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Incest क्या ये गलत है ? (completed)

Rakesh1999

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जय- अपना साया पीछे से कमर तक उठाओ और फिर चलो, हमारी माँ सजनी।" ममता ने हाथ पीछे कर साया अपनी कमर पर रखा, जिससे उसके पैर, जाँघे, बुर, चूतड़ सब नंगे हो गए। पर वो जय को नहीं दिख रहे थे। उसकी चुच्ची सामने से ब्रा में अधनंगी थी। जो कि किसीका लण्ड खड़ा करने के लिए, काफी थी। ममता को पीछे काफी खुला खुला महसूस हो रहा था। कमरे की ठंडी हवा उसके बुर से टकरा रही थी। गाँड़ पर सिहरन की वजह से दाने दाने से उग गए थे। ममता अब धीरे धीरे जय के पास आ रही थी, और जय उसके सामने उसकी पैंटी लगातार सूंघ रहा था।

कविता उसके पैर चूम रही थी। ममता धीरे धीरे मटकते हुए उसके पास पहुंची। कविता और ममता एक दूसरे के सामने थी। जय ने हुक्म किया," चलो, दोनों एक दूसरे को किस करो"। उसके बोलते ही दोनों किस करने लगी। वो दोनों कुतिया बने हुए एक दूसरे को किस कर रही थी। दोनों के होंठ और जीभ जैसे आपस में कुश्ती लड़ रहे थे। जय को ये देख बड़ा मजा आ रहा था। उसने इसी क्रम में ममता की ब्रा की हुक खोल दी। उसकी ब्रा छटककर उसके चुच्चियों को नंगी कर, कोहनियों तक आ लटकी। ममता चौंक उठी। फिर अपनी लटकती चुच्चियों का नंगापन महसूस कर उसने ब्रा को उतार दिया।

तीनों मुस्कुरा रहे थे। कविता फिर धीरे से ममता के पीछे गयी और उसके नंगे चूतड़ों पर अपना चेहरा रगड़ने लगी। ममता की गाँड़ के दरार के बीच अपनी नाक लगा सूंघ रही थी। वहां गीली बुर की खुश्बू आ रही थी। कविता की जुबान काबू नहीं रख पाए और ममता की भीगी बुर पर को चाटने लगी। ममता सिहर उठी। कविता के जुबान के एहसास से वो कामोन्माद में बहने लगी। गाँड़ के छेद पर टकराती उसकी सांसें, और बुर पर गीली जीभ का अनमोल एहसास से उसकी आंखें अनायास बंद हो गयी। इस वक़्त ममता का चेहरा बेहद उत्तेजना वर्धक लग रहा था। वो खुद भी उत्तेजना में आ रही थी।

जय ने दोनों को बिस्तर पर आने को कहा। दोनों सिर्फ साये में बिस्तर पर आ गयी। एक तरफ खेली खिलाई पकी बुर और दूसरी तरफ कम चुदी कमसिन कच्ची बुर। जय की तो लॉटरी लगी थी। जय उन दोनों को बिस्तर पर ऐसे महसूस किया जैसे दो शेरनी हो। दोनों एक दूसरे पर टूटी थी। एक दूसरे की चुच्ची लगातार सहला और दबा रही थी। दोनों की सांसें एक दूसरे से टकड़ा रही थी।
कविता- हहम्ममम्म, आआहह उमम्म ऊई । फिर कविता ने ममता को लिटा दिया और उसको किस करने लगी। ममता भी उसे मना नहीं कर रही थी। तभी उसकी नज़र जय से टकराई और वो झेंप गयी।

जय- ममता क्यों शर्मा रही हो? अपने पति के सामने अपनी सौतन के साथ सेक्स कर रही हो इसलिए?
ममता कुछ नहीं बोली।
जय- आज तुम दोनों के लिए सरप्राइज है, ये देखो। जय ने उन दोनों को एक बट प्लग दिखाया।
ममता- ये क्या है?

कविता- उम्म्म्म्म ममता के चुच्चियों को चूस रही थी, वो चूसना छोड़कर बोली," आआहहहह .... वाओ ये तो बट प्लग है, इसको गाँड़ में घुसाके रखते हैं। चुदाई के दौरान और ऐसे भी। बहुत सी महिलाएं इसको घुसाना बहुत पसंद करती हैं। नार्मल काम करते हुए, बाजार घूमते हुए, सब घुसाके करती हैं।
 

Rakesh1999

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जय- समझ गयी माँ, तुम दोनों भी अबसे इसको इस्तेमाल करोगी। तुम दोनों की गाँड़ में अबसे हमेशा ये घुसा रहेगा। सिर्फ हगते समय और गाँड़ मरवाने के टाइम पर ये निकलेगा।
ममता- हाय राम, मतलब बाहर भी जाएंगे तब भी लगाके जाएंगे।

कविता- ये तो हमको घर मे भी हमेशा लगाके रखना होगा। बहुत ही गंदी सोचवाला बेटा है तुम्हारा।
जय- ये भी एक जेवर ही है तुमलोगों के लिए। चलो दोनों अपनी गाँड़ हमारे तरफ घुमाओ और आगे करो। कविता दीदी पहले तुम आओ।
कविता अपनी गाँड़ उठाके उसकी तरफ कर दी। अपने चूतड़ों को अपने हाथों से अलग किया और अपनी भूरी सिंकुड़ी छेद जय के सुपुर्द कर दी। जय ने ढेर सारा थूक उसकी छेद पर लगाया जिससे वो पूरी तरह गीला हो गया। फिर बट प्लग के निचले हिस्से को अपनी गाँड़ की छेद पर महसूस करने लगी।

जय उसको छेद पर नचा रहा था। कविता आनेवाले हमले के लिए तैयार थी, जिसे जय उसकी गाँड़ में घुसपैठ कराना चाहता था। अचानक जय ने दबाव बनाकर निचले हिस्से को घुसाना शुरू किया। कविता की गाँड़ के छेद जो आस पास की चमड़ी सिंकुड़ कर उस छेद में कहीं विलीन हो रहे थे, धीरे से फैलने लगे। वो छेद खुल गया। और वो अंदर घुस गया।कविता जैसे मचल उठी। ममता ये सब देख रही थी, उसकी आंखें खुली की खुली थी।

जय ने फिर कविता के चूतड़ों को चूमा और ममता को अपनी ओर गाँड़ घुमाने को कहा। ममता धीरे धीरे मुड़ रही थी। जय ने बट प्लग में लुब्रीकेंट लगाया और ममता के चूतड़ों से साया हटा दिया। ममता के पूरे बदन पर बस वो एक साया उसकी कमर से चिपका था। बाकी वो पूरी तरह नंगी थी। जय ने ममता के चूतड़ों को फैलाकर गाँड़ की छेद को सहलाने लगा। ममता गाँड़ के नन्हे से छेद पर उसकी हथेली का एहसास पाते ही,मदहोश होने लगी। जय ने वैसे ही गाँड़ की छेद को अपने होंठों में पकड़ लिया। और 2 मिनट तक चूसता रहा, फिर ढेर सारा थूक वहां डालकर गाँड़ में वो बट प्लग घुसा दिया।

अब दोनों के गाँड़ में बट प्लग लग चुका था। जय ने फिर दोनों को अपने करीब लाया। ममता और कविता दोनों को अबसे गाँड़ में भी एक गहना पहनना था। तभी जय ने ममता को बगल में सुलाकर उसकी आँखों में आंखें डालकर पूछा," ममता क्यों तड़पाया जानेमन हमको? ममता उसके सर को अपने चुच्ची पर टिकाते हुए बोली," तुमको तभी इसलिए तड़पाये थे, ताकि पूरी रात को तुम बेरोकटोक अपनी नई बीवियों के साथ खुलकर चोदम चोदी करो।"

जय ने ममता को खींचकर एक थप्पड़ मारा। फिर बोला," साली आज रात देखो तुम मां बेटी को कैसे कैसे चोदेंगे। कविता के सामने तुमको बहुत बेइज़्ज़त कर करके चोदेंगे।" तभी कविता बोली," जय यही तो हमलोग चाहते हैं, की हम दोनों का शिकार कर लो। आज की रात हम हिरणियां हैं और तुम शेर हो।"
जय- आज की रात बहुत लंबी होगी तुम दोनों के लिए।" जय ने कविता के चूतड़ पर थप्पड़ बजाते हुए कहा।
ममता- बेटा सैयांजी हमको मूत लगा हुआ है, हम मूत के आते हैं।
 

Rakesh1999

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जय- नहीं जब तक हमको खुश नहीं करती, तब तक तुम दोनों इस कमरे से निकलोगी नहीं। और जय ने ममता की बुर पर मुँह लगा दिया। जय के होंठ ममता की हल्की झाँटों से भरे बुर से चिपके थे। वो लपालप अपनी जीभ से ममता की सावँली बुर को किसी गंदी फर्श की तरह साफ कर रहा था।



ममता मचल उठी। एक तो बुर के दाने पर जीभ का एहसास आए दूसरी ओर गाँड़ में बट प्लग। ममता की बुर पानी का झरना बहा रही थी। उसकी छितराई हुई बुर जय के जीभ की गर्माहट पाकर माँ की तरह पिघल रही थी। उधर कविता अपनी बुर फैलाये ममता के मुंह के करीब बैठी थी। तभी ममता के मुंह के सामने कविता अपनी बुर ले गयी और उसके होंठों से बुर चिपका दिया। ममता बिना एक पल देरी कियर समझ गयी, और बुर को चाटने लगी। अब कविता की बुर ममता चाट रही थी और ममता की बुर जय। तभी जय ने अपना लण्ड कविता के मुंह के पास ले आया। तीनो त्रिभुज आकार में लेटे थे।

अब कविता जय के लण्ड को चूस रही थी। इस तरह तीनो एक दूसरे के यौनांगों से मुख मैथुन कर रहे थे। तीनों दुनिया से बेखबर अपने में ही लगे हुए थे। फिर जय ने थोड़ी देर बाद पोजीशन बदली और इस बार ममता जय के लण्ड को चूसने लगी और जय कविता के बुर को। उधार कविता ममता की बुर को चूसने लगी। कोई आधे घंटे तक तीनों ऐसे ही कर रहे थे। कुछ देर बाद तीनों अलग हुए। कविता ने जय को लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई। वो अपना बुर जय को दिखाते हुए बोली," अपनी जवान बीवी की बुर को चूसोगे, बहुत रस है इसमें।
जय- अरे हमारी रानी, तुम्हारे बुर को निचोड़कर पी जाएंगे पहले पास तो आ। अपना साया उठा, रंडी की बच्ची।


कविता कामुक हंसी भरकर बोली," रंडी की बच्ची रंडी ही तो होगी। देखो हमारी रंडी माँ को इसी बिस्तर पर अपनी बेटी के साथ सौतन का रिश्ता जोड़ ली है, वो भी अपने बेटे के लिए ही। हाँ, हम दोनों माँ बेटी रंडी ही तो है। इस घर की रंडी, तुम्हारी रंडी। अब अपनी रंडियों की जमकर ठुकाई करो जय।"
जय ने देख ममता भी मुस्कुरा रही थी। जय ने ममता और कविता को एक दूसरे पर लिटा दिया। दोनों का बुर चिपका हुआ था। जय दोनों के बुर को चूसने लगा। उधर वो दोनों आपस मे चूम रही थी।

दोनों की चुच्चियां आपस में रगड़ खा रही थी।दोनों बुर चूसे जाने से बेहद कामुक हो चुकी थी। एक दूसरे को जंगली बिल्लियों की तरह चूम रही थी। जय के इस तरह चूसे जाने से दोनों अब तरप उठी। ममता को फिर जय ने अपने लण्ड पर बैठने को कहा। कविता उसे उठाकर जय के लण्ड पर बिठाई। ममता अपने साये को पकड़े हुए बैठ गयी। जय के इशारे को पाते ही, लण्ड बुर में घुसाए उछलने लगी। बुर में लण्ड घुसते ही मानो प्यासे को पानी मिल गया हो।

ममता की आंखें कामुकता से ओत प्रोत होकर, अपने आप बंद हो गयी। जय माँ के चुच्चियों को कसके पकड़े हुए था। कविता वहीं अपनी माँ को चुदने में मदद कर रही थी। लण्ड के बुर में घुसने से सबसे ज़्यादा राहत जय को मिली वो पागल हो गया और नीचे से उछल कर अपनी माँ को चोदने लगा।
 

Rakesh1999

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कविता- वाह हमारे मादरचोद भाई। चोदो माँ को। इसको सजा दो की ये अब तक इस लण्ड को छोड़ दूसरे मर्द के साथ क्यों चुद रही थी। तुम इसके मालिक हो, और ये तुम्हारी औरत। एक मर्द को अपनी औरत को काबू में रखना चाहिए। इस बेटाचोद माँ को बताओ कि, अबसे ये तुम्हारी मिल्कियत है। ये रंडी अबसे सिर्फ तुम्हारा बिस्तर गरम करेगी।"


ममता चुदते हुए बोली," हाय, आआहह हहहह ठहम्ममम्म उफ़्फ़फ़ कितनी गंदी गंदी बातें बोल रही हो। हमको शर्म आ रही है।"
कविता- वाह रे छिनाल माँ, बेटी के सामने सगे बेटे से चुदवाते हुए शर्म नही आती।
जय- सब तुम्हारे जैसे रंडी थोड़े ही होती है दीदी। आखिर माँ तो माँ होती है, इसको रंडियों की तरह चुदवाने में शर्म तो आएगी ही। तुम अपनी मस्त चुच्ची हमारे मुंह के पास लाओ। चोदेंगे भी और पियेंगे भी।
कविता ने वैसा ही किया। थोड़ी ही देर में ममता की बुर लण्ड को पकड़कर अंदर खींचने लगी। वो झड़ने को हुई तो जय ने लण्ड बाहर निकाल लिया, और बोला," आज तुमको जल्दी झड़ने नहीं देंगे। ममता बैठे बैठे ही मचल रही थी। उसके बदन पर बहुत पसीना था। फिर बेचारी उठी और पानी पिया। बिस्तर से उतरने लगी, तो जय ने उसे पकड़ लिया। ममता- हमको जाने दो ज़ोर से मूत लगा है। "

जय- तुम कहीं नहीं जाओगी, यहीं बैठोगी।
ममता- बिस्तर पर ही मूत देंगे, फिर समझना।
जय- तुम ऐसा नहीं करोगी हम जानते हैं। और ममता की बुर को पकड़ के मसल दिया।
उधर कविता जय के लण्ड से चिपके अपनी माँ के मधुर रस को चूस रही थी। जय का लण्ड अभी भी तना हुआ था। कविता लण्ड को बड़े गौर से देख रही थी। जैसे मन में उसकी तस्वीर बना रही हो। उधर जय ममता के बुर को पकड़ लगातार छेड़ रहा था। ममता कभी हंसती, तो कभी बेचैन हो उठती पर जय उसे कहीं जाने नही दिया। बल्कि ममता के बुर पर तो उसने 2 4 थप्पड़ जड़ दिए। तभी ममता अपने को किसी तरह छुड़ा ली और उतरकर दरवाज़े की ओर भागी। उसकी चुच्चियाँ लगातार हिल रही थी। उनका डोलना मस्त लग रहा था। साया कमर में फंसा था, तो गाँड़ भी पूरी नंगी थी। चूतड़ों का दोलन आंदोलन दौड़ने से और भी कामुक हो गया था।

जय भी झट से उठ गया और ममता को पकड़ लिया। फिर उसे वापस बिस्तर पर ले आया। ममता उससे मिन्नत करती रही, पर उसने एक न सुनी।
जय ने ममता के नंगे चूतड़ों पर कई थप्पड़ लगा दिए। ममता की कामुक आँहें पूरे कमरे में गूंज रही थी। तभी जय ने कविता को ममता के ऊपर लिटा दिया और कविता की लसलसी बुर में लण्ड पेल दिया। कविता बुर में घुसे लण्ड के एहसास से सीत्कार उठी।

जय- क्या हुआ दीदी, ऐसे सिसिया क्यों रही है?
कविता- ये लण्ड घुसने का एहसास है, हमारे भैया सैयांजी। जिस तरह प्यासे को पानी मिल जाता है, उसी तरह बुर को लण्ड मिलने से मन तृप्त हो जाता है। अब चोदिये अपनी पत्नी को।
जय लण्ड और अंदर पेलते हुए बोला," ये तो हमारा काम है। तुम जैसी खूबसूरत पत्नियों को बिस्तर में खूब चोदना है।
 

Rakesh1999

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जय ने कविता के बाल पकड़ लिए, और जोर जोर से चुदाई करने लगा। कविता ने उसे बिल्कुल नही रोका। वैसे भी शेर अब शिकार का मज़ा ले रहा था। जय कविता के बुर से लण्ड निकालता और फिर घुसा देता। इसी तरह ताबड़तोड़ चोदे जा रहा था। ममता नीचे तड़प रही थी। जय ने उसे चिढ़ाने के लिए बुर में चिकोटी काट लिया। उसे बड़ा मजा आ रहा था, ममता को देखने में। उधर कविता भी गाँड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही थी।

थोड़ी देर में बेचारी कविता भी झड़ने लगी। तो जय ने उसके साथ भी वही किया जो ममता के साथ किया था। दोनों माँ बेटी को किनारे लाकर छोड़ दिया था। दोनों ही बेहद मचल रही थी। कविता के बाल पकड़के उसने उसे खींचकर अपने लण्ड को उसके मुंह पर रगड़ने लगा। कविता भी उसके लण्ड को पकड़े पूरे चेहरे पर पटक रही थी। जय ने ममता की ओर देखा, ममता जैसे सांसें रोके लेटी थी। जय," कविता दीदी ये लण्ड को माँ की बुर में घुसा दो।" कविता एक आज्ञाकारी पत्नी की तरह वैसे ही किया। जय ने लण्ड घुसाया तो ममता की बुर से थोड़ा पेशाब निकल गया। जय को ये देख बड़ा मजा आया और फिर ममता की चुदाई शुरू कर दिया।


जय ममता के चुच्चियों को अपने पंजों से पकड़ मसल रहा था। ममता का साया उसके कमर में फंसा था। जय अपनी जन्मस्थली को अपने लण्ड से कुटाई कर रहा था। ममता की बुर अपने बेटे के कड़े लण्ड की चुदाई से अब तक दो बार चुद चुकी थी। पर जैसे ही वो झड़ने को होती जय ममता की बुर पर थप्पड़ बरसा देता था। ताकि वो झड़े ना। इस बार भी जय ने वही किया। जैसे ही बेचारी झरने को हुई, जय लण्ड निकाल लिया और ममता की बुर पर लगातार पांच छः थप्पड़ मार दिया। ममता तीसरी बार किनारे लगने से रुक गयी। ऊपर से अब उसे पेशाब भी बहुत जोर से आ रही थी। जय ने दोनों को अब तक पेशाब भी नहीं करने दिया था। जय ने कविता को अपने करीब खींचा और उसके गाँड़ में लण्ड घुसा दिया।

कविता भी कुतिया बनी हुई थी। वो अपने गाँड़ के छेद में जय के खड़े लण्ड को प्रवेश करता महसूस कर रही थी। जय ने ममता के बाल पकड़ उसे कहा," कितना, मज़ा आ रहा है, अपनी माँ और बहन को बिस्तर में रंडी बनाकर चोदने में। माँ, अपना मुंह कविता दीदी के गाँड़ के पास टिकाओ और हमारे लण्ड को लेने के लिए तैयार रहो।"

ममता ने वैसे ही किया। जय पर औषधि बहुत ही भारी थी। वो पिछले तीन घंटों से लगातार चोदे जा रहा था।
ममता- बेटा, हमको मूतने जाने दो ना। तुम ना तो झड़ने दे रहे हो, और ना मूतने दे रहे हो। ऊपर से इतना चोद रहे हो। आज हम मां बेटी शाम से पानी पिये जा रहे हैं। हमारे अंदर झील बन गया है। हमको मूतने दो, हम जल्दी आ जाएंगे।

जय- माँ कैसा लग रहा है तड़पना, हम ऐसे ही तड़प रहे थे। बोलकर उसने ममता के मुंह पर थूक दिया। ममता के गाल, नाक और होंठ पर थूक चिपक गया। ममता को ये बुरा नहीं बल्कि उत्तेजनावर्धक लगा, की कोई मर्द उसे इस हद तक अपने काबू में रख सकता है।
ममता- बड़े बेरहम हो गए हैं आप बेटा सैयांजी।
 

Rakesh1999

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ममता अपनी बुर को सहलाते हुए, मुंह खोल वहीं बैठ गयी। कविता की गाँड़ बहुत खुल चुकी थी। ममता उसकी गाँड़ के चारो ओर अपनी जीभ फिरा रही थी। जय उसको देख हंस रहा था। कविता अपने चूतड़ पकड़ चुदवाने में मस्त थी। जय ने लण्ड निकाल ममता के मुंह में दे दिया। ममता लण्ड पर लगी कविता के गाँड़ का चिपचिपा पदार्थ अपनी जीभ पर महसूस कर रही थी। कविता की गाँड़ का छेद चूहे की बिल की तरह खुला था।

कुछ पल लण्ड चुसवाने के बाद जय ने कविता की गाँड़ में लण्ड वापस पेल दिया। इस बार ममता ने जय के पैर पकड़ लिए। और बोली," बेटा, अब जाने दो, अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है।" जय ने ममता के गाल को थपथपाते हुए कहा," बस तेरी बेटी की गाँड़ चोद ही लिए हैं, फिर हम भी मूतने जाएंगे, तुम्हारे साथ। थोड़ा रुको ना।" ममता ने जय को जल्दी झड़वाने के लिए, उसके आंड़ को मुंह में रखकर चूसने लगी।

कविता की किसी हुई गाँड़ और ममता के मुंह की गर्माहट से जय अब पिघलने लगा। और गाँड़ के अंदर ही मूठ गिरा दिया। जय लण्ड निकालकर ममता के मुंह मे दे दिया। ममता उसे चूसकर साफ करने लगी। जय के लण्ड पर लण्ड के रस और कविता की गाँड़ के रस का अद्भुत मिश्रण था। उधर कविता की गाँड़ से लण्ड का रस चूने लगा। कविता उसे अपने हथेली पर इकठ्ठा कर चाटने लगी। जय आँखे बंद कर इस चरम सुख का।आनंद ले रहा था। थोड़ी देर बाद सब नार्मल हुआ तो, जय बिस्तर से उतरा और ममता को अपनी गोद में उठा लिया और उसे बाथरूम ले गया।

ममता अपने बाहों का हार उसे पहनाए हुए थे। कविता वहीं बिस्तर पर लेटी रही। ममता को बाथरूम में जय ले घुसा, तो ममता बोली," अब तुम उतारोगे तब तो हम मूतेंगे।" जय मुस्कुराया और उसे उतार दिया। ममता ने फिर कहा," तुम यहीं खड़े रहोगे, तो हम पेशाब कैसे करेंगे। बाहर जाओ ना।"


जय ममता को अपने पास खींच लिया और उसकी आँखों में देखकर बोला," अरे अब कैसा शर्म हमसे। पति को तो सब देखना है।" ममता हंस पड़ी। ठीक है देखो जो देखना है, हमको छोड़ो।" जय ने उसे छोड़ दिया ममता लैट्रिन की शीट पर गयी और साया उठाया फिर बैठ गयी। उसकी बुर से सीटी की आवाज़ के साथ, मूत की धार निकलने लगी।

जय को ये देख बहुत अच्छा लग रहा था।ममता करीब 3 मिनट तक मूती। उसके चेहरे पर बहती मूत की धार के साथ, सुकून की मुस्कुराहट आ रही थी। अचानक उसके चेहरे पर गरम पानी सा गिरता महसूस हुआ।
 

Rakesh1999

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कहानी जारी रहेगी।अगला अपडेट जल्दी ही दूँगा।कहानी के बारे में अपने विचार अवश्य दें।थैंक्स
 

Rakesh1999

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ममता का पूरा चेहरा और बाल भीग चुके थे। उसके कंधों और चुच्चियों से जय का गरमा गरम मूत बह रहा था। ममता की आंखें अभी बंद थी। उसने चेहरा अलग हटाया और आंखों को अपने हाथों से पोछा। फिर कनखियों से देखा तो जय अपना लण्ड हाथ मे पकड़कर उसके ऊपर मूत रहा था। वो मुस्कुरा रहा था।

तभी ममता बोली," जय ये क्या कर दिया तुमने, हमही पर मूत दिए। हमको पेशाब करवाने लाये थे और तुम हम पर पेशाब कर रहे हो। अरे हटाओ ना लण्ड अपना, हम पर मूतने में तुमको मज़ा आ रहा है। देखो हम पूरे गीले हो गए हैं।"
जय ने देखा कि ममता का मुंह खुला हुआ है तो, उसके मुंह में लण्ड से निशाना लगाकर ममता के मुँह में मूतने लगा। जय की मूत की पीली धार सीधा ममता की जीभ से टकराई। ममता का मुंह तुरंत मूत से भर गया, उसने उसे उगल दिया। जय ये सब देख हंसता रहा, फिर बोला," अरे इसीमें तो मज़ा आता है, हमको।

तुम अभी बहुत अच्छी लग रही हो माँ। हमारे ख्याल से हर औरत को ये ज़रूर करना चाहिए। अपने मर्द के मूत/ पेशाब से नहाना चाहिए और उसका मूत भी अमृत समझकर पीना चाहिए। ये औरत के समर्पण को दर्शाता है। हां, भले ही थोड़ा सा अजीब लग सकता है, और पहली बार में ये सब कर भी नहीं सकती। पर जिनकी आत्माएं एक हो जाये, उनके लिए ये तो कुछ भी नहीं। और अपनी पत्नी से तो इसकी कामना कर ही सकते हैं।

सेक्स का ये एक घिनौना और गंदा रूप है, पर तुमको इसमें खुदको ढालना होगा। तुमको तो इसके भी आगे बढ़ना है। तुमको पूरी निर्लज्ज होना पड़ेगा और इन चीज़ों के परहेज से बचना होगा।"
जय के लण्ड से पेशाब गिरना बंद हो चुका था। ममता खड़ी हो गयी और अपने चेहरे को पोछने के लिए आगे बढ़ने लगी। उसके बाल गीले हो चुके थे, चेहरा भी गीला था। चुचकों पर मूत की बूंदे मोतियों की तरह लटककर चू रही थी। उसका साया भी थोड़ा सा गीला हो चुका था।
जय ने उसे देखा और अपनी बांहों में पकड़ लिया। ममता बोली," जय हमको छोड़ो ना, धोने दो देखो पूरा पेशाब से गीला कर दिए हो। हमको बहुत शर्म आ रहा है। पूरा बदबू है।"
 

Rakesh1999

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ममता- तुम कैसी बात करते हो जय? हम पेशाब कैसे पी सकते हैं। छी बहुत गंदा है। तुम हमारा मूत पी सकते हो क्या?
जय- हम तो तुम्हारा हर चीज़ पी जाएंगे। मूत क्या चीज़ है।
ममता बांहों में कसमसाती हुई," झूठ, तुम पी नही पाओगे। बहुत गंदा स्वाद होता है।"
जय- और अगर पी लिए तो?
ममता- तो हम भी तुम्हारा पेशाब बेहिचक पियेंगे।
जय- पक्का ना?
ममता- पक्का।
जय- तुमको बदबू आ रहा है। एक मिनट रुको।" जय ने ममता का साया उठाया और मूत से गीले बुर को पूरे मुंह में भर लिया। और जीभ से पूरे बुर को चाटा। ममता की खट्टी और खारे पेशाब का स्वाद उसके मुंह में समा गया। पर जय को वो चासनी जैसी लगी। वो चाट रहा था और ममता इस पूरे प्रक्रिया के दौरान उसको बोले जा रही थी," जय ये क्या कर रहे हो? गंदा है वो , हमारा मूत क्यों पी रहे हो? हालांकि वो ये बोल रही थी। पर उसे जय के जीभ से टकराते बुर के दाने का एहसास पागल कर रहा था।

इस वजह से उसके बुर से और मूत निकल गया। जय उसे बिना किसी झिझक के पी गया। वो जय की ओर देखी। जय और उसकी आंखें टकराई। फिर जय ने उसको छोड़ा और कहा," माँ, तुम्हारी कोई भी चीज़ गंदी नहीं। ये तो तुम्हारे अंदर था। हम तुमको प्यार करते हैं।"
ममता उसे देखी तो उसे एहसास हुआ कि जय उसको कितना चाहता है, की उसके मूत को भी पानी की ही तरह पी गया। ममता ने उसे चूम लिया और बोली," बेटा सैयांजी, तुम तो बहुत ही अच्छे हो, पर हम कैसे हैं कि तुम्हारा दिल दुखाये। कैसा लगा अपनी माँ की मूत का स्वाद?
जय- मस्त बिल्कुल चासनी थी।"
ममता- चल हट.... वैसे तुम्हारे मूत का स्वाद तो खारा था।
जय- कोई बात नहीं, कुछ दिन में तुमको इसकी आदत हो जाएगी। बाद में खूब पियोगी।

तभी पीछे से आवाज़ आई" भाई, हमारे मूत का स्वाद चखना चाहोगे, हमको मूत लगी है।" जय और ममता आलिंगन में थे दोनों ने देखा, तो कविता मुस्कुराते हुए खड़ी थी। ममता के सामने ही वो बेबाक होकर बोली थी। जय ने कहा," तुम्हारी पैंटी से तो तुम्हारे बुर और मूत का स्वाद खूब चखा है, पर आज तुम्हारा ताज़ा पेशाब पिऊंगा। आ जाओ।" कविता उसके पास आ गयी। जय घुटनो पर बैठ गया और कविता अपना साया उठाके बुर को उसके मुंह पर सेट की। ममता वहीं पास में खड़ी थी। कविता के बुर से सिटी की तरह आवाज़ गुनगुनायी फिर उसके मूत्रद्वार से पेशाब की पतली धार निकली। वो सीधा जय के नाक से टकराई।
 

Rakesh1999

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कविता फिर बुर को पीछे की तो धार उसके मुंह मे गिरने लगी। कविता की आंखें बंद थी। वो भी बहुत देर से नहीं मूती थी। जय उसके मूत को बेहिचक पीने लगा। कमरे में भीगी फुआर की महक आ रही थी। जो कि कविता की मूत की थी। कोई तीन चार मिनट मूतने के बाद कविता ने आंखें खोली तो देखा, जय का सीना, पेट, जाँघे और लण्ड सब गीला हो चुका है। जय ने उसका बहुत मूत पिया भी था। जय उठा तो उसने कविता से कहा," दीदी तुम मां के बदन को चाटो, अभी अभी हम मां को मूत से नहलाये हैं।" ममता बोल उठी," नहीं अभी नहीं बाद में।" शायद उसको शर्म आ रही थी।

कविता," जय मां तो शर्मा रही है। माँ अब हमको इसकी आदत लगा लेनी चाहिए। क्योंकि ये सब तो चलता ही रहेगा।" ये बोलकर कविता ममता को पकड़ उसको चूमने लगी। दोनों के होंठ एक दूसरे में उलझ गए। ममता के पूरे बदन से जय के पेशाब की गंध आ रही थी। उसके मुंह से वही गंध कविता खूब मज़े से सूंघते हुए उसको चाट रही थी। मूत का खारा स्वाद उसकी जुबान पर घर कर गया। फिर वो ममता के पूरे चेहरे को चाटने लगी। इसके बाद कविता ममता के गर्दन को चूमते हुए उसकी उन्नत चुच्चियों को चूसने लगी। पीली पेशाब की बूंदे उसके प्यासे होंठों पर ओस की बूंदों की तरह गीला कर रही थी। ममता उसे रोक नहीं रही थी, बल्कि और उत्तेजित हो चुकी थी। दोनों एक दूसरे को जकड़े हुए थी। जय उन दोनों को देखकर खुश और उत्तेजित होने लगा।
जय- तुमदोनों को ऐसे देख बहुत अच्छा लगता है।" जय अपना लण्ड पकड़कर बोला," अभी और पेशाब है, पियोगी।"
कविता जय की ओर देखकर बोली," तुम्हारा पेशाब हमारे लिए अमृत ही है। तुम भी तो हमारा पेशाब पिये हो। तो हमदोनों भी पियेंगे। क्यों माँ??
ममता- अभी अभी तो शर्त हारे हैं। पूरा तो करना पड़ेगा? जय ने हमारा मूत पिया है अब हमको भी बेहिचक इसका मूत पीकर इसकी हर इच्छा पूरी करनी होगी।" ये कहते हुए वो दोनों घुटनों पर बैठ गयी। वो दोनों मुस्कुरा रही थी। दोनों उसके सामने अपना मुंह खोलके इंतज़ार करने लगी। जय उन दोनों को देख हंसा फिर बोला," दोनों चिपकी रही तो पिलाने में आसानी होगी।" जय के लण्ड से मूत की धार फूट पड़ी। जय उन दोनों के मुंह पर मूत की पीली धार बरसाने लगा। दोनों औरतें चेहरे पर गरम मूत की धार के एहसास से " ऊऊऊ" बोल उठी। जय," बताओ कैसा लग रहा है दीदी?
कविता अपने चेहरे से मुंह मे गिरते पेशाब का स्वाद लेते हुए बोली," खट्टा और खारा है, नमकीन है। अभी तो इतना अच्छा नहीं लग रहा है। पीते पीते आदत लग जायेगा। मूठ भी तो पीते पीते ही अच्छा लगता है।" बोलते बोलते उसे उबकाई आ गयी। जय उसे देखकर हँसने लगा।
 
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