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जय ममता के चुच्चियों को देख पागल हो रहा था, तो उधर कविता अपने नन्हे बुर को मसलते हुए अटखेलियां कर रही थी। फिर उन दोनों ने उसे लेटने का इशारा किया। जय पानी के अंदर बैठ लेट गया। उसके लेटने के साथ दोनों, भी पीठ टब के किनारों पर टिका बैठ गयी। जय का सर ममता और पैर कविता की ओर था। उसका सर ममता की चूचियों पर टिक गया। पैर कविता की कोमल जांघों पर। कविता उसके पैर धोने लगी। ममता उसकी ओर कामुकता से देखते हुए, उसकी छाती रगड़ रही थी। जय के हाथ ममता के ममतामयी चूचियों पर शिकंजा कस हुए थे। वो उनमें से दूध निचोड़ने की कोशिश में लगा था। ममता ने बड़े प्यार से अपनी बांयी चुच्ची के चूचक को उसके होंठों के बीच दे दिए और बोली," बहुत दिन हो गए ने बेटा सैयांजी, माँ का दूध पिये। पीलो बेटा, माँ का दूध। तब तो ताक़त आएगी और दोनों बीवियों को जमकर चोदोगे।" और मुस्कुराने लगी। जय मुंह से चूचक चूसते हुए, हंस पड़ा। ममता भी हंसते हुए, उसकी छाती पीठ सहला रही थी। नीचे कविता उसके तलवे रगड़ रही थी। जिससे उसे हल्की गुदगुदी भी हो रही थी। तीनों का बदन पानी में पूरी तरह भीग चुका था। ममता और कविता की नग्नता पानी में भीगने से और भी कामुक हो चुकी थी। वैसे उनमें कामुकता की कोई कमी नहीं थी, पर पानी में गीले होकर उनके उभार, चुच्चियाँ, गाँड़ और जांघें कामुकता की नई परिभाषा लिख रहे थे। भूरे चूचकों के कड़क होने से पानी की बूंदे मोतियों जैसे उस पर लटकी हुई थी। चुच्ची चूसते हुए वो कविता, की ओर देख रहा था। कविता की जवान कड़क, सुडौल, गोल चुच्चियाँ को इस तरह देख, उसका लण्ड खड़ा होने लगा। कविता इस बात से अंजान, किसी दासी की तरह, अपने छोटे भाई के पैरों को साफ कर रही थी। उधर ममता, अपने बेटे की छाती सहलाते हुए, दूसरे हाथ से उसके बाल भी सहला रही थी। कविता पैरों को साफ करते हुए अब जांघों तक आ पहुंची थी। उसकी नज़र जय के सलामी देते हुए लण्ड, पर पड़ी। वो देख, उसके होंठों पर मुस्कान तैर गयी। पर उसने उसे छुवा नहीं, बल्कि उसकी जांघों को रगड़ते हुए साफ करने लगी।
उधर ममता भी अब जय की पीठ पर अपने कोमल हाथों से सफाई कर रही थी। जय के लिए तो ये किसी राजा के हरम जैसा था। कविता और ममता भी उत्तेजित हो चुकी थी। हालांकि, कविता कुछ देर पहले ही जय से चुदी थी, पर इस माहौल में तो कोई भी कामुक हो जाये। तभी जय उठा और कविता की ओर बढ़ा, वो कविता के चुचकों पर बाज की तरह लपका।
उधर ममता भी अब जय की पीठ पर अपने कोमल हाथों से सफाई कर रही थी। जय के लिए तो ये किसी राजा के हरम जैसा था। कविता और ममता भी उत्तेजित हो चुकी थी। हालांकि, कविता कुछ देर पहले ही जय से चुदी थी, पर इस माहौल में तो कोई भी कामुक हो जाये। तभी जय उठा और कविता की ओर बढ़ा, वो कविता के चुचकों पर बाज की तरह लपका।