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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

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शिवाले में होने वाली घटनाएं और रीना की चमत्कारिक शक्तियों को देखकर हमें लग ही रहा था कि कहीं न कहीं इस कहानी के साथ सुपरनेचुरल शब्द भी जुड़ा हुआ है।
एक्चुअली यह कहानी थी मंदा की।‌‌‌‌‌ उसके साथ हुए छल और फरेब की। उसके साथ जबरदस्ती से की गई रेप की। उसकी बदले की और उसके गलतफहमियों की।
कहानी के प्रमुख विलेन रहे दद्दा ठाकुर , उनके कुपुत्र बलबीर और नायक मनीष के पुजनीय दादा जी। इसके अलावा भी कुछ खलनायक की भुमिका में थे लेकिन वे सहयोगी के रोल में नजर आए।

मंदा के साथ गलत ही नहीं बल्कि बहुत बहुत ज्यादा गलत हुआ था।‌‌ उसके साथ कई लोगों ने रेप किया। प्रेम में धोखा खाई। और दो कन्याओं का भ्रूण अपने गर्भ में लिए हुए परलोक को सिधार गई।
यहां पर हम अर्जुन सिंह की भुमिका पर गर्व महसूस कर सकते हैं। अपनी मुंहबोली बहन की जान बचाने के लिए उतना किया जितना तो आज के जमाने में कोई सगा भी नहीं करता है।
मंदा की जान तो न बचा सके लेकिन उसके दोनों बेटियों को तंत्र मंत्र की मदद से जरूर बचा लिया।
लेकिन सवाल अभी भी वहीं पर खड़ा है कि वो सोलह सालों तक अपने परिवार और घर से दूर क्यों रहे?
संध्या चाची ने मीता को अपने कोख से जनम दिया पर रीना को किसने पैदा किया, पता नहीं चला।
खैर अंत भला तो सब भला। मनीष को दोनों मनपसंद कन्याएं हासिल होने के साथ साथ उसकी चाहत भी मुक्कमल हो गई।

मंदा के सारे गुनाहगार नरक में अपने अपने कर्मों का लेखा जोखा लेकर पहुंच गए तो मंदा की रूह मोक्ष प्राप्त कर गई।

कहानी के लास्ट पैराग्राफ में अर्जुन सिंह को एक औरत के साथ दिखाया गया था लेकिन वो औरत थी कौन, इस पर पर्दा डाल दिया आपने।
मुझे लगता है वो संध्या ही होगी। अर्जुन सिंह की पत्नी बहुत पहले ही मर चुकी थी और जिस तरह का बोंडिग एवं अंडरस्टैंडिंग इन दोनों में दिखाई दिया, उससे मुझे शक संध्या चाची पर ही जाता है। शायद संध्या की रांझा वो ही हों। चाचा श्री के कारनामों से तो लगता नहीं कि संध्या उन्हें घांस भी डालती होगी।

बहुत बेहतरीन कहानी थी फौजी भाई। लेकिन थोड़ी जल्दबाजी कर दी कहानी को समाप्त करने में। बहुत कुछ लिखा जा सकता था अभी भी... शायद सौ अपडेट्स तो पक्का ही।

अगर मन स्थिर न हो तो कुछ दिनों तक पुर्ण रूप से रेस्ट करना ही बेहतर विकल्प होता है लेकिन कुछ दिनों तक ही। ज्यादा दिनों तक नहीं। क्योंकि जीवन चलने का ही नाम है....रूक जाने का नहीं।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट अपडेट फौजी भाई।
 

Sanju@

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झटके से मेरी आँख खुली तो मैंने पाया की बदन पसीने से तरबतर था . सांय सांय हवा चल रही थी , मीता मेरे पास सो रही थी . मेरे सीने पर हाथ रखे. तो क्या मैं सपने में था, मैंने सपने में उसे देखा था . मुझे यकीन नहीं हो रहा था , मैं उठ बैठा, पीछे पीछे मीता की आँख भी खुल गयी .

मीता- क्या हुआ .

मैंने मीता को अपने सपने के बारे में बताया .

मीता- कभी कभी जेहन पर ख्याल ज्यादा हावी हो जाते है . थोडा पानी पी लो और फिर से सोने की कोशिश करो

मैं- सपना नहीं था वो , मैं था वहां पर मीता मैं था . ये किसी तरह का संदेसा था

मीता- समझती हूँ . तुम्हारी जिन्दगी में सबसे ज्यादा कमी माँ की ही रही है इसलिए तुमने वो रूप देखा सपने में .

मैं- वो बात नहीं है मीता.

मीता- तो क्या बात है .

मैं- उसने मुझसे कहा की अतीत के पन्ने पलटने की कोशिश मत करना, जो हैं वो आज है और आने वाला कल है .

मीता- अपना कल सुनहरा होगा मनीष

मैंने उसके माथे को चूमा और उसे अपने आगोश में भर लिया. एक तरफ मैं मीता के साथ था दूसरी तरफ मुझे रीना की बड़ी याद आती थी . उस से बात करना चाहता था , उसे सीने से लगाना चाहता था पर जो ग़लतफ़हमी की दिवार उसने खड़ी की थी , क्या वो मेरी सुनेगी अब. क्या उसे मालूम है की जो मरी है वो उसकी असली माँ नहीं है . क्या होगा जब उसे उसके अस्तित्व के सवालो से सामना करना पड़ेगा. अगले दिन मैं रुद्रपुर गया .मुझे दो काम करने थे यहाँ पर.

सबसे पहले मैं शिवाले पर गया . जहाँ मेरा सामना पृथ्वी से हो गया .

पृथ्वी- तू यहाँ

मैं- क्यों तेरे बाप का शिवाला है क्या

पृथ्वी- पूरा रुद्रपुर ही मेरे बाप का है , ये जो शिवाले की हालत हुई है इसमें कही न कही तेरा हाथ भी है

मैं- तू अपनी खैर मना, कहीं तेरी हालत भी ऐसी न हो जाये.

पृथ्वी- कोशिश करके देख ले

मैं- दिल तो बहुत करता है मेरा पर अभी तेरे मरने का समय हुआ नहीं है जितने भी दिन है जी ले उनको

पृथ्वी- दिन तो अब तेरे बाप के बचे है गिनती के, मुझे मालूम है की वो लौट आया है . बचपन से मुझे इसी दिन का इंतज़ार था . पहले तेरे बाप को मारूंगा.कितनी ख़ुशी होगी जब उसकी राख तुझे भेजूंगा

मैं- कोशिश करके देख ले. तू मुझसे न जीत पा रहा वो तो मेरा बाप है

मेरी बात तीर की तरह पृथ्वी को चुभी.

मैं- खैर, फिलहाल मुझे यहाँ पर कुछ काम है तू निकल

पृथ्वी- मैं क्यों जाऊ ये मेरी धरती है

मैं- तो मत जा ,मुझे मेरा काम करने दे. मुझे देखना है की इसे दुबारा बनाने में क्या लगेगा.

पृथ्वी- तुझे इस खंडहर शिवाले में इतनी क्या दिलचस्पी है..

मै जानता था की ये गधे का बच्चा मुझे मेरा काम नहीं करने देगा तो मैं वहां से वापिस हो लिया अब पृथ्वी के जाने के बाद ही वहां जाना उचित रहता. थोड़ी दूर चलने के बाद मुझे एक पेड़ के निचे गाड़ी खड़ी दिखी पहली नजर में मुझे लगा की इस गाड़ी को मैंने कहीं तो देखा है तो मैं उस तरफ चल दिया. घनी झाड़ियो पर बनी पगडण्डी से होते हुए मैं और आगे की तरफ बढ़ा. आसपास काफी गहरे पेड़ थे, कुछ दूर और जाने पर मैंने देखा की एक पुराना कमरा था जिसकी हालत अब खस्ता थी. पास में ही कुछ खेती के औजार पड़े थे.

आसपास कोई दिख नहीं रहा था पर गाडी थी तो कोई न कोई होना भी चाहिए था. बड़ी सावधानी से मैंने खुद को छिपाया और आस पास देखने लगा. थोड़ी देर बाद मैंने दो लोगो को आते देखा . एक आदमी और दूसरी औरत. आदमी को मैंने तुरंत पहचान लिया वो दादा ठाकुर था पर उस औरत को नहीं क्योंकि उसने घूँघट ओढा था . वो दोनों आकर पम्प पर बने चबूतरे पर बैठ गए. औरत का हाथ ददा ठाकुर के हाथ में था .

तो ये समझ सकते है की एक दुसरे के करीब थे वो. मैं उनकी बाते सुनने की कोशिश करने लगा.

औरत- अर्जुन लौट आया है

दादा- मालूम हुआ मुझे, उसका लौटना शंका पैदा कर रहा है

औरत- किसी न किसी दिन तो उसे लौटना ही था .

ददा- लगा था की कहीं मर खप गया होगा वो .

औरत- उसकी ख़ामोशी डर पैदा कर रही है

दद्दा- मेरी परेशानी अर्जुन नहीं उसका बेटा हैं, नाक में दम किया हुआ है उसने, पृथ्वी और उसमे ठनी हुई है. तुम तो जानती ही हो पृथ्वी के सिवा हमारा और कोई नहीं

औरत- नादाँ है वो. वैसे भी तुम पृथ्वी को समझाओ की आग से खेलना छोड़ दे वो . पृथ्वी ने ऐलान किया है की वो उसकी माशूका से ब्याह करेगा

दद्दा- यही तो मेरी फ़िक्र है , उस लड़की के लिए मनीष ने शिवाले को खून से रंग दिया था उसकी आँखों में जूनून है .

औरत- संध्या से बात करके देखो

दद्दा- बात की थी उससे मैंने, वो गुस्से में थी . उसका भी यही कहना है की पृथ्वी की वजह से मनीष उसको दोष देता है .

औरत- इन सब बातो के बिच ये ना भूलो की उस लड़की को अर्जुन ने अपनी सरपरस्ती में लिया था

ददा- इसका मतलब समझ रही हो.

औरत- इसका सिर्फ एक ही मतलब है की शायद वो लड़की ही हमारी तलाश है. यदि वो तुम्हारे घर की बहु बनी तो समझ रहे हो न मैं क्या कह रही हूँ .

ददा-उसके लिए मनीष को मरना होगा.

औरत- उसके चारो तरफ इतने दुश्मन होते हुए भी आजतक उसका बाल नहीं उखड़ा. कोई तो है उसके साथ जो उसे कवच दे रहा है

ददा- दिलेर सिंह को जब मारा गया तब भी मनीष के साथ एक लड़की थी ऐसा बताया था हवालदार ने मुझे

औरत- जब्बर तलाश रहा है उस लड़की को

ददा- उसे क्या दिलचस्पी है उस लड़की में

औरत- उसे लगता है की वो लड़की ..............................

ददा- क्या

औरत- उसे लगता है की वो लड़की उस रस्ते पर चलने की चाबी है .

ददा- असंभव , ऐसा नहीं हो सकता

औरत- उस रात शिवाले में चोरी हुई , तुम, जब्बर, सुनार और अर्जुन तुम चारो शिवाले में थे .अर्जुन गायब हो गया . रह गए तुम तीन . क्या हुआ था उस रात

दद्दा- नहीं मालूम मुझे मालूम हुआ था की अर्जुन मेरे बेटे के खून का प्यासा है उसे रोकने के लिए जब तक मैं शिवाले पहुंचा अर्जुन उसे मार चूका था . खून से सने उसके चेहरे को आज भी भुला नहीं पाया मैं. मैं उसे रोक सकता था . उसके बाद अर्जुन गायब हो गया अपने साथ उस राज को भी ले गया की मेरे बेटे को क्यों मारा उसने.

औरत- पर चोरी तो तुमने भी की थी न

दद्दा- तुम्हे भी ऐसा लगता है मेरे बेटे का क़त्ल हुआ था उस रात , उसकी लाश के टुकड़े उठा रहा था मैं , मुझे नहीं मालूम था की उसी समय सुनार और जब्बर वहां चोरी कर रहे थे .

मेरी दिलचस्पी इस औरत में अचानक से बढ़ गयी थी . ये बहुत कुछ जानती थी इसे हत्थे चढ़ाना बड़ा जरुरी था अब. मैं चाहता था की वो दोनों और बाते करे पर तभी ददा ठाकुर उठ खड़ा हुआ और बोला- मुझे अब जाना होगा. मैं सम्पर्क में रहूँगा तुम्हारे .


दद्दा ठाकुर अपने रस्ते हो लिया और वो औरत दूसरी तरफ जाने लगी. मैं दबे पाँव उसके पीछे हो लिया आज चाहे जो कुछ भी हो जाए मुझे मालूम करना ही था की ये कौन है . जो करना था मुझे अभी करना था पर इससे पहले की मैं कुछ कर पाता .........................
उस रात जो कुछ शिवालय में दिख रहा था वो मनीष का सपना था या कोई भ्रम ?? खैर रहस्य और रोमांस अभी तक जारी है... अब एक और सवाल खड़ा हो गया है कि एक औरत घुंघट में दद्दा ठाकुर के साथ आई है कौन हो सकती है ये औरत और इसका दद्दा ठाकुर से क्या संबंध हो सकता है। दोनो के बीच जिस तरह की बात हुई उससे जाहीर है की उस औरत को काफ़ी कुछ पता है। मनीष औरत का पता करने के लिए उसके पीछे चल ही रहा था फिर से लगता है कोई बाधा आ गई है।
 

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पर इससे पहले की मैं कुछ कर पाता, मेरे कदम रुक गए. वो औरत अचानक से पलट कर मेरी तरफ घूम गयी .

“तुम्हे मेरा पीछा करने की कोई जरुरत नहीं है ” उसने अपना घूँघट उठाया . उसके चेहरे को देखते ही मैं बुरी तरह से चौंक गया . मेरे सामने जब्बर की घरवाली खड़ी थी .

“काकी तुम ” मैं बस इतना ही कह पाया.

“हाँ, मैं ” उसने कहा

मैं- तुम तुम्हारा क्या लेना देना इस सब से

काकी- हम सब एक ही डोर से जुड़े है मनीष, हम सबकी एक ही कहानी है एक ही फ़साना है , मैं भी इस कहानी की एक किरदार हूँ .

मैं- कैसे

काकी- ये सवाल तुम चाहते तो उस रात को ही पूछ सकते थे जब मैं तुम्हारे चाचा के साथ थी .

मैं- तो वो तुम थी .

काकी- हाँ मैं थी वो . तुम्हारे चाचा के अंधेरो की साथी वो मैं ही थी .

मैं- पर चाचा तो रीना की माँ से प्यार करता था .

काकी- वो एक झूठ था , छलावा था . उसकी और मेरी कहानी तुम सब के बीच कही खो गयी . ये मोहब्बत भी अजीब ही होती है मनीष, बड़े लोगो की मोहब्बत चर्चा बन जाती है , हम जैसे लोगो की कहानिया किस्से भी नहीं बन पाती.

मैं- पर आप तो जब्बर की बीवी है न .

काकी- मोहब्बत में सबको अपना मुकाम मिले ये जरुरी भी तो नहीं . वो दौर जिसने हमारी कहानी लिखी गयी , उस पन्ने को किसी ने देखा ही नहीं. तुम्हारा चाचा कभी अपने भाई की छाया से बाहर निकल ही नहीं पाया. उसका कोई वजूद नहीं बन पाया . उसकी क्या इच्छा थी , क्या हसरत थी किसी ने नहीं पूछा.

मैं- मोहब्बत कोई पकवान नहीं जो थाली में परोस दिया जाए. मोहब्बत वो हक़ है जिसे दुनिया से छीनना पड़ता है . चाहे हालात जो भी रहे हो अपने हक़ की आवाज जो तुम न उठा पाये तो उसे मोहब्बत न कहो .

काकी ने एक गहरी साँस ली .

मैं- मुझे दिलचस्पी नहीं है तुम्हारी कहानी में , मैं बस इतना जानना चाहता हूँ की ददा ठाकुर कोई इतनी जानकारी देने का क्या उद्देश्य है तुम्हारा, जब्बर से धोखा कर रही हो .

काकी-जब्बर के लिए ही कर रही हूँ ये, उसकी हालत अब देखि नहीं जाती मुझसे

मैं- क्या हुआ है उसे

काकी- जब्बर अपनी बहन से बहुत प्यार करता था . जब्बर के माँ बाप तो बचपन में ही मर गए थे , बड़े नाजो से पाला था उसने अपनी बहन को पर तुम्हारे बाप ने उसका बलात्कार किया .उसे अपनी रखैल बना कर रखा . जब्बर अर्जुन को दोस्त कम भाई ज्यादा मानता था . जब उसे ये मालूम हुआ तो उसने प्रतिकार किया पर अर्जुन का सिक्का चलता था उस दौर में . जब्बर कुछ नहीं कर सका . फिर वो एक दिन गायब हो गयी .जब्बर ने हर जगह उसकी तलाश की . इक दिन फिर इस गाँव में ऐसा आया की दोस्ती की दिवार जो ढह तो गयी थी उसके मलबे में चिंगारी भड़क उठी. दुश्मनी की तलवारे चली. पूरा गाँव हैरान था क्योंकि जब्बर ने अर्जुन के सीने पर वार किया था पर अर्जुन ने उस पर हथियार नहीं उठाया, उठाता भी कैसे उसके मन में अपराध बोध जो था . जो लड़की उसे राखी बांधती थी उसे ही अपनी रखैल बना कर अर्जुन ने जो पाप किया था उसका फल तो उसे मिलना ही था . इश्वर की लाठी में आवाज नहीं होती, कुछ दिनों बाद तुम्हारी माँ को शिवाले में मार दिया गया . अब सोलह साल बाद अर्जुन लौट आया है , मैं नहीं चाहती की इतिहास वर्तमान को खून की लकीरों से लिखे तो मैं ददा ठाकुर से मिल गयी .



मुझे आज मालूम हुआ था की मेरी माँ का क़त्ल हुआ था . मेरे सीने में जो दर्द बचपन से जमा था क्रोध बन कर मेरी रगों में बहते खून में उबाल मारने लगा.

मैं- कौन था हत्यारा मेरी माँ का

काकी- ये भी एक पहेली है तेरी माँ के जैसे.

मैं- मतलब

काकी- तू विशुद्ध चुतिया है मनीष, तूने कभी आजतक इस बात पर गौर किया की दुनिया में मामा-नाना जैसे भी कुछ रिश्ते होते है , तूने कभी अपने मामा-नाना या तेरी मायके से किसी रिश्तेदार को आते-जाते देखा क्या .

मैं- माँ की मौत के बाद वो कभी नहीं आये.

काकी- क्योंकि कोई नहीं जानता था की वो कहाँ से आई थी . एक रात बस अर्जुन उसे ले आया था सबको ये बताने की उसने ब्याह कर लिया था . जिस दिन उसकी मौत हुई. हम सब शिवाले पर पहुंचे . सबकी आँखों में नमी थी पर अर्जुन, अर्जुन नहीं रोया.उसकी आँखों में एक बूँद नहीं थी आंसुओ की . दाहसंस्कार के बाद उसने तेरे माथे को चूमा और फिर वो गायब हो गया . मैं ददा ठाकुर से इसलिए जुडी हूँ ताकि आने वाले विनाश को टाल सकू.

मैं- कैसा विनाश

काकी- उस गधे पृथ्वी ने रीना से ब्याह करने का सोचा है , और रीना को तुम चाहते हो , उसके लिए तुमने जो रुद्रपुर में जो काण्ड किया उसके बाद से सबके मन में इक खौफ है . पृथ्वी की अपनी जिद है तुम्हारी अपनी जिद. जब अर्जुन के बेटे पर वार होगा तो अर्जुन बीच में आएगा ही और तब इतिहास और वर्तमान एक दुसरे के सामने आ जायेंगे.

मैं- गाँव में जो लोग मरे है उसके बारे में क्या जानती हो

काकी- जब्बर काफी समय से तलाश कर रहा है कातिल की

मैं- क्या मेरी माँ का कातिल जब्बर हो सकता है

काकी- तुम्हारा उस पर शक करना जायज है पर वो ऐसा काम नहीं कर सकता

मैं - क्यों

काकी- क्योंकि उसे बदला ही लेना होता तो वो अर्जुन का वंश कभी का ख़त्म कर चूका होता , तुम्हे बचाने के लिए अर्जुन नहीं था पुरे सोलह साल यहाँ . उसे किसी और चीज की तलाश है

मैं- किसकी

काकी- उस लड़की की जो तेरा साया बनी हुई है .

मैं- पर क्यों


इस से पहले काकी जवाब दे पाती........................................
जब्बर की बीवी जब्बार की सलामती के लिए दद्दा ठाकुर से मिली हुई है...अब ये सच है या कोई चाल ये तो समय आने पर ही पता चलेगा???
लेकिन इसने जो कुछ मनीष को बताया वो काफी दिलचश्प रहा। मनीष की मां वास्तव में कौन थी कहा से लाया था अर्जुन सिंह और किस वजह से मार दिया गया था ये एक सवाल और खड़ा हो गया। क्या मंदिर में मिली औरत मनीष की ही मां थी ??? फिलहाल तो अर्जुन और जब्बार दोनो ही गयाब हैं, जाने कौन सा तूफ़ान लाने के लिए शांति बनाए हुए हैं। इधर पृथ्वी और मनीष के बीच गरम माहौल बना हुआ है जिसके चलते दद्दा ठाकुर भी चिंता में है। देखते हैं इतिहास फिर से दोहराया जाता है या झमेले का कोई शांतिपूर्ण समाधान निकलता है।
 

Sanju@

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इस से पहले की काकी कुछ जवाब दे पाती, अचानक से हवाओ का रुख बदलने लगा. आस पास सब काला काला होने लगा. साँसे भारी, बहुत भारी सी होने लगी. एक पल को ऐसे लगा की कोई दौड़ कर हमारे सामने से गुजरा है और जब वो कुहासा हटा तो मैंने देखा की काकी की बेजान लाश धरती पर पड़ी है . पुरे बदन में पसीने और खौफ ने कब्ज़ा कर लिया . मेरे सामने काकी बस कुछ लम्हे पहले जिन्दा थी और अब उसकी लाश पड़ी थी .

बिना सोचे समझे मैं उस काली छाया के पीछे भागा. बस हल्का सा ही छू पाया था उसे की वो छाया पलटी. उसकी आँखे, वो गहरी काली आँखे अपने अन्दर जहाँ भर का अँधेरा लिए . वो मेरी आँखों में देख रही थी . मेरी सोचने समझने की शक्ति शून्य होते जा रही थी . उस छाया ने मेरे सीने पर हाथ रखा और बदन में खलबली मच गयी .

ऐसा लगा की मेरा खून वो निचोड़ रही थी. काकी को मारने के बाद वो छाया अब मेरा अंत भी करने ही वाली थी की अचानक से वो चीख पड़ी . उसकी कर्कश चीख ने मेरी अंतरात्मा तक को हिला कर रख दिया. उसने मुड कर मेरी तरफ देखा और फिर अचानक से सब कुछ ठीक हो गया .

पर क्या सच में सब ठीक हो गया था . मेरे पास काकी की लाश पड़ी थी . और मैं बेहद कमजोरी महसूस कर रहा था . आँखों के आगे सितारे नाच रहे थे .

जैसे तैसे करके मैं अपने ठिकाने पर पंहुचा और मीता को सब कुछ बताया मीता ने मेरी छाती की जांच की .

मीता- मैं संध्या को बुला कर लाती हूँ

मीता ने एक कम्बल मेरे ऊपर डाला और तुरंत अपना झोला उठा कर वहां से चली गयी . मैंने आँखे बंद करने की कोशिश की पर वो खौफनाक काली आँखे मुझे चैन नहीं लेने दे रही थी . जब्बर की लुगाई की हत्या हो गयी थी देर सवेर ये बात भी मालूम हो ही जानी थी और तब जो कोहराम मचेगा उसकी अलग चिंता थी.

खैर, चाची आई और उसने मेरी जांच की. उसने मेरी आँखों में न जाने क्या देखा चाची के चेहरे पर एक मुर्दानगी सी आते देखा मैंने

चाची ने पूरी कहानी सुनी मुझसे और बोली- वो जो भी थी खून का स्वाद ले गयी तुम्हारा. खून की तलब उसे फिर से लाएगी तुम्हारे पास. ये नहीं होना चाहिए था बिलकुल नहीं होना चाहिए था .

कमरे में अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी . जो मुझे पागल कर रही थी .

मैं- क्या शै थी वो चाची

चाची- यही समझने की कोशिश कर रही हूँ.

मीता- खून पीना शुभ नहीं है

चाची- सही कहा तुमने लड़की. पर मैं इस शै को समझ नहीं पा रही हूँ. . वो जो भी थी एक मिनट , मनीष उसने तुम्हे कही से काटा तो नहीं था , मेरा मतलब अपने होंठ या दांत तुमसे लगाये हो .

मैं- नहीं बस उसने अपना हाथ मेरे सीने पर रखा था .

चाची- फ़िलहाल के लिए मैं तुम्हारे गले में ये धागा बाँध रही हूँ पर मैं ज्यादा आश्वस्त नहीं हूँ . कुछ और उपाय करना होगा.

मीता- कैसा उपाय.

चाची- मुझे रुद्रपुर जाना होगा अभी , एक काम करो तुम दोनों भी मेरे साथ चलो

चाची ने हमें साथ लिया और चाची की गाडी में बैठ कर हम दोनों रुद्रपुर की तरफ चल दिए . गाड़ी सीधा हवेली पर जाकर रुकी जो हमारे लिए एक और आश्चर्य था .

मैं- चाची तुम जाओ अन्दर मैं यही रुकता हूँ, वहां पृथ्वी होगा मैं नहीं चाहता की कोई तमाशा हो .

चाची- क्या तुम्हे ऐसा लगता है

हम तीनो हवेली के अन्दर आये, चाची के कदम रखते ही वहां पर हलचल मच गयी. सब लोग चाची को देख कर खुश हो गए पर चाची के चेहरे पर कोई भाव नहीं था . चाची सीढिया चढ़ते हुए ऊपर की तरफ दौड़ी हम उसके पीछे पीछे किसी को कुछ समाझ नही आ रहा था . गलियारे से होते हुए हम उस कमरे की तरफ बढे जो कभी चाची का होता था दरवाजा बंद था मतलब वो अन्दर थी. हम वही खड़े थे की अचानक से मेरा ध्यान उस चीज पर गया और मैं मीता का हाथ पकडे उसे उस बड़ी सी तस्वीर के पास ले आया जो किसी और की नहीं बल्कि मीता की ही थी .

“असंभव “ मीता ने बस इतना ही कहा .

मैं- जो है तेरे सामने है .

मीता- पर कैसे , मैंने तो आज इस हवेली में कदम रखा है फिर कैसे

“”ये तस्वीर इसकी नहीं है मनीष ” चाची ने हमारे पास आते हुए कहा .

मेरी धड़कने बहुत बढ़ गयी थी . ऐसा लग रहा था की मैं कही पागल ही न हो जाऊ.

मैं- तो कौन है ये .

चाची- ये मेरी तस्वीर है .

चाची ने जो बम फोड़ा था मेरे दिमाग की चूले हिल कर रह गयी थी .

मैंने एक नजर मीता पर डाली और एक नजर चाची पर .

मीता- मैं संध्या की भतीजी हूँ , जिसे हवेली ने ठुकरा दिया.

संध्या- नहीं ये सच नहीं है .

मीता- तो फिर क्या है सच

इस से पहले की संध्या चाची कुछ कह पाती मेरे सीने में जैसे भूचाल आ गया . दर्द के मारे हड्डिया कड़कने लगी. आँखों की कटोरिया बाहर आने को हो गयी . मेरी चीखो ने हवेली को सर पर उठा लिया .

मीता- मनीष , क्या हो रहा है ये

मीता की आँखों से आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे. चाची भी मेरी इस हालत को समझ नहीं पा रही थी .

“मनीष, मनीष, ” मीता मुझे संभालने की पूरी कोशिश कर रही थी .


“रीना, रीना खतरे में है ” मेरे होंठो से बस इतना निकल पाया.
कौन थी वो काली छाया ?? क्या वो थी जिसको मनीष ने आजाद किया था मनीष ने जो दो हांडी खोली थी उसमे से भी काली छाया की निकली थी??जो भी हो उसने जब्बार की बीवी को मार ही दिया। मनीष के सीने पर हाथ रखा उसे जिससे मनीष की हालत खराब हो गई, उसने मनीष का खून निचोड़ लिया ज़हीर है वो मनीष का बुरा चाहती....आखिर क्यो? क्या संबंध हो सकता है उसका मनीष से?
संध्या मीताऔर मनीष रुद्रपुर की हवेली पहुंच जाते है जहां पर एक बड़ी तस्वीर को देख कर मीता चौक जाती है। तस्वीर मीता की थी पर उस तस्वीर को संध्या अपनी बताती है क्यो जबकि संध्या की शक्ल नही मिलती है तस्वीर से ?? मीता बोलती है की वो संध्या की भतीजी है उसे क्यो ठुकराया गया था??? संध्या और मीता की कई बार मुलाकाते हुई और आपस में तू तू मैं मैं हुई लेकिन कभी संध्या ने नही बताया की वह उसकी बहू है फिर आज ही क्यो बताया????? रीना की जान को कैसा खतरा था??? ऐसे ना जाने कितने ही सवाल खड़े हो गए है
 

Sanju@

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भरी दोपहर में ही मौसम बदलने लगा था , काले बादलो की घटा ने आसमान संग आँख-मिचोली खेलनी शुरू कर दी थी .ऐसा लगता था की रात घिर आई हो. ये घिरता अपने अन्दर आज न जाने किसे सामने वाला था . हवेली से बाहर आकर मैंने मौसम का हाल देख कर अपने दुखते सीने पर हाथ रख लिया. मैं जानता था की रीना कहाँ होगी . मैंने चाची की गाडी ली और सीधा शिवाले पर पहुँच गया .

वहां जाकर जो मेरी आँखों ने देखा , मैं जानता तो था की पृथ्वी ये गुस्ताखी करेगा पर आज ही करेगा ये नहीं सोचा था . पृथ्वी जैसे सपोले को मुझे बहुत पहले कुचल देना चाहिए था . मैंने देखा अपने लठैतो की आड़ में पृथ्वी ने रीना को अगवा कर लिया था. उसके चेहरे की वो हंसी मेरे कलेजे को अन्दर तक चीर गयी .

पृथ्वी- मुझे मालूम था तू जरुर आएगा. न जाने कैसा बंधन है इस से तेरा दर्द इसे होता है चीखता तू है . मैंने बहुत विचार किया सोचा फिर सोचा की इसके लिए तुझे अपनी जान देनी होगी

मैं- रीना के लिए एक तो क्या हजार जान कुर्बान है

पृथ्वी- क़ुरबानी तो तुझे देनी ही है पर अभी के अभी तूने मुझ अम्रृत कुण्ड को देखने का रहस्य नहीं बताया तो मैं रीना को मार दूंगा

मैं- किसका रहस्य , जरा दुबारा तो कहना

पृथ्वी की बात मेरे सर के ऊपर से गयी .

“हरामजादे , मजाक करता है मुझसे ” पृथ्वी ने खींच कर रीना को थप्पड़ मारा

“पृथ्वी , इस से पहले की की अनर्थ हो जाये , छोड़ दे रीना को वर्ना सौगंध है महादेव की मुझे तेरी लाश तक उठाने वाला कोई नहीं बचेगा ” मैंने फड़कती भुजाओ को ऊपर करते हुए कहा .

बीस तीस लठैत तुरंत मेरे सामने आ गए.

मैं- हट जाओ मेरे रस्ते से , आज मैं कुछ नहीं सोचूंगा. चाहे इस दुनिया में आग लग जाए . हटो बहनचोदो

मैंने एक लठैत के पैर पर लात मारी और उसकी लाठी छीन ली .और मारा मारी शुरू हो गयी .

“इस को आज जिन्दा नहीं छोड़ना है ” पृथ्वी चिल्लाया और उसने फिर से रीना को थप्पड़ मारा

पृथ्वी- खोल उस अमृत कुण्ड का दरवाजा हरामजादी .

इधर मैं उन लठैतो से पार पाने की कोशिश कर रहा था पर उनकी संख्या ज्यादा थी इस बार पृथ्वी ने पुरी योजना बनाई हुई थी . एक लठैत की लाठी मेरे सर पर पड़ी और कुछ पलो के लिए मेरे होश घबरा गए और यही पर वो मुझ पर हावी हो गए. लगातार पड़ती लाठिया मुझे मौका नहीं दे रही थी . सर से बहता खून मुझे पागल कर रहा था .

“मनीष ” ये मीता की आवाज थी जो यहाँ आन पहुंची थी .

मीता ने आव देखा न ताव और तुरंत ही उन लठैतो से भीड़ गयी . जैसे तैसे करके उसने मुझे उठाया तब तक संध्या चाची भी वहां पहुँच गयी .

“पृथ्वी ये क्या पागलपन है ” चाची ने गुस्से से कहा

पृथ्वी- ये पागलपन तुम्हे तब नहीं दिखा बुआ जब अर्जुन से मेरे पिता को मार दिया. जब इसने मेरे दोस्तों को मार दिया .

संध्या- उनको अपने कर्मो की सजा मिली . उनकी नियति में यही था .

पृथ्वी- क्या थे उनके कर्म, जिस पर हमारा दिल आया उसके साथ थोड़े मजे ले लिए तो क्या गलती हुई भला. ये तो हमारे शौक है

संध्या- हर किसी की इज्जत उतनी ही है जितना मेरी या तेरी माँ की है या हवेली की किसी और दूसरी औरत की है

पृथ्वी- तुम तो मुझे ये पाठ मत पढाओ बुआ , वो तुम ही थी जो दुश्मनों की गोद में जाकर बैठ गयी थी .

संध्या- अपनी औकात मत भूल पृथ्वी, तू भी मेरा ही बेटा है ये याद रख तू और कोशिश कर की मैं भी न भूल पाऊ इस बात को

पृथ्वी- हमें तो तुम उसी दिन ही भुला गयी थी बुआ, जिस दिन तुम दुस्मानो के घर गयी .

संध्या- तो ठीक है , अब किसी रिश्ते नाते की बात नहीं होगी. किसी नाते की कोई दुहाई नहीं दी जाएगी. जिस लड़की को तूने अगवा किया है , ये लड़का जो घायल है ये मेरी औलादे है और इनके लिए मैं किस हद से गुजर जाऊंगी तू सोच भी नहीं सकता. जब तूने अमृत कुण्ड के बारे में मालूम कर लिया है तो उस सच के बारे में भी मालूम कर लिया होता. अगर तेरी रगों में सच्चा खून होता तो तू ये घ्रणित कार्य कभी नहीं करता .

“मनीष मेरे बेटे, मैं तुझसे कह रही हूँ, इसी समय इस दुष्ट पृथ्वी का सर धड से अलग कर दे. ” चाची ने क्रोध से फुफकारते हुए कहा.

मीता ने तुरंत ही एक लठैत की गर्दन तोड़ दी . पर तभी “धांय ” गोली की जोरदार आवाज गूंजी और ऐसा लगा की किसी ने मेरे कंधे को उखाड़ कर फेंक दिया हो . क्या मालूम वो गोली मुझे छू कर गुजरी थी या फिर कंधे में धंस गयी थी . क्योंकि उसके बाद जो कुछ भी हुआ वो किसी जलजले से कम नहीं था .

“मनीष ...... ” ये रीना की वो चीख थी जिसने वहां मोजूद हर शक्श के कानो की चूले हिला दी.

“दद्दा ठाकुर ” रीना ने गहरी आँखों जो अब पूरी तरह से काली हो चुकी थी नफरत से दद्दा ठाकुर की तरफ देखा जो कंधे पर बन्दूक लिए हमारे बीच आ चूका था . पर वो नहीं जानता था की उसके कदम उसे मौत की दहलीज पर ले आये थे. रीना ने एक लात पृथ्वी की छाती पर मारी . हैरत के मारे पृथ्वी बस देखता रह गया और बिजली की सी तेजी से रीना ददा ठाकुर की तरफ बढ़ी और उसके हाथ को उखाड़ दिया.

“आईईईईईईईईईईइ ” दद्दा की चीखे शिवाले में गूंजने लगी . पर वो मरजानी नहीं रुकी. जब उसका मन भरा तो वहां मोजूद लठैतो को मैंने धोती में मूतते देखा. दादा ठाकुर की लाश के टुकड़े इधर उधर बिखरे हुए थे. उसके गर्दन को रीना ने अपने होंठो से लगाया और ताजे गर्म खून को किसी शरबत की तरफ पीने लगी.

“मेरी जान है वो , मेरे होते हुए कैसे मार देगा तू उसे, ” रीना ने ददा की लाश से सवाल किया वो तमाम लठैत तुरंत ही वहां से भाग लिए. रह गए मैं रीना, मीता , चाची और पृथ्वी.

अचानक से बाज़ी पलट गयी थी . रीना ने अपने क्रोध में सब तहस नहस कर दिया था . सामने बाप की लाश पड़ी थी पर चाची के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी .


“मैं कभी नहीं चाहती थी ये दिन आये पृथ्वी , मैंने जितना चाह इस रण को टालना चाहा . मैंने तुझे कदम कदम पर माफ़ किया पर अब और नहीं ” इतना कह कर रीना जैसे ही पृथ्वी की तरफ बढ़ी, किसी ने उसका रास्ता रोक लिया और अगले ही पल रीना हवा में उड़ते हुए शिवाले की टूटी दिवार पर जा गिरी.....
पृथ्वी ने रीना को उठाकर बहुत ही बुरा काम किया है वह हर बार मनीष से मात खा रहा है फिर भी उससे अपने बाप का बदला लेना चाहता है लेकिन उसने कभी सच्चाई की और पहुंचने की कोशिश नही की दद्दा ठाकुर ने मनीष पर गोली चलाई तो रीना उसे कैसे जिंदा छोड़ देती उसने मार दिया अब पृथ्वी को भी मरना है क्युकी चाची ने बोल दिया है क्या अब से पहले भी ऐसी कोई मजबूरी रही थी जिसके चलते ये सब हुआ आखिर क्या है ये अमृत कुंड??????
 

Tiger 786

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#72

भरी दोपहर में ही मौसम बदलने लगा था , काले बादलो की घटा ने आसमान संग आँख-मिचोली खेलनी शुरू कर दी थी .ऐसा लगता था की रात घिर आई हो. ये घिरता अपने अन्दर आज न जाने किसे सामने वाला था . हवेली से बाहर आकर मैंने मौसम का हाल देख कर अपने दुखते सीने पर हाथ रख लिया. मैं जानता था की रीना कहाँ होगी . मैंने चाची की गाडी ली और सीधा शिवाले पर पहुँच गया .

वहां जाकर जो मेरी आँखों ने देखा , मैं जानता तो था की पृथ्वी ये गुस्ताखी करेगा पर आज ही करेगा ये नहीं सोचा था . पृथ्वी जैसे सपोले को मुझे बहुत पहले कुचल देना चाहिए था . मैंने देखा अपने लठैतो की आड़ में पृथ्वी ने रीना को अगवा कर लिया था. उसके चेहरे की वो हंसी मेरे कलेजे को अन्दर तक चीर गयी .

पृथ्वी- मुझे मालूम था तू जरुर आएगा. न जाने कैसा बंधन है इस से तेरा दर्द इसे होता है चीखता तू है . मैंने बहुत विचार किया सोचा फिर सोचा की इसके लिए तुझे अपनी जान देनी होगी

मैं- रीना के लिए एक तो क्या हजार जान कुर्बान है

पृथ्वी- क़ुरबानी तो तुझे देनी ही है पर अभी के अभी तूने मुझ अम्रृत कुण्ड को देखने का रहस्य नहीं बताया तो मैं रीना को मार दूंगा

मैं- किसका रहस्य , जरा दुबारा तो कहना

पृथ्वी की बात मेरे सर के ऊपर से गयी .

“हरामजादे , मजाक करता है मुझसे ” पृथ्वी ने खींच कर रीना को थप्पड़ मारा

“पृथ्वी , इस से पहले की की अनर्थ हो जाये , छोड़ दे रीना को वर्ना सौगंध है महादेव की मुझे तेरी लाश तक उठाने वाला कोई नहीं बचेगा ” मैंने फड़कती भुजाओ को ऊपर करते हुए कहा .

बीस तीस लठैत तुरंत मेरे सामने आ गए.

मैं- हट जाओ मेरे रस्ते से , आज मैं कुछ नहीं सोचूंगा. चाहे इस दुनिया में आग लग जाए . हटो बहनचोदो

मैंने एक लठैत के पैर पर लात मारी और उसकी लाठी छीन ली .और मारा मारी शुरू हो गयी .

“इस को आज जिन्दा नहीं छोड़ना है ” पृथ्वी चिल्लाया और उसने फिर से रीना को थप्पड़ मारा

पृथ्वी- खोल उस अमृत कुण्ड का दरवाजा हरामजादी .

इधर मैं उन लठैतो से पार पाने की कोशिश कर रहा था पर उनकी संख्या ज्यादा थी इस बार पृथ्वी ने पुरी योजना बनाई हुई थी . एक लठैत की लाठी मेरे सर पर पड़ी और कुछ पलो के लिए मेरे होश घबरा गए और यही पर वो मुझ पर हावी हो गए. लगातार पड़ती लाठिया मुझे मौका नहीं दे रही थी . सर से बहता खून मुझे पागल कर रहा था .

“मनीष ” ये मीता की आवाज थी जो यहाँ आन पहुंची थी .

मीता ने आव देखा न ताव और तुरंत ही उन लठैतो से भीड़ गयी . जैसे तैसे करके उसने मुझे उठाया तब तक संध्या चाची भी वहां पहुँच गयी .

“पृथ्वी ये क्या पागलपन है ” चाची ने गुस्से से कहा

पृथ्वी- ये पागलपन तुम्हे तब नहीं दिखा बुआ जब अर्जुन से मेरे पिता को मार दिया. जब इसने मेरे दोस्तों को मार दिया .

संध्या- उनको अपने कर्मो की सजा मिली . उनकी नियति में यही था .

पृथ्वी- क्या थे उनके कर्म, जिस पर हमारा दिल आया उसके साथ थोड़े मजे ले लिए तो क्या गलती हुई भला. ये तो हमारे शौक है

संध्या- हर किसी की इज्जत उतनी ही है जितना मेरी या तेरी माँ की है या हवेली की किसी और दूसरी औरत की है

पृथ्वी- तुम तो मुझे ये पाठ मत पढाओ बुआ , वो तुम ही थी जो दुश्मनों की गोद में जाकर बैठ गयी थी .

संध्या- अपनी औकात मत भूल पृथ्वी, तू भी मेरा ही बेटा है ये याद रख तू और कोशिश कर की मैं भी न भूल पाऊ इस बात को

पृथ्वी- हमें तो तुम उसी दिन ही भुला गयी थी बुआ, जिस दिन तुम दुस्मानो के घर गयी .

संध्या- तो ठीक है , अब किसी रिश्ते नाते की बात नहीं होगी. किसी नाते की कोई दुहाई नहीं दी जाएगी. जिस लड़की को तूने अगवा किया है , ये लड़का जो घायल है ये मेरी औलादे है और इनके लिए मैं किस हद से गुजर जाऊंगी तू सोच भी नहीं सकता. जब तूने अमृत कुण्ड के बारे में मालूम कर लिया है तो उस सच के बारे में भी मालूम कर लिया होता. अगर तेरी रगों में सच्चा खून होता तो तू ये घ्रणित कार्य कभी नहीं करता .

“मनीष मेरे बेटे, मैं तुझसे कह रही हूँ, इसी समय इस दुष्ट पृथ्वी का सर धड से अलग कर दे. ” चाची ने क्रोध से फुफकारते हुए कहा.

मीता ने तुरंत ही एक लठैत की गर्दन तोड़ दी . पर तभी “धांय ” गोली की जोरदार आवाज गूंजी और ऐसा लगा की किसी ने मेरे कंधे को उखाड़ कर फेंक दिया हो . क्या मालूम वो गोली मुझे छू कर गुजरी थी या फिर कंधे में धंस गयी थी . क्योंकि उसके बाद जो कुछ भी हुआ वो किसी जलजले से कम नहीं था .

“मनीष ...... ” ये रीना की वो चीख थी जिसने वहां मोजूद हर शक्श के कानो की चूले हिला दी.

“दद्दा ठाकुर ” रीना ने गहरी आँखों जो अब पूरी तरह से काली हो चुकी थी नफरत से दद्दा ठाकुर की तरफ देखा जो कंधे पर बन्दूक लिए हमारे बीच आ चूका था . पर वो नहीं जानता था की उसके कदम उसे मौत की दहलीज पर ले आये थे. रीना ने एक लात पृथ्वी की छाती पर मारी . हैरत के मारे पृथ्वी बस देखता रह गया और बिजली की सी तेजी से रीना ददा ठाकुर की तरफ बढ़ी और उसके हाथ को उखाड़ दिया.

“आईईईईईईईईईईइ ” दद्दा की चीखे शिवाले में गूंजने लगी . पर वो मरजानी नहीं रुकी. जब उसका मन भरा तो वहां मोजूद लठैतो को मैंने धोती में मूतते देखा. दादा ठाकुर की लाश के टुकड़े इधर उधर बिखरे हुए थे. उसके गर्दन को रीना ने अपने होंठो से लगाया और ताजे गर्म खून को किसी शरबत की तरफ पीने लगी.

“मेरी जान है वो , मेरे होते हुए कैसे मार देगा तू उसे, ” रीना ने ददा की लाश से सवाल किया वो तमाम लठैत तुरंत ही वहां से भाग लिए. रह गए मैं रीना, मीता , चाची और पृथ्वी.

अचानक से बाज़ी पलट गयी थी . रीना ने अपने क्रोध में सब तहस नहस कर दिया था . सामने बाप की लाश पड़ी थी पर चाची के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी .


“मैं कभी नहीं चाहती थी ये दिन आये पृथ्वी , मैंने जितना चाह इस रण को टालना चाहा . मैंने तुझे कदम कदम पर माफ़ किया पर अब और नहीं ” इतना कह कर रीना जैसे ही पृथ्वी की तरफ बढ़ी, किसी ने उसका रास्ता रोक लिया और अगले ही पल रीना हवा में उड़ते हुए शिवाले की टूटी दिवार पर जा गिरी.....
Awesome update
 

Sanju@

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#73

जिस बाज़ी को मैंने अपने हिस्से में पलटते हुए देखा था रीना पर हुए इस हमले ने पल भर में ही हम सबको अहसास करवा दिया की ये बिसात इतनी जल्दी ख़तम नहीं होने वाली. वो काला साया जिसने उस दिन जब्बर की पत्नी को मारा था , जिसने मेरी छाती पर हाथ रख कर मेरी नसों से लहू निचोड़ने की कोशिश की थी अचानक से उसने शिवाले में आकर रीना को दूर पटक दिया था .

आसमान में घुमड़ती काली घटाओ ने रोना शुरू कर दिया था ,आकाश जैसे फटने लगा था . बारिश शुरू हो गयी थी . वो काला साया लहराते हुए मेरी तरफ बढ़ा. मेरे दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था . मैंने उन गहरी काली आँखों के अँधेरे को अपने दिल में उतरते हुए महसूस किया. इस से पहले की वो कुछ अनिष्ट कर देती चाची अचानक से हमारे बीच आ गयी .

“दूर हट मेरे बेटे से ” चाची ने उस साए को जैसे धक्का सा दिया . वो साया फुफकार उठा.

“बीच में मत आ संध्या ” साए ने पहली बार कुछ कहा और हम समझ गए की ये कोई औरत ही थी .

चाची- तो फिर चली जा वापिस

साया- जाने के लिए नहीं लौटी मैं . इस लड़के का लहू चख लिया मैंने अद्भुद है , इसका स्वाद , इसका स्वाद जाना पहचाना है .भा गया है ये इसे लेकर जाउंगी मैं

“मनीष की आन बन कर मैं खड़ी हूँ , देखती हूँ तुझे भी और तेरे जोर को भी ” रीना ने मेरे पास आकार कहा.

रीना ने अपनी आँखों से मुझे आश्वस्त किया .

साया- तू दो कौड़ी की छोकरी तू , तेरी ये हिमाकत की तू मेरे सामने खड़ी हो . पहले मैं तेरे रक्त से ही अपनी तृष्णा शांत करुँगी

बरसती घटाओ के बीच उस टूटे शिवाले में ये जो भी हो रहा था शुक्र है की उसे देखने के लिए कोई कमजोर दिल का प्राणी वहां नहीं था . उस साए ने अपनी जगह खड़े खड़े ही रीना की बाहं मरोड़ी . पर रीना ने भी प्रतिकार किया और उस साए को सामने पत्थरों के फर्श पर पटक दिया. साया जोर से चिंघाड़ करने लगा. उसकी आवाज जैसे धडकनों को खोखला कर रही थी .

पर वो साया बलशाली था , रीना के पीछे सरकते कदम ये बता रहे थे की वो उस से पार नहीं पा पायेगी की तभी मीता ने रीना के हाथ को थाम लिया और आँखों से इशारा किया . दोनों में न जाने क्या बात हुई उन्होंने क्या समझा पर दोनों के होंठ कुछ बुदबुदाने लगे और फिर एक तेज रौशनी का धमाका हुआ और वो साया शिवाले की दिवार से जा टकराया . उसकी चीख फिर से गूंजी.

पर फुर्ती से सँभालते हुए उसने मलबे में पड़ी कड़ी के टुकड़े को उठा कर मीता पर दे मारा . नुकीला टुकड़ा मीता की जांघ को चीर गया वो एक तरफ गिर पड़ी. चाची मीता को सँभालने के उसकी तरफ दौड़ी और उसी पल वो साया रीना के पास पहुंचा गया . उसने रीना के गले को ऐसे पकड़ा की जैसे उसका गला घोंट रही हो . पर फिर मैंने देखा की उसने रीना के गले से वो हीरे वाला धागा निकाल लिया.



“हा हा हा , तभी मैं सोचु की ताकत क्यों मुझे जानी पहचानी लग रही है , मुर्ख लड़की तो ये था तेरी शक्ति का राज ” उस साए ने हँसते हुए वो लाकेट अपने गले में पहन लिया . कुछ देर के लिए सब कुछ थम सा गया . ऐसी ख़ामोशी छा गयी की जरा सी आवाज भी दिल का दौरा ला दे. और फिर वो चीख पड़ी ..

“अर्जुन, अर्जुन,,,,,,,,,,, ” इतनी जोर डर चीख थी वो की मैंने अपने कान से खून बहते हुए महसूस किया. वो जैसे पागल ही हो गई थी . कभी इधर भागे कभी उधर भागे उसकी आँखे और अँधेरी होने लगी . इतनी अँधेरी की जैसे वो सब कुछ निगल जायेगी. उसने रीना के गले को पकड लिया और उसे मारने लगी. रीना की चीखो ने मुझे पागल ही कर दिया था . मैं गुस्से से उसकी तरफ बढ़ा पर बीच में मीता आ गयी उसने एक सुनहरी डोर निकाली और उस साये को बाँधने की कोशिश करने लगी. वैसा ही चाची ने किया.

साए ने फुफकारते हुए कहा- खेल खेलना चाहती हो तुम . चलो ये खेल ही सही .

वो अकेली थी तीन त्रिदेवियो के सामने , तभी मेरी नजर पृथ्वी पर पड़ी जिसे होश आ गया था और वो दद्दा ठाकुर की बन्दूक उठा कर रीना पर निशाना लगा ही रहा था की मैंने एक बड़ा सा पत्थर उठा कर उसके हाथो पर दे मारा. बन्दूक उसके हाथो से गिर गयी और मैंने उसे धर लिया. पृथ्वी से गुथ्तम गुत्था होते हुए मैंने देखा की . शिवाले में वैसा ही धुआ उठा जैसा की तब था जब रीना ने अश्वमानव मारे थे .

पृथ्वी- आज या तो तू नहीं या मैं नहीं .

मैं- मुर्ख, तुझे अंदाजा भी नहीं है की यहाँ पर क्या हो रहा है

पृथ्वी- तेरी वजह से मेरे दादा मारे गए . तुझे नहीं छोडूंगा.

पृथ्वी ने मुझे लात मारी .मेरा ध्यान पृथ्वी से ज्यादा रीना , मीता की तरफ था इसी का फायदा उठाते हुए पृथ्वी ने मुझे दिवार से लगा दिया जिस पर गडी कील मेरे सीने में धंस गयी . मैं दर्द से दोहरा हो गया . वो लगातार मुझे दिवार की तरफ धकेल रहा था ताकि कील और अन्दर घुस जाए. प्रतिकार करते हुए मैंने अपना पैर पीछे किया और उसके पंजे पर मारा जैसे ही वो लडखडाया मैंने उसे धर लिया.

“बहुत फडफडा लिया तू हरामजादे, तेरे पापो को मैंने बहुत कोशिश की माफ़ करने की ये जानते हुए भी की तूने मेरी जान पर हाथ डाला मैं तुझे मारना नहीं चाहता था पर तेरी तक़दीर में ये ही लिखा था ” कहते हुए मैंने पृथ्वी की गर्दन मरोड़ दी. वो चीख भी नहीं पाया. टूटी सहतीर सा लहरा कर गिरा वो .

तभी रौशनी का एक धमाका हुआ और तीन साए शिवाले में इधर उधर जाकर गिरे, रीना मीता और चाची खून से लथपथ धरती पर पड़े अपनी सांसो की डोर को थामने की कोशिश कर रही थी . वो साया मेरी तरफ बढ़ा और मुझे घसीट लिया.

उसने अपने चेहरे को मेरे सीने की तरफ झुकाया और मैंने पहली बार उस को देखा. वो खूबसूरत चेहरा . इस से पहले की वो अपने होंठ मेरे बदन पर लगा कर मेरा खून पी पाती. .उस आवाज ने जैसे मेरे बदन में शक्ति का संचार कर दिया .

“बस मंदा बस बहुत हुआ ”


उस साए ने पलट कर देखा उसके सामने अर्जुन सिंह खड़ा था .............
ये साया एक औरत का है जिसने रीना को चोट पहुंचाई और वो संध्या को जानती है..लेकिन रीना और मीता दोनो मिलकर आज उसका सामना कर रही लेकिन वो इतनी भी कमजोर नहीं है संध्या,मीता, रीना पर वो औरत भारी पड़ रही है वह मनीष का खून क्यो निचोड़ रही है क्या दुश्मनी है उसकी मनीष से ???? क्या अर्जुन से है उसकी दुश्मनी क्योंकि वह अर्जुन का खून है क्या वो औरत अर्जुन के खून की प्यासी है उसे पता चल गया की उस धागे की शक्ति है रीना के अंदर और उसने वो धागा निकल कर खुद के गले में पहन लिया लगता है ये लोकिट इस औरत की ही था लेकिन ये पृथ्वी नहीं सुधारेगा ये फिर से रीना को मरना चाह रहा था तो मनीष कैसे शांत बैठाता..मनीष ने पृथ्वी की सांस ही बंद कर दी। है
वो औरत मनीष का खून निचोड़ना चाह रही थी की अर्जुन ने रोक दिया "बस मंदा बहुत हुआ "
अब सवाल ये है की ये मंदा कोन है?????
इन सब का उतर अब अर्जुन ही दे सकता है ????
 

Tiger 786

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जिस बाज़ी को मैंने अपने हिस्से में पलटते हुए देखा था रीना पर हुए इस हमले ने पल भर में ही हम सबको अहसास करवा दिया की ये बिसात इतनी जल्दी ख़तम नहीं होने वाली. वो काला साया जिसने उस दिन जब्बर की पत्नी को मारा था , जिसने मेरी छाती पर हाथ रख कर मेरी नसों से लहू निचोड़ने की कोशिश की थी अचानक से उसने शिवाले में आकर रीना को दूर पटक दिया था .

आसमान में घुमड़ती काली घटाओ ने रोना शुरू कर दिया था ,आकाश जैसे फटने लगा था . बारिश शुरू हो गयी थी . वो काला साया लहराते हुए मेरी तरफ बढ़ा. मेरे दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था . मैंने उन गहरी काली आँखों के अँधेरे को अपने दिल में उतरते हुए महसूस किया. इस से पहले की वो कुछ अनिष्ट कर देती चाची अचानक से हमारे बीच आ गयी .

“दूर हट मेरे बेटे से ” चाची ने उस साए को जैसे धक्का सा दिया . वो साया फुफकार उठा.

“बीच में मत आ संध्या ” साए ने पहली बार कुछ कहा और हम समझ गए की ये कोई औरत ही थी .

चाची- तो फिर चली जा वापिस

साया- जाने के लिए नहीं लौटी मैं . इस लड़के का लहू चख लिया मैंने अद्भुद है , इसका स्वाद , इसका स्वाद जाना पहचाना है .भा गया है ये इसे लेकर जाउंगी मैं

“मनीष की आन बन कर मैं खड़ी हूँ , देखती हूँ तुझे भी और तेरे जोर को भी ” रीना ने मेरे पास आकार कहा.

रीना ने अपनी आँखों से मुझे आश्वस्त किया .

साया- तू दो कौड़ी की छोकरी तू , तेरी ये हिमाकत की तू मेरे सामने खड़ी हो . पहले मैं तेरे रक्त से ही अपनी तृष्णा शांत करुँगी

बरसती घटाओ के बीच उस टूटे शिवाले में ये जो भी हो रहा था शुक्र है की उसे देखने के लिए कोई कमजोर दिल का प्राणी वहां नहीं था . उस साए ने अपनी जगह खड़े खड़े ही रीना की बाहं मरोड़ी . पर रीना ने भी प्रतिकार किया और उस साए को सामने पत्थरों के फर्श पर पटक दिया. साया जोर से चिंघाड़ करने लगा. उसकी आवाज जैसे धडकनों को खोखला कर रही थी .

पर वो साया बलशाली था , रीना के पीछे सरकते कदम ये बता रहे थे की वो उस से पार नहीं पा पायेगी की तभी मीता ने रीना के हाथ को थाम लिया और आँखों से इशारा किया . दोनों में न जाने क्या बात हुई उन्होंने क्या समझा पर दोनों के होंठ कुछ बुदबुदाने लगे और फिर एक तेज रौशनी का धमाका हुआ और वो साया शिवाले की दिवार से जा टकराया . उसकी चीख फिर से गूंजी.

पर फुर्ती से सँभालते हुए उसने मलबे में पड़ी कड़ी के टुकड़े को उठा कर मीता पर दे मारा . नुकीला टुकड़ा मीता की जांघ को चीर गया वो एक तरफ गिर पड़ी. चाची मीता को सँभालने के उसकी तरफ दौड़ी और उसी पल वो साया रीना के पास पहुंचा गया . उसने रीना के गले को ऐसे पकड़ा की जैसे उसका गला घोंट रही हो . पर फिर मैंने देखा की उसने रीना के गले से वो हीरे वाला धागा निकाल लिया.



“हा हा हा , तभी मैं सोचु की ताकत क्यों मुझे जानी पहचानी लग रही है , मुर्ख लड़की तो ये था तेरी शक्ति का राज ” उस साए ने हँसते हुए वो लाकेट अपने गले में पहन लिया . कुछ देर के लिए सब कुछ थम सा गया . ऐसी ख़ामोशी छा गयी की जरा सी आवाज भी दिल का दौरा ला दे. और फिर वो चीख पड़ी ..

“अर्जुन, अर्जुन,,,,,,,,,,, ” इतनी जोर डर चीख थी वो की मैंने अपने कान से खून बहते हुए महसूस किया. वो जैसे पागल ही हो गई थी . कभी इधर भागे कभी उधर भागे उसकी आँखे और अँधेरी होने लगी . इतनी अँधेरी की जैसे वो सब कुछ निगल जायेगी. उसने रीना के गले को पकड लिया और उसे मारने लगी. रीना की चीखो ने मुझे पागल ही कर दिया था . मैं गुस्से से उसकी तरफ बढ़ा पर बीच में मीता आ गयी उसने एक सुनहरी डोर निकाली और उस साये को बाँधने की कोशिश करने लगी. वैसा ही चाची ने किया.

साए ने फुफकारते हुए कहा- खेल खेलना चाहती हो तुम . चलो ये खेल ही सही .

वो अकेली थी तीन त्रिदेवियो के सामने , तभी मेरी नजर पृथ्वी पर पड़ी जिसे होश आ गया था और वो दद्दा ठाकुर की बन्दूक उठा कर रीना पर निशाना लगा ही रहा था की मैंने एक बड़ा सा पत्थर उठा कर उसके हाथो पर दे मारा. बन्दूक उसके हाथो से गिर गयी और मैंने उसे धर लिया. पृथ्वी से गुथ्तम गुत्था होते हुए मैंने देखा की . शिवाले में वैसा ही धुआ उठा जैसा की तब था जब रीना ने अश्वमानव मारे थे .

पृथ्वी- आज या तो तू नहीं या मैं नहीं .

मैं- मुर्ख, तुझे अंदाजा भी नहीं है की यहाँ पर क्या हो रहा है

पृथ्वी- तेरी वजह से मेरे दादा मारे गए . तुझे नहीं छोडूंगा.

पृथ्वी ने मुझे लात मारी .मेरा ध्यान पृथ्वी से ज्यादा रीना , मीता की तरफ था इसी का फायदा उठाते हुए पृथ्वी ने मुझे दिवार से लगा दिया जिस पर गडी कील मेरे सीने में धंस गयी . मैं दर्द से दोहरा हो गया . वो लगातार मुझे दिवार की तरफ धकेल रहा था ताकि कील और अन्दर घुस जाए. प्रतिकार करते हुए मैंने अपना पैर पीछे किया और उसके पंजे पर मारा जैसे ही वो लडखडाया मैंने उसे धर लिया.

“बहुत फडफडा लिया तू हरामजादे, तेरे पापो को मैंने बहुत कोशिश की माफ़ करने की ये जानते हुए भी की तूने मेरी जान पर हाथ डाला मैं तुझे मारना नहीं चाहता था पर तेरी तक़दीर में ये ही लिखा था ” कहते हुए मैंने पृथ्वी की गर्दन मरोड़ दी. वो चीख भी नहीं पाया. टूटी सहतीर सा लहरा कर गिरा वो .

तभी रौशनी का एक धमाका हुआ और तीन साए शिवाले में इधर उधर जाकर गिरे, रीना मीता और चाची खून से लथपथ धरती पर पड़े अपनी सांसो की डोर को थामने की कोशिश कर रही थी . वो साया मेरी तरफ बढ़ा और मुझे घसीट लिया.

उसने अपने चेहरे को मेरे सीने की तरफ झुकाया और मैंने पहली बार उस को देखा. वो खूबसूरत चेहरा . इस से पहले की वो अपने होंठ मेरे बदन पर लगा कर मेरा खून पी पाती. .उस आवाज ने जैसे मेरे बदन में शक्ति का संचार कर दिया .

“बस मंदा बस बहुत हुआ ”


उस साए ने पलट कर देखा उसके सामने अर्जुन सिंह खड़ा था .............
Behtreen lazwaab update
 

Innocent_devil

Evil by heart angel by mind 🖤
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Bhai aapki kahani meri kuch favourite kahani me se ek rahi hai . Aapki writing gazab ki hai . Shuru se le kar end tak ek suspence raha hai . Wahi aapne last tak kaayam karke rakha hai . Sex ko utni hi ehamiyat di jitni kahani ki maang thi ...

GhaAb ki story aur aap writer ekdam shandar hai 🖤
 

Tiger 786

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#74

“वक्त का पहिया घूमते हुए फिर से यही पर आकर रुक गया है अर्जुन, देखो जरा अपने आस पास मैं हूँ तुम हो और ये बरसता सावन ” मंदा ने कहा .

अर्जुन- बच्चो को जाने दे मंदा . तुझे जो कहना है मुझसे कह, जो करना है मेरे साथ कर .

मंदा- किया तो तुमने था मुझे बर्बाद.

अर्जुन- तो फिर ख़तम कर इस किस्से को, इस दर्द से तू भी आजाद हो और मुझे भी कर. तुझे लगता है की मैं तेरा गुनेहगार हूँ तो ये ही सही . तेरा हक़ है मुझ पर दे सजा मुझे

मंदा- तेरे सामने तेरे वंश को ख़तम करुँगी मैं , इस से बेहतर सजा क्या होगी तेरे लिए अर्जुन, याद कर वो दिन जब मैं तडपी थी , आज तू तडपेगा तूने छल किया मेरे साथ ,

इस से पहले की बाबा कुछ कहते चाची बीच में बोल पड़ी- मंदा , तेरी आँखों पर पर्दा पड़ा है तुझे तेरे दर्द, तेरे बदले के सिवाय कुछ नहीं दिख रहा है .क्रोध में इस कदर अंधी हुई है तुझे की आज तक चैन नहीं मिला दिल पर हाथ रख कर देख और फिर कह जिस इन्सान पर तू इल्जाम लगा रही है , जिस इन्सान के प्रति तू इतनी नफरत लिए है की तू आगे नहीं बढ़ पाई.

मंदा- तुझसे तो मैं बाद निपट लुंगी. तू क्या जाने इसने मेरे साथ क्या किया था .

संध्या- तू ही बता फिर, आज इस शिवाले में तू भी है मैं भी हूँ हम सब है , तू ही बता मंदा आखिर उस रात क्या हुआ था , आखिर क्यों सब कुछ बर्बाद हो गया .

अर्जुन- संध्या तुम इन तीनो को लेकर यहाँ से जाओ

मंदा- कोई कहीं नहीं जाएगा. शुरू तुमने किया था अर्जुन ख़तम मैं करुँगी . अपने भाई से बढ़कर मैंने तुम्हे माना था . मेरी राखी के धागे को तुमने इतना कमजोर कर दिया तुमने की सब बर्बाद कर दिया तुमने. मेरे प्रतिशोध की अग्नि आज तुम्हे, तुम्हारे वंश को सब को ख़तम कर देगी.

मंदा की छाया का रूप बदलने लगा. वो धुआ धुआ होने लगी और जब वो धुआ छंटा तो हमारे सामने एक बेहद सुंदर औरत खड़ी थी . इतनी सुन्दर की उसके रूप को देखना ही आँखों को गुस्ताखी लगे. पर उसके चेहरे पर दुनिया भर का क्रोध था . आँखे अँधेरे से भी काली. मंदा ने मुझ पर अपने नुकीले नाखूनों से वार किया जो मेरी पीठ को उधेड़ गए.



रीना- मंदा , तुम जो भी हो मैं फिर तुमसे कहती हूँ मनीष की आन हूँ मैं , प्रीत की डोर बाँधी है मैंने उस से और मेरे प्रेम की डोर इतनी कमजोर नहीं की तेरे जैसी ऐरी गैरी कोइ भी तोड़ दे.

मंदा- बहुत बोलती है तू , पहले तेरा ही इलाज करती हूँ मैं

मंदा ने न जाने क्या किया रीना के बदन में आग लगने लगी. लपटों में घिरने लगी वो . मीता उसे बचाने की कोशिश करने लगी तो मंदा ने उसे भी धर लिया .

“ये अनर्थ मत मर मंदा , ”अर्जुन ने मंदा के आगे हाथ जोड़ दिए पर उसका कलेजा नहीं पसीजा

संध्या- अब बस एक रास्ता है इसे रोकने का वर्ना ये दोनों को मार देगी.

अर्जुन- नहीं .

संध्या- कब तक चुप रहेंगे आप. जो बोझ आपके दिल पर है आज वक्त आ गया है उसे उतारने का. आप चुप रह सकते है पर मैं बोलूंगी आज और मुझे कोई नहीं रोकेगा.

चाची मंदा की तरफ मुखातिब हुई और बोली- मंदा तू चाहे तो इन दोनों को मार दे पर ये याद रखना इनके बदन से टपकता लहू तेरा ही है. इनकी चिताओ से उठता धुआं तेरा ही होगा.

अचानक से मंदा के हाथ रुक गए रीना और मीता धडाम से निचे गिरी “क्या कहा तूने ” मंदा ने कांपती आवाज में पूछा

संध्या- ये दोनों तेरी ही बेटिया है मंदा .

चाची ने ऐसा धमाका कर दिया था जिसने की शिवाले को हिला कर रख दिया .

“मुझे बोलने दीजिये जेठजी , आज ये राज जो आप बरसो से अपने सीने में दबाये हुए है आज खोलना ही होगा वर्ना ये न जाने क्या अनर्थ कर बैठेगी. जिसको तू अपना गुनेहगार समझती है उसकी सरपरस्ती में ही तेरी बेटिया आज देख कैसे सर उठा कर खड़ी है.मुझे लगा था तू इन्हें पहचान जायेगी पर आँखों पर पड़े परदे ने अपने ही खून को नहीं पहचाना ” चाची ने कहा.

मैंने देखा की रीना और मीता के चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी . झटका तो मुझे भी लगा था पर पिछले कुछ महीनो में जो भी देखा था जो भी बीता था तो इसे भी मान लिया .

मंदा- मेरी बेटिया ........

अर्जुन- यही सच है मंदा, ये दोनों बच्चिया तेरे आँगन के ही फूल है . तू चाहे मुझे जो भी दोष दे पर मैंने राखी के हर फर्ज को निभाया . आज भी हालात ऐसे हो गए की ना चाहते हुए भी मुझे ये राज़ खोलना पड़ रहा है मंदा. वर्ना जीते जी मैं तेरी रुसवाई कभी नहीं होने देता.

बरसती बूंदों के बीच उभरती रात अपने साथ अजीब सी बेचैनी ले आई थी .

अर्जुन- मुझे मालूम हो गया था की तू बलबीर (पृथ्वी का पिता ) के प्यार में पड़ गयी थी . कब तू उसे अपना मानने लग गयी थी . पर मंदा तुझे ये नहीं मालूम था की वो बस तेरा इस्तेमाल कर रहा है . उसके लिए तू कुछ नहीं थी सिवाय एक खिलोने के जिस से उसका मन भरने लगा था .


अर्जुन- तुझे अपनी बहन माना था तो मेरा कलेजा जलता था की जब तुझे सच का मालूम होगा तो तू कैसे सह पाएगी ये सब इसलिए एक रात मैं बलबीर से मिलने रुद्रपुर गया . मैंने उसके पैरो में अपनी पगड़ी रख दी , मैं चाह कर भी जब्बर को ये नहीं बता सकता था की हमारी बहन के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ हुआ है . पर बलबीर के मन में कुछ और ही था उसने मुझसे एक सौदा किया बदले में तुझसे ब्याह करने का वचन भी दिया उसने मुझे .
Mind-blowing update
 
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