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Update 19
दाई माँ फर्श पर बैठ गई. और अपने थैले से सामान निकालने लगी. कोमल सब देख रही थी. कुछ सामान तो उसे ख्याल था. जो उसने डॉ रुस्तम के हवन क्रिया मे देखा था. दाई माँ ने जो सामग्री निकली उसमे बहोत सी चीजे ऐसी थी. जो मृतक जीवो की थी.
किसी पशु का नाख़ून, दाँत, हड्डी. खोपड़ी. बहोत कुछ. दाई माँ ने एक खिलौना भी निकला. वो एक गुड्डा था. ऐसे और भी दाई माँ के झोले मे थे. दाई माँ ने कोमल की तरफ देखा.
दाई माँ : लाली तेरे घर मे कोउ बड़ो सो शिसा हते का???
(बेटी तेरे घर मे बड़ा सा शिसा है क्या???)
कोमल : हा हा है ना. पर वो मेरा ड्रेसिंग टेबल है.
डॉ रुस्तम : वो तो कुर्बान करना पड़ेगा.
कोमल ने बलबीर की तरफ देखा. वो समझ गया और बेडरूम से उस ड्रेसिंग टेबल को ही ले आया.
कोमल सभी करवाही बड़े ध्यान से देख रही थी. दाई माँ ने एक काला कपड़ा लिया और उस से ड्रेसिंग टेबल का मिरर ढक दिया. उसके एग्जिट सामने उस गुड्डे को रखा. कोमल डॉ रुस्तम के पास खड़ी थी. वो रहे नहीं पाई और डॉ रुस्तम से पूछ ही लेती है.
कोमल : माँ की प्रोसेस तुमसे अलग क्यों है.
डॉ : जो प्रोसेस मेने की वो शत्विक विधया थी. दाई माँ तामशिक प्रोसेस कर रही है.
कोमल : फिर दोनों मे फर्क क्या है????
डॉ : किसी भी भगवान की दो तरीको से सिद्ध हासिल की जा सकती है. एक तामसिक और एक सात्विक. सात्विक प्रवृत्ति में सब कुछ शुद्ध से होता है. जबकि तामसिक प्रवृत्ति में मालीनता का तक उपयोग होता है. तामसिक प्रवृत्ति में बाली भी देनी पड़ती है.
कोमल ने आगे कुछ पूछा नहीं. पर डॉ रुस्तम उसे खास चीज बताते है.
डॉ : दाई माँ ने 9 देवियो को सिद्ध कर रखा है. साथ ही कुछ सुपरनैचुरल पावर्स को भी सिद्ध कर रखा है. वो बहोत पावरफुल है.
कोमल हैरान रहे गई. ये सब सुन के. दाई माँ ने सारा सामान जमा दिया था. फर्श पर गोल और त्रिकोण आकृति बनाई थी. जिसपर कुम कुम वाला रंग लगा हुआ था. एक कटार भी रखी हुई थी. जिसे लेकर दाई माँ मंतर पढ़ रही थी. कई फल और भी कई ऐसे बीज भी थे.
जिसे कोमल नहीं जानती थी. दाई माँ ने अपने हाथ की ऊँगली को थोडा काटा. और खून निकल कर उस नीबू पर चढ़ाया. कोमल जो देख रही थी. उसकी जानकारी डॉ रुतम साथ साथ कोमल को बता रहे थे.
डॉ रुस्तम : ये जो कुम कुम वाले 9 नीबू है. ये 9 देवियो के स्थान है. साथ वो जो गुड्डा है वो एक जरिया है. जिस से वो जिन्न से बात की जा सकती है.
कोमल : फिर उस शीशे पर काला कपड़ा क्यों है???
वो जिन्न गुड्डे के जरिये आएगा. पर बात उस शीशे के जरिये से ही करेगा. उसे देखना अपसगुन है. पर वक्त आने पर तुम्हे देख कर बहोत कुछ समझ आ जाएगा. कोमल का ध्यान एक पत्थर पर गया. जिसे सिलबट्टा कहते है. जो चटनी कूटने के या मसाले कूटने के लिए काम आता है. दाई माँ मंतर पढ़ते पढ़ते रुक गई. और घूम कर डॉ रुस्तम की तरफ देखती है.
दाई माँ : नाय आ रहो बो.
(नहीं आ रहा वो)
रुस्तम : एक बार और कोसिस करो. नहीं तो इंतजार करते है. वो खुद आएगा तब कोसिस करेंगे.
दाई माँ एक बार और कोसिस करती है. कोमल,बलबीर डॉ रुस्तम तीनो देख रहे थे. काफ़ी वक्त हो गया. पर एनटीटी नहीं आई. दाई माँ बूढी थी. इस लिए उनका मुँह दर्द करने लगा. वो रुक गई. और पाऊ फॉल्ट कर के बैठ गई. डॉ रुस्तम सोफे पर बैठे तो कोमल और बलबीर भी दूसरे सोफे पर बैठ गए. दाई माँ तो फर्श पर ही बैठी थी.
कोमल दाई माँ को देख रही थी. और दाई माँ कोमल को. दाई माँ की नजर कोमल की थोड़ी से निचे गर्दन पर पड़े दाग पर गया. दाई माँ के चहेरे पर हलकी सी सिकन आ गई.
दाई माँ : इतउ आ री लाली.
(इधर आ बेटी)
कोमल तुरंत दाई माँ के करीब हुई. दाई माँ ने कोमल की थोड़ी को पकड़ कर हलके से गर्दन ऊपर उठाई. कुछ अजीब सा लाल दाग था. खींचने से कोमल को जलन भी हुई.
कोमल : बहोत दवाई करवाई माँ. पर ये जगह जगह हो जा रहा है.
कोमल को पता नहीं था की वो क्या है. पर दाई माँ को पता था. उन्हें गुस्सा आने लगा. वो जैसे गुस्सा अपने अंदर समेट रही हो.
दाई माँ : जा बैठ जा. सब ठीक हे जाएगो. (सब ठीक हो जाएगा)
कोमल जाकर बैठ गई. दाई माँ फिर घूमी और दूसरी बार अपना खून उन नीबूओ पर डाल के जोश मे मंत्रो का जाप करने लगी. कोमल से वो बेचैनी बरदास नहीं हुई. और वो खड़ी होकर डॉ रुस्तम के पास जाकर खड़ी हो गई. बलबीर उठने गया तो कोमल ने उसे बैठे रहने का हिशारा किया. कोमल बड़ी ही धीमी आवाज से पूछती है.
कोमल : अचानक माँ को गुस्सा क्यों आ रहा है??
डॉ : क्या तुम जानती हो तुम्हारे शरीर पर जो दाग है. वो क्या है??
कोमल : क्या???
डॉ : वो उस जिन्न का पेशाब है. वो तुम्हारे शरीर पर अपना...
डॉ रुस्तम बोल कर रुक गए. कोमल भी समझ गई की वो जिन्न अपने पेशाब कोमल के शरीर पर गिरता था. ये समाज़ते ही कोमल को भी गुस्सा आने लगा.
डॉ : दाई माँ ने उन 9 देवियो को अपना खून दिया. मतलब वो खुद की बली खुद को उन देवियो को अर्पण कर रही है.
कोमल वकील भी बेहद ख़तरनाक थी. उसे उन मर्दो पर बहोत गुस्सा आता था. जो औरत की बिना मर्जी के उन्हें छूते है. कोमल ने पति द्वारा पीड़ित महिलाओ के लिए भी कई केस लड़े थे. कइयों को तो सजा भी दिलवा दी थी. पर खुद को कोई पीड़ित करने लगे और कोमल को गुस्सा ना आए ऐसा मुश्किल है. दाई माँ रुक कर अपनी झंग पर अपना हाथ पटकती है.
दाई माँ : (गुस्सा) सारो आय ना रो. छोडूंगी नई ज्याए.
इन सब मे दोपहर का एक बज गया था. गुस्सा कोमल को भी आ रहा था. वो सोचने लगी की दाई माँ उसके लिए क्या कुछ नहीं कर रही. और वो बस ऐसे ही बैठी सिर्फ दाई माँ के भरोसे बैठी रहे. ऐसे ही दो कोसिस और हो गई. पर वो एंटी.टी आ ही नहीं रही थी. कोमल खड़ी हो गई.
कोमल : मुजे मालूम है की वो कैसे आएगा. तुम शुरू रखो. बेडरूम मे कोई नहीं आना.
कोमल अपने बेडरूम मे चली गई. वहा से बलबीर को बेड रूम के डोर के सामने का नजारा दिखाई दे रहा था. बलबीर ने देखा की कोमल जाते ही अपनी टीशर्ट पजामा ब्रा पैंटी सब कुछ उतर कर बेड पर नंगी लेट गई. बेड पर जाते ही उसे कोमल नहीं दिखाई देती है. क्यों की जिस ड्रेसिंग टेबल से बेडरूम का बेड दीखता था.
ड्रेसिंग टेबल ना होने के कारण वो कोमल को नहीं देख सकता था. बलबीर को कोमल के लिए एक अजीब सा डर लगने लगा. दाई माँ ने मंत्रो के उच्चारण को जोरो से शरू कर दिया. दोपहर के 2 बजते कोमल के फेल्ट का माहोल कुछ और ही हो गया. वहां कुछ अजीब हुआ. बलबीर ने देखा की एकदम जोर से कोमल के बैडरूम वाला डोर बड़ी जोरो से अपने आप बंद हुआ. और बड़ी जोरो की आवाज आई. भट्ट कर के. दाई माँ ने नव देवियो को सिर्फ खून ही नहीं पुष्प, फल, सुपारी पान बहोत कुछ अर्पण किया था.
उन्हें मालूम था की असर शुरू हो चूका है. जो गुड्डा रखा था. वो एकदम से आगे को झूकते गिर गया. गिरते ही उसे बड़े से मिरर का सहारा मिला. गुड्डा मिरर के सहारे टेढ़ा खड़ा था. गुड्डा रबर और प्लास्टिक का था. उसका वजन 5 ग्राम भी नहीं होगा. पर गुड्डे का सर मिरर से टकराते टंग सी आवाज आई. जैसे गुड्डा कोई भरी लोहे का हो.
मिरर और गुड्डे के बिच बस काला कपड़ा ही था. जैसे डोर बंद हुआ और भाग कर गया. डॉ रुस्तम भी उसके पीछे गया. अंदर कोमल जल्दी से खड़ी हुई और अपने कपडे पहेन ने लगी. अंदर अलमारी के दोनों दरवाजे अपने आप जोरो से खुलने बंद होने लगी.
फट फट की आवाजे जोरो से आने लगी. कोमल को भी डर लगने लगा. वही बहार से बलबीर और डॉ रुस्तम बार बार दरवाजा पिट रहे थे.
बलबीर : (घबराहट हड़ बड़ाहट) कोमल कोमल...
कोमल भी कपडे पहनते डोर तक पहोची.
कोमल : (जोर से आवाज) मे ठीक हु. डोर खुल नहीं रहा है.
डॉ : लगता है डोर ही तोडना पड़ेगा.
बलबीर : तुम पीछे हटो दरवाजा तोडना पड़ेगा.
कोमल पीछे हटी. बलबीर जोरो से डोर से कन्धा टकराने लगा. कोई कुण्डी नहीं लगे होने के बावजूद भी डोर खुल नही रहा था. उधर दाई माँ ने मंतर पढ़कर उस गुड्डे की पिठ की तरफ फेके. जैसे गुड्डे की पिठ पर जोर से मारे हो. वहां एकदम से वो डोर खुल गया. बलबीर सीधा अंदर की तरफ गिरने लगा. पर कोमल ने उसे थाम लिया. वो भी गिरते गिरते बची. वो तीनो बेडरूम से बहार दाई माँ के पास आ गए.
अब जो नजारा उन सब के सामने आने वाला था. वो एकदम डरावना था. दाई माँ ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा.
दाई माँ : डाक्टर तू हवन तैयार कर.
डॉ रुस्तम भी अपना बैग ले आया. उसमे से सामान निकालने लगा. जगह कम थी. इस लिए सोफे को वहां से पीछे खिसकाना पड़ा. डॉ रुस्तम ने हवन की सामग्री सब अच्छे से सेट किया. उसने हवन मे अग्नि भी दी. पर सब को एहसास हो रहा था की मिरर मे काले कपडे के पीछे कोई हे. एक आकृति सी उभर कर आने लगी थी. वो कपड़ा ट्रांसफार्मेट था. कपडे के पीछे कोई खुले बालो वाला भयानक अक्स नजर आने लगा. पर हड़ तो तब हो गई जब उनहे उस सक्स की हसने की आवाज आने लगी.