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करीब एक घंटे बाद सब लंच पर मिले। कविता ने टॉप और डेनिम शॉर्ट्स पहना हुआ था। जबकि माया और ममता साड़ी में थी। तीनों मस्त लग रही थी। जय और सत्य बस अपनी किस्मत पर खुश थे। सबने खाना खाया और उस दिन कहीं बाहर का ट्रिप नहीं था, तो सब वापिस कमरों में चले गए। कमरे में आकर सब सो गए, क्योंकि रात में सब बहुत व्यस्त होने वाले थे।
एक ओर जहां माया और सत्य एक दूसरे की बांहों में सोए थे, वहीं दूसरी ओर ममता और कविता जय को अपने बीच लेकर सोईं हुई थी। शाम के तकरीबन सात बजे उनकी नींद खुली। अब सब फ्रेश हुए और आपस में बातें करने लगे। ममता बाथरूम में थी। जय और कविता बाहर कॉफ़ी पी रहे थे। कविता उसे देख बोली," जय तुमको कॉफ़ी अच्छी लग रही है?
जय- हां, क्यों अच्छी तो है??
कविता- तुम चाहो तो और अच्छी बन सकती है??
जय- कैसे??
कविता उसके सामने आ गयी और हंसते हुए, अपनी टॉप उतार दी और अपनी नंगी चुच्चियाँ दिखाते हुए बोली," अपनी दीदी की चुच्चियों की चुस्कियां लोगे तो और मज़ा आएगा।"
जय ने उसके शॉर्ट्स पैंटी के साथ जांघों तक कर दिया और बोला," कॉफी के साथ, दीदी के रसीली बुर का नमकीन पानी मिलेगा तो और मज़ा आएगा।" और बुर को उंगलियों से टटोलकर, उसके बुर का पानी चख लिया। कविता तो यही चाहती थी, वो तो बेशर्मों की तरह खुलकर चुदवाने आई थी। उसने खुदको पूरा नंगा कर लिया, फिर जय को अपना बुर फैलाकर दिखाते हुए बोली," बहन की बुर हाज़िर है, अपने चोदू भाई के लिए। यहीं चूसोगे, की हमको उठाके बिस्तर तक ले जाओगे।" जय ने कविता की ओर देखा, कविता की मांग में उसका सिंदूर था, बाल खुले हुए थे और उसके कमर तक लहरा रहे थे। आंखों में चुदने की प्यास, कांपते होंठ उसके छलकते जाम की तरह होंठों का सहारा ढूंढ रहे थे। गले में चुच्ची की गलियों में लटकता चमकता मंगलसूत्र। सुहागन होकर उसका ये रूप जय को पागल कर गया। उसने कविता को अपनी गोद में उठाया, कविता ने उसके चेहरे को पकड़ चूम लिया। जय के हाथ कविता के चूतड़ों पर टिके थे। जय ने बिस्तर पर कविता को पटक दिया और कविता मचलकर उसके गले में बांहे डाले थी। दोनों इस स्थिति में एक दूसरे को देख रहे थे। तभी ममता ने दरवाजा खोला, उसने सामने उन दोनों को देखा, तो देखती रह गयी। दोनों युवा नवविवाहित युगल को देख उसको सुकून मिला। आखिर हनीमून युवा लोगों के लिए है। उसने देखा, कविता बेहद खुश थी। और हो भी क्यों ना, उसके जीवन में शादी का पहला अनुभव था। अब तक तो, वो भी अधेड़ होकर, उनके साथ, खूब मज़े कर रही थी। पर उसे लगा कि ये वक़्त उन दोनों का है। उसने दरवाजा वापिस बंद कर दिया। उसने मन ही मन सोचा, कविता कितनी महान है, अपने भाई के लिए पहले शादी नहीं की, फिर जब शादी कर ली तो अपना सुहाग भी बांट लिया। यहां तक कि सुहागरात की सेज पर, जहां हर लड़की, अकेले ही पति के साथ विवाहित जीवन की पहली रात, गुजारती है, उसपर भी ममता अपनी बेटी के साथ थी। वो तो ये सब पहले भी कर चुकी थी, पर कविता को ये मौका, कभी नहीं मिला, की वो अकेले,जय के साथ वक़्त गुजारे। शादी को पूरे 15 दिन हो चुके थे। ममता की आंखों में आंसू आ गए, उसके मुंह से बस इतना निकला," हमरी बच्ची.......जुग जुग जियो।"
एक ओर जहां माया और सत्य एक दूसरे की बांहों में सोए थे, वहीं दूसरी ओर ममता और कविता जय को अपने बीच लेकर सोईं हुई थी। शाम के तकरीबन सात बजे उनकी नींद खुली। अब सब फ्रेश हुए और आपस में बातें करने लगे। ममता बाथरूम में थी। जय और कविता बाहर कॉफ़ी पी रहे थे। कविता उसे देख बोली," जय तुमको कॉफ़ी अच्छी लग रही है?
जय- हां, क्यों अच्छी तो है??
कविता- तुम चाहो तो और अच्छी बन सकती है??
जय- कैसे??
कविता उसके सामने आ गयी और हंसते हुए, अपनी टॉप उतार दी और अपनी नंगी चुच्चियाँ दिखाते हुए बोली," अपनी दीदी की चुच्चियों की चुस्कियां लोगे तो और मज़ा आएगा।"
जय ने उसके शॉर्ट्स पैंटी के साथ जांघों तक कर दिया और बोला," कॉफी के साथ, दीदी के रसीली बुर का नमकीन पानी मिलेगा तो और मज़ा आएगा।" और बुर को उंगलियों से टटोलकर, उसके बुर का पानी चख लिया। कविता तो यही चाहती थी, वो तो बेशर्मों की तरह खुलकर चुदवाने आई थी। उसने खुदको पूरा नंगा कर लिया, फिर जय को अपना बुर फैलाकर दिखाते हुए बोली," बहन की बुर हाज़िर है, अपने चोदू भाई के लिए। यहीं चूसोगे, की हमको उठाके बिस्तर तक ले जाओगे।" जय ने कविता की ओर देखा, कविता की मांग में उसका सिंदूर था, बाल खुले हुए थे और उसके कमर तक लहरा रहे थे। आंखों में चुदने की प्यास, कांपते होंठ उसके छलकते जाम की तरह होंठों का सहारा ढूंढ रहे थे। गले में चुच्ची की गलियों में लटकता चमकता मंगलसूत्र। सुहागन होकर उसका ये रूप जय को पागल कर गया। उसने कविता को अपनी गोद में उठाया, कविता ने उसके चेहरे को पकड़ चूम लिया। जय के हाथ कविता के चूतड़ों पर टिके थे। जय ने बिस्तर पर कविता को पटक दिया और कविता मचलकर उसके गले में बांहे डाले थी। दोनों इस स्थिति में एक दूसरे को देख रहे थे। तभी ममता ने दरवाजा खोला, उसने सामने उन दोनों को देखा, तो देखती रह गयी। दोनों युवा नवविवाहित युगल को देख उसको सुकून मिला। आखिर हनीमून युवा लोगों के लिए है। उसने देखा, कविता बेहद खुश थी। और हो भी क्यों ना, उसके जीवन में शादी का पहला अनुभव था। अब तक तो, वो भी अधेड़ होकर, उनके साथ, खूब मज़े कर रही थी। पर उसे लगा कि ये वक़्त उन दोनों का है। उसने दरवाजा वापिस बंद कर दिया। उसने मन ही मन सोचा, कविता कितनी महान है, अपने भाई के लिए पहले शादी नहीं की, फिर जब शादी कर ली तो अपना सुहाग भी बांट लिया। यहां तक कि सुहागरात की सेज पर, जहां हर लड़की, अकेले ही पति के साथ विवाहित जीवन की पहली रात, गुजारती है, उसपर भी ममता अपनी बेटी के साथ थी। वो तो ये सब पहले भी कर चुकी थी, पर कविता को ये मौका, कभी नहीं मिला, की वो अकेले,जय के साथ वक़्त गुजारे। शादी को पूरे 15 दिन हो चुके थे। ममता की आंखों में आंसू आ गए, उसके मुंह से बस इतना निकला," हमरी बच्ची.......जुग जुग जियो।"