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Incest काला नाग

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अध्याय ५



अगले दिन ही मैने मिस्त्री को बुला के ऊपर के कमरे पर काम शुरू कर दिया। जब मेरे पति आए तब उन्होंने मुझ से पूछा।

सुशांत: ये ऊपर कमरा क्यू बनवा रही हो।

मैं: वो अथर्व की कसरत के लिए।

सुशांत: सांड सा हो रहा हैं तुम्हारा लाल अब और क्या बनेगा।

मैं: ये ही उमर हैं उसके शरीर बनाने की जो आगे चल कर उसके काम आएगा। कही तुम्हारे तरह भरी जवानी में लूल हो गया तो। ( ये पहली बार था जब मैंने अपने पति को उनकी नपुंसकता के लिए उलहाना दिया हो, क्युकी मुझे तो पता था कि ये सब कैसे हुआ है पर इन सब से अंजान बन के मैने उनकी दुखती रग पे हाथ रख दिया क्युकी अथर्व ने नफरत का बीज बो दिया था)

सुशांत: (बहुत अचंभित हो गए) सविता मुझे नहीं मालूम ये सब कैसे हुआ, कोई बुरा ऐब या शौक नहीं मुझे फिर भी हो गया। कितने ही डॉक्टर और वेद हकीम को दिखाया पर कुछ असर नहीं हुआ। मैने कोई जान मूछ कर तो नही किया हैं। मैं आज भी सिर्फ तुमसे प्यार करता हूं।

मैं: छोड़ो इन बातो को, अब क्या फरक पड़ता हैं। अब ये बताओ अंजली के लिए जो पिछले हफ्ते आए थे उनसे बात हुई।

सुशांत: हां हुई थी बात नही बनी, कहते हैं लड़की और लड़के की कुंडली नही मिल रही।

मैं: कुछ भी तो दोष नही हैं मेरी बच्ची की कुंडली में फिर भी बात क्यू नही बनती।

सुशांत: शुक्र हैं तुम्हे अपने लाडले के इलावा अपनी बच्चियों की भी चिंता हैं। मुझे तो कभी कभी लगता हैं की तुम्हे सिर्फ अथर्व को ही चिंता हैं।

मैं: देखना एक दिन मेरा अथर्व ही मेरी बेटियों का उद्धार करेगा। ( तब मुझे ये नही पता था कि अथर्व मेरी बेटियों को भी चोद कर उन्हें अपने बच्चो की मां बनाएगा।)

सुशांत: चलो देखते हैं, अच्छा सुनो मुझे ५००० रुपए दो।

मैं: हाय राम ५००० रुपए, इतने रुपया क्या करोगे।

सुशांत: अरे वो धनीराम हैं ना उसकी लुगाई बीमार हैं, उसको जरूरत हैं। विमला(धनीराम की लुगाई) आजकल खेतो पर भी नही आ रही काम करने।

मुझे मालूम हैं की धनीराम एक नंबर का शराबी हैं और जुआरी है, इसलिए उसके काम का मेहनताना मैं विमला को ही देती थी।

मैं: उसके लिए ५००० नही है मेरे पास, १००० २००० रुपए देदो। उसने वैसे भी शराब में उड़ने हैं। समझे।

सुशांत: अरे मैं उसे बोल चुका हूं, अगली बार मत देना। समझा करो मैं जबान दे चुका हूं।

मरती क्या न करती मैने सुशांत को तिजोरी में से निकाल के ५००० रुपए दे दिए। उसको लेके वो चले गए और ये बोले गए की अभी ४ ५ दिन वो घर नही आयेंगे क्युकी धनीराम रखवाली करने नही आयेगा। वो चले गए।

मैं भी अपने कामों में व्यस्त हो गई।

१ महीने में अथर्व का कमरा बनकर तैयार हो गया।

अथर्व अब रोज रात को साधना करता और मैं रोज सुबह उसके कमरे की सफाई करती। रोज कम से कम दो बॉटल शराब की मिलती मुझे। चिल्लम भी मिलती पर मैने उससे कुछ नही पूछा। एक दिन सफाई करते वक्त मेरे पैर मैं कुछ चीप चिपा लगा जो की बहुत मात्रा में था। मैने उंगली में लिया और सुंघा। सूंघते ही मैं मंत्रमुग्ध सी हो गई उसकी खुशबू में। जी है ये वो ही था जिसकी हर औरत दीवानी होती हैं और मैं तो खासकर, ये मेरे अथर्व का वीर्य था।

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क्या मर्दाना खुशबू आ रही थी उसमे से और इतना ज्यादा की एक बार में १० आदमी निकलते होंगे। ना जाने क्या हुआ में अथर्व का वीर्य उंगली से उठाके चाटने लगी।

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उसका स्वाद मुझे इतना अच्छा लगा की मैं उंगली में लगा एक एक कतरा चूसने लगी। तभी एक आवाज मेरे कानो में पड़ी " इस को चाट मत अपनी चूत पे मल और गांड़ के सुराख पर मल, थोड़ा सा अपनी चुचियों की घुंडी पे मल" और मैने वो ही किया। जैसे ही वीर्य को अपनी चूत पे मला मेरी चूत ने अमृत बरसाना शुरू कर दिया। मैं उसको अपनी बिना बालो वाली चूत पर मलने लगी। मेरे मुंह से सिसकारी फूटने लगी ।

मैं: आह ऊ ऊऊऊऊऊऊ आई आह, कितना गरम हैं तेरा वीर्य मेरे ठाकुर। कब डालेगा इसे मेरे अंदर सीधे अपने नलके से। सी सी सी आह ऊ ऊ। चोद डाल मुझे मेरे राजा। आह जल्दी कर मेरे ठाकुर तेरी ठकुराइन तड़प रही हैं तेरे लिए। चोद मुझे।

ना जाने कितनी देर तक मैं यूं ही करती रही पर मुझे चरमसुख प्राप्त नहीं हुआ। मेरी खुमारी और तड़प बढ़ती जा रही थी। पर इसके आगे मैं कुछ और कर भी नही सकती थी। हार कर मैने अपने कपड़े सही किए और कमरा साफ़ करने लगी। अब तो ये मेरा रोज का काम हो गया था। दिन प्रतिदिन वीर्य की मात्रा बढ़ती जा रही थी मुझे ऐसे ही अंदेशा हुआ।

अथर्व दिन भर घर पे नही रहता था और रात को भी देर से आता और साधना करता और सुबह उठते ही निकल जाता। एक दिन मैंने उसको सुबह जल्दी पकड़ किया और मुझको देखते ही उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और अपना लन्ड मेरी चूत से सटा दिया।


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मैं : आह आह। अच्छा आज दिख गई तो प्यार जता रहा हैं वरना दिन भर कहा गायब रहता हैं। कब आता हैं कब जाता हैं कुछ पता नहीं पड़ता। क्या खाता हैं क्या पीता है, कुछ नही मालूम पड़ता।

अथर्व : तू चिंता मत कर ठकुराइन मैं जो भी कर रहा हूं, हम दोनो के लिए कर रहा हूं।

मैं: अच्छा तो दिन भर कहा हांडता फिरता हैं। कोई घर को सुध बुध हैं की नही। तू दिन भर न दिखे तो चिंता होती है। कभी घर पर रहकर घरवालों के साथ भी कुछ पल गुजारा कर। पता हैं तेरी बहन की रिश्ता फिर नही हुआ। मुझे बहुत चिंता हो रही हैं।

अथर्व: तू चिंता मत कर, अभी समय नही आया हैं अंजली की शादी का। ७ महीने बाद चारो की शादी को योग बनेगा, चिंता मत कर। मैं सब को संभाल लूंगा।

मैं: ( उसकी दुवार्थी बात को न समझ सकी) मुझे पता हैं की तू सब संभाल लेगा। अच्छा चल अब ये बता दिन भर कहा रहता हैं। रात को इतनी साधना करता हैं दिन को आराम किया कर।

अथर्व : आराम नही ठकुराइन समय कम हैं और बहुत काम करने हैं। दिन का काम तो बस एक दो महीने का और हैं फिर मैं बस दिन भर घर पे ही रहूंगा।

मैं: ऐसा क्या काम कर रहा हैं दिन में, अपनी ठकुराइन को नही बताएगा।

अथर्व: तू नही मानेगी ठकुराइन, तो सुन मैं दिन भर पड़ोस के शहर में एक वेद के पास से जड़ी बूटियों का ज्ञान ले रहा हूं। आगे जाके हम दोनो के बहुत काम आयेगा।

मैं: जड़ी बूटी से हमारा क्या काम?

अथर्व: तुझे नही मालूम वो मादरचोद रंजीत ड्रग्स का कारोबार कर रहा हैं। सरकार से चुप कर और पुलिस वालो को अपने साथ मिलाके हरामी अफीम की खेती कर रहा हैं, हमारे खेतो में। जड़ी बूटी का ज्ञान लेके हम उस से अच्छी अफीम उगाएंगे जब हवेली पर हमारा राज होगा। नोटो की बिस्तर पर सोएगी तु मेरी ठकुराइन। और जड़ी बूटी और भी बहुत काम की चीज हैं। हम सब को इसकी जरूरत पड़ेगी।

मैं: सच अथर्व, इतना पैसा होगा हमारे पास। ( एक बार फिर मेरा लालच मुझ पर हावी हो गया, मैने ये भी ध्यान नहीं दिया की अथर्व ने पहली बार मेरे सामने गाली का उपयोग किया)

अथर्व: ठकुराइन यकीन रख एक दिन तुझे सोने मैं तुझे सोने से लाद दूंगा।

और एक बार फिर उसने मुझे खुद से चिपका लिया। लोड़े की दस्तक फिर हुई मेरी चूत के द्वार पर। मेरी चूत तो पहले से ही द्वार खोले बैठी थी, पूरी फिसलन थी द्वार पर। मैने मस्ती में अपने होठ भींच लिए और अथर्व की आंखों में खोने लगी। तभी वो झटके से अलग हुआ घर से बाहर निकलने लगा। पीछे मुड़ के उसने देखा तो उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी।

अथर्व: जो प्रसाद मैं तेरे लिए छोड़ता हूं रोज उससे ग्रहण करती हैं या नहीं।

मैं: (अचंभित होते हुए) कौन सा प्रसाद।

अथर्व: वोही जो मैं रोज जमीन पे छोड़ता हूं तेरे लिए।

उसका इतना बोलते ही मेरी नजर शर्म से झुक गई और उसके गिरे हुए वीर्य का दृश्य मेरी आंखों के सामने घूम गया और न चाहते हुए भी मेरी गर्दन हां मैं हिलने लगी।

जब तक मेने नजरे उठाई तब तक अथर्व घर से बाहर निकल चुका था। और मैं तुरंत अथर्व के कमरे की ओर अपना प्रसाद ग्रहण करने के लिए। जब कमरे में पहुंची जो रोज की तरह उसी जगह मुझे मेरा प्रसाद पड़ा मिला। मैं उंगली में अपना प्रसाद लेनी वाली थी की फिर एक आवाज मेरे कानो में पड़ी "जीव से चाट ठकुराइन"

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और मैने वैसा ही किया। जीव से चाट अपना प्रसाद ग्रहण करने लगी। ऐसा करने से एक अजीब सी अनुभूति हुई, मेरी चूत में चीटियां रेंगने लगी। मैं कपड़े की ऊपर से ही अपनी रामप्यारी को सहलाने लगी, पर मेरी आग शांत होने का नाम नहीं ले रही। अपना प्रसाद ग्रहण करके मैं खड़ी हुई और मेरे चेहरे पर मुस्कान फैल गई। बरबस ही मेरे मुंह से निकला कितना प्यारा हैं मेरा "काला नाग"।

 

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The Bull.........Female Orgasm Expert
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Tumhare kaale naag ki to puja karne padegi hme.....
Aise lekhni bahut kam hi writers ke paas hoti hai..... Kuch sadhna kare ho kya.....
Zabardast....
 

VijayD

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Tumhare kaale naag ki to puja karne padegi hme.....
Aise lekhni bahut kam hi writers ke paas hoti hai..... Kuch sadhna kare ho kya.....
Zabardast....
शुक्रिया भाई
 
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अगले दिन ही मैने मिस्त्री को बुला के ऊपर के कमरे पर काम शुरू कर दिया। जब मेरे पति आए तब उन्होंने मुझ से पूछा।

सुशांत: ये ऊपर कमरा क्यू बनवा रही हो।

मैं: वो अथर्व की कसरत के लिए।

सुशांत: सांड सा हो रहा हैं तुम्हारा लाल अब और क्या बनेगा।

मैं: ये ही उमर हैं उसके शरीर बनाने की जो आगे चल कर उसके काम आएगा। कही तुम्हारे तरह भरी जवानी में लूल हो गया तो। ( ये पहली बार था जब मैंने अपने पति को उनकी नपुंसकता के लिए उलहाना दिया हो, क्युकी मुझे तो पता था कि ये सब कैसे हुआ है पर इन सब से अंजान बन के मैने उनकी दुखती रग पे हाथ रख दिया क्युकी अथर्व ने नफरत का बीज बो दिया था)

सुशांत: (बहुत अचंभित हो गए) सविता मुझे नहीं मालूम ये सब कैसे हुआ, कोई बुरा ऐब या शौक नहीं मुझे फिर भी हो गया। कितने ही डॉक्टर और वेद हकीम को दिखाया पर कुछ असर नहीं हुआ। मैने कोई जान मूछ कर तो नही किया हैं। मैं आज भी सिर्फ तुमसे प्यार करता हूं।

मैं: छोड़ो इन बातो को, अब क्या फरक पड़ता हैं। अब ये बताओ अंजली के लिए जो पिछले हफ्ते आए थे उनसे बात हुई।

सुशांत: हां हुई थी बात नही बनी, कहते हैं लड़की और लड़के की कुंडली नही मिल रही।

मैं: कुछ भी तो दोष नही हैं मेरी बच्ची की कुंडली में फिर भी बात क्यू नही बनती।

सुशांत: शुक्र हैं तुम्हे अपने लाडले के इलावा अपनी बच्चियों की भी चिंता हैं। मुझे तो कभी कभी लगता हैं की तुम्हे सिर्फ अथर्व को ही चिंता हैं।

मैं: देखना एक दिन मेरा अथर्व ही मेरी बेटियों का उद्धार करेगा। ( तब मुझे ये नही पता था कि अथर्व मेरी बेटियों को भी चोद कर उन्हें अपने बच्चो की मां बनाएगा।)

सुशांत: चलो देखते हैं, अच्छा सुनो मुझे ५००० रुपए दो।

मैं: हाय राम ५००० रुपए, इतने रुपया क्या करोगे।

सुशांत: अरे वो धनीराम हैं ना उसकी लुगाई बीमार हैं, उसको जरूरत हैं। विमला(धनीराम की लुगाई) आजकल खेतो पर भी नही आ रही काम करने।

मुझे मालूम हैं की धनीराम एक नंबर का शराबी हैं और जुआरी है, इसलिए उसके काम का मेहनताना मैं विमला को ही देती थी।

मैं: उसके लिए ५००० नही है मेरे पास, १००० २००० रुपए देदो। उसने वैसे भी शराब में उड़ने हैं। समझे।

सुशांत: अरे मैं उसे बोल चुका हूं, अगली बार मत देना। समझा करो मैं जबान दे चुका हूं।

मरती क्या न करती मैने सुशांत को तिजोरी में से निकाल के ५००० रुपए दे दिए। उसको लेके वो चले गए और ये बोले गए की अभी ४ ५ दिन वो घर नही आयेंगे क्युकी धनीराम रखवाली करने नही आयेगा। वो चले गए।

मैं भी अपने कामों में व्यस्त हो गई।

१ महीने में अथर्व का कमरा बनकर तैयार हो गया।

अथर्व अब रोज रात को साधना करता और मैं रोज सुबह उसके कमरे की सफाई करती। रोज कम से कम दो बॉटल शराब की मिलती मुझे। चिल्लम भी मिलती पर मैने उससे कुछ नही पूछा। एक दिन सफाई करते वक्त मेरे पैर मैं कुछ चीप चिपा लगा जो की बहुत मात्रा में था। मैने उंगली में लिया और सुंघा। सूंघते ही मैं मंत्रमुग्ध सी हो गई उसकी खुशबू में। जी है ये वो ही था जिसकी हर औरत दीवानी होती हैं और मैं तो खासकर, ये मेरे अथर्व का वीर्य था।

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क्या मर्दाना खुशबू आ रही थी उसमे से और इतना ज्यादा की एक बार में १० आदमी निकलते होंगे। ना जाने क्या हुआ में अथर्व का वीर्य उंगली से उठाके चाटने लगी।

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उसका स्वाद मुझे इतना अच्छा लगा की मैं उंगली में लगा एक एक कतरा चूसने लगी। तभी एक आवाज मेरे कानो में पड़ी " इस को चाट मत अपनी चूत पे मल और गांड़ के सुराख पर मल, थोड़ा सा अपनी चुचियों की घुंडी पे मल" और मैने वो ही किया। जैसे ही वीर्य को अपनी चूत पे मला मेरी चूत ने अमृत बरसाना शुरू कर दिया। मैं उसको अपनी बिना बालो वाली चूत पर मलने लगी। मेरे मुंह से सिसकारी फूटने लगी ।

मैं: आह ऊ ऊऊऊऊऊऊ आई आह, कितना गरम हैं तेरा वीर्य मेरे ठाकुर। कब डालेगा इसे मेरे अंदर सीधे अपने नलके से। सी सी सी आह ऊ ऊ। चोद डाल मुझे मेरे राजा। आह जल्दी कर मेरे ठाकुर तेरी ठकुराइन तड़प रही हैं तेरे लिए। चोद मुझे।

ना जाने कितनी देर तक मैं यूं ही करती रही पर मुझे चरमसुख प्राप्त नहीं हुआ। मेरी खुमारी और तड़प बढ़ती जा रही थी। पर इसके आगे मैं कुछ और कर भी नही सकती थी। हार कर मैने अपने कपड़े सही किए और कमरा साफ़ करने लगी। अब तो ये मेरा रोज का काम हो गया था। दिन प्रतिदिन वीर्य की मात्रा बढ़ती जा रही थी मुझे ऐसे ही अंदेशा हुआ।

अथर्व दिन भर घर पे नही रहता था और रात को भी देर से आता और साधना करता और सुबह उठते ही निकल जाता। एक दिन मैंने उसको सुबह जल्दी पकड़ किया और मुझको देखते ही उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और अपना लन्ड मेरी चूत से सटा दिया।


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मैं : आह आह। अच्छा आज दिख गई तो प्यार जता रहा हैं वरना दिन भर कहा गायब रहता हैं। कब आता हैं कब जाता हैं कुछ पता नहीं पड़ता। क्या खाता हैं क्या पीता है, कुछ नही मालूम पड़ता।

अथर्व : तू चिंता मत कर ठकुराइन मैं जो भी कर रहा हूं, हम दोनो के लिए कर रहा हूं।

मैं: अच्छा तो दिन भर कहा हांडता फिरता हैं। कोई घर को सुध बुध हैं की नही। तू दिन भर न दिखे तो चिंता होती है। कभी घर पर रहकर घरवालों के साथ भी कुछ पल गुजारा कर। पता हैं तेरी बहन की रिश्ता फिर नही हुआ। मुझे बहुत चिंता हो रही हैं।

अथर्व: तू चिंता मत कर, अभी समय नही आया हैं अंजली की शादी का। ७ महीने बाद चारो की शादी को योग बनेगा, चिंता मत कर। मैं सब को संभाल लूंगा।

मैं: ( उसकी दुवार्थी बात को न समझ सकी) मुझे पता हैं की तू सब संभाल लेगा। अच्छा चल अब ये बता दिन भर कहा रहता हैं। रात को इतनी साधना करता हैं दिन को आराम किया कर।

अथर्व : आराम नही ठकुराइन समय कम हैं और बहुत काम करने हैं। दिन का काम तो बस एक दो महीने का और हैं फिर मैं बस दिन भर घर पे ही रहूंगा।

मैं: ऐसा क्या काम कर रहा हैं दिन में, अपनी ठकुराइन को नही बताएगा।

अथर्व: तू नही मानेगी ठकुराइन, तो सुन मैं दिन भर पड़ोस के शहर में एक वेद के पास से जड़ी बूटियों का ज्ञान ले रहा हूं। आगे जाके हम दोनो के बहुत काम आयेगा।

मैं: जड़ी बूटी से हमारा क्या काम?

अथर्व: तुझे नही मालूम वो मादरचोद रंजीत ड्रग्स का कारोबार कर रहा हैं। सरकार से चुप कर और पुलिस वालो को अपने साथ मिलाके हरामी अफीम की खेती कर रहा हैं, हमारे खेतो में। जड़ी बूटी का ज्ञान लेके हम उस से अच्छी अफीम उगाएंगे जब हवेली पर हमारा राज होगा। नोटो की बिस्तर पर सोएगी तु मेरी ठकुराइन। और जड़ी बूटी और भी बहुत काम की चीज हैं। हम सब को इसकी जरूरत पड़ेगी।

मैं: सच अथर्व, इतना पैसा होगा हमारे पास। ( एक बार फिर मेरा लालच मुझ पर हावी हो गया, मैने ये भी ध्यान नहीं दिया की अथर्व ने पहली बार मेरे सामने गाली का उपयोग किया)

अथर्व: ठकुराइन यकीन रख एक दिन तुझे सोने मैं तुझे सोने से लाद दूंगा।

और एक बार फिर उसने मुझे खुद से चिपका लिया। लोड़े की दस्तक फिर हुई मेरी चूत के द्वार पर। मेरी चूत तो पहले से ही द्वार खोले बैठी थी, पूरी फिसलन थी द्वार पर। मैने मस्ती में अपने होठ भींच लिए और अथर्व की आंखों में खोने लगी। तभी वो झटके से अलग हुआ घर से बाहर निकलने लगा। पीछे मुड़ के उसने देखा तो उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी।

अथर्व: जो प्रसाद मैं तेरे लिए छोड़ता हूं रोज उससे ग्रहण करती हैं या नहीं।

मैं: (अचंभित होते हुए) कौन सा प्रसाद।

अथर्व: वोही जो मैं रोज जमीन पे छोड़ता हूं तेरे लिए।

उसका इतना बोलते ही मेरी नजर शर्म से झुक गई और उसके गिरे हुए वीर्य का दृश्य मेरी आंखों के सामने घूम गया और न चाहते हुए भी मेरी गर्दन हां मैं हिलने लगी।

जब तक मेने नजरे उठाई तब तक अथर्व घर से बाहर निकल चुका था। और मैं तुरंत अथर्व के कमरे की ओर अपना प्रसाद ग्रहण करने के लिए। जब कमरे में पहुंची जो रोज की तरह उसी जगह मुझे मेरा प्रसाद पड़ा मिला। मैं उंगली में अपना प्रसाद लेनी वाली थी की फिर एक आवाज मेरे कानो में पड़ी "जीव से चाट ठकुराइन"


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बहुत ही रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट है भाई मजा आ गया
लगता हैं काला नाग अथर्व अपनी बहनों भी भोग लगाने वाला हैं और बाप देखते रह जायेगा खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

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अगले दिन ही मैने मिस्त्री को बुला के ऊपर के कमरे पर काम शुरू कर दिया। जब मेरे पति आए तब उन्होंने मुझ से पूछा।

सुशांत: ये ऊपर कमरा क्यू बनवा रही हो।

मैं: वो अथर्व की कसरत के लिए।

सुशांत: सांड सा हो रहा हैं तुम्हारा लाल अब और क्या बनेगा।

मैं: ये ही उमर हैं उसके शरीर बनाने की जो आगे चल कर उसके काम आएगा। कही तुम्हारे तरह भरी जवानी में लूल हो गया तो। ( ये पहली बार था जब मैंने अपने पति को उनकी नपुंसकता के लिए उलहाना दिया हो, क्युकी मुझे तो पता था कि ये सब कैसे हुआ है पर इन सब से अंजान बन के मैने उनकी दुखती रग पे हाथ रख दिया क्युकी अथर्व ने नफरत का बीज बो दिया था)

सुशांत: (बहुत अचंभित हो गए) सविता मुझे नहीं मालूम ये सब कैसे हुआ, कोई बुरा ऐब या शौक नहीं मुझे फिर भी हो गया। कितने ही डॉक्टर और वेद हकीम को दिखाया पर कुछ असर नहीं हुआ। मैने कोई जान मूछ कर तो नही किया हैं। मैं आज भी सिर्फ तुमसे प्यार करता हूं।

मैं: छोड़ो इन बातो को, अब क्या फरक पड़ता हैं। अब ये बताओ अंजली के लिए जो पिछले हफ्ते आए थे उनसे बात हुई।

सुशांत: हां हुई थी बात नही बनी, कहते हैं लड़की और लड़के की कुंडली नही मिल रही।

मैं: कुछ भी तो दोष नही हैं मेरी बच्ची की कुंडली में फिर भी बात क्यू नही बनती।

सुशांत: शुक्र हैं तुम्हे अपने लाडले के इलावा अपनी बच्चियों की भी चिंता हैं। मुझे तो कभी कभी लगता हैं की तुम्हे सिर्फ अथर्व को ही चिंता हैं।

मैं: देखना एक दिन मेरा अथर्व ही मेरी बेटियों का उद्धार करेगा। ( तब मुझे ये नही पता था कि अथर्व मेरी बेटियों को भी चोद कर उन्हें अपने बच्चो की मां बनाएगा।)

सुशांत: चलो देखते हैं, अच्छा सुनो मुझे ५००० रुपए दो।

मैं: हाय राम ५००० रुपए, इतने रुपया क्या करोगे।

सुशांत: अरे वो धनीराम हैं ना उसकी लुगाई बीमार हैं, उसको जरूरत हैं। विमला(धनीराम की लुगाई) आजकल खेतो पर भी नही आ रही काम करने।

मुझे मालूम हैं की धनीराम एक नंबर का शराबी हैं और जुआरी है, इसलिए उसके काम का मेहनताना मैं विमला को ही देती थी।

मैं: उसके लिए ५००० नही है मेरे पास, १००० २००० रुपए देदो। उसने वैसे भी शराब में उड़ने हैं। समझे।

सुशांत: अरे मैं उसे बोल चुका हूं, अगली बार मत देना। समझा करो मैं जबान दे चुका हूं।

मरती क्या न करती मैने सुशांत को तिजोरी में से निकाल के ५००० रुपए दे दिए। उसको लेके वो चले गए और ये बोले गए की अभी ४ ५ दिन वो घर नही आयेंगे क्युकी धनीराम रखवाली करने नही आयेगा। वो चले गए।

मैं भी अपने कामों में व्यस्त हो गई।

१ महीने में अथर्व का कमरा बनकर तैयार हो गया।

अथर्व अब रोज रात को साधना करता और मैं रोज सुबह उसके कमरे की सफाई करती। रोज कम से कम दो बॉटल शराब की मिलती मुझे। चिल्लम भी मिलती पर मैने उससे कुछ नही पूछा। एक दिन सफाई करते वक्त मेरे पैर मैं कुछ चीप चिपा लगा जो की बहुत मात्रा में था। मैने उंगली में लिया और सुंघा। सूंघते ही मैं मंत्रमुग्ध सी हो गई उसकी खुशबू में। जी है ये वो ही था जिसकी हर औरत दीवानी होती हैं और मैं तो खासकर, ये मेरे अथर्व का वीर्य था।

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क्या मर्दाना खुशबू आ रही थी उसमे से और इतना ज्यादा की एक बार में १० आदमी निकलते होंगे। ना जाने क्या हुआ में अथर्व का वीर्य उंगली से उठाके चाटने लगी।

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उसका स्वाद मुझे इतना अच्छा लगा की मैं उंगली में लगा एक एक कतरा चूसने लगी। तभी एक आवाज मेरे कानो में पड़ी " इस को चाट मत अपनी चूत पे मल और गांड़ के सुराख पर मल, थोड़ा सा अपनी चुचियों की घुंडी पे मल" और मैने वो ही किया। जैसे ही वीर्य को अपनी चूत पे मला मेरी चूत ने अमृत बरसाना शुरू कर दिया। मैं उसको अपनी बिना बालो वाली चूत पर मलने लगी। मेरे मुंह से सिसकारी फूटने लगी ।

मैं: आह ऊ ऊऊऊऊऊऊ आई आह, कितना गरम हैं तेरा वीर्य मेरे ठाकुर। कब डालेगा इसे मेरे अंदर सीधे अपने नलके से। सी सी सी आह ऊ ऊ। चोद डाल मुझे मेरे राजा। आह जल्दी कर मेरे ठाकुर तेरी ठकुराइन तड़प रही हैं तेरे लिए। चोद मुझे।

ना जाने कितनी देर तक मैं यूं ही करती रही पर मुझे चरमसुख प्राप्त नहीं हुआ। मेरी खुमारी और तड़प बढ़ती जा रही थी। पर इसके आगे मैं कुछ और कर भी नही सकती थी। हार कर मैने अपने कपड़े सही किए और कमरा साफ़ करने लगी। अब तो ये मेरा रोज का काम हो गया था। दिन प्रतिदिन वीर्य की मात्रा बढ़ती जा रही थी मुझे ऐसे ही अंदेशा हुआ।

अथर्व दिन भर घर पे नही रहता था और रात को भी देर से आता और साधना करता और सुबह उठते ही निकल जाता। एक दिन मैंने उसको सुबह जल्दी पकड़ किया और मुझको देखते ही उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और अपना लन्ड मेरी चूत से सटा दिया।


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मैं : आह आह। अच्छा आज दिख गई तो प्यार जता रहा हैं वरना दिन भर कहा गायब रहता हैं। कब आता हैं कब जाता हैं कुछ पता नहीं पड़ता। क्या खाता हैं क्या पीता है, कुछ नही मालूम पड़ता।

अथर्व : तू चिंता मत कर ठकुराइन मैं जो भी कर रहा हूं, हम दोनो के लिए कर रहा हूं।

मैं: अच्छा तो दिन भर कहा हांडता फिरता हैं। कोई घर को सुध बुध हैं की नही। तू दिन भर न दिखे तो चिंता होती है। कभी घर पर रहकर घरवालों के साथ भी कुछ पल गुजारा कर। पता हैं तेरी बहन की रिश्ता फिर नही हुआ। मुझे बहुत चिंता हो रही हैं।

अथर्व: तू चिंता मत कर, अभी समय नही आया हैं अंजली की शादी का। ७ महीने बाद चारो की शादी को योग बनेगा, चिंता मत कर। मैं सब को संभाल लूंगा।

मैं: ( उसकी दुवार्थी बात को न समझ सकी) मुझे पता हैं की तू सब संभाल लेगा। अच्छा चल अब ये बता दिन भर कहा रहता हैं। रात को इतनी साधना करता हैं दिन को आराम किया कर।

अथर्व : आराम नही ठकुराइन समय कम हैं और बहुत काम करने हैं। दिन का काम तो बस एक दो महीने का और हैं फिर मैं बस दिन भर घर पे ही रहूंगा।

मैं: ऐसा क्या काम कर रहा हैं दिन में, अपनी ठकुराइन को नही बताएगा।

अथर्व: तू नही मानेगी ठकुराइन, तो सुन मैं दिन भर पड़ोस के शहर में एक वेद के पास से जड़ी बूटियों का ज्ञान ले रहा हूं। आगे जाके हम दोनो के बहुत काम आयेगा।

मैं: जड़ी बूटी से हमारा क्या काम?

अथर्व: तुझे नही मालूम वो मादरचोद रंजीत ड्रग्स का कारोबार कर रहा हैं। सरकार से चुप कर और पुलिस वालो को अपने साथ मिलाके हरामी अफीम की खेती कर रहा हैं, हमारे खेतो में। जड़ी बूटी का ज्ञान लेके हम उस से अच्छी अफीम उगाएंगे जब हवेली पर हमारा राज होगा। नोटो की बिस्तर पर सोएगी तु मेरी ठकुराइन। और जड़ी बूटी और भी बहुत काम की चीज हैं। हम सब को इसकी जरूरत पड़ेगी।

मैं: सच अथर्व, इतना पैसा होगा हमारे पास। ( एक बार फिर मेरा लालच मुझ पर हावी हो गया, मैने ये भी ध्यान नहीं दिया की अथर्व ने पहली बार मेरे सामने गाली का उपयोग किया)

अथर्व: ठकुराइन यकीन रख एक दिन तुझे सोने मैं तुझे सोने से लाद दूंगा।

और एक बार फिर उसने मुझे खुद से चिपका लिया। लोड़े की दस्तक फिर हुई मेरी चूत के द्वार पर। मेरी चूत तो पहले से ही द्वार खोले बैठी थी, पूरी फिसलन थी द्वार पर। मैने मस्ती में अपने होठ भींच लिए और अथर्व की आंखों में खोने लगी। तभी वो झटके से अलग हुआ घर से बाहर निकलने लगा। पीछे मुड़ के उसने देखा तो उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी।

अथर्व: जो प्रसाद मैं तेरे लिए छोड़ता हूं रोज उससे ग्रहण करती हैं या नहीं।

मैं: (अचंभित होते हुए) कौन सा प्रसाद।

अथर्व: वोही जो मैं रोज जमीन पे छोड़ता हूं तेरे लिए।

उसका इतना बोलते ही मेरी नजर शर्म से झुक गई और उसके गिरे हुए वीर्य का दृश्य मेरी आंखों के सामने घूम गया और न चाहते हुए भी मेरी गर्दन हां मैं हिलने लगी।

जब तक मेने नजरे उठाई तब तक अथर्व घर से बाहर निकल चुका था। और मैं तुरंत अथर्व के कमरे की ओर अपना प्रसाद ग्रहण करने के लिए। जब कमरे में पहुंची जो रोज की तरह उसी जगह मुझे मेरा प्रसाद पड़ा मिला। मैं उंगली में अपना प्रसाद लेनी वाली थी की फिर एक आवाज मेरे कानो में पड़ी "जीव से चाट ठकुराइन"


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और मैने वैसा ही किया। जीव से चाट अपना प्रसाद ग्रहण करने लगी। ऐसा करने से एक अजीब सी अनुभूति हुई, मेरी चूत में चीटियां रेंगने लगी। मैं कपड़े की ऊपर से ही अपनी रामप्यारी को सहलाने लगी, पर मेरी आग शांत होने का नाम नहीं ले रही। अपना प्रसाद ग्रहण करके मैं खड़ी हुई और मेरे चेहरे पर मुस्कान फैल गई। बरबस ही मेरे मुंह से निकला कितना प्यारा हैं मेरा "काला नाग"।
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mitzerotics

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बहुत ही रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट है भाई मजा आ गया
लगता हैं काला नाग अथर्व अपनी बहनों भी भोग लगाने वाला हैं और बाप देखते रह जायेगा खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
थैंक्स भाई। बहुत कुछ होगा आने वाले अध्याय में।
 
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