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Adultery गोकुलधाम सोसायटी की औरतें जेल में

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Jail Stories
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Update 10

(जेल की दिनचर्या)

सुबह के छः बजकर पचास मिनट पर जेल में एक और सायरन बजा। यह सायरन व्यायाम की समाप्ति और गिनती के लिए जमा होने का इशारा था। सायरन के बजते ही सभी कैदी वापस अपने सर्कल में चली आई और हाथ-मुँह धोकर प्रार्थना व गिनती के लिए सर्कल कंपाउंड के अंदर ही बने मैदान में जमा होने लगी। वे सातो भी अपने वार्ड की लाइन में जाकर खड़ी हो गई। प्रार्थना की शुरुआत ‘इतनी शक्ति हमे देना दाता’ गीत के साथ हुई जिसके बाद सभी कैदियों की गिनती की गई।

गिनती होने के बाद सुबह 7:15 बजे कैदियों को चाय दी गई और 7:30 बजे से सभी को जेल के रोजाना के कामो पर लगा दिया गया। इन कामो में झाड़ू लगाना, पानी भरना, बाथरूम व शौचालयो की साफ-सफाई, नालियों की सफाई तथा खाना बनाने जैसे काम शामिल थे। बबिता और उन सभी को अलग-अलग काम दिए गए। उन लोगो से झाड़ू लगवाई गई, पानी भरवाया गया तथा सभी शौचालयो व बाथरूम की सफाई करवाई गई। लगभग डेढ़ घंटे तक काम करने के बाद सुबह 9 बजे नहाने का समय हुआ। सायरन के बजते ही सभी कैदी औरते अपनी-अपनी सेलो में जाने लगी और अपना टॉवेल, बाल्टी व मग लेकर बाहर आ गई। बबिता सहित वे सातो भी अपनी सेल में गई और टॉवेल, बाल्टी व मग लेकर नहाने के लिए चली आई।

जेल में कैदियों के नहाने के लिए एक बड़ा सा बाथ एरिया था जहाँ सैकड़ो औरते एक साथ नहा सकती थी। यह एरिया पूरी तरह से ओपन था और कैदी औरतो को खुले में ही नहाना पड़ता था। नहाने के लिए बीच मे एक बड़ा सा पानी का टाका (पानी जमा करने के लिए सीमेंट से बनाया गया टैंक) बना हुआ था जहाँ से कैदियों को खुद पानी निकालकर नहाना पड़ता था। इसके अतिरिक्त जेल में एक और बड़ा बाथ एरिया था जिसका इस्तेमाल आमतौर पर बरसात के मौसम में किया जाता था। यह एरिया ओपन नही था और किसी बड़े से बाथरूम की तरह था। इसमे ऊपर की ओर शॉवर लगे हुए थे और इसमें भी बहुत सारी औरते एक साथ नहा सकती थी।

उन सातो के लिए वहाँ का माहौल बहुत ही अजीब व अलग था। कैदी औरते नहाने के लिए एक ही जगह पर इकट्ठा हो रही थी। उनमें से किसी ने कपड़े पहन रखे थे तो कोई पूरी तरह नग्न थी। उन सैकड़ों औरतो के बीच मे नहाने में वे लोग बहुत ही असहज महसूस कर रही थी लेकिन वे मजबूर थी। उन्होंने अपने कपड़े उतारे और नहाने के लिए बैठ गई। उन लोगो ने देखा कि कई कैदी औरते तो पूरी तरह से नग्न अवस्था मे ही नहा रही थी यानि उन्होंने अपनी पैंटी तक उतार दी थी। नहाते वक्त कई औरते आपस मे ऊपरी सेक्स भी कर रही थी तो कुछ सीनियर कैदी अपनी जूनियरों से अपने शरीर का मैल साफ करवा रही थी।​

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उन लोगो को यह सब बहुत ही बेकार लग रहा था और उन्हें बहुत शर्म आ रही थी। हालाँकि उनके पास कोई और चारा नही था और मजबूरन उन्होंने नहाना शुरू किया। पानी बेहद ठंडा था। उन्होंने जैसे ही अपने ऊपर पानी डाला, वे लोग ठंड के मारे काँप उठी और उनके शरीर में सिहरन उठने लगी।

“इट्टा ठंडा पानी…” - रोशन तुरंत ही बोल पड़ी।

‘रोशन भाभी, यहाँ तो ठंडा पानी ही मिलेगा ना।’ - अंजली ने कहा।

“हाँ पर ये टो कुछ ज्यादा ही ठंडा हैं अंजली भाभी।”

‘ये जेल हैं महारानियो। यहाँ बाहर की तरह कुछ नही मिलता।’ - उनके बगल में नहा रही एक कैदी औरत ने कहा।

उसकी बात सुनकर वे लोग चुप हो गई और नहाना शुरू किया। उनके बदन पानी से पूरी तरह भीग चुके थे। वे लोग ब्रा और पैंटी में भी काफी खूबसूरत लग रही थी। वे सातो एक हाथ से अपने ऊपर पानी डालती जाती और दूसरे हाथ से बदन पर साबुन लगाती जाती। उनके चिकने और मुलायम बदन पर साबुन किसी मक्खन की तरह फिसल रही थी। उन लोगो ने अपने गले से लेकर पैर तक पूरे शरीर पर साबुन मल दी और अपने हाथों से रगड़ने लगी। वैसे तो उन्हें अपनी वजाइना और कूल्हों पर भी साबुन लगानी थी लेकिन सैकड़ो औरतो के बीच मे उन्हें ऐसा करने में बहुत ही संकोच हो रहा था। उन्होंने देखा कि सारी औरते और लड़कियाँ बिना किसी झिझक के अपनी वजाइना और कूल्हों पर साबुन लगा रही थी और जिन कैदियों ने पैंटी पहन रखी थी, वे लोग भी पैंटी में हाथ डालकर साबुन मल रही थी। हालाँकि उन्होंने ऐसा नही किया।

उनके पास चेहरा धोने के लिए फेशवॉश नही था और ना ही बालों के लिए शैम्पू था। मजबूरन उन्हें अपने चेहरे पर भी साबुन लगानी पड़ी। नहाने के बाद उन्होंने अपने बदन को टॉवेल से पोछा और उसे कमर पर लपेटकर अपनी ब्रा व पैंटी उतारी। उन्होंने उतारी हुई ब्रा-पैंटी धोई और फिर वापस अपनी सेल में आ गई।

सेल में आने के बाद उन्होंने अपने-अपने कपड़े पहने और कंघी करने लगी। जेल में कैदियों को मेकअप, क्रीम, नेल पेंट या इस तरह की किसी भी चीज की अनुमति नही थी। प्रत्येक कैदी को साधारण फेश पाउडर, कंघी और नारियल का तेल दिया गया था। हालाँकि उन सातो में से किसी ने भी ना तो चेहरे पर पाउडर लगाया और ना ही बालों पर तेल लगाया। वे लोग अपने चेहरे और बालों को खराब नही करना चाहती थी। नहाने के बाद कई औरते अपने कपड़े धोने में लग गई लेकिन बबिता और बाकी सभी अपनी सेल में ही बैठी रही। सुबह 11 बजे खाने का सायरन बजने के बाद वे लोग सेल से बाहर निकली और खाना खाया जिसके बाद दोपहर 12 बजे दिनचर्या के सारे काम खत्म हुए।​
 
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दिनचर्या के कार्य समाप्त होने के बाद अब उनके पास करने को कोई काम नही था। सज़ायाफ्ता कैदियों को तो काम पर लगा दिया गया था लेकिन चूँकि वे लोग अंडरट्रायल कैदी थी इसलिए उन्हें किसी तरह का कोई काम नही दिया गया था। उनकी सेल की अन्य पाँचो कैदी भी काम पर जा चुकी थी और सेल में उनके अलावा कोई कैदी मौजूद नही थी। खाना खाने के बाद वे लोग सेल में ही आकर बैठ गई और आपस मे बाते करने लगी।

“आई, मुझे बहुत डर लग रहा है।” - सोनू ने माधवी से कहा।

‘तू टेंशन मत ले बेटा। कुछ नही होगा। हम सब है ना तेरे साथ।’ - माधवी ने उसे ढाँढस बंधाते हुए कहा।

तभी दया बीच मे बोल पड़ी - “हाँ सोनू बेटा, टेंशन मत लो। ये मुसीबत भी टल जाएगी।”

बबिता - ‘मैं तो यहाँ से बाहर निकलने के बाद सबसे पहले इस वार्डन की कंप्लेंट करूँगी। मुझे तो इतना गुस्सा आ रहा है ना इस पर…’

अंजली - “हाँ। सही कहा बबिता जी। आखिर ये लोग औरतो के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं?”

रोशन - ‘क्यूँ ना हम जेलर से कंप्लेंट करे।’

माधवी - “कोई फायदा नही है रोशन भाभी। आपने देखा नही था कैसे सोनू के बारे में घटिया बाते बोल रही थी। उस वक़्त तो मुझे ऐसा लग रहा था कि उसका मुँह तोड़ दूँ।”

अंजली - ‘गुस्सा तो हम सबको आया था माधवी भाभी। लेकिन जब तक हम जेल में है, तब तक हम कुछ नही कर सकते।’

कोमल - “बस ये 14 दिन जल्दी से निकल जाये। मुझे पूरा यकीन है कि हम बेकसूर साबित होंगे।”

वे लोग भले ही एक-दूसरे को दिलासा दे रही थी लेकिन वास्तविकता यही थी कि जेल से बाहर निकलना उनके लिए इतना भी आसान नही था। उन पर हत्या जैसा संगीन आरोप था और उनके लिए अपने भावी जीवन की कल्पना करना भी बेहद कठिन था।

वे सातो अपनी सेल में बैठी ही हुई थी कि तभी अचानक कुछ लेडी काँस्टेबल्स वार्ड में आई और उन्हें अपनी सेल से बाहर निकलने को कहा। उनके कहते ही वे सातो सेल से बाहर निकली और फिर तुरंत ही उन सभी के दोनो हाथों में हथकड़ी पहना दी गई।

“आप लोग कहाँ ले जा रहे है हमे?” - बबिता ने पूछा।

‘मुँह बंद रख और चुपचाप चल।’ - काँस्टेबल ने उसे डाँटते हुए कहा।

वे लोग उन सातो को मेडिकल के लिए जेल के अस्पताल में लेकर गई और जब वे लोग वहाँ पहुँचे तो उन्होंने देखा कि जेलर भी वही पर मौजूद थी। अस्पताल में जाने के बाद उनकी हथकड़ी खोल दी गई और सारे कपड़े उतरवाकर पूर्ण नग्न अवस्था मे उन्हें जेलर व जेल की महिला डॉक्टर डॉ. मधुरिमा के सामने खड़े करवाया गया। इसके बाद उनकी मेडिकल जाँच शुरू हुई जिसमें उनका फूल बॉडी चेकअप किया गया। मेडिकल टेस्ट में उनका यूरिन टेस्ट, आँख व कान की जाँच, ब्लड शुगर टेस्ट, लिपिड प्रोफाइल, किडनी फंक्शन टेस्ट, लिवर फंक्शन टेस्ट, कैंसर टेस्ट व प्रेग्नेंसी टेस्ट आदि किये गए और सारे टेस्ट होने के बाद उन्हें दोबारा जेलर के सामने पेश किया गया।​

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“तुममे से सोनालिका कौन हैं?” - जेलर ने पूछा।

सोनू का नाम सुनकर माधवी एकदम से घबरा गई और बोल पड़ी - ‘क्या हुआ मैडम?’

“तू है सोनालिका?” - जेलर ने गुस्से में कहा।

‘नही मैडम। मेरी बेटी हैं।’ - माधवी ने सोनू की तरफ़ इशारा करते हुए जवाब दिया।

तभी सोनू बोली - “जी मैडम, मैं हूँ सोनालिका।”

जेलर ने उन सबको गुस्से भरी नजरों से देखा और डॉ. मधुरिमा से कहने लगी - ‘इन सबमे बहुत चर्बी भरी है मधु मैडम। लगता हैं मुझे ही उतारनी पड़ेगी।’

इतना कहते ही जेलर अपनी कुर्सी से उठी और उन सातो से अपने दोनों हाथो को आगे करने को कहा। वे लोग पूरी तरह नंगी खड़ी थी और जेलर के कहने पर उन्होंने अपने हाथों को आगे कर दिया।​

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“थपाक्क्क्क…”

बबिता के हाथ के पंजे पर जेलर का एक सनसनाता हुआ डंडा पड़ा। ठीक उसी तरह जिस तरह स्कूल में टीचर बच्चो को मारते हैं। वह दर्द से चीख उठी। वह कोई प्रतिक्रिया दे पाती, उससे पहले ही जेलर ने उसके दूसरे हाथ पर और जोर से मारा। इस बार उसके लिए दर्द असहनीय था लेकिन उसने डर के मारे अपनी चीखे अंदर ही दबा ली।

अगला नंबर अंजली का था। जेलर ने उसे भी उसके दोनों हाथों के पंजों पर अपनी पूरी ताकत से डंडे मारे। डंडो के पड़ते ही वह दर्द से कराहने लगी। उसके चेहरे पर उसका दर्द साफ झलक रहा था लेकिन उसकी मजबूरी थी कि वह उसे व्यक्त नही कर सकती थी। बबिता को देखकर वह पहले ही घबराई हुई थी और अपनी बारी के इंतजार में उसकी धड़कने तेजी से चलने लगी थी।

ऐसा ही हाल दया, रोशन, कोमल, माधवी और सोनू का भी था। अपने से पहले खड़ी औरतो को मार खाते देख उनका भी दिल तेजी से धड़कने लगा था। हालाँकि जेलर को इस बात की कोई परवाह नही थी और उसने उन सभी के हाथों पर पूरी ताकत से डंडे बजाये। सबसे अंत मे सोनू की बारी आई। उसके अलावा सभी ने मार तो चुपचाप सहन कर ली थी लेकिन जब सोनू की बारी आई तो उनसे देखा नही गया। आखिर उन सबके लिए तो सोनू वही छोटी बच्ची थी जिसे उन्होंने बचपन से बड़े होते हुए देखा था।​

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“मैडम, आप प्लीज उसे मत मारिये।” - माधवी ने कहा।

माधवी की आवाज सुनकर जेलर ने गुस्से से उसकी तरफ देखा और उसके करीब आकर बोली - ‘अच्छा। इसे नही मारूँ। तो इसके बदले किसे मारूँ?’

“आप हममे से किसी को भी मार लीजिये मैडम पर उसे छोड़ दीजिए। बच्ची है वो।” - अंजली ने कहा।

अंजली के इतना कहते ही उसने उसके बालों से जोर से पकड़ा और खीचते हुए बोली - ‘जरा मैं भी तो देखूँ की बाईस साल की लौंडिया कब से बच्ची हो गई?’

“आँ आँह…मैडम छोड़िये…दर्द हो रहा हैं…”

‘दर्द हो रहा है हरामजादी। साली जब मर्डर कर रही थी तब बच्ची नही थी ये? बोल।’

उसने एक हाथ से अंजली के मुँह को दबाया और दूसरे हाथ से अपने डंडे को पकड़कर उन सबकी तरफ देखते हुए बोली -

“तुम सब मेरी बात ध्यान से सुन लो। ये मेरी जेल है। यहाँ मेरी मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नही हिलता। यहाँ पर आने वाली औरते मेरे लिए सिर्फ कैदी हैं और मुझे इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि किसकी उम्र कितनी है या किसका आपस मे क्या रिश्ता हैं। जब तक तुम लोग जेल में हो, तब तक एक-दूसरे के लिए कोई सिम्पैथी दिखाई तो समझो तुम्हारी खैर नही। साली क्राइम करती हो तब फैमिली याद नही रहती और जेल में आते ही माँ-बेटी याद आने लगती हैं।”

उसने अंजली को पकड़े रखा था कि तभी उसके मोबाइल फोन पर घंटी बजी। उसने फोन उठाया तो दूसरी तरफ उसकी 16 साल की बेटी थी।

‘हेलो मम्मा..’

‘यस बेटा, बोलो..’

‘मम्मा आज आप घर कब तक आओगे?’

‘पाँच बजे तक आ जाऊँगी बेटा…’

उसने उन सातो को कपड़े पहनने का इशारा किया और फोन पर बात करते हुए ही वहाँ से बाहर चली गई। उसके जाते ही सातो ने अपने-अपने कपड़े पहने और फिर उन्हें वापस उनके वार्ड में भेज दिया गया।​
 
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