दिन बड़े प्यार से गुजरे, लखनऊ में मुझे ऑफिस के लिए जगह मिल गई, घर भी ढूँढ लिया था अब बस शिफ्टिंग का काम रह गया था| इसलिए अब हमें बैंगलोर वापस आना था ताकि शिफ्टिंग शुरू की जा सके| सारा स्टाफ जॉब छोड़ चूका था और ऑफिस अब खाली था| सबसे विदा ले कर हम निकलने लगे तो भाभी ने अनु को अपने गले लगाया और कहा; "जल्दी आना...और अपना ध्यान रखना" और फिर मेरे कान पकड़ते हुए बोलीं; "पिछली बार इसे तेरी जिम्मेदारी दी थी और इस बार तुझे दे रही हूँ! अगर इसका ख्याल नहीं रखा तो तेरी पिटाई पक्की है!" ये सुन कर सब हँस पड़े| माँ और ताई जी ने भी भाभी को खुली छूट दे दी की वो चाहे तो मार-मार के मेरा भूत बना दें और इसका सारा मजा अनु ने लिया| रास्ते भर वो मुझे डराती रही की मैं अभी भाभी को फ़ोन कर देती हूँ!
खेर हम बैंगलोर पहुँचे और मैंने ऑफिस का सारा सामान पैक करवा कर फिलहाल के लिए घर शिफ्ट करवाया और ऑफिस खाली कर दिया जिससे एक महीना का रेंट बच गया| मैंने Packers and movers से बात करनी शुरू की और इधर अनु ने लिस्ट बनानी शुरू कर दी की कौन-कौन सा सामान उसे लखनऊ भेजना है और कौन सा यहीं बेच देना है| ऑफिस का काम सर पर पड़ा था जिसे मैंने अरुण-सिद्धार्थ को दे दिया पर US वाला प्रोजेक्ट मेरे सर पर तलवार की तरह लटक रहा था, अनु चाह कर भी मेरी उसमें मदद नहीं कर पा रही थी| हफ्ता बीता होगा की अनु का जन्मदिन आ गया, पूरा घर सामान से भरा पड़ा था और ऐसे में हम कोई पार्टी नहीं कर सकते थे, ऊपर से बैंगलोर आने के बाद मैंने अनु को जरा सा भी टाइम नहीं दिया था जिसकी उसने कोई शिकायत नहीं की थी| अब चूँकि उसका बर्थडे था तो मुझे आज का दिन उसके लिए स्पेशल बनाना था| रात को 12 बजे मैंने अनु को उठा कर बर्थडे wish किया और फिर हमने केक काटा| अब हम सेक्स तो कर नहीं सकते थे क्योंकि अनु का अब चौथा महीना चल रहा था, इसलिए वो रात हम बस एक दूसरे की बाहों में सिमटे हुए काटी| अगली सुबह अनु को मैंने कॉफ़ी दी और उसे बिस्तर से उठने से मना कर दिया, वो पूरा दिन मैंने घर का सारा काम किया| सुबह से ही उसे सब के फ़ोन आने लगे और सब ने उसे बहुत आशीर्वाद और प्यार दिया| दोपहर का खाना भी मैंने बनाया जो की अनु को बहुत पसंद था| "माँ के बाद अगर मुझे किसी के हाथ का खाना पसंद है तो वो है आपके हाथ का खाना|" अनु बोली| रात को मैंने अनु की स्पेशल दाल मखनी बनाई और उसके साथ गर्म-गर्म फुल्के बनाये| अनु का मन किया और उसने कबर्ड से वाइन निकाल ली, वो उसे गिलास में डाल ही रही थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और प्यार से कहा; "बेबी...no drinking during pregnancy!" ये सुनते ही अनु को याद आया और उसने एकदम से अपने कान पकडे; "सॉरी! शोना!!! मैं भूल गई थी!" अनु बोली और एकदम से भावुक हो गई| मैंने उसे अपने गले लगाया और उसके सर को चूमते हुए बोला; "बेबी its okay!" ये सुनते ही वो एकदम से चुप हो गई और कुछ देर बाद मुस्कुराने लगी| उस दिन से अनु के mood swings बहुत ज्यादा common हो गए| कभी-कभी वो इतने जोश में होती की पैकिंग करने लगती और फिर थोड़ी देर बाद भावुक हो कर मुँह फुला कर बैठ जाती| जैसे ही उसका मुँह बनता वो मेरे पास आती, लैपटॉप उठा कर दूर रखती और मेरी गोद में बैठ जाती| "मेला बेबी sad है!" मैं अनु को थोड़ा प्यार से pamper करता और कुछ ही देर में वो नार्मल हो जाती और मेरी गर्दन पर Kiss करने लगती| कभी तो कभी बच्चों की तरह अपने baby bump पर हाथ रख कर देखती और आईने के सामने जा कर कहती; "मैं मोटी हो गई हूँ ना?" मैं उसकी इस बात पर इतना हँसता की मेरे पेट में दर्द होने लगता| कभी वो कहती; "प्रेगनेंसी 9 महीने की क्यों होती है?" तो कभी-कभी वो तकिये को गोद में ले कर बेबी को पकड़ने की practice करने लगती| उसका ये भोलापन देख कर मैं उसे हमेशा अपनी बाहों में भर लेता| ऐसे करते-करते जनवरी आ गया, US का एक प्रोजेक्ट पूरा हो गया था और उसकी पेमेंट आने वाली थी|
इधर रितिका ने अपने सारे मोहरे बिछा दिए थे, प्लान सेट था अब बस देरी थी तो मानु के उसमें फँसने की| राजनीति में उसके पाँव पसारने से अच्छे-बुरे लोगों से उसका वास्ता पड़ने लगा था| पार्टी ने सोचा था की वो रितिका को मंत्री की बहु के रूप में project करेगी, ऐसी बहु जिसने सब कुछ खो दिया हो और इसी को वो इस्तेमाल करना चाहते थे| लोगों की सहानुभूति जीतना रितिका ने शुरू कर दिया था, छोटी-छोटी रैलियों में रितिका जाती और अपना दुखी चेहरा दिखा कर लोगों का दिल जीत लेती| ऐसा नहीं था की उसके बदले की आग शांत हो चुकी थी, बल्कि वो तो सही मौके का इंतजार कर रही थी| गाँव में वो कुछ भी नहीं कर सकती थी क्योंकि उससे ना केवल उसे जेल जाने का खतरा था बल्कि उसकी पार्टी को भी अपने नाम पर कीचड़ उछलने का खतरा पैदा हो जाता| पर बैंगलोर में वो मानु और अनु पर हमला करवा सकती थी, उसने दो गुंडों को बैंगलोर में मुझ पर नजर रखने को भेजा| मेरा एड्रेस तो वो आहूत पहले ही अनु के जरिये सुन चुकी थी| कुछ ही दिनों में रितिका को पता चल गया की मैं कब घर आता हूँ और कब बाहर जाता हूँ|
मैंने पैकर्स एंड मूवर्स से बात पक्की कर ली थी और एक दिन पहले ही उन्होंने सारा समान लोड कर लिया था| आज मुझे उन्हें पेमेंट करने जाना था साथ अनु ने कार्टन और पैक किये थे जो मुझे ड्राइवर को सौंपने थे| मालिक ने मुझे सुबह जल्दी बुलाया ताकि ड्राइवर समय से समान ले कर निकल सके| सुबह 7 बजे मैं तैयार हो कर निकलने लगा तो अनु जिद्द करने लगी की उसे कुछ फ्रूट्स लेने हैं तो वो भी मेरे साथ नीचे चलेगी| इसलिए मैं उसे ले कर नीचे आया और कार्टन कैब में डालकर पहले उसे फ्रूट्स खरीदवाए और फिर उसे वापस बिल्डिंग के parking lot तक छोड़ मैं कैब में बैठ कर निकला" 100 मीटर जाते ही मुझे याद आया की मैं पैसों का पैकेट लेना भूल गया तो मैंने कैब वापस घर की तरफ मुड़वाई| कैब अभी गेट पर ही पहुँची ही थी की आगे का नजारा देख मेरी हालत खराब हो गई| पार्किंग लोट में दो आदमी थे, एक ने वॉचमन को चाक़ू की नोक पर डरा कर चुप करा रखा था और दूसरे ने अनु की गर्दन पर चाक़ू लगा रखा था| अनु एक पिलर के सहारे खड़ी थी और उस आदमी से मिन्नत कर रही थी की वो उसे छोड़ दे! चूँकि आज संडे का दिन था और ज्यादा तर लोग अभी बाहर नहीं आये थे इसलिए नीचे कोई नहीं था| मैंने टैक्सी वाले को कहा की वो जल्दी से पुलिस को फ़ोन लगाए और बुलाये| मैं धीरे से उतरा और दबे पाँव आगे बढ़ा, मेरा कुछ भी आवाज करना अनु के लिए खतरनाक साबित होता| दोनों आदमियों की पीठ जिस तरफ थी मैं घूम कर उसी तरफ से पहुँचा, रास्ते में मैंने एक बड़ा पत्थर का टुकड़ा उठा लिया| वॉचमन ने मुझे देख लिया और उसने एक आदमी का ध्यान अपने रोने-धोने से भटकाया, मैं एक दम से उस आदमी के पीछे खड़ा हो गया जिसने अनु की गर्दन पर चाक़ू लगा रखा था| वो अनु को गन्दी-गन्दी गालियाँ दे रहा था और किसी 'मेमसाहब' का नाम बड़बड़ा रहा था| मैंने उसके दाहिने कंधे पर अपने बाएं हाथ से थपथपाया तो वो एकदम से पलटा, मैंने अपने दाहिने हाथ में पकड़ा पट्ठा से उसके सर पर एक जोरदार हमला किया और वो चिल्लाते हुए नीचे जा गिरा| उसकी चिल्लाने की आवाज सुन दूसरा आदमी मेरी तरफ तेजी से दौड़ा, मैंने वो पत्थर खींच कर उसके मुँह पर मारा| वो पत्थर जा कर उसकी नाके बीचों-बीच लगा और वो भी चिलाते हुए नीचे गिरा| "अनु ऊपर जाओ और दरवाजा लॉक करो!" मैंने अनु से कहा पर वो घबराई हुई बस वहीँ जम कर खड़ी हो गई, मैं उसकी तरफ बढ़ा और उसे झिंझोड़ कर उसे होश में लाया और उसे घर जाने को कहा| अनु ऊपर गई और मैं नीचे पड़े आदमी की छाती पर बैठ गए और मुँह पर मुक्के मार कर उससे पूछने लगा; "बोल बहनचोद किस ने भेजा था तुझे? बोल वर्ण आज तेरी जान ले लूँगा!" मैंने उसके मुँह पर जगहसे मारने चालु कर दिए इतने में वो टैक्सी ड्राइवर भाग कर वॉचमन के पास आ गया जो अपने डंडे से दूसरे आदमी को (जिसे मैंने पत्थर फेंक कर मारा था|) पीट रहा था| शोर मच गया था और लोग इकठ्ठा होने लगे थे, इधर मेरी पिटाई और पत्थर से लगी चोट के कारन पहला आदमी बोल उठा; "री...रितिका मेमसाब!" मेरा इतना सुनना था की मेरा गुस्सा फुट पड़ा, मैंने उसे और पीटना शरू कर दिया, उसकी गर्दन अपने दोनों हाथ से पकड़ ली और दबाने लगा| कुछ पड़ोसियों ने मुझे पकड़ कर पीछे खींचा जिससे वो मरने से बच गया| इतने में पुलिस अपना साइरेन बजाती हुई आ गई और फटाफट दोनों आदमियों को हिरासत में लिया| "तुम्हें तो चोट लगी है!!" पुलिस इंस्पेक्टर बोला तब जा कर मेरा ध्यान अपनी शर्ट पर गया जहाँ चाक़ू से घाव हो गया था| जब मैंने पहले आदमी के कंधे पर थपथपाया था तो वो थोड़ा हड़बड़ा दिया था और मेरी तरफ घुमते हुए उसने मेरे सीने को अपने चाक़ू से जख्मी कर दिया था| जख्म ज्यादा खतरनाक नहीं था, बस उससे मेरी कमीज फ़ट गई थी और कुछ खून की बूँदें मेरी शर्ट पर दिख रही थी| हमारी बिल्डिंग में ही एक डॉक्टर शाब थे जिन्होंने मेरा First aid कर दिया| "तुम्हें पता है ये कौन लोग हैं?" इंस्पेक्टर ने मुझसे पुछा तो मैंने बस ना में गर्दन हिला दी और मैं वहां से निकल कर फ़ौरन अनु के पास ऊपर आ गया| "अनु दरवाजा खोलो...मैं हूँ!" मेरी आवाज सुनते ही उसने दरवाजा खोला और रोती हुई मुझसे लिपट गई| पीछे से इंस्पेक्टर भी आ गया, मैंने अनु को आराम से बिठाया और उसे पानी पीला कर शांत करवाया| उसने जैसे ही मेरी शर्ट पर खून देखा तो वो और भी डर गई, मैंने उसे विश्वास दिलाया की मुझे कुछ नहीं हुआ| उसके बाद इंस्पेक्टर ने हम से सारा वाक़्या पुछा| अनु इतनी घबराई हुई थी की उससे कुछ बोला ही नहीं जा रहा था और वो बस मेरे कंधे पर सर रख कर रोये जा रही थी| मैंने इंस्पेक्टर को अपनी साइड की सारी कहानी बता दी| पर उसे अनु की साइड की भी कहानी सुननी थी पर अनु अभी ब्यान देने की हालत में नहीं थी| इतने में वही डॉक्टर मियां-बीवी आ गए और इंस्पेक्टर को समझाते हुए बोले; "इंस्पेक्टर आप देख सकते हो she's in shock! Give her some time!" चूँकि अनु प्रेग्नेंट थी इसलिए वो उससे ज्यादा पूछताछ नहीं कर सकता था| "अनु...देखो मैं हूँ यहाँ आपके पास! You're safe now! Relax ... okay!!!!" बड़ी मुश्किल से मैंने अनु को शांत किया और उसके सर पर हाथ फेरता रहा ताकि वो दुबारा से शॉक में न चली जाए| पड़ोसियों का ताँता लग चूका था और सभी हैरान थे की भला हम दोनों ने किसी का क्या बिगाड़ा हो सकता है| कोई कहता की ये professional rivalry है तो कोई कहता की चोर चोरी करने आये थे! मैं जानबूझ कर चुप था क्योंकि मेरे मन में अब बदले का ज्वालामुखी फुट चूका था! अब इस लावा से मैं रितिका को खुद जला कर राख करने वाला था| पर मैं जोश में होश खोने वालों में से नहीं था, मुझे मेरा बदला पूरी प्लानिंग से लेना था| अभी मुझे पहले अपनी बीवी को संभालना था, करीब घंटे बाद अनु स्टेबल हुई और मैंने इंस्पेक्टर को उसका ब्यान लेने को बुलाया; "मैं फ्रूट्स ले कर ऊपर आ रही थी की दो लोगों ने मेरा रास्ता रोक लिया, और दोनों मुझ पर चिल्लाते हुए बोले की वो मेरा खून करने आये हैं! ये शोर सुन वॉचमन भैया आ गए तो उनमें से एक ने चाक़ू निकाला और वॉचमन भैया को उससे डरा कर दूर ले गया| बस एक आदमी था जो मुझे गालियाँ दे रहा था और कह रहा था की 'मेमसाहब ने कहा है की पहले तेरा बलात्कार करें और फिर तुझे तड़पा-तड़पा कर मरेंगे!'" ये बोलते-बोलते अनु फिर से रो पड़ी, मैंने उसे संभाला और उसने आगे की बात रोते हुए कही; "वो बड़े गंदे-गंदे शब्द बोल रहा था और मुझे छूने की कोशिश कर रहा था, मैं हरबार उसका हाथ झटक देती और उसे खुद को छूने नहीं देती| गुस्से में आ कर उसने चाक़ू निकाला और मेरी गर्दन पर लगा दिया और फिर से गालियाँ देने लगा| तभी मेरे पति आ गए और उन्होंने उसपर हमला कर दिया|" अनु की बात सुन कर मेरा खून खौल रहा था और आँखें गुस्से से लाल हो गईं थी| अनु ने जब मेरी आँखें देखि तो वो डर गई और फिर से रोने लगी| मैंने उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके सर को सहलाने लगा| मैं चाहता तो इंस्पेक्टर को बता सकता था की ये सब किस की करनी है पर जो इंसान अनु और मुझ पर इस कदर हमला करवा सकता है उसे कानून को चकमा देना कितना आसान हो गए ये मैं जानता था| इंस्पेक्टर ने मेरी बहादुरी की तारीफ की और साथ ही उसने उस ड्राइवर और वॉचमन की हिम्मत को सराहया| मेरे पास पैकर्स एंड मोवेर्स वाले का फ़ोन आया तो मैंने उसे घर बुला लिया और उसे कहा की घर पर कुछ प्रॉब्लम आ गई है तो वो किसी को भेज दे और मैं उसी को पैसे दे दूँगा| मेरी गंभीर आवाज सुन वो समझ गया की कुछ हुआ है और खुद ही आ गया| मैंने उसे पैसे और वो दोनों cartons दे दिए|
इधर धीरे-धीरे कर सब चले गए और अब घर में सिर्फ मैं और अनु ही रह गए थे| मैंने अनु को सहारा दे कर उठाया और अपने कमरे में लाया, अभी तक मैंने इस घटना की खबर किसी को नहीं दी थी| अनु को बिस्तर पर बिठाया और मैं उसी के साथ बैठ गया, "बेबी भूख लगी है? कुछ बनाऊँ?" अनु ने ना में गर्दन हिलाई और अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया| "बेबी अपने लिए नहीं तो हमारे बच्चे के लिए खा लो!" मैंने अनु को हमारे होने वाले बच्चे का वास्ता दिया तो वो मान गई| मैं उसे कमरे में छोड़ जाने लगा तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया; "बाहर से मंगा लो!" मैंने खाना बाहर से मंगाया और मैं खुद अनु के साथ बैठ गया| अनु मेरे कंधे पर सर रख बैठी रही और उसकी आँख लग गई, कुछ देर बाद जब बेल्ल बजी तो वो एकदम से डर गई; "बेबी खाना आ गया!" मैंने अनु को विश्वास दिलाया की उसे डरने की कोई जर्रूरत नहीं| खाना परोस कर मैं अनु के पास आया और उसे खुद अपने हाथ से खिलाया, अनु ने भी मुझे अपने हाथ से खिलाया| खाना खा कर मैंने अनु को लिटा दिया और मैं भी उसकी बगल में ले गया| अनु ने मेरा बायाँ हाथ उठा कर अपनी छाती पर रख लिया क्योंकि उसका डर अब भी खत्म नहीं हुआ था और मेरा हाथ उसकी छाती पर होने से उसे सुरक्षित महसूस हो रहा था| कुछ देर बाद अनु सो गई और सीधा शाम को उठी, मैं अब भी उसकी बगल में लेटा था और अपने बदले की प्लानिंग कर रहा था|
मैंने रात को अरुण को फ़ोन किया और उसे बताया की परसों सारा समान पहुंचेगा तो वो सब समान शिफ्ट करवा दे| मेरी गंभीर आवाज सुन वो भी सन्न था पर मैंने उसे कुछ नहीं बताया, बस ये कहा की अनु की तबियत ठीक नहीं है इसलिए थोड़ा परेशान हूँ! रात को जब मैं खाना बनाने लगा तो अनु मेरे सामने बैठ गई और मुझे गौर से देखने लगी, मैंने माहौल को हल्का करने के लिए उससे थोड़ा मज़ाक किया; "बेबी...ऐसे क्या देख रहे हो? मुझे शर्म आ रही है!" ये कहते हुए मैं ऐसे शरमाया जैसे मुझे सच में शर्म आ रही हो| अनु एकदम से हँस दी पर अगले ही पल उसे वो डरावना मंजर याद आया और उसकी आँखें फिर नम हो गईं| मैं रोती बनानाना छोड़ कर उसके पास आया और उसे अपने सीने से लगा लिया| "बस...बस! मेला बहादुर बेबी है ना?" मैं तुतलाते हुए कहा तो अनु ने अपने आँसूँ पोछे और फिर से मुझे गौर से देखने लगी| "Baby… I know its not easy for you to forget what happened today but please for the sake of our child try to forfet this horrific incident. Your seriousness, your fear is harmful for our kid!” मैंने अनु को एक बार फिर अपने होने वाले बच्चे का वास्ता दिया| अनु ने अपनी हिम्मत बटोरी और पूरी ताक़त लगा कर मुस्कुराई और बोली; "मुझे हलवा खाना है!" मैंने उसके मस्तक को चूमा और उसके लिए बढ़िया वाला हलवा बनाया| रात में हम दोनों ने एक दूसरे को खाना खिलाया और फिर दोनों लेट गए| अनु ने रात को मेरा हाथ फिर से अपनी छाती पर रख लिया, कुछ देर बाद उसने बायीं करवट ली जो मेरी तरफ थी और मेरा हाथ फिर से अपनी कमर पर रख लिया| मैंने अनु के मस्तक को चूमा तो वो धीरे से मुस्कुराई, उसकी मुस्कराहट देख मेरे दिल को सुकून मिला| सुबह जागते हुए ही निकली, मैंने अनु के लिए कॉफ़ी बनाई और उसे प्यार से उठाया| अनु ने आँखें तो खौल लीं पर वो फिर से कुछ सोचने लगी| मुझे उसे सोचने से रोकना था इसलिए मैंने झुक कर उसके गाल को चूम लिया, मेरे होठों के एहसास से अनु मुस्कुराई और फिर उठ कर बैठ गई| नाश्ता करने के बाद मैं अनु के पास ही बैठा था और उसका ध्यान अपनी इधर-उधर की बातों में लगा दिया| पर उसका दिमाग अब भी उन्हीं बातों को याद कर रहा था, कुछ सोचने के बाद वो बोली; "मेमसाब ...रितिका ही है ना?" अनु की बात सुन कर मैं एकदम से चुप हो गया| अनु ने फिर से अपनी बात दोहराई; "है ना?" मैंने ना में सर हिलाया तो उसने दूसरा सवाल पुछा; "तो फिर कौन है?"
"मुझे नहीं पता? शायद जैस्मिन (कुमार की गर्लफ्रेंड) हो?" मैंने बात बनाते हुए कहा|
"उसे हमारे घर का एड्रेस कैसे पता?" अनु ने तीसरा सवाल पुछा| "हमारे घर अक एड्रेस मैंने सिर्फ भाभी को बताया था और हो न हो रितिका ने सुन लिया होगा!" अनु बोली| ये सुनने के बाद मेरा गुस्सा बाहर आ ही गया;
"हाँ वो ज़लील औरत रितिका ही है और मैं उसे नहीं छोड़ूँगा!" मैंने गुस्से से कहा और अनु को सारा सच बता दिया जो मैंने उस आदमी से उगलवाया था|
"नहीं...आप ऐसा कुछ नहीं करोगे?" अनु ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा|
"तो हाथ पर हाथ रखा बैठा रहूँ? या फिर इंतजार करूँ की कब वो अगलीबार हमें नुक्सान पहुँचाने में कामयाब हो? ना तो मैं इस डर के साये में जी सकता हूँ ना ही अपने बच्चे को इस डर के साये में जीने दूँगा!" मैंने खड़े होते हुए कहा|
"आप ने ऐसा कुछ भी किया तो आप जानते हो उसका क्या नतीज़ा होगा? आपको जेल हो जाएगी, फिर मेरा क्या होगा और हमारे बच्चे का क्या होगा? आप पुलिस में कंप्लेंट कर दो वो अपने आप देख लेगी!" अनु बोली|
"आपको लगता है की पुलिस कंप्लेंट करने से सब सुलझ जायेगा? जो अपने गुंडे यहाँ भेज सकती है क्या वो खुद को बचाने के लिए पुलिस और कानून का इस्तेमाल नहीं कर सकती? इस समस्या का बस एक ही अंत है और वो है उसकी मौत!" मैंने कहा|
"फिर नेहा का क्या होगा? कम से कम उसका तो सोचो?" अनु बोली|
"उसे कुछ नहीं होगा, उल्टा रितिका के मरने के बाद हम उसे आसानी से गोद ले सकते हैं| हमें हमारी बेटी वापस मिल जाएगी!" मैंने कहा|
"और जब उसे पता लगेगा की उसकी माँ का खून आपने किया है तब?" अनु के ये आखरी सवाल ऐसा था जो मुझे बहुत चुभा था|
"जब वो सही और गलत समझने लायक बड़ी हो जाएगी तो मैं खुद उसे ये सब बता दूँगा और वो जो भी फैसला करेगी मैं वो सर झुका कर मान लूँगा|" मैंने बड़े इत्मीनान से जवाब दिया|
"ये पाप है...आप क्यों अपने हाथ उसके गंदे खून से रंगना चाहते हो! प्लीज मत करो ऐसा कुछ!....सब कुछ खत्म हो जायेगा!" अनु गिड़गिड़ाते हुए बोली| मैंने अनु को संभाला और उसकी आँखों में देखते हुए कहा;
"जब किसी इंसान के घर में कोई जंगली जानवर घुस जाता है तो वो ये नहीं देखता की वो जीव हत्या कर रहा है, उसका फ़र्ज़ सिर्फ अपने परिवार की रक्षा करना होता है| रितिका वो जानवर है और अगर मैंने उसे नहीं रोका तो कल को इससे भी बड़ा कदम उठाएगी और शायद वो अपने गंदे इरादों में कामयाब भी हो जाए| मैं तुम्हें नहीं खो सकता वरना मेरे पास जीने को रहेगा ही क्या? प्लीज मुझे मत रोको....मैं कुछ भी जोश में नहीं कर रहा ....सब कुछ planned है!" मैंने कहा और फिर अनु को सारा प्लान सुना दिया| Plan foolproof था, पर अनु का दिल अब भी इसकी गवाही नहीं दे रहा था| "अच्छा ठीक है...मैं अभी कुछ नहीं कर रहा... okay?" मैंने फिलहाल के लिए हार मानी पर अनु को संतुष्टि नहीं मिली थी; "Promise me, बिना मेरे पूछे आप कुछ नहीं करोगे?" अब मेरे पास सिवाय उसकी बात मानने के और कोई रास्ता नहीं था| इसलिए मैंने अनु से वादा कर दिया की बिना उसकी इज्जाजत के मैं कुछ नहीं करूँगा| मेरे लिए अभी अनु की ख़ुशी ज्यादा जर्रूरी थी, मेरी बात सुन अनु को अब पूर्ण विश्वास हो गया की मैं कुछ नहीं करूँगा| 20 जनवरी को हम ने बैंगलोर का घर खाली कर दिया और हम लखनऊ के लिए निकल गए| पहले अनु ने नया घर देखा और फिर नया ऑफिस, अनु बहुत खुश हुई, फिर हम गाँव लौट आये| यहाँ सब की मौजूदगी में अनु ज्यादा खुश रहने लगी| अनु ने मुझे साफ़ मना कर दिया की मैं उस घटना के बारे में किसी से कोई जिक्र न करूँ, इसलिए मैं चुप रहा|
इधर फरवरी का महीना शुरू हुआ और मैंने ऑफिस शुरू कर दिया, पूरा घर उस दिन पूजा में सम्मिलित हुआ| पूजा के बाद सब हमारे फ्लैट पर आये और वहाँ भी ग्रह-पूजन उसी दिन हुआ| सब को घर बहुत पसंद आया और हमें आशीर्वाद दे कर सभी लौट गए| बिज़नेस बड़े जोर-शोर से शुरू हुआ, अनु ने अभी ऑफिस ज्वाइन नहीं किया था क्योंकि मैं उसे स्ट्रेस नहीं देना चाहता था| सारे पुराने क्लाइंट्स अरुण-सिद्धार्थ हैंडल कर रहे थे और US का वो एक क्वार्टर का काम मैं अकेला देख रहा था| मैं अब अनु को ज्यादा से ज्यादा समय देता था, सुबह-शाम उसके साथ सोसाइटी के गार्डन में घूमता, हर इतवार उसे मंदिर ले जाता जहाँ पाठ हो रहा होता था ताकि होने वाले बच्चे में अच्छे गुण आयें| कुछ बदलाव जो मैं अनु में देख रहा था वो ये की उसका baby bump कुछ ज्यादा बड़ा था, उसका वजन कुछ ज्यादा बढ़ गया था| पर अनु कहती थी की मैं उसका इतना ख्याल रखता हूँ उसे इतना प्यार करता हूँ की उसका वजन बढ़ गया है| मैंने हँसते हुए उसकी बात मान ली, दिन बड़े प्यार भरे गुजरने लगे थे और बिज़नेस में अरुण और नए कोंट्राक्टे ले आया था| संडे को कभी कभार अरुण-सिद्धार्थ की बीवियाँ घर आतीं और जल्द ही तीनों की अच्छी दोस्ती हो गई| बैंगलोर वाले हादसे के बाद मैं अनु को कहीं भी अकेला नहीं जाने देता था, जब भी हम कभी बाहर निकलते तो साथ निकलते और दिन में निकलते| जितनी भी जर्रूरी precautions लेनी चाहिए वो सब मैं ले रहा था और मैंने इसकी जरा सी भी भनक अनु को नहीं लगने दी थी वरना वो भी डरी-डरी रहती| कुछ दिन बाद मुझे किसी काम से बरेली जाना पड़ा और वापस आते-आते रात हो गई| दस बज गए थे और इधर अनु बार-बार मुझे फ़ोन कर के मेरी लोकेशन पूछ रही थी| "बेबी...बस लखनऊ enter हुआ हूँ maximum पोना घंटा लगेगा|” पर अनु उधर बेचैन हो रही थी, मैं ड्राइव कर रहा था और फ़ोन लाउड स्पीकर पर था| मेरी गाडी एक चौराहे पर पहुँची जहाँ दो जीपें रास्ता रोके खड़ी थीं| मैंने गाडी रोक दी और अनु को होल्ड करने को कहा, दोनों जीपों के सामने 3 लोग खड़े थे| मैं गाडी से उतरा और उनसे बोला; "रास्ता क्यों रोक रखा है?" अभी इतना ही बोला था की किसी ने मेरे सर पर पीछे से जोरदार हमला किया| मैं चिल्लाता हुआ सर पकड़ कर गिर गया, "मेमसाब से पन्गा लेगा तू?" एक आदमी जोर से चिल्लाया और हॉकी मेरी पीठ पर मारी| उसके सारे साथियों ने हॉकी, बैट, डंडे निकाल लिए और मुझे उनसे पीटना शुरू कर दिया| मैं दर्द में पड़ा करहाता रहा और वो मुझे मारते रहे, तभी वहाँ से पुलिस की एक जीप पेट्रोलिंग के लिए निकली जिसे देख सारे भाग खड़े हुए, पर जाते-जाते भी उन्होंने गाडी की wind shield तोड़ दी थी! पुलिस वालों ने मुझे खून से लथपथ हालत में हॉस्पिटल पहुँचाया, गाडी से उन्हें जो फ़ोन मिला था उसे उन्होंने देखा तो अनु फ़ोन पर रोती हुई चीख रही थी; "प्लीज...छोड़ दो मेरे पति को!" शायद उसने मेरी दर्द भरी चीख सुन ली थी| पुलिस ने उसे भी अस्पताल बुला लिया, अनु ने फ़ौरन सब को खबर कर दी थी और देखते ही देखते हॉस्पिटल में मेरे दोस्त और मम्मी-डैडी आ गए| गाँव से चन्दर भैया, ताऊ जी, पिताजी और संकेत बाइक पर निकल चुके थे जो रात के 20 बजे हॉस्पिटल पहुँचे| डॉक्टर ने प्राथमिक उपचार शुरू किया, भगवान् का शुक्र था की पुलिस की पैट्रॉल जीप को देख कर सारे भाग खड़े हुए और उन्हें मुझे जान से मारने का मौका नहीं मिला| अनु मुझसे मिलने को आतुर थी पर मैं उस वक़्त होश में नहीं था| मुझे सुबह के 10 बजे होश आया, बड़ी मुश्किल से मैंने अपनी आँख खोली और सामने अनु को देखा जिसकी रो-रो कर हालत खराब हो गई थी| अनु एक दम से मेरे गले लग गई और फफक कर रो पड़ी| मेरे सर पर पट्टी थी, बायाँ हाथ पर hair line फ्रैक्चर और पीठ पर जो हमला हुआ था उससे मेरी रिड की हड्डी बस टूटने से बच गई थी| मैं और अनु दोनों ये जानते थे की ये किसकी करनी है पर दोंनो ही खामोश थे| तभी इंस्पेक्टर आया और बोला की वो लोग चोरी करने के इरादे से आये थे और हमला किया था| उनकी तलाश जारी है, ये सुनते ही अनु उस पर चीख पड़ी; "चोरी करने के लिए कौन जीप से आता है? देखा था न आप लोगों ने उन्हें जीप से भागते हुए? जानना चाहते हो न कौन हैं वो लोग तो नंबर लिखो और अगर है हिम्मत तो उन्हें पकड़ कर जेल में डालो!" माँ ने अनु को शांत करवाया पर अनु ने बैंगलोर में जो हुआ वो सब बता दिया और रितिका का नाम भी बता दिया| ये सब जानकार सब को बहुत धक्का लगा, पिताजी ने मेरे पर चिल्लाना शुरू कर दिया की मैंने उनसे इतनी बड़ी बात छुपाई| अनु बेचारी कुछ बोलने को हुई तो मैंने इसे आँखों से इशारा कर के चुप रहने को कहा| सब मुझे डांटते रहे और मैं सर झुकाये सब सुनता रहा| पर जो गुस्से का ज्वालामुखी मेरे अंदर उसदिन फूटा था वो अब अनु के अंदर सुलग उठा था| इधर लखनऊ पुलिस बैंगलोर पुलिस के साथ coordinate करने लगी पर मैं जानता था की इसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा और हुआ भी वही| अगले दिन ही हमें बताया गया की उन दोनों को तो लखनऊ जेल भेजा गया पर वो यहाँ तो आये ही नहीं?! मतलब रितिका ने पैसे खिला कर मामला सुलटा दिया था| लखनऊ पुलिस ने जब कल के वाक़्या के बारे में उससे पुछा तो उसने पार्टी मीटिंग में होने की बात कह कर अपना पला साफ़ झाड़ लिया| पुलिस ने केस बंद कर दिया, घर वाले बड़े मायूस हुए और इन्साफ न मिल पाने से सभी के मन में एक खीज जर्रूर थी| दो दिन बाद मुझे डिस्चार्ज मिला और मैं गाँव आ गया, अब मेरी हालत में थोड़ा बहुत सुधार था| उसी रात को अनु मेरी पीठ में दवाई लगा रही थी, की मेरी पीठ की हालत देख वो रो पड़ी| "Hey .... इधर आओ!" मैंने अनु को अपने सामने बुलाया और उसकी ठुड्डी ऊपर करते हुए बोला; "ये जख्म ठीक हो जायेंगे!" अनु ने गुस्से में आ कर अपने आँसूँ पोछे और मेरी टी-शर्ट के कालर पकड़ कर मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "You've my permission! Kill that bitch!" अनु की आँखों में अंगारे दहक रहे थे और उसने फैसला कर लिया था की अब वो उस कुतिया को अपने घरोंदे को तबाह करने नहीं देगी| “उसने मुझ पर हमला किया, वो तो मैं सह गई पर उसने आपकी ये हालत की और ये मैं कतई बर्दाश्त नहीं करुँगी! उस हरामजादी की हिम्मत कैसे हुई मेरे पति को नुक्सान पहुँचाने की?” अनु गुस्से में गरजी, उसकी सांसें तेज हो चली थीं और उसकी पकड़ मेरी टी-शर्ट पर और कठोर होती जा रही थी| अनु की 'अनुमति' के बाद बाद मेरे चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई, मैंने आगे बढ़ कर अनु के मस्तक को चूमा और हाँ में गर्दन हिला कर उसकी बात का समर्थन किया| अनु को उसके गुस्से का एहसास हुआ और ये भी एहसास हुआ की उसने तेश में आ कर मेरी टी-शर्ट के कालर पकड़ लिए थे| उसने कालर छोड़ दिया और एकदम से मेरे गले लग गई, पर उसकी आँखों से एक बूँद आँसूँ नहीं गिरा| मैं अनु के बालों में हाथ फिर रहा था और उसे शांत कर रहा था की तभी अनु का फ़ोन बज उठा| ये कॉल किसी अनजान नंबर से आया था इसलिए अनु ने कॉल उठा लिया, ये कॉल किसी और का नहीं बल्कि रितिका का ही था| "तुम दोनों ने क्या किस्मत लिखवाई है यार? साला दोनों बार बच गए, चलो कोई नहीं आखरी हमला बड़ा जबरदस्त होगा और अचूक होगा!" रितिका अपनी अकड़ दिखाते हुए बोली|
"कुतिया!!!!" अनु बहुत जोर से चीखी| "अब तक मैंने अपने पति को रोक रखा था, पर अब मैं ने उन्हें खुली छूट दे दी है...." अभी अनु की बात पूरी भी नहीं हुई थी की नेहा बरस पड़ी; "ओ हेल्लो! तूने मुझे समझ क्या रखा है? मैं अब वो डरी-सहमी सी रितिका नहीं हूँ! मैंने अब शिकार करना सीख लिया है, तुझे पता भी है मेरी पहुँच कहाँ तक है? नहीं पता तो जा के उस इंस्पेक्टर से पूछ जिसे तूने मेरे पीछे लगाया था! सीधा कमिश्नर ने उसे डंडा किया है और उसने केस बंद कर दिया| होली के बाद गाँव में मुखिया के चुनाव हो रहे हैं और उस में मेरी पार्टी का भी उमीदवार खड़ा है, ये चुनाव तो मैं चुटकी बजा कर जीत जाऊँगी और फिर तू और तेरे पति को मैं कहीं का नहीं छोडूंगी! बड़ा नेहा के लिए प्यार है ना उसके मन में, अब देख तू उसे ही कैसे केस में फँसाती हूँ| मैं पंचायत में चीख-चीख कर कहूँगी की बचपन से ही वो मेरा रेप करता आया है और नेहा उसी का खून है! फिर देखती हूँ वो लोग कैसे उसे छोड़ते हैं?! ना मैंने उसे उसी खेत में जिन्दा जलवाया जहाँ मेरी माँ को जलाया था तो मेरा नाम रितिका नहीं!" इतना कह कर उसने फ़ोन काट दिया| रितिका की बात में दम था, उसके झूठे आरोप के सामने हमारी एक नहीं चलती| हमारे पास कोई सबूत नहीं था जिससे ये साबित हो सके की रितिका झूठ बोल रही है| अनु पर रितिका की बातों का बहुत गहरा असर हुआ था और वो एक दम से खामोश हो गई थी| मैंने कई बार उसे झिंझोड़ा तो वो फिर से रो पड़ी और रोते-रोते उसने सारी बात बताई| अब तो मेरे लिए रितिका की जान लेना और भी ज्यादा जर्रूरी हो गया था, क्योंकि अगर मैं पीछे हटता तो उसका इन्तेक़ाम पूरा हो जाता और मेरा पूरा परिवार तहस-नहस हो जाता! "आपको घबराने की कोई जर्रूरत नहीं है! मैं अपने उसी प्लान पर काम करता हूँ और अब तो मेरे पास परफेक्ट cover है अपने प्लान को अंजाम देने का!" मैंने अनु के आँसू पूछते हुए कहा| “Trust me!!!” मैंने अनु की आँखों में देखते हुए उसे विश्वास दिला दिया|
सुबह हुई और मैं उठ कर नीचे आया, मेरा जिस्म अभी भी रिकवर होना शुरू ही हुआ था, पर बदले की आग ने उस दर्द को दबाना शरू कर दिया था| "रात को तुम-दोनों झगड़ रहे थे?" माँ ने पुछा तो अनु का सर झुक गया, शुक्र था की किसी ने पूरी बात नहीं सुनी थी| "वो...माँ....वो...." मुझे कोई बहाना सूझ नहीं रहा था, इधर ताऊ जी ने मुझे अच्छे झाड़ दिया; "तुझे शर्म आनी चाहिए! बहु माँ बनने वाली है और तू है की उससे लड़ता फिर रहा है? सारा वक़्त तेरी तीमारदारी करती रहती है और तू है की???"
"ताऊ जी मैं तो बस इतना कह रहा था की वो चैन से सो जाए पर वो मान ही नहीं रही थी!" मैंने झूठ बोला|
"कैसे सो जाए वो?" ताई जी बोलीं तो मैंने माफ़ी माँग कर बात वहीं खत्म कर दी| नाश्ते के बाद मुझे घर से निकलना था सो मैंने डॉक्टर के जाने का बहाना किया; "पिताजी मैं एक बार physiotherapy करवाना चाहता हूँ, उससे शायद जल्दी आराम मिले!" ये सुन कर अनु चौंक गई पर खामोश रही, पिताजी ने चन्दर भैया से कहा की वो मुझे डॉक्टर के ले जाएँ| मैं और भैया बाइक से निकले और मैं उनसे रास्ते भर बातें करता रहा और बातों-बातों में मैंने रितिका के घर का पता उनसे निकलवा लिया| कुछ देर बाद हम ट्रीटमेंट के बाद वापस आ गए, अगले दिन मुझे पता था की चन्दर भैया को आज व्यापारियों से मिलने जाना है तो मैं उनके जाने का इंतजार करने लगा| पिताजी और ताऊ जी तो पहले ही कुछ काम से जा चुके थे, जैसे ही भैया निकले मैं उनके पीछे-पीछे ही फिर से physiotherapy करवाने के बहाने से निकला| इस बार मैं सीधा रितिका के घर के पास वाले पनवाड़ी के पास रुका और उससे एक सिगरेट ली| वहीं खड़े-खड़े मैं आराम से पीता रहा और रितिका के घर पर नजर रखता रहा| अगले कुछ दिन तक ऐसे ही चला और वहाँ खड़े-खड़े सबकी बातें सुनते-सुनते मुझे रितिका के घर आने-जाने वालों और उसके नौकरों के नाम भी पता चल गए| अब वक़्त था उस घर में घुसने का ताकि मैं ये अंदाजा लगा पाऊँ की घर में रितिका का कमरा कौन सा है? पर उसके लिए मुझे एक लिबाज की जर्रूरत थी, मेक-अप की जर्रूरत थी| हमारे गाँव में एक नट था, जो हरसाल ड्रामे में हिस्सा लेता था| संकेत की उससे अच्छी दोस्ती थी क्योंकि वो उसे मस्त वाला माल दिलवाया करता था| 1-2 बार संकेत ने मुझे उससे मिलवाया भी था एक वही था जो मुझे मेक-अप का समान दे सकता था, पर उससे माँगना मतलब मुसीबत मोल लेना था| इसलिए मेरे पास सिवाए चोरी के कोई रास्ता नहीं रह गया था| मैं उससे मिलने निकला और कुछ देर उसी के पास बैठा तो बातों-बातों में पता चला की उसे पैसों की सख्त जर्रूरत है| मेरे पास उस वक़्त 4,000/- थे जो मैंने उसे दे दिए, इस मदद से वो बहुत खुश हुआ| फिर मैंने उससे चाय माँगी तो वो चाय बनाने लग गया| वो चूँकि अभी तक कुंवारा था सो उसके घर में बस एक बूढी माँ थी जो बिस्तर से उठ नहीं पाती थी| इधर वो चाय बनाने में व्यस्त हुआ और इधर मैंने बातों-बातों में ही उसके पास से एक दाढ़ी और मूछ चुरा ली! चाय पी कर मैं घर लौट आया और अगले दिन की तैयारी करने लगा| मेरी एक पुरानी टी-शर्ट जो घर में गंदे कपडे की तरह इस्तेमाल होती थी मैंने वो उठा ली, एक पुरानी पैंट जो की भाभी धोने वाली थी वो भी मैंने उठा ली| अगले दिन मैंने नीचे वो फटी हुई पुरानी टी-शर्ट पहनी और उसके ऊपर अपनी एक कमीज पहन ली, नीचे वही गन्दी पैंट पहन ली, कंधे पर मैंने अंगोछा रखा और घर से निकलने लगा| "मानु ये कौन सी पैंट पहन रखी है?" भाभी ने पुछा तो मैंने बोल दिया की भाभी आप इसे धोना भूल गए और इस कमीज के साथ यही मैच होती है| इतना बोल मैं घर से निकल गया, रितिका के घर से कुछ दूर पहुँच कर मैंने अपनी कमीज निकाल दी, अपने साथ लाये लिफाफे से मैंने वो नकली दाढ़ी-मूछ भी लगा ली| अब किसी के लिए भी मुझे पेहचान पाना नामुमकिन था| मेरी calculations और information के हिसाब से आज रितिका अपने घर पर मौजूद नहीं थी और हुआ भी यही| मैं जब उसके घर पहुँचा तो बाहर उसकी काली Mercedes नहीं थी, इसका मतलब घर पर सिर्फ कान्ता (उसनी नौकरानी) ही होगी| मैंने दरवाजा खटखटाया तो काँटा ने दरवाजा खोला और मेरी गरीब हालत देख कर चिढ़ते हुए बोली; "क्या है?" मैंने अपनी आवाज बदली और कहा; "जी...वो मेमसाब ने बुलाया था....कुछ मदद देने के लिए!" वो मेरे हाथ का प्लास्टर देख समझ गई की मैं पैसे माँगने आया हूँ| "घर पर कोई नहीं है, बाद में आना!" वो मुँह सिकोड़ कर बोली| "रहम करो हम पे! बहुत दूर से आये हैं और बड़ी आस ले कर आये हैं| ऊ दिन मेमसाब कही रही की आज वो घर पर होंगी!" मैंने अपना ड्रामा जारी रखा पर काँटा टस से मस नहीं हुई, इसलिए मुझे अपनी दूसरी चाल चलनी पड़ी; "देवी जी तनिक पानी मिलेगा पीने को?" मेरे मुँह से देवी जी सुन कर वो खुश हो गई और अभी लाइ बोलकर अंदर गई जिसका फायदा उठा कर मैं अंदर घुस गया और अंदर का मोआईना बड़ी बारीकी से किया| कान्ता को रसोई से पानी लाने में करीब दो मिनट लगे, जो मेरे लिए काफी थे घर का नक्शा दिमाग में बिठाने को|
शादी के बाद रितिका का कमरा उसके सास-ससुर के कमरे के सामने पहली मंजिल पर था पर उस हत्याकांड में उसके पति की मौत उसी कमरे के बाहर हुई थी| शायद उसी डर से रितिका अब पहली मंजिल पर भटकती नहीं थी और उसने नीचे वाला कमरा जो की राहुल का स्टडी रूम था उसे ही अपना कमरा बना लिया था|
इधर कान्ता मुस्कुराती हुई गिलास में पानी ले आई, मैंने लगे हाथों उसकी तारीफों के पुल बाँध दिए जिससे मुझे उससे और बात करने का मौका मिल जाए| वो मुझसे मेरे बारे में पूछने लगी तो मैंने उसे झूठ-मूठ की कहानी सुना दी| बातों ही बातों में उसने मुझे काफी जानकारी दे दी, अब अगर मैं वहाँ और देर रुकता तो वो अपना घागरा उठा के दिखा देती! उससे शाम को आने का वादा कर मैन वहाँ से निकल आया और कुछ दूर आ कर अपने कपडे ठीक करके घर लौट आया|
मेरी रेकी का काम पूरा नहीं हुआ था, अब भी एक बहुत जर्रूरी मोहरा हाथ लगना रह गया था| पर किस्मत ने मुझे उससे भी मिलवा दिया, हमेशा की तरह मैं उस पनवाड़ी से सिगरेट ले कर पी रहा था और अखबार पढ़ रहा था की एक आदमी पनवाड़ी के पास आया और उससे बात करने लगा; "अरे राम खिलावन भैया, कइसन बा!" वो आदमी बोला|
"अरे हम ठीक हैं, तुम कहो सरजू भैया कितना दिन भय आजकल हिआँ दिखातो नहीं?" पनवाड़ी बोला|
"अरे ऊ हमार साहब, सेक्रेटरीवा ...ससर हम का काम से दिल्ली भेज दिया रहा! कल ही आये हैं और आज रितिका मेमसाब के फाइल पहुँचाय खतिर भेज दीस!" सरजू बोला|
"अरे बताओ तोहार छमिया कान्ता कैसी है?" पनवाड़ी बोला|
"अरे ऊ ससुरी हमार 'लिए' खातिर पियासी है! होली का अइबे तब ऊ का दबा कर पेलब!" इतना कह कर सरजू चला गया| यानी कान्ता और सरजू का चक्कर चल रहा है!
खेर मुझे मेरा स्वर्णिम मौका मिल गया था, अब बस मुझे होली के दिन का इंतजार था| वहाँ से मैं सीधा अपने घर के लिए पैदल निकला और एक आखरी बार अपने सारे पत्ते जाँचने लगा|
घर का layout - चेक
घर के नौकर के नाम - चेक
घर घुसने का कारन- चेक
हथियार - X
नहीं हथियार का इंतजाम अभी नहीं हुआ था| मैंने वापस अपने चेहरे पर दादी-मूछ लगाई और बजार की तरफ घूम गया, वहाँ काफी घूमने के बाद मैंने एक रामपुरी चाक़ू खरीदा| इतनी आसानी से उसे मारना नहीं चाहता था, मरने के टाइम उस्की आँखों में वही दर्द देखना चाहता था जो मेरी पत्नी की आँखों में थी जब उसने मुझे हॉस्पिटल में पड़ा हुआ देखा था| मैंने बजार से कुछ साड़ियाँ भी खरीदीं जिन्हें मैंने गिफ्ट wrap करवा लिया| चूँकि हमारा गाँव इतना आधुनिक नहीं था तो वहाँ अभी भी CCTV नहीं लगा था जो मेरे लिए बहुत कामगर साबित होना था| अब बस होली का इंतजार था जो 2 दिन बाद थी| पर कल होलिका दहन था और गाँव के चौपाल पर इसकी सारी तैयारी की जा चुकी थी| सभी बरी परिक्रम कर रहे थे और अग्नि को नमस्कार कर रहे थे| मुझे और अनु को भी साथ परिक्रमा करनी थी, जिसके बाद अनु ने मुझसे कहा; "कहते हैं होलिका दहन बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है!"
"हाँ" मैंने बस इतना ही कहा क्योंकि मैं अनु की बात का मतलब समझ गया था| उसी रात को मम्मी-डैडी जी भी आ गए हमारे साथ होली मनाने| पिछले 20 दिनों में अनु ने मुझसे मेरी प्लानिंग के बारे में कुछ नहीं पुछा था, हम बात भी कम करते थे| घर वालों के सामने हम खुश रहने का नाटक करते रहते पर अकेले में हम दोनों जानते थे की मैं कौन सा बड़ा कदम उठाने जा रहा हूँ| उस रात मैंने अनु से बात शुरू की; "कल आपको मेरे लिए cover करना होगा, याद रहे किसी को भी भनक नहीं होनी चाहिए की मैं घर पर मौजूद नहीं हूँ| घर पर बहुत सारे लोग होंगे तो किसी को जल्दी पता नहीं चलेगा!" मैंने अनु से इतना कहा और फिर मैं जल्दी सो गया| लेट तो मैं गया पर नींद बिलकुल नहीं आई, कारन दो, पहला ये की कल मेरी जिंदगी का बहुत बड़ा दिन था| मैं कुछ ऐसा करने जा रहा था जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था, एक सीधा-साधा सा इंसान किसी का कत्ल करने जा रहा था! दूसरा कारन था मेरा बायाँ हाथ, अपने प्लान के तहत मैंने बहाना कर के आज अपना प्लास्टर कटवा दिया था| इस बहाने के लिए मुझे किशोर का सहारा लेना पड़ा था, मैंने जानबूझ कर उसका सुसु अपने बाएं हाथ पर करवाया ताकि मुझे प्लास्टर कटवाने का अच्छा बहाना मिल जाये| हालाँकि इस हरकत पर सब ने खूब जोर से ठहाका लगाया था की भतीजे ने आखिर अपने चाचा के ऊपर सुसु कर ही दिया| प्लास्टर कटने के बाद मेरे हाथ में दर्द होने लगा था|
खैर सुबह हुई और मैं जल्दी से उठा और सबका आशीर्वाद लिया, अपने बाएँ हाथ पर मैंने दो गर्म पट्टियां लपेटीं ताकि दर्द कम हो| जोरदार म्यूजिक बज रहा था और घर के सारे लोग चौपाल पर आ गए थे| घर पर सिर्फ औरतें रह गईं थीं, सब ने होली खेलना शुरू कर दिया था| शुरू-शुरू में ताऊ जी ने इस आयोजन के लिए मना कर दिया था कारन था मुझ पर हुआ हमला| पर मुझे कैसे भी कर के ये आयोजन खूब धूम-धाम से करना था ताकि मुझे घर से निकलने का मौका मिल जाये इसीलिए मैंने ये आयोजन सुबह जल्दी रखवाया था, मुझे बस इसके लिए ताऊ जी के सामने अनु की पहली होली का बहाना रखना पड़ा था| सारे लोग खूब मजे से होली खेल रहे थे और मैं इसी का फायदा उठा के वहाँ से सरक गया| चेहरे और कपड़ों पर खूब सारा रंग पोत रखा था जिससे मुझे कोई पहचान ना पाए| मैं संकेत की बाइक ढूंढते हुए पहुँचा, सुबह मैं उसी की बाइक पर यहाँ आया था और उसे ईस कदर बातों में उलझाया की वो अपनी बाइक लॉक करना ही भूल गया| मैंने धीरे से बाइक को धक्का दे कर कुछ दूर तक ले गया और फिर स्टार्ट कर के सीधा संकेत के खेतों की तरफ चल दिया| उसके खेतों में जो कमरा था, जिस में मैंने वो साड़ियाँ गिफ्ट wrap कर के छुपाई थीं| उन्हें ले कर मैं सीधा रितिका के घर पहुँच गया| अभी सुबह के 7 बजे थे, मैंने संकेत की बाइक दूर एक झाडी में छुपा दी और वो गिफ्ट्स ले कर सीधा रितिका के घर पर दस्तक की| मेरी इनफार्मेशन के हिसाब से वो घर पर ही थी और सिवाए कान्ता के वहाँ और कोई नहीं था| दरवाजा कान्ता ने ही खोला और मेरे मुँह पर पुते हुए रंग को देख वो समझ नहीं पाई की कौन है| "आरी छम्मक छल्लो ई टुकुर-टुकुर का देखत है?" मैंने आवाज बदलने की कोशिश की पर ठीक से बदल नहीं पाया था पर उसे फिर भी शक नहीं हुआ क्योंकि मेरे मुँह में पान था! "सरजू तू?!" कान्ता ने चौंकते हुए कहा| मेरी और सरजू की कद-काठी कुछ-कुछ मिलती थी इसलिए उसे ज्यादा शक नहीं हुआ| "काहे? कोई और आने वाला है का?" मैंने कहा तो वो शर्मा गई और पूछने लगी की मैं इतनी जल्दी क्यों आ गया; "अरे ऊ सेक्रेटरीवा कहिस की जा कर एही लागे ई गिफट रितिका मेमसाब को दे कर आ तो हम इहाँ परकट होइ गए! फिर तोहरे से आजका वादा भी तो किये रहे!" मैंने कहा तो वो हँस दी और वो gift ले लिए और उसे सामने के टेबल पर रख दिए| "अरे मरी ई तो बता की मेमसाब घर पर हैं या नहीं?" मैंने पुछा तो उसने बताया की रितिका नहा रही है| अब मुझे उसे वहाँ से भेजना था सो मैंने कहा; "कछु पकोड़े-वकोडे हैं का?" तो वो बोली की मैं उसके क्वार्टर में जाऊँ और उसका इंतजार करूँ, वो गरमा-गर्म बना कर लाएगी| उसके जाते ही मैंने surgical gloves पहने और मैन गेट लॉक अंदर से लॉक कर दिया और क्वार्टर की तरफ खुलने वाला दरवाज खोल दिया ताकि उसे लगे की मैं बाहर हूँ| मैंने जेब से चाक़ू निकाला और उसे खोल कर बाएँ हाथ में पकड़ लिया| इसका कारन ये था की पुलिस को लगे की खुनी लेफ्टी है, चूँकि मेरे बाएँ हाथ में फ्रैक्चर है तो मुझ पर शक जाने का सवाल ही नहीं होता| सुबह की टाइट बाँधी हुई पट्टियां काम कर गईं, मैंने गिफ्ट्स पर से भी अपनी उँगलियों के निशान मिटा दिए| मेरा दिल अब बहुत जोरों से धड़क रहा था, सांसें भारी हो चली थीं और मन पूरी कोशिश कर रहा था की मैं ये हत्या न करूँ पर मेरा दिमाग गुस्से से पागल हो गया था| इधर बाहर ढोल-बगाडे और लाउड म्यूजिक बजना शुरू हो चूका था| 'रंग बरसे' वाला गाना खूब जोर से बज रहा था| मैंने रितिका के कमरे का दरवाजा जोर से खटखटाया, तो वो गुस्से में बड़बड़ाती हुई बाथरूम से निकली और एकदम से दरवाजा खोला|
अपने सामने एक गुलाल से रंगे आदमी को देख वो चौंक गई और इससे पहले वो कुछ बोल पाती या चिल्लाती मैंने अपने दाएँ हाथ से उसका मुँह बंद कर दिया और बाएँ हाथ में जो चाक़ू था उससे जोर दार हमला उसके पेट पर किया| चाक़ू एक ही बार में उसकी पेट की मांस-पेशियाँ चीरता हुआ अंदर चला गया| रितिका की चीख तो तब भी निकली पर बाहर से आ रहे शोर में दब गई, मैंने चाक़ू को उसके पेट में डाले हुए एक बार जोर से बायीँ तरफ घुमा दिया जिससे वो और बिलबिला उठी और अपने खून भरे हाथों से मेरा कालर पकड़ लिया| उसकी आँखें फटने की कगार तक खुली थीं पर अभी उसे ये बताना जर्रूरी था की उसका कातिल आखिर है कौन; "I loved you once! But you had to fuck all this up! You made me do this!" मेरी आवाज सुनते ही वो समझ गई की उसका कातिल कोई और नहीं बल्कि मानु ही है| वो कुछ बोलना चाहती थी पर उसे उसका मौका नहीं मिला और वो पीछे की ओर झुक गई| उसका सारा वजन मेरे बाएँ हाथ पर आ गया जिसका दर्द से बुरा हाल हो गया था| मैंने उसे छोड़ दिया और एक नजर कमरे में दौड़ाई तो पाया की मेरी नन्ही सी पारी नेहा चैन की नींद सो रही थी| उसे सोते हुए देख मेरा मन उसे छूने को किया पर दिमाग ने मुझे बुरी तरह लताड़ा की मैं भला अपने खून से रंगे हाथों से उसे कैसे छू सकता हूँ?! इसलिए मैं वहाँ से भाग आया और वो गिफ्ट्स ले कर घर से भाग आया, फ़ौरन बाइक स्टार्ट की ओर घर की तरफ बढ़ा दी| बहुत दूर आ कर मैंने वो साड़ियाँ और ग्लव्स जला दिए, उस रामपुरी चाक़ू को मैंने एक जगह गाड़ दिया जिससे कोई सबूत न बचे और चुपचाप होली के समारोह में शामिल हो गया और अपने ऊपर और रंग डाल लिया| किसी को भनक तक नहीं लगी थी की मैं गया था, पर मेरा मन अब अंदर ही अंदर टूटने लगा था| मैंने अपने परिवार को बचा लिया था पर अपने द्वारा किये गुनाह से बहुत दुखी था| मुझे अपने आप से घिन्न आने लगी थी, मुझे अपने सर से ये पाप का बोझ उतारना था| पर ये पाप पानी से धुलने वाला नहीं था इसे धोने के लिए मुझे किसी पवित्र नदी में नहाना था| हमारे गाँव के पास बस एक ही नदी थी वो थी सरयू जी! मैंने संकेत से कहा की चल कर सरयू जी नहा कर आते हैं, वो ये सुन कर हैरान हुआ पर जब मैंने जबरदस्ती की तो वो मान गया| हम सब को बता कर सरयू जी निकले, हमारे साथ ही कुछ और लोग जुड़ गए जिन्हें मेरी बात सही लगी थी| पहले हमने घर से अपने कपडे लेने थे पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं अंदर घुसून इसलिए मैंने भाभी को आवाज दे कर उनसे मेरे कपडे लाने को कहा| भाभी ने एक अंगोछा और कपडे ले कर बाहर आईं, फिर वहाँ से हम संकेत के घर गए ताकि वो भी अपने कपडे ले ले| आखिर हम सरयू जी पहुँचे, मैंने उन्हें प्रणाम किया और मन ही मन अपने किये पाप के लिए उनसे माफ़ी माँगी| जाने क्यों पर मेरा दिल कहने लगा था की जिस प्रकार भगवान राम चन्दर जी ने रावण का वद्ध किया था और फिर ब्रह्महत्या के पाप से निवारण हेतु उन्होंने स्नान और पूजा-पाठ इत्यादि किया था उसी तरह आज मैं भी रितिका की हत्या करने के बाद इस पवित्र जल से अपने पाप धोने आया हूँ| मैं खुद की तुलना भगवान राम चंद्र जी से नहीं कर रहा था बस हालत को समान मान रहा था!
सरयू जी में प्रवेश करते हुए मुझे वो सारे पल याद आ रहे थे जो मैंने ऋतू के साथ बिताये थे! वो उसका मेरे सीने से लग कर खुद को पूर्ण समझना, उसकी छोटी-छोटी नादानियाँ, मेरा उसे पीछे से अपने हाथों से जकड़ लेना, उसका ख्याल रखना वो सब याद कर के मैं रो पड़ा| बहुत प्यार करता था मैं उससे, पर अगर उसके सर पर बदला लेने का भूत ना चढ़ा होता तो आज मुझे ये नहीं करना पड़ता| ये सब सोचते हुए मैं अच्छे से रगड़-रगड़ कर नहाया, मानो जैसे उसका खून मेरे जिस्म से पेंट की भाँती चिपक गया हो! नहाने के बाद मैं बाहर निकला और किनारे पर सर झुका कर बैठ गया| सूरज की किरणे जिस्म पर पड़ रही थीं और ऐसा लगा मानो जैसे मेरी मरी हुई आत्मा फिर से जीवित हो रही हो! कुछ देर बाद हम घर के लिए निकल पड़े और जैसे ही संकेत ने मुझे घर छोड़ा तो ताऊ जी और पिताजी बाहर मेरी ही राह देख रहे थे| मैं बाइक से उतरा तो ताऊ जी ने रितिका का खून होने की खबर दी, मैं कुछ react ही नहीं कर पाया और मेरे मुँह से बस नेहा के लिए चिंता बाहर आई; "नेहा कहाँ है?" इतने में डैडी जी गाडी की चाभी ले कर आये और हम उनकी गाडी से रितिका के घर पहुँचे| पुलिस की जबरदस्त घेराबंदी थी पर चूँकि वो दरोगा ताऊ जी को जानता था सो उसने हमें आगे आने दिया और सरे हालत के बारे में बताया| दरवाजे के पास एक महिला पुलिस कर्मी कान्ता का ब्यान लिख रही थी और एक दूसरी पुलिस कर्मी रोती हुई नेहा को गोद में लिए हुए ताऊ जी के पास आई और उन्हें नेहा को गोद में देने लगी पर ताऊ जी चूँकि दरोगा से बात कर रहे थे सो मैंने फ़ौरन नेहा को गोद में ले लिया और उसे अपनी छाती से लगा लिया| नेहा को जैसे ही उसके पापा के जिस्म का एहसास हुआ वो एकदम से चुप हो गई और आँखें बड़ी करके मुझे देखने लगी| मैंने उसके माथे को चूमा और उसे फिरसे अपने गले लगा लिया| मेरा दिल जो उसके कान के पास था वो अपनी बेटी से उसके बाप द्वारा किये हुए पाप की माफ़ी माँगने लगा था| मेरी आँखें एक बार फिर भीग गईं, पीछे खड़े डैडी जी ने मेरी पीठ सहलाई और मुझे हौंसला रखने को कहा| थोड़ी बहुत पूछ-ताछ के बाद हम घर लौट आये, जैसे ही मैं नेहा को गोद में लिए हुए आंगन में आया की अनु दौड़ती हुई मेरे पास आई| मेरी आँखों में देखते हुए उसने नेहा को गोद में ले लिया, मैंने उससे नजरें फेर लीं क्योंकि मुझ में अब हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं उसका सामना कर सकूँ| रितिका की मौत का किसी को उतना अफ़सोस नहीं हुआ जितना होना चाहिए, कारन आफ था की जो उसने मेरे और परिवार के साथ किया| अगले दिन मम्मी-डैडी जाने वाले थे की पुलिस आ धमकी और सबसे सवाल-जवाब करने लगी| चूँकि हमने रितिका पर आरोप लगाया था की उसने मुझ पर हमला करवाया था इसलिए ये कार्यवाही लाजमी थी| मुझे इसका पहले से ही अंदेशा था इसलिए मैंने इसकी तैयारी पहले ही कर रखी थी| जब दरोगा ने मुझसे पुछा की मैं कत्ल के समय कहाँ था तो मैंने उसे अपनी कहानी सुना दी; "जी मैं अपने परिवार के साथ होली खेल रहा था, उसके बाद हम दोस्त लोग नहाने के लिए गए थे| जब वापस आये तो मुझे ये सब पता चला|"
"तुम्हारे ऊपर जब हमला हुआ तो तुम्हें रितिका पर गुस्सा नहीं आया?" दरोगा ने पुछा|
"आया था पर मैं अपाहिज कर भी क्या सकता था?!" मैंने अपनी टूटी-फूटी हालत दिखाते हुए कहा| पर उसे मुझ पर शक था सो उसने मेरी बातों को चेक करना शुरू कर दिया| अपना शक मिटाते-मिटाते वो उस physiotherapy क्लिनिक जा पहुँचा जहाँ मैं जाय करता था| उन लोगों ने भी मेरी बात को सही ठहराया, चूँकि वो क्लिनिक रितिका के घर से अपोजिट पड़ता था इसलिए अब उसे मेरी बात पर इत्मीनान हो गया था और उसने मुझे अपने शक के दायरे से बाहर कर दिया था| सारी बात आखिर कार घूम कर 'राघव' पर आ कर अटक गई, उसी को main accused बना कर केस बंद कर दिया गया| इधर अनु मेरे बर्ताव से परेशान थी, मैं उसके पास हो कर भी नहीं था| होली के तीसरे दिन घर के सारे बड़े मंदिर गए थे, अनु जानबूझ कर घर रुकी हुई थी| मैं जैसे ही निकलने को हुआ की अनु ने मेरा दायाँ हाथ कस कर पकड़ लिया और मुझे खींच कर ऊपर ले आई और दरवाजा बंद कर दिया| "क्या हो गया है आपको? किस बात की सजा दे रहे हो खुद को? ना ठीक से खाते हो ना ठीक से सोते हो?! रातबेरात उठ जाते हो और सिसकते रहते हो?! मुझसे नजरें चुराए घुमते हो, मेरे पास बैठना तो छोडो मुझे छूते तक नहीं! और मुझे तो छोड़ो आप नेहा को भी प्यार से गले नहीं लगाते, वो सारा-सारा दिन रोती रहती है अपने पापा के प्यार के लिए!" अनु रोते हुए बोली| मैं सर झुकाये उसके सारे आरोप सुनता रहा, वो चल कर मेरे पास आई और मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर की; "जानते हो न की अगर आप ये कदम नहीं उठाते तो क्या होता? आप नहीं होते, मैं नहीं होती, हमारा बच्चा नहीं होता, माँ-पिताजी....सब कुछ खत्म हो जाता! मैं समझ सकती हूँ की आपको कैसा लग रहा है?! पर आपने जो किया वो गलत नहीं था, पाप नहीं था! आप ही ने कहा था ना की जब घर में कोई जंगली-जानवर घुसा आता है तो आदमी पहले अपने परिवार को बचाता है, फिर क्यों आप खुद को कसूरवार ठहराए बैठे हो?!" अनु मेरी आँखों में देखते हुए बोली| उसकी बात सुन कर मुझे एहसास हुआ की वो सच ही कह रही है और मेरा यूँ सबसे दूर रहना और खुद को दोषी मानना गलत है! मैंने आज तीन दिन बाद अनु को कस कर अपने सेने से लगा लिया, अंदर जो भी बुरे विचार थे वो अनु के प्यार से धुल गए| मैंने उसके माथे को चूमा और मुझे इस काली कोठरी से आजाद कराने के लिए शुक्रिया कहा| "हर बार जब मैं खुद को अंतहीन अँधेरे में घिरा पाता हूँ तो तुम अपने प्यार की रौशनी से मुझे उजाले में ले आती हो!" मैंने कहा और अनु के माथे को एक बार फिर चूम लिया|
चूँकि रितिका का हमारे अलावा कोई परिवार नहीं था तो चौथे दिन हमें रितिका की body सौंपी जानी थी| परिवार में किसी को भी इससे कतई फर्क नहीं पड़ रहा था| आखरी बार जब मैंने ऋतू का चेहरा देखा तो मुझसे खुद को संभाला नहीं गया और मैं घुटनों पर गिर कर रोने लगा| अनु जो मेरे पीछे थी उसने मुझे संभाला और बड़ी मुश्किल से संभाला| एक ऐसी लड़की जिसे मैं इतना प्यार करता था उसने मुझे उसी का खून करने पर मजबूर कर दिया था! ये दर्द मेरे लिए सहना बहुत मुश्किल था| "तेरे साथ जो उसने किया, उसके बाद भी तू उसके लिए आँसू बहा रहा है?" ताऊ जी बोले|
"मैंने कभी उससे कोई दुश्मनी नहीं की, वो बस पैसों की चका-चौंध से अंधी हो गई थी पर अब तो रही नहीं तो कैसी दुश्मनी!" मैंने जवाब दिया और खुद को किसी तरह संभाला| बड़े बेमन से ताऊ जी ने सारी क्रियाएँ करनी शुरू कीं, पर ऋतू को आज मुखाग्नि दी जानी थी| अनु मुझे एक तरफ ले गई और बोली; "मुखाग्नि आप दोगे ना?" मैंने हाँ में सर हिलाया|
भले ही मेरी और ऋतू की शादी नहीं हुई पर उसे मंगलसूत्र सबसे पहले मैंने बाँधा था, उन कुछ महीनों में हमने एक पति-पत्नी की तरह जीवन व्यतीत किया था और अनु ये सब जानती थी इसलिए उसने ये बात कही थी| जब मुखाग्नि का समय आया तो मैं आगे आया; "ताऊ जी सबसे ज्यादा ऋतू को प्यार मैंने ही किया था, इसलिए कृपया मुझे ही मुखाग्नि देने दीजिये!" मैंने कहा और ताऊ जी को लगा की मैं चाचा-भतीजी वाले प्यार की बात कर रहा हूँ इसलिए उन्होंने इसका कोई विरोध नहीं किया| रितिका को मुखाग्नि देते समय मैं मन ही मन बोला; "आज हमारे सारे रिश्ते खत्म होते हैं! मैं भगवान से दुआ करूँगा की वो तेरी आत्मा को शान्ति दें!" आग की लपटों ने ऋतू की जिस्म को अपनी आगोश में ले लिया और उसे इस दुनिया से आज मुक्ति मिल गई! अगले कुछ दिनों में जो भी जर्रूरी पूजा और दान होते हैं वो सब किये गए और मैं उनमें आगे रहा|
आखिर अब हमारा परिवार एक जुट हो कर खड़ा था और फलने-फूलने लगा था| खुशियाँ अब permanently हमारे घर आ आकर अपना घर बसाने लगीं थी| नेहा को उसके बाप और माँ दोनों का लाड-प्यार मिलने लगा था| अनु उसे हमेशा अपने से चिपकाए रखती और कभी-कभी तो मेरे और अनु के बीच मीठी-मीठी नोक-झोक हो जाती की नेहा को प्यार करने का मौका बराबर मिलना चाहिए! मई का महीना लगा और अनु का नौवां महीना शुरू हो गया, अनु ने मुझसे कहा की मैं घर में नेहा को कानूनी रूप से गोद लेने की बात करूँ| दोपहर को जब सब का खाना हो गया तो मैंने बात शुरू की; "पिताजी....मैं और अनु नेहा को कानूनी रूप से गोद लेना चाहते हैं!" ये सुन कर पिताजी और ताऊजी समेत सारे लोग मुझे देखने लगे| "पर बेटा इसकी क्या जर्रूरत है तुझे? घर तो एक ही है!" पिताजी बोले|
"जर्रूरत है पिताजी... नेहा के साथ भी कुछ वैसे ही हो रहा है जो उसकी माँ ऋतू के साथ हुआ| अनु की डिलीवरी के बाद मुझे और अनु को शहर वापस जाना होगा और फिर यहाँ नेहा अकेली हो जाएगी| अगर मैं उसे साथ ले भी जाऊँ तो वहाँ लोग पूछेंगे की हमारा रिश्ता क्या है? कानूनी तौर पर गोद ले कर मैं उसे अपना नाम दे पाउँगा और वो मुझे और अनु को अपने माँ-बाप कह सकेगी| समय के साथ ये बात दब जाएगी की वो अनु की बेटी नहीं है!" मैंने बात घुमा-फिर कर कही| थोड़ी बहुत न-नुकूर होने के बाद आखिर ताऊ जी और पिताजी मान गए| मैंने अगले ही दिन ये कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी और चूँकि अनु की कुछ जान-पहचान थी सो ये काम जल्दी से हो भी गया| मंत्री की जायदाद का सारा क्लेम मैंने कानूनी रूप से ठुकरा दिया और साडी जायदाद बूढ़े माँ-बाप की देख रेख करने वाले ट्रस्ट को दे दी गई|
अनु की डिलीवरी से ठीक एक दिन पहले हमें नेहा के एडॉप्शन पेपर्स मिल गए और अब नेहा कानूनी तौर पर मेरी बेटी बन गई थी| मैं ये खुशखबरी ले कर घर आया, अनु को पेपर्स दिए और उसे जोर-जोर से पढ़ के सुनाने को कहा| इधर मैंने नेहा को अपनी गोद में उठा लिया और उसे चूमने लगा| अनु जैसे-जैसे पेपर्स के शब्द पढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे उसकी ख़ुशी बढ़ती जा रही थी| जब उसका पढ़ना पूरा हो गया तब मैंने नेहा से सबके सामने कहा; "आज से मेरी बच्ची मुझे सब के सामने पाप कहेगी!" ये सुन कर नेहा मुस्कुराने लगी और उसके मुँह से आवाज आने लगी; 'डा...ड....' इन्हें सुन कर मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और मैंने नेहा को कस कर अपने गले लगा लिया| "मुझे भी मेरी बेटी के मुँह से मम्मी सुनना है!" अनु बोली और मैंने नेहा को उसकी गोद में दे दिया, अनु ने नेहा को गले लगाया और फिर उसके माथे को चूमते हुए बोली; "बेटा एक बार मम्मी बोलो!" पर नेहा के मुँह से डा..ड...ही निकल रहा था जिसे सुन सब हँसने लगे| वो रात बड़ी खुशियों भरी निकली और इस ख़ुशी को देख ताऊ जी बैठे प्रार्थना करने लगे की अब कभी भी किसी की गन्दी नजर इस परिवार को ना लगे|
अगले दिन सब कुछ हँसी-ख़ुशी चल रहा था की दोपहर को खाने के बाद अनु ने मुझे अपने पास बुलाया और uncomfortable होने की शिकायत की| मैं उसे और भाभी को ले कर तुरंत हॉस्पिटल पहुँचा, डॉक्टर ने बताया की घबराने की कोई बात नहीं है, अनु जल्द ही लेबर में जाने वाली है| ठीक शाम को 4 बजे डॉक्टर ने उसे लेबर रूम में शिफ्ट किया, मैं थोड़ा घबराया हुआ था की जाने क्या होगा और उधर भाभी मेरा होंसला बढ़ाने लगी थी की सब ठीक ही होगा| पर मैं घबराया हुआ था तो भाभी ने घर फ़ोन कर के सब को बुला लिया| कुछ ही देर में पूरा घर हॉस्पिटल आ गया, भाभी ने माँ से कहा की वो नेहा को मुझे सौंप दें| नेहा जैसे ही मेरी गोद में आई मेरे दिल को कुछ चैन आया और ठीक उसी वक़्त नर्स बाहर आई और बोली; "मानु जी! मुबारक हो आपको जुड़वाँ बच्चे हुए हैं!" ये सुनते ही मैं ख़ुशी से उछल पड़ा और फ़ौरन अनु को मिलने कमरे में घुसा| अनु उस वक़्त बेहोश थी, मैंने डॉक्टर से पुछा तो उन्होंने बताया की अनु आराम कर रही है और घबराने की कोई बात नहीं है| ये सुन आकर मेरी जान में जान आई! कुछ मिनट बाद नर्स दोनों बच्चों को ले कर आई, एक लड़का और एक लड़की! दोनों को देख कर मेरी आंखें छलछला गईं| मैंने पहले नेहा को माँ की गोद में दिया और बड़ी एहतियात से दोनों बच्चों को गोद में उठाया| ये बड़ा ही अनोखा पल था जिसने मेरे अंदर बड़ा अजीब सा बदलाव किया था| दोनों बच्चे शांत थे और सो रहे थे, उनकी सांसें तेज चल रही थीं| मैंने एक-एक कर दोनों के माथे को चूमा, अगले ही पल मेरे चेहरे पर संतोष भरी मुस्कराहट आ गई| मेरी छोटी सी दुनिया आज पूरी हो गई थी! बारी-बारी से सब ने बच्चों को गोद में उठाया और उन्हें प्यार दिया| तब तक अनु भी जाग गई थी, मैं उसके पास पहुँचा और उसका दाहिना हाथ पकड़ कर उसके माथे को चूमा| "Baby .... twins!!!!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा| अनु के चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गई, इतने में भाभी मसखरी करते हुए बोलीं; "हाय राम! तुम दोनों सच्ची बेशर्म हो! हम सब के सामने ही ....!" भाभी बोलीं तो ताई जी ने उनके कान पकड़ लिए और बोलीं; "तो तू आँख बंद कर लेती!" ये सुन कर सारे हँस पड़े| "अच्छा बेटा कोई नाम सोचा है तुम दोनों ने?" ताऊ जी ने पुछा तो अनु मेरी तरफ देखने लगी; "आयुष" मैंने कहा और मेरे पीछे-पीछे अनु बोली; "स्तुति"! दोनों नाम सुन घरवाले खुश हो गए और ताऊ जी ने यही नाम रखने को कहा| कुछ देर बाद डॉक्टर साहिबा आईं और हमें मुबारकबाद दी| साथ ही उन्होंने मेरी तारीफ भी की कि मैंने अनु का इतना अच्छा ख्याल रखा की twins होने के बाद भी डिलीवरी में कोई complications नहीं हुई| शाम को मैं अनु और बच्चों को लेकर घर आया, तो सारे विधि-विधान से हम घर के भीतर आये| रात को सोने के समय मैंने अनु से बात की; "थैंक यू! मेरी ये छोटी सी दुनिया पूरी करने के लिए!" उस समय पलंग पर तीनों बच्चे एक साथ सो रहे थे और ये ही मेरी दुनिया थी! मेरे लिए तीनों बच्चों को संभालना एक चैलेंज था, जब एक रोता तो उसकी देखा देखि बाकी दो भी रोने लगते और तीनों को चुप कराते-कराते मेरा बैंड बज जाता| जब तीनों घुटनों पर चलने लायक हुए तब तो और गजब हुआ! तीनों घर भर में रेंगते हुए घूमते रहते! जब उन्हें तैयार करना होता तब तो और भी मजा आता क्योंकि एक को तैयार करने लगो बाकी दोनों भाग जाते| अनु मेरी मदद करती तब भी एक तो भाग ही जाता और जब तक उसे तैयार करते बाकी दोनों अपने कपडे गंदे कर लेते| मैं और अनु हँस-हँस के पागल हो जाते| मेरे दोस्त अरुण ने तो मुझे एक स्पेशल triplets carry bag ला कर दिया जिससे मैं तीनों को एक साथ गोद में उठा सकता था| दिन प्यार-मोहब्बत भरे बीतने लगे और बच्चे धीरे-धीरे बड़े होने लगे, मैं और अनु दोनों ही के बाल अब सफ़ेद हो गए थे पर हमारा प्यार अब भी वैसा का वैसा था| बच्चे बड़े ही फ़रमाबरदार निकले, कोई गलत काम या कोई बुरी आदत नहीं थी उनमें, ये अनु और मेरी परवरिश का ही नतीजा था| साल बीते और फिर जब नेहा शादी के लायक हुई तो मैंने उसे अपने पास बिठा कर सारा सच ब्यान कर दिया| वो चुप-चाप सुनती रही और उसकी आँखें भर आईं| वो उठी और मेरे गले लग कर रो पड़ी; "पापा... I still love you! आपने जो किया वो हालात के आगे मजबूर हो कर किया, अगर आपने वो नहीं किया होता तो शायद ाजे ये सब नहीं होता| आप कभी भी इसके लिए खुद को दोषी मत मानना, मुझे गर्व है की मैं आपकी बेटी हूँ! और माँ... आपने जितना प्यार मुझे दिया शायद उतना मेरी सगी माँ भी नहीं देती| मेरे लिए आप ही मेरे माता-पिता हो, वो (ऋतू) जैसी भी थी मेरा past थी... उनकी गलती ये थी की उन्होंने कभी पापा के प्यार को नहीं समझा अगर समझती तो इतनी बड़ी गलती कभी नहीं करती!" इतना कह कर नेहा ने हम दोनों को एक साथ अपने गले लगा लिया| नेहा के मुँह से इतनी बड़ी बात सुन कर हम दोनों ही खुद पर गर्व महसूस कर रहे थे| आज मुझे मेरे द्वारे किये गए पाप से मुक्ति मिल गई थी!
नेहा की शादी बड़े धूम-धाम से हुई और विदाई के समय वो हमारे गले लग कर बहुत रोई भी| कुछ समय बाद उसने अपने माँ बनने की खुश खबरी दी....
उसके माँ बनने के साल भर बाद आयुष की शादी हुई, उसे USA में एक अच्छी जॉब मिल गई और वो हमें अपने साथ ले जाना चाहता था पर अनु ने मना कर दिया और हमने हँसी-ख़ुशी उसे वहाँ सेटल कर दिया| कुछ महीने बाद स्तुति के लिए बड़ा अच्छा रिश्ता आया और सुकि शादी भी बड़े धूम-धाम से हुई| हमारे तीनों बच्चे सेटल हो गए थे और हम दोनों से खुशनसीब इंसान सहायद ही और कोई होता| एक दिन शाम को मैं और अनु चाय पी रहे थे की अनु बोली; "थैंक यू आपको की आपने इस प्यारी दुनिया को इतने प्यार से सींचा!" ये थैंक यू उस थैंक यू का जवाब था जो मैंने अनु को आयुष और स्तुति के पैदा होने के बाद दिया था| हम दोनों गाँव लौट आये और अपने जीवन के अंतिम दिन हाथों में हाथ लिए गुजारे| फिर एक सुबह हम दोनों के जीवन की शाम साबित हुई, रात को जो हाथ में हाथ ले कर सोये की फिर सुबह आँख ही नहीं खुली और दोनों ख़ुशी-ख़ुशी एक साथ इस दुनिया से विदा हुए!
Happy Ending !!!!
बेहतरीन
इससे ज्यादा और क्या कहूं
बहुत से लोगों ने इस कहानी में कमेंट किया है की मां ऐसी नही हो सकती। पर क्या करिएगा, एक मां भी एक इंसान ही होती है, जो हर रूप धारण कर सकती है। वैसे भी स्त्री से ज्यादा कोमल और कठोर पुरुष कभी नही होता। इसीलिए स्त्री का ऐसा रूप भी कोई बहुत आश्चर्यजनक नहीं है।
एक बात और, काम्या का बहुत इनफ्लुएंस हुआ रितिका पर। वो बंजारन से ज्यादा असर काम्या की सोहबत का हुआ।
वैसे अंत आपने सुखद करके अच्छा किया, हालांकि मेरे खयाल से अंत का थोड़ा सा और ट्विस्ट इस कहानी के शीर्षक को सार्थक कर जाता।
और मानू भाई जी, आपकी लेखनी पढ़ कर तो बस ऐसा लगता है कि सब बस आंखों के सामने ही घटित हुआ।