parate123
CHUTON KA DEEWANA
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yeh to teen sharte hui, baki ki do sharte kya hai komal jiअब सलहज की बारी
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थोड़ी देर बाद ननदोई ने अपना मोटा खूंटा सास के पिछवाड़े से निकाला और साथ में मलाई की धार, खूब गाढ़ी थक्केदार, अंदर तक बुचोबुच भरी हुयी, छलक रही थी।
और उनकी बुर में पहले से ही नन्दोई जी मलाई अभी तक लगी थी, इत्ता सुन्दर लग रहा था, बस मैं यही सोच रही थी, नन्दोई की जगह मेरे मरद की मलाई ऐसी ही रोज इनके अगवाड़े पिछवाड़े छलकती रहे,
" अरे छिनार काहें ललचा रही है, नजर लगा रही है। तेरे नन्दोई का ही तो है, सलहज का तो हक़ ननदोई पे सबसे पहले और अब तो तेरे अलावा और कोई नहीं न साली न दूसरी सलहज, ले ले चाट ले "
हँसते हुए मेरी सास ने खींच के मेरे मुंह को,
मैंने थोड़ा बचने की कोशिश की, मलाई के साथ सास के पिछवाड़े से ' और भी बहुत कुछ;'
लेकिन मेरी सास की पकड़ उनके पूत से भी तेज थी, सँडसी मात थी,
और मेरा मुंह, बस वहीं चिपक गया।
नन्दोई की मलाई का स्वाद, सपड़ सपड़, जीभ निकाल के मैं चाट रही थी, कभी दोनों होंठों से सास को पकड़ के कस के चूस लेती तो सास सिसक जातीं, कस के मेरा सर पकड़ के अपनी ओर खींच लेतीं, अपने दामाद के मलाई में सनी गांड पे रगड़ने लगतीं, और अब मेरी उँगलियाँ ने गोल छेद को थोड़ा सा फैलाया और जीभ अंदर,
नन्दोई एकदम नदीदे की तरह देख रहे थे और सास मेरी छिनाल उन्हें और उकसा रही थे, " देख ले अपनी छिनाल सलहज को तोहरे मलाई के लिए कैसे पागल है, कैसे लपर लपर चाट रही है "
कनखियों से मुस्करा के मैंने ननदोई की ओर देखा, स्साले की निगाह सिर्फ मेरे होंठों पर नहीं, मेरे पिछवाड़े भी थी। सास के बाद अब एक फिर से बहू के पिछवाड़े के स्वाद के चक्कर में था बेचारा। मैंने हाथ बढ़ा के खूंटे का बेस पकड़ लिया, सिर्फ बेस ही और हलके हलके दबाने लगी, और एक बार फिर से सास की सेवा में लग गयी, उनके पिछवाड़े से मलाई चाटने के चक्कर में और मेरी सास अब अपने दामाद की ओर से बोल रही थीं, मुझे उकसा रही थीं
" अरे यही मलाई तोहरे नन्दोई के खूंटे पर भी लगी है ओहु क स्वाद ले लो "
सास की आँखों में चमक थी, वो और ननदोई एक दूसरे को देख के मुस्करा रहे थे और मैं समझ भी रही थी क्यों। नन्दोई जी के मोटे खूंटे पे मलाई के अलावा मेरी सास के पिछवाड़े की,
लेकिन ननदोई नन्दोई होता है, कौन सलहज नन्दोई को मना करती है। फिर कौन ये पहली बार था, हफ्ते दस दिन पहले ही तो ऐन होली के दिन, मेरी छिनाल ननद जो अपने सगे भैया से अभी कुटवा रही है, गाभिन होने के लिए, इन्ही नन्दोई से मिल के, ,,, मेरे सामने ननदोई नन्द का पिछवाड़ा मार रहे थे और मैं अपने नन्दोई को चढ़ा रही थी,
" हाँ ननदोई जी और कस के गाँड़ मारिये, स्साली छिनार बहुत चूतड़ मटका मटका के चलती है "
और बजाय बुरा मानने के मेरी ननद खिलखिला रही थीं। बाद में पता चला की मेरी ननद और नन्दोई की मिलीभगत, थोड़ी देर गुदा मंथन करने के बाद मेरी ननद के पिछवाड़े से ननदोई ने खूंटा अपना मेरे मुंह में ठोंक दिया। ननद कस के मेरे सर को पकडे थी, जब तक मैंने खुल के चूसना नहीं शुरू किया और चिढ़ा रही थी
" कहो भौजी, मिल गया ननद का स्वाद, "
मैं क्या बोलती, मेरे मुंह में तो डाट लगी थी। और अभी सास और नन्दोई की मिली भगत तो मैंने नन्दोई का खूंटा पकड़ा, अभी भी थोड़ा सोया सा, दो बार रगड़ रगड़ के मेरी सास को चोदा था, अगवाड़ा भी पिछवाड़ा। लेकिन मेरे होंठ तो किसी के भी खूंटे को जगा सकते थे, थोड़ा सा सुपाड़े को चाटने के बाद सीधे अंदर और कस के चूसने लगी। ननदोई ने कस के मेरा सर पकड़ रखा था और ठेल रहे थे और सास मुझे चिढ़ा रही थीं
" :कैसे चूसती है मेरी बहुरिया। मस्त न। एकदम अपनी माँ पर गयी है। इसकी शादी में इसकी माँ ने पूछा था,
" बरातियों का स्वागत कैसे करुँगी ? "
तो मैं बोली,
" अरे जितने तोहार समधी हैं सबका चूस चूस के समधिन द्वारपूजे पे ही झाड़ देना, लड़का के चचा, फूफा, मौसा दर्जन भर से ऊपर समधी होंगे तोहार। लेकिन एकर महतारी, जब बरात लौटी तो सब बहुत खुश की अइसन स्वागत कउनो बरात मन ना हुआ, लड़की क महतारी खुदे तो पता चला की समधी के साथे साथे, जउन बजनिया, कहार नाऊ सबका समधिन चूस चूस के और झड़ने के बाद १०१ रूपए देकर तीसरी टांग छू छू के, तो ओकर जनि तो चूसने में तो तेज होगी ही "
और ये सुन के नन्दोई एकदम पागल, मेरे दोनों कंधे पकड़ के कस के ठोंक दिया, मैं गों गो करती रही, खूंटा उनका खड़ा हो गया था।
कुछ देर चूसने चाटने के बाद मैंने छोड़ दिया सास जी का इशारा उन्होंने बोतल खोल ली थी।
खूंटा एकदम साफ चिक्क्न और तन्नाया
हम तीनो थक गए थे, आधे घंटे के इंटरवल और दारू की आधी बोतल के बाद उन्होंने सास की तरह फैसला सुना दिया नन्दोई जी को
अबकी तोहरे सलहज का नंबर है
और बताया तो था की मेरे पिछवाड़े के रसिया तो बस मेरे पिछवाड़े का नंबर लगा, लेकिन सास और दामाद ने मिल के यहाँ भी चाल खेल दी मेरे साथ।
" चढ़ जा बहू मेरे दामाद के ऊपर " सास ने मुझे चढ़ाया और मैंने देखा नहीं की उन्होंने नन्दोई जी को कैसे जबरदस्त आँख मारी।
" अरे चढूँगी इस स्साले के ऊपर और मारूंगी, इस की भी, इस की बहन महतारी की भी , वो भी बिना तेल लगाए " हँसते हुए मैं बोली।
ऊपर चढ़ कर चोदने में मुझे बहुत मजा आता था अपने मर्द को तो अक्सर ही, अपनी ननद के इस मरद को भी कई बार खुद ऊपर चढ़ के पेल चुकी थी लेकिन,
" हे छूना मत, चुप चाप लेट के चुद "
मैं नन्दोई को चिढ़ाते हुए ऊपर चढ़ी और उनके दोनों हाथों को अपने हाथों से जकड़ लिया और जैसे ही अपनी बिल उनके तन्नाए खड़े लंड के ऊपर,
सास ने अपने हाथ से अपने दामाद का खूंटा पकड़ के मेरे गोल दरवाजे पे, "
"नहीं नहीं उधर नहीं " मैं चीखी
" क्यों, जब मेरी गाँड़ मारी जा रही थी तो बहुत खिलखिला रही थी, तेरी छिनार की जनी की मखमल की है मेरी टाट की "
हँसते हुए मेरी सास बोलीं और मेरे पिछले दरवाजे में अपने दामाद के खूंटे को फंसा के कस के मेरे कंधे को पकड़ के दबा दिया, उधर नीचे से उनके दामाद ने मेरी कमर पकड़ के उछाल के पूरी ताकत से क्या धक्का मारा, सुपाड़ा पूरा अंदर तो नहीं लेकिन घुस तो गया ही और दोनों ने कस के पकड़ा था इसलिए मैं निकाल भी नहीं सकती थी।
मैं क्या बोलती सास को की उनकी गाँड़ में तो एक पसेरी सरसों का तेल मैंने पिलाया था और उस स्साले नन्दोई के भी खूंटे में खुद मैंने अपने हाथ से तेल मल मल के चिकना किया था और यहाँ सूखे ही नन्दोई पेलने पे तुले थे। लेकिन अब कोई चारा भी नहीं था और मैंने भी एक जबरदस्त बदमाशी सोची और ननदोई के कंधे को पकड़ के अपनी ओर से भी कस के धक्का मारा।
गप्प
दरेररता, रगड़ता, फिसलता मोटू अंदर।
लग रहा था गाँड़ में किसी ने पाव भर सूखा लाल मिरचा डाल के कूट दिया हो। किसी तरह मैंने दांतों से होंठों को काट के दर्द पी लिया, और धीरे धीरे अपनी पूरी ताकत से पुश किया और धीरे धीरे कर के गाँड़ का छल्ला पार हो गया, लेकिन मैंने अब अपनी शरारत शुरू कर दी। ।
आखिर मैं भी तो अपनी सास की बहू थी, और बहुत कुछ गुन ढंग उनसे ही सीखा था और अगवाड़े के साथ पिछवाड़े को भी उन्होंने टाइट करना सिखा दिया था, और ऐसी टाइट की मोटा लंड तो दूर ऊँगली भी कोई अंदर बाहर नहीं कर सकता,
बेचारे नन्दोई जी, मुश्किल से आधा धसा होगा, बेचारे हचक हचक के पेलना चाहते थे और आँख नचाते हुए ऑप्शन दे दिया
" हे अपनी बहिनी के भतार, पेलना है तो मेरी एक बात मानना है , वरना लाख कोशिश कर लो न अंदर घुसा पाओगे, न बाहर निकाल पाओगे "
उनकी ओर से उनकी सास बोलीं " अरे मान जाएगा, मेरे दामाद को समझती क्या हो, एक नहीं दस बात मानेगा लेकिन आज तेरे पिछवाड़े का भुरता बना देगा। "
बस मैंने शर्त सुना दी, मैं पांच बाते बोलूंगी और उन्हें सिर्फ हाँ बोलना होगा , और उनके हाँ बोलते ही ढीला करके मैं एक धक्का मारूंगी और वो भी नीचे से, सिर्फ पांच बार,
इस राउंड में दामद सास की जुगलबंदी थी, दोनों मेरे खिलाफ मिल गए थे। दोनों साथ साथ बोले, मंजूर।
और मैंने नन्दोई की आँख में झाकते हुए मुस्करा के पूछा,
" आप की सास पक्की छिनार हैं, हैं ना "
और जैसे ही उन्होंने हाँ बोलै मैंने पकड़ ढीली की और ऊपर से क्या जबरदस्त धक्का मारा और नीचे से उन्होंने भी और मेरी सास ने कम से कम दर्जन भर गाली मेरी महतारी अपनी समधन को सुनाई , लेकिन उनकी चमकती आँख से लग रहा था वो बड़ी खुश हैं
___अगला नंबर ननद की ननद का था,
" तोहार छोट बहिनिया खूब चुदवाने लायक हो गयी हैं न, गपागप लंड घोंटने लायक "
ननद की ननद तो ग्यारहवें में पहुँच गयी थी , होली के अगले दिन तो हिना और उसकी सहेलियां आठवे नौवें वाली, गपा गप घोंट रही थीं,
" हाँ " नन्दोई जी तुरंत बोले और मैंने एक धक्का और मारा और अगला सवाल पूछ लिया,
" तोहरे कोरी कुँवारी बहन की बुर हमार मर्द और तोहरी बहनिया की भौजी क भैया फाड़ेंगे "
हिचकिचाए वो, लेकिन हाँ बोलने के अलावा कोई चारा भी नहीं था। उन पांच सवालों में उनकी माँ बहन सब चुद गयीं लेकिन नन्दोई जी का खूंटा मेरे पिछवाड़े जड़ तक
उसके बाद तो क्या जबरदस्त पोज बदल बदल कर उन्होंने मेरी मारी,
तीसरी बार पानी गिर रहा था तो टाइम लगना ही था।
रात भर में पांच बार, दो बार मेरा , तीन बार मेरी सास का,
आपने एकदम सही कहा, घर के माल पर बराबर का हक है तो पहले घर बेटी पे हक वसूला और फिर जल्द ही बेटी की बेटी और बेटी की माँ पे भीघर के माल पर बेटे का भी बराबर का अधिकार है..
चाहे बहन हो.. चाहे बहन की बेटी(या फिर खुद की बेटी).. और महतारी के चूत के रस्ते तो निकले हीं..
तो फिर उसी रास्ते जाने में क्या जुल्म...
लेकिन नंदोई भी अपना हक वसूल रहे हैं...
यही तो मजा है ससुराल कानंदोई जी की तो लॉटरी लगी है...
जो मिले हंसोत लो...
अब सास का बदला चुकाने की बारी है...
बस अगले अपडेट में पता चलेगा,जहाँ चाह.. वहाँ राह..
जब दिल ने ठान लिया तो .. सारी कायनात उसे पूरा करने में लग जाती है...
पुलिस और हॉस्पिटल वाले तो बस जरिया हैं...
मतलब अब बात पक्की...
सास भी खुश और ननद भी खुश...
लेकिन ये क्या .. ये कैसी काली बदली...
जब उजियारा फैलने को था तो...
आप भी न बस वहीँ छोडती हैं.. जहाँ बेचैनी अपने चरम पर...
और अगले अपडेट का इंतजार...
बहुत बहुत धन्यवादधन्य हो कोमल मैम
क्या शानदार अपडेट है !!!! बस पढ़ते ही आनन्द आ गया।
इंतजार का फल मीठा होता है सुना था, लेकिन इतना तो उम्मीद से भी परे था।
जबरदस्त इरॉटिक भी और सस्पेंस भी, एकदम रोलर कोस्टर की तरह।
वाह, मजा आ गया।
सादर