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Adultery काला साया – रात का सूपर हीरो(Completed)

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AK 24

Supreme
22,057
35,843
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(UPDATE-38)



दूसरे दिन कलकत्ता पहुंचकर कमिशनर के केबिन में घुसते ही देवश ने सलाम ठोंका…कमिशनर ने मुस्कराए देवश के कंधे पे हाथ रखा..और उसे शाबाशी दी

कमिशनर : वेरी वाले डन इंस्पेक्टर देवश चटर्जी मुझे तुमसे यही उम्मीद थी तुमने प्रूव करके दिखा दिया की पुलिस डिपार्टमेंट किसी से कम नहीं आस फर आस ई में कन्सर्न्ड और ट्रांसफर आर्डर इस कॅन्सल्ड ऐसे ही मन लगाकर ध्यान देते रहो

देवश : सर मैंने वही किया जो कानून के लिए शाइ हो…पर आप इसे मेरा फायदा मत समझिए मैंने कोई भी काम सिर्फ़ अपने फाएेदे के लिए नहीं किया…बस इस बात का कहीं ना कहीं डुक हें सर की काला साया कोई मुजरिम नहीं था वो बस पुलिस की मदद कर रहा था भले ही उसके आक्षन्स ठीक ना हो वो कानून के खिलाफ काम करता है ऊसने खून किए पर किसके मर्डरर्स के क्रिमिनल्स के जो मासूमों की जिंदगी से खेलना चाह रहे थे

कमिशनर : वॉट दो यू मीन? काला साया इस अगेन्स्ट थे लॉ

देवश : लेकिन अभी स्टिल डॉन;त नो वेदर अभी स्टॉप थे क्राइम वितऊथ हिं…सॉरी सर मुझसे कोई लव्ज़ गलत निकला हो मांफ कीजिएगा बस मैं यही कहूँगा सर कहीं ना कहीं हमने क्राइम को गताया नहीं बढ़ाया पर आप फिक्र ना कीजिए जब तक इंस्पेक्टर देवश ज़िंदा है तबतक लॉ कोई हाथ में नहीं ले पाएगा

कोँमिससिओने : आस और विश सन ई आम रियली प्राउड ऑफ यू (मुस्कराए कमिशनर ने बात को स्मझा…देवश सल्यूट मार्टाः आह बाहर निकल गया)

घर पहुंचकर ऊसने सबसे पहले अपने घर जो की चाचा चाची ने पहले से धखल किए हुए थे उसे बारे ही सहेजता से खरीदने की उक्सुकता जाहिर की ऊसने जिसके नाम घर था उसका सिग्नेचर कोर्ट को पेश किया इस पे ऊसने बारे ही सहेजता से चाल चली और अपने दाँव पैच से वो घर ख़ैरीड लिया जो ऑलरेडी उसी के नाम था….दिव्या को अपना वीरना घर ही पसंद था पर देवश चाहता था की वो अब चुपके ना रहे….बेरहेआल वो दिव्या के साथ अपने नये घर में आ गया….दिव्या जिस घर की कभी नौकरानी होया करती आज वो ऊस घर की मालकिन खुद को महसूस कर रही थी….इधर देवश को अपने दूसरे घर में जाना भी था

और उसी दिन वो अपने पुराने घर आकर….घर में ही कुछ देर तक आराम करता है क्या पता ? अपर्णा काकी और शीतल आ जाए उससे मिलने अकेले अकेले
काफी देर तक मां-बेटी का इंतजार करने का बाद…देवश को जैसे उम्मीद थी वही हुआ…मां-बेटी दोनों साथ ही आई….अपर्णा काकी ने हल्के लाल रंग की बनारसी सारी पहनी थी आसिफ़ के तोहफे की दी हुई…तो दूसरी ओर गुलाबी रंग की मॅचिंग एआरिंग के साथ सूट शीतल ने पहनी हुई थी..दोनों मां-बेटी ही कहर ढा रही थी….डबल ऑफर तो मिला था…पर देवश ना तो मां को बेटी के सामने चोद सकता था…और ना ही बेटी को मां के सामने चोद सकता था…


बहरेहाल ऊसने फैसला किया की दोनों को अलग-अलग ही चोदना पड़ेगा….अपर्णा काकी मुस्कराए डीओॉश के सर पे हाथ फेरने लगी और उससे उसका हाल पूछा…देवश इन भी बारे सहेजता से जवाब दिया इतने में शीतल की चोरी चोरी निगाहों को वो पढ़ भी लेता…जो ठीक अपर्णा काकी के पीछे खड़ी मांडमास्त मुस्करा रही थी

“अरे शीतल बैठो ना”…..देवश ने शीतल को अपने बगल में पलंग पर बैठने को कहा

“अच्छा बेटा कुछ खाया मैं तेरे लिए कुछ बनती हूँ….साग की सब्ज़ी लाई उसे गरम कर देती हूँ और रोती बना देती हूँ”…..अपर्णा काकी ने मुस्कराए कहा और किचन की ओर चली गयी

इस बार देवश शीतल की ओर मूधके उससे बातचीत शुरू करता है…शीतल को तो बस अकेलापन ही चाहिए था मां जैसे ही गयी बस छुपी छुपी ऊसने बातें शुरू कर दी

शीतल : उफ़फ्फ़ हो कहाँ चले गये थे तुम?

देवश : बस चला गया था काम के सिसीले में

शीतल : श पता है मैं कितना मिस कर रही थी

देवश : अरे मेरी जानं सस्सह धीरे बोल मां सुन लेगी अकेले क्यों नहीं आई?

शीतल : मां को भी आना था सोचा लगे हाथों आपसे मिल्लू

देवश : त..एक है और सब ठीक तो है ना

शीतल : हाँ अभी अभी तो मासिक खत्म हुए मेरे

देवश : अरे वाह रानी यानि मेरी बहन पूरी औरत बन चुकी है

शीतल : बहुत मन कर रहा है भैया कुछ करो ना

देवश : एक..हां ठीक है मैं जनता हूँ तुम बेसवार मत हो कुछ टाइम दे

इतने में अपर्णा काकी दबे पाओ आ गयी मैं थोड़ा हड़बड़ा गया शीतल भी…”और क्या फुसुर फुसुर चल रहा है भाई बहनों में?”….अपर्णा काकी ने गरमा गरम खाना प्लेट से पलंग पे दस्तर्खान बिछके लगाया

देवश : कुछ नहीं काकी मां बस आजकल हमारी शीतल बड़ी समझदार हो गयी है

अपर्णा : कहाँ बेटा? ये और समझदार अकल घास चरने जाती है इसकी कोई भी काम बोलो तो बस ऐतने लगती है

शीतल : हाँ हाँ और कर लो भैया से शिकायत

हम सब हस्सने लगते है….फिर खाना खाने लगते है मैं अपने हाथों से अपनी औरतों को खाना खिलता हूँ…फिर अपर्णा काकी भी मुझे अपने हाथों से खिलती है…शीतल ये सब देखकर मुस्करा रही थी..इतने में अपर्णा काकी ने बात छेड़ी जिससे मेरी मुस्कान कुछ पल के लिए गायब हो गई

अपर्णा : बेटा सुना की तूने वॉ तेरे चाचा अंजर!

देवश : ऊस हरामी का नाम मत लो काकी मां

अपर्णा : देख बेटा मैं समझती हूँ हालत बहुत बुरे थे ठीक ही हुआ जो वो लोग कुत्ते की मौत मारे जिसपे तेरा हक़ था उसे तूने वापिस पा लिया अच्छा है लेकिन ये बात मैं ही जानती हूँ की तेरा उनके साथ क्या रिश्ता है? वो तो ऊस दिन बाज़ार में कुटुम्ब मिल गयी थी खूब परेशान थी बोल रही थी की उसका घर संसार उजध सा गया है मैं तो कुछ समझी नहीं

देवश रोती का नीवाला खाए बस अपनी आंखें इधर उधर कर रहा था…”जाने दो ना काकी मां जाने दो जिस इंसान ने हमारा घर उजड़ा हो ऊस्की क्या दुनिया उजदेगी अच्छा हुआ मर गये”……काकी मां ने कुछ नहीं कहा बल्कि मेरे ऊन लवज़ो में हामी भारी


अपर्णा : हाँ बेटा मुझे नहीं पता था की वो कमीने लोग यही है बेटा मर गया देख कुदरत का कहर अंजर गाड़ी के नीचे आ गया…और कुटुम्ब तो पागलख़ाने चली गयी उसका तो ब्लूएफीलंताक बन गया था और शांतलाल गुंडे के साथ उसके संबंध भी थे

शीतल : अरे मां क्यों इधर उधर की बात लेकर बैठी हो? भाई का इतना अच्छा मूंड़ बना है उसे खराब तो मत करो

अपर्णा : अरे बाबा भाई की बड़ी चिंता है तुझे चल अच्छा है लेकिन सुन अपने भाई को ज्यादा तंग मत करना (इस बात को सुनकर कुछ पल के लिए ही सही मुस्कान वापिस लौट आयआई मेरे चेहरे पे)

देवश : अच्छा काकी मां आप दोनों आज इधर ही रुक जाओ वजह ये है की मैं कहीं जाऊंगा तो नहीं तक भी गया हूँ

अपर्णा : लेकिन बेटा शीतल को भेज देती हूँ दो घर का काम पारा हुआ है

शीतल : मां आप ही चली जाओ ना

देवश : एक काम कर ना शीतल तू ही चली जा आजना थोड़े देर में हम लोग कहाँ भागे जा रहे है?

शीतल : पर भी (मैं जनता था शीतल क्यों चिढ़ रही है?)

देवश : पर वॉर कुछ नहीं अभी जा तो अभी जा

शीतला ना नुकुर करके ऐत्ते हुए मां को मन ही मन गाली देते हुए निकल गयी…अपर्णा काकी भी मुझे मुस्कुराकर देखते हुए किचन में बर्तन माझने लगी…अब मैं घर में अकेला चलो पहले मां से ही शुरू करता हूँ

उसी वक्त बाहर का एक बार नज़ारा देखा….और दरवाजा कूडनी भेड़ लिया..शीतल को आनें आइन कम से कम 2 घंटे तो लग जाएँगे इतने देर में….काकी मां की भूखी सुखी चुत मर लूँगा ताकि वो थक्के पष्ट हो जाए फिर शीतल आए और वो भी मुझसे चुदाया ले…मां बेटी को एक ही दिन में चोदने का प्लान बना लिया था मैंने

फौरन कपड़े उतारे और किचन में चला गया…काकी मां एकदम से जैसे पीछे मुदिी तो शर्मा गयी…मैंने फौरन किचन की खिड़की लगाई और क्काई मां को अपने सीने से लगा लिया काकी मां मुझसे छुड़ाने लगी पर अब कहाँ छुड़ाना चुड़ानी..ऊन्हें निवस्त्र करने में वक्त नहीं लगा

वही ऊन्हें कुतिया की मुद्रा में झुकाया और अपना खड़ा लंड उनके चर्वी डर पिछवाड़े में घुस्सेद दिया…अफ क्या मस्त गान्ड थी? पर ढीली थी…लंड पे थोड़ा सा थूक माला और फिर लंड को छेद में टिटके एक करारा शॉट मारा…आआहह काकी मां के मुँह से मीठा स्वर निकाला और वॉ भी मदमस्त चुदवाने लगी….

देवश : आस ककीिई मां क्या सौंड्रा है तुम्हारा? क्या गान्ड है तुम्हारी?

अपर्णा : बीता…आहह कितने सालों से दबाई रखी थी अपनी इच्छा आहह (काकी मां ने दोनों हाथ सेल्फ़ पे रख दिया…और पीछे से मेरे करार धक्को को अपनी गान्ड के भीतर झेलने लगी)

मैंने काकी मां को बहुत ही क़ास्सके चोदना शुरू कर दिया…उनकी ढीली गान्ड में लंड प्री-कम भीगोने लगा…और उनकी गान्ड में भी सनसनी उठने लगी ऊन्होने थोड़ा उठके अपना मुख मेरी तरफ किया और अपने जवान बेटे को होठों में होंठ तुसाए किस शुरू कर दी…हम दोनों एक दूसरे का गहरा चुंबन लेने लगे…काफी मजा आ रहा था नीचे से धक्के लगता और ऊपर मोटे मोटे होठों को चूसता काकी के

अपर्णा आहें भरती रही…फिर मैंने लंड को गान्ड से बाहर खींचा…और इस बार अपनी तरफ किया…इस बार काकी मां सेल्फ़ पे बैठ गयी और ऊसने टाँग हवा में उठा ली….काकी मां की सूजी डबल रोती जैसी चुत में लंड एक ही बार में पे लडिया और उनके मोटे मोटे चुचियों को हाथों में लेकर मसलने लगा अफ कितने सख्त निपल्स थे उनके एक बार तो चूसना बनता था अपर्णा काकी को बैठे बैठे ही चोदने लगा…उनकी निपल्स को मुँह में लेकर किसी बच्चे की तरह चूसने लगा…ऊसपे अपनी जबान फहीरने लगा…काकी मां भी चुत को ढीली चोद चुकी थी..और मेरा लंड आसानी से प्रवेश कर रहा था

कुछ ही देर में काकी मां ने अपने हाथ मेरे कंधे पे मोड़ दया और फिर हम दोनों एक दूसरे को किस करते हुए झधने लगे…चुत में फकच फकच्छ आवाज़ आने लगी…और मेरा रस चुत से बहता हुआ सेल्फ़ से नीचे टपकने लगा

हांफते हुए हम दोनों एक दूसरे के चुंबन लेते रहे…उसके बाद अलग हुए….काकी मां ने फटाफट सेल्फ़ पोंछा फर्श पे लगे वीर्य को पोंछा…और फिर मोटी गान्ड मटकते हुए बाथरूम में घुस्सके नहाने लगी…लेकिन जी सच में दोस्तों भरा नहीं थी एक राउंड और पेल दिया इस बार काकी मां को सीधे गुसलखाने में ही चोद डाला वो पेशाब कर रही थी…और मैंने उनके कुल्हो को दबाते हुए उनके नितंबों के बीच में ही लंड घुसेड़ दिया काकी मां ने बहुत जोरदार आहें भारी और उनकी एक मांसल टाँग को अपने हाथों में उठाए वैसे ही मुद्रा में चोद दिया…और फिर अपना रसभरा लंड उनके मुँह में डाला…उसके बाद काकी मां ने चुस्स चुस्सके मेरे लंड से सारा पानी निकल दिया अब मैं पूरी तरीके से ठंडा पढ़ चुका था

काकी मां भी सुसताने लगी…और बिस्तर पे ही कुछ देर के लिए सो गयी उनके सोने से मुझे बेहद वक्त मिल गया इतनें आइन घंटी बाजी…दरवाजा खोला देखता हूँ शीतल आई है ताकि हारी पसीने से लथपथ काम खत्म करके…”अरे शीतल तू आ गयी आजा अंदर तेरी मां सो रही है”….शीतल ने मां को सोते देखकर काफी गुस्सा किया थक्के काम ऊसने की और मां यहाँ अंगड़ाई ले रही है लेकिन ये नहीं जानती की उनकी तारक की प्यास बुझी इसलिए वो सो गयी है
 

u.sir.name

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6,840
9,769
189
(UPDATE-38)



दूसरे दिन कलकत्ता पहुंचकर कमिशनर के केबिन में घुसते ही देवश ने सलाम ठोंका…कमिशनर ने मुस्कराए देवश के कंधे पे हाथ रखा..और उसे शाबाशी दी

कमिशनर : वेरी वाले डन इंस्पेक्टर देवश चटर्जी मुझे तुमसे यही उम्मीद थी तुमने प्रूव करके दिखा दिया की पुलिस डिपार्टमेंट किसी से कम नहीं आस फर आस ई में कन्सर्न्ड और ट्रांसफर आर्डर इस कॅन्सल्ड ऐसे ही मन लगाकर ध्यान देते रहो

देवश : सर मैंने वही किया जो कानून के लिए शाइ हो…पर आप इसे मेरा फायदा मत समझिए मैंने कोई भी काम सिर्फ़ अपने फाएेदे के लिए नहीं किया…बस इस बात का कहीं ना कहीं डुक हें सर की काला साया कोई मुजरिम नहीं था वो बस पुलिस की मदद कर रहा था भले ही उसके आक्षन्स ठीक ना हो वो कानून के खिलाफ काम करता है ऊसने खून किए पर किसके मर्डरर्स के क्रिमिनल्स के जो मासूमों की जिंदगी से खेलना चाह रहे थे

कमिशनर : वॉट दो यू मीन? काला साया इस अगेन्स्ट थे लॉ

देवश : लेकिन अभी स्टिल डॉन;त नो वेदर अभी स्टॉप थे क्राइम वितऊथ हिं…सॉरी सर मुझसे कोई लव्ज़ गलत निकला हो मांफ कीजिएगा बस मैं यही कहूँगा सर कहीं ना कहीं हमने क्राइम को गताया नहीं बढ़ाया पर आप फिक्र ना कीजिए जब तक इंस्पेक्टर देवश ज़िंदा है तबतक लॉ कोई हाथ में नहीं ले पाएगा

कोँमिससिओने : आस और विश सन ई आम रियली प्राउड ऑफ यू (मुस्कराए कमिशनर ने बात को स्मझा…देवश सल्यूट मार्टाः आह बाहर निकल गया)

घर पहुंचकर ऊसने सबसे पहले अपने घर जो की चाचा चाची ने पहले से धखल किए हुए थे उसे बारे ही सहेजता से खरीदने की उक्सुकता जाहिर की ऊसने जिसके नाम घर था उसका सिग्नेचर कोर्ट को पेश किया इस पे ऊसने बारे ही सहेजता से चाल चली और अपने दाँव पैच से वो घर ख़ैरीड लिया जो ऑलरेडी उसी के नाम था….दिव्या को अपना वीरना घर ही पसंद था पर देवश चाहता था की वो अब चुपके ना रहे….बेरहेआल वो दिव्या के साथ अपने नये घर में आ गया….दिव्या जिस घर की कभी नौकरानी होया करती आज वो ऊस घर की मालकिन खुद को महसूस कर रही थी….इधर देवश को अपने दूसरे घर में जाना भी था

और उसी दिन वो अपने पुराने घर आकर….घर में ही कुछ देर तक आराम करता है क्या पता ? अपर्णा काकी और शीतल आ जाए उससे मिलने अकेले अकेले
काफी देर तक मां-बेटी का इंतजार करने का बाद…देवश को जैसे उम्मीद थी वही हुआ…मां-बेटी दोनों साथ ही आई….अपर्णा काकी ने हल्के लाल रंग की बनारसी सारी पहनी थी आसिफ़ के तोहफे की दी हुई…तो दूसरी ओर गुलाबी रंग की मॅचिंग एआरिंग के साथ सूट शीतल ने पहनी हुई थी..दोनों मां-बेटी ही कहर ढा रही थी….डबल ऑफर तो मिला था…पर देवश ना तो मां को बेटी के सामने चोद सकता था…और ना ही बेटी को मां के सामने चोद सकता था…

बहरेहाल ऊसने फैसला किया की दोनों को अलग-अलग ही चोदना पड़ेगा….अपर्णा काकी मुस्कराए डीओॉश के सर पे हाथ फेरने लगी और उससे उसका हाल पूछा…देवश इन भी बारे सहेजता से जवाब दिया इतने में शीतल की चोरी चोरी निगाहों को वो पढ़ भी लेता…जो ठीक अपर्णा काकी के पीछे खड़ी मांडमास्त मुस्करा रही थी

“अरे शीतल बैठो ना”…..देवश ने शीतल को अपने बगल में पलंग पर बैठने को कहा

“अच्छा बेटा कुछ खाया मैं तेरे लिए कुछ बनती हूँ….साग की सब्ज़ी लाई उसे गरम कर देती हूँ और रोती बना देती हूँ”…..अपर्णा काकी ने मुस्कराए कहा और किचन की ओर चली गयी

इस बार देवश शीतल की ओर मूधके उससे बातचीत शुरू करता है…शीतल को तो बस अकेलापन ही चाहिए था मां जैसे ही गयी बस छुपी छुपी ऊसने बातें शुरू कर दी

शीतल : उफ़फ्फ़ हो कहाँ चले गये थे तुम?

देवश : बस चला गया था काम के सिसीले में

शीतल : श पता है मैं कितना मिस कर रही थी

देवश : अरे मेरी जानं सस्सह धीरे बोल मां सुन लेगी अकेले क्यों नहीं आई?

शीतल : मां को भी आना था सोचा लगे हाथों आपसे मिल्लू

देवश : त..एक है और सब ठीक तो है ना

शीतल : हाँ अभी अभी तो मासिक खत्म हुए मेरे

देवश : अरे वाह रानी यानि मेरी बहन पूरी औरत बन चुकी है

शीतल : बहुत मन कर रहा है भैया कुछ करो ना

देवश : एक..हां ठीक है मैं जनता हूँ तुम बेसवार मत हो कुछ टाइम दे

इतने में अपर्णा काकी दबे पाओ आ गयी मैं थोड़ा हड़बड़ा गया शीतल भी…”और क्या फुसुर फुसुर चल रहा है भाई बहनों में?”….अपर्णा काकी ने गरमा गरम खाना प्लेट से पलंग पे दस्तर्खान बिछके लगाया

देवश : कुछ नहीं काकी मां बस आजकल हमारी शीतल बड़ी समझदार हो गयी है

अपर्णा : कहाँ बेटा? ये और समझदार अकल घास चरने जाती है इसकी कोई भी काम बोलो तो बस ऐतने लगती है

शीतल : हाँ हाँ और कर लो भैया से शिकायत

हम सब हस्सने लगते है….फिर खाना खाने लगते है मैं अपने हाथों से अपनी औरतों को खाना खिलता हूँ…फिर अपर्णा काकी भी मुझे अपने हाथों से खिलती है…शीतल ये सब देखकर मुस्करा रही थी..इतने में अपर्णा काकी ने बात छेड़ी जिससे मेरी मुस्कान कुछ पल के लिए गायब हो गई

अपर्णा : बेटा सुना की तूने वॉ तेरे चाचा अंजर!

देवश : ऊस हरामी का नाम मत लो काकी मां

अपर्णा : देख बेटा मैं समझती हूँ हालत बहुत बुरे थे ठीक ही हुआ जो वो लोग कुत्ते की मौत मारे जिसपे तेरा हक़ था उसे तूने वापिस पा लिया अच्छा है लेकिन ये बात मैं ही जानती हूँ की तेरा उनके साथ क्या रिश्ता है? वो तो ऊस दिन बाज़ार में कुटुम्ब मिल गयी थी खूब परेशान थी बोल रही थी की उसका घर संसार उजध सा गया है मैं तो कुछ समझी नहीं

देवश रोती का नीवाला खाए बस अपनी आंखें इधर उधर कर रहा था…”जाने दो ना काकी मां जाने दो जिस इंसान ने हमारा घर उजड़ा हो ऊस्की क्या दुनिया उजदेगी अच्छा हुआ मर गये”……काकी मां ने कुछ नहीं कहा बल्कि मेरे ऊन लवज़ो में हामी भारी


अपर्णा : हाँ बेटा मुझे नहीं पता था की वो कमीने लोग यही है बेटा मर गया देख कुदरत का कहर अंजर गाड़ी के नीचे आ गया…और कुटुम्ब तो पागलख़ाने चली गयी उसका तो ब्लूएफीलंताक बन गया था और शांतलाल गुंडे के साथ उसके संबंध भी थे

शीतल : अरे मां क्यों इधर उधर की बात लेकर बैठी हो? भाई का इतना अच्छा मूंड़ बना है उसे खराब तो मत करो

अपर्णा : अरे बाबा भाई की बड़ी चिंता है तुझे चल अच्छा है लेकिन सुन अपने भाई को ज्यादा तंग मत करना (इस बात को सुनकर कुछ पल के लिए ही सही मुस्कान वापिस लौट आयआई मेरे चेहरे पे)

देवश : अच्छा काकी मां आप दोनों आज इधर ही रुक जाओ वजह ये है की मैं कहीं जाऊंगा तो नहीं तक भी गया हूँ

अपर्णा : लेकिन बेटा शीतल को भेज देती हूँ दो घर का काम पारा हुआ है

शीतल : मां आप ही चली जाओ ना

देवश : एक काम कर ना शीतल तू ही चली जा आजना थोड़े देर में हम लोग कहाँ भागे जा रहे है?

शीतल : पर भी (मैं जनता था शीतल क्यों चिढ़ रही है?)

देवश : पर वॉर कुछ नहीं अभी जा तो अभी जा

शीतला ना नुकुर करके ऐत्ते हुए मां को मन ही मन गाली देते हुए निकल गयी…अपर्णा काकी भी मुझे मुस्कुराकर देखते हुए किचन में बर्तन माझने लगी…अब मैं घर में अकेला चलो पहले मां से ही शुरू करता हूँ

उसी वक्त बाहर का एक बार नज़ारा देखा….और दरवाजा कूडनी भेड़ लिया..शीतल को आनें आइन कम से कम 2 घंटे तो लग जाएँगे इतने देर में….काकी मां की भूखी सुखी चुत मर लूँगा ताकि वो थक्के पष्ट हो जाए फिर शीतल आए और वो भी मुझसे चुदाया ले…मां बेटी को एक ही दिन में चोदने का प्लान बना लिया था मैंने

फौरन कपड़े उतारे और किचन में चला गया…काकी मां एकदम से जैसे पीछे मुदिी तो शर्मा गयी…मैंने फौरन किचन की खिड़की लगाई और क्काई मां को अपने सीने से लगा लिया काकी मां मुझसे छुड़ाने लगी पर अब कहाँ छुड़ाना चुड़ानी..ऊन्हें निवस्त्र करने में वक्त नहीं लगा

वही ऊन्हें कुतिया की मुद्रा में झुकाया और अपना खड़ा लंड उनके चर्वी डर पिछवाड़े में घुस्सेद दिया…अफ क्या मस्त गान्ड थी? पर ढीली थी…लंड पे थोड़ा सा थूक माला और फिर लंड को छेद में टिटके एक करारा शॉट मारा…आआहह काकी मां के मुँह से मीठा स्वर निकाला और वॉ भी मदमस्त चुदवाने लगी….

देवश : आस ककीिई मां क्या सौंड्रा है तुम्हारा? क्या गान्ड है तुम्हारी?

अपर्णा : बीता…आहह कितने सालों से दबाई रखी थी अपनी इच्छा आहह (काकी मां ने दोनों हाथ सेल्फ़ पे रख दिया…और पीछे से मेरे करार धक्को को अपनी गान्ड के भीतर झेलने लगी)

मैंने काकी मां को बहुत ही क़ास्सके चोदना शुरू कर दिया…उनकी ढीली गान्ड में लंड प्री-कम भीगोने लगा…और उनकी गान्ड में भी सनसनी उठने लगी ऊन्होने थोड़ा उठके अपना मुख मेरी तरफ किया और अपने जवान बेटे को होठों में होंठ तुसाए किस शुरू कर दी…हम दोनों एक दूसरे का गहरा चुंबन लेने लगे…काफी मजा आ रहा था नीचे से धक्के लगता और ऊपर मोटे मोटे होठों को चूसता काकी के

अपर्णा आहें भरती रही…फिर मैंने लंड को गान्ड से बाहर खींचा…और इस बार अपनी तरफ किया…इस बार काकी मां सेल्फ़ पे बैठ गयी और ऊसने टाँग हवा में उठा ली….काकी मां की सूजी डबल रोती जैसी चुत में लंड एक ही बार में पे लडिया और उनके मोटे मोटे चुचियों को हाथों में लेकर मसलने लगा अफ कितने सख्त निपल्स थे उनके एक बार तो चूसना बनता था अपर्णा काकी को बैठे बैठे ही चोदने लगा…उनकी निपल्स को मुँह में लेकर किसी बच्चे की तरह चूसने लगा…ऊसपे अपनी जबान फहीरने लगा…काकी मां भी चुत को ढीली चोद चुकी थी..और मेरा लंड आसानी से प्रवेश कर रहा था

कुछ ही देर में काकी मां ने अपने हाथ मेरे कंधे पे मोड़ दया और फिर हम दोनों एक दूसरे को किस करते हुए झधने लगे…चुत में फकच फकच्छ आवाज़ आने लगी…और मेरा रस चुत से बहता हुआ सेल्फ़ से नीचे टपकने लगा

हांफते हुए हम दोनों एक दूसरे के चुंबन लेते रहे…उसके बाद अलग हुए….काकी मां ने फटाफट सेल्फ़ पोंछा फर्श पे लगे वीर्य को पोंछा…और फिर मोटी गान्ड मटकते हुए बाथरूम में घुस्सके नहाने लगी…लेकिन जी सच में दोस्तों भरा नहीं थी एक राउंड और पेल दिया इस बार काकी मां को सीधे गुसलखाने में ही चोद डाला वो पेशाब कर रही थी…और मैंने उनके कुल्हो को दबाते हुए उनके नितंबों के बीच में ही लंड घुसेड़ दिया काकी मां ने बहुत जोरदार आहें भारी और उनकी एक मांसल टाँग को अपने हाथों में उठाए वैसे ही मुद्रा में चोद दिया…और फिर अपना रसभरा लंड उनके मुँह में डाला…उसके बाद काकी मां ने चुस्स चुस्सके मेरे लंड से सारा पानी निकल दिया अब मैं पूरी तरीके से ठंडा पढ़ चुका था


काकी मां भी सुसताने लगी…और बिस्तर पे ही कुछ देर के लिए सो गयी उनके सोने से मुझे बेहद वक्त मिल गया इतनें आइन घंटी बाजी…दरवाजा खोला देखता हूँ शीतल आई है ताकि हारी पसीने से लथपथ काम खत्म करके…”अरे शीतल तू आ गयी आजा अंदर तेरी मां सो रही है”….शीतल ने मां को सोते देखकर काफी गुस्सा किया थक्के काम ऊसने की और मां यहाँ अंगड़ाई ले रही है लेकिन ये नहीं जानती की उनकी तारक की प्यास बुझी इसलिए वो सो गयी है
Nice update brother....
keep writing....
keep posting......
 
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AK 24

Supreme
22,057
35,843
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(UPDATE-39)



उसी वक्त शीतल को बोला जाकर तू फ्रेश हो जा..वो गुसलखाने में जाकर अपने कपड़े उतारके नहाने लगी…मैंने भी फौरन कपड़े उतार लिए एक बार काकी मां की ओर देखा जो गहरी नींद में थी..फिर जल्दी से गुसलखाने में घुसके दरवाजा लगा दिया…शीतल डर गयी मैंने फौरन उसके मुँह पे हाथ रखा…वॉ भी समझ गयी मेरे दिल में क्या है? और मेरे सामने ही दीवार पे टैक्के खड़ी हो गयी

मैंने फौरन उसके ज़ुल्फो को हटाया और उसके होठों से होंठ भीड़ा दिए..हम दोनों एक दूसरे को किस करने लगे..और फिर शीतल को गान्ड से उठाते हुए उसके नंगे बदन को चूमने लगा उसके छोटे छोटे निपल्स को चुस्सने लगा उसके छातियो को दबाने लगा उसके गले में होंठ फहीराने लगा…शीतल पूरी तरह से तारक में आहें भरने लगी

उसके टांगों को थोड़ा फैलाया और ग्ोअडी में उठाए ही अपना लंड उसके छेद में टीका दिया…पहले तो ऊसने मुझे क़ास्सके पकड़ लिया लेकिन अचानक उसका हाथ मेरे पट्टी पे लगा…काकी मां तो चुदवाने में इतनी मशगूल थी की उसे पता ही नहीं चला पर इसे अगर पता चला तो हुआ भी वही ऊसने पूछ डाला मैंने बताया की लोहे से खरॉच लग गयी सेपटिक पकड़ लेता इसलिए इलाज कराया तो पट्टी लग गयी फिर ऊसने कुछ नहीं कहा बस ख्याल रखने की हिदायत दी

फौरन ऊस्की चुत की फहाँको में लंड घिस्सते हुए एक ही शॉट मारा…उफ़फ्फ़ कितनी सख्त चुत थी….शीतल काँप उठी ऊसने अपने नाखून मेरे पीठ पे गढ़ा दिए और मैं भी फुरती से उसे उछाल उछाल के अपने लंड पे चोदने लगा मेरे हाथ सक़ती से ऊस्की गान्ड को दबोचे हुए थे जबकि पूरा छाती और पेंट मेरे सीने और पेंट से जुड़ा हुआता…मैं बारे ही आराम आराम से धक्के देने लगा

देवश : दर्द तो नहीं हो रहा ना

शीतल : नहीं बिलकुल भी नहीं

देवश : चल मजे ले फिर

शीतल आहह आहह करके बारे ही अहेतियात से आहें भर रही थी ऊस्की मां को पता ना चल जाए…मैं शीतल को उसी हालत में चोदता रहा…वो एम्म्म एम्म्म करते हुए झड़ गयी और मुझसे लिपट गयी…मैंने उसे नहीं छोडा और उसे वही फर्श पे लिटा दिया कारण वो बहुत कमज़ोर पढ़ चुकी थी…मैंने फौरन उसे लािटाए मिशनरी पोज़िशन एमिन दोनों टांगों को अपने कंधे पे रखा और दान दाना दान चुत में लंड घुसाए अंदर बाहर करने लगा

शीतल लज़्ज़त में अपने दाँतों में दाँत रखक्के चुदवाती रही..और मैं उससे चोदता रहा…ऊस्की बीच बीच में ज़ोरर्र से आहह निकल जाती….और मैं अपनी गांड में ताक़त भरके जितना हो सके उसे चोदता रहा…लंड से थोड़ा प्री-कम आने लगता जिसे मैं बीच बीच में उठके पानी और उसी के ब्रा से साफ कर देता….नल खोल दिया था जिससे पानी की आवाज़ से काकी मां को पता ना लगे की मैं गुसलखाने में ऊस्की बेटी को चोद रहा हूँ

कुछ देर में ही शीतल फिर झड़ गयी…इस बार साली कुछ ज्यादा ही ज़ोर से चिल्ला उठी..मैंने फौरन लंड चुत के मुआने से बाहर खिंचा और फिर उसे पेंट से उठाकर दीवार पे टैका दिया उसका वज़न यही कोई 40 किलो तो होगा ही बस छाती और गांड भारी हुई थी…कहाँ हम मर्दों का वज़न औरतों से तीन गुना दुगुना हम मर्दों को औरतों को उठाने में कोई ज्यादा प्राब्लम नहीं होती

ऊस्की पतली कमर पे हाथ रखा और उसके नाभी को अंगुल करते हुए उसके टाँग को कमर पे फ़सा दिया अब वो मुझपर पीठ के बाल चड्डी हुई और मैं नीचे से उसे धक्के पेलता जा रहा था…वो चुड्द्वाए जा रही थी लंड बारे ही आसानी से ऊस्की चुत से निकल रहा था घुस रहा था…कुँवारी चुत अब पहली की तरह टाइट नहीं थी मेरा अब पारा चढ़ गया और मेरी कामशक्ति जवाब देने लगी…और मैंने फौरन धक्के तेज कर डाल्ली…और उसी बीच मैंने उसके कमर से उसे ऊपर उचका दिया…जिससे चुत से लंड फ़च से निकाला और रस लबालब छोढ़ने लगा…लंड रस बहा रहा था जो नाली के अंदर जा राई थी


फिर उसी बीच मैंने शीतल को खड़ा किया और साबुन से जल्दी जल्दी उसके बगल गान्ड चुत छाती साबप्पे साबुन रगड़ा पेंट पे भी रगड़ा फिर ऊसने भी मुझे कुछ साबुन लगाया और हम दोनों ने शवर के नीचे नहाया…ये तीसरी बार मैं झड़ा था काफी तक गया था मैं….फिर मैंने उसे कहा की पहले मैं नियालकता हूँ बाद में तू निकल लियो वो पहले सावधानी से निकली फिर मैं…गनीमत ही काकी मां उठी नहीं

ऊस दिन चुदाई का प्रोग्राम बहुत ही अच्छा ही चला…मैंने इतना सेक्स किया की हाथ पाओ में जान नहीं थी…साला दुम्ब्बेल्ल भी नहीं उठा पाया था…काला साया की मौत के बाद तो जैसे अब मैं पूरा देवश बन चुका था….एक तरह से छुट्टी मिल सी गयी थी अययाशी करने के लिए…साथ ही साथ थाने का कामकाज भी बेटर चल रहा था

लेकिन खुशी पलों को लगते काली नज़र डायरी नहीं लगती….अच्छी खाासी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया…जिसने मुझे फीरसे जुर्म की इस लरआई में पाओ रखने के लिए शामिल करवा ही दिया….अब वो क्या वजह थी ये तो मैं अगले अपडेट में ही बताऊंगा
ऊन दीनों टाउन के आसपास बहुत ज्यादा ही क्राइम तरफ गया था…पुलिस की गश्त के बावजूद सुनसान इलाक़ो में अंधेरी रातों में ही सुपारी किलैंग्स हो जा करती थी…जिनकी लाशें बाद में फाटक के पानी में तैरती दिखती थी…बहुत कल्प्रिट्स और सस्पेक्ट्स को गेरफ़्तार किया गया..खूनियो को भी धार दबोचा पर अब पहली वाली बात नहीं रही थी जो काला साया के टाइम थी लेकिन अगर क्राइम को ओस्से डर था तो पुलिसवालो से ऊन्हें दुगुना डर होना चाहिए था सबके जुबान पे एक ही बात थी आख़िर काला साया आ क्यों नहीं रहा ? पर कोई कुछ ज्यादा कर ना सका…उसे खोजते भी कहा…जिसके चेहरा किसी ने आजतक नहीं देखा

ऊन दीनों टाउन में लगातार 3 महीनों से चोरी हो रही थी सुराग ना के बराबर ना ही कोई दायकात और ना ही कोई प्रोफेशनल तेइफ़ दिन दहाड़े ही बारे बारे सेठो के घर से पैसा जेवराहट सबकुछ चोरी हो जाता….और बाद में शिकायत और दिमाग खाने सेठ लोग पुलिस स्टेशन पे दस्तक देते…कब पकड़ेंगे क्या पुलिस कर रही है? ब्लाह ब्लाह बोलकर चले जाते..बस ऊन्हें आश्वासन ही देना परता…शायद एक फैसला लेकर मैंने अपनी बाकी जिंदगी को जैसे मुस्किलो में डाल दिया था

उसी दिन पुलिस की गश्त मैंने बरहा दी थी पर साला रात को उसका एक परछाई भी नहीं मिला गुंडे नहीं थे ना कोई बड़ी गान्ड थी…सिर्फ़ एक अक्स दिखता काले कपड़ों में और धक्का नक़ाब पॉश घर में घुसता सब पर स्प्रे मरता और फहरी जीतने चीज़ें है लूट लाटके भाग खड़ा होता

ऊस रात भी दिमाग पूरे दिन की थकान से चोद था…टीवी पे फेव मूवी रेसलिंग देख रहा था…मेरी खूबसूरत रेस्लर लड़कियां पेज और निक्की बेला का दमदार एक्शन सीन चल रहा था…साला बाप जन्म में तो कभी मिलेगी नहीं बस यूँ ही आँख सैक ले बेटा…अभी अपने असल घर आया था दिव्या मेरे नयी मकान में रही रही थी…रात करीब 11 बज चुके थे…आराम से अभी टीवी देख ही रहा था इतने में फोन बज उठा…लो कर लो बात साला अभी आंखों से सैका नहीं लंड झड़ा भी नहीं और ये लो फोन कॉल

जल्दी से फोन उठाया तो पाया कमिशनर की आवाज़ थी…ऊन्होने बढ़ते अपराध को देखते हुए सूचित किया की ऐसा मामला कलकत्ता में भी हुआ था पर जब ज्यादा इन्वेस्टिगेशन बड़ी तो वॉ चोर गायब हो गया…शायद उंड़रगरौद्ण के बाद वॉ हमारे ही टाउन में आया हो बिकॉज़ बंगाल का सबसे अमीर सेठ लोग यही रहते है बारे बारे मॅजिस्ट्रेट्स और एमएलए का भी यही घर है…जिनके पास धारो दौलत है… कमिशनर ने मुझे बताया की एक पुलिस मीटिंग कल बिताई जा रही है मैं आ जाओ…मैंने भी हाँ कहा और फिर फोन रख दिया
 

u.sir.name

Hate girls, except the one reading this.
6,840
9,769
189
(UPDATE-39)



उसी वक्त शीतल को बोला जाकर तू फ्रेश हो जा..वो गुसलखाने में जाकर अपने कपड़े उतारके नहाने लगी…मैंने भी फौरन कपड़े उतार लिए एक बार काकी मां की ओर देखा जो गहरी नींद में थी..फिर जल्दी से गुसलखाने में घुसके दरवाजा लगा दिया…शीतल डर गयी मैंने फौरन उसके मुँह पे हाथ रखा…वॉ भी समझ गयी मेरे दिल में क्या है? और मेरे सामने ही दीवार पे टैक्के खड़ी हो गयी

मैंने फौरन उसके ज़ुल्फो को हटाया और उसके होठों से होंठ भीड़ा दिए..हम दोनों एक दूसरे को किस करने लगे..और फिर शीतल को गान्ड से उठाते हुए उसके नंगे बदन को चूमने लगा उसके छोटे छोटे निपल्स को चुस्सने लगा उसके छातियो को दबाने लगा उसके गले में होंठ फहीराने लगा…शीतल पूरी तरह से तारक में आहें भरने लगी

उसके टांगों को थोड़ा फैलाया और ग्ोअडी में उठाए ही अपना लंड उसके छेद में टीका दिया…पहले तो ऊसने मुझे क़ास्सके पकड़ लिया लेकिन अचानक उसका हाथ मेरे पट्टी पे लगा…काकी मां तो चुदवाने में इतनी मशगूल थी की उसे पता ही नहीं चला पर इसे अगर पता चला तो हुआ भी वही ऊसने पूछ डाला मैंने बताया की लोहे से खरॉच लग गयी सेपटिक पकड़ लेता इसलिए इलाज कराया तो पट्टी लग गयी फिर ऊसने कुछ नहीं कहा बस ख्याल रखने की हिदायत दी

फौरन ऊस्की चुत की फहाँको में लंड घिस्सते हुए एक ही शॉट मारा…उफ़फ्फ़ कितनी सख्त चुत थी….शीतल काँप उठी ऊसने अपने नाखून मेरे पीठ पे गढ़ा दिए और मैं भी फुरती से उसे उछाल उछाल के अपने लंड पे चोदने लगा मेरे हाथ सक़ती से ऊस्की गान्ड को दबोचे हुए थे जबकि पूरा छाती और पेंट मेरे सीने और पेंट से जुड़ा हुआता…मैं बारे ही आराम आराम से धक्के देने लगा

देवश : दर्द तो नहीं हो रहा ना

शीतल : नहीं बिलकुल भी नहीं

देवश : चल मजे ले फिर

शीतल आहह आहह करके बारे ही अहेतियात से आहें भर रही थी ऊस्की मां को पता ना चल जाए…मैं शीतल को उसी हालत में चोदता रहा…वो एम्म्म एम्म्म करते हुए झड़ गयी और मुझसे लिपट गयी…मैंने उसे नहीं छोडा और उसे वही फर्श पे लिटा दिया कारण वो बहुत कमज़ोर पढ़ चुकी थी…मैंने फौरन उसे लािटाए मिशनरी पोज़िशन एमिन दोनों टांगों को अपने कंधे पे रखा और दान दाना दान चुत में लंड घुसाए अंदर बाहर करने लगा

शीतल लज़्ज़त में अपने दाँतों में दाँत रखक्के चुदवाती रही..और मैं उससे चोदता रहा…ऊस्की बीच बीच में ज़ोरर्र से आहह निकल जाती….और मैं अपनी गांड में ताक़त भरके जितना हो सके उसे चोदता रहा…लंड से थोड़ा प्री-कम आने लगता जिसे मैं बीच बीच में उठके पानी और उसी के ब्रा से साफ कर देता….नल खोल दिया था जिससे पानी की आवाज़ से काकी मां को पता ना लगे की मैं गुसलखाने में ऊस्की बेटी को चोद रहा हूँ

कुछ देर में ही शीतल फिर झड़ गयी…इस बार साली कुछ ज्यादा ही ज़ोर से चिल्ला उठी..मैंने फौरन लंड चुत के मुआने से बाहर खिंचा और फिर उसे पेंट से उठाकर दीवार पे टैका दिया उसका वज़न यही कोई 40 किलो तो होगा ही बस छाती और गांड भारी हुई थी…कहाँ हम मर्दों का वज़न औरतों से तीन गुना दुगुना हम मर्दों को औरतों को उठाने में कोई ज्यादा प्राब्लम नहीं होती

ऊस्की पतली कमर पे हाथ रखा और उसके नाभी को अंगुल करते हुए उसके टाँग को कमर पे फ़सा दिया अब वो मुझपर पीठ के बाल चड्डी हुई और मैं नीचे से उसे धक्के पेलता जा रहा था…वो चुड्द्वाए जा रही थी लंड बारे ही आसानी से ऊस्की चुत से निकल रहा था घुस रहा था…कुँवारी चुत अब पहली की तरह टाइट नहीं थी मेरा अब पारा चढ़ गया और मेरी कामशक्ति जवाब देने लगी…और मैंने फौरन धक्के तेज कर डाल्ली…और उसी बीच मैंने उसके कमर से उसे ऊपर उचका दिया…जिससे चुत से लंड फ़च से निकाला और रस लबालब छोढ़ने लगा…लंड रस बहा रहा था जो नाली के अंदर जा राई थी


फिर उसी बीच मैंने शीतल को खड़ा किया और साबुन से जल्दी जल्दी उसके बगल गान्ड चुत छाती साबप्पे साबुन रगड़ा पेंट पे भी रगड़ा फिर ऊसने भी मुझे कुछ साबुन लगाया और हम दोनों ने शवर के नीचे नहाया…ये तीसरी बार मैं झड़ा था काफी तक गया था मैं….फिर मैंने उसे कहा की पहले मैं नियालकता हूँ बाद में तू निकल लियो वो पहले सावधानी से निकली फिर मैं…गनीमत ही काकी मां उठी नहीं

ऊस दिन चुदाई का प्रोग्राम बहुत ही अच्छा ही चला…मैंने इतना सेक्स किया की हाथ पाओ में जान नहीं थी…साला दुम्ब्बेल्ल भी नहीं उठा पाया था…काला साया की मौत के बाद तो जैसे अब मैं पूरा देवश बन चुका था….एक तरह से छुट्टी मिल सी गयी थी अययाशी करने के लिए…साथ ही साथ थाने का कामकाज भी बेटर चल रहा था

लेकिन खुशी पलों को लगते काली नज़र डायरी नहीं लगती….अच्छी खाासी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया…जिसने मुझे फीरसे जुर्म की इस लरआई में पाओ रखने के लिए शामिल करवा ही दिया….अब वो क्या वजह थी ये तो मैं अगले अपडेट में ही बताऊंगा
ऊन दीनों टाउन के आसपास बहुत ज्यादा ही क्राइम तरफ गया था…पुलिस की गश्त के बावजूद सुनसान इलाक़ो में अंधेरी रातों में ही सुपारी किलैंग्स हो जा करती थी…जिनकी लाशें बाद में फाटक के पानी में तैरती दिखती थी…बहुत कल्प्रिट्स और सस्पेक्ट्स को गेरफ़्तार किया गया..खूनियो को भी धार दबोचा पर अब पहली वाली बात नहीं रही थी जो काला साया के टाइम थी लेकिन अगर क्राइम को ओस्से डर था तो पुलिसवालो से ऊन्हें दुगुना डर होना चाहिए था सबके जुबान पे एक ही बात थी आख़िर काला साया आ क्यों नहीं रहा ? पर कोई कुछ ज्यादा कर ना सका…उसे खोजते भी कहा…जिसके चेहरा किसी ने आजतक नहीं देखा

ऊन दीनों टाउन में लगातार 3 महीनों से चोरी हो रही थी सुराग ना के बराबर ना ही कोई दायकात और ना ही कोई प्रोफेशनल तेइफ़ दिन दहाड़े ही बारे बारे सेठो के घर से पैसा जेवराहट सबकुछ चोरी हो जाता….और बाद में शिकायत और दिमाग खाने सेठ लोग पुलिस स्टेशन पे दस्तक देते…कब पकड़ेंगे क्या पुलिस कर रही है? ब्लाह ब्लाह बोलकर चले जाते..बस ऊन्हें आश्वासन ही देना परता…शायद एक फैसला लेकर मैंने अपनी बाकी जिंदगी को जैसे मुस्किलो में डाल दिया था

उसी दिन पुलिस की गश्त मैंने बरहा दी थी पर साला रात को उसका एक परछाई भी नहीं मिला गुंडे नहीं थे ना कोई बड़ी गान्ड थी…सिर्फ़ एक अक्स दिखता काले कपड़ों में और धक्का नक़ाब पॉश घर में घुसता सब पर स्प्रे मरता और फहरी जीतने चीज़ें है लूट लाटके भाग खड़ा होता

ऊस रात भी दिमाग पूरे दिन की थकान से चोद था…टीवी पे फेव मूवी रेसलिंग देख रहा था…मेरी खूबसूरत रेस्लर लड़कियां पेज और निक्की बेला का दमदार एक्शन सीन चल रहा था…साला बाप जन्म में तो कभी मिलेगी नहीं बस यूँ ही आँख सैक ले बेटा…अभी अपने असल घर आया था दिव्या मेरे नयी मकान में रही रही थी…रात करीब 11 बज चुके थे…आराम से अभी टीवी देख ही रहा था इतने में फोन बज उठा…लो कर लो बात साला अभी आंखों से सैका नहीं लंड झड़ा भी नहीं और ये लो फोन कॉल


जल्दी से फोन उठाया तो पाया कमिशनर की आवाज़ थी…ऊन्होने बढ़ते अपराध को देखते हुए सूचित किया की ऐसा मामला कलकत्ता में भी हुआ था पर जब ज्यादा इन्वेस्टिगेशन बड़ी तो वॉ चोर गायब हो गया…शायद उंड़रगरौद्ण के बाद वॉ हमारे ही टाउन में आया हो बिकॉज़ बंगाल का सबसे अमीर सेठ लोग यही रहते है बारे बारे मॅजिस्ट्रेट्स और एमएलए का भी यही घर है…जिनके पास धारो दौलत है… कमिशनर ने मुझे बताया की एक पुलिस मीटिंग कल बिताई जा रही है मैं आ जाओ…मैंने भी हाँ कहा और फिर फोन रख दिया
Nice update brother.....
keep writing...
keep posting......
 
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