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Horror किस्से अनहोनियों के

Shetan

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Shetan

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Update 26A


कोमल जब बहार स्कूल के बड़े दवाजे पर खड़ी पहले तो उस स्कूल को देखती है. वीरान पड़ी वो स्कूल रात के अँधेरे मे ज्यादा ही डरावनी लग रही थी. कोमल के हाथो में डॉ रुस्तम का दिया रेडिओ सेट था. डर से कोमल अनजाने में उसे ही जोरो से प्रेस कर रही थी. तभि सेट पर डॉ रुस्तम की आवाज आई.


डॉ : कोमल ऐसे सेट को प्रेस मत करो.


कोमल को एहसास हुआ की वो क्या कर रही है. रेडिओ सेट(RS) पर एक बार फिर डॉ रुस्तम की आवाज आई.


डॉ : आगे बढ़ो कोमल. ये तुम कर सकती हो.


डॉ रुस्तम की आवाज कोमल को थोड़ी हिम्मत भी दिला रहे थे. जब से कोमल को पता चला की 2 बच्चों की आत्मा उसके पीछे पड़ी है. और उसे अपने साथ लेजाना चाहती है. कोमल को डर भी लगने लगा था. कोमल फिर भी आगे बढ़ती है. कोमल डर के पीछे हट जाने वालों मे से नहीं थी. वो स्कूल की बिल्डिंग के डोर तक गई.

पहले कभी वहां लोहे की जाली और लोहे का दरवाजा रहा होगा. टूटी हुई दीवार से साफ पता चल रहा था. कोमल धीरे धीरे अंदर चली गई. और उस तरफ मूड गई जिस क्लास की छत गिरी और बच्चे मरे थे. कोमल उस क्लास रूम के बहार डोर पर ही खड़ी हो गई.

वहां पहोचने पर बड़ी नेगेटिव वाइब्स आ रही थी. उस क्लास का डोर भी टुटा हुआ था. सिर्फ थोड़ासा फट्टा ही था. कोमल के मन में अंदर जाने से पहले कई खयाल आए. क्या वो आज जिन्दा वापिस आएगी.

या वो खुद तो कही पजेश नहीं हो जाएगी. लेकिन ये कोमल का खुद का अपना फेशला था. कोमल ने एक लम्बी शास ली. और अंदर घुस गई.


कोमल : (स्माइल) कैसे हो बच्चों. देखो में फिरसे तुमसे मिलने आई.


बोलते हुए कोमल उसी चेयर पर बैठ गई. जहा लास्ट टाइम बच्चों से बात करती वक्त बैठी थी. उसके कान मे माइक्रोफोन था. जिस में से उसे कुछ आवाज सुनाई दीं. आवाज एक साथ कई बच्चों की आपस में बात करने की थी. ऐसी आवाज सायद स्कूल के रिसेस लंच ब्रेक वगेरा में सुनी होंगी.


तू क्या कर रहा है. हे वो आंटी आ गई. वो गुब्बारे नहीं लाई. आंटी गन्दी है. हे तू ऐसा मत बोल. वो हमें परेशान करेंगी. अह्ह्ह उह्ह्ह. आंटी उन लोगो के साथ है.


कोमल को पॉजिटिव के साथ नेगेटिव भी बाते सुनाई दीं. उसके दिल की धड़कने ज्यादा तेज़ हो गई. लेकिन कोमल हिम्मत करती है.


कोमल : बच्चों तुम हार वक्त यही रहते हो. क्या तुम्हारा मन नहीं करता कही बहार जाने का.


कोमल को फिर रिप्लाई सुनाई दिया.


हमें यही अच्छा लगता है. हमें कही नहीं जाना. हे ये हमें यहाँ से भागना चाहती है. ये गन्दी है. नहीं ऐसे मत बोलो. आंटी भी हमारे साथ रहेगी.


कोमल की फटने भी लगी. पर उसके पास अब पीछे जाने का रस्ता नहीं था. बच्चे तो उसे मारवकर अपने साथ रखना चाहते थे.


कोमल : बच्चों पंडितजी कहा है????


रिप्लाई : वो आते है. हमें नहीं जाना. वो हमें नहीं पकड़ सकते. वो हमें पसंद नहीं करते. वो गंदे है.


दरसल कोई भी आत्मा एक दूसरे का कुछ नहीं बिगड़ सकती. लेकिन मरे हुए उन लोगो मे एक जिंदगी ही बन चुकी थी. जैसा रियल जिंदगी में होता है. पंडितजी की आत्मा आती तो वो बच्चों की आत्माए उस स्कूल में इधर उधर भागने लगती. कोमल को ये कम समझ आया.

लेकिन बहार से सुन रहे डॉ रुस्तम को ये सब समझ आ गया था. कोमल को समझ नहीं आ रहा था की अब क्या सवाल करें. हड़बड़ट में उसने सीधा मंदिर के बारे मे ही पूछ लिया.


कोमल : बच्चों वो मंदिर कहा है. जो पंडित जी बनवा रहे थे???


रिप्लाई बड़ा अजीब था. जिसकी कोमल को उम्मीद ही नहीं थी. रिप्लाई में किसी बच्चे की खी खी खी कर के हसने की आवाज आई.


रिप्लाई : (हस्ते हुए) एएए.... मत बताना. (दूसरा बच्चा) वो तो पीछे ही है. (तीसरा बच्चा) वो तुम्हे नहीं मिलने वाला.


कोमल जवाब सुनकर हैरान रहे गई. उस मंदिर को स्कूल के आगे होना चाहिये था. पर वो स्कूल के पीछे था. लेकिन कोमल भी पहले दिन पूरा स्कूल देख चुकी थी. पीछे कोई मंदिर था ही नहीं. कोमल एक वकील थी. वो समझ गई की वास्तु गलत कैसे होगा.

पंडितजी का स्थान स्कूल के पीछे होना चाहिये था. मगर वो स्कूल के आगे था. और मंदिर को आगे होना चाहिये था. जब की वो स्कूल के पीछे था. कोमल ने पंडितजी के भी मुँह से सुना था. और डॉ रुस्तम ने भी यही जानकारी दीं थी की वास्तु गलत है. हलाकि कोमल को तो वास्तु का कोई ज्ञान नहीं था. लेकिन रिप्लाई रुका नहीं था.


हे हे क्यों बताया.... वो वो खोद के निकल लेंगे......आंटी गन्दी है....नहीं वो नहीं बताएगी. आंटी आप ऊपर से कूद जाओ. आप हमारे पास आ जाओ.


अचानक वहां इतनी बुरी बदबू आने लगी की कोमल को वोमिट जैसा होने लगा. सर दर्द करने लगा. कोमल खुद खड़ी हो गई. उसका जी घबराने लगा. रेडिओ सेट पर डॉ रुस्तम call करने लगे.


डॉ : वापिस आ जाओ कोमल. प्लीज वापिस आ जाओ... कोमल.. क्या तुम मुजे सुन रही हो???


डॉ रुस्तम कोमल के खड़े होने से डर गए थे. कही वो ऊपर ना जाए. वैसे तो उनकी बैकअप टीम तैयार थी. कोमल उस रूम से बड़ी मुश्किल से निकली. डॉ रुस्तम डर रहे थे. लेकिन कोमल जब स्कूल से बहार निकली तो उनके फेस पर भी स्माइल आ गई. कोमल को अंदर घुटन हो रही थी. उसने बहार आते ही वोमिट कर दीं.

और निचे ही घुटनो के बल बैठ गई. उसके कपडे भी ख़राब हो गए. ये देख कर डॉ रुस्तम तुरंत कोमल की तरफ भागे. पर तब तक तो बलबीर पहोच गया था. वोमिट के बाद कोमल को अच्छा लग रहा था.


डॉ : जल्दी कोई पानी लाओ.


डॉ रुस्तम का एक टीम मेंबर जल्दी पानी की बोतल कोमल को देता है. कोमल ने पानी पिया. और अपने आप को साफ किया. वो हफ्ते हुए बलबीर को देखती है. फेस जैसे बहोत थकान नींद आ रही हो. कोमल ने हलकी सी स्माइल की.


कोमल : (स्माइल थकान) मै ठीक हु.


डॉ : मेने उन बच्चों की सारी बाते सुनी.


कोमल ने बलबीर को अपना हाथ दिया. उसने कोमल को खड़ा किया.


कोमल : आगे चलके बात करते है.


वो तीनो आगे आ गए. कोमल ने रेडिओ सेट और माइक्रोफोन बलबीर को दे दिया.


कोमल : मंदिर स्कूल के पीछे है. सारा वास्तु का लोचा है.


बलबीर पर पीछे तो कुछ नहीं है. बस थोड़ी सी जमीन उठी हुई है. वो तो पंडितजी का स्थान है.


कोमल : नहीं.. उसे खोदो. मंदिर निचे गाढ़ा हुआ है. और स्कूल के आगे की तरफ पंडित जी का स्थान है.


बलबीर : तुम क्या उल्टा बोल रही हो....


दोनों की बहस को डॉ रुस्तम सूलझाते है.


डॉ : एक मिनट एक मिनट. मंदिर और पंडितजी का स्थान अपनी जगह पर ही है. स्कूल उलटी बनी हुई है.


बलबीर : चलो मान लिया. पर मंदिर जमीन के अंदर कैसे जा सकता है????


डॉ : होता तो नहीं है. किसी ने करवाया है.


बलबीर : किसने???


डॉ रुस्तम ने कोमल की तरफ देखा.


कोमल : खुद बच्चों ने. लेकिन जरिया मुजे लगता है दिन दयाल भी है.


अब कोमल और डॉ साहब. जैसे चोर पकड़ लिया हो. कॉन्फिडेंस से एक दूसरे के सामने देखने लगे. कोमल अपनी वाकिली दिमाग़ और डॉ रुस्तम अपने तंत्र मन्त्र जीवन के तजुर्बे को बयान कर रहे हो. बलबीर बस बारी बारी दोनों के फेस को देखता रहा.


कोमल : (स्माइल) कितनी अजीब बात थी ना. दिन दयाल के घर अपने बाप का फोटो था. जिसपर हार चढ़ा रखा था. मगर मरे हुए बेटों के ना हार थे ना फोटो.


डॉ : मंदिर और किसी की समाधी कभी एक साथ नहीं होती. पंडित जी चाहते थे की मंदिर के सामने स्कूल हो.

ताकि मंदिर और सूरज की पॉजिटिव एनर्जी स्कूल पर पड़े. आगे मंदिर पीछे सूरज. पर एक एनर्जी को रोक दिया गया. वो था मंदिर. लेकिन उस जगह अब सिर्फ सूर्य की एनर्जी मिल रही है. जिसका टाइम फिक्स है. नतीजा स्कूल के पीछे की तरफ हमेशा कोई पॉजिटिव एनर्जी का प्रभाव नहीं होगा. नेगेटिविटी बढ़ानी है.


कोमल : आप ने उस बुढ़िया पर ध्यान दिया. जो घर के बहार आँगन मै खटिये पर पड़ी थी.


डॉ : ऐसा लग रहा था की उसे घर मे लाया ही नहीं जा रहा. लेकिन हमारे आते ही वो गालिया बोलने लगी. कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो हमें क्यों गालिया बक रही थी.


कोमल : वो गालिया हमें नहीं दिन दयाल को ही दे रही थी. कोर्ट मे ऐसे बूढ़ो का बयान मेने कई बार दर्ज करवाया है.


डॉ : मतलब की बुढ़िया हमें बताना चाह रही थी सायद.


कोमल : (स्माइल) बिलकुल... सही कहा.


डॉ : मतलब उसके घर जो भी आता वो अपने बेटे को गालिया देने लगती. वो सब के सामने अपने बेटे को शो करना चाहती थी. लेकिन बेचारी ज्यादा बूढी थी. इस लिए उसकी भाषा कोई समझ नहीं पता था.


कोमल : वो कहना चाहती थी की ये मादरचोद भी मिला हुआ है. उसका मेला बिस्तर, ऐसा लगा जैसे धुप चाव बेचारी वही पड़ी रहती है.


डॉ : उसका सिर्फ एक बेटा बचा हुआ है. बेटी इतनी कमजोर है की कब मर जाय पता नहीं. वो एक एनटीटी को अपने शरीर मे झेल रही है.


कोमल : कही ऐसा तो नहीं की अपने बेटे को बचाने वो अपने पुरे परिवार को कुर्बान कर रहा है. लगता है दिन दयाल को पंडितजी के नाम की दुकान भी बंद नहीं होने देनी.


डॉ : तभि पंडितजी ने मेरा नाम अड्रेस फोन नो दिन दयाल को नहीं बल्की मुखिया को दिया. सब के सामने दिया होगा. दिन दयाल तब कुछ नहीं कर पाएगा.


बलबीर : पर उस से मंदिर कैसे जुडा हुआ है.


डॉ : मदिर का काम चालू था. पंडितजी मंदिर बनवाना चाहते थे. मतलब की प्रण प्रतिष्ठा हुई नहीं. तो जब भी पंडितजी उसकी बेटी मे आते वो सबको बोलते होंगे मंदिर का काम पूरा करवाओ.


कोमल : लेकिन मंदिर बन गया तो पंडितजी की विश पूरी हो जाएगी. और वो सायद चले जाए. तो उनकी दुकान कौन चलाएगा. साले ने खुद ही मंदिर को छुपाया है..


डॉ : उसी के चलते तो बच्चों की एनटीटी को पावर मिल रहा है. स्कूल के पीछे की तरफ नेगेटिव एनर्जी अपने आप बन गई. सामने की तरफ मंदिर जो जमीन मे गाढ़ा हुआ है. अब एक बात और है. कोई भी सात्विक चीजों को जमीन मे गाढ देने से नेगेटिव एनर्जी को पावर मिलता है. यह सिद्ध शैतानी प्रोसेस है.


कोमल ने अपनी पजामी के पॉकेट से एक काला कपडे का गुड्डा निकला. जिसपर लाला धागा बंधा हुआ था..


कोमल : तो कही ऐसा तो नहीं की दिन दयाल ये सब करवा रहा हो.


डॉ : नहीं... ऐसा होता तो उसके घर मे कुछ तो तंत्र मन्त्र जैसा कुछ फील होता या सामान मिलता. उसकी बेवकूफी की वजह से सिर्फ नेगेटिव एनर्जी को पावर मिला है.


बलबीर : उसके बाप ने पैदा करी. और बेटे ने पाल पोश कर बड़ा किया.


कोमल : (स्माइल) वाह बलबीर तुम जल्दी समझ गए.


बलबीर : पर अब क्या करें???


डॉ : पहले उस मंदिर को खोद के निकलना होगा.


कोमल : पर अभी इस वक्त???


डॉ : हा अभी. हमें देर नहीं करनी चाहिये.


जो मंदिर स्कूल के आगे होना चाहिये था. वो स्कूल के पीछे था. जिस उठी हुई जमीन को सब पंडितजी का स्थान समझ रहे थे. वो ही वास्तव मे मंदिर था. डॉ रुस्तम ने अपनी टीम की मदद से वहां लाइट लगवाई. उस वक्त मजदूर मिल नहीं सकते थे. इस लिए टीम मेंबर को ही काम करना पड़ रहा था. टीम के पास औजार तो थे.

लेकिन मेंबर मे ऐसा कोई नहीं था जो मजदूरी करता हो. कुछ लड़के थे. जो नवीन वगेरा जो कैमरामैन और कुछ टेक्निकल वाले थे. जिन्होंने मजदूरी तो कभी नहीं की थी.. बाकि मोटे पेट वाले शहेरी थे. वही जवान लड़के खुदाई के लिए आगे आए.

और काम शुरू कर दिया. जमीन बहोत ठोस थी. और किसी को भी ठीक से खुदाई करते नहीं आ रहा था. बलबीर ये ठीक से समझ रहा था. क्यों की वो गांव का था. और किसानी करते ऐसे काम करने ही पड़ते है. बलबीर ने अपना शर्ट उतरा और कोमल को पकड़ाया.

वो जैसे ही खुदाई करने के लिए आगे आया कोमल के फेस पर स्माइल आ गई. बलबीर आया तो उसे सब देखने लगे. सायद खुदाई करने की सही तकनीक वो नहीं जानते थे. जब बलबीर ने फावड़ा चलाया तो सब को समझ आया. कुल 4 लोग खुदाई कर रहे थे.

बलबीर को खुदाई करते देख डॉ रुस्तम को महसूस हुआ की वो काम जल्दी कर लेगा. सभी बलबीर को कॉपी करने लगे. और उनसे भी खुदाई होने लगी. पर अचानक एक का औजार टूट गया. बलबीर ने उसकी तरफ देखा और मुश्कुराया..


बलबीर : (स्माइल)कोई बात नहीं. पहेली बार ऐसा होता है.


बलबीर वापस काम मे लगा. लेकिन उसका भी फावड़ा टूट गया. बलबीर हैरान रहे गया. कोमल भी उसे ही देख रही थी. पर तभि तीसरा और फिर तुरंत ही चौथा फावड़ा भी टूट गया. सभी हैरान थे. अभी तो जस्ट काम शुरू ही किया था.


डॉ : कोई बात नहीं. काम छोड़ दो पैकअप.


सभी ने काम छोड़ दिया. सब कुछ क्लोज होने लगा. कोमल बलबीर दोनों डॉ रुस्तम के पास आए.


बलबीर : डॉ साहब कुछ गड़बड़ है.


डॉ : अरे हमारे औजार पुराने थे. जो हम उसे भी नहीं करते कभी. ये तो किसी टेंट लगाने वगेरा के काम के लिए थे. लकड़ी गल गई होंगी. तभि तो हेंडल टूटे है. कल मुखिया से बोल कर खुदाई करवा देंगे. अभी तुम बस मे रेस्ट करो. आश्रम चलते है.


बलबीर का सक ख़तम नहीं हो रहा था. वो सभी आश्रम मे आ गए. रात के 3 बज चुके थे. सभी को थकान लग रही थी. और सभी को नींद आ रही थी. कोमल और बलबीर भी आश्रम के एक रूम मे ही थे. बलबीर तो सो चूका था. पर कोमल को नींद नहीं आ रही थी.

वो उस बच्चे के बारे मे ही सोच रही थी. जो उसे दिखाई दिया था. उसे बुलकर कही लेजा रहा था. अगर वो चली गई होती तो सायद जिन्दा ना होती. कोमल बलबीर के कंधे पर सर रखे ऐसे ही सोच मे डूबी हुई थी.

तभि उसे दाई माँ की याद आ गई. डॉ रुस्तम ने ही कहा था की दाई माँ कल आएगी. मतलब की सुबह. कोमल के फेस पर स्माइल आ गई. वो बलबीर को थोडा और जकड कर अपनी आंखे बंद कर लेती है.

तभि कोमल को सपना आता है. वही लड़का खड़ा है. और जोरो से हस रहा है. चारो तरफ सन्नाटा है. जिस से उस लड़के की हसीं गूंज रही है. हलका अंधेरा है. वो किसी तालाब के पास खड़ा है. और तालाब की तरफ ही देख रहा है. आस पास बाबुल के पेड़ है.

पर वो बच्चा तालाब की तरफ देख के हस रहा था. कोमल ने सपने मे देखा की कोमल तालाब के बीचो बिच है. और वो डूब रही है. वो बार बार ऊपर आने की कोसिस करती पर कोई फायदा नहीं होता. वो बच्चा कोमल को डूबते हुए देख हस रहा था.

तभि कोमल को घुटन होने लगी और वो एकदम से उठ गई. कोमल ने घड़ी देखि तो 4 बज रहे थे. कोमल पसीना पसीना हो गई. वो एक कपड़े से अपना पसीना पोछकर दोबारा लेट गई. उसे गर्मी लगने लगी. कोमल को डॉ रुस्तम की बात याद आई. कोई भी एनटीटी सुबह 4 बजे एक्टिव नहीं होती. कोमल को थोडा बेटर फील हुआ.

वो दोबारा आंखे बंद कर लेती है. उसे नींद आ गई. फिर कोमल को बहोत ही प्यारा सपना आया. वो घर पर सो रही है. कोमल सपने मे अपने आप को उसके बेडरूम मे सोते हुए साफ देख सकती थी. तभि उसके पास दाई माँ आई. वो उसके पास बैठ गई. और कोमल को गलो पर थपकी मार कर जगाने लगी.


दाई माँ : उठ जा लाली उठ जा. कितनो सोबेगी.
(उठ जा बेटा उठ जा. कितना सोएगी)


कोमल : (नींद मे) अममम माँ सोने दो ना.


बलबीर : अरे उठो यार. वो डॉ साहब बुला रहे है.


कोमल की एकदम से आंख खुली. पता चला की वो सपना देख रही थी. कोमल झट से उठकर बैठ गई.


बलबीर : ये लो चाय. जल्दी तैयार हो जाओ. हमें स्कूल वापस जाना है.


कोमल ने अपने मोबाइल मे टाइम देखा. सुबह के 7 बज रहे थे. वो फटाफट तैयार होने लगी. कोमल बस आधे घंटे मे ही तैयार हो चुकी थी. वो फटाफट बहार निकली. बस तैयार ही थी. सभी मिनी बस मे बैठे कोमल का ही इंतजार कर रहे थे. कोमल की नींद पूरी नहीं हुई ये बलबीर भी समझता था और डॉ रुस्तम भी. मगर कोमल का वहां होना अब जरुरी हो गया था. बस चल पड़ी. कोमल डॉ रुस्तम के पास ही आकर बैठ गई.


डॉ : मुखिया से बात हो गई है. उसने वहां खुदाई शुरू करवा दीं. और दिन दयाल भी वही है. बहोत डरा हुआ है.


कोमल : साला उसे इस केस मे अंदर भी नहीं करवा सकती.


डॉ : दाई माँ की ट्रैन भी स्टेशन पहोच गई. अब देखो वो यहाँ कब तक पहोचती है.


दाई माँ का नाम सुनकर वो बहोत ख़ुश हुई. कोमल ने सोच रखा था की वो इस बार दाई माँ को अपने साथ अपने घर लेकर ही जाएगी. बाते करते हुए वो आगे बढ़ रहे थे की कोमल को घने पेड़ो के बिच पानी की झलक दिखी.


कोमल : (सॉक) रोको रोको रोको...


बस तुरंत ही रुक गई.


डॉ : क्या हुआ???


पर कोमल कुछ बोली नहीं. और सीधा ही बस से उतार गई. डॉ रुस्तम बलबीर सारे ही हैरान थे.

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Shetan

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Update 26B

बलवीर, डॉ रुस्तम, और नवीन भी उनके पीछे पीछे बस से उतर गए. कोमल पेड़ो के बिच से घुसने का रस्ता ढूढ़ने लगी. उसे पानी तो दिख रहा था. जैसे कोई नदी या तालाब हो.

मगर पेड़ो के कारण पूरा दिखाई नहीं दे रहा था. बलबीर समझ गया. उसे एक पगदंडी दिखाई दे गई.


बलबीर : कोमल यहाँ से.


कोमल ने बलबीर की तरफ देखा. और झट से उस तरफ आगे बढ़ गई. वो तीनो भी उसके पीछे थे. कोमल बस जरा सा आगे आकर रुक गई. और सॉक हो गई. वो वही तालाब था. जिसे उसने रात सपने मे देखा था. कोमल डूब रही थी. और वो बच्चा हस रहा था.


डॉ : क्या हुआ कोमल???


कोमल के फेस पर थोडा डर और सॉक से मुँह खुला हुआ. वो बोलते हुए थोडा हकला भी गई.


कोमल : वो वो....


कोमल तालाब की तरफ अपने आप से हिशारा कर रही थी.


बलबीर : अरे क्या हुआ बताओ तो.


कोमल : (घबराहट) मेने... मेने कल इस तालाब को सपने मे देखा.


डॉ रुस्तम को थोड़ी हैरानी हुई. क्यों की ना तो उसने कभी उस तालाब को देखा था. और ना ही कोमल ने. पर बलबीर थोडा हैरानी मे रहे गया. बीती शाम कोमल उस तालाब से थोडा ही दूर पहोची थी. और बलबीर ही कोमल के पीछे पीछे आते उसे आवाज दीं. वो नहीं आता तो सायद कोमल तालाब तक आ ही जाती.


बलबीर : और क्या देखा सपने मे.


कोमल जैसे होश मे आई. वो आस पास के नज़ारे को देखने लगी. वो तालाब एकदम शांत था. चारो तरफ पेड़ो से घिरा हुआ था. बस कही कही पशुओ को पानी पिलाने के लिए लाने की जगह बनी हुई थी.


कोमल : मेने सपने मे अपने आप को डूबते देखा. इसी तालाब मे.


ये सुनकर बलबीर और डॉ रुस्तम हैरान रहे गए.


डॉ : (सॉक) क्या सच मे?? तुमने यही देखा???


कोमल : हा मे वहां डूब रही थी. और वहां एक लड़का वहां खड़ा मुजे देख कर हस रहा था.


कोमल की बात से डॉ रुस्तम और बलबीर दोनों ही हिल गए.


डॉ : वो लड़का कितना बड़ा था.??


कोमल : कुछ पांच, छे साल का ही होगा. बच्चा ही था.


कोमल को याद आया की उसके पीछे दो बच्चों की आत्मा लगी हुई है.


कोमल : कही ये......


डॉ : बिलकुल.. स्कूल चलते है. हमरे पास वक्त है.


वो सब वापस बस मे बैठे और कुछ ही देर मे स्कूल पहोच गए. वो जैसे ही बस से निचे उतरे गांव के दो बुजुर्ग मर्द और मुखिया उनके पास आ गए.


डॉ : हा मुखिया जी. काम कहा तक पहोंचा????


मुखिया : काम हुआ हो तब ना. औजारों पे औजार टूट रहे है. पर मिट्टी खुद ही नहीं रही. ऐसे तो कभी हो नहीं सकता.


डॉ : आइये दिखाइये.


सभी स्कूल के पीछे की तरफ गए. जिसे पंडितजी का स्थान समझा जा रहा था. मंदिर वही होने का अनुमान लग चूका था. डॉ रुस्तम ही नहीं बलबीर कोमल सब हैरान गए. कई औजारों के दस्ते टूटे हुए थे.

कई औजारों का तो लोहा भी टूट चूका था. काम रुका हुआ था. बलबीर डॉ रुस्तम के पास आया.


बलबीर : मेने बोला था ना. ये मामला कुछ और है.


डॉ : हा तुम सही हो.


कोमल : फिर अब क्या करें???


डॉ : विधि करेंगे और क्या. पूजा करेंगे. उन बच्चों की आत्माओ को बांधेगे और फिर काम शुरू करेंगे. आओ..


सभी लोग स्कूल के आगे बस की तरफ चल दिये. तभि एक एम्बेसडर टैक्सी आती दिखाई दीं. सब की नजर उस टेक्सी पर ही गई. वो टेक्सी रुकी और टेक्सी का दरवाजा खुला.


कोमल : (स्माइल एक्साइड) दाई माँ.....


कोमल तो दौड़ पड़ी. और भाग कर सीधा दाई माँ को बाहो मे भर लिया. बलबीर भी देख कर खुश हो रहा था. दाई माँ भी कोमल के गलो को चूमते खूब लाड़ लड़ा रही थी. जब बलबीर दाई माँ के पास पहोंचा तो उन्होंने भी बलबीर को देखा.


बलबीर : (स्माइल) राम राम माँ..


दाई माँ : हा राम राम. चल ज्याए 700 रूपईया देदे.
(चल इसे 700 rs दे दे )


अब बलबीर के पास पैसे थे ही नहीं. ना उसके पास थे. ना कभी उसने कोमल से मांगे. वो हमेशा तो कोमल के साथ होता. कभी कोमल के साथ गया हो और कोमल कोर्ट या किसी मीटिंग मे हो तो वो बहार चाय की कितली या दुकान पर खाता पिता. कोमल आती और उसके पैसे पे कर देती. बलबीर कभी दाई माँ को देखता तो कभी कोमल को.


बलबीर : (मुँह खुला ) माँ.....


कोमल को हसीं आ गई.


कोमल : (स्माइल) कोई बात नहीं मै देती हु..


कोमल ने झट से पैसे निकले और टेक्सी ड्राइवर को दे दिए.


बलबीर हैरान था. क्यों की दाई माँ टैक्सी में आई थी. दाई माँ बलबीर को पट से गल पर एक थप्पड़ मार देती है. थप्पड़ तो हल्का था. पर आवाज पट से आई.


दाई माँ : हे बाबाड़चोदे छोड़िन ते पैसा दीबारों है.
(भोसड़ीके लड़की से पैसे दिलवा रहा है)


ये देख कर कोमल को बहोत जोरो से हसीं आई. बलबीर का फेस वाकई देखने लायक था.


दाई माँ : अब ऐसे मत देखे. मेरो सामान निकर ला गाड़ी मे ते.
( अब ऐसे मत देखें. मेरा सामान निकाल ले. गाड़ी में से.)


बलबीर तुरंत दाई माँ का सामान गाड़ी से निकालने लगा. दाई माँ कोमल के कंधे पर हाथ रखे डॉ रुस्तम के पास आई. डॉ रुस्तम दाई माँ को पूरी कहानी बताता है. डॉ रुस्तम हार एक बात को बड़ी बारीकी से बता रहा था. दाई माँ भी बड़े ध्यान से सुन रही थी. डॉ रुस्तम ने कोमल के साथ हुए आखरी किस्से को भी बता दिया.


दाई माँ : कोई बात ना हे. तू फिकर मत करें. ज्या तो मे अभाल ठीक कर दाऊँगी.
(कोई बात नहीं. तू फिक्र मत कर. ये तो मै अभी ठीक कर दूंगी )


दाई माँ घूमी और कोमल की तरफ देखने लगी. दाई माँ ने बड़े प्यार से कोमल के सर पर हाथ घुमाया.


दाई माँ : जा लाली. तू वाई बच्चन के पास बैठ जा.
(जा बेटी. तू वही बच्चों के पास बैठ जा)


कोमल : (सॉक) क्या वही क्लास मे???


दाई माँ : हा वाई सकुल के कलास मे जकड बैठ. और काउ हे जाए ठाडी मत भाइयो.
(हा वही स्कूल के क्लास मे जाकर बैठ. और कुछ हो जाए खड़ी मत होना )


दाई माँ ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा.


दाई माँ : रे बेटा रुस्तम. ज्याए बैठर वाउ.
(बेटा रुस्तम. इसे बैठा वहां )


दाई माँ कोमल को स्कूल के उस क्लास मे बैठने के किए डॉ रुस्तम को बोलती है. कोमल की फट गई थी. वो कभी दाई माँ तो कभी रुस्तम को देखती है. डॉ रुस्तम ने कोमल को जाने का हिसारा किया.

वो टीम मेंबर को बुलकर सेटअप लगवते है. ताकि कोमल को कोई खतरा हो तो बचा सके. दाई माँ ने ये फैसला क्यों लिया. ये डॉ रुस्तम ने पूछा तक नहीं. लेकिन बलबीर से रहा नहीं गया. डॉ रुस्तम भी उस वक्त दाई माँ के पास ही खड़े थे.


बलबीर : माँ.. उसे फिर क्यों भेज दिया. उसे कुछ हो गया तो??? कल भी उसकी हालत ख़राब हो गई थी.


दाई माँ : वाके पीछे दो बालक हते लाला. हम कछु करें वाए सब पतों लगे है. हम कछु कर के सारे बच्चन को बांध दिंगे. पर कोमर के पीछे जो दो हते बे बच लिंगे. फिर बड़ी परेशानी हे जाएगी. ज्याते बढ़िया कोमरे वही बैठर दो.
(उसके पीछे दो बच्चे है. हम कुछ करेंगे बाते करेंगे उन्हें सब पता चलेगा. हम कुछ कर के बच्चों को बांध देंगे तब भी कोमल के पीछे जो दो बच्चे लगे है वो बच जाएंगे. फिर और ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ेगी. इस से बढ़िया है कोमल को ही वहां बिठा दो.)


डॉ रुस्तम को दाई माँ के तंत्र मंत्र विधया के साथ बुद्धि का उपयोग सही लगा. कोमल स्कूल मे जाकर वही बैठ चुकी थी. उसे इस बार एयरफोन नहीं दिये गए. बस रेडिओ सेट दिया गया. कोमल को रात जैसा डर नहीं लग रहा ठा. क्यों की दिन का उजाला उस क्लास रूम मे आ रहा था. पर फिर भी कोमल को डर तो लग रहा था.

अंदर रात जितनी तो नहीं पर बदबू उसे फिर भी आ रही थी. हलकी हलकी घुटन भी महसूस होने लगी. डॉ रुस्तम ने रेडिओ सेट से कोमल से संपर्क किया.


डॉ : हेलो हेलो कोमल....


कोमल : हा मे कोमल बोल रही हु..


डॉ : कोई प्रॉब्लम हो तो call कर देना.


कोमल : ओके..


वही बहार दाई माँ ने लाल धागे तैयार कर लिए. और डॉ रुस्तम के टीम मेम्बरो को पकड़ने लगी. डॉ रुस्तम जानते थे की क्या करना है. उन्होंने स्कूल के चारो तरफ वो धागे बंधवा दिये. दरसल उन्होंने वो धागो के जरिये स्कूल के अंदर की जितनी भी एनटीटिस हो सबको स्कूल मे ही कैद कर लिया था. दाई माँ साथ मंतर भी बड़ बड़ा रही थी.


दाई माँ : अब काम शरू करो. कछु ना होएगो.
(अब काम शुरू करो. कुछ भी नहीं होगा)


डॉ रुस्तम ने काम शुरू करवा दिया. कोई प्रॉब्लम नहीं हो रही थी. बड़ी आसानी से मिट्टी खुद रही थी. लेकिन दाई माँ थी तामशिक विधया वाली. तामसिक विधया बहार धुप सूरज की रौशनी मे नहीं हो सकती.

वो अपने कंधे पर बंधे चादर के झोले को लेकर उसी स्कूल मे ही घुस गई. दाई माँ ने लाल धागे वाला खुद का प्रकोषण भी देखा. जो स्कूल के मेइन दरवाजे पर था. निचे की तरफ हर डोर हर विंडो पर ये लाल धागे बंधे हुए थे. दाई माँ स्कूल मे घुसकर दए बाए देखने लगी.

वो उसी क्लास को ढूढ़ रही थी. जिसमे छत गिरने से बच्चों की मौत हुई थी. कोमल भी तो उसी क्लास रूम मे अकेली बैठी डर रही थी. कोमल ने दरवाजे के उजाले मे हलका सा कलापन देखा.

जैसे कोई पड़च्चाई डोर की तरफ आ रही हो. डोर से बहार की तरफ से आ रहे उजाले से अगर कोई बिच मे आ जाए तो अचानक उतना अंधेरा छा जाता है. बस उतना ही अंधेरा हुआ था. और कोमल की डर से धड़कने तेज़ हो गई. लेकिन जब उस डोर पर दाई माँ को खड़ा देखा तो ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.


कोमल : (स्माइल एक्ससिटेड) माँ......


कोमल ने खड़े होकर फिर दाई माँ को बाहो मे लपक लिया.


दाई माँ : तोए का लगो लाली. तोए का मे अकेली छोड़ दाऊँगी.
(तुझे क्या लगा बेटी. मै तुझे अकेली छोड़ दूंगी.)


दाई माँ अंदर आकर दए बाए देखने लगी.


कोमल : माँ आप क्या कर रही हो.


दाई माँ ने अपना झोला रखा. अंदर हाथ डाल कर कुछ सरसो के दाने निकले. उसे मुट्ठी मे बंद कर के अपने मुँह के पास लाई. आंखे बंद किये कुछ मंतर पढ़ने लगी. कोमल ये सब हैरानी से देख रही थी.

फिर दाई माँ ने आंखे खोली और निचे झूक कर उन सरसो के दानो से एक गोला बनाया. दाई माँ ने कोमल को उस गोले की तरफ हिशारा किया.


दाई माँ : बैठ जा लाली ज्यामे. (बैठ जा बेटी इसमें )


कोमल तुरंत ही उस घेरे मे खड़ी हो गई. वो बैठना नहीं चाहती थी. कोमल दाई माँ की तरफ देखने लगी. दाई माँ ने कोई रिएक्शन नहीं दिया मतलब खड़े रहने से भी कोई आपत्ति नहीं है. दाई माँ निचे थोडा अँधेरे की तरफ अपना ताम झाम जचाने लगी. उनके सामान को देख कर कोमल हैरान थी. कई प्रकार की जड़ीबटिया.

कागज मे थोड़ी सी मिठाई, कुछ जानवर की हड्डिया, इन्शानि खोपड़ी, और एक हाथ की लम्बी हड्डी. दाई माँ ने एक छोटा सा मिरर भी निकला. उसे एक छोटे काले कपड़े से ढक दिया. और मंतर पढ़ने लगी.

जब दाई माँ मंतर पढ़ने लगी तो कोमल को एक साथ कई बच्चों के रोने की आवाजे आने लगी. हैरानी की बात ये थी की वो आवाजे खुद दाई माँ को भी नहीं आ रही थी. उसे सिर्फ कोमल ही सुन पा रही थी. दरसल कोमक ने दाई माँ को माँ शब्द कहे कर पुकारा.

बच्चों की एनटीटीस जब मरी. तब वो बच्चे थे. इसी लिए वो आत्माए बच्चों के फोम मे ही थी. और माँ वर्ड सुनकर वो भी माँ का नाम लेकर रो रहे थे. कोमल हैरानी से दाई माँ की तरफ देखती है.

दाई माँ को भले ही उन बच्चों की आवाज ना सुनाई दे रही हो. पर वो ये अच्छे से जानती थी की आस पास जो भी एनटीटीस होंगी. कोमल उनकी आवाज सुन पाएगी.


दाई माँ : घबडावे मत लाली. तोए कछु ना होवेगो.
(घबरा मत बेटी. तुझे कुछ नहीं होगा.)


दाई माँ ने बोलते हुए कोमल को वो मिरर दिया. जो काले कपडे से ढाका हुआ था. कोमल उस मिरर को हाथो मे लिए दाई माँ की तरफ देखती है. जैसे पूछ रही हो. इसका क्या करना है. मंतर पढ़ते हुए दाई माँ ने बस उस मिरर से कपड़ा हटाने का हिशारा किया.

दाई माँ लगातार मंतर पढ़ रही थी. उन बच्चों के रोने की आवज भी कोमल के कानो मे लगातार आ रही थी. कोमल ने पहले तो उस कपडे को हटाया. सामने उसे अपना ही चहेरा दिखा. मगर कोमल हैरान तब रहे गई जब उसे वही लड़का कोमल के पीछे एक कोने मे खड़ा दिखा.


कोमल ने तुरंत पीछे मुड़कर देखा. उसे नरी आंख से तो कोई नहीं दिख रहा था. लेकिन वापस जब कोमल ने उस मिरर को ऊपर किया तो वो लड़का वही कोने मे खड़ा दिखा.

जो कोमल को ही देख रहा था. ये वही लड़का था. जो कोमल को आवाज मार कर आश्रम से ले गया था. तब बलवीर ने बचा लिया. उसके बाद कोमल के सपने मे आया था. कोमल तालाब मे डूब रही थी. और वो हस रहा था. कोमल बार बार उसे कभी मिरर मे देखती फिर पीछे मुड़कर उस कोने की तरफ देखती.

वो सिर्फ उस मिरर से ही नजर आ रहा था. ये बात कोमल को भी समझ आ गई. पर कोमल ने उसे सुनाई दे रही उन रोते हुए बच्चों की आवाज की तरफ ध्यान दिया. वो आवाज उसके खुद के पास सामने से आ रही थी. कोमल ने थोडा आइना टेढ़ा कर के देखा तो बहोत ही ज्यादा हैरान कर देने वाला नजारा था. कई सारे बच्चे निचे बैठे हुए रो रहे थे.

वो सभी बच्चे स्कूल के यूनिफार्म मे ही थे. किसी के सर पर चोट तो किसी के हाथ पाऊ पर चोट. कइ तो खून से बहोत ज्यादा लट पत थे. छत का मलवा गिरने से वो गंदे भी हो रखे थे. पर चहेरे की स्किन एकदम रूखी सफ़ेद सी लग रही थी.

ये नजारा देख के कोमल हैरान रहे गई. वो सारे बच्चे दाई माँ के सामने बैठे दाई माँ की तरफ देखते हुए रो रहे थे. वो अपने हाथो को दाई माँ की तरफ ही बहाए हुए थे. जैसे चाह रहे हो की कोई उन्हें गोद मे ले ले.

लेकिन सिर्फ एक ही बच्चा कोने मे खड़ा था. दाई माँ से दूर कोमल के पीछे की तरफ. एक कोने मे. ना तो वो रो रहा था. और ना ही हस रहा था. दाई माँ ने अपने झोले मे हाथ डाला. और मुट्ठी भर कर साकड़ निकली. और बच्चों की तरफ फेक दिया. कोमल ने सफ़ेद मिट्ठी साकड़ फर्श पर फैली हुई देखि. कोमल सोच मे पड़ गई.

दाई माँ ने वो साकड़ ऐसे क्यों फेकि. ये देखने के लिए कोमल ने आईने को वापस टेढ़ा कर के देखा. बच्चों के रोने की आवाज भी बंद हो चुकी थी. आईने मे साफ दिख रहा था की वो बच्चे उन साकड़ो को बिन बिन कर खा रहे है. साथ मे हस भी रहे है. लेकिन कोने मे खड़ा वो बच्चा नहीं आया. कोमल से रहा नहीं गया. और कोमल ने दाई माँ को हिशारा किया.


कोमल : माँ....


दाई माँ ने कोमल की तरफ देखा. कोमल ने दाई माँ को उस कोने की तरफ हिशारा किया. लेकिन वो लड़का वहां उस क्लास रूम से निकल कर तुरंत ही भाग गया. कोमल ने अब उस बच्चे के पहनावे पर ध्यान दिया. वो छोटी सी निक्कर पहने हुए था. और एक शर्ट. इन नहीं की थी. कपडे पुराने ही थे. और स्कूल यूनिफार्म भी नहीं था.

वो लड़के ने ना तो चप्पल पहनी हुई थी. और ना ही उसकी स्किन बाकि बच्चों की तरह सफ़ेद थी. दाई माँ ने कोमल को हाथ दिखाकर बस शांत रहने का हिशारा किया. झोले से दाई माँ ने एक मिट्टी का कुल्लाड़ निकला. और उसमे कुछ साकड़ डाल दी. कोमल ने उस आईने के बिना उस फर्श पर देखा तो एक भी साकड़ फर्श पर नहीं थी.

कोमल ने तुरंत ही आईने को टेढ़ा कर के वापस उन बच्चों को देखने की कोसिस की. वो बच्चे तो दाई माँ की तरफ बढ़ रहे थे. लेकिन ना जाने कहा से वहां धुँआ हो रहा था. धीरे धीरे वो धुँआ ज्यादा होने लगा. कोमल ने आइना हटाकर देखा तो उस रूम मे कोई धुँआ नहीं था.

पर वापस जब आईने के जरिये देखा तो धुँआ इतना डार्क हो चूका था की कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. धीरे धीरे वो धुँआ काम होने लगा. कोमल को आईने मे क्लास की हलकी झलक दिखी. और कुछ ही देर मे क्लास पूरा प्रोपर दिखने लगा. वहां अब कोई भी बच्चा नहीं था. कोमल ने हैरानी से आइना हटाकर दाई माँ की तरफ देखा.

दाई माँ उस मिट्टी के कुल्लड़ को एक काले कपडे मे लपेट कर. उसे एक लाल धागे से बांध रही थी. जिसे लोग नाड़ाछडी भी बोलते है. अमूमन पूजा पाठ मे काम आता है. दाई माँ ने उस कुल्लड़ को जैसे बच्चा पतंग की डोर का पिंडुल बनता है. वैसे लपेट रही थी.


दाई माँ : इनको तो हेगो. (इनका तो हो गया.)



वहां बहार डॉ रुस्तम को मंजिल मिल गई थी. वो मंदिर जमीन मे आधे से ज्यादा गाढ़ा हुआ था. और थोडा बहार था. मंदिर पूरा मिल चूका था. बस एक तकलीफ थी की उस मंदिर मे मूर्ति नहीं थी.
 
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Shetan

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Update 26C


डॉ रुस्तम ने तुरंत कोमल को रेडिओ सेट पर call किया.


डॉ : हेलो हेलो कोमल???


कोमल : हा डॉ साहब. मे सुन रही हु.


डॉ : मंदिर मिल चूका है.


कोमल के फेस पर तुरंत स्माइल आ गई.


डॉ : लेकिन उसमे मूर्ति नहीं है.


दाई माँ : वा के काजे तो पंडितजी बुलानो पड़ेगो.
(उसके लिए तो पंडितजी को बुलाना पड़ेगा)


कोमल ने दाई माँ का मेसेज डॉ रुस्तम को बताने के लिए रेडिओ सेट का बॉटन प्रेस जरूर किया. पर वो रुक गई. जैसे उसे कुछ याद आया. वो दोबारा डॉ रुस्तम को call करती है.


कोमल : दिन दयाल कहा है???


वहां दिन दयाल को भी मुखिया ने पास मे बैठाया हुआ था. वो डरा हुआ हाथ जोड़े चुप चाप वहां बैठा था. मगर कोमल के call के बाद डॉ रुस्तम घूम के देखते है. दिन दयाल वहां नहीं था. डॉ रुस्तम भी सॉक हो गए. उन्होंने तुरंत रेडिओ सेट पर कोमल को बताया.


डॉ : वो यहाँ नहीं है. लगता है कही भाग गया.


कोमल : वो मूर्ति दिन दयाल के खटिये के निचे गाढ़ी हुई है.


कोमल का वाकिली दिमाग़ सीबीआई वालों से भी तेज़ चलने लगा था. बुढ़िया के गंदे बिस्तर और फीके कलर से ही पता चल रहा था की बुढ़िया की खटिया वहां से नहीं हटी. दिन दयाल धुप छाव सर्दी गर्मी हर वक्त क्यों बहार उसी जगह बुढ़िया को मरने छोड़ रखा था.

ताकि उस जगह को खाली ना रखा जाए. कोमल को तुरंत समझ आ गया. डॉ रुस्तम मुखिया की मदद से दिन दयाल के घर भीड़ लेकर पहोच गए. और वहां पहोचने पर कुछ अलग ही नजारा था.

दिन दयाल की माँ एक तरफ पड़ी हुई थी. वो हिल ही नहीं रही थी. हकीकत मे वो मर चुकी थी. खटिया एक तरफ उलटी पड़ी थी. बिछोना बिस्तर भी निचे बिखरा पड़ा था. दिन दयाल वहां गाढ़ा खोद रहा था. जो सब को देख कर रुक गया. और सब के सामने हाथ जोड़ कर रोने लगा. डॉ रुस्तम को पूरा सीन समझ आ गया.

जब मूर्ति तक बात पहोची तो दिन दयाल वहां से खिसक गया. क्यों की मूर्ति पंडितजी की आत्मा को बुलकर पूछ लिया जता. उस से पहले दिन दयाल मूर्ति वहां से गायब करना चाहता था. वहां स्कूल से दिन दयाल खिसक लिया. वो तेज़ी से भागते हुए अपने घर तक पहोंचा. उसने जिसपर उसकी माँ लेटी हुई थी. उस खटिये को उलट दिया. बुढ़िया बहोत ज्यादा ही बूढी बीमार थी.

वो उसी वक्त मर गई. दिन दयाल उस जगह से मूर्ति खोद कर निकालने लगा. लेकिन पकडे गया. गांव वाले हो रही मौतो से बहोत परेशान थे. और दिन दयाल पकडे जा चूका था. गांव वाले उसपर टूट पड़े. पर डॉ रुस्तम और मुखिया ने मिलकर उसे बचा लिया.

उस मूर्ति को जमीन से सलामत निकला गया. वो मूर्ति माता की थी. गांव वाले मूर्ति और दिन दयाल दोनों को लेकर स्कूल तक पहोचे. वहां स्कूल मे अब भी एक एनटीटी अब भी पकड़ मे नहीं आई थी. दाई माँ कोमल के साथ हुए हादसे को सुन चुकी थी. दाई माँ समझ चुकी थी की उस बच्चे की आत्मा बुरी तरह से कोमल के पीछे है.

भले ही वो कोमल के शरीर मे ना घुस पाई हो. पर पीछे पड़े होने के कारण वो कोई ना कोई हादसा करने की कोसिस करेंगी. और आत्माओ से बच्चे की आत्मा ज्यादा जिद्दी होती है. जल्दी पीछा नहीं छोड़ती. लेकिन ऐसी आत्माओ को पकड़ना और भी ज्यादा आसान है.

वो जो मौत देती है. एक बली होती है. अगर उन्हें बली दे डी जाए तो उस मुद्दे तक शांत हो जाती है. दाई माँ ने कोमल की तरफ हाथ बढ़ाया. कोमल समझ नहीं पाई. दाई माँ बस मंतर पढ़ते हुए कोमल की तरफ अपना हाथ बढ़ाए हुए थी. कोमल ने भी दाई माँ की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया.


कोमल : अह्ह्ह्ह ससससस...


दाई माँ ने झट से कोमल का हाथ पकड़ लिया. और दूसरे हाथ से एक चाकू निकल कर कोमल के हाथ पर कट मारा. कोमल के हाथ से खून तपकने लगा. दाई माँ ने कोमल का हाथ अपने एक हाथ से पकडे रखा और दूसरे हाथ से निचे एक मिट्टी का कुल्लड़ सेट किया.

कोमल का खून उस कुल्लड़ से टप टप तपकने लगा. दाई माँ तो लगातार मंत्रो का उच्चारण मन मे किये ही जा रही थी. किसी भी जीव को मरे बिना. इस तरह धोखे से खून निकला जाए. वो मृत्यु बली के सामान है. ये विधि तामसिक विधया मे शामिल है. इस से वो जीव की जान लिए बिना बली दी जाती है. दाई माँ ने मिरर की तरफ हिशारा किया.

कोमल ने झट से मिरर उठाकर देखने की कोसिस की. वो लड़का वही था. ये देख कर कोमल घबरा गई. कोमल ने फिर धुँआ देखा. पर जब धुँआ छटा वो लड़का वहां नहीं था. दाई माँ उस कुल्लाड़ को भी वैसे ही बांध देती है.


दाई माँ : अब तू आज़ाद हे लाली(बेटी).


दाई माँ ने कोमल के हाथ को खुद अपने हाथो मे लिया. और उसके हाथ मे एक लाल धागा बांध दिया.


दाई माँ : अब तू कुछ बोले बिना ज्या ते निकर जा.
(अब तू कुछ बोले बिना यहाँ से निकल जा)


कोमल बोलना चाहती थी. पर दाई माँ ने उसके मुँह पर अपना हाथ रख दिया.


दाई माँ : मेरो काम बाकि है लाली. तू जा तहा ते.
(मेरा काम बाकि है. तू जा यहाँ से.)


कोमल कुछ बोले बिना उस स्कूल से निकल गइ. पर बहार निकलते ही उसने गांव वालों की भीड़ आते देखि.


 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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Update 26A


कोमल जब बहार स्कूल के बड़े दवाजे पर खड़ी पहले तो उस स्कूल को देखती है. वीरान पड़ी वो स्कूल रात के अँधेरे मे ज्यादा ही डरावनी लग रही थी. कोमल के हाथो में डॉ रुस्तम का दिया रेडिओ सेट था. डर से कोमल अनजाने में उसे ही जोरो से प्रेस कर रही थी. तभि सेट पर डॉ रुस्तम की आवाज आई.


डॉ : कोमल ऐसे सेट को प्रेस मत करो.


कोमल को एहसास हुआ की वो क्या कर रही है. रेडिओ सेट(RS) पर एक बार फिर डॉ रुस्तम की आवाज आई.


डॉ : आगे बढ़ो कोमल. ये तुम कर सकती हो.


डॉ रुस्तम की आवाज कोमल को थोड़ी हिम्मत भी दिला रहे थे. जब से कोमल को पता चला की 2 बच्चों की आत्मा उसके पीछे पड़ी है. और उसे अपने साथ लेजाना चाहती है. कोमल को डर भी लगने लगा था. कोमल फिर भी आगे बढ़ती है. कोमल डर के पीछे हट जाने वालों मे से नहीं थी. वो स्कूल की बिल्डिंग के डोर तक गई.

पहले कभी वहां लोहे की जाली और लोहे का दरवाजा रहा होगा. टूटी हुई दीवार से साफ पता चल रहा था. कोमल धीरे धीरे अंदर चली गई. और उस तरफ मूड गई जिस क्लास की छत गिरी और बच्चे मरे थे. कोमल उस क्लास रूम के बहार डोर पर ही खड़ी हो गई.

वहां पहोचने पर बड़ी नेगेटिव वाइब्स आ रही थी. उस क्लास का डोर भी टुटा हुआ था. सिर्फ थोड़ासा फट्टा ही था. कोमल के मन में अंदर जाने से पहले कई खयाल आए. क्या वो आज जिन्दा वापिस आएगी.

या वो खुद तो कही पजेश नहीं हो जाएगी. लेकिन ये कोमल का खुद का अपना फेशला था. कोमल ने एक लम्बी शास ली. और अंदर घुस गई.


कोमल : (स्माइल) कैसे हो बच्चों. देखो में फिरसे तुमसे मिलने आई.


बोलते हुए कोमल उसी चेयर पर बैठ गई. जहा लास्ट टाइम बच्चों से बात करती वक्त बैठी थी. उसके कान मे माइक्रोफोन था. जिस में से उसे कुछ आवाज सुनाई दीं. आवाज एक साथ कई बच्चों की आपस में बात करने की थी. ऐसी आवाज सायद स्कूल के रिसेस लंच ब्रेक वगेरा में सुनी होंगी.


तू क्या कर रहा है. हे वो आंटी आ गई. वो गुब्बारे नहीं लाई. आंटी गन्दी है. हे तू ऐसा मत बोल. वो हमें परेशान करेंगी. अह्ह्ह उह्ह्ह. आंटी उन लोगो के साथ है.


कोमल को पॉजिटिव के साथ नेगेटिव भी बाते सुनाई दीं. उसके दिल की धड़कने ज्यादा तेज़ हो गई. लेकिन कोमल हिम्मत करती है.


कोमल : बच्चों तुम हार वक्त यही रहते हो. क्या तुम्हारा मन नहीं करता कही बहार जाने का.


कोमल को फिर रिप्लाई सुनाई दिया.


हमें यही अच्छा लगता है. हमें कही नहीं जाना. हे ये हमें यहाँ से भागना चाहती है. ये गन्दी है. नहीं ऐसे मत बोलो. आंटी भी हमारे साथ रहेगी.


कोमल की फटने भी लगी. पर उसके पास अब पीछे जाने का रस्ता नहीं था. बच्चे तो उसे मारवकर अपने साथ रखना चाहते थे.


कोमल : बच्चों पंडितजी कहा है????


रिप्लाई : वो आते है. हमें नहीं जाना. वो हमें नहीं पकड़ सकते. वो हमें पसंद नहीं करते. वो गंदे है.


दरसल कोई भी आत्मा एक दूसरे का कुछ नहीं बिगड़ सकती. लेकिन मरे हुए उन लोगो मे एक जिंदगी ही बन चुकी थी. जैसा रियल जिंदगी में होता है. पंडितजी की आत्मा आती तो वो बच्चों की आत्माए उस स्कूल में इधर उधर भागने लगती. कोमल को ये कम समझ आया.

लेकिन बहार से सुन रहे डॉ रुस्तम को ये सब समझ आ गया था. कोमल को समझ नहीं आ रहा था की अब क्या सवाल करें. हड़बड़ट में उसने सीधा मंदिर के बारे मे ही पूछ लिया.


कोमल : बच्चों वो मंदिर कहा है. जो पंडित जी बनवा रहे थे???


रिप्लाई बड़ा अजीब था. जिसकी कोमल को उम्मीद ही नहीं थी. रिप्लाई में किसी बच्चे की खी खी खी कर के हसने की आवाज आई.


रिप्लाई : (हस्ते हुए) एएए.... मत बताना. (दूसरा बच्चा) वो तो पीछे ही है. (तीसरा बच्चा) वो तुम्हे नहीं मिलने वाला.


कोमल जवाब सुनकर हैरान रहे गई. उस मंदिर को स्कूल के आगे होना चाहिये था. पर वो स्कूल के पीछे था. लेकिन कोमल भी पहले दिन पूरा स्कूल देख चुकी थी. पीछे कोई मंदिर था ही नहीं. कोमल एक वकील थी. वो समझ गई की वास्तु गलत कैसे होगा.

पंडितजी का स्थान स्कूल के पीछे होना चाहिये था. मगर वो स्कूल के आगे था. और मंदिर को आगे होना चाहिये था. जब की वो स्कूल के पीछे था. कोमल ने पंडितजी के भी मुँह से सुना था. और डॉ रुस्तम ने भी यही जानकारी दीं थी की वास्तु गलत है. हलाकि कोमल को तो वास्तु का कोई ज्ञान नहीं था. लेकिन रिप्लाई रुका नहीं था.


हे हे क्यों बताया.... वो वो खोद के निकल लेंगे......आंटी गन्दी है....नहीं वो नहीं बताएगी. आंटी आप ऊपर से कूद जाओ. आप हमारे पास आ जाओ.


अचानक वहां इतनी बुरी बदबू आने लगी की कोमल को वोमिट जैसा होने लगा. सर दर्द करने लगा. कोमल खुद खड़ी हो गई. उसका जी घबराने लगा. रेडिओ सेट पर डॉ रुस्तम call करने लगे.


डॉ : वापिस आ जाओ कोमल. प्लीज वापिस आ जाओ... कोमल.. क्या तुम मुजे सुन रही हो???


डॉ रुस्तम कोमल के खड़े होने से डर गए थे. कही वो ऊपर ना जाए. वैसे तो उनकी बैकअप टीम तैयार थी. कोमल उस रूम से बड़ी मुश्किल से निकली. डॉ रुस्तम डर रहे थे. लेकिन कोमल जब स्कूल से बहार निकली तो उनके फेस पर भी स्माइल आ गई. कोमल को अंदर घुटन हो रही थी. उसने बहार आते ही वोमिट कर दीं.

और निचे ही घुटनो के बल बैठ गई. उसके कपडे भी ख़राब हो गए. ये देख कर डॉ रुस्तम तुरंत कोमल की तरफ भागे. पर तब तक तो बलबीर पहोच गया था. वोमिट के बाद कोमल को अच्छा लग रहा था.


डॉ : जल्दी कोई पानी लाओ.


डॉ रुस्तम का एक टीम मेंबर जल्दी पानी की बोतल कोमल को देता है. कोमल ने पानी पिया. और अपने आप को साफ किया. वो हफ्ते हुए बलबीर को देखती है. फेस जैसे बहोत थकान नींद आ रही हो. कोमल ने हलकी सी स्माइल की.


कोमल : (स्माइल थकान) मै ठीक हु.


डॉ : मेने उन बच्चों की सारी बाते सुनी.


कोमल ने बलबीर को अपना हाथ दिया. उसने कोमल को खड़ा किया.


कोमल : आगे चलके बात करते है.


वो तीनो आगे आ गए. कोमल ने रेडिओ सेट और माइक्रोफोन बलबीर को दे दिया.


कोमल : मंदिर स्कूल के पीछे है. सारा वास्तु का लोचा है.


बलबीर पर पीछे तो कुछ नहीं है. बस थोड़ी सी जमीन उठी हुई है. वो तो पंडितजी का स्थान है.


कोमल : नहीं.. उसे खोदो. मंदिर निचे गाढ़ा हुआ है. और स्कूल के आगे की तरफ पंडित जी का स्थान है.


बलबीर : तुम क्या उल्टा बोल रही हो....


दोनों की बहस को डॉ रुस्तम सूलझाते है.


डॉ : एक मिनट एक मिनट. मंदिर और पंडितजी का स्थान अपनी जगह पर ही है. स्कूल उलटी बनी हुई है.


बलबीर : चलो मान लिया. पर मंदिर जमीन के अंदर कैसे जा सकता है????


डॉ : होता तो नहीं है. किसी ने करवाया है.


बलबीर : किसने???


डॉ रुस्तम ने कोमल की तरफ देखा.


कोमल : खुद बच्चों ने. लेकिन जरिया मुजे लगता है दिन दयाल भी है.


अब कोमल और डॉ साहब. जैसे चोर पकड़ लिया हो. कॉन्फिडेंस से एक दूसरे के सामने देखने लगे. कोमल अपनी वाकिली दिमाग़ और डॉ रुस्तम अपने तंत्र मन्त्र जीवन के तजुर्बे को बयान कर रहे हो. बलबीर बस बारी बारी दोनों के फेस को देखता रहा.


कोमल : (स्माइल) कितनी अजीब बात थी ना. दिन दयाल के घर अपने बाप का फोटो था. जिसपर हार चढ़ा रखा था. मगर मरे हुए बेटों के ना हार थे ना फोटो.


डॉ : मंदिर और किसी की समाधी कभी एक साथ नहीं होती. पंडित जी चाहते थे की मंदिर के सामने स्कूल हो.

ताकि मंदिर और सूरज की पॉजिटिव एनर्जी स्कूल पर पड़े. आगे मंदिर पीछे सूरज. पर एक एनर्जी को रोक दिया गया. वो था मंदिर. लेकिन उस जगह अब सिर्फ सूर्य की एनर्जी मिल रही है. जिसका टाइम फिक्स है. नतीजा स्कूल के पीछे की तरफ हमेशा कोई पॉजिटिव एनर्जी का प्रभाव नहीं होगा. नेगेटिविटी बढ़ानी है.


कोमल : आप ने उस बुढ़िया पर ध्यान दिया. जो घर के बहार आँगन मै खटिये पर पड़ी थी.


डॉ : ऐसा लग रहा था की उसे घर मे लाया ही नहीं जा रहा. लेकिन हमारे आते ही वो गालिया बोलने लगी. कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो हमें क्यों गालिया बक रही थी.


कोमल : वो गालिया हमें नहीं दिन दयाल को ही दे रही थी. कोर्ट मे ऐसे बूढ़ो का बयान मेने कई बार दर्ज करवाया है.


डॉ : मतलब की बुढ़िया हमें बताना चाह रही थी सायद.


कोमल : (स्माइल) बिलकुल... सही कहा.


डॉ : मतलब उसके घर जो भी आता वो अपने बेटे को गालिया देने लगती. वो सब के सामने अपने बेटे को शो करना चाहती थी. लेकिन बेचारी ज्यादा बूढी थी. इस लिए उसकी भाषा कोई समझ नहीं पता था.


कोमल : वो कहना चाहती थी की ये मादरचोद भी मिला हुआ है. उसका मेला बिस्तर, ऐसा लगा जैसे धुप चाव बेचारी वही पड़ी रहती है.


डॉ : उसका सिर्फ एक बेटा बचा हुआ है. बेटी इतनी कमजोर है की कब मर जाय पता नहीं. वो एक एनटीटी को अपने शरीर मे झेल रही है.


कोमल : कही ऐसा तो नहीं की अपने बेटे को बचाने वो अपने पुरे परिवार को कुर्बान कर रहा है. लगता है दिन दयाल को पंडितजी के नाम की दुकान भी बंद नहीं होने देनी.


डॉ : तभि पंडितजी ने मेरा नाम अड्रेस फोन नो दिन दयाल को नहीं बल्की मुखिया को दिया. सब के सामने दिया होगा. दिन दयाल तब कुछ नहीं कर पाएगा.


बलबीर : पर उस से मंदिर कैसे जुडा हुआ है.


डॉ : मदिर का काम चालू था. पंडितजी मंदिर बनवाना चाहते थे. मतलब की प्रण प्रतिष्ठा हुई नहीं. तो जब भी पंडितजी उसकी बेटी मे आते वो सबको बोलते होंगे मंदिर का काम पूरा करवाओ.


कोमल : लेकिन मंदिर बन गया तो पंडितजी की विश पूरी हो जाएगी. और वो सायद चले जाए. तो उनकी दुकान कौन चलाएगा. साले ने खुद ही मंदिर को छुपाया है..


डॉ : उसी के चलते तो बच्चों की एनटीटी को पावर मिल रहा है. स्कूल के पीछे की तरफ नेगेटिव एनर्जी अपने आप बन गई. सामने की तरफ मंदिर जो जमीन मे गाढ़ा हुआ है. अब एक बात और है. कोई भी सात्विक चीजों को जमीन मे गाढ देने से नेगेटिव एनर्जी को पावर मिलता है. यह सिद्ध शैतानी प्रोसेस है.


कोमल ने अपनी पजामी के पॉकेट से एक काला कपडे का गुड्डा निकला. जिसपर लाला धागा बंधा हुआ था..


कोमल : तो कही ऐसा तो नहीं की दिन दयाल ये सब करवा रहा हो.


डॉ : नहीं... ऐसा होता तो उसके घर मे कुछ तो तंत्र मन्त्र जैसा कुछ फील होता या सामान मिलता. उसकी बेवकूफी की वजह से सिर्फ नेगेटिव एनर्जी को पावर मिला है.


बलबीर : उसके बाप ने पैदा करी. और बेटे ने पाल पोश कर बड़ा किया.


कोमल : (स्माइल) वाह बलबीर तुम जल्दी समझ गए.


बलबीर : पर अब क्या करें???


डॉ : पहले उस मंदिर को खोद के निकलना होगा.


कोमल : पर अभी इस वक्त???


डॉ : हा अभी. हमें देर नहीं करनी चाहिये.


जो मंदिर स्कूल के आगे होना चाहिये था. वो स्कूल के पीछे था. जिस उठी हुई जमीन को सब पंडितजी का स्थान समझ रहे थे. वो ही वास्तव मे मंदिर था. डॉ रुस्तम ने अपनी टीम की मदद से वहां लाइट लगवाई. उस वक्त मजदूर मिल नहीं सकते थे. इस लिए टीम मेंबर को ही काम करना पड़ रहा था. टीम के पास औजार तो थे.

लेकिन मेंबर मे ऐसा कोई नहीं था जो मजदूरी करता हो. कुछ लड़के थे. जो नवीन वगेरा जो कैमरामैन और कुछ टेक्निकल वाले थे. जिन्होंने मजदूरी तो कभी नहीं की थी.. बाकि मोटे पेट वाले शहेरी थे. वही जवान लड़के खुदाई के लिए आगे आए.

और काम शुरू कर दिया. जमीन बहोत ठोस थी. और किसी को भी ठीक से खुदाई करते नहीं आ रहा था. बलबीर ये ठीक से समझ रहा था. क्यों की वो गांव का था. और किसानी करते ऐसे काम करने ही पड़ते है. बलबीर ने अपना शर्ट उतरा और कोमल को पकड़ाया.

वो जैसे ही खुदाई करने के लिए आगे आया कोमल के फेस पर स्माइल आ गई. बलबीर आया तो उसे सब देखने लगे. सायद खुदाई करने की सही तकनीक वो नहीं जानते थे. जब बलबीर ने फावड़ा चलाया तो सब को समझ आया. कुल 4 लोग खुदाई कर रहे थे.

बलबीर को खुदाई करते देख डॉ रुस्तम को महसूस हुआ की वो काम जल्दी कर लेगा. सभी बलबीर को कॉपी करने लगे. और उनसे भी खुदाई होने लगी. पर अचानक एक का औजार टूट गया. बलबीर ने उसकी तरफ देखा और मुश्कुराया..


बलबीर : (स्माइल)कोई बात नहीं. पहेली बार ऐसा होता है.


बलबीर वापस काम मे लगा. लेकिन उसका भी फावड़ा टूट गया. बलबीर हैरान रहे गया. कोमल भी उसे ही देख रही थी. पर तभि तीसरा और फिर तुरंत ही चौथा फावड़ा भी टूट गया. सभी हैरान थे. अभी तो जस्ट काम शुरू ही किया था.


डॉ : कोई बात नहीं. काम छोड़ दो पैकअप.


सभी ने काम छोड़ दिया. सब कुछ क्लोज होने लगा. कोमल बलबीर दोनों डॉ रुस्तम के पास आए.


बलबीर : डॉ साहब कुछ गड़बड़ है.


डॉ : अरे हमारे औजार पुराने थे. जो हम उसे भी नहीं करते कभी. ये तो किसी टेंट लगाने वगेरा के काम के लिए थे. लकड़ी गल गई होंगी. तभि तो हेंडल टूटे है. कल मुखिया से बोल कर खुदाई करवा देंगे. अभी तुम बस मे रेस्ट करो. आश्रम चलते है.


बलबीर का सक ख़तम नहीं हो रहा था. वो सभी आश्रम मे आ गए. रात के 3 बज चुके थे. सभी को थकान लग रही थी. और सभी को नींद आ रही थी. कोमल और बलबीर भी आश्रम के एक रूम मे ही थे. बलबीर तो सो चूका था. पर कोमल को नींद नहीं आ रही थी.

वो उस बच्चे के बारे मे ही सोच रही थी. जो उसे दिखाई दिया था. उसे बुलकर कही लेजा रहा था. अगर वो चली गई होती तो सायद जिन्दा ना होती. कोमल बलबीर के कंधे पर सर रखे ऐसे ही सोच मे डूबी हुई थी.

तभि उसे दाई माँ की याद आ गई. डॉ रुस्तम ने ही कहा था की दाई माँ कल आएगी. मतलब की सुबह. कोमल के फेस पर स्माइल आ गई. वो बलबीर को थोडा और जकड कर अपनी आंखे बंद कर लेती है.

तभि कोमल को सपना आता है. वही लड़का खड़ा है. और जोरो से हस रहा है. चारो तरफ सन्नाटा है. जिस से उस लड़के की हसीं गूंज रही है. हलका अंधेरा है. वो किसी तालाब के पास खड़ा है. और तालाब की तरफ ही देख रहा है. आस पास बाबुल के पेड़ है.

पर वो बच्चा तालाब की तरफ देख के हस रहा था. कोमल ने सपने मे देखा की कोमल तालाब के बीचो बिच है. और वो डूब रही है. वो बार बार ऊपर आने की कोसिस करती पर कोई फायदा नहीं होता. वो बच्चा कोमल को डूबते हुए देख हस रहा था.

तभि कोमल को घुटन होने लगी और वो एकदम से उठ गई. कोमल ने घड़ी देखि तो 4 बज रहे थे. कोमल पसीना पसीना हो गई. वो एक कपड़े से अपना पसीना पोछकर दोबारा लेट गई. उसे गर्मी लगने लगी. कोमल को डॉ रुस्तम की बात याद आई. कोई भी एनटीटी सुबह 4 बजे एक्टिव नहीं होती. कोमल को थोडा बेटर फील हुआ.

वो दोबारा आंखे बंद कर लेती है. उसे नींद आ गई. फिर कोमल को बहोत ही प्यारा सपना आया. वो घर पर सो रही है. कोमल सपने मे अपने आप को उसके बेडरूम मे सोते हुए साफ देख सकती थी. तभि उसके पास दाई माँ आई. वो उसके पास बैठ गई. और कोमल को गलो पर थपकी मार कर जगाने लगी.


दाई माँ : उठ जा लाली उठ जा. कितनो सोबेगी.
(उठ जा बेटा उठ जा. कितना सोएगी)


कोमल : (नींद मे) अममम माँ सोने दो ना.


बलबीर : अरे उठो यार. वो डॉ साहब बुला रहे है.


कोमल की एकदम से आंख खुली. पता चला की वो सपना देख रही थी. कोमल झट से उठकर बैठ गई.


बलबीर : ये लो चाय. जल्दी तैयार हो जाओ. हमें स्कूल वापस जाना है.


कोमल ने अपने मोबाइल मे टाइम देखा. सुबह के 7 बज रहे थे. वो फटाफट तैयार होने लगी. कोमल बस आधे घंटे मे ही तैयार हो चुकी थी. वो फटाफट बहार निकली. बस तैयार ही थी. सभी मिनी बस मे बैठे कोमल का ही इंतजार कर रहे थे. कोमल की नींद पूरी नहीं हुई ये बलबीर भी समझता था और डॉ रुस्तम भी. मगर कोमल का वहां होना अब जरुरी हो गया था. बस चल पड़ी. कोमल डॉ रुस्तम के पास ही आकर बैठ गई.


डॉ : मुखिया से बात हो गई है. उसने वहां खुदाई शुरू करवा दीं. और दिन दयाल भी वही है. बहोत डरा हुआ है.


कोमल : साला उसे इस केस मे अंदर भी नहीं करवा सकती.


डॉ : दाई माँ की ट्रैन भी स्टेशन पहोच गई. अब देखो वो यहाँ कब तक पहोचती है.


दाई माँ का नाम सुनकर वो बहोत ख़ुश हुई. कोमल ने सोच रखा था की वो इस बार दाई माँ को अपने साथ अपने घर लेकर ही जाएगी. बाते करते हुए वो आगे बढ़ रहे थे की कोमल को घने पेड़ो के बिच पानी की झलक दिखी.


कोमल : (सॉक) रोको रोको रोको...


बस तुरंत ही रुक गई.


डॉ : क्या हुआ???


पर कोमल कुछ बोली नहीं. और सीधा ही बस से उतार गई. डॉ रुस्तम बलबीर सारे ही हैरान थे.

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Bohot badhiya update devi ji👍 komal ko baccho se jo jankari mili wo sahi hai, mandir school ke peeche nahi aage hi hona chahiye👍 khudai karte waqt sabhi auzaar toot jana kya sabit karta hai? Ye asp bhi achi tarah janti ho👍 khudai din me hi karni chahiye thi, kyu ki koi bhi ntt nahi chahegi ki uske samne koi achi taqt aaye, or wo bhi agar mahabali......... hue to bas ho gaya kam😀 waise laali kidaai ma aate hi to kaam ban hi jana hai, update ke ant me jab komal bas rukwati hai to uska reasons wahi hoga? Talaab :D Jo usko sapne me sikha tha👍 anyways awesome update again 👌🏻 and mind blowing writing ✍️ and superb kissa👍
🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥
Aag laga di yaar😀
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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259
Update 26B

बलवीर, डॉ रुस्तम, और नवीन भी उनके पीछे पीछे बस से उतर गए. कोमल पेड़ो के बिच से घुसने का रस्ता ढूढ़ने लगी. उसे पानी तो दिख रहा था. जैसे कोई नदी या तालाब हो.

मगर पेड़ो के कारण पूरा दिखाई नहीं दे रहा था. बलबीर समझ गया. उसे एक पगदंडी दिखाई दे गई.


बलबीर : कोमल यहाँ से.


कोमल ने बलबीर की तरफ देखा. और झट से उस तरफ आगे बढ़ गई. वो तीनो भी उसके पीछे थे. कोमल बस जरा सा आगे आकर रुक गई. और सॉक हो गई. वो वही तालाब था. जिसे उसने रात सपने मे देखा था. कोमल डूब रही थी. और वो बच्चा हस रहा था.


डॉ : क्या हुआ कोमल???


कोमल के फेस पर थोडा डर और सॉक से मुँह खुला हुआ. वो बोलते हुए थोडा हकला भी गई.


कोमल : वो वो....


कोमल तालाब की तरफ अपने आप से हिशारा कर रही थी.


बलबीर : अरे क्या हुआ बताओ तो.


कोमल : (घबराहट) मेने... मेने कल इस तालाब को सपने मे देखा.


डॉ रुस्तम को थोड़ी हैरानी हुई. क्यों की ना तो उसने कभी उस तालाब को देखा था. और ना ही कोमल ने. पर बलबीर थोडा हैरानी मे रहे गया. बीती शाम कोमल उस तालाब से थोडा ही दूर पहोची थी. और बलबीर ही कोमल के पीछे पीछे आते उसे आवाज दीं. वो नहीं आता तो सायद कोमल तालाब तक आ ही जाती.


बलबीर : और क्या देखा सपने मे.


कोमल जैसे होश मे आई. वो आस पास के नज़ारे को देखने लगी. वो तालाब एकदम शांत था. चारो तरफ पेड़ो से घिरा हुआ था. बस कही कही पशुओ को पानी पिलाने के लिए लाने की जगह बनी हुई थी.


कोमल : मेने सपने मे अपने आप को डूबते देखा. इसी तालाब मे.


ये सुनकर बलबीर और डॉ रुस्तम हैरान रहे गए.


डॉ : (सॉक) क्या सच मे?? तुमने यही देखा???


कोमल : हा मे वहां डूब रही थी. और वहां एक लड़का वहां खड़ा मुजे देख कर हस रहा था.


कोमल की बात से डॉ रुस्तम और बलबीर दोनों ही हिल गए.


डॉ : वो लड़का कितना बड़ा था.??


कोमल : कुछ पांच, छे साल का ही होगा. बच्चा ही था.


कोमल को याद आया की उसके पीछे दो बच्चों की आत्मा लगी हुई है.


कोमल : कही ये......


डॉ : बिलकुल.. स्कूल चलते है. हमरे पास वक्त है.


वो सब वापस बस मे बैठे और कुछ ही देर मे स्कूल पहोच गए. वो जैसे ही बस से निचे उतरे गांव के दो बुजुर्ग मर्द और मुखिया उनके पास आ गए.


डॉ : हा मुखिया जी. काम कहा तक पहोंचा????


मुखिया : काम हुआ हो तब ना. औजारों पे औजार टूट रहे है. पर मिट्टी खुद ही नहीं रही. ऐसे तो कभी हो नहीं सकता.


डॉ : आइये दिखाइये.


सभी स्कूल के पीछे की तरफ गए. जिसे पंडितजी का स्थान समझा जा रहा था. मंदिर वही होने का अनुमान लग चूका था. डॉ रुस्तम ही नहीं बलबीर कोमल सब हैरान गए. कई औजारों के दस्ते टूटे हुए थे.

कई औजारों का तो लोहा भी टूट चूका था. काम रुका हुआ था. बलबीर डॉ रुस्तम के पास आया.


बलबीर : मेने बोला था ना. ये मामला कुछ और है.


डॉ : हा तुम सही हो.


कोमल : फिर अब क्या करें???


डॉ : विधि करेंगे और क्या. पूजा करेंगे. उन बच्चों की आत्माओ को बांधेगे और फिर काम शुरू करेंगे. आओ..


सभी लोग स्कूल के आगे बस की तरफ चल दिये. तभि एक एम्बेसडर टैक्सी आती दिखाई दीं. सब की नजर उस टेक्सी पर ही गई. वो टेक्सी रुकी और टेक्सी का दरवाजा खुला.


कोमल : (स्माइल एक्साइड) दाई माँ.....


कोमल तो दौड़ पड़ी. और भाग कर सीधा दाई माँ को बाहो मे भर लिया. बलबीर भी देख कर खुश हो रहा था. दाई माँ भी कोमल के गलो को चूमते खूब लाड़ लड़ा रही थी. जब बलबीर दाई माँ के पास पहोंचा तो उन्होंने भी बलबीर को देखा.


बलबीर : (स्माइल) राम राम माँ..


दाई माँ : हा राम राम. चल ज्याए 700 रूपईया देदे.
(चल इसे 700 rs दे दे )


अब बलबीर के पास पैसे थे ही नहीं. ना उसके पास थे. ना कभी उसने कोमल से मांगे. वो हमेशा तो कोमल के साथ होता. कभी कोमल के साथ गया हो और कोमल कोर्ट या किसी मीटिंग मे हो तो वो बहार चाय की कितली या दुकान पर खाता पिता. कोमल आती और उसके पैसे पे कर देती. बलबीर कभी दाई माँ को देखता तो कभी कोमल को.


बलबीर : (मुँह खुला ) माँ.....


कोमल को हसीं आ गई.


कोमल : (स्माइल) कोई बात नहीं मै देती हु..


कोमल ने झट से पैसे निकले और टेक्सी ड्राइवर को दे दिए.


बलबीर हैरान था. क्यों की दाई माँ टैक्सी में आई थी. दाई माँ बलबीर को पट से गल पर एक थप्पड़ मार देती है. थप्पड़ तो हल्का था. पर आवाज पट से आई.


दाई माँ : हे बाबाड़चोदे छोड़िन ते पैसा दीबारों है.
(भोसड़ीके लड़की से पैसे दिलवा रहा है)


ये देख कर कोमल को बहोत जोरो से हसीं आई. बलबीर का फेस वाकई देखने लायक था.


दाई माँ : अब ऐसे मत देखे. मेरो सामान निकर ला गाड़ी मे ते.
( अब ऐसे मत देखें. मेरा सामान निकाल ले. गाड़ी में से.)


बलबीर तुरंत दाई माँ का सामान गाड़ी से निकालने लगा. दाई माँ कोमल के कंधे पर हाथ रखे डॉ रुस्तम के पास आई. डॉ रुस्तम दाई माँ को पूरी कहानी बताता है. डॉ रुस्तम हार एक बात को बड़ी बारीकी से बता रहा था. दाई माँ भी बड़े ध्यान से सुन रही थी. डॉ रुस्तम ने कोमल के साथ हुए आखरी किस्से को भी बता दिया.


दाई माँ : कोई बात ना हे. तू फिकर मत करें. ज्या तो मे अभाल ठीक कर दाऊँगी.
(कोई बात नहीं. तू फिक्र मत कर. ये तो मै अभी ठीक कर दूंगी )


दाई माँ घूमी और कोमल की तरफ देखने लगी. दाई माँ ने बड़े प्यार से कोमल के सर पर हाथ घुमाया.


दाई माँ : जा लाली. तू वाई बच्चन के पास बैठ जा.
(जा बेटी. तू वही बच्चों के पास बैठ जा)


कोमल : (सॉक) क्या वही क्लास मे???


दाई माँ : हा वाई सकुल के कलास मे जकड बैठ. और काउ हे जाए ठाडी मत भाइयो.
(हा वही स्कूल के क्लास मे जाकर बैठ. और कुछ हो जाए खड़ी मत होना )


दाई माँ ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा.


दाई माँ : रे बेटा रुस्तम. ज्याए बैठर वाउ.
(बेटा रुस्तम. इसे बैठा वहां )


दाई माँ कोमल को स्कूल के उस क्लास मे बैठने के किए डॉ रुस्तम को बोलती है. कोमल की फट गई थी. वो कभी दाई माँ तो कभी रुस्तम को देखती है. डॉ रुस्तम ने कोमल को जाने का हिसारा किया.

वो टीम मेंबर को बुलकर सेटअप लगवते है. ताकि कोमल को कोई खतरा हो तो बचा सके. दाई माँ ने ये फैसला क्यों लिया. ये डॉ रुस्तम ने पूछा तक नहीं. लेकिन बलबीर से रहा नहीं गया. डॉ रुस्तम भी उस वक्त दाई माँ के पास ही खड़े थे.


बलबीर : माँ.. उसे फिर क्यों भेज दिया. उसे कुछ हो गया तो??? कल भी उसकी हालत ख़राब हो गई थी.


दाई माँ : वाके पीछे दो बालक हते लाला. हम कछु करें वाए सब पतों लगे है. हम कछु कर के सारे बच्चन को बांध दिंगे. पर कोमर के पीछे जो दो हते बे बच लिंगे. फिर बड़ी परेशानी हे जाएगी. ज्याते बढ़िया कोमरे वही बैठर दो.
(उसके पीछे दो बच्चे है. हम कुछ करेंगे बाते करेंगे उन्हें सब पता चलेगा. हम कुछ कर के बच्चों को बांध देंगे तब भी कोमल के पीछे जो दो बच्चे लगे है वो बच जाएंगे. फिर और ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ेगी. इस से बढ़िया है कोमल को ही वहां बिठा दो.)


डॉ रुस्तम को दाई माँ के तंत्र मंत्र विधया के साथ बुद्धि का उपयोग सही लगा. कोमल स्कूल मे जाकर वही बैठ चुकी थी. उसे इस बार एयरफोन नहीं दिये गए. बस रेडिओ सेट दिया गया. कोमल को रात जैसा डर नहीं लग रहा ठा. क्यों की दिन का उजाला उस क्लास रूम मे आ रहा था. पर फिर भी कोमल को डर तो लग रहा था.

अंदर रात जितनी तो नहीं पर बदबू उसे फिर भी आ रही थी. हलकी हलकी घुटन भी महसूस होने लगी. डॉ रुस्तम ने रेडिओ सेट से कोमल से संपर्क किया.


डॉ : हेलो हेलो कोमल....


कोमल : हा मे कोमल बोल रही हु..


डॉ : कोई प्रॉब्लम हो तो call कर देना.


कोमल : ओके..


वही बहार दाई माँ ने लाल धागे तैयार कर लिए. और डॉ रुस्तम के टीम मेम्बरो को पकड़ने लगी. डॉ रुस्तम जानते थे की क्या करना है. उन्होंने स्कूल के चारो तरफ वो धागे बंधवा दिये. दरसल उन्होंने वो धागो के जरिये स्कूल के अंदर की जितनी भी एनटीटिस हो सबको स्कूल मे ही कैद कर लिया था. दाई माँ साथ मंतर भी बड़ बड़ा रही थी.


दाई माँ : अब काम शरू करो. कछु ना होएगो.
(अब काम शुरू करो. कुछ भी नहीं होगा)


डॉ रुस्तम ने काम शुरू करवा दिया. कोई प्रॉब्लम नहीं हो रही थी. बड़ी आसानी से मिट्टी खुद रही थी. लेकिन दाई माँ थी तामशिक विधया वाली. तामसिक विधया बहार धुप सूरज की रौशनी मे नहीं हो सकती.

वो अपने कंधे पर बंधे चादर के झोले को लेकर उसी स्कूल मे ही घुस गई. दाई माँ ने लाल धागे वाला खुद का प्रकोषण भी देखा. जो स्कूल के मेइन दरवाजे पर था. निचे की तरफ हर डोर हर विंडो पर ये लाल धागे बंधे हुए थे. दाई माँ स्कूल मे घुसकर दए बाए देखने लगी.

वो उसी क्लास को ढूढ़ रही थी. जिसमे छत गिरने से बच्चों की मौत हुई थी. कोमल भी तो उसी क्लास रूम मे अकेली बैठी डर रही थी. कोमल ने दरवाजे के उजाले मे हलका सा कलापन देखा.

जैसे कोई पड़च्चाई डोर की तरफ आ रही हो. डोर से बहार की तरफ से आ रहे उजाले से अगर कोई बिच मे आ जाए तो अचानक उतना अंधेरा छा जाता है. बस उतना ही अंधेरा हुआ था. और कोमल की डर से धड़कने तेज़ हो गई. लेकिन जब उस डोर पर दाई माँ को खड़ा देखा तो ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.


कोमल : (स्माइल एक्ससिटेड) माँ......


कोमल ने खड़े होकर फिर दाई माँ को बाहो मे लपक लिया.


दाई माँ : तोए का लगो लाली. तोए का मे अकेली छोड़ दाऊँगी.
(तुझे क्या लगा बेटी. मै तुझे अकेली छोड़ दूंगी.)


दाई माँ अंदर आकर दए बाए देखने लगी.


कोमल : माँ आप क्या कर रही हो.


दाई माँ ने अपना झोला रखा. अंदर हाथ डाल कर कुछ सरसो के दाने निकले. उसे मुट्ठी मे बंद कर के अपने मुँह के पास लाई. आंखे बंद किये कुछ मंतर पढ़ने लगी. कोमल ये सब हैरानी से देख रही थी.

फिर दाई माँ ने आंखे खोली और निचे झूक कर उन सरसो के दानो से एक गोला बनाया. दाई माँ ने कोमल को उस गोले की तरफ हिशारा किया.


दाई माँ : बैठ जा लाली ज्यामे. (बैठ जा बेटी इसमें )


कोमल तुरंत ही उस घेरे मे खड़ी हो गई. वो बैठना नहीं चाहती थी. कोमल दाई माँ की तरफ देखने लगी. दाई माँ ने कोई रिएक्शन नहीं दिया मतलब खड़े रहने से भी कोई आपत्ति नहीं है. दाई माँ निचे थोडा अँधेरे की तरफ अपना ताम झाम जचाने लगी. उनके सामान को देख कर कोमल हैरान थी. कई प्रकार की जड़ीबटिया.

कागज मे थोड़ी सी मिठाई, कुछ जानवर की हड्डिया, इन्शानि खोपड़ी, और एक हाथ की लम्बी हड्डी. दाई माँ ने एक छोटा सा मिरर भी निकला. उसे एक छोटे काले कपड़े से ढक दिया. और मंतर पढ़ने लगी.

जब दाई माँ मंतर पढ़ने लगी तो कोमल को एक साथ कई बच्चों के रोने की आवाजे आने लगी. हैरानी की बात ये थी की वो आवाजे खुद दाई माँ को भी नहीं आ रही थी. उसे सिर्फ कोमल ही सुन पा रही थी. दरसल कोमक ने दाई माँ को माँ शब्द कहे कर पुकारा.

बच्चों की एनटीटीस जब मरी. तब वो बच्चे थे. इसी लिए वो आत्माए बच्चों के फोम मे ही थी. और माँ वर्ड सुनकर वो भी माँ का नाम लेकर रो रहे थे. कोमल हैरानी से दाई माँ की तरफ देखती है.

दाई माँ को भले ही उन बच्चों की आवाज ना सुनाई दे रही हो. पर वो ये अच्छे से जानती थी की आस पास जो भी एनटीटीस होंगी. कोमल उनकी आवाज सुन पाएगी.


दाई माँ : घबडावे मत लाली. तोए कछु ना होवेगो.
(घबरा मत बेटी. तुझे कुछ नहीं होगा.)


दाई माँ ने बोलते हुए कोमल को वो मिरर दिया. जो काले कपडे से ढाका हुआ था. कोमल उस मिरर को हाथो मे लिए दाई माँ की तरफ देखती है. जैसे पूछ रही हो. इसका क्या करना है. मंतर पढ़ते हुए दाई माँ ने बस उस मिरर से कपड़ा हटाने का हिशारा किया.

दाई माँ लगातार मंतर पढ़ रही थी. उन बच्चों के रोने की आवज भी कोमल के कानो मे लगातार आ रही थी. कोमल ने पहले तो उस कपडे को हटाया. सामने उसे अपना ही चहेरा दिखा. मगर कोमल हैरान तब रहे गई जब उसे वही लड़का कोमल के पीछे एक कोने मे खड़ा दिखा.


कोमल ने तुरंत पीछे मुड़कर देखा. उसे नरी आंख से तो कोई नहीं दिख रहा था. लेकिन वापस जब कोमल ने उस मिरर को ऊपर किया तो वो लड़का वही कोने मे खड़ा दिखा.

जो कोमल को ही देख रहा था. ये वही लड़का था. जो कोमल को आवाज मार कर आश्रम से ले गया था. तब बलवीर ने बचा लिया. उसके बाद कोमल के सपने मे आया था. कोमल तालाब मे डूब रही थी. और वो हस रहा था. कोमल बार बार उसे कभी मिरर मे देखती फिर पीछे मुड़कर उस कोने की तरफ देखती.

वो सिर्फ उस मिरर से ही नजर आ रहा था. ये बात कोमल को भी समझ आ गई. पर कोमल ने उसे सुनाई दे रही उन रोते हुए बच्चों की आवाज की तरफ ध्यान दिया. वो आवाज उसके खुद के पास सामने से आ रही थी. कोमल ने थोडा आइना टेढ़ा कर के देखा तो बहोत ही ज्यादा हैरान कर देने वाला नजारा था. कई सारे बच्चे निचे बैठे हुए रो रहे थे.

वो सभी बच्चे स्कूल के यूनिफार्म मे ही थे. किसी के सर पर चोट तो किसी के हाथ पाऊ पर चोट. कइ तो खून से बहोत ज्यादा लट पत थे. छत का मलवा गिरने से वो गंदे भी हो रखे थे. पर चहेरे की स्किन एकदम रूखी सफ़ेद सी लग रही थी.

ये नजारा देख के कोमल हैरान रहे गई. वो सारे बच्चे दाई माँ के सामने बैठे दाई माँ की तरफ देखते हुए रो रहे थे. वो अपने हाथो को दाई माँ की तरफ ही बहाए हुए थे. जैसे चाह रहे हो की कोई उन्हें गोद मे ले ले.

लेकिन सिर्फ एक ही बच्चा कोने मे खड़ा था. दाई माँ से दूर कोमल के पीछे की तरफ. एक कोने मे. ना तो वो रो रहा था. और ना ही हस रहा था. दाई माँ ने अपने झोले मे हाथ डाला. और मुट्ठी भर कर साकड़ निकली. और बच्चों की तरफ फेक दिया. कोमल ने सफ़ेद मिट्ठी साकड़ फर्श पर फैली हुई देखि. कोमल सोच मे पड़ गई.

दाई माँ ने वो साकड़ ऐसे क्यों फेकि. ये देखने के लिए कोमल ने आईने को वापस टेढ़ा कर के देखा. बच्चों के रोने की आवाज भी बंद हो चुकी थी. आईने मे साफ दिख रहा था की वो बच्चे उन साकड़ो को बिन बिन कर खा रहे है. साथ मे हस भी रहे है. लेकिन कोने मे खड़ा वो बच्चा नहीं आया. कोमल से रहा नहीं गया. और कोमल ने दाई माँ को हिशारा किया.


कोमल : माँ....


दाई माँ ने कोमल की तरफ देखा. कोमल ने दाई माँ को उस कोने की तरफ हिशारा किया. लेकिन वो लड़का वहां उस क्लास रूम से निकल कर तुरंत ही भाग गया. कोमल ने अब उस बच्चे के पहनावे पर ध्यान दिया. वो छोटी सी निक्कर पहने हुए था. और एक शर्ट. इन नहीं की थी. कपडे पुराने ही थे. और स्कूल यूनिफार्म भी नहीं था.

वो लड़के ने ना तो चप्पल पहनी हुई थी. और ना ही उसकी स्किन बाकि बच्चों की तरह सफ़ेद थी. दाई माँ ने कोमल को हाथ दिखाकर बस शांत रहने का हिशारा किया. झोले से दाई माँ ने एक मिट्टी का कुल्लाड़ निकला. और उसमे कुछ साकड़ डाल दी. कोमल ने उस आईने के बिना उस फर्श पर देखा तो एक भी साकड़ फर्श पर नहीं थी.

कोमल ने तुरंत ही आईने को टेढ़ा कर के वापस उन बच्चों को देखने की कोसिस की. वो बच्चे तो दाई माँ की तरफ बढ़ रहे थे. लेकिन ना जाने कहा से वहां धुँआ हो रहा था. धीरे धीरे वो धुँआ ज्यादा होने लगा. कोमल ने आइना हटाकर देखा तो उस रूम मे कोई धुँआ नहीं था.

पर वापस जब आईने के जरिये देखा तो धुँआ इतना डार्क हो चूका था की कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. धीरे धीरे वो धुँआ काम होने लगा. कोमल को आईने मे क्लास की हलकी झलक दिखी. और कुछ ही देर मे क्लास पूरा प्रोपर दिखने लगा. वहां अब कोई भी बच्चा नहीं था. कोमल ने हैरानी से आइना हटाकर दाई माँ की तरफ देखा.

दाई माँ उस मिट्टी के कुल्लड़ को एक काले कपडे मे लपेट कर. उसे एक लाल धागे से बांध रही थी. जिसे लोग नाड़ाछडी भी बोलते है. अमूमन पूजा पाठ मे काम आता है. दाई माँ ने उस कुल्लड़ को जैसे बच्चा पतंग की डोर का पिंडुल बनता है. वैसे लपेट रही थी.


दाई माँ : इनको तो हेगो. (इनका तो हो गया.)



वहां बहार डॉ रुस्तम को मंजिल मिल गई थी. वो मंदिर जमीन मे आधे से ज्यादा गाढ़ा हुआ था. और थोडा बहार था. मंदिर पूरा मिल चूका था. बस एक तकलीफ थी की उस मंदिर मे मूर्ति नहीं थी.
Superb update and mind blowing writing skills 👌🏻 setu ji, ye daai ma hai kamaalbki cheej isme koi shak nahi👌🏻👌🏻 unki boli ka wo theath dehati sabdo me hona unko or bhi tagda character banata hai, or khas tor pe unka takiya kalaam: BABAD CHODA :D UUdhar daai ma nesabhi baccho ki aatma ko kaid kar liya lekin jo kone me khada tha wo bach gaya:idk1:Lekin wo school dress me nahi tha , matlab ye to nahi ki wo school ka na ho ke koi or ho ? Or uska ek or sathi usko pakda ya wo bhi faraar hai???
Gajab ka update 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻💥💥💥💥💥💥💥💥🔥🔥🔥🔥🔥
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Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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Raj_sharma

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Luckyloda

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Bhut shandaar update...... मजा आ गया पढ़ कर
 
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