- 4,039
- 22,451
- 159
अगली सुबह नाश्ते पर ससुर जी ने मुझसे कहा की उनके परिवार की भगवान केदारनाथ धाम में बड़ी अगाध श्रद्धा है। और हर शुभ-कार्य अथवा पर्व-प्रयोजन में वो सभी वहाँ जाते रहते हैं। उनका पूरा परिवार कई पीढ़ियों से शुभ प्रयोजनों में यह यात्रा करता रहा है। उनके अनुसार, अब चूंकि संध्या गर्भवती है, तो यदि संभव हो, तो हम सभी एक बार केदारनाथ जी के दर्शन कर आएँ? इस बात पर सबसे पहले तो मुझे राहत की सांस आई – कल रात की धमाचौकड़ी इन लोगो ने कैसे नहीं सुनी, वही एक अचरज की बात है। अच्छा है.. सवेरे सवेरे धर्म कर्म की बाते हो रही थीं।
“जी पिताजी, एक बार हम संध्या की डॉक्टर से बात कर लेते हैं। अगर उनकी सलाह हुई, तो ज़रूर चलेंगे। अभी जाना है क्या? मेरा मतलब, कोई मुहूर्त जैसा कुछ है?”
“नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है बेटा। जब आप लोगों को सही लगे, आ जाइए। भगवान् के दर्शनों के लिए कैसा मुहूर्त! बस हम सभी एक बार सपरिवार केदारनाथ जी के दर्शन कर लें.. हमारी बहुत दिनों से बड़ी इच्छा है।“
“जी, बिलकुल! मैं अभी कुछ ही देर में डॉक्टर को पूछता हूँ..”
खाने पीने के बाद कोई दस बजे मैंने डॉक्टर को फ़ोन लगाया। उन्होंने कहा की अगले महीने संध्या यात्रा कर सकती है। तब तक उसका पाँचवाँ महीना शुरू हो जाएगा, और वह सुरक्षित समय है। बस समुचित सावधानी रखी जाय। मैं उन रास्तों पर गया हुआ हूँ पहले भी, और मुझे मालूम है की कुछ स्थानों को छोड़ दिया जाय, तो वहाँ की सड़कें अच्छी हालत में हैं। इसलिए कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। वहाँ ऊपर जा कर पालकी इत्यादि की व्यवस्था तो हो ही जाती है... अतः डरने या घबराने वाली कोई बात नहीं थी।
दो दिन और बैंगलोर में रहने के बाद मेरे सास ससुर दोनों वापस उत्तराँचल को लौट गए। मैंने बहुत कहा की यही रुक जाएँ, लेकिन उनको वहाँ कई कार्य निबटाने थे, इसलिए हमारी बहुत मनुहार के बाद भी उनको जाना पड़ा। खैर, उनके जाते ही मैंने सबसे पहले देहरादून का हवाई टिकट हम तीनों के लिए बुक कर लिया। इस एक महीने में हमने बहुत सारे काम यहाँ पर भी निबटाए – सबसे पहले नीलम के दाखिले के लिए उसके संभावित कॉलेज के प्रिंसिपल से मिले, और उन्होंने भरोसा दिलाया की उसको दाखिला मिल जाएगा अगर बारहवीं में अंक अच्छे आयेंगे! उन्होंने काफी समय निकाल कर उसकी काउंसलिंग भी करी – वो क्या करना चाहती है, क्या पढना चाहती है, कौन से कोर्स वहाँ पढाए जा रहे हैं इत्यादि! मुझे भी काम के सिलसिले में दो हफ्ते घर से बाहर जाना पड़ा, और इस बीच दोनों लड़कियों ने ढेर सारी खरीददारी भी कर ली.. जैसे जैसे संध्या के शरीर में वृद्धि हो रही थी, उसको नए कपड़ो की आवश्यकता हो रही थी; नीलम को भी नए परिवेश के हिसाब से परिधान खरीदने की ज़रुरत थी। खैर, अच्छा ही है.. इसी बहाने उसको नई जगह को देखने और समझने का मौका मिल रहा था।
दोनों ही लड़कियों से रोज़ बात होती थी.. एक बार संध्या ने कहा की जिस तरह से उसका शरीर बढ़ रहा है, उसको लगता है की नए कपड़े लेने से बेहतर है की वो नंगी ही रहे। इस पर मैंने सहमति जताई, और कहा की यह ख़याल बहुत उम्दा है। संध्या ने कहा की ख़याल तो उम्दा है, लेकिन आज कल उसकी बहन रोज़ ही उससे चिपकी सी रहती है.. ऐसा नहीं है की संध्या को नीलम का संग बुरा लगता है। बस यह की एक वयस्क लड़की के लिए ऐसा व्यवहार थोड़ा अजीब है। मेरे पूछने पर उसने बताया की नीलम अक्सर उसके स्तनों और शरीर के अन्य हिस्सों को छूती टटोलती रहती है। कहती है की उसको संध्या बहुत सुन्दर लगती है, और उससे रहा नहीं जाता बिना उसको छुए। संध्या ने ही बताया की,
एक दिन नीलम ने संध्या को कहा, “दीदी, तुम्हारा बच्चा कितना लकी है न! हमें तो बस गिलास से ही...”
“क्या मतलब?” संध्या समझ तो रही थी.. फिर भी पूछा।
“मेरा मतलब दीदी, हर किसी को तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की का ... पीने .. को.. नहीं मिलता है न!”
गर्भावस्था के दौरान लड़कियाँ स्वयं को फूली हुई महसूस करती हैं, इसलिए उनकी तारीफ़ इत्यादि करने से उनको ख़ुशी मिलती है। संध्या भी अपनी तारीफ़ सुन कर मुस्कुराई।
“दीदी, मैं तुमको चूम लूँ?”
“क्या नीलू! तू भी! तू अपने लिए एक लड़का ढूंढ ले.. तेरे भाव स्पष्ट नहीं लग रहे हैं मुझे.. हा हा हा!”
“तो ढूंढ दो न तुम ही.. जीजू जैसा कोई! तब तक यही भाव रहेंगे मेरे..”
कहते हुए नीलम ने अपना चेहरा संध्या के चेहरे के पास लाया। संध्या की आँखें नीलम के होंठो पर लगी हुई थीं। संध्या ने कभी नहीं सोचा था की उसके साथ ऐसा भी कुछ होगा। क्या उसकी ही अपनी, छोटी बहन उसकी तरफ यौन आकर्षण रखती है! ऐसा नहीं है की उसको बुरा लग रहा हो... शादी के बाद के कई अनुभवों के बाद उसकी खुद की अनगिनत वर्जनाएँ समाप्त हो गई थीं, लेकिन फिर भी, यह सब कुछ बहुत ही अलग था.. अनोखा! अनोखा, और बहुत ही रोचक। नीलम ने झुक कर अपने होंठ संध्या के होंठो से सटा दिए...
“ओह! कितने सॉफ्ट हैं!” एक छोटा सा चुम्बन ले कर उसने कहा।
नीलम संध्या के होंठों पर बहुत ही हलके हलके कई सारे चुम्बन दे रही थी। दे रही थी, या ले रही थी? जो भी है! जब उसने देखा की संध्या उसकी इस हरकत का कोई बुरा नहीं मान रही है, और साथ ही साथ उसकी इस हरकत के प्रतिउत्तर में वो खुद भी वापस चुम्बन दे रही है, तो उसने कुछ नया करने का सोचा। उसने चुम्बन में कुछ तेज़ी और जोश लाई, और साथ ही संध्या को अपने आलिंगन में बांध लिया। कुछ तो हुआ दोनों के बीच – दोनों लड़कियाँ अब पूरी तन्मयता के साथ एक दूसरे का चुम्बन ले रही थीं। संध्या ने भी अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए नीलम के दोनों गाल अपने हाथों से थोड़ा दबा दिए, जिसके कारण नीलम का मुँह खुल गया। और इसी क्षण संध्या ने अपनी जीभ नीलम के मुँह के अन्दर डाल कर चूसना शुरू कर दिया।
उधर, नीलम संध्या की शर्ट के ऊपर से उसके स्तनों को बारी बारी छूने लगी। संध्या के लिए यह कोई नई बात तो नहीं थी, लेकिन फिर भी सुने आँख खोल कर देखा - नीलम तो अपनी आँखें बंद किये इस काम में पूरी तरह मगन थी। एक सहज प्रतिक्रिया में संध्या ने पुनः अपने स्तन को आगे की ओर ठेल दिया, जिसके कारण उसके स्तन नीलम के हाथ में आ गए। नीलम ने तुरंत ही खुश होकर उसके स्तन को मसलना चालू कर दिया।
चुम्बन की प्रबलता अब तीव्र हो चली थी और दोनों लड़कियों की साँसे भी। नीलम के दोनों हाथ अब संध्या के शर्ट के अन्दर जा कर उसके स्तनों का मर्दन कर रहे थे। संध्या के निप्पल गर्भावस्था की संवेदनशीलता के कारण उसके मर्दन से असहज महसूस कर रहे थे। लेकिन वो नीलम का मन रखना चाहती थी।
संध्या ने नीलम को अपने से कुछ दूर किया, और फिर अपनी शर्ट के बटन खोल कर उसके पट खोल दिए। वो शर्ट को उतार पाती, उससे पहले ही नीलम वापस उससे जा चिपकी और उसको पुनः चूमने लग गई। संध्या के स्वतंत्र स्तनों को वो बारी बारी से अपने मुंह में भर कर चूसना आरम्भ कर दिया। पहले के मर्दन के कारण उसके निप्पल पहले ही कड़े हो गए थे, और अब इस चूषण के बाद वो और भी कड़े हो गए।
“मैं भी लकी हूँ! ... उह्म्म्म उह्म्म्म (चूसते हुए) ओह दीदी..! आप प्लीज मुझको भी इनसे दूध पिलाना! आह! इतने सुन्दर हैं!” इतना कह कर वह पुनः चूसने में लग गई।
“हा हा! ये लो... अब एक और दावेदार आ गई! गाँव बसा नहीं, और लुटेरे आ गए!”
नीलम ने उसकी बात को जैसे अनसुना कर दिया। उसके हाथ संध्या के सारे शरीर पर चलने फिरने लगे। कभी वो उसके स्तन दबाती, तो कभी उसके नितम्ब, तो कभी उसकी पीठ! आगे वो उसकी स्कर्ट को नीचे की तरफ सरकाने लगी।
“अरे! ये क्या कर रही है? मुझे पूरा नंगा करने का मूड है क्या?” संध्या ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"हाँ! मैं तुमको पूरा नंगा भी देखूँगी, और आपके साथ वह सब करूंगी जो जीजू करते हैं।“ कहते हुए नीलम संध्या की स्कर्ट और चड्ढी दोनों एक साथ ही नीचे सरकाने लगी।
“नहीं नीलू.. ऐसे मत कर.. बस, इनको पीने की इजाज़त है.. ये तेरे जीजू के लिए है!”
संध्या नीलम के सामने नग्न पड़ी हुई थी, और अपने शरीर का कोई हिस्सा छुपाने का यत्न नहीं कर रही थी। कदाचित, वह यह चाहती थी की नीलम उसकी सुन्दरता के रसभरे दृश्य से सराबोर हो जाए। लेकिन, नीलम को बस इतनी ही अनुमति थी। उसने एकदम आसक्त हो कर अपनी तर्जनी को संध्या की सूजी हुई योनि की दरार पर फिराया और फिर बहुत ही अनिच्छा से अपना हाथ वापस खींच लिया। संध्या मुस्कुराई।
नीलम ने वापस आकर संध्या के स्तनों पर अपना मोर्चा सम्हाला, और पुनः उनको चूसना शुरू कर दिया।
कुछ देर चूसने के बाद,
“अरे दीदी! ये क्या..?”
***********************************************
“जी पिताजी, एक बार हम संध्या की डॉक्टर से बात कर लेते हैं। अगर उनकी सलाह हुई, तो ज़रूर चलेंगे। अभी जाना है क्या? मेरा मतलब, कोई मुहूर्त जैसा कुछ है?”
“नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है बेटा। जब आप लोगों को सही लगे, आ जाइए। भगवान् के दर्शनों के लिए कैसा मुहूर्त! बस हम सभी एक बार सपरिवार केदारनाथ जी के दर्शन कर लें.. हमारी बहुत दिनों से बड़ी इच्छा है।“
“जी, बिलकुल! मैं अभी कुछ ही देर में डॉक्टर को पूछता हूँ..”
खाने पीने के बाद कोई दस बजे मैंने डॉक्टर को फ़ोन लगाया। उन्होंने कहा की अगले महीने संध्या यात्रा कर सकती है। तब तक उसका पाँचवाँ महीना शुरू हो जाएगा, और वह सुरक्षित समय है। बस समुचित सावधानी रखी जाय। मैं उन रास्तों पर गया हुआ हूँ पहले भी, और मुझे मालूम है की कुछ स्थानों को छोड़ दिया जाय, तो वहाँ की सड़कें अच्छी हालत में हैं। इसलिए कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। वहाँ ऊपर जा कर पालकी इत्यादि की व्यवस्था तो हो ही जाती है... अतः डरने या घबराने वाली कोई बात नहीं थी।
दो दिन और बैंगलोर में रहने के बाद मेरे सास ससुर दोनों वापस उत्तराँचल को लौट गए। मैंने बहुत कहा की यही रुक जाएँ, लेकिन उनको वहाँ कई कार्य निबटाने थे, इसलिए हमारी बहुत मनुहार के बाद भी उनको जाना पड़ा। खैर, उनके जाते ही मैंने सबसे पहले देहरादून का हवाई टिकट हम तीनों के लिए बुक कर लिया। इस एक महीने में हमने बहुत सारे काम यहाँ पर भी निबटाए – सबसे पहले नीलम के दाखिले के लिए उसके संभावित कॉलेज के प्रिंसिपल से मिले, और उन्होंने भरोसा दिलाया की उसको दाखिला मिल जाएगा अगर बारहवीं में अंक अच्छे आयेंगे! उन्होंने काफी समय निकाल कर उसकी काउंसलिंग भी करी – वो क्या करना चाहती है, क्या पढना चाहती है, कौन से कोर्स वहाँ पढाए जा रहे हैं इत्यादि! मुझे भी काम के सिलसिले में दो हफ्ते घर से बाहर जाना पड़ा, और इस बीच दोनों लड़कियों ने ढेर सारी खरीददारी भी कर ली.. जैसे जैसे संध्या के शरीर में वृद्धि हो रही थी, उसको नए कपड़ो की आवश्यकता हो रही थी; नीलम को भी नए परिवेश के हिसाब से परिधान खरीदने की ज़रुरत थी। खैर, अच्छा ही है.. इसी बहाने उसको नई जगह को देखने और समझने का मौका मिल रहा था।
दोनों ही लड़कियों से रोज़ बात होती थी.. एक बार संध्या ने कहा की जिस तरह से उसका शरीर बढ़ रहा है, उसको लगता है की नए कपड़े लेने से बेहतर है की वो नंगी ही रहे। इस पर मैंने सहमति जताई, और कहा की यह ख़याल बहुत उम्दा है। संध्या ने कहा की ख़याल तो उम्दा है, लेकिन आज कल उसकी बहन रोज़ ही उससे चिपकी सी रहती है.. ऐसा नहीं है की संध्या को नीलम का संग बुरा लगता है। बस यह की एक वयस्क लड़की के लिए ऐसा व्यवहार थोड़ा अजीब है। मेरे पूछने पर उसने बताया की नीलम अक्सर उसके स्तनों और शरीर के अन्य हिस्सों को छूती टटोलती रहती है। कहती है की उसको संध्या बहुत सुन्दर लगती है, और उससे रहा नहीं जाता बिना उसको छुए। संध्या ने ही बताया की,
एक दिन नीलम ने संध्या को कहा, “दीदी, तुम्हारा बच्चा कितना लकी है न! हमें तो बस गिलास से ही...”
“क्या मतलब?” संध्या समझ तो रही थी.. फिर भी पूछा।
“मेरा मतलब दीदी, हर किसी को तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की का ... पीने .. को.. नहीं मिलता है न!”
गर्भावस्था के दौरान लड़कियाँ स्वयं को फूली हुई महसूस करती हैं, इसलिए उनकी तारीफ़ इत्यादि करने से उनको ख़ुशी मिलती है। संध्या भी अपनी तारीफ़ सुन कर मुस्कुराई।
“दीदी, मैं तुमको चूम लूँ?”
“क्या नीलू! तू भी! तू अपने लिए एक लड़का ढूंढ ले.. तेरे भाव स्पष्ट नहीं लग रहे हैं मुझे.. हा हा हा!”
“तो ढूंढ दो न तुम ही.. जीजू जैसा कोई! तब तक यही भाव रहेंगे मेरे..”
कहते हुए नीलम ने अपना चेहरा संध्या के चेहरे के पास लाया। संध्या की आँखें नीलम के होंठो पर लगी हुई थीं। संध्या ने कभी नहीं सोचा था की उसके साथ ऐसा भी कुछ होगा। क्या उसकी ही अपनी, छोटी बहन उसकी तरफ यौन आकर्षण रखती है! ऐसा नहीं है की उसको बुरा लग रहा हो... शादी के बाद के कई अनुभवों के बाद उसकी खुद की अनगिनत वर्जनाएँ समाप्त हो गई थीं, लेकिन फिर भी, यह सब कुछ बहुत ही अलग था.. अनोखा! अनोखा, और बहुत ही रोचक। नीलम ने झुक कर अपने होंठ संध्या के होंठो से सटा दिए...
“ओह! कितने सॉफ्ट हैं!” एक छोटा सा चुम्बन ले कर उसने कहा।
नीलम संध्या के होंठों पर बहुत ही हलके हलके कई सारे चुम्बन दे रही थी। दे रही थी, या ले रही थी? जो भी है! जब उसने देखा की संध्या उसकी इस हरकत का कोई बुरा नहीं मान रही है, और साथ ही साथ उसकी इस हरकत के प्रतिउत्तर में वो खुद भी वापस चुम्बन दे रही है, तो उसने कुछ नया करने का सोचा। उसने चुम्बन में कुछ तेज़ी और जोश लाई, और साथ ही संध्या को अपने आलिंगन में बांध लिया। कुछ तो हुआ दोनों के बीच – दोनों लड़कियाँ अब पूरी तन्मयता के साथ एक दूसरे का चुम्बन ले रही थीं। संध्या ने भी अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए नीलम के दोनों गाल अपने हाथों से थोड़ा दबा दिए, जिसके कारण नीलम का मुँह खुल गया। और इसी क्षण संध्या ने अपनी जीभ नीलम के मुँह के अन्दर डाल कर चूसना शुरू कर दिया।
उधर, नीलम संध्या की शर्ट के ऊपर से उसके स्तनों को बारी बारी छूने लगी। संध्या के लिए यह कोई नई बात तो नहीं थी, लेकिन फिर भी सुने आँख खोल कर देखा - नीलम तो अपनी आँखें बंद किये इस काम में पूरी तरह मगन थी। एक सहज प्रतिक्रिया में संध्या ने पुनः अपने स्तन को आगे की ओर ठेल दिया, जिसके कारण उसके स्तन नीलम के हाथ में आ गए। नीलम ने तुरंत ही खुश होकर उसके स्तन को मसलना चालू कर दिया।
चुम्बन की प्रबलता अब तीव्र हो चली थी और दोनों लड़कियों की साँसे भी। नीलम के दोनों हाथ अब संध्या के शर्ट के अन्दर जा कर उसके स्तनों का मर्दन कर रहे थे। संध्या के निप्पल गर्भावस्था की संवेदनशीलता के कारण उसके मर्दन से असहज महसूस कर रहे थे। लेकिन वो नीलम का मन रखना चाहती थी।
संध्या ने नीलम को अपने से कुछ दूर किया, और फिर अपनी शर्ट के बटन खोल कर उसके पट खोल दिए। वो शर्ट को उतार पाती, उससे पहले ही नीलम वापस उससे जा चिपकी और उसको पुनः चूमने लग गई। संध्या के स्वतंत्र स्तनों को वो बारी बारी से अपने मुंह में भर कर चूसना आरम्भ कर दिया। पहले के मर्दन के कारण उसके निप्पल पहले ही कड़े हो गए थे, और अब इस चूषण के बाद वो और भी कड़े हो गए।
“मैं भी लकी हूँ! ... उह्म्म्म उह्म्म्म (चूसते हुए) ओह दीदी..! आप प्लीज मुझको भी इनसे दूध पिलाना! आह! इतने सुन्दर हैं!” इतना कह कर वह पुनः चूसने में लग गई।
“हा हा! ये लो... अब एक और दावेदार आ गई! गाँव बसा नहीं, और लुटेरे आ गए!”
नीलम ने उसकी बात को जैसे अनसुना कर दिया। उसके हाथ संध्या के सारे शरीर पर चलने फिरने लगे। कभी वो उसके स्तन दबाती, तो कभी उसके नितम्ब, तो कभी उसकी पीठ! आगे वो उसकी स्कर्ट को नीचे की तरफ सरकाने लगी।
“अरे! ये क्या कर रही है? मुझे पूरा नंगा करने का मूड है क्या?” संध्या ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"हाँ! मैं तुमको पूरा नंगा भी देखूँगी, और आपके साथ वह सब करूंगी जो जीजू करते हैं।“ कहते हुए नीलम संध्या की स्कर्ट और चड्ढी दोनों एक साथ ही नीचे सरकाने लगी।
“नहीं नीलू.. ऐसे मत कर.. बस, इनको पीने की इजाज़त है.. ये तेरे जीजू के लिए है!”
संध्या नीलम के सामने नग्न पड़ी हुई थी, और अपने शरीर का कोई हिस्सा छुपाने का यत्न नहीं कर रही थी। कदाचित, वह यह चाहती थी की नीलम उसकी सुन्दरता के रसभरे दृश्य से सराबोर हो जाए। लेकिन, नीलम को बस इतनी ही अनुमति थी। उसने एकदम आसक्त हो कर अपनी तर्जनी को संध्या की सूजी हुई योनि की दरार पर फिराया और फिर बहुत ही अनिच्छा से अपना हाथ वापस खींच लिया। संध्या मुस्कुराई।
नीलम ने वापस आकर संध्या के स्तनों पर अपना मोर्चा सम्हाला, और पुनः उनको चूसना शुरू कर दिया।
कुछ देर चूसने के बाद,
“अरे दीदी! ये क्या..?”
***********************************************
Last edited: