कोमल मैम
संतानहीनता सच में एक अभिशाप की तरह होती है। विवाह के शुरू के 1- 2 साल तो यूं ही निकल जाते हैं पर ज्यों - ज्यों समय बीतता है दबाव बढ़ता चला जाता है।
चाहे दबाव पारिवारिक हो या सामाजिक या स्वयं का, पति- पत्नी घुटते रहते हैं। आश्रम की सच्चाई एक तरफ, इस संतानहीनता का तनाव और दबाव घर में ही एक आश्रम बना देता है।
लेकिन भौजी है ना और क्या खूब व्यवस्था की है !!!! सच में पूरी चाक - चौबंद व्यवस्था।
शानदार अपडेट।
सादर
एकदम सही कहा आपने और उसके पक्ष भी अनेक हैं और कारण भी, और कृषि से जुड़े समाज में एक कारण और है सम्पत्ति, जमीन और उसकी इनहेरिटेंस। शायद परिवार की सामजिक व्यवस्था, मनुष्य जाति को आगे बढ़ाने से ज्यादा सम्पत्ति के अनुरक्षण के लिए भी हुयी होगी और दोनों का आपस में जोड़ भी हो।
दूसरा पहलु है, एक सामाजिक स्वीकार्य, सेक्स जिसे शादी के बाद भी छुप छुप के किये जाने वाला कार्य माना जाता है उसकी परिणति का इन्तजार सबको रहता है क्योंकि जीवन चक्र फिर से शुरू होता है, जन्म, पालन पोषण, विवाह और फिर,
और तीसरा अस्पेक्ट है दादा दादी शायद उसमे एक अपनी सुरक्षा भी देखते हैं जैसे आप बीज लगाए, तो पेड़ निकलने पर जितनी ख़ुशी होती है उससे ज्यादा ख़ुशी उसमे पहला फल आने पर होती है, फिर लगता है सब कुछ सफल हो गया।
और इस कहानी में भी मैंने कोशिश की है पुत्र न होने के कष्ट के अनेक आयामों को दिखाने का, इसलिए कहानी के ये भाग देह संबंधो से थोड़ा सा अलग हट कर भी हैं और अगले दो भागों में उसका दर्द और अन्य पहलू भी नजर आएंगे