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समय जैसे थम गया, दिल कि धड़कनो ने जैसे धड़कना ही छोड़ दिया , धमनियों में रक्त का प्रवाह जैसे रुक सा गया, पुरे शरीर को काठ मार गया। चरम शून्य की अवस्था। तभी दूर अंधरे में बिजली कौंधी और एक आवाज धीमे धीमे जैसे किसी गहरे कुंए से आ रही हो।
अब आगे............
“मालिक मालिक ये ये लीजिये गर्म पानी, डा॰ अमोल पालेकर थोड़ी देर में बस पहुूँच रहे हैं…”
एक तेज झटके के साथ सेठजी की तन्द्रा टूटी और वो होश में आये तो देखा सामने धनिया खड़ी थी, हाथ में गरम पानी का भगोना लिए ।
किसी ने सच ही कहा है कि खूबसूरत औरत को देखकर अच्छे से अच्छा मर्द भी अपना आपा खो देता है। और अब सेठ जी का हाल भी अब कुछ ऐसा ही था, वो तो बस एकटक केशु के मुखमंडल को देखे ही जा रहे थे।
केशु का हर एक अंग अपने आप में सांचे में ढला हुआ भरापूरा था, उसका कद 5’4” होगा, वो गोरी चिट्टी एक खूबसूरत अप्सरा सी लग रही थी, उसके भारी ठोस उन्नत स्तन सांसों की गति के साथ धीमे धीमे ऊपर नीचे हो रहे थे, पतली बल खाती कमर, ढलवा पेट और उसपर सुशोमभत छोटी सी प्यारी नाभि, गोरे पेट से हल्के नीचे हल्के भूरे रंग के रोयों की हल्की सी लकीर। घुटनों तक पहने घाघरे से झलकती सुन्दर रेशमी टाँगे, चमकती हुई नरम गुदगुदी पिंडलियाँ, और सुंदर पैरों में पड़ी पतली चेन वाली पाजेब ने सेठजी की आत्मा और दिल को झकझोर के रख दिया।
तभी बाहर आसमान में काले बादलो के साथ बड़ी जोर की घड़घड़ाहट के साथ बिजली चमकी और ठन्डे पानी की फुहारों के साथ रिमझिम वर्षा का आगमन हुआ। ये बिजली कही हद तक सेठजी के दिल की गहराइयों में जाकर उतर चुकी थी। सेठजी के माथे से पशीने की कुछ बुँदे ढुलक कर केशु के ढलवा पेट पर जा गिरी, और एक या दो बून्द तो उसकी नाभि में समा गई। हड़बड़ा के उन्होंने जल्दी से गर्म पानी में कपड़ा भिगोकर केशु का माथा और चेहरा साफ किया।
केशु का पेट हल्का सा थरथराया, बंद पलकों ने अपने पंख उठाये, और मंद मंद आँखों से केशु ने अपनी पलकें खोली, दोनों की आँखे चार हुई और एक अनबुझा सा मूक सन्देश दोनों में आदानप्रदान हुआ।
उसने सेठजी की तरफ देखा और हल्के से मुश्कुराई, पर कुछ नहीं कहा।
सेठजी- अब कैसी हो केशु?
केशु ने कहा- ठीक हूँ।
तभी बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आई, कुछ पल पश्चात डा॰ अमोल पालेकर ने घर के भीतर प्रवेश किया, सेठजी ने जल्दी से डा॰ साहेब से हाथ मिलाया और केशु की जांच पड़ताल के लिए कहा।
डा॰ साहेब ने जल्दी से केशु की प्रारम्भिक जांच की और उसकी अंगुली की मरहम पट्टी की, अपना बेग खोल के स्टेथेस्कोप निकाला और केशु के वक्षस्थल पर रखकर हृदय की गति, एवम् नब्ज इत्यादि की जांच की। अधिक खून बह जाने की वजह से आई कमजोरी के फलस्वरूप हल्का सा बुखार भी आ गया था, कफर भी उन्होंने केशु का ब्लूडप्रेशर चेक किया तो पता लगा की कमजोरी के कारन वो भी न्यूनतम था।
आवश्यक दवाई और इंजेक्शन देने के बाद उन्होंने प्यार से केशु से पूछा - “बिटिया ये उंगली कैसे काट ली?”
केशु मासुमता से बोलै - “जी उसने दो बार गोली चलने की आवाज सुनी तो डर के मारे मेरी उंगली कट गई सब्जी की जगह…”
डा॰ अमोल ने हैरत से सेठ अजयानंद की तरफ देखा।
इतना मासूम जवाब सुनकर सेठजी ठठाकर जोर से हंसने लगे और हँसते हँसते उनकी आँखों से पानी आ गया।
डा॰ अमोल- सेठजी आप हँस क्यों रहे है?
सेठजी- “कुछ नहीं अमोल साहेब- आप आइये मैं समझाता हूँ आपको, दरअसल केशु अभी मासूम है, हमारी गलती थी हमने क्रोध में बंदूक चला दी थी। वो दो गोलियाँ दर-असल दो पापी दुष्टो के लिए हमारी बंदूक से निकली थी, जो जल्द ही हमारा सन्देश उन तक पहुँचा भी देगी…”
सेठजी और डा॰ अमोल- हा हा हा हा हा।
सेठजी- धनिया जाओ एक गिलास गरम हल्दी वाला दूध केशु को पीला दो, और उसे आराम करवाओ।
धनिया - जी मामलक।
डा॰ अमोल- “अच्छा सेठजी आज्ञा दीजिये चलता हूँ …” फिर ठिठकर धीरे से सेठजी के कान में बोले- “ऐसे ही किसी हादसे से केशु की याददाश्त वापस आ सकती है…”
ये सुनकर सेठजी पहले तो खुश हुए फिर अचानक पता नहीं क्यों उन्हें पहली बार अच्छा सा नहीं लगा। लेकिन उन्होंने अपने आपको संभाल लिया ।
हवेली से लौटते समय डा॰ अमोल के दिल और में दिमाग में वासना की तेज लहरे हिलोरे मार रही थी। इतनी ठंडी वर्षा में भी बदन जल सा रहा था। 55 वर्षीय डा॰ अमोल आज कई वर्षों बाद एक नारी शरीर की कमी महसूस कर रहे थे, उनका पुरुषांग आज कई साल बाद विद्रोह पे उतर आया था। वो दृशय जब केशु के उन्नत परवत शिखर समान उरोज मन्द मंद सांसों की गति से ऊपर-नीचे हो रहे थे और वो स्टेथेस्कोप से जांच पड़ताल कर रहे थे। उँगलियों के पोरों में अभी भी उन नर्म स्तनों की अग्नि महसूस हो रही थी।
डा॰ अमोल ने अपने विचारो को झटकने की बेहद कोशिश की। पर उनका मन उन्हें अतीत की ओर ले चला, जब वो 24 वर्षीय थे और मेडिकल कालेज में अपनी रंगीनियो के लिए बेहद मशहूर थे। उनके मित्र उन्हें सेक्स गुरू कहते थे।
वैसे डा॰ साहब दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी थे। एकतरफ पूर्ण धार्मिक एवं सात्वीक, रोज मंदिर जाना, पूजा अर्चना करना, ललाट पे चमकता त्रिपुण्ड
दूसरी तरफ नारी शरीर विज्ञानं में पूर्ण में पारंगत थे। एक नवयौवना को सम्पूर्ण रूप से कैसे संतुष्ट करते हैं, इसका अच्छा ज्ञान था उन्हें। कामक्रीड़ा में बहुत निपुण थे अक्सर कालेज की युवनतयों के साथ प्रेम प्रसंग में व्यस्त रहते थे। कई युवतिया उनसे अपने कामुक शरीर की प्यास बुझाने के लिए लालायित रहती थी।
“योनि उत्पीड़न एवं गुदा मैथुन” में पारंगत थे डा॰ साहब। इस सम्बन्ध में तो उन्होंने कई लेख भी प्रकाशित किये थे जिन्हे सब विधार्थी बड़े ही चाव से पढ़ते थे और अपनाते थे।
पर डा॰ बनने के बाद वो पूर्ण रूप से लोगों की सेवा में व्यस्त हो गए और विवाह भी नहीं किया। सुबह शाम बस मरीजों की सेवा में। लेकिन आज विधि ने एक बार फिर उनके सोये हुए शेर को जगा दिया था। दूर शून्य में सोचते हुए वो क्लिनिक में वापिस आ गए।
क्लिनिक में पहुूँचकर डा॰ अमोल कटे पेड़ की तरह अपनी कुसी पे गिर पड़े, उनके शरीर ने उनके दिलो दिमाग का साथ छोड़ दिया था, वासना के ताप में उनका समस्त शरीर धूं -धूं करके जल रहा था, वो भूल गए थे की 55 वर्ष की इस प्रौढ़ अवस्था में ये सब उन्होंने शोभा नहीं देगा, लेकिन वो अपने दिल के हाथों मज़बूर हो गए थे, उनके मष्तिष्क में केशु के शरीर को लेकर शैतानी विचार आने लगे थे। और वो आगे की योजना बनाने लगे।
क्रमश: ............
अब आगे............
“मालिक मालिक ये ये लीजिये गर्म पानी, डा॰ अमोल पालेकर थोड़ी देर में बस पहुूँच रहे हैं…”
एक तेज झटके के साथ सेठजी की तन्द्रा टूटी और वो होश में आये तो देखा सामने धनिया खड़ी थी, हाथ में गरम पानी का भगोना लिए ।
किसी ने सच ही कहा है कि खूबसूरत औरत को देखकर अच्छे से अच्छा मर्द भी अपना आपा खो देता है। और अब सेठ जी का हाल भी अब कुछ ऐसा ही था, वो तो बस एकटक केशु के मुखमंडल को देखे ही जा रहे थे।
केशु का हर एक अंग अपने आप में सांचे में ढला हुआ भरापूरा था, उसका कद 5’4” होगा, वो गोरी चिट्टी एक खूबसूरत अप्सरा सी लग रही थी, उसके भारी ठोस उन्नत स्तन सांसों की गति के साथ धीमे धीमे ऊपर नीचे हो रहे थे, पतली बल खाती कमर, ढलवा पेट और उसपर सुशोमभत छोटी सी प्यारी नाभि, गोरे पेट से हल्के नीचे हल्के भूरे रंग के रोयों की हल्की सी लकीर। घुटनों तक पहने घाघरे से झलकती सुन्दर रेशमी टाँगे, चमकती हुई नरम गुदगुदी पिंडलियाँ, और सुंदर पैरों में पड़ी पतली चेन वाली पाजेब ने सेठजी की आत्मा और दिल को झकझोर के रख दिया।
तभी बाहर आसमान में काले बादलो के साथ बड़ी जोर की घड़घड़ाहट के साथ बिजली चमकी और ठन्डे पानी की फुहारों के साथ रिमझिम वर्षा का आगमन हुआ। ये बिजली कही हद तक सेठजी के दिल की गहराइयों में जाकर उतर चुकी थी। सेठजी के माथे से पशीने की कुछ बुँदे ढुलक कर केशु के ढलवा पेट पर जा गिरी, और एक या दो बून्द तो उसकी नाभि में समा गई। हड़बड़ा के उन्होंने जल्दी से गर्म पानी में कपड़ा भिगोकर केशु का माथा और चेहरा साफ किया।
केशु का पेट हल्का सा थरथराया, बंद पलकों ने अपने पंख उठाये, और मंद मंद आँखों से केशु ने अपनी पलकें खोली, दोनों की आँखे चार हुई और एक अनबुझा सा मूक सन्देश दोनों में आदानप्रदान हुआ।
उसने सेठजी की तरफ देखा और हल्के से मुश्कुराई, पर कुछ नहीं कहा।
सेठजी- अब कैसी हो केशु?
केशु ने कहा- ठीक हूँ।
तभी बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आई, कुछ पल पश्चात डा॰ अमोल पालेकर ने घर के भीतर प्रवेश किया, सेठजी ने जल्दी से डा॰ साहेब से हाथ मिलाया और केशु की जांच पड़ताल के लिए कहा।
डा॰ साहेब ने जल्दी से केशु की प्रारम्भिक जांच की और उसकी अंगुली की मरहम पट्टी की, अपना बेग खोल के स्टेथेस्कोप निकाला और केशु के वक्षस्थल पर रखकर हृदय की गति, एवम् नब्ज इत्यादि की जांच की। अधिक खून बह जाने की वजह से आई कमजोरी के फलस्वरूप हल्का सा बुखार भी आ गया था, कफर भी उन्होंने केशु का ब्लूडप्रेशर चेक किया तो पता लगा की कमजोरी के कारन वो भी न्यूनतम था।
आवश्यक दवाई और इंजेक्शन देने के बाद उन्होंने प्यार से केशु से पूछा - “बिटिया ये उंगली कैसे काट ली?”
केशु मासुमता से बोलै - “जी उसने दो बार गोली चलने की आवाज सुनी तो डर के मारे मेरी उंगली कट गई सब्जी की जगह…”
डा॰ अमोल ने हैरत से सेठ अजयानंद की तरफ देखा।
इतना मासूम जवाब सुनकर सेठजी ठठाकर जोर से हंसने लगे और हँसते हँसते उनकी आँखों से पानी आ गया।
डा॰ अमोल- सेठजी आप हँस क्यों रहे है?
सेठजी- “कुछ नहीं अमोल साहेब- आप आइये मैं समझाता हूँ आपको, दरअसल केशु अभी मासूम है, हमारी गलती थी हमने क्रोध में बंदूक चला दी थी। वो दो गोलियाँ दर-असल दो पापी दुष्टो के लिए हमारी बंदूक से निकली थी, जो जल्द ही हमारा सन्देश उन तक पहुँचा भी देगी…”
सेठजी और डा॰ अमोल- हा हा हा हा हा।
सेठजी- धनिया जाओ एक गिलास गरम हल्दी वाला दूध केशु को पीला दो, और उसे आराम करवाओ।
धनिया - जी मामलक।
डा॰ अमोल- “अच्छा सेठजी आज्ञा दीजिये चलता हूँ …” फिर ठिठकर धीरे से सेठजी के कान में बोले- “ऐसे ही किसी हादसे से केशु की याददाश्त वापस आ सकती है…”
ये सुनकर सेठजी पहले तो खुश हुए फिर अचानक पता नहीं क्यों उन्हें पहली बार अच्छा सा नहीं लगा। लेकिन उन्होंने अपने आपको संभाल लिया ।
हवेली से लौटते समय डा॰ अमोल के दिल और में दिमाग में वासना की तेज लहरे हिलोरे मार रही थी। इतनी ठंडी वर्षा में भी बदन जल सा रहा था। 55 वर्षीय डा॰ अमोल आज कई वर्षों बाद एक नारी शरीर की कमी महसूस कर रहे थे, उनका पुरुषांग आज कई साल बाद विद्रोह पे उतर आया था। वो दृशय जब केशु के उन्नत परवत शिखर समान उरोज मन्द मंद सांसों की गति से ऊपर-नीचे हो रहे थे और वो स्टेथेस्कोप से जांच पड़ताल कर रहे थे। उँगलियों के पोरों में अभी भी उन नर्म स्तनों की अग्नि महसूस हो रही थी।
डा॰ अमोल ने अपने विचारो को झटकने की बेहद कोशिश की। पर उनका मन उन्हें अतीत की ओर ले चला, जब वो 24 वर्षीय थे और मेडिकल कालेज में अपनी रंगीनियो के लिए बेहद मशहूर थे। उनके मित्र उन्हें सेक्स गुरू कहते थे।
वैसे डा॰ साहब दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी थे। एकतरफ पूर्ण धार्मिक एवं सात्वीक, रोज मंदिर जाना, पूजा अर्चना करना, ललाट पे चमकता त्रिपुण्ड
दूसरी तरफ नारी शरीर विज्ञानं में पूर्ण में पारंगत थे। एक नवयौवना को सम्पूर्ण रूप से कैसे संतुष्ट करते हैं, इसका अच्छा ज्ञान था उन्हें। कामक्रीड़ा में बहुत निपुण थे अक्सर कालेज की युवनतयों के साथ प्रेम प्रसंग में व्यस्त रहते थे। कई युवतिया उनसे अपने कामुक शरीर की प्यास बुझाने के लिए लालायित रहती थी।
“योनि उत्पीड़न एवं गुदा मैथुन” में पारंगत थे डा॰ साहब। इस सम्बन्ध में तो उन्होंने कई लेख भी प्रकाशित किये थे जिन्हे सब विधार्थी बड़े ही चाव से पढ़ते थे और अपनाते थे।
पर डा॰ बनने के बाद वो पूर्ण रूप से लोगों की सेवा में व्यस्त हो गए और विवाह भी नहीं किया। सुबह शाम बस मरीजों की सेवा में। लेकिन आज विधि ने एक बार फिर उनके सोये हुए शेर को जगा दिया था। दूर शून्य में सोचते हुए वो क्लिनिक में वापिस आ गए।
क्लिनिक में पहुूँचकर डा॰ अमोल कटे पेड़ की तरह अपनी कुसी पे गिर पड़े, उनके शरीर ने उनके दिलो दिमाग का साथ छोड़ दिया था, वासना के ताप में उनका समस्त शरीर धूं -धूं करके जल रहा था, वो भूल गए थे की 55 वर्ष की इस प्रौढ़ अवस्था में ये सब उन्होंने शोभा नहीं देगा, लेकिन वो अपने दिल के हाथों मज़बूर हो गए थे, उनके मष्तिष्क में केशु के शरीर को लेकर शैतानी विचार आने लगे थे। और वो आगे की योजना बनाने लगे।
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