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Adultery गोकुलधाम सोसायटी की औरतें जेल में

Premkumar65

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Update 2

बबिता की जाँच के बाद अगली बारी अंजली की थी। हाथो में हथकड़ी और पीले रंग की सलवार पहने अंजली जब पहले नंबर की टेबल के सामने खड़ी हुई तो काँस्टेबल ने सख्त लहजे में उससे पूछा - “नाम?”

‘अंजली मेहता’ - उसने जवाब दिया।

“पति का नाम?”

‘जी...तारक मेहता।’

“उमर कितनी हैं?”

‘छत्तीस साल।’

कुछ और जानकारियाँ पूछने के बाद उस काँस्टेबल ने रजिस्टर पर उसके साइन करवाये और उसे अगली टेबल पर जाने को कहा। प्रक्रिया के तहत अगली टेबल पर उसके गहने उतरवाए गए और सारा सामान जमा करवाया गया और फिर उसकी ऊँचाई व वजन की जाँच कर उसे तलाशी के लिए आगे भेज दिया गया।​

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बबिता की तरह ही काँस्टेबल ने उसे उसके कपड़े उतारने को कहा। वह बबिता की जाँच अपनी आँखों के सामने देख चुकी थी इसलिए उसने किसी तरह की कोई आनाकानी नही की और काँस्टेबल के कहते ही अपने कपड़े उतारने लगी।

उसने सबसे पहले अपना दुपट्टा सीने से हटाया और उसे नीचे जमीन पर रख दिया। फिर अपनी सलवार उतार दी और पजामे का नाड़ा खोलकर उसे भी नीचे सरका दिया। अंदर उसने काले रंग की ब्रा-पैंटी पहन रखी थी और उसमें भी वह कमाल की लग रही थी। फिर एक-एक करके उसने अपनी ब्रा व पैंटी भी उतार दी और पूर्ण नग्न अवस्था मे काँस्टेबल के सामने खड़ी हो गई।

काँस्टेबल ने उसके साथ भी वही प्रक्रिया दोहराई जो उसने बबिता के साथ किया था। उसके बालों से लेकर शरीर के सभी अंगों की जाँच की गई और फिर काँस्टेबल ने उसकी योनि और गाँड़ के छेद में ऊँगली डालकर यह सुनिश्चित किया कि उसने अपने पास कुछ छुपाया तो नही हैं। जब वह इस बात से पूरी तरह से आश्वस्त हो गई तब उसने अंजली को छोड़ा और फिर उसका मगशॉट (जेल के रिकॉर्ड के लिए कैदी की तस्वीर) लिया गया। अंजली का कैदी नंबर 2393 था। मगशॉट लेने के बाद उसे जेल का सामान दिया गया और उसे बबिता के साथ ही एक तरफ खड़ा करवा दिया गया।

बबिता और अंजली की जाँच प्रक्रिया सभी के सामने ही की जा रही थी। वहाँ ना तो कोई पर्दा था और ना ही नग्न होने के दौरान अलग कमरे की व्यवस्था थी। उन्हें कमरे में मौजूद महिलाओ के सामने ही नंगा होना पड़ रहा था जो उनके जैसी सभ्य परिवारों की महिलाओं के लिए बेहद ही अपमानजनक व शर्मिंदगी भरी बात थी। बबिता और अंजली ने अपने पतियों के अलावा किसी के भी सामने कभी अपने पूरे कपड़े नही उतारे थे। जेल में आने के बाद पहली बार था जब उन्हें किसी ने पूर्ण नग्न अवस्था मे देखा था। हालाँकि वहाँ पर केवल औरते ही औरते मौजूद थी लेकिन उन महिला पुलिसकर्मियों द्वारा उनके साथ किया जा रहा व्यवहार किसी उत्पीड़न से कम नही था। खैर, वे लोग अब आजाद नही थी और कैद में होने का अर्थ था कि वे जेल स्टॉफ की बातों व जेल के नियमो को मानने के लिए बाध्य थी।

बबिता और अंजली की जाँच के बाद क्रमशः दया, रोशन, कोमल, माधवी और सोनू की भी जाँच की गई। उन सभी के कपड़े उतरवाए गए और पूर्ण नग्न अवस्था मे उनकी जाँच की गई। उन पाँचो के लिए भी यह बिल्कुल आसान नही था। दया और माधवी ने उस वक़्त साड़ी पहनी हुई थी जबकि रोशन ने वन पीस वेस्टर्न ड्रेस, कोमल ने ओवरसाइज कुर्ती पजामा तथा सोनू ने जीन्स टॉप पहन रखा था। पाँचो को बारी-बारी से नंगा करवाया गया और उनकी जाँच की गई जिसके बाद उनका मगशॉट लिया गया। उनके घरवाले उनके कपड़ो का बैग जेल में जमा करा चुके थे जिसकी अच्छी तरह से जाँच करने के बाद उनके बैग उन्हें सौंप दिए गए। जाँच की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें जेल का सामान दिया गया और सभी को एक कतार में अंदर वार्ड की तरफ ले जाया गया।​
Nice work by police.
 

Premkumar65

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Update 7

वे सातो अब तक उन्ही कपड़ो में थी जिनमे उन्हें जेल लाया गया था। गिरफ्तारी के बाद से ना तो उन्होंने नहाया था और ना ही कपड़े बदले थे। शाम को जब उनकी सेल में ताला लगा दिया गया तब उन्होंने अपने कपड़े बदले और नाइट ड्रेस पहनी।

सेल में किसी तरह की कोई गोपनीयता नही थी। कैदियों को अन्य कैदियों के सामने ही अपने कपड़े बदलने पड़ते थे। जो औरते काफी समय से जेल में कैद थी, उन्हें इस चीज की आदत हो चुकी थी लेकिन उन सातो के लिए यह बहुत ही असहजतापूर्ण था। उस छोटी सी सेल में इतनी भी जगह नही थी कि वे लोग आसानी से अपने कपड़े बदल पाये। उन्होंने अपने कपड़े तो बदले लेकिन उनके लिए यह बेहद मुश्किल था।

उनके कपड़े बदलने के दौरान सेल की सीनियर औरते उन पर गंदी-गंदी फब्तियाँ कसने लगी और उन्हें रंडी, छिनाल, कुतिया और ना जाने क्या-क्या कहने लगी। एक ही सेल में रहते हुए उनकी बातों को नजरअंदाज करना आसान नही था लेकिन फिर भी उन सातो ने काफी देर तक उनकी बातों पर ध्यान नही दिया। उनके कपड़े बदलते ही हेड कैदी रेणुका अपनी जगह से उठी और उनके पास आकर बोली - “चलो महारानियो, खड़े हो जाओ और कपड़े उतारो अपने-अपने..”

वे लोग थोड़ी देर के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध रह गई और एक-दूसरे की तरफ देखती रही। फिर कोमल ने एकाएक रेणुका से कहा - “कपड़े क्यूँ उतारे हम?”

‘साली मादरचोद। मेरे से ज़बान लड़ाएगी।’ - रेणुका गुस्से से लाल हो चुकी थी और उसे कोमल का जोर से बोलना इतना बुरा लगा कि उसने कोमल को अपनी तरफ खींचकर उसकी पीठ पर दो बार कोहनी से वार किया। कोमल दर्द के मारे चीखने लगी। बबीता और बाकी औरते अपनी आँखों के सामने यह सब देख रही थी और कोमल को पिटता देखकर वे लोग उसे बचाने के लिए दौड़ पड़ी। उन्होंने रेणुका का हाथ पकड़ लिया और उसके साथ ही धक्का-मुक्की करने लगी। धीरे-धीरे उनका झगड़ा बढ़ने लगा जिसे देखकर अन्य सेलो की कैदी औरते शोर मचाने लगी। कैदियों का शोर सुनकर बाहर तैनात काँस्टेबल्स और वार्डन दौड़ी-दौड़ी वार्ड में आई और उनकी सेल का ताला खोलकर उनका झगड़ा शांत करवाया।

“ऐ, क्या हो रहा है ये?” - वार्डन शोभना ने पूछा।

‘मैडम, मैंने इनको कपड़े उतारने बोली तो ये साली मारपीट पे आ गई।’ - रेणुका ने बताया।

रेणुका की बात सुनकर शोभना उनके करीब आई और उन सबके चेहरों पर अपने डंडे को घुमाते हुए बड़े प्यार से बोली - “जेल में आये हुए एक दिन भी नही हुआ और मारपीट करने लगी हो।”

‘मैडम, हमारी कोई गलती नही हैं। हम जब से आये हैं, तब से ये लोग हमें परेशान कर रहे हैं।’ - बबिता ने रेणुका की शिकायत करते हुए कहा।

वार्डन - “ये तो गलत बात हैं ना रेणुका। देख। बेचारी शरीफ घरो की औरते हैं। अब तू ऐसे सीधे कपड़े उतारने बोलेगी तो कैसे उतारेगी। बता।”

रेणुका - ‘जी मैडम।’

वार्डन - “लेकिन मेरी बात को मना नही करेगी। देखना है तुझे?”

इतना कहकर उसने उन सातो की ओर देखा और बोली - ‘उतारो कपड़े..’

“जी?” - बबिता आश्चर्य भरी नजरों से उसकी ओर देखते हुए बोली।

बबिता ने इतना कहा ही था कि वार्डन ने अपने पास पड़ा डंडा उठाया और उसकी जांघो पर दे मारा। उसने बबिता और बाकी सभी को दो-तीन बार तेज डंडे मारे और फिर बबिता की गर्दन पकड़ते हुए बोली -

‘साली हरामजादियो, मैडम ने समझाया था ना कि इधर सीनियरों की किसी भी बात को मना नही करते। जेल को अपने बाप का घर समझ रखा हैं क्या साली छिनालो।’

उसने गुस्से में आगे कहा - “चलो, ज्यादा नाटक नही। दो मिनट का टाइम दे रही हूँ। दो मिनट में तूम लोग नंगी नही हुई तो माँ कसम, आज तुम्हारी गाँड़ मारके रख दूँगी।”

जाहिर सी बात थी। उसकी चेतावनी से उनकी घबराहट बढ़ने लगी थी और वे लोग अपने कपड़े उतारने को मजबूर हो गई। उन सातो ने एक साथ अपने कपड़े उतारने शुरू किये और दया ने अपनी साड़ी व बाकी सभी ने अपनी नाइट ड्रेस उतार दी। वे लोग अब ब्रा व पैंटी में वार्डन के सामने खड़ी थी।
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वार्डन शोभना उनके करीब आई और बबिता को पैंटी से पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। उसके होंठ बबिता के होंठो के ठीक सामने थे और दोनों की छाती एक-दूसरे की छाती से टकराने को आतुर थी। बबिता कुछ समझ पाती, उससे पहले ही शोभना ने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और एकाएक उसके होठो पर किस करने लगी। यह दृश्य देखकर बाकी सभी ने शर्म के मारे अपना सर नीचे कर लिया और चेहरे को दूसरी तरफ घुमा लिया। हालाँकि बबिता मजबूर थी और वह शोभना को ऐसा करने से इंकार नही कर सकती थी।

शोभना ने पुलिस की साड़ी पहन रखी थी जबकि बबिता ब्रा-पैंटी में थी। किस करते हुए ही उसने अपनी साड़ी का पल्लू नीचे सरका दिया और बबिता के बूब्स पर अपने बूब्स को रगड़ने लगी। शोभना के स्तन भी बबिता की तरह ही बड़े-बड़े व सुडौल थे। धीरे-धीरे वह बबिता के बदन को अपने हाथों से सहलाने लगी और उसकी ब्रा व पैंटी उतार दी। बबिता अब पूरी तरह से नग्न हो चुकी थी। शोभना ने अपना एक हाथ उसकी योनि पर रखा और दूसरे हाथ से उसके बूब्स को दबाने लगी।

उस सेल में बबिता और शोभना के अलावा उस वक़्त 11 कैदी और कुछ महिला काँस्टेबल्स भी मौजूद थी जो अपनी आँखों के सामने सब कुछ देख रही थी। उन लोगो के लिए यह सब बिल्कुल सामान्य बात थी लेकिन बबिता सहित गोकुलधाम सोसायटी की सातो महिलाओं के लिए यह बहुत ही गंदा काम था। वे लोग सभ्य परिवारो व सोसायटी से थी लेकिन जेल की दुनिया बाहरी दुनिया से पूरी तरह अलग थी।

शोभना ने बबिता की वजाइना को अपनी ऊँगली से सहलाना शुरू कर दिया जिस वजह से उसके अंदर भी अब उत्तेजना पैदा होने लगी थी। बबिता की आंखे चढ़ने लगी और वह सेक्स के नशे में डूबने लगी। उस वक़्त उसे किसी मर्द की सख्त जरूरत थी जो अपने लिंग के प्रकोप से उसे यौन सुख का आनंद दे सके। मगर वह एक महिला जेल में कैद थी जहाँ दूर-दूर तक कोई मर्द नही था। उसके आसपास केवल और केवल महिलाएँ ही मौजूद थी।

शोभना उसे दीवार के पास से खींचकर सलाखों के पास ले आई और उसे आगे की ओर झुकाकर उसके दोनों हाथों को हथकड़ी से सलाखों में बाँध दिया। बबिता किसी कुतिया की तरह आगे झुककर बँधी हुई थी और फिर शोभना ने अंजली व गोकुलधाम सोसायटी की बाकी औरते को एक-एक कर उसकी चूत चाटने को कहा।

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शोभना की बात सुनकर वे लोग दंग रह गई। आखिर भला वार्डन उनके साथ ऐसा कैसे कर सकती थी। छि! कितना गंदा है यह। एक औरत हमेशा एक आदमी की ओर आकर्षित होती हैं और सेक्स के दौरान वह आदमी का लिंग और गाँड़ चाटने से भी पीछे नही रहती। मगर यहाँ तो एक औरत द्वारा दूसरी औरत की चूत चाटने की बात हो रही थी। उन लोगो को यह सब बहुत ही गंदा लग रहा था और उन्हें घिन्न आने लगी थी। वे लोग कोई लेस्बियन तो थी नही जो सब कुछ अपनी इच्छा से कर लेती।

फिर शुरू हुआ उन लोगो से जबरन बबिता की चूत चटवाने का सिलसिला। अंजली आगे आई और बबिता की फैली हुई टाँगों के नीचे बैठकर उसकी वजाइना पर अपनी जीभ टिका दी। बबिता की चिकनी गुलाबी चूत किसी मर्द के लिए स्वर्ग का खजाना होती लेकिन अंजली के लिए वह कोई खास चीज नही थी। आखिर अंजली भी एक औरत ही थी और उसके पास भी वह सब कुछ था जो बबिता के पास था। अंजली के बाद दया, रोशन, कोमल और माधवी ने भी बारी-बारी से बबिता की चूत चाटी और फिर सबसे आखिरी में बारी आई सोनू की।

सोनू के लिए यह आसान नही था। उसने अपनी जिंदगी में पहले कभी भी सेक्स नही किया था और ना ही उसका कोई बॉयफ्रेंड था। बबिता को पूरी तरह नंगी देखकर वैसे ही उसे गंदा महसूस हो रहा था और जब उसे उसकी चूत चाटने के लिए आगे बुलाया गया तो उसे घिन्न आने लगी थी। हालाँकि मजबूरन उसे बबिता की चूत चाटनी पड़ी लेकिन बीच मे उसे कई बार उल्टी जैसे महसूस हुआ।

वार्डन शोभना ने आगे वह किया जिसकी उन लोगो ने कल्पना तक नही की थी। उसने अपना डंडा उठाया और बबिता के पीछे के छेद में घुसा दिया। बबिता दर्द के मारे चीख उठी लेकिन शोभना उसके दर्द की परवाह किये बिना डंडे को लगातार अंदर बाहर करने लगी। बबिता का दर्द अब दर्द के साथ आनंद में बदलने लगा और वह “आँह आँह” की तेज सिसकियाँ लेने लगी। कुछ देर बाद शोभना ने उसकी हथकड़ी खोल दी और उसे बाकी औरतो के साथ एक तरफ खड़ा करवा दिया।

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शोभना ने अंजली, दया, रोशन, कोमल, माधवी और सोनू की भी ब्रा व पैंटी उतरवा दी और उन्हें सेल की उन पाँचो सीनियर कैदियों के हवाले कर वहाँ से चली गई। सुधा को छोड़कर चारो सीनियरों ने उनके साथ काफी देर तक लेस्बियन सेक्स किया और उनकी जमकर रैगिंग की। उन्हें नग्न अवस्था मे ही मुर्गा बनाया गया, एक पैर पर खड़े करवाया गया, उठक-बैठक करवाई गई, दीवार और जमीन पर नाक रगड़वाई गई और कई तरह से प्रताड़ित किया गया। यहाँ तक कि उन्हें एक-दुसरे के स्तनों से दूध पीने के लिए भी मजबूर किया गया।

सबसे ज्यादा शर्मिंदगी माधवी और सोनू को महसूस हो रही थी। एक माँ का अपनी बेटी को और एक बेटी का अपनी माँ को इस तरह प्रताड़ित होते देखना वाकई में बेहद शर्मिंदगी भरा था। एक माँ कभी नही चाहती कि उसकी बेटी के साथ इस तरह का बर्ताव हो लेकिन माधवी चाहकर भी सोनू के लिए कुछ नही कर सकती थी। जेल में आने के बाद उन दोनों में कोई फर्क नही रह गया था। जेल स्टॉफ को इस बात से कोई मतलब नही था कि उन दोनों का आपस मे क्या रिश्ता हैं। उनके लिए वे दोनों केवल कैदी थी और वे लोग उनके साथ अन्य कैदियों की तरह ही बर्ताव कर रही थी।

काफी देर तक रैगिंग किये जाने के बाद पाँचो सीनियर कैदियों ने उन्हें अपनी-अपनी सेवा में लगा दिया और उनसे अपने हाथ-पैर दबवाने लगी। बबिता और रोशन को छोड़कर बाकी सभी को सीनियरों की सेवा करनी पड़ रही थी जबकि इस दौरान उन दोनों को जमकर नचवाया गया। वे सातो अब भी पूरी तरह से नंगी थी। सीनियर कैदी उन्हें अपनी स्लेव की तरह उपयोग कर रही थी और उनके शरीर के साथ खेलती जा रही थी। हाथ-पैर दबाते वक़्त वे लोग उनके स्तनों और कूल्हों को दबाने लगी, उनकी योनि के साथ छेड़छाड़ करने लगी और उन्हें अनेक तरह से परेशान करने लगी। इतना सब कुछ होने के बाद भी उन सातो को रोना मना था। यदि उनकी आँखों से आँसू निकलते तो वे लोग उन्हें मारने लगती। जेल की पहली रात ही उनके लिए किसी भयानक सपने की तरह थी जिस पर यकीन करना मुश्किल था कि जो हो रहा था, वह वास्तविक था।

देर रात तक उनके साथ रैगिंग, मारपीट और सेक्स किया गया और आखिरकार रात के साढ़े ग्यारह बजे सीनियरों ने उन्हें परेशान करना बंद किया। उन सातो ने अपने-अपने कपड़े पहने और एक-दूसरे के गले मिलकर रोने लगी। पहली रात ही उन्हें इस बात का एहसास हो चुका था कि उनके लिए जेल में रहना कतई भी आसान नही है और जेल में उन्हें कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने सपने में भी नही सोचा था कि जेल में कैदियों के साथ इस तरह का बर्ताव किया जाता हैं और जेल की दुनिया बाहरी दुनिया से इतनी अलग होती हैं। जो चीजे बाहर की दुनिया मे अपराध थी, वही चीजे जेल में बिल्कुल सामान्य थी। हालाँकि अभी उनका सामना जेल की अन्य कैदियों से बिल्कुल नही हुआ था जिनमे एक से बढ़कर एक अपराधी महिलाएँ शामिल थी।​
nice story.
 

Premkumar65

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Update 10

सुबह के छः बजकर पचास मिनट पर जेल में एक और सायरन बजा। यह सायरन व्यायाम की समाप्ति और गिनती के लिए जमा होने का इशारा था। सायरन के बजते ही सभी कैदी वापस अपने सर्कल में चली आई और हाथ-मुँह धोकर प्रार्थना व गिनती के लिए सर्कल कंपाउंड के अंदर ही बने मैदान में जमा होने लगी। वे सातो भी अपने वार्ड की लाइन में जाकर खड़ी हो गई। प्रार्थना की शुरुआत ‘इतनी शक्ति हमे देना दाता’ गीत के साथ हुई जिसके बाद सभी कैदियों की गिनती की गई।

गिनती होने के बाद सुबह 7:15 बजे कैदियों को चाय दी गई और 7:30 बजे से सभी को जेल के रोजाना के कामो पर लगा दिया गया। इन कामो में झाड़ू लगाना, पानी भरना, बाथरूम व शौचालयो की साफ-सफाई, नालियों की सफाई तथा खाना बनाने जैसे काम शामिल थे। बबिता और उन सभी को अलग-अलग काम दिए गए। उन लोगो से झाड़ू लगवाई गई, पानी भरवाया गया तथा सभी शौचालयो व बाथरूम की सफाई करवाई गई। लगभग डेढ़ घंटे तक काम करने के बाद सुबह 9 बजे नहाने का समय हुआ। सायरन के बजते ही सभी कैदी औरते अपनी-अपनी सेलो में जाने लगी और अपना टॉवेल, बाल्टी व मग लेकर बाहर आ गई। बबिता सहित वे सातो भी अपनी सेल में गई और टॉवेल, बाल्टी व मग लेकर नहाने के लिए चली आई।

जेल में कैदियों के नहाने के लिए एक बड़ा सा बाथ एरिया था जहाँ सैकड़ो औरते एक साथ नहा सकती थी। यह एरिया पूरी तरह से ओपन था और कैदी औरतो को खुले में ही नहाना पड़ता था। नहाने के लिए बीच मे एक बड़ा सा पानी का टाका (पानी जमा करने के लिए सीमेंट से बनाया गया टैंक) बना हुआ था जहाँ से कैदियों को खुद पानी निकालकर नहाना पड़ता था। इसके अतिरिक्त जेल में एक और बड़ा बाथ एरिया था जिसका इस्तेमाल आमतौर पर बरसात के मौसम में किया जाता था। यह एरिया ओपन नही था और किसी बड़े से बाथरूम की तरह था। इसमे ऊपर की ओर शॉवर लगे हुए थे और इसमें भी बहुत सारी औरते एक साथ नहा सकती थी।

उन सातो के लिए वहाँ का माहौल बहुत ही अजीब व अलग था। कैदी औरते नहाने के लिए एक ही जगह पर इकट्ठा हो रही थी। उनमें से किसी ने कपड़े पहन रखे थे तो कोई पूरी तरह नग्न थी। उन सैकड़ों औरतो के बीच मे नहाने में वे लोग बहुत ही असहज महसूस कर रही थी लेकिन वे मजबूर थी। उन्होंने अपने कपड़े उतारे और नहाने के लिए बैठ गई। उन लोगो ने देखा कि कई कैदी औरते तो पूरी तरह से नग्न अवस्था मे ही नहा रही थी यानि उन्होंने अपनी पैंटी तक उतार दी थी। नहाते वक्त कई औरते आपस मे ऊपरी सेक्स भी कर रही थी तो कुछ सीनियर कैदी अपनी जूनियरों से अपने शरीर का मैल साफ करवा रही थी।​

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उन लोगो को यह सब बहुत ही बेकार लग रहा था और उन्हें बहुत शर्म आ रही थी। हालाँकि उनके पास कोई और चारा नही था और मजबूरन उन्होंने नहाना शुरू किया। पानी बेहद ठंडा था। उन्होंने जैसे ही अपने ऊपर पानी डाला, वे लोग ठंड के मारे काँप उठी और उनके शरीर में सिहरन उठने लगी।

“इट्टा ठंडा पानी…” - रोशन तुरंत ही बोल पड़ी।

‘रोशन भाभी, यहाँ तो ठंडा पानी ही मिलेगा ना।’ - अंजली ने कहा।

“हाँ पर ये टो कुछ ज्यादा ही ठंडा हैं अंजली भाभी।”

‘ये जेल हैं महारानियो। यहाँ बाहर की तरह कुछ नही मिलता।’ - उनके बगल में नहा रही एक कैदी औरत ने कहा।

उसकी बात सुनकर वे लोग चुप हो गई और नहाना शुरू किया। उनके बदन पानी से पूरी तरह भीग चुके थे। वे लोग ब्रा और पैंटी में भी काफी खूबसूरत लग रही थी। वे सातो एक हाथ से अपने ऊपर पानी डालती जाती और दूसरे हाथ से बदन पर साबुन लगाती जाती। उनके चिकने और मुलायम बदन पर साबुन किसी मक्खन की तरह फिसल रही थी। उन लोगो ने अपने गले से लेकर पैर तक पूरे शरीर पर साबुन मल दी और अपने हाथों से रगड़ने लगी। वैसे तो उन्हें अपनी वजाइना और कूल्हों पर भी साबुन लगानी थी लेकिन सैकड़ो औरतो के बीच मे उन्हें ऐसा करने में बहुत ही संकोच हो रहा था। उन्होंने देखा कि सारी औरते और लड़कियाँ बिना किसी झिझक के अपनी वजाइना और कूल्हों पर साबुन लगा रही थी और जिन कैदियों ने पैंटी पहन रखी थी, वे लोग भी पैंटी में हाथ डालकर साबुन मल रही थी। हालाँकि उन्होंने ऐसा नही किया।

उनके पास चेहरा धोने के लिए फेशवॉश नही था और ना ही बालों के लिए शैम्पू था। मजबूरन उन्हें अपने चेहरे पर भी साबुन लगानी पड़ी। नहाने के बाद उन्होंने अपने बदन को टॉवेल से पोछा और उसे कमर पर लपेटकर अपनी ब्रा व पैंटी उतारी। उन्होंने उतारी हुई ब्रा-पैंटी धोई और फिर वापस अपनी सेल में आ गई।

सेल में आने के बाद उन्होंने अपने-अपने कपड़े पहने और कंघी करने लगी। जेल में कैदियों को मेकअप, क्रीम, नेल पेंट या इस तरह की किसी भी चीज की अनुमति नही थी। प्रत्येक कैदी को साधारण फेश पाउडर, कंघी और नारियल का तेल दिया गया था। हालाँकि उन सातो में से किसी ने भी ना तो चेहरे पर पाउडर लगाया और ना ही बालों पर तेल लगाया। वे लोग अपने चेहरे और बालों को खराब नही करना चाहती थी। नहाने के बाद कई औरते अपने कपड़े धोने में लग गई लेकिन बबिता और बाकी सभी अपनी सेल में ही बैठी रही। सुबह 11 बजे खाने का सायरन बजने के बाद वे लोग सेल से बाहर निकली और खाना खाया जिसके बाद दोपहर 12 बजे दिनचर्या के सारे काम खत्म हुए।​
Wowww mast bath.
 

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Update 11

दिनचर्या के कार्य समाप्त होने के बाद अब उनके पास करने को कोई काम नही था। सज़ायाफ्ता कैदियों को तो काम पर लगा दिया गया था लेकिन चूँकि वे लोग अंडरट्रायल कैदी थी इसलिए उन्हें किसी तरह का कोई काम नही दिया गया था। उनकी सेल की अन्य पाँचो कैदी भी काम पर जा चुकी थी और सेल में उनके अलावा कोई कैदी मौजूद नही थी। खाना खाने के बाद वे लोग सेल में ही आकर बैठ गई और आपस मे बाते करने लगी।

“आई, मुझे बहुत डर लग रहा है।” - सोनू ने माधवी से कहा।

‘तू टेंशन मत ले बेटा। कुछ नही होगा। हम सब है ना तेरे साथ।’ - माधवी ने उसे ढाँढस बंधाते हुए कहा।

तभी दया बीच मे बोल पड़ी - “हाँ सोनू बेटा, टेंशन मत लो। ये मुसीबत भी टल जाएगी।”

बबिता - ‘मैं तो यहाँ से बाहर निकलने के बाद सबसे पहले इस वार्डन की कंप्लेंट करूँगी। मुझे तो इतना गुस्सा आ रहा है ना इस पर…’

अंजली - “हाँ। सही कहा बबिता जी। आखिर ये लोग औरतो के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं?”

रोशन - ‘क्यूँ ना हम जेलर से कंप्लेंट करे।’

माधवी - “कोई फायदा नही है रोशन भाभी। आपने देखा नही था कैसे सोनू के बारे में घटिया बाते बोल रही थी। उस वक़्त तो मुझे ऐसा लग रहा था कि उसका मुँह तोड़ दूँ।”

अंजली - ‘गुस्सा तो हम सबको आया था माधवी भाभी। लेकिन जब तक हम जेल में है, तब तक हम कुछ नही कर सकते।’

कोमल - “बस ये 14 दिन जल्दी से निकल जाये। मुझे पूरा यकीन है कि हम बेकसूर साबित होंगे।”

वे लोग भले ही एक-दूसरे को दिलासा दे रही थी लेकिन वास्तविकता यही थी कि जेल से बाहर निकलना उनके लिए इतना भी आसान नही था। उन पर हत्या जैसा संगीन आरोप था और उनके लिए अपने भावी जीवन की कल्पना करना भी बेहद कठिन था।

वे सातो अपनी सेल में बैठी ही हुई थी कि तभी अचानक कुछ लेडी काँस्टेबल्स वार्ड में आई और उन्हें अपनी सेल से बाहर निकलने को कहा। उनके कहते ही वे सातो सेल से बाहर निकली और फिर तुरंत ही उन सभी के दोनो हाथों में हथकड़ी पहना दी गई।

“आप लोग कहाँ ले जा रहे है हमे?” - बबिता ने पूछा।

‘मुँह बंद रख और चुपचाप चल।’ - काँस्टेबल ने उसे डाँटते हुए कहा।

वे लोग उन सातो को मेडिकल के लिए जेल के अस्पताल में लेकर गई और जब वे लोग वहाँ पहुँचे तो उन्होंने देखा कि जेलर भी वही पर मौजूद थी। अस्पताल में जाने के बाद उनकी हथकड़ी खोल दी गई और सारे कपड़े उतरवाकर पूर्ण नग्न अवस्था मे उन्हें जेलर व जेल की महिला डॉक्टर डॉ. मधुरिमा के सामने खड़े करवाया गया। इसके बाद उनकी मेडिकल जाँच शुरू हुई जिसमें उनका फूल बॉडी चेकअप किया गया। मेडिकल टेस्ट में उनका यूरिन टेस्ट, आँख व कान की जाँच, ब्लड शुगर टेस्ट, लिपिड प्रोफाइल, किडनी फंक्शन टेस्ट, लिवर फंक्शन टेस्ट, कैंसर टेस्ट व प्रेग्नेंसी टेस्ट आदि किये गए और सारे टेस्ट होने के बाद उन्हें दोबारा जेलर के सामने पेश किया गया।​

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“तुममे से सोनालिका कौन हैं?” - जेलर ने पूछा।

सोनू का नाम सुनकर माधवी एकदम से घबरा गई और बोल पड़ी - ‘क्या हुआ मैडम?’

“तू है सोनालिका?” - जेलर ने गुस्से में कहा।

‘नही मैडम। मेरी बेटी हैं।’ - माधवी ने सोनू की तरफ़ इशारा करते हुए जवाब दिया।

तभी सोनू बोली - “जी मैडम, मैं हूँ सोनालिका।”

जेलर ने उन सबको गुस्से भरी नजरों से देखा और डॉ. मधुरिमा से कहने लगी - ‘इन सबमे बहुत चर्बी भरी है मधु मैडम। लगता हैं मुझे ही उतारनी पड़ेगी।’

इतना कहते ही जेलर अपनी कुर्सी से उठी और उन सातो से अपने दोनों हाथो को आगे करने को कहा। वे लोग पूरी तरह नंगी खड़ी थी और जेलर के कहने पर उन्होंने अपने हाथों को आगे कर दिया।​

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“थपाक्क्क्क…”

बबिता के हाथ के पंजे पर जेलर का एक सनसनाता हुआ डंडा पड़ा। ठीक उसी तरह जिस तरह स्कूल में टीचर बच्चो को मारते हैं। वह दर्द से चीख उठी। वह कोई प्रतिक्रिया दे पाती, उससे पहले ही जेलर ने उसके दूसरे हाथ पर और जोर से मारा। इस बार उसके लिए दर्द असहनीय था लेकिन उसने डर के मारे अपनी चीखे अंदर ही दबा ली।

अगला नंबर अंजली का था। जेलर ने उसे भी उसके दोनों हाथों के पंजों पर अपनी पूरी ताकत से डंडे मारे। डंडो के पड़ते ही वह दर्द से कराहने लगी। उसके चेहरे पर उसका दर्द साफ झलक रहा था लेकिन उसकी मजबूरी थी कि वह उसे व्यक्त नही कर सकती थी। बबिता को देखकर वह पहले ही घबराई हुई थी और अपनी बारी के इंतजार में उसकी धड़कने तेजी से चलने लगी थी।

ऐसा ही हाल दया, रोशन, कोमल, माधवी और सोनू का भी था। अपने से पहले खड़ी औरतो को मार खाते देख उनका भी दिल तेजी से धड़कने लगा था। हालाँकि जेलर को इस बात की कोई परवाह नही थी और उसने उन सभी के हाथों पर पूरी ताकत से डंडे बजाये। सबसे अंत मे सोनू की बारी आई। उसके अलावा सभी ने मार तो चुपचाप सहन कर ली थी लेकिन जब सोनू की बारी आई तो उनसे देखा नही गया। आखिर उन सबके लिए तो सोनू वही छोटी बच्ची थी जिसे उन्होंने बचपन से बड़े होते हुए देखा था।​

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“मैडम, आप प्लीज उसे मत मारिये।” - माधवी ने कहा।

माधवी की आवाज सुनकर जेलर ने गुस्से से उसकी तरफ देखा और उसके करीब आकर बोली - ‘अच्छा। इसे नही मारूँ। तो इसके बदले किसे मारूँ?’

“आप हममे से किसी को भी मार लीजिये मैडम पर उसे छोड़ दीजिए। बच्ची है वो।” - अंजली ने कहा।

अंजली के इतना कहते ही उसने उसके बालों से जोर से पकड़ा और खीचते हुए बोली - ‘जरा मैं भी तो देखूँ की बाईस साल की लौंडिया कब से बच्ची हो गई?’

“आँ आँह…मैडम छोड़िये…दर्द हो रहा हैं…”

‘दर्द हो रहा है हरामजादी। साली जब मर्डर कर रही थी तब बच्ची नही थी ये? बोल।’

उसने एक हाथ से अंजली के मुँह को दबाया और दूसरे हाथ से अपने डंडे को पकड़कर उन सबकी तरफ देखते हुए बोली -

“तुम सब मेरी बात ध्यान से सुन लो। ये मेरी जेल है। यहाँ मेरी मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नही हिलता। यहाँ पर आने वाली औरते मेरे लिए सिर्फ कैदी हैं और मुझे इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि किसकी उम्र कितनी है या किसका आपस मे क्या रिश्ता हैं। जब तक तुम लोग जेल में हो, तब तक एक-दूसरे के लिए कोई सिम्पैथी दिखाई तो समझो तुम्हारी खैर नही। साली क्राइम करती हो तब फैमिली याद नही रहती और जेल में आते ही माँ-बेटी याद आने लगती हैं।”

उसने अंजली को पकड़े रखा था कि तभी उसके मोबाइल फोन पर घंटी बजी। उसने फोन उठाया तो दूसरी तरफ उसकी 16 साल की बेटी थी।

‘हेलो मम्मा..’

‘यस बेटा, बोलो..’

‘मम्मा आज आप घर कब तक आओगे?’

‘पाँच बजे तक आ जाऊँगी बेटा…’

उसने उन सातो को कपड़े पहनने का इशारा किया और फोन पर बात करते हुए ही वहाँ से बाहर चली गई। उसके जाते ही सातो ने अपने-अपने कपड़े पहने और फिर उन्हें वापस उनके वार्ड में भेज दिया गया।​
Sonu is the best.
 
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Update 12

(रैगिंग)

“अरे देखो देखो। नई कैदी लोग आ रही हैं…” वार्ड में वापस जाते ही एक सीनियर कैदी ने उन्हें देखकर कहा।

‘अबे क्या माल है रे साली सब की सब…’

“दिखने में तो सब शरीफ लग रही है साली...”

‘अबे दिखने में तो हम भी शरीफ ही लगती है पर हमसे बड़ी हरामी कोई है क्या इधर 😂😂…’

“अरे वो सब छोड़ो। ऐ संध्या। जा उन्हें लेकर आ।” - एक अन्य कैदी कमला ने उससे कहा।

‘हाँ दीदी।’

संध्या तुरंत ही उन सातो के पास गई और उन्हें अपने साथ चलने को कहा। उन लोगो का उसके साथ जाने का मन तो नही कर रहा था लेकिन जेल के नियमो व जेलर की चेतावनी की वजह से उन्हें उसके साथ जाना पड़ा। संध्या उन्हें सीधे वार्ड नंबर 19 के सामने बने चबुतरे के पास ले गई जहाँ कमला, गुलरेज व कई अन्य खतरनाक कैदी औरते उनका इंतजार कर रही थी। उन सातो को उनके सामने खड़े करवाया गया और लगभग 25 से 30 औरते उन्हें घेरकर खड़ी हो गई।​

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“क्या रे कमिनियो। क्या करके आई हो।” - कमला ने पूछा।

‘हमने कुछ नही किया है बेन।’ - दया ने जवाब दिया।

“अच्छा। कुछ नही किया तूने। तो इधर क्या अपनी माँ चुदाने आई है साली।” - उसने दया पर चिल्लाते हुए कहा।

दया आगे कुछ नही बोल पाई और चुपचाप सर झुकाकर खड़ी रही। कमला ने उन सभी को घूरती नजरो से देखा और फिर दया को अपने पास बुलाकर बोली - ‘नाम क्या है तेरा?’

‘दया जेठालाल गढ़ा’ - दया ने कहा।

‘साली तू दिखने में तो बड़ी घरेलू लगती हैं। पर तु है बड़ी हराम की जनी। कही तेरी माँ भी तो रंडियापा नही करती थी जवानी में…😀। - उसने दया का मजाक उड़ाते हुए कहा।

दया को अपनी माँ के बारे में उसकी बाते बुरी तो बहुत लगी लेकिन उसकी मजबूरी थी कि वह उसे कुछ बोल नही सकती थी। कमला ने दया के बाद अंजली से भी उसका नाम पूछा और फिर बारी-बारी से उन सभी का परिचय लिया।

“चलो, कान पकड़ो और मुर्गा बनो सब।” - कमला ने उन्हें आदेश दिया।

‘जी?’ - बबिता के मुँह से सहसा ही निकल पड़ा।

“अबे सुनाई नही दिया क्या लौड़ी? कान पकड़ो और मुर्गा बनो।”

उन सातो के पास कोई रास्ता नही था। जेल में उनका पहला दिन था और वे लोग सीनियर कैदी औरतो से घिरी हुई थी। यदि वे लोग उनकी बात नही मानती तो जाहिर था कि उन्हें खूब मार पड़ती। मजबूरन उन्हें उन सबके सामने मुर्गा बनना पड़ा। वे लोग आगे की ओर झुकी और अपने दोनों पैरों को फैलाकर उनके बीच मे से अपने हाथों को अंदर डाला और अपने कान पकड़कर उसी अवस्था मे स्थिर हो गई। उनका सर नीचे की ओर था और उनके कूल्हे जमीन से कुछ ऊँचाई पर उठे हुए थे। उन सबके लिए मुर्गा बनना आसान नही था। चूँकि माधवी और दया ने साड़ी पहनी हुई थी इसलिए उन दोनों को सबसे ज्यादा दिक्कत हुई। उन्होंने अपनी साड़ी घुटनों तक ऊपर उठाई और मुर्गा बनी।

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उन लोगो को काफी देर तक उसी अवस्था मे रखा गया। यदि वे लोग अपने कूल्हों को नीचे करती या जरा सी भी लड़खड़ाती तो सीनियर औरते उन्हें लाते मारने लगती। यहाँ तक कि उन्होंने सोनू को भी नही बख्शा और उसके साथ भी वैसा ही बर्ताव किया। वे लोग कोई छोटी बच्ची नही थी जो मजाक-मजाक में ऐसा कर लेती। सोनू को छोड़कर वे सभी 35 साल से अधिक उम्र की वयस्क औरते थी और उनके लिए यह सब बेहद अपमानजनक था।

“चलो खड़ी हो और कपड़े उतारो फटाफट।” - कमला ने फिर कहा।

वे लोग खड़ी हुई और अपने कपड़े उतारने लगी। कुछ ही देर में वे लोग पूरी तरह से नंगी हो गई और सीनियर कैदियों के लिए मनोरंजन का साधन बन गई। उनके बड़े-बड़े बूब्स वाकई में बेहद आकर्षक थे और उनके कूल्हों पर जमें वसा की वजह से वे लोग और भी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। वे सातो गोरी-चिट्टी और खूबसूरत थी जिस वजह से सीनियरों कैदियों को उन्हें परेशान करने में और भी ज्यादा मजा आ रहा था। हालाँकि कोमल बहुत मोटी थी लेकिन दिखने में ठीक थी। उनके पीछे खड़ी औरते उनके कूल्हों पर हाथ मारने लगी और उन्हें दबाने लगी। तभी कमला भी अपनी जगह से उठी और बबिता के सामने जाकर खड़ी हो गई। उसने बबिता के चेहरे को जोर से पकड़ा और अपने होंठ उसके होंठो पर टिका दिए। एकदम से कमला का आना और किस करना बबिता के लिए असहजतापूर्ण था। वह स्तब्ध रह गई और आनन-फानन में कमला को धक्का दे दिया।

‘साली हरामजादी। मेरे को धक्का दिया तूने। कमला को धक्का दिया।’

कमला गुस्से से आग बबूला हो चुकी थी और बबिता की ओर घूरकर देखने लगी। उसने वहाँ मौजूद कैदियों से बबिता को नीचे लिटाने को कहा जिसके बाद उन लोगो ने पूर्ण नग्न अवस्था मे खड़ी बबिता को हाथों व पैरों से पकड़ा और उसे नीचे जमीन पर लिटा दिया।

उसके बाद वे लोग एक-एक करके बबिता के ऊपर चढ़ने लगी और उसके साथ लेस्बियन होने लगी। जो औरते उसके ऊपर चढ़ती जाती, वे उसे चूमती, उसके बूब्स दबाती और उसकी चूत में अपनी ऊँगली से गुदगुदी करती। बबिता असहाय थी और उस खिलौने की तरह बेबस पड़ी हुई थी जिसका इस्तेमाल सीनियर औरते अपनी मर्जी से कर रही थी। एक तरह से उसका बला….र ही हो रहा था। बस फर्क इतना ही था कि उसके साथ ऐसा करने वाले कोई पुरुष नही बल्कि उसी की तरह महिलायें थी।

कमला सहित बहुत सारी औरतो ने उसके साथ लेस्बियन सेक्स किया। हालाँकि उनके पास उसकी योनि में डालने के लिए डिल्डो या अन्य किसी तरह की कोई भी वस्तु नही थी जिस वजह से ज्यादातर औरतो ने अपनी ऊँगली और हाथ का इस्तेमाल किया। काफी देर तक उसके साथ सेक्स करने के बाद उन लोगो ने उसे छोड़ तो दिया लेकिन उसे जाने नही दिया। उसे अंजली और बाकी सभी के साथ ही दोबारा खड़े करवाया गया और फिर से उनकी रैगिंग शुरू हो गई।

सीनियर कैदियों ने उनसे ऊठक-बैठक लगवाई, एक पैर पर खड़े करवाया, जानवरो की नकल उतरवाई और कई तरह से उनकी रैगिंग ली। उन्हें एक-दूसरे के स्तनों पर मुँह लगाकर दूध पीने को कहा गया जिसे उन्हें मानना पड़ा। कुछ देर बाद उन्हें हाथो और घुटनों के बल जमीन पर गाय की तरह बिठाया गया और एक कतार में एक-दूसरे की गांड में मुँह लगाने को मजबूर किया गया।​

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सबसे आगे दया थी। उसके पीछे माधवी और माधवी के पूछे क्रमशः सोनू, अंजली, बबिता, रोशन और कोमल थी। दया की गाँड़ में माधवी का मुँह घुसा हुआ था और माधवी की गाँड़ में सोनू का। इसी तरह आगे भी श्रंखला बनी हुई थी और उन्हें इसी अवस्था मे घुटनो और हाथो के बल पर चलना पड़ रहा था। सीनियर औरते लगातार उनका मजाक उड़ा रही थी और उनके मजे ले रही थी। उन सातो की बेबसी, अपमान और दर्द केवल वे सातो ही समझ सकती थी और उस वक़्त उनकी मनोस्थिति का अंदाजा लगाना भी मुश्किल था। जेल में आने के बाद से ही लगातार उन्हें रैगिंग, प्रताड़ना और शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ रहा था।

जेल एक ऐसी जगह होती है जहाँ एक माँ अपनी बेटी को अपनी आँखों के सामने पिटता देखकर भी कुछ नही कर सकती। यही स्थिति माधवी की भी थी। अपनी आँखों के सामने ही अपनी बेटी के साथ गंदी-गंदी हरकते होती देख भी उसे चुप रहना पड़ रहा था। एक माँ अपने बच्चे को दुनिया की हर खुशी देना चाहती हैं लेकिन माधवी वह लाचार माँ बन चुकी थी जो अपनी बेटी के साथ गलत होता देख भी उसे रोकने में असमर्थ थी।

खैर, उन सातो को नचवाया गया, उनसे गाना गवायाँ गया, पुशअप्स लगवाए गए और उनके साथ मारपीट तक की गई। सबसे अंत मे उन्होंने उन लोगो को कुर्सी में बैठने वाली स्थिति में खड़े करवाया और काफी देर तक उसी अवस्था मे रखा। उनके लिए यह स्थिति बहुत ही तकलीफदेय थी क्योंकि उन्हें अपने कूल्हों को हवा में और हाथो को आगे की ओर रखना पड़ रहा था। पीछे खड़ी कैदी औरते अपनी पूरी ताकत से उनकी पीठ और कूल्हों पर लाते मारती जा रही थी ताकि वे आगे की ओर गिर पड़े। दिलचस्प बात यह थी कि उन सातो को पीछे से लाते पड़ने के बावजूद अपनी जगह से हिलना या आगे गिरना मना था। यदि वे लोग अपनी जगह से जरा भी हिलती या आगे जाती तो उन्हें और ज्यादा मार पड़ती। आखिरकार घंटो तक उनकी रैगिंग करने के बाद सीनियर कैदियों ने उन्हें जाने दिया जिसके बाद उन्होंने अपने कपड़े अपने और सीधे अपनी सेल में चली गई।​
 
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“अरे देखो देखो। नई कैदी लोग आ रही हैं…” वार्ड में वापस जाते ही एक सीनियर कैदी ने उन्हें देखकर कहा।

‘अबे क्या माल है रे साली सब की सब…’

“दिखने में तो सब शरीफ लग रही है साली...”

‘अबे दिखने में तो हम भी शरीफ ही लगती है पर हमसे बड़ी हरामी कोई है क्या इधर 😂😂…’

“अरे वो सब छोड़ो। ऐ संध्या। जा उन्हें लेकर आ।” - एक अन्य कैदी कमला ने उससे कहा।

‘हाँ दीदी।’

संध्या तुरंत ही उन सातो के पास गई और उन्हें अपने साथ चलने को कहा। उन लोगो का उसके साथ जाने का मन तो नही कर रहा था लेकिन जेल के नियमो व जेलर की चेतावनी की वजह से उन्हें उसके साथ जाना पड़ा। संध्या उन्हें सीधे वार्ड नंबर 19 के सामने बने चबुतरे के पास ले गई जहाँ कमला, गुलरेज व कई अन्य खतरनाक कैदी औरते उनका इंतजार कर रही थी। उन सातो को उनके सामने खड़े करवाया गया और लगभग 25 से 30 औरते उन्हें घेरकर खड़ी हो गई।

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“क्या रे कमिनियो। क्या करके आई हो।” - कमला ने पूछा।

‘हमने कुछ नही किया है बेन।’ - दया ने जवाब दिया।

“अच्छा। कुछ नही किया तूने। तो इधर क्या अपनी माँ चुदाने आई है साली।” - उसने दया पर चिल्लाते हुए कहा।

दया आगे कुछ नही बोल पाई और चुपचाप सर झुकाकर खड़ी रही। कमला ने उन सभी को घूरती नजरो से देखा और फिर दया को अपने पास बुलाकर बोली - ‘नाम क्या है तेरा?’

‘दया जेठालाल गढ़ा’ - दया ने कहा।

‘साली तू दिखने में तो बड़ी घरेलू लगती हैं। पर तु है बड़ी हराम की जनी। कही तेरी माँ भी तो रंडियापा नही करती थी जवानी में…😀। - उसने दया का मजाक उड़ाते हुए कहा।

दया को अपनी माँ के बारे में उसकी बाते बुरी तो बहुत लगी लेकिन उसकी मजबूरी थी कि वह उसे कुछ बोल नही सकती थी। कमला ने दया के बाद अंजली से भी उसका नाम पूछा और फिर बारी-बारी से उन सभी का परिचय लिया।

“चलो, कान पकड़ो और मुर्गा बनो सब।” - कमला ने उन्हें आदेश दिया।

‘जी?’ - बबिता के मुँह से सहसा ही निकल पड़ा।

“अबे सुनाई नही दिया क्या लौड़ी? कान पकड़ो और मुर्गा बनो।”

उन सातो के पास कोई रास्ता नही था। जेल में उनका पहला दिन था और वे लोग सीनियर कैदी औरतो से घिरी हुई थी। यदि वे लोग उनकी बात नही मानती तो जाहिर था कि उन्हें खूब मार पड़ती। मजबूरन उन्हें उन सबके सामने मुर्गा बनना पड़ा। वे लोग आगे की ओर झुकी और अपने दोनों पैरों को फैलाकर उनके बीच मे से अपने हाथों को अंदर डाला और अपने कान पकड़कर उसी अवस्था मे स्थिर हो गई। उनका सर नीचे की ओर था और उनके कूल्हे जमीन से कुछ ऊँचाई पर उठे हुए थे। उन सबके लिए मुर्गा बनना आसान नही था। चूँकि माधवी और दया ने साड़ी पहनी हुई थी इसलिए उन दोनों को सबसे ज्यादा दिक्कत हुई। उन्होंने अपनी साड़ी को घुटनों तक ऊपर उठाया और मुर्गा बनी।

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उन लोगो को काफी देर तक उसी अवस्था मे रखा गया। यदि वे लोग अपने कूल्हों को नीचे करती या जरा सी भी लड़खड़ाती तो सीनियर औरते उन्हें लाते मारने लगती। यहाँ तक कि उन्होंने सोनू को भी नही बख्शा और उसके साथ भी वैसा ही बर्ताव किया। वे लोग कोई छोटी बच्ची नही थी जो मजाक-मजाक में ऐसा कर लेती। सोनू को छोड़कर वे सभी 35 साल से अधिक उम्र की वयस्क औरते थी और उनके लिए यह सब बेहद अपमानजनक था।

“चलो खड़ी हो और कपड़े उतारो फटाफट।” - कमला ने फिर कहा।

वे लोग खड़ी हुई और अपने कपड़े उतारने लगी। कुछ ही देर में वे लोग पूरी तरह से नंगी हो गई और सीनियर कैदियों के लिए मनोरंजन का साधन बन गई। उनके बड़े-बड़े बूब्स वाकई में बेहद आकर्षक थे और उनके कूल्हों पर जमें वसा की वजह से वे लोग और भी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। वे सातो गोरी-चिट्टी और खूबसूरत थी जिस वजह से सीनियरों कैदियों को उन्हें परेशान करने में और भी ज्यादा मजा आ रहा था। हालाँकि कोमल बहुत मोटी थी लेकिन दिखने में ठीक थी। उनके पीछे खड़ी औरते उनके कूल्हों पर हाथ मारने लगी और उन्हें दबाने लगी। तभी कमला भी अपनी जगह से उठी और बबिता के सामने जाकर खड़ी हो गई। उसने बबिता के चेहरे को जोर से पकड़ा और अपने होंठ उसके होंठो पर टिका दिए। एकदम से कमला का आना और किस करना बबिता के लिए असहजतापूर्ण था। वह स्तब्ध रह गई और आनन-फानन में कमला को धक्का दे दिया।

‘साली हरामजादी। मेरे को धक्का दिया तूने। कमला को धक्का दिया।’

कमला गुस्से से आग बबूला हो चुकी थी और बबिता की ओर घूरकर देखने लगी। उसने वहाँ मौजूद कैदियों से बबिता को नीचे लिटाने को कहा जिसके बाद उन लोगो ने पूर्ण नग्न अवस्था मे खड़ी बबिता को हाथों व पैरों से पकड़ा और उसे नीचे जमीन पर लिटा दिया।

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उसके बाद वे लोग एक-एक करके बबिता के ऊपर चढ़ने लगी और उसके साथ लेस्बियन होने लगी। जो औरते उसके ऊपर चढ़ती जाती, वे उसे चूमती, उसके बूब्स दबाती और उसकी चूत में अपनी ऊँगली से गुदगुदी करती। बबिता असहाय थी और उस खिलौने की तरह बेबस पड़ी हुई थी जिसका इस्तेमाल सीनियर औरते अपनी मर्जी से कर रही थी। एक तरह से उसका बला….र ही हो रहा था। बस फर्क इतना ही था कि उसके साथ ऐसा करने वाले कोई पुरुष नही बल्कि उसी की तरह महिलायें थी।

कमला सहित बहुत सारी औरतो ने उसके साथ लेस्बियन सेक्स किया। हालाँकि उनके पास उसकी योनि में डालने के लिए डिल्डो या अन्य किसी तरह की कोई भी वस्तु नही थी जिस वजह से ज्यादातर औरतो ने अपनी ऊँगली और हाथ का इस्तेमाल किया। काफी देर तक उसके साथ सेक्स करने के बाद उन लोगो ने उसे छोड़ तो दिया लेकिन उसे जाने नही दिया। उसे अंजली और बाकी सभी के साथ ही दोबारा खड़े करवाया गया और फिर से उनकी रैगिंग शुरू हो गई।

सीनियर कैदियों ने उनसे ऊठक-बैठक लगवाई, एक पैर पर खड़े करवाया, जानवरो की नकल उतरवाई और कई तरह से उनकी रैगिंग ली। उन्हें एक-दूसरे के स्तनों पर मुँह लगाकर दूध पीने को कहा गया जिसे उन्हें मानना पड़ा। कुछ देर बाद उन्हें हाथो और घुटनों के बल जमीन पर गाय की तरह बिठाया गया और एक कतार में एक-दूसरे की गांड में मुँह लगाने को मजबूर किया गया।​

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सबसे आगे दया थी। उसके पीछे माधवी और माधवी के पूछे क्रमशः सोनू, अंजली, बबिता, रोशन और कोमल थी। दया की गाँड़ में माधवी का मुँह घुसा हुआ था और माधवी की गाँड़ में सोनू का। इसी तरह आगे भी श्रंखला बनी हुई थी और उन्हें इसी अवस्था मे घुटनो और हाथो के बल पर चलना पड़ रहा था। सीनियर औरते लगातार उनका मजाक उड़ा रही थी और उनके मजे ले रही थी। उन सातो की बेबसी, अपमान और दर्द केवल वे सातो ही समझ सकती थी और उस वक़्त उनकी मनोस्थिति का अंदाजा लगाना भी मुश्किल था। जेल में आने के बाद से ही लगातार उन्हें रैगिंग, प्रताड़ना और शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ रहा था।

जेल एक ऐसी जगह होती है जहाँ एक माँ अपनी बेटी को अपनी आँखों के सामने पिटता देखकर भी कुछ नही कर सकती। यही स्थिति माधवी की भी थी। अपनी आँखों के सामने ही अपनी बेटी के साथ गंदी-गंदी हरकते होती देख भी उसे चुप रहना पड़ रहा था। एक माँ अपने बच्चे को दुनिया की हर खुशी देना चाहती हैं लेकिन माधवी वह लाचार माँ बन चुकी थी जो अपनी बेटी के साथ गलत होता देख भी उसे रोकने में असमर्थ थी।

खैर, उन सातो को नचवाया गया, उनसे गाना गवायाँ गया, पुशअप्स लगवाए गए और उनके साथ मारपीट तक की गई। सबसे अंत मे उन्होंने उन लोगो को कुर्सी में बैठने वाली स्थिति में खड़े करवाया और काफी देर तक उसी अवस्था मे रखा। उनके लिए यह स्थिति बहुत ही तकलीफदेय थी क्योंकि उन्हें अपने कूल्हों को हवा में और हाथो को आगे की ओर रखना पड़ रहा था। पीछे खड़ी कैदी औरते अपनी पूरी ताकत से उनकी पीठ और कूल्हों पर लाते मारती जा रही थी ताकि वे आगे की ओर गिर पड़े। दिलचस्प बात यह थी कि उन सातो को पीछे से लाते पड़ने के बावजूद अपनी जगह से हिलना या आगे गिरना मना था। यदि वे लोग अपनी जगह से जरा भी हिलती या आगे जाती तो उन्हें और ज्यादा मार पड़ती। आखिरकार घंटो तक उनकी रैगिंग करने के बाद सीनियर कैदियों ने उन्हें जाने दिया जिसके बाद उन्होंने अपने कपड़े अपने और सीधे अपनी सेल में चली गई।​
Superb update.
 
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