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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Sanju@

Well-Known Member
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प्रिय मित्रों,

डॉक्टर ने KFT, CBC, Protein/Keratin आदि test लिखे थे जो मैंने करवा लिए थे| पिछले सोमवार को साड़ी रिपोर्ट आई परन्तु तबतक मेरी माँ की बाईं जाँघ जा दर्द शुरू हो चूका था| दरअसल जब मैं और माँ अस्पताल गए थे तब 6 घंटे बैठे रहने के कारण माँ की बाईं जाँघ का दर्द बढ़ गया था, ऊपर से डॉक्टर ने माँ को कोई भी painkiller देने से मना किया था इसलिए मैंने माँ को कोई भी दवाई नहीं दी, नतीजन माँ की जाँघ का दर्द बढ़ गया|
अब चूँकि report ले कर मैं माँ को अस्पताल नहीं ले जा सकता था इसलिए मैं अकेला ही अस्पताल गया और डॉक्टर को सारी रिपोर्ट दिखाई| डॉक्टर ने सारी रिपोर्ट देखि और कहा की सब कुछ नार्मल है और मुझे माँ को दुबारा nephrology में दिखाने की कोई जर्रूरत नहीं| माँ की दोनों किडनियाँ जुडी हुई हैं लेकिन वो बचपन से हैं और उसका कुछ किया नहीं जा सकता| हाँ मुझे माँ के sugar तथा B.P. का अधिक ध्यान रखना है और माँ को painkiller नहीं देने हैं| मैंने उनसे पुछा की माँ की बाईं जाँघ के दर्द के लिए जो दवाई मैं पहले देता था वो दे सकता हूँ तो उन्होंने कहा की दे सकते हो लेकिन ज्यादा नहीं|
अस्पताल से लौटकर मेरी एक चिंता तो खत्म हुई मगर मेरी माँ की बाईं जाँघ का दर्द बड़ी चिंता बन गया| मार्च-अप्रैल में जिस प्रकार माँ मेरा सहारा ले कर उठती-बैठतीं थीं, बाथरूम आती-जातीं थीं, वही स्थति अब फिर से पैदा हो गई है! मैंने घर के पास के orthopedic डॉक्टर को माँ की सारी रिपोर्ट दिखाई तो उन्होंने दवाई दी है और कहा है की इस दवाई से कोई नुक्सान नहीं होगा| फिलहाल वही दवाई गुरूवार से चालु है और आराम है परन्तु थोड़ा!

आप सभी मित्रों से प्रार्थना है की आप सभी मेरी माँ के जल्दी स्वस्थ होने की प्रार्थना करते रहें| 🙏 ये आपकी प्रार्थनाओं और दुआओं का ही असर है की मेरी माँ की तबियत में सुधार हो रहा है|

Update लिखने का काम मैंने धीरे-धीरे कर रहा हूँ, देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ! :verysad:
🙏🙏🙏🙏
 

Kala Nag

Mr. X
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प्रिय मित्रों,

डॉक्टर ने KFT, CBC, Protein/Keratin आदि test लिखे थे जो मैंने करवा लिए थे| पिछले सोमवार को साड़ी रिपोर्ट आई परन्तु तबतक मेरी माँ की बाईं जाँघ जा दर्द शुरू हो चूका था| दरअसल जब मैं और माँ अस्पताल गए थे तब 6 घंटे बैठे रहने के कारण माँ की बाईं जाँघ का दर्द बढ़ गया था, ऊपर से डॉक्टर ने माँ को कोई भी painkiller देने से मना किया था इसलिए मैंने माँ को कोई भी दवाई नहीं दी, नतीजन माँ की जाँघ का दर्द बढ़ गया|
अब चूँकि report ले कर मैं माँ को अस्पताल नहीं ले जा सकता था इसलिए मैं अकेला ही अस्पताल गया और डॉक्टर को सारी रिपोर्ट दिखाई| डॉक्टर ने सारी रिपोर्ट देखि और कहा की सब कुछ नार्मल है और मुझे माँ को दुबारा nephrology में दिखाने की कोई जर्रूरत नहीं| माँ की दोनों किडनियाँ जुडी हुई हैं लेकिन वो बचपन से हैं और उसका कुछ किया नहीं जा सकता| हाँ मुझे माँ के sugar तथा B.P. का अधिक ध्यान रखना है और माँ को painkiller नहीं देने हैं| मैंने उनसे पुछा की माँ की बाईं जाँघ के दर्द के लिए जो दवाई मैं पहले देता था वो दे सकता हूँ तो उन्होंने कहा की दे सकते हो लेकिन ज्यादा नहीं|
अस्पताल से लौटकर मेरी एक चिंता तो खत्म हुई मगर मेरी माँ की बाईं जाँघ का दर्द बड़ी चिंता बन गया| मार्च-अप्रैल में जिस प्रकार माँ मेरा सहारा ले कर उठती-बैठतीं थीं, बाथरूम आती-जातीं थीं, वही स्थति अब फिर से पैदा हो गई है! मैंने घर के पास के orthopedic डॉक्टर को माँ की सारी रिपोर्ट दिखाई तो उन्होंने दवाई दी है और कहा है की इस दवाई से कोई नुक्सान नहीं होगा| फिलहाल वही दवाई गुरूवार से चालु है और आराम है परन्तु थोड़ा!

आप सभी मित्रों से प्रार्थना है की आप सभी मेरी माँ के जल्दी स्वस्थ होने की प्रार्थना करते रहें| 🙏 ये आपकी प्रार्थनाओं और दुआओं का ही असर है की मेरी माँ की तबियत में सुधार हो रहा है|

Update लिखने का काम मैंने धीरे-धीरे कर रहा हूँ, देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ! :verysad:
हमारी प्रार्थना है
ईश्वर आपकी माताजी को स्वास्थ प्रदान करें
 

Rekha rani

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आप अपडेट की चिंता न कीजिये, अभी समय माता जी के स्वास्थ्य पर ध्यान देने का है उस पर ही ध्यान रखे। जल्दी ही माता श्री स्वस्थ हो जाएगि, तब आराम से आगे अपडेट देना। हमारी दुआ हमेशा माता श्री के लिए है कि उनका स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहे , अभी भी जो कष्ट पूर्ण समय है ये भी जल्दी ही बीत जाएगा और वो पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर अपना आशीर्वाद हमे देगी।
 

DK2518

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Hi


सत्रहवाँ अध्याय: दोस्ती और प्यार
भाग - 1



अब तक आपने पढ़ा:


मैं: ठीक है बाबा, अब जल्दी से मुस्कुरा दो ताकि मैं चैन से सो सकूँ|
भौजी मुस्कुराईं और आगे बढ़ के मेरे होठों को अपने मुँह भर के चूसने लगीं, करीब एक मिनट बाद उन्होंने मेरे होठों को छोड़ा| फिर मैंने उन्हें बड़े घर के दरवाजे पर छोड़ा और वहीँ खड़ा रहा जबतक उन्होंने दरवाजा अंदर से बंद नहीं कर लिया| मैं दबे पाँव नल पर आया और हाथ-मुँह धो कर नेहा के पास लेट गया| मेरे लेटते ही नेहा ने मेरी तरफ पलटी और अध्खुली आँखों से मुझे एकबार देखा और फिर अपने छोटे हाथ से मुझे जकड़ना चाहा| मैंने उसे उठा कर अपनी छाती पर लिटा लिया और उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया|



अब आगे...


अगली सुबह मैं जानबुझ के जल्दी उठ गया वरना बड़के दादा भौजी को मेरी नींद तोड़ने के लिए फिर से डाँटते| मेरी आँखें भी ठीक से नहीं खुल रही थी और बड़ी जोरदार नींद आ रही थी! भौजी ने जब मुझे उठा हुआ देखा तो वो मेरे पास आईं;

भौजी: आप इतनी जल्दी क्यों उठ गए?

ये सुन कर मैंने घडी देखि तो अभी 5 बजे थे, मन तो किया की सो जाऊं पर अगर सो जाता तो सीधा 8 बजे उठता!

मैं: ऐसे ही...माँ कह रहीं थी की जल्दी उठना चाहिए|

मैंने अंगड़ाई लेते हुए झूठ बोला, पर भौजी ने मेरा झूठ पकड़ लिया था;

भौजी: जानती हूँ आप जल्दी क्यों उठे हो, ताकि मुझे पिताजी से डाँट न पड़े! आप सो जाओ, कोई कुछ नहीं कहेगा|

मैं: नहीं...अब नींद नहीं आएगी|

भौजी: क्यों जूठ बोल रहे हो, आपकी आँखें ठीक से खुल भी नहीं रही|

मैं: वो नहाऊँगा तो अपने आप खुल जाएगी और रही बात नींद पूरी करने की तो वो मैं दोपहर में कर लूँगा|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| भौजी आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही माँ आ गईं और मुझे जागता हुआ देख बहुत खुश हुईं;

माँ: अच्छा हुआ तो जल्दी जाग गया, जा अपने पिताजी के साथ खेतों में थोड़ी मदद कर दे!

मैं बिना कुछ बोले ही खेतों की तरफ चल दिया, बड़के दादा और पिताजी खेतों में पानी लगा रहे थे और उन्हें 'मेढ़' बाँधने के लिए मदद चाहिए थी| अब कुएँ से पानी खींचने का काम तो मैं कर नहीं सकता था क्योंकि पिताजी कहते थे उसमें बहुत खतरा है तो मैं पिताजी से मेढ़ बाँधना सीख उनकी मदद करने लगा| पानी खींचने का काम पिताजी और बड़के दादा मिल कर रहे थे और जब एक क्यारी पानी से भर जाती तो मैं दूसरी क्यारी में मेढ़ खोल देता| ये खेत छोटा था और इसमें केवल घर के खाने लायक सब्जियाँ ही उगाई जातीं थीं, काम ज्यादा मुश्किल नहीं था और मुझे इसमें बहुत मजा आ रहा था|



अभी बस आधा ही खेत सींचा गया था की नेहा दौड़ती हुई मेरे पास आ गई, मैंने उसे फ़ौरन गोद में उठाया और उसने मेरे दोनों गालों पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी!

मैं: बेटा आप क्यों उठ गए?

नेहा: पापा मैं न आपकी मदद करने आई हूँ!

नेहा का बचपना सुन मैं हँस पड़ा|

मैं: बेटा आप मेढ़ बाँधोगे तो अपने कपडे गंदे कर लोगे! आप जा कर मुँह-हाथ धोओ|

ये सुन नेहा ने न में गर्दन हिलाई और बोली;

नेहा: मम्मी ने कहा है की आपकी मदद करूँ|

मैं: Awww मेरा बच्चा!

ये कहते हुए मैंने नेहा के दोनों गालों की पप्पी ली! इतने में बड़की अम्मा घर से चिलाते हुए बोलीं;

बड़की अम्मा: ओ मुन्ना! तनिक 4-5 ठो टमटरवा लिहाँ आयो!

मैं: जी अम्मा!

इतने में एक क्यारी और भर गई तो मैंने दूसरी क्यारी में मेढ़ बाँधी| दोनों बाप-बेटी टमाटर के खेत में घुस गए, अब मुझे ठीक से टमाटर चुनने नहीं आते थे, मैंने गलती से एक हरे रंग का टमाटर तोड़ लिया तो नेहा मुझे सिखाने लगी;

नेहा: नहीं पापा! हरे रंग का नहीं सिर्फ लाल रंग वाला जैसे ये!

नेहा ने मुझे एक लाल टमाटर तोड़ कर दिखाया|

मैं: अरे वाह! मेर बेटी तो बहुत समझदार है?!

मैंने नेहा की तारीफ की तो वो खुश हो गई| टमाटर तोड़ कर उसने अपनी फ्रॉक को झोली बना कर रखे और ख़ुशी-ख़ुशी घर चली गई| पूरे खेत की सिंचाई करते-करते 7 बज गए, सिंचाई पूरी कर के मैं घर लौटा| आज का दिन कुछ अलग था, सुबह से ही घर में बहुत चहल कदमी थी| आज किसी नए पकवान बनने की तैयारी हो रही थी, मैंने जब माँ से पुछा तो उन्होंने मुझे नहाने जाने को बोला| मैंने भौजी की तरफ देखा तो वो भी हैरान थीं क्योंकि मेरी तरह उन्हें भी कुछ नहीं बताया गया था| खैर मैं बड़े घर नहाने चला गया, नाहा-धो कर तैयार हुआ तो नेहा अपना बस्ता ले कर आ गई| मैंने बड़े घर के आंगन में एक चारपाई बिछाई और मैं दरवाजे की तरफ पीठ कर के बैठ गया और नेहा ठीक मेरे सामने बैठ गई| फिर उसने अपने बैग में से अपनी किताब निकाली, उसकी किताब में बहुत से रंग-बिरंगे चित्र थे जैसे की छोटे बच्चों की किताबों में होते हैं| उसकी alphabets (वर्णमाला) की किताब सबसे ज्यादा रंगीन थी, मैंने नेहा को A B C D पढ़ाना शुरू किया| इतने में भौजी चाय ले के आईं और मेरी ओर चाय का ग्लास बढ़ाते हुए बड़ी उखड़ी आवाज में बोलीं;

भौजी: आपसे मिलने कोई आया है!

भौजी की उखड़ी हुई आवाज सुन मैं थोड़ा परेशान हुआ और आँखों के इशारे से उनसे पुछा की कौन है? उन्होंने भी मुझे आँखों के इशारे से पीछे मुड़ने को कहा, जब मैं पीछे मुड़ा तो देखा सुनीता दरवाजे पर खड़ी है| उसे देख मैं थोड़ा हैरान हुआ की ये भला यहाँ क्यों आई है? तभी वो चलते हुए आंगन में आई, आज उसने पीले रंग का सूट पहना था और हाथों में accounts की किताब है| मेरे नजदीक आ कर वो बोली;

सुनीता: जब मेरे घर आये थे तो मुझे पढ़ा रहे थे और यहाँ इस छोटी सी बच्ची को पढ़ा रहे हो! क्या पढ़ाना आपकी हॉबी है?

इतना कह कर वो हँसने लगी, उसकी ये हँसी देख भौजी जल भून कर राख हो गईं! मैंने आज तक भौजी को जलाया नहीं था तो ये स्वर्णिम मौका मैं अपने हाथ से कैसे जाने देता?!

मैं: यही समझ लो! अब आपकी हॉबी है गाना और गाना किसे पसंद नहीं, पर पढ़ाना सब को पसंद नहीं है आखिर कुछ तो चीज uncommon हो हम में!

इतने कह कर हमदोनों हँसने लगे| उधर भौजी ने भौं चाढ़ाते हुए मुझे देखा जैसे पूछ रही हो की ये सब क्या चल रहा है? मैं भला सुनीता को कैसे जानता हूँ और उसकी ये हॉबी मुझे कैसे पता?!

मैं: ओह... मैं तो आप दोनों का परिचय कराना ही भूल गया| ये हैं ....

मैं दोनों का परिचय कराता उससे पहले ही सुनीता एकदम से बोल पड़ी;

सुनीता: आपकी प्यारी भौजी! हम मिल चुके हैं, यही तो मुझे यहाँ लाईं!

सुनीता मुस्कुराते हुए बोली|

मैं: ओह!

मैंने अपनी मूर्खता को छुपाते हुए कहा| सुनीता से आज दूसरी बार मिला था, अब भी उसके सामने हड़बड़ा जाता था और इसी हड़बड़ी में मूर्खता पूर्ण बात कर बैठा था! मेरी इस हड़बड़ी और मूर्खता देख कर उसे खूब हँसी आती थी!

मैं: तो बताइये कैसे याद आई हमारी?

इसके जवाब में सुनीता ने अपनी एकाउंट्स की किताब उठा के मुझे दिखा दी| मैं समझ गया की वो यहाँ सिर्फ पढ़ने आई है, तो मैंने सोचा की क्यों न आग में थोड़ा घी डाला जाए;

मैं: इनके लिए भी चाय लो दो!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए हुक्म दिया| ये सुन भौजी ने मुझे घूर के देखा जैसे कह रहीं हो की क्या मैं इसकी नौकर हूँ! उनके इस घूरने से मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, मुझे मुस्कुराते हुए देख वो मुझे जीभ चिढ़ा के चली गईं|

सुनीता मेरे सामने कुर्सी कर के बैठ गई और नेहा तो अपनी किताब के पन्ने पलट के देखने में लगी थी, वो सुनीता से थोड़ा डरी हुई थी इसलिए उससे नजरें चुरा रही थी| सुनीता ने आगे बढ़ के उसके गालों को प्यार से सहलाया और बोली;

सुनीता: So sweet!

ये सुन नेहा शर्म से लाल हो गई और मुझसे लिपट कर सुनीता से छुपने लगी!

मैं: बेटा मैंने आपको क्या सिखाया था? चलो हेल्लो बोलो?

नेहा ने आँखें चुराते हुए सुनीता को हेल्लो कहा और फिर मुझसे लिपट गई|

मैं: She’s very shy!

मैंने नेहा का बचाव करते हुए कहा|

सुनीता: Yeah...I can understand.

सुनीता को Bill of exchange में प्रॉब्लम थी, तो मैं उसे वही पढ़ाने लगा| मुझे सुनीता को पढ़ाते हुए देख नेहा की भी रूचि बढ़ गई और वो बड़े गौर से मुझे देखने लगी और जो मैं बोल रहा था उसे समझने की कोशिश करने लगी! कुछ देर बाद भौजी आ गईं और सुनीता को चाय देके जाने लगीं, तभी उन्होंने देखा की हम पढ़ रहे हैं और नेहा बड़े गौर से एकाउंट्स समझने की कोशिश कर रही है| उन्होंने नेहा को टोकते हुए कहा;

भौजी: ओ छोटी मुनीम जी! A B C D पढ़ी नहीं और हिसाब-किताब पहले सीखना है!

ये सुन नेहा फिर से शर्मा गई और मेरे सीने से लग कर छुप गई! भौजी ने नेहा का हाथ पकड़ कर मुझसे अलग किया और अपने साथ ले जाने लगीं, तो मैंने उनसे थोड़ी और मस्ती की;

मैं: कहाँ ले जा रहे हो नेहा को?

मैंने जानबूझ कर ऐसा बोलै क्योंकि मैं जानता था की ये सवाल सुन कर भौजी चिढ जाएंगी!

भौजी: खाना पकाने!

भौजी ने चिढ़ते हुए जवाब दिया|

मैं: क्यों? बैठे रहने दो यहाँ, आपके पास होगी तो खेलती रहेगी|

ये सुन भौजी एकदम से बोलीं;

भौजी: और यहाँ रहेगी तो आप दोनों को 'अकेले' में पढ़ने नहीं देगी!

भौजी ने 'अकेले' शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर डाला था, ये भौजी की जलन थी जो बाहर आ रही थी! इधर सुनीता, भौजी के अकेले शब्द पर जोर देने पर उसे देवर-भाभी का मस्ती समझ हँस पड़ी! उसकी हँसी देख भौजी जल-भून कर राख हो गईं और मुँह टेढ़ा कर के चली गईं!



हम दोनों वापस पढ़ाई में लग गए, कुछ देर बाद बड़की अम्मा और माँ आ गए| बड़की अम्मा मेरे पीछे खड़ी हो गईं और माँ सुनीता के पीछे खड़ी हो गईं|

माँ: अरे गुड़िया (नेहा) भी तुम्हारे साथ पढ़ रही है!

माँ ने हँसते हुए कहा|

मैं: नेहा कह रही थी की मुझे भी हिसाब-किताब सीखना है, तो मैंने सोचा इसे भी पढ़ा दूँ!

मैं ने मजाक करते हुए कहा|

बड़की अम्मा: फिर तो चाचा-भतीजी मिल के घर मा हिसाब किताब करीहें!

ये सुन कर सब हँस पड़े और नेहा भी खी-खी कर हँसने लगी!

कुछ देर हँसने के बाद बड़की अम्मा सुनीता से बोलीं;

बड़की अम्मा: मुन्नी खाना खा के जायो!

सुनीता: आंटी...मतलब अम्मा...वो मैं...

सुनीता नहीं जानती थी की वो बड़की अम्मा को क्या कह कर सम्बोधित करे इसलिए उसने हड़बड़ा कर आंटी कहा, पर फिर उसे अम्मा शब्द याद आया इसलिए उसने अम्मा कहते हुए न-नुकुर करनी चाही, पर माँ ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा;

माँ: नहीं बेटा, खाना खा के ही जाना|

माँ ने इतने प्यार से बोला की सुनीता न नहीं कह पाई और बोली;

सुनीता: जी!

इतना कह माँ और बड़की अम्मा कुछ बात करती हुईं चली गईं और हम तीनों फिर से पढ़ने लगे|



खाने का समय होने तक हम दोनों ने खूब मन लगा कर पढ़ाई की, सुनीता के काफी doubts clear हो गए थे और वो मेरे पढ़ाने के ढंग से काफी प्रभावित भी थी| उधर बड़की अम्मा ने हम दोनों का खाना परोस कर बड़े घर भेज दिया और सबसे बड़ी की बात खाना परोस के कौन लाया; "भौजी!!!" भौजी अंदर से जल के कोयला हो रहीं थीं और अब मुझे भी बहुत अटपटा सा लग रहा था की आखिर मेरे घरवाले सुनीता की इतनी खातिर-दारी क्यों कर रहे हैं?!



सुनीता: अरे भाभी आप क्यों खाना ले आईं? हम वहीं आ जाते|

सुनीता की बात से मैं अपनी सोच से बाहर आया और इस बार मैंने भौजी को जलाने के लिए कुछ नहीं कहा| मैं जानता था की अब अगर मैंने आग में घी डाला तो मेरा तंदूरी बनना पक्का है!

भौजी: आप हमारी मेहमान हैं और मेहमान की खातिरदारी की जाती है|

भौजी बनावटी मुस्कान के साथ कहा, उनकी ये बनवटी मुस्कान सिवाए मेरे और कोई नहीं पकड़ सकता| सुनीता उनकी बातों पर जरा भी शक नहीं हुआ और वो जा कर हाथ धोने लगी, मैंने उसकी गैरहाजरी का फायदा उठा कर भौजी से मूक भाषा में जानना चाहा की ये सब हो क्या रहा है पर उन्होंने सर ना में हिला दिया तथा मुँह मोड़ कर चली गईं! उनके यूँ जाने से मेरे दिमाग में हजारों सवाल खड़े हो गए थे, एक सवाल का जवाब सिर्फ और सिर्फ एक ही जवाब था! ऐसा जवाब जिसे मैं सुनना नहीं चाहता था! खैर मैं उठा और हाथ-मुँह धो कर खाना खाने बैठ गया| अब चूँकि नेहा मेरे साथ ही खाना खाती थी तो वो हमेशा की तरह मेरे सामने बैठ गई, सुनीता कुर्सी पर बैठी खाना खा रही थी और मैं एक कौर नेहा को खिलता और एक कौर मैं खाता| इतने में भौजी पानी का लोटा और गिलास ले कर आईं और मुझे यूँ नेहा को खिलाते देख नेहा को आँख दिखा कर डराने लगीं तथा इशारे से उसे मेरे साथ खाना खाने से मना करने लगीं| नेहा बेचारी अपनी मम्मी का गुस्सा देख सहम गई और सर झुका कर बैठ गई| मैंने जब नेहा को अगला कौर खिलाना चाहा तो उसने सर झुकाये हुए मना कर दिया, मुझे उसका ये बर्ताव बड़ा ही अटपटा लगा;

मैं: क्या हुआ बेटा?

मैं पुछा तो नेहा ने सर उठा कर अपनी मम्मी की बिना कुछ बोले ही शिकायत कर दी| मैंने जब भौजी को पीछे देखा तो मैं सब समझ गया की क्या माजरा है!

मैं: क्यों डरा रहे हो मेरी बेटी को?

मैंने भौजी को थोड़ा गुस्से से घूरते हुए कहा|

भौजी: नहीं तो...आप खाना खाओ, इसे मैं खिला दूँगी|

मेहमान के सामने लड़ाई-झगड़ा न हो इसलिए भौजी झूठ बोलीं|

मैं: कल तक तो ये मेरे साथ खाती आई है तो आज आप इसे खिलाओगे? आओ बेटा...चलो मुँह खोलो... और मम्मी की तरफ मत देखो|

मैंने नेहा को खाने का कौर खिलाते हुए कहा|

भौजी: क्यों बिगाड़ रहे हो इसे?

भौजी की ये बात मुझे बहुत चुभी, कुछ वैसे ही जैसे कल रात भौजी को बड़के दादा की बात चुभी थी!

मैं: मैं इसे बिगाड़ूँ या कुछ भी करूँ, आपको इससे क्या?

मैंने भौजी को झिड़क दिया| भौजी मेरी झिड़की सुन चुप हो गईं और सर झुका कर खड़ी हो गईं, लेकिन सुनीता को हमारी बातें सुन कर कुछ शक होने लगा था तो उसने सीधा भौजी से ही सवाल पूछ लिया;

सुनीता: भाभी आप बुरा ना मानो तो मैं एक बात पूछूँ?

भौजी: हाँ पूछो!

भौजी ने सर उठा कर उसकी ओर देखते हुए कहा|

सुनीता: प्लीज मुझे गलत मत समझना, मैं कोई शिकायत नहीं कर रही बस पूछ रही हूँ| नेहा बेटी तो आपकी है और दुलार इसे मानु जी करते हैं, वो भी शायद इस परिवार में सबसे ज्यादा! जब से आई हूँ मैं देख रही हूँ की नेहा इन से बहत घुल-मिल गई है, मतलब मैंने कभी नहीं देखा की बच्चे चाचा से या किसी से इतना घुल्ते-मिल्ते हों जितना नेहा घुली-मिली है?

भौजी: दरअसल....

भौजी ने जवाब देने के लिए मुँह खोला ही था की मैंने उनकी बात काट दी|

मैं: Please leave this topic here! I don’t want to you guys to chit-chat on it!

मैं नहीं चाहता था की भौजी सुनीता को नेहा के सामने वो सब बताएं, क्योंकि भौजी की बातें सुन कर सुनीता को लगता की मैं नेहा पर दया दिखा रहा हूँ, जबकि मैं उसे अपनी बेटी मानता था और उससे वैसा ही प्यार करता था जैसे कोई बाप अपनी बेटी से प्यार करता है!



पता नहीं मुझे इतनी मिर्ची क्यों लगी की मैं खाने पर से उठ गया, भौजी और सुनीता दोनों ने बहुत मानाने की कोशिश की पर मन नहीं माना! मैं गुस्से में सीधा कुएँ के पास वाले आँगन में पहुँच गया, हाथ-मुँह धो कुएँ की मुंडेर पर बैठ गया| घरवाले सब खाना खा चुके थे, रसिका भाभी वरुण के साथ छप्पर के नीचे बैठीं खाना खा रहीं थी| वरुण ने जब मुझे देखा तो मेरे पास आना चाहा लेकिन रसिका भाभी ने उसे डाँट दिया और खाना खाने में व्यस्त कर दिया| माँ-पिताजी और बड़के दादा-बड़की अम्मा सब खेत जा चुके थे क्योंकि वहाँ गेहूँ दाँवा जाना था| मैं अकेला कुएँ की मुंडेर पर बैठा अपने दिमाग को शांत करने में लगा था, दिमाग में सुनीता को ये special treatment दिया जाना खटक रहा था और ऊपर से सुनीता का नेहा के विषय में वो सवाल पूछना मुझे बहुत चुभ रहा था! अचानक ही मुझे भौजी को खो देने का डर सताने लगा था, मैं इस डर से लड़ता उससे पहले ही नेहा, भौजी और सुनीता तीनों मेरी तरफ आने लगे| मेरे पीछे भौजी ने सुनीता से क्या कहा और उसने क्या समझा ये मैं नहीं जानता, मैं बस कुछ देर अकेला रहना चाहता था इसलिए मैं उठा और खेतों की तरफ चल दिया| हमारे छोटे वाले खेत में मुंडेर पर एक आम का पेड़ था, मैं उसी पेड़ के नीचे पीठ टिका कर खड़ा हो गया| तभी वहाँ सुनीता आ गई, उसके चेहरे पर मुस्कान थी जो मैं समझ नहीं पा रहा था! क्या भौजी ने उसे सच बता दिया? या फिर उन्होंने कोई नया झूठ बोला है? मैं इन्ही सवालों से घिरा था की सुनीता मेरे सामने खड़ी हो गई और हैरानी से बोली;

सुनीता: Wow! You actually Love her!

सुनीता का तातपर्य नेहा से था परन्तु मैं उसकी बात सुन कर सोच में पद गया की वो किसके बारे में बोल रही है; भौजी के या नेहा के!

मैं: What?

मैंने अनजान बनते हुए भौएं चढ़ा कर उससे पुछा|

सुनीता: आपकी भाभी ने मुझे सब बता दिया है|

ये सुन कर मेरी हवा खिसक गई और मुझे लगा की भौजी ने उसे सब सच बता दिया है!

मैं: सब?

मैंने अनजान बनने का नाटक किया, इसके आलावा मैं कर भी क्या सकता था!

सुनीता: हाँ की आप नेहा को कितना प्यार करते हो! घर में कोई नहीं जो उसे प्यार करता हो, यहाँ तक की उसके अपने पापा भी उसे वो प्यार नहीं देते जो आप देते हो| इसीलिए वो आपसे वही दुलार पाती है जो उसके पापा को करना चाहिए था|

मैं: वो (भौजी) पागल हैं! उनकी बातों में मत आओ, मैं नेहा से कोई तरस खा कर प्यार नहीं करता! मैं उससे सच में बहुत प्यार करता हूँ! लड़के की आस में नेहा संग भेद-भाव किया जाता है, अब इसे अपना परिवार की छोटी सोच कहूँ या फिर हमारे गाँव की, पर भुगतना नेहा को पड़ रहा है!

सुनीता मेरी बात सुन भाव विभोर हो गई!

मैं: खैर चलो घर चलते हैं, यहाँ किसी ने देख लिया तो पता नैन क्या सोचेगा|

इतना कहते हुए हम घर की ओर चल पड़े और चलते-चलते सुनीता बोली;

सुनीता: परसों रात जब मुझे पता चला की आप, नेहा और भाभी अयोध्या की भगदड़ में फँस गए हैं तो मुझे आपकी बहुत चिंता हुई थी! फिर कल शाम को मैं और पिताजी आये थे हाल-खबर लेने पर तब आप प्रसाद देने भाभी के मायके गए थे, आपके पिताजी ने बताया की कैसे आपने भाभी को संभाला और उन्हें सही सलामत घर ले कर आये! ये सुन कर मुझे आप पर बहुत proud (गर्व) हुआ!

मैं: Proud? किस लिए? मैंने बाद वही किया जो मुझे करना चाहिए था!

सुनीता: जब आपका दोस्त कुछ अच्छा काम करे तो आपको उस पर गर्व नहीं होता?

सुनीता ने बहुत जल्दी मुझे अपना दोस्त मान लिया था, पर मैं अभी उस पर इतना विश्वास नहीं करता था की उसे अपना दोस्त मान लूँ!

लेकिन सुनीता का मन मेरी बधाई करने से भरा नहीं था;

सुनीता: बिकुल हीरो की तरह आपने भाभी की रक्षा की!

ये सुन कर मुझे हँसी आ गई और मैं बोला;

मैं: मैं कोई हीरो-विरो नहीं हूँ! आम आदमी हूँ जो गलतियां, बेवकूफियाँ, मनमानियाँ करता रहता है!

सुनीता: आप में यही तो खूबी है की आप अपनी बड़ाई नहीं सुनना चाहते!

सुनीता की मेरी बड़ाई करने से मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था और मैं बात खत्म करना चाहता था इसलिए मैंने बात बदलते हुए उससे पुछा;

मैं: ये सब छोड़ो, आप ने खाना खाया?

सुनीता: आप ने नहीं खाया तो मैं कैसे खाती?

हम दोनों कुएँ के पास पहुँच गए थे और नेहा आँगन में चारपाई पर बैठी मेरा इंतजार कर रही थी| मुझे देखते ही वो उठ के मेरे पास दौड़ी-दौड़ी आई;

मैं: बेटा आपने खाना खाया?

नेहा ने ना में सर हिलाया|

मैं: चलो आप है न सुनियता आंटी के साथ जा कर खाना खाओ और जब मैं आऊँ तो सारा खाना खत्म होना चाहिए! समझे?

नेहा ने फ़ौरन हाँ में गर्दन हिलाई, मैंने उसे नीचे उतारा तो उसने सुनीता का हाथ पकड़ा और उसे बड़े घर ले जाने लगी|

सुनीता: आप भी चलो न?

मैं: आप खाना खाओ, मैं थोड़ी देर में आया|

आगे सुनीता कुछ पूछ पाती उससे पहले ही नेहा ने सुनीता को बड़े घर की ओर खींच कर ले गई, सुनीता ने नेहा को गोद में उठाया और उसके गाल चूमते हुए चली गई|



मैं धड़धड़ाते हुए भौजी के घर में घुसा, भौजी आँगन में चारपाई पर आसमान की ओर मुँह कर के लेटीं थीं|

मैं: आपने खाना खाया?

भौजी ने मेरा सवाल तो सुना पर बिना मेरी तरफ देखे ही सर न में हिला दिया|

मैं: क्यों?

अब भौजी ने मेरी तरफ देखा और उदास मन से बोलीं;

भौजी: क्योंकि आपने नहीं खाया|

उनकी ये उदासी देख मुझ दुःख हुआ और मैं उनसे माफ़ी माँगते हुए बोला;

मैं: ओके मुझे माफ़ कर दो! दरअसल मैं नहीं चाहता ता की आप सुनीता की बात का कोई जवाब दो, लेकिन फिर फिर भी आपने उसे सारी बात दी!

भौजी: हाँ पर आपके और मेरे रिश्ते के बारे में कुछ नहीं बताया?

भौजी ने बड़े उखड़े मन से कहा|

मैं: पर आपको उसे कुछ बताने की क्या जर्रूरत थी? मैं नहीं चाहता की कोई मेरी बेटी पर तरस खाये! और आप उसे नहीं जानते, वो गाँव की भोली-भाली लड़की नहीं है, शहर में पढ़ी है और जर्रूरत से ज्यादा समझदार भी! ऐसे में आपका उसे ये सब कहना ठीक नहीं था, पता नहीं वो क्या-क्या सोच रही होगी!

मैंने भौजी को समझाते हुए कहा, परन्तु उनपर कोई असर नहीं पड़ा|

भौजी: मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा|

भौजी ने बड़े रूखे मन से जवाब दिया|



मैं एक पल को चुप हो गया और मन ही मन उनके उखड़े होने का कारन सोचने लगा, तभी मुझे याद आया की सुबह जो मैंने भौजी को जलाने की कोशिश की थी, हो न हो उसी कारन से उन का मन उदास है!

मैं: आपका मूड क्यों खराब है? मैं आपसे बस थोड़ा मजाक कर रहा था, आपको जल रहा था बस! हम दोनों के बीच में ऐसा कछ भी नहीं है जैसा आप सोच रहे हो!

मैंने भौजी के पास बैठते हुए कहा|

भौजी: जानती हूँ! इतना तो भरोसा है मुझे आप पर| लेकिन....

भौजी ने बिना मेरी तरफ देखे जवाब दिया, उनका यूँ बात अधूरा छोड़ देना मुझे चुभने लगा और कुछ देर पहले जो मुझे डर सता रहा था वो सच साबित हुआ|

मैं: Oh No..No..No… ये सब मेरी शादी का चक्कर है न?

मैंने भौजी को झिंझोड़ते हुए पुछा, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि उनकी आँखों से आँसुओं की एक धारा बाह कर उनके कान तक जा पहुँची! उनके आँसुओं ने मेरे डर को सच साबित कर दिया था|

मैं एकदम से गुस्से में उठा और बोला;

मैं: मैं अभी पिताजी से बात करता हूँ|

ये कह मैं अभी दो कदम ही चला हूँगा की भौजी उठ कर बैठ गईं और सुबकते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं...प्लीज आपको ....

भौजी ने मुझे अपनी कसम से बांधना चाहा पर मैंने उनकी बात पूरी होने ही नहीं दी;

मैं: आपको पता है ना क्या होने जा रहा है और आप मुझे कसम देके रोक रहे हो?

मैंने गुस्से से उन्हें डाँटा!

भौजी: ये कभी न कभी तो होना ही था ना!

भौजी ने आँखों से आँसूँ बहाते हुए कहा|

मैं: कभी होना था न, अभी तो नहीं?!

मैंने उनके आँसूँ पोछते हुए कहा|

भौजी: क्या कहोगे पिताजी से की मैं अपनी भौजी से प्यार करता हूँ और उनसे शादी करना चाहता हूँ?

भौजी ने मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में थामते हुए कहा|

मैं: हाँ!

मैंने जोश में बिना कुछ सोचे-समझे कहा|

भौजी: और उसका अंजाम जानते हो ना?

भौजी ने मेरी आँख में आँख डालते हुए सवाल पुछा|

मैं: हाँ ... वो हमें अलग कर देंगे|

मैंने भौजी से आँख चुराते हुए कहा, क्योंकि मुझ में उन्होंने खोने की हिम्मत नहीं थी और मैं अपना ये डर उनसे छुपाना चाहता था|

भौजी: यही चाहते हो?

उन्होंने अपना अगला सवाल दागा|

मैं: नहीं... पर अगर मैं उनसे सच नहीं बोल सकता तो कम से कम इस शादी को कुछ सालों के लिए टाल जर्रूर सकता हूँ! प्लीज मुझे अपनी कसम मत देना, आप नहीं जानते सुनीता भी ये शादी नहीं करना चाहती|

मैंने भौजी के चेहरे को अपने हाथों से थाम उनकी आँखों में आँख डालते हुए कहा| भौजी सुनीता की शादी न करने की बात सुन कर चौंक गईं;

भौजी: क्या?

फिर मैंने भौजी को सुनीता के घर में हुई हमारी मुलाक़ात के बारे में सब सच बता दिया| भौजी मेरी बात सुन कुछ शांत हुई, मेरी शादी नहीं होगी ये सोच उनके दिल को इत्मीनान हुआ और उन्होंने रोना बंद किया| कुछ पल के लिए भौजी के घर में ख़ामोशी छा गई, उस ख़ामोशी के पलों में मैंने फिलहाल पिताजी से इस मामले के बारे में बात नहीं करने का फैसला लिया| अभी मामला बहुत गर्म था और इस गर्मागर्मी में अगर मैं जोश से काम लेता तो बात बिगड़ जाती! फिलहाल के लिए मुझे भौजी को खाना खिलाना था, क्योंकि वो मेरे बच्चे की माँ बनने वाली थीं और मुझे उनका ख़ास ख्याल रखना था!

मैं: अच्छा बाबा मैं अभी पिताजी से कुछ बात नहीं कर रहा, अब तो खुश?

ये सुन भौजी ने हाँ में सर हिलाया|

मैं: तो खाना खाएँ?

भौजी को पता था की मैं उन्हें खाने के लिए अवश्य बोलने आऊँगा, इसलिए उन्होंने पहले से ही खाना परोसा कर थाली में रखा हुआ था| भौजी ने खिड़की की तरफ इशारा किया जहाँ एक थाली ढक कर राखी हुई थी, मैंने वो थाली उठाई और उन्हें खाना खिलने लगा| भौजी ने भी मुझे खाना अपने हाथ से खिलाया और हमारा खाना खत्म होने ही जा रहा था की वहाँ नेहा और सुनीता आ गए!

सुनीता: हम्म्म… I knew there was something between you guys!

giphy.gif


सुनीता इतने आत्मविश्वास से बोली जैसे की उसने हम दोनों की चोरी पकड़ ली हो| मैं कुछ बोलता उसके पहले ही भौजी बड़े आत्मविश्वास से बोलीं;

भौजी: Maybe you’re right, there IS something between us! But that depends on who’s commenting on it, if you’re self obsessed jealous person you’ll call it an extra marital affair and you’ll go out screaming that these two are in a love relationship. But if you’re a true friend, which I think you’re then you’ll call this pure and pious relationship FRIENDSHIP!

भौजी की बात सुन के सुनीता का मुँह खुला का खुला रह गया,

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वहीं नेहा एकदम सदमे थी की उसकी देहाती माँ इतनी अच्छी अंग्रेजी कैसे बोल लेती है?! वो दौड़ती हुई आई और अपनी मम्मी के पाँव से लिपट गई| इधर सुनीता सोच में पड़ गई की जो स्त्री साडी पहनती है और पहनावे में बिलकुल गाँव की गावरान लगती है वो इतनी फर्राटेदार अंग्रेजी कैसे बोल सकती है?!

मैं ये तो जानता था की भौजी पढ़ी-लिखीं हैं, अंग्रेजी जानती हैं पर उनके मुँह से अंग्रेजी सुन कर मुझे बहुत मजा आया था, इतना मजा की मैं एक पल के लिए सारी टेंशन भूल गया था!

सुनीता: क्या आपने (मैं) इन्हें अंग्रेजी बोलना.....

सुनीता को लगा की मैंने भौजी को अंग्रेजी बोलना सिखाया है, पर मैंने उसकी बात पूरी होने से पहले ही काट दी;

मैं: नहीं...ये दसवीं तक पढ़ीं हैं उसके आगे नहीं पढ़ पाईं क्योंकि इनकी पढ़ाई छुड़ा दी गई|

भौजी की पढ़ाई छूटने का दुःख सुनीता के चेहरे पर भी दिखा पर उसे भौजी के मुँह से ये फर्रार्टेदार अंग्रेजी सुन कर बहुत अच्छा लगा था|

सुनीता: भाभी I gotta say, I’m impressed!

giphy.gif


सुनीता ने मुस्कुरा कर बड़े गर्व से कहा|

भौजी: Thank You!

भौजी ने लजाते हुए कहा|

सुनीता: मैं वादा करती हूँ ये बात किसी को पता नहीं चलेगी|

सुनीता ने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: Appreciated!!!

भौजी ने भी उसकी बात का जवाब मुस्कुरा कर दिया|

बात खत्म हुई, मैं और सुनीता बड़े घर आ कर पढ़ाई में लग गए, Chapter के कुछ last points discuss करने रह गए थे| कुछ देर बाद भौजी भी वहाँ आ कर बैठ गईं, नेहा और वरुण जहाँ गेहूँ दाँवा जा रहा था वहाँ चले गए| भौजी ने जब मुझे सुनीता को पढ़ाते हुए देखा तो वो बहुत खुश हुईं और उन्हें मेरा पढ़ाने का ढंग बहुत पसंद आया| पढ़ाई पूरी होने के बाद सुनीता ने अपनी किताब और रजिस्टर समेटा और बोली;

सुनीता: वैसे एक बात बताना मानु जी, आप मुझसे बात करते समय हड़बड़ा क्यों जाते थे?

ये सुन कर भौजी और सुनीता ने बड़ा जोरदार ठहाका मारा, इधर मैं बेचारा शर्म से लाल हो गया|

मैं: वो..मैंने कभी कोई लड़की दोस्त नहीं बनाई, पिताजी इन मामलों में मुझ पर बड़ी लगाम लगा कर रखते थे!

मैंने शर्माते हुए कहा|

सुनीता: चलो अब तो बन गई न?!

सुनीता मुस्कुराते हुए बोली, मैंने हाँ में सर हिला कर उसकी बात को स्वीकृति दी| सुनीता ने एकदम से मुझसे हाथ मिलाने को अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ाया| मैंने एक नजर भौजी की तरफ देख उनकी इजाजत माँगी तो हाँ में सर हिला कर अपनी इजाजत दी| तब जा आकर मैंने सुनीता से हाथ मिलाया! उसके बाद वो हमें बाय बोल कर अपने घर चली गई|



जारी रहेगा भाग - 2 में...
 

Lib am

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Rockstar_Rocky मानू भाई, अब मां का स्वास्थ्य कैसा है और आप कैसा महसूस कर रहे हो अब। काफी दिनों से YouAlreadyKnowMe संगीता भौजी का भी कोई अपडेट नहीं आया, क्या भौजी अभी अपने मायके ही है और उनकी मां की स्वास्थ्य भी ठीक है अब?

मानता हूं कि हमारा नाता कहानी से जुड़ा है मगर शायद कहानी के माध्यम से ही सही, एक दूसरे के जीवन से जुड़ तो चुके ही है। तो इसी जुड़ाव के नाते ये उम्मीद रहती है कि अगर थोड़े अंतराल पर आप बताते रहे की क्या चल रहा है लाइफ में तो पाठको भी आपकी परिस्थिति से अवगत हो जाते है और प्रार्थनाएं तो हम सब की एक दूसरे के साथ रहती है मगर कोई सहायता की आवश्यकता हो और अगर किसी पाठक के पास कोई माध्यम हो उस आवश्यकता को पूरा करने का तो हम सब साथ ही है एक दूसरे के।
 

Rockstar_Rocky

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Rockstar_Rocky मानू भाई, अब मां का स्वास्थ्य कैसा है और आप कैसा महसूस कर रहे हो अब। काफी दिनों से YouAlreadyKnowMe संगीता भौजी का भी कोई अपडेट नहीं आया, क्या भौजी अभी अपने मायके ही है और उनकी मां की स्वास्थ्य भी ठीक है अब?

मानता हूं कि हमारा नाता कहानी से जुड़ा है मगर शायद कहानी के माध्यम से ही सही, एक दूसरे के जीवन से जुड़ तो चुके ही है। तो इसी जुड़ाव के नाते ये उम्मीद रहती है कि अगर थोड़े अंतराल पर आप बताते रहे की क्या चल रहा है लाइफ में तो पाठको भी आपकी परिस्थिति से अवगत हो जाते है और प्रार्थनाएं तो हम सब की एक दूसरे के साथ रहती है मगर कोई सहायता की आवश्यकता हो और अगर किसी पाठक के पास कोई माध्यम हो उस आवश्यकता को पूरा करने का तो हम सब साथ ही है एक दूसरे के।
प्रिय अमित भाई जी,

अपनी समस्याओं से तो मैं हार चूका हूँ! जब लगता है की एक समस्या सुलझ गई है, तुरंत ही एक नई समस्या पैदा हो जाती है|

माँ की बाईं जाँघ का दर्द पहले से कुछ कम है परन्तु अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ| कभी-कभी माँ को पीठ में, कमर में, पिंडलियों मं तो कभी घुटनों में दर्द होने लगा है|
इस पर आज सुबह नाश्ता करने के बाद माँ को 100 डिग्री का बुखार और महसूस हो रहा था| माँ के इस बुखार को देख मेरी anxiety फिर ज़ोर मारने लगी तो जैसे-तैसे मैंने खुद को सँभाला| शुक्र है भगवान जी का की अभी माँ को बुखार जैसा नहीं लग रहा है|

माँ की इन शरीरिक समस्याओं के साथ-साथ अब तो आर्थिक समस्या भी सताने लगी है| कुछ दिन पहले दिल्ली जल बोर्ड वालों ने 16000 का बिल भेज कर मेरी anxiety को चरम पर पहुँचा दिया! हरामखोर लोग इतने समय से बिल भेजते नहीं थे और जब भेजा तो इतना की मेरी मानसिक के साथ-साथ आर्थिक स्थिति भी तोड़ कर रख दी!

इन सब समस्याओं को झेलते-झीलते अब इतना कमजोर हो चूका हूँ की मन करता है की मर जाऊँ तो इन सभी सम्याओं से पिंड छूटे मेर!
 

Abhi32

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प्रिय अमित भाई जी,

अपनी समस्याओं से तो मैं हार चूका हूँ! जब लगता है की एक समस्या सुलझ गई है, तुरंत ही एक नई समस्या पैदा हो जाती है|

माँ की बाईं जाँघ का दर्द पहले से कुछ कम है परन्तु अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ| कभी-कभी माँ को पीठ में, कमर में, पिंडलियों मं तो कभी घुटनों में दर्द होने लगा है|
इस पर आज सुबह नाश्ता करने के बाद माँ को 100 डिग्री का बुखार और महसूस हो रहा था| माँ के इस बुखार को देख मेरी anxiety फिर ज़ोर मारने लगी तो जैसे-तैसे मैंने खुद को सँभाला| शुक्र है भगवान जी का की अभी माँ को बुखार जैसा नहीं लग रहा है|

माँ की इन शरीरिक समस्याओं के साथ-साथ अब तो आर्थिक समस्या भी सताने लगी है| कुछ दिन पहले दिल्ली जल बोर्ड वालों ने 16000 का बिल भेज कर मेरी anxiety को चरम पर पहुँचा दिया! हरामखोर लोग इतने समय से बिल भेजते नहीं थे और जब भेजा तो इतना की मेरी मानसिक के साथ-साथ आर्थिक स्थिति भी तोड़ कर रख दी!

इन सब समस्याओं को झेलते-झीलते अब इतना कमजोर हो चूका हूँ की मन करता है की मर जाऊँ तो इन सभी सम्याओं से पिंड छूटे मेर!
Bhai dhairya rakhiye life me sukh dukh ate rahte hai .yeh bhi samsaya dur ho jayegi.Aur plz aise khyalat apne man me n laye ,ap apne pariwar ke bare me soch le.
 

Rekha rani

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सर् जी लाइफ में दो ही पहलू है सुख और दुख, वो चलते रहेंगे, आप धर्य सेकाम ले। भगवान सब ठीक करेगा। निराश होने से कुछ हल नही होने वाला, इससे परिवार के दूसरे सदस्य परेशान होंगे। उनका हौसला आपसे है। वैसे भी आपकी जीवन यात्रा से ये जाना है कि इतनी जल्दी आप हार मानने वालों में से नही है,
इसलिए जल्दी ही भगवान की कृपा फिर से अच्छे से बनेगी और सब कष्ट दूर हो जाएंगे। यही दुआ है हम सबकी
 

Lib am

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प्रिय अमित भाई जी,

अपनी समस्याओं से तो मैं हार चूका हूँ! जब लगता है की एक समस्या सुलझ गई है, तुरंत ही एक नई समस्या पैदा हो जाती है|

माँ की बाईं जाँघ का दर्द पहले से कुछ कम है परन्तु अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ| कभी-कभी माँ को पीठ में, कमर में, पिंडलियों मं तो कभी घुटनों में दर्द होने लगा है|
इस पर आज सुबह नाश्ता करने के बाद माँ को 100 डिग्री का बुखार और महसूस हो रहा था| माँ के इस बुखार को देख मेरी anxiety फिर ज़ोर मारने लगी तो जैसे-तैसे मैंने खुद को सँभाला| शुक्र है भगवान जी का की अभी माँ को बुखार जैसा नहीं लग रहा है|

माँ की इन शरीरिक समस्याओं के साथ-साथ अब तो आर्थिक समस्या भी सताने लगी है| कुछ दिन पहले दिल्ली जल बोर्ड वालों ने 16000 का बिल भेज कर मेरी anxiety को चरम पर पहुँचा दिया! हरामखोर लोग इतने समय से बिल भेजते नहीं थे और जब भेजा तो इतना की मेरी मानसिक के साथ-साथ आर्थिक स्थिति भी तोड़ कर रख दी!

इन सब समस्याओं को झेलते-झीलते अब इतना कमजोर हो चूका हूँ की मन करता है की मर जाऊँ तो इन सभी सम्याओं से पिंड छूटे मेर!
ना मानू भाई, समस्याएं तो जिंदगी का दूसरा नाम है माना की अभी टाइम थोड़ा मुश्किल है मगर आपका परिवार और इस वर्चुअल वर्ल्ड के इतने लोगो का परिवार भी आपके साथ है। अगर हम आपके इस कठिन समय में कोई भी सहायता कर सके तो हमे खुशी होगी।

अब सबसे जरूरी बात, हम सब आपसे जुड़े है आपकी कहानी और आपके और संगीता के उस अटूट प्यार के लिए । तो आज के बाद ये मरने मारने की बात सोचने से पहले अपने उस प्यार और उस प्यार की उन तीन निशानियों और सबसे जरूरी उस मां के लिए जिसने आपके प्यार के लिए सबकुछ छोड़ दिया, एक बार उसके लिए जरूर सोचना और उसके बाद भी अकल ना आए तो अपना एड्रेस DM कर देना, उम्र में बड़ा होने के नाते घर आके दो चार लगा दूंगा तो ये मरने का सारा भूत उतर जाएगा। हम सब लोगो के इतने प्यार और प्रार्थनाओं के बाद भी अगर ऐसी बात करोगे तो कैसे चलेगा और ये बात जब संगीता पढ़ेगी या उसको पता चलेगा तो वो उस पर क्या गुजरेगी।

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
 
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