कुंदन अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहा था की अंजू के बारे में उसके किसी पडोसी को न पता चले। इसलिए उसने अंजू को जैसी जैसी हिदायदें दी थीं, उनको सुन कर वो खुद भी अचरज में पड़ गई। वो अगर इस घर की मालकिन थी, तो क्यों नही वो छत पर जा सकती थी? क्यों नहीं वो अपने कपड़े धूप में सुखा सकती थी? क्यों नहीं वो घर में बिना खट-पट के रह सकती थी.. इत्यादि! और सबसे बड़ी बात की कुंदन घर के बाहर ताला लगा कर क्यों जाय? अगर उसको घर से बाहर निकलने की ज़रुरत पड़ी तो? लेकिन उसको कोई उत्तर नहीं मिला। अंजू ने भी कोई अधिक प्रतिवाद नहीं किया – कुछ तो सोचा होगा कुंदन ने!
नहा धो कर उसने नाश्ता किया, और फिर दवाई खाई। अकेले बंद घर में वो क्या करती भला? जल्दी ही वो फिर से सो गई। उसको गहरी नींद आई, या उथली यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन उसको अत्यंत सजीव से सपने आये। और उन सपनो ने फिर से वही पुरुष विभिन्न अवस्थाओ में दिखा – कभी उसको अपनी गोद में बैठाए, कभी सूट पहने, कभी कार चलाते, कभी नग्न, और कभी उसके साथ रमण करते!
“रूद्र?” अंजू ने ऊंची आवाज़ में कहा, और नींद से जाग उठी। उसका शरीर पसीने पसीने हो गया था, और एक कम्पन भी हो रहा था।
‘क्या नाम था उसका?’ अंजू को वापस याद नहीं आया।
कुछ देर में उसको घर के दरवाज़े पर आहट हुई। कुंदन वापस आ गया था, और घर का दरवाज़ा खोल रहा था। अंजू ने घड़ी पर नज़र डाली – शाम के चार बज रहे थे।
अन्दर आते हुए उसने बहुत सावधानीपूर्वक दरवाज़ा वापस बंद किया और फिर अंजू को अपनी बाहों में भर लिया। ऐसा करते ही अंजू उसके आलिंगन में सिमट गई – उधर कुंदन अंजू के गालो, होंठ और माथे पर अपने चुम्बन की छाप लगाने लगा। कुंदन शायद दिन भर इसी क्षण के सपने संजो रहा था। उस पर इस समय वासना का तूफ़ान परवान चढ़ रहा था –उसके हाथ अंजू के शरीर की टोह लेने में व्यस्त थे – वो कभी अंजू के स्तनों को मसलता, तो कभी उसके नितम्बों को! अंत में उसके हाथ अंजू के चूतड़ों पर जम गए।
“अंजू रानी! आज मैं रुक नहीं पाऊँगा! आज मुझे तेरे अन्दर जाना ही है..” चुम्बनों के बीच में कुंदन ने अंजू को अपने इरादों से अवगत कराया।
उसकी बात पर अंजू ने एक पल को सोचा, और फिर कुंदन के एक हाथ को अपने एक स्तन पर रख दिया। जोश में आ कर कुंदन अंजू को फिर से चूमने लगा। अंजू ने आज शलवार कुरता पहना हुआ था। उसने जल्दी ही अंजू का कुरता उतार दिया – उसने अन्दर कुछ नहीं पहना हुआ था। फिर उसने अंजू के शलवार का नाड़ा भी ढीला कर दिया।
शलवार उसके कूल्हों से सरक कर नीचे गिर गया।
उसका ऐसा नज़ारा देख कर कुंदन काफी आवेश में आ गया। आज दूकान पर जाते ही उसने किसी से अव्वल गुणवत्ता का शिलाजीत खरीद कर उसका सेवन किया था। अब उसका प्रभाव हो, या न हो, लेकिन इस समय कुंदन को विश्वास भी था, और आत्म-विश्वास भी। लिहाजा, उसका अब तक का प्रदर्शन, उसके लिए अत्यंत संतोषजनक था। अंजू ने चड्ढी पहन रखी थी – गुलाबी चड्ढी पहने हुए, और अन्यत्र पूर्ण नग्न अंजू का रूप बहुत सुहाना लग रहा था। वो सचमुच काम की देवी लग रही थी। उससे रहा नहीं जा रहा था – आज तो बस कर ही डालना है!
आत्मविश्वास से लबरेज़, उसने अंजू के नितम्बों को दबाना, कुचलना शुरू कर दिया। उसके साथ ही उसकी चड्ढी भी नीचे की तरफ सरकानी शुरू कर दी। अंजू समझ गई की कुंदन आज रुक नहीं सकता। किसी का कोई डर तो था नहीं! वो थोड़ा सा कसमसाई, लेकिन अपनी हर हरकत के साथ वो बस कुंदन की बाहों में और समाती गई। वैसे, अंजू को भी अच्छा लग रहा था – पति का संसर्ग तो सबसे सुखद होता है। और वैसे भी अपनी याद में प्रेमालाप का उसका यह पहला अनुभव था।
कुछ ही देर में अंजू पूरी तरह से नंगी हो गई, और कुंदन उसको अपनी गोद में उठा कर बिस्तर तक ले गया। बिस्तर पर लिटा कर उसने अंजू की टाँगें मोड़ कर, उसके घुटने उसके सीने से लगा दिए। इस अवस्था में अंजू की योनि की दोनों फांकें पूरी तरह से खुल गईं, और उनके बीच में से योनि का गुलाबी हिस्सा झाँकने लगा। अंजू को अपने गुप्तांगों का ऐसा निर्लज्ज प्रदर्शन होते देख कर शर्म भी बहुत आई और रोमांच भी! उसकी अवस्था ऐसी थी की कुंदन उसकी योनि के पूरा भूगोल, और यहाँ तक कि उसकी गुदा को भी खूब अच्छी तरह से देख सकता था।
अंजू की रस से भरी, गुलाबी योनि देख कर कुंदन के मुँह में पानी आ गया। उसने बस स्टेशन पर बिकती सस्ती काम-प्रसंगों से भरी पुस्तिकाओं में पढ़ा था की अगर स्त्री की योनि को पुरुष मुख से चाटे, तो उसको बहुत आनंद आता है। लिहाजा, उसने यह काम भी आजमाने का सोचा। अंजू की टाँगों को वैसे ही मोड हुए, उसने झुक कर उसकी योनि की दरार पर जीभ फिराई। वहां से मूत्र की हलकी सी गंध आ रही थी – कुंदन का मन जुगुप्सा से भर गया, लेकिन फिर भी उसने मैदान नहीं छोड़ा। जब ओखली में सर डाल दिया है, तो मूसल से क्या डरना?
दो तीन बार जीभ फिराने के बाद, कुंदन सहज हो गया और तबियत से अंजू की योनि चाटने लगा। उसको योनि की संरचना का कोई ख़ास ज्ञान नहीं था – उसको नहीं मालूम था की बस थोड़ा ऊपर चाटने से उसकी ‘प्रेमिका’ ऐसी पागल हो जायेगी की उसने नाम की माला अपने उम्र भर जप्ती रहेगी। खैर, इस समय वो जो कुछ कर रहा था, वही अंजू के लिए काफी भारी होता जा रहा था। दोनों के सम्भोग का पहला स्खलन अंजू को बुरी तरह कम्पित कर गया।
“ओह कुंदन..” अंजू ने बस इतना ही कहा, लेकिन इतनी कामुक तरीके से कहा की कुंदन का स्खलन होते होते बचा।
अंजू कोई दो मिनट तक कांपती रही, तब जा कर वो कुछ संयत हुई। इतनी देर तक वो बस आँखें बंद किये आनंद ले रही थी। जब उसकी आँख खुली, तब उसने अपनी ही तरफ देखते कुंदन को देखा। वो मुस्कुरा रहा था। पहला किला फतह!! अंजू उसको देख कर लज्जा से मुस्कुराई। इस बीच में वो कब निर्वस्त्र हो गया, अंजू को अंदाजा नहीं हुआ।
“रानी – अब मेरी बारी!”
कह कर उसने अपने तने हुए लिंग का सर, उसकी योनि के खुले हुए होंठों के बीच लगा दिया। अब यह शिलाजीत का प्रभाव हो, या फिर कुंदन के आत्म-विश्वास का, इस समय उसके लिंग में अतिरिक्त तनाव बना हुआ था, इसलिए खुद कुंदन को भी अपना आकार और तनाव काफी प्रभावशाली लग रहा था।
कुंदन अनुभवहीन था, यह साफ़ दिख रहा था। किसी लड़की से सम्भोग का यह पहला अवसर था। उसको लगता था की योनि पर लिंग टिका कर बस धक्का लगा देने से काम हो जाएगा। उसने वैसा ही किया – लेकिन बार बार उसका लिंग फिसल जा रहा था। अंत में अंजू ने ही उसकी मदद करी – उसने अपनी योनि के होंठों को उँगलियों की सहायता से हल्का सा फैलाया, और अपने हाथ से पकड़ कर कुंदन के लिंग को प्रवेश कराने में मदद करी। उसका लिंग गर्म था, और साफ़ लग रहा था की बेहद उतावला हो रहा था। चाहे कुछ भी हो – हर स्त्री अपने प्रेमी को – वो चाहे पति के रूप में हो, या सिर्फ प्रेमी के रूप में – अपने लिए ऐसे उतावला होते देख कर ख़ुशी से फूली नहीं समाएगी।
उसने कुंदन के लिंगमुख को अपनी योनि के द्वार पर टिका दिया, और मन ही मन भगवान् का नाम लिया। कुंदन ने रास्ता साफ़ देख कर एक जोरदार झटका दिया – उसका सारा का सारा लिंग एक ही बार में उसकी योनि के भीतर समा गया।
अब भले ही उसका लिंग काफी पतला सा रहा हो, लेकिन अंजू के लिए इतने अरसे के बाद यह पहला सम्भोग था। अपनी गहराई में उस गरमागरम लिंग को उतरते हुए महसूस कर के अंजू की आह निकल गई।
“ऊह्ह्ह! अह्ह… उईई … आआआअ… ऊऊऊ… उह… ओह्ह…” हर धक्के के साथ अंजू नए प्रकार की आवाज़ निकालती जा रही थी। उसको शर्म तो बहुत आ रही थी, लेकिन फिर भी कामुक उन्माद के सम्मुख वो नतमस्तक थी।
ख़ुशी से उछल पड़ी वह, और फिर जोरों से धक्के मार-मार कर किलकारियां भरने लगी।
उधर कुंदन भी स्वयं के भीतर एक नए प्रकार का जीव उत्पन्न होता महसूस कर रहा था – इतना देर तो वो हस्त मैथुन करते हुए भी नहीं टिक पाता। वो इसी ख़ुशी में पूरे जोश के साथ धक्के लगा रहा था। बीच बीच में वो अंजू के होंठों को चूमता, तो कभी चूचकों का रस पीता। अंजू भी खुल कर अपने प्रथम सम्भोग का आनंद उठा रही थी – उसकी योनि बहुत गीली हो गई थी, और वो खुद भी अपने चूतड़ उचका उचका कर सम्भोग में सहयोग दे रही थी।
अंततः कुंदन ने पूरी ताकत से एक ज़ोर का धक्का लगाया। आखिरी।
“आआआआआआह्ह…”
और इसी धक्के के साथ कुंदन ने अपना पूरा वीर्य अंजू की चूत में खाली कर दिया और उसी अवस्था में अंजू के ऊपर ही पस्त होकर गिर गया।
“अंजू अंजू! मेरी प्यारी! …आई लव यू… तू मेरी जान है! जान!”
जवाब में अंजू मुस्कुरा दी, और कुंदन के माथे पर चुम्बन दे कर उसने आँखें बंद कर लीं।