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Romance एक अनोखा बंधन (Completed)

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एक अनोखा बंधन--17

गतान्क से आगे.....................

आदित्य को बड़ा ही अजीब लगा की ज़रीना सोने जा रही है. उसे लगा था कि वो दोनो बैठ कर ढेर सारी बाते करेंगे. उसने ज़रीना को कुछ भी कहना सही नही समझा और चुपचाप नहाने के लिए वॉश रूम में घुस गया. “शायद बहुत थक गयी है मेरी जान. वैसे सफ़र था भी बहुत लंबा.” आदित्य ने मन ही मन सोचा.

जब वो बाहर आया तो देखा कि ज़रीना कमरे की खिड़की के पास खड़ी है और बाहर झाँक रही है. आदित्य तोलिये से अपने बाल सुखाता हुवा उसके पास आया और बोला, “जान किन विचारो में खोई हो. चेहरे पर बहुत चिंता ज़नक भाव हैं. और तुम तो सोने जा रही थी, यहा पर क्यों खड़ी हो.”

“ओह…तुम आ गये. आदित्य कुछ बातो को लेकर परेशान हूँ.”

“कौन सी बातें?”

“हम जा तो रहे हैं गुजरात वापिस पर क्या हम सही कर रहे हैं?. क्या ये दुनिया हमारे रिश्ते को बर्दास्त कर पाएगी.”

“अचानक ये सब दिमाग़ में कहा से आ गया?” आदित्य ने पूछा.

“तुम नहाने गये थे तो मैने टीवी ऑन कर लिया. एक न्यूज़ देख कर दिल दहल उठा.”

“कैसी न्यूज़ देख ली तुमने?”

“हमारी ही तरह दो लोग प्यार करते थे बहुत. लड़का मुस्लिम था और लड़की हिंदू. आज सुबह उन दोनो को ऑनर के नाम पर मार दिया गया. आज कल हर किसी पर ऑनर किल्लिंग का भूत सवार है. मुझे डर लग रहा है आदित्य. क्या हमारा वडोदरा जाना ज़रूरी है, हम अपनी छोटी सी दुनिया क्या कही और नही बसा सकते.”

“कैसी बात करती हो ज़रीना, हमारा घर है वाहा, कारोबार है. हम दुनिया से डर कर भाग नही सकते सब कुछ छ्चोड़ कर. और ये हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा गुजरात तक सीमित नही है. कहा छुपेंगे हम जाकर.”

“आदित्य वाहा हमें जानते हैं लोग, लोग जानते हैं कि तुम हिंदू हो और मैं मुस्लिम हूँ. कही और जाएँगे तो मैं भी खुद को हिंदू बता दूँगी. बात ही ख़तम हो जाएगी सारी.किसको पता चलेगा हमारा रिलिजन. तुमने ही तो कहा था कि चेहरे पर धरम नही लिखा होता.”

“वो सब तो ठीक है जान पर मुझे ये आइडिया बिल्कुल पसंद नही है. तुम तो डर गयी अभी से. मौत से कितना घबराती हो तुम?”

“मौत से डर नही है कोई, बस तुम्हे खोना नही चाहती. हम मर गये तो भी तो हम जुदा ही होंगे. रूह को चैन नही मिलेगा मेरी. क्या ये सब मंजूर है तुम्हे.”

“तुम तो ये सोच कर चल रही हो कि ऐसा ही होगा. मगर जींदगी में निश्चित कुछ नही होता. मुझे यकीन है कि सब ठीक होगा हमारे साथ. क्या तुम अपने घर नही जाना चाहती.”

“बिल्कुल जाना चाहती हूँ. वो घर तो मेरे सपनो का घर है. पर आदित्य अगर फिर से किसी ने तुम पर हमला किया तो मैं सह नही पाउन्गि. घर जाने के लिए बेताब हूँ मैं. बस ये न्यूज़ देख कर दिल परेशान सा हो गया है. अल्लाह हमारे प्यार की हिफ़ाज़त करे.”

“बस एक बात कहूँगा. मैं आसमान से गिरने वाली बिजली से बहुत डरता था. टीवी पर एक बार देखा था कि कुछ लोग बीजली गिरने से मर गये. जब भी बारिस के दिनो में बादल गरजते थे, मेरा दिल बेचैन हो उठता था. मेरे दादा जी मेरा ये डर जान गये थे. एक बार उन्होने मुझे बैठा कर समझाया कि…आसमान से गिरने वाली बीजली कही ना कही तो गिरेगी पर ज़रूरी नही है कि हमारे उपर ही गिरे. इस विचार से मेरा डर गायब हो गया. मानता हूँ कि हमारा रिश्ता कुछ लोगो को पसंद नही आएगा. पर एक बात समझ लो कुछ लोग हमारा साथ भी देंगे. ज़रूरी नही है कि हमारे साथ बुरा ही हो. कुछ अछा भी हो सकता है. तुम मेरे साथ चलो…मुझ पर यकीन रखो…जो होगा देखा जाएगा.”

“तुम पर तो अपने खुदा से भी ज़्यादा यकीन है मुझे. बस इस अनमोल प्यार में और कोई ट्विस्ट नही चाहती हूँ मैं.”

“ज़रीना वैसे तो जींदगी है, कुछ भी हो सकता है मगर मुझे यकीन है कि अगर हम दोनो साथ हैं तो कोई भी हमारा कुछ नही बिगाड़ सकता. हम दोनो साथ रहेंगे और वही अपने घर में रहेंगे.”

“ठीक है अब कुछ नही सोचूँगी. बस ये न्यूज़ देख कर डर गयी थी. मैं साथ हूँ तुम्हारे हर कदम पर. मेरा खुद का मन भी कहा है अपने घर से दूर रहने का.”

“अछा चलो छ्चोड़ो ये सब. तुम ये बताओ इतनी जल्दी सोने क्यों जा रही थी. टॅक्सी में तो हम खुल कर बात ही नही कर पाए ड्राइवर के कारण. अब जाकर मोका मिला था कुछ बाते करने का और तुम सोने की बाते करने लगी. बिल्कुल अछा नही लगा मुझे.”

“सर में दर्द है आदित्य. थका दिया इतने लंबे सफ़र ने. सर में दर्द होगा तो कैसे ढेर सारी बाते करूँगी. सोचा थोड़ा सा सो लूँगी तो ठीक हो जाएगा. पर नींद ही नही आई.”

“अरे पागल हो तुम भी. ऐसा था तो बताना था ना मुझे. मैं अभी मेडिसिन ले आता हूँ.”

“नही तुम कही मत जाओ प्लीज़. मेरे पास रहो. हो जाएगा ठीक थोड़ी देर में. मैं मेडिसिन कम ही लेती हूँ.”

“अछा चलो लाते जाओ आराम से. ये सर दर्द सफ़र के कारण है. आराम करने से ही दूर होगा.” आदित्य ने कहा.

“आदित्य ये बताओ कि तुम मंदिर में मेरे आयेज हाथ जोड़ कर क्यों खड़े थे तुम.?”

“क्योंकि मेरी भगवान तो तुम ही हो अब. इश्लीए तुम्हारे आगे ही हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया था.”

“हाहहाहा, मज़ाक अछा कर लेते हो तुम. मैं भगवान कैसे बन गयी.” ज़रीना ने कहा.


“जितना प्यार तुम मुझे करती हो उतना कोई फरिस्ता ही कर सकता है किसी को. पूरे एक साल तक तुमने मेरा इंतेज़ार किया. कोई और होता तो कब का मुझे भूल कर नयी दुनिया शुरू कर चुका होता. जब मुझे होश आया और पता चला कि एक साल बाद आँख खुली है मेरी तो यही लगा मुझे कि मैने अपनी ज़रीना को खो दिया. मगर जब तुम्हारे खत पढ़े तो अहसास हुवा कि तुम्हारे मन में मेरे प्रति प्यार कम होने की बजाय और बढ़ गया है. क्या ऐसा कोई मामूली इंसान कर सकता है. तभी तुम्हे भगवान मान लिया है मैने.”

“तुम्हारे लिए एक साल तो क्या पूरी जींदगी भी इंतेज़ार कर लेती. नयी दुनिया बसाने का तो सवाल ही नही उठता. मुझे यकीन था कि तुम आओगे एक दिन और देखो तुम आ गये. ये बस हम दोनो के प्यार की ताक़त है जिसने हमें संभाले रखा.”

“जो भी हो मेरे लिए तो तुम ही मेरी भगवान हो.”

“ठीक है फिर, वादा करो वत्स कि मेरी हर बात मानोगे.”

“वो तो वैसे भी मानता ही हूँ, इसमे वादे की क्या बात है.” आदित्य ने कहा.

एक पल को दोनो की नज़रे टकराई तो दोनो खड़े खड़े बस एक दूसरे की निगाहों में खो गये. कुछ बहुत ही गहरी बाते हुई आँखो ही आँखो में दोनो के बीच. इन बातों को शब्दो में पिरोना मुश्किल है क्योंकि आँखो की भासा सिर्फ़ आँखे ही बोलती हैं और आँखे ही समझती हैं. वक्त जैसे थम सा गया था.

“क्या देख रहे हो मेरी आँखो में आदित्य.”

“जो तुम देख रही हो मेरी आँखो में वही मैं देख रहा हूँ तुम्हारी आँखो में.” आदित्य ने हंसते हुवे कहा.

और फिर अचानक ही आदित्य ज़रीना की ओर बढ़ा. ज़रीना समझ गयी कि आदित्य का क्या इरादा है वो फ़ौरन वाहा से भाग कर बिस्तर पर लेट गयी करवट ले कर, “मुझे सोने दो अब. सोने से सर दर्द भाग जाएगा.”

आदित्य मुस्कुराता हुवा बिस्तर के कोने पर बैठ गया और नोट पॅड उठा कर उस पर कुछ लिखने लगा. लिख कर उसने आवाज़ की, “उह…उह”

ज़रीना ने मूड कर देखा तो पाया कि उसके पीछे एक काग़ज़ पड़ा था.

उस पर लिखा था, “इतना प्यार करते हैं हम दोनो. पूरे एक साल बाद मिले हैं. एक चुंबन तो बनता ही है हमारा. तुम क्यों भाग आई, कितना अछा अवसर था एक चुंबन के लिए.”

ज़रीना ने बिना आदित्य की तरफ देखे उसी काग़ज़ पर नीचे कुछ लिख कर आदित्य की तरफ सरका दिया और करवट ले कर लेट गयी.

आदित्य ने वो काग़ज़ उठाया.

उस पर लिखा था, “प्यार का मतलब क्या ये है कि हम चुंबन में लीन हों जायें. भूलो मत अभी हम कुंवारे हैं. शादी नही हुई है हमारी. ये सब शादी के बाद ही अछा लगता है, उस से पहले नही. प्लीज़ बुरा मत मान-ना पर ये सब अभी नही.”

आदित्य ये पढ़ कर थोड़ा भावुक हो गया. उसने दूसरा काग़ज़ लिया नोट पॅड से और उस पर कुछ लिख कर ज़रीना के बगल में रख कर बिना आवाज़ किए वाहा से उठ कर खिड़की पर आ कर खड़ा हो गया. ज़रीना को ये अहसास भी नही हुवा की आदित्य ने कुछ लिख कर उसकी बगल में रख दिया है.

वैसे ज़रीना पड़ी तो थी चुपचाप करवट लिए पर वो बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी आदित्या के जवाब का. जब काफ़ी देर तक आदित्य की कोई आवाज़ उसे सुनाई नही दी तो उसने मूड कर देखा और पाया कि आदित्य खिड़की के पास खड़ा है और उसकी बगल में एक काग़ज़ पड़ा है.

ज़रीना ने तुरंत वो काग़ज़ उठाया.

उष पर लिखा था, “सॉरी जान मैं भूल गया था कि अभी हम कुंवारे हैं. आक्च्युयली कभी ध्यान ही नही दिया इस बात पर. कुछ ज़्यादा ही अधिकार समझ बैठा तुम पर. सॉरी आगे से ऐसा नही होगा. शादी कर लेंगे जाते ही हम.”

ज़रीना फ़ौरन बिस्तर से उठ कर आई और आदित्य के कदमो में बैठ गयी.

“अरे ये क्या कर रही हो उठो. पागल हो गयी हो क्या.”

“मुझे माफ़ कर दो आदित्य. मेरी अम्मी और अब्बा ने जो मुझे संस्कार दिए हैं वो मुझपे हावी हो गये थे. तुम्हारा तो शादी के बिना भी हक़ है मुझपे. मुझसे भूल हो गयी जो कि वो सब लिख दिया. मैं अपने आदित्य को ऐसा कैसे कह सकती हूँ.”

“अरे उठो पागल हो गयी हो तुम. माफी तो मुझे माँगनी चाहिए. मैं शायद बहक गया था. पहली बार हुवा है मेरे साथ ऐसा. और तुम्हारे अम्मी और अब्बा ने बहुत अछी शिक्षा दी है तुम्हे. अछा लगा ये देख कर कि तुम इतना आदर करती हो उनकी बातों का. उठो अब, ग़लती मेरी ही थी जो कि इस रिश्ते में अचानक एक झलाँग लगाने की सोच रहा था.”

क्रमशः...............................
 

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एक अनोखा बंधन--18

गतान्क से आगे.....................

ज़रीना उठ गयी और सुबक्ते हुवे बड़े प्यार से बोली, “मुझे चुंबन लेना आता भी नही है. तुमने अचानक ये बात करके मुझे डरा दिया.”

“अछा ठीक है बाबा. मेरी जान सच में बहुत मासूम है. वैसे चुंबन लेना मुझे भी नही आता. बस यू ही तुम्हारी आँखो में देखते-देखते मन बहक गया. चलो छ्चोड़ो ये सब ये बताओ खाओगि क्या कुछ. मुझे तो भूक लग रही है.”

“तुम खा लो, मुझे सच में भूक नही है.”

“चलो ठीक है. मैं खा कर आता हूँ. तुम आराम करो.”

“यही मंगा लो ना खाना. मेरे पास रहो. मुझसे दूर मत जाओ प्लीज़.”

“अछा ठीक है, यही मंगा लेता हूँ.” आदित्य ने ज़रीना के चेहरे पर हाथ रख कर कहा.

आदित्य और ज़रीना के प्यार की मासूमियत होटेल के उस कमरे में हर तरफ बिखरी पड़ी थी. ये ऐसा मासूम प्यार था, जो कि बहुत कम लोगो को नसीब होता है. और जिनको ये नसीब होता है वो आदित्य और ज़रीना की तरह प्यार के फरिस्ते बन जाते हैं.

आदित्य ने रूम में ही खाना खाया. खाना खाने के बाद दोनो ने खूब बाते की. बातों में हमेशा की तरह प्यार भी था और तकरार भी. ज़रीना बेड पर ही सोई. बिस्तर छ्चोड़ने को तैयार नही हुई वो. खैर आदित्य भी नही चाहता था कि वो नीचे सोए. इश्लीए चुपचाप फर्स पर चादर बीचा कर सो गया.

सुबह 6 बजे उठ गये दोनो. पहले ज़रीना घुस गयी नहाने. नहा कर जीन्स और टॉप पहन कर निकली बाहर.

“वाउ तुम ज़रीना ही हो या कोई और. बहुत प्यारी लग रही हो इन कपड़ो में.” आदित्य ने कहा.

“मज़ाक मत करो. जीन्स थोड़ी सी लूज है. बेल्ट भी नही है मेरे पास. दिक्कत रहेगी चलने में.” ज़रीना ने मायूसी भरे लहज़े में कहा.

“अब अंदाज़ा हर बार तो सही नही हो सकता. तुमने कभी अपनी फिगर बताई ही नही मुझे.”

“बता दूँगी लिख कर. अभी ये बताओ क्या करूँ अब मैं.”

“अपना चुरिदार ही पहन लो. जीन्स पहन-ने के बहुत मोके आएँगे जींदगी में. पहली बार नही घूम रहे हम साथ. आगे भी घूमते रहेंगे. अभी पूरा भारत पड़ा है घूमने के लिए.”

“क्या हम पूरा भारत घूम लेंगे.” ज़रीना झूम उठी ये सुन कर.

“बिल्कुल. मेरी तो बचपन की इच्छा है ये. तुम्हारे साथ घूमने का मज़ा ही कुछ और होगा. चलो जल्दी से चेंज कर्लो. मैं नहा कर आता हूँ. नास्ते का ऑर्डर कर दिया है मैने.” आदित्य ने कहा और वॉश रूम में घुस गया.

ठीक 8 बजे निकल दिए वो दोनो होटेल से. एरपोर्ट बहुत नज़दीक था महिपालपुर से. कोई 20 मिनिट में ही एरपोर्ट पहुँच गये वो दोनो.

बोरडिंग पास लेकर, सेक्यूरिटी चेक करवा कर वो बोरडिंग के इंतेज़ार में बैठ गये.

“जान मुझे विंडो सीट मिली है. पर क्योंकि तुम पहली बार सफ़र कर रही हो प्लेन से इश्लीए अपनी विंडो सीट तुम्हे दे दूँगा.”

“शुक्रिया आपका इस मेहरबानी के लिए. वैसे इस अहसान के लिए मुझे क्या करना होगा.” ज़रीना ने कहा.

“अब आप इतना अहसान मान रही हैं तो घर जाते ही सबसे पहले एक कप चाय दे देना. तरस गया हूँ तुम्हारे हाथ की चाय के लिए.”

तभी बोरडिंग की अनाउन्स्मेंट हुई और वो दोनो बोरडिंग के लिए चल दिए.

आदित्य और ज़रीना के पास एक लेडी आ कर बैठ गयी. बैठते ही वो बोली, “क्या आप वडोदरा में ही रहते हैं.”

“जी हां, हम वही रहते हैं.” आदित्य ने कहा.

“आपका शुभ नाम?”

“जी मेरा नाम आदित्य है.”

“ओह शूकर है. आक्च्युयली मैं पहली बार गुजरात जा रही हूँ. सुना है कि वाहा का माहॉल बहुत खराब है. ये टेररिस्ट लोग पता नही कब बक्सेंगे हम हिंदुस्तानियों को.”

“टेररिस्ट…गुजरात में कोई टेररिस्ट नही हैं.” आदित्य ने कहा.

“अरे यार मासूम मत बनो. तुम जानते हो मैं क्या कह रही हूँ.”

ज़रीना से ये सब बर्दास्त नही हुवा और वो बोली, “क्या आप कृपया करके शांति से बैठेंगी. हमें डिस्टर्बेन्स हो रही है.”

“ये कौन है आपके साथ. रिक्ट तो ऐसे कर रही है जैसे कि मैने इसे कुछ कहा है.”

“ये मेरी पत्नी है और इसका नाम ज़रीना है.”

“हे भगवान.” उस लेडी ने अपने मूह पर हाथ रख लिया. उसने तुरंत एर होस्टेस्स को बुलाया और अपनी सीट चेंज करने की रिक्वेस्ट की.

उस लेडी के जाने के बाद ज़रीना ने कहा, “देखा आदित्य, इस तरह से लेगी दुनिया हमारे प्यार को. कैसे चिड कर भाग गयी यहा से. कितनी नफ़रत है दुनिया में प्यार के लिए लोगो के दिलो में.”

“वो पागल थी और पागल की बातों को दिल से नही लगाते. उसकी मेंटल कंडीशन ठीक होती तो ऐसी बाते ही ना करती. चलो छ्चोड़ो ये सब…बाहर झाँक कर देखो बादल कितनी प्यारी चित्रकारी कर रहे हैं.”

“ओह वाउ…ग्रेट. ये तो ऐसा लग रहा है जैसे की हम जन्नत में उड़ रहे हैं. बहुत सुंदर है ये नज़ारा आदित्य. थॅंक यू वेरी मच.”

“जान ये थॅंक यू बोल कर तमाचा मत मारो मेरे गाल पर. तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ मैं.” आदित्य ने कहा.

ज़रीना पूरे सफ़र में बस विंडो से बाहर ही देखती रही. बादलों की बनती बिगड़ती चित्रकारी में खो गयी थी वो. कभी हँसती थी कभी मुश्कूराती थी और कभी एक तक बस देखे जाती थी.

अचानक उसने खिड़की से सर लगा कर नीचे की ओर देखा और बोली,“आदित्य देखो…वो नीचे क्या कोई नदी है…” पर आदित्य का कोई रेस्पॉन्स नही आया. वो सो गया था.

ज़रीना ने आदित्य को कोहनी मारी, “मुझे खिड़की पर बैठा कर सो गये, शरम नही आती तुम्हे.”

“ओह…जान नींद आ गयी थी…क्या हुवा” आदित्य ने आँखे मलते हुवे कहा

“कोई नदी दीखाई दे रही थी शायद. अब तो निकल गयी वो…अब क्या फ़ायडा.” ज़रीना ने गुस्से में कहा.

“हाहहाहा…एक नदी नही है भारत में. हज़ारों हैं. दूसरी आ जाएगी…परेशान क्यों हो रही हो.”

“हज़ारों हैं तो क्या एक की अहमियत कम हो जाएगी. पहली बार आकाश से देखा मैने किसी नदी को. कितनी सुंदर लग रही थी.”

“मुझे तो इस वक्त तुम बहुत सुंदर लग रही हो. बिल्कुल बच्ची बन गयी हो. लगता है बच्चो को पढ़ाते-पढ़ाते खुद भी बच्ची बन गयी तुम.” आदित्य ने हंसते हुवे कहा.

“कोई बुराई तो नही है ना इसमें, ज़्यादा हँसो मत वरना दाँत तौड दूँगी तुम्हारे अभी.”

“भाई जो भी है मुझे तो डर कर रहना पड़ेगा तुमसे. एक बार गमला मार चुकी हो सर पर, एक बार हॉकी मार चुकी हो पेट में…अब मेरे दाँतों के पीछे पड़ी हो. भगवान भली करे.”

“मैं क्या इतनी बुरी हूँ. अगर ऐसा था तो क्यों आए थे वापिस मेरे पास.” ज़रीना ने भावुक आवाज़ में कहा.

“अरे मज़ाक कर रहा हूँ जान. तुम भी ना. तुम तो जींदगी हो मेरी. तुम्हारे पास नही आता तो कहा जाता मैं.” आदित्य ने कहा.

तभी प्लेन में अनाउन्स्मेंट हुई कि प्लेन वडोदरा में लॅंड करने वाला है, सभी यात्री सीट बेल्ट बाँध लें.

“हरे हम पहुँच गये अपने घर.” ज़रीना ने कहा.

“हां बस थोड़ी ही देर में हम अपने उसी घर में होंगे जहा हमें प्यार हुवा था.” आदित्य ने ज़रीना का हाथ थाम लिया और दोनो प्यार से एक दूसरे की तरफ देखते-देखते खो गये.

“लॅंडिंग के वक्त खींचाव महसूस होगा जान. घबराना मत” आदित्य ने कहा.

“तुम साथ हो तो डर काहे का. बिल्कुल नही घबरवँगी.” ज़रीना ने कहा.

कह तो दिया था ज़रीना ने की नही घबराएगी मगर लॅंडिंग के वक्त उसके पाँव काँपने लगे और चेहरे पर डर सॉफ दीखाई देने लगा. आदित्य उसे देख कर मध्यम-मध्यम मुश्कुरा रहा था.

प्लेन से उतरने के बाद आदित्य ने ज़रीना को छेड़ा, “तुम तो मेरे होते हुवे भी घबरा रही थी. कितनी डरपोक हो तुम.”

“पहली बार आई हूँ मैं प्लेन से, मुझे नही पता था कि ऐसा होगा. ज़्यादा हासोगे तो लड़ाई हो जाएगी अब.”

“अभी नही जान, घर चल कर लड़ना आराम से.” आदित्य ने कहा.

आदित्य ने एक टॅक्सी की और ज़रीना को लेकर घर की तरफ चल दिया. दोनो बहुत खुश थे. पाँव ज़मीन पर नही टिक रहे थे दोनो के.

“आदित्य आस-पाडोश में किसी ने मुझे तुम्हारे साथ देखा तो, क्या कहोगे उन्हे मेरे बारे में.”

“किसी को कुछ एक्सप्लेन करने की ज़रूरत नही है. और कहना भी पड़ा किसी को कुछ तो बोल दूँगा कि तुम मेरी पत्नी हो… सिंपल.”

“काश हम शादी करके ही घर जाते. फिर कोई उंगली नही उठा पाता.”

“हां ये तो है…पर जान हमें साथ रहने के लिए किसी सर्टिफिकेट की ज़रूरत नही है. और हम एक-दो दिन में ही शादी कर लेंगे, तुम किसी बात की चिंता मत करो.”

“चिंता नही है किसी बात की बस यू ही सोच रही थी.” ज़रीना ने कहा.

लेकिन ये अछा हुवा कि जब वो घर पहुँचे तो किसी ने उन्हे नही देखा. दोपहर का वक्त था और सभी लोग घरो में थे. ज़रीना ने अपने हाथ से ताला खोला और झट से अंदर आ गयी.

“ये ताला नही चाहिए मुझे अब. इसे फेंक दो. बहुत परेशान किया है इस ताले ने मुझे.” ज़रीना ने कहा.

“बिल्कुल फेंक दूँगा. अब जब तुम इसे खोल कर घर में परवेश कर गयी हो तो इसका कोई काम नही है.”

“घर तो चमका रखा है तुमने. इतनी मेहनत करने कि क्या ज़रूरत थी. मैं कर देती ना सफाई.” ज़रीना ने कहा और सोफे पर बैठ गयी.

“मैं अपनी जान को क्या धूल-मिट्टी से भरे घर में लाता.” आदित्य ने कहा.

“छाए लओन तुम्हारे…”

“दूध नही है…चाय कैसे बनाओगी…थोड़ी देर रूको मैं मार्केट से ले आउन्गा. पहले थोड़ा बैठ लेते हैं.” आदित्य ने कहा.

आदित्य बैठा ही था सोफे पर की घर की बेल बज उठी.

“कौन हो सकता है?” ज़रीना ने पूछा.

“तुम अपने कमरे में जाओ. मैं देखता हूँ.” आदित्य ने कहा.

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ज़रीना दिल में बेचैनी सी लिए वाहा से उठ गयी, “क्या किसी ने हमें देख लिया. मेरे अल्लाह हमारे प्यार में अब और कोई रुकावट मत डालना.”

आदित्य ने दरवाजा खोला, “चाचा जी आप.”

“हां बेटा मैं. तुम तो बिना बताए चले आए. क्या बीती है मुझपे और तेरी चाची पर कह नही सकता.”

“आईए चाचा जी… अंदर आईए”

“अंदर तो आ जाउन्गा पहले ये बताओ कि ऐसा क्या हो गया था कि तुम हमें बिना बताए चले आए मुंबई से. ऐसा कोई करता है क्या अपनो के साथ.”

“चाचा जी आप बैठिए तो सही. मेरी कुछ मजबूरी थी, जिसके कारण मुझे तुरंत वाहा से जाना पड़ा…क्या आप मुझे नही जानते. कोई कारण रहा होगा तभी मैं बिना बताए चला आया. आप मुझे कभी नही जाने देते और मेरा जाना बहुत ज़रूरी था.”

ज़रीना सब सुन रही थी दिल थामे.

“बेटा हमारा तो चलो कुछ नही पर सिमरन का क्या.” रघु नाथ पांडे ने कहा.

“सिमरन का क्या… मतलब?” आदित्य ने हैरानी में कहा.

“बेटा डॉक्टर ने कहा था कि ऐसी कोई बात ना कहें तुम्हारे सामने जिस से तुम्हे दुख पहुँचे. इश्लीए सिमरन का जिकर नही किया हमनें. तुम्हे ये शादी बिल्कुल पसंद नही थी. पर है तो वो तुम्हारी पत्नी ना.”

“ये आप क्या कह रहे हैं मुझे कुछ समझ नही आ रहा.” आदित्य बेचैन हो उठा.

ये सब सुन कर ज़रीना की भी हालत खराब हो गयी. उसे अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा था.

“बेटा जब तक तुम कोमा में थे सिमरन मुंबई में ही रही हमारे पास. खूब सेवा की उसने तुम्हारी. हम सब अपने काम में बिज़ी हो जाते थे पर वो हर वक्त तुम्हारे पास बैठी रहती थी. एक तरह से वही तुम्हारी नर्स थी पूरा साल. जिस दिन तुम्हे होश आया उस से दो दिन पहले ही गयी थी वो देल्ही अपने घर. वो वापिस आई तो तुम चले गये. बहुत रोई वो तुम्हारे लिए. देखो बेटा 7 साल हो चुके हैं शादी को. शादी के वक्त 7 साल के बाद गोने की बात हुई थी. अब वक्त आ गया है कि तुम अपनी पत्नी को घर ले आओ. भैया जींदा होते तो वो भी यही कहते जो मैं कह रहा हूँ.”

“चाचा जी…मैने उस शादी को ना तब माना था और ना अब मानूँगा. वो सब दादा जी ने कर दिया था. मम्मी, पापा भी इसके खिलाफ थे. मुझे सिमरन से कोई नाराज़गी नही है पर मैं ये बॉल-विवाह नही निभा सकता.”

“बेटा बेसक भैया भाभी भी राज़ी नही थे इस शादी के लिए पर शादी तो हुई ना और पूरे हिंदू ऋतु रिवाज से हुई. तुम जल्दबाज़ी में कोई फ़ैसला मत लो. ठंडे दिमाग़ से सोच लो. सिमरन बहुत अच्छी लड़की है. जितनी सेवा उसने की है तुम्हारी उतनी कोई नही कर सकता. तुम्हारे बारे में पता चलते ही वो अपनी पढ़ाई-लिखाई सब कुछ छ्चोड़ कर मुंबई आ गयी थी. उसने अपना पत्नी धरम निभाया, तुम नही देख पाए लेकिन हमने देखा है. उसे ठुकराने की भूल मत करना…बहुत प्यारी बच्ची है वो. तुम्हारी जोड़ी अच्छी रहेगी.”

“बस चाचा जी प्लीज़. रहने दीजिए ये सब. मैं इस बाल-विवाह को कभी स्वीकार नही करूँगा.”

“हां बेटा मैं कौन होता हूँ, जिसकी बात तुम मानोगे.”

“नही चाचा जी आपकी हर बात मानूँगा मगर ये नही मान सकता. 7 साल पहले शादी हुई…तब मुझे होश भी नही था. बहुत बुरा लगा था मुझे उस वक्त भी कि ये क्या मज़ाक हो रहा है. पर मेरी किसी ने नही सुनी. मैने इस शादी को कभी स्वीकार नही किया और ना ही करूँगा.”

“तुम्हारे स्वीकार करने या ना करने से क्या होता है. शादी पूरे समाज के सामने हुई थी और पूरे रीति रिवाज से हुई थी. और एक बात सुन लो तुम. सिमरन मुंबई अपने घर वालो से लड़ कर आई थी. किसी को उम्मीद नही थी कि तुम कोमा से निकलोगे. मगर सिमरन ने उम्मीद नही छ्चोड़ी. वो इतना प्यार करती है तुम्हे, पत्नी के सारे फ़र्ज़ निभाए उसने और तुम ऐसी बाते कर रहे हो. जब उसे पता लगेगा ये सब तो वो तो मर ही जाएगी. क्या कमी है उसमे जो कि तुम ऐसी बाते कर रहे हो.”

“बात कमी की नही है. मैं उस से मिलूँगा और समझा दूँगा उसे.”

“बेटा सिमरन के पेरेंट्स ने किसी विश्वास के साथ भेजा था उसे मुंबई. सिमरन की ज़िद्द थी वरना वो उसे कभी ना भेजते, अब तुम ऐसा बर्ताव करोगे तो तूफान आ जाएगा. वो लोग चुप नही बैठेंगे.”

“चाचा जी मुझे किसी से गिला शिकवा नही है. सिमरन से मैं कभी नही मिला. बस शादी के वक्त देखा था उसे. ना ही उसके परिवार वालो से मुलाक़ात हुई बाद में कभी. मैं उनसे माफी माँग लूँगा. रिश्ते ज़बरदस्ती नही जोड़े जाते. दादा जी ने ग़लत किया था ये बाल विवाह करवा कर और मैं इस ग़लती को जींदगी भर नही धो सकता.”

“ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. मेरा फ़र्ज़ तो तुम्हे समझाना था. भैया भाभी जींदा होते तो वो भी यही समझाते.”

“मम्मी पापा को भी मैं यही जवाब देता. अब मैं बड़ा हो गया हूँ. 21 साल उमर है मेरी. बालिग हूँ मैं अब और अपने भले बुरे का फ़ैसला खुद कर सकता हूँ. 7 साल पहले मुझे बहला फुसला कर मंडप पर बैठाया गया था. असहाय था उस वक्त मैं पर आज नही हूँ. आज किसी के आगे नही झूकुंगा. ये मेरी जींदगी है और मैं अपने तरीके से जीने का हक़ रखता हूँ.”

“मैं चलता हूँ बेटा. खुश रहो सदा. फिर भी जाते-जाते यही कहूँगा कि एक बार सोच लेना फिर से. एक मासूम लड़की की जींदगी का सवाल है जिसने पूरा साल बिना किसी स्वार्थ के तुम्हारी सेवा की है.”

“मुझे सिमरन से कोई शिकवा नही है. उसने मेरे लिए इतना कुछ किया उसके लिए आभारी हूँ. पर मैं मजबूर हूँ. मैं उस से मिलकर माफी माँग लूँगा. मुझे उम्मीद है कि वो मेरी बात समझेगी.”

“बेटा क्या तुम्हारी जींदगी में कोई और लड़की है जिसके कारण तुम सिमरन को ठुकरा रहे हो. अगर ऐसा है तो जान लो..उस से बेहतर पत्नी नही मिल सकती तुम्हे. जो त्याग और समर्पण उसने दिखाया है वो हर किसी के बसकि बात नही है. सोचना दुबारा फिर से. फॅक्टरी संभाल लेना जाकर अब तुम. मेरे जो बस में था मैने किया. चलता हूँ अब.”

रघु नाथ पांडे चेहरे पर निराशा के भाव लिए वाहा से निकल गया.

रघु नाथ के जाने के बाद ज़रीना तुरंत भाग कर आई और बोली, “तुम शादी शुदा हो और मुझे बताया तक नही. एक महीना तुम्हारे साथ रही मैं इस घर में. अब भी लंबे सफ़र के बाद तुम्हारे साथ आई हूँ. क्या ये बात नही बता सकते थे मुझे.”

“जान…मेरे लिए उस शादी का कोई मतलब नही था. मैने कभी उस शादी को शादी नही माना. बल्कि मैं तो भूल ही गया था गुड्डे-गुड्डी के उस मज़ाक को.”

“अब क्या होगा मुझे बहुत डर लग रहा है. सिमरन तुम्हारी पत्नी कैसे हो सकती है. तुम पर तो सिर्फ़ मेरा अधिकार है ना आदित्य.” ज़रीना रोते हुवे बोली.

“हां मुझ पर और मेरी आत्मा पर सिर्फ़ तुम्हारा अधिकार है.”

“उसने बहुत सेवा की तुम्हारी. कही तुम्हारा दिल उसके लिए पिघल तो नही जाएगा.” ज़रीना सुबक्ते हुवे बोली.

“पागल हो क्या. तुम्हारे सिवा मेरी जींदगी में कोई नही आ सकता. तुमने सुनी ना सारी बाते. फिर क्यों परेशान हो रही हो.”

“सिमरन से मिलने मत जाना…कही वो तुम्हे मुझसे छीन ले. वादा करो कि नही मिलोगे तुम सिमरन से.”

“पागल मत बनो. उस से मिलना बहुत ज़रूरी है. उसकी क्या ग़लती है. उस से मिल कर अपना पक्ष रखूँगा तभी बात बनेगी वरना तो वो मुझे ग़लत समझेगी”

“क्या वो सुंदर है?” ज़रीना ने आँखो से आँसू पोंछते हुवे कहा.

“मैं मिला ही कहा हूँ उस से. बस शादी के वक्त देखा था. तब बहुत छ्होटी थी वो. रो रही थी मंडप में आते हुवे. जैसे मुझे ज़बरदस्ती लाया गया था मंडप में वैसे ही उसे भी ला रहे थे उसके पेरेंट्स. और सुंदर हुई भी तो क्या फरक पड़ता है, मेरी ज़रीना का मुक़ाबला कोई नही कर सकता.”

“मिल लेना उस से मगर देखना मत उसे बिल्कुल भी, ठीक है, वरना तुम्हारा खून पी जाउन्गि मैं….. मेरे अल्लाह ये सब हमारे साथ ही क्यों हो रहा है.” ज़रीना ने कहा.

ज़रीना सोफे पर बैठ गयी सर पकड़ कर. आदित्य ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला, “क्या हुवा जान तुम परेशान क्यों हो रही हो. मैं हूँ ना तुम्हारे साथ. तुम घबराओ मत सब ठीक है.”

“क्या ठीक है, अब जब तक तुम्हारी पहली शादी का मामला नही निपट जाता हम शादी नही कर सकते.” ज़रीना ने भावुक हो कर कहा.

“क्यों तुम्हे चुंबन की जल्दी पड़ी है क्या?” आदित्य मुश्कुरा कर बोला.

“आदित्य मज़ाक मत करो…क्या ये सब मज़ाक लग रहा है तुम्हे. किस हक़ से रहूंगी मैं अब यहा तुम्हारे साथ बताओ. अब मुझे जाना पड़ेगा ना अपने ही घर से.”

“कैसी बात कर रही हो तुम…क्यों जाना पड़ेगा तुम्हे. शादी के बिना भी ये घर तुम्हारा ही है.”

“ये तुम जानते हो, मैं जानती हूँ पर ये समाज नही जानता. तुम्हे लोग कुछ नही कहेंगे पर मेरे चरित्र की धज्जिया उड़ाई जाएँगी. लोग मुझे ग़लत नज़रो से देखेंगे. अभी तो ये भी नही पता कि धरम के ठेकेदार हमारे रिश्ते को कैसे लेंगे, उपर से ये बॉल-विवाह का लेफ्डा भी आ गया.आदित्य मैं कैसे रह पाउन्गि यहा…नही रह पाउन्गि. तुम खुद सोच कर देखो.”

ज़रीना की बात बिल्कुल सही थी. उसका ऐसा सोचना स्वाभाविक था. समाज के सामने शादी किए बिना उनका साथ रहना ज़रीना के चरित्र को कलंकित ही करेगा. ये बात ज़रीना समझ रही थी मगर आदित्य नही समझ पा रहा था.

“तो तुम मुझे और इस घर को छ्चोड़ कर चली जाओगी. बहुत बढ़िया…क्या इतनी जल्दी हार मान लोगि तुम”

“एक साल तक इंतेज़ार किया मैने तुम्हारा…पूरा एक साल. हार ना कभी मानी है और ना मानूँगी. मगर मैं नही चाहती कि मैं अपने संस्कारों की धज्जियाँ उड़ाउ. मेरे अम्मी-अब्बा की रूह भटकेगी अगर मैने ऐसा किया तो. मेरी परवरिश इस बात की इज़ाज़त नही देती कि मैं यहा बिना शादी किए बिना रहूं. और शादी में तो अब रुकावट आ गयी है. जब तक पहली शादी रफ़ा दफ़ा नही करते तुम तब तक दूसरी शादी कैसे करोगे.”

क्रमशः...............................
 

DAIVIK-RAJ

ANKIT-RAJ
1,442
3,834
144
एक अनोखा बंधन--19

गतान्क से आगे.....................

ज़रीना दिल में बेचैनी सी लिए वाहा से उठ गयी, “क्या किसी ने हमें देख लिया. मेरे अल्लाह हमारे प्यार में अब और कोई रुकावट मत डालना.”

आदित्य ने दरवाजा खोला, “चाचा जी आप.”

“हां बेटा मैं. तुम तो बिना बताए चले आए. क्या बीती है मुझपे और तेरी चाची पर कह नही सकता.”

“आईए चाचा जी… अंदर आईए”

“अंदर तो आ जाउन्गा पहले ये बताओ कि ऐसा क्या हो गया था कि तुम हमें बिना बताए चले आए मुंबई से. ऐसा कोई करता है क्या अपनो के साथ.”

“चाचा जी आप बैठिए तो सही. मेरी कुछ मजबूरी थी, जिसके कारण मुझे तुरंत वाहा से जाना पड़ा…क्या आप मुझे नही जानते. कोई कारण रहा होगा तभी मैं बिना बताए चला आया. आप मुझे कभी नही जाने देते और मेरा जाना बहुत ज़रूरी था.”

ज़रीना सब सुन रही थी दिल थामे.

“बेटा हमारा तो चलो कुछ नही पर सिमरन का क्या.” रघु नाथ पांडे ने कहा.

“सिमरन का क्या… मतलब?” आदित्य ने हैरानी में कहा.

“बेटा डॉक्टर ने कहा था कि ऐसी कोई बात ना कहें तुम्हारे सामने जिस से तुम्हे दुख पहुँचे. इश्लीए सिमरन का जिकर नही किया हमनें. तुम्हे ये शादी बिल्कुल पसंद नही थी. पर है तो वो तुम्हारी पत्नी ना.”

“ये आप क्या कह रहे हैं मुझे कुछ समझ नही आ रहा.” आदित्य बेचैन हो उठा.

ये सब सुन कर ज़रीना की भी हालत खराब हो गयी. उसे अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा था.

“बेटा जब तक तुम कोमा में थे सिमरन मुंबई में ही रही हमारे पास. खूब सेवा की उसने तुम्हारी. हम सब अपने काम में बिज़ी हो जाते थे पर वो हर वक्त तुम्हारे पास बैठी रहती थी. एक तरह से वही तुम्हारी नर्स थी पूरा साल. जिस दिन तुम्हे होश आया उस से दो दिन पहले ही गयी थी वो देल्ही अपने घर. वो वापिस आई तो तुम चले गये. बहुत रोई वो तुम्हारे लिए. देखो बेटा 7 साल हो चुके हैं शादी को. शादी के वक्त 7 साल के बाद गोने की बात हुई थी. अब वक्त आ गया है कि तुम अपनी पत्नी को घर ले आओ. भैया जींदा होते तो वो भी यही कहते जो मैं कह रहा हूँ.”

“चाचा जी…मैने उस शादी को ना तब माना था और ना अब मानूँगा. वो सब दादा जी ने कर दिया था. मम्मी, पापा भी इसके खिलाफ थे. मुझे सिमरन से कोई नाराज़गी नही है पर मैं ये बॉल-विवाह नही निभा सकता.”

“बेटा बेसक भैया भाभी भी राज़ी नही थे इस शादी के लिए पर शादी तो हुई ना और पूरे हिंदू ऋतु रिवाज से हुई. तुम जल्दबाज़ी में कोई फ़ैसला मत लो. ठंडे दिमाग़ से सोच लो. सिमरन बहुत अच्छी लड़की है. जितनी सेवा उसने की है तुम्हारी उतनी कोई नही कर सकता. तुम्हारे बारे में पता चलते ही वो अपनी पढ़ाई-लिखाई सब कुछ छ्चोड़ कर मुंबई आ गयी थी. उसने अपना पत्नी धरम निभाया, तुम नही देख पाए लेकिन हमने देखा है. उसे ठुकराने की भूल मत करना…बहुत प्यारी बच्ची है वो. तुम्हारी जोड़ी अच्छी रहेगी.”

“बस चाचा जी प्लीज़. रहने दीजिए ये सब. मैं इस बाल-विवाह को कभी स्वीकार नही करूँगा.”

“हां बेटा मैं कौन होता हूँ, जिसकी बात तुम मानोगे.”

“नही चाचा जी आपकी हर बात मानूँगा मगर ये नही मान सकता. 7 साल पहले शादी हुई…तब मुझे होश भी नही था. बहुत बुरा लगा था मुझे उस वक्त भी कि ये क्या मज़ाक हो रहा है. पर मेरी किसी ने नही सुनी. मैने इस शादी को कभी स्वीकार नही किया और ना ही करूँगा.”

“तुम्हारे स्वीकार करने या ना करने से क्या होता है. शादी पूरे समाज के सामने हुई थी और पूरे रीति रिवाज से हुई थी. और एक बात सुन लो तुम. सिमरन मुंबई अपने घर वालो से लड़ कर आई थी. किसी को उम्मीद नही थी कि तुम कोमा से निकलोगे. मगर सिमरन ने उम्मीद नही छ्चोड़ी. वो इतना प्यार करती है तुम्हे, पत्नी के सारे फ़र्ज़ निभाए उसने और तुम ऐसी बाते कर रहे हो. जब उसे पता लगेगा ये सब तो वो तो मर ही जाएगी. क्या कमी है उसमे जो कि तुम ऐसी बाते कर रहे हो.”

“बात कमी की नही है. मैं उस से मिलूँगा और समझा दूँगा उसे.”

“बेटा सिमरन के पेरेंट्स ने किसी विश्वास के साथ भेजा था उसे मुंबई. सिमरन की ज़िद्द थी वरना वो उसे कभी ना भेजते, अब तुम ऐसा बर्ताव करोगे तो तूफान आ जाएगा. वो लोग चुप नही बैठेंगे.”

“चाचा जी मुझे किसी से गिला शिकवा नही है. सिमरन से मैं कभी नही मिला. बस शादी के वक्त देखा था उसे. ना ही उसके परिवार वालो से मुलाक़ात हुई बाद में कभी. मैं उनसे माफी माँग लूँगा. रिश्ते ज़बरदस्ती नही जोड़े जाते. दादा जी ने ग़लत किया था ये बाल विवाह करवा कर और मैं इस ग़लती को जींदगी भर नही धो सकता.”

“ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. मेरा फ़र्ज़ तो तुम्हे समझाना था. भैया भाभी जींदा होते तो वो भी यही समझाते.”

“मम्मी पापा को भी मैं यही जवाब देता. अब मैं बड़ा हो गया हूँ. 21 साल उमर है मेरी. बालिग हूँ मैं अब और अपने भले बुरे का फ़ैसला खुद कर सकता हूँ. 7 साल पहले मुझे बहला फुसला कर मंडप पर बैठाया गया था. असहाय था उस वक्त मैं पर आज नही हूँ. आज किसी के आगे नही झूकुंगा. ये मेरी जींदगी है और मैं अपने तरीके से जीने का हक़ रखता हूँ.”

“मैं चलता हूँ बेटा. खुश रहो सदा. फिर भी जाते-जाते यही कहूँगा कि एक बार सोच लेना फिर से. एक मासूम लड़की की जींदगी का सवाल है जिसने पूरा साल बिना किसी स्वार्थ के तुम्हारी सेवा की है.”

“मुझे सिमरन से कोई शिकवा नही है. उसने मेरे लिए इतना कुछ किया उसके लिए आभारी हूँ. पर मैं मजबूर हूँ. मैं उस से मिलकर माफी माँग लूँगा. मुझे उम्मीद है कि वो मेरी बात समझेगी.”

“बेटा क्या तुम्हारी जींदगी में कोई और लड़की है जिसके कारण तुम सिमरन को ठुकरा रहे हो. अगर ऐसा है तो जान लो..उस से बेहतर पत्नी नही मिल सकती तुम्हे. जो त्याग और समर्पण उसने दिखाया है वो हर किसी के बसकि बात नही है. सोचना दुबारा फिर से. फॅक्टरी संभाल लेना जाकर अब तुम. मेरे जो बस में था मैने किया. चलता हूँ अब.”

रघु नाथ पांडे चेहरे पर निराशा के भाव लिए वाहा से निकल गया.

रघु नाथ के जाने के बाद ज़रीना तुरंत भाग कर आई और बोली, “तुम शादी शुदा हो और मुझे बताया तक नही. एक महीना तुम्हारे साथ रही मैं इस घर में. अब भी लंबे सफ़र के बाद तुम्हारे साथ आई हूँ. क्या ये बात नही बता सकते थे मुझे.”

“जान…मेरे लिए उस शादी का कोई मतलब नही था. मैने कभी उस शादी को शादी नही माना. बल्कि मैं तो भूल ही गया था गुड्डे-गुड्डी के उस मज़ाक को.”

“अब क्या होगा मुझे बहुत डर लग रहा है. सिमरन तुम्हारी पत्नी कैसे हो सकती है. तुम पर तो सिर्फ़ मेरा अधिकार है ना आदित्य.” ज़रीना रोते हुवे बोली.

“हां मुझ पर और मेरी आत्मा पर सिर्फ़ तुम्हारा अधिकार है.”

“उसने बहुत सेवा की तुम्हारी. कही तुम्हारा दिल उसके लिए पिघल तो नही जाएगा.” ज़रीना सुबक्ते हुवे बोली.

“पागल हो क्या. तुम्हारे सिवा मेरी जींदगी में कोई नही आ सकता. तुमने सुनी ना सारी बाते. फिर क्यों परेशान हो रही हो.”

“सिमरन से मिलने मत जाना…कही वो तुम्हे मुझसे छीन ले. वादा करो कि नही मिलोगे तुम सिमरन से.”

“पागल मत बनो. उस से मिलना बहुत ज़रूरी है. उसकी क्या ग़लती है. उस से मिल कर अपना पक्ष रखूँगा तभी बात बनेगी वरना तो वो मुझे ग़लत समझेगी”

“क्या वो सुंदर है?” ज़रीना ने आँखो से आँसू पोंछते हुवे कहा.

“मैं मिला ही कहा हूँ उस से. बस शादी के वक्त देखा था. तब बहुत छ्होटी थी वो. रो रही थी मंडप में आते हुवे. जैसे मुझे ज़बरदस्ती लाया गया था मंडप में वैसे ही उसे भी ला रहे थे उसके पेरेंट्स. और सुंदर हुई भी तो क्या फरक पड़ता है, मेरी ज़रीना का मुक़ाबला कोई नही कर सकता.”

“मिल लेना उस से मगर देखना मत उसे बिल्कुल भी, ठीक है, वरना तुम्हारा खून पी जाउन्गि मैं….. मेरे अल्लाह ये सब हमारे साथ ही क्यों हो रहा है.” ज़रीना ने कहा.

ज़रीना सोफे पर बैठ गयी सर पकड़ कर. आदित्य ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला, “क्या हुवा जान तुम परेशान क्यों हो रही हो. मैं हूँ ना तुम्हारे साथ. तुम घबराओ मत सब ठीक है.”

“क्या ठीक है, अब जब तक तुम्हारी पहली शादी का मामला नही निपट जाता हम शादी नही कर सकते.” ज़रीना ने भावुक हो कर कहा.

“क्यों तुम्हे चुंबन की जल्दी पड़ी है क्या?” आदित्य मुश्कुरा कर बोला.

“आदित्य मज़ाक मत करो…क्या ये सब मज़ाक लग रहा है तुम्हे. किस हक़ से रहूंगी मैं अब यहा तुम्हारे साथ बताओ. अब मुझे जाना पड़ेगा ना अपने ही घर से.”

“कैसी बात कर रही हो तुम…क्यों जाना पड़ेगा तुम्हे. शादी के बिना भी ये घर तुम्हारा ही है.”

“ये तुम जानते हो, मैं जानती हूँ पर ये समाज नही जानता. तुम्हे लोग कुछ नही कहेंगे पर मेरे चरित्र की धज्जिया उड़ाई जाएँगी. लोग मुझे ग़लत नज़रो से देखेंगे. अभी तो ये भी नही पता कि धरम के ठेकेदार हमारे रिश्ते को कैसे लेंगे, उपर से ये बॉल-विवाह का लेफ्डा भी आ गया.आदित्य मैं कैसे रह पाउन्गि यहा…नही रह पाउन्गि. तुम खुद सोच कर देखो.”

ज़रीना की बात बिल्कुल सही थी. उसका ऐसा सोचना स्वाभाविक था. समाज के सामने शादी किए बिना उनका साथ रहना ज़रीना के चरित्र को कलंकित ही करेगा. ये बात ज़रीना समझ रही थी मगर आदित्य नही समझ पा रहा था.

“तो तुम मुझे और इस घर को छ्चोड़ कर चली जाओगी. बहुत बढ़िया…क्या इतनी जल्दी हार मान लोगि तुम”

“एक साल तक इंतेज़ार किया मैने तुम्हारा…पूरा एक साल. हार ना कभी मानी है और ना मानूँगी. मगर मैं नही चाहती कि मैं अपने संस्कारों की धज्जियाँ उड़ाउ. मेरे अम्मी-अब्बा की रूह भटकेगी अगर मैने ऐसा किया तो. मेरी परवरिश इस बात की इज़ाज़त नही देती कि मैं यहा बिना शादी किए बिना रहूं. और शादी में तो अब रुकावट आ गयी है. जब तक पहली शादी रफ़ा दफ़ा नही करते तुम तब तक दूसरी शादी कैसे करोगे.”

क्रमशः...............................
 
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एक अनोखा बंधन--20

गतान्क से आगे.....................

“ज़रीना किसी ने तुम्हे देखा नही है यहा आते हुवे. तुम चुपचाप यहा रह सकती हो. क्यों इतना कुछ सोच रही हो.” आदित्य ने कहा.

“आदित्य मैं जाना नही चाहती हूँ यहा से…पर यहा रुकना भी बहुत अजीब लग रहा है.” ज़रीना सुबक्ते हुवे बोली.

आदित्य आगे बढ़ा. वो ज़रीना को गले लगाना चाहता था. मगर ज़रीना पीछे हट गयी और भाग कर अपने कमरे में आ गयी और दरवाजा बंद कर लिया.

आदित्य भाग कर आया उसके पीछे, “जान दरवाजा खोलो यू परेशान होने से कुछ हाँसिल नही होगा. और तुम ये घर छ्चोड़ कर नही जाओगी. अगर गयी तो मैं मर जाउन्गा.”

ज़रीना ने दरवाजा खोला और चिल्ला कर बोली, “चुप करो ऐसी बाते नही करते. मैं नही जा रही हूँ कही. मैं बस अपने क्न्सर्न बता रही थी. तुम एक औरत की मजबूरी नही समझ सकते.”

“समझ रहा हूँ जान मगर तुम ये घर छ्चोड़ कर नही जाओगी. ऐसा करते हैं, तुम यहा टेनेंट बन जाओ. मैं उपर वाला कमरा झूठ मूट में दुनिया को दीखाने के लिए तुम्हे दे देता हूँ. रहोगी तुम यही नीचे हर वक्त. किसी को क्या पता चलेगा. बस बाहर से सीढ़ियाँ डलवा देता हूँ. बाहर की सीढ़ियों से उपर जाना और पीछे की सीढ़ियों से नीचे आ जाना. मैं इस बाल-विवाह के झांजाट को जल्द से जल्द ख़तम करने की कोशिस करूँगा. चाहे कुछ हो जाए तुम रहोगी यही. बस मुझे रेंट देती रहना.”

“हां ये ठीक है. इस से हम साथ भी रहेंगे और दुनिया मुझे ग़लत भी नही समझेगी. पर ये रेंट का क्या चक्कर है.” ज़रीना अपने आँसू पोंछते हुवे बोली.

“रेंट तो भाई तुम्हे देना ही पड़ेगा.”

“हां पर कैसा रेंट.”

“रोज इस ग़रीब को अच्छा-अच्छा खाना बना कर दे देना यही रेंट है.”

“वो तो वैसे भी मैं दूँगी ही. मैं नही बनाउन्गि तो कौन बनाएगा खाना यहा” ज़रीना ने कहा.

“अच्छा जान तुम आराम करो मैं मार्केट से राशन ले आता हूँ. और बाहर से सीढ़ियाँ डलवाने का काम भी कल से शुरू करवा दूँगा. एक दिन में ही हो जाएगा सारा काम. फिर 4-5 दिन उसे मजबूत होने में लगेंगे फिर तुम दुनिया की नज़रो में टेनेंट बन जाना. तब तक छुप कर रहो.”

“ठीक है…क्या कुछ लाओगे”

“तुम लिस्ट बना दो मैं तब तक फ्रेश हो लेता हूँ.”

“ओके…” ज़रीना मुश्कुरा कर बोली.

………………………………………………………

रघु नाथ पांडे निराश-हताश घर पहुँच गया मुंबई. उनकी बीवी उन्हे देखते ही भाग कर आई उनके पास, “क्या हुवा कुछ पता चला की आदित्य कहा है.”

“हां पता चला…” रघु नाथ बोलते-बोलते रुक गया क्योंकि उन्हे सिमरन आती दीखाई दी उसकी ओर.

“चाचा जी क्या हुवा सब ठीक तो है?” सिमरन ने कहा

“हां बेटा सब ठीक है. आदित्य बिल्कुल ठीक है. आएगा तुझसे मिलने वो जल्दी ही.”

“कहा हैं वो?” सिमरन ने पूछा.

“गुजरात में ही है बेटा. कुछ बहुत ज़रूरी काम था उसे जिसके कारण उसे जाना पड़ा बिना बताए.”

ये सुनते ही सिमरन के चेहरे पर मुश्कान बिखर गयी. उसने मन ही मन कहा, “शुक्र है सब ठीक है.”

“चाचा जी पापा उनसे मिलने को बोल रहे थे. उन्हे मैने बताया नही है अभी की वो यहा नही हैं. आपने मना किया था ना अभी बताने से इश्लीए उन्हे कुछ नही बताया, बस यही बताया है कि उन्हे होश आ गया है. अब बतायें कि क्या कहूँ पापा को. वो तो कल ही मुंबई आने को बोल रहे हैं और वो यहा नही हैं.”

“बेटा थोड़ा बैठते हैं पहले. आराम से सोचते हैं कि क्या करना है.”

“ठीक है चाचा जी. आप बैठिए आराम से, मैं चाय लाती हूँ आपके लिए… इलायची वाली.” सिमरन ने कहा और कह कर चली गयी.

“कैसे बताउन्गा इस मासूम को कि जिसके लिए तुम इतना परेशान हो, जिसकी तुमने दिन रात सेवा की वो तुम्हे अपनाना ही नही चाहता. नही बता पाउन्गा इसे कुछ भी. ये काम आदित्य को ही करना होगा.इस फूल सी बच्ची को मैं ये सब अपने मूह से नही बता सकता.” रघु नाथ पांडे ने मन ही मन कहा.

सिमरन किचॅन में चाय बनाती हुई बस आदित्य को ही सोच रही थी, “आपको नींद में ही देखा मैने पूरा साल. रोज आपके चरण छू कर दिन की शुरूवात करती थी. यही दुवा करती थी मैं कि आप इस गहरी नींद से उठ जायें और आपकी गहरी नींद मुझे लग जाए. देखना चाहती थी आपको उठे हुवे. पर आप नींद से जाग कर चले भी गये यहा से और मुझे पता भी नही चला. इस से बुरा नही कर सकते थे भगवान मेरे साथ. काश देल्ही नही जाती तो आपको देख पाती और आपके चर्नो में बैठ कर कहती की मुझे बहुत ख़ुसी हुई आपको जागे हुवे देख कर. पता नही आप मेरे बारे में सोचते हैं कि नही पर मैं आपको बहुत प्यार करती हूँ. बचपन से ही बस आपको ही बैठा रखा है दिल में.”

“अरे सिमरन चाय उबल गयी बेटा कहा खोई हो” चाची ने आवाज़ दी.

सिमरन अपने विचारो से बाहर आई और तुरंत गॅस ऑफ किया, “ओह सॉरी चाची जी, ध्यान भटक गया था.”

“कोई बात नही बेटा होता है कभी-कभी. वैसे क्या सोच रही थी तुम. ज़रूर आदित्य के बारे में ही सोच रही होगी.”

सिमरन का चेहरा शरम से लाल हो गया ये सुन कर. उसने बात को टालते हुवे कहा, “आप चलिए मैं चाय लाती हूँ.”

“इतनी सुंदर और सुशील बहू हमें ढूँढे नही मिलती. अच्छा हुवा जो कि तुम बचपन में ही हमारे आदित्य की बीवी बन गयी.” चाची ने कहा.

“चलिए ना चाची जी मैं चाय ला रही हूँ.” सिमरन शरमाते हुवे बोली.

“हां ले आओ बेटा…” चाची ने कहा और चली गयी

चाची के साथ ही निशा खड़ी थी. वो आदित्य के चाचा, चाची की, इक-लौति संतान थी. चाची के जाने के बाद वो सिमरन के पास आई और बोली, “भाभी बड़ी खुश लग रही हो. खुशी-खुशी में चाय खराब तो नही कर दी.”

“चल भाग यहा से…तुझे कौन सा चाय पीनी होती है. खराब भी हुई तो तुझे क्या फरक पड़ेगा.” सिमरन ने कहा.

“वैसे भैया को ना आप देख पाई उठने के बाद और ना मैं. आप देल्ही चली गयी और मुझे अपने कॉलेज की ट्रिप पे जाना पड़ा.” निशा ने कहा.

“अच्छी बात ये है कि वो ठीक हैं, इन बातों से कोई फरक नही पड़ता है.” सिमरन ने कहा.

“हां ये तो है…भाभी तुमने कितनी सेवा की है भैया की. कोई और इतना नही कर सकता था.”

“बस-बस…चल ये बिस्कट ले कर जा मैं चाय की ट्रे लाती हूँ.” सिमरन ने कहा.

सिमरन चाय लेकर आई ड्रॉयिंग रूम में तो रघु नाथ ने कहा, “बेटा मैं सोच रहा हूँ कि पहले तुम आदित्य से मिल लो. दोनो मिल कर डिसाइड कर लो कि गोना कब करना है. फिर अपने पापा को बुला लेना.”

“नही चाचा जी कैसी बात कर रहे हैं आप. मैं कुछ डिसाइड नही कर सकती. सब कुछ मम्मी,पापा ही डिसाइड करेंगे.” सिमरन ने कहा.

“वो तो ठीक है बेटा. पर वक्त बदल गया है अब. तुम दोनो एक दूसरे से मिल कर सब कुछ तैय करोगे तो अच्छा रहेगा.”

सिमरन कुछ परेशान सी हो गयी ये सुन कर और चाय रख कर चली गयी वाहा से.

“आप भी ना. वो कैसे करेगी बात आदित्य से, वो भी अपने गोने के बारे में. क्या देखा नही आपने कि वो कितना शरमाती है. ज़्यादा बाते करनी आती भी नही उसे. ये बातें तो आपको ही करनी होंगी सिमरन के घर वालो से. ये बच्चे क्या डिसाइड करेंगे.” चाची ने कहा

“तुम्हे नही पता भाग्यवान. आजकल के बच्चे बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. हम जो डिसाइड करेंगे शायद वो इन्हे अच्छा ना लगे.” रघु नाथ ने धीरे से कहा.

“ऐसा क्यों बोल रहे हैं आप.” चाची ने पूछा.

रघु नाथ ने पूरी बात बता दी अपनी बीवी को.

“हे भगवान! ऐसा सोच भी कैसे सकता है आदित्य. ऐसा हुवा तो अनर्थ हो जाएगा. मैं बात करूँगी उस से. दिमाग़ खराब हो गया है उसका जो कि ऐसी बाते कर रहा है.”

“बहुत समझाया मैने उसे मगर उसने मेरी एक नही सुनी” रघु नाथ ने कहा.

“अच्छा तभी आप दोनो को मिलने को बोल रहे थे.”

“हां मैं चाहता हूँ कि जो भी बात करनी है आदित्य खुद करे सिमरन से. मैं अपने मूह से उसे ये सब नही बता सकता.”

“आदित्य को समझावँगी मैं. वो मेरी बात ज़रूर मानेगा. और सिमरन को देखा नही है उसने अब तक. एक बार मिल लेगा तो पता चलेगा उसे कि वो किसे ठुकराने की सोच रहा है.”

“भगवान से यही दुवा है की सिमरन के साथ कोई अनर्थ ना हो. आदित्य का कुछ नही बिगड़ेगा… वो लड़का है, सब कुछ सिमरन का ही बिगड़ेगा.”

“ऐसा कुछ नही होगा आप शांत रहें. आपको सिमरन की बहुत चिंता हो रही है…बिल्कुल अपनी निशा की तरह मानते हैं आप उसे.”

“हां मेरी बेटी ही है सिमरन. देख नही पाउन्गा उसके साथ ये अनर्थ होते हुवे.” रघु नाथ ने कहा.

क्रमशः...............................
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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दोस्तो ये कहानी है इंसानी रिश्तो की जो कि आज भी हमे सिखाती है कि हमे रिश्ते कैसे
निभाने चाहिए दोस्तो रिश्तो मे कभी भी बासी पन नही आना चाहिए

yah ek c&p story hai writer Ka naam mujhe maloom nahi

Pahle Maine yaha raj-viraj-hero-devil-two-in-one part 2 start kiya tha aur ek update bhi post Kiya lekin fir socha part 1 complete hone ke baad usi jagah part 2
start karunga

Sorry for readers problem
Writer ka naam Jatin hai... xp pe bahot achhi stories likhe hai inhone.... so please jatin naam ko add kar lijiye ki story unki hai :approve:
 
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