुछ-कुछ वैसा ही था जो भौजी ने मेरे दिल्ली लौटने के समय किया था| इस दर्द को महसूस कर मन बोला; 'भौजी को तो मैं खो चूका हूँ, पर करुणा को नहीं खोऊँगा;

मैं: पागल! आप joining तो करो, फिर मैं और आप every weekend मिलेंगे!

ये सुन कर करुणा के चेहरे पर ख़ुशी लौट आई, उसके चेहरे पर आई ख़ुशी देखते ही मैंने पल भर में सारा प्लान बना लिया;

मैं: मैं every friday night यहाँ से निकलूँगा, saturday-sunday मैं वहीं रहूँगा और sunday night वापस आ जाऊँगा|

मेरा प्लान था तो बिना सर-पैर का लेकिन जब आपके मन में मोह में बसा हो और आप उस मोह से खुद को संभाल न पाओ तो आप ऊल-जूलूल हरकतें करने लगते हो! न तो मैं भौजी से प्यार करते समय अपने मोह को रोक पाया था और न ही करुणा से दोस्ती में!

करुणा: सच मिट्टू?

करुणा ने आस लिए हुए मुस्कुरा कर पुछा और मैंने तुरंत हाँ में सर हिला कर उसे आश्वासन दिया| मेरी हाँ सुन कर उसके चेहरे पर जो मुस्कान आई वो देख कर दिल को बहुत सुकून मिल रहा था, भले ही मेरा प्लान बेवकूफी भरा था पर मैंने उसके बारे में सोचना शुरू कर दिया था| दिल्ली से बाहर जाना वो भी हर हफ्ते? बस का खर्चा? होटल में रहने का खर्चा? और जो उतने दिन मैं वहाँ रुकता, घूमता-फिरता उसका खर्चा? इसके लिए मुझे पैसे चाहिए थे, बहुत सारे पैसे और उसके लिए मुझे एक अच्छी जॉब चाहिए थी! करुणा से मेरा लगाव इतना बढ़ चूका था की मैं सब कुछ करने को तैयार था!



अगले दिन साइट पर काम ज्यादा था, फिटिंग का कुछ माल नहीं आया था तो पिताजी ने मुझे सुबह ही माल लेने भेज दिया| माल उत्तर प्रदेश से आना था पर कुछ कारन वश नहीं पहुँचा था, पिताजी ने सप्लायर को बहुत फ़ोन मिलाये पर कोई जवाब नहीं, इसलिए पिताजी ने सुबह ही मुझे वहाँ भेज दिया| अब चूँकि पिताजी ने सारी पेमेंट एडवांस की थी इसलिए मेरा जाना जर्रूरी था, मैं पहले सप्लायर की दूकान पहुँचा पर वहाँ कोई नहीं मिला| मैंने आस-पास उनके घर का पता किया और उन्हें ढूँढ़ते हुए उनके घर पहुँचा, घर पहुँच कर पता चला की एक एक्सीडेंट में उन्हें बहुत चोट आई है| हॉस्पिटल का पता लेकर में उनका हाल-चाल लेने पहुँचा, हॉस्पिटल जा कर देखा की अंकल के दाएँ हाथ में फ्रैक्चर हुआ है| मैंने उनसे हाल-चाल लिया, इधर उन्होंने अपने बेटे को बुलाया और उससे फ़ोन माँगा क्योंकि उनका फ़ोन एक्सीडेंट में टूट गया था| उन्होंने सीधा फ़ोन अपनी दूकान वाले छोटू को किया और उसे झाड़ते हुए बोले; "मरी कटौ, हम एकदिन फैक्ट्री नाहीं आयन तो तुम सबका सब मस्ती मारे लागेओ! दिल्ली वाली गाडी कहाँ है? भैया हमरे लगे ठाड़ (खड़े) हैं, दुइ मिनट मा हमका बताओ नहीं तो गंडिया काट डालब तोहार!" फ़ोन काट कर उन्होंने मुझसे माफ़ी माँगी तो मैंने उनके आगे हाथ जोड़ते हुए कहा;

मैं: अंकल जी आप आराम कीजिये, मैं तो......

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही अंकल जी का लड़का बोल पड़ा; "भैया कल रतिया का गाडी हाईवे पर पलट गई रही, पापा बाल-बाल बचे! एहि से गाडी आज सुबह न निकल पाई....."

मैं: अरे यार ऐसा मत करो, मैं तो यहाँ बस अंकल जी का हाल-चाल पूछने आया था|

मैंने उसकी बात काटते हुए कहा|

अंकल जी: नाहीं मुन्ना, तोहार पिताजी हम पर भरोसा कर के ऐखय बार मा पूरा पइसवा दे दिहिन| ऊ हम से तनिको भाव-ताव नाहीं किहिन, ई तो ससुर एक्सीडेंट हो गवा नाहीं तो तोहार माल आज पहुँच जावत! आज शाम का हम खुद उनका फ़ोन करि के माफ़ी माँग लेब!

मैं: अंकल जी ऐसा न कहिये! जिंदगी ज्यादा जर्रूरी होती है, भगवान का लाख-लाख शुक्र है की आप सुरक्षित हैं|

इतने में छोटू का फ़ोन आ गया, उसने बताया की गाडी तैयार है और बस निकलने वाली है| अंकल जी ने उसे बहुत झाड़ा और आज रात किसी भी हालत में माल पहुँचाने को कहा| मैंने सारी बात सुन ली थी तो मैंने उनसे विदा लेनी चाही, अंकल ने बहुत जोर दिया की मैं कुछ खा-पीकर जाऊँ पर मैं उन्हें और उनके परिवार को तकलीफ नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने उनसे हाथ जोड़ कर धन्यवाद कहा तथा वहाँ से चल पड़ा| घडी में बजे थे शाम के 5 और अभी दिल्ली पहुँचने में लगता कमसकम ढाई घंटे, इसलिए मैंने करुणा को बताया की मैं आज नहीं मिल पाऊँगा| ये सुन कर करुणा मायूस हो गई, वो चाहती थी की कल श्री विजयनगर निकलने से पहले हम आज मिल लें| अब मिलना तो मुमकिन नहीं था पर फ़ोन पर बात करना तो आसान था, तो हम दोनों फ़ोन पर बात करने लगे| मैंने करुणा से पुछा की उसने अपने सारे कपडे- लत्ते पैक किये? अपने सभी documents ले लिए? ये सवाल सुन करुणा भावुक हो गई और फ़ोन पर बात करते हुए रो पड़ी| वो घर छोड़ कर एक नए शहर में बसने से घबरा रही थी और मैं उसे सांत्वना देते हुए उसका हौसला बढ़ा रहा था| मैंने उसे विश्वास दिलाया की उसके वहाँ ठहरने से ले कर आने-जाने का सारा इंतजाम मैं करूँगा और कुछ दिन वहीं उसके पास रहूँगा| दिक्कत ये थी की joining मिलने के बाद करुणा की दीदी और जीजा की मौजूदगी में मैं वहाँ किस तरह रुकता? तो मैंने इसका एक आईडिया निकाला, वो ये की करुणा की joining के बाद उसके रहने के लिए किसी हॉस्टल का इंतजाम कर मैं दिल्ली न आ कर कोई बहाना मार के कहीं और निकल जाऊँगा| उसकी दीदी तो रात की बस से निकल जातीं और तब तक मैं किसी पार्क, होटल में रुक जाता| उनके जाते ही मैं करुणा से मिलता और 1-2 दिन रुक कर जब करुणा को इस सब की आदत हो जाती तो मैं लौट आता| करुणा को मेरा प्लान पसंद आया और उसके चेहरे पर थोड़ी सी ख़ुशी आई|

इधर मैं अब भी करुणा से अपने दिल की हालत छुपा रहा था, उससे रोज मिलने की आदत पड़ गई थी, उसके साथ होने से मेरा दिल काबू में रहता था और भौजी को याद कर के दारु के पीछे नहीं जाता था| दिल करुणा को अपने पास रखना चाहता था पर मन मुझे स्वार्थी होने से रोक रहा था, हार मानते हुए मैंने मन की बात मान ली और भगवान से प्रार्थना की कि वो मुझे शक्ति दे ताकि मैं खुद को संभाल सकूँ| सच कहूँ तो ये दर्द भौजी से जुदा होने के मुक़ाबले कम था क्योंकि मैं भौजी से प्यार करता था पर करुणा से केवल मेरा मोह का रिश्ता था|



रात नौ बजे मैं घर पहुँचा और तबतक हमारी बातें nonstop चलती रहीं, खाना खा कर मैंने कल के लिए अपने कपडे पैक किये| थकावट थी इसलिए मैं सो गया, अगला दिन पर आज सुबह उठने का जैसे मन ही नहीं था| हमारी बस रात की थी और दिनभर मैं पिताजी के साथ काम में लगा रहा, शाम 7 बजे मैं अपने घर से करुणा के घर के लिए निकला| मैं तो समय से पहुँचा पर वो तीनों लेट-लतीफ़ थे, मैं जानकार उनके घर नहीं गया और बाहर पार्क में बैठा रहा| जब वो सब रेडी हुए तो मैंने ola बुलवाई, 5 मिनट में एक SUV आ गई और उधर वो तीनो अपना सामान ले कर नीचे आ गए| आज मैं पहलीबार करुणा के जीजा से मिला और माँ कसम क्या आदमी था वो! मरा हुआ सा शरीर, गाल चपटे, मोटी सी मूछ, सादे से कपडे पहने हुए! मैं ड्राइवर के साथ सामान पीछे रखवा रहा था जब उसने आ कर मुझसे मुस्कुरा कर बात की;

करुणा का जीजा: हेल्लो मैं करुणा का जीजा!

उसकी औरतों जैसी मरी हुई आवाज सुन कर मेरी हँसी छूट गई लेकिन अगर हँसता तो उस बेचारे की किरकिरी हो जाती इसलिए मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी दबाई, पर करुणा मेरी हँसी ताड़ गई थी! उसकी हालत भी मेरी जैसी थी, वो भी बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी छुपाये खड़ी थी| खैर हम चले और समय से कश्मीरी गेट बस स्टैंड पहुँच गए, बस लग चुकी थी हम सारा सामान ले कर चढ़ गए| करुणा की दीदी और जीजा को डबल स्लीपर मिला था तथा करुणा को सिंगल स्लीपर मिला था| मैंने अपना बैग करुणा के स्लीपर बर्थ पर रखा तो उसकी दीदी ने मुझसे सवाल किया;

करुणा की दीदी: मानु आपकी बर्थ कहाँ है?

मैं: दीदी मैंने अपने लिए चेयर बुक की थी!

मेरा जवाब सुन करुणा की दीदी ने बड़ी चुभती हुई बात कही;

करुणा की दीदी: स्लीपर बर्थ और चेयर में 100/- रुपये का ही अंतर् था न? तो 100/- रुपये मेरे से ले लेते!

ये सुन कर मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैं किसी तरह सह गया|

करुणा: मिट्टू को रात में जागते हुए travel करना अच्छा लगते!

करुणा मेरा बचाव करते हुए बोली|

करुणा की दीदी: क्यों? सामान की रखवाली करने के लिए?! आप जाग रहे हो तो हमारे सामना का भी ध्यान रखना!

उन्होंने मजाक करते हुए कहा पर ये मजाक हम दोनों (मुझे और करुणा) को जरा भी पसंद नहीं आया, इसलिए करुणा बीच में बोल पड़ी;

करुणा: मिट्टू poet है, वो रात में जाग कर roads और colorful lights देखते!

करुणा की बात सुन कर उसकी दीदी को हैरानी हुई और शायद कहीं न कहीं उन्हें ये बात लग चुकी थी!



बस में ज्यादा यात्री नहीं थे, मैं अपनी कुर्सी पर बैठ गया और इतने में करुणा एंजेल को ले कर मेरे पास आ गई| उसकी दीदी और जीजा अपनी बर्थ पर पर्दा कर के लेट चुके थे, इधर मुझे देखते ही एंजेल ने अपने दोनों हाथ मेरी गोद में आने को खोल दिए| मैंने एंजेल को अपनी गोद में लिया और करुणा को अपनी बगल वाली खाली सीट पर बैठने को कहा| अभी बस में कोई सोया नहीं था इसलिए हम साथ बैठ सकते थे, बस चल पड़ी और हम दोनों बातें करने लगे| मैंने करुणा से पुछा की क्या उसने वहाँ अपने रहने के लिए कोई हॉस्टल ढूँढा तो उसने कहा की उसे कुछ नहीं मिला| फिर करुणा ने अपना फ़ोन निकाला और उसमें headphones लगा कर एक हिस्सा मुझे दिया, इस तरह फ़ोन में गाने सुनते-सुनते समय बीतने लगा| बस के अंदर की लाइटें बंद हो चुकी थीं, इधर करुणा डरी हुई थी और बहुत भावुक हो चुकी थी इसलिए उसने अपना सर मेरे दाएँ कँधे पर टिका दिया| मैंने अपने दोनों हाथों से एंजेल को अपनी छाती से चिपका रखा था और गाना सुनते हुए मैं भी अपने दिल में उठ रहे करुणा की जुदाई के दर्द को दबाने की नाकाम कोशिश कर रहा था| इतने में करुणा की दीदी पीछे से आईं और हम दोनों को ऐसे बैठे देख स्तब्ध रह गईं! उन्होंने कुछ नहीं कहा बस मेरे बाएँ कँधे पर हाथ रख एंजेल को माँगा, उनके मुझे छूने से मुझे थोड़ा सा झटका लगा जिस कारन करुणा का सर मेरे कँधे से हिला और उसने पीछे पलट कर अपनी दीदी को देखा| बस में अँधेरा था तो हम तीनों एक दूसरे के हाव-भाव नहीं देख पाए थे| करुणा की दीदी एंजेल को ले कर चलीं गईं और तब मैंने करुणा से कहा;

मैं: Dear रात बहुत हो रही है, आप सो जाओ!

करुणा जान गई थी की मैं ये सब सिर्फ उसकी बहन की वजह से कह रहा हूँ, क्योंकि इस तरह हम दोनों का अकेला बैठना उनके मन में सवाल पैदा कर देता पर करुणा को इसकी रत्ती भर चिंता नहीं थी, वो तुनकते हुए बोली;

करुणा: आप टेंशन मत लो, कल के बाद पता नहीं हम कब मिलते?! ये रात हम साथ बैठते!

ये कह करुणा मेरे कँधे पर सर रख कर फिर से लेट गई| रात बारह बजे मैंने अपना दायाँ कंधा हिला कर उसे उठाया और उससे रिक्वेस्ट की कि वो अपनी बर्थ पर जा कर सो जाए वरना उसकी दीदी हमारे बारे में गन्दा सोचेंगी! बेमन से करुणा उठी और अपनी बर्थ पर जा कर पर्दा कर सो गई!



जारी रहेगा भाग 7(4) में...
Bhout hi bdiya update gurujii :love3:
दिमाग को ग्लानि से बचने का रास्ता चाहिए था तो उसने मेरे झूठ बोलने का ठीकरा भौजी के सर मढ़ दिया;
Ye hi mai bhi karta hu, jab kabhi koi chiz galat ho jati h, ya ho nhi pati, to sara dosh kismat ko :hukka:
मैं: नहीं तो!
:sigh:
दुइ मिनट मा हमका बताओ नहीं तो गंडिया काट डालब तोहार
:lotpot:

Khair karuna ka appointment letter aa gya aur ab vo bhi ja rahi h manu bhaiya ko chhodkar ?

Waiting for next update :waiting:
 

Lutgaya

Well-Known Member
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मानु भाई ये विजयनगर और घरसाना के बारे में कहाँ से सुना यार थोडा विस्तार से लिखना इनके बारे में, मैं भी गया हूं घरसाना से आगे कस्बा है रावला में एक बार किसी शादी में
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
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Nyc update bhai
Nice update
Nice update dude
बहुत बढ़िया कहानी
Bahut hi badhiya

बहुत-बहुत धन्यवाद मित्रों! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
 
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