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Thriller एक सफेदपोश की....मौत!

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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304
प्रिय पाठकों,
मुझे नही पता कि मर्डर मिस्ट्री की कहानियां इस फोरम पर पढ़ी जाती है या नहीं।
कुछ पाठको की प्रतिक्रियाएं देखकर कभी कभी लगता है कि बिना सेक्स के प्रदर्शन के भी कहानी लिखी और पढ़ी जा सकती है।

इस मर्डर मिस्ट्री में आपको सब मिलेगा सेक्स को छोड़कर। यदि कहीं पर आवश्यक हुआ भी तो U/A फिल्मों की तरह।
आप सब का साथ और समर्थन इस कहानी को लिखने और आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करेगा...

आपके सुझावों की प्रतीक्षा में..


सलेमपुर शहर की लाल कोठी लगभग 300 साल पुरानी थी परंतु उसकी चमक आज भी कायम थी। वह ताजमहल जैसी खूबसूरत तो नहीं थी परंतु उसकी खूबसूरती आज भी लोगों को लुभाती थी।

आजादी के पश्चात पुरातत्व विभाग वालों ने इस कोठी का अधिग्रहण करने का भरपूर प्रयास किया था परंतु जोरावर सिंह के पूर्वजों ने अपने प्रभाव और रसूख का इस्तेमाल कर उसे शासकीय संपत्ति होने से बचा लिया था।

आज लाल कोठी के सामने भीड़ भाड़ लगी हुई थी। आज ही विधानसभा के उपचुनाव का परिणाम आया था। जोरावर सिंह सलेमपुर के विधायक चुन लिए गए थे। लाल कोठी के सामने शुभचिंतकों का रेला लगा हुआ था।

लाल कोठी की आलीशान बालकनी में जोरावर सिंह अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी रजनी और पुत्री रिया के साथ शुभचिंतकों के समक्ष आ चुके थे। उन का छोटा भाई राजा और उसकी पत्नी रश्मि भी इस जश्न में उनका साथ दे रहे थे।

जोरावर सिंह को देखते ही

"जोरावर सिंह …..जिंदाबाद"

"जोरावर सिंह...अमर रहे" की आवाज गूंजने लगी सभी के मन में हर्ष व्याप्त था।

जोरावर सिंह ने अपने दोनों हाथ उठाएं और समर्थकों को शांत होने का इशारा किया तथा अपनी बुलंद आवाज में समर्थकों को संबोधित करते हुए बोले

"आज की यह विजय मेरी नहीं आप सब की विजय है। आप सबके सहयोग और विश्वास ने यह जीत दिलाई है। मैं आप सब का तहे दिल से आभारी हूं और अपने परिवार का भी जिन्होंने हर घड़ी मेरा साथ दिया।

जोरावर सिंह ने अपनी पत्नी रजनी और पुत्री रिया को अपने करीब बुला लिया। रजनी तो पूरी तरह जोरावर सिंह से सटकर खड़ी थी परंतु रिया ने जोरावर सिंह से उचित दूरी बना रखी थी। राजा और रश्मि भी उनके करीब आ चुके थे। परंतु राजा के चेहरे पर वह खुशी नहीं थी जो एक छोटे भाई के चेहरे पर होनी चाहिए थी।

लाल कोठी के अंदर एक काली स्कॉर्पियो कार प्रवेश कर रही थी गाड़ी के पोर्च में पहुंचने के बाद टायरों के चीखने की आवाज हुई और आगे बैठे बॉडीगार्ड ने उतर कर पीछे का दरवाजा खोला एक खूबसूरत नौजवान जो लगभग 6 फीट लंबा और बेहद आकर्षक कद काठी का था उतर कर तेज कदमों से लाल कोठी में प्रवेश कर रहा था। कुछ ही देर में वह बालकनी आ गया और जोरावर सिंह के चरण छूये।

"आओ बेटा जयंत मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था" जोरावर सिंह ने अपने पुत्र जयंत को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी पीठ सहलाने लगे।

जयंत की आंखें रिया से टकरायीं। रिया ने अपनी आंखें झुका ली और वह अपने नाखून कुरेदते हुए अपने पैरों की उंगलियों को देखने लगी।

जयंत ने राजा और रश्मि के भी पैर छुए परंतु उसने रजनी के न तो पैर छुए ना उससे कोई बात की।

कोठी के सामने पार्क में समर्थकों के खाने पीने और रास रंग की व्यवस्था की गई थी.

जोरावर सिंह ने सभी समर्थकों को रात्रि 8:00 बजे दावत में शामिल होने का न्योता दिया। प्रशंसक अभी भी जोरावर सिंह... जिंदाबाद जोरावर सिंह...अमर रहे के नारे लगा रहे थे।

जब तक खाने का वक्त हो तब तक मैं आप सभी को पात्रों से परिचय करा दूं।

जोरावर सिंह एक मजबूत कद काठी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी पुरुष थे। उम्र लगभग 45 वर्ष, उनके बाप दादा ने इतनी जमीन छोड़ी थी जिससे उनके आने वाली कई पुश्तें एक आलीशान जिंदगी व्यतीत कर सकती थीं। जोरावर सिंह की लाल कोठी में ऐसो आराम की हर वह व्यस्त मौजूद थी जो जोरावर सिंह जानते थे जब जब वह किसी बड़े शहर जाते हैं वहां देखी हुई हर नयी चीज कुछ दिनों में उनके हवेली की शोभा बढ़ा रही होती।

जयंत एक 20 वर्षीय युवा था जो जोरावर सिंह की पहली पत्नी शशि कला का पुत्र था। जयंत सलेमपुर से कुछ दूर सीतापुर में अपनी मां शशिकला के पुश्तैनी मकान में रहता था। शशि कला अपने माता पिता की अकेली संतान थी और इस समय पैर में लकवा मारने की वजह से व्हील चेयर पर आ चुकी थी। शशि कला के माता-पिता भी एक रहीस खानदान से थे जिन्होंने शशि कला के लिए एक सुंदर और आलीशान घर तथा ढेर सारी जमीन जायदाद और चार राइस मिल छोड़ गए थे।

अभी 2 वर्ष पहले ही शशि कला और जोरावर सिंह के बीच किसी बात को लेकर अनबन हुई थी तब से शशि कला अपने गांव सीतापुर आ गई थी और उसके साथ-साथ जयंत भी आ गया था। जयंत को जोरावर सिंह से कोई गिला शिकवा नहीं था परंतु वह अपनी मां को अकेला न छोड़ सका और उनके साथ रहने सीतापुर आ गया था। जोरावर सिंह से अलग होने के कुछ दिनों बाद ही शशि कला को लकवा मार गया था।

जयंत के बार बार पूछने पर भी शशि कला ने जोरावर सिंह से अलग होने का कारण जयंत को नहीं बताया था।

जोरावर सिंह जी की नई पत्नी रजनी एक बेहद सुंदर महिला थी जो अभी कुछ दिनों में ही 40 वर्ष की होने वाली थी भगवान ने उसमें इतनी सुंदरता को कूट कर भरी थी जितनी शायद खजुराहो की मूर्तियों में भी ना हो। अपने कद काठी को संतुलित रखते हुए रजनी ने अपनी उम्र 5-6 वर्ष और कम कर ली थी. रजनी की पुत्री रिया रजनी के समान ही सुंदर थी भगवान ने रजनी और उसकी पुत्री को एक ही सांचे में डाला था. रजनी गुलाब का खिला हुआ फूल थी और गुलाब की खिलती हुयी कली।

जोरावर सिंह का भाई राजा 40 वर्ष का खूबसूरत कद काठी का व्यक्ति था जो स्वभाव से ही थोड़ा क्रूर था यह क्रूरता उसके कार्य के लिए उपयुक्त भी थी। पुश्तैनी जमीन की देखरेख करना और उससे होने वाली आय को देखना तक ना उसने अपने जिम्मे ले रखा था जोरावर सिंह का ज्यादा ध्यान समाज और राजनीति में रहता था जबकि राजा अपने दादा परदादाओं की जमीन और धन में लगातार इजाफा किए जा रहा था।

राजा और जोरावर सिंह मैं कोई तकरार नथी राजा को सिर्फ इस बात का अफसोस रहता था कि इतनी मेहनत और धन उपार्जन करने के बाद भी जोरावर सिंह का कद राजा की तुलना में ज्यादा था।


रिया जब से अपनी मां रजनी के साथ लाल कोठी में आई थी वह तब से ही दुखी रहती थी उसे यहां की शान शौकत रास ना आती थी वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से सीधा इस आलीशान कोठी में आ गई थी वह हमेशा सहमी हुई रहती।


शेष अगले भाग में।
First of all :congrats: for new story

kaafi sandaar suruwat huyi hai story ki... actually thrill +suspense + murder mystery wali kahaniya zyada pasand hai baaki ke prefix ke kahaniyo ke mukable...

Well kahani mein jorawar singh ka beta Jayant aur jorawar ki sauteli beti riya shayad ek dusre ko pehle se hi jaante hai aur maybe lage ki dono ke bich pyar hai wo bhi pehle se hi....
jorawar ka bhai ko abhi to afsos hai ki kyun itna kuch karne baad bhi jorawar ka hi zyada rutba aur naam hai..
lekin gaur talab baat ye bhi hai ki ye afsos hi kahi jalan aur phir nafrat ka roop na le le....
ek aur sawal ka jawab milna zyada aham ho gaya ki kyun kala aur jorawar alag huye... kyun kala batane se katrati hai apne bete Jayant se ki akhir aisa kya hua tha jiske chalte dono pati patni alag ho gaye..
Kahani kaafi interesting hone wali aage aane wale har mod ke sath...
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills writer sahab :yourock: :yourock:
 

Chutiyadr

Well-Known Member
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प्रिय पाठकों,
मुझे नही पता कि मर्डर मिस्ट्री की कहानियां इस फोरम पर पढ़ी जाती है या नहीं।
कुछ पाठको की प्रतिक्रियाएं देखकर कभी कभी लगता है कि बिना सेक्स के प्रदर्शन के भी कहानी लिखी और पढ़ी जा सकती है।

इस मर्डर मिस्ट्री में आपको सब मिलेगा सेक्स को छोड़कर। यदि कहीं पर आवश्यक हुआ भी तो U/A फिल्मों की तरह।
आप सब का साथ और समर्थन इस कहानी को लिखने और आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करेगा...

आपके सुझावों की प्रतीक्षा में..


सलेमपुर शहर की लाल कोठी लगभग 300 साल पुरानी थी परंतु उसकी चमक आज भी कायम थी। वह ताजमहल जैसी खूबसूरत तो नहीं थी परंतु उसकी खूबसूरती आज भी लोगों को लुभाती थी।

आजादी के पश्चात पुरातत्व विभाग वालों ने इस कोठी का अधिग्रहण करने का भरपूर प्रयास किया था परंतु जोरावर सिंह के पूर्वजों ने अपने प्रभाव और रसूख का इस्तेमाल कर उसे शासकीय संपत्ति होने से बचा लिया था।

आज लाल कोठी के सामने भीड़ भाड़ लगी हुई थी। आज ही विधानसभा के उपचुनाव का परिणाम आया था। जोरावर सिंह सलेमपुर के विधायक चुन लिए गए थे। लाल कोठी के सामने शुभचिंतकों का रेला लगा हुआ था।

लाल कोठी की आलीशान बालकनी में जोरावर सिंह अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी रजनी और पुत्री रिया के साथ शुभचिंतकों के समक्ष आ चुके थे। उन का छोटा भाई राजा और उसकी पत्नी रश्मि भी इस जश्न में उनका साथ दे रहे थे।

जोरावर सिंह को देखते ही

"जोरावर सिंह …..जिंदाबाद"

"जोरावर सिंह...अमर रहे" की आवाज गूंजने लगी सभी के मन में हर्ष व्याप्त था।

जोरावर सिंह ने अपने दोनों हाथ उठाएं और समर्थकों को शांत होने का इशारा किया तथा अपनी बुलंद आवाज में समर्थकों को संबोधित करते हुए बोले

"आज की यह विजय मेरी नहीं आप सब की विजय है। आप सबके सहयोग और विश्वास ने यह जीत दिलाई है। मैं आप सब का तहे दिल से आभारी हूं और अपने परिवार का भी जिन्होंने हर घड़ी मेरा साथ दिया।

जोरावर सिंह ने अपनी पत्नी रजनी और पुत्री रिया को अपने करीब बुला लिया। रजनी तो पूरी तरह जोरावर सिंह से सटकर खड़ी थी परंतु रिया ने जोरावर सिंह से उचित दूरी बना रखी थी। राजा और रश्मि भी उनके करीब आ चुके थे। परंतु राजा के चेहरे पर वह खुशी नहीं थी जो एक छोटे भाई के चेहरे पर होनी चाहिए थी।

लाल कोठी के अंदर एक काली स्कॉर्पियो कार प्रवेश कर रही थी गाड़ी के पोर्च में पहुंचने के बाद टायरों के चीखने की आवाज हुई और आगे बैठे बॉडीगार्ड ने उतर कर पीछे का दरवाजा खोला एक खूबसूरत नौजवान जो लगभग 6 फीट लंबा और बेहद आकर्षक कद काठी का था उतर कर तेज कदमों से लाल कोठी में प्रवेश कर रहा था। कुछ ही देर में वह बालकनी आ गया और जोरावर सिंह के चरण छूये।

"आओ बेटा जयंत मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था" जोरावर सिंह ने अपने पुत्र जयंत को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी पीठ सहलाने लगे।

जयंत की आंखें रिया से टकरायीं। रिया ने अपनी आंखें झुका ली और वह अपने नाखून कुरेदते हुए अपने पैरों की उंगलियों को देखने लगी।

जयंत ने राजा और रश्मि के भी पैर छुए परंतु उसने रजनी के न तो पैर छुए ना उससे कोई बात की।

कोठी के सामने पार्क में समर्थकों के खाने पीने और रास रंग की व्यवस्था की गई थी.

जोरावर सिंह ने सभी समर्थकों को रात्रि 8:00 बजे दावत में शामिल होने का न्योता दिया। प्रशंसक अभी भी जोरावर सिंह... जिंदाबाद जोरावर सिंह...अमर रहे के नारे लगा रहे थे।

जब तक खाने का वक्त हो तब तक मैं आप सभी को पात्रों से परिचय करा दूं।

जोरावर सिंह एक मजबूत कद काठी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी पुरुष थे। उम्र लगभग 45 वर्ष, उनके बाप दादा ने इतनी जमीन छोड़ी थी जिससे उनके आने वाली कई पुश्तें एक आलीशान जिंदगी व्यतीत कर सकती थीं। जोरावर सिंह की लाल कोठी में ऐसो आराम की हर वह व्यस्त मौजूद थी जो जोरावर सिंह जानते थे जब जब वह किसी बड़े शहर जाते हैं वहां देखी हुई हर नयी चीज कुछ दिनों में उनके हवेली की शोभा बढ़ा रही होती।

जयंत एक 20 वर्षीय युवा था जो जोरावर सिंह की पहली पत्नी शशि कला का पुत्र था। जयंत सलेमपुर से कुछ दूर सीतापुर में अपनी मां शशिकला के पुश्तैनी मकान में रहता था। शशि कला अपने माता पिता की अकेली संतान थी और इस समय पैर में लकवा मारने की वजह से व्हील चेयर पर आ चुकी थी। शशि कला के माता-पिता भी एक रहीस खानदान से थे जिन्होंने शशि कला के लिए एक सुंदर और आलीशान घर तथा ढेर सारी जमीन जायदाद और चार राइस मिल छोड़ गए थे।

अभी 2 वर्ष पहले ही शशि कला और जोरावर सिंह के बीच किसी बात को लेकर अनबन हुई थी तब से शशि कला अपने गांव सीतापुर आ गई थी और उसके साथ-साथ जयंत भी आ गया था। जयंत को जोरावर सिंह से कोई गिला शिकवा नहीं था परंतु वह अपनी मां को अकेला न छोड़ सका और उनके साथ रहने सीतापुर आ गया था। जोरावर सिंह से अलग होने के कुछ दिनों बाद ही शशि कला को लकवा मार गया था।

जयंत के बार बार पूछने पर भी शशि कला ने जोरावर सिंह से अलग होने का कारण जयंत को नहीं बताया था।

जोरावर सिंह जी की नई पत्नी रजनी एक बेहद सुंदर महिला थी जो अभी कुछ दिनों में ही 40 वर्ष की होने वाली थी भगवान ने उसमें इतनी सुंदरता को कूट कर भरी थी जितनी शायद खजुराहो की मूर्तियों में भी ना हो। अपने कद काठी को संतुलित रखते हुए रजनी ने अपनी उम्र 5-6 वर्ष और कम कर ली थी. रजनी की पुत्री रिया रजनी के समान ही सुंदर थी भगवान ने रजनी और उसकी पुत्री को एक ही सांचे में डाला था. रजनी गुलाब का खिला हुआ फूल थी और गुलाब की खिलती हुयी कली।

जोरावर सिंह का भाई राजा 40 वर्ष का खूबसूरत कद काठी का व्यक्ति था जो स्वभाव से ही थोड़ा क्रूर था यह क्रूरता उसके कार्य के लिए उपयुक्त भी थी। पुश्तैनी जमीन की देखरेख करना और उससे होने वाली आय को देखना तक ना उसने अपने जिम्मे ले रखा था जोरावर सिंह का ज्यादा ध्यान समाज और राजनीति में रहता था जबकि राजा अपने दादा परदादाओं की जमीन और धन में लगातार इजाफा किए जा रहा था।

राजा और जोरावर सिंह मैं कोई तकरार नथी राजा को सिर्फ इस बात का अफसोस रहता था कि इतनी मेहनत और धन उपार्जन करने के बाद भी जोरावर सिंह का कद राजा की तुलना में ज्यादा था।


रिया जब से अपनी मां रजनी के साथ लाल कोठी में आई थी वह तब से ही दुखी रहती थी उसे यहां की शान शौकत रास ना आती थी वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से सीधा इस आलीशान कोठी में आ गई थी वह हमेशा सहमी हुई रहती।


शेष अगले भाग में।
start to bahut achha lag raha hai..
Yanha murder mistry padhne wale bahut log hai,aap likhte rahiye
 
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Reactions: Napster and Naina

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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लाल कोठी का निर्माण उन्हीं पत्थरों से हुआ था जिन पत्थरों से लाल किला बनाया गया है समय के साथ कोठी के अंदर की खूबसूरती बदलती गई और आज कोठी के अंदर का फर्श इटालियन मार्बल से सुशोभित हो रहा था। कोठी के अंदर सभी कमरे आधुनिक साज-सज्जा से सुशोभित परंतु कमरे के पलंग जो पूरी तरह राजशाही थे वह अब भी घर की खूबसूरती बढ़ा रहे थे।

कोठी यह दोनों मंजिलों पर आठ - आठ कमरे थे ऊपर की मंजिल पर जोरावर सिंह अपनी नई नवेली पत्नी रजनी और उसकी पुत्री रिया के साथ रहते थे इसी मंजिल के दूसरे भाग पर उनका भाई राजा अपनी पत्नी रश्मि तथा दो छोटे बच्चों के साथ रहता था।

लाल कोठी के आगे और पीछे की जमीन को खूबसूरत पार्क की शक्ल दी गई थी आगे का पार्क सामान्यतः जोरावर सिंह और उनके भाई राजा अपने बिजनेस से संबंधित लोगों के साथ उठने बैठने में प्रयोग करते थे तथा वहां पर अक्सर सामाजिक पार्टियां आयोजित हुआ करती थी आज का उत्सव भी उसी पार्क में होना था।

पीछे का पार्क सामान्यतः घर की महिलाओं और बच्चों द्वारा प्रयोग किया जाता था वह आगे के पार्क से ज्यादा खूबसूरत था। यही वह जगह थी रजनी की पुत्री रिया अपना ज्यादातर समय व्यतीत किया करती थी उसे लाल कोठी में रहना कमल रास आता था।

कोठी के निचले हिस्से पर कुछ कमरे घर में लगातार रहने और काम करने वाले नौकरों के लिए सुरक्षित था। इस लाल कोठी में रहने वाले जोरावर सिंह के तीन मुख्य मातहत थे।

पठान मुख्य सुरक्षाकर्मी था और वह जोरावर सिंह का विश्वासपात्र था हम उम्र होने के साथ-साथ वह जोरावर सिंह के वफादार था वह जोरावर सिंह के एक इशारे पर मरने मारने को तैयार रहता था उसने जोरावर सिंह के इशारे पर कई कत्ल किए थे।

रहीम उनका ड्राइवर था जो लगभग 35 वर्ष का हट्टा कट्टा युवक था जरूरत पड़ने पर पठान की तरह अस्त्र-शस्त्र चला लेता था और जोरावर सिंह को सुरक्षा कवच दिया रहता था।

रजिया और उसकी मां घर की मुख्य कुक थीं। रजिया 25 वर्षीय बेहद खूबसूरत युवती थी जो इसी घर में अपनी मां के साथ पली-बढ़ी थी और अब धीरे-धीरे अपनी मां की जगह ले रही थी।

यह एक संयोग ही था की जोरावर सिंह के परिवार के सभी पुरुषों की कद काठी आकर्षक थी और उनके घर की महिलाएं तथा नौकर भी बेहद आकर्षक और खूबसूरत थे सिर्फ वस्त्रों का अंतर हटा दिया जाए तो यह पहचानना मुश्किल होता की कौन जोरावर सिंह के परिवार का व्यक्ति है और कौन उनका मातहत।

रात गहरा रही थी बाहर वाले पार्क में खाने पीने की व्यवस्था की गई थी रास रंग के लिए नर्तकों की विशेष टोली बुलाई गई थी जिनके लिए स्टेज सजा दिया गया था दरअसल जोरावर सिंह को अपनी जीत का पूरा भरोसा था और उन्होंने इस उत्सव की तैयारी पहले से कर रखी थी परंतु वह चुनाव परिणाम आने से पहले इन तैयारियों का प्रदर्शन किसी के सामने नहीं करना चाहते थे आखिर चुनाव परिणाम कभी-कभी अप्रत्याशित भी होते हैं यह बात जोरावरसिंह भली-भांति जानते थे।

आगंतुकों का आना शुरू हो गया था धीरे ही धीरे जोरावर सिंह के पार्क में लगभग 300 व्यक्ति उपस्थित हो चुके थे गेट पर सिक्योरिटी अपना काम मुस्तैदी से कर रही परंतु जीत का अपना नशा होता वह जोरावर सिंह पर भी था और उनके सुरक्षाकर्मियों पर भी आयोजन के लिए कई अपरिचित व्यक्तियों का आना जाना भी लगा हुआ था।

आज इस आयोजन के लिए जोरावर सिंह ने कुछ विशेष सिक्योरिटी गार्ड्स बुलाए थे जिनमें से कुछ तो पुलिस वाले थे और कुछ उनकी रियल स्टेट की सुरक्षा में लगे सिक्योरिटी गार्ड थे।

पार्टी अपने रंग पर आ रही नर्तकीओ की टोली ने समा बांध दिया था। गालों पर लाली और मस्कारा लगाएं हुए अर्धनग्न स्थिति में युवतियां थिरक रही थी तथा चोली में कैद हुए यू उनके वक्ष स्थल कामुक पुरुषों के तन बदन में हलचल पैदा कर थे। शराब ने इस पल को और उत्तेजक बना दिया था। मंच के पीछे एक बेहद सुंदर और कमसिन किशोरी तनाव में बैठी हुई थी वह भी नर्तकी की वेशभूषा में थी परंतु वह स्टेज पर नहीं आ रही थी उसके चेहरे पर तनाव था।

धीरे-धीरे रात के 11:00 बज चुके थे अधिकतर मेहमान वापस जा चुके थे लगभग 20 - 25 ठरकी किस्म के व्यक्ति अभी भी नृत्य का आनंद ले रहे थे। जोरावर सिंह ने भी सबसे विदा ली और अपनी लाल कोठी में प्रवेश कर गए। पार्टी का समापन हो चला था। कुछ देर बाद स्टेज के पीछे बैठी हुई सुंदर किशोरी, लाल कोठी के पीछे वाले भाग्य में पठान के पीछे पीछे पहनी हुई जा रही थी।

रिया अपनी खिड़की पर खड़ी चांद को निहार रही थी उसने इन 17 सालों में कई उतार-चढ़ाव देखे थे वह व्यथित थी उसके मन में अजीब ख्याल आ रहे तभी उसने पठान और उस लड़की को पीछे के दरवाजे से लाल कोठी में अंदर आते हुए देखा उसकी आंखें डर से कांप उठी उसकी सांसे तेज हो गई। वह अपनी कोठरी के मुख्य दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई उसने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ पठान उस लड़की को लेकर जोरावर सिंह के कमरे की तरफ जा रहा था रिया ने अपनी आंखों से वह दृश्य देखा लड़की के चेहरे पर डर कायम था।

रिया का दिल तेजी से धड़क रहा था। उसकी छठी इंद्री किसी अनिष्ट की तरफ इशारा कर रही थी पठान वापस आ रहा था उसके कदमों की टॉप घोड़े की टॉप जैसी लग रही थी।

पठान लाल कोठी के पीछे वाली भाग में पड़ी बेंच पर बैठ गया। हरिया वापस अपनी खिड़की पर आकर पठान को देख रही थी वह उस लड़की के बारे में सोच कर चिंतित हो रही थी।

लगभग 15 मिनट बाद रिया के कानों में जोरावर सिंह की आवाज आई पठान ऊपर आओ।

जी मालिक अभी आया।

हीरा और कालू को भी बुला लो

रिया को जोरावर सिंह दिखाई नहीं पड़ रहे थे परंतु उनमें और पठान के बीच में इशारों में कुछ बातें हो रही थी जो रिया को समझ ना आयीं।

कुछ देर बाद पठान वापस जोरावर सिंह के कमरे की तरफ आया रिया एक बार फिर अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ी होकर पठान को जोरावर के कमरे में जाते हुए देख रही थी।

रिया अपने कमरे में बेचैनी से घूम रही थी वह बेहद डरी हुई थी। तभी उसमें अपनी खिड़की के नीचे कुछ हलचल होती महसूस कि वह भागकर खिड़की पर आई वह किशोर लड़की कालू के कंधे पर थी। कालू 6 फीट 5 इंच का एक मजबूत आदमी था जो देखने में हलवाई की तरह लगता था परंतु उसका रंग उसके नाम से पूरी तरह मेल खाता था। कालू के सफेद कुर्ते पर जगह-जगह रक्त के निशान थे। रिया बेहद घबरा गई उसे लगा जैसे उस लड़की को मार दिया गया था। उसने अपने हाथों से अपने मुंह को दबाकर अपनी चीख रोक ली।उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें आ गई।

कालू उस लड़की को लेकर पार्क में बने चबूतरे की तरफ जा रहा था जिस पर एक बेहद खूबसूरत मूर्ति लगी हुई थी। पठान भी अब नीचे आ चुका था उसके हाथ में एक चादर थी वह हीरा को लेकर कालू के पीछे पीछे चबूतरे की तरफ जा रहा था।

चबूतरे पर पहुंचकर पठान ने अपनी मजबूत भुजाओं से उस मूर्ति को उठा लिया हीरा ने तुरंत ही मूर्ति के नीचे बड़े लाल पत्थर को पूरी ताकत लगाकर हटाया। कालू ने उस लड़की को अपने कंधे से उतारा उसने अपने दोनों पर उस खाली जगह के दोनों तरफ किए और उस लड़की को नीचे करता गया रिया आश्चर्य में डूबी हुई वह दृश्य देख रही लड़की के पैर उस अनजान गड्ढे में जा रहे थे कुछ ही देर में लड़की की कमर उसका सीना और उसका चेहरा उस अनजान गड्ढे में विलुप्त होता चला गया अचानक उसने कालू के हाथों को ऊपर उठते हुए देखा लड़की उस अनजान गुफा में विलुप्त हो चुकी थी हीरा और कालू ने मिलकर उस पत्थर को वापस अपनी जगह पर किया और पठान ने वह खूबसूरत मूर्ति उसी जगह पर लगा दी। देखते ही देखते वह किशोरी गायब हो गई थी। रिया यह दृश्य देखकर बेहद परेशान हो गई। वह डर से कांप रही थी।

कोठी के सामने वाले भाग में अभी भी पटाखों की आवाज सुनाई पड़ रही थी कुछ उत्साही समर्थक इस उत्सव का आनंद अब भी ले रहे थे।

डरी हुई रिया ने अपनी मां रजनी को फोन किया वह थोड़ी ही देर में रिया के कमरे में आ गई उसने अपनी मां रजनी से अब से कुछ देर पहले हुई घटना के बारे में बताना चाहा परंतु रजनी ने कहा...

" बेटा तुम अपने काम से काम रखा करो यह बड़े लोग की हवेली है तुम्हें इन मामलों में अपनी टांग नहीं फसांनी चाहिए"

रजनी ने रिया के चेहरे पर डर देखा था उसने जाते हुए कहा..

" बेटा हिम्मत रखो डरो मत आराम से सो जाओ कोई बात हो तो आकर मुझे जगा लेना मैं कमरे का दरवाजा बंद नहीं करूंगी"

रजनी जोरावर सिंह के एक कमरे की तरफ बढ़ गई। रिया इस अप्रत्याशित घटना के बारे में सोच सोच कर दुखी हो रही थी और अपने बिस्तर पर लेटे हुए इस लाल कोठी में आने के दिन को याद कर रही थी।

रजिया अपनी मां के साथ सोने जा रही आज भी दोनों मां बेटी एक ही बिस्तर पर सोया करते थे रजिया की शादी को लेकर उसकी मां चिंतित थी आखिर कब तक वह यहां जोरावर सिंह के परिवार की सेवा करती रहेगी। रजिया भी अपने आंखों में सुनहरे सपने लिए सोने का प्रयास कर रही थी तभी

ठांय… ठांय……….. आईईईईई …. ठांय…

की आवाज सुनाई दी।

आवाज लाल कोठी के अंदर से ही आए रजिया और उसकी मां उठकर कोठी के ऊपर वाली मंजिल की तरफ भागे। वह दोनों गोली की आवाज की दिशा में लगभग दौड़ते रहे यह आवाज जोरावर

सिंह के कमरे से आई थी जोरावर सिंह के कमरे से पहुंचने के ठीक पहले रिया अपने कमरे से निकलकर बाहर आ गई और लगभग रजिया से टकरा गई।

"माफ कीजिएगा दीदी. मालिक के कमरे से गोली की आवाज आई है"

हां मैंने भी सुना और वह तीनों भागते हुए जोरावर सिंह के कमरे में प्रवेश कर गए।

राजसी पलंग पर पूर्ण नग्न अवस्था में जोरावर सिंह और उनकी पत्नी रजनी बिस्तर पर लेटी हुई थी।

जोरावर सिंह का पैर बिस्तर से बाहर लटका हुआ था। उनके शरीर पर पड़ी चादर जिसने उनके गुप्तांगों को ढक रखा था पूरी तरह खून से लथपथ थी एक गोली उनके कान के पास मारी गई थी जिससे वह हुआ रक्त उनके चेहरे और गले पर लगा हुआ था।

रजनी तो पूरी तरह नंगी थी उसके शरीर पर कोई कपड़ा ना था। रिया तो वह दृश्य देख कर बेहोश हो गई और कटे हुए पेड़ की भांति जमीन पर गिर पड़ी। रजिया ने भागकर चादर खींचकर रजनी के गुप्तांगों को ढकने की कोशिश की।

राजा की पत्नी रश्मि अब तक आ चुकी थी वह रिया के माथे को अपनी गोद में लेकर उसे होश में लाने का प्रयास कर रही थी….

लाल कोठी के गेट पर खड़े पुलिस वाले भी अब तक अंदर आ चुके उनमें से एक ने फोन लगाया..

"सर विधायक जी का मर्डर हो गया है आप जल्दी आइए"


शेष अगले भाग में।
Kya baat hai hai..... second update mein hi thrill suspense aur murder mystery suru... superb....
to apni jeet ki khushi mein jaise kayi bade bade log karte hai.... Sharab pine ke sath sath shabab ke sath bhi enjoy karte hai, chaahe ladki ki manjuri ho ya na ho.. Jorawar bhi unlogo se alag nahi... us ladki ki ijjat luti phir maar bhi diya aur phir apne wafadar naukaro dwara us murti ke niche dafna bhi diya... lekin wo raat sirf ek maut se santust nahi thi, shayad us raat ye kaynaat bhi naraz ho us Jorawar se, uske dwara kiye gaye julm aur paap se....shayad naraz thi Rajni par bhi.. sab kuch dekh ke jaan ke bhi anjan rehne ke liye.. isliye dono ki maut bhi kisi dusman dwara ho gayi usi gahri kali raat mein...
ab sochne wali baat ye hai akhir koun tha ya thi jisne Jorawar ke sath sath uski biwi Rajni ki bhi hatya ki...
....
shayad raaz aur gehrane wale hai kahani mein
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills writer sahab :applause: :applause:
 
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Naina

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कुछ ही देर में जोरावर सिंह का भाई राजा कमरे में आ चुका था उसने शराब पी हुई थी तथा उसके दाहिने गाल पर चोट का निशान था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी मजबूत चीज से टकराने की वजह से वह लाल हो गया था तथा कुछ फूल भी गया था।

अंदर का दृश्य देखकर राजा की आंखें आश्चर्य से फट गई शराब की खुमारी एक पल में काफूर हो गई। उसने अपने गाउन की जेब टटोली पर वह मोबाइल अपने कमरे में ही छोड़ आया था उसने रजिया से कहा

" जा मेरा मोबाइल ले आ"

रजिया भागती हुई राजा के कमरे की तरफ चली गई। इधर राजा जोरावर सिंह को छूकर यह तसल्ली करना चाह रहा था कि अभी उनमें कहीं जान बाकी तो नहीं है परंतु वहां खड़े पुलिस वाले ने उसे रोकने की कोशिश की।

"राजा भैया वहां मत जाइए विधायक साहब अब नहीं रहे"

राजा ने उसकी बात न मानी और वह जोरावर सिंह का हाथ पकड़कर उसकी नब्ज नापने की कोशिश करने लगा तथा जैसे ही उसे नब्ज शांत होने का एहसास हुआ वह एक बार फिर फूट-फूट कर रोने लगा और उनके हाथों को चूमने लगा। वही पुलिस वाला एक बार फिर राजा को पकड़ कर उन्हें जोरावर सिंह से दूर कर रहा था अब तक रजिया फोन लेकर आ चुकी थी।

राजा ने फोन लिया उसकी उंगलियां तेजी से उसके मोबाइल की कांटेक्ट लिस्ट को तलाशने लगीं।.

"भूरेलाल...तुरंत लाल कोठी पर आ जा सारे थानों को फोन कर पूरे शहर की नाकेबंदी करा. वो मादरचोद यहां से भागना नहीं चाहिए अभी वह ज्यादा दूर नहीं गया होगा।"

"राजा भैया हुआ क्या?" भूरे लाल की आवाज

"किसी ने जोरावर भैया का खून कर दिया है"

रिया अब अपनी आंखें खोल चुकी थी रश्मि उसे सांत्वना दे रही थी राजा की गरजती आवाज से वह डर से कांप रही थी। अनिष्ट हो चुका था वह अपनी सांसें रोके सामने चल रहे दृश्य देख रही थी। उसी समय जोरावर सिंह के कमरे में लगी घड़ी में दो बार मधुर आवाज में टन टन की आवाज देकर रात के 2:00 बजने की सूचना दे दी.

उघर लाल कोठी के मुख्य द्वार पर अब सिर्फ एक पुलिस वाला बचा था बाकी के दो पुलिस वाले लाल कोठी के अंदर आ गए थे तभी एक व्यक्ति लाल कोठी के मेन गेट से बाहर जाने का प्रयास कर रहा था। उसने सफेद रंग का कुर्ता पायजामा पहना हुआ था तथा चेहरे पर अंगोछा बंधे हुए था।

जैसे ही वह विकेट गेट ( मुख्य द्वार के अंदर एक छोटा दरवाजा जो सामान्यतः आने जाने के लिए प्रयोग किया जाता है) को खोलकर बाहर आया..

गेट पर खड़े पुलिस वाले ने कहा…

"अभी इस कोठी से बाहर कोई नहीं जा सकता अंदर मर्डर हुआ है साहब को आने दीजिए तब बाहर जाइएगा"

उस व्यक्ति ने पुलिस वाले को धक्का दिया और तेजी से भाग निकला इस अप्रत्याशित हमले से वह पुलिस वाला जमीन पर नीचे गिर पड़ा था जब तक की वह उठकर उसका पीछा करता वह व्यक्ति अंधेरे में विलीन हो गया। पुलिस वाले ने कोठी के अंदर गए अपने साथियों को इस बात की सूचना दी परंतु अब देर हो चुकी थी। कुछ ही देर में पुलिस की कई गाड़ियां सायरन बजाती हुई लाल कोठी के मुख्य द्वार पर आ चुकी। पुलिस की बड़ी वैन में 30 - 40 सिपाही आकर लाल कोठी को घेर चुके थे।

लाल कोठी के सामने वाले पार्क में अब भी 20 - 25 आदमी थे जो सहमे हुए खड़े थे उनमें से कुछ अपना टेंट का सामान समेट रहे थे पुलिस वालों के आते ही वह सावधान मुद्रा में खड़े हो गए।

पुलिस इंस्पेक्टर खान ने गरजती आवाज में कहा

"कोई आदमी कोठी से बाहर नहीं जाएगा तुम सब लोग लाइन लगाकर इधर खड़े हो जाओ जब तक मैं ना कहूं कोई यहां से हिलेगा भी नहीं।"

पठान नीचे ही खड़ा था वह इस्पेक्टर खान को लेकर जोरावर सिंह के कमरे की तरफ जाने लगा रास्ते में इस्पेक्टर खान ने पूछा

"तुम लोगों के रहते किस मादरचोद की हिम्मत हुई?"

"साहब हम लोग तो गेट पर ही थे पिछले 2 घंटे में कोई बाहर का आदमी अंदर नहीं गया"

"तो क्या कातिल पहले से ही घर में घुस कर बैठा था"

पठान जब तक कुछ सोच पाता तब तक जोरावर सिंह का कमरा आ गया था। खान ने कहा

"प्लीज आप लोग सब कमरे से बाहर चाहिए यह क्राइम सीन है यहां पर किसी का रहना उचित नहीं।"

रश्मि रिया को लेकर उसके कमरे में आ गई जो कि जोरावर सिंह के कमरे के ठीक बगल में था। रजिया और उसकी मां भी उनके पीछे पीछे रिया के कमरे में आ गई। कालू और हीरा अभी भी नीचे ही खड़े थे।

खान के साथ आए 5- 6 पुलिस वालों ने कमरे का बारीकी से मुआयना करना शुरू कर दिया.

थोड़ी ही देर में डीएसपी भूरेलाल भी कमरे में आ चुका था उसने आते ही कमान संभाल ली. उसके साथ आए फोटोग्राफर ने घटनास्थल की हर एंगल से तस्वीरें लेना शुरू कर दी. .

जोरावर सिंह को 2 गोलियां मारी गई थीं एक कान के नीचे और दूसरा गुदाद्वार और प्राइवेट पार्ट के बीच में। जोरावर सिंह के दाहिनी भुजा पर खंजर या चाकू की खरोच के निशान थे। कान के पास मारी गई गोली के कारण रक्त स्राव हुआ था जिससे उनका चेहरा रक्त से सन गया था।

वहीं दूसरी तरफ रजनी को गोली ठीक हृदय के ऊपर लगी थी।

जोरावर सिंह की रिवाल्वर राजसी पलंग के साथ लगे साइड टेबल पर रखी हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे उसे जानबूझकर उस जगह पर रखा गया हो तीनों गोलियां उसी रिवाल्वर से चलाई गई थी। बिस्तर पर कई बाल भी मिले थे जिनकी लंबाई अलग अलग थी बिस्तर पर कुछ चमकीले गोल गोल तश्तरी नुमा सितारे थे ऐसा प्रतीत होता था जैसे किसी सस्ते लहंगे को सजाने के लिए उनका प्रयोग किया गया था। इंस्पेक्टर खान ने उस सितारे को उठाकर ध्यान से देखा तथा अपने मन में कहानियां गढ़ने लगा।

अचानक इंस्पेक्टर का ध्यान खिड़की पर गया खिड़की की चौखट पर भी रक्त के निशान थे यह खिड़की बेहद बड़ी थी जिस पर कोई ग्रिल नहीं थी खिड़की के पल्ले बाहर की तरफ खुलते थे खिड़की के कब्जों पर भी रक्त के निशान थे खिड़की की चौखट पर रस्सी के रगड़ के निशान थे।

सुबह के 7:00 बज चुके थे सूर्योदय हो चुका था। सूरज की किरण खिड़की से कमरे में प्रवेश कर रही थी तथा जोरावर सिंह के रक्तरंजित चेहरे को रोशन कर रही थी। लाल कोठी का चमकता सितारा अंधेरे में विलीन हो चुका था।

भूरेलाल और इंस्पेक्टर खान ने मिलकर सारे सबूत इकट्ठा किए और दोनों ही मृत शरीरों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।

अपनी मां रजनी को घर से जाते हुए देख कर रिया फफक कर रो पड़ी उस किशोरी का अब इस घर में कोई नहीं था। उसे जोरावर सिंह से कोई विशेष लगाव नहीं था। वैसे भी जोरावर सिंह ज्यादातर अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे। परंतु उसकी मां रजनी तो आखिर मां थी वह निश्चय ही रिया की उम्मीदों पर खरी ना उतरती परंतु फिर भी इस दुनिया में यदि रिया का कोई सहारा था तो वह उसकी मां रजनी ही थी।

जब तक दोनों लाशों एंबुलेंस में रखा जाता जयंत अपनी स्कॉर्पियो से लाल कोठी में प्रवेश कर चुका था। अपने पिता से लिपट कर रोने लगा उसे शायद जोरावर सिंह के अनैतिक कार्यों की सूचना न थी।

एंबुलेंस अपनी नीली लाइट चमकाती हुई तथा साय…...सांय….. की आवाज आती हुई लाल कोठी से बाहर हो रही थी. घर का मुखिया और उसकी नई नवेली पत्नी इस भौतिक साम्राज्य को छोड़कर स्वर्ग या नरक की यात्रा पर निकल पड़े थे। घर के सदस्य पिछले चार-पांच घंटों से जगह-जगह थक गए थे। और स्वाभाविक रूप से परेशान हो गए थे।

भूरे लाल ने घर के सभी नौकर क्या करूं तथा टेंट हाउस के 20 25 आदमियों को ( जो रात में टेंट हटाने का कार्य कर रहे थे) एक लाइन से खड़ा कर दिया और सभी से पूछताछ शुरू कर दी।

गेट पर खड़े पुलिस वाले ने जिसने एक अनजान व्यक्ति को विकेट गेट से बाहर निकलते और उसे धक्का देकर गिराने के बाद भागते हुए देखा था वह अपना मुंह नहीं खोल रहा था वह शायद अपनी गलती को छुपाना चाहता था। पर घटनाओं की कई आंखें होती है टेंट हाउस के एक आदमी ने वह दृश्य देखा था।

भूरेलाल के पूछते ही वह बोल पड़ा।

"साहब एक आदमी गेट वाले पुलिस भैया को धक्का देकर बाहर भागा था जब तक पुलिस भैया उसे पकड़ पाते वह निकल चुका था।"

भूरेलाल ने उस पुलिस वाले को बुलाया और जोर का चाटा मारा.

" साहब माफ कर दीजिए उसने मुझे अचानक धक्का दे दिया था मैं उसे नहीं पकड़ पाया"

"हुलिया बता उसका"

"साहब लंबाई इसके जैसी रही होगी उसने टेंट हाउस के एक आदमी की तरफ इशारा किया जो उस अनजान व्यक्ति की कद काठी से मिलता-जुलता था। साहब उसका चेहरा गोरा था तथा उसने चेहरे पर गमछा लपेटा हुआ था।"

"क्या पहना था उसने"

"पजामा और कुर्ता सफेद रंग का लग रहा था जैसे कोई छूटभैया नेता हो"

पठान उस पुलिस वाले द्वारा बताए जा रहे हुलिए को ध्यान से सुन रहा था अचानक उसे मनोहर की याद आयी।

मनोहर रजनी का साथी था जो अक्सर रजनी से मिलने आया करता था रजनी उसे मनोहर भैया कहकर पुकारती परंतु वह जोरावर सिंह को नापसंद था परंतु रजनी के कहने पर वह उसे कुछ बोलता नहीं था।

इस उत्सव में भी वह निश्चय ही रजनी के कहने पर ही आया था।

पठान ने उस पुलिस वाले से पूछा क्या उस आदमी की तोंद निकली हुई थी।

"हां निकली थी लगभग इतनी ही" उस पुलिस वाले ने स्वयं अपनी तोंद पर हाथ फिराते हुए बोला..

डीएसपी भूरेलाल और इंस्पेक्टर खान ने कई सारे फोन किए और मनोहर का हुलिया बताते हुए उसे पकड़ने के लिए जाल फैलाना शुरू कर दिया। मनोहर के घर पर दबिश देने की तैयारी होने लगी।

उधर जयंत लाल कोठी में अपने कमरे में बैठा इस घटनाक्रम के बारे में सोच रहा था। आखिर वह कौन व्यक्ति था जिसने यह जघन्य कृत्य किया होगा ? उसके पिता के कई दुश्मन थे परंतु इस तरह आकर कत्ल करना इतना आसान न था? वह अपनी उधेड़बुन में खोया हुआ था तभी कमरे में रिया आ गई उसका चेहरा रोते-रोते सूज गया था. जयंत ने उठकर रिया को अपने आलिंगन में ले लिया वह उसके माथे को चूमते हुए उसकी पीठ सहलाने लगा। जयंत और रिया के बीच यह आलिंगन उनके बीच के सामाजिक रिश्ते (भाई बहन) के आलिंगन से कुछ ज्यादा था।

शेष अगले भाग में…..
jo admi bhaga tha laal kothi se police walo ko dhakka deke wo koun tha.. aur ekdum se itni suraksha ke baad bhi Jorawar ke kamre tak kaise aaya?
aur ye pathan kyun jhuth bol raha ki wo gate ke paas tha...
us ladki ki lash ko Jorawar ke kamre se le jaane ke kuch hi der baad uski biwi us room mein gayi aur thik uske kuch der baad hi ye khoon hua hai aur jis tarah se Jorawar ki hatya ki kisine... kuch to purani dusmani hai usse.. kaatil shayad Jorawar ke julm sehne walo mein se ek ho.... ya phir us laal kothi ka hi koi member...
Khair.... kuch baatein aur Raaz ansuljhi hai... udhar ye baat sach nikli ki jayant aur riya dono ek duje se pyar karte hai...
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मनोहर ने लाल कोठी से निकलते समय पुलिस वाले को धक्का दे दिया था जिसका उसे अब अफसोस हो रहा था। परंतु यह क्रिया उसकी झुंझलाहट की वजह से हुई थी। बीती रात एक तो उस पर शराब की खुमारी छाई हुई थी और रजनी के आश्वासन के बावजूद पैसों का प्रबंध ना हो पाया था था।

वह कोठी से निकलकर वह सीधा बस स्टैंड आकर अपने गांव जाने के लिए बस का इंतजार करने लगा। बस स्टैंड की बेंच पर लेटे-लेटे उसे नींद आ गई। सुबह सुबह पिछवाड़े पर पुलिस का डंडा पढ़ते ही उसकी नींद खुल गई।

इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता 3-4 पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और उसे घसीटते हुए पुलिस जीप के पीछे बैठाया और उसे लेकर थाने की तरफ बढ़ चले।

मनोहर ने उन पुलिस वालों को सब कुछ बताने की कोशिश की परंतु जैसे उन्होंने अपने कान बंद कर रखे थे उन्हें इस बात से कोई सरोकार न था की मनोहर द्वारा बताई जा रही बातों का कोई औचित्य था भी या नहीं वह बेचारे मामूली पुलिस वाले थे।

जिस जीप में मनोहर को पुलिस स्टेशन ले जाया जा रहा था उसके पीछे एक और गाड़ी उनका पीछा कर रही थी जिसमें इंस्पेक्टर खान और पठान बैठे हुए थे। पठान की ही शिनाख्त पर मनोहर को धर दबोचा गया था।

पुलिस स्टेशन में मनोहर के साथ वही व्यवहार हुआ जिस की कल्पना पाठक कर सकते हैं।

हवलदार रतन सिंह नया नया भर्ती हुआ था उसकी बीवी शादी के पश्चात कुछ ही दिनों बाद उसे छोड़ कर भाग गई थी रतन सिंह के दिलों दिमाग पर नफरत छाई हुई थी। वह मनोहर की कोई बात सुनने को तैयार न था और अपने डंडे से लगातार उसके पैरों और जांघों पर प्रहार किए जा रहा था। मनोहर दर्द से तड़प रहा था और साहब साहब चिल्ला रहा था।

अंततः इंस्पेक्टर खान के आने के बाद मनोहर को राहत मिली। मनोहर ने इंस्पेक्टर खान को उस रात की कहानी अपनी जुबान में सुना दी।

साहब मैं और रजनी कई वर्षों से सीतापुर के प्राथमिक स्कूल में एक साथ कार्य किया करते थे। रजनी उस स्कूल में प्राध्यापिका थी और मैं क्लर्क। हम दोनों एक दूसरे के दोस्त थे और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे के काम भी आते थे।

रजनी के लाल कोठी में आने के पश्चात भी कभी-कभी मैं उससे मिलने आ जाया करता था। परंतु जोरावर साहब को हमारा मिलना पसंद ना था। वह रजनी से बार-बार कहा करते अब तुम लाल कोठी की रानी हो तुम्हारा आम आदमियों से मिलना उचित नहीं है।

परंतु रजनी ने मेरी दोस्ती का हमेशा आदर किया था। इसलिए मैं कभी-कभी उससे मिलने लाल कोठी चला जाया करता था। कभी वहां के सिक्योरिटी गार्ड्स को पटाकर और कभी चोरी छुपे इसकी जानकारी रजनी को नहीं थी।

उस दिन मुझे पैसों की सख्त आवश्यकता थी मैंने अपना दर्द रजनी को बताया था उसने मुझे लाल कोठी आकर पैसे ले जाने को कहा था। मुझे पहुंचने में थोड़ा देर हो गई तभी जोरावर साहब के चुनाव का परिणाम आ गया और लाल कोठी उनके समर्थकों से भर गई मैं डर गया और लाल कोठी के पार्क में छुप गया।

रास रंग का माहौल शुरू होते ही मैं भी उस पार्टी का आनंद लेने लगा। पठान को छोड़कर मुझे और कोई सिक्योरिटी गार्ड नहीं जानता था। मैं पठान से दूरी बनाए रखते हुए उत्सव और लजीज खाने का आनंद ले रहा था। वैसे भी सीतापुर जाने वाली आखरी बस निकल चुकी थी मुझे सुबह तक इंतजार करना ही था इसीलिए मैं लाल कोठी में रुका रहा।

रजनी ने मुझे एस एम एस कर रात 01:00 बजे खिड़की के नीचे से पैसों का पैकेट ले जाने के लिए कहा था।

मनोहर ने अपना नोकिया 1100 फोन का मैसेज बॉक्स खोल कर इस्पेक्टर खान को दिखाया जिस पर रजनी का मैसेज था

"OK 1.00 O clock, same place."

मैं खिड़की के पास वाले सिक्योरिटी गार्ड के हटने का इंतजार कर रहा था जिससे मैं खिड़की के नीचे जाकर रजनी द्वारा फेंका गया पैसों का पैकेट उठा लू। तभी गोलियों की आवाज सुनाई दी मैं घबरा गया मुझे लगा उस समय यदि मैंने भागने की कोशिश की तो निश्चय ही पकड़ा जाऊंगा मैं चुपचाप आकर वापस पार्क में छुप गया.

जब मुख्य गेट पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड आप लोगों के साथ-साथ अंदर चले गए और सिर्फ एक पुलिस वाला बच गया तो मैंने हिम्मत जुटाई और विकेट गेट खोल कर बाहर जाने लगा उस पुलिस वाले ने मुझे रोकने की कोशिश की परंतु मैंने उसे धक्का देकर वहां से भाग निकला.

इंस्पेक्टर खान को मनोहर की कहानी पर पूरा यकीन ना हुआ उसने बाहर आकर पठान से मनोहर के बारे में जानना चाहा मनोहर द्वारा बताई गई कई बातें पठान द्वारा बताई गई बातों से मेल खाती थीं।

सुबह के 10:00 बज चुके थे. पुलिस थाने पर मीडिया का जमावड़ा लग चुका था। भूरेलाल भी अब तक थाने पर आ चुके थे मनोहर के पकड़े जाने से वह बेहद प्रसन्न थे उन्होंने इंस्पेक्टर खान से मशवरा किए बिना मीडिया को बयान जारी कर दिया..

देखिए हमने अभी एक संदिग्ध को पकड़ा है जो उस लाल कोठी में बिन बुलाए मेहमान की तरफ पहुंचा था और वारदात के समय वह लाल कोठी में उपस्थित था। उसने चकमा देकर वहां से भागने की कोशिश की परंतु हमारी सक्षम टीम ने उसे बस स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया है अभी पूछताछ जारी है।

मीडिया कर्मियों का शोर लगातार हो रहा था। एक सुंदर सी कटीली पत्रकार ने कर्कश आवाज में पूछा "जोरावर सिंह को मारने का क्या मकसद था?"

भूरेलाल को अभी उस आदमी के बारे में कुछ ज्यादा पता न था। उसने उस लड़की को कोई जवाब न दिया और पीछे मुड़ कर वापस थाने की तरफ आ गया।

मनोहर थाने की एक कोठरी में पड़ा कराह रहा था। उस हवलदार रतन सिंह ने उसकी कुटाई कुछ ज्यादा ही कर दी थी। आज रजनी से उसके संबंधों की वजह से उसे यह दिन देखना पड़ा था। मनोहर पिछले 18 वर्षों से रजनी को जानता था।

मनोहर जिस प्राथमिक स्कूल में क्लर्क का काम करता था रजनी उसी स्कूल के प्रधानाध्यापक शशीकांत की नई नवेली पत्नी थी। शशीकांत एक शांत स्वभाव के 32 वर्षीय युवक थे जो 20 वर्षीय अद्भुत सुंदरी रजनी को ब्याह कर ले आए थे। रजनी की सुंदरता अप्रतिम थी वह जितनी सुंदर थी उतनी ही चंचल थी। उसे जीवन से बड़ी उम्मीदें थीं। वह बंधनों में नहीं बंधना चाहती थी। रजनी के विवाह के उपरांत भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और कुछ ही दिनों में B.Ed की परीक्षा पास कर ली। यह एक संयोग ही था और शशिकांत जी के संबंधों का प्रभाव की रजनी भी उसी स्कूल में प्राध्यापिका बन गई।

मनोहर उस समय रजनी का हम उम्र था वह दोनों एक दोस्त की तरह ढेर सारी बातें करते उन दोनों में दोस्ती बढ़ती गई मनोहर दिन पर दिन उसके करीब आता गया। कजरी की महत्वाकांक्षा सिर्फ पद और प्रतिष्ठा को लेकर नहीं थी वह जीवन में हर सुख का अतिरेक चाहती थी। रजनी की इन्हीं विचारों ने एक दिन उसे और मनोहर को एक ही बिस्तर पर ला दिया रजनी की खूबसूरती को भोगने की मनोहर की हैसियत न थी परंतु उसने रजनी का दास बनकर उसे कामकला के हर सुख दिए जो शशिकांत जैसे सभ्य पुरुष के बस का कतई न था।

रजनी हमेशा से अपना प्रभुत्व बनाए रखती थी पढ़ी-लिखी होने के कारण और प्रधानाध्यापक की पत्नी होने के कारण स्कूल में उसका प्रभाव और दबदबा रहता था। धीरे-धीरे उसका दखल उस गांव की राजनीति में भी होने लगा। अपनी सुंदरता और दमदार व्यक्तित्व की वजह से कुछ ही वर्षों में वह न सिर्फ सीतापुर बल्कि आसपास के कई गांवों में प्रसिद्ध हो गए उसकी सुंदरता उसका सबसे बड़ा हथियार थी।

भूरेलाल और इंस्पेक्टर खान मनोहर के बयान पर चर्चा कर रहे थे तभी एक पुलिस वाला पोस्टमार्टम की रिपोर्ट लेकर कमरे में दाखिल हुआ भूरे लाल ने वह रिपोर्ट अपने हाथ में ले ली और भौचक्का होकर बोला

"अरे जोरावर सिंह को किसी ने चाकू भी मारा था तुमने देखा था क्या?"

" सर, डॉक्टर शर्मा अब ज्यादा दिन नौकरी नहीं कर पाएगा दिनभर टुन्न रहता है जोरावर सिंह को दो दो गोलियां लगी थी उस साले को चाकू कहां दिखाई पड़ गया?"

भूरेलाल ने फिर कहा

"नहीं उसने गर्दन पर दो दो जगह चाकू से खरोच के निशान देखे हैं और तो और वह चाकू जहर से बुझा हुआ था। जोरावर सिंह के शरीर से विश्व के अंश मिले हैं किसी ने उसे जहर लगे हुए चाकू से वार करके मारने की कोशिश की थी और असफल रहने पर उसकी ही बंदूक से उस पर वार कर दिया"

"अरे सर आप क्या बात कर रहे हैं? किसकी इतनी हिम्मत है कि वो चाकू लेकर वह जोरावर सिंह के कमरे में जाए और उस पर वार करें और तो और उस पर असफल रहने के बाद वह जोरावर से उसकी बंदूक मांगकर उसका ही कत्ल कर दे। यह हास्यास्पद व्याख्या है। जोरावर सिंह कोई कमजोर व्यक्ति नहीं था वह चाकू से हमला करने वाले व्यक्ति को आसानी से दबोच लेता और उसे वही खत्म कर देता।"

"इस रिपोर्ट में एक बात और भी लिखी है की जोरावर सिंह के शरीर में पाए जाने वाले विष के कारण शरीर में रक्त का संचार असामान्य रूप से बढ़ जाता है और कुछ मिनटों के बाद वह व्यक्ति अचेत हो जाता है और उचित उपचार न मिलने की दशा में वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है"

"इसका मतलब कि उस जिसके कारण ही जोरावर सिंह ने रजनी के साथ मरने से पहले रंगरेलियां मनाई और फिर गोली खा कर मर गया. पर यह गोली चलाई किसने?"

इंस्पेक्टर खान मैं अपने मातहत को बुलाया और पूछा फॉरेंसिक वाले अपनी रिपोर्ट कब तक देंगे साहब 2 दिन बाद।

उधर हवेली में जोरावर सिंह की पहली पत्नी और जयंत की मां शशि कला भी अपनी व्हीलचेयर में आ चुकी थी। जोरावर सिंह और रजनी का मृत शरीर लेकर उनका भाई राजा और पुत्र जयंत थोड़ी ही देर में लाल कोठी पहुंचने वाले थे।

जोरावर सिंह के समर्थकों का हुजूम लाल कोठी के बाहर इकट्ठा था परंतु कोठी के परिसर में चुनिंदा व्यक्तियों को ही आने दिया गया था।

रिया राजा की पत्नी रश्मि के कमरे में मुरझाई जी बैठी हुई थी। वह पूरी तरह लावारिस हो गई थी। रश्मि और जयंत ही इस धरती पर ऐसे दो व्यक्ति थे जो उस से हमदर्दी रखते थे। लाल कोठी में आने के पश्चात उसके किशोर दोस्तों ने भी उससे मिलना बंद कर दिया था ।

सच पूछिए तो उन्होंने रिया को नहीं छोड़ा था अपितु रिया को मजबूरन उन्हें छोड़ना पड़ा था। सामाजिक कद और हैसियत का यह अंतर इतना बड़ा था जिसे न रिया पाट पाई और न हीं उसके दोस्त।

एंबुलेंस की सायं...सांय … करती आवाज लाल कोठी की खामोशी को चीरते हुए बेहद करीब आ चुकी थी रिया अपनी मां रजनी को देखने के लिए नीचे आने लगी रश्मि भी इसे सहारा देते हुए साथ साथ चल रही थी।

एक प्रभावशाली और दमदार व्यक्तित्व का व्यक्ति जमीन पर पड़ा हुआ था। एक महत्वाकांक्षी युवती निर्वस्त्र सफेद कपड़ों में लिपटी हुई उसके बगल में लेटी हुई अर्श से फर्श तक का सफर उन दोनों महत्वाकांक्षी लोगों ने चंद घंटों में देख लिया था।..

राजा के फोन की घंटी बजी होम मिनिस्टर द्वारिका राय का फोन था…

राजा भैया हमें माफ कीजिएगा इस केस का इंचार्ज अब बीएसपी भूरेलाल नहीं रहेंगे मुख्यमंत्री ने दखल देकर एसीपी राघवन को इस केस का इंचार्ज बना दिया है….

तभी दो पुलिस की गाड़ियां लाल कोठी के अंदर दाखिल जो राजधानी से आई प्रतीत होती एक हैंडसम युवक आंखों पर काला चश्मा लगाए जीप से उतर रहा था वह कोई 30 वर्ष का हीरो जैसे दिखने वाला व्यक्ति था…

उसके साथ आए पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और वह सधे हुए कदमों से दोनों लाशों के पास आ गया।


शेष अगले भाग में
to bhagne wala manohar hi tha.. jiska pehle se hi ek anaitik rishta tha rajni se aur rajni isko dekh story character Kajal yaad aayi hai.... bilkul ushi kirdaar ki tarah lalchi, dhokhebaz aur ambitious thi rajni... jo paise aur power aur rutbe ke liye kuch bhi kar sakti thi... yahan tak ki Jorawar se bhi isike chalte shaadi kar li...
udhar riya... is kirdaar ke liye ek sahanubhuti hai hai aur taras bhi aaye bichari itni kam umar mein anath ho gayi..
............
So is murder case mein tahkikaat raghban karne wala hai....
waise jis tarike se hatya ki hai lage ki kaatil had se zyada nafrat karta tha Jorawar se...
shaq ki sui jayant, raja, pathan pe hi jaye
Ya aisa koi jiska sab kuch chin liya ho Jorawar ne...
Waise yeh manohar chup chupate huye aata tha kothi..
Khair let's see what happens next
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एसीपी राघवन ने परिवार के सदस्यों को लाशों से दूर जाकर खड़े रहने के लिए कहा। राजा अभी भी राघवन के इर्द-गिर्द ही घूम रहा था उसने कहा…

"आपको अलग से बोलना पड़ेगा जाकर वहां खड़े रहिए."

राजा को राघवन का यह अंदाज पसंद नहीं आया उसके चेहरे पर क्रोध स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था वह अपने क्रोध को काबू में नहीं रख पाया और गुर्राते हुए बोला…

"ओए मिस्टर तमीज से बात कीजिए"

राघवन ने संजीदा भाव से अपने मातहत "अधिकारी को कहा इन्हें थाने ले चलो वहीं पर तमीज सीखी और सिखाई जाएगी"

कुछ अधिकारी और पुलिस वाले राजा की तरफ बढ़ने लगे। पठान एसीपी राघवन के सामने नतमस्तक हो गया उसने कहा

"सर माफ कर दीजिए"

वह राजा को लेकर वहां से दूर हट गया.

एसीपी राघवन और राजा की आंखें चार हुई परंतु नजर राजा की ही नीचे हुई हुई एसीपी राघवन एक कड़क अधिकारी की तरह अपनी गरिमा बनाए हुए था।

दोनों लाशों का मुआयना करने के बाद एसीपी राघवन ने तुरंत ही खरोच का वह निशान देख लिया जो जोरावर सिंह जी की गर्दन पर लगा था। उसे स्वयं इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि जब हत्यारे को जोरावर सिंह को गोली मारनी ही थी तो उस छोटे चाकू या खंजर से गर्दन पर वार करने की क्या जरूरत थी।

उसने स्पेक्टर खान से पूछा

"पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है?"

"हां सर आफिस में है"

"ओके"

दोनों लाशों को वापस सफेद चादर से ढक दिया गया. एसीपी राघवन एक बार फिर राजा के पास आया जो अपनी पत्नी रश्मि तथा रजनी की पुत्री रिया के ठीक बगल में खड़ा था। थोड़ी ही दूरी पर व्हीलचेयर में शशि कला और उसका पुत्र जयंत भी था।

उसने जयंत की तरफ देखते हुए पूछा

"आप मृतक के पुत्र हैं ना? उस रात आप कहां थे।"

जयंत को महसूस हुआ जैसे वह उससे पूछताछ कर रहा हो। जयंत वैसे तो एक हंसमुख युवा था परंतु वह जोरावर सिंह का खून था जिसने आज तक झुकना नहीं सीखा था उसने राघवन को पलट कर बढ़ी तल्खी से जवाब दिया..

"अपने घर पर"

"लाल कोठी में?"

"नहीं "

"सीतापुर में"

एसीपी राघवन ने जयंत के चेहरे पर एक अजब किस्म के भाव देख लिए उसे यह पूछताछ अच्छी नहीं लग रही थी। राघवन कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। उसने अपने मातहत अधिकारियों को निर्देश दिए और रश्मि की तरफ मुखातिब होकर बोला

"आप सब ने उस रात जो भी देखा, जो भी सुना उसकी सारी जानकारी इन्हें दे दे। ध्यान रहे आप जो बातें इन्हें बताएंगे उसमें आगे जाकर बदलाव संभव नही होगा। इसलिए आप लोगों को जो भी पता हो सच सच बता दीजिए।

यह बात ध्यान रहे कि यह कत्ल लाल कोठी में हुआ है और मृतक के रिवाल्वर से ही हुआ है। इसमें घर का भी कोई सदस्य शामिल हो सकता है। हां एक बात और, आप में से कोई बिना अनुमति के शहर छोड़कर नहीं जाएगा।

राजा के चेहरे पर भी गुस्सा था परंतु वह एसीपी राघवन से टकराना नहीं चाहता था वैसे भी आज लाल कोठी पर ग्रहण लगा हुआ था।

एसीपी राघवन अपनी टीम के साथ जोरावर सिंह के कमरे में आ गया और घटनास्थल को देखकर घटनाक्रम को समझने का प्रयास करने लगा। उसने कमरे का बारीकी से मुआयना किया और अपने मोबाइल से कई सारे फोटोग्राफ्स भी लिए।

कुछ देर बाद लाल कोठी से सारे पुलिस वाले वापस जा चुके थे सिर्फ गेट पर 4-6 पुलिसवाले तैनात थे जो बाहर से आने वाले और कोठी से बाहर जाने वालों पर नजर गड़ाए हुए थे.

जोरावर सिंह और रजनी के अंतिम संस्कार की तैयारियां होने लगीं।

रिया अपनी मां को एक बार फिर सुहागन के कपड़े में देखकर भावुक हो गई। रजनी सच में बेहद सुंदर थी परंतु आज उसके चमकदार चेहरे से रौनक गायब थी। जो शरीर अब से कुछ घंटों पहले तक एक रानी के शरीर की भांति चमक रहा था वह अब मिट्टी के ढेर की तरह आभाहीन जमीन पर पड़ा था। उस पर किए जा रहे श्रृंगार अब कोई मायने नहीं रखते थे फिर फिर भी सामाजिक विधि विधान से अंतिम संस्कार की तैयारियां हो रही थी।

रजनी ने अपनी मां के पैर छुए और पुष्प अर्पित किये तथा चुपचाप एक कोने में जाकर बैठ गई वह सुबक रही थी। जयंत उसके ठीक बगल में आकर बैठा और उसे सांत्वना देने का प्रयास कर रहा था। इन दोनों ने ही अपने अपने मां-बाप को खोया था यह अलग बात थी कि न तो जयंत को रजनी से कोई सरोकार था न हीं रिया को जोरावर सिंह से।

जोरावर सिंह के पार्थिव शरीर को देखने के लिए शहर से भी भीड़ उमड़ रही थी। पुलिस व्यवस्था एक बार फिर चाक चौबंद हो गई शाम के 4:00 बज चुके थे। पार्थिव शरीर को कंधे पर लिए जयंत, राजा और दो करीबी समर्थक श्मशान घाट के लिए निकल पड़े और उनके पीछे समर्थकों का बड़ा हुजूम चल पड़ा।

लाल कोठी लाली नदी के तट पर बनी थी इस नदी में पानी ज्यादा तो न था परंतु सलेमपुर के निवासियों के लिए वह गंगा नदी से कम न थी लाली नदी का जल न सिर्फ सिंचाई के काम आता अभी वह गरीब तबके के लोगों की प्यास भी बुझाता था।

उसी नदी के तट पर जोरावर सिंह का अंतिम संस्कार होना था। दोपहर में ही एक साफ सुथरी जगह जगह देख कर जोरावर सिंह के अंतिम संस्कार की तैयारी कर दी थी।

समर्थकों के हुजूम और झुके हुए गमगीन चेहरों के बीच चिता सजाई गई और जोरावर सिंह और उनकी पत्नी रजनी पंचतत्व में विलीन हो गए। जयंत के चेहरे पर अपने पिता के जाने का गहरा दुख दिखाई पड़ रहा था।

जोरावर सिंह और रजनी का अंत हो चुका था परंतु वह अपने पीछे कई रहस्य छोड़ गए थे जिन्हें सुलझाने का दायित्व एसीपी राघवन पर था। पठान, कालू और हीरा उस अनजान लड़की और न जाने कितनी हत्याओं में शामिल थे परंतु वह जोरावर सिंह के वफादार थे उन्होंने जोरावर सिंह के लिए न जाने कितनी हत्याएं की थी परंतु कभी उनका मुंह न खुला था और न हीं कभी किसी ने खुलवाने की कोशिश की थी। जोरावर सिंह की छत्रछाया में उन पर हाथ डालने की ताकत न पुलिस में थी न हीं विरोधियों में।

उधर एसीपी राघवन के लिए एसपी ऑफिस में विशेष कक्ष तैयार करा दिया गया था। मूर्ति जो राघवन का खास आदमी था वह जोरावर सिंह का मोबाइल अनलॉक करा कर एसीपी राघवन के कमरे में आ चुका था।

जोरावर सिंह का मोबाइल का मोबाइल खंगाला जाने लगा परंतु रात 10:00 बजे के बाद कोई कॉल नहीं आया हां, व्हाट्सएप और मैसेज पर बधाइयां देने का तांता लगा हुआ था।

जोरावर सिंह के मोबाइल में कुछ भी आपत्तिजनक ना मिला जिससे राघवन कोई सुराग ढूंढ पाता। फिर भी उसने मूर्ति से उन सभी व्यक्तियों के डिटेल निकालने को कहा जिन्होंने आज जोरावर सिंह को कॉल किया था। मूर्ति ने जोरावर का फोन अपने हाथों में ले लिया और रजनी का फोन राघवन के हाथों में दिया।

राघवन रजनी के फोन में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहा था उसने मूर्ति से कहा तुम ही चेक कर लो कुछ इंपॉर्टेंट हो तो बताना मैं जरा उस मनोहर से मिल कर आता हूं।

इधर लाल कोठी में मातम पसरा हुआ था उधर सीतापुर के पास रामपुर गांव में सरयू सिंह के यहां दोपहर में ही शराब का दौर चल रहा था। सरयू सिंह के चेहरे पर एक अजीब किस्म की खामोशी थी परंतु उनके साथी बिना किसी गम के शराब के जाम छलकाए जा रहे थे।

सरयू सिंह भी जमीदार परिवार से थे परंतु उनके पुरखों ने अपनी अय्याशी में अपनी ढेर सारी जमीन बेच दी थी और सरयू सिंह के खाते में अब ज्यादा कुछ नहीं बचा था परंतु फिर भी सलेमपुर जिले में वह दूसरे धनाढ्य व्यक्तियों में गिने जाते थे।

कई वर्षों पहले सरयू सिंह का परिवार जोरावर सिंह के परिवार से कहीं बढ़कर था परंतु समय ने सरयू सिंह का पलड़ा झुका दिया था और जोरावर सिंह सलेमपुर के बादशाह बन चुके थे। सरयू सिंह 50 वर्ष की आयु में आज भी अपना शारीरिक सौष्ठव बनाए हुए थे तथा देखने में एक पहलवान जैसे प्रतीत होते थे थे बड़ी-बड़ी मूछें और चेहरे पर ठाकुरों वाला रौब उन्हें विरासत में मिला था।

"सरयू भैया अब काहे उदास हैं दो-चार महीना में आप ही सलेमपुर के राजा होंगे" सरयू सिंह के साथ बैठे एक आदमी ने कहा।

सरयू सिंह मैं अपना मौन तोड़ा और बोला

"पता करो यह काम किसने किया है जो भी हुआ वह ठीक नहीं हुआ है। कलुआ आज दिन भर से दिखाई नहीं दिया उसको ढूंढ कर बोलो मुझसे मिले"

"वह तो कल शाम को सलेमपुर गया था हमको लगता है तब से ही नहीं लौटा है"

" साला कहीं वही तो नहीं मार दिया है पागल किस्म का आदमी है" साथ बैठे एक और व्यक्ति ने करना

" पगला जैसे से बात मत कर" सरयू सिंह ने उसे डांटा।

सरयू सिंह जोरावर सिंह के प्रतिद्वंद्वी थे उनका कद जोरावर सिंह की तुलना में छोटा था परंतु वह अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो जोरावर सिंह के साम्राज्य पर बराबर उंगलियां उठाते तथा अपना वजूद कायम रखते हुए उनके प्रतिरोध में अपना स्वर मुखर करते।

जोरावर सिंह से दुखी व्यक्ति स्वतः ही उनके साथ आ जाते। जोरावर ने उनके साथ कभी कोई बुरा नहीं किया था परंतु जोरावर के कद की अहमियत सरयू सिंह को पता थी।

सरयू सिंह स्वयं भी अपने से कमजोर लोगों पर अपना खौफ जमाने की कोशिश करते थे और काफी हद तक कामयाब भी होते थे परंतु जोरावर सिंह की बराबरी करना उनके बस में न था। उनका मातहत कलुआ पठान जैसा ही था परंतु वह सरयू सिंह की छाया न था। कभी-कभी वह उनको छोड़कर कुछ दिनों के लिए अपने रास रंग में रम जाया करता था।

राघवन का साथी मूर्ति रजनी का मोबाइल खंगाल रहा था उसकी आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी रजनी का मोबाइल पोर्न फिल्मों से भरा हुआ था। ज्यादातर फिल्म की नायिका कमसिन लड़कियां थी और पुरुष लगभग अधेड़ किस्म का। ऐसा प्रतीत होता था जैसे कुछ विशेष प्रकार की फिल्में ही उसने अपने मोबाइल में संजो कर रखी थीं।

तभी एक सिस्टम फोल्डर के अंदर एक ऐसी वीडियो क्लिप मिली जिसे देखकर मूर्ति खुशी से उछल पड़ा। उस क्लिप में जोरावर सिंह एक एक बेहद कम उम्र की लड़की के साथ संभोग रत थे। लड़की पूरी तरह रजामंद नहीं थी ऐसा लग रहा था जैसे किसी मजबूरी बस उसे जोरावर सिंह के पास आना पड़ा था। उसने तुरंत ही अपने मोबाइल से राघवन को फोन लगाया परंतु राघवन ने उसका फोन नहीं उठाया शायद वह कहीं व्यस्त था.

उस शाम रजनी में भी कई लोगों से फोन पर बात की पर मूर्ति ने एक कदम आगे बढ़ कर उनके भी डिटेल निकालने शुरू कर दीये।

रजनी और मनोहर के बीच s.m.s. पर हुई वार्तालाप भी रजनी के मोबाइल में कैद थी और आखरी मैसेज भी वहीं था जैसा मनोहर ने बताया था.

"Ok 1:00 o clock same place."

एसीपी राघवन मनोहर के पास आ चुका था…

मनोहर एक बार फिर खौफजदा था। उसने अपनी कहानी एक बार फिर राघवन को सुना दी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसे अब यह कहानी रट गई हो।

राघवन ने कहा

"यह बता जोरावर और रजनी की मुलाकात कैसे हुई"

मनोहर अपने मन में उस मुलाकात को याद कर रहा था।


शेष अगले भाग में।
Oh to isiliye raghwan bheje hai is high profile case ko solve karne ke liye taaki karwahi karte waqt ya natize pe pahunchte waqt sahi se insaaf ho aur asli kaatil hi pakda jaaye aur koi raubdaar vyakti isme hastakahep na kar paye..
udhar sarayu singh apne pratidandhi jorawar ki maut se khush nahi hai... lekin kyun... uske raaste ka kaanta to hat gaya hai... uska ek wafadar kalwa bhi gayab hai.. kahi usne jaake to nahi maar diya jorawar ko..
Idhar murti ko bhi kayi raaz ki baatein pata chali rajni ke mobile se....

Khair sawal to ab bhi yahi hai ki kaatil koun hai aur kis maqsad se hatya ki hai
Let's see what happens next
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Naina

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मनोहर ने अपनी आंखें बंद की और उसके होंठ हिलने लगे…..

आज से कोई 10 वर्ष पहले सीतापुर के प्राथमिक विद्यालय में 26 जनवरी का उत्सव मनाया जा रहा था। तहसीलदार साहब इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे परंतु एक दिन पहले ही उनके न आने की सूचना मिली थी। कार्यक्रम की मुख्य आयोजन कर्ता रजनी परेशान हो गई थी।

चपरासी रामू ने सलाह दी मैडम सलेमपुर के जोरावर सिंह अपनी ससुराल आए हुए हैं वह एक प्रतिष्ठित और मानिंद आदमी हैं क्यों ना आप उन्हें ही मुख्य अतिथि के रुप में बुला लें।

स्कूल के बाकी स्टाफ ने भी इस बात का समर्थन किया और रजनी तैयार हो गई। कुछ ही देर बाद मैं और रजनी स्कूल की जीप में बैठकर जोरावर सिंह की ससुराल के लिए निकल पड़े थे।

विद्यालय के प्रिंसिपल और रजनी के पति शशिकांत जी उस दौरान बीमार रहते थे वह कभी स्कूल आते और कभी नहीं। उन्हें कैंसर की बीमारी थी स्कूल का सारा कार्यभार रजनी ही संभालती थी आखिर वह वहां के सभी टीचरों से ज्यादा पढ़ी लिखी थी और शशिकांत जी की पत्नी थी किसी को भी उस के सानिध्य में काम करने में कोई आपत्ति न थी।

शाम 6:00 का वक्त था जोरावर सिंह हवेली के लॉन में टहल रहे थे तथा अपने घोड़े की पीठ सहला रहे थे मैं और रजनी धीरे-धीरे उनके करीब पहुंच गए। साथ आए व्यक्ति ने जोरावर सिंह को हमारा परिचय दिया और हमारे हाथ उनके अभिवादन में स्वतःही जुड़ गए। जोरावर सिंह उस समय लगभग 35 वर्ष की उम्र में एक बेहद खूबसूरत और प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा परंतु रजनी को देखते ही उनकी आंखें उस पर ठहर गई रजनी बेहद सुंदर और आकर्षक लग रही थी आसमानी रंग की साड़ी में उसकी सुंदरता खुल कर बाहर आ रही थी रजनी का गोरा बदन और उसके शरीर के उभार जोरावर सिंह को आकर्षित कर रहे थे रजनी ने हाथ जोड़कर कहा

"हम सीतापुर प्राथमिक विद्यालय से आए हैं कल हमारे स्कूल में गणतंत्र दिवस का उत्सव है यदि आप वहां आकर झंडा फहराएंगे तो हमें और हमारे विद्यार्थियों को प्रेरणा मिलेगी"

जोरावर सिंह मंत्रमुग्ध होकर रजनी को देखे जा रहे थे शायद उन्होंने अपने जीवन में इतनी सुंदर महिला नहीं देखी थी उनकी आंखें रजनी पर टिक गई थी मैंने उनकी तंद्रा थोड़ी और एक बार फिर कहा

"आपके आने से हमारे स्कूल का मान बढ़ेगा"

जोरावर सिंह ने अपने मातहत को आदेश दिया इन्हें बैठाइए और चाय पान का प्रबंध कीजिए मैं 5 मिनट में आता हूं। उन्होंने लान के दूसरी तरफ लगी हुई कुर्सियों की ओर इशारा किया मैं और रजनी उस व्यक्ति के साथ आगे बढ़ गए रजनी अब भी पलट पलट कर उन्हें देख रही थी। उनकी हथेली घोड़े को सहला रही थी परंतु आंखें रजनी पर ही टिकी थीं।

कुछ देर बाद जोरावर सिंह आ गए और उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी चाय के दौरान ढेर सारी बातें की। कुछ ही देर में ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे उन दोनों में दोस्ती हो गई हो।

अगले दिन जोरावर सिंह स्कूल आए और झंडारोहण का कार्यक्रम विधिवत संपन्न किया उनकी गरिमामय उपस्थिति से स्कूल के सभी बच्चे और स्टाफ बेहद प्रसन्न था। उन्होंने स्कूल का मुआयना किया और लड़कियों के टॉयलेट को देखकर बेहद दुखी हो गए उन्होंने स्कूल के लिए ₹100000 का चेक काटा और रजनी की तरफ देख कर बोला बच्चियां देश का भविष्य है उनके लिए समुचित प्रबंध किए जाने चाहिए रजनी ने वह राशि सहर्ष स्वीकार कर ली।

सामान्य औपचारिकताओं के पश्चात जोरावर सिंह स्कूल के प्रिंसिपल और रजनी के प्रति शशिकांत जी से मिलने उनके घर भी गए। उनका उदार व्यक्तित्व सभी को पसंद आ रहा था और रजनी को भी कुछ ही दिनों में रजनी और उनका मिलना जुलना शुरू हो गया।

रजनी का कद और भी बढ़ गया वह जोरावर सिंह के सानिध्य में आकर और प्रभावशाली होती गई। जैसे-जैसे व प्रगति कर दी गई मैं उससे दूर होता गया हमारे बीच फासला बढ़ता गया परंतु मैं उसके प्रति वफादार रहा मैंने हर संभव उसकी मदद की अब रजनी और मेरे बीच अंतरंग संबंध न रहे। मुझे नहीं पता कि उसके और जोरावर सिंह के बीच में ऐसे संबंध बन पाए थे या नहीं परंतु उनमें घनिष्ठता बढ़ती जा रही थी।

जोरावर सिंह की पत्नी शशि कला एक प्रभावशाली और खूबसूरत महिला थी। जोरावर सिंह और उनकी पत्नी सार्वजनिक रूप से आदर्श पति पत्नी की तरह दिखाई पड़ते ।

गांव वाले जोरावर सिंह और रजनी के बीच संबंधों को गलत भाव से नहीं देखते थे। यदि उनके मन में आता भी तो वह अपना यह भाव छुपा ले जाते जोरावर सिंह के खौफ के आगे इस बात को बोलना तो दूर सोचने तक की इजाजत नहीं थी।

यह मुलाकात कई वर्षों तक इसी प्रकार चलती रही इसी बीच रजनी के पति शशिकांत जी का देहांत हो गया।

शशिकांत जी के देहांत के पश्चात रजनी और जोरावर सिंह के बीच नजदीकियां और भी बढ़ती गई ।यही वह दौर था जब जोरावर सिंह और उनकी पत्नी के बीच संबंध धीरे धीरे खराब होते गए गांव वालों को भी इसकी भनक लगनी शुरू हो गई थी परंतु उन्होंने इस बात को अपने मन में ही दबाए रखा परंतु सरयू सिंह और उनके आदमियों ने जोरावर सिंह के चरित्र पर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया।

अंततः जोरावर सिंह की पत्नी शशिकला उनसे अलग रहने लगी और रजनी ने न सिर्फ जोरावर सिंह के दिल में जगह बनाई अपितु वह लाल कोठी में भी उनकी पत्नी के रूप में प्रवेश कर गई अब तक उसकी पुत्री रिया भी बड़ी हो गई थी वह अपनी मां के इस संबंध से खुश नहीं रहती थी परंतु उसे भी मजबूरी बस लाल कोठी जाना पड़ा था।

एसीपी राघवन के पास अभी एकमात्र व्यक्ति मनोहर ही था जिससे वह इस केस से संबंधित कुछ जानकारियां इकट्ठा कर पा रहा था परंतु उसकी बातों से वह कुछ भी निष्कर्ष लगा पाने में असमर्थ था।

तभी एसीपी राघवन का फोन बज उठा।

"सर एक जरूरी बात बतानी थी" मूर्ति की अदब भरी आवाज सुनाई पड़ी…

"हां बोलिये"

मूर्ति ने रजनी के मोबाइल में देखी गई उस वीडियो क्लिप बारे में राघवन को सब कुछ बता दिया राघवन का दिमाग घूम गया उसे इस बात का यकीन ही नहीं हो रहा था कि जोरावर जैसा शानदार और दमदार व्यक्तित्व का धनी आदमी इस तरह की काम पिपासु गतिविधियों में लिप्त होगा।

ठीक है मैं आता हूं.

एसीपी राघवन तेजी से वापस अपने ऑफिस की तरफ बढ़ रहा था उसके मन में कई तरह के विचार आ रहे थे क्या जोरावर सिंह का कत्ल उसके इन्ही कामुक कार्यों की वजह से हुआ था? क्या गले पर लगा खंजर का निशान किसी युवती या लड़की की करतूत हो सकती थी ? परंतु जोरावर सिंह का खून बंदूक की गोली से हुआ था। एसीपी राघवन की उधेड़बुन कायम थी।

उधर नर्तकियों की टोली सलेमपुर गांव से वापस लौट कर अपने गांव भीमापुर आ चुकी थी। 15 लड़कियों मे से एक लड़की कम थी। जिसे लाल कोठी में छोड़ दिया गया था।

नर्तकीयों की टोली का प्रबंधक भूरा एक बेहद खूंखार व्यक्ति था वह बड़े-बड़े लोगों के संपर्क में रहता और उनके निजी आयोजनों में इन नर्तकीओ की सेवाएं प्रदान करता।

आवश्यकता पड़ने पर भूरा जवान लड़कियों को बहला-फुसलाकर उन्हें रसूखदार लोगों की कामुक मांगों को पूरा करने के लिए भी राजी कर लेता और इसके एवज में उन्हें ढेर सारे पैसे देता।

बीती रात खाना खाते समय रेडियो पर जोरावर सिंह की मृत्यु का समाचार उसे प्राप्त हो चुका था वह अपने द्वारा पहुंचाई गई उस लड़की सोनी के बारे में सोच कर चिंतित था कहीं जोरावर सिंह की हत्या में उसका नाम न आ जाए। वह उस कोठी में अकेले जोरावर सिंह को ही जानता था अब उसके पास सोनी का हाल-चाल लेने का कोई स्रोत नहीं बचा था।

भूरा की बेचैनी बढ़ रही थी.। क्या वह वापस सलेमपुर जाकर सोनी और उसकी बहन मोनी को वापस ले आए? परंतु वहां जाकर वह किससे बात करेगा सोनी और मोनी कैसी होंगी? वह उन से कैसे संपर्क कर पाएगा? वह इसी उधेड़बुन में खोया हुआ था।

"मोनी को कब पहुंचा रहे हो"

"सोनी और मोनी दोनों एक साथ ही वापस आएंगे तब तक इंतजार करो. पैसे मिल गए हैं ना ? बार-बार फोन करने की जरूरत नहीं है" भूरा ने कड़कती आवाज में उत्तर दिया

सोनी और मोनी का मामा एक नशेबाज व्यक्ति था जिसने सोनी और मोनी को पाल पोस कर बड़ा तो किया था परंतु अब वह उन्हें इन गलत कार्यों की तरफ उकसा कर उन्हें अपने धनोपार्जन का साधन बना चुका था।

उधर लाल कोठी में रिया अपने कमरे में बेहद उदास बैठी हुई थी और अपने भाग्य को कोस रही थी उसके जीवन में अंधेरा छाया हुआ था बाप का साया पहले ही उसके सर से उठ चुका था और अब उसकी मां भी उसका साथ छोड़ कर जा चुकी वह बिस्तर पर बैठी हुई सुबक रही थी तभी जयंत कमरे में दाखिल हुआ

रिया ने उसकी तरफ देखा और बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई रिया बेहद खूबसूरत किशोरी थी जो युवावस्था की दहलीज पर खड़ी थी। तभी जयंत उसके पास आया और रिया उससे लिपट गई।

जयंत के सीने से अपने गाल सटाए हुए रिया सुबक रही थी और जयंत उसके रेशमी बालों पर अपनी उंगलियां फिर आ रहा था वह बार-बार उसे तसल्ली देता और अपने होठों से उसके माथे पर चुंबन ले रहा था।

तभी कमरे में रश्मि ने प्रवेश किया। हरिया और जयंत एक दूसरे से हड़बड़ा कर अलग हुए। रश्मि को भी यह थोड़ा अटपटा लगा परंतु उसने उसे नजरअंदाज कर कहा

"जयंत आपको आपके चाचा जी बुला रहे हैं"

"जी चाची"

जयंत राजा के कमरे की तरफ बढ़ चला. रश्मि रिया के पास आ चुकी थी और रिया की कोमल हथेलियों को अपनी हथेलियों में लेकर सहला रही थी और उसे इस दुख की घड़ी में सहारा देने की कोशिश कर रही थी।

राजा के कमरे में…

"हां चाचा, आपने मुझे बुलाया"

जयंत अब जो होना था हो गया परंतु हमें अपने परिवार का ध्यान रखते हुए अपने पारिवारिक व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए कुछ करना होगा तुम अपनी पढ़ाई छोड़ कर उनका कार्यभार संभालो मैं यही चाहता हूं।

"नहीं चाचा आप ही संभालिए मैं अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आपका साथ दूंगा"

"पर चाचा, पिताजी का हत्यारा बचना नहीं चाहिए वह किसी भी हाल में पकड़ा जाना चाहिए आप अपनी पूरी ताकत लगा दीजिए जब तक वह हत्यारा पकड़ा नहीं जाता मैं चैन से नहीं रह पाऊंगा"

उधर एसीपी राघवन अपने ऑफिस पहुंच चुका था। मूर्ति जैसे उसका ही इंतजार कर रहा था उसके कमरे में आते ही मूर्ति ने वह मोबाइल क्लिप राघवन को दिखा दी क्लिप के शुरुआती अंश देखकर ही उसे जोरावर सिंह का चरित्र समझने में देर न लगी।

इस वीडियो क्लिप ने राघवन के मन में केस को लेकर एक नई विचारधारा को जन्म दे दिया उसने मूर्ति को कुछ जरूरी दिशा निर्देश दिए और अपने होटल की तरफ चल पड़ा वह आज बेहद थका हुआ महसूस कर रहा था।

अगली दोपहर एसीपी राघवन पुलिस फोर्स लेकर लाल कोठी पहुंच चुका था …

गाड़ियों की सांय सांय की आवाजें लाल कोठी में गूंज रही थी राजा और जयंत लाल कोठी में ही थे। इस गहमा गहमी को महसूस करना दोनों नीचे आ गए और लाल कोठी का मुख्य द्वार खुलते ही उन्हें एसीपी राघवन के दर्शन हो गए..

मूर्ति ने पूरे तैश में कहा…

"हमे लाल कोठी की तलाशी लेनी है…"

"बाप का माल समझा है क्या? चले आए मुंह उठाकर 3 दिन हो गया अभी तक कातिल को तो पकड़ नहीं पाए चले आए तलाशी लेने"

राजा की बातों पर निश्चय ही पिछले दिन एसीपी राजवन द्वारा किए गए व्यवहार का असर था आज वह भी पूरे तैश में था अब से कुछ देर पहले ही जयंत ने उसे जोरावर सिंह के व्यवसाय का उत्तराधिकारी मान लिया था जिसने राजा को एक नई शक्ति दी थी.

एसीपी राघवन राजा के इस आत्मविश्वास से थोड़ा प्रभावित अवश्य हुआ था परंतु उसने अपनी जेब से कागज निकाला और राजा को दिखाते हुए बोला.

"हमारे पास सर्च वारंट है कृपया हमें अपना काम करने दीजिए"

राजा को एहसास हो चुका था एसीपी राघवन को रोक पाना असंभव था कोर्ट का आदेश उसके हाथ में एक ब्रह्मास्त्र की तरह प्रतीत हो रहा था उसने बात को तूल नहीं दिया और दरवाजे पर से हटकर एसीपी राघवन को अंदर आने का रास्ता दीजिए एसीपी राघवन मूर्ति और अपने 8- 10 अधिकारियों के साथ लाल कोठी में प्रवेश कर चुका था चारों तरफ पुलिस के जूतों की टक टक की आवाज आ रही थी रश्मि और रिया दोनों हॉल में आ चुके थे.

जोरावर सिंह के कमरे की तलाशी शुरू हो चुकी थी..


शेष अगले भाग मेँ..
to shayong se mile rajni aur jorawar... waise dono ke sambandh pati patni kam swarth nihit zyada the... idhar rajni ko matlab thi jorawar ke zameen jaydaad paiso se uske rutbe se aur wohi jorawar rajni ko hasil karna chahta hamesha hamesha ke liye apne tharakpan ke chalte...
ye rajni ke phone mein jo video clips thi... lage ki rajni jorawar ko aise video dikhakar uksati ho kam umar ladkiyon ke sath sambhog karne ke liye aur jorawar aur un ladkiyon ke bich huye physical intimacy ko record bhi karti thi.... lekin kyun... kis motive se ye sab kar rahi thi rajni..
udhar jayanta ne apne chacha ko uttadhikari maan liya to idhar raghwan search warrant leke kothi pahunch gaya..
Shayad iske chalte un victims ladkiyon ki lashe mil jaye raghwan & party ko
Let's see what happens next
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Lovely Anand

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to shayong se mile rajni aur jorawar... waise dono ke sambandh pati patni kam swarth nihit zyada the... idhar rajni ko matlab thi jorawar ke zameen jaydaad paiso se uske rutbe se aur wohi jorawar rajni ko hasil karna chahta hamesha hamesha ke liye apne tharakpan ke chalte...
ye rajni ke phone mein jo video clips thi... lage ki rajni jorawar ko aise video dikhakar uksati ho kam umar ladkiyon ke sath sambhog karne ke liye aur jorawar aur un ladkiyon ke bich huye physical intimacy ko record bhi karti thi.... lekin kyun... kis motive se ye sab kar rahi thi rajni..
udhar jayanta ne apne chacha ko uttadhikari maan liya to idhar raghwan search warrant leke kothi pahunch gaya..
Shayad iske chalte un victims ladkiyon ki lashe mil jaye raghwan & party ko
Let's see what happens next
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आपको धन्यवाद इतनी विस्तृत और मन लगाकर लिखी गई प्रतिक्रियाओं को पढ़कर लिखने वाले के मन में लिखने के प्रति उत्साह आता है यूं ही जुड़े रहें और अपने प्रतिक्रियाएं साझा करते रहें।पाठकों की प्रतिक्रियाएं न मिलने की वजह से लेखन कार्य की वरीयता कम हो गई थी।।।

अगला अपडेट शीघ्र आएगा...
 
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Naina

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एसीपी राघवन के निर्देश पर परिवार के सभी सदस्य हॉल में इकट्ठा हो गए थे सिर्फ रजिया और उसकी मां बाहर थे जो कुछ आवश्यक सामग्री लेने हुए पास के ही बाजार गए हुए थे।

घर के बाकी नौकरों तथा अंग रक्षकों को भी लान में एक तरफ इकट्ठा बैठा दिया गया था। पठान कालू और हीरा भी लाल कोठी के लान में बैठे हुए थे। पठान को एसीपी राघवन से कुछ ज्यादा सम्मान की उम्मीद थी परंतु उसमें पठान को भी घर के बाकी मातहतों की श्रेणी में ला दिया था।

वैसे उसने अपने जीवन काल में कई अपराध किए हुए थे और कई पुलिस अफसरों की तफ्तीश का सामना भी किया हुआ था।

देखते ही देखते लगभग 50 पुलिसवाले पूरे लाल कोठी का कोना कोना खंगालने लगे। मूर्ति और राघवन जोरावर के कमरे में थे मूर्ति में गजब का उत्साह दिखाई पड़ रहा था। उसने रजनी के मोबाइल से जो वीडियो क्लिप निकाली थी उसने इस केस की दिशा ही पलट कर रख दी थी।

जोरावर की अलमारियां संभाली गई परंतु उसमें कोई भी आपत्तिजनक सामग्री ना मिली। परंतु रजनी की अलमारी की गहराई दिखने में तो ज्यादा थी परंतु उसके पल्ले खोलने पर उसकी गहराई कुछ कम प्रतीत हो रही थी। रजनी की उस अलमारी में के सारी साड़ियां थी। तभी एसीपी राघवन का ध्यान अलमारी के साइड में गया। अलमारी के दाहिनी तरफ पिछले भाग में लकड़ी की बीट से लगभग 5 फीट ऊंची और 8 इंच चौड़ी एक डिजाइन बनी हुई थी तथा डिजाइन के ऊपर लकड़ी से ही एक सुंदर लड़की का चेहरा बना हुआ था।

जिस कलाकार ने यह आलमारी बनाई थी वह निश्चय ही महान था। उसने सागौन की लकड़ी पर उस लड़की का सुंदर चेहरा गढ़ कर उस अलमारी की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए थे। आंखों की पुतलियां जैसे वो बोल उठने को बेताब थीं। लड़की के होठ गोल मुद्रा में थे जैसे वह फूंक मार रही हो।

एसीपी राघवन की उंगलियां उस दरवाजे को खोलने का मार्ग ढूंढने लगी उसने हर जगह इधर-उधर दबा कर देखा परंतु उसे उस अनजाने दरवाजे को खोलने का कोई मार्ग दिखाई नहीं पड़ रहा था कभी-कभी ऐसीपी राघवन को लगता कि यह उसका भ्रम था वहां कोई दरवाजा नहीं होगा परंतु रजनी के अलमारी की गहराई उसके संशय को बढ़ा रही थी।

एसीपी राघवन ने उस लड़की के चेहरे पर लगी पलकों को छुआ वह हिल रही थीं। नीचे खींचने पर लड़की की आंखें बंद हो रही थी सच कलाकार ने बेहद तन्मयता और लगन से उस लड़की के चेहरे को अंजाम दिया था। पलकों को बंद करने पर अंदर किसी लीवर के हिलने की आवाज आ रही थी एसीपी राघवन को एक पल के लिए लगा जैसे वह बच्चों का कोई खेल खेल रहा था। परंतु उसे उसे उस गुप्त दरवाजे को खोलने का कोई स्रोत नहीं मिल रहा था।

लड़की के चेहरे पर बनी आंखों और होठों के बीच उंगलियां डालकर एसीपी राघवन दरवाजा खोलने की सारी संभावनाओं को तलाशने लगा अंततः उसने उस लड़की की दोनों आंखें बंद की और अपनी तर्जनी उंगली को उसके मुंह में प्रवेश करा दिया उसके हाथ एक गोल सा लीवर लगा जिसे दबाने पर वह दरवाजा खुल गया।

यह आलमारी 4 फुट गहरी और 8 इंच चौड़ी थी जिसमें 4 खाने बने हुए थे। तीन खाने तो 500 की नोटों से भरे हुए थे परंतु चौथे खाने की सामग्री देखकर एसीपी राघवन की आंखें फैल गई...

मूर्ति ने एक-एक करके सारी सामग्री बाहर निकाली. एसीपी राघवन की आंखें उन सब कामुक सामग्रियों को देखकर शर्म से झुक गयीं। कितना चरित्रहीन और काम पिपासु व्यक्ति था जोरावर।

निकाली गई सामग्रियों में कई सारे सेक्स टॉयज और सेक्स के दौरान प्रताड़ना देने वाली चाबुक तथा अन्य कई चीजें थी परंतु जोरावर सिंह के चरित्र हनन के अलावा उन सामग्रियों का उसके कत्ल से कोई सरोकार नहीं दिखाई पड़ रहा था। अब यह बात लगभग स्पष्ट हो रही थी कि जोरावर एक चरित्रहीन और कामपिपासु व्यक्ति था जो निश्चय ही अपनी पत्नी के अलावा अन्य युवतियों से संबंध रखता था और संभव है वह अपने से कम उम्र की लड़कियों को भी जबरदस्ती या रजामंद कर उनके साथ सेक्स करता था।

एसीपी राघवन को यह बात समझ नहीं आ रही थी उसने यह सब कामुक सामग्रियां अपने ही कमरे में क्यों रखी थी क्या वह इसी कमरे में लाकर लड़कियों के साथ अपनी कामवासना शांत करता था क्या परिवार के लोग उसे रोकते नहीं थे या उसके इस कार्य में कोई और भी शामिल था।

नीचे हाल में राजा का पारा गर्म हो रहा था वह काफी देर से सोफे पर बैठा हुआ एसीपी राघवन की नौटंकी देख रहा था मन ही मन उसका खून खोल रहा था परंतु उसने स्वयं को आज के पहले इतना लाचार कभी नहीं महसूस किया था।

तभी मुख्य दरवाजे पर रजिया की मां दिखाई पड़ी जो द्वार पर खड़े पुलिस वाले अंदर आने की प्रार्थना कर रही थी और वह पुलिस वाला उसे रोक रहा था राजा की निगाह उस पर पड़ते हैं उसमें भी दो हाथियों का बल आ गया और वो पुलिस वाले को धक्का मारकर हॉल में प्रवेश कर गई।

रजिया की मां राजा के चरणों में गिर पड़ी और जोर-जोर से रोते हुए बोली मालिक मेरी रजिया को बचा लीजिए।

राजा ने उसे कंधे से पकड़कर उठाया और बड़ी आत्मीयता से पूछा

"क्या हुआ साफ-साफ बताइए"

हम लोग सब्जी बाजार से सब्जी खरीद रहे थे तभी कुछ गुंडे वहां आए और उसे मारुति वैन में बिठा कर ले गए मैंने बहुत कोशिश की परंतु उन्हें रोक नहीं पाई। पूरा शहर नामर्दों से भरा हुआ है वहां कई लोग खड़े थे पर किसी ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की।

हाय मेरी बच्ची….. वह अपनी छाती पीट पीट कर रोने लगी.

राजा का खून खोल गया वह सोफे से उठा और ऊपर मंजिल की तरफ जाने लगा रास्ते में उसे पुलिस वाले ने रोकने की कोशिश की परंतु उसने उसे दाहिने हाथ जोरदार धक्का दिया और खबरदार का इशारा किया पुलिस वाले को भी अपनी औकात पता था उसमें एसीपी राघवन जैसा दम न था ना हो सकता था वह चुपचाप राजा के रास्ते से हट गया राजा तेज कदमों से चलते हुए ऊपर की तरफ गया।

उसे मूर्ति की आवाज सुनाई पड़ी

"जोरावर को उसके किए की सजा मिली होगी सर"

मूर्ति की इस बात ने राजा के क्रोध पर आग में घी का कार्य किया वह मन में क्रोध लिए तेज कदमों से जोरावर सिंह के कमरे की तरफ जाने लगा ठीक उसी समय एसीपी राघवन जोरावर के कमरे से बाहर आ रहा था उसने राजा के क्रोध से तमतमा रहे चेहरे को देखकर थोड़ा सहम गया और बड़े शांति से बोला

"जी कोई दिक्कत हुई है क्या?"

एसीपी राघवन के इस व्यवहार से राजा का क्रोध कुछ हद तक शांत हुआ उसने फिर भी लगभग चीखते हुए कहा..

"आप लोग इधर टाइमपास करने में व्यस्त रहिए उधर रजिया का अपहरण कर लिया गया है। मिस्टर राघवन एक बात ध्यान रखिएगा यदि 24 घंटे के अंदर रजिया नहीं मिली तो यह शहर आप जलता हुआ पाएंगे।"

एसीपी राघवन रजिया के गायब होने से स्वयं हतप्रभ था वह कुछ भी सोच पाने की स्थिति में नहीं था परंतु वह तलाशी अभियान बंद नहीं करना चाहता था उसने अपने फोन से कई लोगों से बातें की और जरूरी दिशानिर्देश दिए।

उसने राजा को भी फोन प्रयोग करने की अनुमति दे दी उसे भी राजा की पहुंच का अंदाजा था और रजिया को ढूंढने में उसका योगदान अहम साबित हो सकता था।

राजा ने पठान और हीरा दोनों को अपने पास बुलाया और जरूरी दिशा निर्देश की एसीपी राघवन यह देख रहा था उसने पठान और पीड़ा को लाल कोठी से बाहर जाने की अनुमति दे दी।

पठान और हीरा खुली जीप में बैठकर सलेमपुर की सड़कों को रौंदकर हुए सब्जी मंडी की तरफ बढ़ चल दोनों के चेहरों पर एक अजब सा वहशपन था। यमराज अपने दूतों को अलर्ट मोड पर आने का निर्देश दे रहे थे सलेमपुर में खून खराबा होने की संभावनाएं बढ़ रही थी।

सब्जी मंडी पहुंचने से ठीक पहले हीरा ने पान ठेले पर गाड़ी रोक दी। पठान हीरा की आदत जानता था। हीरा उतर कर उस्मान वाले से बातें करने लगा और पान वाले के हाथ मशीन की तरह हीरा का पान बनाने में जुट गए।

पठान ने कोई प्रतिक्रिया न दी परंतु देर होने पर वह अपनी व्यग्रता पर काबू न रख पाया और जोर से बोला।

"जल्दी कर।"

हीरा पान को अपने बाएं गाल में दबाकर वापस ड्राइविंग सीट पर आया और बोला

"कल कलुआ बाजार में था"

"वह सरयू सिंह का चमचा"

"हां वही"

"और वह मारुति वैन"

"वह वैन आई थी इसी तरफ से थी परंतु रजिया को लेने के बाद वह लोग दूसरे रास्ते से चले गए वह वैन का नंबर नहीं देख पाया"

पठान सब्जी मंडी की उन दुकानों को जानता था जहां से रजिया और उसकी मां अक्सर सब्जी ले जाया करती थीं। हीरा और पठान ने उन सब्जी वालों से मुलाकात की और उन अनजान व्यक्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त की।

पठान रघु का नाम सुनकर आश्चर्यचकित रह गया रघु राजा का खास आदमी था।

उधर एसीपी राघवन ने पूरे सलेमपुर की नाकाबंदी कर दी थी रजिया को अगवा करने वाले गिरोह का सलेमपुर से बाहर निकलना लगभग नामुमकिन था यह निश्चित था की रजिया को सलेमपुर के अंदर ही कहीं रखा गया था पर कहां और किसने?

पठान और हीरा वापस लाल कोठी आ चुके और भागते हुए राजा के पास पहुंचे….

राजा गुस्से से आगबबूला हो गया

"मादरचोद….. उसकी इतनी हिम्मत"

राजा ने गुस्से से कांपते हाथों से रघु को फोन लगाया...

रघु का फोन स्विच ऑफ था।राजा ने रघु के खास दोस्त को भी फोन लगाया पर उसका भी परिणाम वही था।

राजा के दिमाग में तरह तरह के ख्याल आने लगी कहीं जोरावर भैया की हत्या में रजिया तो शामिल नहीं थी?

कहीं रघु और उसके साथियों ने मिलकर रजिया को इस बात के लिए इस्तेमाल तो नहीं किया?

पर जोरावर भैया की हत्या से रघु का क्या वास्ता?

राजा का दिमाग घूम रहा था परंतु वह किसी निष्कर्ष पर पहुंच पाने की स्थिति में नहीं था वह अपना सर पकड़ कर सोफे पर बैठ गया पठान और हीरा बिना उसके निर्देश का इंतजार किये वापस आ गए उन्हें पता था उनका एकमात्र कार्य उस हरामखोर रघु को ढूंढना था उनकी जीप एक बार फिर लालकोठी को छोड़कर सलेमपुर शहर में प्रवेश कर रही थी। पठान लगातार अपने लोगों को फोन कर रहा था।

उधर एसीपी राघवन के फोन की घंटी बज उठी...

"सर वह मारुति वैन का पता चल चुका है अपहरणकर्ता उसे महात्मा गांधी स्टेडियम के पास छोड़कर कहीं चले गए हैं और उनका सरगना रघु नाम का एक व्यक्ति है जो राजा भैया के बेहद करीब का व्यक्ति है हम लोग उन्हें खोजने में लगे हुए हैं "

एसीपी राघवन का दिमाग एक बार फिर घूम गया था क्या राजा ने ही रजिया का अपहरण कराया था? क्या जोरावर सिंह की हत्या में रजिया शामिल थी? क्या उसने राजा के कहने पर जोरावर सिंह की हत्या की थी? और अब खुद राजा ने उसका अपहरण करा दिया था. या फिर जोरावर ने रजिया को भी अपनी हवस का शिकार बना लिया था और रजिया ने बदला लेने के लिए जोरावर की हत्या कर दी थी।

सवाल कई थे पर जवाब देने वाला कोई नहीं था एसीपी राघवन को ही वह जवाब ढूंढना था …..
Kahani mein kayi sari gatividhiya ho rahi hai unme se kuch kaafi rahasya se ghire huye bhi hai....
Rajiya ki kidnapping case aur jorawar ka khas admi ki gaddari kahani rukh kahi aur le jaa rahi hai...
kya koi julm kiya tha raghu ke upor kisi jamane mein jorawar ne
Ya kisi dusman ke sath mil gaya zyada paise ko lalach mein...
Kidnapping Rajiya ki hi kyun? Kya bas isliye taaki raghwan jyada khoj bin na kar sake kothi par? Case ko Rajiya ke taraf modne ki koshish taaki kothi mein chupi raaz ki baatein samne na aaye?
Bahot sare sawal uth khade huye hai... upor se raghwan ko ye bhi pata chal gaya ki jorawar kis type ka hawasi aadmi tha..
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills writer sahab :applause: :applause:
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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आपको धन्यवाद इतनी विस्तृत और मन लगाकर लिखी गई प्रतिक्रियाओं को पढ़कर लिखने वाले के मन में लिखने के प्रति उत्साह आता है यूं ही जुड़े रहें और अपने प्रतिक्रियाएं साझा करते रहें।पाठकों की प्रतिक्रियाएं न मिलने की वजह से लेखन कार्य की वरीयता कम हो गई थी।।।

अगला अपडेट शीघ्र आएगा...
Thriller + murder mystery wali kahaniyo ki ek alag hi jagah hoti hai thrill lover readers ke liye.... :bow:
yahan har pal situation badle,padhte waqt lage ki abhi ye kirdaar hai culprit par agle hi pal kis aur kirdaar pe shaq hone lage....ek Rahasyamay mahol jo sach mein... yahin se pal pal dilchaspi badhti jaye mann mein kahani ke prati.... jiski jagah dusre prefix ki stories nahi le sakti kabhi bhi... :bow:
 
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