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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Divine
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मित्रों, साथियो, ये कहानी आज समाप्त हो गई है. जब इसे लिखना शुरू किया था तो सोचा नहीं था कि आप सब का इतना साथ मिलेगा, दिल मे बहु ज़ज्बात है कहने को समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूँ जब xossip पर लिखना शुरू किया फिर यहां इस फोरम पर आप लोग हमेशा साथ रहे
इतने साल कैसे बीत गए मालूम ही नहीं हुआ पर हर सृजन का एक अंत होता है मेरे लिए शायद वो आज है. बेशक मैं फोरम नहीं छोड़ूंगा एक पाठक के रूप मे कहानिया पढ़ता रहूँगा
उम्मीद है कि आप सब याद रखेंगे एक साथी और भी था 🙏
अत्यंत रोमांचकारी कहानी का अंत तो होना ही था, अब भी लग रहा है कि आप बहुत-बहुत कुछ लिख सकते थे, परंतु आप की कहानी है... सभी रहस्य का खुलासा हो गया व अंत मे माँ के मिलन को दिखा कर कहानी में रोमांच रहस्य को पूरा बना कर रखा, आपकी रचना लेखन अद्भूत है इसे बनाय रखिए, ये आपको रोमांचित करती है आप को पूरा भरपूर मज़ा देती है आप को अपने मन को सुकून दिलाती है, इसे कदापि न छोड़े
हम सब की खातिर, मुसाफिर हो चलते रहे एक मंजिल पर पहुंच गए थोड़ा आराम करे व अपनी अगली यात्रा को शुरू करे, पूर्ण विश्वास है कि आप हम सब पर हमेशा कृपालु रहेगे व अपनी रचनाओं से हम सब पर हमेशा मनोरंजन रूपी रोमांस बरसातें रहेगे...
अगली नई प्रस्तुति के इंतजार में... 😍
HalfbludPrince तुसी ग्रेट हो लव यू..
 

Sanju@

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#62

गाँव से जैसे अब नाता तोड लिया था मैंने, ज्यादातर वक्त मेरा खेतो पर ही गुजरता था अपने गुस्से को इस जमीन पर उतारता था मैं, जब तक मैं फ़ना होने के करीब नहीं पहुँच जाता मैं खेती की कोशिश करता ही रहता था . मुझे अपनी किस्मत पर हद से जायदा गुस्सा था . चढ़ती उम्र के लड़कपन में मैं मोहब्बत तो कर बैठा था पर अब मैं करू भी तो क्या. रीना से दूर होना मेरे लिए ऐसा था की जैसे किसी मजदुर से उसकी रोटी को छीन लिया गया हो.



चाहता तो सारे गाँव के आगे उसका हाथ थाम सकता था और किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी की मुझे रोक पाए . पर इसमें भी रीना की ही रुसवाई होनी थी , पर लगता था इ मैं ज्यादा देर तक अपने दिल में भरे इस गुबार को खाली नहीं कर पाऊंगा. उस दिन मुझे कुछ कपड़ो की जरुरत थी तो मैं घर गया . देखा की गली में पृथ्वी की गाड़ी खड़ी थी. मैं ताई के घर की तरफ मुड गया वैसे भी इस चूतिये के मुह नहीं लग्न चाहता था मैं .

मैंने देखा दरवाजा अन्दर से बंद था , एक दो बार आवाज देने पर भी किसी ने नहीं खोला, मुझे वैसे भी रुकना तो था नहीं मैं दिवार पर चढ़ा और अन्दर कूद गया. अन्दर कमरे से किसी के हसने बोलने की आवाज आ रही थी . ताऊ तो हो नहीं सकता इतना तो मुझे विस्वास था . कोतुहल वश मैंने खिड़की से अन्दर झाँका तो एक बार मुझे अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हुआ. ताई और चाचा दोनों बिस्तर पर नंगे थे . चाचा लेटा हुआ था और ताई उसके ऊपर चढ़ कर चुदवा रही थी .

इस औरत का यही रंडी रोना था इसे न जाने कितनी प्यास थी जो बुझ ही नहीं रही थी .कोई और मौका होता तो अभी पकड़ कर इनको जलील करता , तभी मेरे दिमाग में ये बात आई की चाची के मामले में तो इस चुतिया नंदन का लंड खड़ा नहीं होता और इधर देखो कैसे हुमच हुमच कर पेल रहा है . कुछ देर बाद दोनों शांत होकर बिस्तर पर ही पसर गए.

चाचा - इस उम्र में भी बड़ी गजब हो तुम भाभी

ताई- सो तो है , और मैं भी क्या करू मेरी निगोड़ी चूत हमेशा से ही इतनी प्यासी है .

चाचा- यही बात तो तुम्हारी सबसे अलग बनाती है तुमको

ताई- अब छोड़ो ये फालतू की चापलूसी , तुम्हारा काम हो गया अब निकलो मुझे भी खेतो पर जाना है . कितने दिन हुए मनीष घर की तरफ आया ही नहीं है . मुझे चिंता होने लगी है उसकी .

चाचा- आजकल न जाने किस धुन में लगा है वो .

ताई- उस पर जूनून सवार है , रीना को चाहता है वो

चाचा- चढ़ती उम्र का जोश है थोड़े दिनों में ठंडा हो जायेगा. लडकियों का क्या है एक गयी दूसरी आ जाएगी. चूतों की कोई कमी थोड़ी न है गाँव में .

ताई- इस खानदान में वो ही है जिसे चूत का चस्का नहीं है , रिस्तो को थामने वाला, मानने वाला है वो . मुझे डर है रीना को लेकर वो कोई बवाल खड़ा न कर दे.

चाचा- अब क्या करे, रीना की जगह कोई और होती तो सोच भी लेते . वो भांजी है इस गाँव की तुम ही बताओ कैसे मुमकिन है .

ताई- मुमकिन तो तेरा और रीना की माँ का रिश्ता भी नहीं है

चाचा- हम भी तो हार ही गए थे न , मुझे इस बात से जायदा उस लड़की की फ़िक्र है जिसके साथ वो आजकल रहता है. जब्बर को तलाश है उसकी.

ताई- मनीष जब्बर से टकराएगा तो ठीक नहीं होगा. वैसे तुमने कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है जब्बर को , तुम्हारे कान पर मूतने लगा है वो आजकल

चाचा- तो क्या करू, भाईसाहब के बोये बीजो की फसल मुझे काटनी पड़ रही है . जब्बर और भाई साहब की कितनी गहरी दोस्ती थी , अगर वो जब्बर की बहन को नहीं चोदते , उसे ख़राब नहीं करते तो आज हालात कुछ और होते.

ताई- इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है , जब्बर का आरोप है ये बस . अर्जुन ऐसा कभी नहीं करता

चाचा- तुम्हे बस भाई साहब की तारीफों का मौका चाहिए

ताई- इस घर में मैं हूँ तो उसकी वजह से .मैं लाख गलत थी पर फिर भी उसने मेरा साथ दिया. मैं जानती हूँ उसे.

चाचा- उनको कभी कोई नहीं जान पाया.

ताई- ठीक है अभी तुम निकलो . संध्या ने देख लिया तो बवाल करेगी . वैसे भी मुझे खेतो पर जाना है

जब तक वो कपडे पहनते मैं वापिस घर से बाहर हो लिया. पर आज मेरी किस्मत गधे के लंड से लिखी हुई थी गली में मेरा सामना पृथ्वी से हो गया जो ठीक उसी वक्त वापिस जा रहा था . मुझे देख कर वो रुक गया उसके होंठो पर मुस्कान आ गयी .

पृथ्वी- और कैसे हो , सुना है आजकल बड़े कष्ट में गुजर रहा है जीवन.

मैं- तू अपना देख, मेरी फ़िक्र कर लूँगा मैं खुद.

पृथ्वी- तेरी यही अकड़ मुझे हैरान किये हुए है . मेरे झांट बराबर भी नहीं है तू और घंमड जहाँ भर का .

मैं- तेरी किस्मत तेज है , तू मुझे ऐसी जगह पर ही मिलता है जहाँ तू भी जानता है की मैं कुछ करूँगा नहीं. यहाँ तुझे मारा तो तू रोता फिरेगा की अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है .

पृथ्वी- कुत्ता तो मैं तुझे बनाऊंगा. याद कर मैंने तुझसे कहा था की मैं तुझसे तेरा सब कुछ छीन लूँगा. वैसे मैंने सुना की तेरी लैला का रिश्ता होने जा रहा है .

मैं- जुबान को लगाम दे पृथ्वी, कहीं ऐसा न हो की मैं इसे यही खींच लू.

पृथ्वी- शुरुआत हो गयी है . वैसे उसने तुझे बताया नहीं की उसके होने वाले पति का नाम क्या है , खैर कोई बात नहीं मैं बता देता हूँ , वो मैं ही हूँ जो उसे ब्याह कर ले जाएगा. तेरी सबसे अनमोल चीज को तुझसे छीन कर ले जाऊंगा मैं. और तब तू झुकेगा मेरे आगे. क्योंकि उसको होने वाली हर तकलीफ का दर्द तुझे होगा . यही सजा चुनी है मैंने तेरे लिए.

“पृथ्वी , हरामजादे ” मेरे गुस्से का बम फट गया था .

“बहन के लोडे, तू मेरे साथ खेल खेलेगा. तू ब्याह करेगा मेरी रीना के साथ , ” मैंने एक मुक्का पृथ्वी के मुह पर मारा. उसके होंठो से खून बहने लगा. अगली लात के साथ ही वो सीधा गाड़ी के दरवाजे से जा टकराया.

मैं- मेरी भूल थी ये जो मैंने तेरा लिहाज किया की घर आये हुए दुश्मन को भी इज्जत दी जाती है तू साले मेरे गुरुर के साथ खेलेगा. तेरी गांड में दम है तो लेकर आना तू बरात तेरे हर बाराती और तेरी लाशो को ही मंडप में नहीं सजा दिया तो मेरा नाम भी मनीष नहीं .

मैंने उसे एक मुक्का और मारा पर वो बचा गया घूँसा सीधा गाडी के शीशे पर अलग जो पल भर में ही तिडक गया .

“ये क्या कर रहे हो तुम दोनों. छोड़ो एक दुसरे को ” संध्या चाची ने हम दोनों के बीच आते हुए कहा.

मैं- तो इसलिए इस सांप को पाला था तुमने ताकि ये मुझको डस सके. इस हरामखोर का यहाँ आने का मकसद ही ये था की रीना संग रिश्ता जोड़ सके ये , पर मैं भी प्रण लेता हु की अगर ऐसा हुआ तो इस गाँव से लेकर रुद्रपुर तक इतनी लाशे गिरेंगे की गिनती कम पड़ जाएगी.

पृथ्वी- मैं भी देखूंगा कौन रोकेगा मुझे

मैं- भोसड़ी के रोकना तो दूर की बात है , मैं अह्बी तुझे इस काबिल नहीं छोडूंगा की तू वापिस लौट सके, तेरी कब्र यही खोद दूंगा.

संध्या- पृथ्वी तुम जाओ

पृथ्वी- पर बुआ

संध्या- मैंने कहा न लौट जाओ .

पृथ्वी ने गाड़ी स्टार्ट की और वापिस मुड गया . रह गए हम दोनों

मैं- तो इसलिए तुम खिलाफ थी मेरे और रीना के ताकि तुम अपने भतीजे का मामला सेट कर सको

संध्या- मुझे इस बारे में कुछ नहीं मालूम था .

मैं- झूठी हो तुम, सारे गाँव को मालूम है की रीना का रिश्ता हुआ है और तुम्हे ये नहीं मालूम की तुम्हारे भतीजे ने ही ये खेल खेला है बिना तुम्हारी मंजूरी के ये मुमकिन ही नहीं .

चाची- मुझ पर झूठा इल्जाम लगा रहे हो तुम

मैं- झूठ भी शर्मिंदा हो जाये तुम्हे झूठी कहने में . अपने भतीजे की ख़ुशी के लिए तुमने बेटे का हक़ मार दिया. वाह चाची वाह , पर कोई बात नहीं . मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगा की मेरी वजह से रीना दुःख भोगे मैं उस जड़ को ही काट दूंगा. और कोई मुझे रोक नहीं पायेगा तुम भी नहीं .

संध्या- मेरी बात तो सुन, मुझे सच में नहीं मालूम था ये . मैं खुद जाकर बात करुँगी दद्दा ठाकुर से .


मैं- माँ चुदाये दद्दा ठाकुर. अब जो भी होगा वो मैं करूँगा. किसी एक को तो मरना ही है और वो पृथ्वी होगा.
ये ताई तो सच में हरामी निकली मनीष ने सही सोचा चाची को पेलते वक्त उसका खड़ा नही होता और बाकी सब की मस्त चूदाई करता है
पृथ्वी ने मनीष के दिल पे वार किया है बड़ा कमिना है अगर संध्या बीच में न आती तो पृथ्वी की ठुकाई अच्छी तरह होती संध्या को इसका पता नही है ये बड़े अचरज की बात है मनीष का गुस्सा जायज है पृथ्वी जले पर नमक छिड़क रहा है अब उसका क्या अंजाम होगा ये तो वक्त बताएगा अर्जुन और जब्बर में दुश्मनी जब्बर की बहन के पेलने पर हुई है ये सच है या झूठ इसका पता तो अर्जुन से ही लगेगा???
 

Sanju@

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#63

मेरा दिमाग इतना भन्नाया हुआ था की मैं न जाने क्या कर बैठता. पृथ्वी मुझसे बदला लेने के लिए रीना को मोहरा बनाना चाहता था , इस नीचता की उम्मीद नहीं थी मुझे. मर्द वो होता है जो सामने से दुश्मनी निभाए पर उसने कुटिलता दिखाई, वो जानता था की मेरी कमजोरी है रीना पर वो ये नहीं जानता था की रीना मेरी ताकत भी है .

संध्या- शांत होजा मनीष ,

मैं- कैसे शांत हो जाऊ मैं, मेरे सामने वो दो कौड़ी का इन्सान इतनी बड़ी बात कह गया . उस दिन भी मैंने तुम्हारा लिहाज़ किया वर्ना उसके ही घर में उसे बता देता मैं

चाची- तो मेरा लिहाज़ करके ही शांत हो जाओ और घर चलो

मैं- किसका घर, मेरा की घर नहीं है .मैं अपना सामान ले जा रहा हूँ इस चोखट पर अब कदम नहीं रखूँगा, जहाँ पर मेरे दुश्मन का आना जाना हो वो जगह बेगानी हुई मेरे लिए.

चाची- मेरी बात तो सुन , मैं आज ही रुद्रपुर जाउंगी और इस मामले को देखूंगी .

मैं- मैंने अपना निर्णय कर लिया है , पृथ्वी को दुश्मनी चाहिए मैं उसे जहन्नम दूंगा. रीना सिर्फ मेरी है ,मेरी ही रहेगी.

“तडाक ” एक थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा.

“तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी लड़की का नाम लेने की , पुरे गाँव के सामने बदनाम करता है उसे ” रीना की माँ ने मेरे गाल पर थप्पड़ मारा .

कोई और होता तो मैं उसे बता देता पर सहन किया मैंने.

मैं- थप्पड़ मारने से सच बदल नहीं जाएगा, अब बात खुली है तो दूर तक जायेगी, मैं और रीना एक दुसरे से प्यार करते है , ब्याह करना चाहते है

संध्या- मनीष, गाँव के सामने तमाशा मत कर

रीना की माँ- तमाशा तो इसने कर ही दिया है , अपनी औकात भूल गया है ये, इसके साथ थोडा बोल बतला क्या ली इसने तो हद ही पार कर दी, गाँव राम की कोई शर्म है या नहीं , देखो गाँव वालो बहन बेटी को ही ब्याहने की मन में है इस नीच के.

इकठ्ठा हुए गाँव वालो ने भी रीना की माँ के सुर में सुर मिलाये.

संध्या- रीना भांजी है हमारी मनीष , हम मानते है की तुम करीब हो एक दुसरे के पर जो तुम चाहते हो वो कभी नहीं हो पायेगा.

मैं- तुम जानती हो चाची, वो इस्तेमाल करना चाहता है उसका.

रीना की माँ- मेरी बेटी तो उसके साथ ही ब्याही जाएगी, मैं तो लाख से भी इतने बड़े घर का रिश्ता न छोडू

मैं- रीना से तो पूछ लो एक बार

रीना की माँ- मेरी बेटी है वो , उस से पूछने की क्या जरुरत मुझे, जहाँ कहूँगी वही उठेगी- बैठेगी मेरी बेटी.

मैं- ठीक है फिर , अगर तेरी यही जिद है तो ये ही सही . तू कर रिश्ता , बुला बारात मैं भी देखूंगा डोली कैसे उठती है . तेरे साथ साथ ये पूरा गाँव जोर लगा ले .किसी के गांड में दम हो तो रोक लेना मुझे,

रीना की माँ- संध्या इसे समझाले , कहीं ऐसा न हो की बात फिर संभालनी मुश्किल हो जाये

चाची- आप घर जाओ. तमाशा मत करो मैं बात करुँगी इससे , इसका गुस्सा ठंडा हो जायेगा थोड़ी देर में . बात का बतंगड़ बनाना ठीक नहीं है .

रीना की माँ- जा रही हूँ , पर दुबारा इसकी जुबान पर मेरी बेटी का नाम आया तो जुबान खींच लुंगी इसकी .

मैं- सबसे पहले तुझे ही रस्ते से हटाऊंगा

संध्या- चुप हो जा, क्यों हमारी बेईजज्ती करवाता है.

मैं- तेरी बेइज्जती तब नहीं हुई जब तेरा आदमी इस औरत को पेल रहा था पूछ कर देख इस से कितनी बार ली है चाचा ने इसकी .

मेरे मुह से ये शब्द निकल तो गए थे पर तुरंत ही मुझे अहसास हो गया की ये नहीं कहना था पर अब तीर कमान से निकल चूका था . हर कोई ये बात सुन कर स्तब्ध रह गया . चाची ने अपने मुह पर हाथ रख लिया.

रीना की माँ- कोई और आरोप है तो वो भी लगा ले, जितना जहर तेरे अन्दर भरा है सारा उगल ले तू, कमीने अब तू भी देखना मैं क्या करती हूँ .

रीना की माँ तमतमते हुए घर चली गयी चाची ने मेरी बाहं पकड़ी और घर के भीतर ले आई.

चाची- भर गया मन तेरा , मिल गयी कलेजे को ठंडक. ये तमाशा जो तूने किया है करने की जरुरत नहीं थी, और गड़े मुर्दे उखाड़ कर क्या मिला तुझे, तेरी माँ की उम्र की है वो उसकी इज्जत उछाल दी तूने. बहुत बहादुरी का काम किया तूने . तेरे दिमाग में न जाने क्या भरा है , मैंने दुनिया देखि है , न जाने क्या क्या देखा है , तू सोच भी नहीं सकता उस सच को मैं रोज देखती हूँ , उस सच को बड़ा होते हुए देखा है मैंने. हर बार मैंने तुझे टोका रीना के लिए , कोई तो कारण रहा होगा न . ऐसा नहीं है की मुझे तेरी परवाह नहीं है , तू इस दुनिया में किसी भी लड़की की तरफ इशारा कर , उसे तेरी बहु बनाकर इस घर में ले आउंगी मैं . पर रीना तेरी नहीं हो सकती इस अकाट्य सत्य को तुझे मानना ही पड़ेगा.

मैं- मेरा दिल नहीं मानता

चाची- इस दिल के ही तो है ये सारे बखेड़े. शाम को जाकर रीना की माँ से माफ़ी मांग लेना , वो समझ जाएगी.

मैं- उसके पैर पकड़ लूँगा. अगर वो मेरी बात समझे तो .

संध्या- जिसे तू खेल समझ रहा हैं न वो मौत की वो दास्तान है , जिसकी तपिश में तू झुलसेगा नहीं , जलेगा, रीना जेठ जी की सरपरस्ती में है इतना काफी है तुझे हकीकत समझाने को . हम सब उसके पहरेदार है . आगे तेरी मर्जी है , तू जाने और तेरा नसीब जाने.

“मैं अपना नसीब खुद लिखूंगा ” मैंने कहा और घर से बाहर आ गया .

कुवे पर पहुंचा तो देखा की ताई वहां पर मोजूद थी .

ताई- कितने दिन हुए घर पर आया नहीं तू , हार कर मैं ही आई इधर .

मैं- क्या करता घर पर आकर,

ताई- और लोग क्या करते है , तेरा घर है तू नहीं आएगा तो कौन आएगा.

मैं- मैं वहां रहता तो तुम्हे मौका नहीं मिलता चाचा संग सोने का . और तुम्हे मेरी क्या जरुरत , कोई न कोई तो होता ही है तुम्हारी लेने के लिए. दोपहर को मैं घर पर ही था मैंने देख लिया था चाचा और तुझे. सच कहूँ तो मुझे गुस्सा नहीं आता इस बात पर की मन में आये उसको दे रही है तू, पर मुझे कोफ़्त होती है मेरी ताई ........

ताई- तू मुझे दोष तो दे सकता है , पर ये तो पूछ की आखिर मैं ऐसी कैसे हो गयी, किसने मुझे ये लत लगाई की मैं गंड मरी हो गयी. किसने मुझे ये आदत डाली की मैं चुदे बिना रह ही नहीं पाती.

मैं- नहीं जानना मुझे ये


ताई- क्यों नहीं जानना मुझे, मुझे चोद सकता है , मेरी गांड मार सकता है पर ये नहीं पूछने की हिम्मत की किसने मुझे नंगी बनाया. ....
एक बात समझ नहीं आई की गांव वालों को इस बात पर एतराज़ क्यो है की रीना का ब्याह मनीष से नहीं हो सकता है? मनीष का गांव उसका ननिहाल है तो इसका मतलब ये कैसे हो गया की रीना के ननिहाल का कोई लड़का रीना से ब्याह ही नहीं कर सकता? क्या कहानी में रीना का ब्याह मनीष से सिर्फ इस वजह से नहीं हो सकता है की रीना गांव की भांजी थी...
खैर मनीष ने सभी गांववालो के सामने रीना की मां को अच्छा जवाब दिया की वो उसके चाचा के साथ चूदती है। देखते है आगे क्या होता है
 

Rajizexy

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मित्रों, साथियो, ये कहानी आज समाप्त हो गई है. जब इसे लिखना शुरू किया था तो सोचा नहीं था कि आप सब का इतना साथ मिलेगा, दिल मे बहु ज़ज्बात है कहने को समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूँ जब xossip पर लिखना शुरू किया फिर यहां इस फोरम पर आप लोग हमेशा साथ रहे
इतने साल कैसे बीत गए मालूम ही नहीं हुआ पर हर सृजन का एक अंत होता है मेरे लिए शायद वो आज है. बेशक मैं फोरम नहीं छोड़ूंगा एक पाठक के रूप मे कहानिया पढ़ता रहूँगा
उम्मीद है कि आप सब याद रखेंगे एक साथी और भी था 🙏
Very nice story dear Prince,ended very well also,I appreciate your sweet nature,u kept ur cool always while replying to awkward comments even.Congrats for starting and ending well.U rock
You Rock Well Done GIF by chelsiekenyon
 

Sanju@

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#64

मैं- अब मुझे परवाह नहीं है किसी की भी परिवार से मेरा मोह छूटा . जिसको भी मैंने अपना समझा उसी ने मेरी राह में कांटे बिछाए. उस घर में मेरे रहने की एक वजह तुम भी थी , मैंने तुमसे कहा था की ये सब कम बंद करो तुम पर तुमने नहीं मानी. अब मूझे न कुछ कहना है , न सुनना है मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो . इस जिंदगी को कैसे जीना है मैं अपने तरीके से देख लूँगा.

ताई- मैंने तुझसे पहले ही कहा था गड़े मुर्दे मत उखाड़, कुछ नहीं मिलना सड़ांध के सिवा.

मैं- जा सकती हो तुम और लौट कर कभी मत आना मेरे पास

मेरी बात सुनकर ताई आहत हुई और वापिस लौट गयी . ये ऐसे हालात थे जब मुझे सबसे ज्यादा परिवार की जरुरत थी पर इसी परिवार ने मुझे कदम कदम पर धोखा दिया था . ढलती शाम में मैं बावड़ी के पत्थर पर पड़ा था की मैंने मीता को आते देखा.

“कैसे हो ” उसने मेरे पास बैठते हुए कहा

मैं- बस जिन्दा हूँ

मीता- चलो बढ़िया है ,मैंने सुना गाँव में बवाल काटा हुआ है तूने,

मैं- जब तुझे मालूम ही है तो फिर क्यों पूछती है .

मीता- ये आशिकी भी न , ये मोहब्बत के किस्से, वो तमाम कहानिया जो मैंने पढ़ी थी, वो सब तेरे आगे झूठे से लगते है , मुझे मोहब्बत में कभी भी यकीन नहीं था जब तक की मैं तुझसे नहीं मिली थी तू जो मेरी जिन्दगी में आया , तुझे जो मैंने जाना , तेरे संग जो मैं जी रही हूँ . अक्सर मैं सोचती हूँ तू क्या चीज है , तूने मुझ पर ये कैसा रंग डाला है , तू कैसा रंगरेज है जो मुझे ही नहीं जो भी तुझसे मिले उसें रंग डालता है अपने रंग में .

मैं- बड़ी तारीफ हो रही है क्या है तेरे मन में

मीता- तू कहे तो आज मैं बता दू.

मैं- तुझे पूछने की जरुरत नहीं .

मीता- मैं ये मालूम करना चाहती हूँ की जब आजतक मैंने उस हवेली में कदम नहीं रखा तो वहां पर मेरी तस्वीर कैसे है , क्या दद्दा ठाकुर मेरी असलियत जानता है या उस घर में कोई और . ये सवाल मुझे पागल किये हुए है ,

मैं- इतनी सी बात के लिए परेशां है तू, तू कहे तो अभी के अभी चलते है हवेली में .

मीता- हाँ कितना आसान है न .

मैं- मैंने तुझसे वादा किया है तू हवेली की वारिस है जितना तेरा हक़ है वहां तुझे दिला कर रहूँगा मैं.

मीता- ठीक है ठीक है . वैसे तुझे रीना से मिलना चाहिए, वो परेशां होगी . तू बात करेगा तो अच्छा लगेगा उसे.

मैं- मन तो मेरा भी है पर उसकी माँ उसे अकेला छोड़ ही नहीं रही , उसके घर जाऊंगा तो फिर वही तमाशा होगा.

मीता- वो शिवाले में जरुर आएगी , वहां मिल लेना

मैं- अवश्य , फिलहाल अगर तू दो रोटी पका ले तो काम बन जाये सुबह से कुछ नहीं खाया मैंने आज.

मीता- अगर तू तारबंदी कर ले तो मैं कुछ सब्जिया बो दू, कुछ मुर्गियां पाल लू.

मैं- ख्याल तो ठीकहै वैसे भी अब मुझे यही पर रहना है .

मीता- अभी मेरी इच्छा नहीं है खाना बनाने की .

मैं- रहने दे फिर.

मीता- आज रात हम दोनों शिवाले पर चलेंगे. खोज करेंगे कोई तो बात मालूम हो की ये क्या किस्सा है क्या माजरा है . नाह्र्विर किसकी सुरक्षा करते है वहां पर.

मैं- तू पूछ सकती है उनसे

मीता- जिसने उनको साधा है वो ही बात आकर सकता है

मैं- कितना अच्छा होता जो हम इन सब चक्करों से दूर रहते .

मीता- नियति का खेल है सब , हम तो कठपुतलिया है जिस तरफ वो ले जाए ,उसके इशारे पर चल देते है .

मैं- आज जब हम शिवाले जायेंगे तो खाली हाथ नहीं आयेंगे चाहे कुछ भी हो जाये.

जब रात ने दुनिया को अपने आगोश में लिया. तो हम दोनों शिवाले की तरफ चल दिए. आज मौसम शांत सा था . हवा भी नहीं चल रही थी शिवाला गहरे अँधेरे में डूबा था .

“कहाँ से शुरू करे, इतने बड़े क्षेत्र में कहाँ क्या छिपा हो सकता है ” मैंने कहा

मीता- बात तो सही है तुम्हारी , कड़ीयो को जोड़ने की कोशिश करते है .

सबसे पहले हमने उस कमरे की छान बिन करनी शुरू की जिसमे देवता था , एक एक दिवार को देखा की कहीं से कुछ खाली तो नहीं , मैं ये भी जानता था की ये शिवाला मामूली नहीं है जिसे छिपाया गया है वो मेरे सामने भी हो तो भी आसान कहाँ होगा उसे तलाशना तंत्र, मन्त्र और न जाने क्या क्या किया गया था यहाँ पर.

बहुत मेहनत के बाद भी जब कुछ नहीं मिला तो थक हार कर मैं पत्थरों की सीढियों पर बैठ गया .

मीता- मैं पानी लेकर आती हूँ .

दोपल के लिए मैंने अपनी आँखे बंद की मुझे वो लम्हा याद आया जब रीना और मैं यही पर थे. उसने मेरे लबो को चूमा था . कैसे उसका वो चुम्बन मेरे दिल को चीर गया था . एक मिनट , एक मिनट दिल , इस पुरी जगह का दिल था ये स्थान जहाँ पर मैं था , दिल चीर गया था वो लम्हा, इसी समय मुझे ये ख्याल आना क्या किसी तरह का संकेत था मेरे लिए. क्या किस्मत मुझ पर मेहरबान हो सकती थी . क्या मेरा ये ख्याल उस राज़ को खोल सकता था जिसकी डोर सबसे बंधी थी .

मैंने देवता की मूर्ति को जोर लगाकर उखाड़ लिया . यदपि ये ऐसा कार्य था जो अनुचित था , पर मैंने ये कर दिया. इधर उधर ढूँढने पर मुझे लोहे की इक संभल मिल गयी जिस से मैंने वहां पर खोदना शुरू किया. गीली मिटटी इधर उधर फैलने लगी . तभी मीता वहां पर आ गयी .

मीता- ये क्या अनर्थ कर दिया तूने , इसका परिणाम

मैं- मुझे लगता है ये हमें नयी दिशा दिखायेगा.

मीता- मनीष, ये पाप है .

मैं- जानता हूँ

तभी मेरी संभल किसी चीज से टकराई . मिटटी साफ़ की तो देखा की ये एक हांडी थी जिस पर लाल कपडा बंधा हुआ था .

मीता- ये तो ठीक वैसी ही है जैसी हौदी में मिली थी .

मैं- शायद वो इशारा इसके लिए ही था .

मीता- मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा .

मैं- खोल कर देखे क्या

मीता- मैं नहीं जानती की इसके अन्दर क्या है पर अगर इसे देवता के चरणों में रखा गया तो इसका महत्त्व जरुर है .

मैं इस से पहले की मीता को कुछ जवाब दे पाता, हांडी भारी होने लगी . उसका वजह बढ़ने लगा. मैं उसे संभाल नहीं पा रहा था .

मैं- मीता, थाम जरा इसे .

पर इस से पहले की मीता मुझ तक पहुँच पाती एक जोर का धमाका हुआ , इतना जोर का धमाका की मैं अपनी सुध बुधलगभग खो ही बैठा. सब कुछ धुल धुल हो गया. अचानक से हुआ की मैंने खुद को हवा में उड़ते हुए देखा. जब धुल का अम्बार हटा तो मैंने देखा की मीता थोड़ी दुरी पर बेहोश पड़ी है. मेरे पैर पर शिवाले का खम्बा गिरा हुआ था . मैंने जैसे तैसे उसे हटाया और मीता को देखा. सच कहूँ तो मीता से जायदा मेरी दिलचस्पी अब शिवाले में थे.

सब कुछ तबाह हो गया था . शिवाले की सभी दीवारे गिर गयी थी . आस पास के पेड़ चबूतरे ,जहाँ तक भी शिवाले की हद थी सब तहस नहस हो गया था . कुछ भी नहीं था सिवाय मलबे के. ऐसा क्या था उस हांडी में . मैंने मीता के मुह पर पानी के छींटे मारे और उसे होश में लाया. मैंने देखा जहाँ पर संध्या चाची ने अपने मांस का भोग दिया था , जहाँ पर मेरा, रीना और मीता का रक्त बहा था वहां धरती दो हिस्सों में बंट गयी थी और एक गहरा गड्ढा हो गया था जिसके मुहाने पर सात पगड़ीधारी लाशें पड़ी थी .

“नाहर वीरो की लाशे ” मीता ने अपने मुह पर हाथ रखते हुए कहा .

मीता- हमें अभी के अभी निकलना चाहिए यहाँ से .

मीता ने मेरा हाथ थामा और अँधेरे में हम लौट पड़े. रस्ते में हमने देखा की वो ग्यारह पीपल एक के बाद एक धरती पर पड़े थे. जैसे किसी ने उखाड़ कर फेंक दिया हो.

मीता-अनर्थ , घोर अनर्थ.


बेकाबू धडकनों को लिए हम मेरी जमीन की दहलीज पर पहुंचे ही थे की एक और नजारा जैसे हमारा ही इंतज़ार कर रहा था . वो बावड़ी दो टुकडो में बंटी पड़ी थी . जैसे बीचोबीच किसी ने दो हिस्से कर दिए हो उसके. दूर दूर तक धरती गीली हो गयी थी पानी से , पर क्या वो सचमुच पानी था . .............................
मनीष ने ताई से ये बोल कर ठीक किया क्युकी परिवार का कोई सदस्य उसके साथ नही है वही दद्दा ठाकुर की पोती मीता उसके हर कदम पर साथ दे रही हैं
मनीष और मीता शिवालय में जाते हैं मनीष ने मूर्ति को हटाकर गड्ढा खोदा वह उसे एक हांडी मिली उसमे से एक धमाका हुआ अब सवाल ये है कि आखिर उस हांडी में क्या था और धमाके के बाद सात नाहरवीर की लाश मिली लेकिन केसे जमीन भी दो टुकड़ों में बटी हुई थी सात पेड़ गिरे पड़े थे उसकी जमीन गीली हो गई थी आखिर क्या रहस्य है ये
 

Sanju@

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#65

मीता- कही हमसे कुछ ऐसा अनिष्ट तो नहीं हो गया मनीष जो कदापि नहीं होना चाहिए था . ये विनाश जो हम देख रहे है किसी आने वाले तूफान की आहट तो नहीं .

मैं- कुछ समझ नहीं आ रहा मीता. ऐसा क्या था उस हांडी में जिसकी तपिश शिवाला भी नहीं झेल पाया.

मीता- हमें किसी ऐसे की जरुरत है जो इस घटना को समझ सके और आगे राह दिखा सके.

मैं- पर ऐसा कौन होगा. तू पूछ अपने सितारों से क्या बताते है वो

मीता- अंधेरो में जलता एक दिया दिख रहा है मुझे बस

हम दोनों अपने कमरे तक आ गए थे . सुबह होने में कुछ घंटे ही सेष थे मैंने चारपाई निकाली और बैठ गया. नींद आँखों से कोसो दूर थी.

मीता- क्या सोच रहा है

मैं- यही की कल कैसा होगा.

मीता- सुबह होते ही सबको शिवाले की घटना मालूम हो ही जाएगी.

मैं- उस से फर्क नहीं पड़ता , मुझे रीना से कल मिलना ही होगा.

मीता- पिछले दिनों से जो भी हालात रहे है , रीना को खतरा है . तुम्हे उसकी सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे.

मैं- क्या करूँ मैं, मेरे बस में कहाँ है ये सब , मैं आमने सामने की लड़ाई लड़ सकता हूँ , ये जादू टोना-तंत्र-मन्त्र मेरे बस की बात नहीं है. जानता हूँ शिवाले से रीना का कोई गहरा सम्बन्ध है तू ही बता क्या करू.

मीता- समय आ गया है की अब नरमी से काम नहीं चलेगा. अब चाहे जो हो आने वाले कल का सामना करने के लिए मजबूत होना पड़ेगा. दद्दा ठाकुर के खानदान ने पीढ़ी दर पीढ़ी शिवाले का संरक्षण किया है , क्या मालूम उस से कुछ ऐसा मालूम हो जाये जो अपने काम का हो.

मैं- सुबह होते ही पूरा रुद्रपुर जमा हो जायेगा , मैं दद्दा से मिलने गया तो कही और पंगा न हो जाये. वैसे ही मेरी खींची हुई है पृथ्वी से. थोड़े समय के लिए इस टकराव में उलझना नहीं चाहता मैं.

मीता- थोडा आराम कर ले. कल देखते है

मीता ने मुझे झप्पी डाली और अपनी बाँहों में कस लिया. थोड़ी देर के लिए अपनी सारी परेशानिया भूल गया मैं. सुबह जब मेरी आँख खुली तो मीता जमीन का जायजा ले रही थी , कल तक जो जमीन बंजर थी वो पानी से भरी हुई थी , पर क्या ये पानी था , नहीं ये लाल रंग पानी का तो नहीं हो सकता , ये खून था . इस जमीन की प्यास खून से बुझ रही थी पर किसके खून से.

मीता और मैं बस उस धरती को देखते रहे और जब इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला तो हम गाँव की तरफ चल पड़े. संध्या चाची से मिलना बेहद जरुरी हो गया था . हम गाँव जा तो रहे थे पर ये नहीं जानते थे की वहां पर एक और तूफान हमारा इंतज़ार कर रहा है वो तूफान जो मेरे आज और आने वाले कल को हिला कर रख देगा.

मोहल्ले में चीख-पुकार मची थी , चबूतरे पर आदमी बैठे थे , औरतो का रुदन कान फाड़ रहा था , मेरा दिल जोरो से धडकने लगा. मीता ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया.

मीता- क्या हुआ है यहाँ

मैं- मालूम नहीं .

भीड़ को हटा कर हम लोग आगे बढे तो जो देखा कलेजा मुह को आ गया . धरती पर रीना की माँ की लाश पड़ी थी , जिसे इस हद तक चीर दिया गया था की देख कर ही लगे की , कातिल को गहरी दुश्मनी थी जिसे उसने शिद्दत से निभाया था . ये एक ऐसी घटना हो गयी थी जिसे नहीं होना चाहिए था .

मैंने रीना को देखा जो लाश के पास ही बैठी थी उसका आंसुओ से भरा चेहरा मेरे कलेजे को चीर गया , दौड़ कर वो मेरे सीने से लग गयी . मैंने बाँहों में भर लिया उसे. पर बस एक पल के ही लिए अगले ही पल उसने मुझे धक्का दे दिया.

रीना- तू यही चाहता था न , कर ली तूने तेरे मन की. तू , तूने ही किया है न ये, मुझे पाने के लिए तू इतना अँधा हो गया की तूने मेरी माँ को ही मार दिया .

मैं- ये क्या कह रही है तू रीना, समझता हूँ इस घटना से तुझे सदमा लगा है पर तू मुझ पर ही आरोप लगा रही है .

रीना- हाँ, तुझ पर ही . सबको पता है , मेरी माँ जीते जी मुझे तेरी नहीं होने देती , कल तूने उसे धमकी भी तो दी थी . मैं समझाती उसे, मौका तो दिया होता तूने , ये क्या किया तूने मनीष क्या किया तूने .

मैं- तेरा दर्द समझता हूँ मैं मेरी जान. तुझे अगर ये लगता है की ये नीच हरकत मैंने की है , तू ने मान ही लिया है ऐसा तो फिर ठीक है तेरा हर आरोप, तेरा हर इल्जाम सर माथे पर. सजा भी मुकर्रर कर दे तू. पर तेरा दिल जानता है मेरा इसमें कोई हाथ नहीं .

रीना- दिल का ही तो सारा कसूर है , जो तुझे अपना मान बैठा . तू चला जा यहाँ से , मैं रोक नहीं पाउंगी खुद को , इस से पहले की मुझसे कुछ हो जाये तू चला जा यहाँ से .

रीना की आँखों का रंग बदलने लगा था .

मैं अपनी सफाई देकर करता भी तो क्या , यहाँ कौन था जो मेरी बात को मानता , कल जो गर्मागर्मी हुई थी उस से सबको ये ही लग रहा था की मैंने ही रीना की माँ का कतल किया है. कहने को तो मीता थी सबूत जो ये साबित कर सकती थी की पूरी रात मैं उसके साथ था पर जब रीना ने ही ये आरोप लगा दिया तो अब क्या रह गया था कहने सुनने को .

मीता- मनीष चल यहाँ से .....

तभी भीड़ में कानाफूसी होने लगी. लोग इधर उधर होने लगे. सबके हाथ जुड़ने लगे. मैंने देखा सामने से वो आदमी चले आ रहा था . सर पर लाल पगड़ी,सफ़ेद धोती-कुरता कानो में सोने की मुर्किया , पैरो ने लाल चमड़े की जुतिया. कंधे पर साफा रखे.

“हुकुम हुकुम ” की आवाजो से आसमान गूंजने लगा. जैसे जैसे वो आगे बढ़ रहा था लोग उसके पैरो में झुक रहे थे , पर उसे इन लोगो से कोई सरोकार नहीं था . पर मेरी आँखों में जहाँ भर का पानी भर आया था वो सक्श कोई और नहीं मेरा बाप था , चौधरी अर्जुन सिंह.

“बाबा ” मैं दौड़ पड़ा , बस अपने बाप के सीने से लग जाना चाहता था मैं. हर दिन हर पल मैंने यही इन्तजार तो किया था की कब मेरा बाप लौट कर आये और मुझे अपने सीने से लगा ले.

पर ये कोई और अर्जुन था जिसे मैं नहीं जानता था, हाथ से के फटकारे से उसने मुझे परे किया और सीधा रीना की माँ की लाश के पास जाकर बैठ गया . उसने लाश को हाथ लगा कर देखा , वो कुछ नहीं बोला . रीना के सर पर हाथ रखा उसने, रीना अर्जुंन सिंह के सीने से लग कर रोने लगी.

“बस चुप हो जा मेरी बच्ची, तुझे कुछ कहने की जरुरत नहीं मैं आ गया हूँ ” बाबा ने बस इतना ही कहा.


रीना ने रोते हुए मेरी तरफ अपनी ऊँगली से इशारा किया..........
रीना की मां को किसने मार दिया ????
एक सवाल तो अभी भी है कि अब तक जितनी भी मौत हुई है उनके कातिल का पता नही चला है????
जिन परिस्थितियो में रीना की मां की लाश मिली है उससे रीना का मनीष पर शक करना जायज है पर सच ये भी है की मनीष ने उसकी मां के साथ कुछ नहीं किया। क्या पृथ्वी ने करवा कर मनीष को रीना की नजरो मे गिराना था जिससे रीना मनीष से नफरत करने लगे... अगर ऐसा होगा तो मनीष के लिए ये गहरा ज़ख्म होता पृथ्वी के हाथो। खैर अर्जुन सिंह की एंट्री हो गई वैसे अपने ही बेटे को इग्नोर कर के रीना को देखने से चिपका लेने वाला सीन बड़ा ही दिलचस्प था लेकिन अर्जुन की ये करतूत निहायत ही घटिया लगी। बेटे ने तड़प कर बाबा कह कर पुकारा और बाप ने अनदेखा कर के रीना को गले से चिपकाया... जरा भी ना सोचा की इससे बेटे का सीना कैसे छलनी हो गया होगा...
 

Sanju@

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किस्मत, हाँ ये निगोड़ी किस्मत ही तो थी जो मुझसे मजाक कर रही थी . जिस पल का मैंने बरसों इंतज़ार किया था की एक दिन आयेगा जब मेरा बाप मुझे अपने सीने से लगा लेगा. उस दिन मेरे सारे दुःख आंसू बन कर बह जायेंगे, किस्मत ने वो दिन तो मेरे सामने ला खड़ा दिया था पर सामने जो सक्श था वो मेरा बाप नहीं चौधरी अर्जुन सिंह खड़ा था , अपने उस गुरुर में तना हुआ जिसकी बाते मैंने गाँव वालो से सुनी थी .

“बेशक तू मेरा बेटा है , पर जो पाप तूने किया है उसकी सजा तुझे जरुर मिलेगी, एक बेटी को उसकी माँ से जुदा करके जो तूने अन्याय किया है उसकी सजा तुझे मेरे हाथो से ही मिलेगी ” बाबा ने मेरा गिरबान पकड़ लिया.

“मनीष को छोड़ दो बाबा, आपकी किसी भी सजा को न ये मानेगा और ना मैं इसे मानने दूंगी. न्याय की मूर्ति चौधरी साहब, आप इतना तो जानते ही है की आरोप को साबित करने के ठोस प्रमाण की आवशयकता होती है , और मनीष ने रीना की माँ को नहीं मारा इसका सबूत मैं हूँ ” मीता ने कहा

बाबा ने अपनी पकड़ मेरे कालर से ढीली कर दी और बोले- लड़की , सबूतों का होना कई बार जरुरी नहीं होता, जरुरी होता है उद्देश्य

मीता- चौधरी साहब मैंने बचपन से सुना है की न्याय का दूसरा नाम है चौधरी अर्जुन सिंह ,तो फिर ये अन्याय कैसे कर सकते है , मैं जल उठाने को तैयार हूँ मैं दावे से कहती हूँ की मनीष रीना की माँ का कातिल नहीं है कतल कल रात हुआ है , और कल रात मनीष इस गाँव में था ही नहीं ....

बाबा- तुम्हारे आलावा कोई और है जो ये गवाही दे सके

मीता- हैं ना हमारे पास गवाह , रुद्रपुर का टुटा शिवाला गवाह है मनीष की सच्चाई का, आपकी बंजर जमीन चीख चीख कर कहेगी आप से की कल रात मनीष और मैं रुद्रपुर के शिवाले में थे, उसके बाद आपकी बंजर जमीन पर थे.

“क्या कहा तूने बेटी ” बाबा की आवाज एकदम से कमजोर हो चली थी .

मीता- मैंने कहा की जब कल रात शिवाला टुटा तो मैं और मनीष वहीँ पर थे .

“शिवाला टूट गया ” बाबा बस इतना ही कह पाए और वहां से चलने लगे.

मैं- आप ऐसे नहीं जा सकते बाबा, थोड़ी देर पहले ही आपने कहा था की एक बेटी को माँ से जुदा करने की सजा आप मुझे जरुर देंगे, तो एक सवाल मेरा भी है मुझे आपसे जुदा करने के लिए आपकी क्या सजा होगी, सबको न्याय देने वाले चौधरी साहब से उनका बेटा अपना इंसाफ मांगता है , सोलह साल मैंने बिना बाप के जिए है , उन सोलह सालो का हिसाब चाहिए मुझे, आप ऐसे नहीं जा सकते, आपको मुझे न्याय देना ही होगा.

बाबा ने मुड कर मुझे देखा और बोले- काबिल औलादे सवाल नहीं करती, वो हाथ फैला कर नहीं मांगती, वो अपना हक़ छीन लेती है . इस पल मुझे कहीं जाना है पर मैं तुमसे मिलूँगा जरुर. जो तुम कर आये हो उसे समेटने में बड़ी मुश्किल आएगी.

बाबा मेरे पास आये , मेरे काँधे पर हाथ रखा और कुछ कदम हम साथ चलने लगे.

बाबा- एक बेटे ने बाप को उलाहना दिया है , देना भी चाहिए . ये सोलह साल सोलह जनम जैसे बीते है तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी . हो सकता है तुम्हारा गुनेह्गर हूँ मैं, पर एक दिन तुम जान जाओगे , तुम समझ जाओगे.

बाबा ने मेरे सर पर हाथ रखा और बोले- किसी ज़माने में मैं भी ऐसा ही था. रुद्रपुर से दूर रहना .

एक तूफ़ान जिसे मीता ने टाल दिया था . पर कितनी देर के लिए . मैं रीना को समझाना चाहता था पर मीता मुझे वहां से ले आई. थोड़ी दूर पर ही संध्या चाची खड़ी थी अपने सीने पर हाथ रखे.

चाची- कुछ पलो के लिए मैं डर ही गयी थी की कहीं बाप बेटा आमने सामने न हो जाये.

मैं- क्या होता फिर. जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो मुझे क्यों डरना किसी से , वैसे भी टुटा हुआ शिवाला गवाह है , कोई भी जाकर देख सकता है उसे

चाची- कैसे हुआ ये अनर्थ

मीता- आपकी क्या दिलचस्पी है इतनी शिवाले में

चाची ने घुर कर मीता को देखा और बोली- तुम चुप रहो लड़की . तुम्हे बीच में बोलने का हक़ नहीं है

मीता- मुझे किस बात का हक़ है , किसका नहीं ये आप निर्धारित करने वाली कौन होती है .

चाची- इसकी दोस्त है इसलिए तू मेरे घर में है , वर्ना तुझे गली से न गुजरने दू.

मीता- मनीष की दोस्त हूँ तो हक़ तो अपने आप ही हो गया मेरा. रही बात गली, मोहल्ले , गाँवो की तो मैं आज तुमसे एक बात कहती हूँ , वक्त का पासा पलट रहा है , वर्तमान सवाल बन कर अतीत की खाल उधेड़ने को बेताब है . वो दिन दूर नहीं है जब मैं सवाल बन कर तुम्हारे सामने खड़ी रहूंगी और तुम्हारे पास कुछ नहीं होगा. मेरा कहा याद रखना .तुम हक़ की बात करती हो , वो जगह, वो अतीत वो सब कुछ तुम्हारा होगा , मेरा सिर्फ सवाल होगा. उस दिन हक़ की बात होगी.

संध्या- मनीष इसे चुप कर ले. मेरा दिमाग ख़राब कर रही है ये, जेठ जी लौट आये है ये बड़ी बात है . रीना की माँ के कातिल को तलाशने में रात दिन एक कर देंगे वो

मैं- ऐसा क्या है की मुझसे ज्यादा उन्हें रीना की फ़िक्र है .

चाची- काश मैं जानती,

मैं- समस्या तो यही है की तुम कुछ जानती ही नहीं , कितनी भोली हो तुम.

गाँव से थोडा बाहर आकर मैं और मीता एक पानी की टंकी पर बनी खेली पर बैठ गए.

मैं- मीता मैं अपना वादा जरुर पूरा करूँगा. तू देखना पृथ्वी को लात मार कर हवेली से बाहर निकाल दूंगा, फिर तू रहना आराम से वहां पर.

मीता- मुझे हवेली की कोई चाहत नहीं

मैं- पर मैं तुझे तेरा हक़ जरुर लौटा दूंगा.

मीता- वक्त आएगा तो देखेंगे. फिलहाल मेरी चिंताए दूसरी है .

मैं- तू कहे तो अभी के अभी रुद्रपुर जाकर हवेली से घसीट कर बाहर कर दू पृथ्वी को

मीता- रुद्रपुर तो जाना ही है पर किसी और काम के लिए . और मुझे लगता है की यही ठीक समय है किसी से मिलने का

मैं- किस से . .


मीता- अतीत के एक घटिया पन्ने को पलटने का समय आ गया है.
मीता की गवाही ने एक तबाही वाले मंजर को रोक लिया लेकिन अर्जुन सिंह की क्या मज़बूरी रही की बेटे से ज़्यादा रीना को तवज्जो दी गयी ? वैसे मीता की गवाही से रीना की भी बोलती बंद हो गयी और वो झूटी साबित हुई रीना को पता है कि मनीष ऐसा नहीं कर सकता है फिर भी उस पर शक कर रही है

आखिरकार रीना की माँ का क़ातिल कौन होगा??? क्या इन सब खूनों का कातिल एक ही है या अलग अलग और जो कुछ शिवालय में हुआ वो भी कुछ कम तूफानी नहीं उम्मीद है की अर्जुन सिंह के आ जाने से बहुत से राज़ पर से पर्दा खुलेगा |
 

Ajju Landwalia

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मित्रों, साथियो, ये कहानी आज समाप्त हो गई है. जब इसे लिखना शुरू किया था तो सोचा नहीं था कि आप सब का इतना साथ मिलेगा, दिल मे बहु ज़ज्बात है कहने को समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूँ जब xossip पर लिखना शुरू किया फिर यहां इस फोरम पर आप लोग हमेशा साथ रहे
इतने साल कैसे बीत गए मालूम ही नहीं हुआ पर हर सृजन का एक अंत होता है मेरे लिए शायद वो आज है. बेशक मैं फोरम नहीं छोड़ूंगा एक पाठक के रूप मे कहानिया पढ़ता रहूँगा
उम्मीद है कि आप सब याद रखेंगे एक साथी और भी था 🙏
Manish Bhai,

Kitne saal ho gaye aapki AMAR kahaniya padhte padhte, Guzarish--2 bhi unme se hi ek thi,

Lekin aapko yu stories likhna chood dena, ek sadme se kam nahi he mere liye,

Auro ka to mujhe pata nahi, lekin mene aapki sabhi kahaniyo padha nahi Jiya he, aisa lagta tha ki sabkuch meri aankho ke samne ho raha he..........

Aapse ek Hath Jod Kar Vinati, dobara jarur likhna......... kyonki aap jaisa koi bhi dobara nahi likh sakta.....

Aapka Ajju
 

Sanju@

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#67

मैं- कैसा अतीत

मीता- तू चल तो सही

मैं- रीना से बहुत कुछ कहना चता था खैर फिर कभी, चल चलते है .

बोझिल, भारी कदमो से हम दोनों हमारी बंजर जमीन पर पहुंचे, रुद्रपुर जाने का सबसे छोटा रास्ता यही से तो जाता था . मैंने हौदी से थोडा पानी पिया और दिवार की टेक लगा कर बैठ गया . मीता मेरे पास बैठ गयी.

मीता- क्या सोच रहा है

मैं- बस यही की आज बाबा से मिला और मिलके भी नहीं मिल सका.

मीता- यही तो मुझे भी समझ नही आया तुझसे ज्यादा तवज्जो रीना को ,पर किसलिए

मैं- उस से फर्क नहीं पड़ता बस एक बार सीने से लगा लेते बहुत था मेरे लिए .

मीता- कहीं रीना की माँ से चौधरी साहब का कोई चक्कर तो नहीं था .तेरे चाचा के जैसे.

मीता की बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया . ताई ने भी कहा था की इस कुनबे के मर्दों को चूत के आगे कुछ नहीं दीखता . हो भी सकता था . पर अर्जुन सिंह उस दौर में इतना रसूखदार तो था ही की रखैल रख लेता तो कौन रोकता उसे, इसलिए मैंने मीता के तर्क को ख़ारिज कर दिया .

मैं- यहाँ पर मामला हवस का नहीं है . सवाल ये है की एक इन्सान अपना सब कुछ त्याग कर सोलह साल गायब रहता है , परिवार में मौत पर भी नहीं आता,सबसे नाता तोड़ लेता है .किसलिए, ताई और चाची ने भी बाबा को सदैव पूजनीय माना है . ताई ने तो मुझसे कहा था की अर्जुन और मेरा रिश्ता काशी का घाट है उसे समझने के लिए तुम्हे गंगा होना पड़ेगा.

मीता- एक मिनट क्या कहा तूने

मैंने अपनी बात दोहराई

मीता- इस दुनिया में इतना पवित्र क्या है की उसकी तुलना गंगा से की जाए.

मैं- एक रिश्ता , भाई-बहन का रिश्ता ओह तेरी, अब समझ आया .

मीता- क्या

मैं- उस रात ताई शिवाले में राखी लेकर किसका इंतज़ार कर रही थी , वो बाबा की राह देख रही थी .

मीता- शायद यही वजह रही होगी की वो बाबा को इतना मानती थी .

मैं- हमें ताई से मिलना होगा. अब उसे बताना ही होगा , तूने सही कहा था की अतीत के पन्ने पलटने का समय आ गया है और पहला पन्ना होगी ताई. हम रुद्रपुर शाम को चलेंगे अभी हमें वापिस चलना चाहिए गाँव .

मीता- उसकी जरुरत नहीं है . वो देख तेरी ताई इधर ही आ रही है .

मैंने देखा ताई बदहवास सी हमारी तरफ ही दौड़ी आ रही थी . कुछ देर में ही वो हमारे सामने थी .

ताई- मैंने सुना अर्जुन लौट आया .कहाँ है वो

मैं- लौट तो आये है पर अभी कहाँ है मालूम नहीं

ताई के चेहरे से जैसे नूर चला गया .

मीता- आप उनको भाई मानती थी न

ताई कुछ नहीं बोली

मैं- ताई मुझे मालूम हो गया है की आपका और बाबा का क्या रिश्ता है , उस रात आप राखी की थाली लिए शिवाले में बाबा का ही इंतज़ार कर रही थी ना.

ताई- तू क्यों अतीत की दीवारों को कुरेद रहा है , मैंने पहले भी कहा था की गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ हासिल नहीं होगा.

मैं- तुम लोगो का अतीत मेरे आज को बर्बाद करने पर तुला हुआ है . तुम्हारा ये अतीत मेरे और रीना के बीच अकार खड़ा हो गया है . मैं करू तो क्या करू. तू मेरी मदद कर मुझे ले चल उन दिनों की यादो में

ताई- कुछ नहीं है उन यादो के दरमियान

मीता- ताई, रीना मनीष को अपनी माँ की कातिल समझती है , मनीष को अपनी बेगुनाही साबित करनी है ,वर्ना उसका और रीना का रिश्ता टूट जायेगा, एक बार जो गाँठ पड़ी फिर न जुड़ पायेगी.

ताई- पागल है वो लड़की, किसी ने उसे बताया क्यों नहीं की वो रीना की माँ नहीं थी वो बस उसे पाल रही थी . अर्जुन की सरपरस्ती में थी रीना, और अर्जुन के अहसानों तले दबी उसने बस रीना को अपना नाम दिया . दुनिया के सामने रीना को अपना नाम दिया उसकी परवरिश की ........

ताई ने आज ऐसा बम फोड़ दिया था जिसने हमें हिला कर रख दिया.

मीता- तो किसकी बेटी है रीना .

ताई- कोई नहीं जानता, एक शाम अर्जुन उसे ले आया .

मीता- क्या रीना बाबा की औलाद है , मतलब क्या बाबा के किसी और औरत से औलाद थी या है .

ताई ने गहरी नजरो से घूर कर मीता को देखा और बोली- मैंने कहा न अर्जुन जैसा कोई नहीं . तुम सौ जनम भी ले लो तो उसे समझ नहीं पाओगे. जानते हो मोहल्ले का हर घर रीना को बेटी क्यों मानता है , क्योंकि उसे सरपरस्ती मिली थी अर्जुन की. उस अर्जुन की जिसके लिए गाँव के हर चूल्हे में रोटी बनती थी की किस घर में वो खाना खाने चला जाए. इस गाँव के हर घर का बेटा है अर्जुन. क्या मालूम गाँव को लगता हो की रीना अर्जुन की बेटी है इसलिए वो विरोध कर रहे हो .



मैं- मेरा दिल कहता है की रीना बाबा की बेटी नहीं है , अगर ऐसा कुछ होता तो वो उसे छोड़ कर एक मिनट भी नहीं जाते.

मीता-पर जिस तरह से भरे गाँव के सामने तुमसे पहले बाबा ने उसे गले लगाया शक तो होता है इस बात पर.

मैं- नहीं , ऐसा नहीं हो सकता .

ताई- अर्जुन कहा है

मैं- बताया न , वो आये और बस चले गए.

ताई- उसे जाना होता तो वो लौटता नहीं.

मैं- बाबा ने रुद्रपुर में कत्लेआम क्यों मचाया

ताई- ये राज बस अर्जुन के मन में दफ़न है .

मीता- मनीष हमें ये मालूम करना होगा की रीना और बाबा का क्या रिश्ता है .

मैं- पर कैसे , कैसे .... कहाँ है वो डोरी जो इस जाल को तितर -बितर कर दे.

हताश होकर ताई वापिस लौट गयी पर अब हम दोनों को चैन नहीं था ,बहुत सोचने के बाद मुझे एक रास्ता सूझा

मैं- मीता, हमें जब्बर से मिलना होगा.

मीता- क्यों


मैं- ये तो वही जाकर ही मालूम होगा...........
सही में ताई हमेसा एक ही बात बोलती है की गढ़े मुर्दे मत उखाड़ पर ये मनीष को सच्चाई क्यों नही बता देते मनीष इन सब में उलझ रह है और वो ऐसा कर रहा है जो नही होना चाहिए था मनीष को ये तो पता चला की ताई और अर्जुन का क्या रिश्ता था ऐसा तो कई बार पढ़ा जा चुका है की अर्जुन सिंह को लोग बहुत मानते थे, इससे यही जाहीर होता है की वो हवशी नहीं था लेकिन फिर जब्बार की बहन के साथ उसके संबंध का चक्कर क्यो उछाला गया ??? सवाल अभी भी बहुत हैं। आखिरी ऐसी कौन सी वजह थी की वो इतने सालो तक अपने लोगो से दूर रहा और उस दिन ही क्यो लौट आया जब रीना मां की हत्या हुई ???
रीना की मां उसकी असली मां नही है तो उसकी मां कोन है वह किसकी बेटी है अर्जुन से उसका क्या संबंध है???????
 

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#68

हम दोनों उसी समय जब्बर से मिलने के लिए चले गए . पर अफ़सोस वो कहीं बाहर गया हुआ था . निरासा से भरे हुए कदमो से वापिस लौटना कठिन था .

मीता-क्या बता सकता है ये जब्बर हमें

मैं- कोई ऐसी बात जो हमारे काम में आये, उसे लगता है की बाबा ने उसकी बहन का इस्तेमाल किया , इस घटना से पहले इनकी मजबूत दोस्ती थी .

मीता- बाबा ऐसी ओछी हरकत कभी नहीं करेंगे.

मैं- जब्बर के पास क्या मालूम कुछ ठोस सबूत हो .

मीता- पर न जाने कहाँ गया है ये जब्बर

मैं- कोई न , आज नहीं तो कल मिल ही जायेगा.

ढलती शाम में मैंने मीता का हाथ पकड़ा और हम दोनों नहर की पुलिया पर बैठ गए.

मीता- ऐसे मत देखा कर मुझे तू

मैं- तू ही बता कैसे देखू तुझे.

मीता- ये नजरे सीधा दिल पर जाकर लगती है

मैं- तो इसमें मेरा क्या कसूर , तू दोष दिल को दे

मीता- दिल भी तेरा ही है न

मैं- दिल अपना प्रीत पराई

मीता- वो क्यों भला

मैं- सब कुछ तेरे सामने ही है . एक तरह तू है एक तरफ रीना है . मैं न उसे छोड़ सकता हूँ न तुझे.

मीता- पर किसी दिन तो ये निर्णय लेना ही होगा न

मैं- मैं उस दिन भी दोनों में से किसी को नहीं छोडूंगा.

मीता- क्या तू मुझसे भी मोहब्बत करता है

मैं- ये त्रिकोण एक दिन मेरी जान ले जायेगा.

मीता- वैसे तू चाहे तो मेरा साथ छोड़ सकता है

मैं- इतना खुदगर्ज़ नहीं मैं, पल पल मेरे साथ तू खड़ी है और तू कहती है की तेरा साथ छोड़ दूँ.

मीता- हाथ थाम भी तो नहीं पायेगा तू .

ढलती शाम ने उसका सांवला चेहरा दमक रहा था सुनहरे सोने सा. मैंने उसके चेहरे को अपने हाथो में लिया और बोला- श्याम से पहले सदा राधा का नाम आया है .

मीता- जो प्यार कर गए वो लोग और थे .

मैं- हम भी तो प्यार ही कर रहे है .

मीता- ये कैसा प्यार है , चल मैं मान भी गयी इस त्रिकोण के लिए तो भी रीना नहीं मानेगी, मैं लिख कर देती हूँ तुझे. उसके दिल में तेरे लिए जो प्यार है . वो हद से गुजर जाएगी पर तुझे किसी और का नहीं होने देगी.

मैं- तो तुम दोनों देख लेना, मैं बहुत थक गया हूँ, मैं सोना चाहता हूँ

मीता और मैं थोड़ी देर बाद कुवे पर आ गए. मैंने कपडे उतारे और पानी की हौदी में कूद गया . ठन्डे पानी ने मेरे वजूद को अपने अन्दर समेट लिया. मीता ने चारपाई बाहर लाकर पटक दी और चाय बनाने लगी. इस पानी की हौदी में मुझे बड़ा आराम मिलता था , इसके अन्दर ही मेरा दिमाग ठीक से काम करता था , कुछ बेहतरीन विचार मुझे यही पर आये थे . गर्दन तक पानी में डूबे मैं बस जब्बर के बारे में ही सोच रहा था . आखिर वो क्या बात थी , जब्बर की बहन के बारे में मुझे पड़ताल करनी थी . क्या अतीत था उसका. मैं बहुत ज्यादा थका था तो मैंने बिस्तर पकड़ लिया. पर नसीब के जब लौड़े लगे हो तो नींद भी साली बेवफा हो जाती है . बरसात की बूंदों ने मेरी नींद तोड़ दी. मैंने देखा की मीता चारपाई पर नहीं थी, मैंने उसे कमरे में देखा वो वहां पर भी नहीं थी.



मैंने दो चार बार उसे आवाज दी पर कोई जवाब नहीं आया. थोडा परेशां हो गया मैं ऐसे बिना बताये वो कहीं नहीं जाती थी . हाल के दिनों में जो घटनाये हुई थी थोडा घबराना तो मेरा लाजमी था. सबसे पहला ख्याल दिल में बस यही आया की कहीं वो शिवाले पर तो नहीं गयी. मैंने एक पतली सी चादर ओढ़ी और हाथ में एक लकड़ी लेकर बरसात में ही रुद्रपुर की तरफ चल दिया.

मैंने देखा की खंडित शिवाले का मलबा इधर-उधर बिखरा हुआ था . पर देहरी पर एक छोटा सा दीपक जल रहा था . न जाने क्यों मेरे होंठो पर मुस्कराहट सी आ गयी.कहने को तो ये जगह कुछ भी नहीं थी पर अपने अन्दर न जाने क्या समेटे हुई थी.न जाने क्या कहानी थी जिसे वक्त की रेत अपने अंदर दफ़न कर ही नहीं पा रही थी .

मैं आगे बढ़ कर देवता के स्थान पर पहुंचा तो अचम्भे से मैं हैरान रह गया , मेरी आँखों ने मुझे धोखा देना चाहा . देवता का प्रांगन दियो से रोशन था . पर जैसे ही मैंने पैर वापिस किया दहलीज से घुप्प अँधेरा छ गया , पैर आगे बढ़ाते ही शिवाला रोशन होने लगा. मैंने दो तीन बार करके देखा. ये धोखा नहीं था.

“तुम अन्दर आ सकते हो ” किसी औरत ने मुझे आवाज दी.

बेशक मैं घबराया हुआ था पर मैं सावधान था . मैं जरा भी नहीं हिला.

“तुम्हे डरने की जरुरत नहीं है .” अन्दर से फिर आवाज आई.

हिचकिचाते हुए मैं दहलीज को पार करके अन्दर चला गया .

“अपनी सारी परेशानियों को इनके पास छोड़ दो. शिव सबके है , तुम्हारे भी है तुम्हे भी देख रहे है वो ” उसने कहा और मुझे बैठने का इशारा किया.

मैं बस उस औरत को देखे जा रहा था , उसके चेहरे पर ऐसा तेज था की ये तमाम दिए न भी होते तो भी ये शिवाला रोशन हो जाता. उसके चांदी से बाल .ठोड़ी के निचे तीन टिल. हाथो में चांदी के कड़े. बड़ा प्रभावशाली व्यक्तित्व था उसका.

“कौन है आप ” मैंने हाथ जोड़ कर उसका परिचय पूछा.

औरत- मैं एक डोर हूँ जो बंधी हूँ इस शिवाले से

उसने एक थाली निकाली जो खाने से भरी थी . उसने रोटी का एक टुकड़ा तोडा और बोली- बेटे, खाना खाओ.

न जाने क्या बात थी उसमे, मैं ना कह नहीं पाया. उन कुछ निवालो से ही मेरा पेट भर गया. ऐसा अहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ था . न जाने क्यों मेरी आँखों से बहकर आंसू उसकी हथेली को भिगोने लगे.

“ये आंसू किसलिए भला ” उसने मुस्कुराते हुए कहा .

मैं- कभी माँ के हाथ से ऐसे खा नहीं पाया. बरसो से दबी इच्छा आंसू बन कर बह चली.

औरत -समझती हूँ . एक बेटे के लिए माँ का क्या महत्व होता है . ये सब नसीब का खेल है , मिलन है जुदाई है तकदीरो के लेख को भला कौन समझ पाया है .

मैं- इस शिवाले की कहानी क्या है क्या आप मुझे बतायेंगी. जब से मेरे कदम यहाँ पड़े है मेरी जिन्दगी बदल गयी है .

औरत- ये खुशकिस्मती है तुम्हारी . शिवाले की क्या कहानी भला. जिन्दगी के तमाम रंग है शिवाले में सुख है दुःख है .

इस से पहले वो कुछ और कहती वो तमाम दिए बुझने लगे. वो औरत मेरे पास आई मेरे माथे को चूमा और बोली- अतीत के पन्ने मत पलटना , जो है वो आज है और आने वाला कल है .


इस से पहले मैं कुछ कहता शिवाले में घुप्प अँधेरा छा गया . जब तक मेरी आँखे देखने लायक हुई वहां पर कुछ भी नहीं था .
कहानी का सबसे अच्छा दृश्य वो होता है जब मनीष रीना या मीता के साथ होता है और उनके बीच प्रेम की गहरी बात होती है। वो ऐसी बात होती है जो दिल को छू जाती है...इसमे कोई शक नही
अर्जुन सिंह की वाप्सी तो हुई लेकिन फिर से गायब हो गया है। अतित के पन्नो को खंगालने का जूनून अब खतम हो ही नहीं सकता क्योंकि मनीष अब वहा पहुंच चूका है जहां से वो खुद चाह कर भी वापस नहीं आ सकता है। जब्बार की तलाश में मनीष और मीता उसके घर जाते हैं लेकिन वो नहीं मिलता है शिवाला जो की अब मालबे का ढेर बन गया है वहा रात में दीया किसने जलाया था मनीष जिस औरत से मिला उसने एक मां की तरह बड़ी ममता के साथ खाना खिलाया सवाल है कौन है वो औरत? जिस तरह से उसे मनीष के माथे को चूमा था वैसा तो एक मां ही करता है तो क्या वो सच में मनीष की मां है? वैसे उसके भी मनीष से वही बोला जो अब तक संध्या और ताई बोलती है
 
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