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Romance काला इश्क़! (Completed)

Rockstar_Rocky

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Ritika ki wajah se maanu ki ye haalat ho gayi hai..sahi hai ye to dastur hai ki paise ke aage pyar kanha dikhta hai...par log kyon bhul jaate hai ki paisa aapka pet to bhar sakta hai, comfort de sakta hai, stable life de sakta hsi par sukun to sirf pyar hi de sakta hai.
दो आंखों में दो ही आंसू
एक तेरी वजह से एक तेरी खातिर

Aur ritika ke to kya kahne.
उसने जी भर के चाहा मुझे
फिर हुआ यूँ कि उसका जी भर गया

Is shahar me taareef ke kaabil bhi wahi tha
Ye baat alag hai ki mera qatil bhi wahi tha.

:bow: :bow: :bow:

और भी ग़म हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा.....
लेकिन इश्क़ तो जुनून की तरह है............अब तो ....उसके लिए न सही....उसकी वजह से जान देने का इरादा :shocked:
तभी तो दीवाना (पागल) कहा जाता है आशिक को.......
देखते हैं अभी और कितना काला होगा ........ये इश्क़

बहुत रंगीन थी जिंदगी तुझे पा कर...
तेरे जाते ही दिल की दीवारें फीकी पड़ गईं...

Manu changes the house and gets ready to work, so that he forgets Ritu but it is impossible. What is happening to Manu is getting very bad. Every pain medicine is alcohol and Manu is drinking alcohol.
As always the update was great, You are writing very well, Now let's see what happens next, Till then waiting for the next part of the story. Thank You...:heart::heart::heart:

नशा हम किया करते हैं
इल्ज़ाम शराब को दिया करते हैं,
कसूर शराब का नहीं उनका है
जिसका चेहरा हम जाम में तलाश किया करते हैं।





आप सभी के लिए ये ख़ास शेर,
अर्ज किया है;

दिल भी तोडा तो सलीक़े से न तोडा तुम ने
बेवफाई के भी आदाब हुआ करते हैं
 

Kratos

Anger can be a weapon if you can control it use it
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:bow: :bow: :bow:



बहुत रंगीन थी जिंदगी तुझे पा कर...
तेरे जाते ही दिल की दीवारें फीकी पड़ गईं...


नशा हम किया करते हैं
इल्ज़ाम शराब को दिया करते हैं,
कसूर शराब का नहीं उनका है
जिसका चेहरा हम जाम में तलाश किया करते हैं।





आप सभी के लिए ये ख़ास शेर,
अर्ज किया है;

दिल भी तोडा तो सलीक़े से न तोडा तुम ने
बेवफाई के भी आदाब हुआ करते हैं
वो हारकर किसी गैर को अपना दिल हमसे ही हमारे दिल का हाल पूछने आए हैं,,,
ये तो वही बात हुई जनाब कत्ल को अंजाम देकर ज़नाजे में मौत की वजह पूछने आए हैं।।।
 

Rockstar_Rocky

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वो हारकर किसी गैर को अपना दिल हमसे ही हमारे दिल का हाल पूछने आए हैं,,,
ये तो वही बात हुई जनाब कत्ल को अंजाम देकर ज़नाजे में मौत की वजह पूछने आए हैं।।।

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं...

Bahut dard bhara update tha.
Fabulous update.
Pta nahi kya banega is bechare ka.

:thank_you:
पता नहीं जी क्या होगा बेचारे का....
 

Rockstar_Rocky

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firefox420 भाई आपके लिए

ना जाने क्यों तुमने मुझे भुला दिया,
बिना आँसू के ही रुला दिया,

तुहारा ये रुख बड़ा दर्द देता है,
मानो ये दिल बिना सासे लिए ही जीता है|
 

Rockstar_Rocky

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अब तक आपने पढ़ा:

पेग खत्म हुआ और मैं वापस आ कर निचे बैठ गया पर अब दिल बगावत करने लगा था, उसे अब बस ऋतू चाहिए थी! चाहे जो करना पड़े वो कर पर उसे अपने पास ले आ! और अगर तू इतना ही बुजदिल है की अपने प्यार को ऐसे छोड़ देगा तो धिक्कार है तुझ पर! मर जाना चाहिए तुझे!!! मन ने ये suicidal ख्याल पैदा करना शुरू कर दिए थे| ऋतू को अपने पास ला सकूँ ये मेरे लिए नामुमकिन था और मरना बहुत आसान था! तभी नजर कमरे में घूम रहे पंखे पर गई.....

update 61

पर जान देना इतना आसान नहीं होता...वरना कितने ही दिल जले आशिक़ मौत की नींद सो चुके होते! मैं कुछ लड़खड़ाता हुआ उठा और रस्सी ढूँढने लगा, नशे में होने के कारन सामने पड़ी हुई रस्सी भी नजर नहीं आ रही थी| जब आई तो उसे उठाया और फिर पंखे की तरफ फेंकी और फंदा बना कर पलंग पर चढ़ गया| गले में डालने ही वाला था की दिमाग ने आवाज दी; "अबे बुज़दिल! ऐसे मरेगा? दुनिया क्या कहेगी? मरना है तो ऐसे मर की रितिका की रूह तुझे देख-देख कर तड़पे!" ये बात दिल को लग गई और मैं बिस्तर से नीचे उतरा और वापस जमीन पर बैठ गया| समानेभरी सिगरेट भरी पड़ी थी, वो उठाई और पीने लगा| घडी में 12 बजे थे और नशे ने मुझे दर्द के आगोश से खींच कर अपने सीने से चिपका लिया था और मैं चैन की नींद सो गया| सुबह दीदी के आने के बाद आँख खुली और मैं आँख मलता हुआ बाथरूम में घुस गया, जब बाहर आया तो दीदी घर से चाय ले आईं थी| मैंने उन्हें Thank you कहा और उनसे कहा की वो मेरी मदद करें ताकि मैं कुछ घर का समान खरीद सकूँ| पुराना समान तो मैं पुराने वाले घर में छोड़ आया था| दीदी की मदद से ऑनलाइन कुछ बर्तन मँगाए और कुछ कपडे अपने लिए मंगाए| दीदी उठ कर कमरे में सफाई करने गईं तो उन्हें वहाँ पंखे से लटकी रस्सी दिखाई दी और वो चीखती हुईं बाहर आईं|

"आप खुदखुशी करने जा रहे थे साहब?" दीदी ने हैरानी से पुछा, तो मैंने बस ना में सर हिला दिया| "तो फिर ये रस्सी अंदर पंखे से झूला झूलने को लटकाई थी?!" दीदी ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा, पर मेरे पास कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं चुप रहा|

"क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद करने पर तुले हो?" दीदी ने खड़े-खड़े मुझे अपनापन दिखाते हुए कहा| मैं उस समय फर्श पर दिवार का सहारा ले कर बैठा था और वहीँ से बैठे-बैठे मैंने दीदी की आँखों में देखा और उनसे पुछा; "आपने कभी प्यार किया है?"

"जिससे शादी की उसी से प्यार करना सीख लिया|" दीदी ने बड़ी हलीमी से जवाब दिया, उनका जवाब सुन कर एहसास हुआ की मजबूरी में इंसान हालात से समझौता कर ही लेता है|

"फिर आप मेरा दुःख नहीं समझ सकते!" मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा|

"शराब पीने से ये दर्द कम होता है?" दीदी ने पुछा|

"कम तो नहीं होता पर उस दर्द को झेलने की ताक़त मिलती है और चैन से सो जाता हूँ!"

"कल आपका दोस्त कुछ कह रहा था ना की आप........." इसके आगे उनकी बोलने की हिम्मत नहीं हुई और उन्होंने अपना सर झुकाया और अपने सीन पर से साडी का पल्लू खींच कर नीचे गिरा दिया| उनका मतलब कल रात सिद्धार्थ की कही हुई बात की कोई लड़की पेल दे से था| इधर मेरी नजर जैसे ही उनके स्तनों पर पड़ी मैं तुरंत बोला:

"प्लीज ऐसा मत करो दीदी! मैं आपको सिर्फ जुबान से दीदी नहीं बोलता!" इतना सुनते ही दीदी जमीन पर घुटनों के बल बैठ गईं और अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा लिया और रोने लगी| मैं अब भी अपनी जगह से हिला नहीं था, मेरा उन्हें सांत्वना देना और छूना मुझे ठीक नहीं लग रहा था| "साहब....." वो आगे कुछ बोलतीं उससे पहले ही मैं बात काटते हुए बोला; "दीदी आपसे छोटा हूँ कम से कम 'भैय्या' ही बोल दो!" ये सुन कर वो मेरी तरफ आँखों में आँसू लिए देखने लगी और अपनी बात पूरी की; "भैय्या.... मैंने आज तक ऐसा कुछ नहीं किया! पर आप से मिलने के बाद कुछ अपनापन महसूस हुआ और आपकी ये हालत मुझसे देखि नहीं गई इसलिए मैंने....." आगे वो शर्म के मारे कुछ नहीं बोलीं|

"दीदी प्लीज कभी किसी के भी मोह में आ कर फिर कभी अपनी इज्जत को यूँ न गिरा देना! मेरा दोस्त तो पागल है!" आगे मेरा कुछ कहने का मन नहीं हुआ क्योंकि उससे दीदी और शर्मिंदा हो जातीं| मैं तैयार हुआ और तब तक दीदी ने पूरा घर साफ़ कर दिया था और वो मेरे कल के बिखेरे हुए कपडे संभाल रहीं थी|


"दीदी वो...बर्तन तो कल आएंगे ... आप कल से खाना बना देना!" इतना कह कर मैं ने अपना बैग उठाया, दीदी समझ गईं की मेरे जाने का समय है तो वो पहले निकलीं और मैं बाद में निकल गया| वो पूरा दिन ऐसे ही बीता और रात को 10 बजे मैं घर पहुँचा| फिर वही पेग बनाया और बालकनी में बैठ गया| पर आज Suicidal Tendencies पैदा नहीं हुईं क्योंकि दिमाग में कुछ और ही चल रहा था और जबतक सो नहीं गया तब तक पीता रहा| सुबह वही दीदी के आने के बाद उठा, वो आज भी मेरे लिए चाय ले आईं थी| चाय पीता हुआ मैं अभी भी सर झुकाये बैठा था, दीदी भी चुप-चाप अपना काम कर रही थीं| बात शुरू करते हुए मैंने पुछा; "दीदी आपके घर में कौन-कौन हैं?"

"मैं, मेरा पति और एक मुन्ना|" दीदी ने बड़ा संक्षेप में जवाब दिया, वो अब भी कल के वाक्या के लिए शर्मिंदा थीं|

"कितने साल का है मुन्ना?" मैंने बात को आगे बढ़ाने के लिए पुछा|

"साल भर का|" दीदी के जवाब से लगा की शायद वो और बात नहीं करना चाहतीं, इसलिए मैंने उठ खड़ा हुआ और बाथरूम जाने लगा| तभी दीदी को पता नहीं क्या सूझी वो आ कर मेरे गले लग गईं और बिफर पड़ीं; "भैया ....मुझे .... गलत ......न समझना|" उन्होंने रोते-रोते कहा| मैंने उन्हें अपने सीने से अलग किया और उनके आँसू पोछते हुए कहा; "दीदी मैं आपके जज्बात महसूस कर सकता हूँ और मैं आपके बारे में कुछ भी बुरा नहीं सोच रहा| जो हुआ उससे पता चला की आपका मेरे लिए कितना मोह है| अब भूल भी जाओ ये सब. जिंदगी इतनी बड़ी नहीं होती की इतनी छोटी-छोटी बातों को दिल से लगा कर रखो|" मेरी बात सुन कर उन्हें इत्मीनान हुआ और वो थोड़ा मुस्कुराईं और मैं बाथरूम में फ्रेश होने चला गया| मेरे रेडी होने तक उनका काम खत्म हो चूका था, मेरे बाहर आते ही वो बोल पड़ीं; "भैया आप सुबह पूछ रहे थे ना की मेरे बारे में पूछ रहे थे, मेरे पति सेठ जी के यहीं पर ड्राइवर हैं, माता-पिता की मृत्यु मेरे बचपन में ही हो गई थी| फिर मैं यहाँ अपनी मौसी के पास आ गई और उनके साथ रह कर मैंने घर-घर काम करना शुरू किया| दो साल पहले मेरी शादी हुई और शादी के बाद मेरे पति दुबई निकल गए पर कुछ ही महीनों में उनकी नौकरी चली गई| मौसी की जानकारी निकाल कर यहाँ नौकरी मिली और सेठ जी ने भी मुझे पूरी सोसाइटी का काम दे दिया| अब यहाँ के सारे घरों का काम मेरे जिम्मे है|" दीदी ने बड़े गर्व से कहा|

"सारी सोसाइटी का काम आप अकेली कर लेती हो?" मैंने मुस्कुराते हुए पुछा|

"यहाँ 20 फ्लैट हैं और अभी बस 10 में ही लोग रहते हैं| एक आपको छोड़ कर सब शादी-शुदा हैं और वहाँ पर सिर्फ झाडू-पोछा या कपडे धोने का ही काम होता है|"

"आप तो यहाँ सारा दिन होते होंगे ना? तो मुन्ना का ख्याल कौन रखता है?"

"भैया मैं तो यही रहती हूँ पीछे सेठ जी ने क्वार्टर बना रखे हैं| दिन में 20 चक्कर लगाती हूँ घर के ताकि देख सकूँ की मुन्ना क्या कर रहा है? कभी-कभी उसे भी साथ ले जाती हूँ|"

"तो मुझे भी मिलवाओ छोटे साहब से!" मैंने हँसते हुए कहा|

"संडे को ले आऊँगी|" उन्होंने हँसते हुए कहा|

उसके बाद दीदी निकल गईं और मैं भी अपने काम पर चला गया| शाम का वही पीना और नशे से चूर सो जाना| ऐसे करते-करते संडे आ गया और आज मैं तो जैसे उस नन्हे से दोस्त से मिलने को तैयार था| सुबह जल्दी उठा और तैयार हो कर बैठ गया, शराब की सारी बोत्तलें एक तरफ छुपा दीं| दीदी आईं तो दरवाजा खुला हुआ था और वो मुझे तैयार देख कर हैरान हो गईं| उनकी गोद में मुन्ना था जो बड़ी हैरानी से मुझे देख रहा था| "मुन्ना ...देखो तेरे मामा|" दीदी ने हँसते हुए कहा|


पर वो बच्चा पता नहीं क्यों मुझे टकटकी बांधे देख रहा था, जैसे की अपने नन्हे से दिमाग में आंकलन कर रहा हो और जब उसे लगा की हाँ ये 'दाढ़ी वाला' आदमी सही है तो वो मेरी तरफ आने को अपने दोनों पँख खोल दिए| मैंने उस बच्चे को जैसे ही गोद में लिया वो सीधा मेरे सीने से लग गया| जिस सीने में नफरत की बर्फ जम गई थी वो आज इस बच्चे के प्यार से पिघलने लगी थी| मेरी आँखें अपने आप ही बंद होती गईं और मैं रितिका के प्यार को भूल सा गया.... या ये कहे की उस बच्चे ने अपने बदन की गर्मी से रितिका के लिए प्यार को कहीं दबा दिया था| उसका सर मेरे बाएँ कंधे पर था और वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से जैसे मुझे जकड़ना चाहता था| उसकी तेज चलती सांसें ...वो फूल जैसी खुशबु.... उनके नन्हे-नन्हे हाथों का स्पर्श.... उस छोटे से 'पाक़' दिल की धड़कन... वो फ़रिश्ते सी आभा.... इन सब ने मेरे मन में जीने की एक ख्वाइश पैदा कर दी थी| मन इतना खुश कभी नहीं हुआ था, की आज मुझे अपने अंदर एक नई ऊर्जा महसूस होने लगी थी| मन ने जैसे एक छोटी सी दुनिया बना ली थी जिसमें बस मैं और वो बच्चा था|

इस बात से बेखबर की दीदी मुस्कुराती हुई मुझे अपने बच्चे को सीने से लगाए देख रही हैं| मुझे होश तब आया जब उस बच्चे ने 'डा...डा..डा' कहना शुरू किया| मैंने आँखें खोलीं और दीदी को मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए पाया| मैंने उसे नीचे उतारा तो वो अपने चरों हाथों-पैरों पर रेंगता हुआ बालकनी की तरफ जाने लगा| "भैया सच्ची तुम मुन्ना के साथ कितने खुश थे! ऐसे ही खुश रहा करो!"

"तो फिर आप रोज मुन्ना को यहाँ ले आया करो|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और फिर मुन्ना के पीछे बालकनी की तरफ चल दिया| वो बालकनी के शीशे के सहारे खड़ा हुआ और नीचे देखने लगा| उसके चेहरे की ख़ुशी ब्यान करने लायक थी, उस नन्ही से जान को किसी बात की कोई चिंता नहीं थी, वो तो बस अपनी मस्ती में मस्त था! कितना बेबाक होता है ना बचपन! दीदी काम करने में व्यस्त हो गईं और मैं मुन्ना के साथ खेलने लगा| कभी वो रेंगता हुआ इधर-उधर भागता... कभी हम दोनों ही सर से सर भिड़ा कर एक दूसरे को पीछे धकेलने की कोशिश करते, में जानबूझ कर गिर जाता और वो आ कर मेरे ऊपर चढ़ने की कोशिश करता| मैं उसे उठा कर अपने सीने पर बिठा लेता और उसके नन्हे-नन्हे हाथों से खुद को मुके पढ़वाता| कभी उसे गोद में ले कर पूरे कमरे में दौड़ता तो कभी उसे अपनी पीठ पर बिठा के उसे घोड़े की सवारी कराता| पूरा घर मुन्ना की किलकारियों से गूँज रहा था और आज इस घर में जैसे जानआ गई हो, छत-दीवारें सब खुश थे! काम खत्म कर दीदी मुन्ना को मेरे पास ही छोड़ कर चली गईं, फिर कुछ देर बाद आईं और तब तक दोपहर के खाने का समय हो गया था| उसे उन्होंने दूध पिलाया और मेरे लिए गर्म-गर्म रोटियाँ सेंकीं जो मैंने बड़े चाव से खाईं! आज तो खाने में ज्यादा स्वाद आ रहा था इसलिए मैं दो रोटी ज्यादा खा गया| मेरे खाने के बाद दीदी ने भी खाना खाया और वो काम करने चलीं गई| मुन्ना सो गया था तो मैं उसकी बगल ही लेट गया और उसे बड़ी हसरतें लिए देखने लगा और फिर से अपने छोटी सी ख़्वाबों की दुनिया में खो गया| मुन्ना के चेहरे पर कोई शिकन कोई चिंता नहीं थी, उसके वो पाक़ चेहरा मुझे सम्मोहित कर रहा था| कुछ घंटों बाद मुन्ना उठा तो मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने उसे गोद में लिया और फिर पूरे घर में घूमने लगा| उसने बालकनी में जाने का इशारा किया तो मैं उसे ले कर बालकनी में खड़ा हो गया और वो फिर से सब कुछ देख कर बोलने लगा| अब उसके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे पर मेरा मन उसकी आवाजों को ही शब्दों का रूप देने लगा| मैंने भी उससे बात करना शुरू कर दिया जैसे की सच में मैं उसकी बात समझ पा रहा हूँ| घर का दरवाजा खुला ही था और जब दीदी ने मुझे पीछे से मुन्ना से बात करते हुए देखा तो वो बोलीं; "सारी बातें मामा से कर लेगा? कुछ कल के लिए भी छोड़ दे?" मैं उनकी तरफ घूमा और हँसने लगा| मैं समझ गया था की वो मुन्ना को लेने आईं है पर मन मुन्ना से चिपक गया था और उसे जाने नहीं देना चाहता था| बेमन से मैंने उन्हें मुन्ना की तरफ बढ़ाया पर वो तो फिर से मेरे सीने से चिपक गया| मैंने उसके माथे को चूमा और तुतलाते हुए उससे कहा; "बेटा देखो मम्मी आई हैं! अभी आप घर जाओ हम कल सुबह मिलेंगे!" पर उसका मन मुझसे अलग होने को नहीं था, ये देख दीदी भी मुस्कुरा दीं और बोलीं; "भैया सच ये आपसे बहुत घुल-मिल गया है| वरना ये किसी के पास जयदा देर नहीं ठहरता, मुझे देखते ही मेरे पास भाग आता है|" तभी उनका पति भी आ गया और उसने दीदी की बातें सुन भी लीं| अरे चल भी साहब को क्यों तंग कर रही है!" दीदी उसकी आवाज सुन चौंक गईं और मेरे हाथ से जबरदस्ती मुन्ना को लिया और घर चली गईं|

अब मैं फिर से घर में अकेला हो गया था, पर मन आज की खुशियों से खुश था इसलिए आज मैंने नहीं पीने का निर्णय लिया और खाना खा कर लेट गया| पर नींद आँखों से गायब थी, गला सूखने लगा और मन की बेचैनी बढ़ने लगी| मैंने करवटें लेना शुरू किया ताकि सो सकूँ पर नींद कम्भख्त आई ही नहीं| कलेजे में जलन महसूस होने लगी जो दारू ही बुझा सकती थी| मैं एक दम से खड़ा हुआ और दारु की बोतल निकाली और उसे अपने होठों से लगा कर पीने लगा| पलंग पर पीठ टिका कर धीरे-धीरे सारी बोतल पी गया और तब जा कर नींद आई| एक बात अच्छी हुई थी, वो ये की मुन्ना के प्यार ने मुझे उस दर्द की जेल से बाहर निकाल लिया था| सुबह जल्दी ही आँख खुल गई, शायद मन में मुन्ना से मिलने की बेताबी थी! मैं फ्रेश हो कर कपडे बदल कर बैठ गया की तभी बैल बजी| मैंने दरवाजा खोला और मुझे देखते ही मुन्ना मेरी बाहों में आने को मचलने लगा| उसे गोद में लेते ही जैसी बरसों पुराणी प्यास बुझ गई और मैं उसे ले कर ख़ुशी-ख़ुशी बालकनी में आ गया और वहाँ कुर्सी पर बैठ उससे फिर से बातें करने लगा| फिर मैंने अपना फ़ोन उठाया और मुन्ना को कुछ कपडे दिखाने लगा और उससे 'नादानी' में पूछने लगा की उसे कौन सी ड्रेस पसंद है? अब वो बच्चा क्या जाने, वो तो बस फ़ोन से ही खेलने लगा| वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से फ़ोन को पकड़ने लगा| आखिर मैंने उसके लिए एक छोटा सा सूट आर्डर किया और Early Delivery select कर मैंने उसे अगले दिन ही मँगवा लिया| दीदी को इस बारे में कुछ पता नहीं था, इधर अरुण का फ़ोन आया और वो पूछने लगा की मैं कब आ रहा हूँ? अब मन मारते हुए मुझे ओफिस जाना पड़ा और मुझे जाते देख मुन्ना रोने लगा| दीदी ने उसे बड़े दुलार से चुप कराया और मैं उसके माथे को चूम कर ऑफिस निकला| मेरी ख़ुशी मेरे चेहरे से झलक रही थी जिसे देख मेरा दोस्त अरुण खुश था| सर दोपहर को ही निकल गए थे और मैं शाम को जल्दी भाग आया, सोसाइटी के गेट पर ही मुझे दीदी और मुन्ना मिल गए और मुझे देखते ही वो मेरी गोद में आने को छटपटाने लगा| दीदी ने हँसते हुए उसे मुझे दिया और खुद बजार चली गईं, इधर मैं गार्ड से कल का आर्डर किया हुआ पार्सल ले कर घर आ गया| मैंने मुन्ना को खुद वो कपडे पहनाये जो उसे बिलकुल परफेक्ट फिट आये, कहीं उसे नजर न लग जाए इसलिए मैंने उसे एक काला टीका लगाया| ये कला टीका मैंने तवे के पेंदे से कालक निकाल कर लगाया था| फिर उसे गोद में लिए हुए मैंने बहुत सारी फोटो खींची| कुछ देर बाद जब दीदी आईं तो अपने बच्चे को इन कपड़ों में देख उनकी आँखें नम हो गईं| उन्होंने अपनी आँख से काजल निकल कर उसे टिका लगाना चाहा तो देखा की मैं पहले ही उसे टिका लगा चूका था| "भैया ये टिका तुमने कैसे लगाया?" उन्होंने अपने आँसू पोछते हुए पुछा| "दीदी मुझे डर लग रहा था की कहीं मेरी ही नजर न लग जाए मुन्ना को तो मैंने तवे के पेंदे से कालक निकाल कर ये छोटा सा टिका लगा दिया|" मैंने जब ये कहा तो दीदी हँस दी|

"पर भैया ये तो बहुत महँगा होगा?"

"मेरे भांजे से तो महँगा नहीं ना?!" फिर मैं मुन्ना को ले कर बालकनी में बैठ गया| रात होने तक मुन्ना मेरे साथ ही रहा, फिर दीदी उसे लेने आईं और मुन्ना फिर से नहीं जाने की जिद्द करने लगा| पर इस बार मैंने उसे बहुत प्यार से दुलार किया और उसे दीदी के हाथों में दे दिया| दीदी जाने लगी तो मैं हाथ हिला कर उसे बाय-बाय करने लगा और वो भी मुझे देख कर पाने नन्हे हाथ हिला कर बाय करने लगा| खाना खा कर लेता पर शराब ने मुझे सोने नहीं दिया, अब तो मेरे लिए ये आफत बन गई थी! मैंने सोच लिया की धीरे-धीरे इसे छोड़ दूँगा क्योंकि अब मेरे पास मुन्ना का प्यार था| पर उन दिनों मेरी किस्मत मुझसे बहुत खफा थी, क्यों ये मैं नहीं जानता पर मुझे लगने लगा था की जैसे वो ये चाहती ही नहीं की मैं खुश रहूँ! अगली सुबह मैं फटाफट उठा और फ्रेश हो कर दरवाजे पर नजरे टिकाये मुन्ना के आने का इंतजार करने लगा| आमतौर पर दीदी 7 बजे आ जाये करती थीं और अभी 9 बजने को आये थे उनका कोई अता-पता ही नहीं था| मन बेचैन हुआ और मैं उन्हें ढूँढता हुआ नीचे आया तो देखा की वहाँ पुलिस खड़ी है, गार्ड से पुछा तो उसने बताया की आज सुबह दीदी का पति उन्हें और मुन्ना को ले कर भाग गया| उसने रात को सेठजी के पैसे चुराए थे और उन्ही ने पुलिस बुलाई थी|


मुझे सेठ के पैसों से कोई सरोकार नहीं था मुझे तो मुन्ना के जाने का दुःख था! भारी मन से मैं ऊपर आया और दरवाजा जोर से बंद किया| शराब की बोतल निकाली और उसे मुँह से लगा कर गटागट पीने लगा| एक साँस में दारु खींचने के बाद मैंने बोतल खेंच कर जमीन पर मारी और वो चकना चूर हो गई, कांच सारे घर में फ़ैल गया था! मैं बहुत जोर से चिल्लाया; "आआआआआआआआआआआआआ!!" और फिर घुटनों के बल बैठ कर रोने लगा| "क्या दुश्मनी है तेरी मुझसे? मैंने कौन सा सोना-चांदी माँगा था तुझसे? तुने 'ऋतू' को मुझसे छीन लिया मैंने तुझे कुछ नहीं कहा, पर वो छोटा सा बच्चा जिससे प्यार करने लगा था उसे भी तूने मुझसे छीन लिया? जरा सी भी दया नहीं आई तेरे मन में? क्या पाप किया है मैंने जिसकी सजा तू मुझे दे रहा है? सच्चा प्यार किया था मैंने!!!! कम से कम उस बच्चे को तो मेरे जीवन में रहने दिया होता! दो दिन की ख़ुशी दे कर छीन ली, इससे अच्छा देता ही ना!" मैं गुस्से में फ़रियाद करने लगा|
 
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