Update 11
दिनचर्या के कार्य समाप्त होने के बाद अब उनके पास करने को कोई काम नही था। सज़ायाफ्ता कैदियों को तो काम पर लगा दिया गया था लेकिन चूँकि वे लोग अंडरट्रायल कैदी थी इसलिए उन्हें किसी तरह का कोई काम नही दिया गया था। उनकी सेल की अन्य पाँचो कैदी भी काम पर जा चुकी थी और सेल में उनके अलावा कोई कैदी मौजूद नही थी। खाना खाने के बाद वे लोग सेल में ही आकर बैठ गई और आपस मे बाते करने लगी।
“आई, मुझे बहुत डर लग रहा है।” - सोनू ने माधवी से कहा।
‘तू टेंशन मत ले बेटा। कुछ नही होगा। हम सब है ना तेरे साथ।’ - माधवी ने उसे ढाँढस बंधाते हुए कहा।
तभी दया बीच मे बोल पड़ी - “हाँ सोनू बेटा, टेंशन मत लो। ये मुसीबत भी टल जाएगी।”
बबिता - ‘मैं तो यहाँ से बाहर निकलने के बाद सबसे पहले इस वार्डन की कंप्लेंट करूँगी। मुझे तो इतना गुस्सा आ रहा है ना इस पर…’
अंजली - “हाँ। सही कहा बबिता जी। आखिर ये लोग औरतो के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं?”
रोशन - ‘क्यूँ ना हम जेलर से कंप्लेंट करे।’
माधवी - “कोई फायदा नही है रोशन भाभी। आपने देखा नही था कैसे सोनू के बारे में घटिया बाते बोल रही थी। उस वक़्त तो मुझे ऐसा लग रहा था कि उसका मुँह तोड़ दूँ।”
अंजली - ‘गुस्सा तो हम सबको आया था माधवी भाभी। लेकिन जब तक हम जेल में है, तब तक हम कुछ नही कर सकते।’
कोमल - “बस ये 14 दिन जल्दी से निकल जाये। मुझे पूरा यकीन है कि हम बेकसूर साबित होंगे।”
वे लोग भले ही एक-दूसरे को दिलासा दे रही थी लेकिन वास्तविकता यही थी कि जेल से बाहर निकलना उनके लिए इतना भी आसान नही था। उन पर हत्या जैसा संगीन आरोप था और उनके लिए अपने भावी जीवन की कल्पना करना भी बेहद कठिन था।
वे सातो अपनी सेल में बैठी ही हुई थी कि तभी अचानक कुछ लेडी काँस्टेबल्स वार्ड में आई और उन्हें अपनी सेल से बाहर निकलने को कहा। उनके कहते ही वे सातो सेल से बाहर निकली और फिर तुरंत ही उन सभी के दोनो हाथों में हथकड़ी पहना दी गई।
“आप लोग कहाँ ले जा रहे है हमे?” - बबिता ने पूछा।
‘मुँह बंद रख और चुपचाप चल।’ - काँस्टेबल ने उसे डाँटते हुए कहा।
वे लोग उन सातो को मेडिकल के लिए जेल के अस्पताल में लेकर गई और जब वे लोग वहाँ पहुँचे तो उन्होंने देखा कि जेलर भी वही पर मौजूद थी। अस्पताल में जाने के बाद उनकी हथकड़ी खोल दी गई और सारे कपड़े उतरवाकर पूर्ण नग्न अवस्था मे उन्हें जेलर व जेल की महिला डॉक्टर डॉ. मधुरिमा के सामने खड़े करवाया गया। इसके बाद उनकी मेडिकल जाँच शुरू हुई जिसमें उनका फूल बॉडी चेकअप किया गया। मेडिकल टेस्ट में उनका यूरिन टेस्ट, आँख व कान की जाँच, ब्लड शुगर टेस्ट, लिपिड प्रोफाइल, किडनी फंक्शन टेस्ट, लिवर फंक्शन टेस्ट, कैंसर टेस्ट व प्रेग्नेंसी टेस्ट आदि किये गए और सारे टेस्ट होने के बाद उन्हें दोबारा जेलर के सामने पेश किया गया।
“तुममे से सोनालिका कौन हैं?” - जेलर ने पूछा।
सोनू का नाम सुनकर माधवी एकदम से घबरा गई और बोल पड़ी - ‘क्या हुआ मैडम?’
“तू है सोनालिका?” - जेलर ने गुस्से में कहा।
‘नही मैडम। मेरी बेटी हैं।’ - माधवी ने सोनू की तरफ़ इशारा करते हुए जवाब दिया।
तभी सोनू बोली - “जी मैडम, मैं हूँ सोनालिका।”
जेलर ने उन सबको गुस्से भरी नजरों से देखा और डॉ. मधुरिमा से कहने लगी - ‘इन सबमे बहुत चर्बी भरी है मधु मैडम। लगता हैं मुझे ही उतारनी पड़ेगी।’
इतना कहते ही जेलर अपनी कुर्सी से उठी और उन सातो से अपने दोनों हाथो को आगे करने को कहा। वे लोग पूरी तरह नंगी खड़ी थी और जेलर के कहने पर उन्होंने अपने हाथों को आगे कर दिया।
“थपाक्क्क्क…”
बबिता के हाथ के पंजे पर जेलर का एक सनसनाता हुआ डंडा पड़ा। ठीक उसी तरह जिस तरह स्कूल में टीचर बच्चो को मारते हैं। वह दर्द से चीख उठी। वह कोई प्रतिक्रिया दे पाती, उससे पहले ही जेलर ने उसके दूसरे हाथ पर और जोर से मारा। इस बार उसके लिए दर्द असहनीय था लेकिन उसने डर के मारे अपनी चीखे अंदर ही दबा ली।
अगला नंबर अंजली का था। जेलर ने उसे भी उसके दोनों हाथों के पंजों पर अपनी पूरी ताकत से डंडे मारे। डंडो के पड़ते ही वह दर्द से कराहने लगी। उसके चेहरे पर उसका दर्द साफ झलक रहा था लेकिन उसकी मजबूरी थी कि वह उसे व्यक्त नही कर सकती थी। बबिता को देखकर वह पहले ही घबराई हुई थी और अपनी बारी के इंतजार में उसकी धड़कने तेजी से चलने लगी थी।
ऐसा ही हाल दया, रोशन, कोमल, माधवी और सोनू का भी था। अपने से पहले खड़ी औरतो को मार खाते देख उनका भी दिल तेजी से धड़कने लगा था। हालाँकि जेलर को इस बात की कोई परवाह नही थी और उसने उन सभी के हाथों पर पूरी ताकत से डंडे बजाये। सबसे अंत मे सोनू की बारी आई। उसके अलावा सभी ने मार तो चुपचाप सहन कर ली थी लेकिन जब सोनू की बारी आई तो उनसे देखा नही गया। आखिर उन सबके लिए तो सोनू वही छोटी बच्ची थी जिसे उन्होंने बचपन से बड़े होते हुए देखा था।
“मैडम, आप प्लीज उसे मत मारिये।” - माधवी ने कहा।
माधवी की आवाज सुनकर जेलर ने गुस्से से उसकी तरफ देखा और उसके करीब आकर बोली - ‘अच्छा। इसे नही मारूँ। तो इसके बदले किसे मारूँ?’
“आप हममे से किसी को भी मार लीजिये मैडम पर उसे छोड़ दीजिए। बच्ची है वो।” - अंजली ने कहा।
अंजली के इतना कहते ही उसने उसके बालों से जोर से पकड़ा और खीचते हुए बोली - ‘जरा मैं भी तो देखूँ की बाईस साल की लौंडिया कब से बच्ची हो गई?’
“आँ आँह…मैडम छोड़िये…दर्द हो रहा हैं…”
‘दर्द हो रहा है हरामजादी। साली जब मर्डर कर रही थी तब बच्ची नही थी ये? बोल।’
उसने एक हाथ से अंजली के मुँह को दबाया और दूसरे हाथ से अपने डंडे को पकड़कर उन सबकी तरफ देखते हुए बोली -
“तुम सब मेरी बात ध्यान से सुन लो। ये मेरी जेल है। यहाँ मेरी मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नही हिलता। यहाँ पर आने वाली औरते मेरे लिए सिर्फ कैदी हैं और मुझे इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि किसकी उम्र कितनी है या किसका आपस मे क्या रिश्ता हैं। जब तक तुम लोग जेल में हो, तब तक एक-दूसरे के लिए कोई सिम्पैथी दिखाई तो समझो तुम्हारी खैर नही। साली क्राइम करती हो तब फैमिली याद नही रहती और जेल में आते ही माँ-बेटी याद आने लगती हैं।”
उसने अंजली को पकड़े रखा था कि तभी उसके मोबाइल फोन पर घंटी बजी। उसने फोन उठाया तो दूसरी तरफ उसकी 12 साल की बेटी थी।
‘हेलो मम्मा..’
‘यस बेटा, बोलो..’
‘मम्मा आज आप घर कब तक आओगे?’
‘पाँच बजे तक आ जाऊँगी बेटा…’
उसने उन सातो को कपड़े पहनने का इशारा किया और फोन पर बात करते हुए ही वहाँ से बाहर चली गई। उसके जाते ही सातो ने अपने-अपने कपड़े पहने और फिर उन्हें वापस उनके वार्ड में भेज दिया गया।