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जय- सब तो तुम माँ बेटी पी लेती हो, इसके लिए अलग से कैसे व्यवस्था करें।
तभी कविता, कमरे में अंदर आ गयी, उसके हाथ में गाजर था और वो कूद कर बिस्तर पर चढ़ गई। उसने दूसरे हाथ में एनल लुब्रीकेंट रखा था। उसने सबसे पहले तो जय के आगे अपनी गाँड़ फैला दी। फिर अपनी गाँड़ पर काफी लुब्रीकेंट लगा ली। और गाजर को अपनी सिंकुड़ी, भूरी, छेद में दबाकर उतारने लगी। उस तरल की वजह से गाजर आराम से गाँड़ में उताड़ गया। धीरे धीरे कर पूरा गाजर गाँड़ में घुस चुका था। बाहर सिर्फ पत्ते दिख रहे थे। जय ने कविता के चूतड़ों पर कस कसके तीन चार थप्पड़ जड़ दिए। कविता फिर जय की ओर घूम गयी। ममता और कविता दोनों कुतिया बानी हुई थी। दोनों माँ बेटी लण्ड चूसने लगी। जय दोनों के सर सहलाते हुए, अपना लण्ड चुसवा रहा था। दोनों बड़े ही भक्तिमय अंदाज़ से लण्ड को भगवान समझ, अपने थूक से उसका अभिषेक कर रही थी। थोड़ी देर बाद जय लण्ड निकालकर दोनों से बोला," कविता दीदी अब हम तुम्हारी गाँड़ चोदेंगे। तबसे गाजर गाँड़ में डाले हुए हो, अब अपने भाई का लण्ड लो। माँ को भी थोड़ा, आराम करने दो। माँ तुम दीदी के आगे लेट जाओ, दीदी तुम्हारा बुर चुसेगी और ये गाजर तुम्हारे गाँड़ में डालेगी। तुम दोनों की गाँड़ अब खाली नहीं रहेगी।"
जय कविता के पीछे आ गया और ममता उसके आगे दोनों टांग उठाकर पीठ के बल लेट गयी। जय ने पहले उसकी गाँड़ से गाजर निकाल लिया और कविता के हाथों में थमा दिया। कविता की गाँड़ थोड़ी सी खुली थी, जय ने लण्ड को कविता के अधखुले छेद में घुसा दिया। उधर कविता इस हमले से चिहुंक उठी। हालांकि उसने गाँड़ में गाजर डाल रखा था, पर लण्ड से उसकी गाँड़ बुरी तरह फैल गयी। ममता अपनी बुर पर कविता का सर पकड़के रगड़ रही थी। कविता अब दोनों तरफ से व्यस्त हो गयी। फिर उसने ममता से बोला," माँ, ये गाजर तुम्हारे गाँड़ में ठूसना है। उठाओ मादरचोद।
ममता- घुसा दो ना, गाँड़ मारकर तुम्हारे भाई ने वैसे ही फैला दिया है। ले घुसा ले।
कविता ने घुसा दिया फिर ममता खुद से ही उसे आगे पीछे करने लगी। कविता गाँड़ मरवाते हुए, अब अपनी माँ की पवित्र बुर चूस रही थी। बुर का नमकीन पानी, उसके पूरे चेहरे पर लगा हुआ था। पीछे उसकी गाँड़ का भुर्ता बन रहा था। कविता की गाँड़ का छेद कोक के ढक्कन के निचले हिस्से की तरह, उबर खाबर थी। पर मांसल होने से उसमे रगड़ खाने से और मज़ा आ रहा था। ये इस तरह बहुत देर तक चुदाई का आनंद लेते रहे। जय ने तब ममता और कविता को इकट्ठा एक साथ बिस्टेर पर करवट कर लिटा दिया। जिससे उन दोनों की पीठ एक दूसरे को सहारा दे रही थी। जय ने ममता की गाँड़ से गाजर निकाल कर, दोनों से चटवाया। फिर दोनों अपने अपने चूतड़ फैलाकर, अपनी खुली हुई गाँड़ जय को परोस रही थी। दोनों अपने अपने गाँड़ की छेद पर अपना अपना थूक मल रही थी। जय के सामने, दो दो मस्त औरतें, लेटकर गाँड़ मरवाने को तैयार थी। जय ने अपना लण्ड पहले ममता की गाँड़ में घुसा दिया। कविता अपने हाथ से अपना बुर सहला रही थी। दोनों की बुर नीचे तरफ से साफ दिख रही थी। जो कि उनकी चिपकी जांघों के बीच गायब हो जा रही थी। जय अब ममता की गाँड़ फिरसे चोदने लगा। उधर ममता भी कमर नीचे की ओर हिलाकर उसका लण्ड ले रही थी। वो भी अपना बुर सहला रही थी। चारों तरफ कमरे में तीनों की सिसकारियां, आहें फैली हुई थी।तीनो दुनिया से बेखबर काम के सागर में डूबे हुए थे। तभी कविता बोली," जय अब हमारी गाँड़ चोदो ना, माँ का तो बहुत चोदे हो।"
जय," दीदी, हमको अफसोश है कि हमारे पास एक ही लण्ड है, अगर दो होते तो तुम दोनों को एक साथ चोदते। खैर ये लो।" और लण्ड निकाल लिया। प्लूप कि आवाज़ से लण्ड ममता की गाँड़ से निकल गया। ममता की गाँड़ अब तक चुद चुदकर, पूरी तरह खुल गयी थी। जिस वजह से गाँड़ के अंदर की गुलाबी मांसल त्वचा साफ दिख रही थी। ममता गाँड़ में उंगली डालकर हिला रही थी। जय ने अपना लण्ड अब कविता की गाँड़ में घुसा दिया। अब तक कविता की गाँड़ भी अभ्यस्त हो चुकी थी। जय के लण्ड की गोलाई कविता के गाँड़ को अपने जितना चौड़ा कर चुकी थी। हालांकि उसकी गाँड़ ममता जितनी नहीं चुदी थी। पर क्षमता उसमें भी बहुत थी। अपनी बुर को मसलते हुए, कविता बेहद कामुक आहें भर रही थी। जय बड़ी ही बेरहमी से गाँड़ को ढीला कर रहा था।
तभी कविता, कमरे में अंदर आ गयी, उसके हाथ में गाजर था और वो कूद कर बिस्तर पर चढ़ गई। उसने दूसरे हाथ में एनल लुब्रीकेंट रखा था। उसने सबसे पहले तो जय के आगे अपनी गाँड़ फैला दी। फिर अपनी गाँड़ पर काफी लुब्रीकेंट लगा ली। और गाजर को अपनी सिंकुड़ी, भूरी, छेद में दबाकर उतारने लगी। उस तरल की वजह से गाजर आराम से गाँड़ में उताड़ गया। धीरे धीरे कर पूरा गाजर गाँड़ में घुस चुका था। बाहर सिर्फ पत्ते दिख रहे थे। जय ने कविता के चूतड़ों पर कस कसके तीन चार थप्पड़ जड़ दिए। कविता फिर जय की ओर घूम गयी। ममता और कविता दोनों कुतिया बानी हुई थी। दोनों माँ बेटी लण्ड चूसने लगी। जय दोनों के सर सहलाते हुए, अपना लण्ड चुसवा रहा था। दोनों बड़े ही भक्तिमय अंदाज़ से लण्ड को भगवान समझ, अपने थूक से उसका अभिषेक कर रही थी। थोड़ी देर बाद जय लण्ड निकालकर दोनों से बोला," कविता दीदी अब हम तुम्हारी गाँड़ चोदेंगे। तबसे गाजर गाँड़ में डाले हुए हो, अब अपने भाई का लण्ड लो। माँ को भी थोड़ा, आराम करने दो। माँ तुम दीदी के आगे लेट जाओ, दीदी तुम्हारा बुर चुसेगी और ये गाजर तुम्हारे गाँड़ में डालेगी। तुम दोनों की गाँड़ अब खाली नहीं रहेगी।"
जय कविता के पीछे आ गया और ममता उसके आगे दोनों टांग उठाकर पीठ के बल लेट गयी। जय ने पहले उसकी गाँड़ से गाजर निकाल लिया और कविता के हाथों में थमा दिया। कविता की गाँड़ थोड़ी सी खुली थी, जय ने लण्ड को कविता के अधखुले छेद में घुसा दिया। उधर कविता इस हमले से चिहुंक उठी। हालांकि उसने गाँड़ में गाजर डाल रखा था, पर लण्ड से उसकी गाँड़ बुरी तरह फैल गयी। ममता अपनी बुर पर कविता का सर पकड़के रगड़ रही थी। कविता अब दोनों तरफ से व्यस्त हो गयी। फिर उसने ममता से बोला," माँ, ये गाजर तुम्हारे गाँड़ में ठूसना है। उठाओ मादरचोद।
ममता- घुसा दो ना, गाँड़ मारकर तुम्हारे भाई ने वैसे ही फैला दिया है। ले घुसा ले।
कविता ने घुसा दिया फिर ममता खुद से ही उसे आगे पीछे करने लगी। कविता गाँड़ मरवाते हुए, अब अपनी माँ की पवित्र बुर चूस रही थी। बुर का नमकीन पानी, उसके पूरे चेहरे पर लगा हुआ था। पीछे उसकी गाँड़ का भुर्ता बन रहा था। कविता की गाँड़ का छेद कोक के ढक्कन के निचले हिस्से की तरह, उबर खाबर थी। पर मांसल होने से उसमे रगड़ खाने से और मज़ा आ रहा था। ये इस तरह बहुत देर तक चुदाई का आनंद लेते रहे। जय ने तब ममता और कविता को इकट्ठा एक साथ बिस्टेर पर करवट कर लिटा दिया। जिससे उन दोनों की पीठ एक दूसरे को सहारा दे रही थी। जय ने ममता की गाँड़ से गाजर निकाल कर, दोनों से चटवाया। फिर दोनों अपने अपने चूतड़ फैलाकर, अपनी खुली हुई गाँड़ जय को परोस रही थी। दोनों अपने अपने गाँड़ की छेद पर अपना अपना थूक मल रही थी। जय के सामने, दो दो मस्त औरतें, लेटकर गाँड़ मरवाने को तैयार थी। जय ने अपना लण्ड पहले ममता की गाँड़ में घुसा दिया। कविता अपने हाथ से अपना बुर सहला रही थी। दोनों की बुर नीचे तरफ से साफ दिख रही थी। जो कि उनकी चिपकी जांघों के बीच गायब हो जा रही थी। जय अब ममता की गाँड़ फिरसे चोदने लगा। उधर ममता भी कमर नीचे की ओर हिलाकर उसका लण्ड ले रही थी। वो भी अपना बुर सहला रही थी। चारों तरफ कमरे में तीनों की सिसकारियां, आहें फैली हुई थी।तीनो दुनिया से बेखबर काम के सागर में डूबे हुए थे। तभी कविता बोली," जय अब हमारी गाँड़ चोदो ना, माँ का तो बहुत चोदे हो।"
जय," दीदी, हमको अफसोश है कि हमारे पास एक ही लण्ड है, अगर दो होते तो तुम दोनों को एक साथ चोदते। खैर ये लो।" और लण्ड निकाल लिया। प्लूप कि आवाज़ से लण्ड ममता की गाँड़ से निकल गया। ममता की गाँड़ अब तक चुद चुदकर, पूरी तरह खुल गयी थी। जिस वजह से गाँड़ के अंदर की गुलाबी मांसल त्वचा साफ दिख रही थी। ममता गाँड़ में उंगली डालकर हिला रही थी। जय ने अपना लण्ड अब कविता की गाँड़ में घुसा दिया। अब तक कविता की गाँड़ भी अभ्यस्त हो चुकी थी। जय के लण्ड की गोलाई कविता के गाँड़ को अपने जितना चौड़ा कर चुकी थी। हालांकि उसकी गाँड़ ममता जितनी नहीं चुदी थी। पर क्षमता उसमें भी बहुत थी। अपनी बुर को मसलते हुए, कविता बेहद कामुक आहें भर रही थी। जय बड़ी ही बेरहमी से गाँड़ को ढीला कर रहा था।