SKYESH
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Shandaar update#75
“कैसा सौदा ” पूछा मैंने
अर्जुन- बलबीर को अमृत कुण्ड देखना था .
“अमृत कुण्ड ” इस बार हम तीनो ही एक साथ बोल पड़े.
बाबा ने गहरी नजरो से हमें देखा और फिर बोले- अमृत कुण्ड एक किवंदिती है सच है या झूठ कोई नहीं जानता, मैंने बलबीर से कहा की मुझे भला कैसे मालूम होगा इसके बारे में पर उसे लगता था की मेरे शब्द खोखले थे .
संध्या-शिवाले की रहस्यमई दुनिया
अर्जुन-मेरे पास मेले तक का समय था . पर मन में परेशानी बहुत थी जब्बर अक्सर मुझसे पूछता मैं बस टाल देता. समय को जैसे पंख लग गए थे जब जब मैं तुम्हारा चेहरा देखता मेरे अन्दर का भाई रो पड़ता. मुझे बस ये डर रहता की फूल सी हमारी बहन का दिल जब टूटेगा तो उसके आंसुओ में कही हम बह न जाये. फिर मैंने वो फैसला लिया जो शायद मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी मैंने बलबीर के प्रस्ताव को मान लिया.
मीता- पर कैसे, कहानिया भला कैसे सच हो सकती है .
अर्जुन- ठीक वैसे ही जैसे की तुम सच हो खैर,मैंने बलबीर से कहा की जैसे ही वो मंदा से सगाई करता है मैं उसकी इच्छा पूरी करूँगा पर उस धूर्त को मेरी जुबान पर भरोसा नहीं था .जब मैंने मेले में बलि की परम्परा को समाप्त किया तो बलबीर को मुझसे जलन और बढ़ गयी . मुझे ये बिलकुल नहीं मालूम था की उसके कुटिल मन में क्या है . उस रात उस क़यामत की रात , बहुत सी घटनाये एक साथ हुई. जिसने हम सब की जिंदगियो के रुख मोड़ दिए. मुझे बलबीर पर शंका थी , जब मैं उस रात जब्बर के घर गया तो मालूम हुआ की मंदा मेले से लौटी नहीं तो मैं रुद्रपुर की तरफ चल दिया मुझे एक काम और था वहां . जब मैं शिवाले से थोड़ी दूर पहुंचा तो देखा की अँधेरे में एक स्त्री की करुण कराहे गूँज रही थी . मेरा माथा ठनका और जब मैंने देखा तो मेरी आँखों में ऐसा क्रोध समाया की वो हुआ जो होकर ही रहता.
मैं- क्या हुआ था बाबा उस रात
बाबा ने एक नजर मंदा को देखा जिसकी आखो में पानी था और फिर बोले- बलबीर ने मंदा को अपने चेले-चापटो को परोस दिया था नशे में चूर उन लोगो ने वो किया जो किसी के साथ भी नहीं होना चाहिए था . ग्यारह लाशो के बाद मैंने मंदा को देखा जो नशे में बेसुध अपना सब कुछ गँवा बैठी थी मैं परेशां, किसी से कुछ कह नहीं सकता . किसको बताऊ ये दुःख . जब्बर को नहीं नहीं वो कुछ कर बैठेगा. मेरा कलेजा कमजोर हो गया .
“मंदा, मेरी बहन होश कर ” मैंने बेसुध मंदा को जगाने की कोशिश की .
“होश कर मंदा मैं हूँ अर्जुन ” मैंने उसे कहा
“अर्जुन भैया ,तुम हो ” मंदा बस इतना ही कह पाई और बेहोश हो गयी .
मेरे दिल पर एक ऐसा बोझ आ गया था जो उतारे न उतारे, कहाँ लेकर जाऊ कहाँ जाकर छिपाऊ अपनी बहन की रुसवाई. जब कुछ न सूझा तो मैं मंदा को हमारी बावड़ी में ले गया और इसे वहां पर छुपा दिया. दो- तीन दिन गुजर गए . गाँव में खबर उड़ने लगी की मंदा गायब है . जब्बर की परेशानी देखि नहीं गयी मुझसे पर मैं उसे बता भी नहीं सकता था . अन्दर ही अन्दर घुटने लगा मैं. तो हार कर मैंने तुम्हारी माँ को सारी बात बताई वो मंदा को देखने आई. तब मालूम हुआ की बलबीर ने मंदा को शापित करवा दिया था . वो जानता था की मंदा के लिए मैं अमृत कुण्ड को जरुर खोलूँगा. दम्भी बलबीर ये नहीं जानता था की सृष्टी के अपने नियम है . मंदा की हालत मुझसे देखि नहीं जा रही थी . हम दोनों पति पत्नी उसकी तीमारदारी कर रहे थे . पर तभी न जाने कैसे मंदा के बारे में बड़े चौधरी को मालूम हो गया . जब मैं तांत्रिक जिसने मंदा को शापित किया था उसकी तलाश में गया हुआ था तो पीछे से बड़े चौधरी बावड़ी वाली जमीन पर आ पहुंचे . और उस दिन मंदा , उस दिन तुम्हे मुझसे नफरत हो गयी क्योंकि नशे में बड़े चौधरी ने जो घर्नित कार्य तुमसे किया तुम्हे लगा की मैंने तुम्हारा बलात्कार किया. तुम्हारे अवचेतन मन में ये बात बैठ गयी की जिस अर्जुन को तुमने भाई से बढ़ कर माना उसने तुम्हारी आबरू लूट ली पर वो दरिंदा बड़े चौधरी थे. तुम्हारे अन्दर जो नफरत उस पल हुई उसने तुम्हे पोषित कर दिया. जब मैं तांत्रिक को लेकर पहुंचा तो मुझे सब मालूम हुआ तुम्हारी कसम मंदा मैंने अपने बाप को भी वही सजा दी जो मैंने बलबीर और उसके चेलो को दी थी .
शिवाले में गहरी शांति पसर गयी थी . बरसात का तेज शोर इस घिनोने सच के आगे कम पड़ गया था . तांत्रिक के कहने पर मैं तुम्हे शिवाले में ले गया पर उस दिन एक कहानी और लिखी जा रही थी . वहां पर कुछ लोग और थे जिनमे से दो मेरे अजीज दोस्त और एक ददा ठाकुर था . मेरे दोस्त वहां पर देवता का श्रृंगार चुराने आये थे . ददा ठाकुर वहां पर बलबीर की मौत का राज तलाश कर रहा था और मैं तुम्हे बचाने की कोशिश कर रहा था . न जाने कैसे गाँव वालो को ये खबर हो गयी की शिवाले में चोर है तो पूरा गाँव टूट पड़ा. अफरा तफरी में ददा ठाकुर सुनार से टकरा गया सुनार ने गहनों की एक पोटली ददा पर फेक दी . जबबर भागते हुए उस तरफ आ निकला जहाँ मैं मंदा के साथ था . अँधेरे में उसने मुझे और मंदा को देख लिया उसके मन में ये बात घर कर गयी की मंदा को मैंने ख़राब किया है . गाँव वालो ने जब्बर, सुनार , और ददा को चोर समझ लिया .मैं नहीं चाहता था की गाँव वालो को मंदा के बारे में मालूम हो तो मैं उन्हें शांत करवाने जा रहा था की मैंने देखा की रस्ते में गहने पड़े है मैंने उन्हें वापिस शिवाले में रखने के लिए उठा लिया तब तक गाँव वाले आ गए और चोरो की लिस्ट में एक नाम और जुड़ गया . उस रात जो भी हुआ मुझे परवाह नहीं थी मुझे मंदा की फ़िक्र थी पर तांत्रिक नाकाम हो गया . उसने मुझे वो सच बताया जिसने मेरे लिए और बड़ी परेशानी कर दी. मंदा गर्भवती थी .शायद ये ही वो बात रही होगी जो बताने के लिए वो उस रात बलबीर के पास गयी थी . तब मेरी मदद संध्या ने की . अपने तंत्र की मदद से उसने ऐसी व्यवस्था की ताकि मंदा के पेट में पल रही निशानी तो सुरक्षित रहे कम से कम
पर समस्या एक और थी मंदा के गर्भ में दो भ्रूण थे .
#74
“वक्त का पहिया घूमते हुए फिर से यही पर आकर रुक गया है अर्जुन, देखो जरा अपने आस पास मैं हूँ तुम हो और ये बरसता सावन ” मंदा ने कहा .
अर्जुन- बच्चो को जाने दे मंदा . तुझे जो कहना है मुझसे कह, जो करना है मेरे साथ कर .
मंदा- किया तो तुमने था मुझे बर्बाद.
अर्जुन- तो फिर ख़तम कर इस किस्से को, इस दर्द से तू भी आजाद हो और मुझे भी कर. तुझे लगता है की मैं तेरा गुनेहगार हूँ तो ये ही सही . तेरा हक़ है मुझ पर दे सजा मुझे
मंदा- तेरे सामने तेरे वंश को ख़तम करुँगी मैं , इस से बेहतर सजा क्या होगी तेरे लिए अर्जुन, याद कर वो दिन जब मैं तडपी थी , आज तू तडपेगा तूने छल किया मेरे साथ ,
इस से पहले की बाबा कुछ कहते चाची बीच में बोल पड़ी- मंदा , तेरी आँखों पर पर्दा पड़ा है तुझे तेरे दर्द, तेरे बदले के सिवाय कुछ नहीं दिख रहा है .क्रोध में इस कदर अंधी हुई है तुझे की आज तक चैन नहीं मिला दिल पर हाथ रख कर देख और फिर कह जिस इन्सान पर तू इल्जाम लगा रही है , जिस इन्सान के प्रति तू इतनी नफरत लिए है की तू आगे नहीं बढ़ पाई.
मंदा- तुझसे तो मैं बाद निपट लुंगी. तू क्या जाने इसने मेरे साथ क्या किया था .
संध्या- तू ही बता फिर, आज इस शिवाले में तू भी है मैं भी हूँ हम सब है , तू ही बता मंदा आखिर उस रात क्या हुआ था , आखिर क्यों सब कुछ बर्बाद हो गया .
अर्जुन- संध्या तुम इन तीनो को लेकर यहाँ से जाओ
मंदा- कोई कहीं नहीं जाएगा. शुरू तुमने किया था अर्जुन ख़तम मैं करुँगी . अपने भाई से बढ़कर मैंने तुम्हे माना था . मेरी राखी के धागे को तुमने इतना कमजोर कर दिया तुमने की सब बर्बाद कर दिया तुमने. मेरे प्रतिशोध की अग्नि आज तुम्हे, तुम्हारे वंश को सब को ख़तम कर देगी.
मंदा की छाया का रूप बदलने लगा. वो धुआ धुआ होने लगी और जब वो धुआ छंटा तो हमारे सामने एक बेहद सुंदर औरत खड़ी थी . इतनी सुन्दर की उसके रूप को देखना ही आँखों को गुस्ताखी लगे. पर उसके चेहरे पर दुनिया भर का क्रोध था . आँखे अँधेरे से भी काली. मंदा ने मुझ पर अपने नुकीले नाखूनों से वार किया जो मेरी पीठ को उधेड़ गए.
रीना- मंदा , तुम जो भी हो मैं फिर तुमसे कहती हूँ मनीष की आन हूँ मैं , प्रीत की डोर बाँधी है मैंने उस से और मेरे प्रेम की डोर इतनी कमजोर नहीं की तेरे जैसी ऐरी गैरी कोइ भी तोड़ दे.
मंदा- बहुत बोलती है तू , पहले तेरा ही इलाज करती हूँ मैं
मंदा ने न जाने क्या किया रीना के बदन में आग लगने लगी. लपटों में घिरने लगी वो . मीता उसे बचाने की कोशिश करने लगी तो मंदा ने उसे भी धर लिया .
“ये अनर्थ मत मर मंदा , ”अर्जुन ने मंदा के आगे हाथ जोड़ दिए पर उसका कलेजा नहीं पसीजा
संध्या- अब बस एक रास्ता है इसे रोकने का वर्ना ये दोनों को मार देगी.
अर्जुन- नहीं .
संध्या- कब तक चुप रहेंगे आप. जो बोझ आपके दिल पर है आज वक्त आ गया है उसे उतारने का. आप चुप रह सकते है पर मैं बोलूंगी आज और मुझे कोई नहीं रोकेगा.
चाची मंदा की तरफ मुखातिब हुई और बोली- मंदा तू चाहे तो इन दोनों को मार दे पर ये याद रखना इनके बदन से टपकता लहू तेरा ही है. इनकी चिताओ से उठता धुआं तेरा ही होगा.
अचानक से मंदा के हाथ रुक गए रीना और मीता धडाम से निचे गिरी “क्या कहा तूने ” मंदा ने कांपती आवाज में पूछा
संध्या- ये दोनों तेरी ही बेटिया है मंदा .
चाची ने ऐसा धमाका कर दिया था जिसने की शिवाले को हिला कर रख दिया .
“मुझे बोलने दीजिये जेठजी , आज ये राज जो आप बरसो से अपने सीने में दबाये हुए है आज खोलना ही होगा वर्ना ये न जाने क्या अनर्थ कर बैठेगी. जिसको तू अपना गुनेहगार समझती है उसकी सरपरस्ती में ही तेरी बेटिया आज देख कैसे सर उठा कर खड़ी है.मुझे लगा था तू इन्हें पहचान जायेगी पर आँखों पर पड़े परदे ने अपने ही खून को नहीं पहचाना ” चाची ने कहा.
मैंने देखा की रीना और मीता के चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी . झटका तो मुझे भी लगा था पर पिछले कुछ महीनो में जो भी देखा था जो भी बीता था तो इसे भी मान लिया .
मंदा- मेरी बेटिया ........
अर्जुन- यही सच है मंदा, ये दोनों बच्चिया तेरे आँगन के ही फूल है . तू चाहे मुझे जो भी दोष दे पर मैंने राखी के हर फर्ज को निभाया . आज भी हालात ऐसे हो गए की ना चाहते हुए भी मुझे ये राज़ खोलना पड़ रहा है मंदा. वर्ना जीते जी मैं तेरी रुसवाई कभी नहीं होने देता.
बरसती बूंदों के बीच उभरती रात अपने साथ अजीब सी बेचैनी ले आई थी .
अर्जुन- मुझे मालूम हो गया था की तू बलबीर (पृथ्वी का पिता ) के प्यार में पड़ गयी थी . कब तू उसे अपना मानने लग गयी थी . पर मंदा तुझे ये नहीं मालूम था की वो बस तेरा इस्तेमाल कर रहा है . उसके लिए तू कुछ नहीं थी सिवाय एक खिलोने के जिस से उसका मन भरने लगा था .
अर्जुन- तुझे अपनी बहन माना था तो मेरा कलेजा जलता था की जब तुझे सच का मालूम होगा तो तू कैसे सह पाएगी ये सब इसलिए एक रात मैं बलबीर से मिलने रुद्रपुर गया . मैंने उसके पैरो में अपनी पगड़ी रख दी , मैं चाह कर भी जब्बर को ये नहीं बता सकता था की हमारी बहन के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ हुआ है . पर बलबीर के मन में कुछ और ही था उसने मुझसे एक सौदा किया बदले में तुझसे ब्याह करने का वचन भी दिया उसने मुझे .
#75
“कैसा सौदा ” पूछा मैंने
अर्जुन- बलबीर को अमृत कुण्ड देखना था .
“अमृत कुण्ड ” इस बार हम तीनो ही एक साथ बोल पड़े.
बाबा ने गहरी नजरो से हमें देखा और फिर बोले- अमृत कुण्ड एक किवंदिती है सच है या झूठ कोई नहीं जानता, मैंने बलबीर से कहा की मुझे भला कैसे मालूम होगा इसके बारे में पर उसे लगता था की मेरे शब्द खोखले थे .
संध्या-शिवाले की रहस्यमई दुनिया
अर्जुन-मेरे पास मेले तक का समय था . पर मन में परेशानी बहुत थी जब्बर अक्सर मुझसे पूछता मैं बस टाल देता. समय को जैसे पंख लग गए थे जब जब मैं तुम्हारा चेहरा देखता मेरे अन्दर का भाई रो पड़ता. मुझे बस ये डर रहता की फूल सी हमारी बहन का दिल जब टूटेगा तो उसके आंसुओ में कही हम बह न जाये. फिर मैंने वो फैसला लिया जो शायद मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी मैंने बलबीर के प्रस्ताव को मान लिया.
मीता- पर कैसे, कहानिया भला कैसे सच हो सकती है .
अर्जुन- ठीक वैसे ही जैसे की तुम सच हो खैर,मैंने बलबीर से कहा की जैसे ही वो मंदा से सगाई करता है मैं उसकी इच्छा पूरी करूँगा पर उस धूर्त को मेरी जुबान पर भरोसा नहीं था .जब मैंने मेले में बलि की परम्परा को समाप्त किया तो बलबीर को मुझसे जलन और बढ़ गयी . मुझे ये बिलकुल नहीं मालूम था की उसके कुटिल मन में क्या है . उस रात उस क़यामत की रात , बहुत सी घटनाये एक साथ हुई. जिसने हम सब की जिंदगियो के रुख मोड़ दिए. मुझे बलबीर पर शंका थी , जब मैं उस रात जब्बर के घर गया तो मालूम हुआ की मंदा मेले से लौटी नहीं तो मैं रुद्रपुर की तरफ चल दिया मुझे एक काम और था वहां . जब मैं शिवाले से थोड़ी दूर पहुंचा तो देखा की अँधेरे में एक स्त्री की करुण कराहे गूँज रही थी . मेरा माथा ठनका और जब मैंने देखा तो मेरी आँखों में ऐसा क्रोध समाया की वो हुआ जो होकर ही रहता.
मैं- क्या हुआ था बाबा उस रात
बाबा ने एक नजर मंदा को देखा जिसकी आखो में पानी था और फिर बोले- बलबीर ने मंदा को अपने चेले-चापटो को परोस दिया था नशे में चूर उन लोगो ने वो किया जो किसी के साथ भी नहीं होना चाहिए था . ग्यारह लाशो के बाद मैंने मंदा को देखा जो नशे में बेसुध अपना सब कुछ गँवा बैठी थी मैं परेशां, किसी से कुछ कह नहीं सकता . किसको बताऊ ये दुःख . जब्बर को नहीं नहीं वो कुछ कर बैठेगा. मेरा कलेजा कमजोर हो गया .
“मंदा, मेरी बहन होश कर ” मैंने बेसुध मंदा को जगाने की कोशिश की .
“होश कर मंदा मैं हूँ अर्जुन ” मैंने उसे कहा
“अर्जुन भैया ,तुम हो ” मंदा बस इतना ही कह पाई और बेहोश हो गयी .
मेरे दिल पर एक ऐसा बोझ आ गया था जो उतारे न उतारे, कहाँ लेकर जाऊ कहाँ जाकर छिपाऊ अपनी बहन की रुसवाई. जब कुछ न सूझा तो मैं मंदा को हमारी बावड़ी में ले गया और इसे वहां पर छुपा दिया. दो- तीन दिन गुजर गए . गाँव में खबर उड़ने लगी की मंदा गायब है . जब्बर की परेशानी देखि नहीं गयी मुझसे पर मैं उसे बता भी नहीं सकता था . अन्दर ही अन्दर घुटने लगा मैं. तो हार कर मैंने तुम्हारी माँ को सारी बात बताई वो मंदा को देखने आई. तब मालूम हुआ की बलबीर ने मंदा को शापित करवा दिया था . वो जानता था की मंदा के लिए मैं अमृत कुण्ड को जरुर खोलूँगा. दम्भी बलबीर ये नहीं जानता था की सृष्टी के अपने नियम है . मंदा की हालत मुझसे देखि नहीं जा रही थी . हम दोनों पति पत्नी उसकी तीमारदारी कर रहे थे . पर तभी न जाने कैसे मंदा के बारे में बड़े चौधरी को मालूम हो गया . जब मैं तांत्रिक जिसने मंदा को शापित किया था उसकी तलाश में गया हुआ था तो पीछे से बड़े चौधरी बावड़ी वाली जमीन पर आ पहुंचे . और उस दिन मंदा , उस दिन तुम्हे मुझसे नफरत हो गयी क्योंकि नशे में बड़े चौधरी ने जो घर्नित कार्य तुमसे किया तुम्हे लगा की मैंने तुम्हारा बलात्कार किया. तुम्हारे अवचेतन मन में ये बात बैठ गयी की जिस अर्जुन को तुमने भाई से बढ़ कर माना उसने तुम्हारी आबरू लूट ली पर वो दरिंदा बड़े चौधरी थे. तुम्हारे अन्दर जो नफरत उस पल हुई उसने तुम्हे पोषित कर दिया. जब मैं तांत्रिक को लेकर पहुंचा तो मुझे सब मालूम हुआ तुम्हारी कसम मंदा मैंने अपने बाप को भी वही सजा दी जो मैंने बलबीर और उसके चेलो को दी थी .
शिवाले में गहरी शांति पसर गयी थी . बरसात का तेज शोर इस घिनोने सच के आगे कम पड़ गया था . तांत्रिक के कहने पर मैं तुम्हे शिवाले में ले गया पर उस दिन एक कहानी और लिखी जा रही थी . वहां पर कुछ लोग और थे जिनमे से दो मेरे अजीज दोस्त और एक ददा ठाकुर था . मेरे दोस्त वहां पर देवता का श्रृंगार चुराने आये थे . ददा ठाकुर वहां पर बलबीर की मौत का राज तलाश कर रहा था और मैं तुम्हे बचाने की कोशिश कर रहा था . न जाने कैसे गाँव वालो को ये खबर हो गयी की शिवाले में चोर है तो पूरा गाँव टूट पड़ा. अफरा तफरी में ददा ठाकुर सुनार से टकरा गया सुनार ने गहनों की एक पोटली ददा पर फेक दी . जबबर भागते हुए उस तरफ आ निकला जहाँ मैं मंदा के साथ था . अँधेरे में उसने मुझे और मंदा को देख लिया उसके मन में ये बात घर कर गयी की मंदा को मैंने ख़राब किया है . गाँव वालो ने जब्बर, सुनार , और ददा को चोर समझ लिया .मैं नहीं चाहता था की गाँव वालो को मंदा के बारे में मालूम हो तो मैं उन्हें शांत करवाने जा रहा था की मैंने देखा की रस्ते में गहने पड़े है मैंने उन्हें वापिस शिवाले में रखने के लिए उठा लिया तब तक गाँव वाले आ गए और चोरो की लिस्ट में एक नाम और जुड़ गया . उस रात जो भी हुआ मुझे परवाह नहीं थी मुझे मंदा की फ़िक्र थी पर तांत्रिक नाकाम हो गया . उसने मुझे वो सच बताया जिसने मेरे लिए और बड़ी परेशानी कर दी. मंदा गर्भवती थी .शायद ये ही वो बात रही होगी जो बताने के लिए वो उस रात बलबीर के पास गयी थी . तब मेरी मदद संध्या ने की . अपने तंत्र की मदद से उसने ऐसी व्यवस्था की ताकि मंदा के पेट में पल रही निशानी तो सुरक्षित रहे कम से कम
पर समस्या एक और थी मंदा के गर्भ में दो भ्रूण थे .
यह कहानी मंदा की। उसके साथ हुए छल फरेब और जबरदस्ती से की गई रेप की। उसकी बदले की और उसके गलतफहमियों की।#76
संध्या- मीता तुम वो तस्वीर देख कर चौंक गयी क्योंकि उसमे तुमने खुद को देखा जबकि वो मैं थी इसका कारण ये था की मैंने तुमको अपने गर्भ में पोषित किया था .
बाबा- पर समस्या अभी और थी रीना को कैसे बचाया जाये और तब मैंने किसी ऐसे को तलाश किया और ये काम भी हो गया पर मंदा के अवचेतन मन में मेरे प्रति नफरत बढती जा रही थी ये बात तांत्रिक ने मुझे बता दी थी . पर इस से पहले की हम कुछ उपाय कर पाते मंदा ने प्राण त्याग दिए चूँकि वो प्रतिशोध से पोषित थी तो उसके कहर को रोकने के लिए मैंने किसी खास से मदद मांगी और मंदा की रूह को शिवाले में कैद कर दिया. वो हीरा और धागा चाबी थे तुम्हारी यादो के, तुम्हारे आजाद होने का तुम्हारी आत्मा कमजोर रहे इसलिए हमने उनके तीन टुकड़े किया ताकि तुम शांत रहो पर नसीब देखो मनीष के हाथ वो धागे और वो हीरा लग गया. मेरी चेतावनी को नजरंदाज करके इसने वो लाकेट बनाया दरअसल इसने आत्मा के दो टुकडो को एक कर दिया.ऐसा होते ही मंदा की बेचैनी बढ़ने लगी वो बस आजाद होना चाहती थी . आत्मा के प्यासे टुकडो ने गाँव के लोगो का खून पीना शुरू कर दिया . ये कहानी मुझे यहाँ तक मालूम है पर तुमने सुनार को क्यों मारा ये मैं चाह कर भी पता नहीं कर पाया
मंदा- क्योनी सुनार भी शामिल था मेरी बर्बादी में, बड़े चौधरी के साथ उसने भी मेरी इज्जत लूटी थी .
मंदा के इस खुलासे ने हम सबको हिला कर रख दिया मैंने सोचा साला पहले ही मर गया वर्मैंना मैं उसे मार देता. देखा मंदा की आँखों से बेहिसाब आंसू बह रहे थे , एक प्रेतनी होकर भी ऐसा व्यवहार .वो मीता और रीना के पास गयी उनको अपने सीने से लगा लिया और दहाड़ मार कर रोने लगी. रोती ही रही . फिर वो बाबा के पास आई और अपना सर बाबा के पांवो में रख दिया . उसने गले से वो लाकेट उतरा और बाबा के हाथ में रख दिया. बाबा ने उसके सर पर हाथ रखा और बोले- मुक्त हो जाओ मंदा,मुझे भी इस बोझ से मुक्त करो . तुम जो जिन्दगी नहीं जी पायी इन बच्चो को जीने दो .
मंदा रीना और मीता के पास गयी और बोली- सदा इनके सानिध्य में रहना ,
मंदा के बदन में शोले भड़काने लगे और कुछ ही देर में वहां पर बस राख ही पड़ी थी . दोनों लडकिया भाग कर संध्या चाची के गले लग गयी . बाबा ने संध्या चाची को लडकियों के साथ घर जाने को कहा रह गए हम दोनों.
बाबा- कहानी खतम हुई.
मैं- दुनिया के लिए बाबा मेरे लिए नहीं .
बाबा- क्या मतलब है तेरा
मैं- मुझे वो बाते भी जाननी है जो अधूरी है
बाबा-क्या
मैं- मुझे अमृत कुण्ड में दिलचस्पी नहीं है , मैं ये जानना चाहता हूँ की मेरी माँ को किसने मारा. दूसरी बात मैं जानता हूँ की मेरी माँ ने रीना को अपने गर्भ में रखा था . आपने ये बात छिपा ली थी पर मैं समझ गया था .
बाबा- मीता और रीना की परवरिश ऐसे ही करनी थी .
मैं- मुझे मेरी माँ के कातिल से मतलब है मैं जानना चाहता हूँ की मेरी माँ कौन थी उसने किसने मारा
बाबा- सोलह साल से मैं उसके कातिल को तलाश कर रहा हूँ.
मैंने बाबा की आँखों में अपनी आँखे डाली और बोला- क्या आप सच कह रहे है .
बाबा ने मेरे सर पर अपना हाथ रख दिया .
मैं- ठीक है बस एक सवाल और ताई के साथ ताऊ ने किसको देखा था जो वो ताई से इतनी नफरत करने लगा.
बाबा- तुम्हारे दादा को .
मैं- मैंने भी यही सोचा था .
बाबा- रात बहुत भारी है हमें चलना चाहिए
मैं- अब तो मेरे साथ रहोगे न
बाबा- मैं हमेशा तुम्हारे साथ था हर पल तुम्हारे साथ .
मैं-जब्बर को लगता था की मीता मंदा की लड़की है इसलिए वो तलाश कर रहा था उसे
बाबा- जब्बर जाने
मैं-जब आप रूप बदल कर आये थे खेत में तो मैंने पहचान लिया था आपको . पर वो हांडी राख वाली कैसा इशारा था आपका मैं समझ नहीं पाया
बाबा- वो मेरा नहीं , मंदा के संकेत थे , बावड़ी वाली जगह ही थी जहाँ पर मंदा में प्रतिशोध की भावना आई थी, वो सन्देश था की शिवाले में से मंदा को आजाद किया जाये मंदा को लगा की वहां पर उसकी आत्मा का टुकड़ा था पर चूँकि वहां पर मीता तुम्हारे साथ लगातार थी तो मंदा समझ नहीं पाई.
मैं- मुझे मेरी माँ से मिलना है
बाबा- वो जा चुकी है
मैं- मैंने जिसे देखा था सपने में मेरी माँ ही थी वो , वो ही उसका चेहरा था मैं समझ गया हूँ
बाबा ने कुछ नहीं कहा बस मुझे घर ले आये सुबह जब मैं जागा तो देखा की बाबा हमेशा की तरह नहीं थे. मीता और रीना भी अपने घावो की मरहम पट्टी कर रही थी . अब चूँकि हम तीनो के रिश्ते अजीब से थे तो मुझे कुछ तो कहना ही था .
मैं- मेरी बात सुनो , हालात जो भी रहे हो सच ये है की हम तीनो एक ही डोर है
रीना- तुम्हे कुछ कहने की जरुरत नहीं हम दोनों इस बारे में फैसला कर चुकी है
मैं- क्या भला
वो दोनों कुछ नहीं बोली बस चुपचाप आकार मेरे सीने से लग गयी .धडकनों ने दिल का फैसला सुना दिया था मने उनको अपनी बाँहों में भर लिया. थोड़ी देर बाद मैं निचे गया चाची के पास
मैं- बस एक बात पूछनी है
चाची- क्या
,मैं- तुम अपने मांस का भोग किसे देती थी .
चाची- वो एक समझौता है
मैं- कैसा समझौता
चाची- तुम्हे मालूम ही है की तंत्र-मन्त्र में मेरी गहरी दिलचस्पी थी. मुझसे एक भूल हुई थी . तो महीने में एक बार मुझे वैसा करना पड़ता है
मैं- बाबा जानते है न इस बात को
चाची- उन्होंने की मेरी जान बचाई थी इस समझोते को करवाके
मैं- कैसा समझोता मैं फिर पूछता हूँ
चाची- यही की मेरे प्राण तभी सलामत रहेंगे जब मैं अपना मांस अर्पण करुँगी. चूँकि सृष्टी अपने नियमो से बंधी है तो मैंने ये मान लिया
मैं- तो उस रात तुम वहां क्या मांग रही थी .
चाची-कुछ बातो को राज़ ही रहने दो
मैं- रीना जब नहारविरो से लड़ रही थी तो वो अमृत कुण्ड को ही खोलना चाह रही थी न .
चाचीने एक गहरी साँस ली और बोली- मंदा को अमृत की चाह थी उसने सोचा होगा की उस से वो अपना शरीर पुनह प्राप्त कर लेगी और रीना के गले में लाकेट के रूप में मंदा की आत्मा का एक टुकड़ा था . तो वो रीना से वो काम करवा रही थी .
मैं- क्या तुम्हारी भी इच्छा थी अमृत-कुण्ड देखने की
चाची - नहीं क्योंकि मैंने जीवन के अंतिम सत्य को देख लिया है
उसके बाद मैंने चाची से और कुछ नहीं पूछा. कुछ दिन यूँ ही गुजर गए . मैंने जब्बर को सब बात बता दी. हमने मंदा के लिए पूजा की . दिन एस ही बीत रहे थे अपने वादे के अनुसार हर शाम बाबा मुझसे मिलने आते. हम डूबता सूरज को देखते हुए बाते करते. मीता और रीना के रूप में मेरे पास दुनिया की सबसे बेहतरीन दोस्त और प्रेमिकाए थी पर मुझे चैन नहीं था . ऐसे ही एक बेचैन रात में जब मैं पानी पीने के लिए उठा तो देखा की कम्बल ओढ़े बाबा कही जा रहे है तो मुझे शक सा हुआ
दबे पाँव मैं भी उनके पीछे पीछे हो लिया बाबा के कदम शिवाले पर जाकर थमे . वो ठीक उसी जगह पर थे जहाँ चाची ने अपने मांस का भोग दिया था जहाँ पर रीना ने नहारविरो को मारा था पर आज उस मैदान में खाली जमीन नहीं थी . वहां पर एक काला महल था . जो चाँद की रौशनी में चमक रहा था . महल के ठीक सामने एक पानी की बावड़ी थी जिसके पत्थर के किनारों पर पीठ किये कोई बैठी थी .....
“आ गये तुम ” बाबा की तरफ बिना देखे उसने कहा .
बाबा ने अपने हाथो में पहने चांदी के मोटे कड़ो को एक दुसरे से टकराया . उसने पलट कर बाबा को देखा .... चाँद की रौशनी में मैंने उसकी सूरत देखि ... और देखता रह गया .
“असंभव,,,,,,,,, ये नहीं हो सकता ” मेरे होंठो से बस इतना निकला और आसमान में चाँद को बादलो ने अपने आगोश में भर लिया .अँधेरे ने सब कुछ लील लिया..............
Bohot badiya update#76
संध्या- मीता तुम वो तस्वीर देख कर चौंक गयी क्योंकि उसमे तुमने खुद को देखा जबकि वो मैं थी इसका कारण ये था की मैंने तुमको अपने गर्भ में पोषित किया था .
बाबा- पर समस्या अभी और थी रीना को कैसे बचाया जाये और तब मैंने किसी ऐसे को तलाश किया और ये काम भी हो गया पर मंदा के अवचेतन मन में मेरे प्रति नफरत बढती जा रही थी ये बात तांत्रिक ने मुझे बता दी थी . पर इस से पहले की हम कुछ उपाय कर पाते मंदा ने प्राण त्याग दिए चूँकि वो प्रतिशोध से पोषित थी तो उसके कहर को रोकने के लिए मैंने किसी खास से मदद मांगी और मंदा की रूह को शिवाले में कैद कर दिया. वो हीरा और धागा चाबी थे तुम्हारी यादो के, तुम्हारे आजाद होने का तुम्हारी आत्मा कमजोर रहे इसलिए हमने उनके तीन टुकड़े किया ताकि तुम शांत रहो पर नसीब देखो मनीष के हाथ वो धागे और वो हीरा लग गया. मेरी चेतावनी को नजरंदाज करके इसने वो लाकेट बनाया दरअसल इसने आत्मा के दो टुकडो को एक कर दिया.ऐसा होते ही मंदा की बेचैनी बढ़ने लगी वो बस आजाद होना चाहती थी . आत्मा के प्यासे टुकडो ने गाँव के लोगो का खून पीना शुरू कर दिया . ये कहानी मुझे यहाँ तक मालूम है पर तुमने सुनार को क्यों मारा ये मैं चाह कर भी पता नहीं कर पाया
मंदा- क्योनी सुनार भी शामिल था मेरी बर्बादी में, बड़े चौधरी के साथ उसने भी मेरी इज्जत लूटी थी .
मंदा के इस खुलासे ने हम सबको हिला कर रख दिया मैंने सोचा साला पहले ही मर गया वर्मैंना मैं उसे मार देता. देखा मंदा की आँखों से बेहिसाब आंसू बह रहे थे , एक प्रेतनी होकर भी ऐसा व्यवहार .वो मीता और रीना के पास गयी उनको अपने सीने से लगा लिया और दहाड़ मार कर रोने लगी. रोती ही रही . फिर वो बाबा के पास आई और अपना सर बाबा के पांवो में रख दिया . उसने गले से वो लाकेट उतरा और बाबा के हाथ में रख दिया. बाबा ने उसके सर पर हाथ रखा और बोले- मुक्त हो जाओ मंदा,मुझे भी इस बोझ से मुक्त करो . तुम जो जिन्दगी नहीं जी पायी इन बच्चो को जीने दो .
मंदा रीना और मीता के पास गयी और बोली- सदा इनके सानिध्य में रहना ,
मंदा के बदन में शोले भड़काने लगे और कुछ ही देर में वहां पर बस राख ही पड़ी थी . दोनों लडकिया भाग कर संध्या चाची के गले लग गयी . बाबा ने संध्या चाची को लडकियों के साथ घर जाने को कहा रह गए हम दोनों.
बाबा- कहानी खतम हुई.
मैं- दुनिया के लिए बाबा मेरे लिए नहीं .
बाबा- क्या मतलब है तेरा
मैं- मुझे वो बाते भी जाननी है जो अधूरी है
बाबा-क्या
मैं- मुझे अमृत कुण्ड में दिलचस्पी नहीं है , मैं ये जानना चाहता हूँ की मेरी माँ को किसने मारा. दूसरी बात मैं जानता हूँ की मेरी माँ ने रीना को अपने गर्भ में रखा था . आपने ये बात छिपा ली थी पर मैं समझ गया था .
बाबा- मीता और रीना की परवरिश ऐसे ही करनी थी .
मैं- मुझे मेरी माँ के कातिल से मतलब है मैं जानना चाहता हूँ की मेरी माँ कौन थी उसने किसने मारा
बाबा- सोलह साल से मैं उसके कातिल को तलाश कर रहा हूँ.
मैंने बाबा की आँखों में अपनी आँखे डाली और बोला- क्या आप सच कह रहे है .
बाबा ने मेरे सर पर अपना हाथ रख दिया .
मैं- ठीक है बस एक सवाल और ताई के साथ ताऊ ने किसको देखा था जो वो ताई से इतनी नफरत करने लगा.
बाबा- तुम्हारे दादा को .
मैं- मैंने भी यही सोचा था .
बाबा- रात बहुत भारी है हमें चलना चाहिए
मैं- अब तो मेरे साथ रहोगे न
बाबा- मैं हमेशा तुम्हारे साथ था हर पल तुम्हारे साथ .
मैं-जब्बर को लगता था की मीता मंदा की लड़की है इसलिए वो तलाश कर रहा था उसे
बाबा- जब्बर जाने
मैं-जब आप रूप बदल कर आये थे खेत में तो मैंने पहचान लिया था आपको . पर वो हांडी राख वाली कैसा इशारा था आपका मैं समझ नहीं पाया
बाबा- वो मेरा नहीं , मंदा के संकेत थे , बावड़ी वाली जगह ही थी जहाँ पर मंदा में प्रतिशोध की भावना आई थी, वो सन्देश था की शिवाले में से मंदा को आजाद किया जाये मंदा को लगा की वहां पर उसकी आत्मा का टुकड़ा था पर चूँकि वहां पर मीता तुम्हारे साथ लगातार थी तो मंदा समझ नहीं पाई.
मैं- मुझे मेरी माँ से मिलना है
बाबा- वो जा चुकी है
मैं- मैंने जिसे देखा था सपने में मेरी माँ ही थी वो , वो ही उसका चेहरा था मैं समझ गया हूँ
बाबा ने कुछ नहीं कहा बस मुझे घर ले आये सुबह जब मैं जागा तो देखा की बाबा हमेशा की तरह नहीं थे. मीता और रीना भी अपने घावो की मरहम पट्टी कर रही थी . अब चूँकि हम तीनो के रिश्ते अजीब से थे तो मुझे कुछ तो कहना ही था .
मैं- मेरी बात सुनो , हालात जो भी रहे हो सच ये है की हम तीनो एक ही डोर है
रीना- तुम्हे कुछ कहने की जरुरत नहीं हम दोनों इस बारे में फैसला कर चुकी है
मैं- क्या भला
वो दोनों कुछ नहीं बोली बस चुपचाप आकार मेरे सीने से लग गयी .धडकनों ने दिल का फैसला सुना दिया था मने उनको अपनी बाँहों में भर लिया. थोड़ी देर बाद मैं निचे गया चाची के पास
मैं- बस एक बात पूछनी है
चाची- क्या
,मैं- तुम अपने मांस का भोग किसे देती थी .
चाची- वो एक समझौता है
मैं- कैसा समझौता
चाची- तुम्हे मालूम ही है की तंत्र-मन्त्र में मेरी गहरी दिलचस्पी थी. मुझसे एक भूल हुई थी . तो महीने में एक बार मुझे वैसा करना पड़ता है
मैं- बाबा जानते है न इस बात को
चाची- उन्होंने की मेरी जान बचाई थी इस समझोते को करवाके
मैं- कैसा समझोता मैं फिर पूछता हूँ
चाची- यही की मेरे प्राण तभी सलामत रहेंगे जब मैं अपना मांस अर्पण करुँगी. चूँकि सृष्टी अपने नियमो से बंधी है तो मैंने ये मान लिया
मैं- तो उस रात तुम वहां क्या मांग रही थी .
चाची-कुछ बातो को राज़ ही रहने दो
मैं- रीना जब नहारविरो से लड़ रही थी तो वो अमृत कुण्ड को ही खोलना चाह रही थी न .
चाचीने एक गहरी साँस ली और बोली- मंदा को अमृत की चाह थी उसने सोचा होगा की उस से वो अपना शरीर पुनह प्राप्त कर लेगी और रीना के गले में लाकेट के रूप में मंदा की आत्मा का एक टुकड़ा था . तो वो रीना से वो काम करवा रही थी .
मैं- क्या तुम्हारी भी इच्छा थी अमृत-कुण्ड देखने की
चाची - नहीं क्योंकि मैंने जीवन के अंतिम सत्य को देख लिया है
उसके बाद मैंने चाची से और कुछ नहीं पूछा. कुछ दिन यूँ ही गुजर गए . मैंने जब्बर को सब बात बता दी. हमने मंदा के लिए पूजा की . दिन एस ही बीत रहे थे अपने वादे के अनुसार हर शाम बाबा मुझसे मिलने आते. हम डूबता सूरज को देखते हुए बाते करते. मीता और रीना के रूप में मेरे पास दुनिया की सबसे बेहतरीन दोस्त और प्रेमिकाए थी पर मुझे चैन नहीं था . ऐसे ही एक बेचैन रात में जब मैं पानी पीने के लिए उठा तो देखा की कम्बल ओढ़े बाबा कही जा रहे है तो मुझे शक सा हुआ
दबे पाँव मैं भी उनके पीछे पीछे हो लिया बाबा के कदम शिवाले पर जाकर थमे . वो ठीक उसी जगह पर थे जहाँ चाची ने अपने मांस का भोग दिया था जहाँ पर रीना ने नहारविरो को मारा था पर आज उस मैदान में खाली जमीन नहीं थी . वहां पर एक काला महल था . जो चाँद की रौशनी में चमक रहा था . महल के ठीक सामने एक पानी की बावड़ी थी जिसके पत्थर के किनारों पर पीठ किये कोई बैठी थी .....
“आ गये तुम ” बाबा की तरफ बिना देखे उसने कहा .
बाबा ने अपने हाथो में पहने चांदी के मोटे कड़ो को एक दुसरे से टकराया . उसने पलट कर बाबा को देखा .... चाँद की रौशनी में मैंने उसकी सूरत देखि ... और देखता रह गया .
“असंभव,,,,,,,,, ये नहीं हो सकता ” मेरे होंठो से बस इतना निकला और आसमान में चाँद को बादलो ने अपने आगोश में भर लिया .अँधेरे ने सब कुछ लील लिया..............
Thanks bhaiअत्यंत रहस्यमय, रोमांचक, लोमहर्षक एवं उत्तेजना से परिपूर्ण अपडेट। लेखक के कल्पना को सहस्र नमन।
SANJU ( V. R. ) आप के विस्तृत विश्लेषण का कोई सानी नहीं है..शिवाले में होने वाली घटनाएं और रीना की चमत्कारिक शक्तियों को देखकर हमें लग ही रहा था कि कहीं न कहीं इस कहानी के साथ सुपरनेचुरल शब्द भी जुड़ा हुआ है।
एक्चुअली यह कहानी थी मंदा की। उसके साथ हुए छल और फरेब की। उसके साथ जबरदस्ती से की गई रेप की। उसकी बदले की और उसके गलतफहमियों की।
कहानी के प्रमुख विलेन रहे दद्दा ठाकुर , उनके कुपुत्र बलबीर और नायक मनीष के पुजनीय दादा जी। इसके अलावा भी कुछ खलनायक की भुमिका में थे लेकिन वे सहयोगी के रोल में नजर आए।
मंदा के साथ गलत ही नहीं बल्कि बहुत बहुत ज्यादा गलत हुआ था। उसके साथ कई लोगों ने रेप किया। प्रेम में धोखा खाई। और दो कन्याओं का भ्रूण अपने गर्भ में लिए हुए परलोक को सिधार गई।
यहां पर हम अर्जुन सिंह की भुमिका पर गर्व महसूस कर सकते हैं। अपनी मुंहबोली बहन की जान बचाने के लिए उतना किया जितना तो आज के जमाने में कोई सगा भी नहीं करता है।
मंदा की जान तो न बचा सके लेकिन उसके दोनों बेटियों को तंत्र मंत्र की मदद से जरूर बचा लिया।
लेकिन सवाल अभी भी वहीं पर खड़ा है कि वो सोलह सालों तक अपने परिवार और घर से दूर क्यों रहे?
संध्या चाची ने मीता को अपने कोख से जनम दिया पर रीना को किसने पैदा किया, पता नहीं चला।
खैर अंत भला तो सब भला। मनीष को दोनों मनपसंद कन्याएं हासिल होने के साथ साथ उसकी चाहत भी मुक्कमल हो गई।
मंदा के सारे गुनाहगार नरक में अपने अपने कर्मों का लेखा जोखा लेकर पहुंच गए तो मंदा की रूह मोक्ष प्राप्त कर गई।
कहानी के लास्ट पैराग्राफ में अर्जुन सिंह को एक औरत के साथ दिखाया गया था लेकिन वो औरत थी कौन, इस पर पर्दा डाल दिया आपने।
मुझे लगता है वो संध्या ही होगी। अर्जुन सिंह की पत्नी बहुत पहले ही मर चुकी थी और जिस तरह का बोंडिग एवं अंडरस्टैंडिंग इन दोनों में दिखाई दिया, उससे मुझे शक संध्या चाची पर ही जाता है। शायद संध्या की रांझा वो ही हों। चाचा श्री के कारनामों से तो लगता नहीं कि संध्या उन्हें घांस भी डालती होगी।
बहुत बेहतरीन कहानी थी फौजी भाई। लेकिन थोड़ी जल्दबाजी कर दी कहानी को समाप्त करने में। बहुत कुछ लिखा जा सकता था अभी भी... शायद सौ अपडेट्स तो पक्का ही।
अगर मन स्थिर न हो तो कुछ दिनों तक पुर्ण रूप से रेस्ट करना ही बेहतर विकल्प होता है लेकिन कुछ दिनों तक ही। ज्यादा दिनों तक नहीं। क्योंकि जीवन चलने का ही नाम है....रूक जाने का नहीं।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट अपडेट फौजी भाई।
बहुत ही बेहतरीन कहानी है और उसका बेहतरीन ही समापन किया है आपने, जितने रहस्य के साथ कहानी शुरू हुई उतने ही रहस्य से पर्दा हटाने के साथ आपने समाप्त भी कर दी। आपने लेखन कार्य छोड़ने का लिखा है लेकिन पाठक के रूप में हमे हमेशा आपके नए सृजन का इंतजार रहेगा,मित्रों, साथियो, ये कहानी आज समाप्त हो गई है. जब इसे लिखना शुरू किया था तो सोचा नहीं था कि आप सब का इतना साथ मिलेगा, दिल मे बहु ज़ज्बात है कहने को समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूँ जब xossip पर लिखना शुरू किया फिर यहां इस फोरम पर आप लोग हमेशा साथ रहे
इतने साल कैसे बीत गए मालूम ही नहीं हुआ पर हर सृजन का एक अंत होता है मेरे लिए शायद वो आज है. बेशक मैं फोरम नहीं छोड़ूंगा एक पाठक के रूप मे कहानिया पढ़ता रहूँगा
उम्मीद है कि आप सब याद रखेंगे एक साथी और भी था
बस इतना ही कहूँगा आप सब से की ईन पंक्तियों का ध्यान रखिए क्या मालूम क्या छिपा है इनमेवहां पर एक काला महल था . जो चाँद की रौशनी में चमक रहा था . महल के ठीक सामने एक पानी की बावड़ी थी जिसके पत्थर के किनारों पर पीठ किये कोई बैठी थी ...