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Adultery गुजारिश

Naik

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#42

रूपा - आ चल मेरे साथ

मैं - कहाँ

रूपा - घर

मैं - सच मे

रूपा - सच मे

रूपा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया मैं उसका सहारा लेकर उठा, सीने मैं के दर्द की वज़ह से पैर लडखडाए.
रूपा - क्या हुआ

मैं - कुछ नहीं चल चले

सर्द रात के अंधेरे मे अपनी जाना का हाथ थामे कच्चे रास्ते पर चलना अपने आप मे एक सुख होता है. हमने जल्दी ही वो मोड़ पार किया जहां अक्सर मैं उसे छोड़ कर जाता था. जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे रूपा की पकड़ मेरी कलाई पर मजबूत होते जा रही थी. करीब आधा कोस चलने के बाद मुझे रोशनी दिखने लगी. जल्दी ही हम एक छप्पर के सामने खड़े थे.

"बस यही है मेरा आशियाँ " रूपा ने टूटते लहजे मे कहा.

मैं - महल से कम भी नहीं है जहां मेरी रानी रहती है
वो मुझे अंदर ले आयी. एक चूल्हा था. एक कोने मे बिस्तर प़डा था. पास मे एक कमरा और था. रूपा ने मुझे पानी दिया. मैं बैठ गया.

रूपा - चाय पियेगा

मैं - हाँ

उसने चूल्हा जलाया, बहती ठंड मे धधकता चूल्हा, ऊपर से बर्तन मे उबलती चाय, जिसकी खुशबु ने माहौल बना दिया था. जल्दी ही कप मेरे हाथो मे था

मैं - तू भी ले

वो - तुझे तो मालूम है मुझे दुध पसंद है.

मैं - तेरी मर्जी, पर दिलबर के संग चुस्की लेने का मजा ही अलग है सरकार

रूपा - जानती हूं सनम. मेरे संग तू है और क्या चाहिए. रात दिन बस एक ही ख्याल है मुझे, कभी सोचा नहीं था कि ऐसे कोई. मुसाफिर आएगा जो मुझे यूँ बदल देगा. मेरी जिन्दगी को एक नया रास्ता देगा
.
रूपा ने एक डिब्बे से कुछ मिठाई दी मुझे खाने को.

"बोल कुछ " उसने मुझसे कहा

मैं - क्या बोलू, बस तेरे पहलू मे बैठा रहूं, मुझे अपने आगोश मे छिपा ले, इतनी तमन्ना है जब आंख खुले तो तेरा दीदार हो, नींद आए तो तेरी बाहें हो.

रूपा - कहाँ से सोचता है तू ये बाते,

मैं - तुझे देखते ही अपने आप सीख जाता हूँ

मैं रूपा से बात कर रहा था पर मुझे कुछ होने लगा था. कुछ बेचैनी सी होने लगी थी, जी घबराने लगा जैसे उल्टी गिरेगी.

रूपा - क्या हुआ ठीक तो है ना

मैं - हाँ ठीक हुँ,

ठंडी मे भी मेरे माथे पर पसीना बहने लगा था.

"मुझे जाना होगा सरकार, जल्दी ही मिलूंगा " मैंने कहा

रूपा - क्या हुआ

मैं - एक काम याद आया

मैंने अपना दर्द छुपाते हुए रूपा से कहा.

रूपा - तेरी तबीयत ठीक नहीं लगी मुझे, मैं चलती हूं तेरे साथ

मैं - क्यों परेशान होती है, ऐसी कोई बात नहीं, बस एक काम याद आ गया.

मैं रूपा को परेशान नहीं करना चाहता था.

" फिर भी मोड़ तक आती हूं तेरे साथ. "उसने कहा
हम दोनों वहां से चल पड़े. एक एक कदम भारी हो रहा था मैंने सीने से रिसते खून को अपने कपडे भिगोता महसूस किया. बाबा ने सही कहा था आने वाले दिन बड़े मुश्किल होंगे. मोड़ तक आते आते मैं गिर प़डा. आंखे बंद सी होने लगी

"देव, क्या हो रहा है तुम्हें " रूपा चीख पडी.

"उठो देव उठो " रूपा रोने लगी मेरी हालत देख कर.
"बाबा के पास ले चलो मुझे " टूटती आवाज मे मैने कहा

रूपा ने मुझे सहारा दिया और बोली - अभी ले चलती हूं, तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी मैं, कुछ नहीं होगा तुम्हें
अपना सहारा दिए, मुझे घसीटते हुए रूपा मजार तक ले चली थी. जैसे किसी नल से पानी बहता है ठीक वैसे ही बदन से रक्त बह रहा था, मेरे लिए सब अंधेरा हो चुका था, सांसे जैसे टूट गई थी.

"हम आ गए देव हम आ गए " मुझे बस रूपा की आवाज सुनाई दे रही थी. मैं आंखे खोलना चाहता था पर सब अजीब हो रहा था

"बाबा, बाबा कहाँ हो तुम, देव को जरूरत है तुम्हारी " रूपा पागलों की तरह चीख रही थी. पर उसकी सुनने वाला वहां कोई नहीं था.

खुले सीने पर कुछ बांध कर वो खून बहना रोकने की कोशिश कर रही थी. बार बार मेरे चेहरे पर मार रही थी.

"आंखे खोल देव आंखे खोल, मैं हूँ तेरे साथ कुछ नहीं होगा तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी अपने सरताज को " रूपा बुरी तरह चीख रही थी.

"रूपा, रूपा " मैंने उसके हाथ को कसके पकड़ लिया. बड़ी मुश्किल से मैं उसे देख पाया. आंसुओ मे डूबा उसका चेहरा मेरे दिल को छलनी कर गया. मैं बहुत कुछ कहना चाहता था पर ये अजीब सा वक़्त था.

" क्या करू, कहाँ जाऊँ कोई सुनता क्यों नहीं मेरी
"रूपा बोली

मैंने देखा रूपा के चेहरे के भाव बदलने लगे थे. उसने अपनी आस्तीन ऊपर की और अपने हाथ पर एक चीरा लगाया. ताजा खून की खुशबु हवा मे फैल गई.
"कुछ नहीं होगा तुम्हें ". रूपा ने अपनी आस्तीन मेरे सीने के ऊपर की ही थी कि वो चीखती हुई पीछे की तरफ जा गिरी. एक दिल दहला देने वाली चिंघाड़ हुई. मैं समझ गया कि रूपा को किसने झटका दिया. ये वो ही सर्प था जिसे दुनिया मेरा साथी मानती थी.

सर्प ने मेरे चारो तरफ कुंडली जमा ली और अपनी पीली आँखों से मेरे दिल मे झाँक कर देखा. अगले ही उसकी फुंकार से जैसे आसपास जहर फैल गया.

"ये मर रहा है इसकी जान बचाने दे मुझे " रूपा ने कहा

सर्प ने ना मे गर्दन हिला दी.

रूपा - मैं विनती करती हूं. इसके अलावा कोई चारा नहीं है.

सर्प अपनी जगह से नहीं हिला. रूपा ने मेरे पास आने की कोशिश की पर उसने झपटा मारा रूपा पर.

"तू समझती क्यों नहीं अभी कुछ नहीं किया गया तो प्राण हर लिए जाएंगे इसके " रूपा ने कहा

"इलाज मिल जाएगा तेरी सहायता की जरूरत नहीं " पहली बार वो सर्प मानव भाषा बोला
.
रूपा -ठीक है, तो कर इसका इलाज पर याद रखना इसकी एक एक साँस की कीमत है इसे कुछ हुआ तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, चाहे तू हो या कोई. महादेव की कसम किसी का मान नहीं रखूंगी मैं. चाहे मुझे मेरे प्राण देने पड़े पर मुसाफिर को जिंदा रहना होगा

"मैंने कहा ना, तेरी जरूरत नहीं, जहां तू खड़ी है वहाँ तुझे आने की इजाजत है किस्मत है तेरी " सर्प ने अभिमान से कहा

रूपा - तू रोक नहीं सकती, तेरी बदनसीबी है

"गुस्ताख, तेरी ये हिम्मत " सर्प ने अपनी पुंछ रूपा के जिस्म पर मारी, रूपा का सर दीवार से टकराया
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update bhai
Ab nagin aur rupa ka kia rishta h
 

Studxyz

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कहानी में बहुत झोल- झाल वाले किरदार है अब शकुंतला चुदने को त्यार हो गयी ये कहीं देव को किसी और चक्र में ना फसा दे और एक नया किरदार आया ऋतू अचानक से इसका प्यार भी उमड़ आया यहाँ भी देव के साथ कोई लोचा न हो जाये

सरोज बेचारी बहुत अच्छी है पाल पोस कर देव को इतना बड़ा किया और सुखी ही घूम रही है ना पति ध्यान दे और ना ही देव का टाइम पर खड़ा होता है :vhappy1:
 

Ben Tennyson

Its Hero Time !!
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बहुत ही दिलचस्प मोड़ दे दिया बन्धु कहानी में दो पुराने दुश्मन या युं कहे किसी जमाने की सहेलियां का मुंह वापस आना दिलचस्प ही तो है और ताऊ के एंगल को बहन रितु के जरिए बस खत्म करने या कहानी को रितु की तरफ मोड़ने का प्रयास किया गया है ऐसा लगा ...अब सामने शायद किसी की लाश पड़ी हो सकती है जो हो ना हो चाचा विक्रम की ओर मेरा अनुमान जा रहा है .. बाकी फौजी भाई का जलवा
 

sunoanuj

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उफ्फ फिर ऐसे मोड़ पर रोक दिया कहानी को ।
 

Naik

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#43

रूपा का सर दीवार से टकराया. पर वो सम्भल गई.

"तेरी यही इच्छा है तो ये ही ठीक " रूपा ने गुस्से से कहा और सर्प की पुंछ को पकड़ कर उसे हवा मे उछाल दिया.

मैं ये विध्वंस नहीं चाहता था पर उनको रोकने की हालत मे भी नहीं था. पहली बार मैंने शांत, सरल रूपा की आँखों मे कुछ ऐसा देखा था जिसकी मुझे कभी उम्मीद नहीं थी. वो सर्प जिसके सामने खड़े होने की किसी की हिम्मत नहीं, जिसके खामोश खौफ को मैंने खुद महसूस किया था.

रूपा ने सर्प पर झपटा सा मारा और वो सर्प चिंघाड़ता हुआ दूर जा गिरा.

"मुझे देखने दे इसे. " रूपा मेरी तरफ बढ़ी पर सर्प ने अपनी कुंडली मे जकड़ लिया रूपा को.

"मैंने कहा ना नहीं " सर्प अपनी अजीब सी शांत आवाज मे बोला

रूपा - देव के लिए मुझे तुझे चीरना भी पड़े तो परवाह नहीं

सर्प ने अपना फन जमीन पर मारा और फर्श के टुकड़े टुकड़े हो गए. उसका ये इशारा था रूपा को की आ देखू तुझे. उन दोनों के झगड़े की वज़ह से गर्मी बढ़ गई थी. दोनों एक दूसरे से जुझ रही थी. बड़ी मुश्किल से मैं उठ खड़ा हुआ.

"तुम दोनों मुझे मार दो, फिर जो चाहे करना है कर लेना " मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा.

दोनो रुक गयी और मुझे देखने लगी.

"मैं नहीं जानता कि क्या कहूँ, और ना मुझे कुछ कहना है, तुम दोनों से विनती है मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. " मैंने कहा

रूपा ने बेबस नजरो से मेरी तरफ देखा.

"तुम दोनों मे से जो भी मुझे इस दर्द से आजाद कर सकती है वो करे "मैंने कहा

"ईन दोनों के बस की बात नहीं है ये मुसाफिर " इस आवाज ने हम सबका ध्यान खींच लिया. ये बाबा थे जो अभी अभी कहीं से लौटे थे.

"एक पवित्र स्थान पर जो घृणित कार्य किया है तुम दोनों ने, विचार करके देखो, क्रोध और घ्रणा कब दिमाग पर काबु कर लेते है तो कुछ भान नहीं होता, कल जब लोग यहां आयेंगे तो इस हालत को देख कर क्या सोचेंगे "बाबा ने गुस्से से कहा

मैं दीवार का सहारा लेकर बैठ गया. मुझे लगने लगा था कि किसी भी पल बस कुछ भी हो सकता है.

"तुम दोनों जाओ यहां से "बाबा ने उनसे कहा

रूपा - नहीं जाऊँगी, जब तक ये ठीक नहीं हो जाता नहीं जाऊँगी

सर्प ने भी ऐसा ही कहा.

बाबा ने अपने झोले से कुछ निकाला और मेरे हाथ मे रखा.

"ये रक्तवर्धक बूटी है खा इसे " बाबा ने कहा

मैंने तुरन्त उसे घटक लिया.

बाबा - इस से नया खून बनने लगेगा.

बाबा ने सही कहा था जैसे ही बूटी का असर हुआ मुझे मेरी नसों मे एक लहर महसूस हुई. कमजोरी बंद हो गई.

मैं - क्या ये इलाज है बाबा

बाबा - जिंदगी भर का दर्द. ये घाव भर जाएगा पर दर्द नहीं जाएगा क्योंकि

"क्योंकि प्रहार रक्षा के लिए था, अनजाने मे तुमने कुछ ऐसी वस्तु छु ली जिसे प्राणघातक वार से संरक्षित किया गया था. " सर्प ने कहा

बाबा ने सर हिलाया.

रूपा - बाबा आप घाव भरो, दर्द को मैं अपने ऊपर ले लुंगी

बाबा - जानती है क्या कह रही है

रूपा - हाँ, जानती हूं

बाबा - ऐसा नहीं होगा. कदापि नहीं.

बाबा ने मुझे लेटने को कहा और झोले से कुछ निकाल कर मेरे सीने पर मलने लगे. तेज दर्द होने लगा.

"मुझे तुम्हारी जरूरत पड़ेगी " बाबा ने सर्प से कहा

सर्प की पीली आंखे टिमटिमाने लगी. वो अपने अर्ध नारी अर्ध नागिन रूप मे आयी. हमेशा के जैसे मैं उसका चेहरा नहीं देख पा रहा था. उसने अपने गले से कुछ निकाला और बाबा की तरफ फेंका.

बाबा ने उस चीज को रगड़ कर मेरे जख्म मे भरना शुरू किया और तुरन्त ही मुझे बड़ी राहत मिली.

बाबा - रुद्रभस्म असर कर रही है.

सर्प को जैसे राहत सी मिली.

बाबा - मुझे तुम्हारी सहायता भी चाहिए रूपा

"नहीं बाबा, ऐसा नहीं होगा " सर्प ने प्रतिकार किया

बाबा - तो तुम बताओ मैं क्या करू. दर्द के आवेश को रोकने का कोई और तरीका है.

सर्प - पर इसके दुष्परिणाम

बाबा - फ़िलहाल मेरी प्राथमिकता ज़ख्म भरने की है
रूपा आगे आयी. उसने हमेशा की तरह मुस्करा कर मुझे देखा.

"आंखे बंद कर लो मुसाफिर, और चाहे कितना भी दर्द हो पी लेना उसे, धीरे धीरे आदत हो जाएगी तुम्हें "बाबा ने कहा

मैंने आंखे मूंद ली. ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे सीने को सिलाई किया जा रहा हो. मैंने अपनी नसों मे कुछ अजीब सा बहता हुआ महसूस किया. धीरे धीरे मैं बेहोशी के सागर मे डूबता चला गया. जैसे हर रात के बाद सुबह होती है उस बेहोशी के बाद भी आंखे खुली. मैंने खुद बाबा के बिस्तर पर पाया. दिन निकल आया था.

मजार ऐसी थी कि जैसे कल कुछ हुआ ही नहीं हो. मैंने अपने सीने पर हाथ फेरा. ज़ख्म गायब था ना सिलाई के कोई निशान थे. मैंने कंबल ओढ़ा और बाहर आया.

"आ मुसाफिर आ चाय पीते है " बाबा ने मुझे देखते हुए कहा

मैं - वो दोनों कहा है

बाबा - कौन दोनों

मैं - आप इतने भोले भी नहीं है

बाबा - शातिर भी तो नहीं हूं

मैं - मुझे उस सर्प के बारे मे जानना है, कौन है वो, क्या रिश्ता है मेरा उससे, क्यों मेरे साथ है वो. कहाँ रहती है वो.

बाबा ने चिलम होंठो से लगाई और एक कश लिया.

बाबा - मुझे क्या मालूम

मैं - बाबा छुपाने का कोई फायदा नहीं, आपको अभी बताना होगा मुझे

बाबा - जानना चाहता है उसके बारे मे तो सुन, तू कर्जदार है उसका, तेरी आधी जिंदगी उसकी अमानत है. ये सांसे जो तेरी चल रही है, उसकी बदोलत है, तेरा सुख इसलिए है क्योंकि दुख उस के भाग मे जुड़ गया है. तू जानना चाहता है वो कौन है, वो वो अभागन है जिसके साथ नियति ने ऐसा छल किया है जो ना बताया जाए, ना छिपाया जाए. जब जब तुझे वो मिले, कृतज्ञ रहना उसका.

बाबा ने इतना कहा और आंखे मूंद ली. हमेशा की तरह उनका ये इशारा था. मैं वहां से उठा और बाहर की तरफ आया ही था कि मेरे सामने एक गाड़ी आकर रुकी.
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update musafir bhai
Ab yeh gaadi leker kon aa gaya
Thanks for lovely update
 

Naik

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#44

बाबा ने इतना कहा और आंखे मूंद ली. हमेशा की तरह उनका ये इशारा था. मैं वहां से उठा और बाहर की तरफ आया ही था कि मेरे सामने एक गाड़ी आकर रुकी. गाड़ी मे शकुंतला थी. उसने शीशा नीचे किया

मैं - देख कर चलाया करो, अभी चढ़ा देती मुझ पर

"मुझे मालूम था तुम यही पर मिलोगे, " उसने कहा

मैं - मुझसे क्या काम आन प़डा

शकुंतला- गाड़ी मे बैठो, बताती हूं

मैं गाड़ी मे बैठ गया शकुंतला ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. कुछ ही देर मे हम गांव से बाहर उस जगह पर थे जहां वो विक्रम से मिलती थी

"बताओ क्या हुआ " मैंने पूछा

शकुंतला - मैंने बहुत सोचा, मुझे तुम्हारा प्रस्ताव मंजूर है, मैं तुम्हारे साथ सोने को तैयार हूं.

शकुंतला की बात का मुझे यकीन सा नहीं हुआ,
उसका अहंकार अचानक से कैसे कम हो गया. ऐसे कैसे वो मुझ पर फिदा हो गई. दिमाग मे बहुत से विचार छा गए

मैं - ठीक है, बदले मे क्या चाहती हो

शकुंतला - यही बात मुझे बड़ी पसंद है तुम्हारी, सीधा मुद्दे पर आते हो. मैं तुम्हारे साथ सोने को तैयार हूं, जब जहां जब जब तुम बुलावोगे, मैं आ जाऊँगी. बदले मे तुम उस सर्प से कहकर मेरे पति का जहर उतरवाने को कहोगे

ये बड़ी अजीब बात थी और मेरी औकात से बाहर भी

"भला मैं कैसे कर सकता हूं ये, वो सर्प कभी मुझे मिलता ही नहीं और अगर मिला भी तो मैं कैसे समझा पाउंगा उसे. " मैंने शकुंतला से झूठ कहा

शकुंतला - मेरा पति तिल तिल मर रहा है छोटे चौधरी. मैं बड़ी आस लेकर आयी हूं. मुझे ना मत कहो.

मैं - तुम्हारी परेशानी समझता हूं सेठानी, और मेरे से ज्यादा तो तुम जानती हो सांप के बारे मे, यहां तक कि मुझे भी तुमने ही बताया था.

शकुंतला - मैं जानती हूं कि लालाजी और तुम्हारे सम्बंध कभी ठीक नहीं रहे पर मैं तुमसे उनकी जान की भीख मांगती हूं, उन्हें बचा लो

शकुंतला की आँखों मे आंसू भर आए. और मैं चाह कर भी उसे दिलासा नहीं पा रहा था. एक पत्नी जब पति को बचाने के लिए अपनी इज़्ज़त किसी दूसरे को सौंपने का निर्णय करती है तो ये बताता है कि वो उसे कितना चाहती है. दूसरी बात ये थी कि बेशक मैं उसकी लेना चाहता था पर पिछले कुछ दिनों से मेरी खुद की जिंदगी अजीब तरीके से झूल रही थी.

मैं गाड़ी से उतरा और पैदल ही खेत की तरफ चल प़डा. कल रात की घटना ऐसी थी कि मैं किसी को बताऊ तो कोई पागल ही समझे. मेरी सबसे बड़ी उत्सुकता थी कि रूपा उस सर्प को कैसे जानती थी और दोनों मे इतनी गहरी नफरत किसलिए थी.

सुल्तान बाबा उन दोनों को जानते थे. सोचते सोचते मेरे सर मे दर्द होने लगा. बेशक मुझे भूख लगी थी, फिर भी घर जाने की बजाय मैंने रज़ाई ओढ़ ली और सोने की कोशिश करने लगा.

पर ज्यादा देर सो नहीं पाया. कोई आ गया था. झोपड़ी मे. ये ताऊ की लड़की रितु थी.

"तुम यहाँ कैसे " मैंने पूछा

रितु - भाई आज मेरी शादी है मैं तुमको बुलाने आयी हूं.

मैं - तुम्हें आने की जरूरत नहीं थी, मैं बस आ ही रहा था

रितु - मुझे आना ही था भाई, क्योंकि तुम नहीं आते, और नहीं आने की वज़ह भी है तुम्हारे पास. पर आज का दिन मेरे लिए खास है, मैं अपने जीवन की नयी शुरुआत कर रही हूं और मैं चाहती हूं कि मेरा भाई मुझे अपने हाथों से विदा करे. घर वालो ने कभी वो हक नहीं दिया जिसके तुम हकदार थे. पर मैं हाथ जोड़कर विनती करती हूं कि मेरे लिए घर चलो. ये बहन अपने भाई से कुछ घंटे मांगती है.

रितु की आँखों से आंसू फूटने लगे., जो मेरे दिल को चीर गए. मैंने बस उसे अपने सीने से लगा लिया.

"बहने कभी विनती नहीं करती, बहनो का हक होता है " मैंने कहा.

मैं रितु के साथ घर आया. जल्दी से नहा धोकर. मैं शादी के कामों मे लग गया. दिल को इस बात की खुशी थी कि किसी ने तो अपना समझा. शाम होते होते अलग ही महफिल सज गई थी. मेरी नजर बार बार सरोज पर जा रही थी जो खुद किसी दुल्हन से कम नहीं लग रही थी. सुर्ख लाल साड़ी मे क्या गजब लग रही थी वो. हाथों मे दर्जन भर चूडिय़ां. कुछ ज्यादा ही कसा हुआ ब्लाउज जो उसके उभारो को ठीक से साँस लेने की इजाजत भी नहीं दे रहा था


मैं सरोज के पास से गुजरा और उसके नितंबों को सहलाता गया. उसने बड़ी प्यासी अदा से देखा मुझे. फिर वो मेरे पास आयी

सरोज - क्या इरादा है

मैं - तुम्हें पाने का

सरोज - मौके होते है तब तो भागते फिरते हो. आज जब चारो तरफ लोग है जब मस्ती सूझ रही है

मैं - पटाखा लग रही हो

सरोज - सुलगा दो फिर

मैं - करो कुछ फिर

सरोज - अभी तो मुश्किल है, फेरों के बाद देखती हूँ

मैं भी जानता था कि अभी थोड़ा मुश्किल है. सो दिल को तसल्ली दी और शादी एंजॉय करने लगा. रात बड़ी तेजी से भाग रही थी. बारात के खाने से लेकर, रितु के फेरे, ताऊ ने मुझे गठबंधन करने को कहा. ये एक ऐसी घड़ी थी ना चाहते हुए भी मेरा दिल भर आया तारो की छांव मे रितु को विदाई होने तक. मैं बुरी तरह से थक गया था.

मैंने सोचा कि थोड़ा आराम कर लू. दरअसल मेरी इच्छा तो थी कि सरोज को पेल दु. मैंने उसे कहा तो उसने कहा तुम चलो मैं थोड़ी देर मे आती हूं. मैं ताऊ के घर से निकल कर अपने घर की तरफ चल दिया.

हवा मे खामोशी थी, जनरेटर की आवाज दूर तक सुनाई दे रही थी. मैं गली के मोड़ तक पहुंचा ही था कि मेरे कदम जैसे धरती से चिपक गए. मेरे सामने... मेरे सामने....
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update musafir bhai
Ab yeh kia dekh lia dev n jo pao dharti se chipak gaye
Intizar rehega aapke agle update ka
Thanks for lovely update
 

Guffy

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#44

बाबा ने इतना कहा और आंखे मूंद ली. हमेशा की तरह उनका ये इशारा था. मैं वहां से उठा और बाहर की तरफ आया ही था कि मेरे सामने एक गाड़ी आकर रुकी. गाड़ी मे शकुंतला थी. उसने शीशा नीचे किया

मैं - देख कर चलाया करो, अभी चढ़ा देती मुझ पर

"मुझे मालूम था तुम यही पर मिलोगे, " उसने कहा

मैं - मुझसे क्या काम आन प़डा

शकुंतला- गाड़ी मे बैठो, बताती हूं

मैं गाड़ी मे बैठ गया शकुंतला ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. कुछ ही देर मे हम गांव से बाहर उस जगह पर थे जहां वो विक्रम से मिलती थी

"बताओ क्या हुआ " मैंने पूछा

शकुंतला - मैंने बहुत सोचा, मुझे तुम्हारा प्रस्ताव मंजूर है, मैं तुम्हारे साथ सोने को तैयार हूं.

शकुंतला की बात का मुझे यकीन सा नहीं हुआ,
उसका अहंकार अचानक से कैसे कम हो गया. ऐसे कैसे वो मुझ पर फिदा हो गई. दिमाग मे बहुत से विचार छा गए

मैं - ठीक है, बदले मे क्या चाहती हो

शकुंतला - यही बात मुझे बड़ी पसंद है तुम्हारी, सीधा मुद्दे पर आते हो. मैं तुम्हारे साथ सोने को तैयार हूं, जब जहां जब जब तुम बुलावोगे, मैं आ जाऊँगी. बदले मे तुम उस सर्प से कहकर मेरे पति का जहर उतरवाने को कहोगे

ये बड़ी अजीब बात थी और मेरी औकात से बाहर भी

"भला मैं कैसे कर सकता हूं ये, वो सर्प कभी मुझे मिलता ही नहीं और अगर मिला भी तो मैं कैसे समझा पाउंगा उसे. " मैंने शकुंतला से झूठ कहा

शकुंतला - मेरा पति तिल तिल मर रहा है छोटे चौधरी. मैं बड़ी आस लेकर आयी हूं. मुझे ना मत कहो.

मैं - तुम्हारी परेशानी समझता हूं सेठानी, और मेरे से ज्यादा तो तुम जानती हो सांप के बारे मे, यहां तक कि मुझे भी तुमने ही बताया था.

शकुंतला - मैं जानती हूं कि लालाजी और तुम्हारे सम्बंध कभी ठीक नहीं रहे पर मैं तुमसे उनकी जान की भीख मांगती हूं, उन्हें बचा लो

शकुंतला की आँखों मे आंसू भर आए. और मैं चाह कर भी उसे दिलासा नहीं पा रहा था. एक पत्नी जब पति को बचाने के लिए अपनी इज़्ज़त किसी दूसरे को सौंपने का निर्णय करती है तो ये बताता है कि वो उसे कितना चाहती है. दूसरी बात ये थी कि बेशक मैं उसकी लेना चाहता था पर पिछले कुछ दिनों से मेरी खुद की जिंदगी अजीब तरीके से झूल रही थी.

मैं गाड़ी से उतरा और पैदल ही खेत की तरफ चल प़डा. कल रात की घटना ऐसी थी कि मैं किसी को बताऊ तो कोई पागल ही समझे. मेरी सबसे बड़ी उत्सुकता थी कि रूपा उस सर्प को कैसे जानती थी और दोनों मे इतनी गहरी नफरत किसलिए थी.

सुल्तान बाबा उन दोनों को जानते थे. सोचते सोचते मेरे सर मे दर्द होने लगा. बेशक मुझे भूख लगी थी, फिर भी घर जाने की बजाय मैंने रज़ाई ओढ़ ली और सोने की कोशिश करने लगा.

पर ज्यादा देर सो नहीं पाया. कोई आ गया था. झोपड़ी मे. ये ताऊ की लड़की रितु थी.

"तुम यहाँ कैसे " मैंने पूछा

रितु - भाई आज मेरी शादी है मैं तुमको बुलाने आयी हूं.

मैं - तुम्हें आने की जरूरत नहीं थी, मैं बस आ ही रहा था

रितु - मुझे आना ही था भाई, क्योंकि तुम नहीं आते, और नहीं आने की वज़ह भी है तुम्हारे पास. पर आज का दिन मेरे लिए खास है, मैं अपने जीवन की नयी शुरुआत कर रही हूं और मैं चाहती हूं कि मेरा भाई मुझे अपने हाथों से विदा करे. घर वालो ने कभी वो हक नहीं दिया जिसके तुम हकदार थे. पर मैं हाथ जोड़कर विनती करती हूं कि मेरे लिए घर चलो. ये बहन अपने भाई से कुछ घंटे मांगती है.

रितु की आँखों से आंसू फूटने लगे., जो मेरे दिल को चीर गए. मैंने बस उसे अपने सीने से लगा लिया.

"बहने कभी विनती नहीं करती, बहनो का हक होता है " मैंने कहा.

मैं रितु के साथ घर आया. जल्दी से नहा धोकर. मैं शादी के कामों मे लग गया. दिल को इस बात की खुशी थी कि किसी ने तो अपना समझा. शाम होते होते अलग ही महफिल सज गई थी. मेरी नजर बार बार सरोज पर जा रही थी जो खुद किसी दुल्हन से कम नहीं लग रही थी. सुर्ख लाल साड़ी मे क्या गजब लग रही थी वो. हाथों मे दर्जन भर चूडिय़ां. कुछ ज्यादा ही कसा हुआ ब्लाउज जो उसके उभारो को ठीक से साँस लेने की इजाजत भी नहीं दे रहा था


मैं सरोज के पास से गुजरा और उसके नितंबों को सहलाता गया. उसने बड़ी प्यासी अदा से देखा मुझे. फिर वो मेरे पास आयी

सरोज - क्या इरादा है

मैं - तुम्हें पाने का

सरोज - मौके होते है तब तो भागते फिरते हो. आज जब चारो तरफ लोग है जब मस्ती सूझ रही है

मैं - पटाखा लग रही हो

सरोज - सुलगा दो फिर

मैं - करो कुछ फिर

सरोज - अभी तो मुश्किल है, फेरों के बाद देखती हूँ

मैं भी जानता था कि अभी थोड़ा मुश्किल है. सो दिल को तसल्ली दी और शादी एंजॉय करने लगा. रात बड़ी तेजी से भाग रही थी. बारात के खाने से लेकर, रितु के फेरे, ताऊ ने मुझे गठबंधन करने को कहा. ये एक ऐसी घड़ी थी ना चाहते हुए भी मेरा दिल भर आया तारो की छांव मे रितु को विदाई होने तक. मैं बुरी तरह से थक गया था.

मैंने सोचा कि थोड़ा आराम कर लू. दरअसल मेरी इच्छा तो थी कि सरोज को पेल दु. मैंने उसे कहा तो उसने कहा तुम चलो मैं थोड़ी देर मे आती हूं. मैं ताऊ के घर से निकल कर अपने घर की तरफ चल दिया.

हवा मे खामोशी थी, जनरेटर की आवाज दूर तक सुनाई दे रही थी. मैं गली के मोड़ तक पहुंचा ही था कि मेरे कदम जैसे धरती से चिपक गए. मेरे सामने... मेरे सामने....
Gazab update bhai maza aa gaya padh kar aur yeh suspense na meri jaan le lega waiting for next
 

Nevil singh

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#44

बाबा ने इतना कहा और आंखे मूंद ली. हमेशा की तरह उनका ये इशारा था. मैं वहां से उठा और बाहर की तरफ आया ही था कि मेरे सामने एक गाड़ी आकर रुकी. गाड़ी मे शकुंतला थी. उसने शीशा नीचे किया

मैं - देख कर चलाया करो, अभी चढ़ा देती मुझ पर

"मुझे मालूम था तुम यही पर मिलोगे, " उसने कहा

मैं - मुझसे क्या काम आन प़डा

शकुंतला- गाड़ी मे बैठो, बताती हूं

मैं गाड़ी मे बैठ गया शकुंतला ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. कुछ ही देर मे हम गांव से बाहर उस जगह पर थे जहां वो विक्रम से मिलती थी

"बताओ क्या हुआ " मैंने पूछा

शकुंतला - मैंने बहुत सोचा, मुझे तुम्हारा प्रस्ताव मंजूर है, मैं तुम्हारे साथ सोने को तैयार हूं.

शकुंतला की बात का मुझे यकीन सा नहीं हुआ,
उसका अहंकार अचानक से कैसे कम हो गया. ऐसे कैसे वो मुझ पर फिदा हो गई. दिमाग मे बहुत से विचार छा गए

मैं - ठीक है, बदले मे क्या चाहती हो

शकुंतला - यही बात मुझे बड़ी पसंद है तुम्हारी, सीधा मुद्दे पर आते हो. मैं तुम्हारे साथ सोने को तैयार हूं, जब जहां जब जब तुम बुलावोगे, मैं आ जाऊँगी. बदले मे तुम उस सर्प से कहकर मेरे पति का जहर उतरवाने को कहोगे

ये बड़ी अजीब बात थी और मेरी औकात से बाहर भी

"भला मैं कैसे कर सकता हूं ये, वो सर्प कभी मुझे मिलता ही नहीं और अगर मिला भी तो मैं कैसे समझा पाउंगा उसे. " मैंने शकुंतला से झूठ कहा

शकुंतला - मेरा पति तिल तिल मर रहा है छोटे चौधरी. मैं बड़ी आस लेकर आयी हूं. मुझे ना मत कहो.

मैं - तुम्हारी परेशानी समझता हूं सेठानी, और मेरे से ज्यादा तो तुम जानती हो सांप के बारे मे, यहां तक कि मुझे भी तुमने ही बताया था.

शकुंतला - मैं जानती हूं कि लालाजी और तुम्हारे सम्बंध कभी ठीक नहीं रहे पर मैं तुमसे उनकी जान की भीख मांगती हूं, उन्हें बचा लो

शकुंतला की आँखों मे आंसू भर आए. और मैं चाह कर भी उसे दिलासा नहीं पा रहा था. एक पत्नी जब पति को बचाने के लिए अपनी इज़्ज़त किसी दूसरे को सौंपने का निर्णय करती है तो ये बताता है कि वो उसे कितना चाहती है. दूसरी बात ये थी कि बेशक मैं उसकी लेना चाहता था पर पिछले कुछ दिनों से मेरी खुद की जिंदगी अजीब तरीके से झूल रही थी.

मैं गाड़ी से उतरा और पैदल ही खेत की तरफ चल प़डा. कल रात की घटना ऐसी थी कि मैं किसी को बताऊ तो कोई पागल ही समझे. मेरी सबसे बड़ी उत्सुकता थी कि रूपा उस सर्प को कैसे जानती थी और दोनों मे इतनी गहरी नफरत किसलिए थी.

सुल्तान बाबा उन दोनों को जानते थे. सोचते सोचते मेरे सर मे दर्द होने लगा. बेशक मुझे भूख लगी थी, फिर भी घर जाने की बजाय मैंने रज़ाई ओढ़ ली और सोने की कोशिश करने लगा.

पर ज्यादा देर सो नहीं पाया. कोई आ गया था. झोपड़ी मे. ये ताऊ की लड़की रितु थी.

"तुम यहाँ कैसे " मैंने पूछा

रितु - भाई आज मेरी शादी है मैं तुमको बुलाने आयी हूं.

मैं - तुम्हें आने की जरूरत नहीं थी, मैं बस आ ही रहा था

रितु - मुझे आना ही था भाई, क्योंकि तुम नहीं आते, और नहीं आने की वज़ह भी है तुम्हारे पास. पर आज का दिन मेरे लिए खास है, मैं अपने जीवन की नयी शुरुआत कर रही हूं और मैं चाहती हूं कि मेरा भाई मुझे अपने हाथों से विदा करे. घर वालो ने कभी वो हक नहीं दिया जिसके तुम हकदार थे. पर मैं हाथ जोड़कर विनती करती हूं कि मेरे लिए घर चलो. ये बहन अपने भाई से कुछ घंटे मांगती है.

रितु की आँखों से आंसू फूटने लगे., जो मेरे दिल को चीर गए. मैंने बस उसे अपने सीने से लगा लिया.

"बहने कभी विनती नहीं करती, बहनो का हक होता है " मैंने कहा.

मैं रितु के साथ घर आया. जल्दी से नहा धोकर. मैं शादी के कामों मे लग गया. दिल को इस बात की खुशी थी कि किसी ने तो अपना समझा. शाम होते होते अलग ही महफिल सज गई थी. मेरी नजर बार बार सरोज पर जा रही थी जो खुद किसी दुल्हन से कम नहीं लग रही थी. सुर्ख लाल साड़ी मे क्या गजब लग रही थी वो. हाथों मे दर्जन भर चूडिय़ां. कुछ ज्यादा ही कसा हुआ ब्लाउज जो उसके उभारो को ठीक से साँस लेने की इजाजत भी नहीं दे रहा था


मैं सरोज के पास से गुजरा और उसके नितंबों को सहलाता गया. उसने बड़ी प्यासी अदा से देखा मुझे. फिर वो मेरे पास आयी

सरोज - क्या इरादा है

मैं - तुम्हें पाने का

सरोज - मौके होते है तब तो भागते फिरते हो. आज जब चारो तरफ लोग है जब मस्ती सूझ रही है

मैं - पटाखा लग रही हो

सरोज - सुलगा दो फिर

मैं - करो कुछ फिर

सरोज - अभी तो मुश्किल है, फेरों के बाद देखती हूँ

मैं भी जानता था कि अभी थोड़ा मुश्किल है. सो दिल को तसल्ली दी और शादी एंजॉय करने लगा. रात बड़ी तेजी से भाग रही थी. बारात के खाने से लेकर, रितु के फेरे, ताऊ ने मुझे गठबंधन करने को कहा. ये एक ऐसी घड़ी थी ना चाहते हुए भी मेरा दिल भर आया तारो की छांव मे रितु को विदाई होने तक. मैं बुरी तरह से थक गया था.

मैंने सोचा कि थोड़ा आराम कर लू. दरअसल मेरी इच्छा तो थी कि सरोज को पेल दु. मैंने उसे कहा तो उसने कहा तुम चलो मैं थोड़ी देर मे आती हूं. मैं ताऊ के घर से निकल कर अपने घर की तरफ चल दिया.

हवा मे खामोशी थी, जनरेटर की आवाज दूर तक सुनाई दे रही थी. मैं गली के मोड़ तक पहुंचा ही था कि मेरे कदम जैसे धरती से चिपक गए. मेरे सामने... मेरे सामने....
Dost bahut bahtreen update laaye ho.
ab phir koi nayi paheli aa khadi hui Musafir ke saamne.
 
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