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Shayari गुफ्तगू

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लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है।
रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है।।

जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने,
तू ने दिल इतने सताए हैं कि जी जानता है।।

तुम नहीं जानते अब तक ये तुम्हारे अंदाज़,
वो मिरे दिल में समाए हैं कि जी जानता है।।

इन्हीं क़दमों ने तुम्हारे इन्हीं क़दमों की क़सम,
ख़ाक में इतने मिलाए हैं कि जी जानता है।।

दोस्ती में तिरी दर-पर्दा हमारे दुश्मन,
इस क़दर अपने पराए हैं कि जी जानता है।।


मुझे तो "इंतज़ार-ए-इश्क़" में ही लुत्फ़ आता है,
कभी वो पहलू में मिलता है तो कभी दूर जाता है।
 
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लहजा़-ए-यार में है "ज़हर" बिच्छू की तरह,
वो मुझे आप तो कहती है मगर तू की तरह।
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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लहजा़-ए-यार में है "ज़हर" बिच्छू की तरह,
वो मुझे आप तो कहती है मगर तू की तरह।
Bahut khoob,,,,, :claps:
 
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हवस ने पक्के मकान, बना लिये हैं जि़स्मों में,
मुहब्बत किराये की झोपड़ी में, बीमार पड़ी है आज भी।
 
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ज़ाया न करो अपने अल्फाज़ किसी के लिए,
खामोश रह कर देखो तुम्हें समझता कौन है।
 
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बुरा तो हूँ ही, चलो बदनाम कर दो अब,
नशा इश्क़ का उतरेगा, इक जा़म औऱ भर दो अब।
 
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Mr. Perfect

"Perfect Man"
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Fantastic bhai______

ज़ाया न करो अपने अल्फाज़ किसी के लिए,
खामोश रह कर देखो तुम्हें समझता कौन है।
 
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तवज्जो़ इतनी दी कि तकल्लुफ मुझे हो गई,
और तुम कहती हो "किया ही क्या है तुमने"!!
 
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Reactions: Aakash.
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थोड़ा सा और "बिखर" जाऊं
मैंने यही "ठानी" है,

ऐ "ज़िंदगी" थोड़ा "रूक"
मैंने अभी "हार" कहाँ मानी है।
 
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