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Horror कामातुर चुड़ैल! (Completed)

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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ye story already kafi time tlpahle me kisi forum oar padh chuka hu

Jara PM me uska link Dena to, wese bhi Riky007 final updates post krenge tab tak me 90s me ho jaungi 😂😂😂

लगता है ये कथन सही सिद्ध हो कर रहेगी. 😞 ☹️

Nice update....

Badhiya but kafi chota update sir jee

Bahut hi badhiya update he Riky007 Bhai,

Please ab aap is story ko bhi jald se jald pura karo


Waiting for next update bro

nice starting
सेकंड लास्ट अपडेट पोस्टेड।

एक जगह बुरी तरह से अटक गया था। खैर अब वो सुलझ गया है। बाकी बुरा भला कहने का पूरा अधिकार है आप सबका, खास कर DesiPriyaRai और Darkk Soul जी का 🙏🏼
 
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sunoanuj

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#अपडेट २२
अब तक आपने पढ़ा -

और महल के एक गुप्त तहखाने में फिर से साधना शुरू हो गई। मगर इस बार साधना शुरू होने के कुछ समय पश्चात ही घनघोर तूफान पूरे महल पर मंडराने लगा, और युविका तमतमाई सी उस तहखाने में आ गई। और उसने आते ही राजा को गले से उठा कर दूर फेंक दिया, और फिर वो बाकी तीनों की ओर बढ़ने लगी, उसकी तिलस्मी तलवार उसके हाथ में आ चुकी थी और भैंरवी की गर्दन की ओर उसका वार होने ही वाला था।

अब आगे -


तभी कुछ पानी की बूंदें उस तलवार पर पड़ी और वो तलवार गायब हो गई, फिर भी जिस वेग से तलवार भैंरवी की ओर आ रही थी, उसके झटके से भैंरवी नीचे गिर पड़ी। युविका ने चौंक कर अपनी दाहिनी ओर देखा जहां कुलगुरु अपने कमंडल के साथ खड़े थे, और कुछ मंत्र पढ़ रहे थे।

जब तक युविका को कुछ समझ आता, तभी फिर से कुलगुरु ने एक बार फिर से कुछ बूंदे अभिमंत्रित जल की उसके ऊपर गिरी और युविका के शरीर को एक झटका लगा। इसी झटके के साथ एक परछाईं युविका के शरीर से बाहर निकली, लेकिन वापस से वो उसके शरीर में समा गई।

कुलगुरु, "बहुत शक्तिशाली है ये अघोरी शक्ति बटुक, वरना अभी जो मंत्र जाल मैंने फेका था, उससे तो इसे युविका के शरीर को छोड़ देना चाहिए था।"

बटुकनाथ, "दिखा मुझे गुरुवर, इस शक्ति को संपूर्णानंद ने पशु बलि और काम क्रीड़ा से बुलाया था, और खुद युविका ने इसे नर बलि द्वारा प्राप्त किया। इतनी ज्यादा हिंसक और कामुक तरीके से प्राप्त शक्तियां न ही सात्विक शक्तियों से पराजित की जा सकती हैं न साधारण तामसिक से। हम दोनो को साथ में ही इस पर प्रहार करना होगा, और वो भी बिना रुके।"

कुलगुरु, "सोच क्या रहे हो फिर, शुरू हो जाओ।"

इधर कुलगुरु का अभिमंत्रित जल, और उधर बटुकनाथ की साधना, युविका दोनो के सम्मिलित वार से तड़प रही थी। लेकिन उसकी ये तड़प राजा से सहन नही हुई और उसने कुलगुरु का हाथ पकड़ लिया। बस इतना सा ही मौका काफी था युविका की अपनी शक्तियों को एकत्रित करने के लिए। और उसने इस मौके को नही गंवाया और अपनी काली शक्तियों का वार कुलगुरु की तरफ कर दिया। एक काली परछाई पूरे वेग से कुलगुरु की ओर बढ़ी, तभी भैंरवी ने उनको धक्का दे कर उस वार को खुद अपने ऊपर ले लिया और कुलगुरु ने भी इस समय एक बार फिर से अभिमंत्रित जल को युविका की ओर उछाल दिया।

भैंरवी, "राजन आप जाइए यहां से, ये हमारी युविका नही है अब, ये एक काली शक्ति में परिवर्तित हो चुकी है, और अब इसको खत्म करना जरूरी है। गुरुवर, मैने नियति के साथ छेड़ छाड़ करके बहुत बड़ी गलती की, और अब इसका प्रायश्चित मैं शायद अपनी जान देकर भी न चुका पाऊं, मुझे क्षमा करें।" और इसी के साथ भैंरवी ने अपने प्राण त्याग दिए।

बटुकनाथ, "राजन आप बस युविका के पिता नही हैं, बल्कि पूरे राज्य के पालक हैं, इसे अगर जो नही रोका गया तो आज आपके राज्य का अंत हो जाएगा, कोई जिंदा नही बचेगा। इसीलिए अब आप यहां से जाइए और बाकी सब हमपर छोड़ दीजिए।"

राजा सुरेंद्र भी होश में आते हुए दोनो से क्षमा मांग कर भैंरवी के शव को लेकर बाहर निकल जाते हैं।

उधर अभिमंत्रित जल पड़ते ही युविका का बदन एक बार और तड़पने लगा, मगर तभी उसके शरीर की शक्तियां फिर से प्रबल होने लगती हैं, और बटुकनाथ के वारों का प्रतिउत्तर देने लगती है।

उस कक्ष में इन शक्तियों की लड़ाई बहुत देर तक चलती है और बाहर आंधी तूफान अपना तांडव मचा रहा होता है, पूरे नगर के लोग अपने घरों में ही दुबके रहते हैं, किसी को कोई खबर नहीं होती की उनके राज्य पर इतनी बड़ी विपदा आई है।

बटुकनाथ, "गुरुवर ऐसा प्रतीत होता है कि जब तक युविका खुद से इन शक्तियों से अलग नहीं होना चाहेगी, हमारी शक्तियां व्यर्थ ही जाएंगी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या किया जाए अब।

कुलगुरु, "ये तब ही संभव है जब कोई युविका को इस बात के लिए मना सके, और ये सामर्थ्य तो न मुझमें है और न तुममें, भंवरी शायद ये कर सकती थी, मगर वो भी अब नही है हमारे बीच, एक बार राजन से प्रयास करवाकर देखते हैं, मगर मुझे कोई आशा नहीं कि वो अब इनकी बात भी मानेगी।"

बटुकनाथ, "प्रयास करवा कर देखते हैं, नही तो एक अंतिम उपाय है मेरे पास, लेकिन उससे हम बस इसे बांध सकते हैं, खत्म नहीं कर सकते।"

ये सुन कर कुलगुरू राजा सुरेंद्र को आवाज लगा कर बुलाते हैं।

कुलगुरु, "राजन, एक बार आप प्रयास करिए, युविका को समझने का कि वो इन शक्तियों का साथ छोड़ दे। इसी में सबकी भलाई है।"

राजा सुरेंद्र, युविका को पुकारते हुए, "पुत्री, एक बार अपने इस अभागे पिता की बात सुन लो, ये जिद छोड़ दो पुत्री, इन शक्तियों से किसी का भला नहीं हुआ, तो तुम्हारा कैसे होगा पुत्री?"

युविका, "पिताजी, क्या आप मेरा भला कर पाए? पूरे जीवन में बस एक ही बार कुछ मांगा था आपसे, मगर वो भी आप मुझे नहीं दे पाए। अब मैं वही करूंगी, जो मुझे अच्छा लगेगा, और इस बात से आप भी।मुझे नहीं रोक सकते।"

राजा सुरेंद्र, "पर बेटा, किसी और पर हमारा क्या नियंत्रण है भला, कुमार और सुनैना एक दूसरे से प्यार करते हैं, और भला इस को मैं कैसे रोक सकता था? ये तो नियति है।"

युविका, "नियति की बात आप न ही करें पिताजी, मेरा जन्म भी तो आपने नियति के विरुद्ध जा कर ही किया था, फिर भला कुमार को मुझे अपनाने के लिए कैसे नही मना पाए आप? अब मैं किसी भी तरह कुमार को पा कर ही रहूंगी।"

राजा सुरेंद्र, "बेटी तुम्हारे लिए मैने एक बड़ी भूल कर दी थी, पर अब और नियति से छेड़छाड़ नही कर सकता मैं। मान जाओ बेटा, एक तुम्ही सहारा हो मेरा और अपनी माता का।"

युविका, " बिलकुल नहीं, अब मैं निश्चय कर चुकी हूं कि मैं भी नियति के विरुद्ध जाऊंगी, चाहे जैसे भी ये संभव हो।"

ये कहते ही युविका ने एक शक्ति राजा सुरेंद्र की ओर छोड़ दी, हालांकि वो शक्ति इतनी घातक नही थी, फिर भी राजा उसके वेग से उछल कर दूर गिर कर बेहोश हो जाते हैं।

ये देख कर बटुकनाथ ने तुरंत ही एक मंत्र पढ़ कर एक जलती हुई लकड़ी पर कुछ फेंका और देखते ही देखते वो एक अग्नि बाण में बदल गई और युविका के चारो ओर मंडराने हुए उसके शरीर को जलाने लगी। तभी बटुकनाथ ने एक और लकड़ी को मंत्र पढ़ कर युविका की ओर उछाला, जो तुरंत ही एक संदूक में बदल कर युविका के शरीर को अपने में समा कर बंद हो गया।

इतना होते ही बटुकनाथ ने एक और मंत्र पढ़ कर उस संदूक पर कुछ अक्षत के दाने डाल दिए और कुलगुरु से कहा, "आप भी इसे अपने अभिमंत्रित जल से बांध दीजिए, ताकि भीतर से इस संदूक को खोलना असंभव हो जाय।"

कुलगुरू ने भी ऐसा ही किया। उसके बाद दोनो राजा को लेकर बाहर आ गए और उस कक्ष के द्वार को भी अभिमंत्रित कर के उस पर एक ताला लगवा दिया। तब तक बाहर का तूफान भी लगभग शांत हो चुका था।

राजा के होश में आने पर बटुकनाथ और कुलगुरु ने उनको सलाह दी की इस जगह को छोड़ कर किसी और जगह राजधानी बसा लेने की, क्योंकि उन्हें डर था कि कोई उस संदूक को खोल ना दे।

और इसके बाद एक ही सप्ताह में राजा सुरेंद्र ने पूरी प्रजा सहित उस जगह से न सिर्फ दूसरी जगह राजधानी बसा ली बल्कि उस किले में किसी का भी प्रवेश वर्जित कर दिया।

उसके बाद सम्राट ही उस कक्ष में प्रवेश करके युविका को उस संदूक से बाहर लाया।

फ्लैशबैक खतम

Bhaut dino baad update aaya … par chalo aaya toh sahi Raja ko ek bhul sabko kitni bhari pad rahi hai ….

Mitr ab is kahani puri kar dena Please 🙏🏻
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Bhaut dino baad update aaya … par chalo aaya toh sahi Raja ko ek bhul sabko kitni bhari pad rahi hai ….

Mitr ab is kahani puri kar dena Please 🙏🏻
जरूर भाई जी, बोला तो एक जगह अटक गया था।

युविका की मुक्ति का बेस कैसे बनाऊं ये समझ नही आ रहा था। खैर अब रास्ता मिल गया है।
 
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sunoanuj

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जरूर भाई जी, बोला तो एक जगह अटक गया था।

युविका की मुक्ति का बेस कैसे बनाऊं ये समझ नही आ रहा था। खैर अब रास्ता मिल गया है।

Ok mitr waiting for next blockbuster update…
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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next update aayega ya nhi bta do
ham intejar to nhi karenge
भाई जी, नही लिखना होता तो बता देता, मुझे लोगों को लटका के नही रखना। फिर भी पढ़ने के लिए धन्यवाद, और अगला अपडेट आखिरी ही होगा। 🙏🏼
 

Ek number

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#अपडेट २२
अब तक आपने पढ़ा -

और महल के एक गुप्त तहखाने में फिर से साधना शुरू हो गई। मगर इस बार साधना शुरू होने के कुछ समय पश्चात ही घनघोर तूफान पूरे महल पर मंडराने लगा, और युविका तमतमाई सी उस तहखाने में आ गई। और उसने आते ही राजा को गले से उठा कर दूर फेंक दिया, और फिर वो बाकी तीनों की ओर बढ़ने लगी, उसकी तिलस्मी तलवार उसके हाथ में आ चुकी थी और भैंरवी की गर्दन की ओर उसका वार होने ही वाला था।

अब आगे -


तभी कुछ पानी की बूंदें उस तलवार पर पड़ी और वो तलवार गायब हो गई, फिर भी जिस वेग से तलवार भैंरवी की ओर आ रही थी, उसके झटके से भैंरवी नीचे गिर पड़ी। युविका ने चौंक कर अपनी दाहिनी ओर देखा जहां कुलगुरु अपने कमंडल के साथ खड़े थे, और कुछ मंत्र पढ़ रहे थे।

जब तक युविका को कुछ समझ आता, तभी फिर से कुलगुरु ने एक बार फिर से कुछ बूंदे अभिमंत्रित जल की उसके ऊपर गिरी और युविका के शरीर को एक झटका लगा। इसी झटके के साथ एक परछाईं युविका के शरीर से बाहर निकली, लेकिन वापस से वो उसके शरीर में समा गई।

कुलगुरु, "बहुत शक्तिशाली है ये अघोरी शक्ति बटुक, वरना अभी जो मंत्र जाल मैंने फेका था, उससे तो इसे युविका के शरीर को छोड़ देना चाहिए था।"

बटुकनाथ, "दिखा मुझे गुरुवर, इस शक्ति को संपूर्णानंद ने पशु बलि और काम क्रीड़ा से बुलाया था, और खुद युविका ने इसे नर बलि द्वारा प्राप्त किया। इतनी ज्यादा हिंसक और कामुक तरीके से प्राप्त शक्तियां न ही सात्विक शक्तियों से पराजित की जा सकती हैं न साधारण तामसिक से। हम दोनो को साथ में ही इस पर प्रहार करना होगा, और वो भी बिना रुके।"

कुलगुरु, "सोच क्या रहे हो फिर, शुरू हो जाओ।"

इधर कुलगुरु का अभिमंत्रित जल, और उधर बटुकनाथ की साधना, युविका दोनो के सम्मिलित वार से तड़प रही थी। लेकिन उसकी ये तड़प राजा से सहन नही हुई और उसने कुलगुरु का हाथ पकड़ लिया। बस इतना सा ही मौका काफी था युविका की अपनी शक्तियों को एकत्रित करने के लिए। और उसने इस मौके को नही गंवाया और अपनी काली शक्तियों का वार कुलगुरु की तरफ कर दिया। एक काली परछाई पूरे वेग से कुलगुरु की ओर बढ़ी, तभी भैंरवी ने उनको धक्का दे कर उस वार को खुद अपने ऊपर ले लिया और कुलगुरु ने भी इस समय एक बार फिर से अभिमंत्रित जल को युविका की ओर उछाल दिया।

भैंरवी, "राजन आप जाइए यहां से, ये हमारी युविका नही है अब, ये एक काली शक्ति में परिवर्तित हो चुकी है, और अब इसको खत्म करना जरूरी है। गुरुवर, मैने नियति के साथ छेड़ छाड़ करके बहुत बड़ी गलती की, और अब इसका प्रायश्चित मैं शायद अपनी जान देकर भी न चुका पाऊं, मुझे क्षमा करें।" और इसी के साथ भैंरवी ने अपने प्राण त्याग दिए।

बटुकनाथ, "राजन आप बस युविका के पिता नही हैं, बल्कि पूरे राज्य के पालक हैं, इसे अगर जो नही रोका गया तो आज आपके राज्य का अंत हो जाएगा, कोई जिंदा नही बचेगा। इसीलिए अब आप यहां से जाइए और बाकी सब हमपर छोड़ दीजिए।"

राजा सुरेंद्र भी होश में आते हुए दोनो से क्षमा मांग कर भैंरवी के शव को लेकर बाहर निकल जाते हैं।

उधर अभिमंत्रित जल पड़ते ही युविका का बदन एक बार और तड़पने लगा, मगर तभी उसके शरीर की शक्तियां फिर से प्रबल होने लगती हैं, और बटुकनाथ के वारों का प्रतिउत्तर देने लगती है।

उस कक्ष में इन शक्तियों की लड़ाई बहुत देर तक चलती है और बाहर आंधी तूफान अपना तांडव मचा रहा होता है, पूरे नगर के लोग अपने घरों में ही दुबके रहते हैं, किसी को कोई खबर नहीं होती की उनके राज्य पर इतनी बड़ी विपदा आई है।

बटुकनाथ, "गुरुवर ऐसा प्रतीत होता है कि जब तक युविका खुद से इन शक्तियों से अलग नहीं होना चाहेगी, हमारी शक्तियां व्यर्थ ही जाएंगी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या किया जाए अब।

कुलगुरु, "ये तब ही संभव है जब कोई युविका को इस बात के लिए मना सके, और ये सामर्थ्य तो न मुझमें है और न तुममें, भंवरी शायद ये कर सकती थी, मगर वो भी अब नही है हमारे बीच, एक बार राजन से प्रयास करवाकर देखते हैं, मगर मुझे कोई आशा नहीं कि वो अब इनकी बात भी मानेगी।"

बटुकनाथ, "प्रयास करवा कर देखते हैं, नही तो एक अंतिम उपाय है मेरे पास, लेकिन उससे हम बस इसे बांध सकते हैं, खत्म नहीं कर सकते।"

ये सुन कर कुलगुरू राजा सुरेंद्र को आवाज लगा कर बुलाते हैं।

कुलगुरु, "राजन, एक बार आप प्रयास करिए, युविका को समझने का कि वो इन शक्तियों का साथ छोड़ दे। इसी में सबकी भलाई है।"

राजा सुरेंद्र, युविका को पुकारते हुए, "पुत्री, एक बार अपने इस अभागे पिता की बात सुन लो, ये जिद छोड़ दो पुत्री, इन शक्तियों से किसी का भला नहीं हुआ, तो तुम्हारा कैसे होगा पुत्री?"

युविका, "पिताजी, क्या आप मेरा भला कर पाए? पूरे जीवन में बस एक ही बार कुछ मांगा था आपसे, मगर वो भी आप मुझे नहीं दे पाए। अब मैं वही करूंगी, जो मुझे अच्छा लगेगा, और इस बात से आप भी।मुझे नहीं रोक सकते।"

राजा सुरेंद्र, "पर बेटा, किसी और पर हमारा क्या नियंत्रण है भला, कुमार और सुनैना एक दूसरे से प्यार करते हैं, और भला इस को मैं कैसे रोक सकता था? ये तो नियति है।"

युविका, "नियति की बात आप न ही करें पिताजी, मेरा जन्म भी तो आपने नियति के विरुद्ध जा कर ही किया था, फिर भला कुमार को मुझे अपनाने के लिए कैसे नही मना पाए आप? अब मैं किसी भी तरह कुमार को पा कर ही रहूंगी।"

राजा सुरेंद्र, "बेटी तुम्हारे लिए मैने एक बड़ी भूल कर दी थी, पर अब और नियति से छेड़छाड़ नही कर सकता मैं। मान जाओ बेटा, एक तुम्ही सहारा हो मेरा और अपनी माता का।"

युविका, " बिलकुल नहीं, अब मैं निश्चय कर चुकी हूं कि मैं भी नियति के विरुद्ध जाऊंगी, चाहे जैसे भी ये संभव हो।"

ये कहते ही युविका ने एक शक्ति राजा सुरेंद्र की ओर छोड़ दी, हालांकि वो शक्ति इतनी घातक नही थी, फिर भी राजा उसके वेग से उछल कर दूर गिर कर बेहोश हो जाते हैं।

ये देख कर बटुकनाथ ने तुरंत ही एक मंत्र पढ़ कर एक जलती हुई लकड़ी पर कुछ फेंका और देखते ही देखते वो एक अग्नि बाण में बदल गई और युविका के चारो ओर मंडराने हुए उसके शरीर को जलाने लगी। तभी बटुकनाथ ने एक और लकड़ी को मंत्र पढ़ कर युविका की ओर उछाला, जो तुरंत ही एक संदूक में बदल कर युविका के शरीर को अपने में समा कर बंद हो गया।

इतना होते ही बटुकनाथ ने एक और मंत्र पढ़ कर उस संदूक पर कुछ अक्षत के दाने डाल दिए और कुलगुरु से कहा, "आप भी इसे अपने अभिमंत्रित जल से बांध दीजिए, ताकि भीतर से इस संदूक को खोलना असंभव हो जाय।"

कुलगुरू ने भी ऐसा ही किया। उसके बाद दोनो राजा को लेकर बाहर आ गए और उस कक्ष के द्वार को भी अभिमंत्रित कर के उस पर एक ताला लगवा दिया। तब तक बाहर का तूफान भी लगभग शांत हो चुका था।

राजा के होश में आने पर बटुकनाथ और कुलगुरु ने उनको सलाह दी की इस जगह को छोड़ कर किसी और जगह राजधानी बसा लेने की, क्योंकि उन्हें डर था कि कोई उस संदूक को खोल ना दे।

और इसके बाद एक ही सप्ताह में राजा सुरेंद्र ने पूरी प्रजा सहित उस जगह से न सिर्फ दूसरी जगह राजधानी बसा ली बल्कि उस किले में किसी का भी प्रवेश वर्जित कर दिया।

उसके बाद सम्राट ही उस कक्ष में प्रवेश करके युविका को उस संदूक से बाहर लाया।


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Nice update
 

Samar_Singh

Keep Moving Forward
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Dayi ne apna sar ghumaya. Badi gor se usne us chudel ko dekha. Uski kaya to esi mano shapno me hi esi kanya ho sakti he. Par uske per(lages) ulte the. Dayi ne us chudel ke dono pau ko khola. Lal khoon se sani yoni. Kabhi to esa lagta ki khulne vali he. To kabhi esa lagta ki andar shukud rahi he. Tabhi achanak uski yoni se ek chhota sa sar bahar nikla.

Dayi samaz gai ki yahi us chudel ki shantan he. Jese kachhua apna sar bahar nikalta he. Or dae bae dekh kar khatra mahesus karte vapas apna muh andar kar leta he. Vese us chudeli shantan ne vapas apna sar yoni me khich liya.

Bache ko dekh kar dai ne yoni me ungli dali. Par achanak dai ko apni ungli par jor ka dard huaa. Dayi ne turant hath pichhe khich liya. Dayi samaz gai ki bacha garbh me uthal puthal khel raha he. Tabhi us chudel ko taklif ho rahi he.

Jan sirf us chudel ki hi nahi dayi ki bhi khatre me thi. Esa bacha jo nar bhakshi he. Use yoni me hath dal kar kese khicha jae. Dayi ne ek tarkib lagai. Apna sirf ek hath sidha yoni me ghusaya. Bacha jo yoni ke andar tha. Usne dayi ka hath apne muh me bhar liya. Dayi ne turant hath bahar khicha. Apne jabde ke bal latakta bacha pura yoni se bahar aa gaya. Vo chudel jor se chikhi.
Vo bacha jamin par is lie gira kyo ki vo dayi ki do ungli kat kar kha gaya tha. Bacha or vo chudel dono hi bach gae. Par dayi ne apni do ungliya puri tarike se kho di. Dayi ne apni do ungliya kho kar apni jan to bacha hi li. Vo garbh vati chudel chudelo ke rani ki loti chudel thi.


Dayi ko sona bhi mila or shalamat uske ghar vese hi chhod diya gaya. Apni ankho par patti bandh kar dayi kai bar vo jagah khojne ki kosis karti. Par vo jagah use aaj tak nahi mili.
Is thread me kya 2 kahani ek sath chal rahi hai 😌
 

Riky007

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