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Incest क्या ये गलत है ? (completed)

Rakesh1999

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Agla update kal dungaa.aaj thoda busy hu.thanks
 

Rakesh1999

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आखिर में दोनों घर पहुंच ही गए।जय ने जबतक ऑटोवाले को पैसे दिए तब तक कविता ने दरवाज़ा खोला और अंदर चली गयी। जय दरवाज़े पर पहुंचा तो कविता उसकी तरफ देखके मुस्कुरा रही थी। जय उसके पीछे आया तब तक कविता बाथरूम में घुस चुकी थी, और दरवाज़ा बंद करने लगी। जय दरवाज़ा के पास दौड़ के पहुंचा पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जय ने कविता को आवाज़ लगाई, पर कविता कुछ नहीं बोली। जय कविता के जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था। कविता ने फिर कहा, जय सब्र करो, सब्र का फल बहुत मीठा होता है।
जय बोला- अब सब्र नही हो रहा है दीदी।
कविता बोली - जाओ घर का सामान ले आओ लिस्ट किचन में टंगी है। पहले वो काम कर आओ। हम तुम्हारा और हमारा आज का दिन यादगार बना देंगे।जब तुम वापिस आओगे तो तुमको तुम्हारी दीदी नहीं , तुम्हारी कविता जानू मिलेगी। एक नए अवतार में।
जय कविता की बात मानकर, लिस्ट लेके बाजार से सामान लाने चला गया। उसने दरवाज़ा बाहर की ओर से बंद कर दिया। जय बाजार की ओर निकल तो रास्ते में उसे एक तरकीब सूझी। उसने सारा सामान बढ़ा के लेने की सोची। ताकि बाद में फिर उसे एक हफ्ते तक बाहर जाने की जरूरत ना पड़े। रास्ते मे उसे एक मेडिकल स्टोर दिखा तो उसने 2 पैकेट कंडोम और वियाग्रा की गोलियां ले ली। जब वो लौट के आया तो कविता अभी तक बाथरूम में ही थी। कविता तभी बाहर निकली, वो इस वक़्त गज़ब ढा रही थी। उसके बदन पे कपड़े के नाम पर एक सफेद तौलिया लिपटा हुआ था। कविता के बाल भीगे हुए थे, आंखों में अपने छोटे भाई में एक मर्द मिल जाने की वजह से एक अजीब कामुकता बसी थी। वो तौलिया उसकी चुचियों को आधा ढके हुए था, यानी ऊपर से आधे खुले थे। चुचियों की ऊपरी अर्ध गोलाइयों उसके यौवन की परिपक्वता की गवाही दे रहे थे।उसकी जांघों का जोर जहां खत्म होता था, वहीं तक तौलिया उसको ढके था। उसकी जाँघे बिल्कुल चिकनी थी।
 

Rakesh1999

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कविता की नज़र जय की ओर गयी, तो देखी की जय पूरे एक हफ्ते का राशन और सब्जी ले आया था। कविता उसके पास आई, वो जय के हाथों से सामान लेकर किचन की ओर जाने लगी। जय अवाक होके उसे देखे ही जा रहा था।जय ने फौरन दरवाज़ा बंद कर दिया। तौलिया भीगकर कविता के चूतड़ों से चिपक गया था, इस वजह से उसकी चूतड़ों का का दिलनुमा आकार साफ पता चल रहा था। उसकी चाल उसके चूतड़ों के हिलने से बहुत ही सेक्सी लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि कविता के बदन पर तौलिया बस उसके चुचियों और गाँड़ की वजह से टिका हुआ था।जय ने कहा - अबसे एक हफ्ते तक हम घर से बाहर नहीं जाएंगे। और पूरी मस्ती करेंगे। कविता मुस्कुराई, बोली, अच्छा जी!
जय ने अपनी जीन्स और टी शर्ट उतारकर सोफे पर फेंक दी। और कविता के पास किचन में घुस गया। उसने कविता को पीछे से पकड़ना चाहा तो कविता मुड़ गयी। उसने कंडोम के पैकेट को निकाला जो जय लाया था। उसने बोला इसे क्यों लाये हो?? जय- ताकि सेफ रहे हम। तुम कहीं ....... अआ.....वो.... जाओ।
कविता- वो .. वो क्या? कि कहीं तुम्हारा बच्चा हमारे पेट में ना आ जाये।
जय- हाँ, वही .. वही। कविता जय के करीब गयी उसके आंखों में आंखे डालकर बोली, जब तक तुम अपने लण्ड का पानी हमारे बुर में नहीं गिराओगे तब तक इसका कोई डर नहीं, तुम्हारे लण्ड का सारा मूठ तो हम पी जाएंगे। और रही इस कंडोम की बात तो हमारे बीच कोई परत नहीं होनी चाहिए और उस पैकेट को फेंक दी। कविता ने हंसकर कहा।




जय ने कविता के गीले बालों पर हाथ फेरा, शैम्पू की खुसबू आ रही थी। जय ने कविता को कमर से पकड़कर अपनी बाहों में ले लिया। कविता के गुलाबी गालों पर वो हाथ फेरने लगा। कविता ने अपने मुलायम गाल से जय के हाथों पर दबाव बनाकर ये जताया कि वो उसके साथ है। जय ने फिर कविता के होंठो को अपनी उंगलियों से छुआ,उसके होंठ कांप रहे थे एक मर्द के एहसास से। कविता की आंखें अनायास बन्द हो गयी। जय ने कविता के आंखों को चूमा और कहा - आंखें खोलो। कविता ने धीरे से अपनी आंखें खोली। फिर जय कविता के होंठों के करीब अपने होंठ लाया और वो कब मिल गए दोनों को पता ही नहीं चला। दोनों इस चुम्मे में खो गए थे। जय कविता के होंठों को कुल्फी की तरह चूस रहा था। कविता उसके होंठो को ठीक वैसे ही चूस रही थी, जैसे कोई बच्चा चॉक्लेट चूसता रहता है। दोनों एक दूसरे के मुंह में जीभ घुसाके चूस रहे थे। जब सांस उखड़ जाती तो कुछ पल थमते फिर होंठों का रसपान करने लगते। कविता की बांहे जय के गर्दन पर जमी हुई थी। दोनों में से कोई दूसरे को छोड़ने को तैयार ही नहीं था। जय ने आखिर इस सिलसिले को तोड़ा और कविता के गर्दन पर चुम्मों की बौछार कर दी।
 

Rakesh1999

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कविता की चुचियाँ तन गयी थी, जो जय के सीने से रगड़ खा रही थी। जय का दाहिना हाथ कविता के दोनों चूतड़ों को बारी बारी से मसल रहा था। जैसे ही जय का हाथ उसके चूतड़ों पर गया कविता ने सहयोग के तौर पर उसके हाथों पर अपने हाथ रख दिया था। जय ये महसूस करके जोश में आ गया। और कविता का तौलिया निकाल दिया।पलक झपकते कविता नंगी हो गयी। कविता ने अपना चेहरा जय के सीने में छुपा लिया। जय ने कविता के चेहरे को सीने से अलग किया, उसके माथे पर एक किस करके बोला, तुमने ही कहा था कि हमारे बीच कोई परत नहीं होनी चाहिए। कविता कुछ नहीं बोली सिर्फ कामुक होकर अपने दोनों हाथ अपने सर के पीछे रख लिया और खुद एक कदम पीछे हटके खड़ी हो गयी। फिर बोली- सही कहा था, अब देखो हमको।
ऊफ़्फ़फ़फ़ ................... क्या दृश्य था वो। कविता एक नर्तकी की मुद्रा में थी। कविता की उन्नत चुचियाँ एक दम कड़ी हो चुकी थी, जो कामुकता की वजह से तनी हुई थी। उसने जान बूझकर अपनी चुचियाँ और बाहर निकाली थी। चुचियों पर हल्के भूरे रंग के निप्पल अंगूर के जैसे लग रहे थे। चुचियों की गोलाइयां एक दम पके बड़े आमों की तरह थी, जो अपने चूसे जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस आमंत्रण को जय ठीक से स्वीकार भी नही कर पाया था कि उसकी नज़र कविता के समतल पेट पर गयी। हल्की चर्बी थी, पर वो उसके कमर और पेट को कामुक बना रहा था। जय ने कविता की नाभि की गहराई अपनी आंखों से नापी, जो कि कविता के पेट का मुख्य आकर्षण था।कविता की नाभि अंडाकार और गहरी थी।
जय ये सब देख ही रहा था कि कविता घूम गयी, दूसरी ओर। ये तो बिल्कुल जय के सपने जैसा था, जिसमे एक औरत पीछे मुड़के खड़ी होती थी। पर वो कभी उसका चेहरा नहीं देख पाया था। उसे अब महसूस हुआ कि वो और कोई नही उसकी बहन ही थी। कविता ने अपने बाल आगे कर लिया।और अपनी नंगी पीठ अपने छोटे भाई को दिखाने लगी। कविता के गोरी होने की वजह से उसकी पीठ में कंधे के पास बड़ा सा तिल साफ दिख रहा था। उसके बाद कविता ने अपनी गाँड़ लहराई। कविता के चूतड़ों की थिरकन बहुत सेक्सी लग रही थी। कविता के चूतड़ों का आकार दिलनुमा था। गाँड़ की दरार बहुत सटीक थी। गाँड़ पर भी दो तिल थे। चूतड़ बिल्कुल तरबूज़ जितने बड़े थे। कविता ने अपने चूतड़ों को अलग किया और फिर छोड़ दिया। वो ऐसा चार पांच बार की। फिर अपने चूतड़ों को पकड़के हिलाने लगी। उसे दबाया और हल्के थप्पड़ मारे। जय ये सब देखते हुए अपना लण्ड रगड़ रहा था। कविता पीछे , मुड़ी और बोली, भाई क्या हुआ तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे। अच्छा नहीं लग रहा है क्या तुमको? अपनी चूतड़ को सहलाते हुए बोली।
 

Rakesh1999

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जय- कोई पागल ही होगा जिसको ये अच्छा ना लगे। दीदी तुम एक दम बढ़िया कर रही हो। क्या शरीर है तुम्हारा। तुमको तो फिल्मों की हीरोइन बनना चाहिए। हम तुम्हारे अंग अंग को पहले जी भरके मन में बसाना चाहते हैं।
कविता- तो फिर देखो लेकिन औरत देखने की नहीं महसूस करने की चीज़ है। आओ हमारे पास और महसूस करो हमको। कविता ने इठलाते हुए कहा।
जय उसके करीब गया और कविता की नंगी पीठ को ऊपर से सहलाते हुए उसकी कमर तक हाथ फेरा। उसकी पीठ पर जो तिल थे, उसे चूमा और एक हाथ कविता की गांड पर दूसरे से कविता की बांयी चूची को थाम लिया। जय ने इसे पहले भी महसूस किया था, पर आज कविता मन से उसका साथ दे रही थी। उसने उसकी गाँड़ और चूची दोनों को खूब मसला। उसके निप्पल को जब वो छेड़ रहा था, तो कविता सीत्कार उठती, इससस्स….........
कविता को पीछे से जकड़े हुए उसने अपना लौड़ा उसकी गाँड़ पर रगड़ने लगा। कविता को अपनी गाँड़ पर अपने छोटे भाई का चुभता लौड़ा बहुत मस्त लग रहा था। उसका एक हाथ उसके लौड़े को अंडरवियर के ऊपर से ही महसूस करने लगा। जय ने कविता को झटके से अपनी ओर घुमा लिया।कविता की गाँड़ की दरार में उसने उंगलिया घुसा दिया। और इधर कविता के अंगूर समान निप्पल्स को मुंह मे रखके चूसने लगा। कविता को अपनी चुचियों को चुसवाने में बड़ा मजा आ रहा था। वो अपनी चूची को उठाके जय के मुंह मे देने लगी। जय उसकी चुचियों को पूरा आनंद से चूस रहा था। कविता- आआआ......... आआहह...... भा...भाई .....चूस.....सो.....। ऊफ़्फ़फ़फ़...... आआहह.... खूब चूसो। बहुततत..... अच्छा लग रहा है।
जय ने उसके आनंद को बनाये रखा, और खूब चूसा। कविता के बुर से पानी लगातार बह रहा था। जय ने उसकी दोनों चुचियों को खूब चूसा। कविता जय के लण्ड को सहला रही थी।
जय ने अपना अंडरवियर उतारना चाहा तो कविता ने उसे रोक दिया। और खुद ही सिंक के पास फर्श पर घुटनो के बल बैठ गयी। जय के लण्ड को अंडरवियर के ऊपर से ही चाटने लगी। उसके लण्ड की खुसबू सूंघ रही थी। जय का अंडरवियर कविता ने गीला कर दिया अपने थूक से।फिर उसने जय के लण्ड को बाहर निकाला अंडरवियर से। जय ने अंडरवियर को फिर निकाल दिया। कविता ने जय के लण्ड को अपने चेहरे पर लगाके उसके साइज को नापा, लगभग पूरा चेहरा की लंबाई कवर हो गया। कविता हंस रही थी, बोली- हमारे चेहरे के बराबर है, तुम्हारा लण्ड।
जय- यही कल रात तुम्हारी चुदाई किया था। और ज़ोर से हंसा। अब खूब चुदोगी इससे।
जय के लण्ड को कविता ने अपने मुंह मे भर लिया। जय का लण्ड चुसाने का ये पहला अनुभव था। कविता ने बिल्कुल वैसे ही चूसना शुरू किया जैसे ब्लू फिल्मों में करते हैं। कविता ने उसके लण्ड को पूरा थूक से नहला दिया। उसका थूक जय के लण्ड से धागों की तरह लटका हुआ था। वो पूरा मन लगाके लण्ड को चाट रही थी।कभी लण्ड के सुपाडे को जीभ से रगड़ती, और चूसने लगती। लण्ड के छेद को जीभ से छेड़ती। फिर लण्ड पर थूककर अपने हाथों से मलती। और फिर लण्ड को मुंह मे भरकर चूसने लगती। कविता चूसते हुए बोली- भाई तुम्हारा लण्ड बहुत मस्त है। एक दम कड़क है, आहहहहह.... हहदहम्ममम्म.... चप..... चप..... उम्म......।
जय कुछ नहीं बोल पा रहा था, उसके मुंह से केवल आआहहहहहहहह…........ऊफ़्फ़फ़फ़...... ओह्हहहहहह...... तुममम्म...... कमाल की लण्डचुस्सकर हो कविताताता.... जानू।
कविता ने फिर जय के लण्ड को पूरा मुंह मे घुसा लिया। और जय को देखती रही। मुंह मे लण्ड होने की वजह से उसके गाल फूल गए थे। और वो तिरछी नज़रो से जय को देख रही थी। कुछ देर वैसे रुकने के बाद उसको उबकाई आयी और पूरा लण्ड बाहर आ गया। लौड़ा पूरा थूक से सन चुका था। कविता की आंखों में इस वजह से आंसू थे और हांफ रही थी। कविता ने जय को देखा और कहा इसे गैगिंग कहते हैं भाई। हम ये खीरे के साथ किए थे, आज लण्ड के साथ कि हूँ।
जय ने जोश में कहा- हाँ, पता है हमको, हम भी इसका फैन हैं, तुम बहुत मस्त कर रही हो, बिल्कुल ब्लू फिल्म की रंडियों की तरह। सॉरी गाली दी।
कविता- चुदाई का मज़ा तो गालियों के साथ ही आता है। हमको कोई एतराज़ नहीं है, जो मन चाहे गाली दो। बोलके कविता ने फिर लण्ड मुंह मे ले लिया।
जय- क्या बात है मेरे मुंह की बात छीन ली, आजसे तू हमारी रंडी है कविता दीदी। दीदी से रंडी बन गयी है।
 

Rakesh1999

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कविता फिर लण्ड चूस रही थी, तब जय ने उसके बालों का गुच्छा बनाके कसके पकड़ लिया, जिससे उसके बाल हल्के खींच रहे थे। तब उसने लण्ड को बाहर निकाल लिया, कविता का मुंह खुला था, जय ने उसके खुले मुंह मे थूक की गेंद बनाके गिराया, जो सीधा उसके मुंह मे गिरा। कविता वो जय को दिखाके पी गयी, और बोली- और थूको , प्लीज और दो, मुंह खोल दी। जय ने फिर वैसे ही किया। इस बार भी कविता ने वही किया।
कविता तुम कितनी बड़ी रंडी हो, हमको विश्वास नहीं हो रहा है कि हमारी शरीफ दीदी के अंदर इतनी बड़ी रंडी रहती है। जय बोलकर अपना लण्ड कविता के मुंह पर रगड़ने लगा। उसके पूरे चेहरे को अपने लण्ड पर लगे थूक से भिगो दिया। कविता को ये बहुत ही उत्तेजक लग रहा था। कुछ देर उसके चेहरे पर ऐसा करने के बाद। उसने कविता को बालों से पकड़कर किचन की दीवार से लगा दिया, जिससे वो पीछे पूरी तरह से चिपक गयी, अब वो और पीछे नहीं जा सकती थी। जय ने कविता के मुंह मे लौड़ा डाल दिया। कविता का मुंह पूरा उसके लौड़े से भर गया। कविता के मुंह को जय बेरहमी से चोदने लगा। जय ठोकर मारता तो उसका आंड कविता के ठुड्ढी और होंठों से टकरा जाते थे। कविता की आंखें बिना पालक झपकाए जय की आंखों को निहार रही थी। गर्मी की वजह से दोनों पसीना पसीना हो चुके थे। पर कोई रुकने का नाम नही ले रहा था। जय लौड़ा निकालता और उसपर लगा थूक कविता के चेहरे पर मल देता। कविता के मुंह से थूक के धागे बन बनके फर्श पर गिर रहे थे। जय- क्यों कविता रंडी दीदी मज़ा आ रहा है, चुदाई में।
कविता सिर्फ हल्का सर हिलाके गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ......... गों गों गों गों करके जवाब दे रही थी।
फिर जय ने कविता को बालों से पकड़े हुए ही उठाया और उसे पकड़के किचन से बाहर ले आया। जय कामुकता से बोला- क्या मस्त रंडी छुपी थी इस घर में और मैं ब्लू फिल्में देखता था। सच मे लड़की में त्रियाचरित्र के गुण होते ही है। साली ऊपर से ढोंग रचती है पवित्र होने का और अंदर से उतनी बड़ी रांड के गुण छुपाये रहती है।
कविता कुछ सोची ये सुनके और हसने लगी, क्या बात बोला तुमने, एक दम सच।
जय कविता को अपने कमरे में ले गया। और उसको बिस्तर पर धकेल दिया।
कविता- अब क्या करोगे हमारे राजा भैया? वो मुस्कुराते हुए कामुकता से बोली। जय- तुम्हारी बुर का स्वाद चखना है। चल अपना पैर फैलाकर बुर को खोल।
कविता- वाह, तुम बुर को चुसोगे, आ जाओ। इस बुर को जूठा कर दो, अभी तक किसीने नहीं चूसा है इसको।
जय ने कविता की टांगों के बीच जगह बनाई और बैठ गया। आज तो दिन में सब खुल्लम खुल्ला हो रहा था। उसने बुर के करीब आके उसको पहले सूँघा। सूंघने से उसमे बुर की सौंधी सी खुसबू आ रही थी। कविता की बुर गीली हो चुकी थी। उसमें से लसलसा पदार्थ बह रहा था, जो कि बुर को चिकना बना रही थी। बुर की दोनों फाँक को कविता ने अलग कर रखा था। अंदर सब गुलाबी गुलाबी था। फैलाने से बुर की छेद हल्की दिखाई दे रही थी। उसने बुर के ऊपर थूक दिया और उसपर खूब माल दिया। उसने करीब 5 6 बार थूका। फिर बुर की चुसाई में लग गया। उसने जीभ से बुर की लंबी चिराई को सहलाना शुरू किया। और अपनी दांयी हाथ की मध्य उंगली उसकी बुर में घुसा दी।
कविता चिहुंक उठी। ऊफ़्फ़फ़फ़ ऊफ़्फ़फ़फ़,............ आआहह, ऊईईईई, आआहह.... आऊऊऊऊऊ। जय बहुत अच्छा लग रहा है। आआहह उसके हाथ जय के सर के पीछे थे, जो जय को बुर की तरफ लगातार धकेल रहे थे।
 

Rakesh1999

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जय तो कविता की रसीली बुर चूसने में तल्लीन था। जय के मुंह से केवल लप लप लप लप लप .......लुप लुप लुप...... सुनाई दे रहा था।
कविता कामुकता से लबरेज़ अब बकते जा रही थी- जय और चूसो खूब .... आआहह ऐसे ही.....ऊफ़्फ़फ़फ़..... ऊउईईई।जय की उंगलियां उसके बुर की गहराई में उतार रही थी। जय कभी उसके बुर के दाने को चूसता, कभी दांतो से हल्का काट लेता। ऐसा करके वो कविता को चरम सुख की ओर ले जा रहा था। वो बुर को पूरा मुंह मे भरके लपलपाती जीभ से चाट रहा था। तभी कविता ने उसके सर को अपनी जांघों के बीच जकड़ लिया, और दोनों हाथों से उसके सर को बुर पर धकेलने लगी। एक चीख आईईईईईईईईई, के साथ, वो फिर निढाल हो गयी।
कविता ने अपने भाई को अपने बांहों में भर लिया । जय ने बोला- बिना लण्ड लिए ही झड़ गयी।
कविता- उसका टाइम भी आएगा भाई, सब्र करो। हम रात के लिए कुछ तो बचाके रखे।
जय- फिर इसे कैसे मनाऐं ? लण्ड की ओर इशारा करके बोला।
कविता- इसका पूरा रस बचाके रखो। अब से वो हमारा है। रात को इसको हम मनाएंगे। जय के लण्ड और आंड को सहलाते हुए बोली। उसके माथे को चूमी और उसका सर अपनी चुचियों में छुपा लिया।
 

Rakesh1999

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कविता और जय यूँही लेटे हुए सो गए। तब शाम के करीब 5 बज रहे थे। जय कविता के चुच्चीयों पर सर रखके सोया था। कविता की चुच्चियाँ अभी भी तनी हुई थी। जय का सर दोनों चुच्चीयों के बीच में था। कविता का दाहिना हाथ उसके सर पर था। जय का दाहिना हाथ कविता के बुर पर रखा था। जय के मुंह और चेहरे पर कविता की बुर के रस चिपके हुए थे, उसके मुंह मे कविता के बुर की महक आ रही थी। कविता का मुंह खुला हुआ था। उसके बाल बिखरे हुए थे, जय ने उसके बालों को उसकी मुंह की चुदाई के लिए हैंडल की तरह इस्तेमाल जो किया था। जय का लण्ड अभी थोड़ा शांत था, हालांकि जय ने अभी तक अपने लण्ड का रस नहीं निकाला था। उसके आंड में वीर्य कुलबुला रहे थे। दोनों बिहारी भाई बहन हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली में एक नया इतिहास लिख रहे थे। एक दूसरे पर नंगे परे भाई बहन नींद की गहराइयों में सोए हुए थे, कि तभी कविता के मोबाइल की घंटी बजी जो कि बाहर हॉल में सोफे पर पड़ी थी। कविता की नींद खुली, लेकिन जय अभी भी सो रहा था। कविता ने जय की टेबल पर रखी उसकी रिस्ट वॉच में मिलमिलाती आंखों से टाइम देखा तो शाम के सात बजे चुके थे। उसने जय को देखा और उसके हाथ को अपने बुर से हटाया। फिर उसके सर को उसके आहिस्ते से हटाया, तो जय करवट मारके दूसरी साइड सो गया। कविता बिस्तर से उठी, उसके कोई भी कपड़े वहां नहीं थे। जय का तौलिया था, जो वो लपेट के बाहर आयी। उसने मोबाइल उठाया तब तक फ़ोन कट चुका था। उसने देखा कि उसकी माँ का फोन था। कविता अपने फोन से जब तक डायल करती, तब तक उधर से फिर फोन आ गया।
कविता- हेलो। माँ प्रणाम।
ममता- खुश रहो। कैसी हो?
कविता- ठीक हैं, माँ। तुम कहाँ पहुंची?
ममता- अरे ये ट्रेन बहुत लेट है। सुबह तक पहुंचाएगा। और जय कैसा है?
कविता- वो भी ठीक है। तुम खाना खाई?
ममता- हाँ, खाये थे। ट्रेन में ही खाना दे रहा था। तुमलोग खाना खाए कि नहीं?
कविता- हाँ, खाये हैं दोनों लोग।
कविता को ज़ोर से पेशाब लगी थी। वो अपने दोनों पैर को भींच रही थी। वो प्रतीक्षा कर रही थी कि कब ममता फोन काटे।
ममता- ख्याल रखना दोनों, हम पहुँचके फोन करेंगे।
कविता- अच्छा मां, प्रणाम रखते हैं।
 

Rakesh1999

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कविता ने फोन काटा और भागके बाथरूम गयी। तौलिया कमर तक उठा लिया, जिससे कमर के नीचे का हिस्सा पूरा नंगा हो गया और उसकी गाँड़ फुदक कर बाहर आ गयी। उसने शीट पर बैठके अपने बुर से मूत की धार मारी। एक सीटी के जैसे हल्की आवाज़ गूँजी मूत की धार निकलने से पहले। कविता ने अपना मूतना खत्म किया और पानी से बुर को साफ करने लगी। बुर साफ करने के बाद उसने खुदको आईने में देखा। बाल बिखरे हुए थे, काजल निकल गया था, लिपस्टिक का पता ही नही चल रहा था। वो खुद को देख रही थी, तो उसे लगा कि उसका अक़्स उससे ये कहना चाह रहा है कि तुम कैसी लड़की हो कविता सारे ज़माने में तुमको अपना भाई ही मिला इश्क़ लड़ाने और चुदवाने के लिए?
कविता ने अपने मन में ही उत्तर दिया, तो क्या हुआ कि वो हमारा भाई है। प्यार रिश्ते देखकर थोड़े ही होता है। तुम क्या चाहती हो कि हम उस आरिफ के साथ प्यार करें या उस बैंक मैनेजर से जो सिर्फ हमसे अपनी हवस मिटाना चाहते हैं। बाहर ये सब करेंगे तो घर की बदनामी होगी, और दुनियावाले ना जाने क्या क्या बोलेंगे। यहां तो घर की बात घर में ही रहेगी। वैसे भी हम छब्बीस साल के हो चुके हैं, और इस शरीर को चुदाई की भूख तो लगती है ना। कबतक हम बैगन और गाजर से काम चलाएंगे। एक मर्द का एहसास तुमको क्या पता, शरीर की तड़प क्या होती है। हमारे भाई की आंखों में हमने सच्चा प्रेम देखा है अपने लिए। और ये बात तुम भी जानती होकि हम भी तीन साल से उसको चाहते हैं, ये और बात है कि हमने कभी उसको पता नहीं लगने दिया। जानती रहती थी कि उसने हमारी कच्छी में मूठ मारी है, और वही कच्छी हम खोजके पहनते थे।अब हम दोनों के बीच में रिश्ते अलग मोड़ ले चुके हैं। समाज भले ही हमे भाई बहन बुलाये पर अब हम दोनों प्रेमी प्रेमिका हैं। कविता ने अपने अक़्स को मुंहतोड़ जवाब दिया।


कविता ने फिर झुककर अपना चेहरा पानी से धोया, और बाहर आ गयी। बाहर आके उसने लाइट जलाई। और अपने कमरे में जाकर उसने शलवार और कमीज पहनी। अभी ब्रा पैंटी कुछ नहीं पहनी। बाल बनाये, चेहरे पर क्रीम और पाउडर, आंखों में काजल लगाया। फिर खुदको आईने में देखा, संतुष्ट होकर उठ गई। माथे पर दुप्पट्टा रखके पूजा घर में पहुंच गई। उसने दिया जलाया और अगरबत्ती जलाई। फिर घर मे सांझ दी,जैसा कि बिहार के घर की लड़कियां करती हैं। फिर बालकनी में रखे तुलसी को भी दिया दिखाया। इसके बाद पूरे घर मे दिया को घुमाया। कविता जब दिया लेके जय के कमरे में गयी तो जय अभी भी सो ही रहा था। कविता उसे देखके मुस्कुरा उठी, क्योंकि उसका लण्ड तना हुआ था। कविता ने उसे उठाया नहीं। सांझ देने के बाद कविता सीधे रसोई में घुस गई। वो सोच रही थी, की जय के उठने से पहले खाना बना ले। कविता ने फौरन पनीर की सब्जी बनाई और रोटियां। उसे तकरीबन 45 मिनट लगे खाने बनाने में।
 
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